मोना चौधरी ने जंगल में सब तरफ निगाह मारी । कोई भी नजर नहीं आया । सुनसान घना जंगल था हर तरफ और शाम गहराती जा रही थी । रुकने की कोई जरूरत नहीं थी। वो तेजी से आगे बढ़ गई ।
मिट्टी पर पड़ने वाले कदमों की मामूली सी आहट ही वहां गूंज रही थी । हवा भी न के बराबर थी। इसलिए पेड़ों के पत्ते शांत से नजर आ रहे थे। मौना चौधरी की पैनी निगाह हर तरफ घूम रही थी। उसकी चाल बेहद तेज थी । अंधेरा होने तक वो ज्यादा से ज्यादा रास्ता तय कर लेना चाहती थी | मन में उसने ये तय कर लिया था कि रात के अंधेरे में बेशक कोई भी खतरा आए, वो अपना सफर जारी रखेगी।
अभी शाम का धुंधलका पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ था । हर चीज अभी स्पष्ट नजर आ रही थी । जंगल की वजह से कुछ कालापन सा कुछ उभरा महसूस हो रहा था ।
मोना चौधरी के कदमों की रफ्तार को एकाएक ब्रेक कैसे लगे हो जैसे । ऐसे रुकी वहां उसे देखकर । देखती रही । उस पर से निगाहें न हटा सकी थी वो ।
वो ?
जाने उसकी उम्र क्या होगी, इस बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता था । दूध की भांति उसके सिर के बाल सफेद थे । वैसी ही दाढ़ी, फैली हुई जो पेट तक आ रही थी। उसके चेहरे पर बूढ़ेपन के निशान थे, परन्तु उसका शरीर बेहद स्वस्थ था, कमर भी सीधी थी । वो सामान्य कद-काठी का व्यक्ति नजर आ रहा था । शरीर पर सफेद धोती थी जो घुटनों से लेकर गले तक लिपटी हुई थी।
वो एकटक मोना चौधरी को देख रहा था ।
मोना चौधरी मन ही मन सतर्क थी । मस्तिष्क में फौरन ये बात कौंधी कि ये मायावी इंसान हैं और इस रूप में उसके सामने आकर यकीनन कोई खास जाल फेंकेगा, उस पर । अगले ही पल मोना चौधरी और भी सतर्क हो उठी ।
उसके देखते ही देखते वो आदमी पहले घुटनों के बल नीचे बैठा, छाती के बल लेटते हुए जमीन पर अपना माथा लगाया और दोनों बांहें मोना चौधरी की तरफ करके हाथ जोड़ दिए ।
कई पलों तक वो इसी मुद्रा में रहा ।
होंठ भींचे मोना चौधरी उसे देखती रही । दृढ़ता भरे शक की परछाइयां उसके चेहरे पर और आंखों में नाचती स्पष्ट दिखाई दे रही थी।
फिर वो उठा । सीधा खड़ा हुआ । कपड़ों पर लगी मिट्टी स्पष्ट नजर आ रही थी। दोनों हाथ पुनः जोड़ कर सिर झुकाते हुए आदर भरे स्वर में बोला ।
"मेरा प्रणाम स्वीकार करो देवी ।"
मोना चौधरी सिकुड़ी आंखों से होंठ भींचे देखती रही ।
"देवी । मुझ पर शक मत करो।" वो पहले जैसे स्वर में बोला । "कौन हो तुम?" मोना चौधरी के भिंचे होंठ खुले । स्वर बेहद सख्त था । "मैं आपका सेवक मुद्रानाथ ।" उसका स्वर आदर भरा ही था । मोना चौधरी की आंखों में सुर्खी चमक उठी । "तुम क्या समझते हो, मैं तुम्हारी मायावी चालों में फंस जाऊंगी । तुम लोग बेशक कितने भी रूप बदल कर मेरे सामने आओ, लेकिन मैं तुम्हारी चालाकियों में नहीं आने वाली।" मोना चौधरी गुर्रा उठी ।
"आपको मेरे बारे में भ्रम हो रहा है । मैं...।"
"क्या तुम मायावी इंसान नहीं हो ?"
