फोन की बेल बजते ही देवराज चौहान ने रिसीवर उठाया।
“हैलो।”
“देवराज चौहान!” दूसरी तरफ महादेव था –“पहचाना मुझे?”
“महादेव?”
“हां। सुनो, मुझे तुमसे जरूरी काम है। बोलो कहां मिलते हो?” महादेव की आवाज कानों में पड़ी।
“तुम्हारी तबीयत कैसी है। तुम इलाज करवा –।”
“वो बीमारी ठीक नहीं होने वाली। डॉक्टर खामख्वाह तसल्ली देते रहते हैं। मैं जानता हूं, कभी भी लुढ़क सकता हूं। वैसे भी बहुत जी लिया। छोड़ो इन बातों को, कहां मिल रहे हो?”
“तुम बोलो?”
“माहिम, रेलवे स्टेशन के बाहर मिलो। जल्दी आना।” महादेव की आवाज में बेचैनी आ गई थी।
देवराज चौहान के चेहरे पर अजीब-से भाव उभरे।
“खास बात है?”
“हां। यूं समझो कि जान का खतरा सिर पर है।”
“मैं पहुंच रहा हूं।” कहने के साथ ही देवराज चौहान ने रिसीवर रखा और जगमोहन को पुकारा –“जगमोहन!”
बंगले के एक कमरे से जगमोहन निकलकर पास आ पहुंचा।
महादेव के फोन के बारे में बताकर देवराज चौहान बोला।
“मैं माहिम जा रहा हूं। थापर से तुम अकेले ही मिल आओ। वक्त मिला तो मैं वहीं पहुंच जाऊंगा।”
“कहो तो, मैं भी साथ चलूं। थापर से बाद में –।”
“थापर कई दिनों से याद आ रहा है। खुद तो वो ‘थापर समूह’ को जमाने में लगा हुआ है। इसलिये उसे जाने का वक्त नहीं मिल रहा। तुम आज उसके पास हो ही आओ।” देवराज चौहान ने कहा। पाठक जानते हैं कि थापर जो मादक पदार्थों का किंग था कभी। अब देवराज चौहान के कहने पर मादक पदार्थों का धंधा छोड़कर, उद्योगपति बनता जा रहा या। शहर के इज्जतदार लोगों में उसकी गिनती होने लगी थी।
“ठीक है।” जगमोहन ने कहा – “मैं थापर से मिलकर आता हूँ।”
अगले ही मिनट देवराज चौहान कार पर, माहिम रेलवे स्टेशन की तरफ बढ़ा जा रहा था।
माहिम रेलवे स्टेशन के सामने, सड़क पार मौजूद पार्किंग में, देवराज चौहान ने कार पार्क की और सड़क पार करता हुआ रेलवे स्टेशन के बाहरी गेट के पास आ पहुंचा और सिगरेट सुलगाते हुए महादेव की तलाश में इधर-उधर निगाहें दौड़ाने लगा।
मिनट भर ही बीता होगा कि देवराज चौहान की निगाहें महादेव पर ठहर गईं। जो इसी तरफ बढ़ा आ रहा था। परन्तु अभी दूर था। देखने पर एकबारगी तो वह पहचानने में नहीं आ रहा था।
सिर के बाल और दाढ़ी के बाल पूरी तरफ सफेद हो चुके थे। कमजोर इस हद तक हो गया था कि बदन पर पड़े कपड़े झूलकर नीचे लटकते महसूस हो रहे थे। गाल पिचक-से गये थे। देखने पर स्पष्ट तौर पर लग रहा था कि पैसे की तरफ से उसका हाथ तंग है जबकि देवराज चौहान ने इलाज कराने के नाम पर उसे लाखों रुपया दिया था। वह समझ गया कि महादेव की बीमारी बढ़ती जा रही है। उसी की वजह से उसका शरीर ढल रहा है।
महादेव पास पहुंचा।
देवराज चौहान ने स्पष्ट महसूस किया कि उसके चेहरे पर घबराहट और आंखों में बेचैनी है।
“तुमने अपनी क्या हालत बना रखी है। डॉक्टर क्या कहते –।”
“ये बात बाद में। पहले वो बात करूंगा, जिसके लिए तुम्हें यहां बुलाया है।” महादेव ने जल्दी से कहा।
“बात करने के लिये तुम बंगले पर भी आ सकते थे।” देवराज चौहान ने उसे गहरी निगाहों से देखा।
“नहीं। हालात ऐसे हैं कि मेरा खुले में रहना ठीक नहीं। जान का खतरा है कल रात से भागा फिर रहा हूं। अचानक तुम्हारा ध्यान आते ही, लगा जैसे सिर से बोझ उतर गया हो। मैंने एकदम तुम्हें फोन मारा।” कहने के साथ ही महादेव की निगाहें इधर-उधर दौड़ी।
“बात क्या है?”
“बात –।”
उसी पल देवराज चौहान के देखते ही देखते महादेव के चेहरे के भाव बदले। मुंह खुला का खुला रह गया। आंखें फटकर चौड़ी हो गईं।
वो गिरने को हुआ कि देवराज चौहान ने उसे फौरन संभाला।
“महादेव–महादेव –!”
महादेव का पूरा बोझ देवराज चौहान पर पड़ चुका था। दूसरे ही क्षण देवराज चौहान को दांयें हाथ में चिपचिपाहट-सी महसूस हुई। उसने देखा। हथेली खून से सन चुकी है। महादेव की कमर में साइलेंसर लगी रिवॉल्वर से गोली मारी गई थी, जो कि पेट से बाहर निकल गई थी।
देवराज चौहान ने फौरन महादेव को चेक किया।
अभी जान बाकी थी उसमें।
देवराज चौहान के दांत भिंच गये। चेहरा गुस्से से धधक उठा। उसने फौरन सिर घुमाकर रेलवे स्टेशन की तरफ देखा। गोली उसी तरफ से चलाई गई थी। वहां लोग मौजूद थे। कईयों की निगाह, उन पर पड़ चुकी थी और वो हैरानी से ठिठक कर नजारा देख रहे थे।
“किसने मारी गोली?” देवराज चौहान गुस्सेभरे स्वर में चिल्लाया।
जवाब कौन देता।
“तुम फिक्र मत करो महादेव! मैं तुम्हें –।”
“देव-राज–मे-री छो-ड़ो। मैं तो वैसे भी गिनती के दिन जी रहा था। दो दिन पहले क्या और बाद में क्या...।”
“नहीं महादेव, मैं –।”
“वक्त बरबाद मत करो। मेरी सुनो।” महादेव की आवाज मध्यम पड़ती जा रही थी –“मैं –।”
“मुझे इतना बता दो, गोली मारने वाले कौन लोग हैं?” देवराज चौहान ने भिंचे स्वर में कहा।
महादेव की आंखें बंद हो चुकी थीं।
“महादेव–महादेव–।” देवराज चौहान ने उसे जोरों से हिलाया।
“मुझे–मुझे नीचे लिटा–दो।” महादेव के होंठों से फुसफुसाती आवाज निकली।
होंठ भींचे देवराज चौहान ने उसे नीचे लिटाया।
महादेव की बंद पलकों में कम्पन हुआ। उसने आंखें खोली। देवराज चौहान को देखा।
“कुछ तो बोलो–महादेव –।” देवराज चौहान से सहा नहीं जा रहा था, इस तरह महादेव को मरते देखना।
महादेव के होंठ हिले।
देवराज चौहान ने अपने होंठ और भी सख्ती के साथ भींच लिये।
“ती-तीन सौ दो।” महादेव के होंठ जरा से खुले। मध्यम-सी आवाज निकली और इसके साथ ही उसकी सांसें रुक गई।
“महादेव, क्या तीन सौ दो? मैं समझा नहीं तुम...।” देवराज चौहान के भिंचे होंठों से निकला।
लेकिन अगले ही पल समझ गया कि महादेव अब नहीं रहा। वो मर चुका है। देवराज चौहान के चेहरे पर पत्थर की कठोरता जैसे भाव आ गये। उसने आसपास निगाहें दौड़ाई। भीड़ बढ़ती जा रही थी। महादेव के शरीर को इसी तरह छोड़कर जाना उसके लिये मजबूरी बन गई थी। पुलिस अब किसी भी वक्त आ सकती थी और उसके देवराज चौहान होने की पहचान होते ही, सिर पर मुसीबतों का पहाड़ टूट सकता था।
महादेव की खुली आंखों को देवराज चौहान ने बंद किया और उठ खड़ा हुआ। भीड़ की तरफ निगाह मारी। वह जानता था कि महादेव की जान लेने वाला, इसी भीड़ में मौजूद है, परन्तु पहचाना नहीं जा सकता। चेहरे पर कठोरता समेटे देवराज चौहान तेज कदमों से सड़क की तरफ बढ़ गया। जिसके पार पार्किंग में उसकी कार खड़ी थी। किसी ने भी उसे रोकने की चेष्टा नहीं की।
देवराज चौहान के मस्तिष्क में इस वक्त सिर्फ दो ही बातें थीं।
उसकी बांहों में महादेव की मौत और तीन सौ दो?
क्या कहना चाहता था महादेव?
☐☐☐
जगमोहन ने जब बंगले में प्रवेश किया तो देवराज चौहान को सोफे पर बैठा पाया। दोनों टांगें सामने मौजूद सेंटर टेबल पर रखी हुई थी। उंगलियों में फंसी सिगरेट से वह कश ले रहा था।
जगमोहन ने एक ही नजर में पहचाना कि देवराज चौहान गुस्से से जल रहा है। जगमोहन मन ही मन सतर्क हुआ और करीब पहुंचा।
“थापर से मिले?” देवराज चौहान ने पूछा।
“हां।” जगमोहन ने गहरी निगाहों से उसे देखा –“क्या बात है? गुस्से में हो।”
जगमोहन को देखते, देवराज चौहान ने कश लिया।
“महादेव को गोली मारकर उसकी जान ले ली गई।”
“क्या कह रहे हो?” जगमोहन चिंहुक उठा।
“महादेव मेरे से बात कर रहा था, जब उसे गोली मारी गई। मेरी बांहों में उसने दम तोड़ा। वहां भीड़ थी, गोली मारने वालों को, मैं नहीं देख पाया।” देवराज चौहान के दांत भिंच गये –“वो मर गया। मैं उसके लिये कुछ नहीं कर पाया, क्योंकि वहां पुलिस कभी भी आ सकती थी। उसके शरीर को छोड़कर आना पड़ा।”
जगमोहन की हालत अजीब-सी हो रही थी। महादेव का मरना उसे हजम नहीं हो रहा था।
“यह सब हुआ कैसे?”
“महादेव जब मुझसे मिला तो, वो पहले ही कुछ डरा हुआ था। बोला कल रात से मैं उन लोगों से बचता फिर रहा हूं। मेरा ध्यान ही उसे सुबह आया कि –।”
“किन लोगों से बचता फिर रहा था?” जगमोहन के चेहरे पर कठोरता उभरी।
“वो बता नहीं पाया। उसे कुछ भी कहने का मौका नहीं मिला और मारा गया।”
“ओह –!”
“मरने से ठीक पहले उसने सिर्फ ‘तीन सौ दो’ कहा। शायद तब वो असल मामला बताने जा रहा था परन्तु सांसों ने साथ नहीं दिया। वो कुछ भी बता नहीं पाया।”
देवराज चौहान और जगमोहन एक-दूसरे को देखने लगे।
“तीन सौ दो का क्या मतलब?” जगमोहन के माथे पर बल पड़े थे।
“कह नहीं सकता। लेकिन यह किसी चीज का नम्बर है। जिसके बारे में महादेव कुछ जान गया था और उसे मारने वाले लोग नहीं चाहते थे कि कोई ‘तीन सौ दो’ के बारे में जाने। यही वजह रही कि वो महादेव के पीछे पड़ गये और अंत में वो उसकी जान लेकर ही रहे। तब मेरे बस में कुछ नहीं था। मैं उसे नहीं बचा सका।” कहते-कहते देवराज चौहान के चेहरे पर खतरनाक भाव नजर आने लगे थे।
“यानि कि महादेव जिस मामले के बारे में बताना चाहता था, वे उसकी मौत के साथ ही खत्म हो गया।” जगमोहन बोला।
“महादेव की जान अवश्य चली गई।” देवराज चौहान की आवाज में सुलझन थी –“लेकिन मामला खत्म नहीं हुआ। वो तो अब शुरू हुआ है।”
जगमोहन की निगाह, देवराज चौहान के कठोर चेहरे पर जा टिकी।
“मैं समझा नहीं –।”
“तीन सौ दो, क्या है? किस चीज का नम्बर है? मुझे इस बात से कोई वास्ता नहीं, लेकिन जो लोग तीन सौ दो के बारे में जानते है, इससे वास्ता रखते हैं, वो ही महादेव के हत्यारे हैं और महादेव की हत्या मेरी बांहों में हुई है। ऐसे में मेरा फर्ज बनता है कि मैं महादेव के हत्यारे को सजा दूं। और महादेव के हत्यारे तक तभी पहुंच सकता हूं, जब तीन सौ दो नम्बर की हकीकत के बारे में जानूं, क्योंकि हत्यारे का सम्बन्ध तीन सौ दो नम्बर से है।”
जगमोहन ने सहमति से सिर हिलाया। चेहरे पर गम्भीरता थी।
“तीन सौ दो नम्बर के बारे में कैसे मालूम किया जाये?”
