वे बंगले या फार्म-हाऊस तो केवल 'वीकएंड' या छुट्टियां गुजारने के लिए बनाए गए हैं। इससे भी आगे निकलकर अगर यह कहा जाए तो गलत नहीं होगा कि वे धनाढ्य लोगों की मौज-मस्ती के केंद्र हैं ।


वीकएंड पर या किसी भी साप्ताहिक अवकाश के दिन वहां कुछ ज्यादा ही भीड़ हो जाती है इसलिए ---- जो अतिरिक्त सतर्कता बरतते हैं वे मौज-मस्ती के लिए दो वर्किंग डेज के बीच की रात को चुनते हैं।


ऐसी ही एक रात थी वह ।


स्थान का नाम ---- सिंहानिया फार्म हाऊस ।


करीब एक हजार गज में फैला ।


ऊंची चार दीवारी से घिरा । -


चार - दीवारी में लोहे का भारी-भरकम केवल एक ही गेट था ।


उसे पार करने के बाद फार्म हाऊस के अंदर बनी डाबर की सड़क पर करीब दस मिनट की ड्राइविंग करनी होती थी ।


तब कहीं जाकर संगेमरमर की बनी उस इमारत के दर्शन होते थे जो एकदम गोल थी और जमीन पर यूं खड़ी प्रतीत होती थी जैसे अंतरिक्ष में उड़ान भरने के लिए तैयार राकेट खड़ा हो ।


तीन मंजिला इमारत थी वह ।


शीर्ष वाला हिस्सा नोकीला ।


लोहे वाले गेट से वहां तक पहुंचने वाली सड़क के दोनों तरफ ही राकेटनुमा इमारत के चारों तरफ दूर-दूर तक फूल ही फूल नजर आते थे। जगह-जगह छोटे-छोटे पहाड़ और टीले थे । नहीं,


अशोक, देवदार और इलायची आदि के झूमते हुए वृक्ष ।


एक-सार कटी हुई मखमली घास ।


जैसे हरे रंग का इरानी कॉलीन बिछा हो ।


जगह-जगह फाऊटेंस और पानी बरसाते फॉल्स ।


पत्थरों से टकराकर पानी के बहने या गिरने से जो आवाज होती थी वह कानों को बहुत सकून पहुंचाने वाली थी ।


चार जोड़े थे वहां ।


धीरज सिंहानिया ---- किरन सिंहानिया ।


रतन बिड़ला ---- अवंतिका बिड़ला ।


रमेश भंसाली---- -


सुधा भंसाली ।


तथा संजय कपाड़िया - - मंजू कपाड़िया |


जहां वे थे ---- वह स्थान तो मानों जन्नत था ।


बिड़ला फार्म हाऊस का सबसे खूबसूरत स्थान |


- कोई लाइट नहीं थी उस वक्त वहां । माहौल को रोमांटिक बनाने के लिए शायद जान-बूझकर 'ऑन' नहीं की गई थी। रोशनी के लिए स्वच्छ और धुले हुए से आकाश पर असंख्य तारों के बीच चांदी के बहुत बड़े थाल - सा चंद्रमा जो मुस्करा रहा था। चारों तरफ उसी की चांदनी बिखरी पड़ी थी। जैसे चांदी को पिघलाकर बिखेर दिया गया हो। उसकी रोशनी में राकेट जैसी इमारत ताजमहल - सी जगमगा रही थी। झाग उगलता फॉल्स का बहता हुआ पानी यूं लग रहा था जैसे पिघली हुई चांदी बहती चली जा रही हो । फाऊटेंन चांदी को मानों राकेट के शीर्ष तक उछाल रहे थे । हवा में पानी की बहुत ही नन्हीं-नन्हीं फुहारें उड़ती फिर रही थीं । लॉन ही में थे वे चारों जोड़े। सबके हाथों में जाम । होठों पर मीठी मुस्कान और आंखों में मादकता से परिपूर्ण सुर्खी इस बात का एहसास करा रही थी कि वे अपने द्वारा बसाए गए इस 'स्वर्ग' का भरपूर आनन्द ले रहे हैं। कई की अंगुलियों के बीच सिगरेटें । छोटे से टीले को काटकर लॉन में 'बॉर - काऊंटर' बनाया गया था। उच्चस्तरीय सभी ब्रांड की बोतलें थीं वहां । इस सबके बाद शायद यह लिखने की आवश्यकता नहीं रह गई है कि उन सभी के जिस्मों पर एक से एक कीमती लिबास थे ।