"हूं। मैं तो तिलस्मी नगरी का बहुत बड़ा ज्ञानी हूं । तिलस्मी नगरी में, कुछ खास लोग ही हैं जो कि तिलस्म के विद्वान है । उन्हीं में से एक हूं ।" उसने आदरमय स्वर में कहा । "तिलस्म के विद्वान हो तुम और मेरे पांवो में पड़ रहे हो । मुझे देवी कह रहे हो ।" मोना चौधरी विषैले स्वर कह उठी--- "बातों में फंसाकर, मेरे साथियों की तरह तो मुझे भी कैदी बनाना चाहते हो । लेकिन याद रखो, मुझ पर काबू पाना इतना आसान नहीं, जितना कि तुम सोच रहे हो। मैं...।"
"देवी ।" उसका स्वर पहले जैसा ही था ---- "अपने सेवक पर इस तरह शक न करो।" "शक।" मोना चौधरी के होंठ भिंच गए --- "तुमने या तुम्हारे साथियों ने मेरे आदमियों को गायब कर रखे कैद कर लिया। इस पर भी कहते हो कि मैं तुम पर शक ना करूं।"
"हां ।" उसने गंभीर भाव में सिर हिलाया--- "क्योंकि वो मेरे आदमी नहीं है। मैं तो खुद तिलस्मी नगरी से अपनी जान बचाकर भागा हुआ हूं और जंगल में अपनी शक्तियों के दम पर छिपकर, वक्त गुजार रहा हूं ।"
मोना चौधरी की आंखें सिकुड़कर और भी छोटी हो गई ।
"तुम्हारी कही बातों में तालमेल नहीं बैठ रहा । एक तरफ तो तुम कहते हो कि तुम तिलस्म के विद्वान हो और दूसरी तरफ खुद को तिलस्मी नगरी से भागा हुआ कहते हो । छिपकर रह रहे हो।"
"हां । दोनों बातें सच है।" उसका स्वर गंभीर हो गया--- "क्या आप अपने सेवक को नहीं पहचानती ?"
मोना चौधरी उसे देखती रही ।
"आप नहीं पहचान सकती । पृथ्वी से आई हैं इसलिए नहीं पहचान सकती।" वो बोला ।
"तुम मेरे बारे में जानते हो ?"
"सब कुछ जानता हूं । तुम यहां से तिलस्मी 'ताज' लेने आई हो, सब मालूम है मुझे । तिलस्मी ताकत के दम पर मैं सामने वाले को समझ जाता हूं कि वो किस काम की खातिर कदम उठा रहा है ।" गंभीर स्वर में कहते हुए उसने सिर हिलाया--- "मैं तुम्हें ज्यादा खुलासा हाल नहीं बता सकता । सिर्फ इतना जान लो कि जिस तिलस्म की तरफ तुम बढ़ रही हो, कभी राजा था मैं वहां का । "
"राजा थे तिलस्म के ?" मोना चौधरी की आवाज में शक था --- "तो अब क्या हुआ ?"
"अभी वक्त नहीं आया, इस बारे में कुछ बताने का।"
"झूठ बोलकर, अपनी बातों में फंसा रहे हो तो मुझे । लेकिन मैं...।"
"देवी, मुझ पर शक न करो ।"
मोना चौधरी उसे घूरती रही ।
"तुम मुझे देवी क्यों कह रहे हो ?"
जवाब में पहली बार उसके होठों पर मुस्कान उभरी ।
"तुम्हें इस बात का जवाब जल्दी ही मिलेगा। मैं अपने मुंह से कुछ कहूं तो वो ठीक नहीं होगा।"
"तुम हर बात का जवाब टाल रहे हो और कहते हो कि मैं तुम पर शक न करूं । मेरे किसी सवाल का जवाब नहीं दे रहे और इधर-उधर की बातें करके खुद को सच्चा कह रहे हो ।" मोना चौधरी ने चुभते स्वर में कहा--- "अभी तक तुमने ऐसा कुछ नहीं किया कि मैं भरोसा करने का ख्याल भी मन में लाऊं । "
वो दो पल खामोश रहकर शांत स्वर में कह उठा।
"मैं जानता हूं । मेरे को इस तरह सामने आया देखकर, मेरी बातें सुनकर, तुम्हारे मन में ढेरों सवाल उठ खड़े हुए हैं और उन सवालों का उठना स्वाभाविक भी है । लेकिन मेरी स्थिति ऐसी नहीं है कि तुम्हारे किसी भी सवाल का जवाब दे सकूं । लेकिन मैं तुम्हें इस बात का विश्वास दिलाने की कोशिश कर सकता हूं कि मैं तुमसे कोई चालाकी नहीं कर रहा । मेरी किसी भी बात में, किसी तरह की चालबाजी नहीं है । "
