टूरिस्ट होटल के रिसैप्शन से सुनील को मालूम हुआ कि उसका कोई फोन वगैरह नहीं आया था । होटल के सामने से उसने एक टैक्सी ली और सीधा नम्बर तीन बैंक स्ट्रीट पर स्थित अपने निवास स्थान पर पहुंचा ।
अभी उसने फ्लैट में कदम ही रखा था कि फोन की घन्टी बज उठी ।
सुनील लम्बे डग भरता हुआ बैडरूम में पहुंचा । उसने रिसीवर उठाकर कान से लगाया और बोला - “हल्लो ।”
“मिस्टर सुनील ?” - दूसरी ओर से एक अपरिचित स्वर सुनाई दिया।
“यस ।” - सुनील बोला ।
“मेरा नाम चमनलाल है । मैं दोपहर से ही हर पांच मिनट बाद आपको फोन कर रहा हूं ।”
“सारी, मैं घर पर नहीं था ।”
“मुझे आपकी चिट्ठी मिली है ।”
“मेरी चिट्ठी ?”
“जी हां, जो आपने मुझे बाक्स नम्बर 4694 मार्फत ‘ब्लास्ट’ लिखी है जिसमें आपने स्वंय को चौदह नवम्बर को हुए मोटर एक्सीडेन्ट का चश्मदीद गवाह बताया है ।”
“अच्छा वह ! वह विज्ञापन आपने दिया था ?”
“जी हां ।”
“फरमाइये ?”
“मैं आपसे मिलना चाहता हूं ।”
“कब ? कहां ?”
“फौरन ? जहां आप कहें ।”
“मेरे फ्लैट पर तशरीफ ले आइये । पता है तीन, बैंक स्ट्रीट मेरा फ्लैट दूसरी मंजिल पर है ।”
“मैं फौरन आ रहा हूं ।”
सम्बन्ध-विच्छेद हो गया ।
पन्द्रह मिनट में चमनलाल वहां पहुंच गया । वह एक लगभग चालीस साल का थुलथुल शरीर वाला भारी-भरकम आदमी था । शिनाख्त के तौर पर वह सुनील की चिट्ठी साथ लाया था ।
“तो आपने एक्सीडेन्ट देखा था ।” - बैठते ही चमनलाल सीधा मतलब की बात पर आ गया ।
“जी हां ।”
“आपकी याददाश्त कैसी है ?”
“काफी अच्छी है । कोई शिकायत वाली बात नहीं और अगर आपने यह सवाल इसलिये किया है कि मैं कोई बात भूल गया होऊंगा तो वह आपकी गलतफहमी है ।”
“वैरी गुड । क्या हुआ था ?”
“पहले यह तो बताइये कि वह पांच सौ रुपये का इनाम मुझे कैसे मिलेगा ?”
“मैं दूंगा ।”
“अभी ?”
“अभी ।”
“वैरी गुड । सुनिये । चौदह नवम्बर शाम को साढे तीन बजे का वक्त था । मैं जहांगीर रोड पर जा रहा था कि...”
सुनील ने फिर एक्सीडेन्ट का रटारटाया सारा विवरण दोहरा दिया ।
“किसी ड्राइवर को चोट आई थी ?” - सारी बात सुन चुकने के बाद चमनलाल ने गम्भीर स्वर में पूछा ।
“शायद फियेट के ड्राइवर को चाट आई हो लेकिन मैं दावे के साथ कुछ नहीं कह सकता । एक्सीडेन्ट के समय मैंने उसकी गरदन को जोर से झटका खाते देखा था और बाद में भी वह बार-बार अपनी गरदन के पृष्ठ भाग को मसल रहा था ।”
चमनलाल चिन्तित दिखाई देने लगा ।
सुनील उसके दुवारा बोलने की प्रतीक्षा करता रहा ।
“जिस समय पिछली गाड़ी अगली गाड़ी से टकराई थी उस समय अगली गाड़ी की क्या पोजीशन थी ?”
“अगली गाड़ी एकदम रुकी हुई थी ।”
“उससे आगे और गाड़ियां थीं ?”
“जी हां । तीन या चार गाड़ियां थीं उसके आगे ।”
“सड़क पर उस वक्त आपके सिवाय कोई नहीं था ?”
सुनील एक क्षण हिचकिचाया और फिर बोला - “दूसरी ओर के फुटपाथ पर एक आध आदमी था ।”
“और आपकी ओर ?”
“वहां मैं अकेला था ।”
“आपका ध्यान एक्सीडेन्ट के वक्त एक्सीडेन्ट की ओर गया या उससे पहले या उसके बाद में ?”
“पहले !”
“यह कैसे मुमकिन हुआ ।”
“इत्तफाक की बात है साहब कि मैं एक्सीडेन्ट से कुछ क्षण पहले उसी ओर देख रहा था ।”
“आपने दोनों ड्राइवर की सूरत देखी थी ?”
“जी हां ।”
“दोनों में से किसी को दोबारा देखें तो पहचान लेंगे ?”
“दोनों को पहचान लूंगा ।”
“एम्बैसेडर के ड्राइवर का हुलिया बयान कीजिये तो ?”
“वह एक लगभग पैंतालीस साल का मोटा-ताजा तन्दुरुस्त आदमी था । कद लगभग आप जितना था । उसके चेहरे पर बड़े सलीके से तराशी हुई मूछें थीं और वह सिर से काफी हद तक गंजा था ।”
“एक्सीडेन्ट के वक्त या तारीख के बारे में आपको कोई गलतफहमी तो नहीं ?”
“सवाल ही नहीं पैदा होता ।”
“यस तस्वीर देखिये ।” - चमनलाल ने अपने कोट की भीतरी जेब से एक तस्वीर निकालकर सुनील के सामने रख दी - “इसमें किसी को पहचानते हैं आप ?”
सुनील ने तस्वीर उठायी । तस्वीर में दो आदमी अगल-बगल खड़े कैमरे की ओर मुंह करके मुस्करा रहे थे । उनमें से एक रोशनलाल खुराना था और दूसरा चमनलाल था । पृष्ठभूमि में उस आफिस की इमारत दिखाई दे रही थी जिसमें थोड़ी देर पहले वह खुराना से मिलकर आया था । इमारत पर खुराना एण्ड चोपड़ा प्रापटी और कालोनाइजर्स का बोर्ड साफ-साफ पढा जा रहा था ।
“किसको पहचानते हो ?”
“एक तो आप ही है ।”
“और दूसरा ?”
“दूसरे को भी पहचानता हूं ।”
“कौन है वह ?”
“यह वही आदमी है जो एम्बैसेडर चला रहा था और जिसकी वजह से एक्सीडेन्ट हुआ था ।”
“श्योर ?”
“वन हंड्रेड पर्सेन्ट ।”
चमनलाल ने एक गहरी सांस ली । उसने तस्वीर लेकर वापिस जेब में रख ली । उसकी सूरत से निराशा साफ झलक रही थी वह कितनी ही देर मौन बैठा रहा ! फिर तीव्र अनिच्छापूर्ण ढंग से उसने अपनी जेब से अपना पर्स निकाला और उसमें से सौ-सौ के पांच नोट निकालकर सुनील के सामने रख दिये ।
सुनील ने नोट उठाने का उपक्रम नहीं किया ।
“आपके साथ तस्वीर में जो आदमी था आप उसका नाम जानते हैं ?” - सुनील ने पूछा ।
“आप क्यों पूछ रहे हैं ?” - चमनलाल बोला ।
“यूं ही उत्सुकतावश ।”
“ऐसी उत्सुकता कई बार बड़ी जानलेवा साबित हो सकती है ।”
“क्या मतलब !”
“एक्सीडेंट किसकी गलती से हुआ था ?”