चांदनी में एक-दूसरे को देखने की अभ्यस्त हो चुकी आंखें सुरुर के कारण सुर्ख थीं और आग-सी उगलती उन आंखों को वे एक दूसरे की पत्नी को देखकर शीतलता प्रदान कर रहे थे ।


पीछे पत्नियां भी नहीं थीं। चंद्ररूपी वे बिंदास नारियां अपने दहकते हुस्न की तपिश से गैर मर्दों को सुलगा देने पर अमादा थीं । बिड़ला फार्म हाऊस में एकत्रित हुए इन 'दम्पत्तियों' की आंखों में जहां वासना के डोरे तैर रहे थे वहीं, हल्की-सी बेचैनी भी थी । किन्हीं के इंतजार की बेचैनी ।


"सिंहानिया, तुम्हें पूरा यकीन है न कि वे आएंगे?” कपाड़िया के सब्र का बांध जब टूटा तो उसने एक बार फिर पूछ लिया । धीरज सिंहानिया हंसा। बोला- --- “कितनी बार सुनोगे यह बात ? अशोक बजाज का फोन अगले दिन ही मेरे पास आ गया था ।”


“अगले ही दिन !” सुधा भंसाली बोली ---- “इसका मतलब ज्यादा ही बेचैन हो उठा था पट्ठा !”


“आवाज से बेचैन ही नहीं रोमांचित भी नजर आ रहा था वह ।”


“वैसा ही रोमांचित हुआ होगा जैसी उस दिन तुम हुई थीं जिस दिन मैंने तुम्हें पहली बार बताया था कि हम एक ऐसी पार्टी ज्वॉइन करने वाले हैं जिसमें तुम्हें किसी और के साथ और मुझे किसी और के साथ इंज्वॉय करने का मौका मिलेगा ।" यह बात रमेश भंसाली ने अपनी पत्नी के गाल पर हल्का चुंबन अंकित करने के साथ कही थी ।


“तुम क्या कम रोमांचित थे ?” सुधा भंसाली भी पीछे न रही, आंखें तरेर कर बोली वह - - - - “पार्टी रात के दस बजे शुरु होने वाली थी और ऑफिस से जनाब चार बजे ही घर आकर बैठ गए थे जबकि आम दिनों में रात के बारह बारह बजे तक काम होता था । और पार्टी के लिए निकलते वक्त तो अपने जिस्म पर परफ्यूम की मानों पूरी शीशी ही उलट ली थी । यूं सज-संवर कर आए थे मानों तुमसे स्मार्ट 'लड़का' इस दुनिया में पैदा ही न हुआ हो ।”


“तुमने भी तो अपनी सबसे सैक्सी ड्रैस पहनी थी!” भंसाली ने मुस्कराते हुए कहा----“वह, जो मैं स्वीटजरलैंड से तुम्हारे लिए केवल बैडरूम में पहनने के लिए लाया था।"


“ और मैं यह सोच रहा हूं कि वे मुझे और अवंतिका को यहां देखकर खुद को किस कदर रोमांचित महसूस करेंगे!” रतन बिड़ला कहता चला गया - - - - “आप सभी जानते हैं ---- हमारे -- उनसे फैमिली ट्रम्स हैं। अक्सर एक-दूसरे के बंगले पर आते-जाते रहते हैं। मैंने कई बार बजाज को अवंतिका को प्यासी नजरों से देखते देखा है।”


“वह बेचारा तो प्यासी नजरों से ही देखता है, अपनी नहीं कहोगे।” अवंतिका ने आंखें तिरछी कीं - --- "जितनी बार चांदनी को देखा ऐसी नजरों से देखा जैसे उसे कच्ची गटक जाना चाहते हो।"


ठहाका!


