अब उसके चेहरे पर पति की मौत का दुख नहीं बल्कि आतंक और चिंता के भाव थे। खुद को जंजाल से निकालने की मंशा ने जकड़ लिया था उसे, बोली---- “क्या कहूंगी अपने सास-ससुर से? मैं इसके साथ थी । ऐसा क्या हुआ जो किसी ने इसकी हत्या कर दी? किसने और क्यों किया ऐसा ? मुझे नहीं पता तो क्यों नहीं पता ? सारे सवाल मुझी से किए जाएंगे। कैसे कर सकूंगी पुलिस का सामना ?”


जैसे सभी को सांप सूंघ गया ।


“ये समस्या वाकई जबरदस्त है ।” सुधा बोली- “मुझे नहीं लगता कि अवि पुलिस के उल्टे-सीधे सवालों का सामना कर सकेगी। अगर इसके मुंह से कुछ ऐसा वैसा निकल गया तो.. -


“वो तो सभी के साथ है।” किरन ने कहा ---- “हममें से किसी के भी कमजोर पड़ते ही सबके सब बरबाद हो जाएंगे।”


“फिर भी।” अशोक बोला ---- "कुछ तो करना ही पड़ेगा।”


“मगर क्या ?”


“अगर अवि यह कहे कि रतन किडनेप हो गया था ! "


“ सैंकड़ों सवाल उठेंगे । कहां से और कैसे किडनेप हुआ ? किसने किया? क्यों किया? उस वक्त मैं क्या कर रही थी ? आदि-आदि ।”


“समस्या वाकई विकट है।” धीरज सिंहानिया चांदनी की तरफ इशारा करता बोला“और ये हरामजादी उससे भी विकट समस्या है। इसे कत्ल भी तो नहीं कर सकते हम और जिंदा रही तो किसी भी समय मुंह फाड़ सकती है । वह भेद पलक झपकते ही खुल जाएगा जिसके खुलने पर हम सबकी बरबादी तय है । "


“इसकी गारंटी तो मेरी है, अब यह किसी के सामने मुंह नहीं फाड़ सकेगी।” अशोक ने खा जाने वाली नजरों से चांदनी को घूरा था । -


“क्या गारंटी ले सकते हो तुम? यह इतनी चालू है कि तुम्हें धोखा देकर दोबार पार्टी में शरीक हो गई और ..


“ इस बार इसकी बातों में नहीं आऊंगा मैं ।” अशोक बुरी तरह भन्नाया हुआ था---- “उंगली टेढ़ी करनी पड़ेगी ।”


“मतलब?”


“ सबसे ज्यादा प्यार यह अपने बाप से करती है। अगर हम उसे अपने कब्जे में ले लें तो यह किसी से कुछ नहीं कहेगी क्योंकि उस कंडीशन में हम इसके बाप को मार डालेंगे।”


“इसका बाप तो फरीदाबाद में रहता है न!"


“हां।"


“फरीदाबाद में हमारी एक फैक्ट्री है।” भंसाली ने कहा ---- “वहां मेरे पास ऐसे वर्कर्स हैं जो मेरे कहते ही इसके बाप को उठा लेंगे।”


“मेरे दिमाग में एक प्लान बन रहा है।” धीरज ने चुटकी बजाई ।


एकसाथ कई ने पूछा- “कैसा प्लान ?”


अभी फोन करे तो क्या तेरे वे वर्कर अभी कि अभी “अगर तू इसके बाप को उठा लेंगे?” उसने भंसाली से पूछा।


“फौरन ।”


इस बार उसका सवाल अशोक से था ---- " और अगर वह हमारे कब्जे में आ गया तो चांदनी वही करेगी जो हम चाहेंगे ?”


“मेरे ख्याल से तो यह उसे बचाने के लिए अपनी जान तक दे सकती है।” अशोक ने दांत पीसे---- “उससे बगावत करके ने हरामजादी ने शादी तो कर ली मुझसे लेकिन हमेशा टसुए बहाती रहती है। कहती है कि ---- अशोक, हमने ठीक नहीं किया। कई बार तो यह भी कह चुकी है कि हमें फरीदाबाद जाकर उससे माफी मांगनी चाहिए।"


“ और कौन है इसके मायके में ?”


