“सोहनलाल । बांकेलाल राठौर बोला--- "अब लगो हो, यो म्हारी तरहो इंसान बन गयो । "
देवराज चौहान के होठों पर शांत सी मुस्कान उभरी ।
"तुम किस से बात कर रहे थे ।" सोहनलाल ने पूछा I
"कोई युवती थी ।" देवराज चौहान बोला ।
"लेकिन हमें तो नजर नहीं आई ।" सोहनलाल के माथे पर बल पड़े।
"वो मायावी शक्तियों की मालकिन थी उसके कहे मुताबिक वो मेरे अलावा किसी को नजर नहीं आएगी । कोई उसकी आवाज नहीं सुन सकता, जब तक कि वो खुद न चाहे ।" देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली।
"ओह । हमारे सामने वो क्यों नहीं आई ? "
"ये मायावी लोग कोई भी रूप धारण कर लेते हैं। इनकी असल सूरत उम्र नहीं मालूम हो सकती ।" quest
"इसकी वजह मैं नहीं जानता ।" देवराज चौहान ने कश लिया ।
"जो जवानों हौवे या बूढ़ी हौवे ?"
"उस पत्थर के आदमी को क्या हुआ कि वो...।"
देवराज चौहान ने उसके साथ हुई सारी बातचीत बता दी ।
"फिरो तो वो बहुत ही पॉवरफुल मायावी छोरी हौवे ।"
"हां । लेकिन वह किस मकसद की खातिर मेरी सहायता कर रही है । ये मैं नहीं जानता।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा--- "लेकिन मैं किसी भी हालत में, उसके किसी गलत काम में उसका साथ नहीं दूंगा ।"
"का मालूम, वो थारे ठिको कामो ही कराना चाहो हो ।"
"वक्त आने पर ही मालूम होगा कि वो क्या चाहती है ।" देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में कहा ।
"यां पे तो बहुत अजीबो-अजीबो ही बातों हौवे।"
"खाना खा लिया जाए ?" सोहनलाल ने बर्तनों में सजे पड़े खाने को देखा।
तीनों खाना खाने बैठ गए ।
खाना खाने के बाद वे आगे चल पड़े थे।
बांकेलाल राठौर कह उठा।
शाम हो रही थी । सूर्य पश्चिम की तरफ झुकता जा रहा था। उनके चेहरों से स्पष्ट तौर पर थकान झलक रही थी । परंतु वे खुद को ठीक-ठाक रखने की पूरी कोशिश कर रहे थे।
"सुबह से शाम तक, पत्थरों वाला रास्तों पर चलतो-चलतो, मारी तो टांगों हिलने लगो।"
"गोली वाली सिगरेट पिएगा ।" सोहनलाल मुस्कुराया।
"उसो से का हौवे ?"
"टांगे हिलना बंद कर देंगी ।"
"अपने पासो ही रखो, गोली वाली सिगरेटो को । टांगो हिलनो बंद कर दो तो अंम चल्लो कैसो ?" ।
"पूरी बंद नहीं होंगी। थोड़ी-थोड़ी हिलेगी।"
तंम तो म्हारी टांगों को कब्रो में लटकानों का प्रबंध करो
हो ।"
तभी देवराज चौहान बोला ।
"रात होते ही हमारे लिए खतरे बढ़ जाएंगे । दिन में तो हम हर तरफ देख सकते हैं । हालातों को समझ सकते हैं। परंतु रात में ये काम नहीं हो सकता । हम आसानी से किसी मायावी फंदे में फंस सकते हैं।"
"यो खतरों तो उठाणे ही पड़ो । "
"अगर रात में कहीं रुक जाए तो ठीक रहेगा ।" सोहनलाल ने कहा ।
"रात रुकने के लिए, यहां कोई भी सुरक्षित जगह नहीं है। हर जगह खतरे से भरी पड़ी है। खतरे किस तरह के हैं, देखने-जानने और भुगतने के बाद ही इस बारे में हमें अभी पूरी जानकारी नहीं।" देवराज चौहान ने कहा ।
"तो क्या रात होने पर भी हमें अपना सफर जारी रखना होगा ।" सोहनलाल बोला ।
"यों चलते रहे तो म्हारी टांगों का दमों ही खिसक जाये ।"
"इस बारे में रात होने पर ही फैसला करना होगा कि क्या किया जाए।" देवराज चौहान ने कहा ।
