ये बहुत हद तक सूनसान जगह थी ।
कुछ-कुछ फासले पर छोटे-छोटे मकान बने हुए थे । नई कॉलोनी थी । दोपहर का वक्त होने के कारण सन्नाटा और बढ़ गया था । सूर्य सिर पर था । कभी-कभार ही कोई आता-जाता नजर आ जाता था । इस कॉलोनी में सड़कें भी कच्ची-सी हो रही थीं ।
रहस्यमय जीव एक अधूरे बने पड़े मकान के भीतर मौजूद था । कुछ देर वह वहीं बैठा रहा फिर बाहर निकला और हर तरफ नजर मारी । कोई भी नजर नहीं आया तो वह सामने दिखाई दे रहे मकान की तरफ बढ़ गया । मकान के पीछे की दीवार ज्यादा बड़ी नहीं थी । वह उछलकर दीवार पर बैठा फिर भीतर की तरफ उतर गया ।
वहाँ कोई नहीं दिखा, परन्तु भीतर से आवाजें आ रही थीं ।
वह भीतर की तरफ बढ़ गया ।
सामने ही कमरा था । उसने भीतर प्रवेश किया ।
कमरे में आदमी-औरत बैठे खाना खा रहे थे कि उस पर निगाह पड़ते ही आदमी की आँखें भय से भरे अंदाज में फैलती चली गयीं । औरत गला फाड़कर चीखी और दहशत में डूबी फौरन उठकर बाहर निकल भागने के लिए दूसरी तरफ के दरवाजे की तरफ दौड़ी ।
इससे पहले कि वह बाहर निकल पाती, रहस्यमय जीव ने उसे पकड़कर पीछे की तरफ झटका दिया । औरत लड़खड़ाती हुई कमरे में आ गिरी और फौरन ही संभलकर काँपती हुई उसे देखने लगी । उसके शरीर पर उठता कम्पन स्पष्ट तौर पर नजर आ रहा था । आदमी फटी-फटी-सी निगाहों से उसे देख रहा था ।
एकाएक रहस्यमय जीव के मोटे-भद्दे, लटकते होंठ, मुस्कुराहट के रूप में फैल गए । वह दोनों को बारी-बारी देखने लगा । वह आदमी और औरत उसका खतरनाक चेहरा देखकर सिर से पाँव तक और भी ज्यादा काँपने लगे । उसकी मुस्कान इस वक्त काँटेदार सेज से भी ज्यादा तकलीफदेह लग रही थी ।
ऐसा जीव उन्होंने कभी देखा-सुना नहीं था । वे अभी तक नहीं समझ पा रहे थे कि उनके सामने कौन आ खड़ा हुआ है ? इस समय उनका मस्तिष्क ठीक से सोचने के काबिल नहीं रहा था ।
“ये... ये कौन है ?” औरत के होंठों से थरथराता स्वर निकला ।
आदमी ने कहना चाहा, परन्तु उसके होंठ मात्र हिलकर रह गए ।
मुस्कुराहट भरे अंदाज में होंठ फैलाये रहस्यमय जीव आगे बढ़ा और आदमी के पास पहुँचकर अपना हाथ आगे बढ़ाया तो आदमी घबराहट में चीखकर, बैठे-बैठे पीछे लुढ़क गया । तुरन्त ही उसने खुद को संभाला और फटी-फटी आँखों से उसे देखने लगा ।
“क... कौन हो तुम ?” उसके होंठ से अस्पष्ट-सा स्वर निकला ।
वह आदमी को देखता रहा ।
तभी औरत भय में डूबी खरखराती आवाज में कह उठी ।
“भाग... भाग जाओ । ये... ये मार देगा ।” इसके साथ ही औरत ने जैसे-तैसे उठकर वहाँ से पुनः भागने की चेष्टा की ।
उसी पल रहस्यमय जीव ने फुर्ती से आगे बढ़कर औरत की बाँह पकड़ी और उसे नीचे बिठा दिया । साथ ही खुद भी नीचे बैठा फिर उसके मोटे-भद्दे होंठ मुस्कुराहट के रूप में फ़ैल गए । उसने हैलो के अंदाज में हाथ आगे बढ़ाया ।
उसका हाथ करीब आया देखकर औरत का चेहरा और भी आतंक से भर उठा ।
मुस्कुराहट भरे अंदाज में उसे देखते हुए रहस्यमय जीव ने 'हैलो' के अंदाज में पुनः हाथ हिलाया ।
औरत ने थरथराते हुए पीछे हटने की चेष्टा की ।
ये देखकर उसने अपना हाथ आगे बढ़ाया और औरत का हाथ थाम लिया । उसकी खुरदुरी चमड़ी का एहसास होते ही औरत चीखी ।
रहस्यमय जीव उसका हाथ पकड़कर 'हैलो' के ढंग में हाथ हिलाने लगा । फिर हाथ छोड़कर आदमी के पास पहुँचा और 'हैलो' के लिए मुस्कुराते हुए हाथ आगे बढ़ाया ।
आदमी ने उसे देखा फिर उसके हाथ को । आँखों में खौफ समेटे सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।
उसने हाथ और आगे बढ़ाकर आदमी का हाथ पकड़ा और 'हैलो' के ढंग में हिलाने के पश्चात हाथ छोड़ा और दो कदमों की दूरी पर जाकर बैठ गया और मुस्कराकर बारी-बारी आदमी-औरत को देखने लगा । उसका रंग-रूप डरावना जैसा था, परन्तु उसका व्यवहार दोस्ताना-सा लग रहा था ।
आदमी और औरत के चेहरे फक्क थे ।
वह उसी तरह बैठा मुस्कुराते हुए दोनों को देखता रहा ।
इसी तरह पाँच-सात मिनट बीत गए ।
सब कुछ ठीक पाकर आदमी-औरत का हौसला लौटने लगा । उन्होंने महसूस कर लिया था कि शायद उन्हें खतरा नहीं है जितनी दहशत में वे डूब गए थे ।
“ये... ये क्या कर रहा है ?” औरत के होंठों से फटा-सा स्वर निकला ।
“म... मालूम नहीं !” आदमी ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी । नजरें रहस्यमय जीव पर थीं ।
“इस इसने हमसे हाथ मिलाया था ।” औरत की आवाज में अभी भी कम्पन था ।
“ये... ये क्या है ? इंसान है या जानवर ? मैंने ऐसा पहले कभी देखा नहीं ! सुना भी नहीं !”
“मुझे तो डर लग रहा है इससे ।” आदमी ने औरत को देखा ।
“मुझे भी डर लग रहा है ।” औरत का चेहरा पीला पड़ा हुआ था, “लेकिन ये जैसे बैठा है, उससे तो नहीं लगता कि ये हमें किसी तरह का कोई नुकसान नहीं पहुँचाएगा । हमें नहीं मारेगा ।”
“क्या भरोसा इसका !” आदमी के स्वर में कम्पन उभरा और रहस्यमय जीव को देखने लगा ।
तभी रहस्यमय जीव आगे सरकने लगा । इस दौरान वह दोनों पर निगाह मार लेता था ।
आदमी और औरत के चेहरे फक्क पड़ने लगे ।
वह पुनः आगे सरका और वहाँ पड़े खाने के सामान के पास पहुँचा और दोनों को मुस्कराकर देखा । दोनों उसे आतंक भरी निगाहों से देख रहे थे । उनके देखते-ही-देखते उसने रोटी उठाकर तोड़ी और सब्जी लगाकर मुँह में डाल ली । मोना चौधरी ने उसे सिखाया था कि खाना कैसे खाते हैं ।
ये देखकर आदमी और औरत के चेहरों पर विस्मय के भाव आ ठहरे ।
वह खाना खाता रहा ।
इन सब बातों के पश्चात आदमी-औरत का भय उसके प्रति कम होने लगा ।
देखते-ही-देखते उसने सारा खाना समाप्त किया और पास ही पड़ा गिलास उठाकर पानी पिया और फिर दोनों को देखकर मुस्कुराया । दोनों हक्के-बक्के से उसे देख रहे थे ।
उसके बाद वह वहीं फर्श पर लेट गया ।
दोनों ने खुद को संभाला । आदमी खड़ा हुआ । उसे अपनी टाँगें काँपती महसूस हो रही थीं । नीचे लेटा रहस्यमय जीव उसे ही देख रहा था । तभी औरत भी उठी ।
दोनों घबराहट में थे, परन्तु पहले से उनकी हालत बेहतर थी । शायद उन्हें इस बात का एहसास हो गया था कि उनकी जान को कोई खतरा नहीं है ।
तभी रहस्यमय जीव उठ बैठा और हैलो के अंदाज में हाथ आगे बढ़ाया ।
आदमी और औरत ने एक-दूसरे को देखा । चेहरे अभी भी पीले से थे ।
“ये... ये हाथ मिलाने को कह रहा है ।” आदमी के होंठों से सूखी-सी आवाज निकली ।
“प... पहले भी इसने हाथ मिलाया था ।” औरत ने सूखे होंठों पर जीभ फेरते हुए कहा ।
रहस्यमय जीव के चेहरे पर मुस्कुराहट फैल गई । बैठे-ही-बैठे उसने अपना हाथ आगे बढ़ा हाथ हिलाया ।
औरत ने हड़बड़ाकर आदमी को देखा ।
“म... मिला लो हाथ ।” औरत की आवाज में घबराहट थी, “ये... ये कुछ नहीं करेगा ।”
आदमी ने अपने हाथ को पहने कपड़े के साथ रगड़ा और बुरे हाल में डूबे लड़खड़ाते ढंग से आगे बढ़ा और तीन कदम उठाकर उसके करीब जा पहुँचा ।
रहस्यमय जीव का हाथ अभी तक हवा में उठा हुआ था ।
“मुझे डर लग रहा है ।” आदमी के होंठों से निकला ।
“मेरे ख्याल में डरने की जरूरत नहीं है ।” औरत ने हिम्मत करके कहा और आगे बढ़ी । उसके चेहरे पर पूरी तरह घबराहट नाच रही थी । रह-रहकर वह सूखे होंठों पर जीभ फेर रही थी । पास आकर बोली, “म... मैं हाथ मिलाऊँगी ।”
औरत को पास आया पाकर रहस्यमय जीव मुस्कुरा पड़ा ।
औरत ने उसकी तरफ हाथ बढ़ाया । उसका हाथ स्पष्ट तौर पर काँप रहा था । देखते-ही-देखते औरत ने उसके हाथ में हाथ दे दिया तो रहस्यमय जीव ने उसकी हथेली के गिर्द उंगलियाँ दबाई ।
औरत को अपना हाथ खुरदुरी-सी चमड़ी में दबता-सा महसूस हुआ । इसके साथ ही वह हाथ को ऊपर-नीचे हिलाने लगा ।
औरत का चेहरा बता रहा था कि डर से उसका बुरा हाल हुआ पड़ा है ।
तभी रहस्यमय जीव ने उसका हाथ छोड़ा और आदमी को देखने लगा ।
आदमी ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।
औरत अपना हाथ, दूसरे हाथ में मलती कह उठी ।
“मिला लो हाथ । डरो मत ।” औरत का हौसला अब बढ़ने लगा था, “ये कुछ नहीं करेगा ।”
आदमी ने अपना काँपता हाथ आगे बढ़ाया और रहस्यमय जीव के हाथ में दे दिया । रहस्यमय जीव ने उसका हाथ पकड़ा और हैलो के अंदाज में हिलाकर छोड़ दिया, फिर दोनों को देखा । उसके बाद वह पहले की ही तरह फर्श पर लेट गया । लेटे-लेटे उसने दोनों को देखा ।
आदमी कुछ कदम पीछे हटकर कुर्सी पर बैठ गया ।
औरत वहीं खड़ी रहस्यमय जीव को देखने लगी ।
दोनों खुद को अजीब-सी स्थिति में महसूस कर रहे थे । उन्होंने एक-दूसरे को देखा । उसके बाद निगाहें पुनः रहस्यमय जीव पर जा टिकीं । तभी औरत ने कहा ।
“ये शायद नींद लेना चाहता है ।”
उसे देखते हुए आदमी सिर्फ सिर हिलाकर रह गया ।
तभी रहस्यमय जीव के माथे की पट्टी के भीतर से उसकी चमड़ी की परत निकलकर पूरी पट्टी को ढाँपने लगी । ऐसा होते ही नजर आती उसकी आँख छिप जाती । जब वह परत पुनः ऊपर जाती तो आँख नजर आने लगती ।
ऐसा बार-बार होने लगा ।
आदमी और औरत के चेहरे पर हैरत के भाव दिखाई देने लगे ।
“ये क्या कर रहा है ?”
