जहाज अरेबियन ‘सी’ में पन्द्रह से बीस डिग्री चैनल पर था।

शाम के सात बज रहे थे।

देवराज चौहान सूप का आर्डर देकर हटा था। जब से जहाज ने मुम्बई बन्दरगाह छोड़ा था, तब से वो, जगमोहन और सोहनलाल से मिलने के अलावा केबिन से बाहर नहीं निकला था। केबिन में बंद अपनी योजना पर गौर कर रहा था। केबिन के कोने में छोटा-सा, खूबसूरत टी.वी. मौजूद था, परन्तु देवराज चौहान ने उसे ऑन करने की चेष्टा नहीं की थी। उसे इन्तजार था, दस बजने का। अनिता गोस्वामी से मुलाकात करने का।

तभी केबिन में लगे स्पीकर से निकलने वाली मध्यम-सी, स्पष्ट आवाज कानों में पड़ी।

“जहाज पर यात्रा कर रहे यात्रियों को शाम का शुभ नमस्कार।” मीठी आवाज किसी युवती की थी –“आशा है आप यात्रा का भरपूर आनन्द ले रहे होंगे। आप सबको यह जानकर खुशी होगी कि जहाज के मालिक श्री हरीकिशन ब्रूटा भी आपके साथ, जहाज में सफर कर रहे हैं और आज मिस्टर ब्रूटा का जन्मदिन भी है। इस खुशी के मौके पर मिस्टर ब्रूटा जहाज के सब यात्रियों को कॉकटेल पार्टी दे रहे हैं। मिस्टर ब्रूटा को पूरा विश्वास है कि आप जब कॉकटेल पार्टी में शामिल होकर, जन्मदिन के इस मौके पर, उनकी लम्बी उम्र की दुआ अवश्य करेंगे। यह पार्टी जहाज के ग्राउंड फ्लोर के पार्टी हॉल में है। आशा है कि आप सबने पार्टी हॉल में पहुंचने की तैयारी शुरू कर दी होगी। धन्यवाद!” आवाज आनी बंद हो गयी।

देवराज चौहान के होंठ सिकुड़ चुके थे।

ब्रूटा का जन्मदिन था आज और जहाज के सब यात्रियों को कॉकटेल पार्टी दे रहा था।

तभी वेटर राजन ने भीतर प्रवेश किया।

“इवनिंग सर!” कहने के साथ ही उसने सूप का प्याला ट्रे से उठाकर टेबल पर रखा।

“आज तो ब्रूटा साहब पार्टी दे रहे हैं।” देवराज चौहान एकाएक मुस्कराकर बोला।

“जी हां सर!” वेटर ने सीधा होते हुए कहा।

“जन्मदिन की खुशी में –।” देवराज चौहान मुस्करा रहा था।

“सर!” वेटर भी मुस्कराया –“बड़े लोगों का जन्मदिन तो साल में बारह बार आता है।”

“वो कैसे?”

“तीन महीने पहले भी इसी तरह जहाज के यात्रियों को अपना जन्मदिन होने की बात कहकर ब्रूटा साहब ने कॉकटेल पार्टी दी थी। तीन महीने बाद आज फिर जन्मदिन आ गया।”

देवराज चौहान बराबर मुस्कराता रहा।

“ब्रूटा साहब का असली जन्मदिन कब आता है?”

“क्या मालूम साहब! सब जन्मदिन असली ही है। बड़े लोगों की बातें भी अजीब होती हैं।” कहने के साथ ही वो खाली ट्रे थामे बाहर निकलता चला गया।

देवराज चौहान के चेहरे पर सोच के भाव नाच उठे।

तभी जगमोहन ने भीतर प्रवेश किया।

“तुमने घोषणा सुनी?”

“जन्मदिन की एवज में कॉकटेल पार्टी वाली?” देवराज चौहान ने उसे देखा।

“हां –।”

“वेटर बता रहा था कि तीन महीने पहले भी इसी तरह उसने अपने जन्मदिन की पार्टी दी थी।”

जगमोहन के चेहरे पर अजीब-से भाव उभरे।

“तीन महीने पहले –?”

“हां। तीन महीने पहले भी उसने अपना जन्मदिन मनाया था और आज भी मना रहा है।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा –“मेरा ख्याल है कि आज की पार्टी जानबूझकर रखी है उसने?”

“क्या मतलब?”

“शायद ब्रूटा जानता है कि उस दिन जो लोग दरवाजे का ताला खोलकर, उसके प्राईवेट हिस्से में गये थे, वो इसी जहाज में हैं और –।”

“ये बात ब्रूटा को कैसे मालूम हो सकती है।” जगमोहन ने बात काटी।

“जब हमने भीतर प्रवेश किया तो निगरानी करने वाले वीडियो कैमरे चल रहे थे। यानि कि एक कैसेट उसके पास है, जिसमें हमारे चेहरे हैं। अब लगता है कि निगरानी वाले कैमरों के साथ, बातचीत रिकॉर्ड होने का भी सिस्टम है। यानि कि हमारी बातें भी सुनी गई। तब मैंने सोहनलाल से कहा था कि जब यह जहाज रवाना होगा तो हम, जहाज पर सफर करेंगे और ब्रूटा के प्राईवेट हिस्से में भी किसी तरह जाने की चेष्टा करेंगे। स्पष्ट है कि यह सब बातें ब्रूटा के पास है। पार्टी खासतौर से इसी वजह से रखी गई है कि, पार्टी के दौरान ब्रूटा के आदमी हमें पहचानने की चेष्टा करेंगे।”

“ओह! लेकिन वो पहचान नहीं सकेंगे।” जगमोहन सिर हिलाकर कह उठा –“उस वक्त हमारे चेहरे कुछ थे और अब बदले हुए हैं।”

“ये बाद की बात है कि वो पहचान पाते हैं कि नहीं। अपनी कोशिश तो वे जारी रखेंगे।”

“कोई जरूरी तो नहीं कि हम पार्टी में जायें।” जगमोहन ने एकाएक कहा।

“कोई जरूरी नहीं।” देवराज चौहान मुस्कराया –“लेकिन जाने में हमें फायदा हो सकता है। दो बातें नई मालूम होंगी। और हमने ऐसी काई हरकत नहीं करनी है कि वो हमें पहचान सकें या शक कर सकें। एक-एक करके केबिनों में तो वे देख नहीं सकते। इसीलिये पार्टी रखी है कि सब वहां इकट्ठे हों और उनमें से वो हम लोगों को तलाश कर सकें।”

जगमोहन ने सिर हिलाया।

“तुमने पार्टी में ब्रूटा के खास-खास आदमियों की पहचान करनी है। ब्रूटा के कई आदमी यात्रियों की तरह वहां लोगों में शामिल होंगे कि, बीच में घुसकर हमारे बारे में कुछ मालूम कर सकें। सावधान रहना।”

“मैं इस बात का ध्यान रखूंगा।”

“सोहनलाल को भी समझा देना।”

“ठीक है।”

“ब्रूटा के इस तरह पार्टी देकर, उनमें से हमें तलाश करने की कोशिश करने का मतलब है कि वो यकीनी तौर पर कोई गलत काम करता है। और वो जानना चाहता होगा कि हम क्यों उसके पीछे हैं। अगर जहाज के प्राईवेट हिस्से में कोई गलत काम न होता तो दरवाजा खुला देखकर वो यही सोचता कि कोई चोर चोरी करने आया होगा।” देवराज चौहान ने पक्के स्वर में कहा।

“ठीक कहते हो। मैं सोहनलाल से मिलकर आता हूं।” जगमोहन बाहर निकलता चला गया।

☐☐☐

ब्रूटा जहाज के प्राईवेट हिस्से में था। उसी विशाल, खूबसूरत ड्राईंग हॉल में। गद्देदार सोफे में धंसा हुआ था। चेहरे पर शांत भाव थे।

मलानी सामने खड़ा था।

“जहाज के यात्रियों को पार्टी की घोषणा कर दी गई है सर –!”

ब्रूटा ने हौले से सिर हिलाया।

“अपने आदमियों को वो वीडियो फिल्म दिखा दी। जिनमें उन तीनों के चेहरे हैं –।” ब्रूटा बोला।

“यस सर! जब से जहाज रवाना हुआ है। उसी वक्त से उन्हें फिल्म ही दिखाई जा रही है। वो लोग तीनों के चेहरे बहुत अच्छी तरह पहचान गये हैं। धोखा खाने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता।”

“गुड!” ब्रूटा ने कहा –“तुम्हें विश्वास है कि वो तीनों या तीनों में से कोई हमारे हाथ लग जायेगा?”

“श्योर सर –!”

“लेकिन मुझे ऐसा कम ही लगता है।”

“मैं समझा नहीं सर –!”

“वो लोग होशियार हैं। उन्हें भी इस बात की आशंका होगी कि, शायद हम उन्हें जहाज पर पहचानने की कोशिश करेंगे। ऐसे में वो अपने हुलिये भी बदल सकते हैं।” ब्रूटा ने कहा।

“आप ठीक कह रहे हैं। मैं इस बात पर पहले ही ध्यान दे चुका हूं। यह बात मैंने सब आदमियों को समझा दी है कि हर आदमी पर गौर करें। उनके हुलिये जैसा भी कोई लगे तो पूरी पड़ताल करें।”

“गुड!” ब्रूटो ने सिर हिलाया –“अगर हम अपने ही जहाज पर उन लोगों को न तलाश कर सके तो यह हमारे लिये शर्म की बात है।”

“ऐसा नहीं होगा सर! वो हमें मिल जायेंगे।” मलानी की आवाज में विश्वास के भाव थे।

ब्रूटा कई पलों तक मलानी के चेहरे को देखता रहा।

मलानी शांत भाव से खड़ा रहा।

“ये लोग महादेव की पहचान वाले हो सकते हैं?”

“क्या मतलब?”

“महादेव अपने किसी दोस्त से बात करके मरा था। 302 नम्बर यानि कि जहाज के बारे में बताकर मरा था। परन्तु उसका दोस्त चालाक निकला और हमारे आदमियों को धोखा देकर, बंगले से भाग निकला। हो सकता है यह लोग वही हों और –।”

“ऐसा नहीं हो सकता। ये लोग, वो नहीं हो सकते।” मलानी कह उठा।

“क्यों –?”

“वो तीनों, आपके इस प्राईवेट हिस्से में आये। वीडियो फिल्म में उनकी सारी हरकतें सामने हैं। अगर वे महादेव के साथी होते तो, यहां के बारे में सब जानते होते। एक-एक चीज की छानबीन ना करते। फिल्म में नजर आने वाली उनकी हरकतों से जाहिर है कि वे खुद नहीं जानते यहां क्या तलाश कर रहे हैं। मतलब कि उनमें से कोई भी महादेव को नहीं जानता।”

“हो सकता है। तुम्हारा कहना ठीक हो। लेकिन यह सब अटकलबाजी हैं। सच क्या है, हकीकत क्या है? हम नहीं जानते। उसे जानने की कोशिश करो।” ब्रूटा के स्वर में आदेश था –“अनिता गोस्वामी अभी तक आजाद है। जबकि उसका आजाद रहना हमारे लिए ठीक नहीं।”

“सर! मुम्बई में हमारे आदमी हर जगह उसे तलाश कर रहे हैं। एक बार वो हमारे आदमी के हाथ लग गई थी लेकिन जाने कैसे उसकी जान लेकर भाग निकली। उसके नजर आते ही हमारे आदमी उसे फौरन खत्म कर देंगे। वो बचने वाली नहीं।” मलानी ने जल्दी से कहा।

“तुम्हारे ये शब्द मैं कब से सुन रहा हूं।”

“सर! चिन्ता की कोई बात नहीं। वो पुलिस के पास भी नहीं जा सकती। गई तो पुलिस वाले उसकी बात नहीं सुनेंगे। और तुरन्त उसे हमारे हवाले कर देंगे। मैंने सारा इन्तजाम कर रखा है।”

“मैं तुम्हारे इन्तजाम के बारे में नहीं जानना चाहता।” ब्रूटा के चेहरे पर नाराजगी के भाव उभरे –“मैं चाहता हूं अनिता गोस्वामी को खत्म कर दिया जाये। वो हमारे लिये मुसीबत खड़ी कर सकती है।”

मलानी कुछ न कह सका।

“जाओ। कोशिश करो कि पार्टी में उन लोगों को पहचाना जा सके।”

“जी। माल कब रिसीव करना हैं?” मलानी ने पूछा।

“पार्टी नौ-साढ़े नौ बजे अपने रंग पर होगी। उस वक्त कुछ देर के लिए जहाज रोका जायेगा। जहाज क्यों रुका? कोई इस बात की परवाह भी नहीं करेगा। वैसे हम वहां तक कितने बजे पहुंचेंगे?”

“करीब यही, नौ-दस का वक्त होगा।”

“ठीक है। वहां पहुंचते ही जहाज रोक लेना और माल रिसीव कर लेना।” कहने के साथ ही ब्रूटा उठ खड़ा हुडा। चेहरे पर शांत भाव थे –“वैशाली कहां है?”

“वो यहीं, अपने केबिन में...।”

“भेजो उसे।”

मलानी चला गया।

पांच मिनट बाद ही सजी-संवरी वैशाली ने भीतर कदम रखा।

वैशाली कोई और नहीं, वो ही थी, जिससे जगमोहन मिला था। जो अनिता गोस्वामी की मौसी बनी बैठी थी। इस वक्त उसकी खूबसूरती को चार चांद लग रहे थे।

“हाय डार्लिंग –!” वैशाली ने जान लेने वाले अंदाज में कहा।

उसे देखते ही ब्रूटा के चेहरे पर मीठी मुस्कान फैल गई।

☐☐☐

जहाज के ग्राउंड फ्लोर पर स्थित पार्टी हॉल इतना बड़ा था कि वहां छ: सौ व्यक्तियों के बैठने का इन्तजाम था। करीब डेढ़ सौ टेबल थी। हर टेबल के गिर्द चार कुर्सियां थीं। एक तरफ बड़ा-सा स्टेज बना हुआ था। जो इस वक्त रोशनियों से चमक रहा था।

छः-सात सौ लोगों के खड़े होने का इन्तजाम था। वहां औरतों की संख्या भी काफी थी।

उस हॉल में आने-जाने के बहुत दरवाजे थे।

एक तरफ करीब सौ फीट से ज्यादा लम्बा बार काउंटर था। बार काउंटर के पीछे करीब पन्द्रह बार-टेंडर सर्विस के लिये मौजूद थे। टेबल पूरी नहीं भरी थी। फिर भी वहां तीन-साढ़े तीन सौ के लगभग लोग मौजूद थे। लोगों की बातें करने-हंसने और ठहाकों की आवाजें वहां गूंज रही थी।

स्टेज पर डांस शुरू हो गया था। एक खूबसूरत लड़की, चार अन्य लड़कियों के साथ डांस कर रही थी। उसके शरीर पर नाममात्र के ही कपड़े थे। कोई उसकी तरफ ध्यान दे रहा था तो कोई अपनी बातों में व्यस्त था। कॉकटेल पार्टी अभी शुरू नहीं हुई थी।

देवराज चौहान, जगमोहन और सोहनलाल पार्टी हॉल में आ चुके थे। वे अलग-अलग थे। आपस में बात करने या पास आने को भी उन्होंने कोशिश नहीं की थी।

मलानी कुर्सी पर बैठा, शांत निगाहों से सब चेहरों को देख रहा था।

तभी स्टेज पर होने वाला डांस रुक गया। सब डांसर वहां से चली गई। देखते ही देखते स्टेज पर हरीकिशन ब्रूटा नजर आने लगा। उसके साथ दो गनमैन थे। एक व्यक्ति ने छोटा-सा माईक थाम रखा था। स्टेज पर बीचोंबीच रुकते ब्रूटा ने माईक थामा और मुस्कराती आवाज में बोला।

“सबको ब्रूटा का नमस्कार।”

हर किसी की निगाह स्टेज पर उठ चुकी थी।

अगले ही पल देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ी। स्टेज पर माईक थामे जिसने खुद को ब्रूटा कहा था उसकी तस्वीर को देख चुका था। वो ही तस्वीर जो महादेव के कमरे में पड़े अनिता गोस्वामी के बैग से मिली थी। जिसे जगमोहन लाया था। अनिता गोस्वामी सूटकेस में ब्रूटा की तस्वीर लिए घूम रही थी?

