मीना रमानी का अपार्टमेंट सेकेंड फ्लोर पर था ।
रंजीत ने इमारत के थोड़ी दूर कार्नर पर ही कार रुकवा दी । कार के दरवाजे लॉक करके दोनों कांस्टेबलों और एक महिला कांस्टेबल को साथ लिये वह प्रवेश द्वार की ओर बढ़ गया ।
द्वार खुला था । कोई चौकीदार भी वहां नहीं था । वे भीतर दाखिल होकर दबे पांव सीढ़ियां चढ़ गये ।
मीना रमानी के अपार्टमेंट का दरवाज़ा ठीक वैसा ही था जैसा कि एक फ्लोर ऊपर रजनी के अपार्टमेंट का था । उसी तरह का बेल पुश भी वहां लगा था और प्लास्टिक की नेम प्लेट पर नाम था–मीना रमानी !
एक कांस्टेबल और महिला कांस्टेबल ने दरवाजे के बायीं ओर पाजीशन ले ली । दूसरा कांस्टेबल रंजीत के पीछे तनिक दायीं ओर था ।
रंजीत ने बैल पुश दबाया ।
अंदर लगातार घण्टी बजने लगी ।
वह कोई तीन मिनट तक पुश को दबाये रहा ।
अंदर से बातचीत के स्वर उभरे ।
दो आवाजें थीं–एक स्त्री की और दूसरी पुरुष की ।
फिर खामोशी छा गयी और फिर स्त्री की ऊंची आवाज़ सुनायी दी–"आ रही हूं । कौन है ?...अनवर ?"
आखिरी शब्द दरवाजे के ठीक पीछे से यूं सुनायी दिया जैसे उसका मुंह दो–एक इंच ही दूर था ।
–"अनवर नहीं है, डार्लिंग...!" रंजीत बोला–"पुलिस है…दरवाज़ा खोलो…जल्दी वरना हम तोड़ देंगे ।"
कुछेक पल कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई । फिर सेफ्टी चेन हटाकर दरवाज़ा खोल दिया गया ।
सामने मौजूद युवती को रंजीत फौरन पहचान गया । रजनी द्वारा दी गयी फोटो से वह पूरी तरह मिल रही थी । लेकिन बिखरे बालों और नींद भरी आंखों की वजह से ज्यादा आकर्षक नजर आयी । मात्र ढीला–सा बेदिंग गाउन पहने थी । बायां पैर आगे रखा जाने होने की वजह से गाउन दायें कूल्हे पर कस गया था ।
बड़ा ही उत्तेजक पोज था । रंजीत ने अपना आइडेंटीटी कार्ड खोलकर उसे दिखाया ।
–"रंजीत मलिक, इंसपेक्टर क्राइम ब्रांच !"
युवती पलभर के लिये बुरी तरह चौंक गयी नजर आयी । फिर उसके जबड़ों का कसाव ढीला पड़ गया, उनींदी आंखों में मादकता उभरी और होंठ आमंत्रणपूर्ण मुस्कराहट में खिंच गये ।
उत्तेजक पोज और कातिलाना मुस्कराहट ।
रंजीत ने बेचैनी–सी महसूस की । उसे लगा मर्दखोर औरत उसे बिस्तर पर ले जाने के लिये ललचा रही थी ।
मीना ने दरवाज़ा पूरा खोल दिया ।
–"आइये मिस्टर मलिक ! मैं मीना रमानी हूं ।"
रंजीत ने स्वर में हल्का–सा उपहास नोट किया ।
–"अपने दोस्तों को भी अंदर ला सकता हूं ?"
–"जिसे चाहें ले आइये…!"
चारों अंदर प्रवेश कर गये ।
अपार्टमेंट का भूगोल भी रजनी के अपार्टमेंट जैसा ही था ।
मीना रमानी ने साइड बोर्ड पर बनी छोटी–सी बार से अपने लिये ड्रिंक बनाया ।
–"फरमाइये, में आपके लिये क्या कर सकती हूं, मिस्टर मलिक ?" सर को खास अंदाज में झटककर बोली–"मेरा मतलब है, आप सबके लिये क्या कर सकती हूं ?"
