“देखना चाहते हो?” वह गुर्राई --- “देखना चाहते हो मैं क्या दिखा सक़ती हूं?.... तो देखो!” कहने के साथ उसने एक झटके से वह गाऊन उतारकर फेंक दिया जिसने झीनी नाइटी और उसके पार चमक रही ब्रा और पेन्टी के साथ उसके ★ जिस्म को भी ढक रखा था । बांहें देवांश की तरफ फैलाईं उसने। कहा---“आओ देव ! आओ !”
बौखला उठा देवांश | लगा - - - दिव्या पागल हो गयी है।
“डरो नहीं देव ।” उसने कहा --- “यह कुछ नहीं बिगाड़ सकता हमारा। है ही क्या इसमें जो कुछ कर सके । आओ! बांहों में समा जाओ मेरी।””
“द- दिव्या !” देवांश के मुंह से निकला --- “हो क्या गया है तुम्हें? क्या कर रही हो ये?”
“हिचको मत देव! जब सबकुछ खुल ही चुका है तो उससे कैसा पर्दा जो मरने वाला है ।” कहने के बाद वह खुद आगे बढ़ी और देवांश को बांहों में भर लिया ।
पीड़ा से छटपटाते राजदान ने कसकर आंखें बंद कर ली थीं । देवांश दिव्या के अजीबो-गरीब व्यवहार पर बौखलाया हुआ था । वह बहुत ही धीमे स्वर में उसके कान में फुसफुसाई --- “समझने की कोशिश करो देव । इसे ऐसा दृश्य दिखाना है कि हार्ट अटैक से मर जाये । भले ही सहवास करना पड़े इसके सामने । यह बात अभी-अभी मेरे दिमाग में आई है --- अगर यें गोली से मरा तो सैकड़ों सवाल उठ सकते हैं लेकिन हार्ट अटैक से मरा तो स्वाभाविक मौत होगी । कहीं कोई सवाल नहीं उठेगा।”
बिजली सी कौंध गई देवांश के दिमाग में ।
वाह, कितना शानदार आइडिया था ?
राजदान हार्ट फेल हो जाने के कारण मरा पाया जायेगा । होठों पर जहरीली मुस्कान लिए राजदान की तरफ देखा उसने | उसकी तरफ जिसने अभी तक कसकर आंखें बंद कर. रखी थीं। चेहरे पर हर तरफ ही पीड़ा थी । जैसे जबरदस्ती अपने सीने से उठने वाले दर्द को रोकने की कोशिश कर रहा हो। उसकी इस हालत को देखकर देवांश को लगा --- ठीक ही कह रही है दिव्या । हार्ट अटैक से मरने के बहुत करीब है वह। अतः अंतिम प्रहार करने की गर्ज से बोला--- “आंखें क्यों बंद कर लीं राजदान । देखना ही चाहता है तो देख। हम तेरे साथ व्हिस्की ही नहीं पियेंगे । सहवास भी करेंगे तेरे सामने ।” कहने के साथ उसने दिव्या के जिस्म पर मौजूद झीनी नाइटी एक झटके से उतारकर एक तरफ फेंक दी ।
नाइटी असहनीय पीड़ा से तड़प रहे राजदान के चेहरे से जाकर टकराई थी ।
उसे उसने कांपते हाथों से हटाया ।
कब तक आंखें बंद कर सकता था वह ? खोलीं--- तो दिव्या और देवांश को एक-दूसरे की बांहों में पाया । होठों पर जहरीली मुस्कान लिए दोनों उसकी तरफ उन नजरों से देख रहे थे जो कलेजे को चीरकर चाक-चाक कर देती हैं। जब तब भी दिव्या ने उसे मरते नहीं देखा तो नजरें उसी पर टिकाये देवांश से बोली- -- “देर मत करो देव ! ब्रा उतार लो मेरी । आग लग रही है जिस्म में ।”
“न-नहीं!... नहीं छोटे !” हलक फाड़कर रो पड़ा राजदान।
जवाब में दिव्या खिलखिलाकर हंसी ।
सैक्स से भरपूर थी वह खिलखिलाहट । ऐसी --- कि जहरीले नश्तर बनकर राजदान के दिलो-दिमाग में घुसती चली गई । देवांश ने उसकी तरफ इस तरह देखा था जैसे गंदी नाली में रेंग रहा घृणित कीड़ा हो । होंठों पर उसके लिए तिरस्कार ही तिरस्कार लिए हाथ दिव्या की पीठ पर ले गया । पलक झपकते ही ब्रा का हुक खोल दिया उसने। वहशियाना अंदाज में हंसते हुए एक झटके से ब्रा दिव्या के जिस्म से अलग कर
