अनवर हसन ।
करीमगंज के बाहरी भाग में पहुंचते ही खामोश हो गया । जबकि ज्यादातर सफर में वह काफी जोश में रहा था । आने वाले वक्त के बारे में बात कर रहा था जब वे अपराध जगत में अपनी प्रतिष्ठा और प्रभुत्व दोबारा हासिल कर लेंगे । कालका प्रसाद और बद्री निराशा में घिरे थे । दोनों जानते थे कानून का शिकंजा कसता जा रहा था । पुलिस हाथ धोकर उनके पीछे पड़ी थी और यह भी कि पुलिस को पता था डिसूजा करीमगंज में आया हुआ था । उसे भी धर दबोचने की पूरी कोशिश की जायेगी । इन तमाम बातों के मद्देनज़र वे दोनों समझ चुके थे अनवर की खातिर बड़ा भारी जोखिम उठाने वाले थे । बद्री तो असल में यह भी सोच रहा था की अनवर के डिसूजा की तलाश में निकलते ही इस सारे बखेड़े से दूर भाग जाना कैसा रहेगा ।
नौ बजकर सात मिनट पर वे गैराज में आ पहुंचे । बद्री के ठिकाने के पिछले कमरे में योजना पर पुनर्विचार किया । हथियार चैक किये और दो तगडे–तगड़े ड्रिंक लिये ।
दस बजने से चंदेक मिनट पहले अनवर अपनी लोडेड गन जेब में डालकर चला गया ।
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कानून का शिकंजा वाकई बुरी तरह कसता जा रहा था ।
उस्मान लंगड़ा को सुबह–सवेरे उसके ठिकाने से गिरफ्तार किया जा चुका था । उसे अरेस्ट करने आई पुलिस पार्टी ने सारा स्थान छान मारा । अन्य चीजों के साथ डिसूजा के फोटो भी वहां मिले । उन्हें फौरन टेम्प्रेरी हैडक्वार्टर्स ले जाकर वर्मा को सौंप दिया गया । वर्मा ने फौरन क्राइम ब्रांच के विजिलेंस विंग को अलर्ट कर दिया ।
जब मोतीलाल वहां पहुंचा एक इंसपेक्टर और एक एस० आई० वर्मा के ऑफिस में इंतजार कर रहे थे । वर्मा पहले ही वहां से जा चुका था । लेकिन मातीलाल उन दोनों अफसरों की मौजूदगी की वजह समझ गया । वह सीधी–सी फिलासफी वाला आदमी था । उनकी ओर देखा । बड़े ही थके से अंदाज़ में बोला–"आओ, चलें ।" और चुपचाप साथ जाकर उनकी कार में बैठ गया ।
मुश्किल से घण्टे भर बाद हैडक्वार्टर्स की पांचवीं मंज़िल की एक खिड़की से कूदकर उसने ख़ुदकुशी कर ली ।
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वर्मा ने सेंट्रल कैथेड्रल चर्च की पूरी तरह नाकाबंदी करा दी थी । उसके अधिकांश आदमी सादा लिबास में थे । वह खुद पहली मंज़िल के पश्चिमी दरवाजे से हर तरफ नजर रखे हुये था । उसके साथ आधुनिकतम राइफल से लैस एक निशानेबाज़ भी था । वर्मा नर्वस था और बार–बार फील्ड ग्लासेज से पूरे इलाके को देख रहा था । बहुत कुछ दांव पर लगा था । अगर जरा–सी चूक हो गयी तो एक अल्प संख्यक समाज के धार्मिक स्थल में सैंकड़ों लोग गोलीबारी की चपेट में आ जायेंगे । फिर समूचे पुलिस विभाग की जो फ़ज़ीहत होगी और देश–विदेश में जो बावेला मचेगा उसके बारे में सोचकर ही रूह कांपने लगती थी ।
कमल किशोर, तोमर और रोशन लाल नीचे चर्च में भीड़ से अलग–थलग खड़े डिसूजा की ताक में थे । रंजीत मलिक भी बड़ी नाज़ुक जगह पोजीशन लिये हुये था ।
दस बजे तक वर्मा को पसीने छूटने लगे ।
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दस बजे के बाद !
