दोपहर भी ढलनी आरंभ हो गई थी ।
देवराज चौहान, जगमोहन, बांकेलाल राठौर, सोहनलाल और कर्मपाल सिंह आगे बढ़ते जा रहे थे । भूख और प्यास भी लगी थी, परंतु कहीं पीने या खाने का इंतजाम नहीं था । उनके शरीर और कपड़े पसीने से भीगे स्पष्ट नजर आ रहे थे । सिर के बाल भी पसीने से गीले होकर आपस में चिपक रहे थे ।
"ये रास्ता कभी खत्म होगा कि नहीं ?" सोहनलाल थके स्वर में कह उठा ।"
"कोई भी रास्ते खत्म हौवे का ।" बांकेलाल राठौर बोला ।
"मेरा मतलब है जहां हमने पहुंचता है। वो जगह कब आएगी ।" सोहनलाल ने मुंह बनाया ।
"इस बात का जवाब किसी के पास नहीं है ।" जगमोहन ने कहा।
"फकीर बाबा ने हमें लंबे फेर में ही डाल दिया है ।" सोहनलाल बोला । "तंम अगर थक गयो हौवे तो बैठकर थोड़ो चैन ले लायो ।" सोहनलाल ने आसपास देखा । हर तरफ बंजर जमीन और सूखे पेड़ नजर की तीखी धूप सीधी उन पर पड़ रही थी। जिसकी वजह था। आ रहे थे । सूर्य से आगे बढ़ने में बुरा हाल हो रहा
"यहां आराम करने की जगह कहां है ।" सोहनलाल ने बांकेलाल राठौर को देखा ।
"थारी यो बात तो ठीक ही हो ।"
"बांके ।" कर्मपाल सिंह बोला ।
"थारे को ईब का हुओ।"
"गला सूख रहा है। बहुत प्यास लगी है ।"
"तंम या का हाल तो देखो हो । पाणी की बूंदों भी न हौवे।" बांकेलाल राठौर ने मूंछ पर हाथ फेरते हुए कहा--- "थारी खातिर अंम कुओं तो खोदना से रयो ।"
"भूख भी लगी है।" कर्मपाल सिंह मुंह लटकाकर कह उठा ।
"थारे को यो पैले मालूम होना चाहिए कि थारे जिस्मो में पेट भी लगो हौवे। राशन-पानी की गठरो बनाकर कंधौं पर लाद लेता और चूल्हों के साथ, इंजन का सिलेंडर भी साथ रखो होता तो ईब अंम मिल-बांटकर बनाते खाते । तंम रोटियां बेलता अंम सेकता ।" बांकेलाल राठौर ने उसे देखा ।
"तू तो मजाक कर रहा है बांके ।"
"मजाक तो तम करो हो । थारे को भी सबो दिखे और म्हारे को भी सबो दिखे । यां पाणी और खानो ना हौवे । फिर तू म्हारे से पाणी पैदा करने को काहे बोले ।"
चलते-चलते सोहनलाल ने गोली वाली सिगरेट सुलगाई
"अपणों जिगरो फूंको तू । "
सोहनलाल ने घूरकर बांकेलाल राठौर को देखा ।
"तू लस्सी में मक्खन का गोला डाल कर पीता है । "
"पक्को । बोत मजा आवे । आह ।"
"ज्यादा मक्खन खाना अच्छा नहीं होता। इससे हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है ।" "
"थारो बाप डॉक्टर हौवे का ?
"मेरे पड़ोस में डॉक्टर रहता था।" "इब वो किधर हौवो ?"
"मर गया
"क्यों ?"