“शायद नींद ले रहा है ।” औरत, रहस्यमय जीव को देखते सोच भरे स्वर में कह उठी ।
“ये... ये आँख पर ऊपर-नीचे क्या हो रहा है ?” आदमी के होंठों से निकला ।
“ये पलक है इसकी । नींद के वक्त जैसे हमारी पलकें आँखों पर आ जाती हैं, वैसे ही इसकी पलक आँख पर आ रही है ।”
दो-तीन मिनट और बीत गए ।
फिर देखते-ही-देखते उसकी पलक एक कान से लेकर दूसरे कान तक आती पट्टी पर बिछ गई । दोनों एकटक उसे ही देख रहे थे ।
कुछ वक्त बीता । पलक वैसे ही रही । आँख नजर नहीं आ रही थी ।
“ये नींद में डूब चुका है ।” औरत ने गहरी साँस लेकर गंभीर स्वर में कहा ।
“ह... हाँ !” आदमी ने घबराहट भरे ढंग से सूखे होंठों पर जीभ फेरी, “लेकिन... लेकिन ये है कौन ? ऐसा जीव हमने पहले कभी नहीं देखा । ऐसे जीव के बारे में कभी सुना भी नहीं !”
“मैं तो खुद हैरान हूँ कि ये है क्या ?” औरत कह उठी, “न तो इंसान लगता है और न जानवर । परन्तु समझ इसमें इन्सानों वाली है । हमारी तरह खाना खाता है । हाथ मिलाता है । पहले तो इसे देखते ही मेरी जान निकल गई थी कि ये हमें मार देगा लेकिन... ।”
“कमला !” आदमी उसकी बात काटकर कह उठा, “हमें यहाँ से निकल चलना चाहिए ।”
औरत ने गंभीर निगाहों से आदमी को देखा ।
“क्यों ?”
“ये मालूम नहीं कौन है ?”आदमी ने जल्दी से घबराये स्वर में कहा, “अभी तो नींद में है । खुद को बचाकर निकल चलने का मौका है हमारे पास । नींद से जाग गया तो फिर ये हमें नहीं जाने देगा ।”
“ये हमें कुछ कह नहीं रहा तो फिर हम डरकर क्यों भागें ?” औरत ने गंभीर स्वर में कहा ।
“पागलों वाली बात कर रही हो तुम । अभी कुछ नहीं कहा तो क्या मालूम होश में आने पर वो हमें मार दे । वो इंसान है या जानवर ये भी नहीं समझ पाए ।” कहते हुए आदमी की निगाह नींद में डूबे रहस्यमय जीव पर जा टिकी, “यहाँ से निकल चलो और पुलिस को खबर करो कि... ।”
“जगदीश !” औरत कह उठी, “पुलिस को इसके बारे में बताना गलत होगा । ये कितना अच्छा है ! बच्चों की तरह हाथ मिलाता है । इसने हमें कोई तकलीफ नहीं दी । हम अवश्य इसे देखकर डर गए थे । मासूम बच्चों की तरह इसने हाथ मिलाया । खाना खाया और नींद में डूब गया ।”
जगदीश ने गुस्से में भरी निगाहों से कमला को देखा ।
“नींद में उठने के बाद अगर उसने हमें मार दिया तो ?”
“मेरे ख्याल में ऐसा नहीं होगा ।” कमला ने कहा, “नींद से उठेगा तो यहाँ से चला जायेगा ।”
“पुलिस को खबर करने में तुम्हें क्या एतराज है ?” जगदीश ने दाँत भींचकर कहा ।
“तुम क्या चाहते हो कि हमारी वजह से ये मारा जाये या तकलीफ में जा फँसे ?”
“मैं समझा नहीं !”
“पुलिस आएगी । इसे पकड़ने की कोशिश करेगी । नहीं पकड़ पायी तो गोली मार देगी इसे । हमारी वजह से इसे तकलीफ हो, क्या ये बात पसंद आएगी तुम्हें ?” कमला ने जगदीश को देखा ।
जगदीश नाराजगी भरे ढंग से खामोश हो गया ।
“हमारा खाना तो ये खा गया ।” कमला बोली, “मैं खाने को कुछ बना लेती हूँ ।”
तभी जगदीश की निगाह नींद ने डूबे रहस्यमय जीव के शरीर पर गई ।
“इसके शरीर पर ये निशान कैसे ? बाँह देखो, वहाँ पर खून लगा नजर आ रहा है ।” जगदीश के होंठों से निकला और कुर्सी से उठकर दबे पाँव रहस्यमय जीव के शरीर के पास जा पहुँचा ।
कई पलों तक कुछ झुककर वह रहस्यमय जीव के शरीर को देखता रहा फिर वापस कमला के पास आया ।
“क्या देखा ?” कमला ने पूछा ।
“मेरे ख्याल में वो घायल है ।” जगदीश ने सोच भरे स्वर में कहा, “उसकी बाँह से खून निकला पड़ा है । छाती पर भी चोट लगने के निशान हैं, लेकिन वो चोट पुरानी हुई लगी पड़ रही है ।”
“तुम उसके जख्म पर दवा लगाने मत जाना । मैं तुम्हारी आदत को जानती हूँ कि तुम नर्म दिल हो ।”
“दवा लगाने में क्या हर्ज है ?”
“हो सकता है उसे तुम्हारा दवा लगाना पसंद न आये । ज्यादा भला करना भी ठीक नहीं ! नींद से उठेगा चला जायेगा । खाना-सोना मिल गया । इतना भला ही ठीक है ।” कमला ने गंभीर स्वर में कहा ।
जगदीश गहरी साँस लेकर रह गया ।
“कुछ खाने को बना दे ।” उसने कहा ।
कमला किचन की तरफ बढ़ गई ।
जगदीश कुर्सी पर जा बैठा । रह-रहकर उसकी नजरें नींद में डूबे रहस्यमय जीव की तरफ उठ जातीं ।
☐☐☐
कमिश्नर रामकुमार ने गंभीर निगाहों से इंस्पेक्टर विमल कुमार मोदी को देखा ।
कुछ देर पहले ही वे हेडक्वार्टर पर वापस पहुँचे थे । मोदी अपने कामों में व्यस्त हो गया था कि घण्टे भर बाद ही कमिश्नर साहब का बुलावा आया तो वह यहाँ आ पहुँचा था ।
“कोई खास बात है सर ?” मोदी ने कमिश्नर रामकुमार को कुछ न कहते पाकर पूछा ।
रामकुमार ने हौले से सिर हिलाया ।
“हाँ ! खास बात तो ये है कि उस विचित्र रहस्यमय जीव का केस कुछ देर पहले ही मेरे हवाले किया गया है ।”
“ओह !” इंस्पेक्टर मोदी के होंठ सिकुड़ गए ।
“आज ही उसने सब के सामने दो पुलिस इंस्पेक्टरों को बहुत बुरी मौत मारा । इस तरह तो शायद जल्लाद भी किसी को नहीं मारते ।” कमिश्नर रामकुमार ने गंभीर स्वर में कहा, “कल रात उसने तीन मासूम व्यक्तियों को आश्रम चौक के पास मारा था । रहस्यमय जीव ने हत्याएँ करने का सिलसिला इसी तरह जारी रखा तो दिल्ली दहशत में डूब जायेगी । ऊपर से मुझे सख्त ऑर्डर है कि जैसे भी हो इस मामले को खत्म किया जाये ।”
इंस्पेक्टर मोदी ने बेचैनी से पहलू बदला ।
“मैं ये केस तुम्हें देना चाहता हूँ ।”
मोदी, कमिश्नर रामकुमार को देखने लगा ।
“मोदी !” रामकुमार ने गंभीर स्वर में कहा, “इस केस पर तुम्हें काम करने पर एतराज है ?”
“न... नहीं सर !”
“तो फिर खामोश क्यों हो गए ?”
“मैं उस रहस्यमय जीव के बारे में सोचने लगा था ।” मोदी का स्वर गंभीर हो गया, “सर वो क्या है, ये बात अभी तक कोई नहीं समझ पाया । जिस तरह उसने दोनों इंस्पेक्टर को मारा, उससे स्पष्ट हो जाता है कि वो खासी ताकत का मालिक है । उसे एक गोली भी लगी, परन्तु उस पर गोली का कोई असर होता नहीं दिखा ।”
कुछ पलों की खामोशी के बाद रामकुमार ने सोच भरे स्वर में कहा ।
“मुझे मालूम है कि ये केस कठिन है । सबसे खास बात तो ये समझ में नहीं आ रही कि वो है क्या ? कहाँ से आया है वो ? ऐसा जीव पहले कभी देखा-सुना नहीं कि वो इन्सानों की तरह भी चलता है और जानवरों की तरह भी दौड़ने लगता है । उसकी एक आँख है मेरे भगवान ! मैं परेशान हो रहा हूँ कि वो आखिर है क्या ?”
मोदी सोच भरी गंभीर निगाहों से कमिश्नर रामकुमार को देखता रहा ।
“वो रहस्यमय जीव जहाँ भी जायेगा, वहाँ हंगामा खड़ा हो जायेगा ।” कमिश्नर रामकुमार ने कहा, “लेकिन दोपहर के बाद से हमें उसकी कोई खबर नहीं मिली, जब से वो पुलिस वालों की हत्या करके भागा है । कुछ देर तो खबर मिलती रही कि वो कहाँ है, किधर है फिर एकाएक उसके बारे में खबरें मिलनी बन्द हो गयीं ।”
“इसका मतलब वो कहीं छिप गया है ।” मोदी बोला ।
“हाँ ! वो कहीं छिप गया है ।” कमिश्नर रामकुमार में मोदी की आँखों में झाँका “लेकिन वो ऐसी कौन-सी जगह पर छिप गया कि दिन की रौशनी में भी उसे कोई नहीं देख पाया !”