“ सुना है, एक भाई भी है ।”


“सुना है?”


“मैंने कभी उसकी शक्ल नहीं देखी । हमारा प्यार परवान चढ़ने से लेकर शादी होने तक वह असम में ही था । सुना है वहां रहकर आइपी. एस. की तैयारी कर रहा था । ”


धीरज सिंहानिया ऐसी मुद्रा में था जैसे उसकी बातों को ध्यान से न सुन रहा हो । उसका दिमाग किसी उधेड़बुन में मालूम पड़ रहा था ।


संजय ने पूछा ---- “क्या सोच रहे हो धीरज ? ”


उसने संजय के सवाल का जवाब देने की जगह अशोक से ही पूछा---- “क्या ये अपने बाप को बचाने के लिए खुद को रतन की हत्या के इल्जाम में भी फंसा सकती है?"


“ मैंने कहा न, मेरे ख्याल से यह उसके लिए अपनी जान भी दे सकती है लेकिन ऐसा होगा कैसे? क्या तुम यह सोच रहे हो कि रतन की लाश को लेकर यह सीधी पुलिस के पास पहुंच जाए और कहे कि इसने उसकी हत्या कर दी है ?”


“नहीं, पुलिस इस तरह किसी के कह देने से नहीं मान लेती । वह तहकीकात करती है। सुबूत जुटाती है ताकि कोर्ट में हत्यारे को हत्यारा साबित कर सके। उस सबके लिए वह इससे सैंकड़ों सवाल करेगी। यह कि इसने हत्या कैसे की, कहां की और क्यों की आदि । इसके जवाबों के सबूत भी जुटाना चाहेगी वह । पुलिस को ऐसी झूठी कहानी गढ़कर सुनाने और उसके सबूत प्रस्तुत करने का काम पेशेवर मुजरिम तो कर सकते हैं लेकिन ये नहीं कर सकेगी। यह तो किसी पुलिसिए के दो-चार सवालों के सामने ही घुटने टेक देगी। पुलिस समझ जाएगी कि यह झूठ बोल रही है और फिर उसे सच्चाई तक पहुंचने में देर नहीं लगेगी।”


“तो फिर क्या करें?”


“वही सोच रहा हूं।” धीरज सिंहानिया अब साफ-साफ अपने दिमाग पर जोर डालता प्रतीत हो रहा था ।


सभी खामोशी के साथ उसे देखते रहे । जैसे भरपूर टाइम देना चाहते हों और फिर, अचानक उसके चेहरे पर उत्साह से भरे ऐसे भाव उभरे जिनसे जहिर था कि वह किसी नतीजे पर पहुंच चुका है। सीधा भंसाली से बोला वह - - - - “ अपने वर्कर्स को हुक्म दो कि वे इसके बाप को अपने कब्जे में कर लें।”


“ उससे क्या होगा ? ”


“बताता हूं | हुक्म तो दो । टाइम खराब मत करो।"


“रहता कहां है वह?"


अशोक ने पता बताया ।


रमेश भंसाली ने तुरंत मोबाइल निकाला और उस वक्त वह नंबर पंच कर रहा था जब धीरज ने कहा---- “यह काम जल्दी से जल्दी होना चाहिए और उनसे कहना कि कामता प्रसाद को कब्जे में करते ही उसकी बात तुम्हारे फोन पर कराएं।”


संपर्क-स्थापित होने पर एड्रेस बताने के बाद जिस वक्त रमेश भंसाली दूसरी तरफ वाले को काम समझा रहा था उस वक्त चांदनी का चेहरा ऐसा नजर आ रहा था जैसे उससे खून की हर बूंद निचोड़ ली गई हो। उसे गौर से देखते धीरज को लगा कि अशोक ने गलत नहीं कहा था । अपने बाप के लिए वह कुछ भी कर सकती थी ।


रमेश भंसाली के संबंध विच्छेद करते ही अशोक ने धीरज से कहा----“अब तो बताओ क्या प्लान बनाया है तुमने ?” 


