गंदी-सी कालोनी के एक ऐसे कमरे में पहुंचा, जहां इन दिनों शुक्रा रह रहा था। सब-इंस्पेक्टर जयनारायण उसे और विजय बेदी को ढूंढ रहा था। ऐसे में शुक्रा यहां किराए पर रह रहा था। ड्राइविंग कॉलेज में, लोगों को कार चलाना सिखाने की नौकरी भी मजबूरी में छोड़नी पड़ी थी। उदयवीर ही शुक्रा और बेदी का खर्चा उठा रहा था। बेदी भी उसके गैराज से कुछ दूर एक कमरा किराए पर लेकर रह रहा था। शुक्रा के कमरे में एक फोल्डिंग के अलावा दो कुर्सियां मौजूद थीं। विजय बेदी, शुक्रा और उदयवीर के बारे में जानने के लिए विजय बेदी सीरीज के दो पूर्व प्रकाशित उपन्यास 1. खलबली, 2. चाबुक पढ़ें।

दरवाजा खुला ही था। उदयवीर भीतर प्रवेश कर आया।

शुक्रा कुर्सी पर अधलेटा-सा बैठा था। उसने उदयवीर को देखा। परन्तु उसके आने पर शुक्रा ने कोई खास प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की। वह चुप-चुप-सा ही था।

"क्या हुआ तुझे ?" उदयवीर कुर्सी पर बैठता हुआ बोला।

"कुछ नहीं।" शुक्रा ने गहरी सांस ली--- "यार के बारे में सोच रहा था।"

"विजय के...।"

शुक्रा ने हौले से, सहमति में सिर हिलाया।

"हां, क्या हाल है उसका ?"

उदयवीर ने बेचैनी से पहलू बदला।

"ज्यादा ठीक नहीं है। उससे मिलो तो ज्यादा बात नहीं करता।" उदयवीर गम्भीर हो उठा।

"कैसे करेगा बात, वो तो जीते जी मर गया है। विजय क्या, किसी को भी मालूम हो कि उसकी जिंदगी चंद दिनों की है तो वो वक्त से पहले ही मर जाएगा। हम उसके खास यार हैं और कितने बेबस हैं कि उसके लिए कुछ नहीं कर सकते।"

"नहीं कर सकते।" उदयवीर ने होंठ भींचे--- "बारह लाख का इन्तजाम नहीं कर सकते। सब कुछ बेचकर भी चार-पांच लाख से ज्यादा नहीं हो पाता।"

"कोई और रास्ता नहीं है ?" शुक्रा ने व्याकुलता से होंठ भींचकर कहा।

"तू ही बता दे। क्या रास्ता है।" उदयवीर ने शुक्रा की आंखों में झांका--- "अगर तुझे पक्का पता है कि कहीं बारह लाख पड़े हैं तो बता। कोशिश करता हूं उन्हें ले आने की।"

शुक्रा ने उदयवीर को देखा फिर मुंह घुमा लिया।

"विजय के दिल पर इन दिनों क्या बीत रही होगी। इसका अंदाजा हम नहीं लगा सकते।"

"कब मिला विजय से ?"

"उदय।" शुक्रा ने तड़प कर कहा--- "विजय के सामने जाने की हिम्मत नहीं होती। जब उसे देखता हूं, रो देने को दिल करता है।"

उदयवीर के चेहरे पर गम्भीरता और विवशता के भाव नजर आने लगे।

■■■

मांगेराम और सत्तो घर पहुंचे!

ये अनबसी कॉलोनी थी। एक मकान यहां तो दूसरा कुछ फासले पर था। मुख्य सड़क पर खंडजा पड़ा था, वरना गलियां तो वैसे की वैसे ही, मिट्टी की थी। घरों का पानी गलियों में बिखरा पड़ा था। स्पष्ट था कि आने वाले दस सालों में भी इस कॉलोनी ने ठीक तरह नहीं बस पाना था।

मांगेराम का तीन कमरों का मकान था। बाहरी दीवारों पर कहीं पलस्तर था तो कहीं नहीं था। दो कमरे की भीतरी दीवारों पर पलस्तर था और एक पर नहीं। एक कमरे में सीमेंट का फर्श था। दूसरे कमरे में फर्श की जगह ईंटें बिछा रखी थीं और तीसरे कमरे में फर्श की जगह मिट्टी थी। कुल मिलाकर मांगेराम के परिवार का ये हाल था। स्कूल की वैन चलाकर जो भी कमाता, उससे ही दाना-पानी पेट में जाता। जो बच जाता, वो मकान पर लगा देता ।

सालों से यही सब चल रहा था। वैन रोकते ही इंजन बंद करते हुए मांगेराम गम्भीर स्वर में बोला।

"घर की लाइटें जलाओ। मंगल शायद अभी तक नहीं आया।"

"वो कहां आएगा। पड़ा होगा उसी के पास।" मैटाडोर खोलते हुए सत्तो बोली--- "मैटाडोर भीतर ले आइए। मैं गेट खोल देती हूं। इसे यूं ही छोड़कर भीतर मत आ जाना।"

"तुम पहले घर की लाइटें ऑन करो।"

सत्तो मैटाडोर से उतरकर गेट खोलते हुए भीतर प्रवेश कर गई।

मांगेराम ने आसपास देखा। अन्य घरों की लाइटें रोज की तरह रोशन थीं। यहां स्ट्रीट लाइट होने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता था। घरों में होने वाली रोशनियों के अलावा, बाकी जगहें अंधेरे में डूबी थीं ।

मांगेराम ने घर का गेट बड़ा लगा रखा था कि मैटाडोर को भीतर खड़ा कर सके। जब तक सत्तो लौटी, तब तक मांगेराम ने वैन को रोज की तरह बैक किया और मैटाडोर को गेट के भीतर ले गया। मैटाडोर का पिछला हिस्सा, कमरे के दरवाजे की तरफ था और आगे वाला गेट की तरफ। हर रोज वो वैन को ऐसे ही लगाता था कि सुबह सीधे-सीधे वैन को बाहर निकाल सके।

वैन के भीतर आते ही सत्तो ने गेट बंद कर दिया।

मांगेराम नीचे उतरा और दरवाजे खिड़कियां अच्छी तरह बंद कीं। उसके बाद दोनों भीतर आ गए। पहले कमरे को ड्राइंगरूम जैसा रूप दिया हुआ था। जहां पुराना टूटा हुआ सोफा पड़ा था। एक सोफे का पाया नहीं था तो नीचे ईंटे लगा रखी थीं। उसी पर मांगेराम ने बैठकर गहरी सांस ली।

मांगेराम के चेहरे पर गम्भीरता थी।

जबकि सत्तो की सोचें तो पंख लगाकर उड़ रही थीं कि आने वाले वक्त में इन पैसों से क्या-क्या खरीदना है। क्या-क्या करना है। अपने लिए बढ़िया-सी कार लेने का भी सोच लिया था।

"सत्तो।" मांगेराम ने बेचैन से स्वर में कहा।

सत्तो ने पंख समेटे और जमीन पर आ गई।

"कहिए जी।" सत्तो ने मांगेराम को देखा।

"वैन लेकर मैंने, हर रोज की तरह सुबह-सुबह निकलना है।"

"ये कोई कहने की बात है। अभी तो रात है। सुबह होने में बहुत देर...।"

"मैं वैन खाली करने को कह रहा था।" मांगेराम ने उसकी बात काटी।

ये सुनते ही सत्तो सोफे पर जा बैठी।

"देखो जी, मैं तो पहले से ही बहुत थक गई हूं। मुझे आराम कर लेने दो।" सत्तो बोली।

“थका तो मैं भी हूं। लेकिन वैन खाली करना जरूरी...।"

"उसकी आप चिंता मत कीजिए। खाली हो जाएगी।"

"कौन करेगा, तुम?"

"मंगल करेगा जी।"

"मंगल, वो तो...।"

"आप सब कुछ मुझ पर छोड़ दीजिए। सुबह आपको वैन खाली मिलेगी।"

मांगेराम गहरी सांस लेकर रह गया।

"खाना बनाने की तो हिम्मत नहीं रही। चावल बना लूं क्या ? और देखो जी, बाद में मैं एक नौकर जरूर रखूंगी। सारी उम्र काम करते-करते थक गई हूं।"

"बाद की बातें अभी मत करो। मुझे तो समझ नहीं आता कि इतनी बड़ी सरकारी दौलत पास रखकर तुम कैसे नींद ले पाओगी, जबकि पुलिस वाले इसी दौलत को तलाश करते फिर रहे हैं।"

"हमें पुलिस वालों से क्या लेना-देना।" सत्तो कह उठी--- "हमने तो कुछ नहीं किया। जिसने किया है वो ही जाने और सुनिए मेरे होते हुए आप डरिए नहीं। यूं ही आप खौफ में डूबे जा रहे हैं।"

मांगेराम ने सत्तो को देखा और मुस्करा पड़ा।

"तू मुझे तसल्ली दे रही है।"

"मैं तसल्ली नहीं दूंगी तो कौन देगा ?"

"जब पुलिस वालों ने मैटाडोर को रोका था, तब अपना चेहरा देखा था।"

"वो बात दूसरी थी। दरअसल पुलिस की वर्दी देखकर मैं घबरा गई थी। बाद में ठीक तो हो गई थी।"

मांगेराम मुस्कराता रहा।

"जा, चावल बना ले और मुझे तसल्ली देने की अपेक्षा खुद को सामान्य रख।"

"मैं कोई बच्ची थोड़े हूं जो मुझे बातों से बहला रहे हो।" सत्तो उठते हुए बोली--- "चावल बनाने जा रही हूं मैं । इन रुपयों को कैसे इस्तेमाल करना है, कुछ नई बातें सोची हैं। चावल खाते हुए आपको बताऊंगी।"

सत्तो के कमरे से बाहर जाते ही मांगेराम ने गहरी सांस लेकर आंखें बंद कर ली। सिर्फ ये ही भय उसे सता रहा था कि अगर पुलिस उन तक आ पहुंची तो ?

■■■

मंगल !

मांगेराम और सत्तो का बेटा।

उस वक्त रात के करीब बारह बज रहे थे। वो सुनसान कालोनी अब और भी सुनसान हो गई थी। उसके घर के अलावा दूर-दूर दो अन्य घरों में लाइटें ऑन थीं। वरना ये लग रहा था कि वो जगह खाली जंगल हो। अंधेरे में कभी-कभार मकानों के सायों की झलक मिल जाती थी ।

मंगल जब घर पहुंचा तो बाहर का ये हाल था ।

गेट खोलकर भीतर आया। नशे में धुत था वो। वैन का सहारा लिया और जेब से सिगरेट निकालकर सुलगाई। पच्चीस बरस का, कुछ लम्बा, सामान्य शरीर का था वो। सिगरेट सुलगाकर, वैन का सहारा लेकर खड़ा हुआ था।

"अपनी तरह बूढ़ी मैटाडोर हर रात रास्ते में अड़ा देता है। बाहर खड़ा कर दे तो कौन ले जाएगा इसे। कोई खरीदकर भी राजी नहीं होगा और चोर भी दस बार सोचेगा कि इस मैटाडोर का क्या मिलेगा, जो इसे उठाने में इतनी मेहनत करे।" बड़बड़ाता हुआ मंगल वैन की बगल-बगल चलता हुआ, उसे पार करके मुख्य दरवाजे पर पहुंचा और दरवाजा खुला देख कर ठिठका।

नशे में, खड़े होने से उसका शरीर आगे-पीछे हिल रहा था।

"आज दरवाजा खुला हुआ है। वरना रोज तो थाड़-थाड़ बजाना पड़ता है। तब खुलता है।" बांह को हवा में लहराकर बड़बड़ाया फिर आगे बढ़ा और दरवाजे की चौखट पर जा पहुंचा। चौखट पकड़कर खड़ा हुआ। आंखें मिचमिचाकर पूरी खोली और कमरे में देखा।

सत्तो सोफे पर बैठी थी और मांगेराम लम्बे सोफे पर अधलेटा-सा था।

सत्तो ने मंगल को देखा तो मुस्करा पड़ी।

"आ बेटा मंगल--- मैं...।"

"कोई बेटा-वेटा नहीं।'' नशे में लड़खड़ाता हुआ मंगल भीतर आ गया। उसी वक्त दीवार का सहारा न ले लेता तो नीचे अवश्य लुढ़क जाता। खुद को संभालकर बोला--- "क्या फैसला किया ?"

"किस बारे में?" सत्तो उसके सवाल को सब समझ रही थी।

"सपना के बारे में, मैंने उसी से शादी करनी है। वो....।"

"बेटे होश से काम ले। हम तेरे दुश्मन तो हैं नहीं। वो ठीक लड़की नहीं।"

"बकवास करती हो तुम। सपना से बढ़िया लड़की मैंने कभी देखी ही नहीं। वो बहुत अच्छी है। मेरा बहुत ख्याल रखती है। मुझे पास बिठाकर पिलाती है। पकौड़े बनाकर देती है। बहुत ख्याल रखती है मेरा। उसका बाप मेरी बहुत इज्जत करता है। दामाद की तरह। मेरे साथ बैठकर पीता है। उसकी मां मुझे बेटा कहती है। वो सब तेरे से भी ज्यादा सगे हैं मेरे। तेरे को क्या मालूम सपना मुझे बहुत प्यार करती है। बिना शादी के ही मुझे अपना पति मानती है। कहती है उसे, मुझ पर पूरा विश्वास है कि मैं, उसे धोखा नहीं दूंगा और तुम कहती हो कि सपना अच्छी लड़की नहीं है। कान खोलकर सुन ले मां और पापा आप भी, मैं शादी करूंगा तो सपना से। अगर आप लोगों को पसन्द नहीं तो मैं शादी करके उसके घर भी रह सकता हूं। कल इस वक्त मुझे जवाब मिल जाना चाहिए। आप दोनों की हां हो या ना। परसो मैंने हर हाल में सपना से शादी कर लेनी है।"

मांगेराम और सत्तो की नजरें मिलीं।

"बैठ तो मंगल।"

"मैं नहीं बैठूंगा। मेरे को आप लोगों का जवाब चाहिए।"

"इसी बारे में तेरे से बात करनी है बेटा।" सत्तो ने मीठे स्वर कहा।

"सपना के बारे में ?"

