मोना चौधरी,, पारसनाथ और बंगाली आगे बढ़े जा रहे थे। वो जुदा बात कि थकान की वजह से उन्हें के आगे बढ़ने की रफ्तार पहले जैसी नहीं रही थी । पसीनों से भरे चेहरे और बदन । थकान से भरा चेहरा । परंतु कहीं रुक कर आराम करने का अभी तक उन्होंने सोचा नहीं था ।
"मेरी टांगों में दर्द हो रहा है ?" बंगाली कह उठा--- "कुछ देर आराम कर लिया जाए।" वे आगे बढ़ते रहे ।
"अभी रुकने की कोई जरूरत नहीं ।" मोना चौधरी ने सख्त स्वर में कहा--- "शाम हो रही है । कुछ ही देर में रात हो जाएगी। तब कहीं रुकने की जगह देखेंगे।"
"मुझे प्यास लग रही है । गला सूख रहा है ।" बंगाली उखड़े स्वर में कह उठा ।
"तुम अच्छी तरह जानते हो बंगाली कि यहां किसी भी चीज का इंतजाम नहीं हो सकता।" पारसनाथ ने सख्त खुरदरे स्वर में कहा--- "इसलिए बेकार की बातें नहीं करो तो अच्छा है
बंगाली जानता था कि पारसनाथ ठीक कह रहा है ।
कुछ समझ नहीं आ रहा कि अभी हमें कितना रास्ता तय करना होगा ।" पारसनाथ कह उठा।
"तुम ठीक कहते हो । ये सवाल वास्तव में उलझन से भरा है। हमारा सफर आधे घंटे में भी समाप्त हो सकता है और दस दिन भी जारी रह सकता है ।" मोना चौधरी सोच भरे शब्दों में कह उठी ।
"बाबा को ये तो बताना चाहिए था कि हमें कितनी दूर जाना पड़ेगा।" बंगाली कह उठा । उसी वक्त मोना चौधरी ठिठकी ।
पारसनाथ भी रुका। बंगाली की निगाह भी वहां जा टिकी थी ।
तीनों के चेहरों पर हक्के-बक्के, हैरानी वाले भाव नाचने लगे थे ।
वो नीलू महाजन ही था ।
पेड़ के नीचे, तने से टेक लगाए महाजन बैठा था । उसका जिस्म जगह-जगह से घायल हुआ पड़ा था । कपड़े फटे हुए थे । हाल बेहाल हुआ पड़ा था उसका । उसके पास ही मृत अवस्था में वही, अजगर पड़ा था, जो महाजन को निगल कर गायब हो गया था ।
तभी टेक लगाए महाजन ने गर्दन घुमाई और उन्हें देखा । उसका चेहरा भी घायल था । उसके होंठ हिले, जैसे कुछ कहना चाहता हो, परंतु कह न पा रहा हो ।
"महाजन।" मोना चौधरी को जैसे होश आया ।
पारसनाथ हड़बड़ाया-सा महाजन की तरफ लपका ।
मोना चौधरी और बंगाली भी उसकी तरफ बढ़े ।
"यहां कैसे पहुंचा ?" महाजन के पास पहुंचकर, पारसनाथ घुटनों के बल उसके पास बैठता हुआ बोला । "क्या हुआ महाजन। कैसा है तू । ये अजगर तेरे को कहां ले गया था ।"
महाजन ने पुनः कुछ कहना चाहा, परंतु सिर्फ होंठ ही हिलकर रह गए। उसने अपना हाथ आगे बढ़ाया तो पारसनाथ ने उसका हाथ पकड़ लिया ।
"तू बोलता क्यों नहीं महाजन ।" पारसनाथ खुरदरे स्वर में बोला--- "तेरे को...।"
अगले ही पल पारसनाथ ने महसूस किया कि उसके हाथ पर महाजन की हथेली की पकड़ मजबूत होती जा रही है। पारसनाथ ने महाजन का हाथ देखा, जिसमें उसकी हथेली दबी पड़ी थी । हर बीतते क्षण के साथ महाजन के हाथ की पकड़ पारसनाथ के के हाथ पर मजबूत होती जा रही थी ।
