कालका प्रसाद मर्सीडीज की अगली सीट पर बैठा था । बद्री कार चला रहा था ।
सड़क पर मुड़ते ही उन्हें पुलिस कार नजर आयी । संभवतया इलाके की गश्ती कार थी । वो ठीक अपार्टमेंट हाउस से प्रवेश द्वार पर जा रुकी । दूसरी दिशा से तेजी से आती एक और पुलिस कार या एंबुलेंस के सायरन की गूँज भी सुनायी देने लगी ।
हांलाकि कालका प्रसाद फारूख हसन को वहां छोड़कर जाना नहीं चाहता था लेकिन पुलिस की नजरों से बचना भी निहायत जरूरी था ।
–"बद्री, यहां से निकलो । इतनी तेजी से नहीं कि किसी का ध्यान हमारी ओर जाये । यहां रुकना खतरनाक है ।"
दूसरी कार एंबुलेंस ही थी ।
ज्योंही मर्सीडीज प्रवेश द्वार के सामने से गुजरी । उन्होंने देखा दो बावर्दी पुलिस वाले एक आदमी को बाहर ला रहे थे । आदमी जनाना रेनकोट पहने था फिर भी दोनों ने आसानी से उसे पहचान लिया ।
वह फारूख हसन था ।
–"हे भगवान, यह तो फारूख हसन है । फारूख भाई को पकड़ लिया गया है ।"
–"जल्दी नज़दीकी पब्लिक फोन तलाश करो ।" कालका प्रसाद कहता हुआ अपनी सीट में नीचे झुक गया । यहां वक्त जाया करना बेकार था । फ़ौरन अनवर को खबर करना जरूरी था ।
* * * * * *
रंजीत मलिक दोनों इंसपेक्टरों के साथ बाहर जाने की बजाये वर्मा के ऑफिस में ही रुका रहा कुछ देर के लिये । वह वर्मा से दो–एक अन्य मुद्दों पर बात करना चाहता था ।
दोनों इंसपेक्टरों ने इस दौरान फोन पर बातचीत करके दुबई से आने वाली फ्लाइटों के बारे में मालूमात हासिल करनी थी । डिसूजा और उसके आदमियों ने अपने फर्जी पासपोर्ट और दूसरे नामों से सफर करना था । लेकिन सूचना प्राप्त होने पर जांच का दायरा तीन या चार फ्लाइटों तक ही सीमित हो जाना था । इसके बाद मामला आसान हो जाना था ।
दूसरे इंसपेक्टरों में से कोई और इस वक्त वहां नहीं था । तोमर, कमल किशोर वगैरा पुराने हैडक्वार्टर्स में असगर अली, दयाशंकर, मीना रमानी और दूसरे लोगों से पूछताछ में मसरूफ थे ।
रंजीत ने मेन ऑफिस से गुजरते वक्त चारों ओर सरसरी निगाहें दौड़ाई ।
उसे कोई चीज खटकी ।
वो क्या चीज थी ? वह एकाएक नहीं समझ सका ।
इमारत के बाहर मेन रोड के पार पब्लिक टेलीफोन बूथ में बावर्दी इंसपेक्टर को खड़ा देखकर उसका माथा ठनका । पहले तो सोचा अपनी पत्नी को फोन कर रहा होगा...। लेकिन बात गले से नहीं उतरी ।
रंजीत सडक पार करके ऐसे एंगिल से बूथ की ओर बढ़ा ताकि इंसपेक्टर की निगाह उस पर न पड़ सके ।
दबे कदमों से पास पहुंचकर बहुत ही धीरे से बूथ का दरवाज़ा थोड़ा खोला…!