“इसी आदमी की गलती से जिसका मैं नाम ले रहा हूं ।”
“जहां तक मेरा ख्याल है तुम उस एक्सीडेंट के अकेले चश्मदीद गवाह हो और तुम्हारी गवाही उस आदमी को फंसा सकती है । अगर उसे तुम्हारी जानकारी हो जाये तो अपनी गरदन बचाने के लिये जरा सोचो तो वह तुम्हारी क्या गत बना सकता है ?”
“वह तो मामूली एक्सीडेंट था । उसे थोड़ी-सी सजा होगी । कोई मर थोड़ी ही गया है कि...”
“कई लोग जेल को हव्वा समझते हैं । वे एक घन्टा भी जेल में गुजारने की कल्पना नहीं कर सकते । इसलिये मेरी राय मानो, पांच सौ रुपये उठाकर जेब में डालो और सारे सिलसिले को अभी इसी क्षण भूल जाओ ।”
“मिस्टर चमनलाल” - सुनील भी उठा - “इससे पहले कि आप यहां से तशरीफ ले जायें मैं आप पर अपना एक ख्याल जाहिर करना चाहता हूं ।”
चमनलाल ने प्रश्नसूचक नेत्रों से उसकी ओर देखा ।
“आपका नाम चमनलाल नहीं है ।”
चमनलाल यूं ही चिहुंका जैसे उसे बिजली का तार छू गया हो ।
“क्या मतलब ?” - प्रत्यक्षत: वह नाराजगी भरे स्वर में बोला ।
“और अगर आपका नाम चमनलाल है तो आपको दूसरों से मांग कर कपड़े पहनने की आदत मालूम होती है ।”
“क्या मैं इस बेहूदगी का मतलब जान सकता हूं ।”
“आपके कफलिंक्स पर आर पी लिखा है, आपकी कमीज की जेब पर आर पी कढा हुआ है । आपकी टाई पर आर पी कढा हुआ है । आर पी से तो चमनलाल नहीं बनता और फिर आपने रोशनलाल खुराना के साथ बगलगीर होकर खुराना एण्ड चोपड़ा के आफिस के सामने जिस अन्दाज से फोटो खिंचवाई है उससे तो मुझे ऐसा लगता है कि आप चमनलाल खुराना के पार्टनर रामप्रकाश चोपड़ा हैं ।”
“तुम्हारी अक्ल खराब है ।” - चमनलाल क्रोधित स्वर में बोला और फिर बिना सुनील से हाथ मिलाये लम्बे डग भरता हुआ फ्लैट से बाहर निकल गया ।
***
रमाकांत की कार अभी तक सुनील ने लौटाई नहीं थी । कार अभी भी बैंक स्ट्रीट में खड़ी थी । सुनील कार पर चेथम रोड़ पहुंचा ।
उसने कार ‘चन्द्रकिरण’ से काफी दूर पार्क कर दी और आगे बढा ।
अनीता अपने फ्लैट में नहीं थी ।
अन्धेरा होने तक सुनील चन्द्रकिरण के आस-पास मंडराता रहा लेकिन अनीता नहीं लौटी ।
नही उसे वहां गौरी शंकर के दर्शन हुए ।
उसे यह भी नहीं मालूम था कि गौरी शंकर रहता कहां था ।
वह वापिस होटल पहुंचा ।
वहां भी निराशा ही हाथ लगी । गौरी शंकर या अनीता ने वहां उससे सम्पर्क स्थापित करना जरूरी नहीं समझा था ।
चमनलाल या अगर सुनील का सन्देह सच था तो राम प्रकाश चोपड़ा का आगमन उसे बुरी तरह खटक रहा था ।
आखिर वह एक्सीडेंट का चश्मदीद गवाह क्यों ढूंढ रहा था ।
उसने चश्मदीद गवाह के लिये अपनी जेब से पांच सौ रुपये खर्च किये थे और जब गवाह मिल गया था उसने सारे किस्से का यूं पटाक्षेप कर दिया था जैसे गवाह की उसे कोई जरूरत ही नहीं थी ।
गवाह की तलाश खुराना को तो हो नहीं सकती थी क्योंकि वह तो खुद ही मान रहा था कि एक्सीडेंट उसकी गलती से हुआ था ।
गवाह की तलाश बीमा कम्पनी को हो सकती थी लेकिन अब यह निर्विवाद रूप से सिद्ध हो चुका था कि विज्ञापनदाता बीमा कम्पनी का नहीं था । और जो विज्ञापनदाता था वह अब एकाएक गवाह के अस्तित्व से परहेज दिखा रहा था ।
खुराना से दोबारा मिलने से दो बातों पर प्रकाश पड़ सकता था ।
एक तो यह कि क्या चमनलाल वाकई उसका पार्टनर रामप्रकाश चोपड़ा था ।
दूसरे क्या उसे मालूम था कि उसके पार्टनर ने - अगर चमनलाल उसका पार्टनर था - एक्सीडेंट के चश्मदीद गवाह के लिये विज्ञापन दिया था । अगर हां तो क्यों ?
साढे आठ बजे तक होटल में इन्तजार कर चुकने के बाद सुनील अपने कमरे से बाहर निकल आया । रिसैप्शन पर आकर उसने डायरेक्ट्री में खुराना के घर का पता देखा ।
वह कार पर सीधे खुराना के घर पहुंचा ।
खुराना शंकर रोड के एक फ्लैट में रहता था ।
कालबैल का जवाब एक नौकर ने दिया जिसके कथनानुसार साहब अभी घर नहीं लौटे थे । साथ ही उसने यह भी बताया कि आजकल सेल रश होने के कारण वे कभी-कभी काफी रात गये तक दफ्तर में काम करते रहते हैं । इसीलिये उस समय साहब के आफिस में होने की काफी सम्भावना थी ।
लगभग साढे नौ बजे सुनील अशोका एन्क्लेव पहुंचा ।
खुराना एण्ड चोपड़ा के आफिस के खुराना के आफिस वाले भाग की बत्त‍ियां जल रही थीं ।
सुनील ने अपनी कार इमारत के सामने खड़ी कर दी ।
सीढियां चढकर वह इमारत के मुख्य द्वार के सामने पहुंचा दरवाजा खुला था । वह भीतर प्रविष्ट हुआ ।
भीतर एकदम सन्नाटा था ।
“खुराना साहब !” - सुनील ने आवाज लगाई ।
उत्तर नहीं मिला ।
“कोई है ?” - सुनील उच्च स्वर में बोला ।
वातावरण की निस्तब्धता में कोई अन्तर नहीं आया ।
सुनील आगे बढा । वह हॉल के सिरे पर पहुंचा । दरवाजा खोलकर वह उस भाग में प्रविष्ट हुआ जहां उसने दिन में एक टाइपिस्ट बैठी देखी थी ।
वहां दो टाइपराइटर थे । एक पर प्लास्ट‍िक का कवर चढा हुआ था लेकिन दूसरे का कवर नीचे फर्श पर पड़ा था । सुनील उस टाइपराइटर के समीप पहुंचा ।
टाइपराइटर के रोलर में एक कागज का टुकड़ा फंसा हुआ था । ऐसा लगता था जैसे किसी ने झटके से कागज खींचा था और लापरवाही की वजह से कागज का एक भाग रोलर में ही फंस गया था ।
सुनील वहां से हटा और खुराना के प्राइवेट आफिस के सामने पहुंचा । उसने द्वार पर दस्तक दी और उच्च स्वर से बोला - “खुराना साहब !”
