फार्म हाउस की किचिन में ।



अनवर हसन और कालका प्रसाद आमने–सामने बैठे थे ।



बद्री कुकिंग में व्यस्त था ।



तीनों मिलकर व्हिस्की की बोतल लगभग खत्म कर चुके थे ।



–"अनवर भाई !" कालका प्रसाद ने पूछा–"इस हरामजादे डिसूजा को पुलिस को ही क्यों ठिकाने नहीं लगाने देते ?"



मोतीलाल से मिली खबर ने अनवर को इतना खुश कर दिया था कि उसके अंदर का घमण्ड उस पर हावी होकर रह गया ।



–"यह मेरा काम है । उसे खत्म करने वाली पुलिस नहीं होगी । अगर तुम लोग डर रहे हो तो यह काम मैं अकेला करुंगा । उससे सारा हिसाब बराबर करने के लिये ।"



–"मैं एक लम्बे अर्से से हसन भाइयों का वफादार और भरोसेमंद आदमी रहा हूं ।" स्टोव के पास खड़ा बद्री बोला–"मैं अब भी आपको छोड़कर नहीं जाऊँगा । मैं आपके साथ हूँ, अनवर भाई !"



कालका प्रसाद ने गहरी सांस ली ।



–"मुझे तुम अच्छी तरह जानते हो, अनवर भाई ! मैंने कभी तुम्हारा साथ नहीं छोड़ा । तुम्हारे दुश्मनों को अपना दुश्मन समझा है । मुझे सिर्फ इतना बता देना क्या कराना चाहते हो । पहले उस्मान लंगड़ा के पास जाकर फोटो ले आऊं ?"



–"मुझे कोई फोटो नहीं चाहिये ।" अनवर गुर्राया–"मैं उस कमीने डिसूजा से सिर्फ एक बार मिला हूं फिर भी उसे पहचानने में भूल नहीं करुंगा । मैं उस हरामजादे का सूंघकर भी पता लगा लूँगा ।



–"यह काम कैसे करना है ?"



अनवर हसन ने अपने गिलास से तगड़ा घूँट लिया ।



–"बताता हूं ! हमें ऐसा करना है...!"



* * * * * *



रंजीत मलिक सीधा पुलिस हैडक्वार्टर्स पहुंचा ।



उसे हाई केलीबर की ब्राउनिंग पिस्तौल और चार लोडेड क्लिप इशु की गयीं । उसने होलस्टर अपनी बैल्ट में दायें नितंब के ऊपर कस लिया । एक लोडेड क्लिप पिस्तौल में डालकर ब्रीच पीछे खींचा, एक गोली उसमें पहुंचाई और सेफ्टी कैच खिसकाकर पिस्तौल होलस्टर में रख ली ।



वापस कार में सवार होकर सैंट्रल कैथेड्रल चर्च की ओर रवाना हो गया ।



फादर अब्राहम सोने की तैयारी कर रहा था । रंजीत ने बेवक्त तकलीफ़ देने के लिये माफी मांगते हुये बताया काम बेहद जरूरी है । फादर बड़ी नर्मी से पेश आया । रंजीत के काम की अहमियत को समझते हुये बताया कि वर्ल्ड काउंसिल ऑन कैथोलिक कम्युनिकेशन के ऑर्गेनाइजर्स की ओर से उसकी ड्यूटी सुबह एयरपोर्ट पर इंग्लैण्ड से आने वाले मेहमानों को रिसीव करने की लगायी है, इसलिये उसे जल्दी सोकर उठना होगा ।



–"आपके इस प्रोग्राम को थोड़ा बदल दिया गया है, फादर ।" रंजीत बोला–"हमारे अफसर आपकी ऑर्गेनाइजेशन के हेड ऑफिस जाकर बात कर चुके हैं । मेरा ख्याल था आपको भी इस बारे में इत्तिला मिल गयी होगी ।"



–"अभी तक ऐसी कोई सूचना मेरे पास नहीं है, माई सन !"



–"कोई बात नहीं ! मैं आपको बताता हूं ।"



रंजीत ने बता दिया कल के बारे में क्या प्रोग्राम था और वे लोग फादर से कैसा सहयोग चाहते थे ।



–"मुझे नहीं लगता इस काम के लिये मैं सही आदमी साबित हो सकता हूं ।" फादर ने सब कुछ सुनने के बाद कहा ।



–"तो क्या आप नहीं मानते पाप को रोकना उसका इलाज करने से बेहतर है ?"



