करीब आधा घंटा देवराज चौहान, बांकेलाल राठौर और सोहनलाल आगे बढ़े होंगे कि उन्हें ठिठक जाना पड़ा । सोहनलाल के चेहरे पर कई रंग आकर गुजर गए । बांकेलाल राठौर की आंखें हैरानी से फैल गई। देवराज चौहान के होंठ भिंच गए। आंखें सिकुड़ चुकी थी । माथे पर बल आ ठहरे थे । निगाह एकटक सामने देख रही थी।


सामने से करीब आठ फीट ऊंचा, लंबा-चौड़ा पत्थर का आदमी उनकी तरफ ही धीरे-धीरे बढ़ा आ रहा था । उसकी लाल सुर्ख आंखें अंगारों की तरह नजर आ रही थी। हैरत की बात थी कि पत्थर का आदमी होने पर भी उसके हाथ-पांव मुड़ रहे थे । सामान्य इंसान की तरह गर्दन हिल रही थी ।


"यो गजब तो अंम पैली बार देखो ।" बांकेलाल राठौर सतर्क स्वर में कह उठा--- "पत्थर का हौवे ये आदमी, फिर भी हाड़-मांस के आदमियों की तरह लगे। ये तो...।"


देवराज चौहान के चेहरे पर दरिंदगी नाच उठी थी ।


"ये मायावी इंसान है । इसने पत्थर के आदमी का रूप धारण कर रखा है ।" देवराज चौहान बोला ।


"लेकिन ये हमारी तरफ क्यों आ रहा है ।" सोहनलाल ने जल्दी से कहा। "मालूम नहीं अब क्या होगा। तुम दोनों सावधान रहना ।" देवराज चौहान की आवाज में खतरनाक भाव थे-- "इस पर तो किसी हथियार का भी असर नहीं होगा।"


"इससे मुकाबला करना पड़ेगा।" सोहनलाल अजीब से स्वर में कह उठा ।


"तू म्हारे होते हुए फिक्र क्यों करो हो। अंम इसको 'वड' रख देगा । म्हारे पीछे हो जा।" "कैसे 'वडेगा' तेरे पास कोई हथियार भी नहीं । जो...।"


"किसी को 'वड़ने' के लिए हथियार की जरूरतो ना ही अंमको । म्हारे हाथों ही बोत हौवे।" बांकेलाल राठौर की आवाज में वहशी उभर आए थे ।


कुछ कदम पहले ही वो पत्थर का बुत रुक गया । अपनी लाल सुर्ख अंगारो समान चमकती आंखों से वह देवराज चौहान को घूर रहा था और देवराज चौहान उसे ।


आधा मिनट ऐसे ही बीत गया ।


"तुम मनुष्य, हमारे पाताल में कैसे आ गए ?" उसके पत्थर के होंठ हिले । घरघराती आवाज निकली 1


"मालूम नहीं ।" देवराज चौहान शब्दों को चबाकर बोला- "समझो कि होश आने पर खुद को यहां पाया ।"


"तुम लोग बराबर हमारी नगरी की तरफ क्यों आते जा रहे हो ।" पत्थर का आदमी पुनः बोला।


देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ी ।


"तुम यह बात कैसे जानते हो ?"


"जब से तुम लोगों ने हमारे पाताल लोक में कदम रखा है, तब से यहां हमें तुम लोगों की खबरें मिल रही है ।" कहने के साथ ही उसने हाथ हिलाया--- "पहरेदार के मना करने पर भी, तुम लोग नहीं रुके तो तुम लोगों को रोकने के लिए मुझे भेजा गया है । "


"तुम्हें ? किसने भेजा है तुम्हें ?"