मोदी ने होंठ भींच लिए ।
“वो सबसे पहले गुजरात में कोटेश्वर बीच के पास के इलाके में दिखा । वहाँ उसने अरबों रुपये की ड्रग्स पर पहरा दे रहे पाँच गनमैनों की हत्या की । फिर उसने कुछ युवक-युवतियों की हत्या की । एक गाँव में कुछ की जान ली । उसके बाद वहाँ पुलिस पहुँची । कुछ पुलिस वालों की भी उसने जान ली । उसके बाद शायद पुलिस वालों ने मामला संभाल लिया होगा । क्योंकि फिर उस रहस्यमय जीव के बारे में कोई खबर सुनने को नहीं मिली और करीब महीने भर बाद वो दिल्ली में आ गया । इससे कुछ दिन पहले उसके जयपुर होने की खबर सुनी । वहाँ भी उसने किसी की जान ली थी ।”
“इससे स्पष्ट है कि कोटेश्वर बीच पर पुलिस वाला ये मामला नहीं संभाल पाये ।” मोदी कह उठा ।
“अगर मामला संभाला गया होता तो फिर वो रहस्यमय जीव चर्चा में न आता ।”
“सर !” मोदी ने सोच भरे स्वर में कहा, “इस मामले की जानकारी गुजरात पुलिस से लेनी चाहिए कि... ।”
मैं भी यही सोच रहा था । अभी अहमदाबाद बात करके देखता हूँ ।”
कमिश्नर साहब ने फोन पर अहमदाबाद बात की ।
मोदी बातें सुनता रहा ।
रामकुमार ने फोन होल्ड करके इंस्पेक्टर मोदी से कहा ।
“इंस्पेक्टर हरीश दुलानी कोटेश्वर बीच पर इस केस को हैंडिल कर रहा था । क्या कहना है ?”
“सर !” मोदी ने कहा, “हरीश दुलानी से बात करना बहुत जरूरी है । वह रहस्यमय जीव के बारे में अवश्य कोई जानकारी रखता होगा । वहाँ क्या हुआ, ये जानना भी बहुत जरूरी है ।”
“अभी हरीश दुलानी के बारे में पूछता हूँ ।”
दो मिनट बाद ही कमिश्नर रामकुमार ने रिसीवर रखकर कहा ।
“हरीश दुलानी का अहमदाबाद का फोन नम्बर दिया गया है । कहा गया है कि वो इस वक्त घर पर ही होगा ।” कमिश्नर रामकुमार ने टेबल पर पड़ा फोन नम्बर वाला कागज मोदी की तरफ बढ़ाया, “तुम इंस्पेक्टर हरीश दुलानी से बात करो ।”
मोदी ने अहमदाबाद का, दुलानी का नम्बर मिलाया ।
एक बार में ही लाइनें मिलीं । दूसरी तरफ से रिसीवर उठाया गया ।
“हैलो !” आवाज मोदी के कानों में पड़ी ।
“इंस्पेक्टर हरीश दुलानी से बात करनी है ।” मोदी ने कहा ।
“बोल रहा हूँ ।” स्वर दुलानी का ही था, “आप कौन ?”
“मैं दिल्ली के पुलिस हेडक्वार्टर से इंस्पेक्टर विमल कुमार मोदी बोल रहा हूँ । अभी अहमदाबाद हेडक्वार्टर फोन करके आपका नम्बर लिया गया है ।” मोदी ने शांत स्वर में कहा, “राइट इंस्पेक्टर हरीश दुलानी ?”
“ठीक है । मैं आपके बारे में हेडक्वार्टर से मालूम कर लूँगा । मुझे फोन करने की खास वजह ?”
“हाँ !” मोदी गंभीर स्वर में बोला, “आपने कोटेश्वर बीच पर रहस्यमय जीव का केस हैंडिल किया था ?”
“हाँ !” हरीश दुलानी का अजीब-सा स्वर मोदी के कानों में पड़ा, “क्या कहना चाहते हैं आप ?”
“दुलानी साहब, वो रहस्यमय जीव अब दिल्ली आ पहुँचा है ।”
“क्या ?” दुलानी की हैरान भरी आवाज आई, “वो दिल्ली में... । मैंने तो सुना था वो जयपुर में देखा... ।”
“ये बात बीस दिन पहले की है । मैं आज की बात बता रहा हूँ । कल रात उसने तीन व्यक्तियों को जान से मारा और ढाई घण्टे पहले उसने दो पुलिस इंस्पेक्टरों को मार दिया ।”
“हे भगवान ! इंस्पेक्टर मोदी, अब वो दिल्ली में लाशें बिछा देगा ।” दुलानी का तेज स्वर मोदी के कानों में पड़ा ।
“वो ऐसा न कर पाये, तभी आपसे बात करनी पड़ी ।”
“म... मैं क्या कर पाऊँगा इस... ।”
“आप उसके बारे में कुछ जानकारी रखते होंगे । आप उसके केस पर काम कर चुके हैं ।”
“हाँ !”
“वो कहाँ से आया ? उसकी आदतें क्या हैं और... ।”
“म... मैं दिल्ली आता हूँ । फोन पर बात नहीं हो पायेगी ।” दुलानी के बेचैन स्वर मोदी के कानों में पड़ा ।
“मेरे ख्याल में फोन पर बात हो सकती है दुलानी साहब !” मोदी ने कहा ।
“नहीं ! उस विचित्र जीव के बारे में फोन पर बात नहीं हो सकती । एक-दो बातें हो तो बताऊँ । उसके बारे में ढेर सारी बातें हैं मेरे पास । इस मामले में मेरी दिलचस्पी है, तभी मैं आ रहा हूँ ।”
“अच्छी बात है, आप कब तक दिल्ली पहुँचेंगे ?”
“मैं अभी तैयार होकर एयरपोर्ट निकल रहा हूँ । जो भी पहली फ्लाइट दिल्ली के लिए मिलेगी । उस पर आ जाऊँगा ।”
“इसका मतलब रात तक आप पहुँच जायेंगे ।”
“हाँ, मिस्टर मोदी ! आप अपना पता बता... ।”
“दुलानी साहब, मैं पुलिस हेडक्वार्टर में ही आपका इंतजार करूँगा !” मोदी ने बता दिया कि वह हेडक्वार्टर में कहाँ मिलेगा ।
“एक बात का खास ध्यान रखियेगा मोदी साहब, कि उस विचित्र जीव के रास्ते में आने की कोशिश मत कीजियेगा । किसी तरह आप उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकेंगे । वो लाशें बिछाता जायेगा ।”
हरीश दुलानी के तेज स्वर मोदी के कानों में पड़ा ।
“मैं ध्यान रखूँगा ।”
“ओके । रात को मैं हेडक्वार्टर पहुँच रहा हूँ ।”
मोदी ने रिसीवर रख दिया ।
“सर, वो रात को यहाँ हेडक्वार्टर पहुँच जायेगा ।” मोदी का स्वर गंभीर था, “इंस्पेक्टर दुलानी का कहना है कि रहस्यमय जीव के बारे में फोन पर नहीं बता पायेगा । इस मामले में उसकी दिलचस्पी है । वो यहीं आकर बात करेगा ।”
कमिश्नर साहब ने गंभीरता भरे ढंग से सिर हिला दिया ।
“मोदी ! जैसे भी हो, इस मामले को हल करना है ।” रहस्यमय जीव का खौफ दिल्ली में नहीं रहना चाहिए ।”
“मैं पूरी कोशिश करूँगा सर, कि दिल्ली में रहस्यमय जीव जा जिक्र भी न हो । लेकिन वो वास्तव में सख्त जान है । उसकी ताकत मैंने अपनी आँखों से देखी है और कोटेश्वर बीच में भी उस पर पुलिस वाले काबू नहीं पा सके । पा सके होते तो वो दिल्ली तक नहीं पहुँच पाता ।” मोदी सोच भरे स्वर में कह उठा ।
☐☐☐
मोना चौधरी ने महाजन और पारसनाथ पर निगाह मारी । दोनों ने अभी ही मोना चौधरी के फ्लैट पर प्रवेश किया था । पारसनाथ ने सिगरेट सुलगाकर कश लिया । उन्हें खामोश पाकर मोना चौधरी कह उठी ।
“कुछ मालूम हुआ ? तुम दोनों खामोश क्यों हो ?”
“रहस्यमय जीव को करोल बाग के पास, देवनगर के इलाके में देखा गया ।” पारसनाथ ने गंभीर स्वर में कहा, “ये खबर मेरे आदमी ने मुझे दी और वक्त पर मैं वहाँ पहुँच गया था । सच में वो बहुत खतरनाक है । उसे देखने पर ही डर लगना शुरू हो जाता है । ऐसा जीव मैंने पहले कभी नहीं सुना । कल्पना भी नहीं की । उसकी एक आँख उफ़्फ़... बेहद भयानक ।”
मोना चौधरी ने गंभीर ढंग में सिर हिलाया ।
“वहाँ उस रहस्यमय जीव ने क्या किया ?” मोना चौधरी बोली ।
“पुलिस वालों ने उसे घेरने की चेष्टा की ।” पारसनाथ अपने खुरदुरे चेहरे पर हाथ फेरता सपाट लहजे में कह उठा, “उस पर गोली भी चलाई । उसके हाथों में हथकड़ी... ?”
“बेवकूफ हैं पुलिस वाले ।” मोना चौधरी दाँत भींचकर कह उठी ।
महाजन ने सोच भरी निगाहों से मोना चौधरी को देखा ।
“बेबी ! यहाँ की पुलिस से विचित्र जीव का वास्ता अभी पड़ा है । उन्हें क्या मालूम कि वो कैसा सख्त जान जीव है । कैसी आदतें हैं उसकी । पुलिस वाले तो उस पर अपने ढंग से ही हाथ डालेंगे ।” महाजन बोला ।
“फिर क्या हुआ ?” मोना चौधरी ने होंठ भींचें पारसनाथ को देखा ।
“उसे घेरकर खड़े पुलिस वाले भी उस पर काबू नहीं पा सके । दो पुलिस इंस्पेक्टरों को बेरहम तरीके से मारने के पश्चात वो वहाँ से भाग खड़ा हुआ । पुलिस वालों ने उसका पीछा करने की चेष्टा की, लेकिन वो आगे निकल गया ।
“उसके बाद कोई खबर ?”
“एक घण्टे तक तो उसके बारे में खबर मिलती रही कि वो किधर है, किधर नहीं है । फिर वो जाने कहाँ जा छिपा । उसकी कोई खबर नहीं मिली । पुलिस अभी तक उसे ढूँढ़ रही है ।” पारसनाथ ने कहा ।
“तुम्हारा मतलब कि रहस्यमय जीव अब कहाँ है, किसी को नहीं मालूम ?”
“हाँ ! नहीं मालूम ।”
“ये कैसे हो सकता है कि अजीब-सा दिखने वाला रहस्यमय जीव कहीं छिप जाये और किसी को पता न चले ।” मोना चौधरी के माथे पर बल नजर आने लगे, “वो जहाँ भी जायेगा सबकी नजरों में रहेगा ।”
“लेकिन इस वक्त पुलिस उसे तलाश कर रही है । पुलिस वहाँ है, जहाँ आखिरी बार उसे देखा गया था ।” पारसनाथ ने मोना चौधरी को देखते हुए कहा, “और वो किसी को नहीं मिल रहा ।”
मोना चौधरी के होंठ भिंच गए ।
तभी महाजन बोला ।
“मैं कुछ कहूँ बेबी ?”