"हां।"

"तो आप लोगों को ये रिश्ता मंजूर है।"

"तू बैठेगा तो बात करेंगे। इस तरह खड़े-खड़े बातें नहीं होती।"

"ठीक है।" मंगल ने दीवार की टेक छोड़ी तो जोरों से लहराया--- "बैठ जाता हूं।"

"संभल के बेटा।"

"संभला हुआ हूं। तुम लोग क्या समझते हो, मैंने पी रखी है। बेवकूफ हो। पीकर तो मंगल होश में आता है। इस वक्त सपना मेरे पास होती तो कितना मजा आता।"

मांगेराम कठोर निगाहों से, मंगल को घूरे जा रहा था।

मंगल किसी तरह आगे बढ़ कर, सोफे की कुर्सी पर गिरने के ढंग से बैठ गया। नशे में आंखें लाल सुर्ख हो रही थीं। उसने सत्तो और मांगेराम को देखा।

"बोल मां, सपना को तेरी बहू बनाकर कब घर पर लाऊं। मुहूर्त निकालना कोई ?"

"बेटा एक बहुत खास बात तेरे से करनी है।" सत्तो ने प्यार से कहा।

"सपना के बारे में ?"

"सपना के अलावा कुछ और तेरे को सूझता है। पहले बात तो सुन ले।"

"ठीक है, सुना ले। सुना ले।" मंगल का सिर झूमते अंदाज में हिला ।

"एक बात बता बेटा मंगल।" सत्तो ने मुस्कराकर कहा--- "अगर हम कहें कि सपना को छोड़ किसी और अच्छी लड़की से ब्याह कर ले, बदले में हम तुझे लाखों रुपया देंगे तो तू हमारी बात मानेगा।"

मंगल हंस पड़ा। ठठाकर हंसा।

"क्या हुआ ?"

"घर में खाने को भी दाने नहीं हैं और मुझे लाखों रुपया दे रहे हो। क्या मजाक...।"

"मैं सच कह रही हूं बेटे। तू मेरी बात का जवाब दे।"

"मैं फालतू बातों का जवाब नहीं देता। मैंने सिर्फ सपना से शादी करनी है। लाखों रुपयों का लालच देकर मुझे बेवकूफ बनाने की कोशिश मत....।"

"मैं सच कह रही हूं बेटा।"

"सच ?"

"हां।"

मंगल ने आंखें मिचमिचाकर सत्तो को देखा फिर मांगेराम को, जो कठोर निगाहों से बराबर मंगल को देखे जा रहा था।

दो पलों बाद मंगल गर्दन हिलाकर व्यंग से बोला।

"तो तुम लोगों के पास लाखों रुपया है मुझे देने के लिए।"

“कहां है।" मंगल का नशे से भरा स्वर कड़वा हो गया--- "मैं भी तो देखूं।"

"तुझे वायदा करना होगा कि फिर तू कभी सपना के घर की तरफ देखेगा भी नहीं।"

"पहले लाखों रुपया तो दिखाओ।" मंगल नशे से भरी आंखें नचाकर कह उठा।

सत्तो ने मांगेराम को देखा।

मांगेराम सख्त से लहजे में कह उठा।

"रुपया तेरे को अभी दिखा देते हैं। लेकिन देंगे तब-जब हमें विश्वास हो जाएगा कि तूने सपना को छोड़ दिया है और किसी शरीफ घराने की लड़की से शादी कर लेगा।"

मंगल ने शराफत से नशे में डूबी गर्दन हिलाई।

"वायदा किया, रुपया दिखाओ।"

"दिखा दो जी। अपना बेटा है। छिपाना क्या ?" सत्तो गर्व भरे स्वर में कह उठी।

मांगेराम उठा, खड़ा हुआ। सत्तो भी उठ गई।

"आ...।"

मंगल खड़ा होते ही, जोरों से लड़खड़ाया। फिर संभल गया।

मांगेराम दरवाजे की तरफ बढ़ा।

"आ बेटा।" सत्तो मंगल की बांह थामे कमरे के बाहर वैन के पास ले आई।

मंगल के चेहरे पर भारी तौर पर उलझन से भरे अजीब से भाव उभरने लगे।

मंगल को घूरने के बाद मांगेराम ने जेब से चाबियां निकाली। और एक चाबी से मैटाडोर के दरवाजे का लॉक खोला और फिर दरवाजा खोल दिया।

कमरे से आती रोशनी में भीतर पड़े बोरे नजर आने लगे।

"देख ले लाखों रुपया।"

"ये तो बोरे हैं।" मंगल नशे भरे स्वर में कह उठा।

"बोरों में नोट भरे पड़े है।" सत्तो जल्दी से बोली।

"मैं ही बचा था बेवकूफ बनाने के लिए।" तीखे स्वर में कह उठा मंगल--- "बोरे दिखाकर कह रही हो कि इनमें लाखों रुपये हैं। मैंने पी जरूर है। लेकिन मुझे नशे में मत समझना। सपना की बात करो। उससे शादी करके, उसे घर लाऊं या कहीं और ठिकाना बना लूं।"

"दिल तो करता है, तेरा गला काट दूं।" मांगेराम दांत भींचकर कह उठा।

"क्यों काट दे इसका गला।" सत्तो जल्दी से कह उठी--- "इसने नोट देखे कहां है। बोरे ही तो देखे हैं। ठहर बेटा, मैं दिखाती हूं तेरे को लाखों रुपये, यहाँ खड़ा रहा।" कहने के साथ ही सत्तो भीतर चली गई।

मंगल ने नशे भरी आंखों से मांगेराम को देखा।

"तो आप मेरा गला काटेंगे।" नशे से भरभराए स्वर में बोला मंगल।

"जरूरत पड़ी तो...।" मांगेराम के होंठ भिंच गए।

"कहना बहुत आसान होता है। गला काटने के लिए दम चाहिए और वो दम आप में नहीं है।"

"मुझसे जुबान लड़ाता...।"

"चुप भी रहो।" सत्तो बाहर आती हुई बोली। हाथ में चाकू था--- "जवान बेटों के मुंह नहीं लगते। लाखों रुपयों को देखते ही, ये सीधा हो जाएगा। ले देख।" सत्तो मैटाडोर के खुले दरवाजे के पास पहुंची और चाकू से बोरे को काटने लगी।

बोरा तो जैसे चमड़े से भी मजबूत था और चाकू पुराना बेकार सा। तीन-चार मिनट लग गए, बोरे को थोड़ा-सा काटने में। उसके बाद सत्तो ने थोड़े से कटे हिस्से में हाथ डाला। ऐसा करते समय उसका दिल धड़क रहा था। इतनी दौलत उसने कभी नहीं देखी-सोची-महसूस की थी। उसके हाथ की उंगलियां गड्डी से टकराई और जब हाथ बाहर आया, उसमें पांच सौ की गड्डी थमी थी।

मंगल ने आंखें मिचमिचाकर गड्डी को देखा।

खुद सत्तो का हाथ कांप रहा था।

"ये देख।" सत्तो की धीमी आवाज में कम्पन था--- "पांच सौ वाले नोटों की गड्डी है। पूरा पचास हजार रुपया है। कभी देखी है पचास हजार की गड्डी । तूने कभी सोचा भी नहीं होगा कि पांच सौ के नोटों की गड्डी को हाथ में पकड़ सकेगा। अब विश्वास आ गया तेरे को कि सपना को छोड़ने पर तुझे हम लाखों रुपया दे सकते हैं।"

मंगल ने सत्तो के हाथ से गड्डी थामी और आंखें फाड़े कांपते हाथों से गड्डी को फुरेरी देते देख रहा था।

"नौ बोरे पड़े हैं मैटाडोर में गिन ले। मेरे ख्याल में सब में ही ऐसी गड्डियां भरी पड़ी हैं। बोरे कितने बड़े-बड़े हैं, देख ही रहा है और सोच कितना पैसा होगा इन नौ बोरों में समझ ले सब तेरे हैं। शर्त ये है कि सिर्फ सपना को भूलना होगा। वो बुरे चरित्र की है। किसी अच्छी लड़की को देखकर घर बसा ले। सब कुछ तेरा ही तो है।"

मंगल की नशे से भरी आंखों में अभी भी अविश्वास भरा हुआ था।

"मेकैनिकी करते-करते अपने बाप की तरह जिंदगी खराब कर लेगा। इस पैसे से तू बड़े से बड़ा काम कर सकता है। शानदार जिंदगी बिताएगा तू और... ।"

तभी मांगेराम आगे बढ़ा और उसके हाथ से नोटों की गड्डी लेकर, थैले के कटे हिस्से में वापस डाली और मैटाडोर का दरवाजा बंद करके, लॉक करके, सख्ती भरे ढंग से चाबी जेब में डाल ली। मंगल को घूरने के बाद, मांगेराम पलटा और वापस कमरे में चला गया।

सकते में खड़े मंगल को सत्तो ने हिलाया।

"अन्दर चल और सोच-समझकर बात करना। अब सब कुछ तेरे सामने है। " एकाएक सत्तो का स्वर तीखा हो गया और पलटकर, वो भी भीतर चली गई।

मंगल सिर से पांव तक नशे में डूबा था और नशे से भरा मस्तिष्क इस वक्त ठीक से सोचने-समझने के लायक नहीं था। एकमात्र एक बात उसके जेहन में ठुंस चुकी थी कि वैन में लाखों रुपया है। नौ बोरे नोटों की गड्डियों से भरे पड़े हैं। नशे की तरंग ने पुनः उसके शरीर को हिलाया। जरा-सा होश में आया तो वैन का बंद दरवाजा हाथ से थपथपाकर पलटा और कमरे में आ गया।

मांगेराम और सत्तो सोफे पर बैठे थे।

भीतर आकर मंगल भी सोफे पर बैठ गया। उसकी अजीब-सी हालत हो रही थी।

"इतना पैसा कहां से आया ?" मंगल की आवाज नशे में भरभरा-सी रही थी।

"काम की बात कर।" मांगेराम सख्त स्वर में बोला--- "लाखों रुपया चाहिए।"

"ह-हां...।" मंगल की गर्दन फौरन हिली।

"सपना को छोड़ना होगा। बिल्कुल भूल जाना होगा उस खराब लड़की को।"

"भूल गया, अभी से भूल गया।"

"किसी शरीफ लड़की से ब्याह करेगा। अच्छा काम करेगा।"

"जैसा आप लोग कहेंगे, वैसा ही करूंगा। मेरे से आपको कभी शिकायत नहीं होगी।"

"कल से तेरे लिए लड़की देखना शुरू कर दें।"

"हां।" मंगल ने तुरन्त गर्दन हिलाई--- "आप दोनों जो भी लड़की पसन्द करेंगे, मैं उसी से शादी करूंगा।"

"इस वक्त तू नशे में है।" मांगेराम शब्दों को चबाकर बोला--- "सुबह सोये उठने पर, सपना का भूत तेरे सिर पर फिर से सवार हो सकता है।"

“नहीं होगा। मैं पूरे होश में हूं।" मंगल ने विश्वास भरे स्वर में कहा।

तभी सत्तो कह उठी।

"देखा जी, आखिर औलाद तो अपनी ही है। थोड़ा भटक गया तो क्या हो गया। सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते। मैं गवाही देती हूं मंगल की तरफ से। ये जो कह रहा है, सच कह रहा है और सोये उठने पर भी अपनी बात पर अटल रहेगा, क्यों बेटा।"

"बिलकुल माँ।" मंगल मुस्कराया--- "अब वही होगा। जो आप लोग कहेंगे।"

मांगेराम और सत्तो के चेहरे पर राहत के भाव नजर आने लगे।

"ये बता खाना वगैरह खाया कि नहीं ?"

