शानदार रेस्टोरेंट में देवराज चौहान और सुमित जोशी जा बैठे ।

महंगा रेस्टोरेंट था।  कॉफी का एक सैट सात सौ पचास रुपये का था ।

जल्द ही टेबल पर कॉफी आ गई । वेटर ने कॉफी तैयार कर के प्याले दोनों के सामने रखे और चला गया ।

"तुम जरूरत से ज्यादा ऐश की जिंदगी बिता रहे हो ।" देवराज चौहान बोला।

सुमित जोशी मुस्कुराया और कॉफी का घूंट भरा ।

"अभी तक मैंने जितना तुम्हें जाना है, उसके आधार पर कह सकता हूं कि ये जिंदगी ज्यादा लंबी नहीं चलेगी ।"

"चलेगी। हम बूढ़े हो जाने पर एक बार फिर मिलेंगे ।"

"कितनी उम्र है तुम्हारी ?"

"पचपन ।"

"मेरे ख्याल में तो ये भी ज्यादा हो गई है । अब तक कोई-न-कोई तुम्हें मार देता ।"

"वहम है तुम्हारा । मुझे कुछ नहीं होने वाला । तुम जो मेरे साथ हो ।"

"बीवी बच्चे हैं ?"

"परिवार है ।" सुमित जोशी ने बताया।

देवराज चौहान ने कॉफी का घूंट भरा ।

"तुम्हारा परिवार है ?" जोशी ने पूछा ।

"मेरे बारे में जानने की कोशिश मत करो । हमारा साथ दो महीने से ज्यादा का नहीं रहेगा । उसके बाद तुमसे मिलने की इच्छा नहीं होगी ।"

"कभी मुसीबत में पड़ो तो जरूर आना । फीस नहीं लूंगा ।"

देवराज चौहान कुछ नहीं बोला ।

"जगमोहन से तुम्हारा बहुत ही खास याराना लगता है...।"

"नहीं होना चाहिये क्या ?"

"काम-धंधे में एक हद तक ही दूसरे से प्यार होना चाहिये ।"

"मुझे उससे कोई प्यार नहीं है ।" देवराज चौहान मुस्कुराया--- "किसी मामले में मुझे जगमोहन की जरूरत है ।"

"तो ये बात है ।"

"तुमने सोचा मैं उसके लिए, तुम्हारा बॉडीगार्ड बनकर कुर्बानी दे रहा हूं ?"

"मुझे तो यही लगा।

"गलत लगा मुझे किसी से कोई प्यार नहीं है । मैं सिर्फ दौलत को सलाम करता हूं ।"

"समझदार हो...।"

"जगमोहन ठीक है न वहां ?"

"हां । तुम्हारे सामने तो बात की कमिश्नर से । जगमोहन मजे में पुलिस हैडक्वार्टर में है ।"

"वो उसे वहां से कब निकालेगा ?"

"अभी कठिन है । पुलिस वाले जगमोहन को घेरे हुए हैं । बढ़िया मौका जब भी लगा, कमिश्नर ये काम निपटा देगा।"

"मुझे जगमोहन हर हाल में बाहर चाहिये ।"

"मिल जायेगा । मैंने तुमसे दो महीने का वक्त लिया है और अभी दो दिन भी नहीं बीते ।"

इसी तरह उनका वक्त बितता रहा।

दूसरी और फिर तीसरी बार कॉफी आ गई ।

दो घंटे बीत गये । तब दोपहर का डेढ़ बज रहा था, जब सुमित जोशी का फोन बजा ।

"हैलो...।" जोशी ने बात की ।

"तुम्हारा काम हो गया ।" कमिश्नर भूरेलाल की आवाज कानों में पड़ी।

"पकड़ा गया मदन ?"

"नहीं । मारा गया । उसने पुलिस पार्टी का मुकाबला करने की कोशिश की ।"

"ठीक है । ये भी बुरा नहीं रहा ।" सुमित जोशी हंसा--- "उसका ये ही हाल होना चाहिए था ।"

"मेरा ख्याल है वो तुम्हारे लिये वहां था...।"

"किस्सा खत्म...।"

"कम-से-कम एक बार अपने मुंह से ये तो कह दो उसके मरने से तुम्हारा भला हुआ ।"

"हां, हुआ...।" तुमने ये बात किसी से कहीं तो नहीं कि मदन के बारे में मेरे से पता चला है ?"