अब वो पथरीली जमीन, सूखे पेड़ों का जंगल खत्म होना शुरू हो गया था । सूर्य की मध्यमसी से रोशनी में दूर उन्हें हरियाली नजर आने लगी थी।
"वो दूर कोई बगीचों लागू हो म्हारे को।"
"हरियाली है तो रात को कहीं रहने का इंतजाम भी हो जाएगा ।" सोहनलाल कह उठा ।
तभी उनकी निगाह सामने ही सूखे पेड़ के साथ सटी पड़ी, पुरानी सी लकड़ी की कुर्सी पर पड़ी । टूटी-फूटी कुर्सी की तीन टांगे थी । शायद उस पेड़ से इसलिए सटाकर रखा गया था कि कुर्सी को टेक मिल जाए और बैठने वाला गिरे नहीं । देखने में तो ऐसा ही सोचो में आया ।
"कुछ तो मिला आराम करने को।"
कहने के साथ ही सोहनलाल जल्दी से आगे बढ़ा और। कुर्सी पर इस तरह बैठ गया कि कहीं बांकेलाल राठौर वहां पहले न बैठ जाए । फिर उसने बेहद तसल्ली भरे ढंग से गोली वाली सिगरेट सुलगाई ।
देवराज चौहान और बांकेलाल राठौर ठिठके ।
"यो सिंहासन न हौवो । जैसे तंम शांन से बैठे हो । "
"ऐसी थकान में ये सिंहासन से कम नहीं है ये टूटी-फूटी कुर्सी ।" सोहनलाल मुस्कुराया। "अगर यो भी मायावी कुर्सी ही हौवे तो, थारा तो कामो हो हो गयो ।" बांकेलाल राठौर मुस्कुराया ।
"कुर्सी की हालत देखी है ।" सोहनलाल हंसा--- "ये किसी भी सूरत में मायावी कुर्सी नहीं हो सकती ।"
बांकेलाल राठौर ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला तो खुला ही रह गया ।
देवराज चौहान और बांकेलाल राठौर के देखते ही देखते पलभर में ही कुर्सी सहित सोहनलाल उनकी आंखों के सामने से गायब हो गया । लगा जैसे वहां कुछ था ही नहीं।
"यो का हो गयो ?" बांकेलाल राठौर के होंठ मशीनी ढंग से हिले ।
देवराज चौहान के चेहरे पर सख्ती आती चली गई ।
"मैंने पहले ही कहा था कि किसी भी चीज को न छेड़ा जाए । ये मायावी नगरी है। कुछ भी असली नहीं है ।"
"तन्ने तो कै दयो, पण यां किसो- किसो चीजों से बचो हो। हरो तरफो तो मुसीबत हौवे । ईब तो म्हारे को आपणों से भी डर लगो हो, कि अंम खुदो ही आपणों को गायब न करो हो"
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली । "चलो यहां से "
दोनों आगे बढ़ने लगे ।
"यो भी का गजबो ढायो हो ।" बांके लाल राठौर बड़बड़ा उठा--- "रूस्तम राव, कर्मा, सोहनलाल, जगमोहन सबो गायब हो गया । ईब तो म्हारे को लगे कि, गायबो होने की म्हारो बारी हौवो।"
कुछ आगे भी हरा-भरा जंगल आ गया ।
दोनों जंगल में प्रवेश कर गए ।
पेड़ों की छाया की वजह से वहां दिन की रोशनी कम हो गई थी । जमीन पर कहीं-कहीं हरी खास, आंखों को बहुत भली लग रही थी ।
"म्हारी टांगों तो टूटने लागो हो ।" बांकेलाल राठौर कह उठा ।
"यहां एक भी जगह आराम करना, खुद को मुसीबत में डालना है आगे बढ़ते रहो ।" देवराज चौहान बोला ।
बांकेलाल राठौर गहरी सांस लेकर रह गया।
धीरे-धीरे अंधेरा घिरने लगा ।
और फिर वो वक्त भी आया, जब पूरी तरह अंधेरा घिर गया । अभी चंद्रमा नहीं निकला था । इसलिए हाथ को हाथ भी नजर नहीं आ रहा था । देवराज चौहान और बांकेलाल राठौर को आगे बढ़ना कठिन लगने लगा।
देवराज चौहान रुक गया ।
"ईब का बातों हो गयो ?" बांकेलाल राठौर रुकता हुआ बोला ।
