आधा घंटा लगा, उस रास्ते पर बढ़ते हुए, बाग के किनारे पहुंचने के लिए । छड़ी से प्राप्त र वह हा किए हथियार उनके पास थे। उन हथियारों में गन भी थी । रिवॉल्वरें भी थीं । चाकू और खुखरी भी थे और भी कई तरह के हथियार उनके पास थे ।
देवराज चौहान ने जेब मे रिवॉल्वर और कमर पर बारह इंच लंबा चाकू बांध रखा था । सबसे आगे वही था । पीछे जगमोहन, सोहनलाल, बांकेलाल राठौर, रुस्तम राव और कर्म पाल सिंह थे । उनमें कोई खास बात नहीं हुई थी। परंतु बाग की समाप्ति पर सब ठिठके ।
सामने उजड़ा-उजड़ा जंगल नजर आ रहा था । कहीं-कहीं सूखे पेड़ खड़े नजर आ रहे थे। शायद ही किसी पेड़ पर कोई पत्ता नजर आया हो । वो बंजर पथरीली जमीन थी । छोटेछोटे पत्थर बिखरे नजर आ रहे थे । सिलसिला दूर तक ऐसा ही था ।
जगमोहन ने पलटकर देखा ।
बाग की खूबसूरती अभी भी मन मोह रही थी ।
"कैसी जगह अजीब बात है ।" जगमोहन कह उठा--- "बाग की खूबसूरती मन मोह रही है और साथ लगा ये सूखा और अजीब सा इलाका समझ से बाहर है।"
"बाप ।" रूस्तम राव कह उठा-- "बाबा बोएला कि बाग समाप्त होते ही मायावी नगरी का आरंभ होएला आपुन का ख्याल है कि आपुन लोग मायावी नगरी की सीमा पर खड़ेला हैं । "
बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर पहुंचा । बोला कुछ नहीं।
"आगे बढ़ो ।" देवराज चौहान ने कहा और आगे बंजर पर बढ़ गया ।
सब उसके पीछे चलने लगे ।
बांकेलाल राठौर ने कर्मपाल सिंह को देखा ।
"कर्म, थारे चेहरों की सुईया टेडी क्यों हौवे का, डर लगो हो ?" बांकेलाल राठौर बोला।
"डर नहीं लग रहा ।" कर्मपाल सिंह कुछ बेचैन सा था--- "अजीब सा लग रहा है । "
"का अजीबो लागे, थारे को ?"
"बाबा कह रहा था कि हम पाताल में हैं।" कर्मपाल सिंह ने चलते-चलते उसे देखा ।
"तो थारे को कंपी छिड़ो यो सोचकर ।"
"अजीब सा लग रहा है यह सोचकर, हम पाताल में है। धरती के नीचे हैं और यहां पर भी आसमान है । सूर्य है । धरती पर पहुंचकर लोगों को बताएंगे तो कोई विश्वास भी नहीं करेगा।"
"यो बात तो पते की कहो ।"
"क्या ऐसा नहीं हो सकता कि बाबा ने यूं ही झूठ कह दिया हो कि ये जगह पाताल है।" बांकेलाल राठौर ने गहरी निगाहों से कर्मपाल सिंह को देखा ।
"बाबा झूठ तो नहीं बोले । ये बात हमेशो के लिए सिरो में रख ले । कर्मपाल सिंह ने कुछ नहीं कहा ।
वक सब पथरीले रास्ते पर, सूखे पेड़ों के बीच में से गुजरते, आगे बढ़ते नजर आ रहे थे । देवराज चौहान की निगाह आगे बढ़ते हुए, हर तरफ फिर थी । वो मन ही मन बेहद सतर्क था । फकीर बाबा के कहे मुताबिक इस वक्त वो लोग मायावी नगरी में थे । जहां कभी भी कुछ भी हो सकता था । कोई भी अजीब हादसा उनके सामने आ सकता था ।