“कहो ।” मोना चौधरी की सख्त निगाह महाजन पर गई ।
“पुलिस डिपार्टमेंट ने ये मामला कमिश्नर रामकुमार से यह केस मोदी के हवाले कर दिया है ।”
“मोदी ?” मोना चौधरी की आँखें सिकुड़ी, “इंस्पेक्टर विमल कुमार मोदी ?”
महाजन ने सहमति भरे भाव में सिर हिलाया ।
“पुलिस हेडक्वार्टर गया तो वहाँ से ये खबर मुझे मिली । मेरी पहचान वाले पुलिस वाले ने ये सब बताया ।” महाजन बोला, “इसी केस के सिलसिले में बाहर से भी कोई पुलिस वाला आने वाला है । मोदी को बेसब्री से उसका इंतजार है ।”
“कौन पुलिस वाला बाहर से आने वाला है ?”
“ये तो मालूम नहीं हुआ ।”
मोना चौधरी होंठ भींचें सोच भरी निगाहों से महाजन को देखती रही ।
“महाजन !” मोना चौधरी शब्दों को चबाकर बोली, “आने वाला पुलिस वाला दुलानी तो नहीं !”
“दुलानी ?” महाजन के होंठों से निकला, “हरीश दुलानी ?”
“हाँ ! वो रहस्यमय जीव के केस पर काम कर चुका है । अब रहस्यमय जीव दिल्ली में है तो मोदी ने दुलानी को बुला लिया हो कि रहस्यमय जीव के बारे में समझने में उसे आसानी होगी । दुलानी रहस्यमय जीव के बारे में उसे बताएगा ।”
“कह नहीं सकता बेबी !”
मोना चौधरी सोच भरे अंदाज में होंठ सिकोड़े चुप हो गई ।
“मोना चौधरी !” पारसनाथ ने खामोशी को तोड़ा, “एक बात को लेकर मैं उलझन में आ गया हूँ ।”
“क्या ?”
महाजन ने भी पारसनाथ को देखा ।
“तुम दोनों का कहना है कि रहस्यमय जीव कोटेश्वर बीच से तुम लोगों के पीछे-पीछे आया है । अपनी सूँघने की शक्ति का इस्तेमाल करते हुए ये जाना कि तुम तक पहुँचने का रास्ता कौन-सा है ।” पारसनाथ की नजरें मोना चौधरी पर थीं ।
मोना चौधरी ने पारसनाथ को देखते हुए सहमति से सिर हिलाया ।
“तुम दोनों के लिए वो दिल्ली तक आ गया, परन्तु दिल्ली आकर वो तुम दोनों के पास क्यों नहीं आया ? इतना लम्बा रास्ता तय करके वो पीछे-पीछे दिल्ली तक आ सकता है तो अभी तक तुम दोनों के पास क्यों नहीं पहुँचा ?”
मोना चौधरी और महाजन के नजरें मिलीं ।
“तुम क्या कहना चाहते हो ?” महाजन ने पारसनाथ को देखा ।
“यही कि उस जीव का दिल्ली तक आना इत्तफाक है । वो तुम दोनों के पीछे नहीं आया ।”
मोना चौधरी के होंठ अभी तक सिकुड़े हुए थे ।
“वो हमारे पीछे दिल्ली तक आया है ।” महाजन के होंठों से निकला ।
“ऐसा है तो वो तुम दोनों में से किसी एक के पास भी क्यों नहीं पहुँचा ?”
“रास्ता भूल गया होगा ।” महाजन की समझ में नहीं आया कि क्या कहे ।
“मैं पहले ही कह चुका हूँ कि इतना लम्बा रास्ता तय करके वो तुम दोनों के शरीरों की महक का पीछा करते हुए दिल्ली तक आ पहुँचा है, तो वो अब रास्ता क्यों भूल गया ?” पारसनाथ अपने शब्दों पर जोर देकर कह उठा ।
महाजन होंठ भींचें पारसनाथ को देखता रहा ।
“दिल्ली आकर रास्ता भूलने की एक ही वजह समझ में आती है ।” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा ।
पारसनाथ और महाजन की नजरें मोना चौधरी पर गयीं ।
“दिल्ली में लोगों की बेहद ज्यादा भीड़ की वजह से हमारे शरीरों की महक को वो पहचान नहीं पाया और भटक गया ।”
मोना चौधरी के शब्दों के साथ ही वहाँ चुप्पी-सी छा गई ।
दो मिनट की चुप्पी के बाद महाजन कह उठा ।
“अगर ऐसा हो गया है तो हमारे लिए ये फायदे की बात है । वो हम तक नहीं पहुँच पायेगा । खतरा हमसे दूर हो गया ।”
“मोना चौधरी का कहना सही है ।” पारसनाथ बोला, “दिल्ली में लोगों की भीड़ की वजह से वो महक को भूल गया होगा । यही वजह है कि रहस्यमय जीव तुम लोगों तक नहीं पहुँच सका और अब इधर-उधर भटकता फिर रहा है ।”
“ये तो हमारे लिए राहत की बात हो गई ।” महाजन गहरी साँस लेकर बोला ।
“लेकिन खतरा अभी भी सिर पर ही है ।” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा, “जब तक वो इस शहर में है, दिल्ली में है, तब तक हम सुरक्षित नहीं ! वो हमसे बदला लेने आया है और शायद लेकर ही रहे । मैं जानती हूँ कि वो बदले की भावना जब मन में भर लेता है तो उसे निकालता नहीं ! वैसे भी इस वक्त उसके शरीर में पुलिस वालों की चलाई गोलियाँ धँसी हैं । शरीर में धँसी गोलियाँ उसे पीड़ा का एहसास कराती हैं और वो गुस्से में भरा रहता है ।”
“बेबी !” महाजन गंभीर था, “वो जिद्दी है । हम उसकी आदत को अच्छी तरह पहचान चुके हैं ।”
मोना चौधरी ने कुछ नहीं कहा ।
“मेरे ख्याल में तुम दोनों उससे ज्यादा डर रहे हो ।” पारसनाथ बोला, “उसे खत्म किया जा सकता ।”
“ऐसा मत बोलो ।” महाजन ने कहा, “उसके सामने जाना भी मुसीबत मोल लेना है । उसे शूट नहीं किया जा सकता । ताकत के दम पर उसे ललकारा नहीं जा सकता । उसे कैद में कर पाना जान जाने वाला, जोखिम से भरा काम है । उससे मुकाबला करने की तो सोचना भी नहीं चाहिए । कोटेश्वर बीच पर हम उसे अच्छी तरह भुगत चुके हैं ।”
वे तीनों एक-दूसरे का चेहरा देखने लगे ।
आखिरकार मोना चौधरी गंभीर स्वर में कह उठी ।
“तुम दोनों पुलिस पर नजर रखो । मोदी को देखो, इस मामले में क्या करता है ! रहस्यमय जीव के बारे में पता लगाने की चेष्टा करो । आने वाले वक्त में जैसे हालात सामने आते हैं, वैसा ही हम कदम उठाएँगे ।” इसके साथ ही मोना चौधरी ने महाजन को देखा, “तुम यह मत सोचो कि रहस्यमय जीव हमारे शरीरों की महक भूल गया है तो वो हम तक नहीं पहुँच सकता । किसी भी सड़क-रास्ते से, हमारे शरीर की महक को, उसकी साँसें पकड़ सकती हैं । वो हम तक आ सकता है ।”
जवाब में महाजन के होंठ भिंच गए ।
☐☐☐
मोदी और हरीश दुलानी आमने-सामने बैठे थे । रात के साढ़े नौ बज रहे थे । आधा घण्टा पहले ही दुलानी हेडक्वार्टर पहुँचकर मोदी से मिला था । दोनों में परिचय के अलावा इधर-उधर की बातें होती रहीं । कैंटीन से डिनर ले आया था चपरासी, जो कि टेबल पर पड़ा था । अभी उन्होंने खाना शुरू किया था ।
“विचित्र जीव के बारे में कोई खबर ?” हरीश दुलानी ने गंभीर स्वर में पूछा ।
“नहीं ! दोपहर की घटना के बाद से उसकी कोई खबर नहीं !” मोदी ने सोच भरे स्वर में कहा, “पुलिस वाले उसे तलाश कर रहे हैं । वो जाने कहाँ छिप गया है ।”
दुलानी ने मोदी के चेहरे पर निगाह मारी ।
“दिल्ली जैसी जगह पर वो विचित्र जीव भला कहाँ छिप सकता है ?”
“कह नहीं सकता ।” मोदी ने सोच भरे ढंग से सिर हिलाया, “वो जहाँ भी है, खबर मिल जायेगी । ज्यादा देर वो छिपा नहीं रह सकता । उसमें तो अपनी समझ भी नहीं होगी कि कहीं छिप सके ।”
“बहुत समझ है उसे ।” दुलानी अपने शब्दों पर जोर देकर कह उठा, “इंसानों की तरह समझ है उसे ।”
मोदी ने आँखें सिकोड़ीं ।
“इन्सानों की तरह समझ ?”
“हाँ ! जैसे हम लोग समझ रखते हैं । हमारे बराबर की वो भी समझ रखता है ।”
“मतलब कि वो जानता है कि खतरा है । अब उसे छिप जाना चाहिए ।” मोदी बोला ।
दुलानी ने सहमति में सिर हिला दिया ।
मोदी के चेहरे पर अजीब से भाव आ ठहरे थे ।
तभी एक सब-इंस्पेक्टर ने भीतर प्रवेश किया ।
“गुड इवनिंग सर !” उसने मोदी से कहा और दुलानी को देखकर सिर हिलाया ।
“इवनिंग दत्ता ।” मोदी ने उसे देखा, “कोई खबर ?”
“नो सर !” सब-इंस्पेक्टर दत्ता ने कहा, “वो विचित्र जीव किसी को नजर नहीं आ रहा । कहीं छिपा पड़ा है वो । शहर की हर जगह पर नजर रखी जा रही है ।”
“हूँ ।” मोदी ने सोच भरे ढंग में सब-इंस्पेक्टर दत्ता को देखा, “कोशिश करो कि वो जीव कहीं नजर आ जाये । उसकी कोई खबर मिल जाये । रात भर में अगर वो न दिखा तो अखबारों में उसकी तलाश के लिए खबर छपवानी पड़ेगी ।”
“मेरे ख्याल में वो नजर आ जायेगा सर ! आखिर कब तक छिपा रहेगा ।”
“वो दिखे तो तुरन्त मुझे खबर देना ।”
“यस सर !”
