“तुम्हारी जान लेकर हमें कोई फायदा नहीं होगा।" पारसनाथ बोला।


मोना चौधरी ने हाथ में पकड़ रखा तिलस्मी खंजर उसकी तरफ बढ़ा दिया । 


"लो । अपना खंजर ले लो।"


उसने हाथ बढ़ाकर खंजर ले लिया। खंजर वापस मिलने पर उसके चेहरे पर उभरा गुस्सा कम होने लगा । उसने खंजर को अपनी कमर में कहीं अटका लिया ।


"लौट जाओ वापस पृथ्वी पर । मैंने तुम लोगों को जिंदा छोड़ दिया । अगर कोई दूसरा जान लेगा कि तुम लोग ताज लेना चाहते हो तो, वो तुम सबकी जान ले लेगा । वैसे हम जानते हैं कि मनुष्य जाति कुल देवी के पास तक नहीं पहुंच सकती । इसलिए तुम लोगों से हमें कोई खतरा नहीं है । जब तिलस्मी नगरी में पहुंचेंगे तो तुम लोगों को बंधक बनाकर, सेवक के कामों पर लगा लिया जाएगा । उसके बाद शायद तुम में से कोई भी पृथ्वी पर न लौट सके । मैं चलता हूं ।" 


कहने के साथ ही उसने आंखें बंद की । कुछ बुदबुदाया तो एकाएक ही वो पक्षी में बदलता चला गया, जो देखते ही देखते पेड़ों के बीच उड़ते हुए नजरों से ओझल हो गया।


मोना चौधरी और पारसनाथ खामोशी से खड़े थे । 


तभी बंगाली बोला ।


"खाना खा लो । बहुत मजेदार है । "


पाली और बंगाली खाना खा चुके थे ।


मोना चौधरी ने सिर हिलाया, सहमति से ।


"ताज को हासिल करना इतना आसान नहीं, जितना कि तुमने सोचा था।" पारसनाथ बोला--- "ताज की सुरक्षा की तरफ खास तौर से ध्यान दिया जाता है । वहां तिलस्मी पहरेदारी है।"


"तुम्हारा कहना सही है, लेकिन ताज को पाने की हर संभव कोशिश करनी है। इतना आगे बढ़ने के बाद पीछे नहीं हटा जा सकता। अगर हमें खतरे और दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा तो मत भूलो देवराज चौहान को भी करना पड़ेगा । वो भी पीछे हटने वाला नहीं । तिलस्मी पहरेदारी की कोई काट दी होगी।" मोना चौधरी ने कहा ।


"जब यहां से जादुई जातियां, पहरेदारी के तिलस्म को पार करके ताज तक नहीं पहुंच पा रही तो हम सामान्य इंसान तिलस्मी पहरेदारी का कैसे मुकाबला कर सकेंगे।"


मोना चौधरी गंभीर निगाहों से पारसनाथ को देखने लगी ।


"लेकिन पारसनाथ, तुम अच्छी तरह जानते हो कि उस ताज को पाना मेरे लिए कितना जरूरी है।"


मैंने वापस पलटने का तो नहीं कहा मोना चौधरी।"


"तो ?"


"जब तक हम तिलस्मी हथियारों से लैस नहीं होंगे, शायद कुछ न कर सकें।"


"और तिलस्मी हथियार हमें देगा कौन ?"


"इस बारे में अब मैं क्या कह सकता हूं । यहां पर तो हमारी स्थिति उस युद्ध की तरह है जहां एक तरफ आधुनिक हथियारों से लैस फौज खड़ी हो और दूसरी तरफ हम झंडे-भाले लिए खड़े हों, ऐसे में जाहिर है कि हार हमारी ही होगी। हम ताज तक नहीं पहुंच सकेंगे।" 


तभी पाली कह उठा ।


"खाना खा लो।"


पाली और बंगाली उठ खड़े हुए। थे ।


मोना चौधरी और पारसनाथ नीचे बैठकर खाना खाने लगे। 


मोना चौधरी के चेहरे पर सोच के भाव थे । 


पारसनाथ ने ठीक बात कही थी, लेकिन वो ये बात भी जानती थी। कि उन्हें कहीं से भी तिलस्मी हथियार मिलने वाले नहीं ।


खाने के दौरान मोना चौधरी का दिमाग सोचो में उलझा रहा ।


पाली और बंगाली ने सिगरेट सुलगा ली और बातें करते हुए इधर-उधर टहलने लगे । टहलते टहलते वे दोनों कुछ आगे बढ़ आए थे ।


