रंजीत बखूबी जानता था लम्बी पूछताछ जरूरी है ।



उसने हैडक्वार्टर्स पहुंचते ही नये और अस्थायी हैडक्वार्टर्स में वर्मा को फोन किया ।



वर्मा काफी खुश हुआ रिपोर्ट पाकर ।



–"इस लड़की के घर में किन खास चीजों को देखना है, रंजित ?"



–"टेप रिकार्डिंग, फोटोग्राफिक्स वगैरा जैसी चीजें जो ब्लैकमेलिंग के लिये इस्तेमाल की जाती हैं ।"



–"यह हो जायेगा ।"



–"इसमें देर नहीं की जानी चाहिये ।"



–"मैं इंतजाम कराता हूं । क्या तुम जल्दी मेरे पास आ सकते



–"बहुत जरूरी है ?"



–"हमारे पास असगर अली, यह लड़की, मीना रमानी और अपना पुराना दोस्त दयाशंकर है । उनसे काफी पूछताछ की जानी है ।"



–"कमल किशोर और रोशन लाल भी वहीं हैं । शायद कैंटीन में होंगे । उन्हें जाकर बता दो क्या कुछ करना है और तुम यहां आ जाओ । मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत है ।"



रंजीत ने गहरी सांस लेकर कह दिया–"जल्दी पहुंच जाएगा ।"



* * * * * *



उस्मान लंगड़ा और रतन मेहरा ने पुलिस हैडक्वार्टर्स में हसन भाइयों के सोर्स को फोन किया ।



वह वहां नहीं था ।



उन्होंने उसके घर फोन किया ।



वह घर पर ही था लेकिन कॉल अटेंड करके खुशी नहीं हुई क्योंकि वह देर रात गये ड्यूटी से लौटा था और मुश्किल से चार घण्टे ही सो सका । लेकिन उस्मान ने उसे मना ही लिया, एक घण्टे बाद पार्क रोड पैट्रोल पम्प पर मिलने के लिये ।



वो सोर्स एक अधेड़ इंसपेक्टर था, जिसे पुलिस विभाग की अफसरशाही से नफरत थी । उसे लगता था उसकी खूबियों और काबलियत के बावजूद जान–बूझकर नज़रअंदाज़ किया जाता रहा है । जवानों को तरक्की पाते देखकर उसे जलन होती थी । सीमित आमदनी में मनचाहे ऐशो–आराम न जुटा पाने ने उसके अंदर निराशा और कुंठा को जन्म दे दिया । कई साल पहले हसन भाइयों से एक पार्टी में उसकी मुलाकात हुई । भाइयों ने फौरन उसे ताड़ लिया और उनके बीच समझौता हो गया । वह अंदर की जानकारी उन्हें देने लगा और बदले में वे सही कीमत चुकाने लगे । उस इंसपेक्टर का कद–बुत और चेहरा किसी हद तक पुराने मशहूर फिल्म एक्टर मोतीलाल से मिलते थे । उसकी खासी नकल भी वह कर लेता था इसलिये उसे 'मोतीलाल' कहा जाने लगा । धीरे–धीरे यही नाम उसके साथ चिपककर रह गया । उसे यह अच्छा भी लगता था ।

एक घण्टे बाद पार्क रोड पेट्रोल पम्प पर उस्मान लंगड़ा और रतन मेहरा ने उसे बताया वे क्या चाहते थे ।



–"मैं खुद भी तुम्हें बताने वाला था क्योंकि मेरे ख्याल से तुम्हारे लिये यह जान लेना जरूरी है ।" मोतीलाल बोला–"सारे मामले में बहुत राजदारी बरती जा रही है । हसन भाइयों को खत्म करने के लिये बड़ा ही स्पेशल आप्रेशन शुरू किया गया है । कितना कॉन्फिडेंशियल आप्रेशन है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मुझे भी कल रात ही इसका पता चला है और वो भी इत्तिफाक से ।"



–"या खुदा ।" उस्मान लंगड़ा के मुंह से निकला–खैर, उनकी इस टीम में कितने लोग शामिल हैं ?"



–"मुझे नहीं मालूम । सिर्फ इतना पता चला है । ए० सी० पी० ने इसका इंचार्ज सीनियर एस० पी० वर्मा को बनाया है और उसने कई विभागों से चुनिंदा आदमी लेकर अपनी टीम बनायी है ।



–"कमल किशोर भी उस टीम में है ?" रतन मेहरा ने पूछा ।



–"कमल किशोर, रोशन लाल, तोमर और मलिक तो है ही बाकी फ्रॉड केसेज के एक्सपर्ट आर नारकोटिक्स वालों के अलावा और भी पता नहीं किस–किस विभाग के हैं । अगर मेरी सलाह मानों...!"



