क्लब का नाम था—गोताखोर क्लब।
हालांकि इस क्लब में वे सभी काम होते थे, जो किसी भी क्लब के कार्यक्रम होते हैं, परन्तु गोताखोरी क्लब का एक विशेष तथा ऐसा मनोरंजन था, जो लंदन के किसी अन्य क्लब में नहीं था, अतः इस क्लब के सदस्य अक्सर वही लोग बन करते थे, जो गोताखोरी में विशेष दिलचस्पी रखते हों।
क्लब के पास गोताखोरी की अनेक पोशाकें तथा ऑक्सीजन सिलेंडर्स थे—क्लब के जिस सदस्य का जब जी चाहे गोताखोरी की पोशाक पहने, पीठ पर ऑक्सीजन सिलेंड़र लादे और टेम्स नदी में छलांग लगा दे।
जब तक जी जाहे टेम्स की गहराइयों में किसी जलजीव की तरह अठखेलिंया करता रहे।
साप्ताहिक चंदे के अलावा सदस्यों से गोताखोरी का कोई पाउंड़ नहीं लिया जाता था—हां, उन लोगों से गोताखोरी की कीमत ली जाती थी, जो क्लब के सदस्य नहीं होते थे।
यानि क्लब की तरफ से बाहरी व्यक्तियों के लिए भी गोताखोरी का प्रबन्ध था, परन्तु उनसे प्रति घंटे के हिसाब से पोशाक और सिलेंडर का किराया वसूला जाता था।
वह क्लब का आय की एक अच्छा साधन था, क्योंकि प्रतिदिन बहुत-से बाहरी व्यक्ति क्लब से पोशाक और सिलेंड़र लेकर गोताखोरी किया करते थे।
प्रति संध्या की तरह उस दिन आज भी क्लब के बाहर पोशाक तथा सिलेंड़र प्राप्त करने के लिए बाहरी व्यक्तियों की लाइन लगी हुई थी और इसी लाइन में नवें नंबर पर विजय खड़ा था।
उस वक्त विजय के 'बशीर' वाले चेहरे के ऊपर मेकअप की एक और पर्त थी।
उस समय वह गोरे रंग, नीली आंखों तथा सुनहरे बालों वाला ब्रिटिशर नजर आ रहा था—ठोड़ी पर फ्रेंचकट दाढ़ी थी और नाक कुछ चौड़ी-सी नजर आ रही थी।
नंबर आने पर रजिस्टर में उसने अपना नाम लार्ड्स लिखा।
पंद्रह मिनट बाद उसने लाल रंग की गोताखोरी की पोशाक पहन रखी थी, पीठ पर ऑक्सीजन सिलेंडर था और मस्तक पर था बहुत ही चौड़े फ्रेम वाला गोताखोरी का चश्मा।
टेम्स के किनारे पर पहुंचकर उसने एक नजर ध्यान से किनारे से काफी दूर हटकर परन्तु टेम्स के समानंतर पंक्तिबध्द-सी खड़ी उन ढेर सारी इमारतों को देखा—उसकी नजर पर एक पांच मंजिली इमारत पर ठिठक गई।
इस इमारत के मस्तक पर लगे बोर्ड़ पर लिखा था—बैंक संस्थान।
आंखों से ही विजय ने इमारत से लेकर टेम्स तक एक सरल रेखा खींची, गोताखोरी के चश्मे को आंखों पर फिट किया और टेम्स के स्वच्छ जल में छलांग लगा दी।
अब वह पानी के अन्दर तैर रहा था।
उसने अलावा पानी के अन्दर अन्य कोई गोताखोर अठखेलियां कर रहे थे, परन्तु किसी की भी तरफ ध्यान दिए बिना विजय किसी सनसनाते हुए तीर की तरह टेम्स के तल की तरफ उतरना चला गया।
नदी के तल में जगह-जगह, चिकने और बड़े-बड़े पत्थर पड़े थे।
विजय ने कसकर एक पत्थर को पकड़ लिया और खुद को बहाव के साथ बहने से रोका—उस स्थिति में स्वयं को स्थिर करके उसने ध्यान से चारों तरफ देखा।
तेज बहाव के बावजूद तल पर पड़े भारी-भारी पत्थर टस-से-मस नहीं हो रहे थे। इतनी गहराई में आस-पास उसे कोई अन्य गोताखोर भी नजर आ रहा था।
वह आश्वस्त-सा हुआ।
दरअसल इतनी गहराई में कोई साधारण गोताखोर उतर भी नहीं सकता था। वे लोग जो गोताखोरी सिर्फ मनोरंजन के लिए करते थे, नदी के तल तक पहुंचने का खतरनाक काम क्यों करते?
बहाव में फंसकर वे किसी पत्थर से टकरा सकते थे। ऐसी अवस्था में किसी के भी जख्मी हो जाने, गोताखोरी की पोशाक फट जाने, चश्मा टूट जाने या ऑक्सीजन सिलेंडर के टूट जाने का खतरा नहीं उठाते थे।
अच्छी तरह से आस-पास का निरीक्षण करने के बाद विजय ने पत्थर छोड़ दिया और अब वह स्वयं को तल के समान्तर रखकर किनारे की दीवार की तरफ तैरने लगा।
वह स्वयं को टेम्स के तल से एक गज ऊपर रखे हुए था।
किसी मछली के समान तैरता हुआ वह शीघ्र ही टेम्स की एक दीवार के समीप पहुंचा गया और फिर दीवार के सहारे-सहारे, तल से एक गज ऊपर रहकर वह बहाव के विरुध्द तैरता रहा।
बीच—बीच में वह अपनी वाटरप्रूफ रिस्टवॉच में समय भी देखता जा रहा था।
लंबे समय तक बहाव के विरुध्द लगातार तैरता रहने के कारण विजय काफी थक गया था, सांस फूल गई थी इसलिए समीप ही पड़े एक पत्थर का सहारा लेकर खड़ा हो गया।
पांच मिनट उसने अपनी उखड़ी हुई सांस को नियंत्रित करने में खर्च किए।
फिर पत्थर की बैक से निकलकर तैरता हुआ दीवार के समीप पहुंचा तथा दीवार को अजीब-से ढंग से ठोकने-पीटने लगा।
कभी वह दीवार को ठोकर मारता था तो कभी घूंसा।
अंदाज कुछ ऐसा था जैसे देख रहा हो कि दीवार कितनी मजबूत थी।
कम-से-कम एक घंटे तक दीवार के सहारे-सहारे तैरता हुआ उसकी मजबूती को परखता रहा और फिर उसने फास्फोरस से दीवार पर एक जगह क्रॉस निशान लगा दिया।
फास्फोरस से बना क्रॉस दूर ही से स्पष्ट चमक सकता था।
क्रॉस का वह निशान उसने दीवार पर जहां लगाया था, वह स्थान नदी के तल से केवल दो फीट ऊपर था और इतना काम करने के बाद विजय कुछ इस तरह पानी को चीरता हुआ सतह की तरफ बढ़ा जैसे क्रॉस का यह निशान लगाने ही वह वहां गया था।
शीघ्र ही वह टेम्स की सतह पर नजर आया और फिर नदी से बाहर निकलने के लिए किनारे की तरफ तैरने लगा, किनारे तक पहुंचते-पहुंचते उसने एक ऐसे व्यक्ति को गोताखोरी की पोशाक पहने टेम्स में कूदते देखा, जिसे देखते ही उसके जिस्म में झुरझुरी-सी दौड़ गई।
टेम्स में कूदने वाला यह व्यक्ति जेम्स बॉण्ड था।
¶¶
"इसका मतलब यह हुआ गुरु कि आप निशान लगा आए हैं?"
"बेशक।"
"मगर क्या जरूरी है कि यह निशान 'बैंक संस्थान' की इमारत के ठीक सीध ही में हो?"
"जिस हिसाब से नाप-तोलकर हमने निशान लगाया है, उस हिसाब से तो ठीक सीध में ही होना चाहिए।"
विक्रम बोला—"यदि निशान बिल्कुल एक्युरेट जगह नहीं होगा तो एक्युरेट के आस-पास कहीं जरूर होगा—अब हमें अपनी इससे आगे की कार्यवाही पर विचार करना चाहिए।"
अशरफ ने समर्थ किया—"विक्रम ठीक कह रहा है।"
"आगे की कार्यवाही पर विचार करने से पहले हमें एक और बात पर विचार करना होगा।"
"वह क्या?" आशा ने पूछा।
"गोताखोरी का शौक अपने बॉण्ड प्यारे को भी है।"
सभी एक साथ चौंक पड़े—"क...क्या !"
"जी हां, जब हम टेम्स से बाहर आ रहे थे तो हमने अपने इन मृगनयनों से देखा कि गोताखोरी की पोशाक पहने जेम्स बॉण्ड ने टेम्स में जम्प लगाई हैं, बाद में अपने तरीके से हमने मालूम किया तो पता लगा कि बॉण्ड क्लब का सदस्य है और हफ्ते में तीन दिन गोताखोरी जरूर करता हैं।"
"बंटाधार।" विक्रम बड़बड़ाया।
अशरफ बोला—"यह कम्बख्त आदमी है या जिन्न, जहां देखो पहुंच जाता है।"
लगभग सभी के चेहरो पर सोचने के चिह्र उभर आए थे। आंखों में दरशत के हल्के-से भाव भी थे, फिर भी स्वयं को काफी हद तक संभालकर विकास ने कहा—"मगर इसमें हमारे लिए इतना आंतकित होने की क्या जरूरत हैं—जिस तरह दूसरे लोग गोताखोरी करते हैं, वह भी करता रहे।"
"क्या तुम उसकी तुलना साधारण लोगों से करते हो?"
"ऐसा नहीं है, गुरु...मगर...।"
"मगर क्या?"
"क्या उसे ख्वाब चमकेगा कि हम टेम्स के अन्दर से कोई सुरंग बना रहे हैं।"
आशा बोली—"विकास ठीक कह रहा है, विजय। नदीं के अन्दर से सुरंग बनाए जाने की कल्पना तो कोई बिरला भी नहीं कर सकता, स्वयं हमने नहीं की थी—जब तुमने नदी में से सुरंग बनाने की घोषणा की थी तो हममे से कोई उस पर यकीन नहीं कर सका था, हम सब समझे थे कि तुम हमेशा की तरह कोई अटपटा-सा मजाक कर रहे हो, परन्तु जब तुमने यकीन दिलाया कि तुम हमेंशा की तरह सीरियस हो तो हम सबको लगा कि निश्चय ही तुम्हारे दिमाग का कोई पेंच ढीला हो गया है—इतने तेज बहाव वाली नदीं में से सुरंग बनाए जाने की कल्पना भला कौन कर सकता था?"
