जगमोहन दिन भर बेहद व्यस्त रहा।

अनिता गोस्वामी की डायरी में लिखे फोन नम्बरों को चेक करते-करते शाम हो गई। फिर भी पूरे नम्बरों नहीं चेक कर पाया था और जिन नम्बरों को चेक किया था, उसे कोई फायदा नहीं हुआ था। कहीं भी आशाजनक बात नहीं हो पाई थी।

आखिरकार जगमोहन ने उस नम्बर पर बात की, जिस नम्बर के आगे मौसी लिखा था। उसके कानों में औरत की आवाज पड़ी। जगमोहन ने कहा कि वो उससे मिलना चाहता है, तो उसने बिना किसी पूछताछ के कहा, आ जाये और अपना पता बता दिया।

जगमोहन को अजीब-सा लगा कि उसके बारे में बिना जाने-पूछे उसे आने के लिये बोल दिया। बहरहाल जगमोहन मौसी वाले पते पर पहुंचा जो कि खूबसूरत मकान का पता था। दरवाजा खोलने वाली नौकरानी थी। उसने प्रश्नभरी निगाहों से जगमोहन को देखा।

“मैंने कुछ देर पहले फोन किया था तो मुझे आने के लिये कहा गया।” जगमोहन ने कहा।

“आ जाईये।”

जगमोहन भीतर पहुंचा। सजा हुआ, बेहद खूबसूरत ड्राईंगरूम था। नौकरानी जगमोहन को वहां बिठाकर, चली गई। दो मिनट बाद पानी लाई और बोली।

“मेमसाहब अभी आ रही हैं।”

पानी के बाद नौकरानी चली गई।

करीब छठे मिनट उसने वहां कदम रखा।

जगमोहन की निगाह उस पर जा टिकी।

वो चालीस बरस की अवश्य रही होगी, परन्तु किसी भी तरह से तीस से ज्यादा नहीं लग रही थी। वो बेहद खूबसूरत थी। इसका अहसास, उसे भी था। तभी तो उसके होंठों पर विश्वास से भरी मुस्कान छाई हुई थी। उसने स्लैक्स पहन रखी थी। जिसकी वजह से उसकी टांगों और कूल्हों की शेप स्पष्ट नजर आ रही थी। ऊपरी हिस्से में ब्लाउज जैसी स्कीवी थी। जो कि इतनी छोटी थी कि जैसे लगता था अभी वो ऊपर उठ जायेगी। उसके होंठों पर सुर्ख लिपस्टिक चमक रही थी। कानों में सोने के टॉप्स और दायें हाथ की उंगलियों में सुलगती सिगरेट फंसी थी।

“हेलो यंगमैन –।” पास पहुंचते हुए उसके होंठों की मुस्कान और गहरी हो गई।

जगमोहन उठा।

उसने जगमोहन से इस तरह हाथ मिलाया, जैसे बरसों पुरानी पहचान हो।

“सॉरी। आपको ज्यादा वेट तो नहीं करनी पड़ा –।” वो बैठते हुए बोली।

“नहीं।” जगमोहन मुस्कराया और बैठ गया –“आपने मुझे पहचाना?”

“मैंने आपको पहले कभी नहीं देखा, फिर कैसे पहचान सकती हूं।” वो हौले से हंसी।

“तो मेरे फोन करने पर आपने बिना कुछ पूछे आने के लिये क्यों कह दिया। जबकि –।”

“मिस्टर! इस वक्त मैं फुर्सत में थी।” उसने कश लिया –“फोन आया तो मैंने आने के लिए कह दिया। अगर आप गलत आदमी हैं तो, यहां से आप कुछ नहीं ले जा सकते। क्योंकि मेरे पास कुछ भी नहीं है।”

“आप खूबसूरत हैं।” जगमोहन मुस्कराया।

“फिर भी कोई फर्क नहीं पड़ता।” उसके चेहरे की मुस्कान गहरी हो गई –“मेरी खूबसूरती भी कोई नहीं ले जा सकता। क्योंकि वो मेरी ही है। मुझसे जुदा नहीं हो सकती। यानि कि मैं जैसी हूं, वैसी ही रहूंगी। मुझे किसी भी सूरत में कोई फर्क नहीं पड़ेगा।”

“बहुत दुनिया देख रखी है आपने –।”

“बहुत तो नहीं, लेकिन जितनी देखनी चाहिये, देख ली। आप अपने बारे में बताइये?”

“आप अनिता गोस्वामी की मौसी हैं?”

वो चौंकी। फिर तुरन्त ही संभल गई।

“हां। हूं।”

“असली के नकली?” जगमोहन ने उसकी आंखों में झांका।

“अगर शगुन देना है तो असली। नहीं देना है तो नकली –।”

“शगुन देने नहीं आया?”

“तो फिर मैं उसकी मुंहबोली मौसी हूं। आगे कहो।” उसकी निगाह जगमोहन पर टिक चुकी थी।

“अनिता गोस्वामी से मिलना चाहता हूं मैं –।”

“एक घण्टा पहले आते तो मिल लेते। अब वो जा चुकी है और कहां है, मैं नहीं जानती।” उसने शांत स्वर में कहा –“लेकिन तुम उसे क्यों तलाश करते फिर रहे हो? कौन हो तुम?”

“उसके साथ मेरा दोस्त था। किसी ने उसकी जान ले ली। वो जानती है कि किसने उसकी जान –।”

“महादेव की बात कर रहे हो।” उसने सीधे-सीधे कहा।

“हां।” जगमोहन की आंखें सिकुड़ी।

“उसके हत्यारे को तलाश कर रहे हो?”

“हां।”

“क्यों? अपने दोस्त की मौत का बदला लेना है?” उसने जगमोहन की आंखों में झांका।

“हां।” जगमोहन के दांत भिंच गये।

“इतना दम-खम है तुममें कि उसके हत्यारे का सामना कर सको?” वो व्यंग्य से कह उठी।

“इस बात का जवाब वक्त आने पर मिल जायेगा। तुम हत्यारे के बारे में बताओ।” जगमोहन के दांत भिंचते चले गये –“दम-खम न होता तो महादेव के हत्यारे को तलाश नहीं करता।”

वो, जगमोहन को देखती रही।

“जवाब नहीं दिया तुमने?” जगमोहन बोला।

“इकट्ठा ही जवाब दे दूंगी। अगर कुछ और भी पूछना हो तो।”

“अनिता गोस्वामी, महादेव को लेकर क्या काम कर रही थी?” जगमोहन बोला।

“और सवाल?”

“अनिता गोस्वामी ने अपने घर पर किसी की चाकू मार दिया। क्यों?”

“क्योंकि वो उसकी जान लेने जा रहा था।” उसने शांत स्वर में कहा।

“बाकी सवालों का जवाब?”

“बाकी जवाब शायद मैं न बता सकूं।” उसने सोचभरे स्वर में कहा –“अनिता से ही पूछो तो ठीक रहेगा।”

“वही तो पूछ रहा हूं कि बताओ, वो कहां मिलेगी?”

“मैं नहीं जानती। लेकिन तीसरे दिन, मुम्बई बन्दरगाह से, सिंगापुर के लिये नीलगिरी नाम का जहाज रवाना होने वाला है। मैं इतना जानती हूं वो उस जहाज पर सफर करेगी।” उसका स्वर सोच से भरा था।

“यह खबर पक्की है? कहीं में जहाज पर चढ़ जाऊं और –।”

“हां। खबर पक्की है।”

“वो जहाज पर कहां मिलेगी?”

“मैं क्या जानूं। ढूंढ लेना।” उसने लापरवाही से कहा।

जगमोहन, उसे देखता रहा।

एकाएक वो मुस्कराई।

“मैं जानती हूं कि मुझे देखते सोच रहे हो कि मैं कितनी खूबसूरत हूं। अगर –।”

“मैं जानना चाहता हूं कि अनिता गोस्वामी का बॉयफ्रैंड कौन है?” जगमोहन कह उठा।

“मैं कुछ नहीं जानती। जब उससे मिलो तो पूछ लेना।” उसने मुस्कानभरे स्वर में कहां –“अब कोई बात करनी है तो मेरे बारे में करो। मैं –।”

जगमोहन उठ खड़ा हुआ।

“चल दिए, मुलाकात अधूरी छोड़कर –।” उसने जानबूझकर आंखें फैलाई।

“जो कमी रह गई है, वो अनिता गोस्वामी से मिलकर पूरी कर लूंगा।” कहने के साथ ही जगमोहन पलटा और बाहर निकलता चला गया।

☐☐☐

जगमोहन जब सोहनलाल के यहां पहुंचा तो आठ बज रहे थे।

दस मिनट पहले ही सोहनलाल मोटी, मजबूत रस्सी, कांटा और साईलेंसर लेकर आया था। जगमोहन उस सामान को देखते ही ठिठका।

“कोई जानकारी मिली?” देवराज चौहान ने पूछा।

जगमोहन ने सामान पर से निगाह हटाकर देवराज चौहान को देखा।

“मिली तो है।” जगमोहन खाली कुर्सी पर बैठ गया –“लेकिन यकीन के साथ नहीं कह सकता कि वो कितनी सही है और कितनी गलत –।”

“बोलो –।”

“अनिता गोस्वामी की मौसी से मिला। जो कि उसकी असली मौसी नहीं है। वैसे भी वो किसी भी तरफ से मौसी नहीं लगती। वो तेज किस्म की औरत है। मेरे किसी सवाल का जवाब सीधा-सीधा नहीं दिया। पूछने पर यही बताया कि अपने घर में, उस आदमी का चाकू से खून अनिता गोस्वामी ने ही किया था। क्योंकि तब वो चाकू से, उसकी जान लेने जा रहा था। बचाव में वो खून कर गई।”

“उस वक्त तुमने भी कुछ ऐसा ही कहा था। तभी तो चाकू पर से उंगलियों के निशान साफ किए।” सोहनलाल बोला।

जगमोहन ने सिर हिलाया और देवराज चौहान को देखा।

“उस मौसी का कहना है कि वो नहीं जानती, अनिता गोस्वामी कहां है। अगर उससे मिलना है तो तीन दिन बाद नीलगिरी नाम का जहाज बन्दरगाह से सिंगापुर जा रहा है। अनिता गोस्वामी से उस जहाज में मिला जा सकता है। उसकी बातों से लगा कि महादेव का हत्यारा भी उसी जहाज में है। लेकिन उस मौसी के रंग-ढंग देखकर कह नहीं सकता कि उसने सच बोला है या झूठ –।”

सोहनलाल मुस्कराया।

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई।

तभी जगमोहन कह उठा।

“आते वक्त मेरे दिमाग में बार-बार यही आ रहा था कि कहीं उस नीलगिरी जहाज का नम्बर 302 तो नहीं। हो भी सकता है और नहीं भी। कल मैं बन्दरगाह जाकर, उस जहाज के बारे में मालूम करूंगा।”

“नीलगिरी जहाज का नम्बर 302 ही है।” सोहनलाल बोला।

“क्या?” जगमोहन ने चौंक कर उसे देखा।

“और इस वक्त हम उसी जहाज पर जाने की तैयारी कर रहे हैं।” सोहनलाल ने पुनः कहा।

“मैं –।” जगमोहन की उलझनभरी निगाह रस्से और कांटे पर गई –“समझा नहीं।”

“मैं बताता हूं।” कहने के साथ ही देवराज चौहान ने, जगमोहन को बन्दरगाह की सारी बात बता दी।

उन बातों को सुनते ही जगमोहन सब कुछ समझता चला गया।

“तुम भी यही खबर लाये कि नीलगिरी जहाज जब बन्दरगाह से चलेगा तो अनिता गोस्वामी उस वक्त उसमें होगी। सोहनलाल भी, असलम खान से यह खबर लाया। मतलब कि यह बात तो पक्की हो गई कि अनिता गोस्वामी हमें नीलगिरी जहाज पर ही मिलेगी, जिसका नम्बर 302 है।” देवराज चौहान सोचभरे स्वर में कह रहा था –“नीलगिरी जहाज के चप्पे-चप्पे की बनावट क्या है, वो मैं देख आया हूं। लेकिन जहाज की दूसरी मंजिल का आधा हिस्सा, जहाज के मालिक ब्रूटा ने इस हद तक प्राईवेट क्यों बना रखा है कि वहां उसे सख्त पहरा लगाना पड़ता है। यह देखने के लिये कि हम आधी रात को उस जहाज तक पहुंचेंगे।”

“मैं भी चलूंगा।” जगमोहन कह उठा।

“वहां खतरा हो सकता है और तुम्हारे चले बिना भी हमारा काम आसानी से हो सकता –।”

“मेरे चलने से कोई नुकसान नहीं हो तो, मैं अवश्य साथ चलूंगा।” जगमोहन ने बात काटकर कहा।

“मर्जी तुम्हारी –।” देवराज चौहान का स्वर शांत था।

तभी सोहनलाल ने उठते हुए जगमोहन से कहा।

“यह अस्सी फीट लम्बा रस्सा है। तुम हर डेढ़ फीट पर गांठ लगाओ, ताकि लटकते रस्से को पकड़कर आसानी से जहाज तक पहुंचा जा सके। तब तक मैं खाना लेकर आता हूं। जो रस्सा बच जायेगा। वो मैं आकर कर दूंगा।” कहने के साथ ही सोहनलाल बाहर निकलता चला गया।

जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा।

“ये मामला तो हर कदम पर उलझता जा रहा है।” जगमोहन बोला।

“हां। और जहां तक मेरा ख्याल है, मामला जहाज पर ही सुलझेगा। जब जहाज बन्दरगाह से सिंगापुर के लिये रवाना होगा। और अनिता गोस्वामी से बात होगी।” देवराज चौहान ने कहा।

“अनिता गोस्वामी की हरकतें भी हमें उलझा रही हैं।” जगमोहन ने होंठ सिकोड़कर कहा –“महादेव उसके साथ था, उसे गोली मार दी गई। महादेव के साथ वो सुरेश जोगेलकर से मिली तो जोगेलकर को गोलियों से भून दिया गया। यानि कि अनिता गोस्वामी की खुद की जान खतरे में है और मेरे ख्याल ले वो ही जान का खतरा जहाज पर भी है। इस पर भी वो जहाज पर सिंगापुर के लिए सफर करेगी।”

“तुम्हारी बातें अपनी जगह सही हैं।” देवराज चौहान ने कश लिया –“लेकिन अब तक जो-जो बातें सामने आई हैं। उन्हें देखते हुए, यह नहीं कहा जा सकता कि अनिता गोस्वामी बेवकूफ है। खतरे को जानते हुए भी वो जहाज पर सफर करेगी तो जाहिर है, इसकी कोई खास ही वजह होगी। हम अभी तक इस मामले की ऊपरी सतह पर हैं, जबकि अनिता गोस्वामी मामले की सारी बातों से वाकिफ है। इसके अलावा और कोई नहीं जो सब कुछ हमें बता सकें। हम हालातों को जानने की कोशिश ही कर सकते हैं और वो ही कोशिश करने के लिये आज रात जहाज पर जाकर ब्रूटा की प्राईवेट जगह देखेंगे।”

“लेकिन हमें यह तो मालूम नहीं कि हमने वहां देखना क्या है।” जगमोहन बोला –“हमारा मकसद क्या होगा?”