संयोग ही था कि कांच का पल्ला खुलने की आवाज़ फोनकर्ता को सुनायी नहीं दी ।
वह मोतीलाल था । दरवाजे की ओर पीठ किये फोन पर झुका माउथपीस में जल्दी–जल्दी बोल रहा था–"...वे समझते हैं डिसूजा किसी चार्टर्ड फ्लाइट पर चर्च का कोई फंक्शन अटेंड करने आ रहा है । अगर वाकई ऐसा है तो कल दिन में ग्यारह बजे उसे सेंट्रल कैथेड्रल चर्च में होना चाहिये । मैंने सोचा अनवर को बता दिया जाये । जैसे ही मुझे पूरी जानकारी मिलेगी तुम्हें बता दूँगा और, हां...मुझे अपनी नगदी चाहिये, समझ गये ?...ओ० के० ।"
रिसीवर हुक पर लटकाकर पलटते ही बूथ के दरवाजे में रंजीत को खड़ा पाकर एक पल के लिये उसका चेहरा फक् पड़ गया । लेकिन ब्लफ करने के लिये भी वह तैयार था ।
रंजीत भी इसे ताड़ गया और उसने भी ऐसा करने का फैसला कर लिया । वह मोतीलाल को जरा भी शक नहीं करने देना चाहता था कि उसकी फोनवार्ता सुन चुका था ।
–"सॉरी, दोस्त !" तनिक मुस्कराकर बोला ।
–"बीवी को फोन कर रहा था । मोतीलाल राजदराना लहजे में बोला–"दरअसल मेरी बीवी को अच्छा नहीं लगता कि ऑफिस के फोन पर सबके सामने उससे बात की जाये ।"
–"मेरे साथ भी यही प्रॉब्लम है । फर्क सिर्फ इतना है मुझे बीबी से नहीं एक छोकरी से बात करनी है ।"
–"औरतें सभी अजीब होती हैं ।" मोतीलाल बोला–"खैर मैं चलता हूं वरना एस० पी० साहब सोचेंगे कहां गोल हो गया ।"
–"फिक्र मत करो ।" रंजीत ने आश्वासन दिया–"मैं नहीं बताऊंगा ।"
मोतीलाल मुस्कराया ।
–"तुम अपनी डेट फिक्स करो । गुडलक !"
वह सड़क पार करके इमारत में चला गया ।
रंजीत ने एस० पी० से संबंध स्थापित किया ।
–"सर, मुझे नहीं लगता उसे पता चल गया है कि मैंने उसकी बात सुन ली थीं । लेकिन असलियत यह है कि अपना दोस्त इंसपेक्टर 'मोतीलाल' विभाग से गद्दारी कर रहा है । उसने अभी–अभी हसन भाइयों के किसी आदमी को फोन पर बताया है डिसूजा कैसे यहां आ रहा है और कल कहां मिलेगा । मेरी सलाह है उस पर कड़ी नजर रखी जाये ।
प्रत्यक्षत: एस० पी० अपने ऑफिस में मौजूद किसी को भी उसकी भनक नहीं लगने देनी चाहता था ।
–"ठीक है, मैं देख लूँगा । शुक्रिया ।" उसने जल्दी से कहकर संबंध विच्छेद कर दिया ।
* * * * * *
कालका प्रसाद ने अनवर को फोन पर सूचना देकर सावधान कर दिया था ।
कुछेक सैकेंड पश्चात् उस्मान लंगड़े का फोन आ गया ।
अनवर वहां रुककर वक्त जाया नहीं करना चाहता था । उसने उस्मान को हिदायत दे दी कि दयाशंकर के वकील को फौरन हैडक्वार्टर्स भेजकर मामले की पैरवी करायी जाये । इस तरह कम से कम एक इंसपेक्टर तो कुछ अर्से के लिये एक्शन से अलग हो जायेगा । रंजीत के रजनी राजदान के साथ जिस्मानी ताल्लुकात का टेप सुनते ही आला पुलिस अफसर उसे सस्पैंड करके उसकी इंक्वायरी का फरमान जारी कर देंगे ।
एक ओर भारी दुविधा में अनवर फंसा था । वह जानता था सिर्फ एक ही शख्स फारूख को पकड़वाने के लिये उसके खिलाफ मुखबिरी कर सकता था–अनवर की अपनी मां ! और वह मां के सामने पड़ने से भी बचना चाहता था । कुछेक मिनटों में पास वाले चौराहे पर कालका प्रसाद उससे मिलने वाला था ।