पारसनाथ के चेहरे पर अजीब से भाव आए ।
महाजन की हथेली की पकड़, इतनी कठोर और मजबूत नहीं हो सकती ।
पारसनाथ ने फौरन महाजन के चेहरे पर निगाह मारी तो चिहुंक उठा। महाजन के चेहरे पर विषैली मुस्कान उभर पड़ी थी ।
उसी पल जैसे मोना चौधरी और बंगाली की आंखों के सामने बिजली कौंधी हो । महाजन, पारसनाथ मरी सी हालत में पड़े गायब हो चुके थे ।
"क्या हुआ पारसनाथ ?" पास खड़ी मोना चौधरी ने उलझन भरे स्वर में पूछा ।
"महाजन मुस्कुरा रहा है ।" बंगाली कह उठा ।
मोना चौधरी अवाक-सी खड़ी रह गई।
बंगाली का मूंह फटा का फटा रह गया ।
पारसनाथ अब उनके बीच नहीं था ।
"ये मुझे भूतों की नगरी में कहां ले आई ।" बंगाली के स्वर में डर था--- - "यहां तो कभी भी, कुछ भी हो सकता है । वो-वो महाजन का भूत था जो पारसनाथ को अपने साथ ले गया।" दांत भींचे मोना चौधरी ने गर्दन घुमा कर बंगाली को देखा ।
"वो महाजन का भूत नहीं था ।" मोना चौधरी कठोर स्वर में कह उठी ।
"आंखों देखी बात झुठला रही हो ।" बंगाली की आवाज में गुस्सा उभर आया।
"बेबकूफ, किसी मायावी इंसान ने महाजन का रूप ले रखा था । मायावी लोग समझ चुके हैं कि अब हम आसानी से उनकी चालों में नहीं फंसने वाले । इसलिए उन्होंने महाजन के रूप में हमें धोखा दिया। यानी कि अब हमें अपने ही गायब हो चुके साथियों के चेहरे वालों से भी बचना होगा।"
"क्या मतलब ?"
"हमारे जो साथी, मायावी लोगों की कैद में पहुंच गए हैं, वो इस कदर आसानी से वापस नहीं आ सकते। गायब हुए साथियों में से अब कोई नजर आता है तो तुरंत समझ जाना है कि मायावी इंसान का रूप है, हमें फंसाने के लिए। उसे छूना नहीं है ।" मोना चौधरी की आवाज में कठोरता थी ।
"लेकिन ये तमाशे कब तक होते रहेंगे ।" हताशा-सा बंगाली कह उठा।
"इस सवाल का जवाब तो मैं खुद नहीं जानती ।"
"तुम मुझे यहां से वापस पृथ्वी पर क्यों नहीं भेज देती ?" बंगाली की आवाज में याचना भरी थी ।
"ऐसा कर पाना मेरे बस का नहीं है।" मोना चौधरी ने कहा ।
"तुम अपने उस बाबा से कह कर मुझे मुंबई भिजवा दो ।" बंगाली की हालत भी मरी सी थी।
"मुझे नहीं मालूम बाबा कहां है ।" मोना चौधरी ने बंगाली की हालत को घूरा--- "जहां हम जा रहे हैं वहां बाबा ने मिलने को कहा था । बाबा मिले तो तुम्हारे बारे में उनसे बात कर लूंगी । तब तक अपने पर काबू पाये रखो, कहीं तुम भी मायावी लोगों की चालों में फंसकर गायब मत हो जाना । तुम हिम्मत वाले इंसान हो । मुझे हैरानी है कि इतनी जल्दी हिम्मत छोड़ रहे हो।"
"मोना चौधरी, इसमें हिम्मत की बात तो तब आए, जब मैं इंसानों से डर कर भागने को कहूं । ये तो भूत हैं जो हमें नजर नहीं आते और हमारी हर हरकत देख रहे हैं। वो जब चाहें जो भी रूप धारण करके हमें गायब कर दें और हम पागलों की तरह एक-दूसरे का मुंह देखते रहे।"
