देवराज चौहान ने सबसे पहले घोड़े को जमीन से उठते देखा तो उसकी आंखें हैरानी से फैलती चली गई । दो क्षणों तक तो उसकी समझ में कुछ नहीं आया।
"यो छोरा कां भाग रिया है ।" बांकेलाल राठौर हड़बड़ा कर कह उठा ।
अगले ही पल देवराज चौहान जल्दी से घोड़े की तरफ लपका। उसे पकड़ने के लिए। परन्तु वो पकड़ की पहुंच से ऊपर उठ चुका था ।
नदी में नहाते जगमोहन, सोहनलाल और कर्मपाल सिंह भी हक्के-बक्के रह गए ।
"ये क्या हुआ ।" जगमोहन ऊंचे स्वर में बोला--- "घोड़े का बुत असली घोड़े में बदल गया और घोड़ा हवा में कैसे उड़ गया । सोहनलाल तूने भी वही देखा है, जो मैंने देखा है या मेरी आंखें धोखा खा रही है । "
हैरानी के सागर में डूबे सोहनलाल ने जगमोहन के फक्क चेहरे को देखा ।
"मैं तो तेरे से पूछने वाला था कि ये क्या हो रहा है ।" सोहनलाल को अपना स्वर अजीब सा लगा ।
कर्मपाल सिंह की आंखों में अचंभा उभरा पड़ा था।
सबकी निगाहें आसमान की तरफ थी ।
अब घोड़ा इतनी ऊपर हो चुका था कि छोटा-सा लगने लगा था । देवराज चौहान होंठ भिंचे, सिर उठाए, घोड़े को देखे जा रहा था ।
"यो उड़ने वालो घोड़ो तो मन्ने पैली बारो ही देखो ।" बांकेलाल राठौर की आवाज में व्याकुलता थी--- "म्हारे छोरे को ले उड़ो । यो का गजब हो गयो।"
उसी पल तीव्र गड़गड़ाहट की आवाज हुई । जमीन जोरों से कांपी । देवराज चौहान और बांकेलाल राठौर खुद पर काबू नहीं रख पाए और नीचे जा लुढ़के और फिर देखते ही देखते वो खूबसूरत बाग जाने कहां गायब हो गया। जिस रास्ते को तय करके आए थे, ये जगह भी वैसी ही सूखी और बंजर नजर आने लगी । पथरीली-सूखी जमीन। कहीं-कहीं नजर आ रहे सूखे पेड़ और बीच में बहती नदी ।
"यो का हो गयो ।" बांकेलाल राठौर उठता हुआ बोला ।
देवराज चौहान भी उठा । चेहरा कठोर हुआ पड़ा था ।
अब जमीन का कंपन थम चुका था ।
"वो घोड़े का बुत, इस खूबसूरत बाग की चाबी था।" देवराज चौहान बोला ।
"क्या मतलब ?" नदी से निकलकर, पास आता जगमोहन कह उठा ।
कर्मपाल सिंह भी नदी से निकला ।
ठीक उसी पल देखते ही देखते नदी सिमटती चली गई उसके दोनों किनारे आपस में मिलते चले गए। कुछ ही क्षणों में वहां समतल बंजर जमीन नजर आने लगी । जैसे नदी कभी वहां रही ही न हो ।
"ये क्या हुआ ?" जगमोहन के होठों से अजीब सा स्वर निकला फिर उसने आसमान की तरफ देखा । वहां अब कहीं भी घोड़े का नामोनिशान नहीं था।
"तम का बोलो हो, घोड़ा का बुत, बागो का चाबी हौवे ?"