वह सीढ़ियों पर दौड़कर ऊपर अपने कमरे में पहुंचा । अपने कुछ कपड़े और रोज़मर्रा की दूसरी जरूरी चीजों के अलावा भारी कैलीवर की लोडेड पिस्तौल भी एक बैग में पैक कर ली ।
बैग उठाकर दोबारा नीचे आया और बाहर दौड़ गया ।
ज्योहि अनवर हसन चौराहे पर पहुंचा मर्सीडीज उसके सामने आ रुकी । वह अंदर बैठ गया ।
बद्री ने यू टर्न लेकर सावधानीपूर्वक कार दौड़ानी शुरू कर दी । करीब बीस मिनट में बद्री के गैराज से कार चेंज करके वे फार्म हाउस की ओर रवाना हो जायेंगे ।
अगले चौराहे पर पुलिस की तीन कारें तेजी से हसन हाउस की ओर दौड़ती दिखायी दीं । अंदर बैठे पुलिस वाले इतने मसरूफ थे कि कालका प्रसाद की मर्सिडीज की ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया ।
अनवर ने अपने पेट में भारी ऐंठन–सी महसूस की । बहुत से और लोग गिरफ्तार किये जाने वाले थे । फारूख को पहले ही डबल मर्डर के आरोप में अरेस्ट किया जा चुका था । अब इस सारे मामले को दबाना या निपटा पाना नामुमकिन था ।
आगे क्या होगा ?
कोई अनाड़ी भी आसानी से सही अंदाजा लगा सकता था । फारूख और दूसरे लोग जल्दी ही अपना–अपना रिकॉर्ड चालू कर देंगे और अंजाम होगा ।
करीमगंज में हसन भाइयों की हुक़ूमत खत्म ।
* * * * * *
हसन भाइयों और रतन मेहरा से जुड़े कई लोग पुलिस की हिरासत में अलग–अलग मौजूद थे । असगर अली, दयाशंकर और मीना रमानी ने अपनी ज़ुबान नहीं खोली थी । रतन मेहरा भी खामोश था लेकिन भड़का हुआ था । कड़ी निगरानी में रखा गया फारूख हसन किसी विक्षिप्त की तरह चीखता–चिल्लाता रहा था ।
वर्मा और एक और आदमी टेप्स और फोटुओं के ढेर ले आये थे । एस० आई० तोमर एक इंसपेक्टर और एक कानूनी सलाहकार के साथ मिलकर उनकी स्टडी कर रहे थे ।
फोटुओं में मौजूद कई लोगों के चेहरे पहचान लिये गये थे । वे सभी समाज के इज्जतदार और सम्पन्न ऐसे लोग थे जिनके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता था कि ऐसी गिरी हरकत करेंगे । हरबंस लाल जोशी और नारायण दास खुराना के अलावा कई और चर्चित और प्रतिष्ठित शो बिज़नेस, राजनीति वगैरा से जुड़े लोग भी थे । जिन्हें समझना चाहिये था कि मीना रमानी जो कुछ उनके साथ करती रही थी मौजूदा आधुनिक दौर में खुले दिमाग और आजाद ख्याल वाली भली लड़कियाँ भी वैसा नहीं किया करती थीं ।
तीसरा टेप सुना जा रहा था । टेप से जनाना और मर्दाना कामुक कराहें, सिसकारियां और नंगे शब्द सुनाई दे रहे थे ।
तभी वर्मा अंदर दाखिल हुआ । वह बहुत गुस्से में नजर आ रहा था ।
–"दयाशंकर का वकील आया है ।" वह बोला–"उसका कहना है कि इनमें एक टेप ऐसा भी है जिसे सुनकर हमारे छक्के छूट जायेंगे । उसका दावा है उस टेप में हमारे विभाग के एक अफसर और पुलिसकार बम विस्फोट की एक मैटेरियल विटनेस के जिस्मानी ताल्लुकात की कहानी है । तुमने अभी तक ऐसा कुछ सुना है ?