“चांदनी रतन की लाश को किसी गाड़ी में डालकर छंगा- भूरा के पास जाएगी। उनसे सौदा करेगी।"


“वैरीगुड ।” सुधा कह उठी---- “लाश को वे ठिकाने लगाएंगे।”


“नहीं । ऐसा होने पर तो फिर वही खतरा है। पुलिस तहकीकात करेगी और सच्चाई पर पहुंच सकती है । "


किरन ने पूछा---- “ और उनसे क्या सौदा करेगी चांदनी ?”


“चांदनी उनसे कहेगी कि लाश को ठिकाने नहीं लगाना है बल्कि उसके साथ पुलिस की गिरफ्त में फंसना है, इस तरह कि पुलिस को लगे, उन्हें उन्होंने अपनी कोशिश से पकड़ा है । "


“ये क्या अंट-शंट बकवास किए चले जा रहे हो तुम?" संजय बोला----“भला कोई भी बदमाश खुद को लाश के साथ पुलिस की गिरफ्त में फंसाने को कैसे तैयार हो जाएगा ?"


धीरज सिंहानिया के होठों पर ऐसी मुस्कान रेंगी जैसे संजय से कह रहा हो कि तुम अभी बच्चे हो, मगर ऐसा कहा नहीं उसने । कहा यूं----“छंगा- भूरा को इतना ही नहीं करना है बल्कि पकड़े जाने पर पुलिस को यह बयान भी देना है कि उन्होंने रतन को किडनेप किया है और उसका कत्ल भी उन्होंने ही किया है।"


“हो ही नहीं सकता ।” अशोक ने कहा ---- “दिल्ली में इतना बड़ा पागल कोई नहीं मिलेगा जो पुलिस के सामने उस जुर्म को कबूल करे जो उसने न किया हो । जुर्म भी कत्ल जैसा ! अपने गले में फांसी का फंदा डालने वाला बेवकूफ भला कौन होगा ?”


“पूरी बात तो सुन लो ।” धीरज सिंहानिया का अंदाज ही बता रहा था कि वह एक - एक प्वांइट पर सोच चुका है।


जबकि रमेश भंसाली ने ऐसे अंदाज में कहा जैसे मान रहा हो कि धीरज हवाई किले बना रहा है ---- “सुनाओ।”


“ पुलिस पूछेगी कि रतन की हत्या उन्होंने क्यों की ?”


“स्वाभाविक है।”


“वे कहेंगे, इस काम की फिरौती उन्हें चांदनी से मिली थी।”


“ये क्या बक रहे हो तुम? चांदनी उनसे खुद कहेगी कि तुम लाश के साथ पकड़े जाना और पकड़े जाने पर पुलिस से कहना कि उन्हें रतन की हत्या करने की फिरौती मैंने दी थी ? ”


“क्यों अशोक?” वह अशोक की तरफ घूमा ---- "जब इसका बाप हमारी धार पर होगा तो क्या यह ऐसा नहीं कहेगी ?”


“ये तो कह देगी लेकिन छंगा-भूरा नहीं मान सकते । वे भला खुद को अपहरण और कत्ल के जुर्म में क्यों फंसाएंगे?”


“क्योंकि चांदनी उन्हें पक्का यकीन दिलाएगी कि कोर्ट में उन्हें सरकारी गवाह बन जाना है, जो भी सजा होगी उसे होगी और भविष्य में, वास्तव में होने वाला भी यहीं है । "


“ अजीब घुमावदार प्लान बना रहे हो तुम । मेरे ख्याल से तो जब चांदनी छंगा- भूरा से वह सब कहेगी जो तुम कह रहे हो तो उन्हीं के दिमाग चकरा उठेंगे। समझ नहीं सकेंगे कि चांदनी आखिर चाहती क्या है? अगर उसका मकसद खुद को रतन की हत्या के इल्जाम में गिरफ्तार कराना ही है तो सीधी थाने ही क्यों नहीं पहुंच गई?”