"कौन हो तुम लोग और कहां जा रहे हो ?" तभी मध्यम सी आवाज उनके कानों से टकराई। अगले ही पल वे सब ठिठक गए ।
उन्होंने इधर-उधर, हर तरफ देखा कोई नजर नहीं आया ।
"ये आवाज कहां से आई ?" जगमोहन के होंठों से निकला।
"कह नहीं सकता।" देवराज चौहान की सिकुड़ी निगाह हर तरफ फिर रही थी--- "आवाज कुछ इस तरह से आई थी कि उसका दिशानुमान नहीं लगा...।"
"कौन हो तुम लोग और कहां जा रहे हो ?" आवाज पुनः उनके कानों में पड़ी ।
वास्तव में आवाज कुछ इस तरह आ रही थी कि मालूम नहीं हो पा रहा था कि बोलने वाला किस दिशा में हो सकता है और उनके देखने पर, वो किसी भी दिशा में नजर नहीं आ रहा था।
"तुम कौन हो ?" देवराज चौहान का स्वर ऊंचा था।
"मैं---मायावी नगरी की सीमा की पहरेदारी करता हूं।" आवाज फिर आई ।
"पहरेदारी ।" देवराज चौहान इधर-उधर देखता हुआ बोला--- "यहां पहरेदारी की क्या जरूरत है । कौन आ सकता है । यहां । ये तो पाताल नगरी है ।"
"पाताल नगरी में तीन मायावी जातियां हैं। तीनों की एक-दूसरे की दुश्मन है और मौका मिलने पर एक-दूसरे पर हमला बोल देते हैं । इसलिए पहरेदारी जरूरी है । तुम लोग का धरती के लगते हो ।" आवाज आई ।
"हां । हम धरती से आए हैं ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"पाताल नगरी में कैसे पहुंच गए ?" आवाज आई ।
"ये बताना जरूरी नहीं समझता मैं । "
"क्या करने आए हो ?"
"ताज लेने ।" देवराज चौहान ने पहले वाले लहजे में कहा।
"ताज ?" अगले ही पल आवाज में हंसी शामिल हो गई ।
"थारे को हंसनो का दौरा पड़े हैं का ?" बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर पहुंचा ।
"ताज की बात पर तुम हंसे क्यों ? " देवराज चौहान ने पूछा ।
"चले जाओ वापस ।" आवाज आई --- "बेवकूफ हो तुम लोग । उस ताज को कोई नहीं ले सकता । उसी ताज में तो तिलस्मी नगरी की जान है । उस ताज को छीनने के लिए दूसरी मायावी जातियां हरदम कोशिश करती रहती है । वो ताज को नहीं हासिल कर सके आज तक । तुम इंसान क्या कर पाओगे।"
"हम ताज को हासिल करके रहेंगे।" जगमोहन दांत भींचकर कह उठा । "पागलों वाली बात मत करो ।" इस बार आवाज में सख्ती आ गई --- "वापस चले जाओ । आगे खतरे-ही-खतरे भरे पड़े हैं। किसी भी वक्त तुम सबकी जान...।"
"बाप ।" रूस्तम राव कह उठा--- "आपुन को जान का डर नेई होएला ।" "डरो तो तम हो जो छिपो के बातों करो। म्हारे सामने तो आवो ।"
"मैं तुम लोगों के सामने हूं। लेकिन तुम लोग मुझे देख नहीं पा रहे ।" आवाज आई।
"सामने कहां ?"