–"आराम से बैठो और कुछेक सवालों का जवाब दो ।"
–"बड़ा ही बोरिंग काम बता रहे हो । आप तीनों के लिये मैं और भी बहुत कुछ कर सकती हूं । ऐसा कि हमेशा याद रखोगे...और, हां, मोहतरमा को खुश करने की खास खूबी भी मेरे अंदर हैं ।"
महिला कांस्टेबल उसके पास आ गयी ।
–बैठ जाओ ! अपनी खास खूबी अपने पास ही रखो ।"
उसका स्वर शांत होते हुये भी अर्थपूर्ण था–अगर मीना नहीं बैठी तो जबरन बैठा दी जायेगी ।
मीना उसे घूरकर गिलास थामे सेटी पर बैठ गयी ।
रंजीत भी एक कुर्सी पर बैठ गया । बाकी तीनों खड़े रहे ।
रंजीत की निगाहें मीना रमानी के चेहरे पर जमी थीं । लेकिन एक और चीज ने उसका ध्यान आकर्षित किया ।
दोनों के बीच में मेज पर फिलिप्स का एक बड़ा टेपरिकार्डर रखा था । सफेद पुते पुराने फायर प्लेस के पास एक बुक शैल्फ पर पावर फुल ट्युनर एम्प्लीफायर भी मौजूद था । उसकी लीड रिकार्डर से जुड़ी थी । मन ही मन व्याकुलता–सी अनुभव करता रंजीत मीना के भावहीन चेहरे से ज्यादा इन दोनों उपकरणों को लेकर आशंकित था ।
–"मैं राकेश मोहन के बारे में तुमसे बातें करना चाहता हूं ।" वह बोला ।
–"किसके बारे में ?"
–"राकेश मोहन !" उसने दोहराया–"राकेश मोहन...वह मर चुका है । तुम उसे जानती थीं ।"
–"हाँ ।"
–"कितनी अच्छी तरह ?"
–"बस जानती थी ।"
–"कितनी अच्छी तरह ?"
–"कोई लड़की किसी आदमी को जितना अच्छी तरह जानती है ?"
रंजीत खड़ा हो गया ।
–"ठीक है ! कपड़े पहनो ।"
मीना मुस्करायी ।
–"ऐसे बढ़िया नहीं लग रही हूं ।"
–"उठो । कपड़े पहनो ।"
–"किसलिये ?"
–"इसलिये कि मैं मज़ाक करने नहीं आया हूं ।"
–"मज़ाक कर कौन रहा है ?"
–"तुम ? मेरे सवालों का जवाब देने की बजाये उल्टे सवाल कर रही हो । उठो कपड़े पहनो ।"
–"इससे तुम्हें कोई फायदा नहीं होगा ।"
–"बहस मत करो ।"
महिला कांस्टेबल ने आगे झुककर मीना के हाथ पर हाथ मार दिया ।
गिलास हाथ से छूट गया ।
–"उठो !"
मीना हिली तक नहीं ।
–"क्यों ?"
गिलास मेज पर गिरकर कारपेट पर लुढ़क गया था । उससे बिखरी पानी मिश्रित व्हिस्की टेप रिकार्डर पर फैलने से बाल–बाल बची ।
–"तुम्हें हैडक्वार्टर्स चलना होगा ।" रंजीत बोला–"राकेश मोहन की शिनाख़्त करने के लिये...!"
मीना का चेहरा पीला पड़ गया ।
–"राकेश मर चुका है...!"
–"उसकी फोटुएं तो हैं ?"
चंदेक पल भयभीत–सी नजर आयी मीना पुन: सामान्य हो गयी । उसके चेहरे की रंगत लौट रही थी ।
–"क्या तुम ज़बरदस्ती मुझे अपने साथ ले जा सकते हो ?"
–"अगर तुम चलने से इंकार करोगी तो ज़बरदस्ती भी कर सकते हैं । इसके लिये बस एक फोन करना होगा ।"
कुछेक पल खामोशी रही । दोनों चुनौती भरी निगाहों से एक–दूसरे को घूरते रहे ।
रंजीत दायीं ओर रखे टेलीफोन उपकरण पर झुक गया । उसकी उंगलियां रिसीवर पर कस गयीं ।
–"ओ० के० ।" मीना बोली–"मैं बातें करने को तैयार हूं ।"
–"अब हैडक्वार्टर्स चलकर ही बातें करना ।"
–"तुमने तो कहा था...!"
–"वो तब की बात थी, बेबी । मैं सिर्फ एक ही मौका दिया करता हूं और तुम अपना मौका गवां चुकी हो ।"
–"हरामजादा ।"
रंजीत मुस्कराया । आस–पास देखा ।
–"कहां है ?"
