मोना चौधरी, पारसनाथ, पाली और बंगाली को आगे बढ़ते-बढ़ते दोपहर हो चुकी थी । थकान से ज्यादा, भूख उन्हें तंग कर रही थी । परंतु अभी तक कोई भी फल वाला वृक्ष नजर नहीं आया था । सारा जंगल जंगली पेड़ों से भरा पड़ा था । जंगल में अभी तक कोई जानवर भी नजर नहीं आया था ।
"यह जंगल तो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा ।" पाली आखिरकार कह उठा-
"कहीं तो खत्म होगा ही।"
"मुझे भूख लग रही है।" बंगाली कह उठा--- "खाने को कुछ भी नजर नहीं आ रहा।"
"चलते रहो । भूख पर काबू रखो । कहीं-न-कहीं कुछ तो मिलेगा ।" मोना चौधरी बोली--- "हम ऐसे रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं, जहां हो सकता है दो-चार दिन भी खाने को कुछ न मिले । भूख पर काबू पाने की आदत डालो । दिमाग में ये रखो कि आगे खाने को कुछ भी नहीं है । "
बंगाली गहरी सांस लेकर रह गया ।
मोना चौधरी ठिठकी ।
पारसनाथ और पाली बंगाली भी ठिठका।
मोना चौधरी की निगाह सामने नजर आ रहे पेड़ पर टिक चुकी थी। जिसके तने पर आधी तलवार के साइज का खंजर धंसा हुआ था।
"ये खंजर पेड़ के तने में कैसे आया ?" मोना चौधरी शब्दों को चबाकर बोली ।
"हो सकता है कभी किसी ने फेंका हो और तने में धंस गया हो ।" पारसनाथ खंजर को देखता कह उठा--- "देखने में ऐसा लगता है जैसे मुद्दत से ये धंसा पड़ा हो । "
"खंजर का दस्ता बहुत खूबसूरत है।" बंगाली कह उठा--
"उस पर शायद हीरे जड़े हैं। " मोना चौधरी ने आसपास देखा ।
दूर-दूर तक कोई नजर नहीं आया ।
"इस तरह पेड़ के तने में खंजर का धंसा होना, हैरत की बात है।" पाली के होठों से निकला ।
दांत भींचे मोना चौधरी आगे बढ़ी और तने में धंसे खंजर का दस्ता पकड़ लिया ।
"ठहरो।" पारसनाथ जल्दी से बोला ।
मोना चौधरी ने गर्दन घुमा कर उसे देखा ।
"खंजर को ऐसे ही रहने दो । यह मायावी लोगों की कोई चाल हो सकती है ।" पारसनाथ बोला।
मोना चौधरी के होठों से मौत से भरी मुस्कान उभरी ।
"जानती हूं । लेकिन इन मायावी चालों से टकराये बिना, यहां गुजारा ही नहीं है ।" कहने के साथ ही दांत भींचे मोना चौधरी ने खंजर के दस्ते को खींचा ।
परंतु खंजर बाहर नहीं निकला ।
मोना चौधरी ने दोनों हाथों से खंजर को पकड़ा और उसे खींचने में पूरी ताकत लगा दी । जब वो नहीं निकला तो दोनों हाथों से खंजर को थामे, मोना चौधरी उछली और दोनों पांव के पेड़ के तने पर टिकाकर, दबाव डालकर खंजर को निकालने के लिए पुरजोर लगा दिया ।
अगले ही पल खंजर निकला और मोना चौधरी खंजर के साथ ही जमीन पर नीचे लुढ़ती चली गई। फिर फौरन ही संभली । परंतु खड़ी हो गई । आधी तलवार के साइज इंच चौड़ा, दोनों तरफ पैनी धार वाला, बहुत तेज खंजर था वो।
"वो---पेड़ ।" पाली के होठों से डरा-सा स्वर निकला ।
सबकी निगाह फौरन पेड़ की तरफ गई ।
पेड़ की हालत देखते ही, वो कई कदम पीछे हट गए।
जड़ से लेकर ऊपर तक पेड़ में जोरों का कंपन हो रहा था। इंसान की तरह पेड़ को भी जैसे कंपकंपी छिड़ गई थी। कंपन के साथ ही वो विशाल पेड़ कभी छोटा होता तो कभी बड़ा हो जाता । कभी उसका आकार फैल जाता तो कभी सिमट जाता ।
"ये क्या हो रहा है ?" पाली के होठों से सूखा-सा स्वर निकला ।
"यह पेड़ कोई मायावी ताकत है ।" मोना चौधरी खंजर थामे भिंचे दांतो से बोली । "अब क्या होगा, इस पेड़ को क्या हो रहा है।" बंगाली की आवाज में भी घबराहट थी। कोई कुछ नहीं बोला ।
सबकी निगाहें कांपते पेड़ पर थी ।
और फिर देखते ही देखते पेड़ का आकार बदलने लगा। वो सिमटने लगा । चमकते-चमकते वो आठ फीट का हो गया। पेड़ की टहनियां शाखाएं सिमट गई ।
सबके दिल धड़क रहे थे कि अब क्या होगा ?