बसों द्वारा डेलीगेट्स को कैथेड्रल चर्च में लाया जाने लगा ।
सब शान्तिपूर्वक बसों से उतरकर अंदर जा रहे थे । पादरी और दूसरे वालिंटियर सबको गाइड करके मेन हॉल में पहुंचा रहे थे ।
फादर अब्राहम थक गया था । पिछली रात भी वह नाममात्र को ही सो पाया था । खतरनाक मुजरिमों की निगरानी करने का काम उस बूढ़े की फितरत से कतई मेल नहीं खाता था । हालांकि युवक पादरी मदद कर रहा था लेकिन उससे फादर और ज्यादा नर्वस हो रहा था । ब्रॉडवे होटल के बाहर पूरी पार्टी को बसों में सवार कराने में उन्हें दस मिनट देर हो गयी थी और फादर अब्राहम उनके कैथेड्रल में पहुंचने के बारे में चिंतित थे ।
चिंता की वजह भी थी । क्योंकि चर्च के पास पहुंचने पर उसने देखा दूसरी पार्टियाँ भी लेट थीं । उस इलाके में वैसे भी काम पर जाते–आते वक्त यातायात की समस्यायें आम थीं । चारों तरफ बसों से उतरती इन पार्टियों की वजह से समस्या और गम्भीर हो गयी थी ।
फादर अब्राहम ने अपने युवक असिस्टेंट की मदद से किसी प्रकार अपने बड़े ग्रुप के लोगों को व्यवस्थित किया और उन्हें चर्च की ओर ले चला । लेकिन जब दूसरे ग्रुप उनके साथ मिलने लगे तो सब मिलकर भारी भीड़ बन गये ।
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एस० पी० वर्मा की व्याकुलता और ज्यादा बढ़ गयी थी । फील्ड ग्लासेज के होते हुये भी वह ठीक से नहीं देख पा रहा था । भीड़ इतनी ज्यादा थी कि इंसानी दरिया–सा बहता नजर आ रहा था–चर्च के गेट के अंदर ।
–"इस भीड़ में जरूरत पड़ने पर किसी के पास पहुंच पाना नामुमकिन है ।" वह बड़बड़ाया ।
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पीटर डिसूजा को भीड़ में धकेला जाना पसंद नहीं था । हालांकि उसका बॉडीगार्ड माइकल उसके साथ चिपका हुआ था । फिर भी इतनी भीड़ ने उसने नर्वस–सा कर दिया था ।
चर्च का भीतरी भाग डिसूजा की उम्मीद से कहीं ज्यादा विशाल निकला । किसी तरह सब अपनी–अपनी सीट तक पहुंचने में कामयाब हो गये । डिसूजा ने देखा वही युवक पादरी अभी भी उसके पास ही था । वह मुंह बनाकर रह गया ।
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अनवर हसन ।
पैदल चलकर उस इलाके में पहुंचा और लोगों का भारी हुजूम देखकर खुश हो गया । इतनी भीड़ में पुलिस द्वारा किसी व्यक्ति विशेष को देख पाना नामुमकिन था । अनवर को पहली बार पता चला ईसाईयों में धर्म के प्रति कितनी मान्यता थी ।
वह खुद भी बेचैनी–सी महसूस करता किसी तरह चर्च के अंदर पहुंच गया । एक जगह खड़ा होकर वह डिसूजा को ढूंढने की कोशिश करने लगा । इतनी भीड़ में वो भूसे के ढेर में सुई को खोजने जैसा काम था ।
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कमल किशोर, तोमर और रोशन लाल, डिसूजा और उसके चारों साथियों को देख पाने में कामयाब हो गये । उन्हें यह जानकर भारी राहत महसूस हुई कि अपनी उस पोजीशन में उन पर नजर वे रख सकते थे ।
उन्होंने रंजीत को भी देख लिया । कमल किशोर और रोशन लाल एक–दूसरे को देखकर मुस्कराये ।
