दो घण्टे से ऊपर का वक्त हो चुका था, सोहनलाल को वी.सी.आर. की कैसेट बदलते। इस वक्त उसने पांचवीं कैसेट वी.सी.आर. पर लगा रखी थी। अब तक देवराज चौहान और जगमोहन को आ जाना चाहिये था। परन्तु वह नहीं लौटे थे। उन दोनों में से किसी ने आकर कोई खबर भी नहीं दी थी।

सोहनलाल ने घड़ी देखी। रात के ढाई बजने जा रहे थे।

सोहनलाल ने गोली वाली सिगरेट सुलगाई और सोचभरे ढंग से टी.वी. स्क्रीन पर आने वाले दृश्यों को देखने लगा। उसे लगा वह अब यूं ही कैसेट बदल रहा है। यह सब तो इसलिए किया गया था कि देवराज चौहान और जगमोहन भीतर प्रवेश कर सकें और किसी को खबर न हो।

और बीते दो-ढाई घण्टों में भीतर वालों को आसानी से इस बात का एहसास हो गया होगा कि वो भीतर आ चुके हैं और कईयों से उनकी मुलाकात भी हो चुकी होगी।

ऐसे में ये कैसेट चलाकर, उन्हें धोखा देने वाली बात खत्म हो चुकी थी। हो सकता है वे लोग, यह जानने की कोशिश कर रहे हो कि कहां खराबी आ गई है, जिसकी वजह से उनका कैमरा काम नहीं कर रहा और इस बात की पूरी संभावना है कि देवराज चौहान और जगमोहन कहीं फंस गये हों या फिर पचास करोड़ के डॉलरों को समेटकर बाहर लाने में दिक्कत हो रही हो।

आखिरकार फैसला करके सोहनलाल उठ खड़ा हुआ। यही सोचा था उसने कि वह भीतर जायेगा। ब्रूटा के प्राईवेट हिस्से में। अब तक तो भीतर जो होना था, वह तो हो चुका होगा।

सोहनलाल ने औजारों वाली बेल्ट कमर से बांधी।

औजारों वाला छोटा-सा बैग गले में लटकाया। उसके बाद वह दरवाजे की तरफ बढ़ने लगा कि ठिठक गया। बेड के नीचे से कराहने की आवाज आई थी। सोहनलाल ने नीचे झुककर देखा। वो गनमैन होश में आ रहा था। सोहनलाल ने जूते की ठोकर उसकी कनपटी पर मारी तो वह पूरी तरह बेहोश हो गया।

सोहनलाल केबिन से बाहर निकला। दरवाजा बंद करके सिटकनी चढ़ाई और ऊपर से ताला लगाकर आगे बढ़ गया। गैलरी खाली थी। वो घूमकर, दूसरी गैलरी में आया, जिसके आखिर में ब्रूटा के प्राईवेट हिस्से में प्रवेश करने के लिये दरवाजा था।

इस वक्त वहां कोई गनमैन नहीं था। पास पहुंचकर सोहनलाल ने दरवाजा खोलना चाहा वो बंद था। उसने दो-तीन बार धकेल कर महसूस किया कि दरवाजा लॉक्ड नहीं है। भीतर से सिटकनी लगा रखी है।

सोहनलाल के लिये परेशानी खड़ी हो गई कि भीतर कैसे प्रवेश करे।

दरवाजे के अलावा भीतर प्रवेश करने का कोई और रास्ता था भी तो वो किसी रास्ते से वाकिफ नहीं था। कोई और रास्ता न पाकर सोहनलाल ने दरवाजा थपथपाया।

दो मिनट तक बार-बार थपथपाता रहा।

लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। भीतर से नहीं खोला गया।

अब क्या करे?

कैसे भीतर प्रवेश करे?

सोहनलाल ने गोली वाली सिगरेट सुलगाई और कश लिया।

बहुत सोच-विचार के साथ वो इस नतीजे पर पहुंचा कि कहीं से तोड़-फोड़कर ही रास्ता बनाना होगा। या फर्श को तोड़ना होगा। या दीवार को। तभी भीतर प्रवेश कर सकेगा। उसके बाद जो होगा देखा जायेगा। इस वक्त उसके दिमाग में एक ही बात थी कि उसे भीतर जाना है।

फर्श को तोड़ना लगभग नामुमकिन बात थी।

जहाज का फर्श था।

लेकिन किसी दीवार को तोड़ना, काट पाना आसान था। जैसे कि उसने दीवार में छेद करके कैमरे की तार को ढूंढ निकाला था। लेकिन कहां की दीवार तोड़े? ऐसा करते हुए कोई भी देख सकता था। तोड़-फोड़ का शोर सुनकर कोई भी आ सकता था। शक में पड़ सकता था।

परन्तु इस खतरे को उठाये बिना काम भी नहीं चल सकता था।

सोहनलाल को जहाज के नक्शे के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी कि, कहां से वो भीतर जाने को रास्ता बनाये। आखिरकार उसने यही फैसला किया कि अपने केबिन के पीछे वाली दीवार में से ही रास्ता बनाकर, भीतर प्रवेश किया जाये।

सोहनलाल वापस अपने केबिन में पहुंचा।

औजारों वाला बैग और कमर में बांध रखी बेल्ट खोलकर एक तरफ रखी फिर अपने हिसाब से वो दीवार को देखने लगा। सारी जगह चेक की फिर बैग में से ऐसे औजार निकाले, जिनसे कम आवाज हो और लकड़ी की दीवार को जल्दी-से-जल्दी काटा जा सके।

एक घण्टे की मेहनत के पश्चात सोहनलाल ने तीन फीट चौड़ा-तीन फीट लम्बा और छः इंच गहरा खाना, दीवार में बनाया। हर तरफ लकड़ियों के छोटे-छोटे पीस बिखरे पड़े थे। इस काम में आवाज न के बराबर ही उभरी थी। रात के वक्त वो आवाज भी तेज ही थी। लेकिन किसी तरह का कोई खतरा सामने न आया। कोई केबिन का दरवाजा थपथपाने नहीं आया।

यानि कि सब ठीक रहा था।

इस सारे काम के दौरान सोहनलाल सिर से पांव तक पसीने से भर उठा था। वो जो बेड के नीचे बेहोश पड़ा था। जब वो होश में आने को हुआ तो सोहनलाल ने उसे पुनः बेहोश कर दिया था।

गोली वाली दो सिगरेट पीने के पश्चात तीसरी सुलगाकर होंठों में फंसाई और पुनः दीवार में रास्ता बनाने के काम में लग गया।

इस बार पौन घण्टा ही लगा।

दीवार कुल बारह इंच मोटी थी। बाकी की छः इंच काटने में, पैंतालीस मिनट ही लगे और तीन फीट चौड़ा-तीन फीट लम्बा चौकोर रास्ता नजर आने लगा। और स्पष्ट नजर आ रही थी वो गैलरी, जो दरवाजा पार करने के पश्चात थी।

सोहनलाल की आंखें चमक उठीं।

उसने जेब से रिवॉल्वर निकाली। हिल चुके साईलेंसर को सेट किया। फिर उस जगह के भीतर सिर डालकर गैलरी में देखा। वहां तेज रोशनी फैली हुई थी और वो खाली थी। सोहनलाल ने सिर वापस किया और कमर में औजारों वाली बेल्ट बांधी। गले में औजारों वाला छोटा बैग लटकाया फिर रिवॉल्वर संभाले तैयार हुई जगह की तरफ घूमा कि ठिठक जाना पड़ा।

जो बेहोश पड़ा था। उसके होंठों से चूं-चूं की आवाज निकली थी।

सोहनलाल ने उसकी कनपटी पर जूते की हल्की-सी ठोकर मारी तो वह फिर बेहोश हो गया। उसके बाद रिवॉल्वर थामे, बने रास्ते में से अपने जिस्म को निकाला तो दूसरे ही पल वो गैलरी में था। दूसरे ही पल वो आगे बढ़ गया। पहले तो यह देखना था कि देवराज चौहान और जगमोहन कहां हैं?

गैलरी पार करके वो ड्राईंगरूम में पहुंचा।

जो कि बिल्कुल खाली था।

वह देवराज चौहान के साथ इस हिस्से में आ चुका था। इसलिये यहां के रास्तों से वह अच्छी तरह वाकिफ या। हॉल पार करके वो बेडरूम के दरवाजे के पास पहुंचा। उसे चेक किया। बंद नहीं था।

सोहनलाल ने दरवाजा खोला और भीतर प्रवेश करके देखा।

वो बिल्कुल खाली था। बेड पर बिछी चादर की हालत बता रही थी कि लेटना तो दूर बेड पर कोई बैठा भी नहीं है। सोहनलाल ने सोचभरे ढंग में सिगरेट सुलगाई। दो कश लिए, यही सोचते हुए बाहर निकला कि देवराज चौहान और जगमोहन कहीं आस-पास ही होंगे।

लेकिन दरवाजे से बाहर निकलते ही ठिठका।

कंधे पर गन लटकाये एक आदमी भीतरी तरफ से आ रहा था। उस पर निगाह पड़ते ही वो हैरानी से भर उठा। दूसरे ही पल गन कंधे से उतरकर हाथ में आ गई।

“कौन हो तुम?” उसने सख्त-सतर्क स्वर में कहा।

सोहनलाल पल भर के लिये तो सकपकाया फिर तेज स्वर में कह उठा।

“जानता नहीं तू मेरे को।”

“क्यों?” गनमैन का स्वर कठोर हो गया –“तेरे को जानना जरूरी है क्या?”

“तमीज से बात कर मैं ब्रूटा का जीजा हूं।”

“जीजा?”

“जीजा जी बोल । ब्रूटा की बहन मेरे साथ ब्याही है। तू शादी में गन लेकर नहीं खड़ा था क्या?”

सोहनलाल ने यह बात इतने विश्वास के साथ कही कि वो उलझन में नजर आया।

“जवाब क्यों नहीं देता?”