बहुत ही जोरदार ठहाका गूंजा उसकी इस बात के जवाब में ।


सबका संयुक्त ठहाका था वह ।


धीरज सिंहानिया ने कहा ---- “दोष बिड़ला का नहीं है। चांदनी चीज ही ऐसी है । 'लड़कियां' अगर बुरा न मानें तो यह कहने में मुझे कोई संकोच नहीं है कि यहां मौजूद सभी लड़कियां अगर तारे हैं तो चांदनी चंद्रमा है। सांचे में ढला क्या जिस्म है उसका ! बजाज को क्लब का मेंबर बनाने के लिए तैयार करने की कोशिश करते वक्त मेरी आंखों के सामने उसका वही जिस्म तैर रहा था।"


“तुमने बजाज की मसल्स पर ध्यान नहीं दिया शायद कभी!” यह बात किरन सिंहानिया ने कही थी ।


“क्या मतलब?” धीरज सिंहानिया ने पूछा ।


“मुझे ख्वाब तक में नजर आती हैं वे। बांहों में तुम्हारी होती हूं और आंखें बंद करके कल्पना यह करती हूं कि असल में मुझे अशोक बजाज ने अपनी बांहों में भींच रखा है ।”


“अभी बताता हूं शैतान की नानी, मेरे सामने तेरी यह कहने की हिम्मत !” नकली गुर्राहट के साथ सिंहानिया घूंसा तानकर लपका।


“बचाओ कपाड़िया । ” कहने के साथ किरन सिंहानिया संजय कपाड़िया को बांहों में भरकर उसके पीछे जा छुपी।


एक बार फिर सब ठहाका लगाकर हंस पड़े ।


मंजू कपड़िया भी थी उनमें ।


सारा लान उनके ठहाकों की आवाज से गूंज उठा।


और ... अभी वह गूंज ठीक से शांत भी नहीं हो पाई थी कि वातावरण किसी कार के इंजन की आवाज से डिस्टर्ब हो गया ।


उनमें से किसी का रोमांच भरा स्वर----“वे आ गए ! ”


वह काले रंग की चमचमाती 'आइकॉन' थी जो पोर्च के नीचे पहले ही से खड़ी चार कीमती गाड़ियों के पीछे रुकीआ। बाईं तरफ का अगला दरवाजा खुला । और ! यूं लगा जैसे वहां फैली चांद की रोशनी अचानक बढ़ गई हो। एक दमकते हीरे ने वहां कदम रखते ही अपनी चमक से सारे लॉन को चकाचौंध कर दिया था । वहां मौजूद मर्दों ने अपनी आंखें कुछ ऐसे अंदाज में उस हीरे पर गड़ा दीं जैसे उसे गटक जाना चाहते हों। स्त्रियों की आंखों में ईर्ष्या के भाव उभरे थे।


आंखें फाड़े देखती रह गई थीं वे उसे ।


उनमें से कई ने उसे न केवल पहले भी देखा था बल्कि अवंतिका तो पहले ही से अच्छी तरह जानती भी थी मगर..


इस वक्त तो मानों वह कयामत ही ढा रही थी ।


हालांकि किरन, अवंतिका, सुधा और मंजू भी खूबसूरती के मामले में किसी से कम न थीं मगर चांदनी ने वहां कदम रखते ही उनकी चमक को ठीक इस तरह फीका कर दिया जैसे हीरे की चमक के आगे सभी नगीने फीके नजर आने लगते हैं ।



उसके रूप-यौवन के सामने खुद को बहुत बौनी- सी लगने लगी थीं वे । यूं - - - - जैसे चांद के सामने तारे ।


सुनहरी रंगत वाले अपने नपे-तुले जिस्म पर वह सफेद रंग की सितारों टंकी झिलमिलाती टाइट वनपीस ड्रेस पहने हुए थी ।