देवराज चौहान मुस्कराया।

“उसी मकसद को तलाशने के लिये तो जहाज पर ब्रूटा की प्राईवेट जगह पर जाना है। क्योंकि महादेव ने मरते वक्त उसी जहाज का नम्बर ‘302’ लिया था और उस 302 में ब्रूटा की प्राईवेट जगह के अलावा और कोई खास चीज तो मुझे नजर नहीं आई और वही देखना है कि उस खास चीज के भीतर खास क्या है। जिसे सख्त पहरे के पीछे छिपाया जाता है।” देवराज चौहान ने सिर हिलाकर कहा।

जगमोहन ने रस्सा थामा और गांठें लगानी शुरू कर दी।

“तुम्हें यकीन है कि जहाज के उस प्राईवेट हिस्से में, कुछ खास हमें अवश्य मिलेगा।”

“वहां कोई खास बात है। इसमें कोई शक नहीं। लेकिन वो हमें मिलता है, दिखता है, या उस बारे में जान जाते हैं कि नहीं, इस बारे में कुछ कह पाना कठिन है।”

एक घण्टे से पहले ही सोहनलाल खाना पैक कराकर ले आया।

☐☐☐

आसमान में बादल अपना-अपना झुण्ड बनाकर, हवा के संग बह रहे थे। कभी वो झुण्ड चन्द्रमा के सामने आ जाता तो, चमकता समन्दर, गुम-सा हो गया लगने लगता। जब वो टुकड़ा चन्द्रमा के आगे से हट जाता तो समन्दर फिर दूर-दूर तक चमकता नजर आने लगता।

चन्द्रमा की रोशनी में कुदरत का नियम भी लागू हो रहा था। दिन में सूर्य की रोशनी में समन्दर हमेशा शांत, जैसे नींद ले रहा हो, वैसा रहता है। परन्तु चन्द्रमा की रोशनी में, समन्दर में उफान आ जाता है और लहरों के साथ उछलता है। पूर्ण चन्द्रमा में तो लहरें पूरे जोश पर होती हैं और फिर जब चन्द्रमा के जाने का वक्त आता है तो लहरों का उछलना बंद होना शुरू हो जाता है। सदियों से प्रकृति का यही नियम रहा है समन्दर और चन्द्रमा के बीच।

रात का एक बज रहा था।

उस छोटी-सी कश्ती को देवराज चौहान और जगमोहन पतवार के सहारे आगे बढ़ा रहे थे। बीच में बैठा सोहनलाल गोली वाली सिगरेट के कश ले रहा था।

वो छोटी-सी कश्ती उन्होंने दूर घाट पर से उठाई थी। बड़े से पत्थर के साथ उसे बांध रखा था। किसी मछुआरे की थी वो। क्योंकि वैसी ही और कई कश्तियां वहां पर थीं। वहां से बन्दरगाह का इलाका दूर पड़ता था। परन्तु वहां तक पहुंचने का दूसरा कोई सुरक्षित रास्ता भी नहीं था।

कश्ती पर अस्सी फीट लम्बा रस्सा पड़ा था। रस्से में हर डेढ़ फीट पर मजबूत गांठ लगा रखी थी कि उसे पकड़ते, उस पर पांव रखे, आसानी से ऊपर चढ़ा जाये। तीनों के कपड़ों में साईलेंसर लगे रिवॉल्वर फंसे थे। सोहनलाल ने अपने औजारों की बेल्ट को कमर से बांध रखा था। साथ ही छोटा-सा बैग था, जिसमें वॉल्ट जैसी चीजों के ताले खोलने का सामान था।

करीब पैंतालीस मिनट कश्ती आगे बढ़ाने के बाद उन्हें बन्दरगाह के इलाके में लंगर डाले जहाजों के साये चन्द्रमा की रोशनी में नजर आने लगे।

“हमने उस तरफ जाना है। नीलगिरी वहां है।” देवराज चौहान बोला।

“वो ही तीन सौ दो नम्बर?” जगमोहन ने पूछा।

“हां।” देवराज चौहान के चेहरे पर दिन वाला ही मेकअप था। वही खिचड़ी जैसी दाढ़ी और वही सफेद-काले बाल। भौंहें भी सफेद काले बालों में डूबी थीं। इस वक्त आंखों पर प्लेन शीशे वाला सादा चश्मा नहीं था।

“सिगरेट फेंक दे।” जगमोहन बोला।

सोहनलाल ने फौरन सिगरेट को समन्दर में फेंक दिया। धीरे-धीरे कश्ती जहाजों की तरफ बढ़ती जा रही थी। सिगरेट की चमक, अगर जहाजों पर कोई था तो उन्हें सावधान कर सकती थी। क्योंकि वो बन्दरगाह का इलाका था और बाहरी लोगों का उस तरफ आना मना था। जहाजों की रखवाली के लिये बन्दरगाह की गश्ती पुलिस भी यदा-कदा बोट में इधर-उधर फेरा लगा लेती थी।

अब वो जहाजों के काफी करीब पहुंच गये थे।

“जहाज नम्बर तीन सौ दो कहां है?” सोहनलाल ने पूछा।

“ज्यादा दूर नहीं रहा। पतवार चलाते देवराज चौहान बोला –“दाईं तरफ जो जहाज लंगर डाले खड़ा है उसी दिशा में करीब आधा किलोमीटर आगे 302 लंगर डाले खड़ा है।”

“जहाज कैसा है?” जगमोहन ने पूछा।

“छः मंजिला जहाज है। भीतर से बहुत ही शानदार।” देवराज चौहान ने कहा –“तीन डेक हैं। एक ग्राऊंड फ्लोर पर, दूसरा तीसरी मंजिल पर और तीसरा सबसे ऊपर छठी मंजिल पर। जहां से समन्दर का दूर-दूर तक का नजारा स्पष्ट नजर आता है। तीन दिन बाद हम भी इस जहाज पर, सिंगापुर के लिये रवाना होंगे। तब देखना ये जहाज भीतर से कैसा है?”

कश्ती धीमी गति से आगे बढ़ती रही।

“हम तीनों के पास नकली नामों से कई-कई पासपोर्ट हैं। ऐसे में जहाज पर यात्रा करने में हमें कोई भी परेशानी नहीं आयेगी। सिर्फ पासपोर्ट पर लगी तस्वीर जैसा मेकअप करना होगा।” सोहनलाल बोला।

अगले आधे घण्टे में उनकी कश्ती जहाज नम्बर 302 के पास पहुंच चुकी थी।

“यह जहाज का पीछे वाला हिस्सा है।” देवराज चौहान बोला –“अगर जहाज पर कोई होगा भी तो कम से कम इस तरफ नहीं होगा। इसी तरह से जहाज पर कांटा फेंकना ठीक रहेगा।”

“कांटा फेंकने का शोर भी हो सकता है।” सोहनलाल बोला।

“इतने बड़े जहाज में, कांटा फेंकने के शोर को सुन पाना इतना आसान नहीं। अगर कोई जहाज के पीछे वाले हिस्से पर हुआ तो जुदा बात है।”

चन्द्रमा दूसरी तरफ था। ऐसे में उनकी कश्ती जहाज की छाया में पूरी तरह अंधेरे का हिस्सा बनी हुई थीं। अंधेरे में वे एक-दूसरे का चेहरा भी ठीक तरह से नहीं देख पा रहे थे।

जहाज की बाहरी दीवार, समन्दर के पानी से सत्तर फीट ऊंची थी। जगमोहन ने रस्से का किनारा पकड़ रखा था। रस्से के दूसरे किनारे पर मजबूती से कांटा बांध रखा था। दो फीट की लोहे की मजबूत रॉड की चारों दिशाओं में, चार, एक-एक फीट लम्बी हुक जा रही थी, जिसके सिरे कुछ इस तरह मुड़े हुए थे कि वो जहां भी फंस जायें तो फिर उनका छूट पाना कठिन था।

रस्से का हुक वाला हिस्सा, देवराज चौहान के हाथ में था।

तभी बादलों का बड़ा-सा टुकड़ा चन्द्रमा के आगे आ गया तो, चन्द्रमा की रोशनी में चमकता समन्दर स्याह सा लगने लगा। जहाज दैत्य जैसा लगने लगा था।

देवराज चौहान ने हुक के पास से रस्सा जोरों से घुमाया और पूरी ताकत के साथ ऊपर की तरफ उछाला। दो पल के लिये वहां सन्नाटा छाया रहा। फिर कांटे के, जहाज से टकराने और कुछ पलों के बाद उसके पानी में गिरने की आवाज आई।

“नहीं फंसा।” सोहनलाल की आवाज उनके कानों में पड़ी।

करीब पांचवीं बार जाकर, वो कांटा, जहाज में ऊपर कहीं फंसा।

रस्सा पकड़े जगमोहन ने उसे खींचा। हुक अपनी जगह ही कहीं अटका रहा। उसके बाद जगमोहन रस्से पर लटका । हुक नहीं छूटा।

“ठीक है।” जगमोहन ने कहा –“हुक फिट है। छूटने वाला नहीं।”

देवराज चौहान ने रस्सा थामा।

“मैं ऊपर जा रहा हूं। जब मैं जहाज पर पहुंचकर रस्सा जोरों से हिलाऊं फिर तुम लोग बारी-बारी ऊपर आ जाना। साइलेंसर लगी अपनी रिवॉल्वरें चेक कर लेना।”

“ब्रूटा के प्राईवेट हिस्से की वजह से जहाज पर पहरा अवश्य होगा।” सोहनलाल ने कहा।

देवराज चौहान ने रस्सा थामा और ऊपर चढ़ने लगा। रस्से के हर डेढ़ फीट पर लगी गांठ की वजह से, रस्सा थामने और चढ़ने में कोई परेशानी नहीं हो रही थी।

करीब पांच मिनट बाद ऊपर से रस्से को तीव्र झटका दिया गया।

जगमोहन समझ गया कि ये देवराज चौहान की तरफ से सिग्नल है कि वे लोग ऊपर आ जायें।

“मैं जहाज पर जा रहा हूं, सोहनलाल।” जगमोहन बोला –“पांच मिनट बाद तुम भी ऊपर चढ़ना शुरू कर देना। ये कश्ती समन्दर में कहीं की कहीं खिसक जायेगी। रस्से का किनारा कश्ती के हिस्से से बांध देना।” कहने के साथ ही जगमोहन ने रस्सा पकड़ा और फुर्ती के साथ ऊपर चढ़ने लगा।

सोहनलाल ने रस्से का किनारा पकड़ा और कश्ती के कुण्डे से बांधने लगा।

☐☐☐

कांटा जहाज की ऊपरी दीवार के किनारे में फंसा था।

देवराज चौहान ऊपर पहुंचा और रस्सा छोड़कर दोनों हाथों से किनारा पकड़ा फिर एक ही छलांग में जहाज के भीतरी हिस्से में कूद गया। बादल का टुकड़ा चन्द्रमा के आगे से हट चुका था और रोशनी में सब स्पष्ट नजर आ रहा था। यह जहाज के ग्राउंड फ्लोर कर हिस्सा था।

देवराज चौहान सतर्कताभरी निगाहें हर तरफ दौड़ाता रहा। लेकिन ऐसा कुछ भी नजर नहीं आया कि खतरे का एहसास होता। हर तरफ खामोशी और खालीपन था।

जगमोहन ऊपर आ पहुंचा।

“सब ठीक है।” जगमोहन ने पूछा।

“हां। अभी तक तो कोई खतरा नहीं आया।” देवराज चौहान ने सपाट स्वर में कहा।

“तुम्हारा क्या ख्याल है जहाज पर पहरा होगा?”