“मैं शादी में नहीं था। कहीं और ड्यूटी होगी मेरी –।” उसके होंठों से निकला।

“उल्लू का पट्ठा। सलाम मार मेरे को –।”

उसने फौरन गन नीचे करके सलाम मारा।

“ब्रूटा कहां है? उसकी बहन की तबीयत ठीक नहीं है।” सोहनलाल हकभरे स्वर में कह उठा।

“साहब की बहन, जहाज पर –।”

“हां गधे! हम भी जहाज पर है। जल्दी कर मुझे ब्रूटा के पास ले चल।”

वह कुछ समझा या नहीं समझा। लेकिन सिर हिलाने लगा।

“मुंह से नहीं फूटेगा, कहां है ब्रूटा या?”

“वो तो गेम्स हॉल में है।” कहने के साथ उसने सोहनलाल के हाथ में पकड़ी रिवॉल्वर को देखा –“यह रिवॉल्वर आपने हाथ में क्यों पकड़ रखी है? यहां तो कोई खतरा –?”

“बेवकूफ शादी में आया होता तो, यह सवाल न करता। जब फेरे हो रहे थे, मैंने तब भी रिवॉल्वर पकड़ रखी थी। सब जानते हैं कि एक हाथ से खाना खाता हूं तो दूसरे हाथ में रिवॉल्वर होती है। फालतू के सवाल,मत कर। ब्रूटा के पास चल –।”

“आईये –।”

☐☐☐

करीब पांच मिनट चलने और वहां की कई जगहों से गुजरने के बाद, सोहनलाल को लिए गनमैन एक दरवाजे के सामने ठिठका और उसने सोहनलाल को देखा।

“क्या है?” सोहनलाल ने उसे घूरा।

गनमैन के चेहरे पर अजीब-से भाव उभरे।

“आप तो यहां पर कई बार आ चुके हैं।” गनमैन उलझे स्वर में कह उठा।

“ब्रूटा का जीजा हूं। हजारों बार आया हूं। आगे बोल –।”

“तो आपको मालूम होगा कि यह दरवाजा कहां का है?”

सोहनलाल ने दरवाजे पर निगाह मारी। समझ नहीं पाया कि क्या कहे।

“तू सवाल-जवाब बहुत करता है। ब्रूटा ने तेरे को सिर पर चढ़ा रखा है क्या?” सोहनलाल सख्त स्वर में बोला।

गनमैन के होंठ सिकुड़े।

“मैंने तो आपसे सिर्फ यही पूछा है कि यह दरवाजा कहां का है?”

“क्यों पूछा?” सोहनलाल ने पहले वाले लहजे में कहा।

“आप पर विश्वास करके आपको मैं यहां तक ले आया। जबकि आज से पहले मैंने आपको कभी नहीं देखा। आपने कहा, आप ब्रूटा साहब के जीजा हैं। मैंने मान लिया। अब अपनी तसल्ली के लिए, आपसे यह बात पूछी है कि कहीं मैं किसी गलत आदमी को तो यहां नहीं ले आया?” गनमैन ने शांत स्वर में कहा।

“गलत आदमी–हैं–ब्रूटा के जीजा को यानि कि तू मुझे गलत आदमी समझता है।” सोहनलाल जैसे हत्थे से उखड़ पड़ा और समझ भी रहा था कि मामला बिगड़ने जा रहा है –“वहां चल, तेरे को बताता हूं।”

“वहां?” गनमैन उलझन में पड़ा।

“चल तो सही –।”

सोहनलाल, गनमैन को उस दरवाजे से पन्द्रह कदम दूर ले गया।

“अब सुन जो मैं बोलता हूं।”

“जी –।”

“ब्रूटा का मैं कुछ नहीं लगता। उस साले का तो मैंने, पहले कभी थोबड़ा भी नहीं देखा।”

“क्या?” गनमैन चौंका। अगले ही पल फुर्ती से उसने गन सीधी करनी चाही।

तब तक सोहनलाल के हाथ में दबी, साईलेंसर लगी रिवॉल्वर से बे-आवाज गोली निकलकर उसके पेट में प्रवेश कर चुकी थी। गन उसके हाथ से निकल गई। दोनों हाथों से पेट थामे वो नीचे गिर गया। सोहनलाल उसे होंठ भींचे देखने लगा। लग रहा था कि जैसे अभी उसकी जान नहीं निकलेगी। सोहनलाल ने रिवॉल्वर की नाल उसके सिर से लगाई और दांत भींचकर ट्रिगर दबा दिया।

गनमैन के सिर की धज्जियां उड़ गई।

सोहनलाल ने अपनी रिवॉल्वर कपड़ों में छिपाई। नीचे झुककर, उसकी गन उठाई और पलटकर, उस बंद दरवाजे की तरफ बढ़ता चला गया।

और वो दरवाजा गेम्स हॉल का ही था।

☐☐☐

ब्रूटा पागल हुआ पड़ा था।

उसका चेहरा गुस्से और पागलपन के भावों से भरा पड़ा था। आंखों में लाली भरी स्पष्ट चमक रही थी। सुबह के चार बजने जा रहे थे और वो देवराज चौहान, जगमोहन और मलानी को ‘पिन’ वाली रिवॉल्वर से यातना देने पर उतारू था।

उन तीनों के जिस्मों में जाने कितनी ‘पिन’ धंसी पड़ी थीं। उनके जिस्म दर्द का सागर बन रहे थे। दर्द की ऐसी लहरें बार-बार उठ रही थीं कि जिस्म सूखे पत्ते की भांति कांप उठता था।

दहशत में भरी अनिता गोस्वामी यह सब देख रही थी। कुर्सी पर बंधी होने के कारण, वह उठने की स्थिति में नहीं थी और रहम के लिये चिल्ला-चिल्ला कर थक-हार गई थी।

वैशाली दिल पर पत्थर रखे सब देख रही थी। वह कुछ नहीं कर सकती थी। उसके बस में कुछ नहीं था। क्योंकि ब्रूटा के दो खास-खतरनाक गनमैन वहां मौजूद थे। बाकी गनमैनों को ब्रूटा ने अपने केबिनों में भेज दिया था और मजे से मौत का खेल, खेलने में व्यस्त था।

यानि कि वहां ब्रूटा और सिर्फ उसके दोनों गनमैन थे। बाकी देवराज चौहान, जगमोहन, वैशाली और अनिता गोस्वामी थीं। दोनों गनमैन गनों के साथ सतर्क, बिल्कुल सतर्क खड़े थे।

सोहनलाल ने जब जरा-सा दरवाजा खोलकर भीतर झांका तो तब ब्रूटा ठहाका लगा रहा था। भीतर का सारा नजारा देखने-समझने, के बाद सोहनलाल सिर से पांव तक गुस्से की आग में जल उठा।

“बहुत हो गया।” ब्रूटा ठहाका रोकते हुए बोला –“ये होता है मौत का खेल। धीरे-धीरे मारो और बंदा मरे भी नहीं। तुम तीनों के जिस्म में दो सौ सुईंया धंसी पड़ी हैं। बहुत मजा आ रहा होगा। लेकिन अब मुझे मजा आना बंद हो गया है। इस खेल से मैं बोर हो गया हूं।” कहने के साथ ही उसने हाथ में पकड़ी सुईंया फेंकने वाली रिवॉल्वर फेंककर वैशाली को देखा –“कितना वक्त हो गया?”

“सुबह के चार बजने वाले हैं।” वैशाली मुस्कराई।

“थकान होने लगी है, ये खेल-खेलकर –।” ब्रूटा ने गहरी सांस ली जैसे बहुत बड़ा काम करके हटा हो।

“चिन्ता मत करो डार्लिंग! मेरे होते हुए थकान का क्या काम।” वैशाली हंसी –“इस काम से निपटो। उसके बाद तो तुम्हारी थकान ऐसी उतारूंगी कि लंच से पहले बेड से नहीं उठोगे।”

ब्रूटा मुस्कराया फिर उसने कुर्सी पर बंधे तीनों को देखा।

“एक ही खेल को बार-बार नहीं खेलना चाहिये।” ब्रूटा टहलते हुए कहने लगा –“अब मुझे ही देखो, बोरियत होने लगी है मुझे, इन सब बातों से । देवराज चौहान और जगमोहन, अब तुम दोनों अपने दोस्त महादेव के पास पहुंचने जा रहे हो। बेकार में तुम दोनों ने जान गंवाने की जिद कर ली। बाजी पलटने से पहले मेरी बात मान लेते तो इस वक्त हम दोस्तों की तरह बैठे...।”

“तुम्हारे कान खराब हैं।” जगमोहन कह उठा –“तुम्हें सुनाई नहीं दिया था। हमने तुम्हारी दोस्ती कबूल कर ली थी। बल्कि मैंने तो तुम्हें, अपनी गोद में बैठने को भी कह दिया था।”

“अच्छा!” ब्रूटा के होंठों से व्यंग्यभरा स्वर निकला।

“अब मेरी बात तेरे को ही सुनाई नहीं दी तो क्या करूं।” जगमोहन जल्दी से कह उठा –“मैंने तो सोचा था कि हम लोग जैसलमेर घूमने चलेंगे। देखा है तुमने जैसलमेर? क्या बढ़िया जगह है! सिंगापुर भूल जाओगे। वहां पर इतना बढ़िया कुतुब मीनार बना है कि दिल्ली का कुतुब मीनार भूल जाओगे।”

ब्रूटा के चेहरे पर कड़वे भाव उभरे।

“कुतुब मीनार। जैसलमेर में?” ब्रूटा ने तीखे स्वर में कहा।

“हां। इसका मतलब तुमने नहीं देखा। तुम वहां रविवार को नहीं पहुंचे होंगे।”

“खूब! बातों में मजा आ रहा है। रविवार को जैसलमेर में क्या होता है?”

“सोम से लेकर शनि तक कुतुब मीनार जमीन में धंसा रहता है। रविवार को दिन का उजाला शुरू होते ही वो बाहर निकलना शुरू हो जाता है, और सूर्य निकलने तक पूरा का पूरा बाहर आ जाता है और सूर्य डूबते ही वो वापस धंसना शुरू हो जाता है फिर अंधेरा होने तक वो पूरा जमीन में धंस जाता है। उसके बाद फिर अगले रविवार को निकलता है।”

“हां।” ब्रूटा ने सिर हिलाया –“याद आया। मैंने भी देखा है। उस कुतुब मीनार को।”

“देखा है।” जगमोहन सकपकाया –“कब?”