"विश्वास दिलाने के लिए क्या करोगे ?" मोना चौधरी पूरी तरह सतर्क थी ।
अगले ही पल मुद्रानाथ का हाथ उठा । तभी उसके हाथ में छः इंच लंबा, छोटा सा बेहद खूबसूरत खंजर नजर आया, जो उसने मोना चौधरी की तरफ फेंका ।
मोना चौधरी तुरंत अपनी जगह से हट गई ।
परंतु वो खंजर्, जहां मोना चौधरी खड़ी थी, उससे कुछ पहले ही हवा में ठहर गया था । यह देखकर, मोना चौधरी कुछ संभली सी नजर आने लगी ।
"घबराओ मत ।" मुद्रानाथ ने शांत स्वर में कहा --- - "तुम मेरी देवी हो । मैं तुम्हारा अहित नहीं कर सकता । ये खंजर तिलस्मी है । इसे जितना छोटा करना चाहो कर सकती हो या फिर बड़ा कर सकती हो । आज से यह तुम्हारी आज्ञा मानेगा । जहां तक इसकी पहुंच है, वहां तक ये तुम्हारी सहायता करेगा । तुम्हें सिर्फ मन ही मन बुदबुदा कर खंजर के लिए आदेश अपने मन मे दोहराना होगा । जिस तिलस्म में तुम जा रही हो, वहां पर ये खंज़र तुम्हारे बहुत काम आएगा। ले लो इसे।"
लेकिन मोना चौधरी ने हवा में लटकते खंजर को थामने का कोई प्रयास नहीं किया ।
"ये खंजर बहुत कीमती है देवी । रख लो।" मुद्रानाथ ने शांत स्वर में कहा ।
"नहीं। मैं इसे हाथ नहीं लगाऊंगी । ये तुम मायावी लोगों की चाल है मुझे फांसने की ।" मोना चौधरी एक-एक शब्द चबाकर कह उठी--- "तुम मुझे बेवकूफ नहीं बना सकते।"
"मेरी जुबान पर विश्वास करो।"
"नहीं । तुम झूठे हो । वरना अपना तिलस्मी खंजर कोई किसी को नहीं देता।"
"मैं पहले ही कह चुका हूं तिलस्म का विद्वान हूं मैं । कई अदृश्य ताकतों का मालिक हूं मैं । मैं जितने भी तिलस्मी खंजर चाहूं बना सकता हूं ।" उसने विश्वास दिलाने वाले स्वर में कहा ।
"ऐसा है तो तिलस्म से भागे हुए क्यों हो । छिपकर क्यों रहे हो । तुमने ही कहा था कि...।"
"हां। मैंने ही कहा था, साथ में ये भी कहा था कि इन बातों का जवाब अभी नहीं दे सकता।"
"जो भी हो, मैं ये खंजर नहीं लूंगी और तुमसे कोई वास्ता भी नहीं रखना चाहती । रास्ते से हटो, मैं यहां से जाना चाहती हूं।" मोना चौधरी ने दृढता भरे स्वर में कहा ।
तभी मुद्रानाथ की आंखों से तीव्र किरण निकलकर मोना चौधरी की तरफ बढ़ी और लुप्त हो गई । मोना चौधरी स्थिर सी खड़ी, नजर आने लगी ।
"खंजर पकड़ लो देवी।"
मोना चौधरी का हाथ ऊपर उठा और हवा में लटकता खंजर थाम लिया । तभी मुद्रनाथ की आंखों से पुनः किरण निकलकर मोना चौधरी की तरफ बढ़ी और लगा जैसे सुस्त अवस्था में पहुंची मोना चौधरी को होश आया हो । अपने हाथ में खंजर दबा देखकर मोना चौधरी चौंकी। उसने फौरन मुद्रनाथ को देखा।
"मेरे लिए, अपने मन में शक दूर कर दो देवी । खंजर तुम्हारे हाथ में है । रख लो । आगे आने वाले वक्त में ये तुम्हारी सहायता करेगा । मुद्रानाथ की बातों पर विश्वास करो ।"
मोना चौधरी समझ नहीं पा रही थी कि खंजर उसके हाथ में कैसे आ गया। जबकि खंजर थामने की कोई कोशिश नहीं की थी । वो समझ गई कि मुद्रानाथ ने अपनी शक्ति के । दम पर खंजर उसके हाथ में पहुंचा दिया है और उसे इसका एहसास नहीं हो सका।
"तुम जबरदस्ती मेरी सहायता क्यों कर रहे हो । कौन हो तुम ? "
"अभी वक्त नहीं आया । फिर मिलूंगा तुमसे । शायद तब बातें हों ।" मुद्रानाथ मुस्कुराकर बोला ।
"कहां मिलोगे मुझे ?"