“न-नहीं!... नहीं छोटे !” हलक फाड़कर रो पड़ा राजदान।
दिव्या के गोल और पुष्ट उरोज उसकी छाती पर नाच से उठे | दिव्या ने अपनी छाती देवांश की तरफ तान दी । देवांश ने उन पर अपना चेहरा झुकाया । कनखियों से राजदान की तरफ देखा । मुंह खोला । बायें उरोज के निप्पल की तरफ बढ़ाया ।
“स्टॉप इट! स्टॉप इट!” पूरी ताकत से दहाड़ने के साथ राजदान ने जेब से रिवाल्वर निकालकर उन पर तान दिया।
जहां के तहां रुक गये दोनों ।
जाहिर था --- रुकने का कारण उसका चीखना नहीं----अपनी तरफ तना रिवाल्वर था । अगर वह सिर्फ चीखा होता तो अब तक तो बहुत आगे बढ़ चुका होता देवांश ।
सुर्ख था राजदान का चेहरा | बुरी तरह भभक रहा था । गुस्से की ज्यादती के कारण सारा जिस्म सूखे पत्ते की तरह कांप रहा था मगर आश्चर्य - - - उस हाथ में कोई कंपन नहीं था जिसमें रिवाल्वर था | रिवाल्वर के भाड़ से मुंह को अपनी तरफ तनता देखकर दिव्या और देवांश की न केवल सारी मस्ती झड़ गई बल्कि चेहरे पीले पड़ गये थे।
उसे हार्ट अटैक से मारने की धुन में रिवाल्वर को तो भूल ही गये थे वे । रिवाल्वर भी वह जिसमें पूरी छः गोलियां थीं । यह तो कल्पना भी नहीं की थी उन्होंने कि रिवाल्वर का इस्तेमाल आत्महत्या की जगह पर उनकी हत्या करने के लिए भी कर सकता है।
अपनी बेवकूफी के कारण इस वक्त वे उसके सामने खड़े थरथर कांप रहे थे।
“ये तो मैं जान ही गया था तुम जलील हो ।” राजदान ने दांत भींचकर कहा --- “मगर ये तब भी नहीं जान सका था कि नीच भी हो।... इतने नीच ! जी चाहता है अपने हाथों से तुम दोनों की खोपड़ियां खोल दूं । इस काम को करने से इस वक्त दुनिया की कोई ताकत मुझे रोक भी नहीं सकती । मगर नहीं.... इतनी आसान सजा नहीं दे सकता मैं तुम्हें । तुम्हारे गंदे खून से अपने हाथ रंगने का मैं जरा भी ख्वाहिशमंद नहीं हूं। जो गुनाह तुमने किया है उसकी सजा इतनी आसान नहीं हो सकती कि दो धमाके हों और तुम्हें हर मुसीबत से निजात मिल जाये । यह अंत नहीं छोटे, यह तो शुरूआत है। तुम्हारे अंत की शुरूआत। .... और दिव्या बाई! चौंको मत 'बाई' सुनकर। शांतिबाई और विचित्रा से कहीं ज्यादा घृणित वैश्या हो तुम । वे कम से कम कोठे पर तो बैठीं थीं । तुम तो मेरे दिल में बैठकर अपनी गोद में किसी और को बैठाये रहीं । तुम जैसी तवायफ के लिए यह सजा कोई सजा नहीं कि मैं गोली मारूं और तुम्हारा गंदा शरीर मेरे कदमों में आ गिरे । तुम्हारी सजा तो वो है... वो, जो मैंने मुकर्रर की है जो कदम-कदम पर तुम्हें मारेगी । याद रखना मेरी बात... मरने के बाद अगर मैंने तुम्हें तड़प-तड़पकर मरने पर मजबूर नहीं कर दिया तो मेरा नाम राजदान नहीं ।”
होश फाख्ता थे दोनों के। आंखों में वीरानियां | चेहरों पर खाक उड़ रही थी । राजदान ने जो भी कुछ कहा, उसका मतलब समझ में नहीं आकर दे रहा था उनकी । बस एक ही बात समझ में आ रही थी । यह कि - - - इस वक्त वह अपनी अंगुली के हल्के से इशारे से उनकी लाशें बिछा सकता है, मगर कह रहा है ऐसा नहीं करेगा ।
फिर क्या करेगा वह?