"तुम लोगों को हमारी बातें जानने की जरूरत नहीं । यहां से चले जाओ ।" उसकी आवाज में गुस्सा था ।


"तुम लोगों की नगरी कितनी दूर है ।" देवराज चौहान ने पूछा ।


"अब ज्यादा दूर नहीं रही । तभी तुम लोगों को रोकने के लिए मुझे आना पड़ा। बोलो...।" 


"तुम तो मायावी लोग हो। मनुष्य की जान आसानी से ले सकते हो । फिर यूं बात-चीत करके वापस जाने को कहना मेरी समझ से बाहर है ।" देवराज चौहान सतर्क स्वर में बोला।


"तुम ठीक कहते हो । हमारे पास ऐसी शक्तियां है कि मनुष्य जाति हमारे सामने कोई अहमियत नहीं रखती । लेकिन हमारे बड़े बुजुर्गों का कहना था कि कुलदेवी का आदेश है कि मनुष्य जाति हमारे लिए पूजनीय है । इसलिए कभी भी किसी मनुष्य की जान न ली जाए । अगर हमारी जाति में से किसी ने मनुष्य की जान ली तो, कुलदेवी गुस्से से हमारी जाति को तबाह कर देंगी । यही वजह रही कि तुम लोगों को अभी तक किसी ने कुछ भी

नहीं कहा । लेकिन हम लोग यह भी नहीं चाहते कि कोई मनुष्य हमारी नगरी में प्रवेश करे। इसलिए वापस चले जाओ।" 


"हमने तुम्हारी बात न मानी तो तुम क्या करोगे ?" देवराज चौहान बोला । 


"तो तुम लोगों के हाथ-पांव तोड़कर, मंत्रों से बांधकर, सबको वापस पृथ्वी पर भेज दिया जाएगा । पाताल लोक से तुम लोगों को हर हाल में वापस जाना होगा।" 


देवराज चौहान ने शांत भाव में सिगरेट सुलगाई ।


"तुम मायावी लोग अगर मनुष्य की जान नहीं लेते तो हमारे वो साथी कहां है, जो तुम लोगों के मायावी ताकत में फंसकर गायब हो गए है ।" सोहनलाल ने पूछा । 


"मुझे उनके बारे में कोई खबर नहीं। लेकिन यह बात पक्की है कि वो मनुष्य जहां भी होंगे। जिंदा होंगे और ठीक होंगे। उन्हें भी वापस भेज दिया जाएगा । जैसे अब तुम लोगों को भेजा जाएगा।"


"थारे को कौनो बोले कि अंम वापस अभ्भी जायो ।" बांकेलाल राठौर बोला । 


"मैं तुम लोगों को वापस भेजने ही आया हूं।" उसका स्वर बेहद कठोर हो गया । 


तभी देवराज चौहान उछला और सीधा पत्थर के आदमी से जा टकराया ।


परन्तु पत्थर का आदमी अपनी जगह स्थिर खड़ा रहा । देवराज चौहान की टक्कर का उस पर कोई असर नहीं हुआ। 


देवराज चौहान नीचे गिरा और फुर्ती से उसने उठना चाहा। लेकिन तब तक पत्थर के आदमी ने झुककर देवराज चौहान की बांह एक ही हाथ से थामी और उसे हवा में उठा कर घुमा कर छोड़ दिया।


हवा में लहराता देवराज चौहान का शरीर दूर जमीन पर लुढ़कता चला गया । जमीन पर पड़े पत्थरों से उसका शरीर टकराया । बदन पर कई जगह से दर्द की लहरें उठी। परंतु सब कुछ भूलकर, देवराज चौहान उछल कर खड़ा हो गया ।


नजर पत्थर के आदमी की तरफ उठी।


वो वैसे ही खड़ा था।


बांकेलाल राठौर और सोहनलाल हक्के-बक्के खड़े थे ।


देवराज चौहान को इस बात का एहसास हो गया था कि पत्थर के आदमी का मुकाबला नहीं किया जा सकता। असीम ताकत ताकत है इस मायावी पत्थर के आदमी में । मामूली तौर पर फेंकने से ही, वो बीस कदम दूर जा गिरा था।