“निश्चितरूप से उनके दिमाग चकराएंगे और इस बारे में वे चांदनी से सवाल भी करेंगे लेकिन चांदनी कहेगी कि उन्हें पेड़ नहीं गिनने हैं बल्कि आम खाने हैं और आम दो लाख के हैं मुझे छंगा भूरा की औकात अच्छी तरह मालूम है। अपने पूरे जीवन में भी उन्होंने कभी दो लाख एकसाथ नहीं देखे हैं । इस रकम के लिए वे यह काम करने को तुरंत तैयार हो जाएंगे। उस अवस्था में तो हंडरेट परसेंट जब सरकारी गवाह बनकर बच जाने की गारंटी भी मिल जाएगी।”


“जब वे कबूल ही कर लेंगे कि रतन को किडनेप करके कत्ल कर डालने के चांदनी से उन्हें दो लाख मिले थे तो पुलिस उनसे वह रकम बरामद कर लेगी, उन्हें क्या मिला?”


“ पुलिस को वे यह बताएंगे उन्हें चांदनी से इस काम के पचास हजार मिले थे, पुलिस उनकी खोली से उन्हें ही बरामद करेगी ।”


“ यानी डेढ़ उनके !”


“नहीं, ढाई दिए जाएंगे। दो काम के और पचास हजार पकड़वाने के लिए | दो हम सब मिलकर देंगे। पकड़े जाने वाले नोट चांदनी अपने ए. टी. एम. से निकालकर देगी। बाद में वे नोट ही तो साबित करेंगे कि उन्हें फिरौती देने वाली चांदनी ही है ।”


“पर ए. टी. एम. से एक दिन में पच्चीस हजार..


“काफी समय है अभी ।” धीरज ने अपनी रिस्टवॉच देखते हुए कहा----“पच्चीस बारह से पहले निकाले जाएंगे, पच्चीस बाद में।"


“ पुलिस जब छंगा - भूरा से पूछेगी कि रतन को उन्होंने कैसे और कहां से किडनेप किया तो वे क्या जवाब देंगे?"


“उसकी भूमिका पहले ही बनाई जा चुकी होगी ।” सिंहानिया ने अवंतिका की तरफ देखते हुए कहा - - - - “ और वही तुम्हारे द्वारा उठाई गई समस्या का हल होगा । तुम दो-पौने दो बजे के करीब रोती-पीटती थाने पहुंचोगी । कहोगी कि तुम और रतन कहीं से लौट रहे थे, फॉर एग्जाम्पिल होटल पैराडाइज से, रास्ते में तुम्हारे देखते ही देखते दो बदमाशों ने रतन को किडनेप कर लिया। उस वक्त छंगा-भूरा के नाम नहीं बताओगी तुम । केवल हुलिए बताओगी।” |


“क... क्या मैं ऐसा कर सकूंगी?" उसका चेहरा पीला पड़ गया ।


“जंजाल से निकलने के लिए इतना तो करना ही पड़ेगा ।”


अवंतिका चुप रह गई।


“चांदनी के कहे मुताबिक छंगा-भूरा लाश सहित करीब ढाई बजे पकड़े जाएंगे | अवंतिका की रिपोर्ट और लाश के साथ उन्हीं हुलियों वाले बदमाशों की गिरफ्तारी पुलिस को मुकम्मल कहानी दे देगी।”


“जब वे यह बताएंगे कि रतन की हत्या की सुपारी चांदनी ने दी थी तो पुलिस की क्या प्रतिक्रिया होगी?”


“ सबसे पहले पुलिस छंगा - भूरा के बयान की पुष्टि करेगी अर्थात् उन्हें लेकर उनकी खोली पर जाएगी । ऐसा मैं दावे के साथ इसलिए कह रहा हूं क्योंकि पुलिस की कार्य प्रणाली यही होती है । खोली से पचास हजार बरामद करते ही पुलिस समझ जाएगी कि छंगा-भूरा जो कह रहे हैं वह सच है । तब दो काम हो सकते हैं। पहला ---- चांदनी को गिरफ्तार करने पुलिस सीधी इसके घर पहुंच जाए। दूसरा---- पहले अवंतिका के घर खबर करे कि रतन की हत्या हो चुकी है । ”


“ उस वक्त चांदनी का बयान क्या होगा ?"