थोड़ी देर बाद समारोह आरम्भ हो गया ।
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सामुहिक प्रार्थना का वो समारोह अपने कार्यक्रमानुसार सफलतापूर्वक संपन्न हो गया ।
लोग बाहर निकलने आरंभ हो गये ।
रंजीत ने पूरी श्रद्धा के साथ उसमें भाग लिया था । अब उसे पुलिस अफसर के रूप में अपनी ज़िम्मेदारी निभानी थी ।
तोमर कमल किशोर और रोशन लाल ने डिसूजा और उसके साथियों की ओर बढ़ना शुरू कर दिया ताकि उनके नज़दीक पहुंच सकें । उन्हें भीड़ में गुम न होने देने के लिये वे तीनों लोगों को धकेलते हुये–से उनकी ओर बढ़ रहे थे ।
अब उन तीनों को भी बेगुनाहों को बचाने का अपना कर्तव्य पालन करना था ।
वे डिसूजा और उसके साथियों के पीछे पहुँच गये और अपनी पोजीशन से संतुष्ट थे ।
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अनवर हसन ने पूरा वक्त पिछली तरफ दरवाजे के निकट रहकर गुजारा था । अब वह इंतजार कर रहा था । उसे डिसूजा के पास जाने की जरूरत नहीं थी वह खुद ही उधर आ रहा था । उसके चारों ओर कई लोग थे । अनवर के अनुमानानुसार वे उसके अपने बॉडीगार्ड थे । उसे इस हालत में शूट कर पाना मुमकिन नहीं था । अनवर एक ही गोली में उसे खत्म करना चाहता था । भीड़ के कारण उसे नहीं लगता था दूसरा फायर करने का मौका पा सकेगा । जबकि यहां ऐसा कर पाना मुमकिन नहीं था । एक पादरी ठीक डिसूजा के आगे था, जिसकी वजह से उसकी लाइन ऑफ फायर में बाधा पड़ रही थी ।
अनवर को लगा बाहर सीढ़ियों पर वह बेहतर मौका पा सकेगा । भीड़ में एक प्रकार से धक्का–मुक्की सी करके गुजरता हुआ वह बाहर आ गया ।
यह ज्यादा मुनासिब जगह थी । यहां से डिसूजा को शूट करके भागकर कालका प्रसाद की कार तक पहुँचना भी आसान था । कालका प्रसाद अब तक करीब दो सौ गज दूर सड़क पर पहुंचकर कार पार्क करके उसका इंतजार कर रहा होगा ।
अनवर तत्परतापूर्वक प्रतीक्षा करने लगा ।
डिसूजा बाहर निकलता दिखाई दिया ।
उसके दायीं ओर कुछेक नन थीं । फिर अचानक डिसूजा के सामने चल रहे युवक पादरी ने गरदन घुमाकर पीछे देखा । ऐसा करने से उसे तनिक बायीं ओर होना पड़ा और इस तरह डिसूजा सामने से वो बाधा हट गयी जो गोली चलाने के लिये बीच में थी ।
वह ओपन हो गया ।
अनवर ने जेब से पिस्तौल सहित हाथ बाहर निकालकर फ़ायरिंग पोजीशन में ऊपर किया । वह डिसूजा से चंदेक कदम के फासले पर ही था । ज्योंहि उसने ट्रीगर खींचा युवक पादरी ने पुनः सर आगे घुमा लिया ।
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रंजीत भांप चुका था पादरी बाधा के रूप में उसके और डिसूजा के बीच मौजूद था और अब अचानक जो घटनाचक्र सामने आया तो वह अपनी गन को उतनी आसानी और फुर्ती से नहीं निकाल पाया जितनी मौके के मुताबिक दरकार थी । इस तरह करीब दो सैकेंड का अहम वक्त जाया हो गया और इस बीच अनवर चार फायर कर चुका था ।
दो गोलियां सीधी डिसूजा की छाती में जा घुसीं । वह उलटकर पीछे जा गिरा ।
आतंकित भीड़ में चीख–पुकार और अफरा–तफरी मच गयी ।