–"हमें सलाह नहीं चाहिये ।"



–"फिर भी सुनने में कोई हर्ज नहीं है । मेरे विचार से तुम्हें हसन भाइयों को समझाना चाहिये अपनी गतिविधियाँ कम कर दे और बेहतर होगा कुछ रोज के लिये शहर से दूर कहीं चले जायें…!"



–"यह नहीं हो सकता ।" रतन मेहरा ने कहा ।



–"तुम्हारी मर्जी !" मोतीलाल गहरी सांस लेकर बोला–"मैं आज पूरी टीम का पता लगाने के बारे में सोच रहा था । सारा आप्रेशन नये हैडक्वार्टर्स से चलाया जा रहा है । में कोशिश करुंगा आज कुछेक घण्टों के लिये मुझे भी वहां भेज दिया जाये ।"



–"हम तुमसे कांटेक्ट बनाये रखेंगे ।"



–"ठीक है लेकिन बेहतर होगा, मैं तुम्हें फोन करूँ । हमारे यहां बड़ी टेंशन है । सभी से अजीब–अजीब सवाल किये जा रहे है ।"



–"मेरे ठिकाने पर फोन कर देना । फिर मैं खुद आकर तुमसे मिल लूँगा ।" उस्मान लंगड़ा बोला–"ठीक है ?"



–"हां, मगर नगदी लाना मत भूलना ।"



–"उसकी फिक्र मत करो ।"



मीटिंग खत्म हो गयी ।



मोतीलाल चला गया ।



उस्मान लंगड़ा रतन मेहरा को साथ लिये अपने ठिकाने पर लौटा । वहां एक मैसेज उसका इंतजार कर रहा था । मीना रमानी और उसका दल्ला दयाशंकर अरेस्ट कर लिये गये थे । किसी ने मीना के फ्लैट की चाबी लेकर उसके ड्राइंगरूम में टेप रिकार्डर में लगा टेप वहां से लाकर दयाशंकर के वकील के पास पहुंचाना था । वकील जानता था उस टेप का क्या किया जाना है ।



रतन मेहरा यह काम करने चला गया । उस्मान लंगड़ा ने हसन हाउस फोन करके खबर पास कर दी । खबर अच्छी नहीं थी, इसलिये सुनकर किसी को खुशी नहीं हुई ।



* * * * * *



वर्मा ने दिनेश ठाकुर के टेलीफोन से टेप की गयी फोनवार्ता की कॉपी रंजीत को थमा दी ।



रंजीत ने पढ़ा ।



–"इसका मतलब वह रास्ते में है ।" वह बोला ।



–"हमें फौरन कुछ करना होगा ।"



–"क्या ?"



–"मोर्चाबंदी । उन लोगों से मैं एक कदम आगे रहना चाहता हूं । मेरे दिमाग में कोई चीज कुलबुला रही है मगर, मैं उसे पकड़ नहीं पा रहा हूं ।"



–"हसन भाइयों जैसे गंदगी के ढेर के लिये डी० डी० टी० की तगड़ी डोज शुरू की जा चुकी है ।"



एस० पी० वर्मा तनिक मुस्कराया ।



–"मैं डिसूजा की एंट्री की बात कर रहा हूं । मैं ऐसा कुछ करना चाहता हूं कि उस पर बराबर नजर रखी जा सके ।"



–"टेप्स फोन वार्ताओं की रिपोर्टों से कोई मदद मिल सकती है ?"



–"मैं तो दर्जनों मर्तबा उन्हें पढ़ चुका हूं । मेरे ख्याल से तुम्हीं उनसे कोई ठोस नतीजा निकाल सकते हो ।"



–"देखते हैं ।"



रंजीत ने हर एक रिपोर्ट तीन–तीन बार पढ़ी ।



–"मिल गया ।" अंत में एक रिपोर्ट को ठकठकाकर मुस्कराता हुआ बोला–"क्या इसका वॉयस प्रिंट है हमारे पास ?"



–"अभी नहीं ! इंतजार कर रहे हैं ।"



–"मैं यह मानकर चलता हूं यह डिसूजा की आवाज़ है । सुनिये । ठाकुर कहता है–यहां आ सकते हो ? डिसूजा लम्बी–चौड़ी हांककर कहता है वह आसानी से पहुंच सकता है और जितने आदमी चाहे साथ ला सकता है । इस पर ठाकुर पूछता है–मुझसे कांटेक्ट करोगे ? तब डिसूजा जवाब देता है–करीमगंज में ईसाइयों के धार्मिक त्योहार पर नजर रखो ।" रंजीत ने पूछा–"यही है न ?"



–"हां । लगता है डिसूजा को धर्म के मामले में बहुत आस्था है । कट्टर ईसाई है । हमें मोटे तौर पर उसके दुबई से चलने का समय मालूम है । क्या तुम इसे चैक कर सकते हो ?"