“होना तो हर हाल में चाहिये।” देवराज चौहान सतर्क स्वर में बोला।

“ठीक कहते हो। इतने बड़े जहाज को रात में अकेला नहीं छोड़ा जा सकता।” जगमोहन कह उठा।

सोहनलाल भी आया।

“यहां तो कोई भी नजर नहीं आ रहा।” वो बोला –“लगता है पहरेदार खा-पीकर मस्त हो रहे होंगे।”

“मैं आगे जाता हूं। तुम लोग फासला रखकर पीछे से मुझे कवर करोगे। जहाज में तीन-चार जगह से, ऊपर जाने के लिये सीढ़ियां हैं। इसी रास्ते पर कुछ आगे जाकर सीढ़ी है। वहां से हम पहली और फिर दूसरी मंजिल पर पहुंचेंगे। रास्ते में कोई मिले और वो हम पर हमला करना चाहे तो, उसे फौरन शूट कर देना जहां सोचने में वक्त गंवाया, उसी वक्त सामने वाला हमें शूट कर देगा।”

देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा और रिवॉल्वर निकालकर, उस पर लगा, साईलेंसर ठीक किया और आगे बढ़ गया।

चूँकि दिन में आकर वो जहाज का हर रास्ता देख गया था। इसलिये अंधेरे में भी उसे आगे बढ़ने में किसी तरह की परेशानी नहीं हो रही थी।

देवराज चौहान ने कुछ कदम पीछे आने वाले जगमोहन और सोहनलाल का सतर्क थे।

वे लोग पहली मंजिल पर पहुंच गये।

सब ठीक रहा।

हर तरफ चुप्पी-खामोशी थी।

कहीं पर से भी कोई आहट उठने का आभास-एहसास नहीं मिल रहा था उन्हें।

वे लोग दूसरी मंजिल पर पहुंच गये।

किसी से भी सामना नहीं हुआ।

जो कि उनके लिए हैरत की बात थी।

दूसरी मंजिल पर स्थित ब्रूटा का प्राईवेट हिस्सा, सामने की तरफ था। उस रास्ते पर तीनों ने एक-दूसरे को देखा।

“यहां तो कोई भी नजर नहीं आ रहा।” सोहनलाल के होंठों से धीमा स्वर निकला।

“कोई भी नजर नहीं आ रहा। ये ही सबसे ज्यादा खतरे की बात है।” देवराज चौहान होंठ भींचे हर तरफ निगाह घुमा रहा था –“कोई नजर आता तो हालातों को समझा जा सकता था। परन्तु इस वक्त जहाज के हालात हमें स्पष्ट दिखाई नहीं दे रहे थे। जिन्हें कि अब तक दिखाई दे जाना चाहिये था।”

“हो सकता है, जहाज पर किसी तरह का कोई पहरा ही न हो।” जगमोहन बोला।

“पहरा है।” देवराज चौहान की आवाज में यकीनी भाव थे। उसने रिवॉल्वर की नाल चेहरे पर लगा रखी नकली दाढ़ी पर लगाई। उसकी आंखों में फैसले के भाव आ गये थे।

देवराज चौहान आगे बढ़ा।

जगमोहन, सोहनलाल पीछे दोनों के हाथों में साईलेंसर लगी रिवाल्वरें थीं।

राहदारी में लगा बल्ब पार किया तो आगे मोड़ से मुड़ गये। वो गैलरी थी। जिसके दोनों तरफ यात्रियों के लिये केबिन बने थे।

उस रास्ते को पार करने के बाद वो पुनः मोड़ पर मुड़ गये उनके लिये वास्तव में हैरानी की बात थी कि उधर कोई पहरा नहीं था।

पांचवें मिनट देवराज चौहान एक बंद दरवाजे के सामने ठिठका। जो कि स्टील का ठोस दरवाजा था। और उसमें ऑटोमैटिक लॉक लगा था।

जगमोहन और सोहनलाल भी ठिठके।

देवराज चौहान ने सोहनलाल को देखा।

“इस दरवाजे के पार से या फिर यहीं से कह लो, ब्रूटा का प्राईवेट हिस्सा शुरू होता है। दिन में भी मुझे बस, ये दरवाजा दिखाया गया और इसके पार दिखाने को इंकार कर दिया।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा –“खोलो इस दरवाजे को।”

सोहनलाल ने हाथ में दबी रिवॉल्वर वापस कपड़ों में डाली और झुककर, कुछ पलों तक ‘की-होल’ में देखता रहा। जगमोहन की सतर्क निगाह हर तरफ घूम रही थी।

सोहनलाल सीधा खड़े होते हुए बोला।

“सुरक्षा को ध्यान में रखकर दरवाजे पर उम्दा किस्म का डबल आटोमैटिक लॉक है। इसे खोल पाना हर किसी के बस का नहीं है। इस लॉक की चाबियां खो जायें तो, दरवाजा ही तोड़ना ही पड़ेगा।

“तू अपना बोल। खोल सकता है कि नहीं।” जगमोहन ने तीखे स्वर में कहा।

“खोल दूंगा।” सोहनलाल ने गोली वाली सिगरेट निकलाकर सुलगाई और कमीज उठाकर, कमर पर बांधी बेल्ट में फंसे कुछ औजारों को निकाला और फिर गले में लटका रखे छोटे से बैग को उतार कर नीचे रखा और खुद भी घुटनों के बल नीचे बैठते हुए बैग की ‘जिप’ खोली और वहां से भी कुछ औजार निकालकर, दरवाजे का लॉक खोलने में व्यस्त हो गया।

साईलेंसर लगी रिवाल्वरें थामे देवराज चौहन और जगमोहन की निगाहें पहरेदारी के रूप में हर तरफ घूम रही थीं। वह जानते ये कि खतरा कभी भी किसी भी रूप में किसी भी तरफ से उनके सामने आ सकता है। अभी तक कोई खतरा सामने नहीं आया था और उनकी सोचों के मुताबिक यह बात भी खतरे वाली थी। आखिर कुछ तो नजर आना चाहिये था।

“क्या ख्याल है।” जगमोहन बोला –“हो सकता है जहाज पर कोई खास पहरेदारी हो ही नहीं। कहीं एक-आध चौकीदार हो और वह भी नींद में डूबा हो।”

“ऐसा भी हो सकता है।” देवराज चौहान ने सपाट स्वर में कहा –“लेकिन ऐसी बात होगी। मैं यकीन नहीं कर सकता।”

“क्यों?”

“जहाज पर दूसरी मंजिल के इस हिस्से को ब्रूटा ने खास अहमियत दे रखी है। इसे प्राईवेट घोषित कर रखा है। ब्रूटा की इजाजत के बिना कोई इस दरवाजे के भीतर नहीं जा सकता तो ऐसे में कम से कम एक चौकीदार जिसने डण्डा पकड़ रखा हो, यहां अवश्य होना चाहिये। जोकि वो कहीं भी नजर नहीं आ रहा।”

जगमोहन ने कुछ नहीं कहा।

सोहनलाल अपने काम में लगा रहा।

पांच मिनट बीत गये।

“और कितनी देर लगायेगा?” जगमोहन ने इसे देख।

“घड़ी देखता रहा। पता लग जायेगा।” सोहनलाल अपने काम में व्यस्त बोला।

आठवें मिनट सोहनलाल ने उस ऑटोमैटिक डबल लॉक को खोला।

“अब तू बूढ़ा हो रहा है। जो मामूली-सा ताला खोलने में इतनी देर लगा दी।” जगमोहन ने व्यंग्य से कहा।

“ये ताला खोलना बहुत कठिन था। बच्चा है तू। नहीं समझेगा।” सोहनलाल ने औजार समेटते हुए कहा।

देवराज चौहान ने दरवाजे के हैंडल को दबाकर दरवाजा खोला और हाथ में रिवॉल्वर थामे भीतर प्रवेश कर गया। होंठ भिंचे हुए थे। आंखों में सतर्कता थी।

छः फीट चौड़ी गैलरी के दोनों तरफ सफेद रंग की खूबसूरत दीवार थी। दस फीट ऊंची छत थी और फर्श की जगह पर ब्राऊन कलर का कीमती कालीन बिछा हुआ था। वो गैलरी दस-बारह फीट से ज्यादा तरह लम्बी नहीं थी। गैलरी समाप्त होने पर सामने दीवार और बायीं तरफ रास्ता मुड़ रहा था।

देवराज चौहान कई पलों तक वहीं खड़ा रहा।

“चले।” जगमोहन पास आ खड़ा हुआ।

“तुम इसी दरवाजे के बाहर, रिवॉल्वर लेकर खड़े रहोगे।” देवराज चौहान ने कहा।

“वो क्यों?”

“पीछे से आकर कोई भी अचानक हमें घेर सकता है। अगर किसी तरह इस दरवाजे को बाहर से किसी ने बंद कर दिया तो हम चूहेदान की तरह, भीतर बंद हो जायेंगे। सोहनलाल मेरे साथ जायेगा। हो सकता है भीतर किसी ताले को खोलने की जरूरत पड़ जाये।”

देवराज चौहान के होंठों में कसाव आ गया था।

जगमोहन ने सहमति में सिर हलाया और दो कदम उठाकर भीतर प्रवेश कर गया।

सोहनलाल, देवराज चौहान के पास आ पहुंचा था।

“आओ।” कहने के साथ ही देवराज चौहान एक कदम ही आगे बढ़ा होगा कि ठिठक गया। उसकी आंखें सिकुड़ गईं। होंठ भिंच गये। निगाहें एक टक दस फीट आगे नजर आ रही, दीवार पर जा टिकी थी।

दीवार में करीब आठ फीट ऊपर, दीवार में ही फिट किया हुआ लेंस नजर आ रहा था। देवराज चौहान फौरन समझ गया कि वो वीडियो कैमरे का लेंस है।

“क्या हुआ?” उसे रुकते पाकर सोहनलाल ने पूछा।

देवराज चौहान फौरन घूमा और उस दरवाजे के ऊपर देखा, जिसका लॉक खोलकर वो भीतर आये थे। उस दरवाजे के ऊपर दीवार में फिट किया लेंस नजर आ रहा था।

“यहां वीडियो कैमरे फिट है।” देवराज चौहान ने सपाट स्वर में कहा।

“हां। वो देखो। एक सामने, लेंस नजर आ रहा है। दूसरा इस दरवाजे के ऊपर है। यानि कि यहां से आने-जाने वालों को इन कैमरों के जरिये देखा जाता है। मतलब कि ब्रूटा के प्राईवेट हिस्से पर कहीं कंट्रोल रूम है। जहां से इन सारे कैमरों को कंट्रोल करने का मास्टर स्विच है। जहां टी.वी. स्क्रीनें भी होंगी, जिनसे हर तरफ की हरकतों को देखा जा सकता है। इन कैमरों के आपस में कनेक्शन दीवारों के बीच में से गुजरती तारों से हैं।”

“ओह –।” इसका मतलब भीतर कोई है और वो लोग हमें टी.वी. स्क्रीनों पर देख रहे होंगे। कहते हुए सोहनलाल के होंठ भिंच गये –“तो ये है यहां पर नजर रखने का इन्तजाम।”

दरवाजे पर खड़ा जगमोहन बाहर की तरफ नजर रखे खामोशी से बातें सुन रहा था।

“कोई जरूरी नहीं कि वो नजर रख रहे हो।” देवराज चौहान ने कहा –“जहाज खाली है। रुका हुआ है। ऐसे में पूरा चांस है कि इस वक्त कैमरे बंद हो और शायद भीतर भी कोई न हो।”

सोहनलाल कुछ न कह सका।

उसे साथ आने का इशारा करते हुए देवराज चौहान आगे बढ़ा। गैलरी समाप्त होते ही बाई तरफ मुड़ गये। मुड़ते ही नीचे उतरने के लिये चार सीढ़ियां थीं। जिसके पार बहुत बड़ा हाल दिखाई दे रहा था। वे हाथ में रिवॉल्वरें थामे सावधानी से हाल में पहुंचे।

उस हाल को बेशकीमती चीजों से सजाया हुआ था। लगता था ब्रूटा ने दिल खोलकर पैसा लगाकर अपने प्राईवेट हिस्से को तैयार करवाया था। फर्श वाली जगह पर सफेद रंग का बेहद कीमती कालीन, जिस पर कई तरह की कारीगिरी की गई थी। वहां पड़े बड़े-बड़े सोफे विदेशी थे। एक तरफ मौजूट डायनिंग टेबल भी विदेशी और करीब बीस आदमियों के बैठने का वहां इन्तजाम था। दीवारों पर पेंटिंग्स थी, जिनकी कीमत का अन्दाजा लगाना आसान नहीं था। दीवारों पर विदेशी वॉल पेपर लगा था। और भी कई तरह का सामान वहां पड़ा था। जो देखते ही बनता था।

“पूरी एय्याशगाह बना रखी है ब्रूटा ने।” सोहनलाल कह उठा –“लगता है साले ने मौज-मस्ती के लिये अपने लिये यह जगह बना रखी है।”

“मौज-मस्ती के लिये, जगह-जगह वीडियो कैमरे नहीं लगाये जाते। हर जगह इस तरह नजर नहीं रखी जाती। सिर्फ दरवाजा बंद कर लेना और बाहर एक आदमी खड़ा कर देना ही बहुत होता है।”

सोहनलाल ने देवराज चौहान को देखा।

“यहां चार वीडियो कैमरे लगे हैं। एक तो वो देखो। ठीक सीनरी के बीच। जिसे आसानी से नहीं पहचाना जा सकता कि वहां कैमरे का लेंस हैं। दूसरा वो देखो। दीवार पर घड़ी लगी है। देखने वाला वहां नजर मारेगा, वक्त देखने के लिये। घड़ी के बड़े डायल पर डिजाईन है। ऐसा डिजाईन कि उसके बीच फिट कैमरे का लेंस नहीं पहचाना जा सकता। तीसरे कैमरे का लेंस उधर जो शो-पीस पड़े है। उनमें इस तरह रखा है कि देखने वाला, यह सोचेगा कि कोई शो-पीस है। चौथा लेंस उस घोड़े की आंख में है, जिसकी बड़ी सीनरी दीवार पर फिट है। और उसकी बड़ी-बड़ी शीशे की आंखें बना रखी हैं। जिनमें कि हकीकतन एक लेंस है।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा।

“अजीब बात है कि यहां इतने कैमरों के लेंस क्यों लगाये गये?” सोहनलाल कह उठा।

“स्पष्ट है कि यहां ब्रूटा खास-खास लोगों से मिलता होगा। मीटिंग होती होगी। कई तरह की बातचीत होती होगी। उन लोगों पर निगाह रखने के लिये यहां वीडियो कैमरे के लेंस लगाये गये हैं। लेकिन पीछे से दीवार के भीतर से तारें जा रही हैं और कहीं, जहां कंट्रोल रूम है, वहां कैमरा होगा, जो जब चल होगा तो ये सारे लेंस काम करना, तस्वीरें लेना शुरू कर देते होंगे।”

“इससे तो यही मतलब निकलता है कि ब्रूटा कोई गलत काम करता है कि –।”

“हां। इस सारे इन्तजाम से तो ये जाहिर है।” कहने के साथ ही देवराज चौहान ने ड्राईंगहाल पार किया और सामने नजर आ रहे दरवाजे को धकेला।

वो खुला ही था।

देवराज चौहान भीतर प्रवेश कर गया।

शानदार बेडरूम था।

फर्श की जगह पर नीले रंग का गद्देदार कालीन था, कि पांव रखते ऐसा महसूस होता था कि वो नीचे धंसे जा रहे हों। कमरे के बीचोंबीच आठ फीट की गोलाई लिए हुए, इतना बड़ा बेड था कि चार व्यक्ति एक साथ उस पर लेट सके। दीवारों पर कई तरह की पेंटिंग्स थीं। सजावट का हर तरह का सामान वहां था। वहां की हर चीज से दौलत की महक आ रही थीं।