“डिनर ले लो ।”
“थैंक्यू सर ! शाम पाँच बजे मैंने लंच लिया था । चलता हूँ । वो नजर आया तो खबर कर दूँगा ।” सब-इंस्पेक्टर दत्ता बाहर निकल गया ।
मोदी ने पुनः खाना शुरू किया ।
“इंस्पेक्टर दुलानी !” मोदी बोला, “विचित्र जीव के बारे में बताइये कि कोटेश्वेर बीच पर क्या हुआ था ? उस जीव के बारे में ज्यादा-से-ज्यादा, जितनी बातें बता सकते हैं, बता दीजिए । उसके बाद ही विचित्र जीव के बारे में विचार किया जायेगा कि उसके बारे में क्या एक्शन लेना है । कोई भी उस जीव के बारे में खास नहीं जानता ।”
हरीश दुलानी का चेहरा व्याकुल-सा हो उठा ।
“सप्ताह भर पहले ही मेरी कलाई का प्लास्टर खुला है ।” दुलानी बोला, “रहस्यमय जीव की वजह से ही मेरी कलाई टूटी थी और कठिनता से मेरी जान बची थी । वो बहुत खतरनाक है ।”
“मुझे उसके बारे में बताओ ।”
दुलानी में मोदी को देखा फिर खाने में व्यस्त हो गया । चेहरे पर उभरी व्याकुलता बढ़ गई थी । इस बीच उसने मोदी को देखा । कहा कुछ नहीं । मोदी ने उसकी परेशानी को पहचाना ।
“क्या बात है इंस्पेक्टर दुलानी ?” मोदी बोला ।
“कुछ नहीं !” हरीश दुलानी ने खुद को सामान्य किया, “वहाँ पर मेरे साथ मेरे पहचान वाले भी थे । एक युवती और एक युवक ।” दुलानी ने मोना चौधरी और महाजन का नाम नहीं लिया, “इस सारे मामले में उनका बहुत ज्यादा हाथ रहा ।” उसके बाद दुलानी ने कोटेश्वर बीच पर रहस्यमय जीव को लेकर जो-जो घटना घटी थी, मोदी को बताई ।
उनका डिनर समाप्त हो गया था ।
दुलानी की बातें सुनकर मोदी हक्का-बक्का था ।
“फिर तो विचित्र जीव मेरी आशा से कहीं ज्यादा खतरनाक है ।” मोदी के होंठों से निकला ।
“जल्लाद है वो ।” दुलानी के होंठ भिंच गए ।
मोदी ने दुलानी की आँखों में देखा ।
“अभी तुम बता रहे थे कि मासूम बच्चों की तरह है । अब कह रहे हो जल्लाद है ।”
दुलानी ने मोदी को देखा । कहा कुछ नहीं ।
“अगर इंस्पेक्टर तिवारी व पुलिस वाले उस पर गोलियाँ न चलाते तो वो शायद जल्लाद न बनता ।”
दुलानी दाँत भींचकर रह गया ।
“जवाब नहीं दिया तुमने ।”
“मुझे तो समझ नहीं आता कि क्या जवाब दूँ । रहस्यमय जीव के मामले में मैं पुरी तरह परेशान... ।”
“अगर उसे गोलियाँ न मारी जातीं तो वो जल्लाद न बनता ?” मोदी उसकी आँखों में देखता कह उठा ।
“सब-इंस्पेक्टर तिवारी की गलती थी । उसने ही… ।”
“तुम भी तो उसे कैद करने की सोच रहे थे ।” मोदी ने गंभीर स्वर में कहा ।
दुलानी ने होंठ भींच लिए ।
उनके बीच कुछ देर चुप्पी रही ।
“मैं तो इस बात पर हैरान हूँ कि विचित्र जीव वहाँ से दिल्ली कैसे आ पहुँचा ? यहाँ… ।”
“तुमने बताया कि गाँव में जो युवती रहती थी गौरी, उसके घर पर तुम्हारी पहचान वाली युवती और युवक ठहरे थे ।”
“हाँ !”
“वो तुम्हारे साथ नहीं ठहरे थे । जबकि तुम्हारी पहचान वाले थे । विचित्र जीव के मामले में उन्होंने तुम्हारी बहुत सहायता की । खुद को खतरे में डाला ।” मोदी ने शांत स्वर में कहा, “कौन थे वो ?”
“मेरी पहचान वाले ।”
“मैं उनके नाम पूछ रहा हूँ । एतराज न हो तो उनके पते भी दे दो इंस्पेक्टर दुलानी ।”
दुलानी ने इंस्पेक्टर मोदी की आँखों में देखा ।
“तुम उनके बारे में छानबीन क्यों करने लगे ?” दुलानी ने पूछा, “उनसे तुम क्या चाहते हो ?”
“वो दोनों तुम से ज्यादा विचित्र जीव के बारे में जानकारी रखते हैं । उनसे मुझे दो-चार बातें और भी काम की मालूम हो सकेंगी ।” मोदी ने सामान्य स्वर में कहा, “उन दोनों के नाम क्या हैं दुलानी ?”
दुलानी ने होंठ भींच लिए ।
“क्या हुआ ?”
दुलानी तब भी कुछ नहीं बोला ।
“दुलानी !” मोदी गहरी साँस लेकर बोला, “तुम उन दोनों के बारे में कुछ छिपा रहे हो । मुझसे झूठ बोल रहे हो ।”
“क्या झूठ ?”
“यही कि वो तुम्हारी पहचान वाले हैं ।” मोदी ने गंभीर स्वर में कहा, “मैं महसूस कर चुका हूँ कि वो तुम्हारी पहचान वाले नहीं हैं ।”
“मैं समझा नहीं !” दुलानी के होंठ भिंच गए ।
“दुलानी साहब !” मोदी गंभीर ही था, “अगर वो युवक-युवती आपकी पहचान वाले होते तो आप अवश्य उनकी बात मानते । न तो सब-इंस्पेक्टर तिवारी उस जीव को शूट करने की सोचता और न ही आप उसे कैद में रखने की सोचते । आपने ही अभी बताया कि दोनों ने जाने से पहले कहा था कि अब उसे न छेड़ा जाये, वरना उसे संभाल पाना कठिन होगा; और वो दोनों गलत वक्त पर वहाँ से गए । रहस्यमय जीव को लेकर वो आखिरी पड़ाव था । कुछ देर उन्हें और भी साथ रहना चाहिए था ताकि रहस्यमय जीव के बारे में सारे इंतजाम अपनी आँखों के सामने देखते, लेकिन वो इंतजाम करने को कहकर चले गए ।”
दुलानी अब बेहद शांत भाव से इंस्पेक्टर मोदी को देख रहा था ।
“पहचान वाले अंत तक साथ देते हैं ।”
दुलानी, मोदी को देखता रहा ।
“क्या हुआ दुलानी साहब ?”
“कुछ नहीं !” दुलानी अब सामान्य दिखने लगा था ।
“कौन थे वो युवक और युवती ?”
“सच कहूँ ?”
“हाँ !” मोदी ने दुलानी की आँखों में झाँका ।
“सच ये है कि मैं उनके बारे में कुछ नहीं जानता । वो अचानक ही मुझे मिले और रहस्यमय जीव के मामले में मेरी सहायता करने लगे और अंत में जब सब ठीक हो गया तो वे चले गए । ऐसे में नाम बताने का कोई फायदा नहीं !”
मोदी फौरन ही खुलकर मुस्कुरा पड़ा ।
“मुझे मालूम था इंस्पेक्टर दुलानी कि आप उन दोनों के बारे में गलत बता रहे थे । अब सही बताया न कि वो दोनों अंजान थे और रहस्यमय जीव के बारे में दिलचस्पी लेने लगे । जब सब ठीक हो गया तो वे चले गए । वही तो मैंने कहा कि अगर पहचान वाले होते तो अवश्य रुकते ।” इसके साथ ही मोदी उठा, “मैं अभी आया । दो मिनट का काम याद आ गया ।”
“श्योर !” दुलानी मुस्कुराया और सिगरेट निकालकर सुलगाने लगा ।
मोदी बाहर निकल गया ।
कमरे से बाहर आते ही इंस्पेक्टर मोदी के होंठ भिंच गए । चेहरे पर तीखेपन के भाव आ ठहरे थे । अभी वह कुछ कदम ही आगे गया होगा कि कमरे से सब-इंस्पेक्टर दत्ता बाहर निकलता दिखा ।
“दत्ता !” मोदी ने पुकारा ।
दत्ता ठिठककर पलटा ।
मोदी पास आ पहुँचा था ।
“सर !”
“तुम अभी तक यहीं हो ।”
“निकल ही रहा था सर ! सूरजभान कहने लगा कि... ।”
“छोड़ो ! मेरी बात सुनो ।” मोदी ने उसकी बात काटकर गंभीर स्वर में कह उठा, “मेरे पास इंस्पेक्टर हरीश दुलानी बैठा है । कोटेश्वर बीच पर विचित्र जीव का केस इसी ने हैंडिल किया था । उसी विचित्र जीव की वजह से ही ये अहमदाबाद से यहाँ आया है, परन्तु कोटेश्वर बीच की कुछ बात छिपा रहा है ।”
“मैं समझा नहीं ।” दत्ता की नजरें मोदी के चेहरे पर जा टिकीं ।
“जो मैंने कहा, वो तो समझ गए ?”
“जी ।”
“कोटेश्वर बीच के पास ही एक गाँव है । उसी गाँव के पास मुख्य सड़क पर इंस्पेक्टर दुलानी पुलिस फ़ोर्स के साथ डेरा डाले रहा था । गाँव में गौरी नाम की औरत रहती थी, जिसे कि अब रहस्यमय जीव खत्म कर चुका है । उसी गौरी के यहाँ एक युवक और युवती ठहरे हुए थे, जो कि रहस्यमय जीव में गहरी दिलचस्पी ले रहे थे । यूँ समझो कि इस मामले में दुलानी मात्र आवरण ही रहा । असल काम उसी युवक-युवती ने किया ।”
“ये बात इंस्पेक्टर दुलानी ने कही ।” दत्ता के होंठों से निकला ।
“बहुत हद तक ।” मोदी ने गंभीर स्वर में कहा, “उसने जो बातें मुझे बताई, उनका यही मतलब निकलता है ।”
“आपने जो बताया मैं समझ गया । कहिये, मैं क्या करूँ ?”
“दुलानी उस युवक-युवती का नाम तक बताने को तैयार नहीं । टरका रहा है ।”
“कमाल है ! उनके बारे में बताने में क्या हर्ज है ?” दत्ता ने अजीब से स्वर में कहा ।
“कोई खास बात है, तभी तो वो उनके बारे में नहीं बता रहा । तुम कोटेश्वर बीच स्थित पुलिस से बात करो । उन्हें गौरी के बारे में खुलासा तौर पर बताओ कि उसका गाँव तलाश करने में उन्हें कोई परेशानी न हो । उन्हें कहो कि फौरन से भी फौरन ये मालूम करके बताएँ कि गौरी के पास जो युवक-युवती ठहरे थे, वो कौन थे ।”
“ठीक है सर ! मैं अभी कोटेश्वर बीच पर स्थित थाने से बात करता हूँ ?”