"आगे, नीचे जमीन पर देखो।"
सबने उस तरफ देखा ।
दूसरे ही पल सब चौंके ।
जिस रास्ते पर वो आगे बढ़ रहे थे, वहीं कुछ कदम आगे वो नजर आया । जो कि सिर्फ एक फुट का था । लंबाई-चौड़ाई के हिसाब से वो किसी बंदर के बच्चे के आकार का था ।
"तंम बोले हो ।" बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर जा पहुंचा । वो आगे बढ़ा । उसके चार कदम पहले ही ठिठककर उसे देखने लगा ।
"हां। मैं ही तुमसे बात कर रहा हूं ।" उस एक फीट के आदमी के होंठ हिले--- "लौट जाओ यहां से । आगे बहुत खतरे हैं । पृथ्वी से जैसे यहां आए हो, वैसे ही वापस चले जाओ । चाहूं तो मैं ही तुम लोगों को खत्म कर सकता हूं । लेकिन मेरी पहरेदारी मनुष्य के लिए नहीं है । दूसरी जाति के मायावी लोगों से लड़ने की है, अगर वो हमारी सीमा में प्रवेश करने की कोशिश करें तो...।"
"थारे को लड़ाई नहीं आवे का ?"
जवाब में वो हंसा।
"अंम थारे को एक ठोकर मारो तो तंम दोबारा नजर ना आयो ।"
"छोटा हूं ।" वो बोला ।
"म्हारे या फुटबॉल हौवे, वो भी थारे से बड़ा हौवे ।" बांकेलाल राठौर ने व्यंग्य से कहा ।
अगले ही पल वो फीट से चार फीट का हो गया ।
बांकेलाल राठौर हड़बड़ा कर दो कदम पीछे हुआ ।
दूसरों के चेहरों पर भी हैरानी के भाव उभरे ।
देवराज चौहान आकर्षक ओढ़े उसे देखे जा रहा था ।
"अब सब ठीक है ?" वो मुस्कुराकर बोला ।
"कमी रहे हो अभ्भी।" बांकेलाल राठौर के होठों से निकला ।
दूसरे ही पल वो चार फीट से आठ फीट का हो गया । उसी अनुपात से उसके शरीर का आकार-प्रकार फैलता चला गया था। बांकेलाल राठौर हड़बड़ाकर तीन कदम पीछे हट गया।
"अब ठीक है या मुझे और लंबा हुआ देखना चाहते हो ?"
"इत्ता ही बहुत हौवे ।" बांकेलाल राठौर जल्दी से बोला--- "थारे में स्प्रिंग लगो हो का ?"
"हम मायावी इंसान है । हम कभी भी कैसा भी रूप धारण कर सकते हैं। पहरेदारी हमें छिपकर करनी पड़ती है। ताकि दूसरी जाति के मायावी लोग धोखे में हम पर आक्रमण न कर सके ।" वो गंभीर स्वर में बोला फिर उसकी निगाह देवराज चौहान पर जा टिकी--- "तुम इन सबके बड़े लगते हो । मेरी बात मान कर वापस लौट जाओ । वरना रास्ते में जो होगा वो तुम सबकी जान ले लेगा।"
देवराज चौहान के चेहरे पर दृढ़ता के भाव नाच उठे ।
"हम ताज लेने आए हैं और ताज लेकर ही जाएंगे।" देवराज चौहान ने पक्के स्वर में कहा ।
"तुम लोगों की इच्छा । मनुष्यों को रोकना, मेरी पहरेदारी में नहीं आता । बेशक आगे बढ़ो । लेकिन एक वक्त ऐसा आएगा कि मेरी सलाह को याद करोगे ।"
इसके साथ ही देखते ही देखते वो छोटा होता चला गया । जब वो एक फीट का रह गया तो अपने नन्हे-नन्हे पैरों से चलता हुआ दूर होता चला गया।
वे सब एक दूसरे का चेहरा देखने लगे ।
कर्मपाल सिंह के माथे पर पसीने की नन्ही-नन्ही बूंदें उभर आई थी ।
"थारा पसीना क्यों होते हो ?" धर्मपाल सिंह पर नजर पड़ते ही बांकेलाल राठौर बोला ।
"ये...ये क्या था ?" कर्मपाल सिंह अजीब से स्वर में कह उठा ।
"तन्ने भी देखा, मन्ने भी देखा । फिर तू म्हारे से क्यों पूछो हो ।"
"मेरी तो समझ में कुछ नहीं आया कि...।"
"अभ्भी समझ में कुछ नहीं आया तो आगे को जाकर थारी समझ में आयेगा । या पे जो हो, वोई कमो हो । यो मायावी नगरी हौवे । जादू जैसा बोत कुछ थारे को देखने को मिले।"
कर्मपाल सिंह माथे का पसीना पोंछकर रह गया।
"बाप ।" रुस्तम राव देवराज चौहान से बोला--- "ये तो खतरनाक जगह होएला ।" "तुमने क्या सोचा था कि यहां फाइव स्टार होटल में ऐश करने आए हैं।" सोहनलाल व्यंग से कह उठा ।
ये तो नेई सोचेला, पण ये भी नेई सोचेला कि इत्ता गड़बड़ मामला होएला ।"
"छोरे । थारे को डर लगो का ?"