रंजीत अपने दायीं ओर पास ही फायर की गूंज सुनकर मुड़ा तो डिसूजा के एक आदमी को दूसरे फायर के लिये गन पोजीशन में लाते देखा ।
उसने अपनी गन से उस आदमी की कलाई पर वार कर दिया । तभी उसे पता चला डिसूजा के दूसरे साथी से तोमर उलझा हुआ था । साथ ही उसने देखा कमल किशोर भीड़ में डिसूजा के पास नीचे पड़ा था और उसके गले से खून बह रहा था ।
दूसरे सादा लिबास वाले पुलिसमैन भी दौड़कर अंदर आ रहे थे । लेकिन अनवर हसन पलट चुका था और तेजी से भीड़ को धकेलता भाग रहा था ।
रंजीत रोशन लाल को पुकारकर अनवर के पीछे भागा ।
भीड़ में इस तरह पीछा करना आसान नहीं था ।
वे दोनों सड़क पर आ गये ।
अनवर तेजी से भाग रहा था ।
रंजीत उतना तेज नहीं भाग पाया । लेकिन रोशन लाल आगे निकलकर अनवर के पीछे पहुंच गया । इस स्थिति में रंजीत अनवर पर फायर नहीं कर सका । वह पूरी ताकत लगाकर दौड़ पड़ा और अनवर के पास होता चला गया ।
उस कार को भी वह देख चुका था जिसकी ओर अनवर भाग रहा था । कार की ड्राइविंग सीट पर एक आदमी मौजूद था । इंजिन चालू था और बगल वाला दरवाज़ा खुला हुआ था ।
अनवर हांफता हुआ चीख रहा था ।
–"मैंने उस हरामजादे का मार डाला, कालका...वह खत्म हो गया...हम जीत गये...!"
वहां ज्यादा भीड़ नहीं थी । रंजीत को सही मौका मिल गया । वह रुका, टांगें चौड़ा कर खड़ा हो गया और दोनों हाथों में गन थामकर फायरिंग पोजीशन में ले आया । लेकिन इससे पहले कि ट्रिगर खींचता, दायीं ओर से दो फायर हुये और अनवर नीचे जा गिरा ।
दोनों गोलियां उसकी पीठ में जा घुसी थीं । सड़क पर खून फैलने लगा ।
रंजीत ने अब कार पर निगाहें जमायी । ड्राइवर दरवाज़ा बंद करने के लिये झुक चुका था और अब शॉटगन ऊपर उठा रहा था ।
रंजीत ने फायर झोंक दिया ।
गोली विण्डशिल्ड को तोड़ती हुई अंदर जा घुसी ।
ड्राइवर ने शॉटगन गिराकर कार दौड़ाने की कोशिश की लेकिन रोशन लाल ने लगातार दो फायर कर दिये ।
ड्राइवर सीट पर ढेर हो गया । कार जरा भी नहीं हिल सकी ।
रंजीत और रोशन लाल धीरे–धीरे अनवर की ओर चल दिये ।
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पीटर डिसूजा मर चुका था ।
उसका एक साथी भी मारा गया था ।
दुर्भाग्यवश अनवर की तीसरी गोली कमल किशोर के गले में लगी थी । वह भी दम तोड़ चुका था ।
अनवर हसन और कालका प्रसाद भी मारे गये ।
बाकी तीनों दुबई वाले भी हिरासत में लिये जा चुके थे ।
अचानक हुई गोलीबारी से फैली दहशत और अफरा–तफरी में दो औरतें बेहोश हो गयीं और तीन आदमी भीड़ में कुचले जाने की वजह से जख्मी हो गये थे ।
वर्मा और उसकी टीम पूरे मामले की रिपोर्ट तैयार करने में जुट गयी ।
रंजीत को पेपरवर्क से नफरत थी । लेकिन मज़बूरन पूरी रिपोर्ट तैयार करनी पड़ी ।
शाम को उसने रजनी को फोन करके अपने फ्लैट में आने को कहा ।
रजनी ने उसकी आवाज़ सुनकर भारी राहत महसूस की और आने का वादा कर लिया ।
छ: बजे रंजीत ने वर्मा से घर जाने की इजाज़त मांगी ।
वर्मा ने इजाज़त दे दी ।
–"शुक्रिया, रंजीत !" वह बोला–"अब कुछ रोज तो अमन रहेगा ।"
–"मुझे नहीं लगता, सर !"