थे अब पेड़ तने के रूप में मात्र, नजर आ रहा था । टहनियां पत्ते सब गायब हो चुके थे । दूसरे ही पल फिर उसका रूप बदला और बचा हुआ तना देखते ही देखते इंसान के रूप में आता चला गया।
आठ फीट ऊंचा, चौड़े आकार प्रकार वाला वो इंसान लग रहा था । शरीर पर कोई कपड़ा सा लपेट रखा था । पांव छोटे-मोटे मोटे और मैले-भद्दे से लग रहे थे । उसका नाक जरूरत से ज्यादा कुछ ज्यादा ही मोटा और भद्दा सा नजर आ रहा था । रंग स्याह काला था । कानों में अजीब सी धातु की बालियां, लटक रही थी। सिर के बाल छोटे थे ।
मोना चौधरी, पारसनाथ, पाली और बंगाली अजीब सी निगाहों से उसे देख रहे थे । उसने भी चारों को घूरा फिर उसकी कठोर निगाह मोना चौधरी पर जा टिकी ।
"तो तुमने मेरे तिलस्मी खंजर को छोड़कर मुझे चुनौती देने की हिम्मत की ।" उसकी आवाज मोटी-भारी थी ।
"तिलस्मी खंजर ।" मोना चौधरी के होठों से निकला ।
"जो तुम्हारे हाथों में है। इसे तुमने ही पेड़ के तने से निकाला है ।" वो मोना चौधरी को घूरने लगा ।
"हां। पेड़ के तने में खंजर धंसा हुआ था। मैंने निकाल दिया । गलत किया क्या ?" मोना चौधरी बोली ।
"बहुत गलत कर दिया तुमने । किसी मायावी शक्ति में इतनी हिम्मत नहीं थी कि मेरे खंजर को छू सके और तुमने मात्र मनुष्य होकर, ये हौसला कर दिखाया । अब...।"
"तुम मायावी इंसान नहीं हो।" मोना चौधरी के माथे पर बल पड़े।
"हूं। लेकिन मायावी इंसानों से मेरा ओहदा बड़ा है। क्योंकि मैं तिलस्मी नगरी में भी जा सकता हूं।"
"यहां तिलस्मी नगरी भी है ?" मोना चौधरी की आवाज में अजीब से भाव उभरे । "हां । तिलस्मी नगरी तक उसी की पहुंच हो सकती है, जो तिलस्म जानता हो । तुम्हारे हाथ में मेरा जो तिलिस्मी खंजर है, उसे मायावी नगरी के सब इंसान पहचानते हैं । इसलिए किसी की हिम्मत नहीं हो सकती जो मेरे खंजर के करीब भी आने की चेष्टा करता और तुमने उस खंजर पर कब्जा जमा लिया । तिलस्मी नगरी की हलचलों से थककर, मैं आराम करने के लिए इस जंगल में आ गया । पेड़ का रूप धारण करके गहरी नींद में डूब गया । ये खंजर जो मेरी कमर से सदा बंधा रहता है। मेरे पेड़ के रूप में आते ही, तने में धंसा, आने-जाने वालों को आगाह करता रहा कि इस पेड़ के साथ कोई छेड़छाड़ न करे। क्योंकि यह पेड़ तिलस्मी इंसान का रूप है । लेकिन तुमने यह हिम्मत कर दिखाई।"
मोना चौधरी सिकुड़ी निगाहों से उसे देखे जा रही थी । "हम यहां के कायदे कानून से वाकिफ नहीं हैं।" पारसनाथ बोला--- "अनजाने में हमने ये खंजर...।"
"लेकिन इसकी सजा तो इसे मिलेगी। खंजर को छूकर इसने अपराध किया है ।"
"क्या सजा होगी ?"