क्या करना चाहता है ? जानने की जबरदस्त जिज्ञासा थी उनमें, मगर सवाल करने की हिम्मत नहीं थी । राजदान की तरफ यूं देख रहे थे जैसे वे साक्षात् यमराज की तरफ देख रहे हों ।
थोड़े से विराम के बाद राजदान ने फिर कहना शुरू किया --- “तुम यही चाहते थे न कि मैं इस रिवाल्वर से आत्महत्या कर लूं? मैंने सारी जिन्दगी वही किया जो तुमने चाहा । फिर अपनी जिन्दगी के इस आखिरी लम्हें में वो कैसे कर सकता हूं जो तुम नहीं चाहते। वही होगा छोटे जो तुम चाहते थे, जिसके लिए मरे जा रहे थे तुम दोनों ... मैं इस रिवाल्वर से अपनी हत्या करने वाला हूं।”
रोमांचित हो उठे दिव्या और देवांश ।
क्या वह सच कह रहा है?
क्या वास्तव में वह आत्महत्या करने वाला है?
वह... जो इस वक्त बड़ी आसानी से उन्हें मार सकता है ?
ऐसी स्थिति में भला आत्महत्या क्यों करेगा कोई?
पागल ही कर सकता है ऐसा ।
यकीनन वह झूठ बोल रहा है। है
और अगर यह सच है तो भले ही वह पूरा पागल न हो, किसी न किसी हद तक दिमाग जरूर हिल गया है उसका। न जो शख्स अपने दुश्मनों को मारने की स्थिति में है, वह आत्महत्या की बात करे तो कैसे उसका दिमाग ठीक माना जा सकता है ?
जो बात उनके दिमागों में घुमड़ रही थी, वही कहा राजदान ने---“मैं जानता हूं इस वक्त तुम मुझे पागल समझ रहे होगे । मग़र पागल मैं नहीं, तुम हो । अपना कत्ल करने से पहले मैं तुम्हें एक बात बतानी चाहता हूं।... सिर्फ एक बात ।"
मुंह से आवाज वे अब भी नहीं निकाल सके।
“बीमा कम्पनी को मैं एक लैटर लिख चुका हूं। वह कल उन्हें मिल जायेगा। उसमें लिखा है --- अगर मैं सुसाइड कर है मैं लूं तो पांच करोड़ की रकम किसी को अदा न की जाये। सुन रहे हो न, उस रकम में से एक पाई भी तुम्हें नहीं मिलेगी, जिसके लिए मेरी आत्महत्या चाहते थे ।”
राजदान के शब्द गड़गड़ाती हुई बिजली की मानिन्द उनके दिलो-दिमाग पर गिरे थे । अगर यह कहा जाये तो गलत नहीं होगा कि उन चंद ही शब्दों ने उन्हें उस बंद कमरे में तारे दिखा दिए थे। पहली बार उनकी हालत का लुत्फ लेते राजदान ने कहा --- “मगर घबराओ मत ! तुम चाहे जितने कमीने सही लेकिन मैं इतना निष्ठुर नहीं कि पांच करोड़ तक पहुंचने के तुम्हारे सारे दरवाजे बंद कर जाऊं । एक रास्ता खुला रखा है मैंने । हराम में तो आजकल कोई किसी को दो वक्त की रोटी भी नहीं देता, फिर मैं पांच करोड़ कैसे दे सकता हूं। मेहनत तो करनी पड़ेगी उनके लिए। पूछा - - - पूछो क्या करना पड़ेगा मेहनत के नाम पर?"