"हां ।" देवराज चौहान का गंभीर सख्त था--- "घोड़े का बुत इतना खूबसूरत था कि उसे देखकर हर किसी का मन उस पर बैठने का होता । कोई अनजान यहां आता तो, उस पर बैठता और रुस्तम राव की तरह मायावी शिकंजे में फंस जाता । बाग और नदी आम आदमी को ललचाने के लिए था कि वो वहां रुके और घोड़े पर बैठकर मायावी शिकंजे में फंस जाए । घोड़ा अपना काम कर गया तो सब कुछ खत्म हो गया।"
"तो ये सब धोखा था।" जगमोहन बेचैन सा कह उठा ।
"हां । किसी अनजान को फंसाने के लिए और रुस्तम राव फंस गया।" देवराज चौहान एकएक शब्द चबाकर कह उठा--- "अगर वो घोड़े पर न बैठता हम यहां से आगे बढ़ जाते । बाग को पार कर जाते हैं और बाग, नदी वैसे ही रहती ।"
"ओह।" जगमोहन बोला--- "लेकिन वो घोड़ा रुस्तम राव को लेकर कहां गया होगा ?"
"इस बात का जवाब मेरे पास नहीं है ।" देवराज चौहान के दांत भिंच गए ।
"हो सकता है, मायावी लोग रूस्तम राव की जान ले लें। उसे मार दें ।" जगमोहन कपड़े पहनने लगा ।
"कुछ भी हो सकता है।"
"म्हारे छोरे को कुछो न हौवे ।" बांकेलाल राठौर गुर्रा उठा--- "वो बुत खतरनाक है । वो सबको 'वड' के रख दयो । उसो को कोई न 'वड' सके । अंम छाती ठोक के बोले ये बातों।" ।
देवराज चौहान ने बांकेलाल राठौर के सुर्ख चेहरे को देखा। कहा कुछ नहीं ।
"वो...।" कर्मपाल सिंह सूखे होठों पर जीभ फेर कर बोला--- "आसमान में उड़ते घोड़े से गिर गया तो ?"
बांकेलाल राठौर ने उसके घबराए चेहरे को देखा ।
"थारी फूंक क्यों सरको हो । थमा रयो । घोड़े आसमान से नीचो गिरे, पण अपने छोरा न गिरो । वो जालिम छोरा तो सबके बापो का बाप हौवे । किसी के काबू में न आवो वो।"
कर्मपाल सिंह सूखे होठों पर जीभ फेरता रहा । उसका चेहरा बता रहा था कि वो बांकेलाल राठौर की बात से सहमत नहीं है । लेकिन जवाब में बहस करने के अलावा कोई रास्ता नहीं था । इसलिए चुप ही रहा।
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई। चेहरे पर चिंता थी ।
"ईब तंम का सोचो हो ?"
देवराज चौहान ने बांकेलाल राठौर को देखा
जगमोहन और कर्मपाल सिंह कपड़े पहन चुके थे ।
"आओ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"हमारी हिम्मत-ताकत, किसी जादू के आगे काम नहीं कर सकती बांके । वो घोड़ा का बुत, असल घोड़ा बन गया । रूस्तम राव को ले गया । न वो बचाव में कुछ कर सका, न ही हम।" देवराज चौहान ने एक-एक शब्द पर जोर देकर कहा--- "रूस्तम राव के साथ क्या बीतती है । ये तो अब वही जान पाएगा। परंतु इस बात से हमें सबक लेना है और रास्ते में मिलने वाली किसी भी चीज से छेड़छाड़ नहीं करनी है। हमारी जरा सी हरकत इस जादुई नगरी में, हमें मुसीबतों में धकेल सकती है।"
जहां वो खड़े थे, वहां हर तरफ उजाड़ ही उजाड़ नजर आ रहा था ।
उसके बाद सब पुनः आगे बढ़ने लगे ।
रुस्तम राव का साथ न होना, उनके दिलो-दिमाग में चिंता का तूफान उठाए हुए था।