"मौत।"
पारसनाथ ने फौरन मोना चौधरी को देखा ।
मोना चौधरी का चेहरा कठोर होकर तपने लगा था ।
"लाओ ये खंजर मुझे वापस दो ।" वो बोला ।
"नहीं । ये अब तुम्हें नहीं मिल सकता ।" मोना चौधरी एक-एक शब्द चबाकर कह उठी । "नहीं मिल सकता । तुम्हारी यह हिम्मत ।" वो गुर्रा उठा ।
"तुम मुझे मौत देने को कह रहे हो तो फिर मैं तुमसे भयभीत क्यों होऊं।"
"अपराध की सजा तो तुम्हें मिलेगी ही। वैसे भी इस खंजर की तुम हकदार नहीं हो सकती । मेरी सारी तिलस्मी ताकतें इस खंज़र में कैद हैं। अगर ये खंजर मेरे पास नहीं हुआ तो मैं सामान्य मायावी इंसान बन जाऊंगा । तिलस्मी नगरी में मेरा प्रवेश कर पाना असंभव हो जाएगा। खंजर मुझे दो ।"
मोना चौधरी के होठों पर मुस्कान उभरी।
"फिर तो ये खंजर तुम्हारे लिए बेशकीमती है । यहां तुम्हारे पास नहीं रहेगा तो तुम तिलस्मी ताकतों से मरहूम रह जाओगे और अब हो भी चुके हो ।"
"खंजर मुझे दो।" इस बार उसकी आवाज और भी सख्त हो गई ।
"नहीं । ये अब तुम्हें नहीं दूंगी।" मोना चौधरी शब्दों को चबाकर कह उठी ।
वो लाल-लाल आंखों से मोना चौधरी को देखने लगा ।
"तुम्हें अपनी जान प्यारी नहीं ।"
"जान तो तुम लेने जा ही रहे हो फिर उससे डरना क्या ?"
"बिना तिलस्मी खंजर के भी मैं पलों में तुम्हारी जान ले सकता हूं ।" उसका चेहरा धधक उठा।
मोना चौधरी खंजर थामे संभल कर खड़ी हो गई ।
"मैं तुमसे मुकाबला करने को तैयार हूं।"
वो गुस्से से भरी निगाहों से मोना चौधरी को देखता रहा । "मेरा खंजर वापस दे दो।"
"मेरा मुकाबला करके वापस ले लो।" मोना चौधरी मुकाबला करने के लिए तैयार खड़ी थी
"तुम्हें परास्त करना मेरे लिए मामूली बात है।" उसने दांत भींचकर कहा--- "लेकिन इन हालातों में मैं तुम पर वार नहीं कर सकता । तुम्हारे पास मेरा तिलस्मी खंजर है । अगर मुकाबले के दौरान, मेरा खंजर जरा-सा भी मुझे लगा तो फौरन मेरी जान चली जाएगी। हर तिलस्म सीखने वाले ये बात लागू होती है कि उसका अपना खंजर उससे नहीं लगना चाहिए।" "तो फिर तुम मुझसे कैसे खंजर लोगे । कैसे मुझे सजा के रूप में मौत दोगे ?" मोना चौधरी के माथे पर बल पड़ रहे ।
वो, मोना चौधरी को देखता रहा ।
"मैं तुम्हारे अपराध को माफ करता हूं । लाओ खंजर मुझे दो ।" एकाएक उसने कहा ।
"तुम्हारी जुबान का क्या भरोसा ।"
" मैं सच कह रहा हूं । तिलस्मी खंजर की कसम । ये कसम, जो तिलस्म जानता है, झूठ नहीं खाएगा।"
मोना चौधरी ने सोच भरे ढंग से सिर हिलाया ।
"ठीक है । तुम्हारी बात पर विश्वास किया ।" मोना चौधरी ने कहा--- "लेकिन हमारी कुछ बातों का जवाब देने पर ही, तुम्हें यह खंजर वापस मिलेगा।"
"पूछो, क्या पूछना चाहती हो ?" उसने शांत स्वर में कहा।
तभी पाली बोला ।
"इससे पूछो क्या ये हमें खाने को कुछ दे सकता है । "
मोना चौधरी ने प्रश्न भरी निगाहों से उस व्यक्ति को देखा ।
"हां ।" कहने के साथ ही उसने पल भर के लिए आंखें बंद कीं ।
दूसरे ही पल उसके सामने बर्तनों में खाने-पीने का ढेर सारा गर्म सामान हाजिर हो गया ।
बंगाली और पाली खाने पर झपटे और नीचे बैठकर खाना खाने लगे ।
"पारसनाथ ।" मोना चौधरी बोली-- "तुम भी खा लो ।"
"बाद में तुम्हारे साथ खा लूंगा । पहले इससे बात कर लो।" पारसनाथ ने सपाट स्वर में कहा ।
मोना चौधरी ने उसे देखा ।
"एक बात मैं पूछना चाहता हूं ।" उसने कहा ।
"क्या ?" मोना चौधरी बोली ।
"तुम पृथ्वी ग्रह से पाताल लोक में कैसे आ गए ?"