जवाब नदारद ।
वह एक क्षण हिचकिचाया । फिर उसने दरवाजे को धक्का दिया, दरवाजा खुला था । सुनील भीतर प्रविष्ट हुआ । भीतर की बत्त‍ियां जल रही थीं और कमरे का सारा सामान तहस-नहस पड़ा हुआ था । सारे कमरे में कमरे में कागज उड़ते फिर रहे थे । खुराना की अपनी कर्सी उलटी पड़ी थी । उसकी मेज के दराज बाहर खींच लिये गये थे और उसका सामान फर्श पर जहां-तहां उलटा पड़ा था । बगल की विशाल मेज पर जो लड़की और दफ्ती का बना माडल सुनील ने देखा था वह फर्श पर गिरा पड़ा था । उसके कई पेड़ और खम्बे उखड़ गये थे । खुराना की मेज के पीछे की विशाल खिड़की खुली थी और उसके पर्दे हवा में उड़ रहे थे ।
लगता था जैसे किसी ने उस स्थान की तलाशी लेने में बहुत ज्यादा जल्दबाजी दिखाई थी ।
कालोनी के माडल के नीचे एक सिगरेट लाइटर दबा दिखाई दे रहा था ।
सुनील ने माडल के नीचे अपना हाथ डाला और उसे ऊपर उठाने की कोशिश की । माडल बहुत भारी था । बड़ी मुश्किल से सुनील ने उसे इतना ऊंचा कर पाया कि वह उसके नीचे दबा सिगरेट लाइटर निकाल सके । नीचे से सिगरेट लाइटर निकालते ही माडल का सपाट तला एकदम फर्श में जा मिला ।
सुनील ने देखा, वह ठोस चांदी का बना एक कीमती सिगरेट लाइटर था । लाइटर पर एक मोनोग्राम बना हुआ था जो ठीक से पढा नहीं जा रहा था ।
उसने लाइटर अपनी जेब में डाल लिया ।
फिर उसकी निगाह जमीन पर उड़ते-फिरते कागजों पर पड़ी । एक लम्बी शीट ने उसका ध्यान विशेष रूप से आकर्षित किया । शीट के ऊपरी सिरे पर छपा हुआ था - ज्यूपिटर डिटेक्ट‍िव ब्यूरो । राजनगर ।
सुनील ने वह शीट उठा ली ।
वह डिटेक्ट‍िव ब्यूरो द्वारा किसी को भेजी गई एक रिपोर्ट थी । लिखा था ।
आपके निर्देशानुसार हम मिस अनीता की निरन्तर निगरानी करते रहे हैं । आपको यह विशेष रिपोर्ट इसलिये भेजी जा रही है कि सोमवार को मिस अनीता की निगरानी करने के दौरान में हमें मालूम हुआ कि एक दूसरा आदमी भी मिस अनीता की निगरानी कर रहा था । सोमवार को उस आदमी ने सुपर बाजार में मिस अनीता की कार के बगल में अपनी कार इस प्रकार खड़ी की कि उस कार को हटाये बिना मिस अनीता का अपनी कार में प्रविष्ट हो पाना असम्भव था । बाद में मिस अनीता के सामने उस युवक ने यह जाहिर किया कि वह कार उसकी नहीं थी लेकिन अगर मिस अनीता चाहें तो वह कार को उस स्थान से हटा सकता था । हमारा डिटेक्ट‍िव पार्किंग की दीवार के पीछे बैठा उनका वार्तालाप सुन रहा था । उस युवक ने मिस अनीता को कहा था कि वह कार के इग्नीशन को शार्ट सर्कट करके कार चालू कर सकता है लेकिन वास्तव में उसने कार को चाबी लगाकर ही चालू किया था । प्रयत्क्ष था कि वह सारा सिलसिला मिस अनीता के साथ दोस्ती गांठने की एक चाल थी । बाद में मिस अनीता उसे कार में बिठाकर अपने साथ ले गई थी । हमारे डिटेक्टिव ने कार का पीछा किया था । रास्ते में वह युवक एकाएक एक लाल बत्ती पर कार से उतर गया था । हमारा ख्याल है उसे सन्देह हो गया था कि कार का पीछा किया जा रहा था । हमारा डिटेक्ट‍िक मिस अनीता का पीछा करता रहा था ।
अगले दिन अर्थात मंगलवार को वही युवक सुपर बाजार के आगे बाल प्वायन्ट और फाउन्टेन पैन बेच रहा था । उस दिन फिर उसका सामना मिस अनीता से हो गया था और मिस अनीता उसे अपनी कार में बिठाकर अपने फ्लैट में ले गई थी । हम आपको पहले ही सूचित कर चुके हैं कि हमारे पास यह जानने का कोई साधन नहीं है कि मिस अनीता के फ्लैट के भीतर क्या हुआ ।
सोमवार को हमने उस युवक की इम्पाला कार का नम्बर नोट कर लिया था । रजिस्ट्रेशन चैक करके हमने पता लगाया है कि वह कार यूथ क्लब नाम के एक स्थानीय क्लब के संचालक रमाकान्त की है कि और वह युवक स्थानीय समाचार पत्र ‘ब्लास्ट’ विशेष प्रतिनिधि सुनील कुमार चक्रवर्ती है । उसकी मिस अनीता से क्या दिलचस्पी है यह हमें मालूम नहीं हो सका है लेकिन हम आपके आदेश पर मालूम करने की कोशिश कर सकते थे ।
हमने आपको तुरन्त ट्रन्ककाल करके सूचना दी थी । उस समय सुनील मिस अनीता के फ्लैट में था ।
आपके आदेशानुसार मिस अनीता की निगरानी बन्द कर दी गई है । आपको इस लिखित रिपोर्ट के साथ ही हम आपको अपना फाइनल बिल भी भेज रहे हैं ।
नीचे ज्यूपिटर डिटेक्ट‍िव ब्यूरो के किसी ए पी अग्रवाल नामक अधिकारी के हस्ताक्षर थे ।
सुनील ने रिपोर्ट को तह करके अपनी जेब में डाल लिया । उसी क्षण उसे बाहरी कमरे में किसी के कदमों की आहट सुनाई दी ।
सुनील लपक कर खिड़की के पास पहुंचा । उसने बाहर झांका ।
बाहर राहदारी पर उसकी कार से थोड़ी दूर एक और कार खड़ी थी । सुनील को उस कार के वहां पहुंचने की आवाज नहीं सुनाई दी थी ।
सुनील खिड़की की चौखट पर चढ गया । उसने चुपचाप खिड़की से बाहर छलांग लगा दी । छलांग लगाने से पहले उसे अपने पीछे कमरे का दरवाजा खुलने की आवाज आई ।
सुनील दबे पांव अपनी कार की दिशा में भागा । कार के समीप पहुंच कर वह फुर्ती से भीतर प्रविष्ट हो गया ।
तभी कोई चिल्लाया ।
इन्जन स्टार्ट करते समय उसने उड़ती हुई निगाह खिड़की की ओर डाली ।
खिड़की पर एक आदमी खड़ा था लेकिन पीछे कमरे में प्रकाश होने के वजह से उसका चेहरा नहीं दिखाई दे रहा था ।
“ठहरो” - वह चिल्लाया - “ठहरो । रुक जाओ वर्ना शूट कर दूंगा ।”
सुनील ने तोप की छूटी गोली की रफ्तार से राहदारी पर कार भगा दी ।
मोड़ काटने से पहले रियर व्यू मिरर में उसने खिड़की पर मौजूद आदमी को खिड़की से कूदकर अपनी कार की ओर भागते देखा ।
मेन रोड पर आकर सुनील ने कार को चौथे गियर पर डाला और एक्सीलेटर के पैडल को कार के फर्श तक दबा दिया ।
एक कार पूरी रफ्तार से उसके पीछे भाग रही थी ।
आगे एक चौराहा था जिस पर ऐम्बर लाइट जल रही थी सुनील के वहां पहुंचते-पहुंचते बत्ती लाल हो गई लेकिन सुनील ने कार रोकने का प्रयत्न नहीं किया । उसने जोर से हार्न पर हाथ मारा और कार को सीधा चौराहे पर भाग दिया ।
ब्रेकों की चरचराहट से वातावरण गूंज उठा । बायीं ओर से आती कार सुनील की कार से टकराती-टकराती बची । सुनील ने चौराहा पार करके कार को दायीं ओर की एक सड़क पार डाल दिया ।
जो कार उसका पीछा कर रही थी वह चौराहा नहीं पार कर सकी थी ।
सुनील की जान में जान आई ।
एक मामूली-सा एक्सीडेन्ट का मामला रहस्य और पेचीदगियों का घर बनता जा रहा था ।
सुनील ने जिस हालात में रोशनलाल खुराना का दफ्तर देखा था उससे उसे लगभग विश्वास हो गया था कि उसके दफ्तर में उसे उसकी लाश मिलेगी लेकिन वहां जिन्दा या मुर्दा रोशनलाल खुराना का नाम निशान भी नहीं था ।
या शायद रोशनलाल खुराना आफिस के किसी और कोने में पड़ा था । सुनील को सारी इमारत देखने का मौका नहीं मिला था ।
खुराना के आफिस में उसे ज्यूपिटर डिटेक्टिव ब्यूरो की रिपोर्ट पड़ी मिली थी । रिपोर्ट से जाहिर होता था कि ज्यूपिटर डिटेक्ट‍िव ब्यूरो का क्लायन्ट राजनगर से बाहर कहीं रहता था क्योंकि रिपोर्ट के अनुसार ब्यूरो ने अपने क्लायन्ट से ट्रंककाल पर बात की थी ।
उनका क्लायन्ट कौन था ?