–"क्यों ?"
–"इसलिये कि ओपन वार छिड़ी थी वो खत्म हो गयी । लेकिन अण्डरवर्ल्ड में हसन भाइयों की जगह लेने के लिये आपसी जंग छिड़ेगी और जिसका भी पलड़ा भारी होगा, वह अपनी हुक़ूमत शुरू कर देगा ।"
–"तुम ठीक कहते हो ।" वर्मा कराहता–सा बोला–"हमारे नसीब में आराम–चैन नहीं है ।"
रंजीत मुस्कराता हुआ बाहर निकल गया ।
* * * * * *
रजनी राजदान ।
पहले कभी रंजीत के फ्लैट में नहीं आयी थी । उसे देखकर ताज्जुब हुआ वहां की हालत इतनी खराब नहीं थी, जितनी कि आमतौर पर अकेले रहने वाले आदमियों के घरों की हुआ करती है ।
–"तुम्हारा घर तो काफी ठीक–ठाक है ।"
रंजीत मुस्कराया ।
–"अभी यह घर नहीं है, मैडम ! तुम चाहो तो बना जरूर सकती हो ।"
रजनी ने गौर से उसे देखा ।
–"प्रपोज कर रहे हो ?"
–"हां, बस एक शर्त है ।"
–"क्या ?"
–"तुम्हें सच्चाई बतानी होगी । पूरी सच्चाई ।"
रजनी की आंखों से ख़ुशी की चमक गायब हो गयी । होंठ कसकर भिंच गये ।
–"तुम्हें कैसे पता चला मैंने सच्चाई नहीं बतायी है ?" रुआंसी होकर पूछा ।
–"मैं पुलिस अफसर हूं, मैडम । कोई घसियारा नहीं । देर–सबेर हम असलियत तक पहुँच ही जाते हैं । मेरी समझ में सिर्फ एक बात नहीं आयी है । उस रोज जब तुम पहली बार राकेश मोहन के फ्लैट में पहुंची और तुम्हें पता चला वह मर चुका है, तब तुम्हारी जो हालत हुई वो नाटक था या असलियत ?"
रजनी ने गहरी सांस ली ।
–"वो असलियत थी ।"
–"खुलासा तौर पर बताने की तकलीफ़ करोगी ?"
–"जरूर ! मेरी उस हालत में कोई नाटक नहीं था । मैं वहां इसलिये गयी थी क्योंकि मैं नहीं जानती थी क्या हो चुका है । या कह सकते हो मैंने खुद को जानने नहीं दिया । जैसा कि मैंने कहा था, न तो मैं अखबार पढ़ती हूं और न ही टी० वी० पर ख़बरें देखती हूं । मुझे उसके अरेस्ट किये जाने की उम्मीद थी । यह तो सोचा तक नहीं था कि मारा जायेगा ।"
–"उसे अरेस्ट किये जाने की उम्मीद तुम्हें क्यों थी ?"