"ये बात हम नहीं बता सकते।" मोना चौधरी ने कहा ।
"ठीक है। पूछो, क्या पूछना चाहते हो ?"
"इस जंगल में एक अजगर ने हमारे साथी को 'निगल' लिया । ऐसे में जब अजगर पर आक्रमण किया गया तो वो गायब हो गया । कौन था वो अजगर ?" मोना चौधरी ने पूछा । "वो कोई मायावी इंसान होगा या फिर जंगल का पहरेदार ।" उस व्यक्ति ने बताया । "हमारे साथी के साथ क्या हुआ होगा, जिसे वो निगल गया।" "उसे मायावी नगरी पहुंचा दिया गया होगा। वहां उसे किसी का नौकर बना दिया जाएगा |"
"मायावी नगरी में कहां मिल पाएगा वो ?"
"मालूम नहीं। क्योंकि ले जाने वाले मायावी इंसान को मैं नहीं जानता कि वो किसके नीचे काम करता है ? "
"मतलब कि हम विश्वास करके चलें कि हमारा साथी
"हां । दूसरी जाती के मायावी लोगों की जान हम लेते दुश्मनी नहीं है । "
"मायावी नगरी कहां है ? "
"इसी रास्ते पर आगे जिस तरफ तुम लोग बढ़ रहे हो "दूर है ?"
"आगे बढ़ने पर खुद-ब-खुद वहां पहुंच जाओगे ।" तुम लोगों को कैद करके किसी काम पर लगा दिया पाताल लोक में क्या करने आए हो ।"
"ताज लेने।"
"ताज ।" उसके माथे पर बल पड़े ।
anbs जिंदा है ।" हैं।" पृथ्वी के इंसानों से हमारी कोई ।" "लेकिन वहां पहुंचते ही उसने कहा--- जाएगा। मैं समझ नहीं पा रहा हूं । तुम
"हां । मायावी-जादुई नगरी में कोई ताज है । उस ताज को लेने हम आए हैं ।" मोना चौधरी ने कहा ।
"तुम लोग पागल तो नहीं लगते, फिर ऐसी बातें क्यों कर रहे हो ।" उसने अजीब से स्वर में कहा ।
"क्या मतलब ?"
"उस ताज के बारे में क्या जानते हो ?"
"कुछ भी नहीं।"
"तो पहले तुम्हें ताज के बारे में जान लेना चाहिए और मुझे पूरा विश्वास है कि उसके बाद तुम लोग आगे बढ़ने का इरादा छोड़ दोगे ।" कहने के साथ ही उसके मोटे काले होंठ मुस्कुराने के ढंग में फैल गए ।
"क्या है उस ताज में खास बात ?"