“जब तुमने देखा –तब मैं भी वहीं था।” ब्रूटा ने जहरीले स्वर में कहा –“तब हम मिले भी थे।”

“मुझे भी याद आ गया। तब तुमने हाथ में कटोरा पकड़ा हुआ था।” जगमोहन की आवाज तीखी हो गई।

ब्रूटा के दांत भिंच गये।

“मौत को सामने देखकर, तुम्हारा दिमाग खराब हो गया लगता है।” ब्रूटा गुर्राया।

“मुझे भी ऐसा ही लग रहा है। तुमने जहाज पर अपने लिए पागलखाना बना रखा है तो मुझे फौरन वहां ले चलो।”

एकाएक ब्रूटा हंस पड़ा।

“मरते हुए इंसान को पागलखाने की जरूरत नहीं होती मिस्टर जगमोहन।” ब्रूटा ने विषैले स्वर में कहने के बाद देवराज चौहान को देखा –“मरने से पहले कैसा लग रहा है देवराज चौहान?”

“बहुत बुरा।” देवराज चौहान का स्वर शांत था।

“मरना तो सबको ही बुरा लगता है। मौत से कौन नहीं डरता।” ब्रूटा हंस पड़ा।

“मैं मौत से नहीं डर रहा ब्रूटा! मैं जानता था, कभी भी मौत के चक्रव्यूह में फंस सकता हूं। इसलिये जान जायेगी, इस बात का मुझे गम नहीं। सिर्फ एक ही अफसोस है इस तरह कुर्सी से बांधकर मुझे मारा जा रहा है।”

“अपना-अपना स्टाईल है।” ब्रूटा हंस पड़ा –“जंगल में घूमते शेर का शिकार, लोग छिपकर करते हैं। लेकिन मैं अपने ही ढंग से शिकार करता हूं। पहले शेर को गर्दन से पकड़ता हूं। उसके हाथ-पांव बांधता हूं। उसके बाद उसे तड़पा-तड़पा कर मारता हूं। जैसे कि तुम मरने जा रहे हो।”

“इसे शिकार नहीं कहते, हमारी दुनिया में –।” देवराज चौहान ने होंठ भींचकर कहा।

“तो फिर किसे शिकार कहते हैं?” ब्रूटा की आवाज में कड़वापन आ गया।

“शिकार खुले में ही होता है, ताकि सामने वाले को भी अपनी जान बचाने का मौका मिले। लोग इसलिये जंगल में शिकार खेलने जाते हैं कि मुकाबला बराबरी का रहे। इस तरह कुर्सी पर बांधकर तुम दूसरे के बाल नोंचो और कहो कि तुमने शिकार कर लिया है तो, तुम जैसे बहादुर के लिये ये शर्म की बात है।”

“मैं सिर्फ जीतने में विश्वास रखता हूं। शिकार कैसे भी किया जाये, सामने वाले को मरना चाहिये और अब तुम लोग मरने जा रहे हो।” ब्रूटा मौतभरे स्वर में कह उठा।

“कुत्ते हो तुम –।” मलानी गुर्रा उठा।

“करते रहो बकवास।” ब्रूटा दरिन्दगी से बोला और वहां सतर्क मुद्रा में खड़े गनमैनों से कहा –“तुम दोनों की गन में जितनी भी गोलियां हैं, वो सब इन तीनों के जिस्मों में उतार दो।”

“नहीं।” अनिता गोस्वामी चीख उठी –“ऐसा मत करो।”

वैशाली ने आंखें बंद कर लीं। चेहरे पर अफसोस के भाव आ गये।

गनमैनों ने फौरन गनें सीधी कीं।

अगले ही पल वो हॉल फायरिंग के शोर से गूंज उठा। गोलियां रुकने का नाम नहीं ले रही थीं। करीब आधा मिनट फायरिंग होती रही।

हैरानी से ब्रूटा की आंखें फैलती चली गई। उसके देखते ही देखते उसके दोनों गनमैन गोलियों से छलनी-छलनी होकर इधर-उधर गिर पड़े थे। शरीर से बहता खून कालीन को गीला करने लगा। ब्रूटा की निगाह तुरन्त दरवाजे की तरफ घूमती चली गई।

वहां गन थामे सोहनलाल खड़ा था।

“ब्रूटा साहब को मेरा नमस्कार। आपके हजूर में गोलियां बरसाता हूं।” सोहनलाल मुस्कराया।

“कौन हो तुम?” ब्रूटा पागलपन वाले अंदाज में गुर्रा उठा।

“बंदा इस काबिल नहीं कि अपनी तारीफ खुद कर सके। वैसे इस बदनाम आदमी को सोहनलाल कहते हैं। ताले-तिजोरी खोलना मेरा काम है। गोलियां चलाना मुझे पसन्द नहीं।”

“तो अब क्यों चलाई?” ब्रूटा गुस्से से मुट्ठियां भींच रहा था।

“आपने मजबूर किया। सबसे पहले आपको जगमोहन को खत्म करना चाहिये था। क्योंकि उसकी डायरी में एक पन्ना मेरे नाम का है। जिसमें वो खामख्वाह का उधार मेरे नाम पर चढ़ा देता है। और इतनी देर से आपने उसे ही खत्म नहीं किया तो मुझे गुस्सा आ गया। चला दी गोलियां।” कहने के साथ ही सोहनलाल कुर्सियों पर बंधे उनकी तरफ बढ़ा –“हिलना मत ब्रूटा अभी गन में बहुत गोलियां बाकी हैं।” पास पहुंचकर वो देवराज चौहान को खोलने लगा कि थके स्वर में मलानी कह उठा।

“पहले मुझे खोलो। फायरिंग की आवाज सुनकर दूसरे गनमैन आते होंगे। उन्हें संभालना जरूरी है।”

“सोहनलाल! ये ठीक कहता है पहले मलानी को खोलो।” देवराज चौहान ने कहा।

सोहनलाल, मलानी के पास पहुंचकर उसके बंधन खोलने लगा। परन्तु वह ब्रूटा के प्रति पूरी तरह सतर्क था जो कि अपनी जगह पर खड़ा घायल शेर की तरह गुर्रा रहा था।

तभी ब्रूटा की निगाह वैशाली की कुर्सी के पास पड़ी रिवॉल्वर पर पड़ी। वैशाली से इसकी आंखें मिलीं तो ब्रूटा ने आंखों ही आंखों में उसे इशारा किया कि रिवॉल्वर को उसकी तरफ ठोकर मार दे।

वैशाली ने रिवॉल्वर को देखा फिर दूसरी तरफ मुंह घुमा लिया।

ब्रूटा दांत पीसकर रह गया।

मलानी को खोलने के बाद, सोहनलाल, देवराज चौहान को खोलने लगा।

बदन में धंसी पड़ी सुईंयों की वजह से मलानी का शरीर अकड़ रहा था। पीड़ा के कारण सिर चकरा रहा था। परन्तु अगले ही पल, सब कुछ भूलकर, वो सोहनलाल के हाथ में थमी गन पर झपटा। कम से कम सोहनलाल को मलानी से ऐसी किसी हरकत की आशा नहीं थी।

गन मलानी के हाथ में पहुंच गई।

अगले ही पल गन से जाने कितनी गोलियां निकली और ब्रूटा के शरीर के हिस्सों में धंसती चली गईं जो, वैशाली की कुर्सी के पास पड़ी रिवॉल्वर को झपटकर, उठाने जा रहा था।

वैशाली चीखकर, कुर्सी से उठ खड़ी हुई।

ब्रूटा खून में डूबा, नीचे लथपथ पड़ा था। उसे तड़पने का भी मौका नहीं मिला था। अपनी शिकारगाह में वो खुद शिकार हो गया था।

सबकी निगाहें ब्रूटा की लाश पर टिक चुकी थीं।

“मैंने तो समझा था तुम, हमें मारने जा रहे हो।” सोहनलाल ने मुस्कराकर मलानी को देखा।

मलानी के दांत भिंचे हुए थे। चेहरे पर खतरनाक भाव थे।

“बहुत आसान मौत मर गया हरामजादा।” मलानी दांत भींचकर कह उठा।

वैशाली, अनिता गोस्वामी को खोलने लगी थी।

देवराज चौहान और जगमोहन के बंधन भी खुल गये। परन्तु शरीर में धंसी सुईंयों ने उनके जिस्म को अकड़ाकर, लगभग नाकारा कर रखा था।

तभी उनके कानों में कई दौड़ते कदमों की आवाजें पड़ी फिर देखते ही देखते खुले दरवाजे से छः गनमैनों ने भीतर प्रवेश किया जो फायरिंग की आवाज सुनकर आये थे। भीतर का नजारा देखते ही उनके चेहरों पर अविश्वास के भाव आये। उन्हें विश्वास नहीं आ रहा था कि ब्रूटा मर गया है।

मलानी अपनी पीड़ा को भूलकर, गन थामे आगे बढ़ा। गनमैनों के पास पहुंचा। उसकी गन का रुख गनमैनों की तरफ ही था और चेहरे पर दृढ़ता के भाव थे।

“देख क्या रहे हो।” मलानी सख्त स्वर में बोला –“ब्रूटा मर चुका है। मरे आदमी का साथ, मर कर ही दिया जा सकता है, लेकिन मेरा साथ तुम लोग जिन्दा रहकर भी दे सकते हो। बोलो क्या इरादे हैं।”

ब्रूटा की मौत के साथ ही सारे हालात बदल गये थे।

“हम आपके साथ हैं मलानी साहब –।”

मलानी के चेहरे पर राहत के भाव उभरे। उसने गन नीचे कर ली।

“मेरे बदन से सुईयां निकालो।” मैलानी बोला।

दो गनमैन मलानी के जिस्म में धंसी सुईंयां निकालने लग गये। वैशाली और अनिता गोस्वामी, देवराज चौहान और जगमोहन के जिस्मों में धंसी सुईंयां निकालने लगीं।

दस मिनट में ही उनके जिस्मों में धंसी सुईंयां निकल चुकी थीं, जिससे जिस्म से उठती पीड़ा को भरपूर राहत मिली थी। परन्तु दर्द की तीव्र कसक उन्हें बराबर महसूस हो रही थी।

मलानी, देवराज चौहान के पास पहुंचा।

“मेरी जान बचाकर, तुमने बहुत बड़ा अहसान किया है।” कहते हुए मलानी ने गहरी सांस ली।

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई।

तभी जगमोहन कह उठा।

“ठीक है। अहसान तो कर दिया होगा। पहले तू ये बता वो पचास हजार डॉलर कहां हैं, जो –?”