बोल अब भी दोनों में से किसी के मुंह से न फूट सका ।
जुबान नाम की चीज मानो मुंह में थी ही नहीं।
“कमाल है। गूंगे हो गये तुम तो!” राजदान हंसा---“खैर, बताये देता हूं। ध्यान से सुनो --- मैंने बीमा कंपनी को लिखा है --- 'अगर मैं स्वाभाविक मौत मरूं या किसी के द्वारा मेरी हत्या कर दी जाये तो पांच करोड़ मेरी पत्नी को मिलें। उसे, जो पॉलिसी में मेरी नोमीनी है ।”
दिमाग घूमकर रह गये दोनों के ।
“ आया कुछ समझ में ?” पूछते वक्त राजदान के होठों पर जहरीली मुस्कान थी --- “मैं इस रिवाल्वर से इस ढंग से आत्महत्या करूंगा कि दुनिया की कोई ताकत उसे स्वाभाविक मौत साबित नहीं कर सकती । अब तुम्हें केवल एक स्थिति में पांच करोड़ मिल सकते हैं। तब, जब मेरी आत्महत्या को किसी और के द्वारा की गई हत्या साबित करो । याद रहे--- ---- अगर कोई इन्वेस्टीगेटर पकड़ गया ये हत्या नहीं आत्महत्या है तो कंगले के कंगले रह जाओगे | रामभाई शाह जैसे फाइनेंसर्स गोश्त नोंच-नोंच कर खा जायेंगे तुम्हारा ।” ।
दिव्या और देवांश उसके चक्रव्यूह को समझने की कोशि कर रहे थे ।
“उम्मीद है, पूरी स्थिति को अच्छी तरह समझ लिया होगा तुमने ।” राजदान कहता चला गया--- "मामला थोड़ा उल्टा है । क्राइम की दुनिया में लोग हत्या करके कानून से बचने के लिए उसे आत्महत्या साबित करने हेतु कसरत करते हैं । मगर तुम्हें, आत्महत्या को हत्या सिद्ध करने के लिए पापड़ बेलने होंगे। बहरहाल, सवाल पांच करोड़ का है। मुझे पूरी उम्मीद है - - - यह कोशिश तुम जरूर करोगे।”
वे दोनों डरी सहमी आंखों से उसे देखते रहे ।
“अब तुम कहोगे, ये तो जुल्म है तुम पर । भला इतनी जल्दी, आनन-फानन में मेरी आत्महत्या को कैसे और किसके द्वारा की गई हत्या साबित कर सकते हो ? टाइम तो मिलना ही चाहिए, ताकि सोच सको। समझ सको। प्लानिंग बना सको अपनी । गोली चलने का धमाका हुआ तो अभी दौड़े चले आयेंगे लोग यहां । कुछ करने का टाइम ही नहीं मिलेगा, इसलिए।” कहने के साथ उसने दूसरा हाथ जेब में डाला। साइलेंसर निकाला । उसे रिवाल्वर की नाल पर फिट करता बोला--- " अब ठीक है, मैं मर भी जाऊंगा और कानों कान किसी को खबर भी नहीं होगी। कम से कम बाकी रात तो मिलेगी ही तुम्हें प्लानिंग बनाने के लिए । ”
सकपकाये देवांश के मुंह से इतना ही निकल सका --- “तुम ऐसा नहीं करोगे ।”
“गधे हो तुम ! गधे ही रहे ! देखो --- ऐसा ही कर रहा हूं मैं।" कहने के बाद उसने साइलेंसर लगी रिवाल्वर की नाल अपने मुंह में घुसेड़ ली ।
“न- नहीं ।” हलक फाड़कर देवांश उसकी तरफ लपका।
परन्तु!