"पाताल लोक में हमारे अलावा और भी दो जादुई जातियां हैं, जो उस ताज को हासिल करना चाहते हैं । दोनों जातियां शक्तिशाली है, ताज को लेने के लिए वो हम पर जाने कितने आक्रमण कर चुके हैं । यू समझो कि हममें और उनके बीच लंबे समय से युद्ध छिड़ा हुआ है। परंतु आज वो तिलस्मी ताज को ले जाने में सफल नहीं हो सके और भविष्य में भी वो सफल नहीं होंगे । हम उसकी हिफाजत जान पर खेलकर कर सकते हैं।"
"ऐसे क्या बात है उस ताज में कि..... "
"जादुई शक्तियों से भरा, वो हमारी कुलदेवी का तिलस्मी ताज है और तिलस्मी नगरी में बेहद सुरक्षित जगह मौजूद है । जब तक वो ताज हमारे पास है, कुलदेवी का आशीर्वाद हम पर है । कोई हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता । ये बात दूसरी जादुई जातियां भी जानती हैं । अगर वो ताज हमारी जाति के हाथों से निकल गया तो कुलदेवी हमसे रुष्ठ हो जाएंगी। हमारी ताकतें कमजोर पड़ जाएंगी और दूसरी जातियां हमें अपना बंधक बना लेंगी।"
सबकी निगाहें उसके गंभीर चेहरे पर थी ।
"इसलिए तिलस्मी ताज की हम दिलो-जान से बात करते हैं । ताज को सख्त तिलस्मी पहरेदारी में रखा जाता है और सावधानी वश, कुछ दिनों बाद तिलस्मी पहरेदारी का ढंग बदल दिया जाता है कि कहीं कोई अपनी ही जाति का आदमी, किसी लालच में दूसरी जाति वालों को न बता दें कि हमने कैसी तिलस्मी पहरेदारी ताज को दे रखी है। उस ताज तक पहुंच पाना संभव नहीं । उसे हासिल करना तो असंभव बात है ।"
मोना चौधरी और पारसनाथ की निगाहें मिली ।
"अब तुम लोग खुद ही सोच लो कि क्या ताज को हासिल किया जा सकता है । " वो पुनः बोला ।
"ताज को हमने हर हाल में हासिल करना है । "
"ये मुमकिन नहीं हो सकता ।"
"हो सकता है ।"
उसने गहरी निगाहों से मोना चौधरी को देखा ।
"कैसे ?"
"तुम हमारी सहायता करोगे ?"
"मैं ?"
"हां। तुम तिलस्म जानते हो । तुम्हें मालूम है कि ताज कहां है । तुम...।"
"खबरदार ।" एकाएक उसके गले से, गुस्से से भरी, कंपा देने वाली आवाज निकली --- "जो एक भी गलत शब्द मुंह से निकाला । तुम मुझे कुलदेवी से, तिलस्मी नगरी से गद्दारी करने को कह रही हो । तुम क्या चाहती है, मैं तुम्हारी बात मान कर अपनी जाति के कुल का सर्वनाश कर दूं । हरगिज़ नहीं। दोबारा ऐसी बात होंठों से निकालने की हिम्मत मत करना । वरना अंजाम बहुत बुरा होगा ।"
पाली और बंगाली खाते-खाते रुके । दोनों ने एक दूसरे को देखा। ।
"जल्दी से खा ले ।" पाली बंगाली के कान में फुसफुसाया--- "गुस्से में इसने खाने का सामान उठा लिया तो भूखे रह जाएंगे । फिर खाने को कुछ मिले या ना मिले।" दोनों जल्दी से खाने लगे ।
मोना चौधरी उसके गुस्से को देखकर सतर्क सी नजर आने लगी थी ।
"तुम भूल रहे हो कि तुम्हारा तिलस्मी खंजर मेरे पास है । मैं इससे तुम्हारी जान भी ले सकती हूं।"
"अपनी जाति को बचाने के लिए मैं अपनी जान भी दे सकता हूं। आगे बढ़ो और ये खंजर मेरे शरीर पर कहीं भी मार-मारकर मेरा लहू निकाल दो। मैं मर जाऊंगा । आओ, मारो मुझे।"
मोना चौधरी और पारसनाथ की आंखें मिली।
"कुलदेवी के ताज की रक्षा के लिए ही हम जी रहे हैं । तिलस्मी खंजर और मेरी जान की कीमत कुछ भी नहीं है ताज के सामने । ले लो मेरी जान ।"
मोना चौधरी शांत-सी खड़ी उसे देखती रही ।
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