फार्म हाउस से कोई मील भर पहले ।
अनवर के आदेश पर कालका प्रसाद ने एक पब्लिक टेलीफोन से उस्मान लंगड़ा को फोन किया ।
कालका प्रसाद फोन करके वापस पुरानी एंबेसेडर में बैठा ।
–"क्या खबर है ? " पिछली सीट पर मौजूद अनवर ने पूछा ।
–"बहुत बुरी खबर है ।" कालका प्रसाद चिंतित स्वर में बोला–"पुलिस का कहर हम पर टूट पड़ा है । सब जगह रेड पड़ रही है । गिरफ्तारियां की जा रही हैं । अनवर भाई, मेरी बात मानो, फौरन यहां से दूर निकल चलो । हम अभी पुलिस की पकड़ से बच गये हैं, आसानी से भाग सकते हैं ।"
–"अगर तुम जाना चाहते हो तो जा सकते हो, कालका ! मैं नहीं जाऊँगा । मुझे एक हिसाब बराबर करना है । साफ–साफ बता दो, मेरे साथ रहना है या जाना है ?"
–"दुबई वालों से हिसाब चुकाना है ?"
–"हां, उनके बॉस से ।"
–"डॉन डिसूजा से ?" बद्री बड़बड़ाया ।
–"हां ।"
–"हालात बेहद खराब और खतरनाक हैं, अनवर भाई ! फिलहाल चुप बैठना ही बेहतर होगा ।"
अनवर का चेहरा कठोर हो गया ।
–"मैं अपना फैसला सुना चुका हूं ।"
कालका प्रसाद समझ गया बहस करना बेकार था ।
–"ठीक है, अनवर भाई, हम तुम्हारे साथ हैं ।"
–"वो हरामजादा डिसूजा निहायत कमीना और दगाबाज हैं ।" अनवर बर्फ से सर्द लहजे में बोला–"मैंने कभी दगाबाजी बर्दाश्त नहीं की अब भी नहीं करुंगा । हसन भाइयों की तबाही का जश्न उसे नहीं मनाने दूँगा । उसे मरना ही होगा ।"
* * * * * *
रंजीत मलिक तूफ़ानी रफ्तार से कार ड्राइव करके रजनी के फ्लैट में पहुंचा ।
उसके चेहरे की कठोरता और गुस्से से जलती आँखें देखकर रजनी सहम गयी और एक साथ कई सवाल जड़ दिये ।
रंजीत जवाब देने की बजाये फौरन काम में लग गया ।
वह जानता था माइक्रोफोन बिस्तर के आस–पास की कहीं होना चाहिये ।
अंदाजा सही निकला ।
पांच–सात मिनट में ही उसने एक टेबल लैम्प के नीचे पैंदे में चिपका छोटा–सा सेंसेटिव माइक्रोफोन निकालकर जेब में डाल लिया ।
–"मुझे नहीं पता था ।" हैरान परेशान रजनी बोली–"मैं नहीं जानती, रंजीत ! मैंने क्या किया है ? मेरी क्या गलती है ?"
–"कुछ नहीं । कुछ भी नहीं–सिवाय इसके कि गलत लोगों संगत में पड गयी थीं । अभी मैं जल्दी में हूं, डार्लिंग । फौरन वापस जाना है वरना अब जितनी मुसीबत में हूं उससे भी कई गुना ज्यादा में फंस जाऊँगा ।"
वह दरवाजे की ओर जाने के लिये पलटा । तभी संयोगवश उसकी नजर किसी चमकती चीज पर पड़ी–बिस्तर के ठीक सामने वाली दीवार पर ऊपर जहां रोशनदान की ग्रिल होनी चाहिये थी ।
वह कुर्सी उसके नीचे घसीटकर उस पर खड़ा हो गया ।
छोटे से गोल रोशनदान से ग्रिल हटा दी गयी थी । खाली स्थान पर बड़ा–सा गुम्बदनुमा पेपरवेट फंसा था जिसका एंगिल सीधा बिस्तर की ओर था ।
रंजीत ने उसे बाहर खींच लिया ।
वो कैनन 98 लेंस था निकन एफ कैमरे पर लगा हुआ । बायीं ओर एल शेप का बॉक्स जुड़ा था–वो रिमोट कंट्रोल यूनिट था ।
उससे वाइड एंगल्ड और कलर्ड तस्वीरें आती फास्ट फिल्म पर नीम रोशनी तक में भी फोटएं खींची जा सकती थीं । धुँधली होने के बावजूद फोटुओं में मौजूद चेहरों को पहचाना जा सकता था ।
–"पूरी फिल्म यूज की जा चुकी थी । रंजीत ने उसे निकालकर जेब में डाला और कैमरा बिस्तर पर फेंक दिया ।
–"यह निकन एफ कैमरा तुम्हारा है ?"