"मैं तो अभी विश्वास नहीं कर पा रहा हूं कि यह सुरंग बन सकेगी।" विक्रम बोला।
"चर्चा सुरंग की नहीं, प्यारो बॉण्ड की चल रीह थी—अपने दिलजले ने कहा था कि बाण्ड को ख्वाब नहीं चमकेगा, बेशक यह सच है—वह
हर्गिज कल्पना नहीं कर सकेगा कि हम टेम्स के अन्दर से सुरंग बना सकते हैं—मेरी बात पर गौर फरमाइएगा, ऐसा वह केवल तब तक नहीं सोच सकेगा जब तक कि उसे कोई आधार न मिल जाए।"
"मतलब?"
"आधार मिलते ही वह सारा माजरा समझ सकता है और कोई बहुत छोटा-सा प्वॉइंट भी उसके लिए आधार का काम कर जाएगा, बॉण्ड उनमें से है जो लिफाफा देखकर उसके अन्दर बंद मजमून को ज्यो-का-त्यों बता सकते हैं।"
"यानि?"
"टेम्स के आस-पास या नदी के अन्दर उसने हमें देख लिया तो निश्चय ही पहचान जाएगा और यदि उसने हममें किसी को पहचान लिया तो फिर दुनिया की कोई ताकत उसे यह पता लगाने से नहीं रोक सकेगी कि वहां हम क्या कर रहे हैं?"
"यानि सारा काम हमें पूरी सतर्कता के साथ करना होगा?"
"हम महज यही कहना चाहते हैं।"
"ठीक है, गुरु।" विकास ने सबका प्रतिनिधित्व करते हुए कहा—"सारी कार्यवाही के दौरान हम सब जरूरत से ज्यादा सतर्क रहेंगे।"
"नि:स्संदेह।"
"जहां तुम निशान लगाकर आए हो, वहां दीवार कैसी है?"
"मिट्टीदार—बीच-बीच में से पत्थर भी निकलने चाहिएं।"
"तो फिर ड्रिल मशीन का प्रबन्ध किया जाए?"
"हां, हमारी सबसे अधिक महत्तवपूर्ण और कठिन जरूरत ड्रिल मशीन ही है—उसके बिना नदी के अन्दर से सुरंग बनाए जाने का श्रीगणेश नहीं हो सकता।"
"ड्रिल मशीन, मशीनों की किसी भी दुकान से खरीदी जा सकती हैं।"
"दुकानों पर मिलने वाली मशीन तो काम कर जाएगी, परन्तु उसका ड्रिल हमारे लिए किसी काम का नहीं होगा, हमें खराद मशीन पर तैयार किया गया स्पेशल ड्रिल चाहिए।"
"क्या मतलब?" आशा ने पूछा।
"ड्रिल मोटरयुक्त मशीन में फिक्स उस सुए जैसी वस्तु को कहते हैं जो किसी भी दीवार में छेद कर सकती है, मशीन में जितने ज्यादा व्यास का ड्रिल फिक्स किया जाएगा दीवार में उतने ही व्यास का छेद बन सकता हैं और बाजार में ज्यादा-से-ज्यादा दो इंच व्यास की ड्रिल मिल सकता है, जबकि कम-से-कम एक फुट व्यास के ड्रिल की जरूरत है—नदी की दीवार में हमें छेद नहीं करना है, बल्कि पूरी एक सुरंग बननी है।"
"यह स्पेशल ड्रिल भला हम कहां से लाएंगे?"
"खराद मशीन पर इतने बड़े ड्रिल बन सकते हैं, मगर बनते इसलिए नहीं हैं, क्योंकि साधारणतया इतने बड़े ड्रिल्स की कभी किसी को जरूरत ही नहीं पड़ती है, लोग ड्रिल मशीन का इस्तेमाल दीवार में सुराख करने के लिए तो करते हैं, सुरंग बनाने के लिए नहीं।"
"तो क्या हमें यह स्पेशल ड्रिल किसी खराद पर तैयार कराना होगा?"
"यही एकमात्र रास्ता हैं।"
"म...मगर इससे तो हम लोगों की नजरों में आ सकते हैं, सबसे पहले तो खराद मशीन वाला ही पूछेगा कि हम इतने बड़े ड्रिल का क्या करेंगे? अजीब बात होने की वजह से वह इसका जिक्र किसी अन्य से भी कर सकता है और फैलती हुई बात पुलिस तक पहुंच गई तो...?"
"सबसे बडी समस्या यही है प्यारे जिसका हल हम सबको मिलकर सोचना है।" विजय के इस वाक्य के बाद उन पांचों के बीच सन्नाटा छा गया—सभी एक-दूसरे का मुंह ताकने लगे, जैसे किसी को कुछ न सूझ रहा हो।
उस वक्त वे खंडहर के एक ऐसे कमरे में बैठे थे, जिसकी छत का काफी बड़ा हिस्सा जाने कितने वर्ष पहले गिर चुका था, कमरे के अन्दर बैठे-ही-बैठे आराम से आकाश को देखा जा सकता था, उस वक्त उनके बीच एक बहुत मोटी मोमबत्ती जल रही थी।
आकाश पर तारे टिमटिमा रहे थे।
मोमबत्ती के चारों तरफ बैठे वे उपरोक्त बातें कर रहे थे—मोमबत्ती की लौ कांप रही थी और उसके साथ ही कांप रहा था उनके चेहरे पर मौजूद पीला प्रकाश—और फिर उनके बीच छाए इस सन्नाटे को भद्द की एक जोरदार आवाज ने तोड़ा।
एक साथ सभी चौंककर उछल पड़े !
कमरे के अन्दर कोई बहुत ही भारी वस्तु गिरी थी और जब इस वस्तु पर आशा की नजर पड़ी तो न चाहते हुए भी उसके कण्ठ से एक जबरदस्त चीख उबल पड़ी।
सारा खंड़हर जैसे इस चीख की आवाज से झनझना उठा।
शेष चारों में से किसी के कण्ठ से चीख तो नहीं निकली, किन्तु विजय सहित उन सभी के जिस्मों के रोएं जरूर खड़े हो गए थे, दिल धक—धक करके धड़कने लगे थे, क्योंकि धम्म की आवाज के साथ कमरे के अन्दर गिरने वाली वह वस्तु अन्य कुछ नहीं, एक लाश थी।
चैम्बूर की लाश।
उन सभी की दृष्टि लाश पर तरह चिपककर रह गई, जैसे किसी जानवर की लाश पर गिध्द की दृष्टि चिपक जाती है। सभी की आंखों में खौफ की हल्की-हल्की-सी परछाइयां नाच रही थीं।
विकास ने चेहरा उठाकर छत पर टूटे हुए हिस्से को घूरा। यह लाश उसी के माध्यम से कमरे में डाली गई थी, एकाएक ही विकास गुर्राया—"कौन हो तुम, समाने आओ।"
"ही-ही-ही।" वातावरण में वही भयानक हंसी की आवाज गूंज उठी—"इस तरह गुस्से में क्यों बुलाते हैं जनाब, प्यारे से पुकारिए न—हम दौड़ चले आएंगे।"
विजय ने ऊंची आवाज में पूछा—"तुम इस वक्त यहां क्यों आए हो?"
"लीजिए जनाब—आप तो इस नाचीज को निमंत्रण देकर भूल गए, खैर—हम याद दिलाए देते हैं—जरा अपनी—अपनी खूबसूरत कलाईयों में बंधी रिस्टवाचों में समय देख लें—ठीक वही समय है, जो मेरे और आपके बीच कल रात फोन पर फिक्स हुआ था—हां, मिलने का स्थान जरूर बदल गया है, मगर इसमें भी मेरी नहीं, आप ही की गलती है, जनाब—मैं पहले पीटर हाउस ही गया था, जब आप वहां नहीं मिले तब यहां आया हूं।"
"तुम्हें जो भी बात करनी है, सामने आकर करो।" विजय ने ऊंची आवाज में कहा।
"जो हुक्म, बंदापरवर।" इन शब्दों के साथ ही टूटी हुई छत से लहराकर एक इंसानी साया धम्म से कमरे के फर्श पर कूद पड़ा।
वे सभी चौंक पड़े।
विकास ने जेब से रिवॉल्वर निकाल लिया था—किन्तु उसने फायर नहीं किया—अपने शेष साथियों की तरह वह भी स्थिर निगाह से आगुंतक को देखने लगा।
उसके संपूर्ण जिस्म पर चुस्त स्याह लिबास था।
चेहरे पर काला नकाब।
नकाब के अन्दर से उसकी आंखों झांक रही थी, परन्तु प्रकाश मोमबत्ती का होने वजह से उसकी आंखों के रंग को ठीक से नहीं देखा
जा सकता था।
वे सब अभी उसे देख ही रहे थे कि उसने विकास से कहा—"यह तमंचा जेब में रख लीजिए हुजूर, मैं मां कसम खाकर कहता हूं कि मुझे इससे बहुत डर लगता है।"
उसकी बात पर ध्यान दिए बिना विकास गुर्राया—"कौन हो तुम?"
"बंदा सामने है, फिर कौन हो प्रश्न ही कहां उठता है?"
"ज्यादा स्मार्ट बनने की कोशिश मत करो।" विकास की गुर्राहट किसी भेड़िए की-सी गुर्राहट में बदलती चली गई—"मैं तुम्हारे इस नकाब के पीछे चेहरे की बात कर रहा हूं।"
"ओह, आपका मतलब यह था—मगर गुस्ताखी माफ करें, हुजूरआला, यह रकीब ऐसा नहीं कर सकता, क्योंकि ऐसा होते ही आप मेरा यह प्यारा-सलोना मुखड़ा देख लेंगे।"
इसके वाक्य और विशेष रूप से बोलने के अंदाज पर विकास को इतना गुस्सा आया कि सारे जिस्म में एक अजीब-सी सनसनी दौड़ती चली गई, जी चाहा कि इसी वक्त ट्रेगर दबाकर एक ऐसी गोली उसके चेहरे पर मारे कि उसके चेहरे के परखच्चे उड़ जाए, मगर ऐसा कर नहीं सका विकास, हां—कठोर स्वर में कहा जरूर—"मैं तुम्हें इसी वक्त गोली मार सकता हूं।"
"अपना ही नुकसान करेंगे, सरकार।"
"क्या मतलब?"
"मेरे जिस्म पर मौजूद लिबास और यह नकाब भी बुलेट-प्रूफ हैं यानि आपको आपकी गोली मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकेगी—हां, मुझे यह जरूर पता लग जाएगा कि आप मुझसे दोस्ती नहीं दुश्मनी चाहते है और फिर आपके मेरी दुश्मनी का स्वाद चखना पड़ेगा।”
"हमारा क्या कर लोगे तुम?"