“यह किसी हालत में कबूल नहीं करेगी कि वे सच बोल रहे हैं । इसका कहना तो यह होगा कि यह उन्हें पहचानती तक नहीं है । "


“तो फिर बात कैसे बनेगी ?”


“ ऐसे मामलों में बात किसी के कहने से नहीं बनती बल्कि सबूतों से बनती है। पुलिस किसी का कहना नहीं सुनती, सबूत देखती है और सबूत साबित कर रहे होंगे कि वह झूठ बोल रही है। नोट खुद बता रहे होंगे कि वे ए.टी.एम. से निकले हैं। चांदनी का नाम सामने आने के बाद पुलिस के लिए यह पता लगा लेना बाएं हाथ का खेल होगा कि वे उसी के कार्ड से निकले हैं।”


“यह सवाल भी तो उठेगा कि चांदनी ने हत्या क्यों कराई ?”


“हां, पुलिस के दिमाग में वह कारण ढूंसना भी जरूरी है। तभी तो स्टोरी पूरी होगी।” कहने के बाद वह अवंतिका की तरफ घूमा और बोला ---- “जिस वक्त पुलिस तुम्हें रतन की हत्या की सूचना देने जाएगी उस वक्त यह भी बताएगी कि प्राप्त सबूतों और छंगा भूरा के बयान के मुताबिक हत्या चांदनी ने की है, उस वक्त तुम्हें किसी भी तरह पुलिस के दिमाग में यह बात डालनी है कि कुछ दिन पहले रतन ने चांदनी से रेप किया था । "


“र... रेप किया था?”


“यह भी घढ़ लिया जाएगा कि ऐसा उसने कब, कहां और कैसे किया था। मजे की बात यह कि यह बात चांदनी भी कबूल कर रही होगी मगर कह रही होगी कि इसके बावजूद उसने हत्या नहीं कराई है। वह कहती चाहे कुछ भी रहे लेकिन पुलिस समझ चुकी होगी कि उसने रतन से बदला लिया है। पुलिस को सबूतों सहित मुकम्मल कहानी मिल चुकी होगी और इसके कहने को अपराधी का प्रलाप समझ रही होगी।”


“धीरज ।” सारी बातें समझने के बाद अशोक ने उसकी प्रशंसा करने वाले अंदाज में कहा ---- “तुमने बहुत ही शानदार लेकिन उतना ही घुमावदार प्लान बनाया है।”


“प्लान को घुमावदार पुलिस को मुकम्मल कहानी देने के लिए बनाना पड़ा।” अपनी प्रशंसा सुनकर उसके होठों पर मुस्कान उभरी ---- “उसे मुकम्मल कहानी मिलेगी तभी तो तहकीकात नहीं करेगी, हम जो भी कर रहे हैं उसी से बचने के लिए तो कर रहे हैं। इसमें रमेश की समस्या का निदान भी है यानी पुलिस कभी यहां नहीं पहुंच सकेगी। अवि की समस्या का निदान तो समझ में आ ही गया होगा। मजे की बात ये कि सजा भी उसी को मिलेगी जिसने वास्तव में हत्या की है । चांदनी से भी हमेशा के लिए निजात मिल जाएगी हमें । कामता प्रसाद को तब तक नहीं छोड़ेंगे जब तक इसे उम्रकैद या फांसी न हो जाए ।”


संजय कपाड़िया ने पूछा ---- “वो गाड़ी किसकी होगी जिसमें चांदनी रतन की लाश लेकर छंगा- भूरा के पास जाएगी ?”


“तुम्हारी?”