“शुरूआत महादेव से ही होगी।” देवराज चौहान ने दांत भींचकर कहा –“मेरा अभी खुले में जाना ठीक नहीं, क्योंकि बहुत-से लोगों ने महादेव को मेरी बांहों में दम तोड़ते देखा है और उसके मरने के बाद मैं वहां से चला आया। मुझे देखने वालों ने पुलिस को मेरा हुलिया बताया होगा। ताजा-ताजा हुलिया सुने पुलिस वाले मुझे देखकर पहचान सकते हैं। और मैं बेवजह वाले पुलिस के झंझट से दूर रहना चाहता हूं।”
जगमोहन, देवराज चौहान को देखता रहा।
“महादेव ने कहा था कि वो बीती रात से जान बचाता फिर रहा है।”
“हाँ।”
“तो मालूम करो महादेव किन-किन लोगों में बैठता थ। किन से मिलता था और इन दिनों क्या कर रहा था। खासतौर से यह मालूम करो कि कल रात वो कहां था।” देवराज चौहान ने भिंचे स्वर में कहा।
जगमोहन ने समझाने वाले ढंग से सिर हिलाया।
“कहां से शुरूआत करोगे?”
“महादेव के घर के आस-पास से ही। इस बारे में पहली खबर तो वहीं से मिलेगी।” जगमोहन ने कहा।
“अगर महादेव के घर पुलिस पहुंच चुकी हो तो, अभी पूछताछ मत करना।” देवराज चौहान बोला।
जगमोहन, बंगले से बाहर निकल गया।
देवराज चौहान उठा और बेचैनी से वहां टहलने लगा। महादेव की मौत को वह बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था। खास वजह यह थी कि उसके सामने महादेव को गोली मारी गई। उसकी बांहों में वो मरा।
तभी फोन की बेल बजी।
देवराज चौहान ने रिसीवर उठाया।
दूसरी तरफ सोहनलाल था।
“महादेव के बारे में सुना।” सोहनलाल की आवाज कानों में पड़ी –“किसी ने माहिम रेलवे स्टेशन के बाहर उसे गोली मार दी। वो मर गया है। ये एक-दो घण्टे पहले की बात है।”
देवराज चौहान के चेहरे पर कठोरता आ गई।
“उसके मरने के बारे में तुम्हें किसने बताया?”
“अभी दस मिनट पहले, किसी ने बताया था।” सोहनलाल की आवाज आई –“कल वो मुझे मिला था।”
“कौन–महादेव?”
“हां।”
देवराज चौहान मन ही मन सतर्क हुआ।
“कहां?”
“चैम्बूर में –वहां –।”
“उसके साथ क्या बात हुई?” देवराज चौहान ने उसकी बात काटकर पूछा।
“बात हो ही नहीं पाई। सड़क पर ही आमना-सामना हुआ। उसने मुझे कोई भाव नहीं दिया। मेरी तरफ देखकर सिर्फ मुस्कराया था। मैं समझ गया कि वो किसी फेर में है। क्योंकि तब उसके साथ कोई खूबसूरत युवती थी। मैंने भी उसे रोकने की कोशिश नहीं की। वो अपने रास्ते लग गया और मैं अपने रास्ते –।”
देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ चुकी थी।
“ये कितने बजे की बात है?”
“दोपहर का वक्त होगा। एक-दो-तीन के बीच का । तुम क्यों पूछ रहे हो?”
“इस वक्त क्या कर रहे हो?” देवराज चौहान ने कहा।
“खास कुछ नहीं। मैं –।”
“मेरे पास आओ। कुछ बात करनी है।” कहने के साथ ही देवराज चौहान ने रिसीवर रख दिया।
☐☐☐
“समझे।” देवराज चौहान की कठोर निगाह, सोहनलाल के चेहरे पर थी –“महादेव ने मेरी ही बांहों में दम तोड़ा था।”
सोहनलाल सब-कुछ जान चुका था। चेहरे पर गम्भीरता लिए, उसने गोली वाली सिगरेट निकाली और सुलगाकर कश लिया। निगाहें देवराज चौहान पर जा टिकीं।
“महादेव के मरने का वास्तव में अफसोस हुआ, क्योंकि वो अच्छा बंदा था। कई बार हमारे साथ काम कर चुका था।”
“तुमने उस युवती को अच्छी तरह देखा था, जिसके साथ कल महादेव था?” देवराज चौहान ने पूछा।
“हां। बहुत अच्छी तरह देखा था। क्योंकि उसका और महादेव का कोई मेल ही नहीं था। वो खूबसूरत थी। जबकि महादेव उसके साथ चलता, बेहद गरीब इंसान लग रहा था। वो लड़की पैसे वाली लग रही थी। मेरे ख्याल से महादेव नोटों के फेर में ही उसके साथ लगा होगा।” सोहनलाल बोला।
“तुम्हारा मतलब कि युवती का कोई काम करके, महादेव उससे नोट वसूलना चाहता होगा।”
“हां।”
“मैं नहीं मानता।”
“क्यों?”
“महादेव को मुद्दत बाद आज ही मैंने देखा है। वो बहुत कमजोर हो चुका है। इस काबिल नजर नहीं आया कि वो कोई काम कर सके या फिर कोई उसे काम करने को कहे। काम कराने वाले को उससे बढ़िया सेहत वाले और फुर्तीले लोग मिल सकते हैं तो वह युवती, मेरे ख्याल में महादेव से कोई काम नहीं करायेगी।”
“मैं समझा नहीं कि तुम कहना क्या चाहते हो?”
“यही कि किसी खास वजह के तहत महादेव उस युवती के साथ था।” देवराज चौहान ने शब्दों पर जोर देकर कहा।
सोहनलाल होंठ सिकोड़े, कई पलों तक सोचभरी निगाहों से देवराज चौहान को देखता रहा।
“मेरे ख्याल में उसी वजह के कारण ही महादेव की जान गई।”
“और वो वजह क्या थी?” सोहनलाल ने पूछा।
“अभी इस बारे में कुछ नहीं पता कि महादेव क्या कर रहा था।” देवराज चौहान के होंठ भिंच गये –“लेकिन यह तो पक्के तौर पर तय है कि महादेव किसी बड़े मामले में हाथ दे बैठा था और उस मामले का ताल्लुक किसी ऐसी चीज से था जो तीन सौ दो नम्बर से वास्ता रखती है। क्योंकि मरते वक्त, उसके मुंह से आखिरी शब्द यही निकले थे–तीन सौ दो।”
“यह तीन सौ दो क्या हो सकता है?”
“मैंने तुम्हें दो बातों के लिये बुलाया है।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा।
“क्या?”
“एक तो यह कि कल महादेव के साथ वो युवती कौन थी। अगर उसके बारे में मालूम हो जाये तो काफी हद तक मामला खुलकर सामने आ सकता है।” देवराज चौहान ने सोचभरे स्वर में कहा।
“यह काम इतना आसान नहीं।” सोहनलाल ने होंठ सिकोड़कर कहा।
“क्यों?”
“यह ठीक है कि मैं उस युवती को देखते ही पहचान लूंगा। लेकिन वो मिलेगी कहां? मुम्बई जैसे शहर में अपनी बीवी खो जाये तो उसे नहीं ढूंढा जा सकता। वो तो मेरे लिये बिल्कुल अंजान युवती थी। वो नहीं मिलने वाली।”
“उस युवती तक एक ही रास्ते से, पहुंच सकते हो।”
“कैसा रास्ता?”
“महादेव के बारे में जानना शुरू करो कि इन दिनों वो किस काम में था। ऐसे में हो सकता है कि वो युवती कहीं नजर आ जाये। साथ ही साथ ये भी जानने की कोशिश करो कि तीन सौ दो का क्या मतलब है। यह कौन-सा नम्बर है। तीन सौ दो कहकर, महादेव क्या बताना चाहता था।”
सोहनलाल ने सोचभरे अन्दाज में सिर हिलाया।
“कोशिश करता हूं।”
“मुझे महादेव के हत्यारे के अलावा और किसी चीज में दिलचस्पी नहीं है और तीन सौ दो के बारे में जाने बिना, महादेव के हत्यारे तक नहीं पहुंचा जा सकता।” देवराज चौहान ने अपने शब्दों पर जोर देकर कहा और उठकर वहां से सामने नजर आ रहे कमरे की तरफ बढ़ गया।
जब वापस आया तो हाथ में अखबार का छोटा-सा पैकेट था।
“ये पचास हजार रुपये हैं, भागदौड़ में खर्चे के लिए। खत्म हो जायें तो और ले लेना।”
“इसकी क्या जरूरत थी।” कहते हुए सोहनलाल ने पैकेट थामा और विदा लेकर बाहर निकल गया।
देवराज चौहान सोचभरे अंदाज में कई पलों तक खड़ा रहा। फिर मन ही मन तय किया कि पहचाने जाने की सोचकर बैठे रहना ठीक नहीं। महादेव के बारे में उसे भी छानबीन करनी चाहिये । इस सोच के साथ ही बाहर निकला और पोर्च में खड़ी कार, बाहर निकालता चला गया।
☐☐☐
दस मिनट बाद देवराज चौहान की कार भीड़ वाली सड़क से गुजर रही थी कि तभी देवराज चौहान को महसूस हुआ कि उसके कान के पास से अंगारा, गर्म हवा देता निकला है। दूसरे ही क्षण वो अंगारा विंडशील्ड में छेद बनाता हुआ बाहर कहीं खो गया। गोली की आवाज नहीं गूंजी थी।
वो साइलेंसर लगी रिवॉल्वर से फायर था।
उसका निशाना लिया गया था। स्टेयरिंग विंडो से गोली ने भीतर प्रवेश किया। खिड़की का शीशा पहले से ही नीचे था। देवराज चौहान चौंका। सतर्क हुआ। गर्दन फौरन घूमी और तब तक रिवॉल्वर निकलकर हाथ में आ चुकी थी। एक हाथ स्टेयरिंग पर था।
दांयीं तरफ वो काली कार थी।
उसमें पांच आदमी ठूंसे हुए ढंग से बैठे हुए थे। देवराज चौहान को अपनी तरफ देखते पाकर, उनमें से दो ने उसे रिवॉल्वरों की झलक दिखाई।
देवराज चौहान समझ गया कि रिवॉल्वरें उन दो के ही नहीं, अन्यों के पास भी होनी चाहिये। क्योंकि उनके चेहरों से ये जाहिर हो रहा था कि मरना-मारना उनका काम है। लेकिन ये लोग हैं कौन? उसकी जान क्यों लेना चाहते हैं? गोली चलाने वाले का निशाना बढ़िया था। मामूली-सा ही फर्क रह गया था उसका सिर उड़ने में। देवराज चौहान ने उन चेहरों को पहले कभी नहीं देखा था।
देवराज चौहान ने फौरन हिसाब लगाया कि अपनी रिवॉल्वर का इस्तेमाल इन लोगों पर करता है तो खास फायदा नहीं होने वाला। दो-तीन को खत्म भी कर देता तो चौथा-पांचवां तब तक उसका निशाना ले चुका होगा। ड्राईवर के अलावा चारों की खूनी निगाहें उस पर थी।
अगले ही पल देवराज चौहान ने महसूस किया कि अब वो उसका निशाना नहीं ले रहे।
देवराज चौहान ने अपना ध्यान ड्राईविंग पर लगा दिया। रिवॉल्वर गोदी में रख ली। इसके साथ ही चेहरे पर कठोरता लिए, उनकी हरकतों पर भी निगाह रख रहा था। वो कार उसकी कार के बराबर आने की कोशिश कर रही थी। जाहिर था कि कोई और बात थी। दूसरी गोली उस पर चलानी होती तो अब तक चल चुकी होती।
देवराज चौहान ने कार की स्पीड कम की।
उस कार को बगल से पास आने दिया।
देवराज चौहान ने तसल्ली से काली कार में बैठे उन पांचों चेहरों को देखा।
“अपनी जान की खैरियत चाहते हो तो आगे जाकर खाली जगह मिलते ही, कार रोको। तुमसे बात करनी है। अगर हमारी बात नहीं मानी तो इस बार गोली तुम्हारे सिर पर लगेगी।” उस कार में से एक ने चिल्लाकर कहा।
देवराज चौहान ने शब्दों को सुना और खामोशी से सिर हिला दिया।
ट्रैफिक में कारें आगे बढ़ती रहीं। काली कार अब ठीक उसके पीछे हो गई थी। बैक मिरर से देवराज चौहान काली कार पर निगाह रखे था। नजरें सामने भी रखीं। वह इन लोगों के बारे में जानना चाहता था। परन्तु उससे भी ज्यादा जरूरी था, इन लोगों से पीछा छुड़ाना। इस वक्त इनका मुकाबला करना ठीक नहीं था।
तभी आगे लाल बत्ती आ गई।
देवराज चौहान ने कार धीमी की। आसपास के अन्य वाहन भी धीमे होने लगे। इसी दौरान उसके और काली कार के बीच एक अन्य कार आ गई थी। इससे बढ़िया मौका फिर नहीं मिलना था। देवराज चौहान की कार सबसे आगे थी। लाल बत्ती पर। सामने अन्य साइड का ट्रैफिक गुजर रहा था। किसी बात की परवाह ना करते हुए देवराज चौहान ने दांत भींचकर कार आगे बढ़ा दी। सामने से गुजरते ट्रैफिक में से किसी प्रकार निकाल ले गया। कई वाहनों को उसकी वजह से ब्रेक लगाने पड़े।
देवराज चौहान कार को भगाता ले गया।
काली कार उसके पीछे नहीं आ सकती थी, क्योंकि उसके आगे, दूसरी कार खड़ी थी। लाल बत्ती को पार कर आगे जाकर, देवराज चौहान ने रास्ता बदल लिया; ताकि काली कार फिर उसे ना पा सके। विंडशील्ड टूट चुकी थी। गोली का छेद नजर आ रहा था। उसके आसपास क्रेक था। शीशा फौरन बदलवा लेना जरुरी था। कोई भी देखकर समझ सकता था कि शीशे में वो गोली का छेद है।
देवराज चौहान ने गोदी में पड़ी रिवॉल्वर उठाकर, दस्ते से विंडशील्ड का शीशा तोड़ा। गोली का निशान अब गायब हो गया। रिवॉल्वर को वापस जेब में रखा और बैक मिरर में देखा। पीछे अब कोई भी काली कार नजर नहीं आ रही थी।
देवराज चौहान के सामने सबसे बड़ा सवाल यह था कि वो काली कार वाले कौन थे? क्यों उसकी जान लेना चाहते थे? जबकि इन दिनों वह कोई काम नहीं कर रहा था। आज के दिन में यह दूसरी खास बात थी। पहले उसके सामने महादेव को गोली मारकर खत्म कर दिया गया और अब उसके साथ भी कुछ ऐसा ही करने जा रहे थे। मतलब कि यह मामला महादेव से वास्ता रखता हो सकता है।
लेकिन उन लोगों ने कहां से तलाश किया? कहां पहचाना?