***
मोना चौधरी, महाजन, पारसनाथ, पाली और बंगाली को भी उस बाग से निकलने में आधा घंटा लगा । आगे खुश्क- बंजर जमीन थी । लेकिन काफी दूर उन्हें घने पेड़ नजर आ रहे थे । जैसे कि वो जंगल हो । वे सब बिना रुके आगे बढ़ते रहे ।
"बाबा ने कहा था ।" महाजन बोला--- "कि बाग समाप्त होते ही हम मायावी नगरी में प्रवेश कर जाएंगे । इसका मतलब यहां से मायावी नगरी शुरू हो जाती है । "
"बाबा के कहे मुताबिक तो ऐसा ही है ।" पारसनाथ ने शांत-सपाट स्वर में कहा ।
"मायावी नगरी में होगा क्या ?" बंगाली ने पूछा ।
जवाब में मोना चौधरी ने कुछ न कहा।
वे लोग तेजी से आगे बढ़े जा रहे थे ।
"मायावी नगरी या जादुई नगरी कहो, एक ही बात है । यहां कुछ भी हो सकता है, जो जादू के जोर पर किया जा सकता है।"
बंगाली ने मोना चौधरी को देखा ।
"यानी कि हमें जादूगरों का मुकाबला करना होगा।" पाली के होठों से निकला। "हां ।" मोना चौधरी का स्वर सामान्य था ।
"जादूगरों का मुकाबला हम कैसे कर सकते हैं ।" महाजन कह उठा--- "इंसानों का मुकाबला तो कर सकते हैं। जादूगरों से इंसान लड़ाई नहीं लड़ सकता ।"
"मैं नहीं जानता कि आगे क्या होगा और जो होगा उसका सामना हमने कैसे करना है ।" मोना चौधरी शब्दों को चबाकर कह उठा--- "जो भी हालात सामने आएंगे, उनका मुकाबला तो हमें करना ही है और सिर्फ एक बात हर पल मस्तिष्क में रखनी है कि जादुई नगरी से हमें 'ताज' हर हाल में हासिल करना है, जिसे पाने के लिए देवराज चौहान भी मैदान में है। देवराज चौहान से हारना मैं किसी भी कीमत पर पसंद नहीं करूंगी। शर्त के मुताबिक अगर मैं हार गई तो देवराज चौहान का गुलाम बन कर रहना होगा और किसी की गुलामी करने से बेहतर मैं मरना पसंद करूंगी । ताज को हासिल करके मैं देवराज चौहान को अपना गुलाम बनाऊंगी।"
महाजन ने हाथ में दबी बोतल से घूंट भरा |
"मोना चौधरी । ये काम इतना आसान नहीं है ।" पारसनाथ खुरदरे स्वर में कह उठा--- "देवराज चौहान किसी भी तरह से कम नहीं है । ताज को कौन ले पाता है। इस बारे में कुछ कह पाना आसान नहीं।"
"पारसनाथ ठीक कहता है ।" महाजन बोला--- "मुकाबले पर देवराज चौहान है।" मोना चौधरी का चेहरा सख्त हो गया ।
"मैं हर हाल में ताज को हासिल करके ही रहूंगी।"
जवाब में कोई कुछ नहीं बोला ।
सामने नजर आ रहा जंगल, काफी पास आ चुका था ।
"वो बाबा कह रहा था कि हम लोग इस वक्त पाताल नगरी में है ।" पाली कह उठा--- "मुझे तो लगता है बाबा ने टालने की गरज से ये बात यूं ही कह दी है । "
"तू बाबा को जानता है ?" महाजन ने उसे देखा
"नहीं।"
"तो फिर ध्यान रख । बाबा कोई भी बात यूं ही नहीं कहते।" महाजन ने घूंट भरा ।
पाली खामोश हो गया ।
कुछ देर बाद वे सब जंगल में प्रवेश कर गए । धूप से राहत मिली । शरीर पर बहते पसीने को ठंडक का एहसास हुआ।
"जंगल में हम रास्ता भटक भी सकते हैं ।" पारसनाथ ने कहा ।
"हां ।" महाजन का स्वर गंभीर था --- "पेड़ों के झुरमुटों में हम गलत दिशा की तरफ बढ़ सकते हैं और बाबा ने हमें ये भी नहीं बताया कि हमारी मंजिल कौन सी है। क्यों बेबी।"