"चिंता मत करो । कहूंगा भी नहीं ।"

"तुम बढ़िया हो । हमारे रिश्ते ऐसे ही बने रहेंगे । तुमने रतनपुरी के सबसे खास आदमी को मार दिया । वाह-वाह तो मिलेगी तुम्हें ।"

"हां उसका हकदार तो हो गया मैं...।" उधर से भूरेलाल के हंसने की आवाज आई ।

"हम दोनों की गाड़ी बढ़िया चल रही है । बाकी बात फिर करेंगे ।" कह कर सुमित जोशी ने फोन बंद कर दिया।

देवराज चौहान उसे ही देख रहा था ।

"क्या हुआ ?" सुमित जोशी बोला ।

"तुमने गलत किया रतनपुरी के आदमी के साथ...।"

"मैंने खुद को बचाया है । कानून ने उसके बेटे को फांसी की सजा दे दी तो मेरा क्या कसूर...।"

"तुम्हारा कसूर ये है कि तुमने रतनपुरी से वादा किया था कि उसके बेटे को बचा ले जाओगे । तुम्हारा कसूर ये है कि इस मामले की आड़ में तुमने उससे करोड़ों रुपया ले लिया । तुमने उसे बेटे के बचने की आस जगाई ।"

"ये सब वकीलों को करना ही पड़ता है।"

"तुम्हें ये याद रखना चाहिए कि रतनपुरी अभी जिंदा है । उसका एक आदमी मार कर तुम शेर नहीं बन गये । वो तुम्हें छोड़ेगा नहीं । अब वो खुद आयेगा या दस आदमी भेजेगा ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"तुम्हारे होते हुए मुझे कोई चिंता नहीं ।"

"मुझे तो लगता है कि तुम मुझे भी ले डूबेंगे । दो महीने तक बहुत ज्यादा है, अगले पांच-सात दिनों में ही मुझे डुबो दोगे ।"

"तुम बहुत जल्दी दिल छोटा कर लेते हो । चलो उठो । मुझे ऑफिस जाना है । वहां आराम से बैठकर जिम्मी और प्रभाकर के बारे में सोचना है ।" सुमित जोशी उठते हुए बोला--- "मैंने कुछ भी गलत नहीं किया । एक अपराधी के बारे में पुलिस को खबर दी थी । पुलिस ने उसे मार दिया । मैंने तो हत्या नहीं की उसकी । सैकड़ों लोगों ने वहां का नजारा देखा होगा तब ।"

"तुम सुधरने वालों में से नहीं हो...।"

"मुझे दोष ना दो।"

"तुम ही दोषी हो । तुमने रतनपुरी को धोखा दिया । क्या पता उसका आदमी तुमसे कोई बात करने आया हो और तुमने...।"

"रतनपुरी ने मदन को बात करने नहीं भेजा था...।"

"ये बात तुम कैसे कह सकते हो ?"

"अगर वो बात करने आया होता तो मेरे ऑफिस के बाहर मंडराता नहीं । बल्कि रतनपुरी मुझे फोन पर खबर कर देता कि मदन मेरे से मिलने आ रहा है । रतनपुरी के इशारे पर वो मुझे मारने आया था ।" सुमित जोशी ने कहा।

"और तुमने उसे पुलिस के हाथों साफ करवा दिया...।"

"और क्या करता ?"

"इस तरह तुम रतनपुरी से बच नहीं सकते । वो तुम्हें रगड़ के ही रहेगा ।"

सुमित जोशी ने लम्बी सांस ली-

"बहुत बुरे कामों में फंसा हूं मैं...।"

"तुम्हारे कर्म है जो तुम्हारे सामने आ रहे हैं " देवराज चौहान ने कहा--- "मदन ने तुम्हारे भाई को क्यों नहीं मारा ?"

"प्रदीप का वास्ता क्लाइंटो से कम ही पड़ता है । लोगों से मिलने का काम मैं देखता हूं और वो केस को कोर्ट में पेश करने का काम देखता है । किसी क्लाइंट से सीधे-सीधे उसका वास्ता कम ही पड़ता है।"

"मतलब कि तुम जो करते हो, उससे वो साफ बचा हुआ है ।"

"कुछ ऐसा ही समझो...।"

"हो सकता है कभी कोई तंग आकर, तुम्हारे भाई को ही मार दे ।"

"तुम क्यों चिंता करते हो ?"