"ऐसे अंधेरे में आगे बढ़ना ठीक नहीं । रास्ता नजर नहीं आ रहा । यह भी मालूम नहीं पड़ रहा कि पांव कहां पड़ रहा है। हमें फंसाने के लिए मायावी लोग, अंधेरे में कोई भी जाल फेंक सकते हैं और हम आसानी से उनके जाल में फंस सकते हैं ।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा।
"तो फिरो यहीं बैठ कर आराम करा करो लें ।"
"इस तरह अंधेरे में रहना भी ठीक नहीं।"
" अंधेरे में देवराज चौहान के होठों पर मुस्कान उभरी ।
"यो भी ना ठीको । ई भी ठीको । ता का यो ही खड़ो रें ।
"सोचते हैं। कोई रास्ता तो निकालना ही पड़ेगा ।" देवराज चौहान ने अंधेरे में इधर-उधर देखते हुए कहा।
"इसो अंधेरों में म्हारे पावों को सांप डंस लयो तो म्हारो जिंदगो का तो बेड़ा पार हो गयो ।"
उसी पल देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ी ।
दस कदम की दूरी पर, दाईं तरफ वो ही युवती खड़ी थी, जिसने पत्थर के आदमी को समाप्त करने के लिए उसे जादुई पत्थर दिया था ।
"तुम...।" देवराज चौहान के होठों से निकला ।
उसके होंठ मुस्कान के रूप में फैले ।
बांकेलाल राठौर ने फौरन गर्दन घुमाकर देवराज चौहान को देखा। "आं, अंम । म्हारे को तू पैली बार देखो हो का ?" देवराज चौहान की निगाह उसी युवती पर टिकी रही । "तुम्हारी मुसीबतें दूर करना मेरा फर्ज है। इसलिए आ गई ।" वो मीठे-शांत स्वर में बोली । "कैसी मुसीबत ?"
"मैं तुम्हारे रहने का, रात गुजारने का इंतजाम कर सकती हूं।" उसने कहा ।
बांकेलाल राठौर समझ चुका था कि देवराज चौहान उसी युवती से बात कर रहा है ।
"किस तरह का इंतजाम ?" देवराज चौहान ने पूछा ।
युवती ने अपना हाथ सीधा किया और तभी सामने जगमगाता हुआ एक कमरा नजर आने लगा । जिसके भीतर और बाहर भरपूर रोशनी हो रही थी ।
बांकेलाल राठौर की आंखें हैरानी से फैल गई ।
"यो खूबसूरत कमरों कहां से प्रकटो हो गयो ?" उसके होठों से निकला देवराज चौहान ने कमरे को देखा फिर उस युवती से बोला ।
"इस कमरे में रहना खतरे से भरा है ।"
"क्यों ?" युवती के होठों पर मुस्कान थी ।
"मायावी लोग आसानी से जान जाएंगे कि हम कहां हैं और आसानी से हम पर काबू पा लेंगे।"
वो हौले से हंसी ।
"निश्चिंत रहो। ये जगमगाता कमरा तुम देख रहे हो, लेकिन मायावी लोग इसे नहीं देख सकेंगे । मैंने अपनी शक्तियों से इसे अदृश्य कर रखा है और इस पर किसी मायावी ताकत का असर नहीं हो सकता ।" युवती का स्वर बेहद सामान्य और तनाव से दूर था । ।
देवराज चौहान ने गहरी निगाहों से उसे देखा।
"तुम अभी तक मेरी समझ से बाहर हो ।"
"वक्त आने पर सब कुछ तुम्हारी समझ में आ जाएगा।"
देवराज चौहान कुछ नहीं बोला। उसे देखता रहा ।
"सामने नजर आ रहे कमरे में तुम रात के तीन बजे तक आराम कर सकते हो ।" वो बोली । "उसके बाद ?"
"उसके बाद तुम्हें उस रास्ते पर आगे बढ़ना है, जिधर बढ़ रहे हो । जहां तुम्हें पहुंचना है, तुम वहां के बहुत करीब पहुंच चुके हो । एक डेढ़ घंटा चलकर तुम भोर के उजाले के साथ ही वहां पहुंच जाओगे ।"
"तुम जानती हो, मुझे कहां पहुंचना है।"
"हां। मैं पहले भी कह चुकी हूं कि अपनी शक्तियों के दम पर मैं सब कुछ जानती हूं। मुझसे तुम लोगों का कुछ भी छिपा नहीं है ।" उसका स्वर शांत था ।
"मेरे एक सवाल का जवाब दो ।" देवराज चौहान बोला ।
"क्या ?"