“म... मेरी ?” संजय का चेहरा जर्द पड़ गया ।


“घबराओ नहीं।” धीरज हंसा - - - - “तुम पहले ही उसकी चोरी की रिपोर्ट लिखवा चुके होगे और छंगा - भूरा भी यही बयान देंगे कि उन्होंने गाड़ी वहां से चुराई थी जहां तुमने खड़ी की थी । ” -


“म... ..मगर..


“ थोड़ा-थोड़ा सभी का सहयोग होना चाहिए न, मैंने छंगा-भूरा का पता बताया, अशोक ने वह तरकीब जिससे चांदनी को मजबूर किया जाएगा, रमेश के आदमी कामता प्रसाद को किडनेप करेंगे।”


एक बार फिर संजय ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि रमेश भंसाली के मोबाइल की बेल बज उठी।


“फोन रमेश के उन्हीं आदमियों का था जिन्हें उसने कामता प्रसाद को कब्जे में करने का काम सौंपा था ।” अशोक बजाज कहता चला गया----“चांदनी के मुंह से रुमाल निकाला गया। उसे कामता प्रसाद की आवाज सुनाई गई । वही हुआ जिसकी मुझे उम्मीद थी । अपने पिता को बचाने की खातिर चांदनी धीरज के | प्लान पर काम करने को तैयार हो गई। उसी ने अपने हाथ से ए. टी. एम. से पैसे निकाले । वही छंगा - भूरा के पास गई और दो लाख में सौदा किया । उन तक को पता नहीं लग पाया कि इस केस में चांदनी के पीछे भी कोई है । यह बात अलग है कि उस वक्त हम सभी खोली से कुछ दूर खड़े चांदनी पर नजर रखे हुए थे । ठीक वही हुआ जो धीरज ने सोचा और कहा था । इंस्पेक्टर को क्योंकि मुकम्मल कहानी मिल गई इसलिए कोई तहकीकात नहीं हुई। सारी गड़बड़ आपके बीच में आने से हुई । आप न आतीं तो पुलिस हमारी कहानी को सच मान ही चुकी थी । ”


“ छंगा - भूरा की खोली में आग क्यों और कैसे लगी?” विभा ने पूछा ---- “वैसा करने की किसी को क्या जरूरत पड़ गई थी?”


“मुझे वकील की इस बात ने डरा दिया था कि वह अगली ही डेट पर छंगा - भूरा को तोड़ लेगा । बाकी लोगों से बात की। सबकी राय यही बनी कि छंगा - भूरा को पिक्चर से ही आऊट कर दिया जाए।” अशोक बताता चला गया ---- “एक बार फिर चांदनी को उनके पास भेजा गया। उसने उनसे अपने मरने का नाटक करने के लिए कहा। उनके छुपने के लिए घर की व्यवस्था के रूप में उसने हमारा दिया गया एक सीलबंद लिफाफा सौंपा जिसमें उस घर की चाबी और एड्रेस था जहां से बाद में तुमने उन्हें बरामद में किया। अर्थात् चांदनी वहां का एड्रेस नहीं जानती थी। हम लोगों का प्लान उन्हें सचमुच इंडिया से बाहर भेज देने का था लेकिन उससे पहले ही आप वहां पहुंच गईं । ”


“तुम लोगों को मेरे इस केस में सक्रिय होने का पता कब लगा ?”


“जब आप कपाड़िया - विला से पूछताछ करके जा चुकीं।”


“अब तुम झूठ बोल रहे हो ।” मैं गुर्राया ---- “तुम्हें उससे पहले ही पता लग चुका था। हमारे बिड़ला -हाऊस पहुंचने से भी पहले । ऐसा न होता तो अवंतिका की हत्या क्यों करते? उसका कत्ल तुमने किया ही इसलिए क्योंकि जान चुके थे, जमील अंजुम के थाने से हम लोग वहीं के लिए निकले हैं। तुम्हें यह डर सताया होगा कि विभा उसके मुंह से हकीकत उगलवा लेगी इसलिए हमारे पहुंचने से पहले ही..