"वो भी लस्सी के बड़े गिलास में मक्खन का गोला डालकर मजे लेता था । हार्ट अटैक हो गया उसे ।"
"थारो वो डॉक्टर नकली मक्खन खावे । तभ्भी मरो । अंम फ्रेश मक्खन का गोलो, लस्सी में डालो । उसो से हार्ट-अटैक न हौवो । म्हारे को पक्का पता है ।"
"तेरे पड़ोस में रहने वाले डॉक्टर ने ये बात बताई ।" सोहनलाल व्यंग से बोला ।
"नेई । ये बातों म्हारे को गुरदासपुर में, उसी ने बताए । वो सब बातों सच बोलो ।" "उसके सिर पर सींग लगे हैं । "
"सींग तो उसकी भैंसों को लगो । उसो को, कारों को लगो। वो तो...।"
बाकी शब्द बांकेलाल राठौर के होंठों में रह गए।
सबसे आगे चल रहा, देवराज चौहान भी ठिठक गया वो सब ठिठक गए ।
"यो तो जंगलों में मंगल होतो नजर आवे ।"
सबकी निगाहें कुछ दूर नजर आ रहे सफेद से छोटे मकान पर जा टिकी जो हर तरफ से खूबसूरत नजर आ रहा था । धूप की चमक से वो मकान चमक रहा था । ऐसी उजाड़-खुश्क बंजरी जमीन पर ऐसा मकान होना हैरानी की बात थी । इसलिए मकान किसी के गले से नीचे नहीं उतर रहा था ।
देवराज चौहान की सिकुड़ी निगाह मकान पर टिकी रही ।
मकान का गेट खुला हुआ था । बाहर से ही नजर आ रहा था कि भीतर पानी का फव्वारा चल रहा है । जिसमें फुहार मकान की दीवारों से ऊंची उठ रही थी।
"बांके ।" कर्मपाल सिंह जल्दी से कह उठा--- "मकान में पानी भी है । "
"अपणों मूं बंद रखो । म्हारे को तो ये मकान गड़बड़ लगो।" बांकेलाल राठौर कह उठा ।
"ये मायावी मकान है।" देवराज चौहान सख्त स्वर में कह उठा ।
"क्या मतलब ?"
"मायावी लोगों की माया है यह मकान । वरना ऐसी उजाड़ जगह में मकान होने का कोई मतलब नहीं । हो सकता है, हम लोगों को फंसाने के लिए चारे के रूप में मकान सामने रख दिया हो ।" देवराज चौहान बोला ।
"चारे के रूप में ?" जगमोहन के होठों से निकला ।
"हां । जिस तरह वो सफेद घोड़ा रुस्तम राव को गायब करके ले गया । उसी तरह यह भी कोई जाल है ।"
"हो सकता है, ऐसा कुछ भी न हो ।" सोहनलाल ने कहा।
देवराज चौहान आगे बढ़ा और मकान के गेट तक जा पहुंचा।
बाकी सब उसके साथ थे ।
बिना भीतर प्रवेश किए देवराज चौहान ने भीतर झांका ।
परंतु कोई नजर नहीं आया ।
"कोई है ?" देवराज चौहान ऊंचे स्वर में कह उठा ।
आवाज के बाद खामोशी छा गई। कोई नजर नहीं आया । जवाब नहीं आया ।
"कोई है मकान के भीतर ।" देवराज चौहान ने पुनः पुकार लगाई ।
कोई जवाब नहीं ।
"अंम तो पैले ही कहो यो मकान गड़बड़ हौवे ।" बांकेलाल राठौर ने गंभीर स्वर में कहा । देवराज चौहान ने पलटकर सब पर निगाह मारी ।"
"कोई भी इस मकान के भीतर नहीं जाएगा।" देवराज चौहान ने कहा--- "मुझे पूरा यकीन है कि यह मायावी मकान है और हमें फंसाने के लिए इसे यहां रखा गया है।"
"फंसाने के लिए कैसे ?" जगमोहन ने पूछा ।
"हम थके हुए हैं तो आराम करने की सोच कर चले जाएं। भूखे-प्यासे हैं तो खाने-पीने के लालच में भीतर चले जाएं और मायावी शक्ति हमें कैद कर लें ।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा ।
"हो सकता है तुम्हारी यह सोच गलत हो ।" सोहनलाल ने कहा ।