“ब्रूटा के बेडरूम में।” मलानी ने कहा।

“ठीक-ठाक है। कुछ कम तो नहीं है?”

“नहीं। पूरे पचास करोड़ डॉलर हैं।” मलानी ने सिर हिलाया।

“इतनी बड़ी रकम ब्रूटा को क्यों दी गई, किसने दी?” जगमोहन उलझन में कह उठा।

“आई.एस.आई., पाकिस्तान की तरफ से मिली है। जिसकी एवज में ब्रूटा ने कई जाने-माने मंत्रियों की हत्या करनी थी, ताकि हिन्दुस्तान की बुनियादें हिल जायें। समझो, ब्रूटा ने पाकिस्तान के साथ ठेका लिया था कुछ कामों का। यह उन्हीं की पेमन्ट है।”

मलानी ने गम्भीर स्वर में कहा।

“वो क्या है कि पाकिस्तान की भेजी रकम को हाथ लगाने का दिल तो नहीं करता, चूंकि वो अमेरिकन करेंसी में है इसलिये, ले लेने में हर्ज भी नहीं है। ब्रूटा के बेडरूम में चल –।”

मलानी ने गनमैनों को देखा।

“तुम लोग यहां की हर जगह कवर कर लो। बाहर से कोई भी भीतर न आ सके। अपना कोई आदमी आना चाहे तो कह देना, ब्रूटा साहब ने इस वक्त आने को मना किया है। वैसे इस वक्त कोई इधर आयेगा नहीं। यहां क्या हुआ है, किसी को हवा देने की भी जरूरत नहीं है।”

छः के छः गनमैन फौरन बाहर निकल गये।

देवराज चौहान, जगमोहन, सोहनलाल, मलानी, वैशाली और अनिता गोस्वामी, ब्रूटा के बेडरूम में पहुंचे।

☐☐☐

दीवार के साथ करीने से लगा रखे ये, डॉलरों वाले पांच थैले। आर-पार दिखाई देने वाले प्लास्टिक के हर थैले में दस करोड़ डॉलर थे।

“वाह!” जगमोहन फौरन उन प्लास्टिक के बोरों की तरफ लपका –“पचास करोड़ डॉलर! इतनी बड़ी रकम को देखकर ही मजा आ गया! मैं तो –।”

“ज्यादा मजा मत ले।” सोहनलाल व्यंग्य से कह उठा –“जहाज पर शायद डॉक्टर भी न मिल पाये।”

तभी वैशाली, जगमोहन के पास पहुंची।

“हैलो।” उसने जगमोहन की पीठ ठकठकाई।

जगमोहन पलटा।

“पहचाना मुझे।” वैशाली मुस्कराई –“मैं तुम्हारी दोस्त हूं।”

“कोई खास बात है क्या?” जगमोहन ने उसे गहरी निगाहों से देखा।

“हां। मेरे ख्याल में तुमने अभी शादी नहीं की।”

“नहीं –।”

“मैं तैयार हूं शादी के लिये –।” उसने मीठे स्वर में कहा –“मेरे जैसी बीवी पाकर –।”

“एक मिनट। वो बीवी पाने की कोशिश में है।” जगमोहन ने सोहनलाल की तरफ इशारा किया –“वहां जाकर कोशिश करों। सिफारिश मैं कर दूंगा। बात बनने के पूरे चांसेज हैं।”

“मैं गाय नहीं हूं कि टूटे-फूटे खूंटे पर बांध दिया।” वो मुंह बनाकर बोली।

“मतलब कि मैं बढ़िया खूंटा हूं।”

“एकदम फिट। और फिर तुम्हारे पास इतनी बड़ी दौलत है। तुमसे बढ़िया खूंटा और कौन-सा होगा।”

“मौसी जी!” जगमोहने व्यंग्य से कह उठा –“थैंक यू–धन्यवाद। मेहरबानी।”

“क्या मतलब?”

“मैं आपके बेटे के बराबर हूं। छोटा-सा, नन्हा-सा हूं। मेरे से शादी करके आप मुझे बिगाड़ रही हैं। टूटे-फूटे खूंटे से शादी की बात करनी है तो कर लो। माल उसके पास भी बहुत है। ये जुदा बात है कि उसे नहाने का वक्त नहीं मिलता। नया कपड़ा पहनेगा तो उतारेगा तब जब वो फटने पर आ जायेगा। मतलब कि धुले कपड़े पहनने की उसे आदत नहीं है। नये जूते लेगा और फटने पर ही पांवों से निकालेगा। शाही आदतें हैं इसकी। नोटों को मालूम नहीं कहां छिपाकर रखता है। वो अलग बात है कि उसके सामने आने पर लगेगा कि अभी पैसे मांग उठेगा।”

वैशाली ने मुंह बनाया।

“तुम मुझसे मजाक कर रहे हो।”

तभी सोहनलाल पास पहुंचा और दांत फाड़कर बोला।

“ये, मेरी तारीफ कर रहा है। सोहनलाल कहते हैं मुझे। मेरे लायक कोई सेवा हो तो बोलो। खूंटा टूटा-फूटा ही सही, लेकिन बड़ी से बड़ी भैंस को बांध रखने का दम रखता हूं। तुम तो मेरी नजरों में कट्टा ही हो। यकीन मानो बहुत शरीफ बंदा हूं मैं। लोग मेरी शान में तारीफों के पुल खड़े कर देते हैं, जैसे कि दो-तीन पुल अभी-अभी जगमोहन ने खड़े किए हैं।”

“शटअप –।” वैशाली खीझकर कह उठी।

“हो जाता हूं।” सोहनलाल ने तुरन्त दांयें-बांयें सिर हिलाया।

देवराज चौहान ने मलानी को देखा।

“ब्रूटा की मौत के बाद जहाज पर अब तुम्हारी क्या पोजिशन है?” देवराज चौहान ने पूछा।

“ब्रूटा जैसी ही है।” मलानी ने पक्के स्वर में कहा –“जहाज पर मेरी पूरी चलेगी।”

“तो इस जहाज को फौरन रुकवाओ।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा –“यह जहाज समन्दर में डूबने जा रहा है। यात्रियों और जहाज के कर्मचारियों को सेफ्टी बोटों पर यहां से निकाल दो।”

“जहाज को तबाह करने की जरूरत है?” मलानी गम्भीर हो गया।

“बहुत जरूरत है। जिस रास्ते से जहाज में माल लाया और भेजा जाता है। उसके बारे में ब्रूटा के कई खास आदमी जानते हैं। कोई भी इसी रास्ते का फायदा उठाकर, फिर से ब्रूटा वाला काम शुरू कर सकता है।”

“ठीक कहते हो। मैं अभी थर्ड मेड, अजीत सिंह को कहता हूं कि वो यात्रियों को सुरक्षित पानी में उतार दें। इंजन रूम में भी सबको समझाकर आता हूं।” मलानी बोला।

“ठहरो।” वैशाली फौरन कह उठी –“मैं साथ चलती हूं। अजीत सिंह को मेरे बारे में स्पेशल बोल देना कि सबसे पहले वो मुझे बोट में बिठाये।”

“शादी नहीं करनी क्या?” जगमोहन व्यंग्य से कह उठा।

“वो बाद की बात है। किसी और को ढूंढ लूंगी।” वैशाली, मलानी की तरफ बढ़ती हुई बोली।

“मैं तैयार हूं। मेरे जैसा नेक बंदा तुम्हें पूरी दुनिया में नहीं मिलेगा।” सोहनलाल फौरन बोला।

“टूटे-फूटे खूंटे से, बंधने से अच्छा है कि बिन ब्याही ही रह जाऊं।” वैशाली ने उखड़े स्वर में कहा।

“तू तो बिन ब्याही रह सकती है, लेकिन मेरा क्या होगा।” सोहनलाल ने गहरी सांस ली।

“जाओ मलानी।” देवराज चौहान बोला –“जल्दी वापस लौटना।”

मलानी और वैशाली बाहर निकल गये।

अनिता गोस्वामी, देवराज चौहान के पास पहुंची।

“तुम बहुत अच्छे इंसान हो। अपनी जुबान के पक्के हो।” अनिता गोस्वामी के स्वर में आभार के भाव थे।

जवाब में देवराज चौहान हौले से मुस्कराया।

“ब्रूटा को खत्म करके तुमने देश का ही नहीं, जनता का भी बहुत भला किया है। नहीं तो उसके द्वारा हिन्दुस्तान में फैल रहे हथियार, जाने क्या-क्या तबाही लाते। तुम महादेव के सच्चे दोस्त हो। अपनी जान पर खेलकर, तुमने महादेव की मौत का बदला लिया।” अनिता गोस्वामी का स्वर भर्रा उठा –“मलानी को भी बचा लिया। मुझे भी बचाया। नहीं तो ब्रूटा मुझे अपना खिलौना बना लेता। मैं –।”

“छोड़ो इन बातों को।” कहकर देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई।

तभी सोहनलाल बोला।

“कमाल है! मौके पर आकर मैंने सारा मामला संभाला और मेरा कहीं नाम तक नहीं।”

अनिता गोस्वामी ने गीली आंखों से सोहनलाल को देखा।

“तुम सब एक ही तो हो। अलग-अलग तो नहीं –।”

जवाब में सोहनलाल मुस्कराते हुए सिर हिलाने लगा।

और जगमोहन, वो तो डॉलरों वाले प्लास्टिक के बोरों के पास मंडरा रहा था।

☐☐☐

जहाज रुक चुका था।

खतरे का सायरन बज चुका था। अफरा-तफरी का माहौल पैदा हो चुका था। नींद में डूबे लोग, पहले तो कुछ भी नहीं समझ पाये, जब समझे तो सबसे पहले जहाज से निकलने की कोशिश में लग गये। अपना कीमत सामान भी साथ ले जाने की कोशिश करने लगे। कोई अंडरवियर में ही केबिन से बाहर आ गया था तो कोई साथ में बनियान पहने था। कोई नाईट सूट में। मौत की घबराहट में कुछ औरतें तो पैंटी-ब्रा में ही बाहर निकल आई थीं। ऐसे मौके पर किसी को, किसी का होश कहां। अपनी जान बचाने की पड़ी थी सबको। हर कोई यही समझ रहा था कि जहाज अभी डूब जायेगा।

