अदरक की गांठ जैसे टेढ़े-मेढ़े और बेढंगे शख्स ने कहा “गधे का बच्चा ही होगा वह जो इतने सबके बाद यह न समझ पाये कि कोई आपकी रामनाम सत्य का तलबगार है।"


राजदान ने अजीब से स्वर में कहा “बदकिस्मत होगा कोई। ”


“मतलब!”


कुछ कहता- कहता रुक गया राजदान, वापस विषय पर आता बोला “वह जो भी है, बेवजह मेरे खून से अपने हाथ रंगना चाहता है।”


“बेवजह कोई किसी का क्रियाकर्म नहीं किया करता । ”


“समझ नहीं आता। भला मुझे कोई क्यों मारना चाहेगा।”


“आप भी सोचिए, मेरी तो खैर ड्यूटी है ऐसे मौकों पर दिमाग भिड़ाना।” कहने के बाद वह देवांश से मुखातिब हुआ “क्यों देवांश साहब, आपका क्या ख्याल है । वो बम इस गाड़ी में किसी ने 'चुहल' करने के लिए रख दिया था या....


“ मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूं इंस्पेक्टर ।" देवांश उत्तेजित नजर आ रहा था “अगर मुझे पता लग जाये कि ये हरकत किसकी है तो बोटी-बोटी नोंच डालूं उसकी ।”


“भगवान न करे आपको पता लगे, क्योंकि बोटी-बोटी नोच डालने के जुर्म में खुद आप ही का बिस्तर सलाखों के पीछे लग जायेगा। खैर... जो हुआ, उससे भी ज्यादा हैरतअंग्रेज मुझे मिस्टर राजदान की वर्तमान अवस्था लग रही है ।”


“मैं समझा नहीं।”


“सूचना मिलने पर जब मैं अपने लाव-लश्कर के साथ यहां पहुंचा तो आपके, मिसेज राजदान के और यहां तक कि ‘राजदान एसोसियेट्स' से जुड़े हर शख्स के चेहरे पर मौत का खौफ 'हल्दी' बनकर कत्थक कर रहा था । स्वाभाविक भी यही था, बहरहाल साक्षात् मौत के मुंह से निकले थे आप लोग । मगर, मिस्टर राजदान के चेहरे पर वैसा कोई भाव नहीं था । बल्कि तब से अब तक इनके फेस पर बड़े ही अजीब ‘एक्सप्रेशन’ देख रहा हूं मैं। बिल्कुल आतंकित नजर नहीं आ रहे ये । ”


देवांश ने कोई टिप्पणी नहीं की लेकिन मन ही मन वह इंस्पेक्टर से सहमत था । एयरपोर्ट से ही अपने भैया की मनःस्थिति उसकी समझ में नहीं आ रही थी । एकाएक दिव्या बोली “कह तो आप ठीक रहे हैं इंस्पेक्टर | समझ में नहीं आ रहा ऐसा क्यों है ?”


“मेरे ख्याल से तुम लोग व्यर्थ की बहस में पड़ गये हो ।" राजदान ने थोड़े से रौब भरे स्वर में कहा “हमें यहां से चलना चाहिए।”


“फिर वही भैया ।” देवांश कह उठा “आपकी दिलचस्पी यह तक जानने में नहीं कि ये सब आखिर किसने और क्यों किया?...इंस्पेक्टर!” वह अदरक की गांठ जैसे शख्स की तरफ घूमकर बोला “एयरपोर्ट की पार्किंग में एक घटना हुई थी। वहां सभी ने बन्दूकवाला के बयान को बकवास माना । मगर अब लगता है वह सच कह रहा था । यकीनन लड़की ने उसे जाल में फंसाया । हंगामा किया और उसी दरम्यान गाड़ी में टाइम बम रख दिया गया ।”


“हंडरेड परसेन्ट यही हुआ है ।”


“बन्दूकवाला उस लड़की के बारे में काफी कुछ बता सकता है।"