"मेरा ख्याल है सरकार कि मेरे यहां आगमन से आप लोग यह तो समझ ही गए होंगे कि आप दुनिया की नजरों से छुप सकते हैं, मेरी नजरों से नहीं—आप जहां भी जाएंगे मुझे पता लगा जाएगा और फिर किसी भी स्थान पर आपको ब्रिटिश पुलिस घेर लेगी—मैं उन्हें ऐसे सबूत भी दे सकता हूं, जिनमें वे आपको अंतर्राष्ट्रीय अदालत में भारतीय जासूस साबित कर सकें।
इस बार विजय बोला—"और प्यारे, यदि हम सब मिलकर तुम्हें इसी वक्त यहां दबोच लें तो?"
"जो काम मैं करता, वही मेरा साथी करेगा—मैं उससे कहकर आया हूं कि यदि मैं तीन घंटे तक उसके पास न लौटूं तो वह जेम्स बॉण्ड तक ने केवल सारे सबूत पहुंचा दे, बल्कि उन्हें यह सूचना भी दे दे कि आप लोग कहां हैं?"
"इसका मतलब यह हुआ प्यारे कि तुम पूरी तरह तैयार होकर आए हो?"
"तैयार रहना पड़ता है, हुजूर, वरना आप जैसी महान हस्तियां तो मुझे इस तरह चट कर जाएं जैसे छोटे—छोटे बच्चे टॉफियां चट कर जाते हैं।"
"रिवॉल्वर जेब में रख लो प्यारे दिलजले।" विजय ने घूमकर विकास से कहा—"फिलहाल यह हमारे कब्जे से बाहर की वस्तु बनकर आया है।"
न चाहते हुए भी विकास ने रिवॉल्वर जेब में रख ली।
"अब बोलो प्यारे, क्या चाहते हो तुम?"
"फोन पर बता चुका हूं हजरत, फिर दोहराता हूं—कोहिनूर की कीमत का एक परसेंट।"
"शायद तुम जानतो हो कि हम कोहिनूर को बेचेंगे नहीं।"
"फिर भी, उसकी कीमत का अंदाजा लगाकर आप कीमत मुझे दे सकते हैं।"
"कीमत कैसे तय होगी?"
"मैं अमेरिकी सरकार से कोहिनूर का सौदा करुंगा, जो कीमत वे आंक देंगे आप मुझे उसी का एक परसेंट दे दीजिएगा।"
"काफी चालू किस्म के आदमी हो।"
"क्या करें हुजूर, व्यापार में बनना पड़ता है।"
"खैर, अगर हम तुम्हारा ऑफर स्वीकार कर लें?"
बहुत ही आत्मविश्वास के साथ कहा उसने—"यह जर्रानवाजी तो हुजूर को करनी ही पड़ेगी।"
उसके इस जवाब पर एक बार तो विजय जैसा व्यक्ति भी भिन्नाकर रह गया, एक पल तक वह बिना कुछ भी बोले नकाब में से झांकती उसकी आंखों को देखता रहा, फिर बोला—"क्या तुम हमारे से सौदा स्वीकार कर लेने की किसी किस्म की गारंटी चाहोगे?"
"सरकार 'हां' कह दें, यही सबसे बड़ी गारंटी हैं।"
"क्या मतलब?"
"इसमें मतलब की गुंजाइश की कहां रह गई हैं, बंदापरवर? आपने गारंटी की बात कही—मैंने कह दिया कि आपकी 'हां' ही मेरे लिए गारंटी हैं, आखिर व्यापार करता हूं और व्यापार में आदमी की जुबान का एतबार तो करना ही पड़ता है।"
इसमें शक नहीं कि उसके उपरोक्त शब्दों ने विजय जैसे काइयां व्यक्ति की बुध्दि को भी चकराकर रख दिया था, अपनी किस्म का यह पहला ही व्यक्ति था, जो इस रूप में इतरे जबरदस्त कॉन्फिडेंस के साथ बात कर रहा था वर्ना अक्सर इस किस्म के ब्लैकमेलर निश्चय ही ऐसी कोई गारंटी चाहते है कि जिससे समय आने पर पार्टी अपने वादे से न मुकरे।
कुछ भी सही, व्यक्ति के आत्मविश्वास ने विजय को प्रभावित किया, बोला—"क्या तुम हमारी पोल न खोलने के बदले में ही एक परसेंट मांग रहे हो?"
"और आप क्या चाहते हैं?"
"आपको किस किस्म की मदद चाहिए, कहकर देखिए, यदि मैं कर सकूंगा तो जरूर करूंगा और यदि बात मेरे वश से बाहर होगी तो स्पष्ट इन्कार कर दूंगा।"
"क्या तुम एक ड्रिल का इंतजाम कर सकते हो?"
"आपको एक फुट व्यास की ड्रिल चाहिए न?"
एक बार फिर विजय उसे देखता रह गया—उसका यह वाक्य सबूत था इस बात का कि उसे इनकी योजना के बारे में पूर्ण जानकारी थी, परन्तु चेहरे पर कोई विशेष भाव उत्पन्न न करके वह बोला—"हां।"
"मैं ड्रिल का इंतजाम कर दूंगा।"
"वैरी गुड—तो समझो कि तुम्हारा एक परसेंट पक्का।"
"थैंक्यू वैरी मच।" कहने के साथ ही वह अपने पेट पर हाथ लगाकर इस तरह झुका जैसे किसी राजा से कोई उपहार मिलने पर मुलाजिम झुकता है।
विजय ने चैम्बूर की लाश की तरफ संकेत करके पूछा—"म...मगर तुम इसे साथ लिए क्यों फिर रहे हो?"
"सौदा न होने तक इसका मेरे पास रहना जरूरी था—अब आपके हवाले है, इसे आपने मारा है, अतः लाश को भी आप स्वयं ही ठिकाने लगाएं तो इसकी आत्मा प्रसन्न हो उठेगी।"
¶¶
प्रोजेक्टर की चरखी धीरे-धीरे घूम रही थी और उसके साथ ही घूम रही थी चरखी पर चढ़ी हुई फिल्म—शेष कमरे में अंधेरा था और प्रोजेक्टर के सामने स्टैंड पर फिक्स परदे पर फिल्म चल रही थी—प्रोजेक्टर के पीछा खड़ा अलफांसे बहुत ही ध्यान से उस फिल्म को देख रहा था।
फिल्म बिल्कुल साइलेंट थी।
नाइट गाउन पहनने के बाद मिस्टर गार्डनर ने अभी-अभी अपने पैरों में स्लीपर्स डाले थे और उस वक्त प्रोजेक्टर के पीछे खड़े अलफांसे की आंखें बुरी तरह चमक उठीं, जब उसने परदे पर गार्डनर को उस छोटी-सी सेफ की तरफ बढ़ते देखा।
अलफांसे ने आंखें पर्दे पर गड़ा दीं।
गार्डनर ने सेफ के नंबर एड़जेस्ट करने शुरु किए, अलफांसे परदे पर नजर आने वाले एक-एक नंबर को ध्यान देखता रहा, विशेष रूप से प्रत्येक चक्री से उस नंबर को जिसे मिस्टर गार्डनर तीर के निशान के सामने एडजेस्ट कर रहे थे, उन्होंने निम्न क्रम में नंबर्स तीर के सामने एडजेस्ट किए।
पहली चक्री का पांच, दूसरी का सात, तीसरी का नौ, चौथी का तीन, पांचवी का दो और छठी का पुनः पांच और फिर उन्होंने सेफ का मजबूत हैंड़िल पकड़कर दाईं तरफ को घुमा दिया, सेफ का छोटा-सा किन्तु मजबूत किवाड़ खुलता चला गया।
अलफांसे ने सेफ लॉक नंबर कण्ठस्थ कर लिया— 579325।
अब, पर्दे पर सेफ का भीतरी भाग स्पष्ट नजर आ रहा था, सेफ के अन्दर लाल रंग का एकमात्र फोन रखा था, गार्डनर ने रिसीवर क्रेडिल से उठाया और दूसरे हाथ की उंगली से फोन पर एक नंबर रिंग किया, एक-एक नंबर की अलफांसे ने बहुत ध्यान से देखा।
गार्डनर ने 2542591 नंबर रिंग किया था।
बस, इसके बाद उन्होंने रिसीवर वापस क्रेडिल पर रख दिया—वो सेफ के नजदीक से उठे और कमरे के साथ अटैच्ड बाथरूम की तरफ बढ़े—पर्दे पर गार्डनर बाथरूम का दरवाजा खोलकर उसके अन्दर जाने तक स्पष्ट चमके—फिर बाथरूम का दरवाजा उन्होंने अन्दर से बंद कर लिया। अलफांसे को स्पष्ट नजर आ रही थी—पांच मिनट बाद सेफ एक झटके से स्वयं ही बंद हो गई।
सारे नंबरो को अव्यवस्थित होते अलफांसे ने पर्दे पर साफ देखा।
वह समझ गया कि मिस्टर गार्डनर तहखाने में जाने वाली अंतिम सीढ़ी पर कदम रख चुके थे।
अलफांसे ने जल्दी से स्विच ऑफ किया—पर्दे पर अंधेरा छा गया—फिर वह सारे सामान को बहुत ही तेजी से समेटने लगा—आज उसके चेहरे पर सफलता की जबरदस्त चमक थी।
वह बेहद खुश था—शायद इसलिए क्योंकि नहीं जानना था कि वह रहस्यमय आंख उस वक्त भी उसे निरन्तर देख रही थी, जिससे शायद उसकी कभी कोई हरकत नहीं छुपी थी।
¶¶
रहस्यमय ब्लैकमेलर के चले जाने के बाद सबसे पहले इन पांचों ने चैम्बूर की लाश से छुटकारा पाने का निश्चय किया—खंड़हर के पीछे की तरफ ही जंगल में उन्होंने एक कब्र खोदी और चैम्बूर की लाश को उसमें दफन कर दिया।
इस काम में दो घंटे बर्बाद हो गए।
निपटने के बाद वे पुनः उस टूटी हुई छत वाले हॉल में बैठे थे, एक अन्य नई मोमबत्ती उनके बीच रखी जल रही थी और लौ से निकलने वाला पीला प्रकाश उनके चेहरों पर थिरक रहा था।
उस हॉल में काफी देर से छाए हुए सन्नाटे को आशा ने तोड़ा—"अब हमें क्या करना है, विजय?"
"रामायण का अखंड़ पाठ करना है।" विजय ने उतनी ही गंभीरता के साथ कहा, जितनी गंभीरतापूर्वक आशा ने प्रश्न किया था।
परिणामस्वरूप न केवल आशा ही बल्कि अशरफ और विक्रम भी बुरा-सा मुंह बनाकर रह गए, विकास ने अवश्य कहा—"क्या रामायण
का अखंड़ पाठ करने से हमें इस रहस्यमय ब्लैकमेलर से छुटकारा मिल जाएगा, गुरू?"