इसका जवाब देवराज चौहान के पास एक ही था। महादेव की लाश को जब छोड़कर माहिम रेलवे स्टेशन से निकला तो, महादेव के हत्यारे ने उसका पीछा करके, बंगले के बारे में जाना और अब जब वो बाहर निकला तो, महादेव का हत्यारा और उसके साथी पीछे लग गये।
क्यों?
वो लोग सोच रहे हैं कि महादेव मरने से पहले वो बात उसे बता गया। जिसे छिपाने के लिये उन्होंने महादेव की हत्या की। इसलिये उसे भी खत्म करना चाहते हैं?
मतलब कि वो लोग फिर मिलेंगे। क्योंकि वे उसके बंगले से वाकिफ हो चुके हैं।
उसे सावधान रहना होगा। कहीं भी वे उसे निशाना बनाने की कोशिश कर सकते हैं। देवराज चौहान के लिये इसमें फायदे की बात ये थी कि वे लोग उसके पास करीब ही रहेंगे, जिनके बारे में वो जानना चाहता है। ऐसे में वो लोग कभी तो उसके हत्थे चढ़ेंगे।
कार का शीशा नया लगवाकर, रास्ते भर में सावधान रहकर वापस बंगले पर जा पहुंचा। बंगले के आसपास तो ऐसा कोई नजर नहीं आया कि शक हो, जो निगरानी कर रहा हो। कार को पोर्च में छोड़कर जब उसने बंगले के हॉल में प्रवेश किया, फोन की घण्टी को बजते पाया।
“हैलो।” देवराज चौहान ने रिसीवर उठाया।
“चालाकी से भागकर, बच निकले।” उसके कानों में शांत सपाट स्वर पड़ा।
देवराज चौहान चौंका। माथे पर बल उभरे।
“क्या मतलब?”
“इतने भोले तो नहीं कि मतलब न समझ सको।” वही स्वर, वही अंदाज –“वैसे मैं काली कार की बात कर रहा हूं।”
“तुम थे उसमें?” देवराज चौहान की आवाज में किसी तरह का भाव नहीं था।
“नहीं। मेरे आदमी थे।”
“तुम कौन हो?”
“ये फालतू का सवाल है।”
“तो काम का सवाल क्या है?” देवराज चौहान के होंठ भिंच गये।
“महादेव ने, मरने से पहले तुम्हें क्या बताया ?” शांत, ठण्डा स्वर कानों में पड़ा।
देवराज चौहान के चेहरे पर खतरनाक पाव उभर आये।
“तुमने महादेव को गोली मारी थी?” देवराज चौहान ने एक-एक शब्द चबाकर कहा।
“मैंने मारी या मेरे आदमियों ने, क्या फर्क पड़ता है।”
“बहुत फर्क पड़ता है। तुम्हारे कहने पर उसे गोली मारी गई?” देवराज चौहान पूर्ववतः लहजे में बोला।
“हां। और मेरे कहने पर अब तुम्हें गोली मारी जायेगी। मेरे सवालों का जवाब दे दो तो शायद बच जाओ।”
देवराज चौहान के चेहरे पर जलजले के भाव उभरे, परन्तु स्वर पर काबू ही रखा।
“क्या जानना चाहते हो?” देवराज चौहान मालूम करना चाहता था कि वो क्या पूछना चाहता है।
“महादेव, तुम्हारा क्या लगता था?”
“दोस्त।”
“उसने तुम्हें माहिम रेलवे स्टेशन पर मिलने के लिये बुलाया?”
“हाँ।”
“और वहां, मरने से पहले उसने तुम्हें क्या बताया?”
“सब-कुछ।” देवराज चौहान का दिमाग तेजी से चल रहा था।
“क्या, सब-कुछ?” इस बार शांत-सपाट आवाज में कठोरता आ गई थी।
“सब-कुछ में, सब-कुछ आता है।” देवराज चौहान का स्वर तीखा हो गया।
“उस सब-कुछ का, कुछ बताओ।”
“तीन सौ दो।” देवराज चौहान ने अंधेरे में तीर छोड़ा।
“ओह!” शांत-सपाट आवाज में खतरनाक भाव आ गये थे –“जिस बात का डर था, वही हुआ। मरते-मरते वो बता गया तुम्हें सब-कुछ। हमने इसलिये मुंह बंद किया उसका कि, वो कुछ बोल न सके। अब तुम क्या चाहते हो तीन सौ दो के बारे में जानने के बाद?”
तीर निशाने पर लग चुका था।
“मैंने क्या करना है।”
“तुम इतने सीधे नहीं हो। यह तभी मालूम हो गया, जब तुम मेरे आदमियों की निगाहों से ओझल हो गये। वैसे भी महादेव के दोस्त हो तो महादेव वाले गुण तो तुममें होंगे ही। लेकिन मैं तुम्हें जीने का मौका देना चाहता हूं।”
“जीने का मौका?” देवराज चौहान के दांत भिंच गये।
“हां। महादेव अपनी बेवकूफी की वजहों से मारा गया। तुम मुझे समझदार लगते हो।”
“अपनी समझदारी का सबूत देने के लिए मुझे क्या करना होगा?” देवराज चौहान की आवाज में कड़वापन आ गया।
“इस सारे मामले को भूल जाओ। तीन सौ दो को तो हमेशा के लिए भूल जाओ, वरना तुम्हारी हालत महादेव जैसी ही होगी।”
“कह लिया?” देवराज चौहान के होंठों से गुर्राहट निकली।
“हाँ।”
“अब कान खोलकर सुनो, तुम जो भी हो।” देवराज चौहान ने दरिन्दगीभरे स्वर में कहा –“मैंने जो करना है वो करूंगा। तुम मुझे रोक नहीं सकते। बहुत जल्द मैं तुम तक पहुंचने वाला हूं। अपनी सुरक्षा का बढ़िया से बढ़िया इन्तजाम कर लो, ताकि मरते वक्त तुम्हें ये मलाल न रहे कि, अपने बचाव में कुछ कर न सके।”
“मतलब कि तुम्हें मौत का खौफ नहीं?” कानों में पड़ने वाली आवाज में हिंसक भाव आ गये थे।
“उसी खौफ की तस्वीर तुम्हें दिखा रहा हूं। जिसे ठीक से तुम समझ नहीं पा रहे। रही बात तीन सौ दो की तो, यह आने वाला वक्त बतायेगा कि क्या होता है?”
“मौत का इन्तजार करो अब –।” इसके साथ ही दूसरी तरफ से लाईन काट दी गई।
देवराज चौहान ने रिसीवर रखा। चेहरा कठोर हुआ पड़ा था। देवराज चौहान जानता था कि ये जो भी है, अब हाथ धोकर उसके पीछे पड़ जायेगा। क्योंकि उसके मुंह से तीन सौ दो सुनकर, वो बुरी तरह बौखला गया है। और वो नहीं चाहता कि तीन सौ दो के बारे में कोई जाने। क्या है ये तीन सौ दो?
देवराज चौहान को लगने लगा जैसे इस तीन सौ दो के बारे में जानना बहुत जरूरी हो गया है। बहरहाल अब सावधानी की जरूरत है। उसे खत्म करने की भरसक चेष्टा की जायेगी। और उसे बचना होगा।
☐☐☐
जगमोहन जब महादेव के एक कमरे वाले घर पर पहुंचा तो दरवाजा बंद पाया। बाहर ताला लगा हुआ था। स्पष्ट था कि अभी पुलिस महादेव की लाश की शिनाख्त नहीं कर पाई, वरना पूछताछ के लिये पुलिस अब तक यहां पहुंची होती। ताले पर अपना ताला भी ठोक गई होती।
जगमोहन ने आसपास देखा। गली में दो दरवाजों को छोड़कर तीसरा दरवाजा खुला नजर आया तो जगमोहन वहां जा पहुंचा। खुले दरवाजे को थपथपाया तो बीस बरस का लड़का सामने आया।
“किससे मिलना है?” लड़के के बोलने का ढंग ही शायद अक्खड़ था।
“मैं, उस कमरे वाले से मिलने आया था।” जगमोहन ने हाथ से इशारा किया –“महादेव नाम है उसका। वहां ताला लगा हुआ है। तुम बता सकते हो वह कहां मिलेगा या कब गया था?”
लड़के के चेहरे पर उखड़ेपन के भाव गहरे हो गये।
“बुढ़ापे में मजे ले रहा है।”
“क्या मतलब?”
“बीते तीन-चार दिनों से साला खूबसूरत छोकरी को साथ रखे हुए है। दोनों कमरे में जाते ही, दरवाजा भीतर से बंद कर लेते हैं। जान तो है नहीं, मालूम नहीं उसके साथ क्या अचार डालता होगा।”
“तुम इतने नाराज क्यों हो रहे हो?” जगमोहन ने गहरी निगाहों से देखा।
“कल दोपहर को उसके साथ झगड़ा हो गया था मेरा।” उसने उसी ढंग से कहा।
“क्यों?”