जहाज के कर्मचारी यात्रियों को संभालने की भरपूर कोशिश कर रहे थे।

थर्ड मेड अजीत सिंह को तैयारी करने में, आधा घंटा लगा। सब कर्मचारी उसके आदेशों का पालन करते हुए, फुर्ती से काम कर रहे थे। यात्रियों को लाईफ बोटों में उतारने का काम शुरू हो चुका था। अजीब-सा शोर, कोलाहल वहां गूंज रहा था। किसी को किसी की बात समझ नहीं आ रही थी। इस पर भी हर कोई अपनी कहने-सुनाने में लगा हुआ था।

वैशाली तो सबसे पहले वाली लाईफ बोट में बैठ गई थी।

जहाज के कई कर्मचारी, जो कि मलानी के खास थे, वे जानते ये कि जहाज में कोई खराबी नहीं है। अभी वो नहीं डूबेगा, इसलिए वो निश्चिन्त होकर यात्रियों को, जहाज से सुरक्षित निकाल रहे थे।

इस वक्त सुबह के पांच बजने जा रहे थे।

☐☐☐

मलानी पैंतालीस मिनट बाद, ब्रूटा वाले बेडरूम में पहुंचा।

बाहर का मध्यम-सा शोर, वहां तक भी आ रहा था।

“यात्रियों को लाईफ बोटों पर उतारना शुरू कर दिया गया है।” मलानी बोला।

“कितनी देर में जहाज खाली हो जायेगा?” देवराज चौहान ने पूछा।

“कम से कम डेढ़ घण्टा लगेगा।” मलानी ने कहा।

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाकर कश लिया।

जगमोहन डॉलरों वाले एक थैले पर बैठा था।

मलानी ने अनिता गोस्वामी को देखा।

“अनिता! ब्रूटा खत्म हो गया है। यह जहाज भी डूबने जा रहा है। मैंने अभी से सारे बुरे काम छोड़ दिए हैं। अब तो तुम्हें मेरे साथ शादी करने में एतराज नहीं होना चाहिए।”

अनिता गोस्वामी मुस्कराई।

“अगर तुम अपनी बात पर खरे हो तो, तुम्हारे साथ शादी करने में मुझे कोई एतराज नहीं।”

मलानी के चेहरे पर खुशी से भरी मुस्कान उभरी।

“यहां से जहाज के पेंदे से निकलने-आने के लिए रास्ता है?” सोहनलाल ने पूछा।

“हां।” मलानी गम्भीर हो उठा।

“किधर है रास्ता?” जगमोहन ने उसे देखा।

“इस बेड के नीचे।”

सबकी निगाह आठ फीट वाले गोलाई के बेड पर जा टिकी। जो कि फर्श तक चारों तरफ से बंद था। बिल्कुल किसी बक्से की भांति।

“सब कुछ बताओ। पहले यह कि जहाज के पेंदे में रास्ता किस तरह से बनाया गया है?” देवराज चौहान ने कहा और वहां पड़ी कुर्सी पर बैठते हुए सिगरेट का कश लिया।

सबकी नजरें मलानी की तरफ थीं।

मलानी दो पल की चुप्पी के बाद कह उठा।

“जहाज के पेंदे में, ठीक इसी बेड की ‘सीध’ में, इतनी गोलाई का रास्ता पेंदे में से निकलता है।”

“लेकिन जब वो रास्ता खोला जाता होगा तो, जहाज में पानी नहीं भरेगा?” सोहनलाल ने पूछा।

“नहीं।” मलानी ने सिर हिलाया –“दरअसल इस रास्ते को खोलने का सारा सिस्टम यहीं से कंट्रोल होता है। पेंदे का आठ फीट की गोलाई का हिस्सा कुछ इस तरह से बनाया गया है कि वो एयर टाईट है। पानी तो क्या, हवा भी भीतर नहीं आ सकती। जहाज के नीचे जाकर, पेंदा चेक करने से यह भी पता नहीं लगाया जा सकता कि, वो हिस्सा अपनी जगह से हट सकता है।” मलानी गम्भीर स्वर में कहता जा रहा था –“मैं सब कुछ कर के दिखाता हूं। इस तरह शायद मैं सब कुछ ठीक से न बता पाऊं।”

बाहर से आता मध्यम-सा शोर कानों में पड़ रहा था।

मलानी आगे बढ़ा और दीवार पर लगी चार फीट चौड़ी और छः फीट लम्बी पेंटिंग के पास पहुंचा और उसे धीरे-धीरे घुमाते हुए, पूरी तरह उल्टी कर दिया। ऐसा होते ही कमरे के बीचों-बीच मौजूद बेड ने ऊपर उठना शुरू कर दिया।

देखते ही देखते वो छत के पास जाकर रुक गया।

बेड को लोहे की छः गोल-गोल पाईपों ने संभाल रखा था। जाहिर था कि पाईपों का खांचा था, जो पाइपों को खुद में ले लेता था और सिस्टम चालू होते ही वो बेड को ऊपर कर देता था। इसके साथ दो चक्री नजर आने लगीं, ऐसी चक्री, जैसी कुंओं पर लगी होती है और उस पर रस्सा डालकर पानी का भरा बर्तन ऊपर खींचा जाता है।

उन सबने आगे बढ़कर देखा।

वहां से दो फीट चौड़ी लोहे की दो सीढ़ियां नीचे जा रही थीं। नीचे अंधेरा घुप्प था।

मलानी ने टेबल की ड्राअर से छोटा-सा रिमोट कंट्रोल निकाला, जिस पर कई बटन नजर आ रहे थे। एक बटन दबाते ही नीचे के अंधेरे वाले हिस्से में पर्याप्त रोशनी फैल गई। वहां की हर चीज स्पष्ट नजर आने लगी। चक्री पर लोहे की मजबूत तार पड़ी थी जो कि नीचे, अंत तक जा रही थीं और ऊपर चक्री से होकर उसका दूसरा हिस्सा, जाने किधर था।

वो दोनों सीढ़ियां नीचे, बेहद नीचे तक जा रही थी।

एक बारगी वो देखने पर अंधेरे कुएं जैसा लग रहा था, बेशक वहां रोशनी कर दी गई थी।

“यह रास्ता, कुआं, जहाज के पेंदे तक जाता है?” जगमोहन ने पूछा।

“हां। लेकिन आखिरी पेंदे तक नहीं।”

“क्या मतलब?” जगमोहन की आंखें सिकुड़ी।

“मेरे हाथ में जो रिमोट कंट्रोल है, जहाज के इस गुप्त रास्ते को यही कंट्रोल करता है। ये देखो।” कहने के साथ ही मलानी ने रिमोट का रुख नीचे को किया और एक बटन दबा दिया।

अगले ही पल सबने देखा और स्पष्ट देखा। गहरे कुएं में फैली रोशनी में देखा कि जो तला नजर आ रहा था, वो अपनी जगह से हिला, करीब आधा फीट नीचे गया और फिर बायीं तरफ सरकते हुए नजरों से ओझल हो गया और उससे करीब बारह फीट नीचे एक और तला नजर आने लगा।

मलानी ने सबके चेहरों पर निगाह मारी।

“यह तो तला आप देख रहे हैं, यह जहाज का असली तला है। जो तला पहले नजर आ रहा था वो असली नहीं था। यह दोनों तले एयर टाईट हैं। पानी तो क्या इनमें से हवा भी नहीं गुजर सकती। नीचे वाला तला बिल्कुल सूखा और खाली है। जिस तरह ऊपर वाला तला अपनी जगह से हटा है। उसी तरह नीचे वाला तला भी अपनी जगह से हट जाता है।”

“अगर तुमने नीचे वाले तले को हटाया ते जहाज में पानी भर जायेगा। यह डूब जायेगा।” देवराज चौहान बोला।

“ठीक कहते हो। लेकिन ऐसा न हो इसका पूरा इन्तजाम है। माल कैसे रिसीव करते हैं और यहां से कैसे डिलीवर करते हैं यह मैं अब बताता हूं।” कहने के साथ ही मलानी ने रिमोट कंट्रोल का बटन दबाया तो जो तला अपनी जगह से हटा था वो पुनः अपनी जगह पर वापस आने लगा।

यानि कि ऊपर वाला तला पुनः पहले की तरह अपनी जगह पर आ गया।

मलानी ने रिमोट कंट्रोल में लगा अन्य बटन दबाया और सीधा खड़ा हो गया। इस बार बटन दबाने पर उन्हें उस गहरे कुएं में, कहीं भी, कोई भी हरकत होती नजर नहीं आई।

सोहनलाल ने मलानी को देखा।

“अब कौन-सा तमाशा दिखा रहे हो।”

मलानी, सोहनलाल को देखकर मुस्कराया।

“देखते रहो।”

दो मिनट भी न बीते होंगे कि मलानी ने पुनः बटन दबाया। तब भी कुछ नहीं हुआ। करीब आधा मिनट ठहरकर मलानी ने पुनः बटन दबाया तो नजर आने वाला तला, पुनः पहले की ही तरह अपनी जगह से खिसक कर निगाहों से ओझल हो गया।

अगले ही पल सबके चेहरों पर हैरानी उभरी।

नीचे अब तले पर पानी भरा हुआ था।

“तुमने रिमोट कंट्रोल से दो बार बटन दबाया।” देवराज चौहान ने मलानी को देखा –“पहले बटन से जहाज के नीचे वाला तला हटा और समन्दर से पानी भीतर आ गया। परन्तु ऊपर वाले एयरटाईट तले की वजह से पानी ऊपर नहीं आ सका। दूसरी बार जब बटन दबाया तो नीचे वाला तला पुनः अपनी जगह पर आ गया। यानि कि पानी दो तलों के भीतर कैद होकर रह गया। अब ऊपर वाला तला हटाया तो समन्दर का जो पानी जहाज में आ गया था, वो नजर आने लगा।”