तोमर ने सर हिलाकर इंकार कर दिया ।
इंसपेक्टर ने टेप प्लेयर का स्विच ऑफ कर दिया ।
–"वह अपने क्लायंट से मिलना चाहता है ।" वर्मा ने कहा–"और मुझे उसको यहां लाकर टेप और अफसर की शिनाख़्त करानी है ।"
वर्मा वास्तव में बेहद क्रोधित था । उसका चेहरा तमतमा रहा था । दिमाग में भयानक विचार संघर्ष मचा था । वह बड़ी मुश्किल से खुद पर काबू पाये हुये था । पुलिस अफसरों की ऐसी बेवकूफ़ाना और घटिया हरकतों से पहले भी उसका साबिका पड़ चुका था और उन अफसरों को अपनी नौकरी गवाने के साथ–साथ कानूनी कार्रवाही का सामना करना पड़ा था । लेकिन रंजीत मलिक न तो बेवकूफ़ था न ही घटिया आदमी फिर भी इस वक्त उसका कैरियर दांव पर लगा था । दयाशंकर के वकील का सामना करने से पहले रंजीत को कड़ी फटकार लगाकर वर्मा उसका दिमाग दुरुस्त करना चाहता था ।
अब तक पुलिस विभाग हसन भाइयों के कई लोगों के नाम वारंट हासिल कर चुका था ।
इस सारे किस्से में वर्मा किसी हद तक खुद को दुबई वाले माफिया डान डिसूजा के आदमियों का शुक्रगुज़ार समझ रहा था कि उनके दबाव की वजह से हसन भाइयों का बंटाधार होने वाला था । पुलिस विभाग ने वैसे भी देर–सबेर अपने दम पर ही हसन भाइयों का पुलंदा बांध देना था । लेकिन दोनों गिरोहों के बीच छिड़ी ओपन गैंगवार ने दोनों को ही खत्म कर देना था ।
टेलीफोन की घण्टी बजी ।
दयाशंकर का वकील तैयार था । वर्मा ने उसे इंतजार करने के लिये कहकर रिसीवर वापस रखा और सिगार सुलगा लिया ।
* * * * * *
हसीना बेगम को अरेस्ट नहीं किया गया लेकिन नजमा गिरफ्तार कर ली गयी ।
हसन हाउस पर दो बावर्दी पुलिसमैन तैनात कर दिये गये ।
क्लबों से कई आदमियों को हिरासत में ले लिया गया और क्लब सील कर दिये गये ।
एकाउंटेंट रंगनाथन को उस इलाके के पुलिस स्टेशन में बुलाया गया । बीस मिनट बाद इन्कम टैक्स वाले उसके ऑफिस में पहुंचे और तमाम एकाउंट बुक्स अपने कब्जे में ले ली ।
प्रेस को गिरफ्तारियों की भनक मिल गयी । रिपोर्टर्स, फोटोग्राफर वगैरा हैडक्वार्टर्स आ पहुंचे । लेकिन वहां किसी ने भी अरेस्ट किये गये लोगों के नाम नहीं बताये । बस रमोला और चार्ली की हत्याओं की खबर देकर इतना बताया गया कि एक आदमी पुलिस जांच में मदद कर रहा था ।
तमाम सरगर्मियों के बावजूद अनवर हसन का अभी तक कोई पता नहीं लग पाया था ।
* * * * * *
हैडक्वार्टर्स में वर्मा के ऑफिस में ।
वर्मा के सामने खड़ा रंजीत मलिक उसके तमतमाये चेहरे और तनावपूर्ण वातावरण से समझ चुका था कोई भारी अनिष्ट होने वाला था ।
उसने मुस्कराने की कोशिश की ।
–"दांत दिखाने बंद करो और चुपचाप खड़े रहो ।" वर्मा बरस पड़ा–"तुमने अपना सर्वनाश खुद कर लिया है । कैरियर तो खत्म हो ही गया । नौकरी भी जाने वाली है ।"
–"जी ?"