देवराज चौहान ने सुमित जोशी को देखा ।

जोशी मुस्कुराकर बोला ।

"तुम्हें इतनी चिंता नहीं करनी चाहिये कि मेरे भाई के साथ क्या होगा। तुम सिर्फ मेरी चिंता करो । मैं सलामत हूं तो जगमोहन भी पुलिस के हाथों में सलामत है । मेरी सेहत, जगमोहन की सेहत से जुड़ चुकी है ।"

"पता नहीं मैंने तुम्हारे पास आकर ठीक किया या गलत ।" देवराज चौहान बोला ।

"ठीक किया, जगमोहन को...।"

सुमित जोशी का फोन बजा ।

"हैलो...।" उसने बात की। दूसरी तरफ प्रदीप जोशी था ।

"मैंने सुना हमारे ऑफिस के बाहर गोलियां चली और मदन मारा गया ?" प्रदीप जोशी उधर से बोला ।

"पुलिस ने उसे घेर लिया था ।"

"तुमने खबर दी ?"

"क्या करता, वो मुझे मारने के लिए वहां पर आया था कि मैं आऊं और वो गोली चलाये ।"

"ये सब न होता देख रतनपुरी गुस्से से पागल हो जायेगा ।"

"पागल तो वो तब से ही हुआ पड़ा है, जब से उसके बेटे मक्खन को फांसी मिली है।"

"तुम्हें सतर्क रहना होगा ।"

"मेरे साथ देवराज चौहान है । तुम फिक्र मत करो। शाम को बात करेंगे ।" कहकर जोशी ने फोन बंद किया ।

"तुम, मेरे को तो समझते हो ?"

"तोप से कम नहीं हो तुम ।" सुमित जोशी मुस्कुराया ।

"मुझ पर इतना विश्वास मत करो । मैं...।"

"मैंने सुन रखा है कि तुम क्या हो । तुम सच में कमाल के हो ।"

देवराज चौहान मुस्कुराया, फिर कह उठा-

"इतना कमाल मेरे में होता तो जगमोहन को छुड़ाने के लिये तुम्हारे पास न आता ।"

"वो जुदा बात है । पुलिस के बीच में आने से मामला ठंडा हो गया है, वरना तुम मेरे पास कहां आते।"

कार जोशी एंड जोशी एसोसिएट्स के आफिस की पार्किंग में जा पहुंची ।

दोनों बाहर निकले ।

दोनों की नजरें वहां घूमीं।  अब सब कुछ सामान्य नजर आ रहा था । दो पुलिस वाले अवश्य वहां पर ड्यूटी के लिए मौजूद थे । वहां दो कारों में छेद हुए नजर आ रहे थे । एक जगह ढेर सारा खून पड़ा था ।

"लगता है पुलिस ने मदन पर तबीयत से गोलियां बरसाई है ।"

देवराज चौहान ने शांत निगाहों से जोशी को देखा ।

"मैं अपने केबिन में रहूंगा । कोई मिलने वाला नहीं है अभी । तुम ऑफिस में और बाहर नजर रखना । सतर्क रहना । मैं मुसीबत में न पड़ूं । मुझे पूरा बड़ा भरोसा है तुम पर ।"

दोनों ऑफिस में पहुंचे ।

रिसेप्शनिस्ट उसे देखते ही बोली-

"सर, अभी बाहर गोलियां चली और...।"

"जानता हूं...।"  खबर मिल गई है मुझे ।"

"क्या हुआ था सर ?"