सोहनलाल भी वहां आ पहुंचा।

“जहाज का यह हिस्सा इतना शानदार होगा, मैंने तो सोचा भी नहीं था।” सोहनलाल वोला।

देवराज चौहान ने उसे देखा। बोला कुछ नहीं।

पांच मिनट तक देवराज चौहान की निगाहें बेडरूम में फिरती रही।

“यह ब्रूटा का व्यक्तिगत बेडरूम है।” देवराज चौहान ने कहा।

“पक्के तौर पर कैसे कह सकते हो।” सोहनलाल बोला।

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई।

“क्योंकि इस बेडरूम में वीडियो कैमरे का कनेक्शन नहीं है। कहीं भी तस्वीर लेने वाला लेंस नहीं है।”

“ओह!” सोहनलाल ने समझने वाले ढंग में सिर हिलाया।

उसके बाद उन्होंने वहां के बाकी हिस्से की तलाशी ली।

वहां छोटे-छोटे किन्तु खूबसूरत केबिन बने हुए थे, जिनकी संख्या दस थी। एक खेल की जगह बना रखी थी, वहां टेबल टेनिस, बैडमिंटन के अलावा और भी कई खेलों का इन्तजाम था। और उन्हें वे कंट्रोल रूप भी नजर आया, जहां से पहरेदारी के लिये वीडियों कैमरा कंट्रोल किया जा सकता था।

वो सामान्य कमरा था। दीवारों के साथ-साथ छोटे-छोटे रैक थे जहां तरतीब से कैसेट लगा रखी थी। एक तरफ खूबसूरत टेबल था। जहां कई बटनों, कई उपकरणों के साथ चालू हालत में वीडियो कैमरा मौजूद था। वो नई टेक्निक का कम्प्यूटराईज ऑटोमैटिक वीडियो कैमरा था। जैसे कि इस वक्त वहां सामने लगी तीनों स्क्रीनों को देखने के लिये कोई मौजूद नहीं था, परन्तु स्क्रीनों पर, वो गैलरी, जहां से प्रवेश किया था। वो ड्राईग हाल और खेल वाला हिस्सा नजर आ रहा था। और जो नजर आ रहा था उसकी रिकॉर्डिंग वीडियो कैमरे में मौजूद, कैसेट में हुई जा रही थी। और ठीक आधे घण्टे के बाद, कम्प्यूटराईज सिस्टम की मेहरबानी से कैमरे में पड़ी कैसेट खुद-ब-खुद बाहर निकलकर, सामने पड़ी ट्रे में आ जाती और कम्प्यूटर की मूवमेंट की वजह छः इंच दूर पड़ी कैसेट को, चिमटे जैसी चीज पकड़ती और उसे कैमरे में फिट कर देती। ऐसा होते ही कैमरा पुनः चालू हो जाता। स्क्रीनों पर दग्ध दिखने लगते और कैसेट रिकॉर्डिंग होने लगती।

जैसे कि इस वक्त चहां कोई नहीं था तो बाद में, रिकार्डिंग हुई कैसेटों को देखा जा सकता था कि, उनकी गैर मौजूदगी में पीछे कौन आया। कौन गया। क्या हरकत हुई।

देवराज चौहान वो सब सामान देखते ही समझ गया कि निगरानी का क्या सिस्टम है।

“ये इतना बड़ा तामझाम क्या फैला रखा है।” सोहनलाल बोला।

“ब्रूटा ने इस प्राईवेट हिस्से की निगरानी का बहुत तगड़ा इन्तजाम कर रखा है।” देवराज चौहान होंठ सिकोड़े सोचभरे स्वर में कह उठा –“इस इन्तजाम के बाद, निगाहों से बचकर कोई ब्रूटा के प्राईवेट हिस्से में कदम नहीं रख सकता।” कहने के साथ ही देवराज चौहान ने बताया कि वीडियो कैमरा कैसे मूवमेंट कर रहा है।

“ओह!” ऐसा प्रबन्ध तो पुलिस हेडक्वार्टर में भी नहीं होता।

देवराज चौहान ने कश लिया और गम्भीर स्वर में कह उठा।

“सोहनलाल, इसमें कोई शक नहीं कि ब्रूटा यहां कोई गलत काम करता है।”

“कैसा गलत काम?”

“कह नहीं सकता।” देवराज चौहान की निगाह स्क्रीनों पर जा रही थी –“लेकिन इस बात का पक्का विश्वास है कि महादेव जान गया था कि वो गलत काम क्या है। यही कारण, उसकी मौत की वजह बना।”

“लेकिन हमने तो यह जगह पूरी तरह छान मारी है।” सोहनलाल ने देवराज चौहान को देखा –“हमें तो ऐसा कुछ भी नजर नहीं आया कि, जो तुम्हारी बात के पक्केपन की तरफ इशारा करता हो।”

“सबसे पहला सबूत तो यहां की निगरानी का सिस्टम है। कोई भीतर आये तो फौरन खबर हो जाये, इसका इतना पुख्ता इन्तजाम तभी किया जाता है, जबकि भीतर कोई खास बात हो रही हो।”

सोहनलाल, देवराज चौहान को देखता रहा।

“जहाज के आधे फ्लोर को प्राईवेट घोषित करना ही गलत है। बिजनेसमैन, बिजनेस करता है, आय को बढ़ाने के लिये। यहां भी अगर यात्रियों के लिये केबिन हो तो आय में बढ़ोतरी होती। लेकिन ब्रूटा को इस बात की जरा भी परवाह नहीं। कि यहां केबिन न होने की वजह से काफी बड़ा नुकसान हो –।”

“वो पैसा वाला आदमी है। मौज-मस्ती के लिये...।”

“मौज-मस्ती के लिये, निगरानी के इतने पुख्ता सिस्टम का इन्तजाम नहीं किया जाता और इस सिस्टम को संभालने के लिये यहां कम से कम दो आदमी अवश्य बैठते होंगे। दिन में मुझे पता चला कि जहाज की रवानगी के वक्त हथियारबंद पहरेदार भी मौजूद होते हैं। यानि कि यहां कोई बात होती है, जो सिरे से ही गलत है।”

सोहनलाल ने समझने वाले भाव में सिर हिलाया।

“ट्रे में रखी आठ-दस कैसेट उठा लो।”

“क्यों?”

“यूं ही। यह देखने के लिये कि यहां कौन-कौन आता है। उनके चेहरे कैसेटों में होंगे।”

सोहनलाल ने ट्रे में रखी कैसेट उठाई और गले में लटक रहे, बैग में डाल ली।

“इसका मतलब, हमने भीतर प्रवेश किया तो कैसेट में हमारे चेहरे भी आ गये होंगे।” सोहनलाल बोला।

“हां।”

“तो वो कैसेट कौन-सी होगी। हम –।”

“रहने दो। वो लोग हमारे चेहरे देख भी लेंगे तो हमें कोई फर्क नहीं पड़ता।” देवराज चौहान ने सोचभरे स्वर में कहा –“हम यहां की होने वाली गड़बड़ को देखने-पकड़ने आये थे। लेकिन सफल नहीं हो सके। इसकी यह वजह भी हो सकती है कि, यहां जो भी होता हो, वो तब होता हो, जहाज अपनी यात्रा के लिये रवाना होता हो और ब्रूटा भी जहाज में होता हो।”

सोहनलाल, देवराज चौहान को देखने लगा।

“तीन दिन बाद यात्रियों को लेकर यह जहाज सिंगापुर के लिये रवाना होगा। आज दिन में मालूम पड़ा कि तब जहाज में ब्रूटा भी होगा।” होंठ भींचे देवराज चौहान बोला –“हम भी होंगे। तब देखेंगे कि जहाज के इस हिस्से में ब्रूटा क्या करता है।”

“लेकिन हम कैसे देख सकते हैं। तुमने देखा ही है कि सुरक्षा का इतना तगड़ा इन्तजाम है कि हम इस तरफ आ भी नहीं सकेंगे, जब जहाज चलेगा।” सोहनलाल ने कहा।

“हमें इधर आना ही पड़ेगा। इसके लिये कोई रास्ता निकालना होगा। सोचने के लिये हमारे पास तीन दिन वक्त है। इतने वक्त में रास्ते निकल ही आते हैं आओ। अब यहां से चलें।”

☐☐☐

मलानी।

नरेश मलानी। ब्रूटा का सबसे खास आदमी। छत्तीस साल की उम्र। पिछले पन्द्रह सालों से ब्रूटा के साथ था। लम्बा कद। फुर्तीला जिस्म। सिर के बाल सामान्य ढंग से कटे हुए। होंठों पर छोटी-छोटी मूंछे। बदन पर अक्सर सूट पहने रहता था। लम्बा नाक। बड़ी-बड़ी आंखें। चेहरे से निहायत ही शरीफ परन्तु भीतर से बेहद खतरनाक लगने वाला, नरेश मलानी।

ब्रूटा जैसे अरबपति व्यक्ति के जाने कितने काम थे। किस काम में कब क्या करना है, मलानी को मुंह-जबानी याद रहता। कोई भी काम भूलता नहीं था। ब्रूटा उसकी समझदारी का हमेशा कायल रहा था। पिछले पन्द्रह सालों में एक बार भी ब्रूटा को उसके काम पर नाराज होने का मौका नहीं मिला था और मलानी का हुक्म, लगभग ब्रूटा का ही हुक्म माना जाता था।

वही मलानी सुबह ठीक आठ बजे नीलगिरी, यानि कि जहाज नम्बर तीन सौ दो पर था। जब से जहाज ने सिंगापुर से आकर लंगर डाला था। तब से एक बार भी जहाज पर नजर मारने नहीं आया था। जबकि ब्रूटा से वास्ता रखती हर चीज का रखवाला था।

जहाज पर उस वक्त सिर्फ दो कर्मचारी थे। जो रात की चौकीदारी भी करते थे और रात को खूब तगड़ी नींद लेकर सुबह सात बजे उठे थे।

मलानी वहां दो आदमियों के साथ स्टीमर में पहुंचा था। जहाज पर मौजूद व्यक्तियों ने सीढ़ी नीचे लटकाई तो मलानी अपने दोनों आदमियों के साथ जहाज पर आ गया।

दोनों ने मलानी को सलाम किया।

“राजपाल नहीं आया?” मलानी ने शांत स्वर में पूछा।

“नहीं साहब जी। राजपाल जी, नौ बजे सफाई कर्मचारियों को लेकर यहां आते हैं।” एक ने कहा।

मलानी अपने दोनों आदमियों के साथ जहाज की दूसरी मंजिल पर पहुंचा तो ठिठक कर रह गया। आंखों में हैरानी के समन्दर उभरा। ब्रूटा के प्राईवेट हिस्से में जाने वाला पहला दरवाजा खुला हुआ था। जबकि वो अच्छी तरह जानता था कि दरवाजे पर ऑटोमैटिक, डबल लॉक है। बिना चाबी के खुलने वाला नहीं।”

“यह क्या?” उसके साथ के एक आदमी के होंठों से निकला।

“मलानी ने दरवाजे के ताले को चेक किया। वो ठीक-ठाक था। ऐसा लगता था कि जैसे चाबी लगा कर खोला गया हो। लेकिन उस लॉक की दो चाबियां थीं। एक उसके पास दूसरा ब्रूटा साहब के पास। वो यहां आया नहीं और ब्रूटा साहब आये होते तो उसे खबर अवश्य की जाती। न भी खबर मिलती तो ब्रूटा साहब दरवाजे को इस तरह खुला छोड़कर नही जाते। जाहिर है कि यह काम किसी बाहरी बन्दे का हैं।”

“उन दोनों कर्मचारियों को बुलाओ।” मलानी शांत स्वर में बोला।

दो में से एक वहां से चला गया।

“मलानीसाहब, यह दरवाजा कैसे खुला है।” दूसरा बोला –“इधर तो –।”

“देखते रहो। मैं भी तुम्हारी तरह अंजान हूं।” मलानी ने कहा लेकिन भीतर जाने की चेष्टा नहीं की।

वो गया आदमी, दोनों कर्मचारियों को ले आया।

“ये दरवाजा किसने खोला?” मलानी ने उनसे पूछा।

उन्होंने दरवाजे को देखा। फिर एक-दूसरे को।

“हमें क्या मालूम साहब । हम तो इस तरफ आये भी नहीं। इधर आने की हमें मनाही है।” एक ने कहा।

“जहाज पर कोई बाहरी आदमी आया?”

“कल कोई साहब आये थे। राजपाल साहब ने पूरा जहाज दिखाया । राजपाल जी बता रहे थे कि वो बहुत बड़े लेखक है । जहाज पर कोई उपन्यास लिख रहे हैं, इसलिये जहाज देखने आये है?”

मलानी के चेहरे पर सोच के भाव उभरे।

“कोई और आया?”

“नहीं। और तो कोई नहीं आया।”

“जाओ।”

वे दोनों चले गये।

“तुम।” मलानी ने अपने एक आदमी से कहा –“बाहर जाओ। राजपाल नौ बजे आता है। जब वो आये तो उसे लेकर सीधा मेरे पास आ जाओ। मैं भीतर हूं।”

“जी।”

मलानी, अपने एक आदमी के साथ भीतर प्रवेश कर गया। ड्राईंगहाल में पहुंचा।

“तुम यहीं रुको।” कहने के साथ ही मलानी, ब्रूटा के बेडरूम की तरफ बढ़ गया। जिसका दरवाजा खुला हुआ था। भीतर प्रवेश करके उसने दरवाजा बंद कर लिया था।

करीब पांच मिनट बाद वो बेडरूम से बाहर निकला। चेहरा शांत था। वहां से वह अपने आदमी के साथ कंट्रोल रूम में पहुंचा। कैमरा अपना काम कर रहा था।

“जो कैसेट ट्रे में पड़ी है। उन्हें वी.सी.आर. में लगाओ। जो भी भीतर आया होगा, उसका चेहरा वीडियो कैमरे ने कैच कर लिया होगा।” मलानी खाली कुर्सी पर बैठते हुए बोला।

मलानी का साथी फौरन उसके काम में जुट गया। ट्रे में करीब बीस कैसेट पड़ी थी। एक-एक करके उन्हें वी.सी.आर. पर चढ़ाता रहा और फॉरवर्ड करके जल्दी-जल्दी चेक करने लगा।

पच्चीस मिनट बाद वो कैसेट हाथ लगी जिसमें चेहरे नजर आये।

“इस कैसेट में ये कुछ चेहरे हैं।” वी.सी.आर. स्टॉप करते हुए बोला।

“इसे शुरू से लगाओ। मेरे ख्याल में ये इस कैसेट में रात की रिकॉर्डिंग होगी।” मलानी बोला।

उसने हिसाब लगाया और बोला।

“ये कैसेट कल शाम के बाद की रिकार्डिंग की है। मतलब कि जो भी भीतर आया वो शाम से लेकर हमारे आने तक के बाद किसी भी वक्त आया हो सकता है।” कहने के साथ ही उसने कैसेट ठीक तरह से लगा दी।

☐☐☐

सबसे पहले स्क्रीन पर देवराज चौहान का चेहरा नजर आया, जो दरवाजा खोलकर शुरू वाली गैलरी में प्रवेश हुआ। मलानी और उसका साथी सतर्क निगाहों से उसे देखने लगे। देवराज चौहान के चेहरे पर सफेद-काले बालों की दाढ़ी थी। सिर के बाल भी ऐसे ही थे।

“मेरे लिये ये आदमी अंजान है।” मलानी बोला –“तुमने इसे कभी देखा है विक्रम –?”