"तुम इसका मुकाबला नहीं कर सकते देवराज चौहान ।"


देवराज चौहान चिहुंक पड़ा ।


किसी युवती की फुसफुसाती आवाज उसके कानों में पड़ी थी। देवराज चौहान ने आस-पास देखा । परंतु कोई नजर नहीं आया।


"तुम मुझे नहीं देख सकते । मेरी आवाज तुम्हारे अलावा कोई नहीं सुन सकता । मुझे वो पत्थर का मायावी इंसान भी नहीं देख- सुन सकता ।" युवती की वही फुसफुसाती आवाज कानों में पड़ी ।


"कौन हो तुम ?" देवराज चौहान का स्वर धीमा था ।


"ये बातें फिर भी हो सकती हैं। पहले उस मायावी इंसान के बारे में सोचो । उसके पास ताकत है कि तुम लोगों को घायल करके, मंत्र पढ़कर, सबको वापस पृथ्वी पर भेज सके । अगर उसने ऐसा कर दिया तो कभी भी तिलस्मी ताल हासिल नहीं कर सकोगे।"


"तुम कैसे जानती हो कि मैं ताज लेने... |"


"मैं सब कुछ जानती हूं । लेकिन इस वक्त तुम पत्थर के आदमी के बारे में सोचो।" 


देवराज चौहान के होंठ भिंच गए ।


"वो तुम्हारा ही साथी है | मेरे साथ ये बातें करके तुम कोई चालबाजी कर रही हो ।" 


देवराज चौहान का स्वर कठोर हो गया ।


"गलत बात मत कहो । मैं सच्चे मन से तुम्हारी सहायता करना चाहती हूं"


"क्यों करना चाहती हो तुम सहायता ।"


"ये बात तुम बाद में भी कर सकते हो देवराज चौहान।" युवती की फुसफुसाती आवाज उसके कानों में पड़ी--- "मैं जानना चाहती हूं तुम उसका मुकाबला कर सकते हो ?"


"नहीं । वो मायावी इंसान, बहुत शक्तिशाली है ।" देवराज चौहान ने भिंचे होठों से कहा--- "मैं उसका मुकाबला नहीं कर सकता । वो जीत जाएगा मुझसे ।"


"चिंता मत करो । मेरी सहायता लेकर, तुम आसानी से इससे जीत जाओगे ।"


"कैसे?"


"अपने पैरों की तरफ देखो ।"


देवराज चौहान ने सिर झुका कर अपने पैरों की तरफ देखा ।


देखते ही देखते बेहद छोटा-सा पत्थर उसके पैरों के पास आ गिरा। देवराज चौहान मन ही मन चौंका।


"पत्थर देखा । जो अभी-अभी गिरा है ।" युवती की फुसफुसाती आवाज कानों में पड़ी । 


"हां ।"


"उसे उठाओ और उस मायावी पत्थर के आदमी पर फेंक दो । याद रखना पत्थर उससे टकराना चाहिए । अगर तुम्हारा निशाना खाली गया तो तुम जलकर भस्म हो जाओगे।" युवती की फुसफुसाती आवाज कानों में पड़ी ।


देवराज चौहान के दांत भिंच गए।


"उठाओ पत्थर।"


"मेरे पत्थर फेंकने से उसका क्या अंजाम होगा ?" देवराज चौहान ने पूछा-- "वो मेरी जान नहीं लेना चाहता । ऐसे में मैं उसकी जान लूं तो गलत बात होगी।"