–"ये किताबी बातें हैं, सन, लेकिन...!"



तभी टेलीफोन की घण्टी बजी ।



फादर ने रिसीवर उठा लिया ।



–"यस, फादर ।" दूसरी ओर से जो कहा गया उसे ध्यानपूर्वक सुनने के बाद कहा–"...ऑफकोर्स...नो, इट्स नो प्राब्लम एट आल ।"



रिसीवर वापस रखकर रंजीत की ओर देखा ।



–"तुम्हारी बात सही निकली, सन ! मेरा प्रोग्राम बदल दिया गया है । तुम्हारे अफसरों ने ऑर्गेनाइजर्स को मना लिया है । हालांकि मैं खुश नहीं हूं लेकिन मुझे वही करना होगा जो तुम कहोगे ।



रंजीत करीब चालीस मिनट तक अपनी योजना की डिटेल्स समझाता रहा । अंत में फादर से विदा लेकर रजनी राजदान के फ्लैट की ओर कार ड्राइव करने लगा ।



* * * * * *



जब रंजीत पहुंचा रजनी सोने के लिये जाने वाली थी ।



ड्राइंग रूम में उसकी हिफाज़त के लिये मौजूद एस० आई० कुर्सी में पसरा मैगजीन पढ़ रहा था । एक पुलिस वोमैन किचिन में दूध गर्म कर रही थी ।



–"मैं बस यह देखने आया हूं सब ठीक चल रहा है या नहीं । रंजीत ने कहा ।



– मैडम बहुत कोआपरेटिव हैं । महिला कांस्टेबल बोली ।



रंजीत ने बेडरूम के दरवाजे पर हौले से दस्तक दी ।



–"आर यू ओ० के०, रजनी ? इट्स मी ।"



–"नो, आयम नॉट ।" उसकी आवाज़ पहचान गयी रजनी बोली–"बट यू कैन कम इन ।"



वह दरवाजा खोलकर भीतर दाखिल हुआ ।



ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठी रजनी चेहरे से मेकअप साफ कर रही थी । वह ब्रेसियर और अण्डरवीयर पहने थी ।



रंजीत आगे बढ़ा । झुककर उसे किस किया ।



–"ओह, रंजीत ।" रजनी ने हल्का–सा विरोध किया–"इस वक्त नहीं ।"



– क्यों ?"



–'तुम्हारे स्टाफ के लोग यहां हैं ।"



–उससे कोई फर्क नहीं पड़ता । तुम्हारे दरवाजे में लॉक तो है ।"



– लेडी कांस्टेबल मेरे लिये चाकलेट मिल्क लेकर आने वाली है ।"



–"कोई बात नहीं ! तुम्हें अपने अफसर के साथ मसरूफ पाकर वह बाहर ही रुक जायेगी । रंजीत ने शरारती लहजे में कहा ।



–"बेकार की बातें मत करो ।"



रजनी खड़ी हो गयी । बेड पर पड़ा गाउन उठाकर पहन लिया ।



तभी लेडी कांस्टेबल दूध का गिलास लिये अंदर आयी । बेड साइड टेबल पर गिलास रखकर मुस्करायी ।



–"मैडम, अगर आपको लगे कोई शरारत की जाने वाली है तो मुझे बुला लेना । मैं बाहर ही रहूँगी ।"



–"आजकल अफसरों का भी कोई लिहाज नहीं करता ।" रंजीत धीरे–से बडबड़ाया ।



कांस्टेबल बाहर चली गयी तो रंजीत दरवाज़ा बंद करने के लिये बढ़ा ।



–"नहीं, डार्लिंग !" रजनी ने रोका–"ऐसा मत करना ।"



रंजीत रुक गया ।



–"क्यों ?"



रजनी का चेहरा शर्म से लाल हो गया ।



–"दीवारें बहुत पतली हैं ।"



–"तो ?"



–"मैं नहीं चाहती तुम्हारे मातहतों को पता लगे ।"



–"क्या ?"



रजनी ने सर झुका लिया ।



–"यही कि...मैं बिस्तर में तुम्हारे साथ कैसी–कैसी आवाजें निकालती हूं ।



–"ओ० के० । कल ?"



–"हां, प्लीज...कल !"



–"वादा ?"



–"हां !"