"हो सकता है । लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि मैं गलत नहीं सोच रहा। तुम खुद ही सोचो कि ऐसे उजाड़ जगह पर मकान होने का क्या मतलब है । यहां दूर-दूर तक पानी का नामोनिशान नहीं, फिर मकान के भीतर लॉन में लगे फव्वारे में पानी कहां से आ रहा है। मकान है तो खाली क्यों है । पुकारने पर भी कोई सामने क्यों नहीं आया ? यह जाल है हमारे लिए। हम भीतर जाएं और मायावी शक्ति हमें कैद कर लें ।"
दो पलों की चुप्पी के बाद बांकेलाल राठौर कह उठा ।
"वो मायावी पॉवर तो म्हारे को यां भी कैद कर सको हो।"
"कोई वजह होगी कि वे लोग हमें इस तरह से कैद कर सकते होंगे। तभी उन्होंने पहले घोड़े के बुत का सहारा लिया और रुस्तम राव फंस गया । इसी तरह अब शायद वो शक्ति इस मकान का लालच देकर हमें कैद करना चाहती है । चलो यहां से । ध्यान रहे । कोई मकान की दीवार को भी हाथ नहीं लगाएगा।"
कहने के साथ ही देवराज चौहान मकान के गेट से हटकर आगे बढ़ गया।
जगमोहन, सोहनलाल और बांकेलाल राठौर बिना किसी ऐतराज़ के पीछे चल पड़े । चंद कदम चलने पर बांकेलाल राठौर ठिठका | पलटकर देखा कर्मपाल सिंह उसी मकान के सामने खड़ा था
"थारे पैरों को लेवी हो क्या । आ-जा ।"
"मुझे बहुत प्यास लगी है। पानी पीकर आता हूं।" कहते हुए कर्मपाल की जल्दी से मकान के खुले गेट की तरफ लपका ।
देवराज चौहान ठिठककर बिजली की फुर्ती से पलटकर चीखा ।
"भीतर मत जाना कर्मपाल ।"
लेकिन तब तक कर्मपाल सिंह दौड़ता हुआ भीतर प्रवेश कर चुका था ।
वे सब भागे । मकान के गेट से बाहर पहुचंकर ठिठके ।
कर्मपाल सिंह नजर आ रहा था, जो कि फव्वारे के पास पहुंच चुका था। वहां से पानी निकल रहा था, वहां मुंह लगाकर पानी पीने लगा ।
सब अपलक उसे देखे जा रहे थे ।
देवराज चौहान के जबड़े कस चुके थे ।
बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर था। दो उंगलियां मूंछ को मरोड़े जा रही थी ।
जगमोहन और सोहनलाल भी स्थिर खड़े, पानी पीते कर्मपाल को देखे जा रहे थे । मिनट भर बाद फुर्सत पाकर, कर्मपाल सीधा खड़ा हुआ और उसकी तरफ देखकर मुस्कुराया।
"बहुत मीठा पानी है ।" कर्मपाल सिंह ऊंचे स्वर में बोला--- "लगता है सारी थकान दूर हो गई । तुम सब आ जाओ। कोई खतरा नहीं है । पानी पी लो ।"
पल भर के लिए खामोशी छाई रही ।
"कोई भीतर नहीं जाएगा ।" देवराज चौहान शब्दों को चबाकर बोला ।
"ये तो ठीक है।" जगमोहन बोला--- "इसे कुछ भी नहीं हुआ ।"
"अभ्भी कां ठीको हौवे । यो भीतर तो गयो, पण बाहर तो न आयो ।" बांकेलाल राठौर ने कहा ।
तभी सोहनलाल ऊंचे स्वर में बोला ।
"कर्मपाल । बाहर आ जाओ।"
"तुम लोगों ने पानी नहीं पीना क्या ?" कर्मपाल सिंह भीतर से उन्हें देखता हुआ ऊंचे स्वर मैं बोला ।
"म्हारे को थारे सिफारिश की ज़रूरत न हौवे ।" बांकेलाल राठौर कह उठा--- "तंम का समझो हो कि, वां रहो तो तभ्भी म्हारी को पीणे को पाणी मिल्लो । पैले तम ठीको-ठीको बाहर आ ।"
कर्मपाल सिंह हंस पड़ा । फिर वहां से हटा और गेट की तरफ बढ़ा ।
"तुम लोग खामख्वाह डर रहे हो मैं...।"
उसी पल सबकी आंखे सिकुड़ी। चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे ।