मोना चौधरी के चेहरे का तनाव कुछ कम हुआ ।
"वहीं, जहां तुम जा रही हो ।"
"तुमने कहा था कि मैं तिलस्मी नगरी में जा रही हूं।"
"हां"
"तो फिर मुझे वहां कैसे मिलोगे, जबकि तुम ही ने कहा है कि वहां से भागे हुए, छिपे फिर रहे थे।" मोना चौधरी बोली ।
"मैंने जो कहां है, ठीक कहा है । लेकिन चोरी-छिपे मैं अपनी शक्तियों के दम पर तिलस्मी नगरी में जा सकता हूं।"
मोना चौधरी के चेहरे पर सोच के भाव थे।
"मुझे जहां पहुंचना है, वो जगह यहां से कितनी दूर है ?" मोना चौधरी ने पूछा ।
"ज्यादा दूर नहीं है । आधी रात तक तुम वहां पहुंच जाओगी ।" मुद्रानाथ ने कहा ।
"रात को जंगल में मायावी लोग मुझे अपने जाल में---"
"जब तक तुम्हारे पास ये खंजर है, तब तक तुम्हें कोई मायावी इंसान या छोटे ओहदे वाला तिलस्मी सेवक तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता । उनकी कोई भी कोशिश तुम पर सफल नहीं होगी । बड़े ओहदे वाले तिलस्मी सेवक तुम्हारे लिए रुकावट बन सकता है और उस स्थिति में ये तिलस्मी खंजर तुम्हारी सहायता करेगा।"
मोना चौधरी की सोच भरी निगाह हाथ में दबे तिलस्मी खंजर पर गई ।
"मुझे इजाजत दो देवी । अब तिलस्म में ही मुलाकात होगी।" कहने के साथ ही मुद्रानाथ ने आंखें बंद की तो मोना चौधरी के देखते ही देखते जैसे वो हवा बनकर नजरों से गुम होता चला गया ।
मोना चौधरी समझ नहीं पा रही थी कि मुद्रानाथ कौन है, क्यों उसे तिलस्मी खंजर दिया । उसकी सहायता क्यों कर रहा है, उसने हाथ में दबे खंजर को देखा । अगले ही पल मन ही मन मे बड़बड़ाई ।
"तिलस्मी खंजर, मेरे लिए खाने का इंतजाम करो।"
शब्द पूरे होते हुए थे कि सामने कुर्सी टेबल और टेबल पर खाने का सामान नजर आने लगा । मोना चौधरी कई पलों तक खाने के सामान को देखती रही । फिर मोना चौधरी ने सिर उठाकर फैले अंधेरे को देखा ।
"टेबल पर अंधेरा है । इतनी रोशनी करो कि मैं पूरी तरह खाने का सामान देख सकूं ।" मोना चौधरी बड़बड़ाई ।
रोशनी जाने कहां से आई मालूम नहीं हो सका, परंतु टेबल पर पड़ा सामान रोशन हो उठा।
विश्वास मोना चौधरी ने खंजर पैंट की जेब में फंसाया, फिर आगे बढ़ता कुर्सी पर बैठी और खाने में व्यस्त हो गई । मुद्रानाथ को वह कोई फ्रॉड समझ रही थी, परंतु अब उसे पूरी हो गया था कि वह कोई धोखा नहीं था, सच्चे साफ मन से उसके सामने आया । तिलस्मी खंजर उसे दिया। t
क्या चाहता है उससे मुद्रानाथ ? उसे देवी क्यों कह रहा था ? वह तो तिलस्मी शक्तियों का मालिक था, जबकि वो स्वयं साधारण इंसान । वह भला उसके काम क्या काम आ सकती है ? अपने ही सवालों में उलझी होना चौधरी ने खाना समाप्त किया। पानी पिया और उठ खड़ी हुई ।
उसके खड़े होते ही टेबल-कुर्सी और रोशनी गायब हो गई।
अब वहां घुप्प अंधेरा था और हर तरफ घना जंगल था । लेकिन मन ही मन मोना चौधरी को मुद्रानाथ के दिए तिलिस्मी खंजर का बहुत सहारा था । इस खंजर के सहारे, सामने कैसा भी खतरा आए, उससे निपटा जा सकता था । मोना चौधरी ने अपने सारे हथियार फेंक दिए। वो जानती थी कि ये हथियार इंसानों पर लागू हो सकते हैं। मायावी लोगों पर नहीं । अब उसके पास सबसे बड़ा हथियार तिलस्मी खंजर था, जो मायावी धोखों से निपट सकता था । उसे बचा सकता था ।
मोना चौधरी ने खंजर जेब से निकालकर हाथ में दबाया और बड़बड़ाई ।
"जब मेरी मंजिल आए तो रोशनी करके मुझे आगाह कर देना । अगर कोई मायावी खतरा मुझे घेरने की कोशिश करे तो उससे बचाना तेरा काम है।"
इसके साथ ही मोना चौधरी तेज-तेज कदमों से अंधेरे से भरे जंगल में आगे बढ़ने लगी ।
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