चर्च में दाखिल होते ही रंजीत मलिक की पुरानी यादें ताजा हो आयीं । वह अपनी दिवंगत मां के साथ यहां आया करता था । फादर अब्राहम को मां–बेटे से विशेष स्नेह था ।



वह देर तक यादों में जकड़ा खड़ा रहा । फिर उन्हें दिमाग से झटककर सच्चे मन से प्रार्थना करके बाहर आ गया ।



फादर अब्राहम चर्च की मुख्य इमारत के पीछे तीन कमरों के मकान में रहते थे ।



डोरबैल के जवाब में दरवाज़ा स्वयं फादर ने खोला ।



वही ऊंचा इकहरा जिस्म । स्नेह, दया और ममतामय मुस्कराता चेहरा । तब्दीली के नाम पर सिर्फ सर के सफेद बाल और कम हो गये थे ।



सम्मोहित से रंजीत ने सम्मानपूर्वक अभिवादन किया ।



–"रंजीत !" सुखद आश्चर्य से भरे फादर ने प्रत्याभिवादन के पश्चात् चिर–परिचित मृदु स्वर में कहा–"माई ब्वॉय ।"



–"सॉरी, फादर ! आपको इत्तिला दिये बगैर अचानक चला आया ।"



–"नो प्रॉब्लम, माई डीयर ब्वॉय "आओ, अंदर आओ ।"



रंजीत, फादर के पीछे स्टडी में आ गया ।



सादगी और सुरुचिपूर्ण ढंग से सजा यह कमरा भी बिल्कुल नहीं बदला था । वही फर्नीचर, बुकरेक्स में सजी धार्मिक पुस्तकें । राइटिंग डेस्क पर रखी पत्रिकाएँ और लेखन सामग्री ।



–"बैठो रंजीत ।"



रंजीत बैठ गया ।



–"मुदत बाद अचानक मेरी याद कैसे आ गयी ?" फादर ने पूछा ।



रंजीत एकाएक जवाब नहीं दे सका ।



–"तुम्हारी नौकरी की मसरूफियत और मजबूरी को मैं समझता हूं माई ब्वॉय ।"



–"आप मुझे मतलबी समझेंगे, फादर ।"



–"नो, नेवर, माई ब्वॉय ।"



–"मैं फोन भी कर सकता था...।"



–"मुझे खुशी है फोन करने की बजाये तुम खुद आ गये ।"



–"सभी पुलिस वालों की तरह मैं भी इस वक्त आपसे थोड़ी पूछताछ करने ही आया हूं ।"



–"मेरे लिये तुम सिर्फ पुलिस वाले नहीं हो । बोलो, क्या पूछना चाहते हो ?"



–"माफ करना, फादर ! मैं आपको वजह नहीं बता सकूँगा ।"



–"कोई बात नहीं ।"



–"अगले चंदेक रोज में क्या करीमगंज में कोई ऐसी धार्मिक मीटिंग, या फंक्शन होने वाला है जिसमें विदेश...खासतौर पर दुबई से लोग हिस्सा लेने आ रहे हैं ? मेरा मतलब है कोई पूरी तरह ऑर्गेनाइज्ड समारोह ।"



–"वर्ल्ड काउंसिल ऑन कैथोलिक कम्युनिकेशन ! तुम आजकल अपनी मंथली मैगजीन कैथोलिक हैराल्ड नहीं पढ़ रहे लगते ?"



–"सॉरी, फादर...मुझे...!"



–"अभी वजह जानना मैं नहीं चाहता । चाहो तो बाद में बता देना । दरअसल यह दुनिया के तमाम कैथोलिक को एक साथ जोड़ने का प्रयास है । हर एक मुल्क में ऐसे समारोह होते रहते हैं । इस दफा सबको इण्डिया बुलाया जा रहा है । इसमें दुनिया के लगभग सभी शहरों से ईसाई हिस्सा लेने आते हैं । प्रवचन होते हैं । आपस में विचारों का आदान–प्रदान करते हैं । ज्यादातर चार्टर्ड फ्लाइट से आते हैं जिसकी बुकिंग आर्गेनाइजिंग कमेटी के जरिये होती है । क्योंकि यह सामुहिक समारोह है, इसलिये सभी कैथोलिक चर्च के द्वारा चंद से इसका इंतजाम करते हैं ।" फादर ने अपनी रिस्टवाच पर नजर डाली–"आज रात लोग आने शुरू हो जायेंगे । एयरपोर्ट पर उन्हें आयोजकों के आदमी रिसीव करेंगे । कल दिन में कैथेड्रल में सामुहिक प्रार्थना होगी । फिर तीन रोज लैक्चर, ग्रुप डिस्कशन, साइट सीईंग टूर्स वगैरा का प्रोग्राम है ।"



–"चार्टर्ड फ्लाइट्स के बारे में सूचना कहां से मिल सकती है ?"