“नहीं। मैंने भी इसे पहले कभी नहीं देखा।” मलानी का साथी विक्रम कहा उठा।

दोनों की निगाहें स्क्रीन पर थीं।

फिर सोहनलाल और जगमोहन नजर आये।

“इन दोनों को भी मैंने पहले कभी नहीं देखा।” विक्रम उलझन-भरे स्वर में कह उठा।

“वो जो पतला वाला है।” मलानी ने कहा –“उसी ने दरवाजे का ऑटोमैटिक लॉक खोलने का कमाल दिखाया है। इसमें कोई शक नहीं कि उसके हाथों में कमाल है।”

“लेकिन ये लोग हैं कौन? यहां करने क्या आये हैं?”

“देखते रहो। बातें सुनते रहो।” मलानी की आंखें सिकुड़ी हुई थी।

वे दोनों, देवराज चौहान और सोहनलाल की हरकतें देखते रहे। उनकी बातें सुनते रहे।

“मलानी साहब! ये लोग, जहाज पर कोई खास चीज तलाश करने की फिराक में हैं।”

“ये लोग आपस में बातें कर रहे हैं कि ब्रूटा साहब, यहां कोई गलत काम करते हैं।” मलानी की निगाहें स्क्रीन पर नजर आ रहे देवराज चौहान और सोहनलाल के चेहरों पर थी –“इस बात के लिये कोई सबूत ढूंढ रहे हैं।”

“ये पुलिस के आदमी हो सकते हैं।”

“नहीं पुलिस के आदमी नहीं हैं।” मलानी ने विश्वासभरे स्वर में कहा।

दोनों की निगाहें बराबर स्क्रीन पर आ रहे, देवराज चौहान और सोहनलाल पर टिकी रहीं। उनकी बातें सुनते रहे। मलानी और विक्रम की आंखों में सतर्कता नजर आ रही थी।

जब देवराज चौहान और सोहनलाल इस कंट्रोल रूम में आये थे, तो उनकी उस वक्त की मौजूदगी, कैसेट में दर्ज नहीं थी।

“ये लोग जहाज में सफर करने की बात कर रहे हैं जब जहाज सिंगापुर रवाना होगा। वो दाढ़ीवाला कह रहा है कि चलते जहाज में वो इस हिस्से में आने की कोशिश करेगा –।”

“यह तो बहुत अच्छी बात है।” मलानी के चेहरे पर अजीब-सी मुस्कान उभरी।

“क्या मतलब?”

“अब हमें इनकी तलाश नहीं करनी पड़ेगी।” मलानी की आवाज में तीखी मुस्कान भर आई थी –“ये लोग जहाज पर सफर करेंगे और हम आसानी से इन्हें तलाश कर लेंगे कौन है और यहां की छानबीन करने का असली मकसद क्या है। उसके बाद इन लोगों का इन्तजाम भी हो जायेगा।”

तभी मलानी के दूसरे साथी ने भीतर प्रवेश किया।

“राजपाल आया है।” वे आते ही बोला।

“बुलाओ उसे।” मलानी की निगाहें स्क्रीन पर थीं।

वो बाहर निकला और राजपाल को लेकर भीतर आ गया।

राजपाल का चेहरा घबराहट से भरा हुआ था। वो भीतर आते ही बोला।

“साहब जी नमस्कार! मैं खुद हैरान हूं कि कौन भीतर आ गया। जबकि ताला तो मजबूत है और पक्की तरह बंद था। कल शाम को जाने से पहले मैंने खुद दरवाजा चेक किया था। और वह –।”

“स्क्रीन देखो।” मलानी की निगाह अभी भी स्क्रीन पर थी –“देखो, इनमें से किसी को पहचानते हो?”

राजपाल की नजरें टी.वी. स्क्रीन तरफ उठी।

अगले ही पल वह चिहुंक उठा।

“रोशन कुमार –।” राजपाल के होंठों से निकला।

मलानी की गर्दन घूमी और राजपाल को देखने लगा।

“कौन रोशन कुमार?”

“वो, दाढ़ी वाला । वो रोशन कुमार है। बहुत बड़ा उपन्यासकार है।” राजपाल ने हैरानी से सूखे होंठों पर जीभ फेरी।

“बहुत बड़ा उपन्यासकार है।” मलानी के होंठ सिकुड़े।

राजपाल ने अपना घबराहट से भरा चेहरा हिलाया।

“तुमने उसके उपन्यास पढ़े हैं?”

“जी हां। रामसिंह के बहुत उपन्यास पढ़ता हूं।”

“रामसिंह? अभी तो तुम रोशन कुमार कह रहे थे।”

“उसका नाम रोशन कुमार ही है। लेकिन रामसिंह के नाम से उपन्यास लिखता है।” राजपाल कह उठा।

“यह बात तुम कैसे जानते हो?” मलानी बराबर उसे देख रहा था।

“कल ही उसने बताया था, जब वो जहाज पर आया था।”

“जहाज पर –मतलब कि इस जहाज पर?”

“हां। रघुवीर सिंह लाया था। गोदाम का मुंशी। उसका कहना था कि रोशन कुमार उसका दूर का रिश्तेदार है और जहाज भीतर से देखना चाहता है। और रोशन कुमार का कहना था कि वो उपन्यासकार है और जहाज पर कहानी लिख रहे हैं, इसलिये भीतर से देखना चाहता है कि जहाज कैसा होता है?”

“और तुमने जहाज दिखाया?” मलानी ने हौले से सिर हिलाया।

“हां–हां –।” राजपाल ने हिचकिचाकर, सूखे होंठों पर जीभ फेरकर सिर हिलाया।

“साले –।” विक्रम ने दांत भींचकर फौरन रिवॉल्वर निकाली।

परन्तु मलानी के इशारे पर वह रुक गया।

“जहाज का यह हिस्सा भी दिखाया?”

“वो देखने को कह रहा था, लेकिन मैंने बोला, इधर जाना मना है।” विक्रम के हाथ में रिवॉल्वर देखकर, राजपाल घबरा गया था।

“उसके बाद वो जहाज देखकर चला गया।”

राजपाल की गर्दन हिली।

“तो तुम्हारा वो उपन्यासकार, यहां भीतर क्या कर रहा है। उसके साथ दो आदमी और हैं। देख लो, यहां का कोना-कोना छान रहा है।” मलानी के चेहरे पर सोच के भाव थे।

राजपाल के होंठ हिलकर रह गये।

“इसने जहाज पर किसी को आने कैसे दिया।” विक्रम खतरनाक स्वर में बोला – “इसे गोली मार कर –।”

“नहीं।” मलानी ने हाथ हिलाया –“इसकी कोई गलती नहीं है। वो रघुवीर सिंह को देखों, जो रोशन कुमार को अपना रिश्तेदार बता रहा था। मुझे पूरा यकीन है कि वो उसका रिश्तेदार नहीं है। उसकी जेब गर्म करके, उसे जहाज दिखाने को तैयार होगा। बात करके आओ उससे –।”

विक्रम और उसका साथी फौरन बाहर निकल गये।

मलानी ने सिगरेट सुलगाई और राजपाल को देखा।

“मुझे माफ कर दीजिये साहब।” राजपाल सूखे स्वर में कह उठा –“मुझसे गलती हो गई।”

“वो दिन में आया और जहाज के सारे रास्ते देख गया और रात को चुपचाप, ब्रूटा साहब के प्राईवेट हिस्से में आ पहुंचा। अगर तुमने उसे दिन में नहीं आने दिया होता तो वो इस तरह अपने वो इस तरह अपने दो आदमियों के साथ रात को इतनी आसानी से यहां तक नहीं पहुंच सकता था।” मलानी ने एक-एक शब्द पर जोर देकर कहा।

“मैं-मैं अपनी गलती की माफी –।”

“तुम्हें जहाजों की सफाई का ठेका दिया जाता है और मेरी तरफ से सख्त मनाही है कि जहाज पर कोई अजनबी नहीं आना चाहिये और तुम उसे जहाज पर घुमाते रहे। कितनी गलत बात की है तुमने। उपन्यासकार इस तरह ताले नहीं तोड़ते। वो कोई बहुत ही चालाक आदमी था और किसी खास बात की खातिर आया था।”

राजपाल कुछ नहीं बोला।

“स्क्रीन देखो। उसके साथ जो आदमी है उसे जानते हो?” मलानी बोला।

राजपाल ने स्क्रीन पर नजर आ रहे सोहनलाल को देखा।

“नहीं। मैंने इसे पहले कभी नहीं देखा।”

मलानी ने कैसेट रिवाईंड की और जगमोहन का चेहरा दिखाया।

“इसे?”

“नहीं। इसे भी नहीं देखा।”

मलानी ने वी.सी.आर. ऑफ कर दिया।

“तुमने कल उस आदमी को पूरे जहाज में घुमाकर बहुत बड़ी गलती की है। ऐसी बातें मैं कभी पसन्द नहीं करता।” मलानी की आंखों में क्रूरता के भाव चमके –“ब्रूटा साहब अब तक तुम्हें सजा दे चुके होते।”

“मैं माफी –।”

“जाओ।” मलानी ने भिंचे स्वर में कहा –“और इस बात का जिक्र किसी से मत करना कि जहाज पर इस तरह कोई चोरी-छिपे आया। खासतौर से ब्रूटा साहब के इस प्राइवेट हिस्से में –।”

“ज-जी –।” राजपाल ने घबराये ढंग से सिर हिलाया और जान बची वाले ढंग में निकलता चला गया।

मलानी की सोचभरी निगाह ऑफ हो चुकी टी.वी. स्क्रीन पर जा टिकी।

विक्रम अपने साथी के साथ डेढ़ घण्टे बाद लौटा और मलानी से बात की।

“रघुवीर सिंह मुंशी से बात हुई। डण्डा चढ़ाया तो बोला कि रोशन कुमार उसका रिश्तेदार नहीं था। वो खुद को उपन्यासकार कह रहा था और जहाज को भीतर से देखने के लिये कह रहा था। इसके लिये रोशन कुमार ने उसे दस हजार दिए तो वह उसे जहाज दिखाने के लिये यहां ले आया।”

“मुझे भी पूरा विश्वास था कि वो उसका रिश्तेदार नहीं होगा।” मलानी के होंठ भिंच गये।

“थोड़ा और डण्डा चढ़ने पर रघुवीर सिंह बोला कि रोशन कुमार ने ही, इसी जहाज को दिखाने के लिय कहा था। यानि कि रघुवीर सिंह सीधे, उसे इस जहाज पर नहीं लाया था।”

“दस हजार रुपया खर्च करके, सिर्फ जहाज को भीतर से देखना ही उसका मकसद नहीं रहा होगा।” मलानी ने कठोर निगाहों से विक्रम को देता –“दिन में वो जहाज के भीतरी रास्ते को देख गया और रात में जहाज के इस प्राईवेट हिस्से में आ पहुंचा। उनकी आपस में होने वाली बातों से साफ जाहिर है कि उन्हें यकीन है कि ब्रूटा साहब, यहाँ कोई गलत काम करते हैं और उसी गलत काम को मालूम करने के लिये वो यहां आये थे। क्यों, वो कौन थे, इन बातों का जवाब पाना जरूरी है।”

“इन्हें ढूंढने की कोशिश करे?”

“कोई जरूरत नहीं।” मलानी शब्दों को बवाकर बोला –“जब जहाज सिंगापुर के लिये रवाना होगा तो वो लोग भी इसी जहाज में होंगे। तब फिर उन्होंने कोशिश करनी है कि जहाज के इस प्राईवेट हिस्से में आकर, देखें कि यहां ब्रूटा साहब क्या करते हैं और तब तो इस तरफ वो किसी भी कीमत में नहीं आ सकते। वैसे भी उससे पहले ही मैं उन्हें ढूंढ निकालूंगा।”

“रोशन कुमार भी, उसका असली नाम नहीं होगा।” विक्रम का साथी बोला।

“सुन्दर –।” मलानी ने उसे देखा –“उसका नाम भी नकली है और चेहरे की दाढ़ी, सिर के बाल भी नकली है। स्क्रीन पर उसे गौर से देखो तो यह बात समझ में आ जाती है कि वो खासा फुर्तीला इंसान है चेहरे और दाढ़ी के सफेद बाल, उसकी फुर्ती से मेल नहीं रखते।”

“ओह –!” सुन्दर ने सिर हिलाया।

“अब क्या करना है?”