मीना चुप रही ।
–"तुम कपड़े पहनती हो ?" रंजीत ने टोका–"या मैं फोन करूँ ? बेहतर होगा कपड़े पहन लो ।"
–"ओ० के० । लेकिन तुम्हें अपना भला–बुरा भी सोचना चाहिये ।"
–"वो सब सोचना मैं छोड़ चुका हूं ।"
मीना कुटिलतापूर्वक मुस्करायी ।
–"पछताओगे ।"
–"उठो !" महिला कांस्टेबल ने सख्ती से कहा–"कपड़े पहन लो ।" और बेडरूम के दरवाजे की ओर बढ़ गयी ।
ज्योंहि मीना रमानी उठी एक पुरुष कांस्टेबल उसके पास आ गया ।
तभी महिला कांस्टेबल ने दरवाज़ा खोला ।
–"वाह ! यहां कोई और भी मौजूद है, सर !" रंजीत उसके पास आ गया ।
अंदर बिस्तर पर चादर डाले भारी बदन का एक आदमी तकियों पर सर रखे लेटा था । उसके एक हाथ में लड़कियों की नंगी तस्वीरों वाली मैगजीन थी और दूसरे हाथ की उंगलियों में सुलगता हुआ सिगरेट दबा था । पास ही कुर्सी पर मर्दाना कपड़े पड़े थे ।
–"दयाशंकर !" रंजीत बोला–"तुम जैसा घटिया आदमी यहां क्या कर रहा है ?"
दयाशंकर ने सिगरेट का कश लिया ।
–"कैसा मजेदार इत्तिफाक है ? क्या एन्ट्री ली है, इंसपेक्टर ?"
–"साला कमीना है ।" एक कांस्टेबल बड़बड़ाया । वह भी दयाशंकर को जानता था ।
रंजीत मुस्कराया ।
–"मेरा ख्याल है, जब हम सब हैडक्वार्टर्स पहुँचेंगे तो तुमसे मिलकर और लोगों को भी बहुत मजा आयेगा । तुम अपनी मर्जी से साथ चलना चाहते हो, या एस० पी० को फोन करके वारंट मंगवाऊं ?
–"मुझे किसलिये साथ ले जाना चाहते हो ? उस लड़की के साथ सोने की वजह से जो मेरी बीवी नहीं है ?"
–"वजह भी कोई सोच ही लूँगा ।"
–"मसलन ?"
–"अश्लील पत्रिकाएँ बेचने से लेकर दल्लागिरी तक कुछ भी ।"
दयाशंकर गहरा कश लेकर धृतष्टतापूर्वक मुस्कराया ।
–"आज रात वाकई मज़ाक के मूड में हो, इंसपेक्टर ।"
–"मुझे आज रात तुमसे इतनी ज्यादा नफरत हो रही है जितनी पहले कभी नहीं हुई, दयाशंकर ! बिस्तर से उतरो, अपने कपड़े पहनो और हमारे साथ हैडक्वार्टर्स चलो । अगर तुमने मेरे पांच गिनने तक तैयार होना शुरू नहीं किया तो मैं पुलिस ऑफिसर ऑन ड्यूटी पर हमला करने के जुर्म में गिरफ्तार करके ले जाऊँगा ।"
–"मैंने किसी पर हमला नहीं किया है और न ही करने वाला हूँ ।"
–"जानता हूं फिर भी मैं यही साबित कर दूँगा ।"
–"मैं अपने वकील को फोन करना चाहता हूँ ।"
–"हैडक्वार्टर्स से करना, बच्चे ! रेडी ? वन…टू…।"
–"बुरी तरह पछताओगे, इंसपेक्टर ।"
–"...थ्री...फोर...!"
–"तुम्हारे साथ यहां एक पुलिस वोमैन भी है । उसके सामने कपड़े मैं नहीं...!"
–"आदमियों का नंगापन मैं बहुत बार देख चुकी हूं ।" महिला कांस्टेबल बोली ।
मीना रमानी भी अंदर आ चुकी थी । दरवाजे में खड़े तीन आदमियों की जरा भी परवाह किये बगैर उसने अपना गाउन उतार फेंका ।
–"मुझे ताज्जुब हो रहा है, इंसपेक्टर !" अण्डरवीयर पहनती हुई वह चहकी–"क्या मुझे इस हालत में सामने पाकर तुम गर्मा नहीं रहे ?"
–"...पांच...!"
दयाशंकर बिस्तर से कूदकर कपड़े पहनने लगा ।
–"गर्मा गये, इंसेपेक्टर ?" मीना रमानी ने अण्डरवीयर और ब्रेसियर में सामने से अपना पूरा नजारा कराते हुये फंसे से कामुक स्वर में पुन: पूछा–"मैंने भी जोश में ला दिया रजनी राजदान की तरह ?"
–"शटअप, बेवकूफ़ कुतिया ।" दयाशंकर चिल्लाया ।
रंजीत के दिमाग में एक बार फिर सर्द आशंका उभरकर रह गयी ।
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