"फिलहाल हमें उससे छुटकारा पाने की कोई जरूरत नहीं है, प्यारे।"
न चाहते हुए भी अशरफ बोल पड़ा—"क्या मतलब?"
"मतलब यह प्यारे झानझरोखे कि फिलहाल वह हमें किसी किस्म का नुकसान नहीं पहुंचा रहा है, उल्टे मदद ही कर रहा है—अपने इरादों में कामयाब होने के लिए हमें सबसे ज्यादा ड्रिल की जरूरत है, ऐसी जरूरत जिसे पूरी करने के नाम पर हम सबने अपने चेहरे लटका लिए थे और वह बड़े आराम से हमारी इस जरूरत को पूरी करने का वादा कर गया है।"
"क्या सोचने वाली बात नहीं है गुरू कि वह हमारी मदद क्यों कर रहा है?"
"कोहिनूर में से हिस्से का लालच किसकी खोपड़ी का दिवाला नहीं निकल सकता?"
"मुझे नहीं लगता विजय कि वह सिर्फ एक परसेंट के चक्कर में है।"
"फिर क्या लगता है?"
"वह किसी बहुत ही सुलझी हुई और सुदृढ स्कीम पर काम कर रहा है।" विक्रम ने शंका व्यक्त की—"और उसकी इस स्कीम का मकसद मात्र कोहिनूर की कीमत का एक परसेंट प्राप्त करना नहीं हो सकता।"
"तुम्हारे ख्याल से क्या हो सकता है?"
विक्रम से पहले अशरफ बोल पड़ा—"संभव है कि हमारे आधार पर उसने भी वही स्कीम बना रखी है यानि सोचे बैठा हो कि हमारे सफल होते ही कोहिनूर को छीन लेगा।"
"हम पांच हट्टे-कट्टे मुस्टंड़े क्या मिट्टी के माधो हैं?"
"हां गुरू।" उत्तेजित-सा विकास एकदम बोल उठा—"हम मिट्टी के माधो हैं।"
बड़े आराम से पूछा विजय ने—"वह क्यों, प्यारे?"
"चेहरे पर नकाब पहले वह यहां, हमारे पास आया—हमसे बाते की, बल्कि कहूंगा कि वह हमें धमकाता रहा, व्यंग्यात्मक अंदाज में एक तरह से हमारा अपमान करता रहा—हम पांच थे, वह अकेला—हमारे पास हथियार थे, वह शायद निहत्था ही था, फिर भी वह हमसे अपनी सारी शर्तें मनवा गया और हम उसका चेहरा तक नहीं देख सके।"
"कुछ भी सही, विजय।" आशा बोली—"मुझे लगता है कि वह कोई बहुत ही काइयां व्यक्ति है, उसकी बातें—बात करने का अंदाज और वो लापरवाह चाल—उफ—याद करके भी मेरे तो मुझे बहुत ड़र लग रहा है उससे।"
झुंझलाया-सा अशरफ बड़बड़ाया—"पता नहीं यह कम्बख्त है, कौन?"
"और हमारे पीछे कहां से लग गया?" विक्रम ने बात पूरी की।
"इस किस्म के सैकड़ो प्रश्न उठ सकते हैं, प्यारो—जिनका फिलहाल हममें से किसी के पास कोई जवाब नहीं है और जब तक जवाब नहीं है, हमें चूं—पटाक नहीं करनी चाहिए—उसकी प्रत्यक्ष इच्छा के सामने झुकने तथा हर शर्त मानकर काम करते चले जाने से हमारी भलाई हैं।"
"हां।" विकास गुर्रा उठा—"जैसे हमारा कोई अस्तित्व ही न हो।"
"उत्तेजित होने से हमारी ताकत नहीं बढ़ जाएगी प्यारे, जरा सोचो—वह एक सेकंड़ में हमारी सारी योजना को चौपट कर सकता है—जेम्स बॉण्ड को केवल एक फोन करेगा वह और हमारे सारे मनसूबे मिट्टी में मिल जाएंगे—योजना तिनके-तिनके होकर बिखर जाएगी।"
अशरफ कह उठा—"यह सच है, यकीनन वह हमारे बारे में जरूरत से ज्यादा जानता है।"
"उससे निपटने के लिए आखिर किया जा रहा है?"
"फिलहाल कुछ नहीं किया जा रहा है और मेरे ख्याल से कुछ किया जाना चाहिए भी नहीं।" विजय ने बड़े आराम से कहा।
"क्यों?" विकास ने पूछा।
"क्योंकि न तो अभी इसकी जरूरत ही है और न ही समय आया है।"
"मैं समझा नहीं।"
"जरूरत इसलिए नहीं है, क्योंकि यदि हम हर काम उसके कहे मुताबिक करते रहे तो कम-से-कम तब तक वह हमें किसी भी किस्म का नुकसान पहुंचाने की बात सोचेगा तक नहीं, जब तक कि वह हमसे वह लाभ न उठा ले जिसकी अपेक्षा कर रहा है, और कुछ करने का समय इसलिए नहीं आया है, क्योंकि फिलहाल की परिस्थितियों में उसकी मदद के बिना शायद हमारे लिए अपनी योजना में सफल होना भी संभव नहीं है।"
"तो फिर कब आएगा वह वक्त?"
"यह सोचकर हमें परेशान या चिंतित नहीं होना चाहिए, वक्त अपने वक्त पर ही आता है, मतलब यह कि उसमें उलझकर हमें अपने मुख्य लक्ष्य और लूमड़ तक पहुंचने की योजना से नहीं भटकना चाहिए।"
"मतलब?"
"फिलहाल ब्लैकमेलर के स्थान पर लूमड़ के बारे में विचार-विमर्श करना और उसकी गतिविधियों पर नजर रखना हमारे लिए ज्यादा महत्तवपूर्ण है।"
विकास ने कहा—"हमारे रास्ते में अनेक रोड़े हैं, क्राइमर अंकल—जेम्स बॉण्ड—ब्रिटिश पुलिस और यह ब्लैकमेलर—इन सबको क्रॉस करके सफल होने तक की स्कीम सोचने की जिम्मेदारी आपकी है, गुरू—आप ही सोचिए, हम सब आपके प्रत्येक आदेश पर काम करने के लिए तैयार हैं, मगर सिर्फ तब तक, जब तक मुझे लगेगा कि स्थिति हमारे नियंत्रण में है।"
"और प्यारे, यदि तुम्हें लगा कि स्थिति हमारे नियंत्रण से बाहर है, तब?"
"तब मैं आपकी सारी योजनाएं उठाकर एक तरफ रख दूंगा और अपने ढंग से काम करूंगा।" ये शब्द विकास ने पूरी दृढ़ता के साथ
कहे थे।
इस बार विजय कुछ बोला नहीं, थोड़े सख्त-से अंदाज में विकास को केवल घूरता रहा, वातावरण थोड़ा तनावपूर्ण-सा हो गया और फिर अचानक ही विजय को जाने क्या सूझा कि वह फटाफट विकास को आंख मारने लगा।
विकास बौखला-सा गया।
¶¶
अलफांसे लंदन से बुरी तरह प्रसिध्द हो चुका था। इस हद तक कि लंदन में निवास करने वाला बच्चा-बच्चा उसे शक्ल से पहचानता था और इसकी वजह थी उसकी शादी-विशेष रूप से चढ़त का वह धूमधड़ाका जो दुनिया भर के जासूस और अपराधियों ने एकजुट होकर लंदन की सड़कों पर मचाया था।
उसे ऐसे बहुत-से काम करने थे, जिनके बारे में वह चाहता था कि किसी को यह पता न लगे कि वे काम अलफांसे ने किए हैं और ऐसे ही एक विशेष काम से वह आज दोपहर के समय गाड़ी लेकर गार्डनर की कोठी से बाहर निकला था।
उस वक्त उसके पास केवल एक सूटकेस था।
शाम तक वह पिकनिक मनाने आए किसी व्यक्ति की तरह टेम्स में स्नान करता रहा—उस वक्त करीब पांच बजे थे, जब वह अपना सूटकेस लिए एक केबिन में घुस गया।
करीब बीस मिनट बाद केबिन से बाहर निकला, परन्तु यदि सच लिखा जाए तो अब वह अलफांसे नहीं लग रहा था—हुलिया पूरी तरह बदले हुए था वह—मेकअप इतना शानदार था कि साधारण व्यक्ति उसे पहचान नहीं सकता था।
सूटकेस हाथ में लिए वह पार्किंग में पहुंचा।
ढेर सारी गाड़ियों के बीच खड़ी अपनी गाड़ी पर उसने ऐसी दृष्टि डाली जैसे उस गाड़ी से उसका कभी सम्बन्ध न रहा हो—सड़क पर आकर उसने एक टैक्सी ली, पिछली सीट पर बैठकर ड्राइवर को कोई पता बताया और अगले ही पल टैक्सी आगे बढ़ गई।
चालीस मिनट बाद टैक्सी स्ट्रीट के इलाके में रुकी।
अलफांसे ने पेमेंट करके टैक्सी वही छोड़ दी और फिर सूटकेस संभाले पैदल ही एक तरफ को बढ़ गया—दस मिनट बाद वह एक संकरी-
सी गली में स्थित पुराने डिजाइन के मकान के बंद दरवाजे पर खड़ा बैल बजा रहा था।
दरवाजा एक बूढ़ी महिला ने खोला।
अलफांसे ने उसे देखते ही कहा—"हैलो मारिया।"
"हैलो, मिस्टर टार्गेट।" जाने क्यों मारिया की बूढ़ी आंखों में उसे देखते ही खास किस्म की चमक उभर आई थी—एक चमक जैसे उसे वहां देखकर मारिया को लगा हो कि कोई बहुत बड़ा खजाना उसे मिलने वाला था।
अलफांसे ने पूछा—"क्या मिस्टर वाल्यूम घर में हैं?"
"क्यों नहीं, आइए मिस्टर टार्गेट—वे आप ही का काम कर रहे हैं।" बूढ़ी मारिया ने उसकी अगवानी की, अंदाज ऐसा था कि जैसे कोई अपने किसी अत्यन्त ही महत्वपूर्ण व्यक्ति की अगवानी करता है—अलफांसे को एक संकरी-सी गैलरी में से गुजारने के बाद वह एक कमरे में ले गईं।
इस कमरे में अत्यन्त ही बूढ़ा व्यक्ति एक मेज के पीछे कुर्सी पर बैठा, मेज पर झुका हुआ अपने काम में व्यस्त था—मेज पर एक टेबल लैंप रखा था और उसके होल्ड़र में फंसे दो सौ वॉट के बल्ब प्रकाश मेज पर बिखरा पड़ा था।
मेज पर एक बहुत ही खूबसूरत-सा नजर आने वाला रंगीन फोटोग्राफ पड़ा था, इधर-उधर बिखरे हुए थे कांच को तराशने वाले विभिन्न किस्म के औजार।
बूढ़े व्यक्ति की उम्र अस्सी के आसपास थी, उसके सारे बाल सफेद हो चुके थे और अपनी नाक पर वह मोटे लैंसों का चश्मा रखे हुए था—किसी तेज धार वाले छोटे-से औजार से वह क्रिकेट की गेंद जैसे एक शीशे के ठोस गोले को तराश रहा था।
मारिया ने कहा—"नजर उठाकर देखो तो वॉल्यूम, कौन आया है?"