"बाप । आपुन तो बच्चा होएला ।" रूस्तम राव मुस्कुराया--- "बच्चों को क्या मालूम होएला कि डर और किधर को होएला । आपुन सामने शेर भी आ जाए तो, नासमझ बच्चे की तरह आपुन उससे भी खेइलेगा।"
"खुदो को बच्चा बोलो और बातों बड़ों-बड़ों की करो । अंम थारे को सिर से पैरों तक जानो। दूजो को बोलो बाप और खुदो सबका बापो हौवे ।" बांकेलाल राठौर ने मूंछ पर हाथ फेरा।
सोहनलाल ने गोली वाली सिगरेट सुलगाई ।
"तू तो खामखाह ही आपुन को तारीफ के काबिल बनाएला ।" रूस्तम राव ने गहरी सांस ली।
"ये बातें आगे बढ़ते हुए भी हो सकती हैं ।" देवराज चौहान बोला । "चल्लो-चल्लो । मन्ने कां मना कियो हो ।"
"इस बात का हर कोई अपने अपने दिमाग में बिठा ले कि कदम-कदम पर हमारा सामना मायावी शक्तियों से होगा।" देवराज चौहान बोला--- "किसी चीज से डरने की अपेक्षा, हमें हिम्मत और समझदारी से काम लेना है । कभी भी, कैसी भी अजीब घटना हमारे सामने आ सकती है । "
"लेकिन हम इन मायावी शक्तियों का मुकाबला कैसे करेंगे ।" जगमोहन ने कहा--- "अभी जो पहरेदार हमारे सामने आया था, अगर हमें आगे न बढ़ने देता तो हम उसका मुकाबला कैसे कर पाते ।"
"ये तो मैं नहीं जानता कि जरूरत पड़ने पर उसका मुकाबला कैसे किया जाता "म्हारे पासो हथियार हौवे हो।"
"मेरे ख्याल में जादुई ताकतों पर ये हथियार असर नहीं करेंगे बांकेलाल राठौर को देखा । देवराज चौहान ने कहा।
देवराज चौहान के चेहरे पर गंभीरता के भाव उभरे ।
"देवराज चौहान ठीक बोएला बाप ।" रुस्तम राव भी गंभीर था।
"आगे बढ़ो ।" देवराज चौहान ने कहा--- "जो होगा, देखा जाएगा । हमने हर हाल में ताज तक पहुंचना है।"
बादल कब के छंट गए थे । सूर्य सिर पर चढ़ा हुआ था । गर्मी और उमस से भरा मौसम मन को यूं ही बेचैन किए दे रहा था । वही पथरीला रास्ता तय करते-करते दोपहर हो गई थी । अभी भी हर तरफ सूखे पेड़ नजर आ रहे थे । कोई भी छायादार वृक्ष नहीं था कि चंद पल धूप से राहत मिल सके ।
देवराज चौहान उन सबसे चार कदम आगे ही चल रहा था। पसीने से उनके शरीर भीग रहे थे । परंतु किसी ने भी रुकने का नाम नहीं लिया था।
"मुझे भूख लग रही है ।" कर्मपाल सिंह ने खामोशी तोड़ी।
"यां पे चूल्हा नहीं है जलानो वास्ते ।" बांकेलाल राठौर ने कहा--- "म्हारे को भी भूख लगो । पण मन्ने न कहो किसी से । सबों के साथ हैं अंम पेट सबों का ही लगो हौवे।"