बाजू विहीन ड्रेस।


उसके बाजू दूध से गोरे, गोल और सुडोल थे ।


वक्ष-स्थल तना हुआ ।


गोल मुखड़ा । हिरनी की-सी बड़ी-बड़ी और चमकदार आंखें । माधुरी दीक्षित सी नासिका


मधुबाला से होंठ ।


और कपोल... किसी मासूम बच्चे के कपोल जैसे।


मस्तक पर डायमंड की बिंदी लगाए हुए थी वह ।


लंबे और घने बाल कसकर पीछे की तरफ गूंथे हुए।


अपने पति अर्थात् अशोक बजाज की बांहों में बांहें डाले जब वह लॉन की तरफ बढ़ी तो उसकी मदमस्त चाल को देखकर सिंहानिया, कपाड़िया, बिड़ला और भंसाली को लगा कि वह जमीन पर नहीं बल्कि लहराती नागिन बनकर उनके दिलों पर चल रही है।


जंच अशोक बजाज भी कम नहीं रहा था ।


काले रंग के सैंडो बनियान और मजबूत टांगों से चिपकी स्काई कलर की जींस में उसके कसरती जिस्म का एक-एक कटाव किरन, मंजू, अवंतिका और सुधा को अपनी तरफ खींचे ले रहा था।


अजीब किस्म की खामोशी छा गई थी लॉन में ।


जैसे किसी को भी कुछ कहने की सुध-बुध न रही हो ।


चांदनी का कद पांच फुट छ: इंच के करीब था । हीरे सी दमकती त्वचा इस बात का एहसास करा रही थी कि ईश्वर ने उसे बनाते वक्त किसी खास ही मिट्टी का इस्तेमाल किया था ।


लॉन में मौजूद आठों स्त्री-पुरुष यूं देखते रह गए थे उसे जैसे किसी समय शहजादा सलीम संगतराश द्वारा संगेमरमर को तराशकर बनाई गई अनारकली की मूर्ति को देखता रह गया था ।


बेमिसाल सुंदरता की मालकिन थी वह ।


“वेलकम फ्रेंड्स ।” जोशीले स्वर में कहने के साथ रमेश भंसाली जब उनकी तरफ लपका तो उसे देखकर अशोक बजाज के दिमाग को तीव्र झटका लगा । यह झटका उसे इसलिए लगा था क्योंकि रमेश भंसाली वही 'लड़का' था जिसे उसने 'लीला कांटीनेंटल' के डिनर हॉल में उस कयामतखेज हसीना के साथ देखा था, जिसे देखने के बाद उसके और सिंहानिया के बीच वह चर्चा चली थी ।


वह चर्चा जिसके परिणामस्वरूप वे इस वक्त यहां थे ।


“मुझे रमेश कहते हैं... रमेश भंसाली ।" उस वक्त वह अशोक के हाथ को अपनी हाथ में लेकर उसे जोर-जोर से हिला रहा था जब अशोक बजाज ने हकबकाई - सी नजरों से सिंहानिया की तरफ देखा ।


उस सिंहानिया की तरफ जो अपने होठों पर बहुत ही दिलचस्प और भेदभरी मुस्कान को नचाता हुआ उसकी तरफ बढ़ रहा था ।


उसका हाथ एक हसीना के कंधे पर था ।


वह वही हसीना थी जिसने लीला कांटीनेंटल के डिनर हाल में अशोक बजाज के ध्यान को बिजनेस की बातों से हटाकर अपनी तरफ खींच लिया था। उसे यहां देखकर अशोक बजाज ने अपने जिस्म में अजीब-सा रोमांच और सनसनी महसूस की ।


वह अवाक्-सा सिंहानिया की तरफ देखता रह गया ।


अभी वह अपने मुंह से कोई लफ्ज निकालने की अवस्था में आ भी नहीं पाया था कि सिंहानिया ने 'लड़की' का परिचय दिया ---- “इनसे मिलो बजाज | ये सुधा भंसाली हैं। मिसेज रमेश भंसाली।”


अशोक बजाज को जैसे लकवा मार गया था ।


कोशिश के बावजूद वह मुंह से कोई लफ्ज न निकाल सका ।


सुधा भंसाली को वह यूं देखता रह गया जैसे ख्वाब देख रहा हो ।


उसने तो ख्वाब में भी उम्मीद नहीं की थी कि यह उसे यहां देखने को मिलेगी। यहां... जहां वह उसके बिस्तर पर हो सकती है।


उसकी मनः स्थिति को भांपकर सिंहानिया के होठों पर नाचने वाली मुस्कान कुछ और गहरी हो गई । वह अशोक बजाज से मजा लेने के-से स्टाइल में बोला ---- “क्या सोचने लगे दोस्त?”