"तुम मायावी नगरी में हो देवराज चौहान ।" युवती की आवाज में समझाने वाले भाव थे-"कभी भी, कोई भी हादसा तुम्हारी जान ले सकता है । यहां किसी पर रहम करोगे तो अपनी जान गंवाओगे । मेरी इस नसीहत को याद रखना । माना कि मायावी लोगों को मनुष्य की जान लेने पर मनाही है । लेकिन इनकी चालबाजी में फंसकर, तुम अपनी जान तो गंवा सकते हो । उठाओ उस पत्थर को और जैसा मैंने कहा है, वैसा ही करो। वैसे वो मरेगा नहीं । महीने भर के लिए वो इस हद तक घायल हो जाएगा कि किसी काम के लायक नहीं रहेगा।"


देवराज चौहान नीचे झुका और उसे छोटे से पत्थर को उठा लिया ।


बांकेलाल राठौर और सोहनलाल अजीब-सी निगाहों से देवराज चौहान को देख रहे थे । 


"सोहनलाल।" बांकेलाल राठौर का हाथ अपनी मूंछ पर पहुंचा।


"हां ।"


"यो देवराज चौहान को जबो कोई पटक के फेंके तो इसो तरहो ही होठों ही होंठों में हमेशा बड़बड़ा करो, सामने वालों को गालियां देवें का ?" बांकेलाल राठौर ने पूछा। 


"नहीं।"


"तो यो का बड़बड़ाये हो । म्हारे को तो लगो, एक ही झटको में देवराज चौहान को दिमाग में कोई फर्क आ गयो। तन्ने देखो हो का नीचे से छोटा-सा पत्थर उठायो ।"


"हां ।" सोहनलाल व्याकुल था ।


"तो का, वो पत्थर से, उस मायावी पत्थर के आदमी को वड़े ?"


सोहनलाल कुछ नहीं बोला ।


तभी पत्थर का आदमी अपनी जगह से हिला और देवराज चौहान की तरफ बढ़ने लगा । उसकी लाल सुर्ख आंखे बहुत भयानक लग रही थी ।


"इब तो देवराज चौहान के हाथ-पांव टूटा ही ।" बांकेलाल राठौर ने बेचैन से स्वर में कहा 


"तूने तो कहा था मैं 'वडुंगा' इसे । जाकर 'वड' ।" सोहनलाल तीखे स्वर में बोला ।


"यो तो पत्थर का हौवे । देवराज चौहान की हालत न देखी तन्ने ।"


"अब अपनी भी देख लेना । देवराज चौहान के बाद तुम्हारी बारी है ।"


पत्थर का मायावी आदमी देवराज चौहान के पास पहुंचता जा रहा था । देवराज चौहान अपनी जगह पर स्थिर खड़ा उसे एकटक देखे जा रहा था ।


सिर्फ तीन कदम पहले, पत्थर का आदमी ठिठक गया ।


"अब कहो, हमारी नगरी से पृथ्वी पर वापस जाने को तैयार हो ?" उसने कठोर स्वर में पूछा।


"नहीं " देवराज चौहान ने दांत भींचकर कहा--- "मैं तुमसे मुकाबला करूंगा।"


"अब मुझे पूरा विश्वास हो गया कि तुम मूर्ख जाति के मनुष्य हो ।" पत्थर के आदमी की आवाज में गुस्सा आ गया --- "अगर तुम समझदार मनुष्य होते तो मुझसे मुकाबले को न कहकर, वापस पृथ्वी पर जाने को कहते । तुमने मुझे मजबूर कर दिया है कि एक ही बार में तुम्हारे और तुम्हारे साथियों के हाथ-पांव तोड़कर मंत्रों से बांधकर तो मैं तुरंत पृथ्वी पर भेज दूं।" 


कहने के साथ ही वो गुस्से से आगे बढ़ा ।


बहुत करीब था वो ।


निशाना चूकने का सवाल ही पैदा नहीं होता था।


देवराज चौहान ने हाथ ऊपर उठाया और उसमें दबा पत्थर, उस पर दे मारा । आधे क्षण में ही पत्थर उसकी छाती पर लगा । छोटा-सा मुठ्ठी में दब जाने वाला पत्थर, जिससे किसी इंसान को भी चोट न पहुंचती । जाने उस पत्थर में क्या असर था कि उससे टकराते ही तूफान उठ खड़ा हुआ ।