"नहीं।"

"ठीक है। तू हाथ-मुंह धो ले। चावल बनाये हैं। आज उसी से काम चला ले। कल से बढ़िया चीजें दूंगी खाने को। बढ़िया-सी लड़की देखकर महीने भर में ही तेरा ब्याह कर देंगे।"

"जो आप दोनों को ठीक लगे। वही कीजिए।" मुस्कराकर मंगल उठ खड़ा हुआ--- "तुम चावल डालो, मैं हाथ-मुंह धोकर आता हूं।" कहने के साथ ही मंगल बाहर निकल गया।

सत्तो ने मुस्करा कर मांगेराम को देखा।

"देखा, दौलत देखते ही सीधे रास्ते पर आ गया।" सत्तो ने धीमे स्वर में कहा।

मांगेराम ने मुस्करा कर सिर हिलाया।

"अभी भी ये रास्ते पर आ जाए तो, हमारी जिंदगी सफल हो जाएगी। ये घर, घर बन जाएगा।"

"चिन्ता मत कीजिए। अब ये सीधा हो गया है। लड़की देखकर, महीने भर में ही इसका ब्याह कर देंगे। बहू आएगी तो, पूरा का पूरा सीधा हो जाएगा। उस बुरे चरित्रवाली सपना को तो याद भी नहीं करेगा।"

"बोरों को वैन से निकालकर भीतर रखना है। वैन खाली करनी है।" मांगेराम ने जैसे याद दिलाया।

"चावल खा लें। उसके बाद हम तीनों आधे घंटे में वैन में से बोरे निकालकर भीतर रख देंगे। बेटा साथ हो तो बड़े से बड़ा काम भी आसान हो जाता है। गिनने कब हैं नोट। कितने हैं बोरों में।

"बहुत है। ये बात बाद में करना। उस काम के लिए हमारे पास वक्त ही वक्त है।"

"ये भी ठीक है।” सत्तो उठते हुए बोली--- "मंगल को चावल डाल दूं।" कहकर सत्तो बाहर निकल गई।

■■■

मंगल बाथरूम में पहुंचा।

आंखों के सामने बोरों में भरे नोट नाच रहे थे। लाखों तरह की सोचें उसके मस्तिष्क में गुड़मुड़ हो रही थीं। परन्तु वो खुद नहीं समझ पा रहा था कि क्या सोच रहा था। मस्तिष्क में उसके लिए सबसे जरूरी दो बातें नाच रही थी। एक सपना और दूसरी दौलत,जो मैटाडोर में मौजूद थी। सपना को छोड़ने का उसका दूर-दूर तक कोई इरादा नहीं था। सपना के लिए वो घर और मां-बाप को छोड़ने के लिए तैयार था। परन्तु मैटाडोर में पड़ी दौलत ने उसके पांव में बेड़िया डाल दी थीं। अब इस दौलत की वजह से, घर भी नहीं छोड़ सकता था।

क्या करे ?

मंगल ने पैंट की जेब से भरा हुआ व्हिस्की का क्वार्टर निकाला और उसे खोल कर एक ही सांस में होंठों से लगाकर खाली कर दिया।

व्हिस्की पेट में पहुंची तो पेट के साथ-साथ मस्तिष्क भी सुलग उठा।

क्या करे ?

यही सोच बार-बार उसके मस्तिष्क से टकरा रही थी।

मां-बाप, सपना को बहू बनाने पर तैयार नहीं और वो सपना को छोड़ नहीं सकता। इधर मैटाडोर में पड़ी दौलत को भी अब नहीं छोड़ सकता।

क्या करे ?

सपना को छोड़कर, ये तगड़ी-दौलत उसे मिल सकती थी।

दौलत को छोड़कर सपना मिल सकती थी।

जबकि अब सपना तो क्या, दौलत को भी नहीं छोड़ना चाहता था।

अब उसे दोनों चीजों की जरूरत थी।

क्या करे ?

बाथरूम में खड़ा नशे से भरी सुर्ख आंखों से ईंटों वाली दीवार को देखता रहा। मस्तिष्क में तूफान उठा हुआ था सोचों का। कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि.... ।

क्या करे ?

"मंगल। मंगल बेटा, चावल खा ले।" बाहर से सत्तो की आवाज आई।

मंगल की सोचें टूटी।

"आता हूं।" नशे में मंगल की आवाज बेकाबू हो रही थी।

"जल्दी कर। बोरों को मैटाडोर से निकालकर, कमरे के भीतर रखना है। मैटाडोर खाली करनी है। सुबह तेरे पापा ने वैन लेकर स्कूल जाना है। वो इसीलिए अभी सोये नहीं।" सत्तो की आवाज पुनः कानों में पड़ी।

"बोला तो आता हूँ।" नशे से भरभरा रहा था मंगल का स्वर।

तो मैटाडोर से नोटों से भरे थैले निकालकर मकान के भीतर रखे जाएंगे।

उसके लिए लड़की देखकर, महीने भर में उसकी शादी करने की भी सोच लिया है इन्होंने। उसे सपना से दूर करना चाहते हैं। सपना, जिसमें उसकी जान बसी है।

मां-बाप की कोई भी बात, उसके विचारों से मेल नहीं खा रही थी। पहले वो हर कीमत पर सपना को चाहता था और अब हर कीमत सपना के साथ बोरों में भरी दौलत भी चाहता था। सपना और दौलत का संगम हो जाए तो उसकी जिंदगी में किसी चीज की कमी नहीं रहेगी। मंगल में सबसे खास बात तो ये थी कि उसने जो भी फैसला लेना होता, वो फैसला फौरन ले लेता और फिर उसी पर टिका रहता। व्हिस्की पी रखी हो और फैसला लेने की नौबत आ जाए तो फिर कहना ही क्या ? और अब उसने फैसला ले लिया था।

सपना को और दौलत को पाने में अड़चन बन रहे थे उसके मां-बाप।

मां-बाप को ही खत्म कर दिया जाए तो उसकी जिंदगी के सारे क्लेश कट जाएंगे।

यही दोनों तो उसके लिए मुसीबतों का पहाड़ खामखाह खड़ा कर रहे हैं। काफी जिंदगी बिता ली है। बूढ़े होने को भी आ रहे हैं। इन दोनों का दिमाग सठियाता जा रहा है। उसका जीने का अपना ही ढंग है और ये दोनों भविष्य में भी उसके लिए परेशानियां पैदा करते रहेंगे। नशे के समन्दर में डूबा मंगल का मस्तिष्क सोचे जा रहा था और साथ ही साथ उसका मस्तिष्क इस बात की भी हामी दे रहा था कि वो ठीक सोच रहा है। उसके विचार बिलकुल सटीक हैं। मां-बाप को खत्म कर देना ही ठीक है।

उसके बाद- उसके बाद क्या करेगा ?

करना क्या है? सपना को साथ लेगा। उसके बाप और मां को भी साथ ले लेगा। वो सब कितने अच्छे लोग हैं। कहीं शानदार जगह रहकर, मजे से उनके संग जिंदगी बिताएगा।

नशे से मंगल का मस्तिष्क, चेहरा, आंखें, पूरा शरीर और उसकी पागलपन से भरी सोचें तप रही थीं। इस वक्त उसे अपनी सोच में कहीं भी गलती नजर नहीं आई। खुद को दुनिया का सबसे समझदार और भाग्यशाली व्यक्ति समझ रहा था कि बहुत अच्छे मौके पर बहुत अच्छा फैसला लिया है।

दीवार से टेक लगाए सीधा खड़ा हुआ तो झूमकर गिरने को हुआ। फौरन हाथ से दीवार का सहारा ले लिया। शरीर थमा। बाथरूम में ही उसे कपड़े धोने वाली 'थापी' नजर आई। क्रिकेट के बैट जैसी थापी, जिसे कपड़े धोते समय, कपड़ों पर मारते हैं। आगे बढ़कर मंगल ने वो 'थापी' उठा ली।

थापी पकड़कर, हिलाकर हवा में तलवार की तरह लहराकर उसे देखा। आंखों में हिंसक चमक लहरा रही थी। दिलो-दिमाग में सिर्फ एक ही बात थी कि राह के रोड़ों को हमेशा के लिए हटा देना है ताकि सपना और दौलत के साथ जिंदगी भर ऐश कर सके।

डगमगाते ढंग से, एक हाथ से दीवार को थामे, दो कदम आगे बढ़ाए और दरवाजे के पास पहुंच कर दरवाजा खोला। शरीर बेकाबू हो रहा था। पांव रखता कहीं तो पड़ता कहीं। उसके शरीर को शराब की जितनी जरूरत थी, इस वक्त उसने उससे तीन गुणा ज्यादा पी रखी थी।

बाथरूम से बाहर कदम रखते ही सामने से सत्तो आती दिखाई दी। मंगल ने मौत से भरी लाल सुर्ख हो रही खूनी आंखों से उसे देखा।

पास पहुंचते हुए सत्तो अपने लाडले बेटे से मुस्करा बोली।

"बहुत देर लगा दी। चावल रख आई हूं। खा ले। पानी ला रही हूं।" वो थापी को न देख पाई थी, क्योंकि उसके दिमाग में तो वैन में बोरों में बंद दौलत घूम रही थी कि भविष्य में उस दौलत से क्या-क्या खरीदना है।

सत्तो आगे जाने के लिए पलटी।

राक्षस बन चुके मंगल का थापी वाला हाथ हवा में उठा और मात्र डेढ़ कदम आगे बढ़ी सत्तो के सिर के ठीक बीचो-बीच, पूरी ताकत से थापी का नुकीला लम्बा किनारा जा लगा। जो सिर के ऊपर हिस्से को माथे से लेकर, पीछे तक आधा इंच की गहराई तक फाड़ गया।

सत्तो के होंठों से चीख भी न निकल सकी। वो पलट भी न सकी अपने लाडले बेटे का चेहरा आखिरी बार देखने के लिए कि तभी राक्षस ने पुनः जोरों से थापी सिर पर मारी। जो थोड़ी-बहुत कसर बची थी, वो इस दूसरे वार ने पूरी कर दी। प्राण निकल चुके थे। सत्तो का बेजान शरीर दीवार से टकराया और फिर दीवार से ही सरकता हुआ नीचे गिरकर, लुढ़क गया। सीमेंट के फर्श पर जहां सिर लगा था, वो जगह सिर से बहते खून से तालाब जैसी बनने लगी।

हिंसक-दरिन्दा लग रहा था मंगल।

हाथ में पकड़ी थापी खून से लाल सुर्ख हो रही थी। हाथ भी खून से रंग चुका था। लहू के छींटे उसकी कमीज पर भी पड़े थे। उसे पूरा यकीन हो गया था कि एक रोड़ा, उसकी राह से हट गया है। अब दूसरे रोड़े को रास्ते से हटाना बाकी था।

खून से सनी थापी पकड़े झूमता हुआ मंगल आगे बढ़ा। नशे से भरा उसका रौद्र रूप बहुत ही भयानक लग रहा था। इस वक्त कोई उसे देखता तो दहल जाता। पांव रख कहीं रहा था। पड़ कहीं रहा था। चलते वक्त कई बार दीवार को हाथ से पकड़ना पड़ता।

इस तरह वो ड्राइंगरूम में पहुंचा।

मांगेराम थका-टूटा सोफे पर अधलेटा, इस इंतजार में था कि मंगल चावल खा ले । उसके बाद, वे तीनों मिलकर, बोरे घर के अंदर रख देंगे। ताकि सुबह जब स्कूल जाने का वक्त हो तो मैटाडोर ले चलने के लिए बिल्कुल तैयार हो। वक्त पर स्कूल पहुंचना जरूरी था। इसी इंतजार इंतजार में उसकी आंख लग गई। थी और तभी खून से सनी थापी थामे राक्षस उसके सिर पर आ पहुंचा था।

राक्षस का थापी का पहला वार, उसके माथे पर पड़ा।

माथा फट गया।

मांगेराम जोरों से तड़पा, उठना चाहा।

लेकिन राक्षस अब रुकने वाला कहां था । वो तो नशे में धुत, अपनी स्वस्थ सोचों को अंजाम दे रहा था। अपने रास्ते के पत्थरों को हटा रहा था।

राक्षस ने एक के बाद एक, जाने कितने वार मांगेराम के सिर माथे पर कर दिए। बुरा हाल हो गया था मांगेराम के सिर माथे का । वो इन्हीं वारों के बीच मर गया था। परन्तु राक्षस थापी से वार करते हुए अपने कर्म में व्यस्त रहा। मांगेराम के सिर और चेहरे का ये हाल हो गया, जैसे कुचल दिया गया हो। राक्षस तब रुका, जब वो खुद ही थक गया।

थापी पकड़े मंगल गहरी-गहरी सांसें लेने लगा।

नशे से भरी लाल सुर्ख आंखें मांगेराम के कुचले सिर और माथे पर थीं। भीतर के कई हिस्से स्पष्ट नजर आ रहे थे। मांगेराम का मृत चेहरा जो कि आधा रह गया था, खून में डूबा पहचाना नहीं जा रहा था। खून सोफे को सुर्ख कर रहा था और नीचे भी गिर रहा था।

हाथ में पकड़ी थापी लाल सुर्ख हो चुकी थी और कभी-कभार उस पर लगे खून की बूंद भी नीचे टपक जाती थी। उसका हाथ और बांह का काफी ज्यादा भाग खून में डूबा लग रहा था। कमीज पर खून ही खून नजर आ रहा था। चेहरे पर भी खून के छींटे थे।

मंगल के दांत भिंचे हुए थे। नशे से भरी सुर्ख धधकती आंखों में अभी भी दरिंदगी भरी, नजर आ रही थी। फिर उसने थापी को नीचे फेंका और हाथ-कमीज पर लगे खून को देखा उसके बाद झूमता हुआ पलटा और कमरे से निकलकर बाथरूम तक पहुंचा। सत्तो का बेजान-सा शरीर वहीं पर लुढ़का पड़ा था।

बाथरूम में पहुंचकर मंगल ने खून से सने अपने कपड़े उतारे और हाथ-मुंह धोकर, अपने शरीर पर लगा खून उतारने लगा। रह-रहकर नशे का तगड़ा चक्कर आ जाता। गिरते-गिरते बच जाता। जैसे-तैसे खून से सने कपड़े उतारकर, बाथरूम से बाहर आया। मात्र अण्डरवियर पहने था, परंतु उस पर खून का कोई धब्बा नहीं था। अब उसके शरीर पर खून का कोई भी धब्बा नजर नहीं आ रहा था। नशा अभी भी पूरी हद तक उसके मस्तिष्क पर सवार था, परन्तु स्वस्थ सोचें उसके मस्तिष्क में दौड़ रही थी कि अब आगे क्या करना है। इतना तो वो जानता था कि दो खून कर चुका है और इन खूनों से खुद को बचाना भी है। कानून के हाथों में पड़ गया तो इस सारी स्वस्थ मेहनत का क्या फायदा?