बूढ़े वॉल्यूम का ध्यान भंग हुआ।
उसने नजर उठाकर देखा तथा अलफांसे पर दृष्टि पड़ते ही बोला—"ओह मिस्टरक टार्गेट—आओ, देखो मैं आप ही का काम कर रहा हूं।"
"थैंक्यू।" कहता हुआ अलफांसे मेज के इस तरफ पड़ी एक कुर्सी पर बैठ गया।
अलफांसे को देखकर खुद वॉल्यूम के चेहरे पर भी वैसे ही भाव उभर आए थे जैसे मारिया के चेहरे पर अभी तक मौजूद थे।
अलफांसे ने सवाल किया—"आखिर कब तक तैयार हो जाएगा यह?"
"सिर्फ एक हफ्ता और लगेगा, देखो—जरा खुद ही देखो कि मैं किस हद तक तुम्हारी इच्छा की चीज बना रहा हूं।" कहने के साथ ही उसने एक हाथ से फोटोग्राफ तथा दूसरे हाथ से ठोस शीशे की वह गेंद-सी उठाकर अलफांसे की तरफ बढ़ा दी।
अलफांसे ने दोनों वस्तुएं हाथ में ले लीं—फोटोग्राफ लगभग उस गेंद जैसी ही किसी वस्तु का था और यहां हम अपने पाठको को यह बता देना अपना फर्ज समझते है कि यह फोटोग्राफ कोहिनूर का था और वॉल्यूम कांच का एक नकली कोहिनूर तैयार कर रहा था।
काफी देर तक अलफांसे नकली कोहिनूर और फोटोग्राफ की तुलना करता रहा—वह बहुत ही बारीक नजर से उनकी तुलना कर रहा था—उसने वॉल्यूम को वे कुछ असमानताएं बताईं—जो उसे नजर आ रही थीं, जवाब में वॉल्यूम ने कहा—"इन्हीं असमानताओं को दूर करने के लिए तो मैं तुमसे एक हफ्ता और मांग रहा हूं।"
"उसकी मुझे फिक्र नहीं है, किन्तु मुझे हू-ब-हू यही चीज चाहिए।"
"चीज बिल्कुल यही मिलेगी मिस्टर टार्गेट, लेकिन...।"
"लेकिन?"
"द...दरअसल जहां तक मेरा ख्याल है यह फोटोग्राफ किसी बहुत ही कीमती हीरे का है और आप मुझसे इस कीमती हीरे का डुप्लीकेट तैयार करा रहे हैं।"
"देखो मिस्टर वॉल्यूम।" एकाएक ही अलफांसे का लहजा बहुत खुरदरा और सख्त हो गया—"आपसे पहले भी कह चुका हूं कि मैं कौन हूं, यह फोटोग्राफ किसका है या इसका डुप्लीकेट मैं क्यों तैयार कर रहा हूं आदि ऐसे ही सैंकड़ो सवालों के बारे में सोचने का काम तुम्हारा नहीं है, इस काम की तुम्हें पूरी कीमत मिल रही है और तुम्हें केवल उस कीमत से मतलब होना चाहिए, इस किस्म के सवालों के जवाब से नहीं।"
"आप पहले मेरी पूरी बात सुन लें, उसके बाद कुछ कहें तो बेहतर होगा।"
कठोर-सी दृष्टि से उसे घूरते हुए अलफांसे ने कहा—"बको।"
"म...मेरा ख्याल है कि आप किसी को फोटोग्राफ वाला हीरा देने का नाम पर यह डुप्लीकेट देकर उससे रकम ऐंठने की योजना बनाए हुए है।"
"चलो मान लिया ऐसा ही है, फिर?"
"बस, मैं यहीं कहना चाहता हूं कि आप अपनी इस स्कीम में सफल नहीं होंगे।"
"क्यों?"
"क्योंकि कांच और हीरे में जमीन-आसमान का अंतर होता है, इतना बड़ा हीरा जो भी खरीदेगा वह पूरी जांच-पड़ताल करेगा और मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि भले ही देखने में यह डुप्लीकेट हीरे जैसा लगे किन्तु इसे छूते ही कोई भी व्यक्ति बता सकता है कि यह हीरा नहीं कांच है।"
"यह सब सोचने का काम मेरा है।" अलफांसे का लहजा शुष्क था।
"आप ठीक कह रहे हैं, किन्तु यह बात मैंने महज इसलिए स्पष्ट की है कि कहीं कल आप मुझे इसके लिए दोष देने लगें, कहने लगें कि मेरे से तैयार किया गया ड़ुप्लीकेट किसी को धोखा देने में सक्षम नहीं है—हां, देखने मात्र से मेरा डुप्लीकेट इस हीरे जैसा नजर आएगा—यदि फोटोग्राफ खींचा जाए तो वह भी ठीक ऐसा ही होगा।"
"मुझे केवल इसी गारंटी की जरूरत है।"
"उस पर मेरे से तैयार किया गया डुप्लीकेट बिल्कुल खरा उतरेगा।"
"थैंक्यू—और सुनो, अब इस बारे में तुम कुछ नहीं सोचोगे कि मैं इस डुप्लीकेट का क्या करूंगा?"
"ठीक है, वे सब बातें तो मैंने अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए कही हैं।"
अलफांसे ने विषय बदला—"तो एक हफ्ते बाद यह बिल्कुल तैयार मिलेगा?"
"जा हां, क्या आप कुछ लाए हैं?"
अलफांसे ने सूटकेस खोला—मारिया और वॉल्यूम की बूढ़ी आंखों में चमक उभर आई, वैसी ही चमक जैसे खजाने को देखकर अलीबाबा की आंखों में उभरी होगी।
¶¶
उसके दरवाजे से निकलते ही मारिया ने जल्दी से मुख्य गेट की चिटकनी चढ़ाई और फुर्ती से घूम गई—बहुत ही तेजी से छोटी-सी गैलरी पार की उसने, उसके बूढ़े जिस्म में उस वक्त गजब की फुर्ती थी—वैसी ही जैसी किसी सोलह साल की लड़की के जिस्म में हो सकती है।
भागती हुई वह कमरे में पहुंची।
बूढ़ा वॉल्यूम पागलों की तरह पाऊण्ड्स की एक गड्डी को गिन रहा था, मेज पर पांच गड्डियां पड़ी हुई थीं, उन्हें देखते ही मारिया नाच-सी उठी।
वॉल्यूम की तरफ लपकती हुई बोला—"मजा आ गया वॉल्यूम डार्लिंग, हम धनवान हो गए हैं—आह, अब हमारे सारे सपने पूरे हो जाएंगे।"
"अ...अभी तो और देगा यह।" वॉल्यूम खुशी के कारण कांप रहा था।
"आह, हम ऐश करेंगे डार्लिंग—खूब ऐश।" कहने के साथ ही वह वॉल्यूम से जा लिपटी—वॉल्यूम ने भी गड्डी छोड़कर उसे अपनी बांहों में भर लिया और फिर उनके बूढ़े होंठ जुड़ गए, कुछ इस तरह जैसे वह उनकी सुहागरात हो।
एक लंबे चुम्बन के बाद वॉल्यूम ने कहा—"देखो, मैं कहता था न डार्लिंग कि मैं कलाकार हूं—किसी ने मेरी कला को पहचाना नहीं है, जिस दिन कोई कद्रदान मिल गया उस दिन हम मालामाल हो जाएंगे—टार्गेट कला का पारखी है।"
"ओह—वॉल्यूम डार्लिंग, ओह—तुम हजार साल जिओ।" प्रेम दीवानी-सी होकर मारिया उससे लिपट गई—अपने लंबे दांपत्य जीवन का वास्तविक आनन्द उन्होंने आज पहली बार ही महसूस किया था—पगला-से गए वे और इस तरह अठखेलियां करने लगे जैसे 'टीन ऐजर' लवर हों।
वे उस वक्त भी अपनी अठखेलियों में ही व्यस्त थे, जब अचानक कॉलबैल बज उठी—वे एक साथ छिटककर अलग हो गए।
"क...कौन हो सकता है?" मारिया के मुंह से निकला।
"होगा कोई आस-पड़ोस में रहने वाला चूहा, दरवाजा खोलकर उसे टरकाओ।"
"यह गड्डिया दराज में रख लो।" कहने के साथ ही मारिया कमरे के दरवाजे की तरफ बढ़ गई, क्योंकि तब तक कॉलबैल दूसरी बार बज चुकी थी—वॉल्यूम जल्दी-जल्दी गड्डियों को दराज में रखने लगा।
उधर, गैलरी पार करने के बाद मारिया ने जब मकान का मुख्य गेट खोला तो सामने नीली आंखों वाला अंग्रेज युवक खड़ा था।
"कहिए।" मारिया ने पूछा—"आपको किससे मिलना है?"
"मिस्टर वॉल्यूम से।"
"क्या काम है?"
"मुझे उनसे एक खास काम है।"
"सॉरी, इस वक्त वे बहुत व्यस्त हैं—आप उनसे अगले हफ्ते मिलिए।" कहने के बाद मारिया अभी दरवाजा बंद करने ही वाली थी कि युवक अचानक ही बाज की तरह झपट पड़ा—मारिया ने चीखने के लिये मुंह फाड़ा, किन्तु बेचारी की चीख हलक में ही घुटकर रह गई।
युवक फौलाद जैसा हाथ ढक्कन बनकर उसके मुंह पर चिपक गया था।
चीख हलक में ही घुटकर रह गई।
उसके बंधनों में जकड़ी मारिया छटपटाकर उसके बंधनों सें निकलने की असफल प्रयास कर रही थी और यह प्रयास भी वह केवल चंद ही मिनट कर सकी, क्योंकि युवक ने उसकी कनपटी की कोई ऐसी नस दबा दी थी, जिसके परिणामस्वरूप उसके कण्ठ से एक
हिचकी-सी निकली और फिर वह एकदम निश्चल होकर युवक की बांहों में झूल गई।
युवक ने उसके बेहोश जिस्म को फुर्ती के साथ धीरे-से गैलरी में लिटा दिया।
उसने दरवाजा अन्दर से बंद किया और फिर तेजी से गैलरी पार कर गया, कमरे में घुसने से पहले वह अपने कोट की जेब से रिवॉल्वर निकाल चुका था।
युवक के कमरे में कदम रखा और उसे देखते ही वॉल्यूम के चेहरे का रंग फक्क से उड़ गया, बौखलाहट में चीख-सा पड़ा वह—
"क...कौन हो तुम?"