"पता नहीं । ज्यादा मैं भी नहीं जानता ।" फिर उसने देवराज चौहान से कहा--- "ठीक है सुरेंद्र पाल । मैं अपने केबिन में जाता हूं ।"

सुमित जोशी ऑफिस के भीतर हिस्से में चला गया ।

रिसेप्शनिस्ट देवराज चौहान से कह उठी-

"जब गोलियां चलीं तो मैं इतनी डर गई कि मेरी टांगे कांपने लगी थी । मैं बाथरूम में जाकर छिप गई ।।जब गोलियां चलनी बंद हुई तो मैं पन्द्रह मिनट तक बाथरुम में ही रही । अभी तक मेरा दिल जोरों से बज रहा है ।

देवराज चौहान उसे देख कर मुस्कुराया और बाहर की तरफ बढ़ा ।

"सुनो...।" वो बोली।

देवराज चौहान ने ठिठक कर उसे देखा ।

"बाहर मत जाओ, क्या पता अभी फिर गोलियां चलने लगे ।"

"मरने वाला मर गया । पुलिस चली गई । अब कुछ नहीं होगा ।"

देवराज चौहान बाहर निकल आया। ठिठककर सब तरफ देखा। सामने छोटी गली थी । उसके बाद फुटपाथ और फिर मुख्य सड़क थी, जहां पर वाहन आ-जा रहे थे ।

देवराज चौहान ने अपने चेहरे पर हाथ फेरा। दाढ़ी अपनी जगह ठीक से थी ।।उसने सिगरेट निकाल कर सुलगाई और इधर- उधर नजर मारी । कुछ दूरी पर दो आदमी खड़े दिखे । वो उसे ही देख रहे थे ।

एकाएक उनमें से एक ने इशारे से उसे पास आने को कहा।

देवराज चौहान ने सतर्क निगाहों से उसे देखा ।

उसने पुनः बुलाया ।

देवराज चौहान ने कश लिया और आसपास देखता उन दोनों की तरफ बढ़ गया । पास जा पहुंचा ।

"बोलो ।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा ।

"नाम सुरेंद्र पाल ।" दूसरा कह उठा--- "काम, आज से तुमने सुमित जोशी की बॉडी गार्ड की ड्यूटी शुरू की है ।"

देवराज चौहान के माथे पर बल पड़े ।

"इस काम में मत पड़ो । वरना तुम भी दूसरों की तरह मारे जाओगे ।" वो पुनः बोला।

"क्या कहना चाहते हो ?"

"तीन दिन पहले सुमित जोशी का पहला बॉडीगार्ड, सड़क एक्सीडेंट में मारा गया ।"

"तो ?"

"वो मरा नहीं, एक्सीडेंट में उसे मारा गया है ।"

"किसने मारा ?" देवराज चौहान के होंठों से निकला ।

"सुमित जोशी ने ही...।"

"क्यों ?" देवराज चौहान के होंठों से निकला ।

"मेरे ख्याल से वो सुमित जोशी के साथ रहते हुए उसके कई राज जान गया था । इसलिए उसे मार दिया गया।"

"मुझे नहीं लगता कि तुम ठीक कह रहे हो ।"

"मैं इसलिए कह रहा हूं कि उससे पहले सुमित जोशी के दो बॉडीगार्ड रोड एक्सीडेंट में मारे गए थे ।" वो कह उठा--- "बॉडीगार्ड का काम होता है सुरक्षा देना । हर वक्त साथ रहना । साथ रहने वाला व्यक्ति ऐसी कई बातें जान जाता है, जो कि उसे नहीं जाननी चाहियें । यही वजह रही कि पहले तीनों गनमैनों  को उसने मरवा दिया ।"

"तुम अपनी जान की खैर चाहते हो तो यहां से चले जाओ ।" दूसरे ने कहा ।

"तुम लोग कौन हो ?"

इस सवाल पर दोनों ने आपस में देखा ।

"हमारे बारे में तुम्हें जाने की जरूरत नहीं ।" पहला बोला ।

"जरूरत है तभी तो पूछ रहा हूं । तुम मुझे इतनी बड़ी बात कह रहे हो।"

"हमारी बात नहीं पसंद तो नौकरी करते रहो ।"

"परन्तु ये बात जोशी से मत कह देना कि तुम्हें ऐसा कहा गया है । हमने तुम्हारे भले के लिये तुमसे कहा ।"

"तुम मुझे अपने बारे में बताओ । मैं ये बात किसी से नहीं कहूंगा ।" देवराज चौहान बोला ।

"अगर कही तो ?"