“मैंने वायरलैस पर सूचना छोड़ दी है । बन्दूकवाला को साथ लिए पुलिस वाले किसी भी समय यहां आ सकते हैं। मगर मेरे एक्सपीरियेंस के मुताबिक वह लड़की केवल मोहरा होगी । असल 'एक्यूज' उसके पीछे छुपा होगा और उस तक तब तक नहीं पहुंचा जा सकता जब तक मिस्टर राजदान के मर्डर में किसी की दिलचस्पी का कारण पता न लगे ।”


“समझ में नहीं आता, भैया ने किसी का क्या बिगाड़ा है?"


“किसी भी हत्या के पीछे आज की तारीख में दो वजहें सबसे ज्यादा पाई जाती हैं।”


“कौन-कौन सी ?”


" पहली अवैध सम्बन्ध । जैसे आप ।” अदरक जैसे शख्स ने अपने रूल से देवांश की तरफ इशारा करने के तुरन्त वाढ रूल की नोक दिव्या की तरफ तानकर बगैर लाग-लपेट के कहा “और आपके बीच हो सकते हैं।”


“इंस्पैक्टर !” देवांश और दिव्या एक साथ चीख पड़े ।


अदरक जैसा शख्स बगैर प्रभावित हुआ कहता चला गया - “वैसे भी, देवर भाभी का रिश्ता मेरे जिस्म की तरह टेढ़ा-मेढ़ा होता है । "


“जुबान सम्भालो इंस्पैक्टर | जुबान संभालकर बात करो।” बुरी तरह दहाड़ने के साथ राजदान ने झपटकर दोनों हाथों से उसका गिरेबान पकड़ लिया और अंगारों की तरह दहकते स्वर में गुर्राया “अब अगर तुमने अपनी गंदी जुबान से एक लफ्ज भी निकाला तो जीभ काटकर फेंक दूंगा ।”


"इंस्पेक्टर ठकरियाल है नाम मेरा । मुझमें सबसे बुरी आदत तो ये है कि जो कहता हूं, बगैर लाग-लपेट के कह देता हूं ।" वह जरा भी उत्तेजित हुए बगैर शांत स्वर में कहता चला गया “एक पुलिस इंस्पेक्टर के गिरेबान पर हाथ डालने का दोषी मैं आपको नहीं मानता क्योंकि जो बात मैंने कही, उसकी प्रतिक्रिया में एक ऐसे शख्स को जो अपने भाई और बीवी पर इतना विश्वास करता है, वही करना चाहिए जो आपने किया। मगर दुर्भाग्य ये दुनिया ऐसे लोगों से भरी पड़ी है जो आप जैसे विश्वास करने वालों से विश्वासघात करते हैं।"


“दिव्या और छोटे की तरफ अपना रूल उठाकर तुमने अपने अब तक के जीवन की शायद सबसे बड़ी भूल की है। मेरा एक फोन... सिर्फ एक फोन तुम्हारे जिस्म से पुलिस की वर्दी उतरवा सकता है । "


“बेशक!” ठकरियाल ने कहा "बेशक उतरवा सकता है । क्योंकि आज के जमाने में 'नावा' सबसे बड़ी 'सोर्स' है और 'नावे' की आप पर कमी नहीं है । इसके बावजूद अगर मैंने यह नहीं कहा तो मेरे पेट में 'ऐंठन' हो जाएगी कि मैंने मिस्टर देवांश और मिसेज राजदान पर आरोप नहीं लगाया बल्कि केवल एग्जाम्पिल दिया है। सिर्फ यह कहा है कि अक्सर ऐसे रिश्ते जुड़ जाते हैं और वे रिश्ते... 