"मैं वो ताज हासिल कर पाऊंगा ?"
"मेरी शक्तियां भूतकाल - वर्तमान जो जा सकती है, लेकिन भविष्य नहीं । इसलिए मैं किसी तरह की कोई भविष्यवाणी करने में असमर्थ हूं।"
उसने पहले वाले स्वर में कहा । देवराज चौहान सोच भरी निगाहों से उसे देखता रहा ।
"एक बात और जेहन में रख लो कि अब मैं हर पल तुम्हारे साथ, तुम्हारी सांसों की तरह रहूंगी । जब तक भी चाहो मुझसे बात कर सकते हो । जरूरत पड़ने पर मैं तुम्हारी हर संभव सहायता भी करूंगी और कहीं पर ऐसा भी हो सकता है कि मैं मजबूर हो जाऊं और तुम्हारी सहायता न कर सकी । उसी स्थिति में अपनी समझदारी से ही तुमने खुद को उन हालातों से निकालना है ।"
"मैं तुम्हें कैसे पुकारूंगा ?" देवराज चौहान ने पूछा ।
"मेरा नाम बेला है। लेकिन सावधान । ये नाम अपने होठों पर मत लाना । सिर्फ मन में नाम लेकर मुझे पुकारना । मैं आ जाऊंगी अगर मेरा नाम तुम्हारे होठों से निकला तो फिर मैं तुम्हें शायद खतरों से न बचा सकूं ।"
"ऐसा क्यों ?"
"बहुत जल्दी बताऊंगी, अपने बारे में सब कुछ । तब तुम समझोगे मेरी बात । जाओ, अपने साथी के साथ कमरे में जाकर आराम कर लो । रात को ठीक तीन बजे, तुम्हें नींद से जगा दूंगी ।" बेला ने कहा ।
"ठीक है।" देवराज चौहान ने सिर हिलाया ।
"अब मैं जाऊं ?"
देवराज चौहान ने हौले से, सहमति में सिर हिला दिया देवराज चौहान के देखते ही देखते बेला आंखों के सामने ही गायब हो गई ।
"आओ बांके, उस कमरे में चलते हैं ।" देवराज चौहान ने कहा ।
दोनों कमरे की तरफ बढ़े ।
"तंम छोरी से बातों करो हो ।" बांकेलाल राठौर गंभीर स्वर में बोला ।
"हां"
"वो म्हारे को क्यों न दिखो । उसो को बोलो, म्हारे से भी बतियाए ।" बांकेलाल राठौर ने कहा ।
"ये उसकी मर्जी है। ऐसी बात मैं उससे नहीं कह सकता।"
"कोई बात नहीं । कभ्भी तो म्हारे को वो मिल्लो ही।" बांकेलाल राठौर ने गहरी सांस ली ।
दोनों कमरे में प्रवेश कर गए ।
जिस दरवाजे से उन्होंने भीतर प्रवेश किया था, वहां इस तरह दीवार आ खड़ी हुई कि जैसे वहां कभी दरवाजा हो ही नहीं । कमरे में अन्य कहीं भी कोई दरवाजा खिड़की नहीं था । कोई छेद भी नजर नहीं आया, परंतु फ्रेश हवा उन्हें बराबर मिल रही थी ।
कमरे में खूबसूरत सा बैड था । जरूरत की हर चीज मौजूद थी। दूसरी तरफ टेबल पर खाना और पास ही दो कुर्सियां पड़ी थी ।
"यां तो सबो इंतजामों फिटो हौवो।" बांकेलाल राठौर ने कहा ।
"खाना खाकर आराम कर लो ।" देवराज चौहान ने कहा--- "तीन बजे यहां से चल पड़ना...।"
दोनों ने खाना खाया और थके-टूटे बैड पर लेट गए ।
देवराज चौहान के मस्तिष्क में बेला घूम रही थी ।
आखिर कौन थी वह ? उससे क्या चाहती थी ? क्यों उसकी सहायता कर रही हैं ? इनमें से किसी भी सवाल का जवाब उसके पास नहीं था।
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