रजनी चकरायी ।
–"क्या ?"
–"यह निकन एफ कैमरा ! अगर कोई पूछता है तो कहना यह काफी दिनों से तुम्हारे पास है । राकेश ने तुम्हें प्रेजेंट दिया था । मैंने हर एक चीज अलग कर दी है । इसे अलमारी में रखकर इसके बारे में भूल जाओ ।"
"तुम्हारा मतलब है, वे लोग तस्वीरें ले रहे थे मेरी–हमारी ?"
–"तुम्हारी और राकेश की ! तुम्हारी और मेरी ।"
–"रंजीत ये कैसे लोग हैं...?"
–"जानवरों से भी बदतर ! लेकिन तुम्हारे पीछे वे नहीं थे बशर्ते कि तुमने ऐसा कुछ उन्हें नहीं दिया जो उनके काम आ सके और अगर मेरा ख्याल गलत नहीं है तो उन्होंने ऐसे टेप रिकॉर्डिंग और फोटोग्राफिक यूनिट राकेश के बेडरूम में भी फिट कर रखे होंगे ।"
–"मुझे बहुत डर लग रहा है, रंजीत ।"
–"मैं समझ सकता हूं । लेकिन अगर कोई भी और बात या तुम कुछ छिपा रही हो तो मुझे बता दो ।"
–"नहीं, बताने के लिये और कुछ मेरे पास नहीं है ।
–"तो फिर आओ, चलते हैं ।"
* * * * * *
इंसपेक्टर कमल किशोर !
आखिरकार असगर अली को बुरी तरह हिलाने में कामयाब हो ही गया । वह काफी हद तक टूट भी चुका था । लेकिन पूरी तरह टूटना अभी बाकी था ।
यह अलग बात थी इंसपेक्टर की इस बात पर यकीन उसे नहीं आया कि फारूख हसन गिरफ्तार कर लिया गया था और उसने जुबान भी खोल दी थी ।
असगर अली अंदर ही अंदर भयभीत था । माथे पर पसीना छलक रहा था और मासूमियत भरे हावभाव के बावजूद हाथों में कंपन था । लेकिन हसन भाइयों की ताकत और साधन संपन्नता पर अभी भी उसका यकीन कायम था और यही यकीन उसे पूरी तरह टूटने से रोके हुये था ।
कमल किशोर और उसके मातहत एस० आई० को पूरा विश्वास था चंदेक घण्टों में असगर अली अपना रिकार्ड चालू कर देगा ।
* * * * * *
दयाशंकर का वकील रमानाथ माथुर नाटे कद का मोटा–सा आदमी था । उसकी गिनती चोटी के डिफेंस लायर्स में होती थी । पुलिस वाले भी उसके काईयापन से बखूबी वाक़िफ़ थे ।
वह दयाशंकर और दो वर्दीधारी पुलिस अफसरों के साथ कमरे में दाखिल हुआ । उसके चेहरे पर मुस्कराहट देखकर रंजीत का जी चाहा उसका मुंह तोड़ दे । लेकिन जब्त कर गया । वह जानता था, अपनी चाल पिट जाने का पता चलने पर दयाशंकर खुद ही अपने बाल नोंचने पर विवश हो जायेगा और उसके वकील की सारी मक्कारी धरी रह जायेगी ।
–"आपको मालूम है" !" वर्मा की ओर बढ़ता वकील माथुर बोला ।
–"हम जानते हैं, आपके क्लायंट ने क्या कहा है ।" वर्मा ने उसे टोककर कहा–"और हम समझते हैं वह जानता है वो सब कहने पर उसके खिलाफ क्या आरोप लगाये जा सकते हैं ?""