देवराज चौहान ने घड़ी देखी।

आठ बजे थे।

अनिता गोस्वामी से मिलने में अभी दो घण्टे बाकी थे।

“आप सब लोगों का बहुत-बहुत धन्यवाद जो आप लोगों ने मेरे जन्मदिन की पार्टी में आकर, मेरी खुशी बढ़ाई। जन्मदिन की खुशी में कॉकटेल पार्टी का इन्तजाम किया गया है। मुझे विश्वास है कि आप सब इस पार्टी का पूरा मजा उठायेंगे।” इसके साथ ही ब्रूटा ने माईक पास खड़े आदमी को थमाया। फिर स्टेज से उतरकर बार काउंटर की तरफ बढ़ गया। दोनों गनमैन सतर्क से बराबर उसके साथ थे।

रास्ते में नजर आने वाले लोगों से हैलो-हैलो करता आगे बढ़ता रहा। ब्रूटा के चेहरे पर खुशनुमा मुस्कान फैली हुई थी। ब्रूटा बार काउंटर के पास पहुंचा तो बार टेंडर ने पैग तैयार करके ट्रे में रखकर उसकी तरफ बढ़ा दिया।

ब्रूटा ने पैग उठाया और वहां खड़े लोगों की तरफ घूमते हुए हंसकर ऊंचे स्वर में बोला।

“आज की शाम, मेरी लम्बी उम्र के नाम।” इसके साथ ही ब्रूटा ने एक ही बार में पैग खाली कर दिया।

पार्टी शुरू हो गई।

लोग कॉकटेल पार्टी का मजा लेने लगे।

ब्रूटा लोगों के बीच घूमता, जन्मदिन की बधाईयां लेता रहा। करीब आधा घण्टा वह वहां रहा। लोग कॉकटेल के रंग में रंगने लगे तो ब्रूटा खामोशी से, पार्टी हॉल से बाहर निकल गया।

मलानी वहीं था और पिछले दस मिनट से कई लोग उसके शक के दायरे में आये थे और अपने आदमियों को उन पर खास निगाह रखने को कह दिया था।

देवराज चौहान एक पैग लेकर, टेबल पर आ बैठा था और यदा-कदा घूंट ले लेता था । मलानी उसकी निगाहों में आ चुका था कि वो ब्रूटा का खास आदमी है। मलानी को, आदमियों को आदेश देते भी देखा था। वो समझ गया कि ये लोग उन्हीं लोगों को भीड़ में से तलाश करने की चेष्टा कर रहे हैं।

देवराज चौहान ने भीड़ में से, जगमोहन को तलाशा।

जगमोहन हाथ में पैग थामे दो लोगों से बातचीत में व्यस्त था।

लेकिन सोहनलाल, विक्रम की निगाहों में आ गया था।

सोहनलाल के दुबले-पतले शरीर को, विक्रम ने टी.वी. स्क्रीन पर अच्छी तरह देखा था। परन्तु आंखों पर लगे चश्में और ठोढ़ी पर लगा रखी चार इंच लम्बी दाढ़ी उसे बचा भी लेती। लेकिन विक्रम को उसका गोली वाली सिगरेट सुलगाना और कश लेने का अंदाज खटक गया।

उसे ध्यान आया कि वीडियो फिल्म में जो सूखा-सा, पतला-सा आदमी था वो भी कमीज की जेब से सिगरेट और पैंट से माचिस निकालकर इसी तरह सुलगाता था और कश भी इसी तरह लेता था। विक्रम देर तक सोहनलाल को देखता रहा। नोट करता रहा और फिर उसे पूरा यकीन हो गया कि यही वह इंसान है जो जहाज के प्राईवेट हिस्से में, चोरी-छिपे आया था।

जितनी देर विक्रम ने सोहनलाल को पहचानने और फैसला करने में लगाई, तब तक सोहनलाल विक्रम की निगाहों को देखकर समझ चुका था कि कोई गड़बड़ है। सोहनलाल ने गिलास टेबल पर रहने दिया और उस दरवाजे की तरफ बढ़ गया, जिधर बाथरूम था।

दरवाजा खोलते सोहनलाल ने पीछे देखा तो विक्रम को आते पाया। अब शक की कोई गुंजाईश नहीं थी कि वो पहचाना जा चुका है।

उस वक्त बाथरूम खाली था। सोहनलाल ने जेब से रिवॉल्वर निकाली जिस पर साईलेंसर लगा हुआ था। और सू-सू करने वाले ढंग में खड़ा हो गया।

विक्रम ने भीतर प्रवेश किया। बाथरूम में अन्य किसी को न पाकर सीधा सोहनलाल के पास पहुंचा और रिवॉल्वर निकालकर हाथ में ली फिर कठोर स्वर में कह उठा।

“तुमने क्या सोचा था कि तुम्हें कोई भी पहचान नहीं सकेगा। दाढ़ी और चश्मा लगाक़र बच जाओगे।”

“क्या मतलब?” उसी अंदाज में खड़ा सोहनलाल बोला। गर्दन घुमाकर उसे देखा।

“उस रात ताला खोलकर, तुम अपने साथी के साथ, जहाज पर ब्रूटा साहब के प्राईवेट हिस्से में गये थे।” उसकी आवाज में भरे विश्वास को सोहनलाल ने पहचाना।

“कैसे पहचाना?”

“पहले बोलो मैंने ठीक कहा है?”

“ठीक कहा है। तभी तो पूछ रहा हूं कि कैसे पहचाना?”

“तुम्हारे सिगरेट निकालने, सुलगाने और कश लेने के ढंग से पहचाना।” विक्रम दांत भींचकर बोला।

“मेहरबानी। जो बता दिया।” सोहनलाल बेहद सतर्क था –“आगे से इस बात का ध्यान रखूंगा।”

“तुम अभी मेरे साथ चलोगे?”

“कहां?”

“ब्रूटा साहब के पास। उसी प्राइवेट हिस्से में।” विक्रम का स्वर कठोर था –“बाथरूम से बाहर निकलकर किसी तरह का तमाशा करने की कोशिश मत करना ! जहाज पर हमारे बहुत आदमी हैं। तुम अब अपनी किसी भी चालाकी कामयाब नहीं हो सकोगे। समझ गये।”

“समझा।” सोहनलाल कहते हुए आराम से पलटा और हाथ में दबी साईलेंसर लगी रिवॉल्वर से फायर कर दिया। गोली उसकी छाती में लगी। उसके शरीर को तीव्र झटका लगा। वह पीछे की दीवार से जा टकराया। रिवॉल्वर उसके हाथ से निकल गई। गिरने से पहले उसकी जान निकल गई थी।

सोहनलाल ने जल्दी से रिवॉल्वर को अपने कपड़ों में छिपाया और बाथरूम से बाहर निकलकर, अपनी टेबल की तरफ बढ़ गया। चेहरे पर सामान्य भाव थे। मन ही मने यही सोच रहा था कि अगर उसके पास साईलेंसर वाली रिवॉल्वर न होती तो आज बुरा फंस जाना था। साथ ही इस बात का अहसास हो गया कि ब्रूटा के आदमी सतर्क रहने वाले लोग हैं।

कॉकटेल पार्टी की रंगीनी बढ़ती जा रही थी।

☐☐☐

जगमोहन चौंका।

अजीब-सी निगाहों से वो वैशाली को देखता रह गया। जिसे अनिता गोस्वामी की मौसी के नाते वो मिला था। ये और यहां?

उसके देखते ही देखते वैशाली बार काउंटर पर पहुंची और पैग लेकर इधर-उधर खड़े लोगों से बातें करने लगी थी। कभी एक के पास खड़ी होती तो कभी दूसरे के पास। अपनी खूबसूरत मुस्कान हर तरफ बिखेरे जा रही थी। जगमोहन वे नहीं समझ पाया कि ये यहां कैसे? लेकिन यह बात फौरन दिमाग में आई कि इससे अनिता गोस्वामी के बारे में मालूम किया जा सकता है कि वो जहाज पर कहां है?

जनमोहन गिलास थामे उठा और टहलने के ढंग से वैशाली की तरफ बढ़ने लगा। कुछ देर बाद जब वैशाली के सामने पड़ा तो तब वो अकेली थी।

“हैलो मौसी जी –।” जगमोहन मुस्कराकर मीठे स्वर में कह उठा।

वैशाली चौंकी। उसकी आंखें सिकुड़ी। परन्तु होठों पर मुस्कान छाई रही।

“मैं वही, जो अनिता गोस्वामी के बारे में पूछने आपके घर पर आया था और –।”

“मुझसे दूर रहो बेवकूफ!” वैशाली के चेहरे पर बराबर मुस्कान नाच रही थी – “वरना पहचाने जाओगे। जहाज पर तुम लोगों को ही ढूंढा जा रहा है।” कहने के साथ ही उसने हाथ में थाम रखा गिलास बाय करने के अंदाज में थोड़ा-सा ऊंचा किया और आगे बढ़ गई।

जगमोहन ने भी जवाब में मुस्कराकर सिर हिलाया जैसे उस जैसी खूबसूरत से बात करके बहुत खुश हो गया हो। फिर गिलास से घूंट भरकर अपनी टेबल की तरफ बढ़ गया। मस्तिष्क में वैशाली की कही बात ही गूंज रही थी। इसका मतलब वैशाली जहाज पर कोई महत्व रखती है। और उन पर मंडरा रहे खतरे प्रति उन्हें वह सतर्क कर गई है। जगमोहन के दिमाग में वैशाली ही घूम रही थी।

तभी हाल के बाथरूम में विक्रम की लाश पड़ी होने की खबर मिलते ही शोर पड़ गया।

कॉकटेल पार्टी का मजा खराब हो गया।

मलानी दांत भींचे बाथरूम में पड़ी विक्रम की लाश को देखे जा रहा था। विक्रम उसका खास आदमी था। उसका इस तरह मर जाना, उसे किसी भी सूरत में पसन्द नहीं आया था।

लाश देखने वाले लोगों को बाथरूम से बाहर कर दिया गया था।

अब वहां पर सारे मलानी के ही आदमी थे।

“किसने शूट किया, विक्रम को?” मलानी गुर्राया।

कौन देता जवाब?

“तुममें से किसी ने, किसी को बाथरूम जाते देखा?” मलानी ने पूछा।

“नहीं।”

“विक्रम को किसी ने इस तरफ आते देखा?”

“नहीं।”

“इसे साईलेंसर लगे रिवॉल्वर से गोली मारी गई है।” मलानी की आवाज सुलग उठी –“और ये काम उन तीनों का ही है, जिन्हें हम जहाज पर तलाश कर रहे हैं। विक्रम ने उन तीनों में से किसी एक को पहचान लिया होगा। परन्तु विक्रम कुछ न कर सका और उसे गोली मार दी गई।”

सब मलानी को देख रहे थे।

“इससे साफ जाहिर होता है कि वो लोग पूरी तैयारी के साथ जहाज पर है।” मलानी सबके चेहरों पर नजरें दौड़ाता कह उठा –“किसी की जान लेने से उन्हें कोई परहेज नहीं। वो खतरनाक लोग हैं और किसी खास मकसद के तहत जहाज पर हैं। उनकी तलाश जारी रखो।”

“विक्रम की जान लेना इतना आसान काम नहीं था।” एक ने कहा।

“ठीक कहते हो।” मलानी गुर्रा उठा –“बहुत चालाकी के साथ विक्रम को गोली मारी गई है। सावधानी के साथ इन लोगों को ढूंढो। मैं कुत्ते की मौत मारूंगा उन्हें। हमारे ही जहाज पर वे लोग हुलिया बदलकर मौजूद हैं और हम उन्हें तलाश नहीं कर पा रहे।”

“वह बचेंगे नहीं। हम उन्हें ढूंढ कर रहेंगे।”

“जहाज के सिक्योरिटी ऑफिसर को बुलाओ और –।”

तभी सिक्योरिटी ऑफिसर ने वहां कदम रखा। साथ में उसके चार असिस्टेंट थे।

मलानी ने उसे देखा।

“जहाज के किसी यात्री ने विक्रम को शूट किया है।” मलानी का स्वर सख्त था –“लाश के साथ जो भी खानापूर्ति करनी है, वो करो और हत्यारे को ढूंढो।”

सिक्योरिटी ऑफिसर ने गम्भीर भाव में सिर हिलाया।

“हॉल में बहुत कम लोग बचे हैं। पूरी तरह पूछताछ अब नहीं हो सकेगी।” सिक्योरिटी ऑफिसर बोला।

“इस बारे में जितना ज्यादा से ज्यादा कर सकते हो, करो। मैं विक्रम के हत्यारे को अपने सामने देखना चाहता हूं।”

गुस्से में कहता हुआ मलानी बाहर निकलता चला गया।

☐☐☐

देवराज चौहान के केबिन में जगमोहन और सोहनलाल मौजूद थे।

“उस आदमी की जान लेने के अलावा मेरे पास और कोई रास्ता नहीं था।” सोहनलाल ने गम्भीर स्वर में कहा –“उस वक्त मेरे पास रिवॉल्वर न होती, उस पर साईलेंसर न लगा होता तो इस वक्त मैं ब्रूटा की कैद में होता।”

“जो हुआ, वो गुजर गया।” देवराज चौहान बोला –“अब सावधान रहो। हो सकता है किसी ने तुम्हें बाथरूम में जाने या आते देखा हो। ऐसे में जहाज वाले तुमसे कड़ी पूछताछ कर सकते हैं।”

सोहनलाल गहरी सांस लेकर रह गया।

“तुम अपने केबिन में जाओ। जरूरत पड़ने पर मैं ही तुम्हारे पास आऊंगा।”

देवराज चौहान के कहने पर सोहनलाल बाहर निकल गया।

“अनिता गोस्वामी की मौसी मिली थी पार्टी हॉल में –।”

“वो जो काली ड्रेस में थी?” देवराज चौहान ने कहा।

“ओह! तुमने देखा था।” जगमोहन के होंठों से निकला। फिर बताया कि उससे क्या बात हुई।

जगमोहन की बात सुनकर देवराज चौहान ने सोचभरे स्वर में कहा।

“इसका मतलब वो औरत ब्रूटा से कोई वास्ता रखती है। तभी वो तुम्हारे सामने ठहरी नहीं।”

“हो सकता है, ऐसा ही हो।” जगमोहन बोला –“दोबारा अकेली मिली तो शायद उससे कुछ बात हो।”

देवराज चौहान ने घड़ी पर निगाह मारी। साढ़े नौ बज रहे थे।

“मैं छठी मंजिल के डेक पर जा रहा हूं। दस बजे अनिता गोस्वामी ने वहीं मिलने को कहा था। पन्द्रह मिनट तो वहां पहुंचने में लग जायेंगे।” कहने के साथ ही देवराज चौहान उठा और बाहर निकल गया।

जगमोहन भी बाहर निकला। देवराज चौहान के केबिन का दरवाजा बंद किया और अपने केबिन में जा पहुंचा। दरवाजा खोलते ही ठिठका।

सामने कुर्सी पर वैशाली मौजूद थी।

“म-मौसी जी आप –?” जगमोहन के होंठों से निकला।

“मुझे वैशाली कहते हैं।” उसने सपाट स्वर में कहा।

जगमोहन ने उसे गहरी निगाहों से देखा। वो, वो ही काली ड्रेस में थी। कहर ढा रही थी। परफ्यूम की स्मैल पूरे केबिन में फैली थी। कोई शक नहीं कि वो लाजवाब खूबसूरत थी।

“अन्दर आकर दरवाजा बंद कर लो।” उसने शांत स्वर में कहा –“मेरा यहां देखा जाना, हम दोनों के लिये ही ठीक नहीं है। इंसान को वक्त से पहले मरने का सामान इकट्ठा नहीं करना चाहिये।”

जगमोहन ने भीतर से दरवाजा बंद कर दिया और कुर्सी पर बैठते हुए बोला।

“तुम्हें कैसे मालूम हुआ कि यह मेरा केबिन है?”