“मैं दुलानी के पास हूँ । कुछ देर अभी हमारी बातें होनी हैं । उसके बाद मैं घर चला जाऊँगा ।” मोदी ने कहा, “रहस्यमय जीव के युवक-युवती के बारे में कोई खबर हो तो मुझे फौरन बताना ।”
“जी ।”
मोदी पलटकर तेज-तेज कदमों से वापस चल पड़ा ।
“पुलिस की नौकरी भी मुसीबत से भरी है ।” मोदी ने कमरे में प्रवेश करते हुए सामान्य स्वर में कहा, “दो मिनट भी चैन से बैठना नहीं मिलता । कभी ये काम तो कभी वो काम ।”
दुलानी को तसल्ली थी कि मोदी को अब उस युवक-युवती में दिलचस्पी नहीं रही ।
“कई बार तो चार-पाँच दिन नींद भी नसीब नहीं होती ।” दुलानी मुस्कराकर कह उठा ।
“क्या करें !” मोदी बैठता हुआ बोला, “अब नौकरी छोड़ी भी नहीं जा सकती । अब दूसरा काम भी क्या करूँगा । किसी भी काम को करने के लिए तगड़े पैसे की जरूरत है । खैर, मैं उस रहस्यमय जीव के बारे में सोच रहा था । उसकी छाती की गोली निकाली गई तो फिर उसने लोगों को मारना छोड़ दिया ।”
“हाँ ! छाती में धँसी गोली की वजह से उसे दर्द होता था । तभी वो गुस्से में लोगों को मारता ।”
“इंस्पेक्टर दुलानी !” मोदी ने कहा, “तुम कहते हो कि उसमें बहुत ताकत है ।”
“हाँ ! उसमें ताकत है । फुर्तीला है । जल्लादों का जल्लाद है । मैंने अपनी जिंदगी में ऐसी बुरी अवस्था में लाशें नहीं देखीं, जैसी उसने हालत बना दी थी लाशों की ।” कहने के साथ ही दुलानी ने दो पलों के लिए आँखें बन्द कर लीं ।
“अगर तुम्हारा रिपोर्टर दोस्त योगेश मित्तल, रहस्यमय जीव की तस्वीरें नहीं लेता तो शायद उसकी तस्वीर अभी तक न ली गई होती । उसने वास्तव में बहुत हिम्मत दिखाई ।” मोदी बोला ।
“तभी तो उसे अपनी जान गँवानी पड़ी । तस्वीर न लेता तो शायद बच जाता ।” दुलानी के होंठ भिंच गए थे ।
मोदी ने सिगरेट सुलगाकर कश लिया ।
“इस बारे में तुमने अवश्य सोचा होगा कि ऐसा विचित्र जीव आया कहाँ से ?”
“मैंने क्या, सबने सोचा ।” हरीश दुलानी ने बेचैनी से पहलू बदला, “परन्तु किसी भी नतीजे पर नहीं पहुँचा जा सका । हमारा अंदाजा था कि वो एक खास दिशा की तरफ जाता है । उधर जाकर हमने उसे तलाशने की चेष्टा की, परन्तु कोई फायदा नहीं हुआ । उसका ठिकाना नहीं मिला ।”
“अच्छी तरह देखना था । ठिकाना जरूर मिलता ।”
“नहीं मिला ।”
कुछ क्षणों के लिए उनके बीच चुप्पी रही फिर दुलानी ने कहा ।
“तुमने क्या सोचा कि कैसे उस पर काबू पाओगे ?”
“ये बात मैं तुमसे पूछने वाला था । तुम्हें ज्यादा जानकारी होगी कि कैसे उस पर काबू पाया जा सकता है ? कैसे उसे पकड़ा जा सकता है या उसे खत्म किया जा सकता है ?” मोदी ने दुलानी को देखा ।
“अगर मुझे इस बात की जानकारी होती, तो इस केस में मैं असफल क्यों होता ।” दुलानी ने बुझे स्वर में कहा ।
“तिवारी अगर रहस्यमय जीव पर हाथ डालने की कोशिश न करता तो शायद सब ठीक रहता ।”
दुलानी खामोश ही रहा ।
“कभी-कभी बाद में समझ आती है कि वो काम इस तरह किया जा सकता था ।” बोला मोदी, “सब कुछ शांत होने के बाद क्या तुम्हारे दिमाग में ऐसी कोई सोच आई कि... ?”
“बाद में यही सोच मेरे मन में आई कि जब वो रहस्यमय जीव ठीक हो गया था तो उसे तंग नहीं करना चाहिए था । वो बुरा नहीं है । उसे तकलीफ दी जाये तो वो कैसे चुप बैठेगा । अपना गुस्सा कहीं तो निकालेगा ।”
“मतलब कि तुम ये स्वीकार करते हो कि रहस्यमय जीव के केस को ठीक से हैंडिल नहीं कर पाये ।”
“हाँ !” दुलानी ने गहरी साँस ली, “मैंने कई गलतियाँ कीं । सबसे बड़ी गलती तो ये थी कि जब उसे बेहोश किया गया तो उसकी छाती में धँसी गोली निकालने की अपेक्षा तेज धार वाले हथियार से उसके जिस्म के टुकड़े कर देना ज्यादा बेहतर था ।”
मोदी ने अजीब-सी निगाहों से दुलानी को देखा ।
“अभी तो तुम उसे मासूम कह रहे थे ।”
“वो मासूम जब जल्लाद बनता है तो आत्मा काँप उठती है । तुमने भी तो देखा कि उसने कैसे दोनों इंस्पेक्टरों को मारा ।”
मोदी सोच भरी निगाहों से दुलानी को देखता रहा ।
“किसी नतीजे पर पहुँचे क्या ?” दुलानी कह उठा ।
“मेरे ख्याल में जाल का इस्तेमाल करके, पहले की तरह उसे जिन्दा पकड़ने की कोशिश करनी चाहिए ।”
“ऐसा सोचकर भूल कर रहे हो । वो... ।”
तभी सब-इंस्पेक्टर दत्ता ने तेजी से भीतर प्रवेश किया । उसके चेहरे पर अजीब से भाव थे ।
“सर ! कमिश्नर साहब आपको बुला रहे हैं ।”
“खास काम है क्या ?” मोदी ने दत्ता को गहरी निगाहों से देखा ।
“जी । वो कह रहे थे, आपको कोई जरूरी पेपर्स देना है ।” मोदी उठता हुआ बोला ।
“सॉरी मिस्टर दुलानी ! मुझे फिर जाना पड़ रहा है ।”
“कोई बात नहीं, मैं यहीं पर तुम्हारा इंतजार कर रहा हूँ ।” दुलानी ने शांत स्वर में कहा ।
मोदी, दत्ता के साथ बाहर निकल गया ।
गैलरी में कुछ आगे जाने पर सब-इंस्पेक्टर दत्ता ने दबे स्वर में कहा ।
“कोटेश्वर बीच के थाने से अभी मेरी बात हुई है । जो बात आप जानना चाहते थे, वो बात थाने के तीन-चार पुलिस वाले जानते हैं । मुझे हाथोंहाथ जवाब मिल गया । जो युवक-युवती, गौरी के यहाँ रह रहे थे । उनका नाम महाजन और मोना चौधरी था । उनका हुलिया ये बताया गया है ।” दत्ता ने मोना चौधरी और महाजन का हुलिया बताया ।
इंस्पेक्टर मोदी ठगा-सा खड़ा, सब-इंस्पेक्टर दत्ता को देखता रहा ।
“क्या हुआ सर ?”
“कुछ नहीं !” मोदी ने फौरन खुद को संभाला ।
“सर, ये मोना चौधरी वो इश्तिहारी मुजरिम तो नहीं जो... ।”
“मालूम नहीं ! मैं जानने की कोशिश करूँगा । अब तुम जाओ । रहस्यमय जीव की कोई खबर पाने की कोशिश करो ।”
दत्ता चला गया ।
मोदी के दाँत भिंच गए । आँखों में जहरीले भाव आ ठहरे थे ।
कमरे में पहुँचकर मोदी कुर्सी पर बैठता हुआ तीखे स्वर में कह उठा ।
“उस युवक-युवती के बारे में तुम झूठ बोलकर जो चूहे-बिल्ली का खेल खेल रहे थे, वो खेल अब खत्म हो गया है । जबकि तुमने सोचा कि मैंने तुम्हारी बात पर विश्वास कर लिया है ।”
दुलानी के माथे पर बल पड़े । वह मोदी को देखने लगा ।
“कैसा चूहे-बिल्ली का खेल ?”
“जिन्होंने विचित्र जीव के मामले में कोटश्वर बीच पर तुम्हारी सहायता की थी । वो युवक-युवती... ।”
हरीश दुलानी की आँखों में सतर्कता नाच उठी ।
“क्या बात कर रहे हो मोदी ! ये बात हम में हो चुकी है कि... ।”
“हुई नहीं, अभी जारी है ।” मोदी ने सख्त स्वर में कहा, “कौन थे वो दोनों ? उनकी असलियत क्या थी ?”
“मैं बता चुका हूँ ।” दुलानी तीखे स्वर में कह उठा ।
“अभी-अभी मुझे मोना चौधरी का फोन आया था ।” मोदी उसकी आँखों में झाँककर शांत स्वर में बोला ।
“किसका ?”
“उसने बताया था कि साथ में महाजन भी है । दोनों मुझसे मिलने को कह रहे थे ।” मोदी के दाँत भिंच गए ।
दुलानी के होंठ भी भिंच गए ।
दोनों कई पलों तक एक-दूसरे को देखते रहे ।
“कौन थे वे युवक-युवती ?” मोदी बोला, “उनके नाम क्या थे ?”
कुछ पलों की चुप्पी के बाद दुलानी बोला ।
“मोना चौधरी और महाजन के बारे में तुम्हें किसने बताया ?”
“कोटेश्वर बीच के थाने से सब-इंस्पेक्टर दत्ता ने अभी बात की है । वहाँ से उनके नाम पता चले ।” मोदी ने कहा ।
“मोना चौधरी जैसा नाम तो कई हो सकते हैं ।”
“साथ में जुड़ा महाजन का नाम तो कइयों में नहीं आ सकता ।”
हरीश दुलानी गहरी साँस लेकर रह गया ।
मोदी ने नई सिगरेट सुलगा ली ।
कुछ पलों बाद दुलानी धीमे स्वर में बोला ।
“मोना चौधरी और महाजन को अच्छी तरह जानते हो तुम ?”
“इस बात को छोड़ो और काम की बात पर आओ ।” मोदी चुभते स्वर में कह उठा ।
“तुम्हारा ख्याल ठीक है कि वो युवक-युवती, मोना चौधरी और महाजन थे ।” हरीश दुलानी कह उठा, “मैं तुमसे झूठ नहीं बोलना चाहता था, लेकिन मजबूरी आ गई थी । सीधे-सीधे उनका नाम भी नहीं ले सकता था ।”
“कब से जानते हो दोनों को ?”
“कोटेश्वर बीच पर, केस के दौरान ही वे दोनों इस मामले में आ गए थे ।” दुलानी ने मोदी को देखा ।
“इस मामले में उनकी क्या दिलचस्पी थी ?”
“वही दिलचस्पी जो सुनने के बाद हर किसी के मन में उठती है । जीव कैसा है ? कहाँ से आया ? क्यों मार रहा है लोगों को ? उस पर काबू कैसे पाया जाये ? सिर्फ इन्हीं वजहों से दोनों इस मामले में आये ।”
“तुम्हें मालूम था कि दोनों गैरकानूनी काम करते हैं ? पुलिस को मोना चौधरी की तलाश है ?”
“मालूम था । सुन रखा था, परन्तु उस वक्त रहस्यमय जीव को लेकर हालात ऐसे थे कि उन्हें अपने साथ रखना पड़ा । ये बात कहने में मुझे कोई हर्ज नहीं कि दोनों ने इस केस पर मेरी बहुत सहायता की ।” दुलानी ने गंभीर स्वर में कहा, “दोनों का नाम सामने लाना मेरे लिए खतरा बन सकता था । मेरे ही डिपार्टमेंट के लोग मुझ पर इल्जाम लगा देते कि मैं मोना चौधरी और महाजन जैसे अपराधियों से सम्बन्ध रखता हूँ । इसलिए उनके बारे में किसी से बात नहीं की । अगर तुमने ये बात आगे करने की चेष्टा की तो मैं नहीं मानूँगा कि ये बात मैंने कही है । कोटेश्वर बीच पर वे दोनों ही मेरे साथ थे, ये बात कोई साबित नहीं कर सकेगा । कर भी दी तो मैं इसी बात पर अड़ा रहूँगा कि मैं उनकी हकीकत के बारे में अंजान था और... ।”
“निश्चिन्त रहो ।” मुस्कुराया मोदी, “मैं ये बात आगे नहीं करूँगा ।”
दुलानी देखता रहा मोदी को ।
“कुछ और बताओ कि ये इस मामले में कैसे आये ?”