“उस दिन का इन्तजार करो जिस दिन जहाज यहां से रवाना होता है।” मलानी का चेहरा सुलग रहा था।

“लेकिन जहाज रवाना होने से पहले, वो फिर इस तरफ आ सकते हैं। इसलिये यहां पहरा –।”

“नहीं विक्रम।” मलानी ने दृढ़ताभरे स्वर में कहा –“वे इतने बेवकूफ नहीं होंगे। कि इस तरह अब दोबारा आकर खुद को मुसीबत में डाले। वे जानते हैं कि दरवाजा खुला पाकर, हम लोग सतर्क हो गये होंगे।” कहने के साथ ही मलानी आगे बढ़ा और वी.सी.आर. से कैसेट निकालकर, अपने कब्जे में ले ली।

दो पलों तक वहां खामोशी रही।

“रघुवीर सिंह से कह दिया। कि इस बारे में किसी से जिक्र न करे कि –।”

“कहने की जरूरत नहीं रही। उसके हाथ-पांव इस तरह तोड़ दिये हैं कि अब वो तीन-चार महीने अस्पताल में रहेगा और किसी से कहेगा भी नहीं कि उसके हाथ-पांव किसने तोड़े हैं?” विक्रम ने कहा।

मलानी सिर हिलाकर रह गया।

☐☐☐

अगले दिन सुबह नौ बजे देवराज चौहान की आंख खुली।

सुबह चार बजे तीनों वापस आये थे। उस वक्त उनके बीच कोई खास बात नहीं हो पाई थी। देवराज चौहान गहरी सोचों में डूबा हुआ था। सोहनलाल उससे पहले ही नींद में उठ बैठा था और देवराज चौहान के उठने तक तो वो नहा-धोकर तैयार हो चुका था।

सोहनलाल ने ‘बेड टी’ बनाई और एक गिलास देवराज चौहान को थमाया और दूसरा जगमोहन को नींद में उठाकर, उसे थमा दिया।

“इसी तरह सेवा करता रहा।” जगमोहन ने चाय का घूंट भरा –“तेरा बेड़ा पार हो जायेगा।”

“अभी तो देवराज चौहान का दिया पचास हजार मेरी जेब में है।” सोहनलाल मुस्कराकर बोला –“जब तक वो खत्म नहीं होता, तब तक तो तेरी सेवा करने का मेरा फर्ज बनता है।”

“पचास हजार –।” जगमोहन हड़बड़ाकर बोला –“कब दिया तेरे को”

“तभी जब मैं इस काम पर लगा था और –।”

“क्यों दिया?”

“भागदौड़ में खर्च तो होता ही है। तू तो खाली-खाली लटका देता। बल्कि मेरी जेब में हजार, दो हजार होते तो वे भी निकालने की कोशिश करता। देवराज चौहान ने पचास हजार मुझे दे दिए।”

जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा फिर सोहनलाल से कह उठा

“वापस दे।”

“क्यों?”

“दो हजार खर्च हो गया होगा। अड़तालीस हजार वापस दे दे। निकाल –।”

“उलटा मत बोल । अड़तालीस खर्च हो चुके हैं। बाकी के दो बचे हैं। दो तेरे किस काम के। निन्यानवें के फेर में मत पड़। चाय ठण्डी हो रही है। मजे ले-लेकर पी।”

“मतलब कि नहीं देगा।”

सोहनलाल ने मुस्कराकर गोली वाली सिगरेट सुलगाई।

“छोडूंगा नहीं।” जगमोहन उखड़े स्वर में बोला –“ब्याज के साथ वसूल करूंगा।”

सोहनलाल ने तगड़ा कश लिया।

“तेरे से तीन लाख पहले भी लेना है।”

“ये पचास भी जमा कर ले।” सोहनलाल मुस्कराया।

“समझ ले, डायरी में लिख लिया।” जगमोहन ने जल-भुनकर कहा।

“डायरी संभाल कर रखना। ऊपर रबड़ भी लगा लेना। कहीं मेरा वाला पन्ना खो न जाये।”

जगमोहन तीखे स्वर में कुछ कहने लगा कि देवराज चौहान कह उठा।

“सोहनलाल! वो वीडियो कैसेट कहां है जो जहाज से लाये थे?”

“बैग में ही पड़ी है। जिसमें औजार रखे थे।” सोहनलाल बोला।

“कहीं से वी.सी.आर. और टी.वी. लेकर आ। उन्हें देखना बहुत जरूरी है।”

“अभी लाया।” कहने के बाद सोहनलाल ने जगमोहन को देखा –“तू पचास हजार को रो रहा है। अब मुझे नया वी.सी.आर. और टी.वी. खरीदना पड़ेगा। पल्ले से डालना पड़ेगा रोकड़ा।”

“तू –।” जगमोहन तीखे स्वर में बोला –“नया खरीदेगा?”

“हां। अभी लाया, चमचमाता हुआ।” कहने के साथ ही सोहनलाल बाहर निकलता चला गया।

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली।

चाय का घूंट लेते जगमोहन कह उठा।

“इन वीडियो कैसेट में कुछ खास होगा?”

“कैसेटों के जरिये कम से कम यह तो जाना जा सकता है कि ब्रूटा के जहाज के प्राईवेट हिस्से में ब्रूटा के अलावा और कौन-कौन आता है। शायद यह भी मालूम हो सके कि वहां क्या होता है।”

“लेकिन रात हमारा जहाज पर जाना बेकार ही रहा। कोई खास बात हाथ नहीं लगी।”

“अभी इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता कि जहाज पर जाने से हमें फायदा हुआ कि नहीं।” देवराज चौहान ने सोचभरे स्वर में कहा –“कभी-कभी सफलता न मिलने पर भी, ऐसी सफलता मिल जाती है, जिसे हम पहचान नहीं पाते और जिसका एहसास बाद में जाकर होता है।”

जगमोहन कुछ नहीं बोला। चाय के घूंट लेता रहा।

“अब तक तो दरवाजा खुला देखकर, उन्हें मालूम हो गया होगा कि कोई जहाज के प्राईवेट हिस्से में गया है। ऐसे में जहाज की पहरेदारी करने वालों पर तो मुसीबत आ गई होगी।”

“मुसीबत आनी तो नहीं चाहिये, क्योंकि दरवाजे पर लगे डबल ऑटोमैटिक लॉक को खोलकर हम लोग भीतर गये थे। ऐसे में जाहिर है कि जहाज पर मौजूद, कोई भी इस काम में हमारी सहायता नहीं करेगा। ब्रूटा जैसे बड़े आदमी का डर अवश्य उनके मन में होगा।” देवराज चौहान ने सिर हिलाकर कहा –“पूछताछ से यह बात तो वे लोग जान ही गये होंगे कि दिन में रोशन कुमार नाम का कोई आदमी जहाज पर आया था और जब हम उस हिस्से में गये तो दो वीडियो कैमरे चालू थे। कैमरों ने हमारी हरकतों को अपने में कैद किया होगा। शायद अब तक उन लोगों ने कैसेट में दर्ज हमारे चेहरों को देख भी लिया हो और राजपाल को दिखाकर मालूम कर लिया हो कि दिन में आने वाला आदमी यही था।”

“ऐसे में तो उन्होंने हमारी तलाश शुरू कर दी होगी कि हम कौन लोग हैं।”

“वो जो भी करे उसे हमें फर्क नहीं पड़ता।” देवराज चौहान का स्वर सोच से भरा था।

“जहाज पर जाने और उसे हिस्से की छानबीन के बाद भी हमें कुछ नहीं मिला कि मालूम होता, ब्रूटा वहां क्या करता है?” जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा।

“लेकिन उस जगह को और वहां के इन्तजामों को देखने के बाद इस बात का तो यकीन हो गया कि जहाज के उस प्राईवेट हिस्से पर यकीनन कोई गलत-गैरकानूनी काम होता है।” देवराज चौहान की आवाज में दृढ़ता थी –“और उस काम को ब्रूटा बेहद सावधानी से करता है।”

सोहनलाल टी.वी., वी.सी.आर. ले आया।

वो आठ वीडियो कैसेट थीं, जिन्हें जहाज के प्राईवेट हिस्से में स्थित, सुरक्षा कंट्रोल रूम से वे उठाकर लाये थे। वी.सी.आर. पर लगाकर उन्होंने एक-एक कैसेट को देखा।

परन्तु सब की सब कैसेट खाली थीं।

“यह क्या! इन कैसेटों में तो किसी का भी चेहरा नहीं है।”

सोहनलाल के होंठों से निकला –“हर कैसेट में जहाज के उस प्राईवेट हिस्से के दृश्य हैं। कहीं तो वो गैलरी है, जहां से हम भीतर प्रवेश हुए थे। कहीं खूबसूरत बेडरूम है। तो हाल ड्राईंगरूम । या फिर छोटे-छोटे केबिन। खेलने के लिए बड़ा सा हॉल। ऐसी और भी कई जगह। लेकिन एक भी इंसान का चेहरा कैसेटों में दर्ज नहीं है। कितनी अजीब बात है –।”

सोहनलाल सिर्फ सिर हिलाकर रह गया।

“यह अजीब या हैरानी की बात नहीं है।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।

“क्यों?”

“जहाज पर मुम्बई बन्दरगाह पहुंचा। लंगर डाला। कई दिनों से जहाज खाली खड़ा हुआ है। यह सारी वीडियो कैसेट, तब की है, जब से जहाज खाली खड़ा है। इन कैसेट की रिकॉर्डिंग के दौरान, इत्तेफाक से वहां कोई नहीं आया। जबकि ब्रूटा के जहाज के प्राईवेट हिस्से में वीडियो कैमरा और जगह-जगह लगे लैंस चौबीसों घण्टे ऑटोमैटिक सिस्टम के मुताबिक काम करते रहते हैं कैसेट की फिल्म जब भर जाती है तो कम्प्यूटराईज सिस्टम कैसेट के कैमरे से निकलकर ट्रे में धकेल देता है और नई कैसेट वहां आकर लग जाती है।”

दो पल के लिये कोई कुछ नहीं बोला।

“मतलब कि हमारी सारी मेहनत खराब-बेकार गई।” सोहनलाल गहरी सांस लेकर कह उठा।

“मेहनत कभी बेकार नहीं जाती।” देवराज चौहान के चेहरे पर सोच के भाव थे –“तुम इन कैसेटों को संभालकर रखो। मैं बन्दरगाह जा रहा हूं।”

“वहां–क्यों?” जगमोहन ने उसे देखा।

“दो दिन तक जहाज ने सिंगापुर के लिये रवाना होना है। उसमें सफर करने के लिये टिकट बुक करानी है। तुम दोनों मेकअप में जाओगे। क्योंकि तुम दोनों के चेहरे जहाज पर मौजूद वीडियो कैमरे में आ चुके हैं और उन लोगों ने देख भी लिए होंगे। मैं रोशन कुमार वाले चेहरे में नहीं जा सकूँगा। और न ही असल चेहरे में क्योंकि मेरा असल चेहरा महादेव की मौत के वक्त वो लोग देख चुके हैं। इसलिये हम तीनों मेकअप में, चेहरे-हुलिये बदलकर, सफर करेंगे। पासपोर्टों में, कोई भी ले लेना। मैं टिकट बुक कराकर आता हूं।”

“टिकट तो मैं ले आता हूं बन्दरगाह से।” सोहनलाल बोला।

“नहीं।” देवराज चौहान ने सोचभरे ढंग से सिर हिलाया –“जहाज में मुझे दूसरी मंजिल के उस हिस्से के केबिनों में जगह लेनी है, जहां यात्री आ-जा सकते हैं।”

“ताकि ब्रूटा के प्राईवेट हिस्से तक पहुंचने में आसानी हो।” जगमोहन कह उठा।

देवराज चौहान ने गम्भीर निगाहों से दोनों को देखा।

“मैं कोई ऐसा रास्ता निकालना चाहता हूं कि जहाज पर, ब्रूटा के प्राईवेट हिस्से की निगरानी भी चलती रहे। कैमरे भी चलते रहे और उन्हें हमारे भीतर आने का पता भी न चले।” देवराज चौहान ने होंठ भींचकर सोचभरे स्वर में कहा।

“ऐसा कैसे हो सकता है कि कैमरे भी चलते रहें और पता भी न चले।” जगमोहन के होंठों से निकला।

“ये नहीं हो सकता।” सोहनलाल दृढ़ताभरे स्वर में कह उठा।

“मैं जानता हूं नहीं हो सकता।” देवराज चौहान ने पूर्ववतः लहजे में कहा –“लेकिन सोचना यह है कि अगर हो तो, कैसे हो सकता है।”

जगमोहन और सोहनलाल की निगाहें मिली।

“तुम्हारा मतलब कि किसी और जगह से रास्ता बनाकर, उस प्राईवेट हिस्से में जाया जा –।”

“नहीं जाया जा सकता।” देवराज चौहान ने सिर हिलाया –“उस हिस्से में सेंध नहीं लगाई जा सकती। सेंध लगाकर भीतर चले गये तो, वो कैमरे हमें पकड़ लेंगे।”

“ऐसा है तो फिर हम जहाज के प्राईवेट हिस्से में नहीं जा सकते। चोरी-छिपे नहीं पहुंच सकते।”

“मैंने कब कहा है कि पहुंच सकते हैं।” देवराज चौहान का स्वर शांत-सपाट था – “मुझे चोरी-छिपे वहां पहुंचने के लिए रास्ता निकालना पड़ेगा। और रास्ता निकालकर रहूंगा।” कहने के साथ ही देवराज चौहान बाथरूम में चला गया।

जगमोहन और सोहनलाल की निगाहें मिलीं।

“जहाज के उस प्राईवेट हिस्से पर नजर रखने के लिये, हर वक्त वीडियो कैमरे चालू रहते हैं।” जगमोहन गम्भीर स्वर में कह उठा –“ऐसे में बिना निगाहों में आये वहां प्रवेश नहीं किया जा सकता और प्रवेश कर भी लिया जाये तो दूसरे ही मिनट वे लोग स्क्रीनों पर हमें देख लेंगे और हम उनकी कैद में होंगे।”

“यही तो मैं कह रहा हूं। ऐसे में देवराज चौहान कौन-सा नया रास्ता निकलेगा। रास्ता कोई है ही नहीं।” सोहनलाल की आवाज में विश्वास और दृढ़ता थी।

दोनों सवालिया निगाहों से एक-दूसरे को देख रहे थे।

दस मिनट बाद देवराज चौहान नहा-धोकर बाहर निकला।

“मेकअप बॉक्स देना।” देवराज चौहान ने कहा।

सोहनलाल ने खामोशी से देवराज चौहान को मेकअप बॉक्स थमा दिया।

☐☐☐

मुम्बई बन्दरगाह पर नदीम खान बुकिंग क्लर्क था। पैंतालीस बरस उसकी उम्र हो चुकी थी। बाईस-तेईस बरस की उम्र में उसे यह नौकरी मिली थी और बखूबी अपना काम कर रहा था। आज तक तरक्की नहीं मिली थी, परन्तु वो खुश कि घर का खर्चा-पानी आराम से चल रहा है।

आज उसकी ड्यूटी सुबह आठ बजे से दोपहर तीन बजे तक थी।

सवा तीन बजे वो बुकिंग ऑफिस की इमारत से बाहर निकला और हमेशा की भांति पैदल ही आगे बढ़ गया। बस स्टॉप वहां से दूर पड़ता था। अभी वह कुछ ही आगे चला होगा कि पीछे से आवाज सुनकर ठिठका और पलटकर देखा।

दो कदम पीछे देवराज चौहान था। जो पास आ पहुंचा था। देवराज चौहान ने फ्रैंक कट दाढ़ी और उससे लग रही मूंछे लगा रखी थीं। आंखों पर धूप का चश्मा था।

“आपने मुझे बुलाया?” नदीम खान ने उसे प्रश्नभरी निगाहों से देखा।

“हां।” देवराज चौहान मुस्कराया –“आपसे छोटा-सा काम था।”

“कहिये?”