“जहाज पर मेरे लिए कुछ भी मालूम करना कठिन नहीं।”

“वो कैसे?”

“वक्त बरबाद मत करो। ब्रूटा, मेरा इन्तजार कर रहा होगा।”

जगमोहन की आंखें सिकुड़ी।

“ब्रूटा से तुम्हारा क्या वास्ता?”

“बहुत गहरा वास्ता है।”

“मैं उसी गहरे वास्ते के बारे में जानना चाहता हूं।” जगमोहन का स्वर शांत था।

“ब्रूटा की सब कुछ लगती हूं।”

“क्या सब कुछ?”

“सब कुछ।”

“और उस सब कुछ में सब कुछ आता है सिवाय उसकी बीवी होने के।” जगमोहन बोला।

“ठीक समझे।” वैशाली ने गहरी निगाहों से जगमोहन को देखा –“मैं तो तुम्हें समझदार समझती थी, लेकिन तुम तो निहायत ही बेवकूफ किस्म के इन्सान निकले।”

“क्या मतलब?”

“विक्रम को गोली क्यों मारी?”

“कौन विक्रम?” जगमोहन के माथे पर बल उभरे।

“वो ही, जिसे पार्टी हाल के बाथरूम में, तुमने शूट किया। तुम क्या समझते हो, बच जाओगे। तुम्हारी तलाश में वो जहाज का चप्पा-चप्पा उधेड़ देंगे। नकली दाढ़ी और मूंछ लगाकर तुम बच नहीं सकते।”

“मैंने उसे नहीं मारा।”

“झूठ मत बोलो। तुमने ही –।”

“मानो। मैंने उसे नहीं मारा। मेरे साथी ने उसे मारा है।”

“ओह!” वैशाली ने समझने वाले ढंग में सिर हिलाया –“तो साथी भी साथ हैं। कितने हैं?”

जगमोहन खामोश रहा।

“कुल मिलाकर तीन हो तुम लोग। जो उस वीडियो फिल्म में थे।” वैशाली की निगाह जगमोहन पर थी।

“हां।”

“वीडियो फिल्म देखते ही मैंने तुम्हें पहचान लिया था। क्योंकि फिल्म में भी तुम्हारा चेहरा बिना मेकअप के था और तुम मेरे पास आये थे, तब भी असली चेहरे में थे। हॉल में मैंने तुम्हारी आवाज की वजह से तुम्हें पहचाना। लेकिन मुझे समझ नहीं आता कि तुम लोग जहाज में आये ही क्यों?”

“महादेव के हत्यारे को ढूंढने। तुमने कहा था कि वो जहाज –!”

“पागलों वाली बातें मत करो।” वैशाली तीखे स्वर में कह उठी –“तुम महादेव के हत्यारे को छू भी नहीं सकते। जरा भी कदम बढ़ाओगे तो अपनी मौत को दावत दोगे। तुममें इतना दम-खम नहीं कि उसका बाल भी उखाड़ सको। मेरा कहना मानो तो जहां भी जहाज रुके,खामोशी से अपने साथियों के साथ निकल जाना।”

जगमोहन, वैशाली को देखे जा रहा था।

“क्या देख रहे हो।”

“सोच रहा हूं कि तुम्हें मेरे या मेरे साथियों के जहाज पर होने की वजह से तकलीफ क्यों हो रही है?”

“पागलपन की हरकतें देखकर तकलीफ तो होती ही है। पहले मैं अनिता गोस्वामी को बर्दाश्त कर रही थी। वो मेरी बात समझी नहीं कि अब तुम आ गये। तुम्हारे दोनों साथी आ गये। वो लोग तुम्हें तलाश कर रहे हैं। तुम पकड़े गये तो, मुंह खोल सकते हो कि मैंने तुम्हें कहा था कि महादेव का हत्यारा जहाज पर है।”

“समझा। तो तुम अपने को बचाने की खातिर, मुझे जहाज से बाहर धकेलना चाहती हो।”

वैशाली सख्त निगाहों से उसे देखती रही।

“अगर यही वजह है तो फिक्र मत करो। ऐसे किसी बुरे वक्त पर, मेरे मुंह से तुम्हारा नाम भी निकलेगा।”

वैशाली ने बेचैनी से पहलू बदला।

“आजकल तो किसी का भला करना, खुद को मुसीबत में डालना है।” वो उखड़े स्वर में बोली।

“अब एक बात तो बता दो।”

“क्या?”

“महादेव की जान किसने ली?”

“मेरा मुंह क्यों खुलवाते हो। अनिता गोस्वामी से मिलोगे तो जान लोगे।” वो पुनः उखड़े स्वर में बोली।

“उससे तो मेरा साथी मिलने गया है।”

“कब?”

“कुछ देर पहले। उसने छठी मंजिल के डेक पर मिलना है। यही मैसेज मिला है हमें।”

वैशाली गहरी सांस लेकर उठ खड़ी हुई।

“जा रही हो। बिना जवाब दिए।”

“तुम लोगों को हर बात का जवाब अनिता गोस्वामी से मिल जायेगा। उसके बाद जो फैसला करना हो कर लेना। लेकिन मेरी सलाह यही है कि उसकी पागलों वाली बातों में मत आना। वो तो मौत का रास्ता तलाश कर रही है।” वैशाली ने जगमोहन की आंखों में देखा –“इस जहाज पर तुम्हारी नहीं चल सकती। चलाओगे तो मरोगे। अगर पकड़े गये तो कभी भी यह मत कहना कि अनिता गोस्वामी की तलाश में तुम मेरे यहां गये थे और मैंने तुम्हें बोला कि महादेव का हत्यारा इस जहाज पर मिलेगा।”

“ऐसा नहीं होगा। लेकिन तुम –।”

वो रुकी नहीं। केबिन का दरवाजा खोलकर उसने इधर-उधर देखा और बाहर निकल गई।

जगमोहन खुले दरवाजे को देखता रहा। आखिर ये क्यों नहीं चाहती कि वो अपने कदम आगे बढ़ाये। कहने को ये ब्रूटा की सब है तो...बाकी सवालों का जवाब, देवराज चौहान से मिलेगा, जो अनिता गोस्वामी से मिलने गया है। जरा-जरा सुनकर किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सकता।

☐☐☐

ब्रूटा ने सिगरेट सुलगाई और सामने खड़े मलानी को देखा।

“मैंने कॉकटेल पार्टी का इन्तजाम इसलिए किया था कि वो तीनों, जो मेरे इस हिस्से में आये थे, उन्हें तलाशा जा सके। वो वहां थे, पार्टी में। विक्रम का मारा जाना, इस बात का सबूत है कि विक्रम ने उनमें से किसी को पहचान लिया था।” ब्रूटा ने एक-एक शब्द चबाकर कहा।

“आप ठीक कह रहे हैं सर!” मलानी के होंठ हिले।

“तो फिर तुम लोग उन्हें ढूंढ निकालने में नाकामयाब क्यों रहे? वो सिर्फ तीन। तुम सब कितने थे। उनमें एक को भी नहीं पकड़ सके।” ब्रूटा की नजरें मलानी के चेहरे पर थीं –“पार्टी हॉल में तीन सौ से ऊपर लोग थे। ऐसे में उन्होंने विक्रम को साईलेंसर लगी पिस्तौल से खत्म कर दिया और किसी को मालूम नहीं हो सका। कोई यह बताने वाला भी नहीं कि विक्रम कब बाथरूम गया। किसी ने उसे जाते नहीं देखा।”

मलानी खामोश ही रहा।

“वो मेरे जहाज पर, मेरे आदमी को मारने में कामयाब हो गये और तुम लोग उन्हें देख भी न सके। ये तो बहुत ही गलत बात है। तुम्हें क्या हो गया है मलानी।”

मलानी चुप!

“जब से अनिता गोस्वामी का मामला शुरू हुआ है, तुम तसल्लीबख्श काम नहीं कर पा रहे हो। इसकी वजह मेरी समझ में नहीं आ रही। महादेव को भी तब खत्म किया गया, जब सारा मामला मेरे सामने आया और मैंने तुरन्त महादेव को खत्म करने को कहा। तुम तो तब भी हाथ-पर-हाथ रखे बैठे थे।”

“मैं उसे जिन्दा पकड़ना –।”

“क्या जरूरत थी। महादेव हमारी पोल खोल सकता था। ऐसे में उसका खत्म हो जाना ही ठीक था। उसके बाद अनिता गोस्वामी को तुम ढूंढ नहीं सके। काम करते-करते अगर थक गये हो तो महीना-दो महीने आराम कर लो। लेकिन इस तरह की लापरवाही नहीं होनी चाहिये।”

“इस बात का मैं ध्यान रखूंगा सर –!”

“जिस बात का ध्यान, तुम्हें बिना कहे रखना चाहिये, वो ध्यान तुम मेरे कहने पर रखने जा रहे हो तो यह भी अजीब बात है, मेरे लिए।” ब्रूटा ने सिर हिलाकर धीमे स्वर में कहा –“महादेव का दोस्त, मरने से पहले महादेव ने जिसे जहाज के बारे में बता दिया था। जिसे खत्म करने के लिए तुमने आदमी भेजे थे। वो भी तुम्हारे हाथ नहीं आया। नहीं मलानी। ये सब नहीं चलने वाला।”

“मैं अपनी गलतियों को सुधार लूंगा।”

“तुम जानते हो, जहाज पर कुछ भी गलत होना, हमारे हक में ठीक नहीं है। विक्रम की मौत का क्या जवाब देंगे कि उसे किसने मारा। उसका हत्यारा कौन है? इस बात की छानबीन करते किसी की निगाह हमारी हरकतों पर पड़ गई तो हरी किशन ब्रूटा तो गया। हो गया मेरा काम।” ब्रूटा की आवाज में तीखापन आ गया था –“मुझे शिकायत का मौका मत दो। जाओ, माल रिसीव करने का वक्त हो रहा है। जहाज को ज्यादा देर मत रोकना। काम जरूरी निपटाना।”

मलानी फौरन बाहर निकल गया।

तभी वैशाली ने वहां कदम रखा।

“क्या हुआ ब्रूटा साहब? आप कुछ उखड़े-उखड़े से लग रहे हैं।” पास-आते वैशाली ने मुस्कराकर कहा।

“जहाज में इस तरह हमारे आदमी की हत्या हो जाना, ठीक बात नहीं है।” ब्रूटा ने गम्भीर स्वर में कहा।

वैशाली के कुछ कहने से पहले ही इन्टरकॉम बजा।

ब्रूटा ने हाथ बढ़ाकर रिसीवर उठाया।

“ब्रूटा साहब!” उसके कानों में आवाज पड़ी –“मैं सुन्दर बोल रहा हूं।”

“बोलो।”

“खास बात आपसे कहना चाहता हूं, अगर मेरा नाम बीच में न आये तो।”

“कहो।” ब्रूटा के माथे पर बल पड़े।

“जहाज के बन्दरगाह से रवाना होने से पहले बन्दरगाह पर मैंने मलानी को अनिता गोस्वामी के साथ देखा था।” सुन्दर की दबी आवाज ब्रूटा के कानों में पड़ी।

ब्रूटा को लगा जैसे उसके मस्तिष्क में किसी ने सुई चुभो दी हो।

“जानते हो, क्या कह रहे हो?”

“ये बात अगर मलानी को मालूम हो गई तो वो मेरी जान ले लेगा।” सुन्दर की घबराई आवाज आई।

“मैंने कहा है अगर ये बात झूठ हुई तो?”

“ये सच है।”

“साबित कैसे करोगे?”

“अब तक मैंने आपको ये बात इसलिये नहीं बताई कि मेरे पास साबित करने को कुछ नहीं था। अब भी नहीं है। ये सब आपसे कहकर मैंने खुद को मुसीबत में डाल लिया है, मैं जानता हूँ। लेकिन अगर आप चाहें तो ये बात साबित हो सकती है।” सुन्दर के स्वर में गम्भीरता थी।

“तुम्हारा मतलब कि मैं साबित करूं।” ब्रूटा के चेहरे पर अजीब-से भाव उभरे।

“रास्ता मैं बताता हूं। साबित आप कर देंगे।”

“बोलो।”

“अनिता गोस्वामी जहाज पर है।”

“क्या कह रहे हो?” ब्रूटा चौंका।

“मैंने अपनी आंखों से उसे देखा है।”

“तो पकड़ा क्यों नहीं?”

“इसलिये कि आप मलानी का असली चेहरा देख सकें कि वो आपको धोखा दे रहा है। बन्दरगाह पर मैंने दोनों को साथ देखा। अब अनिता गोस्वामी जहाज पर है। मतलब कि मलानी जानता है कि वो लड़की जहाज पर है। इस पर भी उसे पकड़ नहीं रहा। आपको भी कुछ नहीं बता रहा। जाहिर है कि बीच में कुछ है, जिससे आप अंजान हैं। आप अनिता गोस्वामी से बात करें तो मेरी कही बात सच होकर सामने आ जायेगी।”

ब्रूटा के होंठ भिंच गये।

“इस समय वों कहां है?”

“मैंने उसे छठी मंजिल के डेक पर खड़े देखा है। कहें तो उसे पकड़कर –।”

“तुम अभी अपना मुंह बंद रखो। उससे मैं बात करता हूं।” कहने के साथ ही ब्रूटा ने इन्टरकॉम का रिसीवर रखा और उखड़े अंदाज में सिगरेट सुलगाई।

वैशाली की निगाह ब्रूटा पर थी।

“क्या हुआ?”

ब्रूटा ने वैशाली को इस तरह देखा, जैसे उसकी मौजूदगी भूल गया हो।

“समझ में नहीं आता क्या हो रहा है?” ब्रूटा उठते हुए बोला।

“क्यों?”

“तुम्हारा क्या ख्याल है? मलानी मुझे धोखा दे सकता है?” ब्रूटा ने शब्दों को चबाकर कहा।

“कैसा धोखा?”

“कैसा भी?”

“धोखा, कोई भी, कभी भी किसी को भी दे सकता है।” वैशाली मुस्कराई। उसकी आंखों में सतर्कता थी।

ब्रूटा ने सिगरेट ऐश-ट्रे में डाली फिर जेब से रिवॉल्वर निकालकर चेक की।

वैशाली की आंखें सिकुड़ी।

“अभी आपने किससे बात की ब्रूटा साहब?” वैशाली ने लापरवाही से पूछा।

“आओ। बाहर घूमने चलते हैं। आज छठी मंजिल के डेक पर ठण्डी हवा का मजा लेंगे।”

छठी मंजिल का डेक?