दयाशंकर ने मेज पर लगे टेप्स और फोटुओं के ढेर को देखा ।
–"इस सबके बारे में कुछ नहीं जानता ।" वह ऊंची आवाज़ में बोला–"मैंने सिर्फ इतना कहा था मीना रमानी ने मुझे एक टेप सुनाया था...।"
–"तुम इन टेप्स को रिकार्ड करने या फोटुओं को खींचने से इंकार कर रहे हो ?" वर्मा ने पूछा ।
– "बिल्कुल ! मैंने बस एक टेप सुना था और मीना रमानी ने मुझे बताया उसमें किन दो जनों की आवाजें थीं ।"
–"दयाशंकर जी, चुप रहो ।" माथुर बोला ।
–"वो कौन–सा टेप है ?" तोमर ने पूछा ।
–"यह मुझे नहीं पता । वो टेप रिकार्डर में लगा था जब वो हराम...इंसपेक्टर मलिक मुझे यहां लाया था ।"
तोमर ने डेस्क पर रखे पेपरों पर निगाह डाली । एक इंसपेक्टर ने आगे झुककर इशारा कर दिया ।
–"हमारे पास रतन मेहरा का बयान है ।" तोमर बोला–"जिसे मीना रमानी के अपार्टमेंट में चोरी से घुसते हुये उस वक्त गिरफ्तार किया गया था जब वहां तलाशी ली जा रही थी । रतन मेहरा ने हमें काफी कुछ बताया है और उसे अरेस्ट करने वाले एस० आई० ने भी अपनी रिपोर्ट दी है । रिकार्डर से निकाले गये टेप पर हमने एफ 290 नम्बर डाल दिया था ।"
उस एस० आई० ने, जो वर्मा के साथ मीना रमानी के घर से टेप्स लेने गया था, उस नम्बर का टेप ढेर से निकालकर रिकार्डर में लगाया और 'प्ले' बटन दबा दिया ।
लम्बी खामोशी के बाद टेप से धीमी शां–शां उभरने लगी ।
वो खाली टेप चलने की आवाज़ थी ।
बस वही सुनायी देती रही ।
–"किसी ने टेप से बातचीत डैमेज करके इसे क्लीन कर दिया है ।" अचानक दयाशंकर चिल्लाया–"हरामजादों ने...।"
–"तुम कहना क्या चाहते हो ?"
दयाशंकर का चेहरा गुस्से से सुर्ख था ।
–"इसे साफ कर दिया गया है । आवाजें मिटा दी गयी हैं ।"
–"यहां ऐसा कुछ नहीं हुआ ।"
–"मैं तुम्हें छोडूंगा नहीं, इंसपेक्टर मलिक !" क्रोध से बेकाबू हुआ दयाशंकर पुन:चिल्लाया–"तुम्हारी चाल कामयाब नहीं होगी । वहां रोशनदान की ग्रिल में एक कैमरा भी लगा है, बिस्तर के सामने वाली दीवार में...!"