वो मकान जैसे एकाएक सिकुड़ने लगा । मकान सिकुड़ने के साथ कर्मपाल सिंह के शरीर को भी उन्होंने छोटा होते हुए देखा । कर्मपाल सिंह को गड़बड़ का एहसास हुआ तो वो जल्दी से गेट की तरफ भागा। सबने देखा कर्मपाल का चेहरा फक्क पड़ गया था ।
देवराज चौहान, जगमोहन, सोहनलाल बांकेलाल राठौर हक्के-बक्के खड़े थे। कर्मपाल मकान के बाहर नहीं आ सका।
देखते ही देखते सैकिंडो में वो मकान सिकुड़कर छोटा-सा गोल बनता चला गया और फिर कर्मपाल सिंह उसी गोले में कैद होकर नजर आना बंद हो गया था । वो गोला भी एकाएक दिखना बंद हो गया था ।
बिना पलकें झपके सब खड़े, उस जगह को देखते रहे, जहां मकान था । वहां अब सिवाय बंजर जमीन और सूखे पेड़ों के अलावा और कुछ भी नहीं था ।
कर्मपाल सिंह मकान के साथ ही गायब हो चुका था।
कई पलों तक उनके मुंह से बोल न फूटा ।
"म्हारे को बोले कर्मा कि हम डरो हो ।" बाकी लाल राठौर गहरी सांस लेकर कह उठा--- "ठीको । तू मत डरो । पहलवान बननो का मजा तो तन्ने ले ही लयो। मीठा पाणी भी सुड़क लायो । तू तो गयो काम से।"
जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा ।
"कर्म पाल सिंह गायब हो गया ।"
"उसकी गलती थी ।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा--- "पानी का लालच वो छोड़ नहीं सका ।"
"अब उसके साथ क्या होगा ?" सोहनलाल ने कहा ।
"क्या कहा जा सकता है कि मायावी शक्ति रूस्तम राव और कर्म पाल सिंह को कहां ले जा रही है ।" देवराज चौहान के चेहरे पर सोच के भाव थे--- "अगर इसी तरह हम मायावी शक्तियों के कब्जे में जाते रहे तो शायद ताज तक न पहुंच सकें।"
"तब तो मोना चौधरी पहुंच जाएगी ताज तक ।" जगमोहन के होठों से निकला ।
"वो भी न पोंचो ताज तको तो ।" बाकी लाल राठौर व्यंग से कह उठा ।
देवराज चौहान के होठों पर मुस्कान उभरी।
"क्या मतलब ?" जगमोहन ने बांकेलाल राठौर को देखा ।
"म्हारे को यूं तेजो-तेजो झटको लगो । वो छोरा और कर्मा गायब हो गयो । तां का मोना चौधरी सलामत रयो का ? वो भी मायावी जालों ने जरूर फंसों । ताज को पाणो आसान न हौव।" कहते हुए बांकेलाल राठौर का हाथ मुंह पर पहुंच गया--- "वो भी मायावी झटको खायो ही खायो।"
"बांके ठीक बोलता है।" सोहनलाल कह उठा ।
जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा।
"यह बात तो मैंने सोचा नहीं थी ।"
"तो अब दिमाग में बिठा लो ।" देवराज चौहान मुस्कुराया--- "यह का बोलबाला है । यहां हम लोग हों या मोना चौधरी । कोई भी मायावी नगरी है। जादू मायावी जाल से बचा नहीं रह सकता । हमारी तरह मोना चौधरी और उनके साथियों को भी कुछ ऐसी ही दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा होगा ।"
कोई कुछ न बोला ।
उसके बाद वो पुनः आगे बढ़ने लगे ।
"सावधानी से आगे बढ़ो ।" देवराज चौहान आसपास देखता हुआ बोला--- "किसी भी तरह के लालच में या फिर किसी ऐसी चीज से बचना है जो यहां हो ही नहीं सकती ।"
"एक बात समझ में नहीं आ रही ।" जगमोहन बोला ।
"क्या ?" देवराज चौहान बोला ।
"मायावो लोग, अभी तक नजर क्यों नहीं आए ?"