जहां अनिता गोस्वामी किसी से मिलने वाली है? वैशाली के मस्तिष्क में गड़बड़ की घंटी बज उठी।

“वो बाद में!” वैशाली ने मुस्कराकर कहा और ब्रूटा की बांह थामी –“पहले बेडरूम।”

“बेवकूफी वाली बात मत करो। मेरे साथ चलो।” ब्रूटा का स्वर एकाएक सख्त हो गया।

☐☐☐

जहाज की छठी मंजिल का डेक उस वक्त खाली ही था, जब  देवराज चौहान वहां पहुंचा था। चन्द्रमा की रोशनी में डेक अजीब-सी खामोशी के साथ चमक रहा था। पांच फीट ऊंची, मजबूत रेलिंग भी लगभग सपाट नजर आ रही थी। जहाज की रफ्तार तीव्र होने के कारण देवराज चौहान को सिगरेट सुलगाने में काफी दिक्कत आई। डेक काफी बड़ा था। देवराज चौहान आगे बढ़ा और रेलिंग के पास जा खड़ा हुआ।

मिनट भर भी न बीता होगा कि आहट हुई।

देवराज चौहान फौरन पलटा।

वो, वो ही थी। अनिता गोस्वामी। देवराज चौहान ने स्पष्ट पहचाना। एलबम में उसकी तस्वीरों को उसने अच्छी तरह देखा था और चन्द्रमा की रोशनी में उसका चेहरा इस हद तक स्पष्ट नजर आ रहा था कि उसे पहचाना जा सके। वो रेलिंग पर पांच-सात कदम दूर आकर खड़ी हो गई थी।

उसने एक बार भी देवराज चौहान की तरफ नहीं देखा था।

देवराज चौहान आगे बढ़ा और उसके पास पहुंच गया। अनिता गोस्वामी ने गर्दन घुमाकर एक निगाह उस पर मारी फिर चन्द्रमा की रोशनी में चमकते समन्दर पर निगाह टिका दी। दूर-दूर तक काला समन्दर नजर आ रहा था। आकाश में तारे चमकते बहुत अच्छे लग रहे थे।

“आज हमने यहां मिलना था।” देवराज चौहान बोला –“तुमने ही मिलने का वक्त और जगह तय की थी।”

“कौन हो तुम?” अनिता गोस्वामी का स्वर शांत था।

“महादेव का दोस्त।”

“क्या चाहते हो?”

“महादेव के हत्यारे को चाहता हूं। उसने मेरी बांहों में दम तोड़ा था।” देवराज चौहान का स्वर गम्भीर धा।

“मुझे कैसे पहचाना?”

“तुम्हारी तस्वीर से। तुम्हारे घर से एलबम मिली थी। जिसमें तुम्हारी तस्वीरें थीं।”

अनिता गोस्वामी खामोश रही।

“मैं तुमसे कुछ पूछना चाहता हूं।” देवराज चौहान बोला –“तुम –।”

“एक-एक सवाल में बहुत वक्त लग जायेगा।” अनिता गोस्वामी कह उठी।

“तो?”

“मैं ही सब कुछ बता देती हूं। जो बात न समझ में आये, वो बाद में पूछ लेना।”

“बोलो।”

“उधर आ जाओ। वहां डेक पर अंधेरा है और ऊपर शेड भी है। वहां हमें कोई नहीं देख पायेगा।”

“यहां तुम्हें किसी का डर है?” देवराज चौहान ने उसे देखा।

“मैं पहचानी जा सकती हूँ और ऐसा होते ही ब्रूटा या उसके आदमी मुझे खत्म कर देंगे।”

“ब्रूटा?”

“आओ।”

देवराज चौहान और अनिता गोस्वामी डेक पर अंधेरे वाले हिस्से में पहुंचे और दोनों वहीं नीचे फर्श पर बैठ गये। उस वक्त डेक पर कोई भी नहीं था।

“तुम असलम खान से मिलीं। तब हमसे भी मिल सकती थीं और –।”

“ब्रूटा के आदमी हर पल मेरी तलाश में थे। अगर मैं उन्हें मिल जाती तो मेरा हाल भी महादेव जैसा ही होता । महादेव की मौत का वास्तव में अफसोस है मुझे।” उसने धीमे स्वर में कहा।

देवराज चौहान खामोश रहा था।

कुछ पलों बाद उसने चुप्पी तोड़ी।

“मेरा नाम अनिता गोस्वामी है। पिताजी बचपन में ही चल बसे थे। जब मैं बीस बरस की तो मां भी नहीं रही। मकान और कुछ पैसा मेरे लिये छोड़ गये थे। वो पैसा भी ज्यादा देर नहीं चलने वाला था। पढ़ाई पूरी कर चुकी थी, सो मैंने नौकरी कर ली। मेरा कोई रिश्तेदार भी नहीं है। बहरहाल मुझे नौकरी मिली नीलगिरी शिपिंग कॉरपोरेशन में। पैडर रोड पर ऑफिस है। चार हजार रुपये तनख्वाह मिलती थी। जो कि मेरे लिए काफी थी। पांच सालों से मैं नीलगिरी शिपिंग के ऑफिस में नौकरी कर रही थी। वहां पर नरेश मलानी का आना अक्सर होता रहता था। हम दोनों करीब आ गये। वो उम्र में कुछ ज्यादा अवश्य है, परन्तु मुझे अच्छा लगता था।”

“नरेश मलानी कौन?”

“ब्रूटा का सबसे नजदीकी, सबसे खास आदमी है।” अनिता गोस्वामी ने बताया।

देवराज चौहान ने पार्टी हॉल में देखे मलानी का हुलिया बताया।

“हां। यही है नरेश मलानी!” अनिता गोस्वामी ने सहमति में सिर हिलाया –“करीब आते-आते हम इतने करीब आ गये कि जब भी फुर्सत मिलती, हम मिलते। और फिर जैसे हमें आदत ही पड़ गई एक-दूसरे की। हमने शादी का फैसला भी कर लिया और यह तय था कि हम इसी साल में शादी कर लेंगे। करीब पन्द्रह दिन पहले ही या फिर बारह दिन पहले की बात होगी कि मलानी का फोन आया ऑफिस में किं आज उसे फुर्सत है, मैं आ जाऊं। दिन-भर घूमेंगे। मैंने फौरन ऑफिस छोड़ा और उसकी बताई जगह पर पहुंच गई। शाम के करीब तीन बजे तक हमने खूब मौज-मस्ती की। लंच भी बढ़िया होटल में लिया। मलानी ने कैमरा ले रखा था, उसने मेरी तस्वीरें लीं।”

“उस दिन तुम इसी जहाज पर भी आये।” देवराज चौहान ने टोका।

“हां। तुम्हें कैसे पता?”

“तस्वीरों वाली एलबम देखकर । उन तस्वीरों में जहाज वाली तस्वीरें भी हैं। उसी ड्रेस में।”

“हां। जहाज पर आये। यहां दो-तीन कर्मचारी थे। बहरहाल मलानी मुझे जहाज के उस प्राईवेट हिस्से में ले गया। जो ब्रूटा का है। वहां उसने अपने हाथों से कॉफी बनाकर पिलाई। खूब बातें करते रहे हम। शाम हो गई। लेकिन मुझे भला जाने की क्या जल्दी थी। मेरा तो इन्तजार करने वाला भी कोई नहीं है। जल्दी पहुंचू या देर से जाऊं। मेरी जिन्दगी मेरी ही है।” अनिता गोस्वामी कहे जा रही थी –“अंधेरा होने के बाद मलानी ने व्हिस्की की बोतल खोल ली। मैं जानती थी कि वो पीता है। और इस बात का मैंने कभी एतराज भी नहीं उठाया। अभी दो पैग ही लिए होंगे कि उसकी जेब में पड़े मोबाईल फोन की बेल बजी। मलानी ने फोन पर बात की। दूसरी तरफ ब्रूटा था।”

अनिता गोस्वामी दो पल के लिए खामोश हुई।

देवराज चौहान की निगाह उस पर थी।

“मलानी ने ब्रूटा को बताया कि इस वक्त वो जहाज पर ही है। कुछ देर बात करने के बाद मलानी ने फोन बंद करके जेब में रखा और गिलास खाली करके मुझे कहा कि उसे जहाज पर ही आधे घण्टे का काम है। मुझे उस ड्राईंगहाल में छोड़कर वो ब्रूटा के बेडरूम में चला गया। मैं वो बेडरूम देख चुकी थी और वहां ऐसा कुछ नहीं था कि किसी काम में आधा घण्टा लगे। दस मिनट बीतने पर मैं अपनी जगह से उठी और बेडरूम के दरवाजे के पास पहुंचकर उसे धकेला तो वो खुल गया। मैं तुम्हें बता दूं कि बेडरूम में आठ फीट की गोलाई लिए खूबसूरत-सा बेड है और।”

“ब्रूटा के उस प्राईवेट हिस्से के जर्रे-जर्रे से वाकिफ हूं मैं। तुम आगे बात करो।”

“तुमने वो जगह कैसे देखी? वहां तो कोई जा नहीं सकता।” अनिता गोस्वामी के होंठो से निकला।

“तीन दिन पहले, चोरी-छिपे जहाज पर आकर, उस जगह को देखा था।”

“ओह –!” अनिता गोस्वामी ने समझने वाले ढंग में सिर हिलाया –“खैर, तो मैंने बेडरूम में झांककर देखा तो वो खाली था। मलानी वहां भी नहीं था। मैंने सारा बेडरूम छान मारा। उसे आवाजें दी। वहां से बाहर जाने का अन्य कोई रास्ता तलाश किया। रास्ता भी कोई नजर नहीं आया। हैरान-परेशान-सी मैं वापस हॉल में आ गई। मेरे पास मलानी की वापसी के इन्तजार के अलावा और कोई रास्ता नहीं था। साथ ही सोचे जा रही थी कि आखिर वो बंद कमरे में से कहां चला गया?”

देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ चुकी थीं।

“उसके बाद मलानी कहां से वापस आया?” देवराज चौहान ने पूछा।

“उसी बेडरूम से। एक घण्टे बाद उसकी बांहें और जूते भीगे हुए थे। सिर के बाल भी बिखरे हुए थे। स्पष्ट नजर आ रहा था कि वो मेहनत का काम करके आ रहा है। मुझे देखकर मुस्कराया और बोला, पांच मिनट में बाथरूम से होकर आता हूं। कहकर हॉल से बाहर निकल आया। उसके जाते ही मैं फिर उठी और बेडरूम दरवाजा खोलकर भीतर गई, तो कमरे के एक कोने में मजबूत प्लास्टिक के दो बोरे पड़े थे। ऐसा सफेद प्लास्टिक जिसके आर-पार देखा जा सके। बोरों का मुंह इस कदर सख्ती से बंद था कि उनके बीच हवा-पानी भी नहीं जा सकता था। और उन बोरों में रिवॉल्वरों पड़ी चमक रही थीं। बोरे गीले थे। उन पर पानी की बूंदें थीं। मुझे समझते देर न लगी कि यह रिवॉल्वरों के भरे बोरे समन्दर से लाये गये हैं। इस बेडरूम से कोई रास्ता समन्दर में जाता है।”

अब देवराज चौहान को समझ आ रहा था, ब्रूटा के उस प्राईवेट हिस्से का मतलब क्या है? वहां क्यों सख्त पहरेदारी है?

“मैंने एक बार फिर वो गुप्त रास्ता तलाश करने की कोशिश की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। इससे पहले कि मैं वहां से बाहर निकल पाती मलानी वहां आ पहुंचा।”

“तुम्हें यहां नहीं आना चाहिये था।” मलानी ने गम्भीर स्वर में कहा।

“क्यों?” अनिता गोस्वामी की तीखी निगाह मलानी पर जा टिकी –“मुझे यहां इसलिये नहीं आना चाहिये था कि, तुम्हारा असली चेहरा न देख पाऊं। तुम शरीफ मलानी बने धोखे से भरे प्यार का नाटक मुझसे करते रहो। तुम-तुम –।”

“मेरा प्यार धोखा नहीं है।” मलानी का स्वर गम्भीर ही रहा।

“तो फिर यह क्या है?” अनिता गोस्वामी ने रिवॉल्वरों वाले बोरों की तरफ इशारा किया।

मलानी ने बोरों को देखा। बोला कुछ नहीं।

“कितनी रिवॉल्वरें होंगी यह?” अनिता गोस्वामी के चेहरे पर गुस्सा नजर आ रहा था।

“एक बोरे में, एक हजार।”

“मतलब कि यह दो हजार रिवॉल्वरें हैं। हे भगवान! अगर ये रिवॉल्वरें दो हजार लोगों को थमा दो, जानते हो कि वो कितना खून-खराबा कर सकते हैं।” अनिता गोस्वामी के होंठों से निकला।

मलानी खामोश रहा।

“कहां से लाया गया इन रिवॉल्वरों को?”

“अमेरिकन मेक की रिवॉल्वरें हैं और पाकिस्तान से भेजी गई हैं।” मलानी गम्भीर था।

“किस वास्ते?”

“हिन्दुस्तान में फैलाने के लिये। पाकिस्तान ने यह रिवॉल्वरें मुफ्त में भेजी हैं। लेकिन ब्रूटा साहब के आदमी इन रिवॉल्वरों को ऊंचे दामों में बेचेंगे। पाकिस्तान के इरादे भी पूरे हो जायेंगे कि उनके भेजे हथियार हिन्दुस्तान में फैल गये। इधर ब्रूटा साहब को तगड़ी कमाई हो जायेगी।”

अनिता गोस्वामी मलानी का चेहरा देखती रही।

“किस रास्ते से, इस बेडरूम में यह थैले लाये गये?”