“त... तुमने... तुमने उस वक्त बताया नहीं था कि..


शब्द पुनः अधूरे रह गए।


“ पर यह तो बताया था न कि हम इस तरह एक-दूसरे के बारे में कभी किसी को नहीं बताया करते।" वह हंसा था ।


“ पर तुमने तो आपस में भी कोई बात नहीं की थी । एक ही हॉल में इस तरह बैठे रहे थे जैसे अपरिचित हो ।”


“हमारी इन पार्टियों का एक सिद्धांत यह भी है ।” सिंहानिया ने बताया ---- “पार्टी के बाद हम अपरिचित ही होते हैं।”


“अरे अवि।” तभी चांदनी के मुंह से ये लफ्ज निकले और वह लपकती-सी अवंतिका की तरफ बढ़ी- -“तू भी यहां है !”


“मैं तो इस मैदान की बहुत पुरानी खिलाड़ी हूं जानेमन।” कहने के साथ अवंतिका बिड़ला ने उसके स्वागत में दोनों बांहें पसार दी थीं, कहती चली गई वह --- “तेरी ही भर्ती नई-नई हुई है । "


“ और बहुत लेट हुई है।" यह बात किरन सिंहानिया ने कही।


अवंतिका की बांहों में कैद चांदनी ने किरन की तरफ देखा।


उसे लगा---- उसने उसे कहीं देखा है लेकिन याद नहीं कर पाई कि कहां? बहुत ज्यादा जान-पहचान नहीं थी उसकी उससे । तभी, अवंतिका ने यह कहते हुए उसकी दुविधा दूर की ---- “चांदनी, ये किरन है। मिसेज धीरज सिंहानिया ।”


“आपसे मिलकर खुशी हुई।” कहने के साथ चांदनी ने उसकी तरफ हाथ बढ़ा दिया जिसे किरन ने बड़ी गर्मजोशी के साथ पकड़ा।


उधर वे अपनी बातों में मशगूल हो गई थीं इधर रतन बिड़ला ने अशोक बजाज के नजदीक पहुंचकर हाथ मिलाते हुए कहा ----- “मैं हमारे इस क्लब में तुम्हारा स्वागत करता हूं बजाज । "


“कमाल है बिड़ला ।” बजाज हैरान था ---- “तुम भी..


“ मैंने तो कहा ही था ।” सिंहानिया बोला ---- “अपने “अपने आसपास तुम अपने ही स्टेटस के लोगों को पाओगे। ऐसे मौकों पर हम नौकरों तक की छुट्टी कर देते हैं। सामान्यतः हममें से कोई भी भले ही एक गिलास पानी भी खुद लेकर न पीता हो लेकिन इन पार्टियों में अपने सारे काम खुद करते हैं। तभी तो प्राइवेसी बनी रहती है।"


“लेकिन सिंहानिया।” बजाज हिचकता-सा बोला- “मुझे तुझसे एक बात कहनी है यार ।”


“बोल ।” बेतकल्लुफी शुरु ।


वह धीमे स्वर में बोला ---- “मैं चांदनी को इस पार्टी की खूबी के बारे में नहीं बता पाया हूं।"


“क्या बात कर रहा है ?” सिंहानिया के लहजे में हैरत का पुट था ।


“मैंने बहुत कोशिश की। मगर हिम्मत नहीं पड़ी। असल में मुझे वे शब्द ही नहीं सूझे जिनके जरिए चांदनी को इस बारे में बताता ।”


“तो फिर कैसे होगा? ये तो बहुत बड़ी समस्या है।" सिंहानिया का लहजा चिंता में डूब गया ---- “अगर वह तैयार नहीं हुई तो..