“छोकरी के साथ घर से निकल रहा था तो थोड़ा-सा मजाक कर लिया छोकरी से। बस, वो साला महादेव उबल पड़ा, जैसे नया-नया जवान हुआ हो। लोगों ने बचा लिया, वरना बहुत मार खाता मेरे हाथों।”
जगमोहन ने समझने वाले ढंग से सिर हिलाया।
“तीन-चार दिन से महादेव उस लड़की के साथ था?”
“हां।” लड़का व्यंग्य से बोला –“हद होती है मेल-मिलाप की। वो सूखा-सा बूढ़ा और वो दस को पछाड़ने वाली घोड़ी। मेरे जैसे के साथ होती तो, देखने में तकलीफ नहीं होती।”
“बात तो तुम्हारी सही है।” जगमोहन ने फौरन कहा –“उस युवती का हुलिया बताना।”
“हुलिया क्या होता है वो तो बला की खूबसूरत थी।” लड़का अजीब-से स्वर में कह उठा –“देखो से लार टपकती थी। न देखो तो सपनों में आकर, छाती और –।”
“लम्बी थी?” जगमोहन ने उसे ख्यालों की दुनिया से बाहर निकाला।
“ठीक-ठीक थी। खूबसूरत इतनी कि सामने वाले की हाय-हाय करा देती थी। मेरी तो कितनी बार हो चुकी है।”
“क्या पहनती थी?”
“कमीज-सलवार । लम्बे सिल्की बाल, कंधों तक आकर, लहराते रहते थे। छरहरा बदन। जब मुस्कराती तो गालों में गड्ढे पड़ जाते। कानों में टॉप्स डाले रखती थी। गले में सोने की चेन। ऊंची एड़ी के सैंडल पहनती थी। लेकिन बहुत सादे ढंग से चलती थी। उसे अपनी खूबसूरती पर जरा भी घमण्ड नहीं था।”
“बहुत बारीकी से देखा है तुमने उसे।”
“देखने के अलावा और कर भी क्या सकता था।” लड़के ने बुरा-सा मुंह बनाया।
“आखिरी बार उसे कब देखा?”
“कल ही। महादेव के साथ जा रही थी। तभी मेरा झगड़ा हुआ। उसके बाद रात को नहीं लौटे। मैं तो उसकी राह में पलकें बिछाये रहा। सोचा एक नजर जी भरकर देख लें, तो चैन की नींद आयेगी।”
“महादेव भी उसके बाद नहीं लौटा?”
“नहीं। दोनों में से कोई भी नहीं लौटा। आज भी कहीं नहीं गया कि उस बम को देख सकूँ।”
“कोई और बात बता सकते हो, उनके बारे में?”
“नहीं।”
“महादेव से और कौन-कौन मिलने आता था?”
“मैं तो सिर्फ अपने काम की बातों से मतलब रखता हूं। और कोई आता भी हो तो मैं नहीं जानता।” लड़के ने उसे देखा –“तुम कौन हो?”
“मैं भी उसी लड़की को ढूंढ रहा हूं।” जगमोहन ने बात समाप्त करते हुए कहा।
“क्यों?”
“वो मुझे भी अच्छी लगती थी।” कहने के साथ ही जगमोहन आगे बढ़ गया।
जगमोहन के लिये यह नई खबर थी कि महादेव के साथ तीन-चार दिन से एक खूबसूरत लड़की रह रही थी। और कल जब वो एक साथ यहाँ से निकले तो न तो महादेव लौटा और न ही लड़की और आज महादेव को किसी ने गोली मारकर खत्म कर दिया।
गली के कोने में पान वाले की दुकान नजर आई तो जगमोहन वहां पहुंचा। महादेव सिगरेट पीता था। उसे पूरा विश्वास था कि वो महादेव को जरूर जानता होगा।
“महादेव आज आया?” जगमोहन ने छूटते ही पूछा।
“नहीं। कल आया था।” पान वाले ने लापरवाही से कहा –“घर नहीं है क्या?”
“नहीं।”
“पहले तो अक्सर घर ही मिलता था। अब तो हवा में उड़ रहा है छोकरी के साथ।” पानवाला मुस्कराया।
जगमोहन होंठ सिकोड़कर मुस्कराया।
“कहां से मारी महादेव ने छोकरी?” जगमोहन ने उसे कुरेदा।
“मालूम नहीं। जब से छोकरी साथ है, महादेव अकेला नहीं मिला। मिला होता तो पूछता।” पान वाले ने हंसकर कहा –“मुझे तो वो छोकरी ही सिरे से पागल लगती है।”
“क्यों?”
“महादेव में ऐसा क्या है जो उसके साथ चिपकी फिर रही है। मर्दों की कोई कमी है क्या।”
“उससे बढ़िया तो तुम हो?” जगमोहन ने मुस्कराकर उसे हवा दी।
“कोई शक है क्या?”
“जरा भी नहीं । वैसे महादेव को तुमने आखिरी बार कब देखा?” जगमोहन ने पूछा।
“कल दोपहर को। पहले उधर रहने वाले छोकरे से उसने झगड़ा किया। सुना है छोकरे ने लड़की को कुछ कह दिया था। उसके बाद जाते वक्त मेरे से सिगरेट के दो पैकेट लेता गया था। आठ सौ रुपया हो गया। अभी तक चुकता नहीं किया। सोचा था बोलूंगा उससे लेकिन लड़की को साथ पाकर मैंने कुछ नहीं कहा।”
“महादेव से मिलने और कौन-कौन आता था?”
“मुझे तो ध्यान नहीं, मैंने उसे किसी और के साथ देखा हो। वो तो अकेला ही जिन्दगी बिता रहा है। सुना है उसे खून की कोई बीमारी है। डॉक्टर जवाब दे चुके हैं।”
“यहां से महादेव कहां जाता था, कुछ पता है तुम्हें?”
“मुझे कहां पता होगा। लेकिन इतना मालूम है कि जब से वो छोकरी उसके साथ रहने लगी है, तब से उसकी जेब में नोट आ गये हैं। उधर स्टैंड से टैक्सी पकड़कर जाता है रोज।”
“टैक्सी?”
“हां।”
“टैक्सी स्टैंड कहां है?”
“उस तरफ। जरा-सा आगे जाकर।”
☐☐☐
जगमोहन टैक्सी स्टैंड पर पहुंचा।
“कहां जाना है बाबूजी?”
पेड़ की छाया की नीचे, चबूतरे पर बैठे ड्राइवरों में से एक ने पूछा। वक्त बिताने के लिये, पांच-छः टैक्सी ड्राईवर ताश खेल रहे थे।
जगमोहन उनके पास चबूतरे पर बैठा और बोला।
“जाना तो कहीं नहीं। कल दिन में पचास-पचपन बरस के आदमी ने कहीं जाने के लिए टैक्सी ली थी। उसके साथ खूबसूरत लड़की भी थी। पता करना है कि वो कहां गये। उन दोनों को कहां छोड़ा?”
“आप कौन हैं?” एक ने पूछा।
“मैं उनका रिश्तेदार हूं। कल से वो मिल नहीं रहे। मुझे तो बहुत चिन्ता हो रही है।”
एक ने दूसरे को देखा।
“कल कोई ऐसी सवारी आई थी?”
“हां उस्ताद । बारह-एक का वक्त होगा। कशमीरा लेकर गया था उन्हें।” दूसरे ने जवाब दिया।
“बुला कशमीरा को।”
“उस्ताद, वो तो सामने वाली दुकान पर पकौड़े खाने गया है। बहुत बुरी तरह उस पर सवार है, पकौड़े खाने का नशा।” कहने के साथ ही वो हंस पड़ा।
“साहब जी को कशमीरा के पास ले जा। उससे बात कर लेंगे।”
वो जगमोहन को सामने वाली दुकान पर मौजूद कशमीरा के पास छोड़ आया और कशमीरा को बता भी दिया कि क्या मामला है।
“पकौड़े खाओगे बाऊजी?”
“नहीं। मैं जानना चाहता हूं कि तुम उन्हें कहां ले गये थे, कल?”
“चैम्बूर –।”
“चैम्बूर में कहां छोड़ा?”
“मार्किट के पास ही सड़क पर उन्होंने टैक्सी रुकवा ली थी।”
“वो मार्किट जो सरकारी फ्लैटों पास पड़ती है।”
“जी हां। वही मार्किट –।”
“उसके बाद वो कहां गये?”
“मैं क्या कहूं। मैंने तो किराया लिया और वहां से चल पड़ा। सवारी कहां जाती है। इससे हमें क्या मतलब?”
जगमोहन के चेहरे पर सोच के भाव उभरे।
“कुछ मालूम है सफर के दौरान वे आपस में क्या बात कर रहे थे?” जगमोहन ने पूछा।
“खास तो नहीं बता सकता। क्योंकि सवारियों की बातों पर ध्यान देने का कोई मतलब नहीं है मेरा। इतना मालूम है कि लड़की कुछ घबराई-सी थी और आदमी रह-रहकर उसे तसल्ली दे रहा था, कि वो सब ठीक कर देगा।” उसके बाद वो कुछ ऊंचे स्वर में बोला –“ओए, पालक के ढाई सौ ग्राम और ले आ।”
“उनके बीच हुई कोई और बात?”
“मैंने बोला बाऊजी! मैं सवारियों की बातों पर ध्यान नहीं देता।” वो चटनी वाली उंगली चाटते हुए बोला –“वो आदमी लड़की से बोला था कि सुरेश जोगेलकर से मिलकर सब ठीक हो जायेगा। वो मेरा पुराना यार है। कुछ ही देर में हम उसके पास पहुंच जायेंगे।”
इसके अलावा उससे कोई काम की बात मालूम नहीं हुई।
☐☐☐
जगमोहन चैम्बूर पहुंचा।
चैम्बूर की उसी मार्किट के सामने उसने कार रोकी। दो पल सोच भरी निगाहों से इधर-उधर देखता रहा। टैक्सी ड्राईवर के मुताबिक कल महादेव और लड़की ने यहीं टैक्सी छोड़ी थी और पैदल ही वे दोनों आगे बढ़ गये थे। यहां पर टैक्सी ड्राईवर के मुताबिक ही, सुरेश जोगेलकर से मिलने आये थे। महादेव ने कहा था कि वो उसका पुराना यार है। सब ठीक कर देगा।
महादेव किस चक्कर में था?
वो लड़की कौन थी, जिसे महादेव साथ लिए फिर रहा था। यकीनन वो खास मामला था, वरना महादेव की तबीयत ऐसी नहीं रहती थी कि भागदौड़ करता फिरे।
सुरेश जोगेलकर को इस इलाके में कहां तलाश करें? मात्र नाम के दम पर चैम्बूर जैसे इलाके में उसे नहीं तलाशा जा सकता। महादेव का कहना था कि वो उसका पुराना यार है। मतलब कि सुरेश जोगेलकर किसी न किसी रूप में गैरकानूनी धंधों से जुड़ा हुआ है। और ऐसे लोगों के लिये पूछताछ की सबसे बढ़िया जगह पान की दुकान होती है। क्योंकि वहां हर तरह के लोग आते हैं और हर तरह की बातें करते हैं। पानवालों के कान खुले रहते हैं और मुंह बंद रहता है।
जगमोहन ने पार्किंग तलाश करके कार पार्क की और पैदल ही आगे बढ़ गया। सड़क के दोनों तरफ दुकानें थीं। वो फुटपाथ पर चल रहा था और व्यस्त सड़क पर ट्रैफिक दौड़ रहा था।
कुछ आगे जाने पर दुकानों के बीच फंसी छोटी-सी पान की दुकान नजर आई। वहां एक-दो ग्राहक खड़े थे। जगमोहन वहां जा पहुंचा। पान वाले ने कोल्ड-ड्रिंक भी रखी हुई थी। जगमोहन ने एक कोक की बोतल खुलवाई और घूँट भरने लगा।
जब वहां मौजूद उसके दोनों ग्राहक चले गये तो जगमोहन ने पूछा।
“सुरेश जोगेलकर कहां रहता है? जानते हो उसे?”
पचास वर्षीय पान वाले ने गहरी निगाहों से उसे देखा।
“क्या काम है उससे?”
“मिलना है।” जगमोहन समझ गया कि वो जोगेलकर को जानता है।
“मेरी मानों तो फौरन यहां से चले जाइये।” पानवाला धीमे स्वर में बोला।
जगमोहन ने आंखें सिकोड़कर उसे देखा।
“क्यों?”
“दो घण्टे पहले, चार लोग अपना चेहरा ढांपे जोगेलकर के रेस्टोरेंट में आये और उसे गोलियों से भूनकर चले गये। किसी को नहीं पता। मारने वाले कौन थे? लेकिन मरने वाला जोगेलकर ही था।”
“तुम उसकी लाश देखकर आये हो?”