“दो दिन बाद नीलगिरी जहाज सिंगापुर के लिये रवाना होगा।”

“जहाज नम्बर 302 की बात कर रहे हैं।”

“ठीक समझे आप। मुझे उस जहाज की दूसरी मंजिल पर तीन केबिन बुक कराने हैं। छोटे वाले केबिन।” छोटे केबिन में सिंगल बेड और टेबल के अलावा दो कुर्सियां होती हैं।

“तो जाकर ‘बुक’ करा लीजिये।” नदीम खान ने लापरवाही से कहा।

“मुझे खास केबिन चाहिये। इस मामले में आप मेरी मदद कर सकते हैं।”

नदीम खान ने देवराज चौहान को सिर से पांव तक देखा।

“जो केबिन आपको चाहिये, उसके लिये मैं आपकी मदद क्यों करूंगा?”

“क्योंकि आप बुकिंग क्लर्क हैं और अगर आप मेरी मदद करेंगे तो मैं उस मदद की कीमत दूंगा।” देवराज चौहान ने कहा –“आपने किसी का उधार देना हो तो, वो उधार मैं अपनी जेब से चुकता करूंगा।”

यह सुनते ही नदीम खान फौरन संभला।

“मेरा उधार दे देंगे आप?”

“हां।”

“वो ज्यादा हुआ तो?”

“कितना उधार ले रखा है आपने लोगों से। कहिये तो सही।” देवराज चौहान मुस्कराया।

“पच्चीस हजार –।” नदीम खान फौरन बोला।

“मैं चुकता कर दूंगा।”

“उस पर पांच हजार तो ब्याज चढ़ चुका होगा।” नदीम खान जैसे उसे हलाल करने पर उतारू हो गया।

“मतलब कि कुल तीस हजार हुआ।”

“ठीक है। मैं तीस हजार आपको दे दूंगा। आप उधार चुकता कर देना...।”

“कब देंगे आप?”

“जब आप नीलगिरी में दूसरी मंजिल पर मेरे पसन्दीदा तीन केबिन, बुक करवा देंगे।”

“कौन-कौन से नम्बर वाला केबिन चाहिए?” नदीम खान सिर हिलाकर बोला।

“नम्बर का तो मुझे ध्यान नहीं है। अगर तुम मुझे जहाज की दूसरी मंजिल के नक्शे का बुकिंग चार्ट दिखा दो तो मैं तुम्हें बता सकता हूं कि मुझे कौन-कौन से केबिन चाहिये।” देवराज चौहान ने कहा।

“मामूली बात है। आओ मेरे साथ।”

“कहां-?”

“भीतर। मैं तुम्हें बुकिंग चार्ट दिखाता हूं।”

“किसी को क्या कहोगे कि मुझे चार्ट क्यों दिखा रहे –।”

“चिन्ता मत करो। कोई कुछ नहीं पूछेगा। तुम कैंटीन में बैठना। मैं चार्ट लेकर वहीं आता हूं।”

दोनों वापस बन्दरगाह की इमारत की तरफ बढ़ गये।

भीतर पहुंचकर देवराज चौहान कैंटीन में जा बैठा और नदीम खान दूसरी तरफ चला गया और पांच मिनट बाद ही कैंटीन में पहुंचा। हाथ में तह किया कागज था। उसके सामने कुर्सी पर बैठते हुए उसने वो कागज खोला जो डेढ़ बाई दो फीट का था।

“यह दूसरी मंजिल के केबिनों का नक्शा है। इसे सामने रखकर ही केबिन बुक करते हैं।”

देवराज चौहान ने देखा, छोटे-छोटे खानों में नम्बर लिखे हुए थे। नम्बरों, यानि कि केबिनों के बीच वैसे ही रास्ते थे, जैसे जहाज पर थे। नक्शे का आधा हिस्सा स्याह करके बंद कर रखा था।

“इस जगह पर काली स्याही का छापा क्यों है?” जानते हुए भी देवराज चौहान ने पूछा।

“यह जहाज के मालिक का प्राइवेट हिस्सा है। यह जगह यात्रियों के लिए नहीं है।” नदीम खान बोला।

देवराज चौहान ने सिर हिलाया फिर ध्यानपूर्वक नक्शे को देखने के बाद बोला।

“मुझे चौदह-पन्द्रह और सोलह नम्बर केबिन चाहिये।”

नदीम खान ने नक्शा अपनी तरफ घुमाया। वहां नजर मारी। फिर बोला।

“चौदह-सोलह नम्बर केबिन बुक हो चुके हैं। पन्द्रह नम्बर मिल सकता है।”

“चौदह-सोलह जिसे दिए हैं, उसे कोई और दे दो।” देवराज चौहान बोला।

“ये नहीं हो सकता।” नदीम खान ने इंकार में सिर हिलाया –“हो चुकी बुकिंग को कैंसिल करने की खास वजह होनी चाहिये। यह वजह पर्याप्त नहीं है कि तुम मेरा तीस हजार का उधार चुकता कर रहे हो। आखिर मुझे भी अपने ऑफिसरों को जवाब देना पड़ेगा। वहां भारी परेशानी खड़ी हो जायेगी।”

देवराज चौहान नक्शे को देखता रहा।

“कोई और केबिन पसन्द कर लो।”

देवराज चौहान ने जहाज की दूसरी मंजिल का नक्शा चेक करने के बाद दो अन्य केबिनों का चुनाव किया। जिनके तीन और पांच नम्बर थे।

“पन्द्रह, तीन और पांच नम्बर केबिन किस नाम से बुक करें?” नदीम खान ने पूछा।

देवराज चौहान ने बताया।

“पासपोर्ट तैयार है। परसों जहाज पर सवार होने से पहले पासपोर्ट चेक कराने होंगे।”

“सब कुछ है।”

“ठीक है। टिकटों के पैसे मुझे दो। मेरा तीस हजार दो। यहीं बैठो। दस मिनट में सारी बुकिंग कराकर, टिकट यहीं ला देता हूं।” नदीम खान ने नक्शे वाले कागज को तह करते हुए कहा।

देवराज चौहान ने टिकटों के अलावा, तीस हजार उसको दिए नदीम खान चला गया।

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई और सोचभरे ढंग में कश लेने लगा।

नदीम खान पच्चीस मिनट बाद वापस लौटा। देवराज चौहान को तीन टिकट थमाये। देवराज चौहान ने टिकटों को चेक किया। वो दूसरी मंजिल के पन्द्रह-तीन और पांच नम्बर केबिन की बुकिंग थी।

“जहाज परसों दोपहर को ठीक तीन बजे यहां से रवाना होगा। इस पर यात्रा करने के लिये, कम से कम ढाई घण्टे पहले पहुंचना पड़ेगा। पासपोर्ट और सामान की चैकिंग में वक्त तो लगता ही है।”

देवराज चौहान ने मुस्कराकर सिर हिलाया और उठ खड़ा हुआ।

नदीम खान भी उठा।

“कोई खास वजह है इन नम्बरों वाले केबिनों को बुक कराने के लिये?” नदीम खान ने पूछा।

“नहीं। मैं जब भी कहीं जाता हूं तो सीट नम्बर या केबिन नम्बर अपनी पसन्द के लेता हूं।”

“अजीब आदत है। सनकी तरह।”

“हो सकता है। लेकिन मैंने अपनी इस आदत पर कभी खास गौर नहीं किया। तुम अपना उधार चुकता करो और मैं सफर की तैयारी शुरू करता हूं।”

☐☐☐

हरी किशन ब्रूटा।

कौन था। कहां से आया। इसकी जानकारी शायद ही कोई रखता हो। अचानक ही यह नाम उभरा था और मुम्बई बिजनेस उद्योग पर छाता चला गया। यह आज से बीस बरस पहले की बात है। आज मुम्बई में कई बड़े-बड़े बिजनेस ब्रूटा के चल रहे थे। वह खुद नहीं जानता था कि उसके कुल कितने कर्मचारी हैं।

सब काम ठीक तरह चल रहे थे।

मुम्बई में ब्रूटा के दो खूबसूरत बंगले थे। दो अचूक निशानेबाज, बतौर गनमैन अक्सर ब्रूटा के साथ रहते थे, जब वो बाहर निकलता था। तीन-चार बार उसकी जान लेने के लिए उस पर हमले हो चुके थे, परन्तु उसके गनमैनों ने  ब्रूटा का कुछ भी बिगड़ने नहीं दिया था।

ब्रूटा का परिवार था-पत्नी और दो बच्चे। लड़की की शादी हो चुकी थी और वो फ्रांस में अपने पति के साथ रहती थी। लड़का मुम्बई में ही था और बाप की दौलत और रसूख के दम पर भरपूर ऐश कर रहा था। ब्रूटा के पास इतना वक्त नहीं था कि अपने परिवार की तरफ जरा भी ध्यान दे पाता।

इस वक्त ब्रूटा अपने ऑफिस में नरेश मलानी के साथ था। कुछ पल पहले ही वो टी.वी. स्क्रीन पर फिल्म देखकर हटा था। उस फिल्म में मेकअप में देवराज चौहान था। सोहनलाल और जगमोहन के चेहरों को भी उसने देखा। जहाज के प्राईवेट हिस्से पर घूमते और उनकी बातों को सुना।

फिल्म खत्म होते ही मलानी ने टी.वी. ऑफ कर दिया।

ब्रूटा ने हाथ की उंगली में पड़ी सोने की रिंग को घुमाया और सिगरेट सुलगाकर मलानी को देखा। मलानी चार कदम के फासले पर सतर्क ढंग में खड़ा था।

“तुम ये सब देखकर किस नतीजे पर पहुंचे?” ब्रूटा का स्वर शांत था।

“सर! सबसे पहली बात तो यह है कि ये लोग ताला-खोलने में बहुत एक्सपर्ट हैं। उस दरवाजे पर डबल आटोमैटिक लॉक था। जिसे चाबी के बिना खोल पाना सम्भव नहीं। लेकिन वो लॉक इन लोगों ने इस तरह खोला कि लॉक को जरा भी नुकसान नहीं हुआ। वैसे ही सफाई के साथ खोला गया, जैसे चाबी से खोला जाता है।”

“मैं जानना चाहता हूं कि यह लोग किस मकसद की खातिर मेरे प्राईवेट हिस्से में आये थे?” ब्रूटा ने पूछा।

“इनकी बातों से यही लगता है कि ये लोग यह जानना चाहते हैं कि आप जहाज के प्राईवेट हिस्से पर क्या काम करते हैं। इन लोगों की बातों से जाहिर है कि जैसे इन्हें विश्वास हो कि वहां आप कोई गलत काम करते हैं। हो सकता है इन लोगों को हमारे किसी दुश्मन ने भेजा।”

“नहीं।” ब्रूटा ने इन्कार किया –“मेरे जो भी दुश्मन हैं उनकी इतनी हिम्मत नहीं कि इस तरह जहाज के प्राईवेट हिस्से में आ जाये। ये कोई दूसरी बात ही लगती है।”

“दूसरी कैसी बात?” मलानी ने ब्रूटा को देखा।

“कह नहीं सकता। बहरहाल इन्होंने जहाज पर सफर करने का प्रोग्राम बना रखा है।” ब्रूटा ने मलानी को देखा –“इस बार तुम भी जहाज पर सफर करोगे मेरे साथ ही इस बार चलोगे और इन लोगों को जहाज में पहचानने की कोशिश करोगे।”

“ठीक है सर! लेकिन मुम्बई के काम कौन संभालेगा?”

“वो काम किसी भरोसे के आदमी के हवाले कर दो।” ब्रूटा ने शांत लहजे में आदेश दिया।

“वैल सर –!”

☐☐☐

जगमोहन और सोहनलाल की निगाह देवराज चौहान पर टिकी थी।

सोचों में डूबे देवराज चौहान ने कश लिया।

“हम यह सोचकर चल रहे हैं कि महादेव की हत्या ब्रूटा या उसके आदमियों के इशारे पर हुई है।” जगमोहन कह उठा –“महादेव के हत्यारे की तलाश मैं ही हम जहाज नम्बर 302 पर सिंगापुर के लिये सफर करेंगे और सफर के दौरान ब्रूटा के उस प्राईवेट हिस्से में प्रवेश करके ऐसा कुछ तलाश करना है कि महादेव की हत्या की वजह के साथ-साथ, उसके हत्यारे का भी पता चले। लेकिन यह भी तो हो सकता है कि हम गलत रास्ते पर बढ़ रहे हों। महादेव का हत्यारा कहीं और हो और –।”

“तुम अनिता गोस्वामी को भूल रहे हो जगमोहन।” सोहनलाल बोला।

“मैं समझा नहीं।”

“उसने असलम खान को कहा था कि महादेव का हत्यारा जहाज में होगा, जब जहाज रवाना होगा।”

जगमोहन सोहनलाल को देखता रहा।

“और वो मौसी, जिससे तुम मिलकर आये थे। उसने भी यही कहा था।” सोहनलाल पुनः बोला –“अनिता गोस्वामी हमें जहाज की छठी मंजिल के डेक पर, जहाज की रवानगी की रात मिलेगी और बताएगी कि महादेव का हत्यारा कौन है?”

जगमोहन गहरी सांस लेकर रह गया।

“जो भी हो, जहाज पर हम अपनी मनमानी नहीं कर सकेंगे।”

“क्यों?”