"चलते रहो । ये बात सोचकर हम रुक नहीं सकते।" मोना चौधरी ने कहा--- "बाबा ने हमें इस रास्ते पर डाला है तो कुछ सोच समझकर ही डाला होगा।"
ज्यों-ज्यों वे आगे बढ़ते जा रहे थे, जंगल घना होता जा रहा था । सूर्य का प्रकाश भी अब घने पेड़ों से छनकर, पतली-सी लकीर के रूप में जमीन पर कहीं-कहीं पड़ रहा था ।
"ये खतरनाक जंगल है ।" बंगाली ने भागते हिरण को देख कर कहा ।
"जानवर भी हो सकते हैं ।" बंगाली बोला ।
"मैंने हिरण को देखा है ।" बंगाली कह उठा--- "इसका मतलब दूसरे जानवर भी होंगे।"
"डरने की कोई बात नहीं ।" महाजन बोला--- "जानवरों से निपटने के लिए हमारे पास हथियार हैं।"
आगे मोना चौधरी और पारसनाथ थे ।
पीछे महाजन और दो कदम पीछे बंगाली और पाली थे ।
"तेरे को भूख लग रही है ? " बंगाली ने पाली से पूछा ।
"हां।" पाली ने फौरन कहा ।
"मेरे को भी लग रही है। यहां कहीं भी खाने का इंतजाम नहीं है । " पाली ने पेड़ों पर नजर मारी ।
कोई भी वृक्ष फल वाला नजर नहीं आया।
"आगे, किसी न किसी पेड़ पर तो फल होंगे ही ।" पाली ने जैसे खुद को तसल्ली दी ।
"अगर कहीं भी फल वाला वृक्ष न मिला तो ?" बंगाली बोला ।
"फिक्र मत कर । तेरे को भूखा नहीं मरने दूंगा।" आगे चलता महाजन कह उठा ।
"वो कैसे ?"
"जब तू भूखा मरने वाला होगा तब बताऊंगा।" महाजन मुंह बनाकर बोला ।
"इतनी भी जल्दी क्या है बताने की ।" बंगाली ने तीखी आवाज में कहा --- "जब भूख से मर जाऊं तब बता देना। मैं न भी सुन सकूं तो क्या फर्क पड़ता है।"
महाजन ने कुछ न कहकर, घूंट भरा ।
उसी समय उनके कानों में जिस्म को कंपा देने वाली फुंफकार पड़ी ।
सब ठिठके । उनके हाथों में रिवॉल्वर नजर आने लगी । अभी वे ये समझने की कोशिश में थे कि तभी पेड़ से बहुत मोटा अजगर नीचे लटका । ठीक मोना चौधरी और पारसनाथ के सामने, वो कुछ करते या हालात को समझ पाते, उस मोटे अजगर ने अपना घड़े की तरह मुंह खोल कर पहले से भी तेज फुंफकार मारी । उसकी लाल सुर्ख आंखे जैसे सबको निगलने को तैयार थी ।
उसके मुंह से निकलने वाली फुंफकार में इस कदर तेज आवाज थी कि मोना चौधरी और पारसनाथ के पांव उखड़ गए। दोनों लुढ़कते हुए नीचे जा गिरे।
महाजन ने हक्के बक्के से ये सब देखा ।
तभी पेड़ से लटकता अजगर जोरों से हिला । मटके के आकार का उसका मुंह पूरा खुल गया । झूलता हुआ वो महाजन के सर पर पहुंचा।
महाजन को जैसे तुरंत होश आया । उसने बचने की चेष्टा की ।
परंतु तब तक अजगर महाजन के सिर सहित छाती तक अपने मुंह में निगल चुका था । यह देखकर बंगाली और पाली के होठों से चीखें निकल गई ।
महाजन को निगलते अजगर ने उसे ऊपर उठा लिया था और निगलना भी जारी था । महाजन टांगों को जोर से हिलाता रहा था । खुद को बचाने की भरपूर कोशिश कर रहा था ।
नीचे पड़े मोना चौधरी और पारसनाथ ने यह देखा तो स्तब्ध रह गए । रिवॉल्वरें उनके हाथ में थी । अगले ही पल उन्होंने अजगर पर गोलियां चलानी शुरू कर दी । इस बात इस बात का ध्यान रखा की गोली महाजन को न लगे।
गोलियां अजगर के शरीर पर लग रही थी । वहां से काला सा खून बहता भी नजर आने लगा था । परंतु अजगर का महाजन को निगलना जारी रहा।