“बिलकुल ठीक कहा तुमने।” मलानी ने सिर हिलाया।

“लेकिन बाहर वाला किसी तरह का सामान, हथियारों के बड़े-बड़े बैग-थैले भीतर कैसे देता है। क्योंकि जब नीचे वाला तला हटेगा तो उसमें सामान नहीं रखा जा सकता। जो सामान भी रखा जायेगा, वो वापस समन्दर में चला जायेगा।” देवराज चौहान बोला।

“ठीक कहते हो। परन्तु इसका भी इन्तजाम है। अब ये देखो कि जो पानी नीचे भर आया है, वो निकलता कैसे है।” कहने के साथ ही मलानी ने रिमोट कंट्रोल का बटन दबाया।

सब देखते रहे।

दस मिनट लगे और वहां पानी की एक बूंद भी न बची।

“जो पानी नजर आ रहा था, वो वापस समन्दर में चला गया है। वहां मोटर का कनेक्शन है, उस मोटर का कंट्रोल इसी रिमोट कंट्रोल से होता है। मोटर पाईपों के जरिये, उस पानी को नीचे वाले डेक के रेन वॉटर पाईप में फेंकती है और पानी वापस समन्दर में पहुंच जाता है।”

“हर तरफ से तगड़ा इन्तजाम कर रखा है।” जगमोहन ने गहरी सांस ली।

मलानी ने देवराज चौहान से कहा।

“आओ। मैं तुम्हें बताता हूं कि बाहर के लोग, सामान को जहाज में डिलीवर कैसे करते हैं।” कहने के साथ ही मलानी ने रिमोट कंट्रोल जेब में डाला और नीचे जाते लोहे की सीढ़ी पकड़कर नीचे उतरने लगा।

देवराज चौहान दूसरी सीढ़ी पकड़कर नीचे उतरने लगा।

बाकी सब ऊपर ही रहे।

पांच मिनट लगे और वो दोनों ऊपर वाले तले तक पहुंच गये।

“यहां से नीचे सीढ़ी इसलिये नहीं जाती कि ऊपर वाले तले को बंद होने के लिये पूरी जगह चाहिये। बीच में सीढ़ी आ जायेगी तो ऊपर वाला तला बंद नहीं होगा और पानी ऊपर चढ़ आयेगा।” सीढ़ी के आखिरी हिस्से पर खड़ा मलानी कह उठा –“ये देखा माल कैसे आता है। देखो नीचे वाले तले के ऊपर दीवारों पर बड़ी-बड़ी हुक लगी हुई हैं, जो कि बेहद मजबूत हैं और बड़े से बड़े बोझ को भी बर्दाश्त कर सकती हैं। करीब पन्द्रह हुक हैं। जब नीचे वाला तला हटाया जाता है और ऊपर वाला बंद होता है तो, वो हिस्सा समन्दर के पानी से भर जाता है। नीचे जो लोग, गोताखोरी के लिबास में माल छोड़ने आये होते हैं, वो पानी के साथ-साथ जहाज के भीतर आते हैं, जहां पानी भरा होता है। उनके पास पानी में देखने के लिए रोशनी का पूरा इन्तजाम होता है। वो सामान को, जिसके साथ छोटा-सा फंदा होता है, हुकों में फंसा कर चले जाते हैं।”

“समझा।” देवराज चौहान ने सिर हिलाया –“उसके बाद जब तुम लोग नीचे वाला तला बंद करके, समन्दर का पानी निकालते हो तो, वो सामान थैलों-बैगों में हुकों से लटका होता है।” देवराज चौहान बोला।

“हां। ऊपर जो तुमने चक्री और उस पर लगी, नीचे आती लोहे की मोटी तार देखी है, उस तक के सिरे पर हुक लगे हैं, यहां नीचे रस्से के सहारे जाया जाता है। चक्री के तार के हुक को आये सामान में फंसाकर रिमोट कंट्रोल का बटन दबाया जाये तो चक्री भारी से भारी सामान को भी मिनट भर में ऊपर खींच लेती है। और जब माल की डिलीवरी देनी होती है तो भी यही तरीका इस्तेमाल किया जाता है।”

देवराज चौहान ने समझने वाले ढंग में सिर हिलाया।

“जो भी हो, बनाने वाले ने, बहुत दिमाग लगाकर ये सिस्टम बनाया है।” देवराज चौहान बोला।

“सिंगापुर का ही इंजीनियर था एक। इस सिस्टम में सारा दिमाग उसी का लगा है। लेकिन जब सारा काम हो गया तो एक दिन ब्रूटा ने उसे खत्म करवा दिया कि कहीं वो जहाज के रहस्य को न खोल दे।” मलानी ने धीमे स्वर में कहा –“ब्रूटा शैतान दिमाग का, बहुत खतरनाक इंसान था।”

☐☐☐

पौने दो घण्टों में, जहाज के सब यात्री और कर्मचारी लाईफ बोटों में बैठकर; जहाज को छोड़ चुके थे। अब जहाज में उनके अलावा कोई नहीं था।

देवराज चौहान ने मलानी से कहा।

“डॉलरों के बोरों को छोटी लाईफ बोट्स से बांधो, इस तरह कि खुल न सकें। एक लाईफ बोट पर एक बांधना है। भारी बहुत है।”

मलानी ने सहमति में सिर हिलाया।

“यहां से निकलने का क्या इन्तजाम है?” देवराज चौहान ने पूछा।

“ब्रूटा ने अपने लिये ताकतवर इंजन वाली मोटरबोट रखी हुई है। जो कि हमेशा तैयार रहती है।” मलानी बोला –“हम उस पर आसानी से निकल सकते हैं।”

“उस पर तो डॉलरों के ये पांचों थैले भी आ सकते हैं।” देवराज चौहान ने उसे देखा।

“हां। इस पर बहुत जगह है। उसमें करीब तीस आदमी आ सकते हैं।” मलानी ने फौरन कहा।

“ठीक है। डॉलरों वाले पांचों थैलों को नीचे ले चलो। इन्हें मोटरबोट में रखकर ले चलेंगे।”

☐☐☐

उन पांचों थैलों को नीचे तक ले जाने में घण्टा भर लग गया। वास्तव में वो भारी थे। उसके बाद मलानी ने मोटर बोट तैयार की। पानी में उतारी गई। पांचों बोरों को बोट में रखा गया। वे सब भी बोट में पहुंचे। बोट बड़ी थी। उसमें अभी भी बीस-पच्चीस लोग आ सकते थे।

देवराज चौहान ने मलानी से कहा।

“रिमोट कंट्रोल दो।”

“क्यों?” मलानी के होंठों से निकला।

“जहाज के वो वाले दोनों तले खोलने हैं। जहाज में पानी भर जायेगा। ताकि वो डूब सके।”

मलानी ने रिमोट कंट्रोल निकालकर उसे दिया तो देवराज चौहान जहाज पर चला गया। दस मिनट बाद लौटा और बोट पर आ गया। सोहनलाल स्टेयरिंग पर था।

देवराज चौहान के इशारे पर सोहनलाल ने मोटरबोट का इंजन स्टार्ट किया और आगे बढ़ा दी।

“दोनों तले हटा दिए?” जगमोहन ने पूछा।

“हां।” कहते हुए देवराज चौहान ने रिमोट कंट्रोल समन्दर में फेंक दिया –“एक-सवा घण्टे में जहाज डूब जायेगा।”

मोटरबोट तेजी से समन्दर में भागने लगी।

☐☐☐

दोपहर का एक बज रहा था। सूर्य सिर चढ़ा हुआ था। पानी में पड़ने वाली उसकी चमक से अक्सर आंखें चौंधिया जाती थीं।

पांच घण्टों के बाद पानी के अलावा उन्हें जमीन दिखाई दी थी। वो कोई छोटा-सा टापू था। जिस पर घने पेड़ खड़े दूर से ही नजर आ रहे थे।

“हम रास्ता भटक चुके हैं। दिशा का ज्ञान नहीं रहा।” मलानी धूप से आंखें बचाता हुआ कह उठा –“मोटर बोट में लगा कम्पास ठीक काम नहीं कर रहा। क्योंकि हम कम्पास के इशारे पर ही आगे बढ़ रहे थे और रास्ते में ये टापू दूर से भी दिखाई नहीं देता।”

“अब क्या करें?” जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा।

“कुछ देर टापू पर चलना ही बेहतर होगा। हमारे पास खाने को कुछ नहीं है। खाली पेट समन्दर में भटकना बेवकूफी ही होगी।” मलानी ने कहा।

जगमोहन, देवराज चौहान को देखता रहा।

देवराज चौहान के चेहरे पर सोच के भाव थे।

“मुझे बहुत देर से भूख लग रही है।” अनिता गोस्वामी धीमे स्वर में कह उठी।

“टापू पर खाने का अवश्य कुछ होगा।” मलानी तुरन्त बोला।

“टापू पर चलें?” जगमोहन ने देवराज चौहान से पूछा।

देवराज,चौहान ने सोचभरे ढंग में, सहमति से सिर हिला दिया।

“सोहनलाल!” जगमोहन ने कहा –“बोट टापू पर ले चल।”

अगले छः-सात मिनट में ही बोट टापू के किनारे जा लगी।

☐☐☐

वो सब टापू पर उतरे। बोट को रस्से के सहारे, किनारे पर पत्थरों को इकट्ठा करके, उसके साथ बांध दिया गया। टापू बहुत सुन्दर था। हरियाली ही हरियाली थी।

बड़े-बड़े ऊंचे, घने पेड़ बहुत अच्छ लग रह थे। हवा ठण्डी महसूस हो रही थी।

“मलानी!” अनिता गोस्वामी बोली –“मुझे भूख लग रही है।”

“चिन्ता मत करो।” मलानी ने अपनेपन से कहा –“किसी न किसी पेड़ पर फल अवश्य होगा। मैं अभी लेकर आता हूं।” कहने के साथ ही मलानी आगे बढ़ता चला गया।

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई।

“आओ। टापू पर नजर मार लें, ये कैसा है। यहां क्या-क्या है।” देवराज चौहान बोला।

“मैं भी यही सोच रहा था।” सोहनलाल फौरन बोला।

“मैं नहीं जाऊंगा।” जगमोहन ने कहा।

देवराज चौहान और सोहनलाल की निगाह उसकी तरफ घूमी।

“क्यों?” देवराज चौहान ने पूछा।

“बोट पर, पचास करोड़ डॉलर पड़े हैं। कोई ले गया तो?” जगमोहन ने मुंह बनाया।

देवराज चौहान मुस्कराया।

“यहां, वीरान जगह से कौन ले जायेगा?”