मलानी खामोश रहा।

“मैंने इन थैलों को देखा है। इन पर पानी की बूंदें हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि इस जगह से कोई रास्ता समन्दर तक जाता है। उसी रास्ते से ये हथियार यहां पहुंचे।”

मलानी ने कुछ नहीं कहा।

“यह सब तो हमेशा चलता ही रहता होगा। अक्सर छोटे-बड़े हथियार आते रहते होंगे।”

मलानी ने शराफत से, सहमति से गर्दन हिलाई।

“मैं नहीं जानती थी कि तुम ऐसा गिरा हुआ काम करते हो। अगर मुझे मालूम होता तो –।”

“मैं ब्रूटा साहब की नौकरी करता हूं।” मलानी ने कहना चाहा –“वो –।”

“तुम नौकरी की आड़ में ब्रूटा के गलत काम करते हो। देश में दंगा-फसाद करवाने में, हथियार बांटकर गलत लोगों की सहायता करते हो। मैंने जिन्दगी में पहली बार प्यार किया और वो भी गलत आदमी से। यह मैं ही जानती हूं कि मुझे कितनी शर्म आ रही –।”

“प्लीज अनिता, मुझे समझने की कोशिश करो।”

“अब समझने को बाकी रहा ही क्या है।” अनिता गोस्वामी का स्वर गुस्से से भर उठा –“देख लिया तुम्हारा असली चेहरा। वक्त से पहले देख लिया। मैं यहां से जाना चाहती हूं।”

“प्लीज अनिता!” मलानी ने कहना चाहा।

“मैंने कहा है, मैं यहां से जाना चाहती हूं।” उसका चेहरा सुर्ख हो रहा था।

“मैं तुम्हें जाने से नहीं रोकूंगा। लेकिन मेरी बात सुनकर ही, तुम्हें जाना होगा। हॉल में चलो, वहां बैठकर बातें करते हैं।” कहने के साथ ही मलानी ने उसकी बांह पकड़ी और दूसरे कमरे में ले गया। उसे सोफे पर बिठाया और खुद भी सामने बैठ गया।

अनिता गोस्वामी भी दांत भींचे मलानी को देखे जा रही थी।

मलानी ने मोबाईल फोन निकाला और ब्रूटा से बात की।

“सर! सामान आ गया है।”

“गुड। तुम जहाज पर ही रहना। अंधेरा हो चुका है। मैं दो घण्टे तक सामान ले जाने के लिए आदमी भेज रहा हूं।” ब्रूटा की आवाज मलानी के कानों में पड़ी।

मलानी ने फोन बंद करके जेब में डाला फिर उसे देखा।

“अब कहो। तुम क्या कह रही थीं।” मलानी बातों के दौरान गम्भीर ही रहा।

“मैं कुछ नहीं कहना चाहती। मैं यहां से जाना चाहती हूं।” अनिता गोस्वामी ने दांत भींचकर कहा।

“इसलिये कि मैं गलत काम करता हूं।”

“हां। तुम –।”

“यह काम मैं नहीं ब्रूटा करता है। वो हथियारों का बहुत बड़ा सौदागर है। कभी पाकिस्तान से हथियार आते हैं तो कभी चीन और अमेरिका से। और यह जहाज ब्रूटा के इसी काम आता है। कोई नहीं जानता कि एशिया में हथियारों का सबसे बड़ा सौदागर है ब्रूटा। कोई जान भी जाये तो उसके खिलाफ सबूत नहीं मिल सकता।”

“और तुम हथियारों के इस बड़े सौदागर के खास साथी हो। तुम –।”

“मैं कुछ भी नहीं हूं।” मलानी गम्भीर स्वर में कह उठा –“पन्द्रह सालों से ब्रूटा के साथ हूं। बनते-बनते उसका खास आदमी बनता चला गया। मुझे गलत मत समझो। मैं –।”

“सब कुछ सामने है और तुम कहते हो कि मैं तुम्हें गलत न समझूं। सॉरी मलानी, ये हमारी आखिरी मुलाकात है। आज के बाद कभी मुझसे मिलने की कोशिश मत करना ।”

“ये सम्भव नहीं। मैं तुमसे दिल से प्यार करता हूं।”

“तो क्या मेरे साथ जबर्दस्ती करोगे।” अनिता गोस्वामी के दांत भिंच गये –“अगर करते हो तो मुझे हैरानी नहीं होगी, क्योंकि तुम्हारा असल रूप देख चुकी हूं मैं। तुम कुछ भी कर सकते हो।”

मलानी ने पैग बनाया। घूंट भरा फिर शांत स्वर में बोला।

“प्यार में जबर्दस्ती नहीं होती अनिता, मैं तुमसे शादी करना –।”

“ये अब नहीं हो सकता। तुम जो काम करते हो, वो छोड़ोगे तो तभी हमारी शादी होगी।”

“इस काम में जो एक बार आ जाये, तो बाहर नहीं निकल सकता। ब्रूटा को इस बात का अहसास भी हो गया कि मैंने ऐसा कुछ सोचा है तो वो मुझे खत्म करवा देगा। ब्रूटा की ताकत से तुम वाकिफ नहीं हो।”

“तो मैंने तुम्हें कब कहा है ब्रूटा को छोड़ो।” अनिता गोस्वामी कड़वे स्वर में कह उठी –“मैंने तो कहा है कि हम दोनों शादी नहीं कर सकते। भविष्य में मुझसे मिलने की कोशिश मत करना।”

मलानी सोचभरे ढंग से घूंट भरता रहा।

“अगर मैं ब्रूटा का साथ छोड़ दूं, यह काम छोड़ दूं तो तब तुम्हें मेरे से शादी करने में कोई एतराज है?”

“तब कोई एतराज नहीं।”

“ठीक है। मैं कोशिश करूंगा कि ब्रूटा से अलग हो सकूँ। हो सकता है इसमें साल-छः महीने का वक्त लग जाये।”

“मैं इन्तजार कर सकती हूं। लेकिन उससे पहले तुम मुझसे मिलने की कोशिश नहीं करोगे।” कहने के साथ ही वो उठ खड़ी हुई –“मुझे बन्दरगाह तक पहुंचा दो।”

मलानी ने उसे देखा और शांत भाव में कहा।

“ब्रूटा के आदमी आने वाले हैं। इस वक्त मैं जहाज छोड़कर नहीं जा सकता। लेकिन बोट वाला, तुम्हें बन्दरगाह तक छोड़ आता है।” मलानी उठ खड़ा हुआ –“यहां जो भी तुमने देखा है, इसका जिक्र किसी से मत करना । बात खुली तो हम दोनों के लिये खतरा हो सकता है।”

इतना बताने के बाद अनिता गोस्वामी ठिठकी।

देवराज चौहान की निगाह बराबर, अनिता गोस्वामी पर थी।

“मलानी ने ही बातों के दौरान मुझे बताया था कि इस बार जब जहाज सिंगापुर के लिये रवाना होगा तो रास्ते में पाकिस्तान द्वारा भेजी गई हथियारों की बहुत बड़ी खेप, बीच समन्दर में ही जहाज पर, ब्रूटा रिसीव करेगा और उस खेप को अपने आदमियों द्वारा, मुम्बई रवाना कर देगा। और मैं नहीं चाहती थी कि हथियार हिन्दुस्तान में पहुंचे। क्योंकि –।”

“यह बात बाद में।” देवराज चौहान ने टोका –“पहले महादेव वाली बात पूरी करो।”

दो पलों की चुप्पी के बाद अनिता गोस्वामी पुनः बोली।

“उस रात जहाज ले जाने के बाद मेरा चैन जाने कहां गुम हो गया। मेरी आंखों के सामने रिवॉल्वरों वाले थैले ही घूमते रहे और सोचती रही कि दो हजार रिवॉल्वर कितने घर तबाह कर देंगे। यह बात ठीक कही थी मलानी ने कि ब्रूटा को हथियारों का सौदागर साबित कर पाना आसान काम नहीं था। पुलिस के पास भी जाती तो वह मुझे पागल कहकर भगा देते और हो सकता था कि ब्रूटा को मेरी हरकत की खबर लग जाती तो वह अपने आदमी मेरे पीछे डाल देता। ब्रूटा के पास वास्तव में बहुत ताकत है। मैं सोचती रही कि क्या करूं कि पाकिस्तान जो हथियार हिन्दुस्तान में फैला रहा है, वह न फैले। मेरा ध्यान जहाज के बेडरूम पर गया कि वहां से कोई गुप्त रास्ता, नीचे समन्दर तक जाता है। वहां से अवैध हथियार जहाज के भीतर लाये और निकाले जाते हैं। मैंने सोचा पहले जहाज के उस रास्ते का पता लगाना चाहिये। अगर पता लगा जाता है तो फिर जैसे-तैसे पुलिस कार्यवाही भी करवाई जा सकती है। इस काम के लिये मुझे ऐसे इंसान की जरूरत थी जो बन्दरगाह की जानकारी रखता और गोताखोरी जानता हो। मैंने गोताखोर की तलाश की। इसी तलाश के दौरान किसी ने मुझे असलम खान का पता बताया। असलम खान से बात हुई तो उसने मुझे महादेव से मिलवा दिया। महादेव बन्दरगाह के बारे में जानता था और गोताखोरी भी जानता था। वह कमजोर जान अवश्य था, परन्तु मेरे काम का था। मैंने उसे एक लाख रुपये देने का वायदा करके, उसे भरोसे में लेकर कहा कि बन्दरगाह पर 302 नम्बर का जो जहाज खड़ा है उसके पेंदे से कोई रास्ता जहाज में जाता है, वो-वो रास्ता तलाश करे।”

“और महादेव जहाज के नीचे से रास्ता तलाश करने लगा।” देवराज चौहान बोला।

“हाँ। महादेव ने काम तो शुरू किया, लेकिन दूसरी बार में ही जहाज वालों को उस पर शक हो गया। वो जब ऑक्सीजन सिलेंडर के साथ, समन्दर में जहाज के पेंदे में कोई जोड़-कोई रास्ता तलाश कर रहा था, तब जहाज का ड्रेस डाईवर, भी जहाज के पेंदे की रूटीन चैकिंग कर रहा था। दोनों का टकराव हो गया। वो महादेव को पकड़कर खींचता हुआ, बन्दरगाह के तट तक ले गया। मैं वहां खड़ी देख रही थी और समझ गई कि महादेव मुसीबत में है। तब वे दोनों अकेले थे। मैं नहीं चाहती थी कि महादेव मुंह खोले। मैं फौरन उनके पास पहुंची और महादेव को छुड़ाने की कोशिश करने लगी। लेकिन तब तक वहां दो आदमी और आ गये और महादेव के साथ-साथ मुझे भी पकड़ लिया और वहीं बन्दरगाह के एक ऑफिस में हमें बंदी बनाकर रखा। आधे घण्टे में ही वहां ब्रूटा का कोई आदमी पहुंचा और उसने पूछा कि वो ऑक्सीजन सिलेंडर लगाकर जहाज के पेंदे में क्या तलाश कर रहा था। चुप रहने पर महादेव की ठुकाई होने लगी। महादेव में इतनी ताकत नहीं थी कि वो मार बर्दाश्त कर पाता। आखिर गुस्से में मैंने कह दिया कि तुम लोग जहाज की आड़ में हथियार लाकर देश में बेचते हो। मैं जानती हूं कि नीचे से कोई रास्ता, ब्रूटा के प्राईवेट हिस्से में बने बेडरूम में जाता है।”

अनिता गोस्वामी ठिठकी।

देवराज चौहान ने गहरी सांस ली।

“ऐसा कहकर तुमने गलत काम किया। कोई और बहाना बनाया जा सकता था। तुम ब्रूटा की इतनी बड़ी बात से वाकिफ हो गई तो वह तुम लोगों को जिन्दा क्यों छोड़ेगा।” देवराज चौहान ने कहा।

“मेरे इतना कहने की देर थी कि उस आदमी ने मेरे सामने ही ब्रूटा को फोन करके सारी बात बताई तो, अगले एक घण्टे में ही ब्रूटा ने मलानी को वहां भेज दिया। मुझे देखते ही मलानी समझ गया कि क्या मामला है। मैं जहाज के रास्ते के बारे में छानबीन कर रही हूं। मलानी ने अकेले में मुझे समझाया कि अभी भी वक्त है। इस मामले से मैं दूर हो जाऊं। वह सब ठीक कर लेगा और मौका पाकर उसने मुझे और महादेव को वहां से भगा दिया। उन लोगों में से एक मुझे जानता था कि मैं नीलगिरी शिपिंग में काम करती हूं। मैं समझ गई कि अब बचना आसान नहीं। मैंने यह बात महादेव को बताई तो महादेव ने कहा, मैं उसके घर पर रह लूं। वहां से मैं सीधा अपने घर गई और सूटकेस में सामान भरकर, महादेव के घर पहुंच गई।”

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली।

“उसके बाद महादेव ब्रूटा के आदमियों की निगाहों में आ गया और मारा गया। लेकिन मैं बचती रही।”

“अपने घर पर तुमने किसी की जान ली थी?” देवराज चौहान ने पूछा।

“हां।” अनिता गोस्वामी सिर हिलाकर कह उठी –“वो वक्त याद करती हूं तो जिस्म कांप उठता है। महादेव के मरने के बारे में सुना तो समझ गई कि अब महादेव के यहां रहना खतरे से खाली नहीं। मुझे लगा इस वक्त सबसे बढ़िया जगह छिपने की मेरा घर ही है। वे लोग तसल्ली कर चुके होंगे कि मैं अपने घर पर नहीं हूं। यही सोचकर मैं अपने घर पहुंची। दरवाजा खोला तो भीतर उस आदमी को पाया। जो ब्रूटा की तरफ से वहां मेरे इन्तजार में था कि शायद मैं वहां आ पहुंचू और पहुंच भी गयी। उसने मुझे पकड़ लिया और चाकू निकालकर मुझे मारना चाहा। मौत सामने देखकर जाने मुझमें कहां से हिम्मत आ गई और मैं उसका मुकाबला करने लगी। मुझे नहीं याद कि कब मेरे हाथ में चाकू आया और कब उसके जिस्म पर वार करना शुरू किया। बहुत घबराई हुई थी मैं। जब वो मर गया तो तब मुझे लगा कि मैंने अपनी जान बचा ली है।”

देवराज चौहान ने कश लिया।

“और वो मौसी, जो कि ब्रूटा की खास है। उससे तुम्हारा क्या रिश्ता है?”

“इंसानियत का रिश्ता है। वो अक्सर ब्रूटा के ऑफिस में आती थी। मुझे पसन्द करती थी और मिला करती थी। उसने कई बार मुझे समझाया कि मलानी के साथ मैं सुखी नहीं रह सकती। खैर, ये अलग बात है। वैसे तो वे लोग मुझे ढूंढकर महादेव की तरह खत्म कर चुके होते, लेकिन मैं जानती हूं कि मलानी की वजह से मैं बची हुई हूं। वो वास्तव में मुझे सच्चा प्यार करता है लेकिन ब्रूटा की वजह से मजबूर है। मलानी इस वक्त भी जानता है कि मैं जहाज पर हूं और कौन-से केबिन में हूं। कोई और रास्ता न पाकर, मजबूरी में मुझे खतरा उठाकर जहाज पर सफर करना पड़ा। मलानी को मैंने स्पष्ट तौर पर कह दिया है कि ब्रूटा का यह जहाज वापस हिन्दुस्तान नहीं आना चाहिये। रास्ते में या सिंगापुर बन्दरगाह पर कहीं भी इसे तबाह हो जाना चाहिये। तभी मैं उससे शादी करूंगी। क्योंकि ब्रूटा इसी जहाज की आड़ में हथियारों को हिन्दुस्तान में फैला रहा है। इस जहाज का प्राईवेट हिस्सा, जो कि उसके कब्जे में रहता है, वो खास ढंग से बना रखा है, जिसके कारण वो आसानी से, सालों से अपने काम में सफल है।”

देवराज चौहान ने कश लिया और सिगरेट बंद कर दी।

“तुम्हारी केबिन जहाज में इस वक्त कहां है।”

वो चुप रही।

“जो मैं पूछता हूं बताती जाओ।”

“छठी मंजिल पर। केबिन नम्बर अट्ठारह।” अनिता गोस्वामी बोली।

“अब तुम मुझसे क्या चाहती हो?”

“तुम्हें महादेव का कातिल चाहिये, तो वह ब्रूटा है। और मैं ब्रूटा को तबाह हुआ देखना चाहती हूं। अगर तुम ब्रूटा को खत्म भी कर देते हो, तो भी मेरा काम खत्म हो जायेगा।”

“तुम्हें ब्रूटा की इस बात से इतनी नफरत क्यों, कि वह हथियारों का सौदागर है।”

“मुझे हथियारों से नफरत है।” अनिता गोस्वामी की आवाज में गुस्सा आ गया –“मेरी मां बताती थी कि मेरे पिताजी की मौत की क्या वजह थी। मैं छोटी थी, तब पिताजी बाजार से सामान खरीद कर ला रहे थे कि रास्ते में दंगा हो गया। कई गोलियां उनके शरीर में लगी और वो मर गये। दंगे में इस्तेमाल होने वाले हथियार भी कोई इसी तरह देश में लाया होगा। अब भी जो हथियार देश में फैलाये जा रहे हैं, उनसे मेरे जैसी कई बेटियां बिना बाप के प्यार के रह जायेंगी। मैं जानती हूं जब पिता का साया सिर पर नहीं होता तो, जीना कितना कठिन हो जाता है।”

देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।

“आज रात ब्रूटा के जहाज में हथियारों के साथ-साथ पचास करोड़ डॉलर की रकम भी मिलेगी। जो कि उसके पिछले कामों की पेमेन्ट है। हथियार तो वह चोरी-छिपे हिन्दुस्तान रवाना कर देगा और डॉलरों के रूप में मिली रकम को सिंगापुर में, बैंक में डाल देगा। मलानी ने यह बात बताई थी।”

“पचास करोड़ डॉलर?” देवराज चौहान के माथे पर बल पड़े।

“हां। बहुत बड़ी रकम होती है यह। हिसाब लगाओ। चालीस-पचास रुपये का एक डॉलर हुआ –तो पचास करोड़ डॉलर के कितने रुपये बनेंगे।”

देवराज चौहान के होंठों पर शांत मुस्कान उभरी।

“करोड़ों का हिसाब मैं कम्प्यूटर से भी जल्दी लगा लेता हूं।” देवराज चौहान उसकी बचकानी बात पर मन ही मन मुस्करा रहा था –“यह हथियार और रकम ब्रूटा को कब डिलीवर की जायेंगी?”