“ब्रूटा का वो जहाज है। सफर के दौरान ब्रूटा भी वहां होगा। अपने प्राईवेट हिस्से में होगा और अब तक उसे मालूम हो चुका होगा कि कोई ताला खोलकर, उसकी प्राईवेट जगह में आया है। हमारे चेहरे भी वीडियो फिल्म में उसने देख लिए होंगे। ऐसे में इस बार वो वहां सख्त पहरा रखेगा, जब कि हम भीतर जाने की सोच रहे हैं।”

सोहनलाल ने देवराज चौहान को देखा।

“यह तो अब देवराज चौहान ही बतायेगा कि इसने क्या सोच रखा है कि ब्रूटा के प्राईवेट हिस्से में, उनकी निगाहों से बचकर कैसे प्रवेश किया जा सकता है।” सोहनलाल का स्वर गम्भीर था।

देवराज चौहान बराबर उन दोनों को देख रहा था।

“इस बात का जवाब मैं जहाज पर पहुंचकर ही दूंगा।” देवराज चौहान ने कहा।

“अब क्यों नहीं?”

“कुछ बातें मौके पर बताई जाती हैं। वैसे भी मैं अभी पक्के नतीजे पर नहीं पहुंच पाया हूँ कि किस तरह ब्रूटा के उस प्राईवेट हिस्से पर पहुंचना है। और कुछ भी करने से पहले, जहाज पर अनिता गोस्वामी से मुलाकात करूंगा। हो सकता है कि उसकी बातों से भी हमें अपने काम में सहायता मिले।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा।

सोहनलाल ने गोली वाली सिगरेट सुलगाई।

कुर्सी पर बैठे-बैठे पुश्त से सिर टिकाकर आंखें बंद कर ली जगमोहन ने।

“जो-जो सामान साथ में ले जाना है, उसके बारे में सुन लो।” देवराज चौहान ने सोहनलाल से कहा।

“ये आठों वीडियो कैसेट तुमने जहाज पर ले जानी हैं।”

“वापस –।” सोहनलाल अजीब से स्वर में कह उठा।

“हां।”

“लेकिन इनका इस्तेमाल क्या है? ये तो खाली हैं। ब्रूटा के प्राईवेट हिस्से की रिकॉर्डिंग है। जिनमें कोई इन्सान नजर नहीं –।”

“ये बाद की बात है कि इनका इस्तेमाल क्या है।” देवराज चौहान ने बात काटकर कहा –“तुमने इन कैसेटों को जहाज पर ले जाना है। तुम्हारा केबिन पन्द्रह नम्बर वाला है। पासपोर्ट वो ही इस्तेमाल करना, जिस नाम से तुम्हारे नाम केबिन बुक कराया है।”

“ठीक है।”

“अपने औजार साथ ले जाना।”

“ठीक है।”

“एक वी.सी.आर. और टी.वी. भी साथ ले जाना है।” देवराज चौहान ने कहा।

“वी.सी.आर.–टी.वी. –?”

“हां।”

“लेकिन लोग तो बाहर से सामान लाते हैं, मैं यहां से सामान लेकर बाहर के देश में जाऊं। कस्टम वाले शक करेंगे कि अवश्य कोई बात है।” सोहनलाल ने कहा।

“कोई शक नहीं करेगा। तुम्हारी आदत है फिल्म देखने की। पागलपन की हद तक तुम पर फिल्में देखने का भूत सवार रहता है, इसलिये वी.सी.आर. और टी.वी. तुम साथ रखते हो। किसी को क्या एतराज हो सकता है? साथ में कुछ कैसेट फिल्मों की भी ले लेना।”

“टी.वी. तो जहाज के केबिन में भी होगा?”

“होने दो। तुम अपना ले जा रहे हो। किसी को क्या एतराज हो सकता है।”

“ठीक है। मैं वी.सी.आर., टी.वी., कैसेट जहाज पर ले जाता हूं। लेकिन इनका इस्तेमाल क्या होगा?”

“अगर मैं ठीक सोच रहा हूं तो इसका इस्तेमाल बहुत बढ़िया होगा।” देवराज चौहान मुस्कराया।

“तुम क्या सोच रहे हो?”

“इस बारे में जहाज पर पहुंचने के बाद ही बातें करेंगे।”

सोहनलाल समझ गया कि देवराज चौहान के मस्तिष्क में कोई योजना आ चुकी है।

“करीब बीस फीट लम्बी टी.वी. वाली तार साथ ले लेना।”

सोहनलाल ने खामोशी से सिर हिलाया।

“और टेप! जिससे तारों को चिपकाया जा सके।”

“बिजली के काम में इस्तेमाल होने वाली टेप –?” सोहनलाल ने होंठ सिकोड़े।

“हां। साथ में कटर, जिसे कि बिजली वाले ही इस्तेमाल करते हैं। कोई ऐसा नुकीला औजार, जिससे कि धीमे-धीमे, बेआवाज लकड़ी को उधेड़ा जा सके।” देवराज चौहान ने सोचभरे स्वर में कहा।

“और –?”

“अभी तो इन सब चीजों का इन्तजाम करो। कुछ और ध्यान में आया तो बता दूंगा।”

सोहनलाल सिर हिलाकर रह गया।

“इसका मतलब कि तुम्हारे दिमाग में कोई योजना आ चुकी है।” जगमोहन ने कहा।

“हां।”

“क्या?”

“इस बारे में जहाज पर ही बात करेंगे। अभी योजना में कुछ कमी है। उसके बारे में सोच रहा हूं।”

“जहाज कब बन्दरगाह से रवाना होगा?”

“कल।” देवराज चौहान ने कहा –“कल दिन में बारह के आसपास अलग-अलग हमें बन्दरगाह पर पहुंचना है।”

☐☐☐

जहाज का लंगर उठाया जा चुका था। सब यात्री जहाज में पहुंच चुके थे। कुछ अपने केबिन में थे तो कुछ धूप में ही डेक पर खड़े थे।

जहाज का भोंपू (सायरन) कई बार बज चुका था। केबिनों में लगे छोटे-छोटे स्पीकरों से मध्यम-सी आवाज निकलकर, इस बात की सूचना दे रही थी कि जहाज रवाना होने वाला है। डेक पर लगे स्पीकर, वहां खड़े यात्रियों को भी इस बात की सूचना दे रहे थे।

और फिर धीरे-धीरे जहाज समन्दर की छाती पर रेंगने लगा। बन्दरगाह धीरे-धीरे दूर होने लगा। भोंपू बार-बार बज रहा था। धीरे-धीरे भोंपू बजना बंद हो गया। जहाज पन्द्रह मिनट में ही खुले समन्दर की छाती पर रफ्तार के साथ दौड़ना शुरू हो चुका था और उसकी स्पीड बढ़ती जा रही थी।

शाम के चार बज रहे थे।

जहाज में अधिकतर यात्री अपने-अपने केबिनों में थे।

सोहनलाल के नाम से पन्द्रह नम्बर केबिन बुक था। पासपोर्ट की तस्वीर के मुताबिक ही उसने अपने चेहरे पर मेकअप कर रखा था। आंखों पर नजर का चश्मा। सिर के बाल पीछे करके, चोटी जैसा रूप देकर बालों को, उस पर रबड़ चढ़ा रखी थी। ठोढ़ी पर छोटी-सी, चार इंच वाली दाढ़ी थी, जो कि उसके पतले-सूखे चेहरे और शरीर से बराबर मेल खा रही थी।

बदन पर, रेडीमेड लिया, नया सूट था।

अपने साथ वो सब सामान ले आया था, जिसके लिये देवराज चौहान ने कहा था।

जगमोहन तीन नम्बर केबिन में था।

पासपोर्ट की तस्वीर के मुताबिक ही उसने मेकअप कर रखा था। चेहरे पर काली दाढ़ी-मूंछे थीं। बदन पर टी-शर्ट और नेकर पहन रखा था। खुद को उसने मस्तमौला पर्यटक बना रखा था। जिसका काम ही इधर-उधर घूमते रहना हो। बालों का थोड़ा-सा स्टाईल बदल रखा था। ताकि ब्रूटा के आदमी उस पर किसी भी तरफ से शक न कर सकें।

देवराज चौहान पांच नम्बर केबिन में था।

चेहरे पर वो ही मेकअप था, जब वह बुकिंग क्लर्क नदीम खान से मिला था। फ्रेंचकट दाढ़ी और मूंछे। इसके अलावा सिर पर ‘पी’ कैप लगा रखी थी। उसने ऐसे रंग-ढंग अपना रखे थे कि देखने वाला उसे फौजी ही समझे। होंठों के बीच हरदम सुलगा या बुझा सिगार फंसा हुआ था।

केबिन में सिंगल बेड, फर्श पर कालीन और टेबल के अलावा दो कुर्सियां थीं। अटैच बाथरूम था। दरवाजा खोलने पर साढ़े तीन फीट की गैलरी थी, जिसके सामने की लाईन में और दांयें-बांयें हर तरफ केबिन बने थे। जिनमें यात्री थे।

इस वक्त गैलरी खाली नजर आ रही थी।

देवराज चौहान ने इन्टरकॉम पर रूम सर्विस को कॉफी के लिये आर्डर दिया। उसके बाद कुर्सी पर बैठा और सिगरेट सुलगा ली।

दस मिनट में ही वेटर कॉफी ले आया।

“क्या नाम है तुम्हारा?” देवराज चौहान ने पूछा।

“राजन!” वेटर ने कहा।

देवराज चौहान ने पचास का नोट निकालकर उसे थमाया।

“इसकी क्या जरूरत थी सर!”

देवराज चौहान ने मुस्कराकर एक और सौ का नोट निकाला और उसकी तरफ बढ़ाया।

“और क्या सेवा करूं सर?” वेटर राजन नोट थामते हुए बोला।

“सेवा भी बता दूंगा।” देवराज चौहान ने सिगरेट ऐशट्रे में रखी –“आते माल को फौरन जेब में डाल लेना चाहिये।”

वेटर ने तुरन्त नोटों को जेब में डाला।

“जाओ।”

वेटर चला गया।

देवराज चौहान ने कॉफी उठाई और सोचभरे ढंग में एक-एक घूंट लेते, कॉफी समाप्त की फिर उठकर केबिन का दरवाजा बंद करके सिटकनी चढ़ाई और बेड पर रखा सूटकेस खोलकर उसमें पड़ा सारा सामान निकाला। उसके बाद सूटकेस के तले की परत उठाई तो नीचे साईलेंसर लगे दो रिवॉल्वर और फालतू राउंड नजर आये। देवराज चौहान ने दोनों रिवॉल्वर उठाकर बाहर रखे फिर तले को वैसे ही फिट किया और सारा सामान वापस रखकर सूटकेस बंद किया फिर एक रिवॉल्वर तकिये के नीचे रखा । दूसरा उठाकर कपड़ों में छिपाया और बाहर निकलकर, दरवाजा बंद करने के पश्चात् वो आगे बढ़ा और चार नम्बर केबिन पार करके तीन नम्बर के सामने ठिठका।

दरवाजा भीतर से बंद था।

देवराज चौहान के थपथपाने पर जगमोहन ने दरवाजा खोला। देवराज चौहान ने भीतर प्रवेश किया। दरवाजा पुनः बन्द हो गया। देवराज चौहान ने रिवॉल्वर निकालकर उसे दी।

“इसे रख लो।”

जगमोहन ने रिवॉल्वर लेकर, अपने कपड़ों में रख ली।

देवराज चौहान कुर्सी पर बैठ चुका था।

“अब तक तो सब ठीक रहा –।” जगमोहन ने कहा।

“हां।”

“आगे का क्या प्रोग्राम है? तुम्हारी क्या योजना है? ब्रूटा के उस प्राईवट हिस्से में कैसे प्रवेश करना है?”

“आज रात दस बजे अनिता गोस्वामी से मिलना है।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा –“उसके बाद ही इस बारे में बात करेंगे।”

“ब्रूटा जहाज में सफर कर रहा है?” जगमोहन ने पूछा।

“मैंने पूछताछ नहीं की, इस बारे में। पहले की खबरों के मुताबिक उसे जहाज में ही होना चाहिये।”

“मैं मालूम करूं कि वो जहाज में है कि नहीं?”

“इस तरह की पूछताछ से किसी को शक हो सकता है। अगर वो जहाज में है तो, दो-चार घंटों में मालूम हो जायेगा। खामोशी से आसपास के माहौल का जायजा लेते रहो।”

जगमोहन ने सिर हिलाया।

“मैं सोहनलाल से मिलकर आता हूं।”

देवराज चौहान सोहनलाल के केबिन में पहुंचा।

सोहनलाल ने वी.सी.आर. पर हिन्दी फिल्म लगा रखी थी।

देवराज चौहान के आने पर सोहनलाल मुस्कराकर बोला।

“वैसे तो कभी फिल्म देखी नहीं। अब मौका मिला है तो सोचा फिल्मों की जो कैसेट लाया हूं वो सब देख लूं।”

“वों आठ कैसेट कहां हैं, जो हम जहाज से ले गये थे।” देवराज चौहान ने पूछा।

“उधर बैग में। निकालूं?”

“नहीं।”

“तुम करना क्या चाहते हो?” सोहनलाल की निगाह देवराज चौहान पर जा टिकी।

“रात को अनिता गोस्वामी से मिलने के बाद इस बारे में बात करेंगे।” देवराज चौहान ने कहा –“हर तरफ से सावधान रहना। हो सकता है ब्रूटा के आदमियों को इस बात का अहसास हो कि दरवाजे का ताला खोलकर, प्राईवेट हिस्से में प्रवेश करने वाले जहाज में सफर कर रहे हैं और उनके आदमी यात्रियों के बीच में से हमें तलाश करने की कोशिश करें। अभी तक हम इन लोगों की असलियत नहीं जानते कि यह क्या दम-खम रखते हैं।”

सोहनलाल सिर हिलाकर रह गया।

“सबसे पहले हमने ब्रूटा के आदमियों की पहचान करनी है। ब्रूटा को भी देखना है। अभी तक ब्रूटा के चेहरे से भी हम वाकिफ नहीं हैं और भी कई चीजें होंगी, जिनके बारे में हमें जानकारी हासिल करनी होगी।” देवराज चौहान ने सोचभरे स्वर में कहा –“अभी हम सारे मामले से पूरी तरह अंजान हैं।”

जहाज तेज रफ्तार के साथ समन्दर की छाती पर दौड़े जा रहा था।

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