–"कोई भी कर सकता है ।"



–"मैं चाहता हूं किसी और की बजाय तुम खुद करो ।"



–"ओ० के०, सर ।"



–"ठीक है ! मैं दूसरा काम संभालता हूँ ।



अपनी कार की ओर जाता हुआ रंजीत नर्वस था । खास किस्म की वो नर्वसनेस वैसी ही थी जैसी बचपन में उस वक्त महसूस हुआ करती थी जब वह मां के कहने पर कनफैंशन करने पर चर्च जाता था ।



फादर अब्राहम से मिले एक लम्बा अर्सा गुजर चुका था ।



* * * * * *



फारूख हसन...!



आराम से बाथ टब में लेटा था । डर नाम की कोई चीज अब उसके अंदर नहीं थी । अपने जहन में घुमड़ती पीछे लगी अनाम आकृतियों को वह शान्त कर चुका था । वह पूर्णतया संतुष्ट था ।



रमोला या उसके नाम पर उसका जो भी अवशेष था बेडरूम में पड़ा था । चार्ली की लाश अभी तक प्रवेश द्वार के अंदर वहीं पड़ी थी ।



चार्ली से डर तो कुछ नहीं था । लेकिन उन आकृतियों को शान्त किया था रमोला ने । वह बेहद खौफजदा थी । उसकी इस हालत ने फारूख को इतना ज्यादा खुश किया कि उसे अपनी ताकत पर फख्र हो आया था ।



उसने अपने पूरे शरीर पर अच्छी तरह साबुन लगाया । उसके चेहरे पर लगा तमाम खून साफ हो गया । जिसमें सिर्फ माला का ही खून नहीं था ।



उसके कपड़ों की हालत खराब थी । स्नान के पश्चात वह हसन हाउस फोन करके दूसरे साफ कपड़े मंगायेगा । अनवर सब इंतजाम कर देगा । लेकिन उससे पहले चार्ली की लाश हटाकर किसी और कमरे में पहुँचानी होगी । उसे बेडरूम में वह नहीं ले जायेगा क्योंकि वहां का अब नज़ारा करना वह नहीं चाहता था हालांकि वहां जो उसने किया था वो सब करते वक्त उसे बेहद मजा आया था । लड़कियों को नन, स्कूल गर्ल, नर्स वगैरा के लिबास पहनाकर जो खेल वह खेलता रहा था उनमें इतना मजा उसे भी नहीं आया । वे महज रिहर्सल थीं इस असली खेल की । यह अलग बात थी सेक्स के मामले में उसकी खसलत में काफी बेरहमी भी रहा करती थी, मगर रमोला के साथ आखिरी तजुर्बा हद दर्जे तक मजेदार और लाजवाब रहा था ।



दहशत से मरी जा रही होने के बावजूद वह चिल्लाई नहीं थी । रमोला को उस पर भरोसा था और उसी ने बड़ा फर्क पैदा कर दिया था । अब क्योंकि एक बार वह इतना घृणित और वीभत्स कृत्य कर चुका था इसलिये दोबारा ऐसे हिंसक कुकृत्य में कोई कठिनाई नहीं होगी । ऐसा नहीं था कि उसे अक्सर ऐसा करना पड़ेगा । तभी करेगा जब उसके दिमाग में वे अनजान आकृतियां उभरकर बुरी तरह पीछे पड़ जायेंगी और कराना चाहेंगी ।



फिलहाल वे शांत हो गयी थीं । अभी दूर ही रहेंगी...कुछ अर्से तक...अगला वक्त आने तक...इस विचार ने उसे इतना तरंगित किया कि उसके अंदर फिर वासना का जोश उभरने लगा ।



फारूख हसन ने बाथटब से निकलकर तौलिये से अपना शरीर सुखाया और ड्राइंगरूम में आ गया हसन हाउस का नम्बर डायल करने को ।



* * * * * *



रतन मेहरा को दूसरे दल्ले से मीना रमानी के फ्लैट की डुप्लीकेट चाबी हासिल करने में कोई दिक्कत नहीं हुई ।



वह सीधा फ्लैट पर पहुंचा ।



प्रवेश द्वार का ताला खोलते ही वह गड़बड़ का आभास पा गया ।



उसने दरवाज़ा खोला ।



अंदर दो लम्बे–चौड़े पुलिस वाले मौजूद थे । हालांकि सादा लिबास में थे मगर, वह देखते ही समझ गया । उनमें एक को उसने पहचान भी लिया ।



वह पलटकर भागा ।



दोनों ने झपटकर उसे दबोचा और अंदर खींच लिया ।



टेप रिकार्डर मेज पर रखा था । उसमें टेप भी मौजूद था । स्पूल्स पर लिपटे और भी बहुत सारे टेप, रिकार्डर के पास रखे थे । कमरे की हालत बता रही थी कि वहां बारीकी से तलाशी ली गयी थी ।