“मैं नहीं जानती। लेकिन यह काम आज रात होगा। कहीं पर भी जहाज दो-चार मिनट के लिये रुकेगा और उसी गुप्त रास्ते से पचास करोड़ डॉलर और हथियार ब्रूटा के पास होंगे।”

“तो उन हथियारों को लेकर ब्रूटा के आदमी कब मुम्बई की तरफ चलेंगे –।” देवराज चौहान ने पूछा।

“यह नहीं जानती मैं –।”

“तुम जानती हो कि जहां ब्रूटा है। जहाज के उस प्राइवेट हिस्से में पहुंच पाना सम्भव नहीं।”

“खास तो कुछ नहीं जानती। लेकिन मलानी ने एक बार बताया था कि उनकी मर्जी के बिना वहां कोई नहीं जा सकता। किसी को जाते ही उन्हें फौरन खबर मिल जाती है।”

तभी डेक पर आहटें और आवाजों की आवाज आई।

बैठे-बैठे दोनों की निगाह उस तरफ घूमी।

चन्द्रमा की रोशनी में ब्रूटा और वैशाली स्पष्ट नजर आये।

“यहां तो कोई भी नजर नहीं आ रहा।” ब्रूटा की मध्यम-सी आवाज उनके कानों में पड़ी।

“तुम्हें किसी ने गलत खबर दी है कि –।”

“सुन्दर में इतनी हिम्मत नहीं कि मुझे गलत खबर दे।”

“ओह! सुन्दर ने खबर दी है तुम्हें।” वैशाली की आवाज सुनाई दी।

“यह ब्रूटा है।” अनिता गोस्वामी कान में सूखे स्वर में बोली।

“जानता हूं।” देवराज चौहान की आवाज भी धीमी थी।

“साथ में मौसी है।”

“उसे भी जानता हूं।”

“तुम्हारे पास रिवॉल्वर है?” एकाएक अनिता गोस्वामी ने पूछा।

“है।”

“बहुत बढ़िया मौका है। ब्रूटा को गोली मारकर समन्दर में फेंक दो।”

“चुप रहो। वो हमारी आवाज सुन सकते हैं।”

वे दोनों अंधेरे में थे। इसलिये आसानी से उन्हें देख पाना सम्भव नहीं था।

“चले डार्लिंग!” वैशाली का स्वर उनके कानों में पड़ा।

जवाब में ब्रूटा ने कुछ नहीं कहा। मिनट भर डेक पर रहने के बाद वे दोनों चले गये।

“तुमने ब्रूटा को गोली क्यों नहीं मारी।” अनिता गोस्वामी कह उठी –“इसी के कहने पर, इसके आदमियों ने तुम्हारे दोस्त महादेव को मारा था। तुमने अपने दोस्त की मौत का बदला क्यों नहीं लिया? डेक पर कोई नहीं था। मौसी को मैं समझा लेती। इतना बढ़िया मौका तुमने हाथों से गंवा दिया।”

देवराज चौहान ने शांत भाव में सिगरेट सुलगाई।

“दोस्त की मौत का बदला लेने आ गये और गोली चलाने की हिम्मत नहीं।” वो तीखे स्वर में बोली।

“ब्रूटा जहाज पर ही है। जाने वाला नहीं।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।

“क्या मतलब?”

“अगर ब्रूटा को अभी खत्म कर देता तो वो पचास करोड़ हाथ नहीं आयेंगे।”

“मैं समझी नहीं।” अनिता गोस्वामी की आवाज में उलझन आ गई।

देवराज चौहान उठ खड़ा हुआ।

अनिता गोस्वामी भी उठी।

“ब्रूटा बचने वाला नहीं। यह उसकी जिन्दगी की आखिरी यात्रा है।” देवराज चौहान ने सपाट स्वर में कहा –“पचास करोड़ डॉलर जहाज पर तभी आयेंगे, जब ब्रूटा जिन्दा होगा। इसलिये अभी इसका जिन्दा रहना जरूरी हैं। ब्रूटा को खत्म करने के साथ-साथ अगर पचास करोड़ डॉलर भी हाथ आ जायें तो क्या बुराई है।”

“समझी। लेकिन जहाज पर ब्रूटा के ढेरों आदमी हैं। ऐसे में उस पर हाथ डालना आसान नहीं। मेरे ख्याल में तुम दौलत के लालच में पड़कर अपना मकसद भूल रहे हो।”

देवराज चौहान मुस्कराया।

अनिता गोस्वामी कुछ कहने ही वाली थी कि ठिठक गई। उसे लगा जैसे जहाज की रफ्तार बिल्कुल कम हो गई हो। वो रुकने जा रहा हो। देवराज चौहान भी इस बात को महसूस कर चुका था।

“जहाज रुक रहा है।”

देवराज चौहान के माथे पर बल उभर आये थे।

“यहां-यहां शायद ब्रूटा पचास करोड़ डॉलर और हथियार लेगा, उसी गुप्ते रास्ते से।” अनिता गोस्वामी के होंठों से निकला –“तभी जहाज रुकने जा रहा है।”

देवराज चौहान वहां से फौरन आगे बढ़ा और रेलिंग के पास पहुँचकर आसपास निगाह दौड़ाने लगा। चन्द्रमा की रोशनी में समन्दर स्पष्ट नजर आ रहा था। देवराज चौहान ने जहाज के हर तरफ देखा, परन्तु उसे कोई भी हलचल नजर नहीं आई।

अनिता गोस्वामी भी देखने की कोशिश कर रही थी कि जहाज के पास कोई है या नहीं?

“जहाज के आसपास तो कोई भी नहीं है?” अनिता गोस्वामी उसके पास आती हुई बोली।

“अगर जहाज में माल पहुंचाया जा रहा है तो वे लोग गोताखोरों को इस्तेमाल कर रहे हैं।” कहने के साथ ही देवराज चौहान की निगाह समन्दर में हर तरफ दूर-दूर तक दौड़ने लगी।

दूसरे ही मिनट दूर, बहुत दूर समन्दर की छाती पर छोटा-सा धब्बा नजर आया। वो छोटा जहाज था। जिसकी पूरी लाईटें बंद थीं। देवराज चौहान समझ गया कि जो सामान भी जहाज पर पहुंचाया जा रहा है, उसे गोताखोर पानी के भीतर ही खींचते हुए जहाज तक लाये होंगे।

“समझ नहीं आ रहा है कि जहाज यहां रुका क्यों है?” अनिता गोस्वामी बोली।

“जहाज में माल पहुंचाया जा रहा है।” देवराज चौहान बोला।

“यह तुम कैसे कह सकते हो?”

“वो देखो, उधर दूर अंधेरे में छोटा जहाज खड़ा है। उसकी सारी लाईटें बंद हैं। उसी जहाज से इस जहाज में माल पहुंचाया जा रहा है।” देवराज चौहान ने सोचभरे स्वर में कहा –“तुमने ठीक कहा था कि जहाज के पेंदे में गुप्त रास्ता है, जहाज के भीतर माल पहुंचाने का।”

“पेंदे में रास्ता कैसे होगा। वो रास्ता अगर खुला तो जहाज में पानी घुस जायेगा।”

“पेंदे से रास्ता है और रही बात पानी का जहाज में जाने की तो, उस पानी को रोकना मामूली बात है।”

वो जहाज वहां करीब पांच-छ: मिनट रुका उसके बाद फिर चल पड़ा।

“जहाज में हथियार और पचास करोड़ डॉलर पहुँच चुके है।” अनिता गोस्वामी बेचैनी से बोली –“अब ब्रूटा उस हथियारों को हिन्दुस्तान पहुंचाने का कोई इन्तजाम कर रहा होगा।”

देवराज चौहान ने अंधेरे में अनिता गोस्वामी को देखा।

“मलानी तुमसे मिलेगा?”

“हां। वो रात को किसी वक्त अवश्य मेरे पास आयेगा, अपने प्यार का इजहार करने।”

“तो वो जब आये तो उससे जहाज में माल पहुंचने के बारे में मालूम करना।” देवराज चौहान ने कहा –“मैं कल सुबह इस बारे में पूछने तुम्हारे केबिन में आऊंगा।”

“ठीक है। लेकिन –।”

“बहुत बातें हो चुकी हैं, और बातें करनी हों तो सुबह करना जब मैं आऊं। बेहतर होगा कि तुम अपने केबिन में रहो। ब्रूटा के कई आदमी तुम्हें पहचानते हैं।” कहने के साथ देवराज चौहान नीचे जाने वाली सीढ़ियों की तरफ बढ़ गया। जहाज अब समन्दर की छाती पर तेजी से दौड़ने लगा था।

☐☐☐

जहाज के प्राईवेट हिस्से पर स्थित ब्रूटा के खूबसूरत बेडरूम में प्लास्टिक के थैलों में बंद असंख्य हथियार नजर आ रहे थे। खतरनाक-से-खतरनाक, जानलेवा हथियार । वह करीब पच्चीस बोरे थे। बाजार में उन हथियारों की कीमत कई करोड़ों में थी। और वह पांच बड़े बोरे थे, जिनमें से डॉलर झलक रहे थे। हर बोरे में बड़े-बड़े नोटों की शक्ल में दस करोड़ डॉलर की रकम थी। यानि कि पूरे पचास करोड़ डॉलर । एक बोरा ही इतना भारी था कि उसे उठाने के लिये दो-तीन आदमियों की जरूरत थी।

ब्रूटा की आंखों में तीव्र चमक लहरा रही थी।

वहां मलानी के अलावा तीन अन्य आदमी मौजूद थे।

“मलानी!” ब्रूटा मुस्कराकर बोला।

“पहला काम तो पूरा हो गया। अब दूसरा काम करो। हथियारों को फौरन हिन्दुस्तान भेजने का इन्तजाम करो। यह तुम्हें बता ही चुका हूं कि किस रास्ते से इस बार हथियार हिन्दुस्तान ले जाने हैं और हिन्दुस्तान के कौन-से तट पर हथियार पहुंचाने हैं तुम्हें?” ब्रूटा बोला।

“याद है ब्रूटा साहब!”

“हिन्दुस्तान में हथियार रिसीव करने के लिये हमारे आदमी वहां मौजूद होंगे। हथियारों को लाईफ बोटों में बांधकर समन्दर में फेंक देना, जब हमारे आदमियों का सिग्नल मिले। कुछ आगे समन्दर में वो हमारा इन्तजार कर रहे हैं।” ब्रूटा ने कहते हुए हथियारों पर निगाह मारी।

“अगर ऐसा है तो उन लोगों से, हमारे लोग ही हथियार रिसीव कर लेते और –।”

ब्रूटा हंसा और मलानी को चुप हो जाना पड़ा।

“मलानी! अगर मैं बीच में से निकल जाऊं तो फिर मुझे पूछेगा ही कौन । वह लोग आपस में सम्पर्क बना लेंगे। समझे, मुट्ठी को बंद रखना पड़ता है। मुट्ठी खुल गई तो सारा खेल खत्म –।”

“आप ठीक कह रहे हैं।” मलानी ने शांत स्वर में कहा।

“जाओ। हथियारों को लाईफ बोटों के साथ बांधो। आधे घण्टे बाद पश्चिम की तरफ से लाल रोशनी का तीन बार सिग्नल मिलेगा। तब हथियारों वाली लाईफ बोटों को समन्दर में फेंक देना। वे लोग ले लेंगे। और इन डॉलरों को सिंगापुर-हांगकांग के बैंकों में जमा कराना है। इन्हें एक नम्बर केबिन में पहुंचा देना।” कहने के साथ ही ब्रूटा बाहर निकलता चला गया।

☐☐☐

ब्रूटा कंट्रोल रूम में पहुंचा। वहां दो आदमी मौजूद थे और सामने नजर आ रही स्क्रीनों पर नजर रख रहे थे। स्क्रीनों पर ब्रूटा के बेडरूम के अलावा हर हिस्सा स्पष्ट नजर आ रहा था।

“सब ठीक है?” ब्रूटा ने पूछा।

“यस सर!” दोनों ने सतर्क स्वर में कहा।

“इस बार कुछ ज्यादा ही सावधान रहने की जरूरत है। जहाज पर हमारे दो-तीन दुश्मन मौजूद हैं। जिन्हें अभी ढूंढा नहीं जा सका। अगर वह भीतर प्रवेश करने की कोशिश करें तो फौरन खतरे का अलार्म बजा देना। इस मामले में कहीं भी लापरवाही नहीं होनी चाहिये।” ब्रूटा की आवाज में आदेश था।

“कहीं भी लापरवाही नहीं होगी। हम हमेशा सावधान रहते हैं।”

“निगरानी का सारा सिस्टम ठीक है?”

“यस सर!”

ब्रूटा वहां से निकला और उस हिस्से की तरफ बढ़ गया। जहां कुछ केबिन बने थे। फिर एक केबिन का दरवाजा खोलकर भीतर प्रवेश किया और दरवाजा बंद कर लिया।

भीतर सुन्दर मौजूद था।

ब्रूटा को देखते ही उसने फौरन उठने की कोशिश की।

“बैठे रहो।” ब्रूटा ने कहा और खुद भी कुर्सी पर बैठ गया।

सुन्दर की आंखों में व्याकुलता भरी स्पष्ट नजर आ रही थी।

ब्रूटा ने खोजभरी निगाह उस पर मारते हुए सिगरेट सुलगाई।

“तुम यकीन के साथ कहते हो कि मलानी का अनिता गोस्वामी के साथ वास्ता है?” ब्रूटा शांत स्वर में बोला।

“हां। लेकिन मैं साबित नहीं –।”

“अभी मैं साबित करने को नहीं कह रहा हूं। जो पूछ रहा सिर्फ उसी बात का जवाब दो।”

सुन्दर ने बैचेनी से पहलू बदला।

“अनिता गोस्वामी को जहाज पर देखा?”

“हां। बन्दरगाह पर मलानी से बातें करते और उसके बाद पार्टी हॉल में विक्रम की मौत के बाद, अनिता गोस्वामी को जहाज की छठी मंजिल के डेक पर देखा। खूब अच्छी तरह पहचाना उसे।” सुन्दर बेचैनी से कह रहा था –“मैं समझ नहीं पा रहा था कि ये बातें आपसे कहूं या न कहूं। लेकिन आपसे धोखेबाजी की मैं सोच भी नहीं सकता। इसलिये आपको इन्टरकॉम पर बता दिया कि –।”

“मुझे खबर करने के बाद तुम वहीं रहे?”

“जी हां।”

“अनिता गोस्वामी डेक से नीचे नहीं उतरी?”

“नहीं।”

“तो मेरे जाने पर वो कहां गायब हो गई?” ब्रूटा का स्वर शांत था।

“मैं नहीं जानता। तब वो अकेली थी। वहां मैंने एक और इंसान को जाते देखा था। वह कोई यात्री था जिसे मैं नहीं जानता। डेक पर लोग टहलने के लिये लोग जाते ही रहते हैं।”

“मैंने पूछा है, वो डेक से नीचे नहीं उतरी तो क्या उसने समन्दर में छलांग लगा दी?”