और रिपोर्ट खुराना के दफ्तर में कैसे पहुंची ?
यह बात निर्विवाद रूप से सच थी कि रात को खुराना की मौजूदगी में उसके आफिस में कोई आया था । उसके आफिस में मिला सिगरेट लाइटर निश्चय ही उसका नहीं था क्योंकि खुराना सिगरेट नहीं पीता था और डिटेक्ट‍िव ब्यूरो की रिपोर्ट भी खुराना के अधिकार में होने की कोई वजह दिखाई नहीं देती थी । हालात यही जाहिर करते थे कि आगन्तुक से किसी बात पर खुराना की लड़ाई हो गई थी जिसकी वजह से आफिस की वैसी गत बना दी गयी थी । लड़ाई में ही आगन्तुक का लाइटर और रिपोर्ट गिर गई थी । शायद आगन्तुक ने खुराना को अपने अधिकार मे कर लिया था और फिर रही-सही कसर आफिस की तलाशी लेकर पूरी कर दी थी ।
लेकिन आगन्तुक कौन था ?
उसे किस चीज की तलाश थी ?
वह चीज उसे मिली या नहीं ?
क्या वह वही आदमी था जो सुनील की मौजूदगी में वहां पहुंचा था और बाद में कार पर सुनील के पीछे भागा था ।
क्या पता वह आदमी कम्पनी का कोई अधिकारी ही हो जो रात केा किसी काम से वहां आया हो । और यह भी सुनील के लिये चिंता का विषय था कि सुनील की कार का नम्बर देखने का मौका मिला था या नहीं ।
और सबसे ज्यादा रहस्यपूर्ण बात यह थी कि रोशनलाल खुराना वहां था ?
सुनील ने सारी इमारत नहीं देखी थी । क्या कहीं उसकी लाश पड़ी थी ?
अगर ऐसा था तो सुनील वहां फंसने का काम कर आया था । सारे दफ्तर में उसकी उंगलियों के निशान मौजूद थे । किसी ने उसे वहां से उसे भागते भी देखा था । अगर वह कोई कम्पनी से ही सम्बन्धित आदमी था और उसने सुनील की कार का नम्बर नोट कर लिया था तो वह बड़ी आसानी से जाना जा सकता था कि रात को वहां आने वाला कौन था ?
इस मुश्किल से निकलने का एक ही तरीका था ।
कि इस बार वह किसी शहादत के साथ वापिस वहां जाये और उन तमाम स्थानों पर फिर से फिर जाये जहां कि वह पहली बार गया था । पुलिस के पास उंगलियों के निशानों द्वारा यह जानने का कोई साधन नहीं होता कि वे निशान कब वहां छोड़ गये ।
और इस बारे में वह भगवान से प्रार्थना ही कर सकता था कि उसका पीछा करने वाले ने उसकी कार का नम्बर नोट न किया हो ।
एक पेचीदगी और भी थी ।
अगर इमारत में कहीं खुराना की लाश मौजूद थी उसकी कार कहां गई ।
अशोका एन्क्लेव नगर से बाहर एक सुनसान जगह थी । वहां आदमी अपनी सवारी के बिना नहीं आ सकता था । अगर वह टैक्सी वगैरह पर आता तो या तो उसे टैक्सी अनिश्चित काल तक वहां रोकनी पड़ती और या फिर वह वापिस नहीं जा सकता था । खुराना के पास कार थी । उसका कार पर वहां जाना ही युक्त‍िसंगत मालूम होता था । अगर इमारत में कहीं खुराना की लाश थी तो उसकी कार वहीं खड़ी दिखाई देनी चाहिये थी ।
या शायद सिगरेट लाइटर वाला आदमी खुराना के साथ ही वहां आया था और आफिस की इमारत में खुराना की हत्या करके वह उसी कार से वापिस बाहर चला गया था ।
या शायद हत्या हुई ही नहीं थी । आफिस में मचे कोहराम की शायद कोई और ही वजह थी ।
सुनील का दिमाग भन्ना गया ।
उसने कार को एक किनारे खड़ा करके एक सिगरेट सुलगाया ।
दो सिगरेटों के बाद वह अपने आपको व्यवस्थित करने में कामयाब हो गया था ।
उसका वापिस अशोका एन्कलेव जाना जरूरी था और किसी शहादत के साथ जाना जरूरी था और वापिस वहां जाने के लिये खुराना को सैकेट्री वीणा से बढिया इन्सान कोई नहीं हो सकता था ।
लेकिन वीणा रहती कहां थी ।
उसने एक कार पब्लिक टेलीफोन के सामने ले जाकर खड़ी कर दी ।
टेलीफोन बूथ में डायरेक्ट्री मौजूद थी ।
यह देखकर उसकी जान में जान आई कि वीणा का नाम डायरेक्ट्री में मौजूद था और नाम के आगे उसका पता भी लिखा हुआ था अगर डायरेक्ट्री में उसका नाम न होता तो उसे वीणा का घर का पता मालूम करने के लिये काफी पापड़ बेलने पड़ते ।
सुनील को यह देखकर काफी हैरानी हुई कि वीणा भी चन्द्र किरण के ही एक फ्लैट में रहती थी ।
वर्तमान स्थिति में वह नहीं चाहता था कि ‘चन्द्रकिरण’ में उसका अनीता या गौरीशंकर से सामना हो जाये इसलिये उसने वीणा को फोन ही करना मुनासिब समझा ।
उसने घड़ी पर दृष्टिपात किया । सवा ग्यारह बज चुके थे ।
उसने वीणा का नम्बर डायल किया ।
कितनी ही देर घन्टी बजती रहने के साथ कहीं जाकर उसे वीणा का उनींदा स्वर सुनाई दिया - “हल्लो ।”
“मैं सुनील बोल रहा हूं ।” - सुनील बोला ।
“कौन सुनील !”
“जिसे आप टूरिस्ट होटल में रोशनलाल खुराना से मिलवाने ले गई थीं ।”
“ओह, अच्छा । इतनी रात गये कैसे फोन किया ?”
जाहिर था वीणा उस टेलीफोन काल से खुश नहीं थी ।
“एक एमरजेन्सी आ गई है वर्ना मैं आपको हरगिज फोन नहीं करता ।” - सुनील बोला ।
“क्या हो गया है ?” - वीणा आशंकित स्वर में बोली ।
“यह तो मैं मुलाकात होने पर ही बता पाऊंगा, लेकिन विश्वास जानिये, मिस्टर खुराना की भलाई इसी में है कि आप तुरन्त मुझसे मिलें ।”
“सच कह रहे हो ?”