–"कल यह किस्सा भी खत्म हो जायेगा ।"



–"सच ?"



–"हां !"



–"भगवान करे ऐसा ही हो । मैं इतनी ज्यादा परेशान रही हूँ...!"



–"जानता हूं, डार्लिंग ।"



रजनी बुरी तरह चौकी ।



–"क्या तुम वाकई जानते हो ?"



रंजीत के दिमाग में बिजली–सी कौंधी और वह सचमुच जान गया । जो सवाल शुरू से सबको परेशान कर रहा था उसका सही जवाब रजनी की चिंतित आंखों में साफ पढ़ा जा सकता था ।



–"ऐसा ही लगता है ।" वह मुस्कराकर बोला ।



रजनी भारी राहत महसूस करती नजर आयी ।



–"ओह, गॉड ।" गहरी सांस लेकर बोली । फिर उसके पास जाकर पीठ में बाँहें डाल दीं । अचानक होलस्टर में रखी गन का स्पर्श हुआ तो सहमकर पीछे हट गयी–"त...तुम इसे इस्तेमाल करोगे ?"



–"हो सकता है ।"



–"साफ–साफ बताओ ।"



–"पता नहीं ! हालात पर डिपेंड करता है ।"



– रंजीत, होशियार रहना ।" वह पीड़ित स्वर में याचनापूर्वक बोली–"अपना ख्याल रखना...तुम्हें किसी भी कीमत पर गँवाना मैं नहीं चाहती ।"



फ़िक्र मत करो ।" रंजीत ने प्यार से उसका गाल थपथपाया–"मुझे कुछ नहीं होगा । कल इस किस्से के निपटते ही मैं दौड़ा चला आऊंगा...!"



–"गोली की तरह ?"



–"नहीं, रजनी डार्लिंग । गोली की तरह नहीं कामदेव के तीर की तरह ।



–"मैं बेसब्री से इंतजार करूंगी ।"



रजनी ने पुन: उसे बांहों में भर लिया ।



दीर्घ चुंबन के पश्चात् रंजीत ने उससे विदा ली ।



घर पहुंचकर सीधा बिस्तर के हवाले हो गया लेकिन देर तक सो नहीं सका । बार–बार एक ही सवाल कचोटता रहा ।



क्या कल वाकई यह किस्सा खत्म हो जायेगा ?



* * * * * *



(होटल एंबेसेडर करीमगंज में ठहरे दिनेश ठाकुर के सुइट से की गयी टेलीफोन वार्ता का विवरण)



समय : सवा छ: बजे सुबह



नोट : टेलीफोन कॉल एक पब्लिक टेलीफोन बूथ से की गयी थी ।



ठाकुर–"हलो !"



फोनकर्ता–"मैं यहां आ गया हूं, दिनेश !"



ठाकुर–"कहां ?"



फोनकर्ता–करीमगंज एयरपोर्ट पर ।"



ठाकुर–"फौरन वापस लौट जाओ । यहां भारी हड़कम्प मचा है ।"



फोनकर्ता–"वापस नहीं जा सकता । नामुमकिन । गड़बड़ क्या है ?"



ठाकुर–"सौदा, समझौता सब खत्म हो गया ।"



फोनकर्ता–"कैसे ?"



ठाकुर–"भाइयों की हुक़ूमत खत्म हो गयी । एक पकड़ा गया और दूसरा फरार है । ताजा हालात की जानकारी मुझे नहीं है ।



फोनकर्ता–"हमारे आदमी कहां हैं ?"



ठाकुर–"कोई नहीं बचा ।"



फोनकर्ता–"विक्टर और...!"



ठाकुर–"मारे गये ।"



फोनकर्ता–"कैसे ?"



ठाकुर–"बेवकूफाना मुहीम में । हादसा भी कह सकते हो ।"



फोनकर्ता–"होटल ब्राडवे में ठहरूंगा । एक घण्टे में वहां पहुंच जायेंगे । मिस्टर अलबर्ट को पूछ लेना ।"



ठाकुर–"बेहतर होगा वापस लौट जाओ ।"



फोनकर्ता–"वहीं आकर मिलो ।"



(वार्तालाप समाप्त)



* * * * * *



दुबई से चार्टर्ड प्लेन द्वारा पहुंचे यात्री थके से नजर आ रहे थे । उनमें कई नन थीं, तीन पादरी, कई युवक और दो–दो, चार–चार के ग्रुप में बंटे बहुत से दूसरे लोग ।