"हमें मालूम नहीं था कि आगे ऐसा रास्ता मिलेगा ।" चलते-चलते जगमोहन कह उठा--- "पता होता तो उस बाग से फल तोड़कर साथ ले लेते ।"
म्हारे को पैले मालूम हौवे तो अंम फलों को पूरा पेड़ ही 'वड' के साथ ले आयो।"
" बाप । तू तो बहुत महान हौवे ।" रूस्तम राव मुस्कुराया।
"ओ छोरे । म्हारो मजाक बनायो ।"
"मजाक नई करेला बाप । महान बोएला है कि तू पेड़ को उखाड़ के साथ लाईला । ये काम आपुन जैसे बच्चे का नेई होएला । जो पेड़ उखाडेली वो महान तो होएला ही ।" "यो छोरो तो म्हारी मूंछ पकड़ो कर, लटकने को हौवे । छोटों-बड़ों का जरो भी ख्याल नहीं।"
सोहनलाल ने गोली वाली सिगरेट सुलगाई ।
"हम गलत रास्ते पर तो आगे नहीं आ जा रहे ।" जगमोहन बोला--- "हो सकता है हमने गलत दिशा पकड़ ली हो ।
"मैं भी यही सोच रहा हूं।" सोहनलाल के होठों से निकला।
आगे चल रहा देवराज चौहान कह उठा।
"यहां के सब रास्ते हमारे लिए अनजान है। ऐसे में हम जिधर बढ़ रहे हैं। ठीक बढ़ रहे हैं । "
"लेकिन इस तरह हम कब तक बढ़ते रहेंगे ।" सोहनलाल ने कहा ।
"इस बात का जवाब मेरे पास भी नहीं है ।" देवराज चौहान ने बिना पीछे देखे कहा ।
आधे घंटे के बाद वे सब बेहद खूबसूरत बाग में पहुंच गए।
बाग को देखते ही सब हैरान रह गए।
वो बाग गोल्फ के मैदान से भी बहुत बड़ा था । बाग सीधा समतल न होकर कहीं से उठा हुआ था तो कहीं समतल था । फलों के पेड़, फूलों के पौधे, नीचे मुलायम हरी घास वहां की हर चीज को देखकर ऐसा लगता था जैसे कोई दिल से बाग की देखरेख कर रहा हो ।
दूर बाग में ही एक नदी बहती जा रही थी । पानी बहने की आवाज उस शांत माहौल में उन सब के कानों में पड़ रही थी।
"यो बागो तो पैले वालो बागों से घणा खूबसूरत हौवे । म्हारी पृथ्वी पर तो ऐसा कोई बागो ही देखने को न मिलो।" बांकेलाल राठौर की आंखों में हैरानी थी ।
"मुझे तो भूख लगी है ।"
कहने के साथ ही कर्म पाल सिंह सामने नजर आ रहे पेड़ की तरफ बढ़ गया । उस पेड़ के फल पककर नीचे को लटक रहे थे।
जगमोहन, देवराज चौहान से बोला ।
"ये जगह वास्तव में खूबसूरत है।"
"हां ।" देवराज चौहान के चेहरे पर गंभीरता थी ।
"क्या सोच रहे हो ?"
"ये मायावी-जादुई नगरी है ।" देवराज चौहान की आवाज में गंभीरता थी--- "यहां सच, झूठ है और झूठ सच है जो भी नजर आए उस पर विश्वास न करो और अविश्वास ही मत करो।"
"मैं समझा नहीं।" जगमोहन के चेहरे पर उलझन थी ।
"हम लोगों के लिए यहां कदम-कदम पर खतरा है। कभी भी, कोई भी अनहोनी हो सकती
"इस बाग में भी ?"