राजदान ट्रेगर दबा चुका था।
गर्म खून के छींटे देवांश को सराबोर कर गये। जहां का तहां खड़ा रह गया वह ।
दिव्या के हलक से चीख निकल गई थी ।
'पिट' की हल्की सी आवाज के बाद राजदान की खोपड़ी बीसवीं मंजिल से गिरे तरबूज की तरह फट गयी थी। चेहरे सहित चिथड़े उड़ गये थे उसके । अगर उसने यह सब उनके सामने न किया होता तो शायद लाश को पहचान भी न पाते ।
धड़ सोफे की पुश्त से जा टिका था, गर्दन से ऊपर के हिस्से के चिथड़े यूं बिखरे पड़े थे जैसे फटने के बाद पटाखे के अवशेष ! चारों तरफ खून ही खून ! गोश्त ही गोश्त !
रिवाल्वर अभी भी बगैर चेहरे वाली लाश के दोनों हाथों में था।
दिव्या और देवांश फटी-फटी आंखों से उस दृश्य को देख रहे थे । चेहरे ऐसे नजर आ रहे थे जैसे वर्षों से पीलिया के रोगी हों। टांगें यूं कांप रही थीं जैसे अब गिरे कि अब गिरे ।
दिमाग सांय-सांय कर रहे थे ।
लाश सामने पड़ी थी। फिर भी यकीन नहीं आ रहा था राजदान मर चुका है।
अभी वे इस सदमें से नहीं उबर पाये थे कि बुरी तरह चौंक पड़े।
चौंकने का कारण था --- किसी के द्वारा बंद दरवाजे पर दी गई दस्तक ।
दोनों की नजरें एक झटके से आवाज की दिशा में घूमीं! आंखें बाथरूम के दरवाजे पर स्थिर हो गयीं । दरवाजा कमरे की तरफ से बंद था । चेहरों पर हवाइयां उड़ रही थीं। मारे खौफ के बुरा हाल था। अभी वे सोच ही रहे थे --- दस्तक की आवाज उन्होंने वास्तव में सुनी थी या वह उनका भ्रम था कि - - - दरवाजा पुनः बाथरूम की तरफ से बहुत ही आहिस्ता से खटखटाया गया । मारे खौफ के दिव्या के हलक से चीख निकलने वाली थी कि देवांश ने झपटकर अपना हाथ उसके मुंह पर जमा दिया ।
दरवाजा एक बार फिर बाथरूम की तरफ से खटखटाया गया।
कौन था वहां? क्यों था बाथरूम में बंद? क्या वह भी राजदान की कोई चाल थी ? अगर हां, तो क्या? क्या खेल था वह ? कैसा चक्रव्यूह रचा था राजदान ने? क्या वह सचमुच मर गया था? कैसी सजा मुकर्रर कर गया था वह दिव्या और देवांश के लिए? क्या उन्होंने पांच करोड़ की खातिर राजदान की आत्महत्या को हत्या सिद्ध करने की कोशिश की? यदि हां - - - तो क्या गुल खिले ? किन-किन रास्तों से गुजरना पड़ा उन्हें और क्या वे कामयाब हो सके? विचित्रा और शांतिबाई क्या सचमुच मर चुकी थीं अथवा वे वापस आईं? वापस आईं तो क्या तूफान मचाया उन्होंने ? ठकरियाल का क्या पार्ट रहा सारे ड्रामे में? बबलू के पिता से क्या कहा था राजदान ने?
ऐसे... और ऐसे ही अन्य सैकड़ों सवालों का जवाब है
'शाकाहारी खंजर' । जी हां, तुलसी पेपर बुक्स से प्रकाशित होने वाला वेद प्रकाश शर्मा का उपन्यास --- 'शाकाहारी खंजर ।'
यह एक ऐसा उपन्यास है जिसके हर शब्द में वेद प्रकाश शर्मा ने बिजली का करेंट छोड़ दिया है। ऐसा करेंट जिसके झटके आप अपने दिमाग पर साफ-साफ महसूस करेंगे। यहां प्रस्तुत है --- 'शाकाहारी खंजर' के दो छोटे-छोटे दृश्यों की बानगी!
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