मोना चौधरी मुस्कुराई ।
"ये मायावी नगरी है बंगाली और... | "
"मैं भी तो यही कह रहा हूं कि मैं वापस इंसानों की नगरी में जाना चाहता हूं । कम-से-कम इंसान नजर तो आते हैं। उनका मुकाबला किया तो जा सकता है । यहां तो मैं पागल हो जाऊंगा।" S
मोना चौधरी गहरी सांस लेकर रह गई ।
"रुको मत । हमें मंजिल पर पहुंचना है। वहां फकीर बाबा मिलेंगे तो तुम्हारे बारे में उनसे बात कर लूंगी । आओ चलें।" मोना चौधरी ने उसका हौसला बढ़ाने वाले ढंग में कहा।
दोनों पुनः आगे बढ़ने लगे ।
सूर्य पश्चिम की तरफ झुकता जा रहा था । जंगल होने की वजह से वहां वक्त से पहले ही अंधेरा सा महसूस होने लगा था ।
"अंधेरा होने पर हम क्या करेंगे ?" एकाएक बंगाली ने सूखे होठों पर जीभ फेर कर कहा । "क्या मतलब ?"
"तब तो अंधेरे में आगे नहीं बढ़ा जाएगा और...।"
"अभी अंधेरा होने में बहुत देर है । जब रात होगी, तब देखा जाएगा ।"
मोना चौधरी और बंगाली आगे बढ़ते रहें ।
चलते-चलते एक घंटा और बीत गया । सूर्य पूरी तरह पशिचम में झुक गया था, लेकिन अभी जंगल में इतनी रोशनी थी कि सब कुछ नजर आ रहा था ।
तभी दोनों के कदम ठिठक गए ।
ठीक सामने जमीन पर एक चादर बिछी हुई थी और उस पर तरह-तरह के खाने के सामानों से भरे बर्तन पड़े थे । खाने की महक उनकी सांसों तक भी पहुंची ।
मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ी ।
जबकि बंगाली की आंखें फैल गई। उसे लगा कि उसे तो जोरों की भूख लग रही है। पेट में जैसे भूख की वजह से बड़ा-सा गोला छलांगे मारने लगा ।
"मैं पहले खाना खाऊंगा।" बंगाली जल्दी से आगे बढ़ा ।
"रुक जाओ बंगाली।" मोना चौधरी तेज स्वर में कह उठी। बंगाली ठिठका | पलटकर मोना चौधरी को देखा ।
"क्या हुआ ?"
"खाना खाने की गलती मत कर बैठना ।" मोना चौधरी की आवाज में तीखापन था--- "यह बिछी चादर हमें फंसाने की चाल है। मेरे ख्याल में इसके ऊपर बैठने वाला, चादर सहित गायब हो जाएगा।"
बंगाली के होंठ सिकुड़े।
"मतलब कि ये मायावी चादर है । "
"हां । खाने का लालच छोड़ दो । चलो आगे बढ़ो ।"
कहकर मोना चौधरी एक तरफ से निकलकर चादर पार करती हुई आगे बढ़ गई । बंगाली को साथ न पाकर ठिठकी। पलटी ।
बंगाली वहीं खड़ा खाने को घूर रहा था ।
"चलो।" मोना चौधरी ने कहा ।
बंगाली ने खाने पर से निगाह हटाकर सोच भरी निगाहों से मोना चौधरी को देखा । "मुझे भूख लगी है ।" कहते हुए एकाएक बंगाली मुस्कुरा पड़ा ।
"मैं तुम्हें कह "दिमाग तो खराब नहीं हो गया तुम्हारा ।" मोना चौधरी के दांत भिंच गए--- चुकी हूं कि ये मायावी चादर है । इस पर बैठोगे तो दूसरों की तरह गायब होकर, उनकी कैद में---।"