मंगल ने धुले हुए, दूसरे कपड़े पहने।

फिर ड्राइंगरूम वाले कमरे में पहुंचा तो छोटे से टेबल पर, प्लेट में डाल रखे चावल नजर आए। जो सत्तो ने उसके लिए रखे थे। आगे बढ़कर उसने प्लेट उठाई और हाथ से ही जल्दी-जल्दी चावल खाने लगा। पेट में भूख उछाले मारने लगी थी। सत्तो की आत्मा इस वक्त बहुत खुश हो रही होगी यह देखकर कि उसका  लाडला, उसके हाथ के बने चावल खा रहा है।

पूरी प्लेट खाली करने के बाद कपड़ों से ही उसने हाथ साफ किए। खाने के बाद उस पर हावी नशा कुछ हद तक कम होने लगा था। फिर भी वो ठीक-ठाक नशे में था। उसके बाद सोफे पर पड़ी मांगेराम की लाश के पास पहुंचा और जेब में हाथ डालकर मैटाडोर की चाबियां निकाल ली फिर बाहर निकलकर मैटाडोर के पास पहुंचा।

हर तरफ रात का गहरा अंधेरा ही नजर आ रहा था।

दूर एक घर की लाइट रोशन नजर आ रही थी।

पल भर ठिठककर, सोचकर नशे में घूमता मंगल पलटकर भीतर गया और घर की सारी लाइटें बंद करके वापस मैटाडोर के पास आ पहुंचा। गेट पहले से ही खुला था। वो मैटाडोर के भीतर बैठा। उसे स्टार्ट किया और तेजी से आगे बढ़ा दी।

बाहर निकलते हुए मैटाडोर की थोड़ी-सी साइड गेट से टकराई। परन्तु मंगल को अब किसी बात की परवाह ही कहाँ थी। इतना अवश्य था कि अब उस पर पहले जैसा भारी-भरकम नशा सवार नहीं था। कभी-कभार नशे का तीव्र झोंका, मस्तिष्क में से गुजर जाता था।

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रामजी लाल और उसकी पूजनीय पत्नी शरबती देवी।

रामजी लाल बचपन से ही खुरापाती दिमाग का था। दूसरों को बेवकूफ बनाना और अपना काम निकालने में महारथ हासिल थी उसे। ग्यारहवीं तक पढ़ा-लिखा था परंतु दिमाग ऐसा था कि पूरे देश को संभाल ले। चालबाजियां तो उसके शरीर में खून के साथ दौड़ती थीं।

आज पचास साल का था, परन्तु उसकी जिंदगी की खासियत ये थी कि आज तक कोई नौकरी-बिजनेस नहीं किया था और ठाठ से जिंदगी बिताई थी। कमी क्या होती है, ये उसने आज तक नहीं जाना था। जब तक मां-बाप के साथ रहा उनका माल खाता रहा। बाहर से हेराफेरियां करके नोट बनाता रहा। मौज-मस्ती करता रहा।

जब करीब अट्ठाईस बरस का हुआ तो बेहद खूबसूरत युवती से उसका परिचय हुआ। जिसका नाम शरबती था। वो नौकरी करती थी। रामजी लाल के ठाट-बाट देखकर उससे प्रभावित हो गई। ऊपर वाले की मेहरबानी से रामजी लाल दिखने में कम नहीं था। दोनों में दोस्ती हो गई। उसके बाद रामजी लाल ने ठंडे दिमाग से फैसला किया कि शरबती से शादी कर लेना नुकसान का सौदा नहीं रहेगा। खूबसूरत तो है ही, ऊपर से कमाती भी है। खाना पीना मजे से कटेगा। शरबती को यही बता रखा था कि उसका अपना बिजनेस है।

शरबती को कोई भी कमी नजर नहीं आई, रामजी लाल में। दोनों की शादी हो गई। शादी के बाद रामजी लाल के परिवार वालों से शरबती की नहीं पटी तो वे दोनों अलग से कमरा लेकर रहने लगे। शरबती को मालूम हो चुका था कि रामजी लाल कोई काम नहीं करता। परंतु ये सोचकर रही कि कब तक इस तरह बैठा रहेगा। देर-सबेर में काम कर लेगा।

अब शरबती कमाती और रामजी लाल मौज करता।

लेकिन साल भर बाद ही शरबती की नौकरी छूट गई। दूसरी नौकरी मिल नहीं रही थी। घर बुरे हाल के दौर से गुजरने लगा। रामजी लाल हाथ पर हाथ रखे खामोशी से इस तरह बैठा रहा, जैसे पड़ोसी हो और दूसरे घर का तमाशा देख रहा हो, जबकि उसका शातिर दिमाग अपनी जगह कायम, काम कर रहा था।

जब घर की बुरी हद हो गई। शरबती बिल्कुल टूट गई कि अब पेट कैसे भरेगा ?

तब रामजी लाल ने अपना खेल दिखाया और ग्राहक ले आया शरबती के लिए।

कई बार के इंकार के बाद आखिरकार शरबती को ये ही रास्ता अपनाना पड़ा। साल भर बाद ही शरबती ने लड़की को जन्म दिया। जिसका नाम सपना रखा गया। शरबती खूबसूरत तो थी ही। ऐसे में उसे ग्राहकों की कमी कभी नहीं रही। रामजी लाल की मौज मस्ती बरकरार रही। जब शरबती की उम्र ढलने लगी तो बाहर की लड़कियों को अपने पास रखकर चलाने लगी। नोटों के आने का सिलसिला बराबर चालू रहा।

सोलह बरस की सपना हुई तो उसने खूबसूरती में अपनी मां को भी पीछे पछाड़ दिया।

रामजी लाल को, सपना में अपना बुढ़ापा संवरता नजर आया। कई बार शरबती को इस बारे में कह भी चुका था। लेकिन शरबती ठीक वक्त का इंतजार करने को कहती। उधर सपना सब जानती थी कि उसके मां-बाप क्या करते हैं। देख-देख कर उसे यह सब मामूली काम लगने लगा।

उन्नीस की थी तब, जब रामजीलाल और शरबती ने सपना को धंधे में उतारा। अपनी खूबसूरती के कारण, अदाओं की वजह से सपना के भाव भारी ऊंचे रहे। घर में एक बार फिर पैसे की लहर-बहर आ गई। सपना को ये दुनिया बेहद रंगीन लगने लगी और वो इस काम में पूरी रम गई ।

अब सपना तेईस की थी।

सपना के द्वारा कमाई दौलत से उन्होंने बढ़िया-सा मकान ले लिया था। सपना थी कि उसकी मांग और खूबसूरती दोनों ही बढ़ती जा रही थी। रामजी लाल और शरबती को अब महसूस होने लगा कि अगर धंधा सलामत रखना है, तो अब सपना के लिए पति की आड़ जरूरी थी। वरना बदनामी के अलावा पुलिस का भी खतरा था और पति के रूप में उन्हें नजर आया मंगल। शराबी, आवारा और सपना का दिवाना। सपना जो कहती वो फौरन करने के तैयार हो जाता था। ऐसे ही पति की सपना को जरूरत थी जो पी-पाकर पड़ा रहे और उसके धंधे में दखल न दे।

रामजी लाल, शरबती और सपना ने मंगल को हाथों में ले रखा था। मंगल पर इस बात का बराबर दबाव डाला जा रहा था कि वो सपना से शादी कर ले। सपना कई बार बेडरूम में, मंगल को मुफ्त में अपने जलवे दिखा चुकी थी। मंगल तो पागल था सपना के लिए।

कुल मिलाकर सपना और उसके परिवार का ये हाल था।

इस वक्त रामजी लाल और शरबती मकान के ड्राइंगरूम में बैठे थे। दोनों के पास व्हिस्की के गिलास थे, जिसमें से छोटे-छोटे घूंट वे भर रहे थे और सपना, पुरानी पहचान वाले व्यक्ति के साथ एक घंटे से बेडरूम में बंद थी। उस व्यक्ति से नोटों की गड्डियां लेकर शरबती पहले ही संभाल चुकी थी। ये शरबती की खासियत थी कि बंदा पुराना हो या नया रकम पहले ले लेती थी।

इस वक्त रात का डेढ़ बज रहा था। सपना के फारिग होते ही उनका सोने का प्रोग्राम तय था।

"रामजी!" शरबती घूंट भर कर बोली--- "तेरा क्या ख्याल है मंगल जानबूझकर सपना से शादी करने से...।"

"वो करेगा।" रामजी लाल मुस्कराया।

"पक्का कैसे कह सकते हो ?"

"मैंने दुनिया को देखा है। वो सपना के लिए पागल है। लेकिन साथ ही वो चाहता है कि ये शादी उसके मां-बाप की रजामंदी से हो तो ज्यादा अच्छा है। उसके मां-बाप मना कर रहे हैं। आज ही कह गया है कि उसके मां-बाप माने या न माने, दो दिन में वो सपना से शादी कर लेगा।"

"हूं। सपना की शादी मन्दिर में करेंगे।"

"हां। मंगल यहीं रहेगा शादी के बाद। सपना जब ब्याहता बनकर बाहर निकलेगी या किसी ग्राहक के साथ होगी तो कोई शक या बदनामी वाली बात नहीं होगी।"

"सपना का काम देखकर मंगल ने बाद में कोई फसाद खड़ा किया तो ?" शरबती ने उसे देखा।

"ऐसा कुछ नहीं होगा।" रामजी मुस्कराया--- "तुम देखती रहो। वो खुद सपना को कार में बिठाकर, कस्टमरों के पास ले जाया करेगा और लाया करेगा। देखने वाले ये ही सोचेंगे कि मियां-बीवी घूमने गए हैं।"

शरबती ने मुस्कराकर घूंट भरा।

तभी बाहर किसी गाड़ी के रुकने की आवाज आई।

"अब कौन आ मरा।" शरबती ने मुंह बनाया--- "बाहर से टरका देना। हमने नींद भी लेनी है।"

अपना गिलास खाली करके रामजी लाल उठा।

"आने वाला पुराना कस्टमर हुआ तो उसे वापस कैसे भेजा जा सकता है। देखता हूं।" कहने के साथ ही राम जी दरवाजे की तरफ बढ़ गया।

दरवाजा खोला।

दरवाजे पर मंगल खड़ा था। जो कि बेल बजाने ही जा रहा था।

"मैं तो सोच रहा था पापा, आप लोग सो गए होंगे।" मंगल की आवाज में अभी भी नशा था।

"सोने ही वाले थे बेटे।" रामजी ने पीछे खड़ी स्कूल मैटाडोर पर नजर मारी--- "इस वक्त कैसे आना हुआ ?"

"मुझे भीतर आने दो। खास बात है।"

मंगल भीतर आ गया।

रामजी ने दरवाजा बंद किया। मंगल को आया पाकर शरबती की आंखें सिकुड़ी।

"आप भी जाग रही हैं मम्मी।" मंगल बोला।

"हां।" शरबती के होंठों से निकला।

"सपना कहां है ?"

"सपना।" शरबती शांत स्वर में बोली--- "बेडरूम में। शायद सो गई हो। बात क्या है ?"