“कैसे आये बता ही चुका हूँ ।” दुलानी ने गंभीर स्वर में कहा, “परन्तु उन्होंने बताया कि ऐसी ही लाशें पहली बार उन्होंने कोटेश्वर बीच के उस तरफ देखीं थीं, जहाँ पाँच सरकारी गनमैन, अस्सी अरब रुपये की ड्रग्स की पहरेदारी पर मौजूद थे । जबकि विचित्र जीव ने पहली बार अपनी मौजूदगी वहाँ दर्ज की थी ।”
मोदी ने सोचों में डूबे कश लिया ।
“मोना चौधरी इस मामले में हमारी सहायता कर सकती है क्या ?” एकाएक मोदी ने पूछा ।
“क्यों नहीं ! वो विचित्र जीव को बहुत अच्छी तरह जानती है । वो अवश्य कोई रास्ता निकाल सकती है ।” हरीश दुलानी एकाएक तेज स्वर में कह उठा, “लेकिन वो हमारी सहायता क्यों करेगी ? क्या मालूम वो कहाँ रहती है ?”
मोदी उठा और टहलने लगा । आँखों में सोचें नाच रही थीं ।
“क्या सोच रहे हो ?” दुलानी ने उसे देखा ।
मोदी ठिठका फिर कह उठा ।
“आओ मेरे साथ ।”
मोदी ने पुलिस कार रोकी । रात के साढ़े ग्यारह बज रहे थे ।
“दुलानी, तुम यहाँ उतरो मैं अभी आया !”
“लेकिन कहाँ जा... ।”
“सवाल मत करो । नीचे उतरो । यहीं रहना । मैं अभी वापस आ जाऊँगा ।”
बे-मन से दुलानी नीचे उतरा और दरवाजा बन्द करता हुआ बोला ।
“जल्दी आना ।”
मोदी कार आगे बढ़ाता चला गया ।
आधे घण्टे बाद मोदी की वापसी हुई ।
“बहुत देर लगा दी ।” दुलानी भीतर बैठता कह उठा, “कहाँ गए थे ? किसी खास से मिलने गए होगे, मुझे यहाँ छोड़कर ।”
“हाँ !” मोदी ने कार आगे बढ़ाते हुए गंभीर स्वर में कहा, “जानना चाहोगे किसके पास गया था ?”
“किसके पास ?”
“मोना चौधरी के ।”
हरीश दुलानी चिहुँककर, आँखें फाड़े मोदी को देखने लगा ।
“क्या नाम लिया ?”
“मोना चौधरी ! वही महाजन वाली ।” मोदी के चेहरे पर शांत-सी मुस्कान उभरी ।
दुलानी लम्बी-लम्बी साँसें लेने लगा ।
“तुम... तुम जानते हो ? मतलब कि तुम जानते हो कि वो कहाँ रहती है ?” दुलानी की आवाज में अविश्वास के भाव थे ।
“मैं उसे सालों से जानता हूँ । सालों से ये भी मालूम है कि वो कहाँ रहती है ।” मोदी शांत स्वर में बोला ।
“सालों से तुम सब कुछ जानते हो और उसे गिरफ्तार नहीं किया । अपने ऑफिसर को खबर नहीं दी ।” दुलानी के होंठों से निकला ।
“नहीं !”
चलती कार में गहरी निगाहों से दुलानी ने मोदी को देखा ।
“मुँह बन्द रखने के मोटे नोट मिल रहे होंगे मोना चौधरी से ।” दुलानी का स्वर कड़वा हो गया ।
“ऐसी बात नहीं ! इतने लम्बे समय तक मोना चौधरी जैसे लोग किसी को मुँह बंद रखने के लिए पैसा नहीं देते । बल्कि गोली मारकर हमेशा-हमेशा के लिए मुँह बंद कर देते हैं ।” मोदी ने कहा ।
“फिर तुम्हारा क्या वास्ता मोना चौधरी से कि उसके बारे में किसी को पता नहीं... ।”
“वास्ता न होते हुए भी बहुत वास्ता हैं ।” मोदी ने कहा, “कभी मोना चौधरी किसी खास काम के लिए बहुत काम आई थी । तब उस काम के लिए डिपार्टमेंट के लोगों ने स्पष्ट मना कर दिया था, जो कि बहुत बड़ी बात थी । उस वक्त में मोना चौधरी काम आई थी । बहुत बुरा वक्त था वो ।”
“तुम्हारा काम था ?”
“पुलिस डिपार्टमेंट के किसी बड़े ऑफिसर का काम था ।” मोदी ने गंभीर स्वर में कहा, ''मैं खुद चाहता था कि उसका काम हो जाये । यही वजह हैं कि मोना चौधरी का ठिकाना मालूम होते हुए भी किसी को नहीं बताता । कभी वो हमारे काम आई थी जब अपनी ही वर्दी वालों ने उस मुजरिम को पकड़ने के लिए मना कर दिया था । कोई सच्चा मजबूर इंसान अब भी मिलता हैं तो उसकी मुलाकात मोना चौधरी से करवा देता हूँ ।”
“मतलब कि मोना चौधरी उसका काम कर देती हैं ।”
मोदी ने गंभीर स्वर में कहा, “बदले में ठीक-ठाक कीमत वसूलती है ।”
दुलानी, मोदी को देखता रहा । कहा कुछ नहीं ।
मोदी की निगाह सामने थी । सामान्य रफ्तार से वह कार ड्राइव कर रहा था ।
“मतलब की मोना चौधरी से तुम्हारी मुलाकातें अक्सर होती रहती हैं ।”
“ऐसा कुछ नहीं हैं ।” मोदी कार ड्राइव करते शांत भाव से मुस्कुराया, ''दोस्ताना नहीं है मोना चौधरी से मेरा । मोना चौधरी की तरफ से ये बात सख्त तौर से हैं कि उसके दरवाजे की तरफ रुख नहीं किया जाये । जब कोई खास बात होती है, तभी उसके दरवाजे पर अपना पाँव रखने की हिम्मत कर पाता हूँ ।”
दुलानि कुछ नहीं बोला ।
कुछ पलों तक कार में चुप्पी रही ।
“मोना चौधरी से अब क्या बात हुई ?” दुलानि ने पूछा ।
“वो मिली नहीं । फ्लैट पर नहीं हैं । सुबह देखूँगा । शायद मोना चौधरी मिल जाये ।”
दुलानी चुप रहा ।
“दिल्ली में कहीं रहने का कोई ठिकाना है तुम्हारे पास ?”
“जो जगह है, मैं वहाँ नहीं रहना चाहता । तुम मुझे हेडक्वार्टर के गेस्ट रूम में छोड़... ।”
“मेरे घर ही चलो । सुबह चाय अवश्य बना देना ।”
☐☐☐
तब का नींद में डूबा रहस्यमय जीव रात को जागा ।
कमला और जगदीश तो देर से उसके उठने का इंतजार कर रहे थे । रात का खाना दोनों ने खा लिया था । यहाँ तक कि कुछ रोटियाँ और दाल रहस्यमय जीव के लिए भी बनाई थीं ।
“मैंने तो सौचा था कि शायद ये नींद से उठकर चला जायेगा ।” उसे हिलता पाकर कमला ने कहा, “अब तो रात हो चुकी है ।”
“क्या मालूम अभी चला ही जाये ।” जगदीश बोला ।
दोनों की निगाहें उसके हिलते शरीर पर थीं ।
तभी पलक के रूप में माथे की पट्टी पर आई उसकी खाल की परत वहाँ से हटी और आँखों के ऊपर के हिस्से में ही भीतर कहीं प्रवेश कर गई ।
उसकी आँख स्पष्ट नजर आने लगी । वह वैसे ही नीचे पड़ा रहा । उसकी आँख इधर-उधर फिरने लगी । वहाँ के माहौल का जायजा ले रहा था शायद ।
जगदीश और कमला कुर्सियों पर बैठे उसे देखते रहे । मन में अंजान-सा भय उठ आया था ।
एकाएक वह बैठा और उसके भद्दे होंठ मुस्कुराहट भरे अंदाज में फैल गए ।
जगदीश ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।
परन्तु कमला उठी और सावधानी भरे ढंग से चलती हुई उसके पास पहुँची और हिम्मत करके हाथ आगे बढ़ाया और खुद पर काबू पाते कँपकँपाते स्वर में बोली ।
“हैलो !”
रहस्यमय जीव ने अपनी गर्दन दायें-बायें हिलाई और हाथ उसकी तरफ बढ़ाया । औरत ने अपना हाथ उसके हाथ में दे दिया । रहस्यमय जीव ने हाथ हिलाया और उसका हाथ छोड़ दिया । उसके बाद उसने अपना हाथ जगदीश की तरफ किया । चेहरे पर अभी भी मुस्कान फैली थी ।
औरत ने पीछे हटते हुए कहा ।
“हाथ मिलाओ, जगदीश !”
जगदीश जल्दी से उठा और उसके पास जा पहुँचा । चेहरे पर सफेदी-सी थी । फिर उसने घबराहट भरे ढंग में अपने हाथ को जल्दी से उसकी तरफ बढ़ाया ।
रहस्यमय जीव ने उसका हाथ पकड़कर हिलाया और छोड़ दिया ।
काँपती टाँगों से जगदीश पीछे हटने लगा ।
रहस्यमय जीव मुस्कुरा रहा था ।
“तुम घबराते क्यों हो !” कमला खुद भी असंयत थी, “ये... ये हमें कोई नुकसान नहीं पहुँचाएगा ।”
जगदीश ने कमला को देखा फिर सूखे होंठों पर जीभ फेरता कुर्सी पर बैठ गया ।
“मैं इसके लिए खाना लाती हूँ ।” कहने के साथ ही कमला किचन की तरफ बढ़ गई ।
जगदीश रहस्यमय जीव को देखता सहमा-सा बैठा रहा ।
रहस्यमय जीव वहीं बैठे कभी उसे देखता तो कभी कमरे में नजरें दौड़ाने लगता ।
जल्दी ही कमला कटोरी में दाल और प्लेट में चपातियाँ ले आई ।
उसके सामने खाना रखा तो वह खाने में व्यस्त हो गया । तीन-चार मिनट में ही उसने दाल-रोटी खत्म की तो कमला गिलास में पानी ले आई । उसने पानी पिया फिर उठ खड़ा हुआ ।
कमला दो-तीन कदम पीछे हट गई ।
रहस्यमय जीव ने मुस्कराकर बारी-बारी दोनों को देखा फिर बाहरी दरवाजे की तरफ बढ़ गया । देखते-ही-देखते वह बाहर निकल गया । रात के दस बज रहे थे ।
“वो... वो चला गया ।” कमला के होंठों से निकला ।
“मुझे तो विश्वास नहीं आ रहा कि वो चला गया ।” जगदीश ने गहरी साँस ली, “जब तक वो यहाँ रहा, मुझे उससे डर लगता रहा । मेरा तो साँस लेना कठिन हो रहा था ।”
“तुम तो खामख्वाह घबराते हो । उसने हमें कोई नुकसान पहुँचाया क्या ?”