"ज्यादा जोर से चीखने की कोशिश मत करो।" युवक लहजा अत्यन्त ही सर्द था—"वरना यह रिवॉल्वर चीख पड़ा तो तुम फिर कभी नहीं चीख सकोगे।"
वॉल्यूम के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं—बूढ़ा शरीर कांप उठा--आंखों में खौफ के साए नजर आने लगे थे—बड़ी हिम्मत करके वह बोला—"अ...आप कौन हैं? और मारिया कहां है?"
"गैलरी में पड़ी है।"
"क...क्या तुमने उसे...?"
"फिलहाल केवल बेहोश है।"
"अ...आप क्या चाहते हैं?"
वॉल्यूम के उपरोक्त सवाल के जवाब में आगन्तुक युवक ने एकदम कुछ नहीं कहा, बल्कि रिवॉल्वर को उस पर तान सतर्क दृष्टि से कमरे का निरीक्षण करने लगा।
आगन्तुक की दृष्टि मेज पर ठिठक गई थी, और उस तरफ देखते वक्त आंखों में ऐसे भाव उभरे थे जैसे वह सब कुछ समझ गया हो।
वॉल्यूम ने हिम्मत करके पुनः पूछा—"आपने अपना उद्देश्य नहीं बताया।"
"वह आदमी, जो मेरे आने से कुछ ही देर पहले यहां से गया हैं, कौन था?"
इस सवाल को सुनकर वॉल्यूम कांपकर रह गया, कुछ बोल नहीं सका वह।
"जवाब नहीं दिया तुमने?" आगन्तुक की आवाज में भेड़िए की-सी गुर्राहट थी।
"ज...जी—उनका नाम टार्गेट है।"
उसी सख्त स्वर में अगला प्रश्न—"यहां क्यों आया था?"
"ज...जी—यह मैं आपको नहीं बता सकता।"
आगन्तुक के घूरने का अंदाज कुछ ऐसा हो गया जैसे वॉल्यूम को अभी कच्चा चबा जाएगा, बोला—"केवल इस बार मैं तुम्हें माफ कर रहा हूं, यदि दूसरी बार तुमने मेरे किसी सवाल के जवाब में ऐसे अटपटे शब्द कहे तो बेहिचक तुम्हें गोली मार दूंगा, समझे?"
वॉल्यूम को काटो तो खून नहीं—पीला पड़ गया बेचारा।
आगन्तुक ने वॉल्यूम को कुछ और ज्यादा आतंकित करने के लिए अपने हाथ में दबे रिवॉल्वर को कुछ इस ढंग से घुमाया कि वॉल्यूम का ध्यान उस तरफ जाए, फिर बोला—"यह न समझाना कि मैं टार्गेट को जानता नहीं हूं या मुझे यह नहीं मालूम है कि वह यहां क्यों
आया था—मैं जानता हूं कि वह तुमसे उस फोटोग्राफ में मौजूद हीरे का डुप्लीकेट बनवा रहा हैं।"
"य...यदि आप सब कुछ जानते ही हैं तो फिर मुझसे क्या...?"
उसकी बात बीच में ही काटकर आगन्तुक ने कहा—"क्या तुम जानते हो कि वह फोटोग्राफ किस हीरे का है?"
"न...नहीं।"
"टार्गेट उसका डुप्लीकेट क्यों तैयार कराना चाहता है?"
"उसने मुझे कुछ भी नहीं बताया, इस किस्म के मेरे किसी भी सवाल के जवाब में वह हमेशा यही कहता रहा है कि मुझे केवल अपनी रकम से मतलब होना चाहिए।"
"इस काम का वह तुम्हें क्या दे रहा है?"
"दस हजार पाऊण्ड!"
"हूं।" आगन्तुक ने एक लंबा हुंकारा भरा, जैसे वस्तुस्थिति को समझने की कोशिश कर रहा हो, बोला—"तो वह दस हजार पाऊण्ड की चीज वह मुझे दस लाख में भेड़ना चाहता है।"
"ज...जी?" वॉल्यूम कहे बिना न रह सका—"मैं कुछ समझा नहीं!"
"उसने मुझसे दस लाख में इस हीरे का सौदा किया है जिसका फोटोग्राफ तुम्हारे पास है, इस हरामजादे की नीयत पर मुझे पहले ही शक था और इसीलिए मैं उस पर नजर रखे हुए था, अब बात साफ हो गई है—वह मुझे डुप्लीकेट हीरा देने के चक्कर में है।"
"म...मैंने तो उससे पहले ही कहा था कि कोई भी खरीदार मेरे इस डुप्लीकेट के चक्कर में नहीं आएगा।"
"वह अपने आपको बहुत ज्यादा स्मार्ट समझता है।" आगंतुक बड़बड़ाया और फिर अचानक ही लहजा बदलकर बोला—"मेरा नाम मिस्टर फिशर है, हीरो का व्यापारी हूं—अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हें टार्गेट से ज्यादा रकम दे सकता हूं।"
"क...क्या मतलब?"
"मैं तुम्हें पंद्रह हजार पाऊण्ड दूंगा, बदले में मेरे यहां आगमन को तुम गुप्त रखोगे, टार्गेट से नहीं कहोगे कि मैं यहां आया था और उसकी सारी योजना को समझ चुका हूं।"
"म...मैं किसी चक्कर में तो नहीं फंस जाऊंगा?"
"बिल्कुल नहीं, बल्कि हां—यदि तुमने ऐसा नहीं किया तो न केवल नकुसान उठाओगे, बल्कि मुमकिन है कि अपनी जान से भी हाथ धो बैठो।"
"म...मैं समझा नहीं।"
"अगर तुमने उससे मेरे यहां आगमन और इन हो रही बातों के बारे में कुछ कहां तो समझ ही सकते हो कि जो डुप्लोकेट तुम तैयार कर रहे हो उसके लिए बेकार हो जाएगा और वह तुम्हें एक पाऊण्ड भी नहीं देगा, उस स्थिति में मेरे से तुम्हें कुछ दिए जाने की संभावना तो है नहीं—वह समझ जाएगा कि अब यह हीरा मैं उससे खरीदने वाला नहीं हूं, इस प्रकार अपनी योजना के चौपट हो जाने की अवस्था में वह आपे से बाहर हो सकता हैं और यह सोचकर कि उसकी योजना को तुम्हीं ने चौपट किया है, तुम्हें मार भी सकता है।"
वॉल्यूम की टांगे कांपने लगी।
"अगर तुम उसे कुछ नहीं बताओगे तो पंद्रह हजार पाऊण्ड मैं तुम्हें दूंगा और वह भी इस भ्रम में रहेगा कि इस डुप्लीकेट को हीरा समझकर मैं खरीदने वाला हूं अतः काम पूरा होने पर तुम्हें तुम्हारी रकम देकर, यहां से खुशी-खुशी डुप्लीकेट लेकर चला जाएगा—अब दोनों स्थितियां तुम्हारे सामने है, खुद ही फैसला कर लो कि तुम्हें क्या करना है?"
"अ...आपकी बात मानकर मैं किसी झमेले में तो नहीं फंस जाऊंगा?”
“फंसोगे नहीं, बल्कि यह कहो कि जिस झमेले में तुम फंस गए हो उसमें से मेरी बात मानकर ही निकल सकते हो।"
"ठ...ठीक है, मैं ऐसा ही करूंगा।"
"गुड!" कहने के साथ ही आगन्तुक ने जेब में हाथ डाला और पाऊण्ड की एक गड्डी निकालकर उसकी मेज पर डाल दी, बोला—"बाकी रकम तुम्हें तब मिलेगी जब डुप्लीकेट तैयार करके टार्गेट को दे दोगे।"
¶¶
"कहां चले गए थे?" अलफांसे को देखते ही सोफे से उठकर खड़े होते हुए मिस्टर गार्डनर ने कहा—"इर्विन तो तुम्हें ढूंढती—ढूढंती पागल हो गई है।"
"ऐसा क्या हो गया था?" मुस्कराता हुआ अलफांसे उनके नजदीक पहुंचा।
"बैठो।" गार्डनर ने सोफे की तरफ संकेत करके कहा—"यह तो उसी से पूछना कि क्या हुआ था? हमें तो सिर्फ यह मालूम है कि इर्विन शाम से तुम्हारे लिए परेशान है।"
कुछ कहने के लिए अलफांसे ने अभी मुहं खोला ही था कि—
"आ गए ये महाशय?" इर्विन की करारी आवाज हॉल में गूंजी, गार्डनर और अलफांसे ने चौंककर उधर देखा—गैलरी को पार करने के बाद तमतमाई-सी इर्विन तेज कदमों के साथ उनकी तरफ बढ़ रही थी।
अलफांसे के होंठो पर बड़ी ही प्यारी-सी मुस्कान उभर आई।
जबकि इर्विन धमकती हुई-सी ठीक अलफांसे के सिर पर आ खड़ी हुई और उसके मुंह से निकली अधिकार भरी गुर्राहट—"कहां गए थे
आप?"
"पिकनिक पर गया था, भई।"
"अकेले?"
"हां।"
"क्यों?"
"क्यों का मतलब, बड़ा अजीब सवाल है !"
"मुझमें काटें लगे हैं क्या?"
"ओह!" अलफांसे ठहाका-सा लगा उठा—"तुम्हारा मतलब यह था?"
"जब आप अकेले पिकनिक पर जाने की आदत-नहीं छोड़ सकते थे तो मुझसे शादी क्यों की थी? क्या मैं बेवकूफ हूं, जो पागलों की तरह आपको ढूंढती फिरी? जब मैं शॉपिंग के बहाने बाहर चलने के लिए कहती हूं तो आपके सिर में दर्द हो जाता हैं और अकेले गायब हो जाते हैं। कहां मनाई थी पिकनिक?"
"ओफ्फो भई, तुम तो भारतीय पत्नी की तरह लड़ती हो।" अलफांसे हंस रहा था।
बीच में मिस्टर गार्डनर टपके, बोले—"क्यों नहीं लड़ेगी बेटे? शादी भी तो भारतीय रीति-रिवाजों के साथ हुई है।"
"आप बीच में मत बोलिए, डैडी। यह मेरे और इनके बीच का मामला है।" गुस्से में तमतमाई-सी इर्विन ने चंद शोले पिता की तरफ उछाले और फिर अलफांसे की तरह पलटकर बोली—"हां तो जनाब, जवाब नहीं दिया आपने—जरा मैं भी तो सुनूं कि आज कहां पिकनिक मनाई आपने?"