मंगल मुस्कराया। उसने दोनों को देखा।

"पापा, मम्मी। आज के बाद हम सब राजा-महाराजा की तरह रहेंगे।"

रामजी के माथे पर बल नजर आए। शरबती की आंखों में उलझन उभरी।

"लगता है तुम ज्यादा चढ़ा गए हो ?" रामजी लाल ने इन शब्दों का इस्तेमाल करके पूछा कि वो क्या कहना चाहता है।

"चढ़ा गया हूं।" मंगल ने छाती फुलाकर कहा--- "यूं कहो पापा चढ़ी हुई उतर चुकी है।" कहने के साथ ही वो आगे बढ़ा और बोतल उठाकर, रामजी के गिलास में ही पैग तैयार किया और खाली कर दिया।

रामजी लाल और शरबती की नजरें मिलीं।

"पापा-मम्मी।" मंगल ने उलटे हाथ से होंठ साफ करते हुए कहा--- "बाहर जो मैटाडोर वैन खड़ी है। उसमें इतनी दौलत है कि हम चारों तमाम जिंदगी ऐश के साथ बिता सकते हैं। सपना के साथ हम लोग यहां से कहीं दूर बढ़िया जगह जाकर सारी उम्र शानदार जिंदगी बिता सकते हैं। सपना को बुलाओ मम्मी। मैं ये खबर सपना को सुनाना चाहता हूं और अब कल ही मैं, सपना से शादी करूंगा।"

शरबती ने न समझने वाले भाव में रामजी को देखा।

रामजी लाल की पैनी नजरें मंगल के चेहरे पर थीं और इतना तो वो समझ ही चुका था कि मंगल झूठ नहीं बोल रहा। सच-झूठ को पहचानना उसे अच्छी तरह आता था।

"तो बाहर खड़ी मैटाडोर में बहुत दौलत है।" रामजी लाल ने सिर हिलाया।

"हां। आपको विश्वास नहीं।"

"दिखाओ।"

"चलो पापा, मैं जानता हूं देखने से पहले आपको विश्वास नहीं आएगा मेरी बात पर।"

रामजी लाल की नज़रें शरबती की तफ घूमीं।

"शरबती, जरा सपना को देखो। वो नींद में है या जाग रही है। सब ठीक करो, सफाई कर दो।"

रामजी लाल का इशारा समझकर शरबती उठी। इन शब्दों का मतलब था कि सपना के पास मौजूद आदमी को पीछे वाले दरवाजे से निकाल दिया जाए कि मंगल को कुछ पता न लगे।

रामजी लाल, मंगल के साथ बाहर खड़ी मैटाडोर की तरफ बढ़ गया।

■■■

बेपनाह खूबसूरती की मालकिन थी सपना। यूं ही मंगल उसका दीवाना नहीं हुआ पड़ा था और यूं ही कस्टमर चंद घंटों के लिए उसे हजारों रुपया नहीं दे जाते थे। जबकि उसके मुकाबले मंगल कुछ भी नहीं था। लेकिन मंगल ने कभी इस तरफ नहीं सोचा था कि आखिर सपना ने उसमें क्या देखा कि वो उस पर शादी करने का दबाव डालने लगी और उसके मां-बाप ने भी मना नहीं किया।

सपना के हाथ से मिलने वाली व्हिस्की, उसकी मीठी आवाज, उसकी खूबसूरती और उसकी सांसों की महक ही थी कि जिसकी वजह से वो अपने मां-बाप की हत्या कर आया था। सपना ने इस वक्त इतना झीना गाउन पहना था कि सब कुछ बेहद स्पष्ट नजर आ रहा था।

इस वक्त उनके मकान के ड्राइंगरूम में सनसनी फैली हुई थी।

नौ के नौ बोरे कमरे में पहुंच चुके थे।

जो दो बोरे चाकू से थोड़े से काटे गए थे। उनमें हाथ डालकर कई गड्डियां निकाल कर उन्होंने देखा था। हर गड्डी पांच सौ की थी। बाकी बोरों को बाहर से ही दबा कर तसल्ली कर चुका था रामजी कि सब बड़े बोरे नोटों की गड्डियों से भरे थे। दो में पांच सौ की गड्डियां थी तो दूसरों में भी पांच सौ की ही होगी। सौ की भी हो तो परवाह नहीं। इस बात का हिसाब तो उसने तुरंत लगा लिया था कि इन बोरों में करोड़ों की दौलत भरी पड़ी है।

ये सारी दौलत उसके मां-बाप के पास कैसे आई। इस बात का जवाब नहीं था मंगल के पास अलबत्ता ये उसने स्पष्ट बता दिया कि बिना मां-बाप की हत्या किए वो इस दौलत को सपना के लिए नहीं ला सकता था। इसलिए दोनों को मारना पड़ा। अपने ही मां बाप की हत्या कर आया है ये जानकर तीनों मन ही मन सिहर उठे थे ।

करोड़ों की दौलत पास देखकर वैसे ही उनके बुरे हाल हो रहे थे।

"पापा कल मैं सपना से शादी करूंगा।"

"जरूर।" रामजी लाल ने खुद को संभाला और शांत स्वर में कहा--- "लेकिन इतनी दौलत पास में हो तो कोई भी काम जल्दबाजी में न करके, सोच-समझ कर करना चाहिए।"

"क्या मतलब?"

"मतलब कि तुम्हारे घर तुम्हारे मां-बाप की लाशें पड़ी हैं। जिनकी हत्या तुमने की है। कल तुम्हारे मां-बाप की हत्या की बात खुल जाएगी। ऐसे में पुलिस तुम्हें तलाश करेगी और पुलिस कोई बेवकूफ नहीं है। वो इस बात का सबूत भी ढूंढ लेंगे कि उनकी हत्या तुमने की है।" रामजी लाल गम्भीर स्वर में बोला।

पहली बार मंगल के चेहरे पर घबराहट उभरी।

"ओह, इस तरफ तो मैंने सोचा भी नहीं था पापा।" मंगल के होठों से निकला।

कोई कुछ नहीं बोला।

"अब क्या होगा पापा। मैं तो फंस जाऊंगा और सपना के बिना...।"

"चिंता मत कर मंगल। तुमने मुझे पापा कहा है तो अपने पापा पर विश्वास कर। सब ठीक हो जाएगा। सपना से तेरा ब्याह होगा और इस दौलत का मजा भी हम लूटेंगे।" रामजी लाल एकाएक मुस्करा पड़ा--- "मैं सोचता हूं क्या करना है। तुम वैन को वापस अपने घर पर छोड़ आओ। क्योंकि इस वैन को इस्तेमाल करने वाला वहां मरा पड़ा है। ऐसे में वैन को वहीं होना चाहिए। नहीं तो पहला शक सीधा तुम पर जाएगा।"

मंगल ने अपना पैग खाली किया और फौरन उठ खड़ा हुआ।

"मैं अभी मैटाडोर घर पर छोड़ आता हूं। घंटा भर तो लग ही जाएगा आने में। वापसी पैदल ही होगी। तब तक आप सोचिए कि क्या करना है। मेरे ख्याल में तो यहां से दूर निकल चलते हैं।"

"वो मैं सोचता हूं। तुम मैटाडोर घर पर छोड़कर आओ।"

मंगल फौरन पलटा और घबराहट भरे अंदाज में बाहर निकलता चला गया।

■■■

मंगल के जाने के बाद देर तक वहां खामोशी रही।

तीनों सकते की-सी हालत में थे। एक तो मंगल करोड़ों की दौलत एकाएक उनके पास ले आया है। दूसरे उसने अपने मां-बाप की नृशंस ढंग से हत्या की है।

"ये जो कुछ भी हो रहा है, मुझे तो विश्वास नहीं आ रहा।" सपना के होंठों से निकला।

शरबती ने घूंट भरा और लम्बी सांसें लेकर कह उठी।

"क-करोड़ों रुपया।"

राम जी लाल के चेहरे पर विषैली मुस्कान नाच उठी।

"हमें वक्त रहते मंगल की असलियत मालूम हो गई और वो बेवकूफ करोड़ों रुपया हमारे पास ले आया, ये बहुत ही अच्छा हुआ।" रामजी लाल शरबती और सपना को देखकर कह उठा।

"जो तुम्हें अपना बनाने के लिए अपने मां-बाप की जान ले सकता है, वो कभी भी ये बर्दाश्त नहीं करेगा कि तुम दूसरों की बांहों में जाओ। जिंदगी में पहली बार किसी को पहचानने में, मेरे से गलती हुई है और सबसे अच्छी ये बात हुई कि उसने अभी सपना से शादी नहीं की। की होती और सपना की हकीकत जान जाता तो कोई बड़ी बात नहीं कि वो गुस्से में हमारी ही जान ले लेता।"

"ये सब छोड़ो।" शरबती ने कहा--- "आगे की बात सोचो। करोड़ों की दौलत पास में है। मेरे ख्याल में अब हमें कभी भी दौलत की कमी नहीं रहेगी। सपना को कुछ भी करने की जरूरत नहीं। मंगल से ब्याह करके आराम से रह सकती हैं। हम भी साथ रहेंगे और...।"

"बेवकूफों वाली बात मत करो।"

"क्या मतलब ?"

"मंगल ताजे-ताजे दो खून करके हटा है। वो भी अपने मां बाप के। मंगल के बताए अनुसार उसके खून से सने कपड़े बाथरूम में हैं। जिस थापी से हत्या की है, वो भी वहीं है। पुलिस और भी चार सबूत ढूंढ़ लेगी मंगल के खिलाफ। यानी कि वो तो किसी भी हाल में बचने वाला नहीं। उसके साथ रिश्ता रखकर हम भी फंसेंगे और ये करोड़ों रुपया भी हाथ से जाएगा।"

शरबती और सपना की निगाहें रामजी लाल पर थीं।

"तुम कहना क्या चाहते हो ?"

"ये कि सबसे पहले मंगल से पीछा छुड़ाना जरूरी है। नहीं तो ये दौलत हाथ से निकल जाएगी। करोड़ों रुपया बहुत होता है। किसी नए शहर में बसकर, बड़े लोगों से दोस्ती बनाकर सपना की शादी किसी भी नामी घराने में करा सकते हैं। इसकी खूबसूरती देखकर हर कोई दीवाना हो जाता है। किस्मत ने मंगल के द्वारा ही ये दौलत हम तक पहुंचानी थी। वो पहुंचा दी। मंगल का काम खत्म।"

"लेकिन मंगल आसानी से हमारा पीछा नहीं छोड़ेगा।" सपना बोली--- "वो तो...।"

"मंगल का क्या करना है। मैंने सोच लिया है।" रामजी लाल का स्वर शांत था ।

शरबती और सपना की नजरें मिलीं।

"क्या करना है, क्या सोचा ?"

"करोड़ों रुपया पाने और बाकी की जिंदगी मौज-मस्ती से गुजारने के लिए, एक का गला दबाना पड़े तो पीछे नहीं हटना, चाहिए। ऐसा करने से सपना की जिंदगी भी बन जाएगी। तमाम जिंदगी किसी बड़े घराने की बहू बनकर राज करेगी। ऐसी घटिया जिंदगी से छुटकारा पा लेगी।" रामजी लाल ने शांत स्वर में कहा और मुस्करा पड़ा।

शरबती और सपना एक-दूसरे को देखकर रह गई।

थैले और उन पर लगी मुहर बंद सील बता रही है कि ये सरकारी पैसा है। पक्के तौर पर लूटा गया है। मंगल के मां-बाप के हाथ कहीं से लग गया होगा। लेकिन मुझे संभालना आता है करोड़ों रुपया । सब ठीक कर लूंगा। अब तुम दोनों सुन लो कि मंगल के आने पर क्या करना है।"

■■■

मंगल जब लौटा तो रात के तीन सवा तीन बज रहे थे। आंखों में घबराहट और पूरा शरीर पसीने से भीगा हुआ था। हाल-बे हाल हो रहा था उसका। नशे में तो अब न के बराबर ही नजर आ रहा था। उसकी सोचों में मां-बाप की मौत या हत्या नहीं थी, ये था कि कहीं पुलिस उस तक पहुंच गई तो फिर सपना को कभी अपना नहीं बना पाएगा।

रामजी लाल, शरबती और सपना के बीच पहुंचकर उसे राहत मिली। यही तो अब उसके सगे थे। इन्हीं का तो सहारा था। जो वह सोचता था।

मंगल के वहां पहुंचते ही सपना भागी और उससे जा लिपटी ।

"ओह मंगल! माई डियर मंगल। आई लव यू मंगल।" सपना को उन दोनों के सामने इस तरह लिपटते देखकर, मंगल सकपकाया।

"छोड़ो।" मंगल धीमे से बोला--- “पापा-मम्मी सामने हैं।"

"पापा-मम्मी की फिक्र मत करो। कल हम शादी कर रहे हैं। मैं तुम्हारी पत्नी बन जाऊंगी और तुम मेरे पति। अब तो बहुत पैसा है हमारे पास। लेकिन नौकर नहीं रखेंगे। मैं खुद तुम्हारी सेवा करूंगी डियर ।"

"ओह सपना ! तुम कितनी अच्छी हो।" मंगल को इन शब्दों से जैसे भारी राहत मिली।

सपना ने बेहद प्यार से उसके पसीने से भरे गाल को चूमा।

रामजीलाल और शरबती की मौजूदगी में मंगल कुछ शर्मा सा गया।

सपना उससे अलग हुई। मंगल के सिर पर सपना के प्यार का भूत चढ़ चुका था।

"पापा।" मंगल ने रामजी लाल से कहा--- "आपने क्या सोच कि...।"

“सोच रहा हूं। हालात कुछ उलझ गए हैं। तुम भी समझ रहे होगे। लेकिन मैं सब ठीक कर लूंगा। यहां पर तुम्हें कोई खतरा नहीं। तुम हर तरफ से सुरक्षित हो।" रामजी लाल मुस्कराया--- “वैसे भी करोड़ों की दौलत पास हो तो डर खुद ही भाग जाता है।"

मंगल की निगाह थैलों पर गई।

"मैं एक राय दूं पापा।"

"राय क्यों।" शरबती रस टपकाकर बोली--- "जो कहना है कहो। तुम तो घर के हो। हमारे दामाद हो। सब कुछ कहने का तुम्हें हक है बेटा।"

मंगल को पुनः लगा कि यही सब उसके अपने हैं।

"हमारे पास करोड़ों रुपया है। इस शहर में रहे तो पुलिस कभी-न-कभी मुझे पकड़ ही लेगी। अगर हम यहां से कहीं दूर चले जाएं तो फिर मुझे किसी तरह का डर नहीं रहेगा।" मंगल ने कहा।

"हूं।" रामजी लाल ने सिर हिलाया--- "सच बात तो यह है कि मैं भी यही सोच रहा था। लेकिन अभी फैसला नहीं किया। मुझे थोड़ा और सोचने दो। कल सुबह बताऊंगा कि क्या करना है।"

तभी शरबती ने कहा।

"सपना! मंगल थका हुआ है, इसे ले जा। दो-चार पैग पिला, आराम दे इसे।"

सुनते ही सपना आगे बढ़ी और मंगल की बांह पकड़ते हुए लगभग उससे लिपट ही गई।

"आओ डियर ।" सपना के स्वर में ऐसे भाव थे कि मरो को भी उठा दे।

मंगल ने सकपकाये अंदाज में रामजी लाल और शरबती को देखा।

"जाओ बेटा।" शरबती प्यार से बोली--- "आराम करो। तुमने बहुत मेहनत की है। और कल तुम्हें सपना के साथ शादी करनी है। इंकार मत कर देना, हां। कहोगे पंडित को यहीं बुलवा कर फेरे करा दूंगी।"

"जरूर मम्मी। जिंदगी भर हम सब साथ रहेंगे।" शरबती के इन शब्दों से मंगल को चैन मिला।

"आओ ना।" सपना, मंगल की बांह पकड़कर लगभग खींचने वाले अंदाज में, वहां से बेडरूम में जा पहुंची। मंगल उन दोनों की मौजूदगी की वजह से हिचक रहा था। बेडरूम में पहुंचते ही वो सपना पर टूट पड़ा।

दो मिनट तक तो सपना ने भी पूरा साथ दिया, फिर बोली।

"दो-दो पैग मार लें।" स्वर में चंचलता थी ।

"हां।" मंगल के स्वर में थकान और उत्तेजना थी--- "बोतल ले आओ। आज मैं तुम्हें बहुत प्यार करना चाहता हूं सपना। कल हम शादी कर रहे हैं। तन से तो एक हो चुके हैं। मन से भी एक हो जाएंगे।"

"हम मन से भी एक हो चुके हैं मंगल।" सपना उसके गाल पर चकोटी काट कर बोली--- "यूं कहो कि कल दुनिया की निगाहों में हम एक-दूसरे के हो जाएँगे।"

मंगल मुस्कराकर बेड पर बैठ गया।

सपना नई बोतल और दो गिलास ले आई। खुद तो न के बराबर पी थी। मंगल को पिलाती रही। मंगल पीता रहा और सपना से छेड़छाड़ करता रहा। करता रहा तब तक जब तक कि वो होश में रहा और एक वक्त ऐसा आया कि व्हिस्की के नशे की बेहोशी में चूर-चूर होकर बेड पर लुढ़क गया। किसी भी बात का होश न रहा था उसे।

बोतल में कठिनता से एक पैग बचा था। ऐसे में उसे होश रहती भी तो कैसे।

सपना ने बोतल और गिलास एक तरफ रखे और ड्राइंगरूम में जा पहुंची। जहां रामजीलाल और शरबती उसके ही आने का इंतजार कर रहे थे।

"मंगल को अब होश नहीं है।" सपना ने सूखे होंठों पर जीभ फेर कर कहा।

रामजी लाल और शरबती की आंखें मिलीं। इस वक्त सुबह के साढ़े चार बज रहे थे।

■■■

रामजी लाल, शरबती और सपना बेडरूम में पहुंचे।

मंगल बेड पर पस्त पड़ा था। व्हिस्की की तगड़ी स्मैल वहां फैली हुई थी। उसकी दोनों टांगें नीचे लटक रही थीं। राम जी लाल ने आगे बढ़कर मंगल को चैक किया। आंखों में चमक भरी खूनी चमक आ ठहरी थी। जैसे पसन्दीदा शिकार, मुद्दत बाद सामने आ फंसा हो।

फिर रामजी लाल ने खतरनाक निगाहों से शरबती और सपना को देखा।

"सोच लो।" शरबती सूखे स्वर में रामजी लाल से कह उठी--- "आज तक तो हमने जो किया, वो गलत होकर भी ठीक था। लेकिन आज किसी की जान लेने...।"

"मैं आज भी ठीक कर रहा हूं।" रामजी लाल दांत भींचकर दरिन्दगी से कह उठा--- "इसकी मौत हमें करोड़पति बना देगी। और इसकी जिंदगी हमें मुसीबतों के ढेर पर खड़ा कर देगी। हम जेल भी जा सकते हैं। किसी को नहीं मालूम कि ये यहां आया है। इसके मां-बाप के अलावा कोई नहीं जानता था कि ये यहां आता था। ऐसे में पुलिस कभी भी यहां नहीं आ सकती। उन दोनों की लाशों के मिलने की खबर होते ही पुलिस ने इसकी तलाश में लग जाना है। जब ये ही नहीं रहेगा तो किसी को क्या मालूम कि दौलत कहां है। हम सब मुसीबतों से दूर रहेंगे।"

शरबती तो इस घबराहट में थी कि वो लोग खून करने जा रहे हैं।

सपना, मंगल की मौत के बारे में सोचती तो सिहर उठती।

"शरबती।" रामजी लाल सख्त स्वर में बोला--- "इसकी टांगें नीचे लटक रही हैं। नीचे बैठकर, इसकी टांगों को इस तरह पकड़ लो कि अगर ये तड़पना चाहे तो टांगें तुम्हारे कब्जे में रहें। वैसे ये इतने नशे में है कि इसे तड़पने का पूरा वक्त भी नहीं मिल सकेगा।"

"तुम-तुम क्या करोगे, कैसे ?"

"गला घोंटकर इसे खत्म करना होगा। जो कहा है, वो करो।"

शरबती जल्दी से नीचे बैठी और मंगल की लटक रही टांगों को बांहों के घेरे में इस तरह जकड़ दिया कि टांगें किसी भी हालत में आजाद न हो सकें।

रामजी लाल ने आगे बढ़कर अलमारी खोली और सपना का दुपट्टा निकाल लिया। फिर बेड पर चढ़ा और सपना से बोला। तुम भी ऊपर आ जाओ।"

तीनों नशे में थे।

ऐसे में इस काम को अंजाम देने के लिए दिमागी तौर पर उन्हें खास दिक्कत नहीं आ रही थी।

सपना बेड पर चढ़ आई।

"इसके ऊपर बैठकर, इसकी दोनों बांहों को इस तरह दबा लो कि छटपटाने की स्थिति में इसकी बांह आजाद न हो सकें। वैसे एक-दो मिनट की बात है। लम्बा काम नहीं है।"

सपना, मंगल के ऊपर बैठी और उसकी बांहें टांगों में दबा लीं और हाथ से भी दबा लीं। चूंकि वो नाइटी में थी। इस तरह बैठने से नाइटी ऊपर चढ़ आई थी और छोटी-सी पैंटी स्पष्ट नजर आ रही थी। सामने उसका पिता रामजी लाल था। परंतु शर्मो-हया तो इन लोगों ने कब की बेच डाली थी। मामूली बातें थी ये सब ।

"तैयार हो तुम दोनों।" रामजी लाल ने कहा।

दोनों की तरफ से हां की आवाज आई।

रामजी लाल ने बिना वक्त गंवाए नशे में बेसुध मंगल के गले में दुपट्टा लपेटा और फिर पूरी ताकत के साथ उसके दोनों सिरे अलग दिशाओं में खींचने लगा।

मंगल तड़पा, तड़पने की चेष्टा की।

उसने इस हद तक व्हिस्की पी रखी थी कि नशे ने पूरी तरह उसके शरीर को शिथिल कर रखा था। ऐसे में वो ज्यादा न तड़प पाया। खास हिल भी नहीं पाया। मात्र एक मिनट बाद ही उसके शरीर में से जान निकल गई थी कोई गुंजाइश बाकी न रहे, इसलिए रामजी लाल दुपट्टे से एक मिनट और उसका गला दबाता रहा। इतना जोर लगा रहा था कि खुद उसका चेहरा लाल सुर्ख हो गया था।

फिर गहरी सांस लेते हुए उसने दुपट्टे की पकड़ छोड़ दी। सपना ने फक्क चेहरे से रामजी लाल को देखा।

"मर गया ?"

"हां।" रामजी लाल ने दांत भींचकर कहा और दुपट्टा उसके गले से निकालकर चैक किया।

मंगल की जान वास्तव में निकल गई थी।

"हट जाओ तुम दोनों।" रामजी लाल बेड से उतरता हुआ बोला--- "काम हो गया है।"

शरबती, मंगल की टांगें छोड़कर खड़ी हो गई।

सपना भी उसके शरीर से उठ खड़ी हुई।

बेजान-सा मंगल का शरीर बेड पर पड़ा था। नशे में बेसुध ही मर चुका था वो।

तीनों की निगाहें मिलीं।

सपना ने आगे बढ़कर बोतल उठाई और अपने लिए पैग बनाने लगी। उसके हाथ कांप रहे थे।

"ध्यान रहे।" रामजी लाल ने दांत भींचकर दोनों को देखा--- "मंगल का खून हम तीनों ने मिलकर किया है। गलती से भी बात खुली तो एक नहीं, हम तीनों ही फंसेंगे। इसलिए मंगल की मौत को सिरे से दिमागों से निकाल दो।"

शरबती सूखे स्वर में कह उठी।

"ले-लेकिन-ला-श!"

"लाश की फिक्र मत करो। अब तो सुबह होने वाली है। रात होने पर लाश को कहीं दूर फेंक आऊंगा। आज का दिन आराम से हमें निकालना होगा। कोई कस्टमर घर पर नहीं आना चाहिए। जो आए, बोल देना सपना की तबीयत खराब है। ऐसा करना बहुत जरूरी है। इस वक्त लोगों से हमें दूर रहना है।"

शरबती सिर हिलाकर रह गई।

"ये ये...।" सपना के स्वर में घबराहट थी--- "ये लाश यहाँ पड़ी रहेगी ?"

"पड़ी रहने दो। दिन भर की तो बात है।" रामजी लाल ने कहा फिर बोला---  "इसे बेड के नीचे सरका देता हूं। आ शरबती, हाथ लगा।"

शरबती और रामजी लाल लाश को बेड से उतारकर, बेड के नीचे डालने में लग गए।

सपना ने हाथ में पकड़ा पैग खाली किया और दूसरा बना लिया।

मंगल की लाश से जब दोनों ने फुर्सत पाई तो सपना घबराए स्वर में कह उठी।

"मैं लाश वाले कमरे में नहीं सो सकती।"

"तुम अपनी मां के बेडरूम में सो जाओ।" रामजी लाल बोला।

सपना एक हाथ में पैग और दूसरे हाथ में बोतल थामे बाहर निकलती चली गई।

रामजी लाल ने सिगरेट सुलगाई और सोच भरे स्वर में शरबती से बोला ।

"तुम मेरे लिए पैग तैयार करो। आता हूं मैं...।"

शरबती ने एक निगाह बेड की तरफ मारी। जिसके नीचे मंगल की लाश थी। फिर बाहर निकल गई। दिल जोरों से बज रहा था। दिमाग में सिर्फ यही बात थी अभी-अभी वो मंगल का खून करके हटी है।

शरबती के जाने के बाद रामजी उसी कमरे में कश लेता, टहलता हुआ सोचता रहा। उसके चेहरे के भाव बता रहे थे कि वो किसी खास सोच में, किसी खास नतीजे पर पहुंचने की चेष्टा कर रहा है।

■■■

बाहर दिन का उजाला फैलना शुरू हो गया था।

रामजी लाल ने पैग उठाकर घूंट भरा।

शरबती ने भी, अपने लिए पैग बना रखा था और आधा खाली भी कर चुकी थी।

"शरबती।" रामजी लाल की सोच भरी निगाह शरबती पर जा टिकी--- ""मैं कुछ सोच रहा हूं। तुम बताओ कि मैं ठीक सोच रहा हूं या गलत ?"

"कहो।"

रात भर जागने और नशे की वजह से उसकी आंखें लाल-सी हो रही थीं।

और सपना भारी तौर पर मन-ही-मन बेचैन हो रही थी और डर रही थी। जब कमरे में उसका मन नहीं लगा तो मम्मी-पापा के पास जाने के लिए हाथ में पैग लिए दरवाजा खोलने लगी तो रामजी लाल का स्वर कानों में पड़ते ही जाने क्यों ठिठक-सी गई। वजह कोई खास नहीं थी। बस यूं ही रुक गई। दरवाजा खोलते-खोलते उनकी आवाजें स्पष्ट उसके कानों में पड़ रही थी।

"क्या सोच रहे हो तुम ?" उसे खामोश पाकर शरबती ने पूछा।

सोच भरे ढंग में सिर हिलाकर रामजी लाल ने घूंट भरा।

"पहले मेरी बात का जवाब दो। सपना आखिर है तो बच्ची ही।"

शरबती ने सिर हिलाया।

"कितनी समझ है उसमें ?"

"जितनी इस उम्र में उसे होनी चाहिए।" शरबती की निगाह रामजी लाल के चेहरे पर जा टिकी।

"मेरा भी यही ख्याल है। तेईस साल की उम्र बचपने की उम्र होती है। समझदारी तो बड़ी उम्र में ही आती है। सपना जिस उम्र में है, इस उम्र में बच्चे अक्सर खुद को समझदार समझते हैं और उसी समझदारी में बड़ी-बड़ी गलतियां कर जाते हैं, फिर जिन्हें किसी भी कीमत पर सुधारा नहीं जा सकता।"

"बात तो आपकी ठीक है। लेकिन आप कहना क्या चाहते हैं ?" शरबती ने घूंट भरा, माथे पर बल थे।

"सब कुछ बताता हूं। पहले मेरी बातों को सुनो और जवाब दो। जहां मेरी गलती हो, कह दो।" रामजी लाल धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था— ''तुम सपना की मां हो। इसमें कोई शक नहीं और इसमें भी कोई शक नहीं कि सपना का बाप मैं नहीं हूं। ये तुम भी समझती हो।"

शरबती सिर हिलाकर रह गई।

"आगे कहूं या मेरी बात के जवाब में कुछ कहना चाहती हो ?"