पीटर डिसूजा ने कोई वेष परिवर्तन नहीं किया था । बस गहरे रंग के सनग्लासेज लगाये हुये था ।



एस० पी० वर्मा और इंसपेक्टर रोशन लाल ने उसे बैगेज एरिया से गुजरते देखा और नोट किया उसके साथ सिर्फ चार आदमी और थे । पांचों माफिया वाले डार्क ग्रे या ब्लैक कीमती सूट पहने थे और यात्रियों की उस भीड़ का ही हिस्सा नजर आ रहे थे । उनके कोट की ब्रेस्ट पाकेट पर लगे बैज पर उनके नाम और मोनोग्राम सहित वर्ल्ड काउंसिल ऑन कैथोलिक कम्युनिकेशन कढ़ा हुआ था ।



दो स्थानीय पादरी उनके स्वागत के लिये मौजूद थे । उनमें से एक ऊँचे कद का पतला दुबला–सा बूढ़ा था और दूसरा औसत कद और भारी बदन का युवक ।



वे दोनों अपनी लिस्टों से आगंतुकों के नाम चैक कर रहे थे ।



वर्मा और कमल किशोर ने सारी पार्टी को एयरपोर्ट के बाहर जाने वाले मार्ग की ओर जाते देखा । एयरपोर्ट से उन्होंने प्रतीक्षारत बसों में सवार होना या । वहां से क्राइम ब्रांच के दूसरे लोगों ने उन पर नजर रखनी थी । इंसपेक्टर रोशन लाल और एस० एस० आई० टैक्सी की पिछली सीट पर बैठे उनका इंतजार कर रहे थे । एक अन्य एस० आई० ड्राइविंग सीट पर मौजूद था । तीनों सादा लिबास में थे वर्मा और कमल किशोर की तरह ।



सनग्लासेज से ढकी डिसूजा की आँखें लगातार बारीकी से आसपास का मुआयना कर रही थीं । उसके चारों साथी भी पूर्णतया सतर्क थे । टेलीफोन कॉल के पश्चात् कस्टम आदि की औपचारिकता से निपटते डिसूजा ने अपने साथियों को बता दिया था हालात खराब थे ।



डिसूजा को खीज–सी आ रही थी दोनों स्थानीय पादरियों खासतौर से युवक पर । वह मानों उससे चिपककर रह गया था । बार–बार एक ही जैसी हिदायतें दोहरा रहा था–होटल का नाम और दूसरी रूटीन बातें । होटल पहुंचने पर वे सब दस बजे तक आराम कर सकते थे । फिर बसों द्वारा उनको कैथेड्रल चर्च पहुंचा दिया जायेगा मास के लिये । जब तक सभी यात्री सवार नहीं हो जायेंगे बसें नहीं चलेंगी । इसलिये युवक पादरी बार–बार याद दिला रहा था किसी ने भी लेट नहीं होना है ।



मास से बचने का कोई तरीका डिसूजा को नजर नहीं आया । लेकिन इससे कुछ फर्क भी नहीं पड़ना था ।



सात बजे तक वे होटल ब्रॉडवे पहुंच गये । फिर सामान सहित कमरों में पहुंचने में आधा घण्टा और लग गया । डिसूजा और उसका बॉडीगार्ड माइकल एक ही कमरे में ठहरे । बाकी तीनों पास ही अलग–अलग कमरों में ।



डिसूजा ने रूम सर्विस को ब्रेकफास्ट और उस रोज के अखबार लाने का आर्डर दे दिया ।



कॉफी की चुस्कियों के बीच अखबार पढ़े । हसन भाइयों का कोई खास जिक्र उनमें नहीं था । लेकिन हर एक पेपर में पुलिस की दर्जनों रेड्स और गिरफ्तारियों की कहानियां जरूर छपी थीं । उन सभी कहानियों का संबंध डबल मर्डर और एक वारदात से जोड़ा गया जो पिछले रोज रात में नाइट क्लब के बाहर हुई थी ।