"हम उन्हीं की तरफ बढ़ रहे हैं । जहां वे रहते हैं। उनकी बस्ती या कुछ और, वो जगह् अभी दूर है । जब हम वहां पहुंचेंगे तो तो वो सब हमें नजर आएंगे।" देवराज चौहान ने कहा ।
कुछ आगे जाने पर उन्हें पन्द्रह-बीस फीट चौड़ा तालाब नजर आया। धूप में उसका पानी चमक रहा था । उसके किनारे दो सूखे पेड़ खड़े थे । तालाब का पानी साफ था । उसे देखकर ऐसा महसूस हो रहा था, जैसे तालाब कभी बड़ा रहा होगा, अब सूखकर सिमटता जा रहा है । उसकी गहराई तीन-चार फीट से ज्यादा नहीं थी । तालाब के भीतर पत्थर पड़े स्पष्ट नजर आ रहे थे । वे सब तालाब के पास पहुंचकर ठिठके ।
"ये पानी शायद पीने लायक नहीं है ।" देवराज चौहान बोला--- "खारा पानी है ।"
"प्यास तो बहुत लग रही है ।" सोहनलाल थके स्वर में कह उठा।
"यो पाणी पीणो से कोई बीमारी लग गई तो यां कोई वैधो भी न मिल्लो ।"
जगमोहन आगे बढ़ा ।
तालाब के किनारे पहुंचकर नीचे बैठा और हाथ बढ़ाकर पानी के छींटे अपने चेहरे पर मानने लगा । गीला हाथ बालों में भी फिराया। उसके बाद कमीज की बाहें ऊपर करके बाजू धोने लगा। पानी का स्पर्श पाकर जगमोहन को राहत मिली थी ।
"मैं एक घूंट पीकर चैक करूंगा कि पानी पीने लायक है या नहीं।" सोहनलाल बोला।
"ईब तू चैकिंग मास्टर बनयो।"
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली और कश लेते इधर-उधर देखने लगा ।
"थारा नहाने का प्रोग्राम तो नेई बनयो ।" बांकेलाल राठौर ने कहा--- "जल्दी करो मन्ने भी छींटों मारने हौवो ।"
हर तरफ सुनसान खुश्क वीरानी ही नजर आ रही थी । सूखे पेड़ जैसे गर्मी को और बढ़ावा दे रहे थे, हो सकता है कभी यहां पेड़ों पर हरियाली रही हो । लेकिन अब सब उजड़ाउजड़ा सा था ।
घूमती निगाह तालाब पर हाथ-मुंह साफ करते जगमोहन पर पड़ी तो देवराज चौहान चौंका । उसके देखते ही देखते तालाब का पानी किसी जाल की तरह, चादर बना उछला और जगमोहन को अपने आगोश में ले लिया। दो पलों के लिए जगमोहन पानी की चादर के पीछे, नजर आना बंद हो गया और फिर सबके देखते ही देखते वो पानी की चादर वापस तालाब में जा मिली।
परंतु अब वहां जगमोहन नहीं था ।
वह मायावी तालाब था जो कि जगमोहन को निगल चुका था ।
बांकेलाल राठौर हड़बड़ाकर दो कदम पीछे हट गया । उसके चेहरे पर अजीब से भाव फैल चुके थे । सोहनलाल के चेहरे पर अविश्वास का सागर नाच रहा था ।
देवराज चौहान की फैली-फैली आंखें तालाब को देखे जा रही थी । दो पल पूर्व वहां जगमोहन मौजूद था, परंतु अब नहीं था । रूस्तम राव, कर्मपाल सिंह की तरह जगमोहन भी मायावी जाल में फंस कर गायब हो चुका था।
"ये...ये।" सोहनलाल के होठों से अजीब-सा स्वर निकला--- "ये तो मायावी तालाब है।"
"पर म्हारे को लग्गो की असली तालाबो हौवे ।" बांकेलाल राठौर के होंठो से अजीब सा स्वर निकला ।
देवराज चौहान ने गहरी सांस लेकर खुद पर काबू पाया ।
"हम धोखा खा गए ।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा ।
सबकी निगाहें तालाब पर टिकी रही जो अभी तक उसी जगह मौजूद था।
"इस तरह रुके रहना ठीक नहीं ।" देवराज चौहान ने लंबी सांस ली --- "यहां से आगे बढ़ो।"
न चाहते हुए भी, अनमने मन से बांकेलाल राठौर और सोहनलाल देवराज चौहान के पीछे चल पड़े । कुछ कदम आगे बढ़ने के बाद बांकेलाल राठौर ने पीछे देखा तो ठिठक गया।
वो तालाब गायब था ।
"तालाब तो अपणों काम करके खिसक गयो ।"
देवराज चौहान और सोहनलाल ने भी रुककर पीछे देखा।
"वो तालाब कुछ ऐसा था कि हम उस पर किसी भी तरह का शक न कर सके ।" देवराज चौहान बोला--- "लेकिन हमें पक्के तौर पर यह सोचकर आगे बढ़ना है कि जो भी नजर आता है, वो माया है । कुछ भी सच्चा नहीं । खुद के अलावा किसी पर भी भरोसा नहीं करना है। आओ ।"
"वो पुनः आगे बढ़ने लगे ।
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