“डोंटवरी यार ।” रतन बिड़ला ने उसकी बात काटी ---- “अपनी पक्की फ्रेंड को इस रंग में रंगी देखकर वह भी रंग जाएगी । देख नहीं रहा----अवि से किस कदर घुट-घुटकर बातें कर रही है । "


“तो अवि से कह न कि उसे तैयार करे । "


“लेकिन संभलकर। धीरे-धीरे ।” बजाज फुसफुसाया----“तू तो जानता है। चांदनी ने आजतक शराब तक नहीं पी है । अवि को समझा कि उस पर सारे राज एक ही झटके में न खोले। पहले उसे व्हिस्की पिलाए। उसके बाद जब वह समझने लायक हो जाए तो..


“ मैं समझ गया ।” कहने के बाद रतन बिड़ला उस दिशा में लपका था जिधर चांदनी, अवंतिका और किरन खड़ी बातें कर रही थीं ।


कुछ देर बाद । तब, जबकि अंवतिका ने एक पैग तैयार करके होठों से लगाया।


“अरे!” चांदनी चौंकी----“तू व्हिस्की पीती है ?”


“इसमें क्या हुआ ?” अवंतिका ने हैरत प्रकट की। “व्हिस्की नहीं जानेमन ।” किरन हंसी - - - - “सोमरस कहते हैं इसे । सोमरस । वह, जिसका सेवन देवी देवता करते थे। हिंदी वालों ने इसका नाम बहुत ही खूबसूरत रखा है। इंग्लिश वाले जरा पीछे रह गए । " -


“म... मेरा मतलब वह नहीं था ।” चांदनी अवंतिका के हैरत प्रकट करने और किरन के हंसने पर थोड़ा सकपकाई-“मैं तो बस यह कहना चाहती थी कि यह बात मुझे आज ही पता लगी है। पहले कभी न मैंने देखा, न तुमने बताया..


“मैं केवल ऐसी पार्टियों में ही पीती हूं।” अवंतिका ने कहा।


किरन का एक और ठहाका ---- “ और ऐसी पर्टियों में यह केवल व्हिस्की ही नहीं, और भी बहुत कुछ पीती है ।”


“चुप्प... बेशर्म ।” अवंतिका ने किरन की पीठ पर धौल जमाया।


चांदनी ने पूछा“और बहुत कुछ से क्या मतलब?”


“ उसके बारे में बाद में जानना ।” कहने के साथ अपने दोनों हाथों में दो जाम लिए उसके नजदीक पहुंचती सुधा भंसाली ने एक गिलास उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा ---- “लो।”


“न... नहीं।” चांदनी सकपकाई-“मैं नहीं पीती ।”


“क... क्या ?” सुधा भंसाली ने इस तरह कहा जैसे चांदनी ने यह कहा हो कि वह रोज सुबह को ब्रुश नहीं करती है----“नहीं पीती?” फिर वह ऊंची आवाज में सभी को संबोधित करती इस तरह बोली जैसे न पीकर चांदनी अनर्थ करती हो-- - “सुनो दोस्तो, चांदनी रानी का कहना ये है कि ये व्हिस्की नहीं पीतीं ।”


“क्या बात कर रही हो ?” लगभग सभी ने अपनी-अपनी जगह से ये शब्द इस तरह कहे थे जैसे अनहोनी बात सुन ली हो ।


इससे पहले कि चांदनी कोई प्रतिक्रिया व्यक्त करे----


“लो न चांदनी ।” कहने के साथ सुधा के हाथ से गिलास लेकर अवंतिका ने चांदनी की तरफ बढ़ाया ---- “यहां तुम जो भी कुछ करोगी बाहर की दुनिया को उसके बारे में कुछ पता नहीं लगेगा।”


“नहीं अवि। मैं इस बात से डरकर इसे पीने से इंकार नहीं कर रही हूं कि किसी को पता लगेगा तो क्या होगा।”


“फिर?”


“ मैं इसे पीना अच्छा नहीं समझती ।”