"हां । बाग में भी । बाहर भी । कहीं भी । कभी भी कुछ हो सकता है ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"तुम ठीक कहते हो ।" जगमोहन गंभीर स्वर में बोला--- "लेकिन हम सतर्क भी तो नहीं रह सकते । सतर्क रहें भी तो किससे । मायावी शक्तियों से । जो हमें नजर नहीं आती और हमारे पास में ताकत नहीं है उनका मुकाबला करने के लिए | सामने कोई इंसान हो तो उसका मुकाबला किया जा सकता है ।"
दो कदम दूर खड़ा सोहनलाल कह उठा।
"यहां तो हम किस्मत के सहारे हैं । फकीर बाबा को ऐसा कुछ देना चाहिए था कि हम मायावी शक्तियों का मुकाबला कर सकें।" सोहनलाल गंभीर था।
देवराज चौहान के होठों पर मुस्कान उभरी ।
"बाबा ने पहले ही कह दिया था कि यहां से बच कर आना संभव नहीं है । सारी स्थिति बाबा ने पहले ही हमारे सामने रख दी थी । हमारे साथ जो भी हो, बाबा उसके लिए जिम्मेदार नहीं है ।"
कर्मपाल सिंह पेड़ से ढेर सारे फल तोड़ लाया । सबने भरपेट फल खाकर भूख मिटाई । उसके बाद, आगे बढ़ने से पहले नदी में नहाने का प्रोग्राम बनाकर वे सब नदी की तरफ बढ़ गए।
बाग में नदी के किनारे बैठने की पत्थर की खूबसूरत कुर्सियां पड़ी थी । छाया के लिए उनके शेड पड़े थे । कुछ दूरी पर पत्थर का सफेद घोड़ा खड़ा था । बनाने वाले ने घोड़े को ऐसा बनाया था कि एकबारगी देखने में बिल्कुल असली लगता था । घोड़े की मूर्ति पर, पत्थर की ही जीन कसी हुई थी । लगाम भी नजर आ रही थी । ऐसा लगता था जैसे वो पत्थर का घोड़ा सफर के लिए बिल्कुल तैयार हो ।
"ऐसो तगड़ो घोड़ो तो मारी वो गुरदासपुरी वाली के घरों में था ।" बांकेलाल राठौर कह उठा--- "म्हारे को तो लगो कि उसो को ही देखकर, घोड़ों बनाने वालों ने, इसो घोड़ों की मूर्ति को बनायो ।"
"बाप । ये गुरदासपुर इधर-किधर बीच में आएला ।" ।
"अंम गुरदासपुर के घोड़ों की बात करो। छोरे, म्हारी गुरदासपुर वाली के साथो शादी हो जाती तो ईब थारे साइज के मारे छोरे होते । तंम म्हारी हर बातों के बीचो मत बोल ।"
"आपुन तो अब भी तेरा छोरा होएला बाप ।"
"तू म्हारे को बिना ब्याह के बापो मत बोल।" बांकेलाल राठौर ने मुझ पर हाथ फेरा--- "अंम बिना ब्याह के छोरे भी पैदा न करो । म्हारी बात को पल्ले बांध लो।"
"आपुन को तू छोरा बोएला बाप हां । "
"अंम थारे को छोरा बोलो । हां । "
"आपुन तुझे बाप बोएला। हां । "
"म्हारे बीकानेर में लड़के को, छोरा ही बोलया जावे ।"
"आपुन की मुंबई में, बातों में बाप बोलना, मामूली बात होएला ।"
"कर्मे ।" बांकेलाल राठौर, रुस्तम राव के सोलह वर्षीय मासूम चेहरे को घूर रहा था ।
"हां ।"
"यो छोरा तो म्हारे से जबरदस्तों का रिश्ता कायम करो हो।"
"कर ले ।"
"कां ?"