वो गला फाड़कर चिल्ला उठा । ऐसे तड़पा जैसे उसकी जान निकल रही हो । उसका शरीर स्प्रिंग की भांति उछला और नीचे गिर पड़ा । जोरों की गिरने की आवाज हुई । उसका॒ा तड़पना रुक नहीं रहा था और फिर देखते ही देखते, अपनी चीखों के साथ वो गायब हो गया।


उसके नीचे गिरने के निशान अभी भी मिट्टी पर नजर आ रहे थे।


वहां इस तरह सन्नाटा छा गया, जैसे दो पल पहले तूफान गुजरा हो । मामूली से पत्थर का इतना खतरनाक असर होगा, कोई विश्वास नहीं कर सकता था, लेकिन देवराज चौहान जानता था कि वो मामूली-सा पत्थर नहीं था । उसमें कोई शक्ति थी, जिसने पत्थर के उस मायावी इंसान को भागने पर मजबूर कर दिया ।


"खतरा टल गया देवराज चौहान ।" युवती की फुसफुसाती आवाज पुनः उसके कानों में पड़ी ।


"तुम मेरा नाम कैसे जानती हो ?"


"मैं सब कुछ जानती हूं । जो अदम्य शक्तियों के मालिक होते हैं, उन्हें कुछ पूछने की जरूरत नहीं पड़ती।"


"तुम सच कहती हो, वो घायल हुआ है ?" देवराज चौहान ने पूछा । 


"हां और मैं जब भी कहूं, उस पर यकीन करना। दोबारा मत पूछना ।"


"तुमने मेरी सहायता क्यों की ?"


"इस बात का जवाब फुर्सत में दूंगी।"


"तुम हो कौन ?"


वो वक्त कब आएगा ?"


"तुम्हारे हर सवाल का जवाब तुम्हें मिलेगा । लेकिन वक्त आने पर ।" फुसफुसाती आवाज कानों में पड़ी । 


"मैं देख रही हूं कि बहुत जल्द वो वक्त आने वाला है। मैं कब से किसी ऐसी शख्सियत को तलाश कर रही थी, जिसके कंधे को इस्तेमाल करके, अपनी मंजिल पा सकूं और तुम मुझे मिल गए । तुम सर्वश्रेष्ठ मनुष्य हो और समझदार हो । इस बात को भांपकर ही मैंने तुम्हारी सहायता के लिए कदम आगे बढ़ाया।"


देवराज चौहान के माथे पर बल पड़े ।


"इसका मतलब तुम मेरी सहायता करके अपना कोई काम निकालना चाहती हो ?"


"हां । लेकिन मुझसे तुम्हें नुकसान नहीं होगा । फायदा ही होगा । तुम ताज को हासिल करना चाहते हो और मैं कुछ और। हम दोनों का स्वार्थ अलग-अलग है, लेकिन मंजिल एक ही है । "


"अपने बारे में कुछ न बता कर तुम मुझे उलझन में डाल रही हो ।" देवराज चौहान बोला । जवाब में हल्की सी हंसी कानों में पड़ी फिर वो आवाज आई ।


"मैं जल्दी ही तुम्हारी उलझनें दूर कर दूंगी।"


"तुम सामने क्यों नहीं आती ?"