“वक्त का कोई भरोसा नहीं, कब क्या हो जाये –।” जगमोहन के स्वर में जिद के भाव आ गये।

“मतलब कि तुम नहीं चलोगे।”

“नहीं। तुम लोग टापू का चक्कर लगा आओ। मैं बोट के पास ही रहूंगा। मलानी इसके लिये कुछ खाने को लेने गया है तो, वो यहीं आयेगा। इसलिये इसे भी यहीं रहने दो।”

“जैसी तुम्हारी मर्जी। आओ सोहनलाल –।”

देवराज चौहान और सोहनलाल आगे बढ़ गये।

“यहां से हिन्दुस्तान कितनी दूर है?” अनिता गोस्वामी ने जगमोहन से पूछा।

जगमोहन ने उसे देखा फिर मुस्कराकर बोला।

“इस वक्त तो मैं सिर्फ इतना बता सकता हूं पचास करोड़ डॉलर, मुझसे कितनी दूर हैं।” कहने के साथ ही उसने बोट पर मौजूद डॉलेरों वाले थैलों पर निगाह मारी।

“तुम्हें दौलत के अलावा और कुछ नहीं सूझता?”

“सूझता है। लेकिन तब, जब दौलत सामने न हो।” जगमोहन उसे देखकर हंसा।

“बेवकूफ –।” अनिता गोस्वामी बड़बड़ा उठी।

☐☐☐

देवराज चौहान, सोहनलाल उन पेड़ों के बीच थोड़ा-सा ही आगे गये होंगे कि तभी एक आदमी पेड़ से कूदा। उसके हाथ में भाला था। सिर के बाल इस तरह उलझे हुए थे कि, वहां बालों का ढेर पड़ा लग रहा था। कमर पर पत्ते बांध रखे थे। गालों की दाढ़ी लटककर पेट को छू रही थी।

“ये क्या –?” सोहनलाल के होंठों से निकला। उसका हाथ जेब की तरफ बढ़ा।

देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ चुकी थी।

“रिवॉल्वर मत निकालना?” देवराज चौहान फौरन बोला।

सोहनलाल का, जेब की तरफ बढ़ता हाथ रुक गया।

उस व्यक्ति ने अपना भाला, उन दोनों की तरफ कर दिया। साथ ही अजीब-सी भाषा में चीखा। उसके आवाज के साथ ही आसपास के घने पेड़ों के बीच में उस जैसे ही आदमी-औरतें नीचे कूदने लगे। किसी के हाथ में भाला था, किसी ने कटार जैसी कोई चीज थाम रखी थी तो कोई तीर-कमान थामे था। कुछ ने कमर पर कपड़ा लपेट रखा था तो कुछ ने बड़े-बड़े पत्तों को लपेटा हुआ था। औरतों ने कमर से ऊपर कुछ भी नहीं ले रखा था।

देवराज चौहान और जगमोहन सतर्क हो चुके थे।

“ये जंगली लोग हैं। इनके सामने कोई हरकत मत कर बैठना।”

देवराज चौहान सतर्क स्वर में बोला।

वो कुल चौदह थे।

उन्होंने उन दोनों को घेर लिया और अपनी भाषा में कुछ कहा। जो उनकी समझ में नहीं आया। ये देखकर एक ने इशारे से उन्हें आगे बढ़ने को कहा।

देवराज चौहान और सोहनलाल उनके घेरे में आगे बढ़ने लगे।

इसके साथ ही वो जंगली लोग खुशी से उछल-कूद रहे थे। नाच रहे थे। करीब दस मिनट चलने के बाद वे जंगली उन्हें लेकर ऐसी जगह पहुंचे जहां खुली जगह में तीस-चालीस झोपड़ियां बनी हुई थीं। वहां और भी जंगली नजर आ रहे थे। बच्चे खेल रहे थे। उन्हें देखते ही सब उत्सकुता से भरे उनके पास आकर उन्हें घेरकर खड़े होने लगे।

“अब क्या होगा?” सोहनलाल अजीब-से स्वर में बोला।

“देखते रहो। अगर इन्होंने हमारी जान लेनी होती, तो पहले ही ले लेते।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा।

सोहनलाल कुछ नहीं बोला।

जंगली लोगों का शोर बढ़ता ही जा रहा था।

तभी दूसरी तरफ से मलानी आता नजर आया। उसे भी चार आदमियों ने घेर रखा था।

“मलानी को भी इन लोगों ने पकड़ लिया है।” देवराज चौहान बोला।

उसके बाद उन तीनों को खुले में एक तरफ बिठा दिया गया। लगभग दस मिनट के बाद चार जंगली व्यक्तियों में घिरा एक जंगली वहां पहुंचा। उसने कमर के गिर्द पर्याप्त कपड़ा लपेट रखा था। सिर पर बालों के ढेर में, किसी पेड़ की पत्तियां लगा रखी थीं। उसकी दाढ़ी, उसके सीने को भी छिपा रही थी। वो शान से बढ़ता उनके पास पहुंचा।

“ये इन जंगलियों का सरदार लगता है।” सोहनलाल बोला।

देवराज चौहान उसे ही देख रहा था।

वो अपनी भाषा में देवराज चौहान, सोहनलाल और मलानी से कुछ बोला। परन्तु उसकी बात समझ न आने पर वे खामोश ही रहे।

सरदार ने अपने पास खड़े जंगली को कुछ कहा तो वो जंगली वहां से चला गया। कुछ देर बाद लौटा तो साथ एक व्यक्ति था। उस व्यक्ति की उम्र पचास के करीब थी। सिर के बाल कटे हुए थे। गालों के बाल बता रहे थे कि दो-तीन दिन पहले ही उसने शेव की है। वह पूरे कपड़ों में तो नहीं था, परन्तु पैंट पहन रखी थी। स्पष्ट था कि वो सभ्य लोगों में से था।

सरदार ने उससे कुछ कहा।

तो उस व्यक्ति ने नीचे को देखा फिर बोला।

“तुम लोगों के पास जो खाने का सामान है। पहनने के कपड़े हैं। वो सब इनके हवाले कर दो, उसके बाद तुम लोग जा सकते हो।”

पल भर ठहर कर वो पुनः बोला –“मैंने इंजन की आवाज सुन ली थी। और समझ गया था कि कुछ लोग इनके हत्थे चढ़ने वाले हैं।”

“तुम कौन हो?” देवराज चौहान बोला –“तुम तो इनमें से नहीं हो।”

“मैं पांच साल से इनके साथ रह रहा हूं और तुम्हारी ही तरह हिन्दुस्तानी हूं। मेरा नाम रामसिंह है।”

“यहां रहने की वजह?” देवराज चौहान की निगाह पर उस थी।

तभी शोर गूंजा।

सबने निगाह घुमाकर देखा। चार जंगली औरतें और दो जंगली आदमी जगमोहन और अनिता गोस्वामी को घेरे वहां ले आये थे।

अनिता गोस्वामी बेहद घबराई दिख रही थी।

जंगली सरदार ने उन लोगों से कुछ कहा तो उन दोनों को भी उनके साथ बिठा दिया गया।

“ये हम कहां फंस गये?” जगमोहन व्याकुल स्वर में कह उठा।

उसकी बात का जवाब किसी ने नहीं दिया।

देवराज चौहान पुनः उस रामसिंह से बोला।

“पांच सालों से इन जंगलियों के बीच क्यों रह रहे हो?”

“किस्मत अपनी-अपनी।” वो गहरी सांस लेकर मुस्कराया- “हिन्दुस्तान में, मेरी गांव की जमीन पर कुछ लोग कब्जा कर रहे थे। वे ताकतवर थे। उनका रसूख था। मैं उनका मुकाबला नहीं कर पा रहा था। और फिर एक दिन गुस्से में आकर मैंने अठारह लोगों को गोलियों से भून दिया। जमीन पर कब्जा करने वालों को तो मार दिया मैंने। लेकिन अब मेरे लिए फांसी के अलावा और कोई सजा नहीं बची थी। और मैं फांसी वाली मौत नहीं चाहता था। दो महीने कानून से बचकर भागता रहा। और फिर किसी तरह बन्दरगाह के जहाज पर खड़े जहाज पर छिप गया। वो जहाज यूरोप की यात्रा पर रवाना हो रहा था। वो अपनी यात्रा पर चल पड़ा। मैं जहाज में ही छिपा रहा। खाया-पिया कुछ नहीं था। दूसरे दिन तंग होकर खाने की तलाश में मैं छिपी जगह से निकला तो पकड़ा गया। कैद कर लिया गया, ताकि अगले बन्दरगाह पर जहाज रुके तो मुझे वहां की पुलिस के हवाले कर दिया जाये। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। जहाज में खराबी आ गई। तो उस जहाज को इस करीबी टापू पर रुकना पड़ा। यहां रुकते ही इन लोगों ने जहाज पर अपना कब्जा कर लिया और खाने-पीने का सामान और कपड़े लूटने लगे। मेरी तरफ से उन लोगों का ध्यान हट गया। मैं किसी तरह जहाज से निकलकर टापू पर आ छिपा। दो दिन के बाद जहाज आगे बढ़ गया। मैं टापू पर ही रहा। धीरे-धीरे इन लोगों से घुल-मिल गया। फांसी की मौत से बेहतर ये जिन्दगी। वक्त के साथ-साथ इनकी भाषा भी मुझे समझ आती चली गई। और अब यहां से जाने का मेरा कोई इरादा नहीं है।”

देवराज चौहान ने समझने वाले ढंग में सिर हिलाया।

“तुम लोग अपने खाने और पहनने का सामान इन्हें दो और यहां से चले जाओ।” रामसिंह बोला।

“हमारे पास खाने का सामान नहीं है। खाने की तलाश में ही हम यहां आये थे।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा –“कपड़ों के नाम पर हमारे पास सूटकेस भी नहीं है। हमारा जहाज डूब रहा था। ऐसे में मोटरबोट पर चढ़कर हमने अपनी जान बचाई।”