“हां ।”
“कहीं तुम मिस्टर खुराना का नाम आधी रात गये मुझसे मुलाकात करने के बहाने की तरह तो इस्तेमाल नहीं कर रहे हो ?”
“नहीं, बाई गॉड नहीं ।”
“क्या चाहते हो ?”
“तुमसे फौरन मिलना चाहता हूं ।”
“यहां आ सकते हो ?”
“चेथम रोड ही आ सकता हूं, बशर्ते कि ठीक दस मिनट बाद तुम मुझे इमारत से बाहर मिलो ।”
“ओके ।”
“थैंक्यू ।”
सुनील ने रिसीवर रख दिया ।
वह कार में सवार हुआ और चेथम रोड की ओर उड़ चला ।
चन्द्रकिरण के सामने फुटपाथ पर वीणा खड़ी थी लेकिन वह अकेली नहीं थी । उसके साथ एक कृषकाय वृद्ध खड़े थे ।
“हल्लो ।” - सुनील बोला ।
“हल्लो” - वीणा बोली - “ये मेरे फादर हैं ।”
“नमस्ते ।” - सुनील बोला ।
“नमस्ते ।” - वृद्ध बोले ।
“क्या एमरजेन्सी है ?” - वीणा ने पूछा ।
“मिस्टर खुराना ने मुझे होटल में फोन किया था ।” - सुनील साफ-साफ झूठ बोलता हुआ बोला - “उन्होंने रिसैप्शन क्लर्क को बताया था कि वे अपने आफिस से बोल रहे थे और फौरन मिलना चाहते थे ।”
“क्यों ?”
“वजह उन्होंने नहीं बताई । उन्होंने मेरे लिये सन्देशा छोड़ा था कि मैं जब भी आऊं उन्हें आफिस में फोन कर लूं और रिसैप्शन क्लर्क का कहना है कि वे बहुत घबराये हुए मालूम होते थे ।”
“अच्छा !” - वीणा चिन्तित दिखाई देने लगी ।
“मैं थोड़ी देर पहले ही होटल वापस आया था । मैंने उन्हें आफिस में फोन किया था लेकिन दूसरी ओर से किसी से टेलीफोन उठाया ही नहीं ।”
“वे इन्तजार करके घर चले गये होंगे ।”
“लेकिन वे घर पर भी तो नहीं हैं ।”
“तुम्हें कैसे मालूम ?”
“मैंने फोन भी किया था और खुद भी वहां गया था । मिस्टर खुराना घर पहुंचे ही नहीं और फिर उन्होंने रिसैप्शन क्लर्क को यह भी तो कहा था कि मैं जब भी जाऊं उन्हें आफिस में ही फोन करूं, वे मेरा वहीं इन्तजार करेंगे ।”
“लेकिन मिस्टर खुराना आपसे बात क्या करना चाहते थे ?”
“भगवान जाने ?”
वीणा अब बेहद चिन्तित दिखाई देने लगी ।
“उन्हें कहीं कोई दौरा-वौरा तो नहीं पड़ता था ।”
“दौरा-वौरा तो नहीं पड़ता था । हां एक बार उन्हें हार्ट-अटैक जरूर हुआ था ।”
“फिर तो हो सकता हैं उन्हें फिर...”
सुनील ने जानबूझकर वाक्य अधूरा छोड़ दिया ।
“ओह नो ।”
“आदमी जब बहुत चिन्तित होता है या बहुत घबराया हुआ होता है तो कई बार बड़ा अप्रत्याशित दिल का दौरा पड़ जाता है । शायद उन्हें...”
“हमें फौरन आफिस जाना चाहिये ।”
“यही तो मैं कह रहा हूं ।”
“मेरे फादर साथ चलेंगे ।”
“जरूर चलें । यह तो और भी अच्छी बात है ।”
तीनों कार में सवार हो गये ।
सुनील ने कार अशोका एन्क्लेव की ओर भगा दी ।
“तुम्हारे पास इतनी बढिया कार कहां से आई ?”
“मेरी नहीं है । एक दोस्त से मांगी है । इस वक्त नगर से इतना बाहर जाने के लिये सवारी कहां से मिलती ?”
“इतनी शानदार कार रखने की हैसियत वाले दोस्त हैं तुम्हारे ?”
“हैं ।” - सुनील ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया ।
कई क्षण कोई कुछ नहीं बोला ।
“एक बात और बताओ ।” - एकाएक वीणा बोली ।
“पूछो ।” - सुनील बिना सड़क पर से निगाह हटाये बोला ।
“कहीं तुम खुराना साहब से विज्ञापन वाला पांच सौ रुपया नगद इनाम पटाने की फिराक में तो नहीं हो ?”
“नहीं ।”
“अगर तुम्हारा ऐसा कोई ख्याल है तो उसे दिमाग से निकाल दो क्योंकि वह विज्ञापन खुराना साहब ने नहीं दिया है ।”
“तुम्हें कैसे मालूम ?”
“मुझे सब मालूम है । मैं उनकी पर्सनल सैकेट्री हूं । मुझे उनकी हर बात मालूम है ।”
“मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है । मैं तो केवल उनकी कुशलता के लिये चिन्तित हूं और वह भी इसलिये क्योंकि उन्होंने मुझे फोन किया था ।”
वीणा चुप रही ।
सुनील ने खुराना एण्ड चोपड़ा के आफिस के सामने कार ला खड़ी की ।
पहले की तरह इमारत में अभी भी प्रकाश था और ड्राइव वे खाली था ।
“भीतर रोशनी है ।” - वीणा हैरानी से बोली ।
“अगर वे भीतर हैं तो उनकी कार कहां है ?”
“मैं देख रहा हूं । शायद खुराना साहब भीतर हों ।” - सुनील बोला ।
“अगर वे भीतर नहीं हैं तो क्या वे आफिस की सारी बत्तियां यूं जली छोड़ जायेंगे ?”
“आओ भीतर चलते हैं... पापा, आप कार में ही बैठिये ।”
वृद्ध ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिलाया ।
सुनील और वीणा कार से बाहर निकल आये ।
वे आफिस में प्रविष्ट हुए ।
वीणा अपने आफिस में पहुंची ।
“यह मेरे टाइपराइटर पर से कवर किसने उतारा है ?” - वह हैरानी से बोली ।
“तुम ही कवर चढाना भूल गई होगी ।”
“नामुमकिन । मुझे अच्छी तरह याद है मैं इस पर कवर चढाकर गई थी और फिर रोलर में एक कागज का टुकड़ा भी फंसा हुआ है । जरूर मेरे बाद किसी ने टाइपराइटर इस्तेमाल किया है और टाइप किया हुआ कागज इतनी जल्दी रोलर में से खींचा है कि उसका एक भाग रोलर में फंसकर फट गया है ।”
“मुमकिन है ।” - सुनील ने समर्थन किया ।
वीणा एक झटके से किवाड़ खोलकर खुराना के कमरे में प्रविष्ट हुई ।
“हे भगवान !” - आफिस की हालत देखकर वह चौखट पर ही थमकर खड़ी हो गई ।
सुनील उसकी बगल में आ खड़ा हुआ ।
“यहां तो लगता है जैसे जंगली हाथी आ घुसे हों ।”
सुनील ने उत्तर नहीं दिया ।
वीणा कमरे में प्रविष्ट हुई ।
सुनील जान बूझकर पीछे रह गया । उसने अपनी जेब से चांदी का सिगरेट लाइटर निकालकर चुपचाप एक ओर फेंक दिया और डिटेक्टिव ब्यूरो की रिपोर्ट भी अन्य कागजों में मिला दी । फिर जब वीणा का ध्यान उसकी ओर हुआ तो उसने जमीन से लाइटर उठा लिया ।
“यह सिगरेट लाइटर खुराना साहब का है ?” - उसने पूछा ।
“नहीं” - वीणा बोली - “खुराना साहब सिगरेट नहीं पीते ।”
“आई सी । तो फिर यह सिगरेट लाइटर उस आदमी का हो सकता है जो खिड़की के रास्ते भीतर घुसा, जिसका खुराना साहब के साथ लड़ाई-झगड़ा हुआ और बाद में जिसने कमरे की यह गत बनाई !”