“ ऐसा नहीं है वेद जी ।" वह गिड़गिड़ाया- -“ यकीन मानिए, हममें से किसी ने किसी की हत्या नहीं की।”


“केस में मेरे इन्वॉल्वेमेंट की खबर तुम्हें तब भी नहीं लगी जब हम बिड़ला- हाऊस में, अवंतिका के मर्डर की छानबीन कर रहे थे?”


“ मैं सच कहता हूं... नहीं ।” वह मेरी तरफ देखता बोला ---- “हमें तो यह भी संजय ने ही बताया कि अवंतिका की हत्या हो चुकी


“मतलब?”


“बिड़ला -हाऊस से आप कपाड़िया - विला पहुंची थीं। धनजय अंकल को तो खैर कुछ पता नहीं था लेकिन आपके सवालों ने संजय के होश फाख्ता करके रख दिए थे । यह सुनकर तो उसके पैरों तले से जमीन ही निकल गई थी कि आप रतन बिड़ाला के मर्डर केस की रि-इन्वेस्टीगेशन कर रही हैं और अवंतिका की भी हत्या हो चुकी है। आप उससे यह कहकर गई थीं कि यह पता लगाकर रहेंगी कि वह और मंजू पांच घंटे कहां रहे और क्या करते रहे? यही तो वह टाइम था जिसे हम सारी दुनिया से छुपाना चाहते थे । बुरी तरह आतंकित अवस्था में उसने आपके निकलते ही धीरज को फोन मिलाया और विस्तार से सारी बातें बताईं। जाहिर है कि धीरज के भी होश उड़ गए। उसने मुझे और रमेश को फोन किया। संक्षेप में यही कह सकता हूं कि आपकी सक्रियता से हमारे ग्रुप में खलबली मच गई थी।"


“संजय के फोन के बाद तुमने क्या किया ?”


“सबसे पहला फोन गिरजा प्रसाद अंकल को मिलाया । मंशा पूरी बात जानने की थी। उन्होंने घटना के बारे में बताया। मैंने आपके 85% 10:45 p.m.


क्योंकि वो बीवियां बदलते थे


बारे में भी विस्तार से पूछा । जो बताया गया उसे सुनकर मेरी रूह फना हो गई। फौरन ही वापस धीरज को फोन करके सारी डिटेल बताई । ”


“ उस वक्त तुम क्या सोच रहे थे?”


“यही कि यह काम भी चांदनी का ही है। अकेले रतन को मार कर उसके कलेजे में ठंडक नहीं पड़ी है। वह हम सभी से बदला लेने की फिराक में है। धीरज ने साफ साफ कहा कि चांदनी ने अवंतिका को भी मार डाला है। उसकी अक्ल ठिकाने लगानी होगी। मैंने उसी वक्त चांदनी से बातें कीं । वह पहले की तरह रो-रोकर और चीख चीखकर कहती रही कि उसने ऐसा नहीं किया है। ऐसी हालत में वह ऐसा कर भी कैसे सकती है जबकि उसके पापा हमारे कब्जे में हैं ! उसकी इस बात पर मैं भले ही डबल-माइंड हो गया होऊं लेकिन धीरज कुछ भी सुनने को तैयार नहीं था। कहने लगा कि बाप के कारण वह हमारे इशारों पर नाचने का नाटक करके बेवकूफ बना रही है।”


“इस मानसिक अवस्था में तुमने क्या किया ?”


“ सबसे पहले यह पता लगाने की कोशिश की कि कपाड़िया - विला से आप लोग कहां गए हैं लेकिन कामयाबी नहीं मिली। हमारे पास कोई श्रोत ही नहीं था। फौरन ही ताज पैलेस होटल के एक सुईट में मीटिंग रखी गई। मीटिंग में हम सभी थे यानी मैं, धीरज, किरन, रमेश, सुधा, संजय, मंजू और चांदनी भी। एक बार फिर चार दिसंबर की रात वाला दृश्य था । हम सब चांदनी