"बको मत ! सवाल मत करो । सिर्फ जवाब दो ।"
–"राइट, सर ।"
–"इस लड़की रजनी राजदान के बारे में बताओ ।"
–"क्या बताऊं, सर ?"
–"सब कुछ । हर एक बात ।"
–"आप सब जानते हैं, सर ! वह मैटिरियल विटनेस है । इस बारे में मेरी रिपोर्ट आप देख चुके हैं ।"
–"मैं वो पूछ रहा हूं जो रिपोर्ट में नहीं है ।"
–"रिपोर्ट में सब...!"
–"नहीं ! यह ठीक है वह मैटिरियल विटनेस है लेकिन एक पुलिस अफसर होने के नाते तुम्हारा क्या फर्ज है ?"
–"मैं समझा नहीं, सर...!"
–"मैं कोई पहेली नहीं बुझा रहा हूँ । तुम्हारे और रजनी राजदान के बारे में बात कर रहा हूँ । तुम दोनों का क्या किस्सा है ?"
रंजीत के जहन में एक पल में सारी तस्वीर घूम गयी । बिस्तर में रजनी का नग्न शरीर बाथरूम में उसका अजीब व्यवहार और हंगामाखेज सहवास । वह सब समझ गया । मगर वर्मा की पूछताछ शक की बिना पर की जा रही लगी, इसलिये उसने कुछ भी कबूल न करना ही बेहतर समझा ।
–"कोई किस्सा नहीं है, सर ।"
–"तुम बेवकूफ़ हो, रंजीत ! अगर तुम नहीं बताओगे तो मुझे बताना पड़ेगा ।" वर्मा ने गहरी सांस ली–"ओ० के०, मैं ही बताता हूँ । इन्वेस्टीगेटिंग ऑफिसर की हैसियत से तुमने रजनी से पूछताछ की थी । ठीक है ?"
रंजीत का चेहरा भावहीन था ।
–"जी हां ।"
–"तुमने ढेरों सवाल उससे किये थे । तुम जानते हो वह एक अर्से तक राकेश मोहन की खास सहेली रही थी । दोनों के बीच जिस्मानी ताल्लुकात थे और राकेश से हसन भाइयों के सीधे संबंध थे । ठीक है ?
–"जी हां !"
–"अब तक की तुम्हारी पूछताछ से एक ही नतीजा निकलता है । तुम रजनी को इम्पोर्टेट मैटिरियल विटनेस मानते हो ?"
–"जी हां ! वह बहुत ही अहम विटनेस है ।"
–"तो फिर तुमने उसके साथ हमबिस्तरी क्यों की ? क्या तुम नहीं जानते इससे कितना बड़ा बवाल खड़ा हो सकता है ?"
रंजीत ने आगे आने के लिये कदम बढ़ाया ही था कि वर्मा ने रोक दिया–"चुपचाप खड़े रहो और ध्यान से मेरी बात सुनो ।" उसका स्वर कठोर हो गया–"अखबार वाले इस बात को ले उड़ेंगे । सैक्स स्कैंडल के तौर पर खूब मिर्च–मसाला लगाकर चटपटी सुर्खियों के साथ फ्रंटपेज पर छापेंगे । विभागीय इंक्वायरी में तुमसे पूछा जायेगा–रंजीत मलिक, इस विटनेस से तुम्हारी घनिष्ठता साबित हो चुकी है इसलिये सवाल पैदा होता है । क्या इस लड़की ने अपनी मर्जी से अपना जिस्म तुम्हें सौंपा था ? तुम्हें मुफ्त में ऐश करायी थी ? या इसके एवज में तुमसे रियायतें मांगी थीं ? तुम्हारी पोजीशन को इस्तेमाल किया था ? तुम्हें ख़रीदा था ?"
–"कौन कहता है मेरी इसके साथ...?"