"रिश्ता कायम ।" "
बिन ब्याह के ।"
"क्या फर्क पड़ता है।"
"बहुत फर्क पड़ो हो । म्हारा इरादो तो इसो को गोद लेने का भी न हौवे । तंम इस को जानो न । यो तो शैतान हौवे। देखन में जरा सा लगे । काम के वकत तो दरिंदों बन जायो । पुरो जालिम हौवे ये ।"
"बच्चे को क्यों बदनाम करता है ।" कर्मा हंसा ।
"थारे को नेई पता कर्मे । थारे को छोड़कर बाकी सबो जाने इसरे की असलियत ।"
"बाप । आपुन को, काये को बदनाम करेला है । कर्मा ठीक बोएला कि आपुन शरीफ।"
"बातों में वक्त बर्बाद मत करो ।" देवराज चौहान बोला--- "जल्दी से नदी में नहा लो । फिर आगे बढ़ना है।"
उसके बाद सब नहाने की तैयारी करने लगे ।
"फकीर बाबा ने जब जहां पहुंचने को बोला था, हमें क्या पता चलेगा कि हम वहां पहुंच गए हैं।" नदी में नहाते हुए सोहनलाल कह उठा--- "हो सकता है, हमें यहीं पहुंचना हो या फिर जहां पहुंचना है, वो जगह पास हो ।"
देवराज चौहान की निगाह सोहनलाल की तरफ गई ।
"अभी हमने आगे जाना है ।" देवराज चौहान की आवाज में सोच के भाव थे--- "फकीर बाबा ने जहां पहुंचने को कहा है, यकीनन वो कोई खास जगह होगी और वहां पहुंचने पर, हमें इस बात का एहसास हो जाएगा।"
"म्हारे को भी यो ही लगे ।" बांकेलाल राठौर कह उठा ।
"उधर तो मोना चौधरी भी मिएला बाप ।"
"उसो को तो अंम 'वडेगा' ।"
"गोली से ।" जगमोहन मुस्कुरा कर कह उठा ।
"अंम गोली से सबको 'वडता' है ।" बांकेलाल राठौर की आवाज में सख्ती उभरी ।
नदी के ठंडे पानी में नहाने का मजा आ रहा था । उनकी सारी थकान उतर गई थी जैसे । करीब पन्द्रह मिनट वे नदी में रहे । फिर बाहर निकले । पहले रूस्तम राव निकला । गीले बदन पर ही पुनः कपड़े पहन लिए । सिर के गीले बालों में उंगलियां फेर कर उन्हें सीधा करते इधर-उधर देखने लगा । रह-रहकर उसकी निगाह घोड़े के सफेद बुत की तरह उठ रही थी । घोड़े के उस बुत में जाने क्या था, जो उसे आकर्षित कर रहा था । रुस्तम रावत बुत की तरफ बढ़ा।
देवराज चौहान भी नदी से बाहर निकला और कपड़े पहनने लगा ।
रूस्तम राव घोड़े के बुत के पास पहुंचा । उसे छुआ। घोड़े का बुत जाने किस चीज से बनाया गया था कि हाथ रखते ही, हाथ फिसल जाता था । इतना चिकना था वह । बुत में, वो इतना स्वस्थ घोड़ा था कि अगर वो वास्तव में असल घोड़ा होता तो सवारी का मजा आ जाता ।
"बाप ।" घोड़े के बुत को छूता रूस्तम राव ऊंची आवाज में देवराज चौहान से बोला--- "ये घोड़ा असली होएला तो आगे का सफर बोत आराम से कटेला ।"
देवराज चौहान के होठों पर मुस्कान उभरी ।
"ज्यादा सपने देखना अच्छा नहीं होता।" देवराज चौहान ने कहा ।
"आपुन तो यूं ही बात किएला है । "
"घोड़ा तो का, थारे को या पे सवारी के वास्ते गधो भी न मिलो ।" नदी में नहाते बांकेलाल राठौर बोला ।