“मेरी दुकान पर पचास तरह के लोग आते हैं और पान मुंह में दबाकर सिगरेट सुलगाकर, आपस में अपनी-अपनी राय पेश करते है। ऐसे में मुझे किसी खबर को पाने के लिये कहीं जाना नहीं पड़ता। इस वक्त जोगेलकर के रेस्टोरेंट में पुलिस है। वहां जाओगे तो वो आपको भी पकड़कर बिठा लेंगे।”
जगमोहन समझ गया कि मामला गहरा होता जा रहा है। कल महादेव और उसके साथ की लड़की सुरेश जोगेलकर से मिले थे। पानवाले के मुताबिक दो घण्टे पहले जोगेलकर को मारा गया। जबकि महादेव को गोली लगे चार-पांच घण्टे हो चुके हैं।
तो क्या जोगेलकर को इसलिये मारा गया कि महादेव और वो लड़की उससे मिले थे?
“जोगेलकर क्या धंधा करता था।”
“बोला तो, रेस्टोरेंट था उसका। रेस्टोरैंट की आड़ में कई गलत काम करता था।”
जगमोहन को जब महसूस हुआ कि पान वाले से अब और कोई काम की बात नहीं मालूम होने वाली तो कोक के पैसे देकर वहां से चल पड़ा। महादेव और उसके साथ की लड़की किस काम में लगे हुए थे, यह जानने के लिये कोई दूसरा रास्ता तलाश करना होगा।
क्योंकि सुरेश जोगेलकर की मौत के साथ, आगे बढ़ने का यह रास्ता बंद हो गया था।
जगमोहन के सामने सबसे बड़ा सवाल था कि महादेव के साथ वो लड़की कौन थी?
☐☐☐
जगमोहन ने फोन करके देवराज चौहान को सब कुछ बताया।
“अगर सुरेश जोगेलकर जिन्दा मिल जाता तो शायद मालूम हो पाता कि महादेव किस मामले में हाथ डाले था या फिर वो लड़की कौन थी जो चार-पांच दिनों से उसके साथ रह रही थी।” जगमोहन ने कहा –“अब मेरे पास आगे बढ़ने का ऐसा कोई रास्ता नहीं है कि महादेव या उस लड़की की हरकतों की जानकारी पा सकूँ।”
“जगमोहन ! यह मामला बहुत गम्भीर है। सावधान रहना। हो सकता है कोई तुम पर नजर रखे हुए हो।”
“ऐसा क्यों?”
जवाब में देवराज चौहान ने बताया कि किस तरह उन लोगों ने उसकी जान लेने को चेष्टा की और फिर बाद में धमकी भरा फोन आया।
“ओह! इसका मतलब, वो लोग हर समय तुम पर नजर रखे हुए हैं।”
“हां। ऐसे में मेरा भागदौड़ करना ठीक नहीं।”
“लेकिन वे लोग बंगले को घेरकर, तुम्हें खत्म करने की चेष्टा भी कर सकते –।”
“इस बात की तुम फिक्र मत करो। ऐसे लोगों से निपटने के लिए बंगले में पूरा इन्तजाम है।” जगमोहन के कानों में देवराज चौहान का खतरनाक स्वर पड़ा –“तुम बंगले में आने की कोशिश नहीं करना। अगर तुम भी उन लोगों की निगाहों में आ गये तो फिर काम करने में दिक्कतें पेश आयेंगी। जरूरत पड़ने पर रात किसी होटल में बिता लेना। इस तरफ नहीं आना।”
“समझ गया। लेकिन यह नहीं समझ पा रहा हूं कि अब इस मामले में आगे क्या करूं?”
“तुमने बताया कि वो लड़की चार-पांच दिन से महादेव के कमरे में टिकी हुई थी।” देवराज चौहान की आवाज आई।
“हां। पूछताछ में यही बात सामने आई है।”
“पुलिस अभी तक महादेव के कमरे तक नहीं पहुंची?”
“जब मैं वहाँ गया था तो नहीं पहुंची थी। क्योंकि किसी को नहीं मालूम था कि महादेव अब नहीं रहा।”
“किसी तरह महादेव के कमरे की तलाशी लो। वो लड़की चार-पांच दिन से वहां थी तो हो सकता है वहां ऐसी कोई चीज मिल जाये, जिससे कि मालूम हो –वो कौन थी।” देवराज चौहान की आवाज उसके कानों में पड़ी।
“ठीक है। मैं महादेव के कमरे की तलाशी लेता हूं।”
“पुलिस से बचकर। अगर पुलिस वहां हो तो कुछ भी करने की कोशिश मत करना।” देवराज चौहान ने उसे सावधान किया।
“इस बात का मैं ध्यान रखूंगा।” कहने के साथ ही जगमोहन ने रिसीवर रख दिया।
☐☐☐
जगमोहन फौरन वापस महादेव के घर पहुंचा।
पुलिस अभी तक वहां नहीं पहुंची थी। जगमोहन ने कार को वहां से कुछ दूर ही खड़ा किया और पैदल ही महादेव के घर पहुंचा। पहले की तरह वहां ताला लटक रहा था। आसपास निगाह मारी। कोई नजर नहीं आया। गली खाली पड़ी थी। उस लड़के के घर का दरवाजा भी बंद था जो, पहले मिला था।
जगमोहन ने जेब से मास्टर ‘की’ निकाली और मात्र बीस सेकेंड की कोशिश के बाद वो ताला खोल लिया। ताला हटाकर, सिटकनी खोली। भीतर प्रवेश किया फिर पलटकर दरवाजा भीतर से बंद करके सिटकनी चढ़ा दी। भीतर अंधेरा-सा लगा। इतनी ज्यादा रोशनी नहीं थी कि बारीकी से हर तरफ निगाह मारी जाये। जगमोहन ने आगे बढ़कर, लाईट ऑन कर दी।
बल्ब का पीला प्रकाश वहां फैल गया।
जगमोहन की निगाह हर तरफ फिरने लगी।
एक तरफ चारपाई पड़ी थी। जिस पर बिस्तरा बिछा हुआ था। जगमोहन जानता था कि यह महादेव का बिस्तरा था। दूसरी तरफ दीवार से लगा, फर्श पर ही एक बिस्तरा बिछा था। जगमोहन समझ गया कि नीचे बिछा बिस्तरा उस युवती का होगा, जो तीन-चार दिन से उसके साथ रह रही थी।
जाने कितने महीनों पहले वह यहां आया था। कमरे में ही रस्सी बंधी थी। जिस पर बेतरकीबी से कपड़े टांग रखे थे।
जगमोहन की निगाह, एक तरफ पड़े खूबसूरत-से सूटकेस पर जा टिकी। जो कि यकीनन महादेव का नहीं हो सकता। जो कि पक्का उसी युवती का रहा होगा, जो उसके साथ रह रही थी। जगमोहन सूटकेस के पास पहुंचा और भीतर पड़े सामान को चेक करने लगा।
सबसे पहले उसके हाथ में सौ-सौ की तीन गड्डियां आईं। यानि कि तीस हजार रुपया। तीस हजार रुपया सूटकेस में मौजूद था। युवती के कीमती कपड़े पड़े थे। वो महादेव के साथ रह रही थी। अब महादेव मर चुका था। युवती का सामान यहां पड़ा था और वो लापता थी। नोटों की गड्डियां उसने वहीं रहने दीं।
युवती के बारे में दो ही बातें हो सकती थीं।
या तो महादेव की तरह उसे भी मार दिया गया है।
या फिर वो डर की वजह से कहीं छिपी बैठी है। कम से कम वह सामान या तीस हजार रुपया लेने यहां नहीं आने वाली।
जगमोहन सूटकेस की पॉकेट की तलाशी लेने लगा। उसकी उंगलियां किसी कागज जैसी चीज से टकराई तो दो उंगलियों से उस कागज को दबाकर बाहर खींचा। वो विजिटिंग कार्ड था। उस पर अनिता गोस्वामी नाम लिखा था और नीचे पता लिखा था। जगमोहन ने कार्ड को जेब में रख लिया और बाकी चीजों की तलाशी लेने लगा। सूटकेस में कपड़ों के सबसे नीचे उसे पचपन-साठ वर्षीय व्यक्ति की तस्वीर मिली।
जगमोहन ने ध्यान से तस्वीर देखी।
तस्वीर वाला व्यक्ति यकीनन कोई अमीर आदमी था। अमीरी की छाप तो जैसे उसके चेहरे पर छपी नजर आ रही थी। वह स्वस्थ शरीर का मालिक था।
जगमोहन ने उस तस्वीर को भी जेब में रख लिया।
उसके बाद पूरे कमरे की तलाशी ली।
महादेव के सामान की भी एक-एक चीज को देखा। दोनों बिस्तरों को झाड़कर देखा कि कहीं सावधानी के नाते, उसमें तो कुछ छिपा नहीं रखा। लेकिन वहां कुछ नहीं था।
बीस मिनट जगमोहन को महादेव के उस कमरे में लगे।
उसके बाद वो बाहर निकला। दरवाजे पर सिटकनी चढ़ाकर आगे बढ़ गया। गली में दो-चार लोग आ-जा रहे थे। लेकिन किसी ने भी उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया।
ज्योंही जगमोहन गली से बाहर निकला तो उसे पुलिस-जीप खड़ी दिखाई दी। जिसमें चार पुलिस वाले थे। साथ में एक व्यक्ति था जो जीप से उतरता हुआ पुलिस वालों से कह रहा था।
“आईये साहब! मैं आपको बताता हूं, महादेव कहां रहता था?”
स्पष्ट था कि महादेव की शिनाख्त हो चुकी है और वह आदमी पुलिस को महादेव के घर के बारे में बताने के लिये साथ ही आया था।
जगमोहन उनकी बगल से गुजरता हुआ आगे बढ़ता चला गया। सामने ही उसकी कार खड़ी थी। सोचों में वो विजिटिंग कार्ड था, जिस पर पते के साथ अनिता गोस्वामी लिखा था। या तो वो कार्ड उसी युवती का था, जो महादेव के साथ रह रही थी। या फिर उस युवती की किसी सहेली, या पहचान वाली का होगा। और वो तस्वीर किस व्यक्ति की है, जो सूटकेस से मिली? जाहिर है, सूटकेस में तस्वीर है तो युवती का कोई खास ही रहा होगा। पिता भी हो सकता है, या फिर कोई और भी।
जगमोहन को लगा, जैसे मामला उलझा जा रहा है। महादेव मारा जा चुका है। जिस युवती को तलाश कर रहा है, उसका चेहरा तक नहीं जानता। ऐसे में तीन सौ दो नम्बर के बारे में जानना आसान नहीं कि वो किस चीज का नम्बर है। अगर वो युवती मिल जाये तो, शायद सारे सवालों का जवाब मिल जाये।
जगमोहन कार में बैठा और आगे बढ़ गया।
अब उसे अनिता गोस्वामी के पते पर जाना था, जिसका कार्ड युवती के सूटकेस में से मिला था।
☐☐☐
सोहनलाल सीधा शेरू के दारूखाने में पहुंचा था। क्योंकि महादेव वहाँ अक्सर दारू पीने जाता था। सोहनलाल इस बात से बखूबी वाकिफ था। यहां से महादेव की बीते दिनों की दिनचर्या के बारे में जाना जा सकता था। बशर्ते कि महादेव यहां आता रहा हो।
शाम के चार बज रहे थे।
दारू के ठिकाने पर बजे की परवाह किसे। उस हॉल में बेंचों और टूटी-फूटी टेबलों पर बैठे, पन्द्रह-बीस लोग पी रहे थे। दारू की स्मैल और उनकी न समझ में आने वाली आवाजें गूंज रही थीं।
एक तरफ सजा रखी दुकान को जैसे बार का रूप दे रखा था। दो-चार दारू देने और खाली गिलासों-कटोरियों को उठाने में व्यस्त थे। सोहनलाल ने एक ही निगाह में, वहां का नजारा लिया।
शेरू ने इलाके की पुलिस को पूरी तरह ‘फिट’ कर रखा था। धंधा जोरों से चल रहा था।
सोहनलाल बोतलों के आगे बने काउंटर पर पहुंचा, यहां मोटा-सा व्यक्ति खड़ा उसे देख रहा था। उसके चेहरे से ही लग रहा या कि वो हर एक घण्टे में, एक पैग लगा ही लेता है।
“क्या हाल है लाला?” सोहनलाल पास पहुंचकर बोला।
“पहचान लिया सोहनलाल! मैं तो समझा था, भूल गया होगा।” लाला ने अपने चेहरे पर हाथ फेरा।
“सोहनलाल जिस गली से गुजर जाता है, उस रास्ते को कभी नहीं भूलता।” सोहनलाल मुस्कराया –“साल से ऊपर हो गया होगा, मुझे यहां आये?”