अलफांसे ने हंसते हुए ही कहा—"टेम्स के किनारे!"
"वहां से कहां गए थे?"
"कहीं भी नहीं, वहीं था।"
"झूठ मत बोलिए, टेम्स के किनारे पार्किंग में सिर्फ आपकी कार थी—आप नहीं थे।"
अलफांसे का दिल धक्क से रह गया, दिमाग में एकाएक ही विचार उठा कि क्या इर्विन को उसके टार्गेट वाले रूप का पता चल गया हैं और क्या वह जान गई है कि वह वॉल्य़ूम से मिलने गया था, किन्तु उसने शीघ्र ही अपने दिमाग को नियंत्रित करके पूछा—"यह तुम कैसे कह सकती हो?"
"मैं खुद वहां गई थी।"
"फिर?"
"फिर क्या, वहां केवल आपकी कार थी—आप नहीं थे।"
"ओफ्फो, क्या मैं कार के अन्दर ही बैठा रहता?"
"अन्दर नहीं जनाब, मैंने आपको कार के बाहर ढूंढा था—टेम्स नदी के किनारे दूर-दूर तक—वहां मौजूद लोगों से आपके बारे में मालूम भी किया था—सबने यही कहा कि उन्होने काफी देर से आपको टेम्स पर नहीं देखा हैं—करीब एक घंटा कार के पास रहकर मैंने आपका इंतजार किया है।"
"पता नहीं तुम्हें कैसे नहीं मिला, मैं तो वहीं था।"
"ओफ्फो, अब छोड़ो भी इर्विन बेटी, गुस्सा थूक दो।" गार्डनर ने उनकी नोक-झोक का आनन्द लेते हुए कहा और फिर जोर से आवाज लगाई—"मार्लिन।"
"ज...जी मालिक।" एक नौकर दौड़ता हुआ हॉल में आया।
“फ्रिज से निकालकर हमारी बेटी को कुछ ठंड़ा पिलाओ और अलफांसे को भी।"
"जी मालिक।" नौकर फ्रिज की तरफ मुड़ गया।
उस नौकर को अलफांसे ने पहली बार ही देखा था, इसलिए दृष्टि उस पर चिपककर रह गई, मिस्टर गार्डनर बोले—"देख क्या रहे हो बेटे, मर्लिन हमारा नया नौकर है—इसे मैंने आज ही रखा है।"
मर्लिन फ्रिज से तीन कोका-कोला निकालकर ले आया था, अलफांसे को लगा कि जैसे इस नौकर को पहले भी कहीं देखा था।
¶¶
"और गुरू, यदि वॉल्यूम ने अलफांसे गुरू को सब कुछ बता दिया तो?" विजय की सारी बातें बहुत ध्यान से सुनने के बाद विकास ने पूछा।
"वह नहीं बताएगा, प्यारे।"
"आप इतने विश्वासपूर्वक कैसे कह सकते हैं?"
"हमने भी कच्ची गोलियां नहीं खेली हैं, दिलजले। जब हम टार्गेट बने लूमड़ का पीछा करते हुए मार्क स्ट्रीट पर पहुंचे और वह वॉल्यूम से मिलने मकान के अन्दर चला गया तो अपने ढंग से हमने मालूम किया था कि वॉल्यूम दंपत्ति बहुत गरीब हैं और जवानी से आज तक दौलत के लिए तरसते रहे हैं—लूमड़ के दस हजार के चक्कर में ही वे इस झमेंले में फंसे हैं और पंद्रह देने का वादा करके हमने उनके सामने ऐसा दाना डाल दिया है कि जिसे चुगे बिना वे रह नहीं सकेंगे—और फिर उनके दिल में हमने यह ड़र भी बैठा दिया है कि यदि उन्होंने हमारे वहां आगमन का जिक्र उससे किया तो उनके वे दस हजार भी जाएंगे।"
"वह तो मैं समझ गया।"
"खुदा पहलवान तुम्हारा भला करे, अब तो सोचने वाली बात यह है कि इसमें कोई शक नहीं रह गया है कि कोहिनूर को चुराने की स्कीम पर अपना लूमड़ बहुत तेजी से काम कर रहा है, जबकि हमारी सुरंग भी बननी शुरु नहीं हुई है, कहीं ऐसा न हो कि वह हमारे वहां पहुंचने से पहले ही दांव मार जाए?"
"हमें इस खतरे के प्रति तरह सतर्क रहना है।"
"रहना नहीं है बेटे, कहो कि हैं—यदि न होते तो चोरी-छुपे लूमड़ को वाच क्यों करते?"
"केवल वॉच करने से कम नहीं चलेगा, गुरू।"
"तो फिर क्या करें?"
"कुछ अपनी स्कीम के बारे में भी सोचिए।"
"सोचना क्या है प्यारे? सिर्फ ड्रिल मशीन की वजह से रुके पड़े हैं, वह मिल जाए तो काम शुरु कर दें।"
ड्रिल मशीन का जिक्र आते ही सबके मस्तिष्क पटल पर वह रहस्यमय ब्लैकमेलर उभर आया—खामोशी छा गई। उनके बीच पत्थर पर रखी मोमबत्ती का पीला प्रकाश चेहरों पर कांपता रहा—वे खंड़हर के उसी टूटी छत वाले हॉल में बैठे बातें कर रहे थे।
अशरफ ने अपनी रिस्टवाच में समय देखते हुए कहा—"समय हो गया है, अब तक उसे आ जाना चाहिए था।"
"मैं हाजिर हुं, हुजूर।" हॉल में ब्लैकमेलर की आवाज गूंजी।
चौंककर सभी ने आवाज की दिशा में देखा—दरवाजा पार करके उन्हें एक काली परछाई-सी अपने नजदीक आती दिखाई दी।
वह उनके नजदीक आकर बोला—"बस, मुझमें यही एक ऐब हैं सरकार कि वक्त का बहुत पाबंद हूं, दिए हुए ठीक समय पर पहुंच जाता हूं।"
जाने क्यों उत्तेजनावश विकास का सारा शरीर कांपने लगा, दांत पर दांत जमा लिए उसने—इच्छा हो रही थी कि झपटे और इस रहस्यमय ब्लैकमेलर के चेहरे से नकाब नोंचकर फेंक दे—परन्तु अपनी इस इच्छा को बड़ी सख्ती से दबा लिया उसने।
ब्लैकमेलर झुका, मशीन उसने जमीन पर टिका दी।
जबकि विजय ने अपनी ही टोन में कहा था—"अच्छे बच्चो को वक्त का पाबंद होना ही चाहिए।"
"तारीफ के लिए शुक्रिया, बंदापरवर।" उसने व्यंग्य-सा किया।
"अपने शुक्रिया को संभालकर जेब में रखो प्यारे, आड़े वक्त पर काम आएगा—हमें इसकी जरूरत नहीं है, क्योंकि हमारी जेब पहले ही शुक्रियों से लबालब भरी है।"
"देख लीजिए, मशीन में लगा ड्रिल आपके काम का है न?"
"बिल्कुल काम का है, प्यारे।" विजय ने मोमबत्ती की रोशनी में ही नजर से ड्रिल को परखते हुए कहा—"इससे नदी की दीवार में तो क्या, तुम्हारे सिर में भी सुराख बन जाएगा।"
"सिर में सुराख इससे जरा ज्यादा अच्छा बनता है।" ब्लैकमैलर ने जेब से माउजर निकालकर दिखाते हुए कहा।
"इसका क्या मतलब, प्यारे?"
"सिर्फ यह जनाब कि यह पिस्तौल ऐसे कई लोगों के सिरों में सुरंग बना चुका हैं, जिन्होनें मुझसे सौदा तो कर लिया, किन्तु वक्त आने पर ज्यादा स्मार्ट बनने की कोशिश करने लगे।"
"छिः—छिः!" विजय ने बड़ा बुरा-सा मुंह बनाया—"बड़े बदबूदार लोग थे वे।"
माउजर जेब में रखते हुए ब्लैकमेलर ने बड़े आराम से कहा—"उम्मीद है सरकार कि आप वैसे बदबूदार लोग बनने की कोशिश नहीं करेंगे, क्योंकि इस माउजर के शिकार की लाश को अंतिम संस्कार के लिए भी कोई नहीं मिलता है, अतः लाश में कीड़े पड़ जाते हैं।"
इस स्पष्ट धमकी को सुनकर विकास तिलमिला उठा—अगर उसे यह ख्याल न होता कि उस वक्त जो कुछ उसके मन में आ रहा था वह करने से विजय गुरू की सारी योजना धरी रह जाएगी तो वह इस ब्लैकमेलर को कच्चा चबा जाता।
खून का-सा घूंट पीकर रह गया लड़का।
जबकि विजय कुछ ऐसे अंदाज में ड्रिल का निरीक्षण कर रहा था जैसे उसने ब्लैकमेलर के मुंह से निकलने वाले शब्द सुने ही न हों, उसने आगे कहा—"अब मैं चल रहा हूं, आशा है कि आप लोग कल से ही अपना काम शुरु कर देंगे।"
"तुम कहां जा रहे हो, प्यारे? हमारे साथ नहीं रहोगे?"
"जी नहीं।"
"अगर अपने काम में हमें फिर तुम्हारी जरूरत पड़ी तो?"
"हालांकि मैं आपकी कोई भी मदद करने के लिए बाध्य नहीं हूं और फिर आपको भी दूसरो की मदद से कोई काम करने जैसी गंदी आदत नहीं डालनी चाहिए, फिर भी यूं समझिए कि मैं हर पल आपके इर्द-गिर्द कहीं रहूंगा और ऐसे प्रत्येक अवसर पर आपकी खिदमत में हाजिर हो जाऊंगा, जब वास्तव में आपको मेरी मदद की जरूरत होगी।"
कोई कुछ नहीं बोला, जैसे बोलने के लिए किसी के पास कुछ रह ही नहीं गया था—केवल विकास ऐसा था जो बहुत कुछ कहना चाहता था, किन्तु सब कुछ सीने में दफन किए रहा।
¶¶
अगले दिन की दोपहर—बारह बजे!
मिस्टर गार्डनर उस पांच मंजिली इमारत में स्थित अपने ऑफिस में बैठे किन्हीं कागजों में सिर खपा रहे थे, जिसके मस्तिष्क पर लिखा है—'बैंक संस्थान'।
मैं 'अलफांसे की शादी' में लिख चुका हूं और पाठक जानते हैं कि उस इमारत और विशेष रूप से उस ऑफिस से उस स्थान के लिए रास्ता जाता है, जहां कोहिनूर रखा है।
मिस्टर गार्डनर का ऑफिस बिल्कुल गोल था, चमकदार इस्पात का बना हुआ—फर्श तक इस्पात का बना हुआ था—कक्ष की हालत बिल्कुल किसी ऑफिस जैसी ही थी।
फर्नीचर फर्श के साथ अटैच्ड था।
कक्ष के बीचोबीच एक बड़ी मेज है, मेज के उस पार मिस्टर गार्डनर बैठे हैं और एक खाली कुर्सी मेज के इस तरफ हैं।
एकाएक ही उनकी मेज पर रखे फोन की घंटी घनघनाई।
मिस्टर गार्डनर ने रिसीवर उठा लिया, बोले—"हैलो!"