–"कई वजह थीं । बड़ी वजह तो यह थी मैं उससे ऊब गयी थी–बुरी तरह । मैं उसे प्यार तो करती थी लेकिन वह मुझे पसंद नहीं था । मैं जानती थी कि उसकी जिंदगी में और लड़कियाँ भी थीं । यह शक भी था उसकी आमदनी का जरिया अच्छा नहीं है । जबकि मुझे जुर्म या गलत धंधों से नफरत है । मैं नहीं जानती थी वह किसलिये नेपाल गया था । फिर उसने काठमाण्डु से मुझे ऑफिस में फोन किया और बताया, हम बहुत जल्दी दौलतमंद होने वाले हैं । क्योंकि वह कोई ऐसी चीज ला रहा था जिससे हमारे लिये दौलत के ढेर लग जायेंगे । मुझे शक हुआ वह ड्रग्स लेकर आ रहा है । मैं समझ गयी, अगर फ़ौरन उससे किनारा नहीं किया तो फिर कभी आजाद नहीं हो सकूँगी । हमेशा के लिये उसके साथ उलझ कर रह जाऊंगी । वह अय्याश आदमी था । मोटा पैसा आने पर मुझे बेवकूफ़ बनाकर दूसरी औरतों के साथ खुलकर ऐश किया करेगा और जब भी कानून के हत्थे चढ़ेगा तो उसके साथ मैं भी फंसकर रह जाऊंगी । उसने मुझे बता दिया था कब कहां पहुँचेगा । इसलिये मैंने वक्त आने पर एक पब्लिक टेलीफोन बूथ से पुलिस को गुमनाम फोन करके सारी इत्तिला दे दी, कि वह ड्रग्स ला रहा था । फिर मैं इस बारे में भूल गयी, तब तक के लिये जब मैं उस रोज उससे मिलने वाली थी और उसके फ्लैट में पहुंच गयी...।"
रंजीत ने उसे बांहों में भर लिया ।
–"अब सब ठीक हो गया ।" उसे किस करके बोला–"यह किस्सा खत्म हो चुका है और मैं यहां हूं ।"
–"क्या तुम्हें इसकी...?"
–"रिपोर्ट करनी होगी ? नहीं, डार्लिंग ! इतना घटिया आदमी मैं नहीं हूँ । अपनी इस कबूतरी को उड़ाने की बजाये मैं पिंजरे में कैद करुंगा ।"
–"सच ?"
रजनी उसके सीने से लग गयी ।
–"इतना सब हो चुकने के बाद मुझ पर भरोसा कर सकोगे ?"
–"मुझे नहीं लगता इसमें कोई मुश्किल होगी ।"
तभी टेलीफोन की घण्टी बजने लगी ।
रंजीत ने रिसीवर उठा लिया ।
लाइन पर स्त्री स्वर उभरा ।
–"रंजीत ?"
वह पहचान गया फोन करने वाली सूजी थी–उसकी मंगेतर जो मंगनी तोड़ चुकी थी ।
–"यस !" सपाट स्वर में बोला ।
–"मैंने आज शाम के अखबार देखे हैं । तुम ठीक हो ?"
–"बिल्कुल ठीक हूं ।"
–"मुझे तुम्हारी फिक्र थी । बहुत याद आते हो । क्या मैं वापस आ सकती हूं ?"
रंजीत ने अपने सीने से लगी रजनी के होठों को किस किया ।
–"सॉरी, सूजी !" चटखारा–सा लेकर बोला–"मेरी कबूतरी मेरे पास है । हमारी शादी में तो आओगी ही ?"
दूसरी ओर से रिसीवर पटक दिया गया ।
–"तुम्हारी एक्स फियांसी थी ?"
–"हां !"
–"इस कबूतरी के होते हुये किसी और की जरूरत तुम्हें कभी नहीं पड़ेगी ।"
रंजीत मुस्कराया ।
–"सबूत पेश करो ।"
रजनी ने पुनः उसे बांहों में कसकर ताबड़तोड़ चूमना शुरू कर दिया ।
समाप्त
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