“हो गया होगा। मैं दिन-महीने-साल नहीं गिनता। इतना मालूम है, तू बोत देर के बाद आया।”
सोहनलाल ने काउंटर से टेक लगाकर गोली वाली सिगरेट सुलगाई।
“शेरू कैसा है?”
“उसका हाल हमेशा बढ़िया ही रहता है। इस वक्त तो वो और भी बढ़िया हुआ पड़ा है।”
“इस वक्त, कोई खास बात?”
“चार दिन पहले ही उसने बीस बरस की छोकरी से शादी की है?”
“बीस बरस की छोकरी से शादी! शेरू ने –?” सोहनलाल ने मुंह बनाकर उसे देखा।
“हां। सुनकर मजा आया होगा।”
“दिमाग खराब हो गया है शेरू का जो –।”
“वो अक्लमंद है। उसका दिमाग कभी खराब नहीं होता।” लाला मुस्कराया।
“क्यों?”
“उसको मालूम है दो महीने बाद, छोकरी उसकी आदतों से तंग आकर भाग जायेगी। उसके बाद वो किसी और को पकड़ लेगा। दो महीने तो उसके मुफ्त में निकले।” लाला हौले से हंसा।
सोहनलाल गहरी सांस लेकर रह गया।
“तूने पीनी शुरू कर दी?” लाला ने उसे देखा।
“नहीं। मेरे लिये गोली वाली सिगरेट ही बहुत है।” सोहनलाल मुस्कराया।
“तो फिर खामख्वाह तो इधर आया नहीं होगा।”
“ठीक बोला तू।” सोहनलाल ने लापरवाही से कहा –“महादेव से काम था। लेकिन वो किधर भी मिल नहीं रहा। ध्यान आया वो इधर बराबर दारू पीने आता है। आता है क्या?”
“आता है।”
“आज आया या आयेगा!”
“मालूम नहीं।”
“क्यों?”
“दो दिन से नहीं आया। आखिरी बार जब आया था तो खूबसूरत-सी छोकरी उसके साथ थी। मैं तो उसके साथ छोकरी को देखकर हक्का-बक्का रह गया। लेकिन वो यहां रुका नहीं। पूरी की पूरी बोतल लेकर उल्टे पांव लौट गया। पूरे दो हजार उस पर चढ़ चुके हैं। आज-कल करता रहता है। देने का नाम नहीं लेता किसी दिन साले की गर्दन पकड़नी पड़ेगी। शेरू को हिसाब तो मैंन देना होता है।” लाला ने मुंह बिचकाया।
सोहनलाल ने लाला को घूरकर देखा।
“उसके साथ छोकरी थी। वो भी खूबसूरत –।”
“हां।”
“दिमाग तो नहीं खराब हो गया तेरा। महादेव छोकरी के लायक है। उसकी हालत...।”
“वो मैं नहीं जानता कि छोकरी का क्या करता होगा। लेकिन उसके साथ छोकरी थी।” लाला ने उसकी बात काटी।
“हुलिया बता।”
“किसका?”
“छोकरी का बतायेगा। महादेव का तो नहीं पूछ रहा।” सोहनलाल की निगाह लाला पर पड़ी।
लाला ने छोकरी का हुलिया बताया।
सोहनलाल को वास्तव में हैरानी हुई कि ऐसी युवती महादेव के साथ। जबकि वो महादेव की आदत को अच्छी तरह जानता था कि औरतों में उसकी दिलचस्पी न के बराबर थी।
“आजकल महादेव के रंग-ढंग ठीक नहीं लग रहे।” लाला ने कहा
“क्यों –और क्या किया है उसने?”
“मुझे लगता है कि उसकी आदतें बिगड़ चुकी है।” लाला पुनः बोला –।
“आगे तो बोल –।”
“पांच-छः दिन पहले असलम खान का आदमी आया था। तब महादेव यहां बैठा दारू पी...।”
“असलम खान –वो साला नशे का माल बेचने वाला?” सोहनलाल ने टोका।
“जानता है?”
“हां। पहले उसी से सिगरेट के लिये गोली लेता था। लेकिन वो हरामी भाव तेज लगाता था। मैंने उससे माल लेना छोड़ दिया। उसका चार हजार रुपया मैंने देना है। खैर फिर क्या हुआ?”
“उसका आदमी आया। महादेव से मिला, दो मिनट तक दोनों ने घुट-घुट कर बातें की फिर महादेव दारू की बोतल बगल में दबाकर उसके साथ चला गया। लगता है महादेव ने नशा करना शुरू कर दिया है जो –।”
“नहीं। महादेव शराब के अलावा और कुछ नहीं लेता था।” सोहनलाल ने विश्वासभरे स्वर में कहा।
“नहीं लेता था! था से मतलब?” लाला ने सीधे-सीधे सोहनलाल को देखा।
“नहीं रहा वो अब।” सोहनलाल ने गहरी सांस ली।
“मर गया?”
“मार दिया गया। गोली मार दी आज दिन में उसे किसी ने।”
लाला के चेहरे पर अजीब-से भाव उभरे।
“मुझे तो विश्वास नहीं आ रहा कि महादेव को किसी ने मार दिया। भला-चंगा होता था।” लाला ने सिर हिलाते हुए कहा –“मैं तो पहले ही कह रहा था महादेव की आदतें बिगड़ चुकी हैं। असलम खान नशीला माल ही बेचने का धंधा नहीं करता और भी कई उलटे-पुलटे काम करता है। महादेव को उससे वास्ता नहीं रखना चाहिये था।”
सोहनलाल ने गोली वाली सिगरेट का कश लिया।
“कुछ मालूम पड़ा, क्यों मरा महादेव?”
“नहीं।”
“सब बातें एक तरफ, ये बता कि तू उसके मरने के बाद, उसके बारे में क्यों पूछता फिर रहा है?”
“यूं ही।”
“यूं ही तो कुछ नहीं होता। वैसे वो तेरा दोस्त था ना?”
“दोस्त नहीं, जानकार –।”
“एक ही बात है। मरने के बाद, उसकी आत्मा को शान्ति पहुंचाना चाहता है तो कुछ कहूं।” लाला ने कहा।
“कह –।”
“उसका उधार चुका दे। तब वो चैन से स्वर्ग में रह सकेगा। बोल, खाता खोलूं उसका?”
सोहनलाल ने तीखी निगाहों से लाला को देखा।
“तेरे को शायद पता नहीं कि स्वर्ग से महादेव की चिट्ठी आई है। वहां उसकी आत्मा को चैन मिल चुका है और खासतौर से उसने लिखा है कि लाला को मेरा सलाम कहना।” कहने के साथ ही सोहनलाल वहां से हिला और बाहर की तरफ बढ़ता चला गया। सोचों में असलम खान था। महादेव का और उसका कोई मेल नहीं था।
☐☐☐
सोहनलाल, असलम खान के उस ठिकाने पर पहुंचा, जहां से हर तरह का नशा मिलता था। मुद्दत बाद सोहनलाल यहां आया था। असलम खान से गोली लेनी उसने कब की छोड़ रखी थी।
कोई नया ही बंदा उसे वहां नजर आया।
“क्या चाहिये?” सोहनलाल को भीतर आते देख वो बोला।
“असलम खान कहां है?”
“क्यों, तेरे को क्या काम पड़ गया उससे? पहले कभी नहीं देखा तेरे को।” उसके माथे पर बल पड़े।
“पहले तूने इसलिये नहीं देखा कि पहले तू यहां नहीं था। समझा क्या।” सोहनलाल ने उसकी टेबल थपथपाकर कहा –“असलम खान को बोल, सोहनलाल आया है।”
“सोहनलाल?”
“हां, वो पहचानेगा। जा।”
सोहनलाल को घूरता, वो पीछे लगे दरवाजे में चला गया। दूसरे ही मिनट लौटा।
“जा। वो तेरा इन्तजार कर रहा है। किधर को जाना है?”
“फिक्र मत कर। यहां का नक्शा कभी मैंने ही बनाया था। तू अपनी ड्यूटी पर लगा रह।” कहने के साथ ही सोहनलाल पीछे के दरवाजे में प्रवेश कर गया।
तीन-चार कमरों को पार करने के बाद वो, केबिन जैसे छोटे-से कमरे में पहुंचा। वो जगह किसी ऑफिस की तरह लग रही थी। वहां बैठा पचास वर्षीय व्यक्ति फाइल खोले, हाथ में पेन थामे हिसाब लगाने में व्यस्त था। उसके चेहरे से स्पष्ट लग रहा था कि वो महा घिसा हुआ इन्सान था।
उसने एक निगाह सोहनलाल पर डाली फिर अपने काम में व्यस्त होता हुआ बोला।
“आ। बैठ सोहनलाल –।”
“कैसे हो असलम खान?” सोहनलाल बैठते हुए बोला।
“ठीक हूं। तेरे से चार हजार रुपया लेना है।” असलम खान अपने काम में व्यस्त बोला।
“मिल जायेगा। मैं भागा नहीं जा रहा।”
“दो साल पहले भी तूने यही कहा था।”
“वो अब भी कह रहा हूं।”
“कहते-कहते एक दिन मर जायेगा लेकिन मेरा चार हजार नहीं देगा। जल्दी देना।”
सोहनलाल ने गोली वाली सिगरेट सुलगाई।
“अब तू मेरे से गोली भी नहीं लेता। श्याम के यहां से माल लेता है ना?”
“वो भाव ठीक लगाता है।”
“मैं भी ठीक लगा दूंगा। यहां से ले जाया कर।” कहते हुए वो अभी भी हिसाब लगाने में उलझा था।
सोहनलाल ने कश लिया।
“बोल क्यों आया?”
“तूने शेरू के बार से, अपना आदमी भेजकर, महादेव को बुलाया था।” सोहनलाल की निगाह उस पर जा टिकी।
असलम खान की निगाह फाइल से उठकर सोहनलाल पर लग गई।
“पाँच-छः दिन हो गये इस बात को। आज तू क्यों पूछने आया?”
“महादेव से काम है। वो मिल नहीं रहा।” सोहनलाल बोला –“उसके बारे में शेरू के दारूखाने में पूछने गया तो लाला ने बताया, तुम्हारा आदमी उसे ले गया था।”
“हां। वो आया था। लेकिन मैंने उसे बांध नहीं रखा। होगा कहीं। ढूंढ ले।”
“ढूंढा। नहीं मिला।”
“मिल जायेगा। मैंने उसे कोई काम दिलाया था। वो उसमें व्यस्त होगा। एक-दो दिन में नजर आ जायेगा।”
“क्या काम बताया था?”
असलम खान ने पेन फाइल में रख दिया।
“वो तेरे जानने का नहीं है। महादेव बताये तो उससे पूछ लेना –।” असलम खान बात समाप्त करने वाले ढंग से बोला।
“वो नहीं बतायेगा।” सोहनलाल ने सिर हिलाया।
“तेरी खास पहचान वाला है वो। नहीं बतायेगा तो तुम जानो।” असलम खान ने गहरी निगाहों से सोहनलाल को देखा –“महादेव के लिये तू इतना क्यों तड़प रहा है। मुझे मिला तो उसे, तेरे बारे में बोल दूंगा।”
“तेरे को भी नहीं मिलेगा।” सोहनलाल ने पुनः सिर हिलाया।
असलम खान की आंखें सिकुड़ी।
“बात क्या है? खुलकर बोल।”
“महादेव को आज किसी ने गोली मार दी है। वो मर गया है।” सोहनलाल ने गम्भीर स्वर में कहा।
असलम खान के चेहरे पर अजीब-से भाव उमरे।
“महादेव को गोली मार दी। वो मर गया।” असलम खान की आवाज में अविश्वास था।
“वो उसी काम की वजह से मरा है, जो तुमने उसे दिलवाया था।” सोहनलाल ने तुक्का मारा।
“लेकिन वो काम मरने-मारने वाला नहीं था। उस काम में गोली चलने की कोई गुंजाइश ही नहीं थी।”
“क्या था वो काम?”
“तू क्या करेगा जानकर । महादेव मर गया तो बात खत्म।” असलम खान ने गहरी सांस ली।
“तेरे को मालूम है महादेव ने देवराज चौहान की बांहों में दम तोड़ा।” सोहनलाल ने उसे घूरा।
“क्या?”