"मालूम है बाप। कोई नई बात होएला तो वो बता ।" रूस्तम राव ने मुस्कुरा कर कहा। वह घोड़े के बुत के गिर्द फिरता, उस पर हाथ फेरता उसे देखे जा रहा था ।
"छोरे ।" नदी में से बांकेलाल राठौर पुनः बोला ।
"बोल बाप ।"
"यां से जिंदा बचो तो म्हारे साथ गुरदासपुर चल्लो।"
"उधर क्या होएला बाप ? "
"म्हारे को लगे तन्ने गुरदासपुर को घोड़े को न देखो । वो इसो पत्थर के बुतो से भी बड़ोंबड़ों हौवे । म्हारी उसो के घरों में भी घोड़ों हौवे । थारे को दो-चार बांधकर दिलवा
दियो।"
अगले ही पल रूस्तम राव ने पत्थर के घोड़े की पत्थर की रकाब में जूता फंसाया और उछलकर बुत की पीठ पर जा बैठा ।
देवराज चौहान ने रूस्तम राव की ये हरकत देखी तो मुस्कुराया ।
"बाप ।" रूस्तम राव घोड़े की बुत की गर्दन पर हाथ फेरता कह उठा ।
"किसो पुकारो तंम । थारे तो सबोही बाप हौवे ।"
"घोड़े के बुत बैठकर बोत मजा आएला है ।"
"म्हारे को तो असल पसंद हौवे । अंम तो नकल से दूर ही रहो ।" कहते हुए बांकेलाल राठौर भी नदी से निकला और कपड़े पहनने लगा ।
घोड़े के बुत पर बैठे-बैठे एकाएक रूस्तम राव के शरीर को कंपन से भरा तीव्र झटका लगा । रूस्तम राव घोड़े की गर्दन को पकड़कर संभल गया।
दूसरे ही पल रुस्तम राव के शरीर में झुरझुरी सी दौड़ गई।
उसके दोनों हाथ घोड़े की बुत की गर्दन पर थे और उसे लगा जैसे वो पत्थर के घोड़े पर नहीं, असली घोड़े पर बैठा हो । रूस्तम राव ने फौरन आंख फाड़कर देखा । वो ठगा सा रह गया ।
जिस पर अब वो बैठा था, वो घोड़े का बुत नहीं, बल्कि दूध की तरह सफेद स्वस्थ घोड़ा था । रूस्तम राव चौंका । वो समझ गया कि मायावी नगरी में कभी भी, कुछ भी हो सकता है । हर चीज में धोखे भरे पड़े हैं। उसने जल्दी से नीचे उतरना चाहा ।
लेकिन उसे लगा कि जैसे वो उस घोड़े के साथ चिपक कर रह गया हो ।
रुस्तम राव ने ऊंचे स्वर में बोलना चाहा ।
लगा कि जैसे होंठ चिपककर रह गए हों।
तभी उसके शरीर को हल्का-सा झटका लगा और घोड़ा जमीन से उड़ता हुआ आसमान की तरफ बढ़ने लगा । रुस्तम राव का दिल जोरों से धड़का। दोनों हाथों से घोड़े की गर्दन थामे जमा रहा । घोड़ा सामान्य गति से आसमान की तरफ बढ़ता जा रहा था । रूस्तम राव ने जरा-सी गर्दन घुमाकर नीचे देखा । वो नदी किसी लकीर की भांति लग रही थी । अपने साथी भी ठीक तरह से नजर नहीं आए । इतना ऊपर आ चुका था वो । दूसरे ही पल उसे महसूस हुआ कि घोड़ा आसमान की तरफ बढ़ना छोड़कर किसी खास दिशा की तरफ बढ़ने लगा है।
रूस्तम राव समझ चुका था कि गड़बड़ हो चुकी है । घोड़े के बुत पर बैठकर उसने भारी गलती की है। चूक हो गई थी उससे । वो उसी तरह घोड़े की पीठ से चिपका रहा । रूस्तम राव नहीं जानता था कि उसकी मंजिल कहां है । अब उसके साथ क्या होगा ?
***
0 Comments