“तुम्हें कैसे मालूम कि कोई आदमी खिड़की के रास्ते यहां घुसा था ?”
“मेरा अनुमान है । खिड़की खुली है और यह जमीन से ज्यादा ऊंची भी नहीं है ।”
“शायद कोई इस रास्ते से कूदा हो ?”
“यह भी हो सकता है ।”
सुनील खिड़की के पास पहुंचा । वह चौखट पर चढा कुछ क्षण ठिठका और फिर बाहर कूद गया । कुछ क्षण वह बाहर खड़ा रहा और फिर उसी रास्ते से वापिस कमरे में दाखिल हो गया ।
वह सन्तुष्ट था । काम स्कीम के अनुसार हो रहा था । वीणा की मौजूदगी में वह उन तमाम स्थानों पर अपनी उंगलियों के निशान छोड़ चुका था जहां उसने पहले चक्कर में निशान छोड़े थे ।
वीणा जमीन पर बिखरे हुए और दरवाजों में बचे हुए कागज टटोल रही थी ।
सुनील चुपचाप उसके समीप खड़ा रहा । उसने एक सिगरेट सुलगा लिया ।
लगभग दस मिनट बाद वीणा ने सुनील की ओर रुख किया ।
“कुछ गायब है ?” - सुनील ने पूछा ।
“कम से कम एक चीज जरूर गायब है ।” - वीणा बोली ।
“क्या ?”
“तुम्हारा हस्ताक्षर युक्त बयान जो तुमने जब पहली बार यहां आये थे तो खुराना साहब को दिया था ।”
“शायद का कागज खुराना साहब अपने साथ ले गये हों ।”
“लेकिन वे हैं कहां ?”
“कम से कम इमारत को तो अच्छी तरह देख ही लो ।”
अगले पांच मिनटों में वीणा ने इमारत का कोना-कोना छान मारा ।
खुराना कहीं नहीं था ।
अब वीणा चिन्तित ही नहीं, घबराई हुई भी दिखाई दे रही थी ।
“हमें पुलिस को फोन करना चाहिये ।” - वह बोली ।
“फोन करके क्या कहोगी पुलिस को ?” - सुनील ने पूछा ।
“यही कि इमारत में कोई चोर घुसा है ।”
“तुम्हें कैसे मालूम कोई चोर घुसा है ! चोरी तो कुछ भी नहीं गया है और आफिस की यह हालत बनाने में शायद खुराना साहब का अपना ही हाथ हो ।”
“लेकिन तुम्हारा बयान चोरी गया है ?”
“अव्वल तो इस बात का कोई सबूत नहीं है कि मेरा बयान चोरी गया है और चोरी गया भी है तो भी वह महत्वहीन चीज थी । वही बयान में दोबारा लिखकर साईन कर दूंगा ।”
“लेकिन जैसी एमरजेन्सी में तुम मुझे यहां लाये थे, उससे तो लगता था जैसे खुद पुलिस को सूचित करने के इच्छुक हो ।”
“था । अब नहीं । अगर हमें यहां खुराना साहब की लाश मिलती तो बात दूसरी थी । और फिर हालात से साफ जाहिर है कि यहां जो लड़ाई-झगड़ा हुआ है, खुराना साहब के साथ हुआ है । अगर खुराना साहब ने हालात की जानकारी पुलिस को देना जरूरी समझा होता तो उन्होंने खुद ही पुलिस को फोन कर दिया होता । अगर उन्होंने ऐसा नहीं किया तो तुम क्यों करती हो ?”
“तुम ठीक कह रहे हो ।”
सुनील चुप रहा ।
“सूरत से तो तुम इतने समझदार नहीं लगते हो ?”
सुनील मुस्कराया ।
वीणा कई क्षण चुप रही और फिर एकाएक बेहद गम्भीर स्वर में बोली - “सुनील, मैं तुम्हें एक ऐसी बात बताने वाली हूं जो मैंने आज तक किसी को नहीं बताई ।”
“क्या ?”
“लेकिन पहले मेरे एक सवाल का जवाब दो ।”
“कौन-सा सवाल ?”
“झूठ तो नहीं बोलोगे ।”
“नहीं ।”
“क्या चौदह नवम्बर को हुआ एक्सीडेंट तुमने वाकई देखा था ।”
“बिल्कुल देखा था । तुम्हें शक है !”
“एक्सीडेंट कितने बजे हुआ था ?”
“साढे तीन बजे ।”
“समय के बारे में तुम्हें गलतफहमी तो नहीं ?”
“कतई नहीं । पांच दस मिनट की गलतफहमी की तो मैं कसम नहीं खाता ।”
“यानी कि एक्सीडेंट अगर साढे तीन बजे नहीं तो पांच-दस मिनट पहले या पांच-दस मिनट बाद हुआ होगा ?”
“करैक्ट ?”
“लेकिन यह नामुमकिन है ।”
“क्यों ?”
वीणा एक क्षण हिचकिचाई और फिर बोली - “क्योंकि चौदह नवम्बर को कम्पनी के आर्किटैक्ट का जन्मदिन था । आर्किटैक्ट ने सबको दावत का निमन्त्रण दिया हुआ था । खुराना साहब सुबह फील्ड में जाने से पहले कह गये थे कि आफिस की दो बजे छुट्टी कर दी जाए । दावत में शराब के दौर भी शामिल थे । चार सवा चार बजे के करीब खुराना साहब भी आ गये थे और पार्टी में शामिल हुये थे । खुराना साहब थोड़ी ही देर पार्टी में ठहरे थे । वे बार-बार घड़ी देख रहे थे । शायद उन्हें कहीं पहुंचना था । साढे चार बजे वे वहां से रवाना हो गये थे और मिस्टर सुनील, मैंने साढे चार बजे उनकी कार देखी थी । कार का अगला भाग पिचका होना तो दूर उस समय उस पर एक खरोंच का निशान भी दिखाई नहीं दे रहा था ।”
“तुम यह कहना चाहती हो कि एक्सीडेंट हुआ ही नहीं था ?”
“नहीं-नहीं, एक्सीडेंट तो हुआ ही था । अगले दिन मेरे सामने बीमा कम्पनी का आदमी यह देखने आया था कि कार को कितना नुकसान पहुंचा है और मेरे सामने गैरेज से मिस्त्री आया था जो कार को मरम्मत के लिये ले गया था । मैं केवल यह कहना चाहती हूं कि एक्सीडेंट साढे तीन बजे नहीं हुआ था क्योंकि साढे चार बजे मैंने उनकी कार सही सलामत देखी थी ।”
“वैसे यह मुमकिन तो नहीं लेकिन शायद मेरी घड़ी में कोई खराबी आ गई हो यह रुक गई हो और मुझे खबर ही न लगी हो । यह आटोमैटिक घड़ी है । एक-दो बार ऐसा हो चुका है कि खड़ी एक आध घन्टा रुकी रही, खुद चल पड़ी मुझे खबर ही नहीं हुई ।”
“यानी कि ऐसा हो सकता है कि टाइम के मामले में तुमसे गलती हुई हो ?”
“अब तुम इतनी ठोस बात बता रही हो तो शक की गुंजायश निकल ही आई है ।”
“अब ?”
“खिड़कियां दरवाजे बन्द करो और चलो यहां से ।”
“और यह जो सामान वगैरह बिखरा हुआ है ?”