"मैं गार्ड़ नंबर टू बोल रहा हूं, सर।" दूसरी तरफ से आवाज आई।
"क्या बात है?"
"आपकी बेटी और दामाद आपसे मिलना चाहते हैं।"
चौंक पड़े मिस्टर गार्डनर, बोलो—"क्यों?"
"कहते हैं कि कोई जरूरी काम हैं।"
"उनसे कहो कि मैं शाम को घर पर ही बात करूंगा।"
"मैंने कहा था सर, मगर वे कहते हैं कि काम इसी समय है।"
मिस्टर गार्डनर चुप-से हो गए, जैसे कुछ सोच रहे हों—कुछ देर बाद बोले—"खैर, उन्हें भेज दो।"
¶¶
रिसीवर क्रेड़िल पर रखने के बाद गार्ड़ अलफांसे और इर्विन की तरफ घूमा, बोला—"आप जा सकते हैं। चीफ ऑफिस में आपका इंतजार कर रहे हैं।"
"थैंक्यू।" कहकर अलफांसे ने इर्विन का हाथ पकड़ा और दरवाजा पार कर गया—शायद लिखने की आवश्यकता नहीं हैं कि दरवाजे पर मौजूद पांच गार्ड्स ने अभी तक उन्हें रोक रखा था।
अब वे उस हॉल में से गुजर रहे थे, जहां बहुत-से क्लर्क बैठे विभिन्न बैंकों से सम्बन्धित खाते देख रहे थे।
दरवाजा पार करने के बाद इर्विन का हाथ पकड़े अलफांसे बाईं तरफ घूम गया और उस हॉल को पार करने लगा, जिसमें क्लर्क बैठे थे—सचमुच खुद को उन क्लर्कों की नजर से बचाकर हॉल में से गुजरना नामुमकिन ही था—हॉल पार करने के बाद अलफांसे दाईं तरफ मौजूद एक गैलरी में मुड़ गया।
गैलरी में ट्यूब-लाइट्स का दूधिया प्रकाश बिखरा पड़ा था।
इर्विन का हाथ पकड़े अलफांसे बहुत ध्यान से सारी स्थिति का जायजा लेता हुआ गैलरी पार करने लगा, गैलरी में पूरी तरह खामोशी छाई हुई थी।
अलफांसे जानता था कि उस गैलरी में उसे कहीं कंप्यूटर मिलेगा, वह कंप्यूटर जो अपने सामने से गुजरने वाले प्रत्येक व्यक्ति का वास्तविक नाम गार्डनर के ऑफिस में रिले कर देता था—मगर कम-से-कम फिलहाल उस इस कंप्यूटर से डरने की कोई जरूरत नहीं थी।
शीघ्र ही उसे कंप्यूटर नजर आया और उसे बहुत ध्यान से देखता हुआ अलफांसे बिना विचलित हुए या ठिठके कंप्यूटर के सामने से गुजर गया।
¶¶
कुर्सी पर बैठे मिस्टर गार्डनर बहुत ध्यान से अपनी ठीक सामने वाली दीवार में प्रकट हुई एक छोटी-सी स्क्रीन को देख रहे थे। एकाएक ही स्क्रीन पर दो नाम उभरे।
अलफांसे, इर्विन!
पढ़ने के बाद मिस्टर गार्डनर संतुष्ट हो गए, वे जानते थे कि जिस क्षण ये नाम स्क्रीन पर उभरे थे, उसी क्षण अलफांसे और इर्विन गैलरी में रखे कंप्यूटर के सामने से गुजरे थे और वे सचमुच अलफांसे और इर्विन ही थे, उनके मेकअप में कोई अन्य नहीं।
गार्डनर ने दराज खोली।
दराज के अन्दर पूरा एक स्विच बोर्ड़ था, प्रत्येक स्विच पर 'ए' से 'जेड़' तक के अक्षर लिखे थे, यानि उन स्विचों की संख्या छब्बीस थी—उन्होंने 'ए' बटन दबाया।
स्क्रीन से न केवल अलफांसे और इर्विन के नाम गायब हो गए, बल्कि एक इस्पात का शटर भी स्क्रीन पर ढक गया—अब बिल्कुल नहीं लगता था कि उस इस्पात के पीछे कोई स्क्रीन थी।
शटर दीवार का ही एक हिस्सा था।
गार्डनर ने भी बी स्विच ऑन किया—एक अन्य शटर हटा और वहां एक छोटी-सी स्क्रीन नजर आने लगी—मिस्टर गार्डनर की दृष्टि उस स्क्रीन पर चिपक गई।
दो मिनट बाद कक्ष के अन्दर बैल बजने की आवाज गूंजी।
गार्डनर से 'सी' स्विच ऑन कर दिया।
अब, स्क्रीन पर अलफांसे और इर्विन के चित्र उभर आए—कक्ष का दरवाजा बंद था, मगर स्क्रीन इस्पाती शटर के पीछे छुप गई और 'डी' बटन ऑन करते ही दरवाजा सरसराकर फर्श में समा गया।
अब इर्विन और अलफांसे उनके सामने थे।
"आओ।" गार्डनर ने मुस्कारते हुए कहा।
ऑफिस को बहुत ध्यान से देखता हुआ इर्विन का हाथ पकड़े अलफांसे उस टंकीनुमा कक्ष में दाखिल हो गया, चारों तरफ देखता हुआ वह मेज के समीप पहुंच गया।
मुस्कराते हुए गार्डनर ने पूछा—"क्या देख रहे हो, बेटे?"
"अजीब ऑफिस है आपका!"
"क्यों, ऐसी क्या विचित्रता नजर आ रही है तुम्हें इसमें?" गार्डनर मुस्करा रहा था।
"दीवारें, छत तथा फर्श आदि सभी कुछ ईंट और सीमेंट का नहीं इस्पात का बना हुआ है, देखने में यह ऑफिस लोहे की अजीब-सी टंकी नजर आता है।"
"सुरक्षा जरूरी है, बेटे।"
"इतनी कड़ी सुरक्षा किस चीज के लिए की गई है?"
"तुम इस ऑफिस को सारे लंदन के बैंकों का स्ट्रांग रूम कह सकते हो, उन बैंको के खातों में जितने पाऊण्ड दर्ज हैं, वह सारा कैश यहां रखा जाता हैं—अरबो-खरबो पाऊण्ड—और उस दौलत के लिए ही इस स्थान की इतनी कड़ी सुरक्षा की गई हैं।"
"ओह!" अलफांसे संतुष्ट-सा नजर आया।
"बैठो !"
"म...मगर डैड़ी, यहां कुर्सी तो एक ही हैं।"
"तुम खड़ी रहो, इस एक कुर्सी की मतलब यह है कि इस ऑफिस में हमसे एक समय में केवल एक ही आदमी मिल सकता हैं, तुम बैठो, बेटे।"
बैठते हुए अलफांसे ने पूछा—"फिर आपने हम दोनों को अन्दर क्यों बुला लिया?"
मिस्टर गार्डनर के होंठो पर चंचल मुस्कान उभर आई, बोले—"यह सोचकर कि तुममें से किसी एक को बुलाने से शायद वह समस्या हल नहीं होगी, जिसके लिए तुम यहां आए हो।"
"क...क्या मतलब?" अलफांसे चौंक पड़ा।
"तुम्हारे यहां आने से हम समझ सकते हैं कि तुम्हारे बीच फिर झगड़ा हो गया है, फैसला कराने हमारे पास आए हो और फैसला किसी एक की गैर-मौजूदगी में हो नहीं सकता।"
"उफ्पा डैडी, आप बड़े वो हैं।" इर्विन ने पैर पटके।
अपनी बेटी की इस अदा पर मिस्टर गार्डनर ठहाका लगाकर हंस पड़े, जबकि अलफांसे ने कहा—"आपने बिल्कुल विपरीत अनुमान लगाया है डैड, हम यहां झगड़े की वजह से नहीं, बल्कि इसलिए आए हैं, क्योंकि हमारे बीच सुलझ हो गई है।"
"सुलझ?"
"जी हां।"
"तो फिर यहां आने की जरूरत क्यों पड़ गई, जब मियां-बीवी राजी है तो इसमें काजी क्या कहेगा, घूमी—फिरो—इंजॉय करो।"
"उसी की तो आपसे इजाजत लेने आए हैं।"
"हम समझे नहीं, पति-पत्नी को इंजॉय करने के लिए भला किसी की इजाजत लेने की क्या जरूरत है—तुम्हारी उम्र है, मजे करो।"
“बात दरअसल यह है डैड कि हम दोनों ने चार-पांच दिन के लिए किसी हिल स्टेशन पर जाने का फैसला किया है।”
"ओह, तो अब लंदन में आपका इंजॉयमेंट भी नहीं होगा?"
"हमारा प्रोग्राम आज ही निकलने का है, इसलिए यहां आकर आपको इन्फॉर्म करने की जरूरत पड़ी, बिना इन्फॉर्म किए जाना ठीक नहीं था न?"
"वह तो ठीक हैं लेकिन...।"
इर्विन बीच में टपकी—"लेकिन क्या?"
"लगता है सुलह कुछ ज्यादा ही जोरदार हो गई है।" गार्डनर ने कहा और फिर इस तरह ठहाका लगाकर स्वयं ही ही हंस पड़े जैसे उन्होंने कहां और फिर इस तरह ठहाका लगाकर स्वयं ही हंस पड़े जैसे उन्होंने कोई शानदार चुटकुला सुनाया हो।
इर्विन पैर टपकती ही रह गई।
हंसते हुए गार्डनर ने कहा—"जाओ भाई, जाओ—खूब घूमा-फिरो, हम तो चाहते ही यह हैं कि तुम दोनों खुश रहो—इतनी-सी बात के लिए यहां आकर तुमने अपना समय बर्बाद किया है, हमारी इजाजत तो तुम फोन पर भी ले सकते थे।"
अलफांसे सोचने लगा था कि कहीं उसके यहां आगमन पर गार्डनर किसी प्रकार का शक तो नहीं कर रहा था, कहीं वहां पहुंचकर उसने गलती तो नहीं की थी, मगर कम-से-कम एक बार आना और इस ऑफिस की भौगोलिक स्थिति को देखना भी उसके लिए नितान्त जरूरी था।
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