"तो जो मन में आये, सजा दे देना ।"

दोनों ने पुनः एक-दूसरे को देखा ।

देवराज चौहान की निगाह दोनों पर थी ।

फिर एक ने जेब से कार्ड निकाल कर देवराज चौहान की तरफ बढ़ाया।

देवराज चौहान ने कार्ड देखा । C.B.I. का ऑफिसर था ।

देवराज चौहान मन-ही-मन चौंका । तुरंत संभला ।

उसने कार्ड वापस जेब में रख लिया ।

"तुम...तुम दोनों C.B.I. से हो ?" देवराज चौहान अपनी हैरानी छिपाता कह उठा ।

"कार्ड तुमने देख लिया है ।"

"ल...लेकिन यहां क्या कर रहे हो ?" देवराज चौहान बोला ।

"याद रखना, यहां की बातें तुम्हें जोशी को बताई, था किसी और को बताई तो तुम्हें अंदर कर देंगे ।"

देवराज चौहान ने फौरन सिर हिलाया ।

"हमारी सहायता करोगे तो ईनाम मिलेगा ।"

देवराज चौहान ने पुनः सिर हिलाया । मस्तिष्क में खलबली मची हुई थी । फिर बोला-

"बात क्या है ?"

"हमारी सहायता करोगे ?"

"जो हो सका, जरूर करूंगा ।" अब देवराज चौहान और कहता भी क्या ।

"हर अच्छे शहरी का फर्ज है कि मौका मिलने पर वो कानून की सहायता करें।"

"हां...।" देवराज चौहान ने सिर हिला दिया ।

"हमारे साथ होने वाली कोई भी बात तुम जोशी को नहीं बताओगे ।" दूसरा बोला ।

"नहीं बताऊंगा ।"

"मेरा नाम रमेश सिंह और ये दयाल साहब है ।"

देवराज चौहान की निगाह दोनों पर थी । सोचें तेजी से दौड़ रही थी ।

"तुमने अभी तक क्या जाना सुमित जोशी के बारे में ?"

"कुछ भी नहीं...।"

"अभी जोशी के साथ कहां से आ रहे हो ?"

"मैं सुबह उनके बंगले पर गया था । वहां से वो हर एक रेस्टोरेंट में गये । वहां दो लोगों से मिले।"

"कौन दो लोग ?"

"मैं नहीं जानता उनके बारे में ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"उनकी बातें सुनी ?"

"नहीं । दूर था मैं । कैसे सुनता ?"

"उन दोनों के नाम भी नहीं मालूम ?"

"नहीं ।"

"ठीक है । आगे से ये सब बातें जानने की कोशिश किया करो ।" दयाल ने कहा--- "जोशी की हर बात पर नजर रखो कि वो किस- किस से मिल रहा है । बातें क्या हो रही है । जो सुनो, हमें बताओ ।"

देवराज चौहान ने सिर हिला दिया।

"ऑफिस के भीतर भी नजर रखो । ऑफिस की बातें भी जानो । इसके लिए ऑफिस के लोगों से मिलो । बातें करो ।"

"लेकिन मैंने जानना क्या है ? क्या आप दोनों किसी केस पर काम कर रहे हैं ?"

"हां, बताता हूं तुम्हें । जरूरी है तुम्हें बताना, तभी तो तुम समझ पाओगे कि तुमने कैसी बातें जाननी है । लेकिन मैं फिर कहे देता हूं कि ये बातें सुमित जोशी या किसी और को बताई तो तुम्हें अंदर कर देंगे ।"

"नहीं बताऊंगा ।"

"पिछले डेढ़ साल में जोशी के यहां काम करने वाले तीन वकीलों की हत्या कर दी गई है ।"

"ओह...।"

"हमें शक है कि ये काम जोशी ने ही किया है ।"

"वो क्यों करेगा ?"

"वो तीनों पुराने वकील थे और जोशी एन जोशी एसोसिएट्स के भीतरी रहस्य से इस हद तक जानकार हो गये थे कि दोनों भाइयों को उन्हें खत्म करवा देना ही ठीक लगा । रमेश सिंह ने कहा ।

"सबूत है तुम दोनों के पास ?"