डिसूजा जानता था वो क्लब हसन भाइयों की मिल्कियत था । वारदात में मारे गये दो लोगों के नाम भी वह जानता था । इस खबर ने डिसूजा को बुरी तरह परेशान कर दिया । दिनेश ठाकुर ने ठीक ही कहा था । इसमें शक की कोई गुंजाइश नहीं थी कि सारा मामला बेहद पेचीदा हो चुका था । वह दिनेश ठाकुर से मिलने के बाद अगला कदम तय करेगा । अगर कोई और रास्ता नहीं सूझा तो वर्ल्ड काउंसिल ऑन कैथोलिक कम्युनिकेशन के डेलीगेशन के एक अच्छे सदस्य के तौर पर पूरा सेमिनार अटेंड करके चुपचाप वापस दुबई लौट जायेगा और दूसरे मौके का इंतजार करेगा । आखिरकार हसन भाइयों की जगह किसी ने तो देर–सबेर करीमगंज के अपराध जगत में अपनी बादशाहत कायम करनी ही है । दिनेश ठाकुर से बातें करने के बाद ही अगला प्रोग्राम तय करेगा ।



* * * * * *



उसी पुरानी कार में वे फार्म हाउस से वापस करीमगंज की ओर रवाना हो गये । अनवर हसन किसी भी किस्म की कोई चूक नहीं होने देना चाहता था । उसकी योजना डिसूजा पर तीन तरह से वार करने की थी ।



बद्री के गैराज में पहुंचने के बाद एक मोर्चे पर वह अकेला जायेगा । कालका प्रसाद और बद्री भी अलग–अलग हो जायगे, वे दो कारों में रहेंगे जिन्हें जरूरी होने पर ही इस्तेमाल किया जायेगा ।



अनवर हसन की भारी कैलीबर की गन उसकी जेब में मौजूद थी । बाकी दोनों भी हथियारबंद थे । जब वे अलग–अलग कारों में जायेंगे तो उनके पास शॉटगने भी होंगी । कम से कम एक मोर्चा तो कामयाब रहेगा ही ।



* * * * * *



दिनेश ठाकुर ठीक आठ बजे होटल ब्राडवे पहुंचा ।



रिसेप्शनिस्ट ने मिस्टर अलबर्ट को उसके आगमन की सूचना दे दी और उसे ऊपर भेज दिया ।



–"दिनेश !" डिसूजा उसे सीने से लगाकर बोला–"यह तो वाकई बुरी खबर है ।"



–"इससे बुरा कुछ और नहीं हो सकता ।"



दिनेश ठाकुर ने कमरे में नजरें दौडाईं । अपेक्षानुसार माइकल वहीं था । डिसूजा ने उसके बगैर इतनी दूर हर्गिज नहीं आना था । शेष तीनों को भी वह अच्छी तरह जानता था । सभी तजुर्बेकार और भरोसेमंद थे । डॉन बहुत बढ़िया टीम लेकर आया था ।



कॉफी के दौर के बीच दिनेश ठाकुर ने अपने बॉस को उन तमाम घटनाओं का ब्यौरा दे दिया जिनकी जानकारी उसे थी । दूसरी और जो बातें वह जानता था उनके बारे में भी बता दिया । फिर भी बहुत–सी बातें छिपी ही रहीं ।



–"हमें यहां शुरूआत करने से पहले पुलिस विभाग में किसी अफसर को खरीद लेना चाहिये था ।" अंत में बोला ।



डिसूजा ने इस बारे में सोचा फिर सहमतिसूचक सर हिला दिया ।



–"अगली दफा ऐसी कोई गलती नहीं करेंगे ।" वह दार्शनिकी अंदाज में बोला–"कैसी अजीब बात है हसन, भाई इतने बेवकूफ़ निकले...!"



–"पागल हैं ।" माइकल बोला ।



–"ठीक कहते हो । खैर, हमारा वक्त अभी नहीं आया है । लेकिन हम सब्र से इंतजार करेंगे...मैं लौटकर आऊंगा ।"



–"इस दफा नहीं ?" राजन ने पूछा ।



–"नहीं ! जो बेड़ा गर्क हो रहा हो उसकी ओर हाथ नहीं बढ़ाना चाहिये । चौपट हो रहे धंधे पर कब्ज़ा करना बेवकूफी है ।" डॉन कॉफी का घूँट लेकर बोला–"दिनेश, तुम पहली फ्लाइट से वापस दुबई लौट जाओ । हम थोड़ा अपनी आत्माओं को शुद्ध करके आयेंगे । आखिरकार मुदत बाद यह मौका मिला है । चर्च से भी बहुत कुछ सीखने को मिलता है ।"