एक ही नजर में ये सब भांप गये रतन मेहरा ने पुन: मेज की ओर देखा । टेप्स के अलावा कई फिल्म रोल और फोटुओं का एक मोटा पुलंदा भी वहां मौजूद थे । उस पुलंदे पर सबसे ऊपर वाली फोटो से जाहिर था कि वे फोटुएं ऐसी नहीं थीं कि उन्हें फैमिली अलबम में लगाया जा सके ।



–"यह हज़रत कौन है ?" एक पुलिस वाले ने दूसरे से पूछा ।



–"चेहरा तो पहचाना–सा लगता है लेकिन...!"



–"मेरा ख्याल है मैंने भी पहले इसे देखा है ।"



– याद आ गया...इसका नाम रतन मेहरा है । यही नाम है न तुम्हारा ?"



रतन मेहरा ने धीरे से सर हिलाकर हामी भर दी । पुलिस वालों की अनपेक्षित मौजूदगी ने उसे बौखला दिया था ।



–"तुम यहां क्या करने आये हो, रतन ?"



–"बस यूं ही ।"



–"अंदर आने की कोई वजह तो होगी । क्या यह अपार्टमेंट तुम्हारा है ?"



–"नहीं, लेकिन मैं कभी–कभी यहां आता हूँ ।"



–"किसलिये ?"



–"सफाई वगैरा करने ।"



–"तुम तो बार रूम्स से शराबियों को भगाने का काम करते हो । घरों की सफाई कब से करनी शुरू कर दी ?"



रतन मेहरा जवाब नहीं दे सका ।



–"नहीं बताना चाहते मत बताओ । अच्छा, यह तो बता दो यहां की चाबी तुम्हें कहां से मिली ?"



–"मैं एक चाबी रखता हूं । फ्लैट में रहने वालों ने ही मुझे दी थी । उनसे पूछ सकते हो ।"



–"जरूर पूछेगे । यहां रहता कौन है ?"



–"तुम्हें पता होना चाहिये ।" रतन मेहरा ने कहा फिर कुछ सोचकर बोला–"वह लेडी कहां है ?"



–"लेडी का नाम जानते हो, रतन ?"



–"मीना ! मीना रमानी !"



–"बिल्कुल सही बताया । बहुत बढ़िया लड़की है । सिर्फ दोस्तों और कुछेक खास आदमियों के ही काम आती है । उसका कोई दुश्मन तो नहीं है ?"



–"वह बहुत अच्छी लेडी है ।"



–"तुम यहां क्या साफ करने आये थे ? टेप्स ?"



–"नहीं ! धुलाई, डस्टिंग वगैरा !"



दोनों क्राइम ब्रांच वाले हंस पड़े ।



–"धुलाई !" एक ने पूछा–"किसकी ?"



–"इसका मतलब है ।" दूसरे ने टेप रिकार्डर की ओर इशारा करके चटखारा–सा लेकर कहा–"इस रिकार्डर की सफाई और डस्टिंग । खैर, हम इसमें लगे टेप को निकाल कर उस पर निशान लगा देंगे, फिर यह सामान लेकर तीनों हैडक्वार्टर्स चलेंगे ।"



–"तीनों ?" रतन मेहरा ने टोका ।



–"तुम भी हम दोनों के साथ चलोगे ।"



–"लेकिन मैंने क्या किया है ?" रतन मेहरा ने मासूमियत से पूछा–"मुझे साथ क्यों ले जा रहे हो ?"



–"वहां का माहौल बहुत बढ़िया है । तुम्हारे साथ चाय पियेंगे और गपशप करेंगे ।"



–"तुम लोग मुझे फंसा रहे हो ?"



–"अरे नहीं, रतन भाई, ऐसा कुछ नहीं है । हम बस इतना जानना चाहते हैं कि तुम यहां क्यों आये थे ?"



–"मैंने बता तो दिया ।"



–"वो तो तुमने मज़ाक किया था ।"



–"नहीं, यह सच है ।"



–"लेकिन हमारी समझ में नहीं आया ।"



रतन मेहरा ने बहस करना मुनासिब नहीं समझा । वह समझ गया, साथ जाना ही पड़ेगा ।



एक पुलिसमैन ने टेप रिवाइंड करके रिकार्डर से निकाला । उस पर निशान लगाकर बाकी टेप, फिल्म रोल्स, फोटुओं का पुलंदा वगैरा एक थैले में भर लिये ।



–"आओ, रतन, चलो । गपशप करेंगे । सच्चाई बयान करने से अंदर का बोझ हल्का हो जाता है ।"