रामसिंह ने जंगली भाषा में सरदार को यह बात बताई तो सरदार गुस्से से चिल्लाकर कुछ कहने लगा। रामसिंह ने देवराज चौहान को देखा।

“सरदार कहता है कि तुम झूठ बोलते हो।”

“मैं सच कह रहा हूं। हमारे पास कोई सामान नहीं है।” देवराज चौहान बोला।

रामसिंह ने पुनः जंगली सरदार से बात की। सरदार ने गुस्से से जवाब दिया।

“ये कहता है हम बोट की तलाशी लेंगे। तुम लोग झूठ बोल रहे हो।” रामसिंह बोला।

“हमें कोई एतराज नहीं।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।

रामसिंह ने यह बात जंगली सरदार से कह दी।

सरदार ने गुस्से से ऊंचे स्वर में चिल्लाकर, जंगली लोगों से कुछ कहा तो वे सारे खुशी से चिल्लाने-नाचते भाग गये। देखते ही देखते वे सारी जगह खाली हो गई। सिर्फ जंगली सरदार के साथ उसके अंगरक्षक टाइप के चारों जंगली आदमी वहीं खड़े रहे।

“वो सब मोटरबोट की तलाशी लेने गये हैं।” रामसिंह बोला –“अभी लौट आयेंगे।”

जगमोहन ने हड़बड़ाकर कहा।

“बोट में तो पचास करोड़ डॉलर पड़े हैं।”

“ये लोग रुपये-पैसे की कीमत नहीं जानते। इन्हें खाने का सामान और पहनने को कपड़े चाहिये। और किसी चीज से इन लोगों को मतलब नहीं।” रामसिंह ने कहा –“ध्यान रखना, कुछ न मिलने पर सरदार गुस्से में आ जायेगा। और यह गुस्से में कुछ भी कर सकता है। मेरा इशारा पाते ही यहां से निकल जाने की तैयारी करना। ज्यादा देर यहां रुके तो यह तुम लोगों की जान भी ले सकता है। तुम लोगों के निकलने तक, मैं इसे समझा-समझाकर रोके रखूंगा।”

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वो सारे जंगली आधे घण्टे के बाद लौटे। मोटरबोट पर कुछ न होने की खबर उन्होंने अपने सरदार को दी तो सरदार वास्तव में गुस्से से भर उठा।

रामसिंह ने सरदार को समझाने की कोशिश की तो कभी सरदार ठण्डा हो जाता तो कभी फिर गर्म हो उठता। रामसिंह के जोर देने पर, सरदार ने उन लोगों को जाने की इजाजत दी।

“तुम लोग जल्दी से, यहां से निकल जाओ।” रामसिंह बोला –“अभी यह तुम लोगों को यहां से चले जाने को कह रहा है। कुछ पता नहीं मिनट बाद यह तुम लोगों की मौत का फरमान जारी कर दे।”

देवराज चौहान ने मुस्कराकर रामसिंह को देखा।

उसके बाद वे सब तेजी से उस तरफ बढ़ गये जहां मोटरबोट खड़ी थी। किसी ने उन्हें रोकने या साथ आने की कोशिश नहीं की।

पीछे से उनके कानों में सरदार और रामसिंह की ऊंची-ऊंची आवाजें आती रहीं।

“जल्दी से निकल चलो।” सोहनलाल ने कहा –“उन दोनों में बहस हो रही है। कोई बड़ी बात नहीं, सरदार गुस्से में अपने आदमी, हमारी जान लेने के लिये दौड़ा दे।”

सबकी रफ्तार पहले से ही तेज थी।

समन्दर के किनारे पर पहुंचते ही सब हड़बड़ा उठे। उनकी आंखें जैसे फटकर फैलती चली गईं। दो पल के लिये लगा, जैसे उनके जिस्म वहीं के वहीं खत्म हो गये थे। धड़कन रुक गई हो।

सबसे पहले देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान रेंगी। फिर वो खुलकर मुस्कराया और सिगरेट सुलगाकर सब पर निगाह मारी। वो सब जैसे धीरे-धीरे बेहोशी के दौर से बाहर निकलने लगे थे। लेकिन शायद सांसों का चलना अभी भी शुरू नहीं हुआ था।

वहां नजारा ही ऐसा था।

हर तरफ डॉलर ही डॉलर नजर आ रहे थे। टापू की जमीन पर डॉलर, समन्दर के पानी के ऊपर दूर-दूर तक डॉलर बिछे हुए थे। पानी का बहाव डॉलरों को दूर ले जाये जा रहा था। समन्दर का पानी नजर नहीं आ रहा था। हर तरफ डॉलर ही डॉलर बिखरे नजर आ रहे थे। दो पल के लिए तो यही लगा कि जैसे वहां डॉलरों की बरसात हुई हो। और समन्दर डॉलरों का समन्दर बन गया हो। वह नजारा मीठा भी लग रहा था और कड़वा भी।

खाने का सामान और कपड़ों की तलाश में जंगली लोगों ने डॉलरों वाले थैले भी खोल डाले थे और डॉलरों को बाहर फेंक-फेंककर, अपने काम की चीज की तलाश की होगी, यह उसी हरकत का परिणाम था। पचास करोड़ डॉलर पानी में बह गये थे। कुछ टापू पर बिखरे हुए थे। किसी के पास कहने को कोई शब्द नहीं था।

हक्के-बक्के थे सब।

लेकिन देवराज चौहान बराबर मुस्करा रहा था।

डॉलरों वाले किस्से से वे लोग पूरी तरह संभल भी नहीं पाये थे कि उनके कानों में पीछे से उठता शोर पड़ा। जंगली लोगों का शोर। वो अजीब-अजीब, ऊंची आवाजों में चिल्ला रहे थे। शोर हर पल करीब आता जा रहा था।

“निकलो यहां से।” देवराज चौहान चिल्लाया –“वो जंगली, हमें मारने आ रहे हैं।”

सबको होश आया।

सोहनलाल जल्दी से आगे बढ़ा और स्टेयरिंग सीट पर बैठकर मोटरबोट स्टार्ट करने लगा।मलानी और अनिता गोस्वामी भी जल्दी से बोट पर पहुंच गये।

जगमोहन बुत-सा बना पचास करोड़ डॉलर के समन्दर को देख रहा था।

“जगमोहन!” देवराज चौहान ने उसे धकेला –“बोट में चलो।”

“वो डॉलर –।” जगमोहन ने अजीब-से स्वर में कहना चाहा।

“वो जंगली हमारी जान लेने आ रहे हैं। जल्दी से बोट में बैठो।” देवराज चौहान ने उसे पुनः धकेला।

“लेकिन ये डॉलर –।”

जंगली लोगों का शोर सिर पर आ पहुंचा था। अब वो नजर भी आने लगे थे। उनके हाथों में तरह-तरह के हथियार थे और चेहरों पर गुस्सा नजर आ रहा था। दूर से ही वो अपने हाथों में थमे हथियारों को इस तरह हिला रहे थे जैसे उनका बस चले तो दूर से ही उन्हें मार दें।

देवराज चौहान ने होंठ भींचकर जगमोहन को उठाया और पांच कदम आगे बढ़कर बोट में डाला। मलानी ने उसे संभाला और देवराज चौहान भी बोट में आ चुका था। अगले ही पल सोहनलाल ने जल्दी से मोटरबोट आगे बढ़ा दी।

देखते ही देखते मोटरबोट किनारे से दूर, डॉलरों के समन्दर को पार करती चली गई।

वो ढेर सारे जंगली किनारे पर पहुंच गये थे। मोटरबोट दूर होती पाकर वो गुस्से से चिल्लाने लगे। कुछ ने गुस्से का इजहार अपने हथियारों को उनकी तरफ पानी में फेंक कर किया। लेकिन बोट उनकी जद से दूर पहुंच चुकी थी और दूर होती जा रही थी।

जगमोहन जल्दी से संभला और टापूकी तरफ नजर मारी। डॉलरों का समन्दर अभी भी स्पष्ट नजर आ रहा था। वहां पानी की जगह दूर-दूर तक, उस पर जमी डॉलरों की तह नजर आ रही थी। उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे, उसकी प्यारी दुनिया उजड़ गई हो।

“बच गये।” सोहनलाल ने टापू की तरफ देखा, जहां ढेर सारे जंगली नजर आ रहे थे। कि उसकी निगाह जगमोहन के लुटे-पिटे चेहरे पर पड़ी –“तेरे को क्या हो गया जगमोहन?”

“डॉलर। पचास करोड़ डॉलर –।” जगमोहन ने अफसोस भरे स्वर में कहा।

“जान बच गई। ये ही बहुत है।” सोहनलाल ने गहरी सांस ली –“डॉलर फिर कभी मिल जायेंगे।”

“वो पचास करोड़ डॉलर थे –।”

“कोई बात नहीं। अपनी जान उन डॉलरों से ज्यादा कीमती है।” सोहनलाल मुस्कराकर बोला।

जगमोहन की निगाह, उधर ही, टापू के किनारे पर ही रही।

देवराज चौहान मोटरबोट की सीट पर लेटा शांत भाव से सिगरेट के कश ले रहा था।

“तुम्हें दुःख नहीं हो रहा।” जगमोहन, एकाएक देवराज चौहान से कह उठा।

“किस बात का?” जगमोहन को देखकर, देवराज चौहान मुस्कराया।

“पचास करोड़ डॉलरों के बरबाद होने का –।”

“वो हमारे नहीं थे। इसलिये दुःख नहीं हो रहा।”

“तो किसके थे?”

“दौलत किसी की भी नहीं होती।” मुस्कराकर देवराज चौहान बोला और आंखें बंद कर ली।

जगमोहन, देवराज चौहान को देखता रहा। समझ नहीं पा रहा था कि क्या जवाब दे। देवराज चौहान ने ठीक ही तो कहा था कि दौलत किसी की सगी नहीं होती। आज वहां तो कल यहां। बिना पांवों की दौलत, के दौड़ने की रफ्तार का कोई मुकाबला नहीं कर सकता। वो जाने कब-कहां किधर, किसके पास पहुंच जाये, और कब वहां से चल दे। जैसे कि अभी पचांस करोड़ के डॉलर के साथ हुआ था। कुछ देर पहले उसके पास थे और अब वो उसके पास नहीं थे।

समाप्त