“मैं नहीं जानता।” सुन्दर ने दांतों से निचला होंठ काटते हुए कहा –“जब आप, मैडम वैशाली के साथ डेक पर गये तो में सीढ़ियों के पास से यह सोचकर हट गया कि डेक पर आप अनिता गोस्वामी से मुलाकात कर लेंगे। मुझे नहीं मालूम था कि डेक पर वो आपको मिलेगी ही नहीं।”

ब्रूटा सोचभरी निगाहों से सुन्दर को देखता रहा।

सुन्दर ने पुन:  बेचैनी से पहलू बदला।

“ब्रूटा साहब!” सुन्दर ने फंसे स्वर में कहा –“मैं जानता हूं कि यह बात बताकर मैंने अपने आपको मुसीबत में डाल लिया है। आपके सामने मैं साबित नहीं कर सकता कि, मैं सच कह रहा हूं। अनिता गोस्वामी जाने किस केबिन में है। जहाज के सारे केबिनों की तलाशी ले पाना सम्भव नहीं। उधर मलानी को मालूम हो गया कि मैंने आपको ये बात बताई तो वो मुझे छोड़ने वाला नहीं।”

ब्रूटा मुस्कराया। शांत मुस्कान।

“डेक पर से वो कहां चली गई। यह कोई गम्भीर बात नहीं है। वहां अंधेरा था। रात का वक्त है। हो सकता है कि तब वो किसी शेड के नीचे हो और मैं उसे देख न सका। लेकिन इस बात पर मैं यकीन करता हूं कि तुम मलानी के बारे में जो कह रहे हो वो सही कह रहे हो। मलानी ने आज तक हर काम पूरा किया। महादेव भी नहीं बचा, जो इस जहाज का रहस्य जान गया था। लेकिन अनिता गोस्वामी बची रही। इस बात पर मैं खुद हैरान था कि वो हाथ क्यों नहीं आ सकी। लेकिन अब समझ चुका हूं कि वो, मलानी की मेहरबानी से सलामत रही।” ब्रूटा ने एक-एक शब्द पर जोर देकर कहा।

सुन्दर, एकटक ब्रूटा को देखे जा रहा था।

“मलानी की शह पर, अनिता गोस्वामी इस जहाज पर सफर कर रही है तो इसमें दो राय नहीं हैं कि मलानी के मन में मेरे लिये विद्रोह की भावना आ चुकी है।” ब्रूटा ने जैसे अपने आपसे कहा –“मेरे खिलाफ इतनी हिम्मत मलानी करेगा। मैं सोच भी नहीं सकता। मेरे से झूठ। मेरे से गद्दारी। गलत बात है। मलानी की यह हरकतें तो मुझे डुबो कर रख देंगी।”

सुन्दर, ब्रूटा की आंखों में अजीब-सा पागलपन देख रहा था।

“हमारे धंधे में जो एक बार धोखा कर जाये तो उससे फिर कभी भी धोखे की उम्मीद की जा सकती है। तेरा क्या ख्याल सुन्दर! मैंने ठीक बोला?” ब्रूटा के दांत भिंचे हुए थे।

“आप ठीक कह रहे हैं।”

“सुन! अनिता गोस्वामी जहाज पर ही है ना?”

“जी हां।”

“तू खामोशी से उसे तलाश कर। कहीं न कहीं वो मिलेगी। जहाज के सिंगापुर पहुंचने से पहले ही उसे ढूंढ निकालना तेरा काम है। कर लेगा इस काम को?”

“हां, सिंगापुर पहुंचने से पहले तो उसे तलाश कर ही लूंगा।”

“तू ये काम कर।” ब्रूटा उठ खड़ा हुआ –“मलानी को मैं देखता हूँ।

☐☐☐

देवराज चौहान सोहनलाल के केबिन में पहुंचा। तब सोहनलाल ‘डिनर’ लेकर हटा था।

“खाना लिया?” सोहनलाल बोला।

“अभी नहीं।” देवराज चौहान ने बैठते हुए कहा –“जगमोहन को ले आ।”

“अनिता गोस्वामी मिली?” सोहनलाल ने खड़े होते हुए पूछा।

“हां।” कहने के साथ ही देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली।

सोहनलाल, जगमोहन को बुला लाया।

“अनिता गोस्वामी से क्या बात हुई?” जगमोहन ने पूछा।

देवराज चौहान ने सारी बात बताई।

“ओह! तो यह चक्कर है।” जगमोहन के होंठों से निकला।

“लेकिन उस रात तो हमने ब्रूटा का बेडरूम छान मारा था।” सोहनलाल ने कहा –“वहां तो हमें ऐसी कोई चीज नजर नहीं आई कि लगे, वहां कोई गुप्त रास्ता भी है।”

“तब हमें खुद नहीं मालूम था कि हम क्या तलाश कर रहे हैं। क्या ढूंढ रहे हैं।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा –“ऐसे में किसी गुप्त रास्ते को कैसे, तलाश कर पाते।”

सोहनलाल ने सिर हिलाकर जगमोहन को देखा।

“तू क्या सोच रहा है?” सोहनलाल ने पूछा।

“पचास करोड़ डॉलर के बारे में कि इतनी बड़ी रकम जहाज पर पहुंच चुकी है।” जगमोहन मुस्कराया।

“तो ले आ। ब्रूटा माल को अपने नीचे रखकर सिकाई कर रहा होगा।” सोहनलाल व्यंग्य से बोला।

जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा।

“ ब्रूटा के प्राईवेट हिस्से में जाने के बारे में कोई रास्ता सोचा?” जगमोहन ने पूछा।

देवराज चौहान ने कश लिया।

“हम यहां महादेव के कातिल को सजा देने के मकसद से आये थे। लेकिन पचास करोड़ डॉलर जैसी बड़ी रकम की मौजूदगी के बारे में जानकर, उसे पाना दूसरा मकसद बन गया है।” देवराज चौहान ने दोनों को बताया –“ब्रूटा कहीं खिसकने वाला नहीं। वो सिंगापुर तक जहाज पर ही रहेगा और महादेव की मौत की कीमत उसे अपनी जान देकर ही चुकानी होगी।”

“लेकिन ब्रूटा जहां है, वहां की पहरेदारी ऐसी है कि, वहां कदम रखते ही उन लोगों को हमारे बारे में मालूम हो जायेगा। भीतर जो लोग होंगे, वो हमें तुरन्त घेरे लेंगे।” सोहनलाल बोला।

“हर चीज की ‘काट’ होती है। कोई योजना हो तो उसे भी काटा जा सकता है। इसी तरह कहीं सख्त-से-सख्त पहरेदारी हो तो उसे भी काटा जा सकता है।” देवराज चौहान मुस्कराया।

“तुम्हारा मतलब कि ब्रूटा ने जो सिक्योरिटी का इन्तजाम कर रखा है, हम उससे निपट सकते हैं।”

जगमोहन के होंठ सिकुड़ गये। वो समझ गया कि देवराज चौहान ने कोई रास्ता निकाल लिया है।

देवराज चौहान ने दोनों पर निगाह मारी।

“वो कैमरे के लैंस कितनी ऊंचाई पर लगे थे?” देवराज चौहान ने सोहनलाल से पूछा।

“करीब साढ़े सात-आठ फीट की ऊंचाई पर।” सोहनलाल ने जवाब दिया।

“और जानते हो, तुम इस वक्त कहां पर हो?”

“क्या मतलब?” सोहनलाल की आंखें सिकुड़ी।

जगमोहन मन-ही-मन सतर्क हुआ।

“केबिन नम्बर पन्द्रह, यानि कि यह केबिन, उस छोटी-सी गैलरी की दीवार के दूसरी तरफ है, जिस गैलरी में दरवाजे का डबल ऑटोमैटिक लॉक खोलकर गये थे। जो गैलरी दस फीट लम्बी थी।”

दोनों चौंके। उनकी निगाह केबिन के पीछे वाली दीवार पर जा टिकी।

“तुम्हारा मतलब कि हम इस लकड़ी की दीवार को तोड़ दें तो ब्रूटा के प्राईवेट हिस्से में पहुंच जायेंगे।”

“ठीक समझे।” देवराज चौहान ने सिर हिलाया –“लेकिन दीवार तोड़कर ब्रूटा के प्राईवेट हिस्से में जाने का मेरा कोई प्रोग्राम नहीं है। हम वैसे ही उस जगह में प्रवेश करेंगे, जैसे पहले किया था।”

“दरवाजा खोलकर?” सोहनलाल के होंठो से निकला।

“हां।” देवराज चौहान खास अन्दाज में मुस्कराया –“लेकिन इस बार उनके कैमरे हमारी फिल्म नहीं ले सकेंगे। उनके कैमरे चालू रहेंगे, कंट्रोल रूम में बैठे आदमी टी.वी. पर नजरें टिकाये होंगे। लेकिन उन्हें टी.वी. स्क्रीन पर हम नजर नहीं आयेंगे। जबकि कैमरे बराबर अपना काम ठीक कर रहे होंगे। और हम भीतर होंगे।”

“ये कैसे हो सकता है।” जगमोहन के होंठों से निकला।

“ये होगा। क्योंकि मेरी योजना का यही अहम हिस्सा है। तभी तो हम ब्रूटा तक पहुंच सकेंगे।” देवराज चौहान ने कश लिया –“अपनी कोशिश में सफल हो सकेंगे।”

“ये सब कैसे होगा? मेरी तो समझ में कुछ नहीं आ रहा।” जगमोहन उत्सुकता से बोला।

सोहनलाल खुद हैरान था।

“मैं बताता हूं।” देवराज चौहान ने दोनों को देखा –“दरवाजे से भीतर प्रवेश करते ही वीडियो कैमरे का लैंस ठीक दरवाजे के ऊपर लगा है और दूसरा दस फीट दूर गैलरी मोड़ पर।”

दोनों ने सहमति से सिर हिलाया।

“उन दोनों कैमरे के लैंसों के बीच एक ही तार है, जो इसी दीवार के भीतर से गुजर रही है। कंट्रोल रूम में मास्टर वीडियो कैमरा है, जो वहां लगे सारे लैंसों को कंट्रोल करता वहां होने वाली घटनाओं की तस्वीरें ले रहा है।”

“एक मिनट –।” जगमोहन ने टोका –“मैं नहीं जानता कि तुम क्या कहने जा रहे हो। मैं यह कहना चाहता हूं कि कोई जरूरी तो नहीं कि वीडियो कैमरे की तार इस दीवार के बीच में फिट की गई हो। यह भी तो हो सकता है कि वो तार गैलरी की दूसरी दीवार के हिस्से में हो।”

“नहीं हो सकता।”

“क्यों?”

“क्योंकि उस तरफ की, लकड़ी की दीवार पतली है और इस तरफ की मोटी इसलिए है कि इधर केबिन पड़ते हैं। ऐसे में तार मोटी दीवार के बीच दी जायेगी, क्योंकि तार डालने से पहले दीवार में पाईप भी फंसाये गये होंगे। जहां जगह की ज्यादा गुंजाईश होगी, ऐसे पाईप वहीं डाले जाते हैं।” देवराज चौहान बोला।

जममोहन होंठ सिकोड़े सिर हिलाकर रह गया।

“आगे बताओ, क्या कहने जा रहे थे?” सोहनलाल ने गोली वाली सिगरेट सुलगा ली।

“ब्रूटा के प्राईवेट हिस्से में हर जगह कैमरे के लैंस लगे हैं और लकड़ी की दीवारों के भीतर तारों का जाल बिछा है। जो उन लैंसों को एक-दूसरे से जोड़ रहा है और अंत में वो तार कंट्रोल रूम में मौजूद वीडियो कैमरे से जा जुड़ता है। यानि कि वीडियो कैमरा वो ही कैच करेगा जो तारों से होता हुआ सिग्नल उस तक पहुंचेगा।” कहते हुए देवराज चौहान पल भर के लिये ठिठका।

दोनों की निगाह देवराज चौहान पर थी।

“हमारे पास आठ ऐसी वीडियो कैसेट हैं जिनमें भीतर का सारा हाल दर्ज है। जो तब ली गई थीं, जब जहाज बन्दरगाह पर लंगर डाले खड़ा था। जिन्हें हम तीनों देख चुके हैं। हमारी सारी योजना इन कैसेटों पर ही निर्भर करती है।”

उनकी निगाहें देवराज चौहान पर टिकी थीं।

“हम दीवार के इस तरफ से लकड़ी की दीवार को सावधानी से कुरेदकर वो पाईप तलाश करेंगे, जिसमें से वीडियो कैमरे की तार जा रही है। पाईप को थोड़ा-सा हटाकर उस तार में कट मारकर अपनी तार में जोड़ देंगे। सोहनलाल ने पहरेदारों की रिकॉर्डिंग वाली कैसेट वी.सी.आर. पर चला रखी होगी। वी.सी.आर. से एक तार टी.वी. में जा रही होगी। हमें ब्रूटा के प्राईवेट हिस्से का ही नजारा नजर आ रहा होगा, जो कि कैसेट में दर्ज है। जो तार दीवार की तार में काट मारकर उसमें जोड़ी होगी, उनको कनेक्शन, वी.सी.आर. से जो लीड निकलकर, टी.वी. तक जा रही है उसमें दे देंगे। ऐसा करने से जो हमारी चलाई कैसेट के दृश्य होंगे, वो तारों में सप्लाई होकर, ब्रूटा के कंट्रोल रूम में मौजूद टी.वी. में दिखाई देने लगेंगे। ऐसे में अगर हम भीतर प्रवेश करते हैं तो, वो हमें किसी भी सूरत में नहीं देख सकेंगे। वो टी.वी. में खाली गैलरी या अन्य जगहों को देख रहे होंगे।”

दो पल के लिए वहां चुप्पी छा गई।

दोनों देवराज चौहान को देख रहे थे।

“तुम्हारा मतलब कि उनकी तार में इस वी.सी.आर. की तार से कनेक्शन देने से, उनका वीडियो कैमरा काम करना बंद कर देगा और –।”

“नहीं। मैंने ये नहीं कहा।”

“तो?”