–"सैंट्रल आर्गेनाइजिंग ऑफिस से !"



–"वो कहां है ?"



फादर ने लोकेशन बताकर फोन नम्बर्स भी नोट करा दिये ।



–"तुम कल मास में आओगे, रंजीत ?"



–"आप पहुँचेंगे ?"



–"मुझ बूढ़े को आयोजकों ने लोगों को रिसीव करने की ज़िम्मेदारी सौंपी है । तुम आओगे न ?"



–"हां, फादर !"



–"मैं अभी भी तुम्हारे लिये प्रार्थना करता हूं ।"



–"मुझे अभी भी इसकी जरूरत है, फादर !"



–"मैं जानता हूं, तुम जरूर आओगे ।"



कुछ देर और बातें करने के बाद रंजीत ने फादर से विदा ले ली ।



* * * * * *



टेलीफोन की घण्टी की आवाज़ सुनते ही हसीना बेगम ने उपकरण की ओर हाथ बढ़ा दिया ।



हालांकि अनवर नीचे था लेकिन हसीना के हाथ ने स्वयंमेव रिसीवर उठा लिया ।



ठीक उसी पल अनवर ने भी रिसीवर उठाया ।



फोनकर्ता फारूख था ।



–"तुम कहां गायब हो गये थे, फारूख ?" अनवर का स्वर उत्तेजित था–"हम सब तुम्हारे लिये फिक्रमंद हैं । अम्मी बहुत नाराज़ और परेशान हैं ।"



–"मुझे कुछ जरूरी काम करने थे, अनवर !"



–"और हम समझ रहे थे तुम विस्फोट की चपेट में आ गये...!"



–"नहीं, उसमें मुजफ्फर बेग मारा गया और माला भी ।"



–"तुम कहां हो ?"



–"अपने सबसे शानदार अपार्टमेंट में ।"



हसीना बेगम को भी उस ठिकाने की जानकारी थी । वह समझ गयी फारूख क्लब की किसी खास छोकरी के साथ वहां था ।



–"वहां कौन है तुम्हारे पास ?" अनवर ने पूछा ।



–"पैराडाइज क्लब की क्लॉक रूम गर्ल को मैंने यहाँ रखा था ।"



–"यह जगह उस लड़की की औकात से ज्यादा ऊँची है ।"



–"मेरे ख्याल से भी थी ।"



हसीना के मुकाबले में अनवर ज्यादा जल्दी ताड़ गया ।



–"थी से मतलब ?"



–"मुझे गंदगी से जान छुड़ानी है । कालका प्रसाद को भेज दो ।"



–"क्या मतलब ?" अनवर के स्वर में व्याकुलता थी ।



–"मुझे अपने कुछ कपड़े चाहियें ।"



अनवर ने राहत महसूस की ।



–"ओह ।"



–"उसे मेरे कपड़े लेकर भेज दो । दो–एक काम और भी कराने हैं ।"



अनवर पर पुन: व्याकुलता सवार हो गयी ।



हसीना समझ गयी । जिस तरह अनवर को अब तक समझ जाना चाहिये था । उन दोनों को मुद्दत से इसी बात का डर था । फारूख हसन असल में पागल था ।



–"कैसे काम, फारूख ?" अनवर ने नर्मी से पूछा ।



–"मुझे यह करना पड़ा । मेरे दिमाग में घुमड़ती चीजों ने मुझे मजबूर कर दिया था । लड़की का तो यह अंजाम होना ही था । उसी के चक्कर में चार्ली को भी जाना पड़ा । उससे निजात पाकर अब मैं खुद को बिल्कुल तरोताजा महसूस कर रहा हूं...!"



–"या मेरे मौला !" अनवर ने गहरी सांस ली ।



–"कपड़े भिजवाना मत भूल जाना, अनवर !"



–"ठीक है ! तुम वहीं ठहरो । फोन से दूर रहना और कालका प्रसाद के अलावा किसी और के लिये दरवाज़ा मत खोलना । वह आधा घण्टे तक पहुंच जायेगा ।"



अनवर रिसीवर रखते ही ऊंची आवाज़ में कालका प्रसाद को पुकारने लगा ।



* * * * * *



हसीना ने प्लंजर दबाकर सम्बन्ध विच्छेद किया और पुनः रिसीवर उठाकर पुलिस फ्लाइंग स्क्वाड का नम्बर डायल करके अपार्टमेंट का पता बताते हुये फारूख के बारे में बता दिया ।



इन दोनों की वजह से वह बहुत मुसीबतें उठा चुकी थी । शौहर, बहन और जीजा को एक साथ गँवाने के बाद बेचारा परवेज को भी गवां बैठी...उसकी पूरी जिंदगी तबाह हो चुकी थी...अब इसे रोकना निहायत जरूरी था ।