–"कोई नहीं कहता । अभी कोई नहीं कह रहा है । लेकिन हसन ब्रदर्स एण्ड कम्पनी जानते हैं । क्योंकि उन्होंने तुम दोनों की आपसी बातें टेप कर ली थीं और वो टेप यहां हैडक्वार्टर्स में है और दयाशंकर का वकील इसकी शिनाख़्त करने वाला है ।"
रंजीत के पेट की समस्त मांसपेशियाँ एक साथ ऐंठकर रह गयीं ।
तो यह थी असलियत ।
–"मीना रमानी ने रजनी राजदान के बेडरूम में आकाशवाणी के स्टूडियो की तरह माइक फिट कर दिया था–साउंड टेपिंग के लिये । वर्मा का कथन जारी था–"और गुप्त कैमरा भी जरूर कहीं लगाया होगा । फोटोग्राफिक एवीडेंस के लिये । अब तुम्हें समझ आया । टेप और फोटो मिलकर तुम्हें पूरी तरह तबाह कर देंगे । मेरा एक सबसे अच्छा अफसर तरक्की की सीढ़ियां चढ़ने की बजाये विभाग के नाम पर कलंक साबित करके पतन के गहरे गड्ढे में धकेल दिया जायेगा । शोहरत पाने की बजाये बदनाम और फिर गुमनाम होकर रह जायेगा । मेरी तरह तुम भी जानते हो इसी विभाग में तुमसे हसद रखने वाले बहुत से लोग तुम्हारे इस अंजाम पर खुश होकर जश्न तक मनायेंगे ।"
रंजीत मलिक जानता था वर्मा का एक–एक लफ्ज सही था–कड़वा सच ! उसका यही अंजाम होगा । ऐसा पहले भी दूसरे लोगों के साथ हो चुका था । उसने गहरी सांस ली ।
–"मैं इस्तीफ़ा देने के लिये तैयार हूं, सर !" कठिन स्वर में बोला–"अभी और इसी वक्त !"
कमरे में एकाएक भारी खामोशी छा गयी ।
–"नहीं !" अंत में वर्मा निराश भाव से सर हिलाकर बड़े ही थके से अंदाज में बोला–"तुम्हारा इस्तीफ़ा मैं नहीं ले सकता । दयाशंकर का वकील यहीं है और मेरा इंतजार कर रहा है । फिलहाल मैंने उसे टाल दिया है और भी थोड़ी देर के लिये टाल सकता हूं...।"
–"लेकिन मेरे इस्तीफ़े का इससे क्या ताल्लुक है, सर ?"
–"बड़ा गहरा ताल्लुक है, रंजीत !" वर्मा कराहता–सा बोला–"अगर तुमने इस्तीफ़ा दिया तो मुझे भी देना पड़ेगा ।"
–"क्या ?" रंजीत को गहरा झटका लगा । घोर अविश्वासपूर्वक वर्मा को देखा–"दिस इज नानसेंस ! यह सरासर गलत है । गलती मेरी है...सजा भी मुझे ही मिलनी चाहिये ।"
–"बैठ जाओ ! मैं बताता हूं क्या गलत है और क्या नहीं ।"
रंजीत बैठ गया ।
–"मैं पच्चीस साल से पुलिस की नौकरी में हूं ।" वर्मा बोला–"और इस पूरे अर्से में हमेशा रूल बुक के मुताबिक काम किया है । नियमों का सख्ती से पालन करता रहा हूं । कानून की सीमा में रहकर कानून की सेवा की है । पता नहीं क्यों इस बार मैंने ऐसा नहीं किया । कानून से खिलवाड़ कर बैठा और अगर यह बात खुल गयी तो हम दोनों का ही बंटाधार हो जायेगा । इसलिये कान खोलकर सुनो । मैं दोहराऊंगा नहीं । सिर्फ एक बार बताऊंगा और फिर खुद भी हमेशा के लिये भूल जाऊँगा । फिर भी अगर यह बात खुल गयी तो मैं साफ मुकर जाऊँगा और अपने अंजाम को तुम खुद ही भुगतोगे ।" रंजीत ने कुछ कहना चाहा तो वर्मा ने हाथ उठाकर उसे रोक दिया–"अपने एस० आई० नरोत्तम पुरी को साथ लेकर मैं मीना रमानी के फ्लैट से टेप लाने गया था । तुम्हारी खुशकिस्मती थी कि किसी और के यहां मौजूद न होने और मामले की अहमियत की वजह से मुझे खुद जाना पड़ा । सारा फ्लैट छान मारा गया । जब हम वहां पहुंचे तो टेप रिकार्डर में एक टेप लगा था । जब पुरी बेडरूम मैं तलाशी लेने में बिजी था मैंने उस टेप को सुनना शुरू किया ।" उसकी नजरें रंजीत के चेहरे पर जम गयीं–"मैं मिनट भर से ज्यादा नहीं सुन पाया । जरूरत भी नहीं थी । इतना ही काफी था । तुम्हें शर्मिंदा होने की जरूरत नहीं है, मुझे ऐसी बातें सुनने का कभी शौक नहीं रहा...खैर, मैने फ़ौरन तुम्हारी आवाज़ पहचान ली । तुमने लड़की को रजनी कहकर पुकारा था । हो सकता है वो तुम्हारा इमोशनल रिएक्शन था । बहरहाल, जो भी रहा, मैंने सोचा उस बातचीत का कुछ हिस्सा हमारे फायदे के लिये था और क्योंकि तुम काबिल और होनहार अफसर हो, तुम्हें इस किस्म की बेवकूफी के लिये तबाह हो जाने देना मुझे नहीं ठीक लगा ।" रंजीत ने पुन: कुछ कहने के लिये मुंह खोला तो वर्मा ने दोबारा रोक दिया–"तुम्हारा धन्यवाद मुझे नहीं चाहिये क्योंकि जो मैंने किया उस पर कोई फख्र मुझे नहीं है । अब वो टेप क्लीन है । उस पर रिकार्डेड बातें मैंने डैमेज कर दी हैं । वो खाली है । मैंने खुद ऐसा किया है और सबको यह इम्प्रेशन दिया है कि दयाशंकर के वकील की इस दलील से मैं परेशान और खफा हूँ कि उसने हमारे किसी अफसर पर नाजायज और गैर कानूनी हरकत करने का बेहूदा इल्जाम लगाकर ऐसे किसी वाहियात एवीडेंस के होने की बात कही है । अगर तुम भी यही रवैया इस बारे में अपनाते हो तो मैं तुम्हारा शुक्रगुज़ार रहूंगा । क्योंकि इसमें मेरी गरदन भी फंसी है और यह हमारे विभाग की प्रतिष्ठा का प्रश्न है ।" वर्मा ने अपनी रिस्टवाच पर दृष्टिपात करके कहा–"अब जो मैं कहने वाला हूं वो न मेरा हुक्म है और न ही हिदायत । उसमें ऑफिशियल भी कुछ नहीं है । बस एक आदमी की दूसरे को नेक सलाह है । रजनी राजदान के फ्लैट में जाओ । जितने भी माइक्रोफोन वहां छिपे हैं सब निकाल लो और अगर कोई रिमोट कंट्रोल्ड फोटोग्राफिक कैमरा, लेंस वगैरा कुछ भी है तो उसे भी हटा दो । मैं दयाशंकर के वकील को और टाल दूँगा । लेकिन किसी भी सूरत में एक घण्टे से ज्यादा का वक्त तुम्हारे पास नहीं है । साथ ही एक और बात भी सुन लो, अगर इसमें कहीं कोई चूक हो जाती है...या तुम ऐसा करते पकड़े जाते हो तो सारी बला सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे सर ही मंढी जायेगी...अब यहां से दफा हो जाओ ।"
रंजीत मलिक चुपचाप उठकर बाहर निकल गया ।
अपनी कार में सवार होता वह सोच रहा था उसका और रजनी का भविष्य दांव पर लग चुका था ।
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