"मैं तो सोचता हूं, खामख्वाह ही इन लोगों के साथ आ गया ।" बंगाली बोला--- "अच्छ भला मुंबई में अपने कामों में व्यस्त था । शंकर भाई ने जहां अपनी खजाने जैसी दौलत रख छोड़ी थी, उस जगह के नक्शे को पाने के चक्कर में, इन लोगों के फेर में आ गया । मेरा तो दिमाग खराब हो गया था यहां तक इनके साथ आ गया। मैंने तो सोचा था कि आना-जाना ही होगा। लेकिन जाने का तो कोई रास्ता ही नहीं । महाजन को अजगर निगल कर गायब हो गया। सोचता हूं तो डर लगता है । "


पाली की गर्दन सहमति से हिली ।


"यही सब बातें मेरे दिमाग में भी घूम रही हैं ।" पाली ने गहरी सांस लेकर कहा । 


"क्या ?" 


"यही कि इनके साथ मायावी लोक में आकर गलती की।"


"तुम भी वापस जाना चाहते हो ?"


"हां । यहां तो जान गंवाने के अलावा और कुछ है नहीं। यूं ही मरने का क्या फायदा । पैसा अभी तक एक नहीं मिला और कंधे में गोली आ लगी थी। यहां तक भी खैर थी । मेरा दिमाग खराब हो गया था तो यहां तक चला आया ।" पाली ने उखड़े स्वर में कहा --- "दुश्मनी देवराज चौहान और मोना चौधरी की । मुझे क्या लेना-देना इन दोनों के मामले से।"


"यही तो मैं कहता हूं ।" बंगाली को जैसे अपने विचारों वाला साथी मिल गया--- "अगर तुम मेरे से सहमत हो तो, चल दोनों बात करते हैं ?"


"क्या बात ?"


"इनसे कहते हैं कि हमें वापस भेज दें।"


"ये हमें कैसे वापस भेज सकते हैं ?" पाली ने उसे देखा ।


"किसी तरह उस बाबा को बुलाकर हमें वापस भेजने का प्रबंध कर दे । हो सकता है कोई रास्ता हो इनके पास बाबा को बुलाने का ।"


"तू बोल मोना चौधरी को ।"


"मैं---? और तू नहीं कहेगा क्या ?"


मैं तेरे पास खड़ा सिर हिलाता रहूंगा।" पाली ने फौरन कहा ।


बंगाली ने उसे घूरा ।


"मतलब कि तू यहां से वापस नहीं जाना चाहता।"


"जाना चाहता हूं । तेरे से पहले जाना चाहता हूं । वहां मेरी माशूका है, कई दिन से उससे मिला नहीं । मेरे बिना उसका हाल बेहाल हो रहा होगा । वो...।"


"तेरे बिना ।"


"हां ।"


"पचास बरस का तू है | क्या है तेरे में ? "


"सब कुछ है और वो कौन सी बीस बरस की है । हाल बेहाल तो उसका इसलिए हो रहा होगा कि उसका खर्चा पानी मेरे ही दम पर चलता है । माल खत्म हो गया होगा उसका ।" 


"बोल । मोना चौधरी से करें बात । साथ है तू ?" बंगाली ने कहा।


"बिल्कुल साथ हूं । गर्दन हिलाता रहूंगा । संभलकर बात करना । कहीं मोना चौधरी नाराज न हो जाए। इस वक्त तो वैसे भी उखड़ी-उखड़ी।"


"पाली।" बंगाली के होठों से अजीब सा स्वर निकला।


"हां ।


"वो देख, बाईं तरफ ।" बंगाली के स्वर में मौजूद अजीबपन में बढ़ोतरी हो गई । पाली ने उधर ही देखा । फिर हैरानी से उसकी आंखें फैल गई।


पच्चीस-छब्बीस बरस की बहुत ही खूबसूरत युवती थी वो। स्कर्ट पहनी हुई थी । परंतु वो स्कर्ट घुटनों से बहुत ऊपर थी । स्लीव लैस टॉप पहन रखा था। जिसका गला इस हद तक खुला था कि गर्दन आगे करके झांकने की जरूरत ही नहीं थी। बिना कोशिश किए ही सब कुछ नजर आ रहा था । उसके कटे बाल विज्ञापन फिल्म की हीरोइन की तरह कंधे पर झूल रहे थे । बहुत ही खूबसूरत आंखें । गोरा रंग । सुर्ख लिपस्टिक इसकी खूबसूरती कयामत ढाने वाले अंदाज़ में चमक रही थी । दोनों को देखते हुए उसके होठों पर मुस्कान थी । 


"पाली, ये तो...।" उलझन और हैरानी में बंगाली ने कहना चाहा। 


"तू बाद में, पहले मैं।" पाली ने जल्दी से कहा । 


"क्या मतलब ?"