“अगर वो कुछ करता तो इस वक्त तुम सवाल पूछने के काबिल नहीं होती ।” जगदीश के होंठों से निकला, “तुम उसे खाना खिलाने में लगी थीं । जबकि मैं चाहता था वो जल्दी से यहाँ से दफा हो ।”
कमला बिना कुछ कहे तेजी से आगे बढ़कर दरवाजे से बाहर निकली ।
“कहाँ जा रही हो ? उसे वापस मत बुला लेना ।” कहते हुए जगदीश कुर्सी से उठा और बाहर की तरफ बढ़ गया ।
गेट पर पहुँचकर कमला ने हर तरफ नजरें घुमाई ।
कुछ दूर अँधेरे में जाता वह दिखा । कुछ-कुछ फासले पर वहाँ मकान बने हुए थे । उनकी रोशनियाँ चमक रही थीं । ये नई कॉलोनी थी । अभी सड़कें भी नहीं बनी थीं ।
“वो देखो जगदीश !” कमला कह उठी, “वो जा रहा है ।”
“अच्छा हुआ चला गया । तुम अब भीतर चलो ।” जगदीश ने उखड़े स्वर में कहा, “मुसीबत टल गई ।”
“वो हमें याद आएगा हमेशा ।”
“तुम्हें याद आएगा । मैं तो उसे भूलने के लिए याद करूँगा ।” जगदीश ने मुँह बनाकर कहा ।
“तुम क्यों उसके पीछे पड़े हो । बुरा-भला कहे जा रहे हो उसे ।” कमला ने तीखे स्वर में कहा ।
“तुम्हें क्यों तकलीफ होती है ! तुम्हारा रिश्तेदार है क्या ?” जगदीश ने खा जाने वाले स्वर में कहा और पलटकर मकान के भीतर आ गया । चेहरे पर इस वजह से राहत थी कि वह चला गया । टीवी की तरफ बढ़ते हुए वह बड़बड़ा उठा, “पता नहीं कैसा बुरा वक्त था जो टल गया ।” इसके साथ उसने टीवी चलाया और कुर्सी पर जा बैठा ।
कुर्सी पर बैठते ही टीवी स्क्रीन पर निगाह पड़ी तो ठगा-सा रह गया । ठण्डी सिहरन बदन में दौड़ती चली गई । टीवी में रहस्यमय जीव की तस्वीर दिखाई जा रही थी और बताया जा रहा था कि वह कितना खतरनाक है ।
“जगदीश !” कमला कमरे के दरवाजे पर खड़ी थी, “ये तो उसी की तस्वीर है !” आँखें फटकर फैल रही थीं ।
जगदीश साँसें रोके सुन रहा था कि आज दिन में कैसे उसने पुलिस वालों को मारा । टीवी में उसे जल्लाद का सम्बोधन दिया जा रहा था ।
“बच गए ।” जगदीश के होंठों से काँपता-सा स्वर निकला, “दरवाजा बन्द कर लो जल्दी ।”
कमला ने भीतर प्रवेश किया और पलटकर दरवाजा बन्द कर लिया ।
दोनों के दिलो-दिमाग की क्या हालत थी, ये वही जानते थे ।
☐☐☐
तब शाम का अँधेरा फैलने लगा था, जब मोना चौधरी डिनर बाहर लेने की सोचकर तैयार होने लगी । रहस्यमय जीव की वजह से वह इस तरह फ़्लैट में बन्द होकर नहीं रह सकती थी । देर-सवेर में बाहर तो निकलना ही था । अब तक रहस्यमय जीव उस तक नहीं पहुँचा तो ये बात उसके मन में पक्की हो गई थी कि दिल्ली में लोगों की भीड़ होने की वजह से रहस्यमय जीव उस तक पहुँचने में भटक गया है । उसके शरीर की महक को भूल गया है ।
आठ बजकर कुछ मिनट हुए थे, जब मोना चौधरी कार पर अपने अपार्टमेंट से बाहर निकली । सड़कों पर वाहनों की लम्बी कतारें और हेडलाइट्स कतार में चमक रही थीं । मोना चौधरी की कार भी उसी कतार का हिस्सा बन गई । मध्यम-सी रफ्तार से मोना चौधरी की कार आगे बढ़ती रही । उसका इरादा लम्बी ड्राइविंग के पश्चात डिनर लेने का था, परन्तु रास्ते में एक्सिडेंट हो जाने की वजह से ट्रैफिक जाम जो गया ।
करीब दो घण्टे उसकी कार जाम ट्रैफिक में फँसी रही ।
इतना लम्बा बोरियत वक्त से गुजरने की वजह से वह थकान-सी महसूस करने लगी थी । लम्बी ड्राइविंग का ख्याल मन से निकालकर मोना चौधरी, अपने पसंदीदा रेस्टोरेंट पहुँची । कार पार्किंग में खड़ी की और भीतर प्रवेश कर गई ।
रेस्टोरेंट का रिसेप्शन पार करके दरवाजा धकेलते हुए भीतर गई तो फ्लोर हॉल में, फ्लोर पर दो युवतियाँ कम कपड़ों में थिरक रही थीं । लोग अकेले और जोड़ों में कुर्सियों पर बैठे ड्रिंक और कोल्ड ड्रिंक का मजा लेते हुए डांस देख रहे थे । वेटर फुर्ती के साथ ऑर्डर सर्व करने में व्यस्त थे । एक तरफ बार रूम नजर आ रहा था ।
मोना चौधरी ने सरसरी निगाह हर तरफ मारी ।
पाँच-सात मिनट हॉल में बिताये फिर आगे बढ़कर, अन्य दरवाजे को धकेलती हुई भीतर चली गई । ये डायनिंग हॉल था । एक तरफ हॉल जैसी गोलाई थी और वहीं से चौड़ी गैलरी जैसा रास्ता जा रहा था । वहाँ भी टेबल सजी हुई थी । वह गैलरी जैसा रास्ता घूमकर वापस दूसरी तरफ से हॉल में आकर ही समाप्त होता था । बेहद मध्यम-सी रोशनी वहाँ फैली हुई थी । जरूरत के मुताबिक चीजें नजर आ रही थीं ।
मोना चौधरी ने एक टेबल संभाल ली ।
ऑर्डर लेने वाला ऑर्डर ले गया ।
दस मिनट में ही उसे खाना सर्व कर दिया गया ।
मोना चौधरी खाने लगी । मध्यम-सी आवाजें वहाँ फैली थीं ।
कभी-कभार किसी चम्मच के प्लेट से टकराने की आवाज सुनाई दे जाती । एक काँच का जग गिरा तो टूटने की आवाज गूँज उठी ।
मोना चौधरी जब डिनर से फारिग हुई तो रात के ग्यारह बज रहे थे ।
ठीक तभी जैसे शोर का बवंडर-सा उठा ।
“वो... वो रहस्यमय जीव ।” एक आदमी बदहवास-सा भागता हुआ डायनिंग हॉल में प्रवेश हुआ ।
मोना चौधरी चिहुँक उठी ।
“क्या कहा ?” आवाज गूँजी ।
“कौन-सा जीव ?”
“जिसकी तस्वीर अखबार में छपी है ।”
“हाँ !”
“भागो, वो तो जल्लाद है । आज उसने दो पुलिस वालों को मार दिया था ।”
“वो कहाँ है ?”
“मैंने उसे होटल में प्रवेश करते देखा है ।”
इतने में ही डायनिंग हॉल में भगदड़ मच गई । जिसे जो रास्ता मिला, वो उधर भागने लगा । अजीब-सा न समझ में आने वाला शोर शुरू हो गया ।
मोना चौधरी के होंठ भिंच गए ।
रहस्यमय जीव इस रेस्टोरेंट में आ पहुँचा था । कैसे आया ? वह नहीं समझ पाई । वक्त कम था । उसके सामने पड़ने का मोना चौधरी का कोई इरादा नहीं था । वह जानती थी कि उसकी ताकत का वह मुकाबला नहीं कर सकती । जबकि वह उसे ही मारने के लिए दिल्ली तक आया है । मोना चौधरी ने वक्त बरबाद नहीं किया । लोगों की भीड़ के साथ ही डायनिंग हॉल से निकली और रेस्टोरेंट के पीछे वाले दरवाजे की तरफ दौड़ी । लोग भी उस तरफ भागे जा रहे थे ।
मोना चौधरी बाहर निकल आई ।
रेस्टोरेंट में भीतर से उठता शोर मोना चौधरी के कानों में पड़ रहा था ।
लोग भागे जा रहे थे, जिसे जिस तरफ रास्ता मिलता ।
रेस्टोरेंट के पीछे वाली गली बीस फीट चौड़ी थी । मध्यम-सा प्रकाश था वहाँ, परन्तु इस समय वहाँ भीड़ थी । लोग दौड़ते दिखाई दे रहे थे । न समझ में आने वाला शोर हर तरफ था । सावधान-सी मोना चौधरी भीड़ के साथ ही इमारत के साथ घूमती हुई रेस्टोरेंट के सामने की तरफ, पार्किंग में खड़ी अपनी कार तक पहुँची । हर कोई भागता-सा नजर आ रहा था । रेस्टोरेंट के भीतर चीखो-पुकार थी ।
यानी कि वह रहस्यमय जीव रेस्टोरेंट के भीतर था ।
कार के पास पहुँचते ही मोना चौधरी ठिठकी । आँखें सिकुड़ गईं ।
अन्य कारें बिल्कुल ठीक-ठाक सामान्य हालत में थीं । लेकिन उसकी कार इस तरह पिचकी हुई थी, जैसे किसी ने कागज को हाथों में मसल दिया हो । मोना चौधरी को कोटेश्वर बीच की वह जगह याद आ गई जहाँ अस्सी अरब रुपये की ड्रग्स और गनमैनों की पाँचों विक्षिप्त लाशें मिली थीं । वहाँ भी कार उन्हें इसी तरह पिचकी मिली थी ।
स्पष्ट था कि उसकी कार को गुस्से से रहस्यमय जीव ने पिचका दिया है ।
लेकिन वह यहाँ तक आया कैसे ? पहुँचा कैसे ?
मोना चौधरी के पास एक ही जवाब था इसका । कार पर जिन रास्तों से वह होकर आई थी । उन्हीं किसी रास्ते पर से रहस्यमय जीव गुजरा । उसके शरीर की गंध को रहस्यमय जीव के मस्तिष्क की तरंगों ने पकड़ा और उस गंध का पीछा करते हुए वह यहाँ तक आ पहुँचा । पहले कार तक पहुँचा, फिर उसकी तलाश में रेस्टोरेंट के भीतर ।
पिचकी कार के पास मोना चौधरी ज्यादा देर न रुकी । उसने किसी तरह टूटे शीशों में हाथ डालकर डैशबोर्ड से जरूरी पेपर्स निकाले और वहाँ से दूर होती चली गई । अभी भी पूरा खतरा था कि रहस्यमय जीव उसके शरीर की गंध का सहारा लेकर उसके पीछे-पीछे फ्लैट तक न आ पहुँचता ।
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