* * * * * *



उस्मान लंगड़ा ने टेलीफोन की घण्टी बजते ही रिसीवर उठा लिया ।



फोनकर्ता एक खबरी था । उसने बताया मीना रमानी के फ्लैट से टेप चुराने की कोशिश करता रतन मेहरा पकड़ा गया ।



उस्मान ने हसन हाउस का नम्बर ट्राई किया । वो एंगेज था । इसलिये उसने सीधा दयाशंकर के वकील को फोन करके मैसेज छोड़ दिया । वकील जो ठीक समझेगा कर लेगा ।



उस्मान लंगडा अब चाह रहा था मोतीलाल जल्दी से फोन करके उसे जानकारी दे दे ।



* * * * * *



रंजीत मलिक नये हैडक्वार्टर्स पहुंचा ।



एस० पी० वर्मा के पास उस वक्त दो वर्दीधारी इंसपेक्टर मौजूद थे । वे हैडक्वार्टर्स आप्रेशन्स रूम से वहां आये थे लाइजन वर्क के लिये ।



–"आओ, रंजीत !" वर्मा बोला–"हम जो चाहते हैं, मिल गया ?"



–"लगता तो है, सर !" रंजीत ने कहा और संभावनाओं के बारे में बताकर वर्ल्ड काउंसिल ऑन कैथोलिक कम्युनिकेशन के सेंट्रल ऑर्गेनाइजिंग ऑफिस का पता और फोन नम्बर नोट करा दिये ।



–"फ्लाइट्स का पता आसानी से लग जायेगा । डिसूजा की फोटुएं भी हमारे पास हैं । तुम्हारे ख्याल से वह डेलीगेट्स के साथ ही रहेगा या अचानक कहीं गोल हो जायेगा ?"



–"इसकी जानकारी हमें मिल जायेगी ।" रंजीत ने कहा और मन ही मन यह सोच मुस्कराया कि फादर अब्राहम से ज्यादा बढ़िया निगरानी करने वाला कोई नहीं मिलेगा–"मैं इंतजाम करा दूँगा ।"



–"ओ० के० ! अब मैं खुद इस मामले को हैंडल करुंगा । डिसूजा की फ्लाइट का पता लगाने के बाद बाकी प्लानिंग कर ली जायेगी । रंजीत तुम सुभाष मार्ग राकेश मोहन की सहेली को ले आओ । हमें उसके लिखित बयान की जरूरत पड़ेगी । बाकी लोगों में से कोई भी सुर में नहीं बोल रहा है । सब खामोश हैं । उस लड़की का बयान और थोड़ी सख्ती उनके रिकार्ड चालू करा देगी । गेम शुरू हो जायेगा ।"



–"वही पुराना डबल गेम चलेगा ?"



–"हाँ ।"



दोनों बावर्दी इंसपेक्टर मुस्करा दिये ।



–"तुम दोनों चार्टर फ्लाइट्स के मामले में मेरा हाथ बंटाओगे ।" वर्मा ने उनसे कहा–"टेलीफोन ऑर्गेनाइजिग ऑफ़िस से पूछताछ करो और...!"



तभी लाल टेलीफोन की घण्टी बज उठी ।



वर्मा ने बात अधूरी छोड़कर रिसीवर उठा लिया ।



उसने कुछेक सेकेंड ध्यान से सुना । फिर दो बार उसके मुंह से निकला–"हे भगवान !" फिर पूछा–"कहां ?" कुछ और सुनने के बाद बोला–"ओ० के०, उसे हैडक्वार्टर्स ले आओ । रतन मेहरा भी वहीं है । किसी को कुछ मत बताना । प्रेस या टीवी वालों को इसकी भनक भी नहीं पड़नी चाहिये । मैं कांटेक्ट बनाये रखूंगा । इस दफा उसका पुलंदा बंध जायेगा । उसके भाई को भी अरेस्ट कर लो । उनकी कहानी खत्म हो जायेगी ।"



उसने रिसीवर वापस रख दिया । उसका चेहरा तमतमा रहा था ।



–"क्या हुआ ?" रंजीत ने पूछा ।



–"बीस मिनट पहले किसी औरत ने गुमनाम फोन करके पुलिस को टिप दी थी । पुलिस ने फौरन कार्यवाही की थी । औरत द्वारा बताये गये एड्रेस पर पहुंचे । वहां शानदार अपार्टमेंट में दो लाशें और नंगा फारूख हसन मिले । एक मृतक चार्ली था–हसन भाइयों का प्यादा और दूसरी लाश जवान लड़की की है । लड़की के साथ हर तरह का कुकर्म करने के बाद उसे गला घोंटकर मार डाला । फिर कांच और क्रॉकरी के टुकड़ों से उसका निर्जीव शरीर बुरी तरह चीर डाला गया । फारूख को हिरासत में ले लिया गया ।



दोनों बावर्दी इंसपेक्टरों में से एक चिंतित नजर आने लगा, उसे सब 'मोतीलाल' कहकर पुकारते थे ।