"सबूत होते तो अब तक सुमित जोशी जेल में होता ।"

"ओह...।"

"हम इसी केस पर काम कर रहे हैं । पहले वकील को डेढ़ साल पहले तब मारा गया जब वो कार में रेड लाइट पर खड़ा था । एक लड़का मोटरसाइकिल पर आया और उसे गोलियां चलाकर मार दिया । इसके पन्द्रह दिन बाद ही दूसरे वकील को कब मारा गया, जब वह अपने परिवार के साथ शिमला में छुट्टियां मना रहा था। तीसरे वकील को पांच महीने पहले ऑफिस से शाम को घर जाते समय तब मारा गया जब वो कार में पेट्रोल पंप से, पेट्रोल डलवा रहा था । जब हम इस काम पर लगे तो बॉडी गार्डों की मौतों का मामला भी हमारी नजरों के सामने आया । तीन-चार दिन पहले जो बॉडीगार्ड एक्सीडेंट में मारा गया, वो हमारे लिए काम करने लगा था । भीतर की खबरें हमें दे रहा था कि तभी एक्सीडेंट में वो मारा गया । तीन बॉडीगार्ड साल भर में एक्सीडेंट में मारे जा चुके हैं ।"

"क्या पता उन तीनों का मरना इत्तफाक हो ?" देवराज चौहान बोला।

"और वो तीन वकील, जिनके बारे में मैंने तुम्हें बताया वो भी इत्तफाक था ?"

देवराज चौहान से कुछ कहते न बना ।

"सुरेंद्र पाल ! हम जानते हैं कि जोशी एंड जोशी एसोसिएट्स में गैरकानूनी काम होते हैं । इन दोनों वकील भाई की बड़े-बड़े अपराधियों से सांठ-गांठ है । ये दोनों भाई पुलिस और जजों को फंसा के रखते हैं । बहुत सी बातें हमने इस फर्म के बारे में जानी है, परन्तु ठोस सबूत अभी हाथ नहीं लगा । हमें पूरा भरोसा है कि वो तीनों वकील इसलिए जोशी भाइयों ने मरवा दिए कि वो फर्म के भीतर की और जोशी भाइयों की बातों से बहुत ज्यादा जानकार हो गये थे । शायद वो इन भाइयों को ब्लैकमेल कर सकते थे। इसी वजह से उन्हें रास्ते से हटा दिया गया।

देवराज चौहान गंभीर दिखाई दे रहा था ।

"वकील होने के नाते, कानून की आड़ में ये गलत काम कर रहे हैं । सब पता है हमें । ये ज्यादा देर बचने वाले नहीं । ठोस सबूत हाथ लगने की देर है कि ये दोनों भाई जेल के भीतर होंगे ।"

देवराज चौहान जानता था कि C.B.I. वाले सही कह रहे हैं । सुमित जोशी को बहुत जान गया था, इन कुछ घंटों में ही । सुमित जोशी के पीछे पड़ कर C.B.I. कोई गलती नहीं कर रही थी ।

"तुम हमारी मदद करोगे ना ?" दयाल ने पूछा ।

"जरूर । शहरी का फर्ज में जरूर निभाऊंगा ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"वैसे, ठीक ये ही होगा कि तुम ये नौकरी छोड़ दो । वरना तुम भी मारे जाओगे ।" रमेश सिंह ने कहा।

"नहीं छोड़ सकता ।"

"क्यों ?"

"मेरी एक पहचान वाला पुलिस के हाथों में पड़ गया है । उसका केस जोशी भाई ही लड़ रहे है । मुझसे पैसा भी नहीं ले रहे है । बस मुझे नौकरी करनी है ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"ये तुम्हारी इच्छा, तुम जानो ।"

"वैसे भी अब तो मैं ये नौकरी जरूर करूंगा ।"

"वो क्यों ?"

"शरीफ शहरी का फर्ज जो निभाना है, कानून के काम आकर ।" देवराज चौहान थोड़ा-सा मुस्कुराया ।

"तुम्हारी बातें सुनकर मुझे अच्छा लगा ।" रमेश सिंह बोला ।

देवराज चौहान दोनों को देखता रहा ।

"तुम ।" दयाल बोला--- "इस बात का ख्याल रखना कि सुमित जोशी किस-किस से मिलता है । हमें पूरा विश्वास है कि सुमित कई बड़े अपराधियों से मिलता है और उन्हें कानूनी सलाह बेचता है।"

"तुम लोग सुमित जोशी पर बराबर नजर क्यों नहीं रखते ?"