“ऐग्जाम्पिल भी तुम्हें सोच समझकर देना चाहिए इंस्पेक्टर ।”


दिव्या का चेहरा बुरी तरह तमतमा रहा था "हमारी संस्कृति में देवर भाभी का रिश्ता मां-बेटे का रिश्ता माना जाता है।"


“सबके विचार आप जैसे हो जायें तो धन्य हो जाय अपना देश |”


“और सबके विचार तुम जैसे हो जायें तो बेड़ा गर्क हो जाये समाज का । ” देवांश उसे कच्चा चबा जाने वाली नजरों से घूर रहा था “ऐसे देवर-भाभी जिसे मारना चाहते हैं उसके पीछे उसी गाड़ी में नहीं बैठ जाते जिसमें बम हो।”


“एग्जेक्टली... एग्जेक्टली यही बात मेरे दिलो-दिमाग में भी है | अगर तुम लोग बन्दूकवाला से उलझी लड़की के पीछे होते तो तुम्हें जरूर पता होता गाड़ी में बम है और किसी को मारने की कोशिश करने वाले खुद भी उसके साथ मर जाने का प्लान कभी नहीं बनाते। अतः यह सिद्ध हो गया इस कोशिश के पीछे वजह नम्बर वन अर्थात् 'अवैध सम्बन्ध' नहीं है ।”


अब कहीं जाकर तीनों के चेहरों से तनाव कम हुआ।


इंस्पेक्टर ठकरियाल ने बड़े ही मजेदार स्वर में कहा “अब तो पीछा छोड़ दीजिए मेरे गिरेबान का । ”


राजदान ने गिरेबान छोड़ दिया मगर घूर अब भी ठकरियाल को इस तरह रहा था जैसे 'वश' चले तो रसातल में मिला दे । ठकरियाल के काले और भद्दे होठों पर मुस्कान श्री अपनी शर्ट सीधी करता बोला “ अब आते हैं वजह नम्बर दो पर। दरअसल 'नावा' एक ऐसी वस्तु है जो अपने साथ अनेक मुसीबतें लाता है। आप जैसे 'नावे' वाले की रामनाम सत्य अक्सर नावे के कारण ही होती है। इसलिए मुझ जैसे पुलिस इंस्पेक्टर को यह सोचना पड़ता है कि मरने वाले के बाद उसका 'नावा' किसका होगा ?”


तीनों चुपचाप उसे घूरते रहे, दरअसल उसकी बातें अब उन्हें अच्छी नहीं लग रही थीं। वह बगैर इस बात की परवाह किये कहता चला गया “मिस्टर राजदान के बाद 'नावा' मिसेज राजदान का होगा । गाड़ी में बम लुढ़काने वाले को पता होगा कि उसकी करतूत जब फटेगी तो मिसेज राजदान भी गाड़ी में होंगी। मतलब साफ है उस हरकत के पीछे मिसेज राजदान नहीं हो सकतीं । अब हम आगे बढ़ते हैं।” वह देवांश से बोला “ये दोनों न रहें तो 'नावा' तुम्हारा हो जाएगा।"


भभकता देवांश कुछ कहने ही वाला था कि राजदान गुर्रा उठा “तुम बेसिर-पैर के कयास लगाये चले जा रहे हो इंस्पेक्टर! ये सच है देवांश हमारे साथ इस गाड़ी में सफर करने वाला नहीं था। मगर उससे भी बड़ा सच ये है कि बन्दूकवाला के पकड़े जाने के कारण ये गाड़ी ड्राइव करने का फैसला भी खुद छोटे का ही था । अगर इसी ने बम रखवाया होता तो क्या ये ऐसा करता? दूसरे देखा जाये तो बम को पकड़ा भी इसी ने । हम तीन जिन्दगियों को बचाने का श्रेय इसी को है। और इन सबसे बड़ी बात कौन सी दौलत के लिए हमें और दिव्या को मारने की कोशिश करेगा? ये दौलत तो हमारे जीते जी इसी की है ।”


“यही तो... यही तो कहना चाहता हूं मैं । मिस्टर देवांश ने यह सब नहीं किया हो सकता....। अब सवाल उठता है आप तीनों के बाद 'नावा' किसका होगा ?"