मिनट भर में वो महाजन को पूरा निगल गया। महाजन के जूतों का भी नजर आना बंद हो गया । अजगर का मुंह बंद हो गया । फिर उसने लाल-लाल आंखों से मोना चौधरी और पारसनाथ को देखा ।
मोना चौधरी और पारसनाथ हक्के-बक्के थे ।
लंबे-चौड़े महाजन को उनके देखते-देखते अजगर निगल गया था और वे कुछ नहीं कर सकते थे । मस्तिष्क में सिर्फ महाजन ही महाजन था।
ठीक उसी समय, पेड़ पर लिपटा वो मोटा और काला लंबा अजगर नीचे आ गिरा | लाललाल आंखों से वो बारी-बारी सबको देख रहा था ।
तभी मोना चौधरी उछली और खड़ी हो गई । उसका चेहरा दरिंदगी से भरा नजर आने लगा । आंखों में जैसे खून चढ़ा आया था । महाजन की ऐसी मौत, वो बर्दाश्त नहीं कर पाई थी । कमर से बंधा खंजर निकाला और जान लेने या देने वाले अंदाज़ में वो अजगर पर झपटने ही वाली थी कि अगले ही पल ठिठक गई । उसकी खूनी-सुर्ख आंखों से अजीब से भाव उभरे ।
अजगर, सबकी आंखों के सामने से इस तरह गायब हो गया जैसे हवा में घुल गया हो । सब हक्के-बक्के रह गए ।
देखते ही देखते ।
पलों में ।
न महाजन था और न ही अजगर । किसी के मुंह से कोई बोल न फूटा। एक-दूसरे का मुंह देखने लगे ।
"ये क्या हुआ ।" पारसनाथ का खुरदरा कठोर स्वर हैरत लिए था--- "अजगर महाजन को निगलकर कहां गायब हो गया। देखते ही देखते कहां चला गया ।"
मोना चौधरी के जबड़े फंसे हुए थे ।
पाली और बंगाली हक्के-बक्के खड़े थे । पाली की आंखों में स्पष्ट तौर पर भय नजर आ रहा था । जबकि बंगाली रह-रहकर सूखे होठों पर जीभ फेर रहा था ।
"यह सब क्या है मोना चौधरी ?" पारसनाथ ने दांत भींचे मोना चौधरी को देखा --- "महाजन...।"
"बाबा के शब्द याद करो पारसनाथ ।" मोना चौधरी खतरनाक स्वर में कह उठी--- "यह मायावी नगरी है।"
"वो अजगर मायावी था ।" मोना चौधरी पहले वाले स्वर में कह रही थी--- "असली नहीं था । वो महाजन को निगलकर गायब हो गया । या फिर यूं समझ लो कि महाजन मायावी नगरी के लोगों की कैद में चला गया हैं ।"
"तो ?"
"ओह ! तो अब महाजन का क्या होगा ?" पारसनाथ का सख्त स्वर व्याकुल था ।
"कह नहीं सकती । मायावी नगरी के जो उसूल होंगे, उसी के मुताबिक महाजन के साथ सलूक किया जाएगा।"
"हो सकता है, महाजन की जान ले लें।"
"कुछ भी हो सकता है ।" मोना चौधरी ने सुर्ख आंखों से पारसनाथ को देखा-- "लेकिन हम महाजन के लिए कुछ नहीं कर सकते। उसके साथ जो होना था हो चुका । अब वो हमारी निगाहों से ओझल हो चुका है। "
दोनों की निगाहें मिली । बोला कोई भी कुछ नहीं । मोना चौधरी ने पाली और बंगाली पर निगाह मारी । "इस तरह यहां रुकना बेकार है।" मोना चौधरी की आवाज में गुस्सा था--- "यहां से चलो । इस घने जंगल में हमारे लिए और भी कई जादुई जाल होंगे । हमें उनसे बचकर आगे बढ़ना होगा।" एक बार फिर वो आगे बढ़ने लगे । पाली और बंगाली के चेहरों पर घबराहट स्पष्ट नजर आ रही थी । महाजन का उनके साथ न होना, सबको कष्टदायक लग रहा था।
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