“इसे ऐसे ही रहने दो । कल खुराना साहब खुद ही इसके बारे में कोई फैसला करेंगे ।”
“ठीक है ।”
सुनील ने खिड़की बन्द कर दी । दोनों बाहर निकल आये । वीणा ने कमरे का दरवाजा बाहर से बन्द कर दिया ।
वीणा ने सारी बत्तियां बुझाईं, ताले लगाये और वे इमारत से बाहर निकल आये ।
“अब ?” - सुनील बोला ।
“मेरा तो दिल शंका में डूबा जा रहा है । हमें खुराना साहब को तलाश करना चाहिये ।”
“शायद अब तक वे अपने फ्लैट पर पहुंच चुके हों ।”
“देखते हैं ।”
वे कार में सवार हुये ।
वृद्ध पिछली सीट पर पसरे खर्राटे भर रहे थे ।
सुनील ने इन्जन स्टार्ट किया ।
इन्जन की आवाज सुनकर वृद्ध जाग उठे ।
“क्या हुआ बेटी ?” - वे बोले ।
“कुछ नहीं, पापा” - वीणा बोली - “मुझे इन साहब के साथ खुराना साहब के घर जाना पड़ेगा । आप घर चलकर आराम कीजिये । सुनील पहले चेथम रोड चलो ।”
“लेकिन वीणा बेटी, तुम अकेली...”
“घबराइये नहीं । मिस्टर सुनील मेरे साथ है, ये बहुत भले आदमी हैं ।”
वृद्ध ने कुछ कहना चाहा लेकिन फिर चुप हो गये । उन्होंने नेत्र बन्द कर लिये ।
वीणा के पिता को चेथम रोड उतारने के बाद सुनील ने कार शंकर रोड की ओर दौड़ा दी ।
खुराना अपने फ्लैट पर नहीं था ।
तब तक रात का एक बज चुका था ।
“अब ?” - सुनील ने पूछा ।
“वाल्टर रोड पर सिटी क्लब है” - वीणा बोली - “खुराना साहब कई बार काफी-काफी रात गये तक वहां रमी खेलते रहते हैं । शायद वे वहां हों ।”
वे वाल्टर रोड स्थित सिटी क्लब पहुंचे ।
खुराना न वहां था और न वहां आया था ।
सिटी क्लब से वीणा ने खुराना के कम से कम एक दर्जन दोस्तों को और ऐसे स्थानों पर फोन किया जहां खुराना के होने की सम्भावना हो सकती थी ।
खुराना कहीं नहीं था ।
“मेरा तो दिल कांप रहा है ।” - वीणा बोली ।
सुनील चुप रहा ।
“खुराना साहब के आफिस की जैसी हालत है उससे साफ जाहिर होता है कि किसी ने खुराना साहब को अपने अधिकार में कर लेने के बाद वहां की तलाशी ली थी क्योंकि बिना उस स्थिति के तो खुराना साहब आफिस की वह हालत बनने नहीं देते । कहीं किसी ने उन्हें...”
“कल पता लग जायेगा ।”
“भगवान करें वे सलामत हों ।”
“सलामत ही होंगे वर्ना हमें आफिस में उनकी लाश ही मिलती ।”
“शायद हत्यारे ने लाश वहां से हटा दी हो ?”
“क्यों ? लाश हटाने का उसे क्या फायदा ?”
“मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ यहा ।”
“घर जाकर आराम करो, सुबह तक ठीक हो जायेगा ।”
“आल राइट ।” - वीणा अनमने स्वर में बोली ।
वे फिर कार में सवार हो गये ।
सुनील ने कार चेथम रोड पर चन्द्रकिरण के सामने ला खड़ी की ।
दोनों कार से बाहर निकले ।
“वैल” - वीणा बोली - “गुड नाइट ।”
“सुबह मैं तुम्हें फोन करूंगा ।”
“जरूर !”
वीणा आगे बढ गई ।
सुनील ने सिर उठाकर इमारत की तीसरी मंजिल की ओर देखा ।
अनीता के फ्लैट में अन्धेरा था ।
सुनील कार की ओर बढा ।
उसी क्षण एक टैक्सी वहां आकर रुकी ।
टैक्सी में से अनीता बाहर निकली ।
सुनील ने जल्दी से कार में घुस जाने की कोशिश की लेकिन तब अनीता की निगाह उस पर पड़ चुकी थी ।
“सुनील !” - वह हैरानी से बोली ।
सुनील उसकी ओर घूमकर यूं मुस्कराया जैसे चोरी करते पकड़ा गया हो ।
अनीता ने जल्दी से टैक्सी का बिल अदा किया ।
टैक्सी आगे बढ गई ।
अनीता सुनील के पास आ खड़ी हुई ।
“इस कार के पास खड़े क्या कर रहे हो ?” - वह सन्दिग्ध स्वर में बोली ।
“यह कार मेरी है ।” - सुनील धीरे से बोला ।
“तुम्हारी ?”
“मेरा मतलब है मेरे एक दोस्त की ।”
“यह इतनी शानदार कार तुम्हारे एक दोस्त की है ?”
“हां ।”
अनीता ने उसे घूरकर देखा ।
“वह बहुत बड़ा स्मगलर है । उसके पास ऐसी कई कार हैं ।”
“तुम्हारा दोस्त कैसे बना वह ?”
“वो... वो...”
“जरूर जेल में मुलाकात हुई होगी । या तुम उसके साथ स्म‍गलिंग करते रहे होगे ?”
“कुछ भी समझ लो ।”
“कहीं तुम मुझे कोई कहानी तो नहीं सुना रहे ? कहीं ऐसा तो नहीं कि कार को यहां खड़ी पाकर तुम इसे चुराने की कोशिश कर रहे होओगे !”
“अरे नहीं, मैडम । मेरे पास कार की चाबियां हैं, यह देखो यह कार वाकई मेरे एक दोस्त की है ।”
“अगर तुम्हारे ऐसे सम्पन्न दोस्त हैं तो नौकरी के चक्कर में मेरे सामने क्यों गिड़गिड़ा रहे थे ?”
“ईमानदारी की नौकरी के लिये गिड़गिड़ा रहा था, मैडम मैं अपने जरामयपेशा दोस्तों का सहारा लेना नहीं चाहता था लेकिन जब आपके गौरीशंकर जी ने मुझे एक्सीडेंट का झूठा गवाह बनने के पचड़े में फंसा लिया तो मेरा एक कदम तो गुनाह की आर उठ ही गया था । फिर क्यों न मैं अपने सम्पन्न दोस्तों का सहारा लेता ।”
अनीता के चेहरे से सन्देह के बादल छटने लगे ।
लेकिन तभी दूसरा बम‍ गिरा ।
“सु.. नील !”
“अब क्या हुआ ?”
“यह तो वही सफेद रंग की इम्पाला कार है । जिसे सुपर बाजार के कम्पाउन्ड में इग्नीशन शार्ट करके तुमने मेरी कार की बगल से हटाया था ।”
“यानी कि गौरीशंकर की कार ?”
“गौरीशंकर झूठ बोल रहा था । उसके पास ऐसी कोई कार नहीं ।”
“यानी कि उसने मुझे झूठी धमकी देकर झूठा गवाह बनाने के लिये तैयार कर लिया था ।” - सुनील आहत स्वर में बोला ।
“छोड़ो बदले में वह तुम्हें पांच सौ रुपये भी तो दे रहा है । पहले तुम इस कार की बात करो ।”
“मुझे पता नहीं यह वही कार है या नहीं आखिर राजनगर में सिर्फ एक ही सफेद रंग की इम्पाला तो नहीं है और अगर यह वही कार है भी तो उस वक्त मुझे यह मालूम नहीं था कि यह वही कार है भी तो उस वक्त मुझे यह मालूम नहीं था कि यह स्मगलर दोस्त की कार है वर्ना मैं गौरीशंकर के घिस्से में न फंसता ।”
“नाराज क्यों हो रहे हो ?”