"सीधी सी बात का क्या मतलब होता है। मैं पहले उसके...।"


"वो बाद की बात है। बंगाली ने कहा--- "सवाल ये आता है कि ये यहां आई कैसे और...।" 


"जैसे भी आई हो, हमें क्या ।" पाली के सिर पर उसका भूत सवार हो चुका था --- "इसे भी कोई बाबा यहां ले आया होगा। मैं इससे बात करता हूं । तू इधर ही रहना।"


"लेकिन...।"


तब तक पाली उस युवती की तरफ बढ़ चुका था । उसे अपनी तरफ बढ़ते पाकर युवती और भी खुलकर मुस्कुराई । 


"हैलो।" पाली के पास पहुंचने पर वो कह उठी--- "कोई तो मिला ।" 


"हैलो।" पाली पास पहुंचकर मीठे ढंग से मुस्कुराया--- 


"तुम यहां कैसे ?" 


"मैं खुद नहीं जानती । रात घर पर सोई थी। सुबह आंख खुली तो खुद को यहां पाया । सुबह से ही जंगल में भटक रही हूं। कोई मिल ही नहीं रहा । अब तुम और तुम्हारा साथ ही देखने को मिले तो चैन मिला । ये कौन सी जगह है ?" 


"तुम कौन सी जगह की रहने वाली हो ।" पाली की निगाह टॉप की खुले गले पर थी ।


"पहले तुम बताओ।" वो इठलाई ।


"मुंबई का ।"


"ओह। मैं भी तो वहीं की हूं।"


"लेकिन यहां आकर तुम फंस गई हो।" पाली ने गहरी सांस ली।


"क्यों ?"


"यहां से बाहर जाने का कोई रास्ता नहीं। मैं और मेरा साथी भी, कब से, जंगल से बाहर का रास्ता ढूंढ रहे हैं। वैसे मैं तुम्हें जंगल से बाहर निकाल सकता हूं।" 


"कैसे ?"


"जरा उधर आओ।" पाली ने बरगद के पेड़ की तरफ इशारा किया ।


"उधर क्या है।"


"आओ तो।" पाली ने उसकी कलाई पकड़ी ।


"दोनों बरगद के पेड़ के पास पहुंचे।


"अब बोलो ---।"


"तुम बहुत खूबसूरत हो ।"


"ये बात कहने के लिए बरगद के पेड़ की क्या जरूरत थी।" युवती मुस्कुराई । "


"कुछ देर बाद बरगद के पेड़ की जरूरत पड़ेगी।" पाली ने उसे अपनी तरफ खींचा । 


"मत करो । तुम्हारा दोस्त देख रहा है।" वो जल्दी से बोली। 


"चिंता मत करो । बरगद के पेड़ के पीछे से कुछ भी नजर नहीं आएगा । अभी उससे जो दिखता है, देख लेने दो । वो भी गर्म -सर्द हो जाएगा।" पाली ने उसे बांहों के घेरे में कस लिया । 


"ये क्या कर रहे हो ?" 


"तुम्हें अच्छा नहीं लगता क्या ?" पाली ने उसे अपने बदन के साथ सटा लिया । 


"लगता है।" वो हंसी ।


"तो तुम भी मुझे बांहों में इसी तरह कस लो । आह, कितना मजा आ रहा है ।" युवती ने उसे बांहों के बीच कस लिया।


"और जोर से।"


युवती की बाहें और भी जोर से कमर से कस गई ।


"चलें, बरगद के पीछे ।"


"मैं तुम्हें कहीं और ले चलती हूं।"


"कहां ?" पाली का स्वर जैसे नशे में डूबा हो ।


"कहीं और जंगल से दूर । तुम कर रहे थे ना कि जंगल में भटक रहे हो।"


"हां । तुम भी तो भटक रही हो ।"


"मुझे तो मनुष्य खुशबू आ गई थी और मनुष्य मुझे बहुत पसंद है । इसलिए तुम्हें लेने चली आई ।" युवती की आवाज में भरपूर मीठापन था ।


पाली के मस्तिष्क को तीव्र झटका लगा । उसे फौरन युवती को देखा ।


युवती उसी अंदाज मुस्कुराती, उसे देख रही थी ।


पाली के चेहरे पर हड़बड़ाहट के भाव उभरे । उसने कुछ कहने के लिए मुंह खोला। लेकिन बंगाली ने जो देखा, वो उसके पांवों के नीचे से जमीन सरका देने के लिए काफी था । जैसे पर्दे से दृश्य गायब हो गया हो । खाली पर्दा ही बचा हो । कुछ ऐसा ही वह हुआ था । बंगाली के देखते ही देखते युवती पाली सहित एकाएक गायब हो गई ।