"आगे कहो, वैसे तुम ठीक कह रहे हो।" शरबती ने सामान्य स्वर में कहा।

रामजी लाल ने घूंट भरा और दो पल की चुप्पी के बाद कह उठा।

"सपना का हमारे लिए क्या इस्तेमाल है ?"

"यही कि उसके शरीर के दम पर हम दोनों ऐश कर रहे हैं। मजे से रह रहे हैं।"

"हां, लेकिन इस वक्त हमारे पास करोड़ों रुपया है। अब तो हमें सपना की कमाई दौलत की जरूरत नहीं है।"

शरबती की आंखें सिकुड़ीं। माथे पर बल पड़े।

"तुम कहना क्या चाहते हो ?"

"सुनती रहो, मैं तो कह रहा हूं। बता रहा हूं, समझा रहा हूं। आखिरी फैसला तो तुमने ही करना है।" रामजी ने बेहद शांत स्वर में कहा--- "ये सब बातें कहने का, मेरा ये मतलब है कि हमारे पास करोड़ों की दौलत है और हम एक हत्या भी कर चुके हैं। मैं समझदार हूं। तुम समझदार हो। हम दोनों इस बात को पचा जाएंगे। भूल जाएंगे। लेकिन सपना अभी बच्ची है। ना-समझ है। उसे कितना भी समझा लिया जाए, वो कभी नहीं समझ पाएगी। उम्र का तकाजा है। कभी भी उसके मुंह से रुपये या खून के बारे में एक बात भी निकल गई किसी के सामने, जो कि निकलेगी ही, तो अपने साथ वो हम दोनों को भी जेल में पहुंचा देगी। ये वक्त औलाद से मोह के बारे में सोचने का न होकर, हमें अपने भविष्य के बारे में सोचना चाहिए। बहुत जिंदगी पड़ी है, हमारी। इस दौलत के दम पर पूरी दुनिया की सैर करनी है हमने। परंतु सपना की नासमझी की वजह से हर समय हमें डर लगा रहेगा कि उसके मुंह से कुछ गलत न निकल जाए। यूं समझ लो कि अब तक दूध देने वाली सपना, इस समय हमारे लिए कच्चे धागे से लटकी वो तलवार बन गई है, जो कभी भी गलती से हम लोगों का खेल खत्म करवा सकती है।"

शरबती ने एक ही सांस में पैग खाली कर दिया।

रामजी लाल की निगाह शरबती पर थी।

कई पलों तक उनके बीच खामोशी रही।

"रुक क्यों गये। आगे कहो।" शरबती की आवाज में हल्का सा नशा था।

"आगे भी कह दूंगा, जो कहा है, पहले उसका जवाब दे दो।"

"मैं तुम्हारी बातें पूरी समझ लूं। उसके बाद एक साथ ही जवाब दूंगी।"

रामजी लाल ने सिर हिलाया ।

"ठीक है। वैसे ये बात तो मैं पहले ही कह चुका हूं कि आखिरी फैसला तो तुम्हारा ही होगा। सारे पहलू तुम्हारे सामने रखना जरूरी है, क्योंकि तुम सपना की मां हो और मैं असली बाप नहीं।" रामजी लाल धीमे-धीमे अपनी मीठी तलवार चला रहा था--- " सपना हमारे लिए भविष्य में कैसी मुसीबतें खड़ी कर सकती है। तुम्हें बता चुका हूं। बच्चे तो बच्चे ही होते हैं। मेरा ख्याल है कि करोड़ों की दौलत के साथ हम दोनों यहां से निकल जाएं। इस तरह कि सपना को एहसास ही न हो सके कि हम कहां गए हैं। उसके बाद सपना किसी से भी, कुछ भी कहती रहे। कोई फर्क नहीं पड़ता। हमें कोई ढूंढ़ नहीं सकेगा। बल्कि मुंह खोलने पर सपना ही फंसेंगी।"

शरबती की सोच भरी निगाह रामजी लाल पर थी।

"अगर हम दौलत के साथ निकल गए तो पीछे से सपना का क्या होगा ?" शरबती बोली।

"होना क्या है। जो हो रहा है। वही होगा। सपना को भला किस चीज की कमी रहेगी। रहने को ये मकान है। पैसा देने को कस्टमर हैं। बेशक वो किसी से शादी कर ले। लेकिन सपना को किसी तरह की कमी नहीं रहेगी। यह तो तुम भी समझती हो।"

शरबती ने होंठ सिकोड़ कर, सोच भरे ढंग में सिर हिलाया।

"तुम्हारी बातें काफी हद तक ठीक है। सपना अभी बच्ची है।" शरबती कह उठी--- "उसके मुंह से कभी करोड़ों की दौलत या मंगल के खून के बारे में निकल गया तो हम बचने वाले नहीं ।"

"यही तो मैं कह रहा हूं शरबती। शरबती इन बातों का यही तो मतलब है।" रामजी लाल ने फौरन गर्म लोहे पर चोट की--- "अब तू ही बता कि हमें क्या करना चाहिए।"

शरबती मुस्कराई।

"करना क्या हैं। करोड़ों की दौलत के साथ निकल चलते हैं चुपके से । तुम तो जानते ही हो कि मैंने हमेशा दौलत को तवज्जो दी है। दौलत ही सब कुछ है। जिंदगी के ऐशो-आराम पहले और बाकी चीजें बाद में। हमारे जाने के बाद सपना को हमारी कमी नहीं खलेगी। बहुत यार हैं उसके। मजे से उसकी जिंदगी कटेगी।"

रामजी लाल की आंखें चमक उठीं।

"मैं जानता था कि तुम समझदार हो और यही तुम्हारा फैसला होगा। इंसान को पहले अपने बारे में और फिर दूसरे के बारे में सोचना चाहिए। रिश्तों की खातिर खुद को मुसीबत में डालना ठीक नहीं होता। तो कब तैयारी करूं चलने की।" रामजी लाल ने हाथ में पकड़े पैग को खाली किया।

"तैयारी तुमने करनी हैं।" शरबती पुनः मुस्कराई--- "तैयारी पूरी हो जाए तो मुझे इशारा कर देना।"

"ठीक है। आज का दिन रुक जाते हैं। रात होने पर मंगल की लाश को यहां से कहीं दूर फेंक आना है और गैराज से मैं टाटा सफारी निकालता हूं। छः महीने पहले पूरे आठ लाख में खरीदी थी। उसका तेल-पानी चैक करता हूं और आराम से दिन लगाकर, ये सारे बोरे टाटा सफारी में रखने हैं। सपना भी इस काम में साथ देगी। उसे यही कहना कि रात को दौलत के साथ यहां से निकल चलना है, किसी दूसरे शहर के लिए। उसे शक मत होने देना।"

"फिक्र मत करो। शरबती को तुम जानते नहीं क्या ?"

सपना के मस्तिष्क में सनसनाती आंधी चल रही थी। एक-एक शब्द सुना था उसने रामजी लाल और शरबती का। हर शब्द पर उसे लगा कि उसके कान धोखा खा रहे हैं। वो गलत सुन रही है। लेकिन सब कुछ तो सामने था। गलत भी कैसे हो सकता था। पिघले शीशे की तरह उनकी आवाजें उसके कानों में पड़ती रही।

मस्तिष्क में मौजूद व्हिस्की का नशा हवा हो गया था।

वह दोनों को अपने मां-बाप समझती रही। उन्हें अपना समझती रही। लेकिन आज उसे मालूम हुआ था कि उनके लिए तो वो दूध देने वाली गाय थी। ग्राहक आते। उसके शरीर को चूमते-चाटते । बदले में पैसा देते और वो दोनों ऐश करते।

मात्र यही कद्र थी, उन दोनों की निगाहों में उसकी। कोई रिश्ता नहीं था। सिर्फ दौलत का रिश्ता था। अब उन्हें करोड़ों मिल गए तो उनके लिए वो बेकार हो गई। जबकि वो उसके मां-बाप थे।

सपना को एकाएक रामजी लाल और शरबती से तीव्र घृणा हो गई। उन दोनों के लिए जहान भर की नफरत मन में समा गई। ऐसी और इतनी नफरत, जिसका कि कोई अंत नहीं था। अपना बीता हुआ एक-एक वक्त सपना को याद आने लगा कि कैसे उसके माँ-बाप ने उसे इस धंधे में उतारा था।

अब पहली बार उसे मंगल की मौत का अफसोस हुआ।

मंगल जैसा भी था। उसे दिल से चाहता था। उसके प्यार की कद्र करता था।

सपना का मस्तिष्क अपने मां-बाप के प्रति इस हद तक सुलग रहा था कि जाने कैसे वो खुद पर काबू किए बैठी थी। मां-बाप होकर उसे धोखा देते हैं। उसे औलाद न समझ कर, पैसा कमाने वाली मशीन समझते हैं। ऐसा व्यवहार तो कोई किसी बाहरी व्यक्ति के साथ भी नहीं करता। कितने नीच हैं ये दोनों। आज पहली बार सपना को लगा, जैसे दुनिया में उसने अभी आंखें खोली हो। उसका नया जन्म हुआ हो। नए ढंग से दुनिया को देख रही हो। दुनिया की नई तस्वीर इस वक्त उसके सामने थी।

और इस पूरी दुनिया में उसे सबसे गंदे रामजी लाल और शरबती ही नजर आए।

मन में दोनों के प्रति नफरत, क्रोध और प्रतिशोध जैसी भावना उछाले मारने लगी।

वो, रामजी लाल और शरबती को करोड़ों की दौलत नहीं ले जाने देगी। गंदगी की शुरुआत उन्होंने की है। रिश्तों पर दाग उन्होंने लगाया, ऐसे में वो जो कर जाए कम है और वो जायज होगा। वो औलाद के साथ ऐसा करने की सोच सकते हैं तो औलाद फिर कुछ भी करने को आजाद है।

क्या करे ?

सपना जानती थी कि वो रामजी लाल और शरबती का मुकाबला नहीं कर सकती। लेकिन कुछ तो करना ही था, करना जरूरी हो गया था।

क्या करे ?

सपना को लगा, थकान और नींद न लेने की वजह से वो ठीक से सोच नहीं पा रही। पूरा दिन पड़ा है। उसे थोड़ी-सी नींद ले लेनी चाहिए। ताकि ठीक से सोच सके। कुछ तो करना ही होगा। किए बिना अब गुजारा भी नहीं। दिलो-दिमाग में तूफानी हलचल लिए, वो बेड पर जा लेटी। नींद उस पर हावी थी। परंतु वो आंखों से कोसों दूर हो चुकी थी। यही हथौड़ा मस्तिष्क में बज रहा था कि...।

क्या करे ?

■■■

सपना की जब नींद टूटी तो दिन के ग्यारह बज रहे थे। आंखें खुलने के बाद भी लेटी रही। वो एकटक काफी देर तक छत को देखती रही। दिल-दिमाग में आग सुलग रही थी रामजी लाल और शरबती के प्रति। जो उसके मां-बाप थे और पैसा हाथ में आ जाने पर, आज उसे तगड़ा धोखा देने जा रहे थे। उसे कूड़ा समझ कर, एक तरफ फेंक कर जा रहे थे। अपना जिस्म बेचकर, उनकी मौज-मस्ती कराती रही और हाथ में पैसा क्या आया उसे दूध से निकाली मक्खी समझ लिया।

रामजी लाल या शरबती के मन में, उसके लिए कोई रिश्ता अभी भी हो सकता था। परंतु सपना दिलो-दिमाग से उन दोनों से सारे रिश्ते तोड़ चुकी थी। सपना के लिए वो दोनों ऐसे कुत्ते थे जो आज तक उसकी फेंकी हड्डियों पर ऐश करते रहे थे।

अब सपना के सामने ये सवाल नहीं बचा था कि क्या करे ? वो सोच चुकी थी कि क्या करना है। लेकिन वो ये भी जानती थी कि अकेले इन दोनों का कुछ नहीं बिगाड़ सकती।

तभी शरबती ने भीतर प्रवेश किया।

सपना ने गर्दन घुमाकर उसे देखा।

"उठ गई सपना।" शरबती कह उठी--- "उठकर नहा-धो ले। तब तक मैं नाश्ता तैयार कर देती हूं। आज बहुत काम करना है। मालूम है तेरे को ?"

सपना मुस्कराई।

"क्या काम मां ?"

"आज रात को हम ये शहर छोड़ रहे हैं।" शरबती और पास आ गई--- "तेरे पापा ने गैराज से टाटा सफारी गाड़ी निकालकर साफ कर दी है। नोटों से भरे सारे बोरे उसमें डालने हैं। आराम-आराम से काम करना है। बेशक सारा दिन ही क्यों न लग जाए। इस तरह थकान नहीं होगी। मंगल की लाश भी सफारी में रख लेनी है। रास्ते में कहीं फेंक देंगे। राज करेगी अब मेरी सपना । दूसरे शहर में जाकर किसी अच्छे घर में तेरी शादी कर देंगे। इस घटिया जिन्दगी से छुटकारा मिलेगा। फिक्र मत कर। सब ठीक हो जाएगा।"

सपना मुस्कान लिए उठ बैठी।

"रात को यहां से जाना है मां ?"

"हाँ।"

"तो मैं कोई काम नहीं करूंगी।"

" क्यों ?"

"फिर तो इस शहर में शायद वापस आना न हो। नोटों के बोरे तुम सफारी में रख लो। पापा के साथ मिलकर। मैं आज का आखिरी दिन, सारा दिन रोहन के साथ बिताना चाहती हूं।"

"रोहन ?"