“नाराज होने की तो बात ही है । तुम्हारी खातिर एक तो मैं इस झमेले में फंसा ऊपर से तुम मुझे पर शक रही हो ।”
“सॉरी ।”
सुनील चुप रहा ।
“अच्छा तुम यह बताओ तुम थे कहां ?”
“क्यों ?”
“मैंने तुम्हें कम से कम दस बार होटल में फोन किया था लेकिन तुम मिले नहीं ।”
“मैं खुद तुम लोगों को तलाश करता फिर रहा था । दो बार मैं शाम को भी आया था लेकिन दोनों बार मुझे तुम्हारे फ्लैट का ताला बन्द मिला था ।”
“मैंने तुम्हारे होटल के रिसैप्शन पर तुम्हारे लिये सन्देश भी छोड़ा था कि तुम जब भी आओ मुझे फोन करो ।”
“मैं सिनेमा का आखिरी शो देखने चला गया था । थोड़ी देर ही पहले होटल लौटा था । तुम्हारा सन्देश मिलते ही यहां दौड़ा चला आ रहा हूं । अब इन्तजार कर-करके वापिस हो जा रहा था कि तुम आ गई । बात क्या थी ?”
“गौरीशंकर तुमसे मिलना चाहता था ।”
“मैं खुद उससे मिलना चाहता हूं ।”
“क्यों ?”
“उसने मुझे कहा था एक होटल में मैंने तब तक इन्तजार‍ करना था जब तक गवाही के मामले में कोई मुझसे सम्पर्क स्थापित न करे । वह सारा सिलसिला हो चुका है । अब मुझे क्या करना है ?”
“यह तो गौरीशंकर ही बतायेगा ।”
“कब ?”
“कल ।”
“तब तक मैं क्या करूं ?”
“तब तक होटल में जाकर आराम करो ।”
“अब होटल जाने को मन नहीं कर रहा । मैं तुम्हारे फ्लैट में ही कहीं पड़ा रहूंगा ।”
“पागल हो गये हो क्या ?”
“क्यों ? गौरीशंकर से डरती हो ।”
“गौरीशंकर से नहीं, गौरीशंकर के बाप से डरती हूं जो कि कल सुबह के प्लेन से बम्बई से आ रहा है ।”
“कौन ?”
“रविकुमार ।”
“जिसकी फियेट का खुराना की एम्बैसेडर से एक्सीडेन्ट हुआ था और जिसकी गरदन को चोट लगी है ?”
“वही ।”
“उससे तुम्हारा क्या रिश्ता है ?”
“मेरी उससे शादी होने वाली है ।”
“एक्सीडेंट के बारे में एक बात बताओं । तुम्हें यकीन है कि एक्सीडेंट साढे तीन बजे ही हुआ था ?”
“हां । क्यों ?”
“टाइम की कुछ गड़बड़ है । मेरा ख्याल है कि एक्सीडेंट पांच बजे के आस-पास हुआ था ।”
“पागल हो क्या ? तुम्हारे ख्याल की क्या कीमत है । तुमने कोई एक्सीडेंट देखा थोड़े ही है ? जो टाइम तुम्हें गौरीशंकर ने बताया है वही ठीक टाइम है ।”
“लेकिन...”
“शायद तुम्हें कोई बहकाने की कोशिश कर रहा है । एक्सीडेंट साढे तीन बजे हुआ था । समझे ।”
“तुम्हें कैसे मालूम ?”
“क्योंकि एक्सीडेंट के बाद रविकुमार अपनी फियेट पर सीधा यहां आया था । उस समय चार बजने को थे और मैंने अपनी आंखो से फियेट का पिछला भाग पिचका हुआ देखा था ।”
“श्योर ?”
“वन हन्डरड परसैन्ट श्योर । गलती की कोई गुंजाइश ही नहीं ।”
सुनील चुप हो गया ।
“आल राइट” - अनीता बोली - “कल आना ।”
“मैं बहुत अरमान लेकर आया था ।” - सुनील मायूस स्वर से बोला ।
“इन्सान के सारे अरमान कभी पूरे नहीं होते ।”
“कल मैं किस वक्त आऊं ।”
“जब भी चाहे आ जाना ।”
“मैं गौरीशंकर से जल्दी मिलना चाहता हूं ।”
“तो फिर ऐसा करो, तुम सवेरे आठ बजे यहां आ जाना । मैं तुम्हें अपने साथ एयरपोर्ट ले चलूंगी । वहां गौरीशंकर भी आयेगा । तुम्हारी मुलाकात हो जायेगी ।”
“मैं गाड़ी ले आऊं ?”
“मर्जी है तुम्हारी ।”
वीणा लम्बे डग भरती हुई इमारत की ओर बढ गई ।
सुनील कार में आ बैठा । उसने कार स्टार्ट की और उसे आगे बढा दिया ।
अजीब गोरखधन्धा था ।
वीणा कहती थी कि यह सम्भव ही नहीं था कि एक्सीडेंट पांच बजे से पहले हुआ क्योंकि साढे चार बजे उसने रोशनलाल खुराना की एम्बैसेडर कार को सही सलामत देखा था ।
और अब अनीता कह रही थी कि एक्सीडेंट निश्चय ही साढे तीन बजे हुआ था क्योंकि चार बजे के करीब उसने रविकुमार की फियेट कार का पिछला भाग पिचका हुआ देखा था ।
दोनों युवतियों में से कौन गलती पर थी ?
और अगर दोनों सच बोल रही थीं तो यह कैसे सम्भव था ।
पेचीदगियां बढती जा रही थीं ।
एक और बात सुनील के ध्यान में आई ।
रोशनलाल खुराना मोटा-ताजा तन्दरुस्त आदमी था । वह किसी एक आदमी के काबू में आने वाला नहीं था । एक आदमी उसे तभी काबू में रख सकता था ज‍बकि उसके पास रिवाल्वर हो लेकिन अगर खुराना को रिवाल्वर दिखाकर काबू में रखा गया होता तो उसके आफिस में लड़ाई-झगडे के आसार दिखाई न देते और अकेले आदमी का तो उल्टा खुराना भुरकुस निकाल देता ।
इसका एक ही मतलब था कि खुराना के आफिस में दो आदमी घुसे थे । उन दोनों से भी उसकी छीना-झपटी हुई थी लेकिन बाद में उन्होंने उस पर काबू पा लिया था । या तो एक आदमी उसे दबोचे बैठा रहा होगा और दूसरा तलाशी लेता रहा होगा । या फिर आगन्तुकों ने खुराना के हाथ पांव बांध दिये होंगे और मिलकर तलाशी ली होगी ।
लेकिन खुराना गया कहां ?
अगर वे आदमी खुराना को अपने साथ ले गये थे तो कहां ले गये थे और क्यों ले गये थे ?
और वे खुराना को जिन्दा लेकर गये थे या मुर्दा ?
या खुराना खुद ही कहीं चला गया था ।
अगर ऐसा था तो वह था कहां ?
और यह बात तो सुनील बिल्कुल मानने के लिये तैयार नहीं था कि खुराना के आफिस में सारा फसाद सुनील के हल्फिया बयान की वजह से हुआ था, जो कि इकलौती चीज थी जो वहां से गायब थी । कोई ऐसा अहमक नहीं हो सकता था कि वह यह बात न समझता हो कि वह हल्फिया बयान सुनील से बड़ी आसानी से दोबारा हासिल किया जा सकता था ।
सुनील होटल टूरिस्ट पहुंचा । उसने कार को होटल के सामने फुटपाथ पर चढाकर खड़ा कर दिया और अपने होटल के कमरे में आ गया ।
बिस्तर से सिर लगाते ही उसे नींद ने आ दबोचा ।