"जितनी नजर रख सकते है, वो तो रख ही रहे हैं ।"

"पता चला कि कुछ घंटे पहले यहां गोलियां चली ?" देवराज चौहान बोला ।

"हां ।" रमेश सिंह बोला--- "मरने वाला पूना के गैंगस्टर रतनपुरी का खास आदमी था । पन्द्रह दिन पहले रतनपुरी के बेटे मक्खन को हाई कोर्ट ने मौत की सजा दी । उसका केस सुमित लड़ रहा था। परन्तु उसे फांसी मिल गई । हमें पूरा भरोसा है कि रतनपुरी ने सुमित से खफा होकर उसकी हत्या करने के लिए अपना आदमी भेजा, परन्तु  पुलिस की नजर उस पर पड़ गई और वो मारा गया ।"

देवराज चौहान समझ गया कि C.B.I. के इन अफसरों को काफी खबर है । ये यूं ही अंधेरे में तीर नहीं चला रहे ।

"मैं जाता हूं । ज्यादा देर मेरा बाहर रहना ठीक नहीं ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"ये बातें किसी को बताना मत सुरेंद्र पाल ।"

"नहीं बताऊंगा।"

"हमारा साथ दो । सरकार तुम्हें इनाम देगी ।"

"हमारे लिए खबरें इकट्ठी करो ।" दयाल ने कहा और दो पांच सौ के नोट निकालकर जेब में ठूंस दिए--- "रखो इसे । और भी देंगे ।"

"इसकी क्या जरूरत थी...।"

"खर्चे-पानी की जरूरत तो सबको ही पड़ती है। मांग लिया करो हमसे । हमें सिर्फ भीतरी खबरें चाहियें जो हमारे काम की हो ।"

देवराज चौहान वापस ऑफिस में आ गया ।

दौड़ रहा था देवराज चौहान का दिमाग ।

सुमित जोशी के पीछे नामी बदमाश ही नहीं, C.B.I. भी थी ।

"ये तो पक्का था कि सुमित जोशी बचने वाला नहीं । प्रभाकर हो या जिम्मी या फिर रतनपुरी, या फिर कोई और ही, कोई भी उसे कभी भी मार सकता था।

आग से खेल रहा था सुमित जोशी ।

कम-से-कम वो C.B.I. के हाथ लगने वाला नहीं, उससे पहले ही कोई उसे मार देगा ।

क्या करें ? सुमित जोशी को छोड़कर चला जाये ? जगमोहन को पुलिस के हाथों से निकालने की खुद ही पूरी कोशिश करे? उलझा हुआ था देवराज चौहान का मस्तिष्क।

रिसेप्शनिस्ट उसे देखते ही बोली-

"चाय बन रही है सुरेंद्र पाल।"

देवराज चौहान ने उसे देखकर सिर हिलाया । बोला---

"जोशी साहब कहां हैं ?"

"भीतर, अपने केबिन में...।"

"मैं जरा उन पर नजर मार कर आता हूं ।"

"जल्दी आना । चाय ठंडी हो जाए गई तो दोबारा नहीं बनाऊंगी । कल तुम जब आये तो तभी क्यों ना बताया कि बॉडीगार्ड की नौकरी के लिये आये हो । ये कहते तो तुम्हें कल ही चाय पिलाती । तुमने तो कहा कि किसी केस के सिलसिले में मिलने आये हो।"

देवराज चौहान मुस्कुराया ।

"कितनी तनख्वाह सैट हुई है ?" रिसेप्शनिस्ट ने पूछा ।

"जोशी साहब ने बताने को मना किया है ।"

"ऐसा भी क्या ?" रिसेप्शनिस्ट ने गहरी सांस ली--- "मैं अपनी तनख्वाह बढ़ाने के लिए बात करने वाली हूं ।"

देवराज चौहान ऑफिस के भीतरी हिस्से में, सुमित जोशी के केबिन में पहुंचा ।

सुमित जोशी एक तरफ मौजूद सैटी पर पसरा पड़ा था । आहट पाते ही उसने आंखें खोली।

"तुम ?" वो बोला--- "मैंने सोचा कोई मुझे मारने आ गया है ।"

"मुझे हैरानी है कि तुम रात को नींद कैसे लेते होगे ?"

"सच बात तो ये है कि नींद आती ही नहीं। दिमाग को चैन नहीं मिलता ।"

देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान आ ठहरी । उसे देखता रहा ।

"क्या देख रहे हो ?"