“अनाथ आश्रम का ।” जवाब दिव्या ने दिया “हम तीनों के बाद दुनिया में हमारा कोई नहीं है । "


“नहीं ।” ठकरियाल बड़बड़ाया “अनाथ आश्रम वाले तो ऐसा करने से रहे । ”


“क्यों ?... क्यों नहीं कर सकते ऐसा ?” देवांश ने व्यंग्य किया “जब तुम्हारे ख्याल से किसी नावे वाले की हत्या के पीछे सबसे बड़ी वजह नावा ही होती है तो अनाथ आश्रम वालों ने हम


तीनों के मर्डर की कोशिश क्यों नहीं की हो सकती ?”


“क्योंकि जिसने भी ये षड्यंत्र रचा, उसकी दिलचस्पी आपके मर्डर में नहीं थी । आप तो 'वेआई' में हलाल होने वाले थे । उसकी दिलचस्पी मिस्टर एण्ड मिसेज राजदान के मर्डर में थी शायद - - - - मिसेज राजदान भी इम्पोर्टेन्ट नहीं थीं उसके बल्कि ———— लिए । निशाना केवल राजदान थे। उनके साथ मिसेज राजदान भी मरती हैं तो मरें । मतलब साफ है ----ये जो भी कुछ हुआ, नावे के कारण भी नहीं हुआ ।”


देवांश ने पुनः व्यंग्य किया ---- “तुम्हारे ख्याल से किसी आदमी के मर्डर की कोशिश के पीछे तीसरी वजह क्या होती है ?"


“जर और जोरू के बाद नम्बर आता है जमीन का । ” ठकरियाल देवांश के व्यंग्य पर जरा भी ध्यान नहीं दे रहा था ---- “उसका... जिसका आप लोग धंधा करते हैं। जमीनें खरीदना बेचना, उन पर कालोनियां बनाना । फ्लैट्स और प्लॉट्स बेचना। यही धंधा है न राजदान एसोसियेट्स का ? दरअसल यह धंधा भी इस वारदात की वजह हो सकता है । धंधा ही ऐसा है, चाहे अनचाहे किसी न किसी के साथ नाइंसाफी हो जाती है। जैसे हम औने-पौने दामों में किसी की इच्छा के खिलाफ उसकी जमीन हड़प लेते हैं। ऐसा कोई दिलफुंका..


“इंस्पेक्टर, आगे कुछ कहो ---- इससे पहले मैं तुम्हारे संज्ञान मैं में यह बात ला देना चाहूंगा, सारे मुंबई में ढूंढने पर भी तुम्हें ऐसा शख्स नहीं मिल सकेगा जो यह कह सके कि राजदान ने उसके साथ नाइंसाफी की है।”


“तब तो मुझे आपसे वही रटा रटाया सवाल पूछना पड़ेगा जो मेरे जैसे हालात में फंसा इंस्पेक्टर उस शख्स से पूछता है, जिसकी हत्या की कोशिश की गई हो !”


“कैसा सवाल ?”


“दुश्मनी तो नहीं पाल रखी है किसी से ?”


“नहीं।”


“आप जैसा शरीफ आदमी अक्सर यही जवाब देता है । क्योंकि छोटी-मोटी बातों को उसने कोई महत्त्व ही नहीं दिया होता लेकिन असल में, आपके लिए छोटी बात किसी के लिए बड़ी बात हो सकती है ---- उसे महत्व देकर वह आपका दुश्मन बन गया हो सकता है और आपको पता तक नहीं लग पाता कि आपका कोई दुश्मन इस दुनिया में पैदा हो चुका है।"


“इस बारे में क्या कह सकता हूं मैं ?... जहां तक मुझे याद है ---- मेरी कभी किसी से इतनी बात नहीं हुई कि वह मेरी जान का दुश्मन बन जाये।”