“जब महादेव को गोली लगी तो देवराज चौहान से वो बात कर रहा था।”
असलम खान सतर्क-सा दिखने लगा।
“वो, देवराज चौहान को कुछ बताना चाहता था। बात करना चाहता था। लेकिन उससे पहले ही उसे शूट कर दिया गया। अब देवराज चौहान जानना चाहता है कि महादेव क्या काम कर रहा था। मेरी बात पर यकीन नहीं तो फोन लगाऊं देवराज चौहान को।” सोहनलाल ने फोन की तरफ हाथ बढ़ाया –“मेरे से बात करना तेरे को सस्ता पड़ेगा। देवराज चौहान से तूने सीधी बात की तो शायद तेरे लिए सौदा महंगा हो जाये।”
असलम खान ने सोहनलाल को रिसीवर नहीं उठाने दिया।
“बात मत बढ़ा। बात कुछ भी नहीं है।”
“वो जो बात कुछ भी नहीं है। वो ही मैं जानना चाहता हूं तूने महादेव को क्या काम दिलवाया?”
असलम खान ने होंठ सिकोड़कर दो पल के लिये सोचा।
उसे देखते सोहनलाल ने सिगरेट सुलगाई।
“कहां गोली मारी?”
“माहिम रेलवे स्टेशन के सामने।”
“हो सकता है, पुरानी रंजिश का मामला हो। मेरे दिलाये काम की वजह से वो न मरा हो।”
“ये बात बाद में तय हो जायेगी। तू बात कर।”
“मेरे पहचान वाले आदमी ने बताया कि, एक युवती को किसी ऐसे आदमी की जरूरत है, जो मुम्बई बन्दरगाह के बारे में जानकारी रखता हो और गोताखोर भी हो। इसके लिये वह लाख रुपया दे सकती है। एक-दो दिन का काम है। मुझे महादेव का ध्यान आया। कभी वो, जवानी के वक्त मुम्बई बन्दरगाह पर ही कोई काम करता था और गोताखारी भी जानता है। मैं जानता था कि महादेव को पैसे की जरूरत है। वो बीमार है। मैंने उसे और युवती को मिला दिया। बस यही काम किया था मैंने। उसके बाद मुझे उन दोनों की कोई खबर नहीं।”
“सच कह रहा है?”
“इस मामले में देवराज चौहान है तो मैं झूठ नहीं बोल सकता।”
असलम खान ने गम्भीर स्वर में कहा।
“क्या नाम था उस युवती का?”
“अनिता गोस्वामी।”
“उसका पता?”
“पता तो –।” कहते-कहते असलम खान ठिठका, फिर टेबल का ड्राअर खोलते हुए बोला –“जब वो पहली बार मुझसे मिली थी तो उसने अपना कार्ड दिया था। वो शायद यहीं–ये रहा।” कहने के साथ ही ड्राअर से कार्ड निकालकर सोहनलाल की तरफ बढ़ाया –“यह अनिता गोस्वामी का पता है।”
सोहनलाल ने कार्ड लेकर देखा। उस पर अनिता गोस्वामी का नाम और पता लिखा था।
“ये अनिता गोस्वामी तेरे से कितनी बार मिली?”
“दो बार। पहली बार मेरा आदमी इसे लेकर मेरे पास आया था। दूसरी बार तब, जब महादेव को मैंने इसके साथ किया था। दोनों बार वो यहीं आई थी।” असलम खान ने बताया।
“अनिता गोस्वामी ने बताया नहीं कि मुम्बई बन्दरगाह पर उसे क्या काम है?”
“नहीं।”
“तुमने पूछा था?”
“हां। लेकिन उसने इस बात का जवाब नहीं दिया और मैंने भी दोबारा पूछने की जरूरत नहीं समझी।”
“अनिता गोस्वामी की कोई तस्वीर है तुम्हारे पास?”
“मेरे पास उसकी तस्वीर का क्या काम –।”
“इस मामले में कोई और बात बताने वाली?”
“नहीं।” असलम खान ने सिर हिलाया –“जो बात थी। मैंने सच-सच बता दी। मुझे तो अभी भी यकीन नहीं आ रहा कि महादेव इस मामले की वजह से मरा होगा। वो कोई पुराना दुश्मन –।”
“तू इस बारे में अपना दिमाग मत लगा।” सोहनलाल अनिता गोस्वामी के कार्ड को देखता हुआ बोला –“भूल जा इस सारी बात को। देवराज चौहान का नाम तो इस मामले में आना ही नहीं चाहिये।”
“मैं किसी से जिक्र नहीं करूंगा।”
“मुझे मालूम है तू समझदार है।” सोहनलाल उठ खड़ा हुआ।
“देवराज चौहान को मेरा सलाम बोलना।”
“फिक्र नेई कर। मेरे को बोल दिया। समझ देवराज चौहान को बोल दिया।” सोहनलाल जाने लगा।
“वो मेरा चार हजार रुपया –।”
“दे दूंगा। भागा तो नहीं जा रहा।” कहने के साथ ही सोहनलाल बाहर निकल गया।
☐☐☐
जगमोहन विजिटिंग कार्ड पर लिखे पते पर पहुंचा। वो छोटा-सा लेकिन अच्छा मकान था। प्रवेश द्वार पर अनिता गोस्वामी की प्लेट लगी पाकर समझ गया कि, महादेव के साथ जो युवती थी, वो यहीं रहती थी। उसका नाम अनिता गोस्वामी या। जो कि विजिटिंग कार्ड पर लिखा था।
जगमोहन छोटा-सा गेट खोलकर भीतर प्रवेश कर गया और बरामदे में पहुंचकर बेल बजाई।
दो-तीन बार बेल बजाने पर भी जब जवाब नहीं मिला तो, जगमोहन को लगा जैसे घर में कोई नहीं है। उसने आसपास देखा। चलती सड़क पर मकान था। सड़क पर से ट्रैफिक गुजर रहा था। परन्तु कोई भी पड़ोसी नजर नहीं आया। न ही इस तरफ दिखाई दिया।
जगमोहन ने जेब से मास्टर ‘की’ निकाली और सावधानी से उसे ‘की’ होल में फंसाकर ताला खोलने की चेष्टा करने लगा। पांच मिनट की भरपूर कोशिश के बाद भी वो लॉक नहीं खोल पाया। जगमोहन समझ गया कि दरवाजे में फिट बढ़िया किस्म का लॉक है, जो आसानी से नहीं खुलेगा। खिड़कियां बंद थीं। उन पर ग्रिल लगी हुई थी। यानि कि भीतर जाने का कोई रास्ता नहीं था।
शायद मकान के पीछे की तरफ से, भीतर प्रवेश करने का रास्ता मिले। यह सोचकर जगमोहन पलटा ही था कि ठिठक गया। मकान के बाहर, उसकी कार के पास, सोहनलाल की कार को उसने रुकते पाया तो चेहरे पर अजीब-से भाव आ गये।
सोहनलाल और यहां?
सोहनलाल ने कार से निकलकर, मकान पर नजर मारी तो जगमोहन को वहां पाकर उसे भी हैरानी हुई। वो आगे बढ़ा और गेट पार करके जगमोहन के पास आ पहुंचा।
जगमोहन उसे घूर रहा था।
“तुम यहां क्या कर रहे हो?” सोहनलाल ने मुंह बनाकर पूछा।
“यही सवाल मैं तुमसे करने वाला था।” जगमोहन के होंठ सिकुड़े।
“मैं तो यहां आता रहता हूं।” सोहनलाल ने लापरवाही से कहा।
“क्यों?”
“यहां मेरी मंगेतर रहती है।”
“अनिता गोस्वामी?” जगमोहन ने उसे सिर से पांव तक देखा।
“हां। तुम कैसे जानते हो उसे?”
“वो तो सुहागरात मेरे साथ मना चुकी है।” जगमोहन की आवाज में व्यंग्य आ गया।
“तो क्या हो गया। मंगेतर मेरी है, शादी मेरे साथ ही करेगी।” सोहनलाल ढीठता से बोला।
“हनीमून पर जाने का वायदा तो उसने मेरे साथ किया हुआ है।” जगमोहन पहले जैसे स्वर में कह उठा।
“उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। शादी मुझसे ही करेगी।” सोहनलाल ने ढीठता से कहा।
“जब तेरे को किसी चीज से फर्क नहीं पड़ता तो शादी करने की क्या जरूरत है।” जगमोहन का स्वर तीखा हो गया।
“उसी की तो जरूरत है।”
“क्यों?”
“शान तो वो मेरे ही घर की बनेगी।” सोहनलाल ने दांत फाड़े।
“बहुत शौक है तुझे शो पीस का।”
“हां। तभी तो कह रहा हूं कि वो शादी मेरे से ही करेगी। सुहागरात और हनीमून से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।”
“मान गया।”
“मुझे तो बड़े-बड़े मान जाते हैं।”
“तेरे से घटिया इन्सान कोई दूसरा नहीं।” जगमोहन का स्वर कड़वा हो गया।
“बहुत जल्दी ये बात तेरे को मालूम हो गई, वरना लोगों की उम्र बीत जाती है और मुझे बढ़िया बंदा समझते हुए मर जाते हैं।” सोहनलाल ने शांत स्वर में कहा –“महादेव के चक्कर में भागदौड़ कर रहा है?”
“हां।”
“तीन सौ दो का फेर है।”
“तीन सौ दो, तेरे को कैसे पता?” जगमोहन चौंका।
“देवराज चौहान ने बताया था। उसने मालूम करने को कहा कि महादेव आजकल क्या कर रहा था। नम्बर के बारे में भी बताया। बाकी बातें फिर, तू यहां खड़ा क्या कर रहा है?” सोहनलाल ने पूछा।
“महादेव, चार-पांच दिन से जिस लड़की के साथ था, उसके सामान में कार्ड मिला, जिस पर यहां का पता –।”
“सामान कहां मिला?”
“महादेव के घर पर।”
“कमाल है! जिसका यह घर हो। वो महादेव के साथ, सामान लेकर, झोपड़ी जैसे कमरे में क्या रह रही थी?”
“तुम्हें कैसे मालूम, यह उसी का घर है? मुझे तो उसके सूटकेस से यहां का विजिटिंग कार्ड मिला था।” जगमोहन बोला।
“बताऊंगा, कैसे मालूम हुआ।” सोहनलाल बोला –“अब भीतर की क्या पोजिशन है?”