"मुझे देखना चाहते हो ?" युवती की फुसफुसाती आवाज कानों में पड़ी ।


"हां। अपनी सहायता करने वालों को कौन नहीं देखना चाहेगा ।" देवराज चौहान का स्वर शांत था ।


अगले ही पल खामोशी छा गई। कानों में कोई आवाज नहीं पड़ी ।


तभी, करीब दस कदम दूर, पच्चीस बरस की खूबसूरत युवती पर उसकी निगाह पड़ी । जो उसे देखते ही मुस्कुरा रही थी। सामान्य कद काठी की उस युवती ने सफेद सा कपड़ा बदन पर लपेट रखा था । वह ऐसी थी कि देखने वाला उसे देखता ही रह जाए । "देख लिया मुझे ?" वो मुस्कुराती हुई मीठे स्वर में बोली।


देवराज चौहान ने सहमति में गर्दन हिलाई ।


"हां ।"


"पहले मैं इसलिए सामने नहीं आई कि वो मायावी इंसान इस रूप में मुझे देख सकता था और मैं नहीं चाहती थी कि वो मुझे देखे ।"


"तुम्हें डर कैसा, तुम तो उससे ज्यादा शक्तिशाली हो तुम...।"


"हालात कुछ ऐसे हैं कि मैं अभी सामने नहीं आना चाहती। अब तुम सामने रहोगे और ताकत मेरी रहेगी।"


देवराज चौहान ने गहरी निगाहों से उसे देखा ।


"मैं कभी भी गलत इंसान का साथ नहीं देता ।" देवराज चौहान ने कहा--- "तुमने मेरी सहायता की । इसके लिए शुक्रिया । जब तक मुझे विश्वास नहीं होगा कि तुम सही राह पर बढ़ रही हो, तब तक मैं तुम्हारा साथ नहीं दूंगा।"


वो पुनः मुस्कुराई ।


"मुझे तुम्हारी शर्त स्वीकार है। जब तुमसे मैं अपने लिए काम लूंगी, तो सारे हालात तुम्हारे सामने रख दूंगी । तब तुम ही फैसला कर लेना कि मैं सही हूं या गलत ।" कहते हुए उसकी आवाज में गंभीरता आ गई थी ।


देवराज चौहान उसे देखता रहा ।


"थारे को का हो गयो ।" बांकेलाल राठौर करीब आता बोला--- "किसो से बतियाओ हो । म्हारे को तो लगे कि थारो में यां कोई भूतों घुस गयो ।"


"मैं उससे बात कर रहा हूं।" देवराज चौहान ने सामने खड़ी युवती की तरफ इशारा किया


बांकेलाल राठौर ने हर तरफ देखा । कोई नजर नहीं आया।


सोहनलाल अजीब सी निगाहों से देवराज चौहान को देख रहा था ।


"थारे में कोई भूत घुसो ही घुसो । या तो कोई मक्खी भी ना हौवो ।" परेशान सा बांकेलाल राठौर बोला ।


देवराज चौहान ने बांकेलाल राठौर को देखा फिर सामने नजर आ रही युवती को ।


"तुम्हारे अलावा मुझे कोई नहीं देख सकता । मेरी आवाज नहीं सुन सकता । जब तक कि मैं ना चाहूं । इन दोनों को न तो मैं नजर आ रही हूं और न ही ये मेरी आवाज सुन पा रहे हैं।" 


"समझा ।" देवराज चौहान बोला--- "मेरे साथी भूखे हैं। क्या तुम खाने और पीने का इंतजाम कर सकती हो ?"


यह सुनते ही उसने हाथ आसमान की तरफ उठाया । दूसरे ही पल हाथ नीचे आया तो जमीन पर ढेर सारे बर्तन पड़े थे । जिनमें गर्म खाना भरा नजर आ रहा था । पानी का मटका भी वहां था ।


"सोहनलाल । म्हारो देवराज चौहान तो मायावी बन गयो। यो खानों का इंतजाम कर लयो।" 


देवराज चौहान कुछ कह पाता इससे पहले वो जैसे प्रकट हुई थी, वैसे ही गायब हो गई थी


तभी वो युवती बोली ।


"मैं चलती हूं । वक्त आने पर फिर मिलूंगी।"


देवराज चौहान ने गहरी सांस लेकर सोहनलाल और बांकेलाल राठौर को देखा ।


***