बंगाली अविश्वास भरी निगाहों से उस तरफ देखता रहा । फिर उसे होश आया । 


"मोना चौधरी । पारसनाथ । मोना चौधरी । पारसनाथ ।" बंगाली गला फाड़कर चिल्लाया।


दो पल भी न बीते कि कदमों की आहटें कानों में पड़ी।


मोना चौधरी पारसनाथ पास पहुंचे ।


"क्या हुआ ?" पारसनाथ ने पूछा । 


मोना चौधरी की निगाह आसपास फिरी ।


"पाली कहां है ?"


तभी पारसनाथ को भी एहसास हुआ कि पाली कहीं नजर नहीं आ रहा है । 


"वो... वो पाली को ले गई । "


"वो कौन ?" मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ी ।


"वो लड़की । बहुत खूबसूरत थी। दोनों चिपके खड़े थे कि अचानक गायब हो गए |" 


मोना चौधरी और पारसनाथ की नजरें मिली ।


"तुमने पाली को उसके पास जाने क्यों दिया।" मोना चौधरी दांत भींचकर कह उठी । 


"क्या मतलब ?" बंगाली ने उसे देखा ।


"क्या तुम्हें अभी तक मालूम नहीं हुआ यहां इंसान नाम की कोई चीज नहीं है । ये मायावी नगरी है । हर चीज जादू के जोर पर बनती और बिगड़ती है ।" मोना चौधरी ने सख्त स्वर में कहा ।


बंगाली सूखे होठों पर जीभ फेर कर रह गया।


"वो लड़की असली नहीं थी । मायावी थी। जैसे वो अजगर । इसका मतलब मायावी नगरी वाले हम लोगों के आने के बारे में जान चुके ' और जहां भी मौका मिलता, किसी न किसी बहाने जो हाथ आता है, उसे कैद करके ले जाते हैं ।" मोना चौधरी की आवाज में गुस्सा था- "वो हमें इकठ्ठा नहीं रहने दे रहे । एक-एक करके, हमारी संख्या कम करके, हमें कमजोर कर रहे हैं।"


"परंतु मायावी लोग चाहें तो हम पर एक साथ हमला करके, हमें पकड़ या मार सकते हैं।" पारसनाथ ने कहा--- "फिर वो ऐसा क्यों नहीं कर रहे।"


"इस बारे में मैं स्पष्ट तौर पर कुछ नहीं कह सकती । सीधे-सीधे हमें पकड़ना या हम पर हमला न करने की कोई खास ही वजह होगी।" मोना चौधरी ने कहा ।


बंगाली के चेहरे पर खौफ के साए नाच रहे थे ।


"मैं-मैं वापस जाना चाहता हूं।" उसके होठों से हड़बड़ाया सा स्वर निकला ।


"खामोश रहो।" मोना चौधरी गुर्रा उठी--- "अक्ल का इस्तेमाल करो तो समझ जाओगे कि यहां से इस तरह वापस नहीं जाया जा सकता । हमारी जिंदगी या मौत उस ताज के साथ जुड़ी चुकी है, जिसे तिलस्मी नगरी के लोग कुलदेवी का ताज कहते हैं।"


"म-मुझे नहीं चाहिए ताज । मैं...।"


"तुम्हें नहीं मुझे चाहिए। मोना चौधरी कठोर स्वर में कह उठी--- "या तो पहले ही नहीं आना था हमारे साथ, अगर फिर भी वापस जाना चाहते हो तो जाओ । पलट जाओ यहां से । लेकिन इतना याद रखो कि ये पाताल नगरी है । यहां से पृथ्वी पर जाने का कोई रास्ता नहीं है। अगर रास्ता है तो हम नहीं जानते । फकीर बाबा ने अपनी शक्ति के दम पर हमें यहां पहुंचा दिया है । सीधी-सी बात तो यह है कि हमारे साथ ही रहना तुम्हारी मजबूरी है। साथ चलना हो तो चलो। नहीं तो तुम्हारी इच्छा । आओ पारसनाथ ।"


मोना चौधरी और पारसनाथ आगे बढ़ गए।


बंगाली घबराया-सा जल्दी से उनके साथ आ मिला ।


"अब इस बात का ध्यान रखना कि रास्ते में मिलने वाली किसी जगह नहीं फंसना है। किसी भी चीज को छूना नहीं। शायद इस तरह हम सुरक्षित रह सकें ।" वे तीनों तेजी से पुनः आगे बढ़ते जा रहे थे ।


***