–"मीना रमानी के बिस्तर के सामने ?" तोमर ने टोका ।
तोमर की आंखों की चमक रंजीत को जरा भी पसंद नहीं आयी । वह समझ गया तोमर इस बहाने उससे अपनी खुंदक निकालना चाहता था ।
–"नहीं !" दयाशंकर गुर्राया–"मैं उस कुतिया रजनी राजदान के बिस्तर की बात कर रहा हूं । वह रंजीत की सहेली है । हम उसे वाच कर रहे थे...।"
–"दयाशंकर जी, अपने आपको संभालो ।" माथुर ने चेतावनी दी ।
–"मुझे नहीं, इसे संभालना चाहिये ।" वह रंजीत की ओर उंगली तानकर बोला–"यह अपने ओहदे और सरकारी अधिकारों का नाजायज इस्तेमाल कर रहा है ।"
–"तुम रजनी राजदान को किसके लिये वाच कर रहे थे ?" वर्मा ने पूछा ।
–"फारूख और...!" दयाशंकर कहता–कहता रुक गया । फिर बोला–"रंजीत उस लड़की के साथ ऐश कर रहा था । पुलिस इंसपेक्टर एक गवाह को करप्ट कर रहा था...!"
–"तुम्हारा कहना है वहां एक कैमरा लगा है ?" तोमर ने पूछा । उसकी आंखों में अभी भी चमक थी ।
–"मुझ पर झूठा इल्जाम लगाया जा रहा है ?" रंजीत सपाट स्वर में बोला ।
–"वन मिनट !" वर्मा हाथ उठाकर सबको रोकता हुआ बोला–"मेरा ख्याल है हमें वो कैमरा देखना चाहिये । सबकी भलाई इसी में है ।"
–"मैं कहता हूं...!" माथुर ने कहना शुरू किया ।
–"तुम पुलिस अफसरों के साथ वहां जाना चाहते हो ।" वर्मा बोला–"हमें कोई एतराज नहीं है । इसका इंतजाम किया जा सकता है ।"
दयाशंकर से रजनी के बेडरूम में छिपे कैमरे के बारे में तथ्य प्रगट करने को कहा गया । फिर माथुर को एक इंस्पेक्टर और दो कांस्टेबलों के साथ वहां भेज दिया गया–रजनी राजदान से इजाज़त लेने के बाद ।
एकांत पाते ही वर्मा ने रंजीत को घूरा ।
–"अब वे तुम्हें फंसा देंगे ?"
–"नो सर । मेरी समझ में नहीं आता क्यों इतनी हाय–तौबा मचायी जा रही है । आपने रजनी का बयान पढ़ा है ?"
–"हां ! मुझे अफसोस है, रंजीत, तुम्हें इस केस से हटाना पड़ेगा ।"
–"ऐसा नहीं होगा, सर ! लगता है, मैंने हर एक की खिदमत कर दी है । महज इत्तिफाक की वजह से दयाशंकर शोर मचा रहा है । मीना रमानी भी यही करेगी जब उसे पता चलेगा क्या हो रहा है ।"
वर्मा ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की ।
–"ऐसा लगता है ।" लम्बी चुप्पी के बाद बोला–"उस इंसपेक्टर के बारे में तुमने ठीक ही कहा था ।"
–"मोतीलाल की बात कर रहे हैं, सर ?"
–"उसके पास मोटा पैसा है । वह अभी भी टेम्प्रेरी हैडक्वार्टर्स में है लेकिन उस पर हमारी नजर है ।"
–"जब हमें डिसूजा का अराइवल टाइम पता लग जायेगा तो वह अनवर हसन का पता हमारे लिये लगा सकता है ।"
–"इस रजनी के मामले में तुम काफी सीरियस लगते हो ।"
–"मैं उसे पसंद करता हूं, सर !"
–"ऐसा तो नहीं है कि अपनी स्कूल टीचर से खाये जख्म पर इस तरह वक्ती तौर पर मरहम लगा रहे हो ?"
–"यह मेरा जाती मामला है, सर !"
वर्मा मुस्कराया ।
–"ओ० के० ! यहां से निपटकर हम असगर अली की मिज़ाज–पुर्सी करने चलेंगे । उसका रिकार्ड चालू कराना भी जरूरी है ।"
–"वो हो जायेगा, सर !"
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