“बेल का जवाब नहीं मिल रहा और मास्टर ‘की’ से दरवाजा भी नहीं खुल पा रहा।” जगमोहन ने कहा।
सोहनलाल ने दरवाजे के ‘की’ होल पर निगाह मारी।
“यह ऑटोमैटिक लॉक है। आसानी से नहीं खुलता।” सोहनलाल मुस्कराया –“और मेरा तो धंधा ही ताले खोलना है। तू मुझे आधे मिनट के लिये आड़ दे कि सामने से कोई न देख पाये, मैं क्या कर रहा हूं।” कहते हुए सोहनलाल दरवाजे के पास जा पहुंचा। जगमोहन इस तरह खड़ा हो गया कि सड़क पर उसकी हरकत को न देखा जा सके।
सोहनलाल ने अपनी फूलती कमीज ऊपर उठाई। कमर में बंधी बेल्ट में फंसे औजारों में से एक पतला-सा औजार निकाला और ‘की’ होल से उलझ गया।
कुछ ही सेकेंडों में लॉक खुल चुका था।
सोहनलाल ने औजार वापस बेल्ट में फंसाया फिर बोला।
“हो गया काम।” कहने के साथ ही सोहनलाल ने दरवाजे के हैंडल पर दबाव देकर धक्का दिया तो दरवाजा खुलता चला गया। दोनों भीतर प्रवेश कर गये। जगमोहन ने दरवाजा भीतर से बंद कर दिया।
सामने ही छोटा-सा, खूबसूरत ड्राईंगरूम था। वहां गहरी खामोशी छाई हुई थी।
“सोहनलाल।” जगमोहन नजरें घुमाने के बाद बोला –“घर बिलकुल खाली है। अनिता गोस्वामी घर पर नहीं है। पूरे घर की तलाशी लो। शायद कोई ऐसी चीज मिले कि हम तीन सौ दो के बारे में जान सकें।”
सोहनलाल ने गोली वाली सिगरेट सुलगाई।
“मैं यहीं रहकर, अनिता गोस्वामी के आने का इन्तजार करूंगा। एक-आध दिन में, कभी तो आयेगी वो।”
“जो मन में आये करना। पहले सामान की तलाशी ले।” जगमोहन ने कहा और ड्राईंगरूम पार करता सामने दिखाई दे रहे दरवाजे की तरफ बढ़ गया।
सोहनलाल की निगाह ड्राईंगरूम में दौड़ रही थी।
वो बेडरूम था। जिसमें जगमोहन ने प्रवेश किया था। एक कदम भीतर प्रवेश करते ही ठिठक गया। सामने ही खूबसूरत डबल बेड था। जिस पर खून में डूबी लाश पड़ी थी।
“सोहनलाल!” जगमोहन ने पुकारा।
“हां।”
“आ-जा।”
“क्यों?” उस कमरे की तरफ बढ़ते हुए सोहनलाल ने पूछा।
“दहेज में जो बेड तेरे को मिलने वाला था उसका सत्यानाश हो गया है।”
कमरे में कदम रखते ही सोहनलाल ठिठका । मुंह खुला का खुला रह गया।
वो पैंतालीस-पचास वर्षीय व्यक्ति की लाश थी। जिसके शरीर पर साधारण-से कपड़े थे-पैंट और कमीज । कमीज खून से लथपथ थी। देखने पर भी स्पष्ट नजर आ रहा था उसकी कमीज वाले हिस्से पर, बेतरकीबी से, धड़ाधड़ चाकुओं से वार किए गये हैं। चाकू का एक वार मरने वाले के गाल पर भी था और अंत में चाकू सिर के बीच अटका, भाले की तरह खड़ा था। जैसे वार करने वाला, वार करते-करते थक गया हो और चाकू को वहीं रहने दिया हो।
लाश की हालत वीभत्स हो रही थी।
एक ही निगाह देखने पर स्पष्ट हो रहा था कि इसे मरे ज्यादा देर नहीं हुई। क्योंकि कमीज और बेड पर, बहकर बिखरा खून अभी गीला था।
“तूने देखा है इसे पहले कभी?” जगमोहन ने पूछा।
“नहीं। पहली बार, वो भी मरी हालत में देख रहा हूं –।” सोहनलाल ने गम्भीर स्वर में कहा।
जगमोहन बेड के पास पहुंचा और ध्यानपूर्वक उसके चेहरे को देखा। फिर जेब से तस्वीर निकाली, जो कि उसी सूटकेस में से व्यक्ति की निकली थी। जगमोहन ने तस्वीर को देखा। मरने वाला कोई और ही था। सोहनलाल ने पास पहुंचकर, तस्वीर को देखा।
“यह किसकी तस्वीर है?”
“अनिता गोस्वामी के सूटकेस में पड़ी मिली थी। लेकिन मरने वाला यह नहीं है।” जगमोहन ने कहा और तस्वीर वापस जेब में डाल ली। नजरें लाश पर जा टिकीं।
“बहुत बेरहमी से मारा गया है इसे –।” सोहनलाल ने कहा।
“नहीं।” जगमोहन की निगाह लाश पर जा टिकी –“चाकू मारने वाला अनाड़ी था। ध्यान से चाकू के वारों को देखो। घबराहट और अनाड़ीपन से वार किये गये हैं। गाल पर चाकू का वार। सिर पर भाले की तरह धंसा पड़ा चाकू इस बात की गवाही दे रहा है कि,जिसने भी इसे मारा, वो इस हद तक घबराया हुआ था कि उसे समझ नहीं आ रही थी कि कहां वो चाकू मारे कि यह मर जाये। सिर पर जब हत्यारे ने चाकू का वार किया, तब तक यह यकीनन मर चुका होगा।”
सोहनलाल एकाएक कुछ न कह सका।
“यह घर अनिता गोस्वामी का है, जो तीन-चार दिन से महादेव के साथ थी?” जगमोहन ने उसे देखा।
“हां।”
“यकीन के साथ कह सकते हो?”
“हाँ। पूरा दावा है। बाद में बताऊंगा कि किस दम पर दावा कर रहा हूँ। तुम कहना क्या चाहते हो?”
“मेरे ख्याल में अनिता गोस्वामी ने ही यह कत्ल किया है।”
“यह बात तुम कैसे कह सकते हो?” सोहनलाल के होंठ सिकुड़े।
“इसलिये कि हत्या करने वाला अनाड़ी था। वो अनाड़ी अनिता गोस्वामी से बढ़िया और कौन हो सकता है।”
“यह तो कोई तर्क नहीं हुआ।”
“मेरे ख्याल से तो मेरा तर्क ठीक है। लेकिन अपने तर्क को मैं कोई सबूत नहीं बता रहा हूं। अगर यह हत्या अनिता गोस्वामी ने नहीं की तो कम से कम यह तो पक्का ही है कि किसी अनाड़ी हत्यारे ने की है जो घबराया हुआ था।”
सोहनलाल ने जगमोहन को देखा।
“अब क्या करना है?”
“हम दोनों यहां की तलाशी लेते हैं।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा –“यहां से हमें ऐसी कोई चीज तलाश करने की कोशिश करनी है, जिसका वास्ता तीन सौ दो नम्बर से हो।”
“ठीक है।”
“मैं मरने वाले की तलाशी लेता हूं। शायद इसके बारे में कुछ पता चले।” जगमोहन ने कहा और बेड पर पड़ी लाश के कपड़ों की जेब टटोलने लगा।
सोहनलाल दूसरे कमरे में चला गया।
जगमोहन को उसकी जेब में से पर्स के अलावा कुछ नहीं मिला। पर्स खोलकर चेक किया तो उसमें मौजूद एकमात्र काम की चीज ड्राईविंग लाइसेंस मिला। जिस पर मरने वाले का नाम गोपाल कुमार और उसका पता लिखा हुआ था।
जगमोहन ने ड्राइविंग लाइसेंस अपनी जेब में डाल लिया और पर्स वापस लाश की जेब में। उसके बाद कमरे में निगाहें दौड़ाई। एक तरफ ड्रेसिंग टेबल थी। जगमोहन ड्रेसिंग टेबल को चेक करने लगा। वहां कोई भी काम की चीज नहीं थी। कमरे में पड़ी अलमारी के पास पहुंचा। उसे खोलकर देखा।
अलमारी में लेडीज कपड़े हैंगरों पर लटके हुए थे या ठूंसे हुए थे। मर्द के कपड़े तो क्या मर्दाना रूमाल तक भी नजर न आया। जिससे जगमोहन समझ गया कि घर में अनिता गोस्वामी अकेली रहती है। अलमारी में से भी काम की चीज नहीं मिली। अलमारी के लॉकर में कुछ जेवरात अवश्य पड़े थे, जो उसने यहीं रहने दिए। एक तरफ टेबल और कुर्सी पड़ी थीं।
जगमोहन टेबल के पास पहुंचा और ड्राअर चेक करने लगा।
ड्राअर में कोई खास चीज नहीं मिली।
दस मिनट उसे चेक करने में ही बीत गये।
फिर जब पलटा तो बेड के पास ही नीचे फर्श पर छोटा-सा पर्स पड़ा नजर आया। जो कि लेडीज पर्स था। जगमोहन ने आगे बढ़कर फौरन पर्स को उठाया। उस पर जरा-सा खून भी लगा हुआ था। उसे खोलकर देखा तो भीतर सौ और पांच सौ के नोट ठूंसे हुए थे। साथ में छोटी-सी डायरी थी। जगमोहन ने डायरी निकालकर देखा, दो फोन नम्बर वाली डायरी थी। जिसमें नम्बर लिखे हुए थे।
तभी सोहनलाल ने भीतर प्रवेश किया। उसके हाथ में पोस्टकार्ड साइज की एलबम थी।
“यह देखो। इस एलबम में सारी तस्वीर एक ही युवती की है। मेरे ख्याल से ये तस्वीरें अनिता गोस्वामी की हो सकती है।” सोहनलाल ने कहते हुए एलबम जगमोहन को दिखाई।
जगमोहन ने सरसरी तौर पर तस्वीरों को देखा।
“एलबम जेब में रख लो।” जगमोहन ने कहा और उसे लेडीज पर्स दिखाते हुए बोला –“मैंने बोला था कि इसकी हत्या अनिता गोस्वामी ने की हो सकती है। मेरा कहना सही था। यह पर्स, मुझे बेड के पास, फर्श पर से मिला है और इस पर खून लगा हुआ है। इसमें नोट भरे पड़े हैं और छोटी-सी फोन डायरी है। डायरी के पहले पन्ने पर, नाम लिखने वाली जगह पर अनिता गोस्वामी लिखा है। यानि कि उसने अपना नाम लिखा हुआ है। जब वो इस पर चाकू के वार कर रही थी, तब उसके हाथ में पर्स भी था जो हड़बड़ाहट में हाथों से गिर गया। बाद में इस हद तक घबरा चुकी थी कि पर्स को पूरी तरह भूल गई और भाग निकली।”
“शायद तुम ठीक कह रहे हो।” सोहनलाल ने गम्भीरता से सिर हिलाया।
जगमोहन ने पर्स और डायरी जेब में डाली और लाश के सिर में धंसा चाकू निकालकर उस पर से उंगलियों के निशान साफ करने लगा।
“यह क्या कर रहे हो?” सोहनलाल के होंठों से निकला।
“यह चाकू इसी मरने वाले का है। जिसे किसी तरह अनिता गोस्वामी ने हथियाकर, इसे ही मार डाला। उसने मजबूरी में ही इसकी जान ली होगी। लेकिन पुलिस को यह बात नहीं समझाई जा सकती। चाकू पर से उसकी उंगलियों के निशान नहीं मिलेंगे तो उसके फंसने के चांस कम रहेंगे।” जगमोहन ने गम्भीरता से कहा।
“तुम खामख्वाह दूसरों को कब से बचाने लगे?” सोहनलाल ने व्यंग्य से कहा।
“मैं खासतौर से किसी को बचाने के लिये घर से नहीं निकला।” जगमोहन ने सोचभरे स्वर में कहा –“लेकिन यह बात में पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि अनिता गोस्वामी की जान खतरे में है। वो भागी फिर रही है।”
“जो कुछ नजर आ रहा है, उससे तो यही लगता है।”
उसके बाद उन्होंने पूरे घर को छान मारा, परन्तु कोई काम की चीज नहीं मिली। दोनों वहां से निकले। अपनी-अपनी कारों में, वहां से रवाना हुए और काफी आगे जाकर सड़क पर ही दोनों ने बात की।
जगमोहन ने अपना बताया कि वो किस तरह पूछताछ करते हुए अनिता गोस्वामी के घर पहुंचा था।
सोहनलाल ने भी उसे अपनी भागदौड़ के बारे में बताया।
“इस वक्त हमारे सामने काम करने के कई रास्ते हैं। मरने वाले की जेब से मिला ड्राईविंग लाइसेंस है। उसके बारे में छानबीन करनी पड़ेगी कि वो कौन था। किसके लिए काम कर रहा था। अनिता गोस्वामी के घर तक कैसे पहुंच गया। अनिता गोस्वामी के पर्स में मिली फोन डायरी है। अब देखना यह है कि डायरी में ऐसा कौनसा उसका खास नम्बर हो सकता है कि ऐसे मुसीबत के वक्त पर वो वहां पनाह ले सके। वो अपने सामान के साथ महादेव के घर पर पनाह लिए हुए थी। अब सारे हालातों पर गौर करने से यही जाहिर होता है।”
“मेरी जेब में पोस्टकार्ड साइज की एलबम है। हो सकता है कि वो सारी तस्वीरें अनिता गोस्वामी की ही हों।” सोहनलाल ने कहा –“मैं असलम खान को तस्वीरें दिखाकर पूछता हूं कि क्या ये ही, अनिता गोस्वामी है?”
“हां। कम से कम अनिता गोस्वामी के चेहरे की तो हमें पहचान हो, जिसे हम ढूंढ रहे हैं।” जगमोहन ने सोचभरे स्वर में कहा –“लेकिन इतनी भागदौड़ के बाद भी ‘तीन सौ दो’ के बारे में कुछ नहीं मालूम हो सका कि वह किस चीज का नम्बर है। मालूम हो जाता तो भागदौड़ का फायदा नजर आता।”
सोहनलाल ने गोली वाली सिगरेट सुलगाई।
शाम और रात का अंधेरा मिलने जा रहा था।
“मैं देवराज चौहान से फोन पर बात करके आता हूं।” जगमोहन ने कहा और सामने दिखाई दे रही मार्किट की तरफ बढ़ गया। सोहनलाल चेहरे पर सोच के भाव लिए उसे जाता देखता रहा।
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