“उनका वीडियो कैमरा ठीक काम करता होगा। वो हमारी हरकतों की तस्वीरें, कंट्रोल रूम में कैच कर रहा है। वीडियो कैमरे में मौजूद कैसेट में हमारी हरकतों की रिकॉर्डिंग हो रही होगी। लेकिन सामने मौजूद टी.वी. स्क्रीनों पर उनको हर तरफ खाली जगहें नजर आ रही होंगी, जो कि कैसेट हमने अपने वी.सी.आर. में लगाकर उनका कनेक्शन उनके लैंसों की तार में दिया होगा।” देवराज चौहान ने कहा –“हर कैसेट आधे घण्टे की है। सोहनलाल कैसेट को वी.सी.आर. पर पच्चीस मिनट के बाद बदलता रहेगा। मैं और जगमोहन भीतर जायेंगे। भीतर शायद हमें ज्यादा देर न लगे। डेढ़-दो घण्टों में हमारा काम खत्म हो सकता है। हमारे पास साढ़े तीन घण्टों की कैसेट हैं। अगर देर भी हो जाये तो कैसेटों को फिर से, बार-बार लगाई जा सकती हैं।”

कई पलों तक उनके बीच चुप्पी रही।

“यह जरूरी तो नहीं कि वो लोग हमारे इस झांसे में आ जायें।” जगमोहन बोला।

“कोई जरूरी नहीं। जिस तरह हम उनकी पहरेदारी को काट रहे हैं। उसी तरह हो सकता है, हम ही अपनी योजना में फंस जायें। यह खतरा तो उठाना ही पड़ेगा।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा।

“मैं खतरा उठाने को तैयार हूं।” जगमोहन मुस्कराया –“पचास करोड़ डॉलर जैसी बड़ी रकम का सवाल है।”

“एक दिक्कत आ सकती है। भीतर जाने पर हमें सावधान रहना होगा।” देवराज चौहान बोला –“इन कैसेट्स में तब की रिकार्डिंग है, जब जहाज लंगर डाले खाली खड़ा था और जहाज पर कोई नहीं था। जबकि इस समय जहाज पर, प्राईवेट हिस्से में कई लोग मौजूद हैं। खुद ब्रूटा भी है। ऐसे में वो स्क्रीन पर किसी को नहीं देखेंगे तो, शक खा सकते हैं। तब गड़बड़ हो सकती है। लेकिन अपने शक को वे पक्का करते-करते दो घण्टे लगा देंगे और इतना वक्त हमारे लिये बहुत होगा। वैसे भी हम कल रात को ही भीतर जायेंगे। रात के वक्त वैसे भी चहल-पहल कम होगी तो कंट्रोल रूम में बैठे लोगों को कम ही शक होगा।”

“ये योजना तो खतरनाक है।” सोहनलाल के होंठों से निकला।

“दुनिया में कोई योजना फुल प्रूफ नहीं होती। और हर योजना का अहम हिस्सा खतरे में डूबा होता है। इंसान कोई भी योजना लेकर चले, उसके साथ-साथ खतरा न हो तो वो योजना ही बेकार होती है।”

“इसमें जितना खतरा बच जाने का है। उतना ही फंसने का।”

जवाब में देवराज चौहान मुस्कराया।

“क्या ख्याल है ब्रूटा के प्राईवेट हिस्से में कितने आदमी होंगे?” जगमोहन ने पूछा।

“इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता।” देवराज चौहान ने सिर हिलाया –“जहाज उसका है तो जाहिर है जहाज में ढ़ेरों उसके आदमी होंगे। पास में वो कितने आदमी रखता है, इस बात का पक्का नहीं है।” देवराज चौहान बोला।

“सामान्य अवस्था में ब्रूटा के प्राईवेट हिस्से में जाने का सिस्टम पता है?” जगमोहन ने पूछा।

“उस दरवाजे के सामने सफेद कपड़े पहने एक आदमी हर वक्त मौजूद रहता है। यानि कि किसी न किसी की ड्यूटी लगी रहती होगी। मैंने दो बार उधर दूर से ही देखा है तो दोनों बार अलग-अलग आदमी देखने को मिले। ऐसे में भीतर से ही आकर कोई दरवाजा खोलता होगा। ब्रूटा अगर समझदार होगा तो बाहर, खड़े आदमी के पास ऐसा कुछ नहीं होना चाहिये कि जिससे दरवाजा खोला जा सके। ऐसे में बाहरी आदमी, उसका फायदा उठाकर भीतर जा सकता है।”

“हम कैसे भीतर जायेंगे?”

“उस आदमी पर काबू पाना होगा। बेहोश करके उसे कहीं ऐसा डालना होगा कि कम से कम दो-ढाई घण्टे उसे होश न आ सके। इस दौरान सोहनलाल दरवाजे का लॉक खोल देगा और वापस केबिन में आकर, वी.सी.आर. में चलती कैसेट पर नजर रखेगा। हम भीतर प्रवेश करके दरवाजा भीतर से बंद कर लेंगे। ताकि पीछे से कोई भीतर आकर हमारे लिये मुसीबत न बन सके।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा –“यह है भीतर प्रवेश करने की योजना। जरूरत पड़ने पर इसमें बदल-फेर भी कर लेंगे।”

कोई कुछ न बोला।

“सोहनलाल –।”

“हाँ।”

“तुम केबिन के पीछे वाली दीवार की साढ़े सात फीट की ऊंचाई पर छेद करना शुरू कर दो। धीरे-धीरे लकड़ी को उधेड़ना। फैलाव ज्यादा न हो। नुकीले औजार का इस्तेमाल करना। दरवाजा भीतर से बंद रखना। वेटर आने पर छेद को देख सकता है। ऐसे में दूसरी दीवार पर लगी सीनरी को, छेद के ऊपर लगा देना;ताकि वेटर या कोई दूसरा आये तो होते छेद को न देख सके।” देवराज चौहान ने कहा।

सोहनलाल ने सहमति में सिर हिलाया।

“दीवार में संभालकर छेद करना। हमें वह पाईप तलाश करनी है, जिसमें वो तार है, जो कंट्रोल रूम में मौजूद कैमरे तक जा रही है। अगर छेद ज्यादा हो गया और दूसरी तरफ की लकड़ी उधड़ गई तो हमारी सारी योजना फेल हो जायेगी और ये केबिन तुम्हारा है। इसलिये सबसे पहले वे तुम्हें पकड़ेंगे।”

“इस बात का मैं ध्यान रखूंगा।” सोहनलाल मुस्करा पड़ा।

☐☐☐

रात के बारह बज रहे थे। मलानी अपने काम से फारिग हो चुका था। ठीक वक्त पर उसने और उसके आदमियों ने समन्दर में से सिग्नल देख लिए थे और लाईफ बोटों के साथ बांध रखे हथियारों के बड़े-बड़े बोरे, उसके आदमियों ने उठाकर समन्दर में फेंक दिए थे। अब उन हथियारों को संभालकर, हिन्दुस्तान तक ले जाना उनकी जिम्मेवारी थी।

इस काम से निपटकर जब मलानी, ब्रूटा के पास जा रहा था तो वैशाली मिली। वो पिए हुए थी। उसी काली ड्रेस में थी। शाम की तरह ही खूबसूरत लग रही थी।

“हाय मलानी!” वैशाली की आंखें नशे से भारी हो रही थीं।

“हैलो।” मलानी ने उसे देखकर सिर हिलाया –“ब्रूटा साहब कहां है?”

“बेडरूम में।” वैशाली हंसी –“पचास करोड़ डॉलर पाकर वो बहुत खुश है। इस वक्त उसे मेरी भी जरूरत नहीं पड़ रही। डिनर लेकर आ रही हूं।”

मलानी सिर हिलाकर आगे बढ़ने को हुआ कि वैशाली ने टोका।

“सुन्दर से तुम्हारा कोई मनमुटाव है?”

“नहीं-क्यों?”

“उसने ब्रूटा को बता दिया है तुमने अनिता गोस्वामी को जहाज पर रखा हुआ है।”

“क्या?” मलानी चिहुंक पड़ा।

“ब्रूटा सब कुछ जान चुका है अनिता गोस्वामी के मामले में तुम उससे धोखेबाजी कर रहे हो। अनिता गोस्वामी तुम्हारी वजह से बची हुई है। संभलकर रहना। मैंने तुम्हें सावधान कर दिया है।”

मलानी का चेहरा कठोर हो गया।

“यह सब सुन्दर ने ब्रूटा को बताया?”

“हां।”

“ब्रूटा साहब ने विश्वास कर लिया?” मलानी के दांत भिंच पड़े थे।

“तुम क्या समझते हो, सुन्दर की बात को ब्रूटा हवा में उड़ा देगा। जो बात ब्रूटा को जंचे, उस पर वो विश्वास करता है और सुन्दर की बात ब्रूटा को जंच गई है।” कहने के साथ ही वैशाली आगे बढ़ गई।

चेहरे पर सख्ती समेटे, मलानी उसे जाते देखता रहा।

मलानी, ब्रूटा से मिला।

ब्रूटा अपने बेडरूम में कुर्सी पर डॉलरों के बोरों को देखता हुआ, पैग से घूंट भर रहा था।

“आओ मलानी।” ब्रूटा उसे देखते ही मुस्कराया –“काम हो गया होगा?”

“जी हां। सिग्नल मिलते ही, हथियारों वाली लाईफ बोटें समन्दर में फेंक दीं। मेरे ख्याल में अब तक उन लोगों ने सारे हथियारों को संभाल भी लिया होगा।” मलानी ने शांत स्वर में कहा।

“गुड । तुम हर काम बहुत अच्छे ढंग से करते हो। सोचता हूं तुम्हारे न होने पर, मुझे बहुत दिक्कत होगी।”

ब्रूटा के इन शब्दों पर, मलानी मन-ही-मन सतर्क हुआ।

“पैग चलेगा?” ब्रूटा ने निगाहें उठाकर, मुस्कराकर उसे देखा।

“नहीं। अब मैं खाना खाकर आराम करना चाहता हूं।” मलानी भी मुस्कराया।

“ठीक है। आराम करो। बहुत काम किया है तुमने। थक गये होंगे। विक्रम को किसने शूट किया, मालूम हुआ?”

“अभी नहीं मालूम हुआ। मैं खुद व्यस्त रहा हूं। जहाज के सिक्योरिटी ऑफिसर से बात करता हूं कि उसने क्या पूछताछ की है और किस नतीजे पर पहुंचा है।” मलानी सिर हिलाकर बोला।

ब्रूटा ने सिर हिलाया।

“मलानी ! तुम जानते हो कि जहाज पर हम क्या काम करते हैं। किसी को हमारे कामों की भनक पड़ गई तो मामला संभालना कठिन हो सकता है। इसलिये जहाज पर ऐसा कोई भी आदमी न रहे, जो हमारे लिये मुसीबत खड़ी कर सकता हो। उन दो-तीन लोगों को ढूंढो, जो जाने किस मकसद से जहाज पर मौजूद हैं। खत्म कर दो। खामख्वाह की मुसीबत साथ लेकर चलना ठीक नहीं होता।”

“आप ठीक कह रहे हैं।”

“जाओ आराम करो। बाकी बातें कल करेंगे।”

मलानी, ब्रूटा के प्राईवेट हिस्से से बाहर निकला और स्टाफ के डिनर रूम की तरफ चल पड़ा, जहां उस जैसों के लिए अलग केबिन था, ड्रिंक और खाने के लिये। साथ-ही-साथ ब्रूटा की बातों के बारे में सोचता रहा, जो उससे की थीं। उसकी बातों से ऐसा कुछ नहीं झलका था कि वो उस पर किसी तरह का शक कर रहा हो। लेकिन वैशाली भी उससे झूठ क्यों बोलेगी।

इन्हीं सोचों में था कि सामने से आता सुन्दर दिखाई दिया।

“कैसे हो सुन्दर?” मलानी ने मुस्कराकर कहा।

“बढ़िया मलानी साहब!” सुन्दर भी मुस्कराया।

“विक्रम के हत्यारे का कुछ पता चला?”

“नहीं। मैं उसी भागदौड़ में लगा हुआ हूं।” सुन्दर बोला।

“मुझे कुछ मालूम हुआ है। आओ बताता हूं।”

सुन्दर, मलानी के साथ चल पड़ा। मलानी उसे लेकर तीसरी मंजिल के डेक पर पहुंचा। ठण्डी हवा चल रही थी। तेज रफ्तार के साथ समन्दर की छाती पर जहाज दौड़ा जा रहा था। दूर-दूर तक समन्दर-ही-समन्दर नजर आ रहा था। समन्दर की तेज लहरें उठती तो चन्द्रमा की रोशनी में वो चमक उठतीं।

सुन्दर ने न समझने वाली निगाहों से मलानी की तरफ देखा। उस वक्त रात के बारह बज रहे थे। डेक पर उनके अलावा और कोई भी नहीं था।

“आप क्या बताने जा रहे थे मलानी साहब?” सुन्दर ने पूछा।

“अभी मैं ब्रूटा साहब से मिलकर आ रहा हूं।” मलानी की आवाज शांत थी।

“अच्छा!”

“ब्रूटा साहब ने बताया कि तुमने, उन्हें अनिता गोस्वामी के बारे में बताया कि वो जहाज पर है और –।”

“क्या?” हक्के-बक्के-से सुन्दर के होंठों से निकला।

मलानी की आंखों में एकाएक खूंखारताभरी चमक आ ठहरी।

जबकि सुन्दर की आंखों में खौफ उभरा।

“यानि तुममें और ब्रूटा साहब में जो बातें हुईं, वो सब उन्होंने मुझे बतायीं।” मलानी एक एक शब्द चबाकर कह उठा –“यह सब बात ब्रूटा साहब से करने से पहले तुम्हें सोचना चाहिये या कि मलानी ने तुम्हारे साथ कभी बुरा नहीं किया। अपने करीब रखकर, तरक्की ही दी तुम्हें। और तुम ब्रूटा साहब से मेरी शिकायत करके, मेरी ही जड़ें काट रहे हो। कितनी बुरी बात है।”

“ये-ये।” सुन्दर ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी –“ये बात नहीं है।”

“तो क्या बात है?”

“वो-वो ब्रूटा साहब के सामने मेरी जुबान फिसल गई थी। गलती हो गई। फिर कभी ऐसा नहीं होगा। में तो आपका ही हुक्म मानता हूं। मैं तो –।”

“हरामजादे।” मलानी के होंठों से वहशी गुर्राहट निकली। उसके दोनों हाथ उठे। एक हाथ से सिर के बाल पकड़कर गर्दन को टेढ़ा किया। दूसरा हाथ गर्दन पर पड़ा।

हड्डी टूटने की आवाज वहां गूंजी।

सुन्दर की गर्दन एक तरफ लटक गई। वो मर चुका था। मलानी ने उसे संभाला। दोनों हाथों में फंसाकर उसके शरीर को ऊपर उठाया और पूरी शक्ति से समन्दर की तरफ उछाल दिया।

सुन्दर का शरीर समन्दर में गिरने की आवाज कानों में पड़ते ही, दांत भींचे मलानी ने दोनों हाथ झाड़े और पलटकर वापस चल पड़ा। चेहरे पर सिमटी खूंखारता धीरे-धीरे कम होती जा रही थी।

☐☐☐

रात के दो बजे तक सोहनलाल नुकीले औजार से लकड़ी को उधेड़ता रहा। गहराई में और कुछ ऊंचाई में। बहुत धीरे-धीरे, सावधानी से काम कर रहा था। वह अपने अनुमान के अनुसार काम कर रहा था कि कम से कम वो दीवार आठ इंच या ज्यादा से ज्यादा बारह इंच मोटी होनी चाहिये।

दीवार में चार इंच की गहराई करने के बाद वो रुक गया। इससे ज्यादा गहराई करना ठीक नहीं था। पाईप कुछ ऊपर और कुछ नीचे भी हो सकती थी।

फिर सोहनलाल ने हुए छेद से दो इंच नीचे झिर्री निकाली, जो कि चार इंच ही गहरी रही। परन्तु वहां भी कोई पाईप नहीं मिली।

उसके बाद सोहनलाल ने छेद के ऊपरी तरफ झिर्री निकालनी शुरू की।

करीब एक इंच के बाद ही सोहनलाल को रुक जाना पड़ा। उसका नुकीला औजार किसी सख्त-सी चीज से टकराया था। इस वक्त वो कुर्सी पर खड़ा था। जल्दी से नीचे उतरा और टेबल से टॉर्च उठा लाया। उसे रोशन करके, छेद में देखा तो आंखों में तसल्ली के भाव उभरे।

सफेद-सी पाईप की जरा-सी झलक मिल रही थी। देवराज चौहान का ख्याल ठीक ही निकला कि पाईप इसी दीवार में होगी। वो मिल गई थी। इस वक्त सुबह के चार बज चुके थे। सोहनलाल ने औजारों को समेटकर थैले में रखा। वहां बिखरे लकड़ी के टुकड़े उठाकर, कपड़ों के बैग में रख लिए कि किसी को नजर न आयें। दीवार पर हुए छेद पर, छोटी-सी सीनरी लटका दी। जो कि दूसरी दीवार पर लगी थी।

फिर लाईट ऑफ करके बैड पर लेट गया।

पाईप मिल गई थी। आगे का काम कठिन नहीं था। दिन में आसानी से किया जा सकता था।

☐☐☐