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क्योंकि वो बीवियां बदलते थे


को अवंतिका की हत्यारी कह रहे थे और वह बार-बार यकीन दिलाने की कोशिश कर रही थी कि ये झूठ है। हममें से किसी ने भी यकीन नहीं किया। फिर इस बात पर चर्चा शुरु हुई कि ताजा हालात में क्या किया जाए? धीरज ने कहा कि एक बार फिर हमें कोई कहानी गढ़नी होगी। ऐसी मुकम्मल कहानी जो विभा जिंदल नाम की इन्वेस्टीगेटर को जम सके, उसके दिमाग में घुमड़ रहे सभी सवालों का जवाब दे सके । तभी वह इस केस में इंट्रेस्ट लेना बंद करेगी और तभी हमारे सिरों पर लटकी यह नंगी तलवार हट सकेगी कि पता नहीं वह कब हमारे राज तक पहुंच जाए। बात सभी को जंची । इस बात पर विचार-विमर्श शुरु हो गया कि ऐसी क्या कहानी गढ़कर उसे कैसे प्रकाश में लाया जाए ? एक बार फिर धीरज के ही दिमाग ने काम किया और उसी के प्लान के मुताबिक वहीं चांदनी से उस डायरी का एक - एक अक्षर लिखवाया गया जो तुम लोगों को हमारे बाथरूम की फ्लश से मिली थी।”


“तो क्या चांदनी का यमुना में छलांग लगाना भी तुम्हारे ही प्लान का हिस्सा था?” शगुन ने उसे घूरते हुए पूछा ।


“हां ।” उसने नजरें चुराते हुए बताया ---- "इस काम के लिए वह बड़ी मुश्किल से तैयार हुई थी। तब, जबकि हमने वादा किया कि इसके बाद उसके पिता को छोड़ दिया जाएगा।"


“इसके लिए वह मरने को तैयार हो गई ?” मैंने हैरत से पूछा ।


“नहीं। प्लान के मुताबिक मरना नहीं था उसे।” अशोक कहता चला गया ---- “वह एक अच्छी तैराक थी । तय ये हुआ था कि इस तरह से वह आत्महत्या का नाटक करेगी जिससे डायरी पढ़ने वालों को लगे कि अपनी सारी करतूत सच-सच लिखने के बाद उसने खुद को खत्म कर लिया है।"


“लेकिन इस तरह चांदनी अपने आपको कब तक मृत घोषित करके रख सकती थी? कभी तो सामने आनी ही थी ! ”


“तय ये हुआ था कि वह तब सामने आएगी जब आप इस बात से संतुष्ट होकर जिंदलपुरम लौट चुकी होंगी कि रतन और अवंतिका की हत्या उसी ने की थी और आत्मग्लानि होने पर वह खुद को खत्म कर चुकी है। दूसरे शब्दों में यूं कहा जा सकता है है कि उसे तब सामने आना था जब आप इस केस को हल हो गया मान लेतीं।”


“लेकिन सामने आने पर तो केस फिर रि-ओपन हो जाता!”


" ड्रामा यह किया जाता कि उसने आत्महत्या की कोशिश की लेकिन बच गई। सामने आने पर भी वह डायरी में लिखे से मुकरने वाली नहीं थी । समाज से लेकर कोर्ट तक में यही कहती कि डायरी में उसके द्वारा लिखा गया एक - एक शब्द सच है ।"


“तब तो कानून उसे..


“ उस सबके लिए तो वह पहले ही से तैयार थी लेकिन..


“लेकिन?”


“ इस सारे प्लान में सबसे बड़ी चूक यह हुई कि चांदनी से डायरी लिखवाते वक्त हमें यह मालूम नहीं था कि आप छंगा-भूरा तक पहुंच चुकी हैं। उनसे आपको सारा सच पहले ही मालूम हो चुका था और डायरी में लिखी कई बातें उस सच के उलट थीं, इसलिए डायरी आपके दिमाग पर वह प्रभाव नहीं डाल सकी जो हम चाहते थे बल्कि अगर यह कहा जाए तो ज्यादा मुनासिब होगा कि आप शायद उसी समय समझ गई थीं कि डायरी चांदनी से जबरदस्ती लिखवाई गई है ।”


उसकी इस बात पर विभा केवल मुस्कराकर रह गई।


***