"लेकिन खाना - खाने के लिए चादर पर बैठना जरूरी है क्या ?" बंगाली हौले से हंसा मोना चौधरी की आंखे सिकुड़ी ।
"तुम कहना क्या चाहते हो ?" जबकि मोना चौधरी समझ चुकी थी, बंगाली की सोचों को ।
"ये देखो ।" कहते हुए बंगाली आगे बढ़ा । चादर के गिर्द घूमकर उस तरफ आया, जिधर बर्तनों के गर्म खाना मौजूद था । ठिठककर उसने मोना चौधरी को देखा---
"अब मैं हाथ बढ़ाकर खाने का बर्तन और रोटी उठा लूंगा। मायावी खाना तो हमें नुकसान नहीं पहुंचाएगा। ऐसे तो हम पहले भी खा चुके हैं। "
"यहां कोई भी ऐसी हरकत करना ठीक नहीं ।" मोना चौधरी कह उठी--- "अपनी सोचो पर काबू रखो और आओ मेरे साथ | "
"मुझे तो भूख लग रही है । तुम मत खाओ । तुम्हारी मर्जी।"
कहने के साथ ही बंगाली झुका और फुर्ती के साथ सब्जी का बर्तन उठाया फिर पांच-सात चपातियां उठा ली।
सब ठीक रहा । कुछ भी नहीं हुआ ।
बंगाली ने एक चपाती थामकर, बाकी बगल में दबाई और खाता- खाता मोना चौधरी के पास पहुंचकर बोला ।
"अब चलो।"
मोना चौधरी और बंगाली पुनः आगे बढ़ गए ।
चलते-चलते बंगाली खाता जा रहा था ।
"मोना चौधरी ।" बंगाली नसीहत देने वाले स्वर में कहता जा रहा था--- "अगर घी सीधी उंगली से न निकले तो उंगली को जरा-सा टेड़ा कर लो । सारा का सारा बाहर आ जाएगा । माना कि ये मुसीबतों का वक्त है । लेकिन जरा सब्र से काम लेना चाहिए। सतकर्ता बरतना बुरी बात नहीं है। लेकिन इतनी सतकर्ता की भी जरूरत नहीं कि भूखे पेट रहा जाए । जैसे कि तुम भूखी रह गई । एक-दो रोटी ले लो, खानी हो तो । मानना पड़ेगा कि यहां के लोगों का खाना बहुत ही लाजवाब है । खाओगी ?"
मोना चौधरी ने मुस्कुराकर उसे देखा ।
"मेहरबानी । तुमने मेहनत की है । उंगली टेड़ी की है तो भरपेट खाओ।" मोना चौधरी ने कहा ।
"मर्जी तुम्हारी । इस खाने से मेरी तो रात निकल जाएगी। सुबह की सुबह देखी जाएगी । खाते-खाते बंगाली बोले जा रहा था--- - "ये मायावी लोग हमें बेवकूफ समझते हैं जो हमारे लिए चादर बिछा देते हैं कि हम बैठे और फंस जाएं । बैठने की क्या जरूरत है। मेरी तरह चलते-चलते भी।"
बंगाली को एकाएक खामोश होते पाकर मोना चौधरी ने गर्दन घुमाई तो चौंकी ।
वो ही खाने वाली चादर, पीछे से उड़कर बंगाली के ऊपर आ पड़ी थी । इससे पहले कि मोना चौधरी कुछ सोच-समझ पाती । देखते ही देखते वो चादर बंगाली को अपने में लपेटकर आसमान की तरफ उड़ती चली गई। नजरों से ओझल हो गई ।
मोना चौधरी ठगी सी रह गई ।
फिर गहरी सांस ली । वो समझ गई कि चादर पर पड़ा खाना खाने से वो मायावी चादर बंगाली के पीछे लग गई थी और मौका पाते ही उसे कैद करके ले गई । बंगाली की टेढ़ी उंगली कोई काम नहीं आई । अगर वो भी खाना खा लेती तो चादर ने उस पर भी कब्जा जमा लेना था।
अब वो अकेली रह गई थी ।
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