"हां, वो बेशक मेरा कस्टमर है लेकिन मुझे अच्छा लगता...।"

"क्या पागलों वाली बातें कर रही है।" शरबती कह उठी--- "घर में करोड़ों रुपया पड़ा है। लाश पड़ी है और तू कह रही हैं कि रोहन के साथ....।"

"मां, रोहन आएगा और मेरे साथ कमरे में रहेगा। कमरे से बाहर क्या हो रहा है। उसे क्या मतलब और जब मेरे पास होगा तो फिर किसी बात की तरफ ध्यान देने की फुर्सत ही कहां होगी उसके पास।"

कहने के साथ ही सपना हौले से हंस पड़ी।

"लेकिन उसे शक ... ।"

"वहम में मत पड़ो मां। मुझे आज का आखिरी दिन रोहन के साथ बिता लेने दो।"

"तेरे पापा को इस वक्त रोहन का आना पसंद नहीं...।"

"पापा को तुम समझा देना। मैं रोहन को फोन कर चुकी हूं। दो घंटे तक वो आएगा।"

"ठीक है, लेकिन उसे कमरे से बाहर मत आने देना।"

"चिंता क्यों करती हो। मैं उसे बेड से नहीं उतरने दूंगी।" सपना हंसकर बेड से नीचे उतर आई।

"नहा-धो ले। मैं नाश्ता तैयार कर दूंगी तब तक।" कहने के साथ ही शरबती बाहर निकल गई।

सपना के चेहरे से मुस्कान गायब हो गई और वहां घृणा के भाव नजर आने लगे। आगे बढ़कर उसने दरवाजा बंद किया, फिर फोन के पास पहुंचकर लाइन मिलाने लगी।

लाइन मिली, दूसरी तरफ रोहन ही था। उसने ही रिसीवर उठाया था।

"हैलो रोहन।" सपना का मीठा स्वर प्यार भरा था।

"ओह सपना !"

"पहचान लिया ?"

"तुम्हारी आवाज और तुम्हें कैसे भूल सकता हूं।" रोहन के स्वर में सांस लेने का भी एहसास था--- "पांच-सात बार तुम्हारे पास आया हूं। लेकिन तुम्हारी महक सांसों से ही नहीं निकलती। इतना पैसा भी मेरे पास नहीं है कि जब चाहूं तुम्हारे पास पहुंच जाऊं।"

"बहुत चाहते हो मुझे ?" सपना का स्वर गम्भीर हो उठा।

"इतना कि उसका एहसास तुम्हें नहीं करा सकता। लेकिन मजबूर हूं। पैसे की कमी के कारण तुम्हें दुनिया के सारे सुख नहीं दे सकता और तुम्हारे मां-बाप भी तुम्हें छोड़ने वाले नहीं। फिर...।"

" रोहन।" सपना ने गम्भीर स्वर में टोका ।

"हां।"

"याद है तुमने एक बार कहा था कि अगर भगवान मुझे आकर पूछे कि तुम्हें क्या चाहिए तो तुम कहोगे, सपना चाहिए और तब मैंने कहा था कि सपना को तो कई मर्द छू चुके हैं तो तुमने कहा था, तुम्हारी निगाहों में सपना पवित्र है। क्योंकि मन के प्यार से बड़ी कोई चीज नहीं होती।"

"हां, याद है मुझे और आज भी कहता हूं कि मैंने जो कहा था सच कहा था, तुम...।"

"मुझे अपनी बनाना चाहते हो, हमेशा के लिए ?" सपना के चेहरे पर गम्भीरता और आंखों में बेचैनी थी।

"हां, लेकिन ये नहीं हो सकता और...।"

"तुम मुझे दिल से अपनी पत्नी बनाना चाहते हो। रस्मो-रिवाज के साथ शादी करके।"

"मजाक कर रही हो सपना।"

"मैं मजाक नहीं कर रही। जवाब दो मेरी बात का।"

"अगर ऐसा हो जाए तो मैं अपने को दुनिया का सबसे बड़ा खुशनसीब समझूँगा। लेकिन...।"

"मेरा अतीत तो भविष्य में आड़े नहीं आएगा ?"

"कैसी बातें करती हो सपना। मैं तुम्हें सच में, मन से प्यार करता हूं। तुम में, तुम्हारे अतीत में खोट ही कहां है और प्यार करने वाले सिर्फ प्यार करते हैं। पूजा करते हैं। मैंने दिल से आज तक सिर्फ तुम्हें चाहा है। अगर मेरी बात की सच्चाई जानना चाहती हो तो मैं अभी इसी वक्त तुमसे शादी करने को तैयार हूं।"

"मुझे तुम पर विश्वास है रोहन। मर्दों को पहचानना मुझे आता है। तभी तुम्हें फोन किया।" सपना एक-एक शब्द चबाकर, गम्भीरता से कह रही थी--- "मुझसे शादी करने के लिए क्या कर सकते हो ?"

"क्या कर सकता हूं, ये पूछो, क्या नहीं कर सकता।"

"सोच लो रोहन।"

"तुम्हें पाने से पहले या बाद में, मैं कुछ भी सोचना नहीं चाहता। मैं सिर्फ तुम्हें चाहता हूं।"

सपना के जबड़ों में कसाव आ गया।

"किसी की जान ले सकते हो।"

"जान ?"

सपना खामोश रही।

उसी पल रोहन की आवाज कानों में पड़ी।

"बोलो, तुम्हारे लिए मैं हजारों को मार सकता हूँ। एक जान की तो बात ही नहीं है।"

"दो को मारना है। जरूरत पड़ी तो मैं तुम्हारा पूरा साथ दूंगी।" सपना के दांत भिंचते चले गए।

"तुम्हें साथ देने की जरूरत नहीं। मैं अकेला ही काफी हूं । लेकिन वायदा करो कि मुझसे शादी करोगी।" रोहन का गम्भीर स्वर कानों में पड़ा।

"मैं तुमसे शादी करूंगी रोहन और वादा करती हूं, मेरी मौत से पहले मेरे शरीर को तुम्हारे अलावा कोई दूसरा मर्द छू भी नहीं सकेगा। मैं सिर से पांव तक सारी जिंदगी सिर्फ तुम्हारी बनकर रहूंगी। तब तुम सोच भी न सकोगे कि ये वही सपना है।" सपना के दांत भिंचे हुए थे और चेहरे पर गुस्सा था--- "लेकिन इस वक्त मैं जिस भंवर में फंसी हूं, उसमें से मुझे निकाल दो।"

"मैं नहीं जानता क्या बात है, लेकिन मैं इसी वक्त तुम्हारी सारी मुसीबतें अपने सिर पर लेता हूं। तुम्हें कोई तकलीफ भी हो। मैं सह नहीं सकूंगा। मैं तुमसे मिलना चाहता हूं सपना।"

"घर पर आ जाओ।" सपना के होंठ भिंचे हुए थे--- "घर पर मेरे मां-बाप हैं। उन्हें इस बात का एहसास मत होने देना कि हममें इस तरह की कोई बात हुई है। पूछने पर तुमने यही कहना है कि सपना ने तुम्हें बुलाया है। वो तुमको मुझ तक पहुंचा देंगे।"

"ठीक है।"

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सवा घंटे बाद रोहन पहुंचा।

सपना तब तक नाश्ता करके फारिग हो चुकी थी। उसने खुद को बेहद सामान्य रखा था और बात-बात पर रोज की तरह मां-मां कह कर बात कर रही थी। इस बीच शरबती ने कम से कम उसे दस बार याद दिलाया कि रोहन को किसी भी हालत में कमरे से बाहर मत आने देना और जब वो जाना चाहे तो पिछवाड़े के रास्ते से बाहर निकालना उसे। साथ ही इस बारे में उसे सावधान किया कि उसके मुंह से करोड़ों रुपये या मंगल की बाबत कोई शब्द न निकले। सपना ने विश्वास दिलाया कि ऐसा कुछ नहीं होगा।

उधर आज का अखबार देखकर रामजी लाल की बुरी हालत थी। बीते दिन की नब्बे करोड़ की लूट के बारे में अखबार में पूरा ब्यौरा दिया हुआ था। नोटों से भरे बोरों के बारे में भी स्पष्ट तौर पर बताया गया था, जो कि इस वक्त उसके पास मौजूद थे। अखबार के जरिए उसे मालूम हो सका था कि थैलों में बंद दौलत नब्बे करोड़ थी।

नब्बे करोड़ ?

रामजी लाल की हालत वास्तव में सकते जैसी हो गई थी। इतनी बड़ी दौलत। जब उसने शरबती को ये बात बताई तो शरबती घबराकर बेड पर जा लेटी थी। आधे घंटे में जब नब्बे करोड़ की खबर कुछ बर्दाशत हुई तो तब वो बेड से उठ सकी थी।

रोहन आया तो शरबती ने उसे सपना के पास कमरे में पहुंचा दिया।

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रोहन को एक-एक शब्द बताकर, सपना खामोश हो गई। सपना के चेहरे पर कठोरता और गुस्सा नाच रहा था। वो इतने क्रोध में थी कि जाने कैसे उसने खुद पर काबू पा रखा था।

रोहन सत्ताईस बरस का आकर्षक व्यक्तित्व वाला युवक था। लम्बा कद, सेहतमंद शरीर। कुल मिलाकर ऐसा कि कोई भी युवती उस पर फिदा हो जाए। परंतु वो मध्यम वर्गीय परिवार से वास्ता रखता था और प्राइवेट नौकरी से थोड़ा-बहुत कमा पाता था। घर-परिवार में और लोग भी थे। परंतु कमाने के मामले में वो सबसे कमजोर रहा था।

रोहन ने सपना की सारी बात सुनी। समझी भी, सब कुछ सुनकर बेहद गंभीर हो उठा था और सपना के गुस्से से भरे चेहरे को देखने लगा।

"अपनी सुख-सुविधाओं के लिए मेरे मां-बाप ने मुझे जिस्म बेचने के धंधे में धकेला। मेरी जिंदगी बरबाद की और आज जब पैसा हाथ लग गया, तो मैं नोट कमाने वाली मशीन हो गई। जिसे छोड़कर वे दोनों आज रात चुपके से निकल जाएंगे। ऐसा धोखा, ऐसा कमीनापन मां-बाप अपनी औलाद को दें तो उनसे गिरा हुआ इस दुनिया में कोई दूसरा नहीं।"

"मैं तुम्हारी हालत समझ रहा हूं सपना।" रोहन ने बेचैन स्वर में कहा--- "पराए भी ऐसा नहीं करते। जैसा कि तुम्हारे मां-बापकर रहे हैं।"

“मैं इन लोगों को मरा हुआ देखना चाहती हूं रोहन।" सपना दांत भींचकर कठोर स्वर में कह उठी--- "ऐसे गंदे और घटिया मां-बाप की सिर्फ यही सजा है। दिल की तह तक मुझे इन दोनों से नफरत हो गई है। बोलो, अपनी सपना के लिए ये काम करोगे।"

"जरूर।" रोहन ने दृढ़ता भरे स्वर में कहा--- "तुम्हारे लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं।"

"मुझे खुशी है कि इस बुरे वक्त में कोई तो मेरा साथ देने वाला है।'' सपना की आवाज में गुस्सा ही था, परन्तु वो भावुक हो उठी थी— “याद रखना रोहन। वक्त आने दो। मैं तुम्हारी इतनी बढ़िया पत्नी बनूंगी कि जो विश्वास तुमने मुझ पर किया है, वो कहीं ज्यादा खरा उतरेगा।"

"बाद में क्या होता है। मैं नहीं जानता।" रोहन गम्भीरता से मुस्कराया--- "लेकिन तुम्हारे ये शब्द मेरे लिए सच्चे मोतियों से कम नहीं हैं। जो प्यार करते हैं वो लेन-देन की बराबरी नहीं करते।"

सपना, रोहन को देखती रही।

रोहन ने खामोशी तोड़ी।

"मेरे पास ऐसा कुछ नहीं है कि तुम्हारे मां-बाप को खत्म कर सकूं। बाहर से कुछ लाना...।"

"बाहर नहीं जा सकोगे अब।"

"क्या मतलब ?"

"बाहर जाकर, पुनः वापस आए तो उन दोनों को शक हो सकता है कोई गड़बड़ हो रही है। कोई और रास्ता देखो। दोनों को खत्म करने का। किसी की जान लेने के लिए बाजार से हथियार लाने की जरूरत नहीं पड़ती। घर में ऐसी पचासों चीजें होती हैं, जो हथियारों से भी घातक होती हैं। मैं भी सोचती हूं, तुम भी सोचो कि घर में ऐसी कौन-सी चीज पड़ी हो सकती है, जो उन दोनों की मौत का हथियार बने।"

रोहन ने सोच भरे ढंग में सिर हिलाया।

"लेकिन ये काम अभी नहीं। रात को करना है।" सपना तीखे स्वर में कह उठी।

"रात को क्यों ?"

'नोटों के बड़े थैलों को टाटा सफारी में डाल लेने दो। मरने से पहले मेहनत कर लेने दो उन्हें ।" सपना का लहजा कड़वा हो उठा--- "टाटा सफारी भी मेरे पैसों से खरीदी थी कमीनों ने।"

अब हम कुछ घंटे पीछे चलते हैं। जब दिन का उजाला फैला था और सफेद टाटा सूमो के खेतों में लुढ़के होने की खबर पुलिस को मिली तो खेतों में पड़ी, बुरी तरह पिचकी टाटा सूमो के पास पुलिस ही पुलिस पहुंचने लगी।

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