"सोच रहा हूं कि तुमने अपनी नन्हीं-सी जान को कैसी-कैसी मुसीबतों में डाल रखा है ।"

"ठीक सोचते हो । मैं खुद ऐसी जिंदगी से परेशान हो गया हूं ।"

"बहुत पैसा कमा लिया है तुमने । आराम से कहीं बैठकर उस पैसे को खाते क्यों नहीं ?"

"ऐसा नहीं कर सकता । ये वकीलगिरी मेरी जान नहीं छोड़ती ।"

"तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता...।"

"मैं सोच रहा था कि प्रभाकर और जिम्मी के बारे में । आगे का मामला कैसा भी हो, वो मुझे छोड़ने वाले नहीं ।"

"उनसे बच भी गये तो रतनपुरी नहीं छोड़ेगा ।"

"ठीक कहा...।"

"रतनपुरी से बच गये तो कोई और तुम्हें मार देगा ।"

"ठीक सोचा तुमने। तुमने बहुत जल्दी मेरे हालातों को भांप लिया।" सुमित जोशी कह उठा ।

"तुम्हें यहां से भाग जाना चाहिए ।"

"ऐसा नहीं कर सकता मैं । ये संभव नहीं । मैं तो...।"

"तुम मुझे बेवकूफ तो नहीं बना रहे जोशी ?" एकाएक देवराज चौहान ने पूछा ।

"बेवकूफ...वो कैसे ?"

"जगमोहन को आजाद कराने को लेकर ? तुम मुझे लटकाए रखो । मैं तुम्हें सुरक्षा देता रहूं...।"

सुमित जोशी ने गहरी सांस ली, फिर बोला-

"मैं तुम्हारे साथ ऐसा नहीं कर रहा । दूसरों के साथ अवश्य ऐसी गड़बड़ करता हूं । परंतु तुम्हारे साथ नहीं ।"

"मेरे साथ कोई गड़बड़ की तो मैं तुमसे पूछे बिना तुम्हें गोली मार दूंगा ।"

"मैं दो महीने में जगमोहन को पुलिस के हाथों आजाद करा दूंगा ।"

"दो महीने में कानूनी तौर पर तो ये हो नहीं सकता ?"

"गैर कानूनी तौर पर ही सही । कमिश्नर भूरेलाल उसे भगायेगा वहां से । उसकी कमजोरी है मेरे पास । कमिश्नर मेरे लिए...।"

"दो महीने से एक दिन भी ऊपर हुआ तो...।"

तभी सुमित जोशी का फोन बजा ।

"हैलो...।" उसने जेब से फोन निकालकर बात की ।

"जोशी...।" कमिश्नर भूरेलाल की आवाज कानों में पड़ी--- "जगमोहन से बात करना चाहते हो ?"

"तुम उसके पास हो ?"

"हां । अभी आया तो देखा, वो अकेला था, सोचा तुम्हारी बात करा दूं ।"

"कराओ ।" कहते हुए सुमित जोशी ने देवराज चौहान को देखा ।

अगले ही पल जगमोहन की आवाज, जोशी के कानों में पड़ी ।

"हैलो...।"

"जगमोहन हो ?"

देवराज चौहान ने चौंककर जोशी को देखा।

जोशी ने उसे देखकर मुस्कुराया ।

"हां । तुम कौन हो ?"

"देवराज चौहान से बात करोगे ?"

"कराओ, पास में है वो ?"

"हां...।" कहकर जोशी ने देवराज चौहान की तरफ फोन बढ़ाया ।

देवराज चौहान ने फोन लेकर बात की ।

"कौन है ?"

"तुम कैसे हो ?" जगमोहन का खुशी से भरा कांपता स्वर कानों में पड़ा ।

देवराज चौहान के चेहरे पर खुशी आ ठहरी ।

"तुम ठीक हो ?" तुम्हें पुलिस वाले कोई तकलीफ तो नहीं दे रहे ?" देवराज चौहान ने पूछा ।

"मैं ठीक हूं, बिलकुल ठीक हूं । मुझे यहां से बाहर निकालो ।"

"कोशिश कर रहा हूं ।"

तभी सुमित ने कहा-

"फोन मुझे दो ।"

देवराज चौहान ने फोन उसे दे दिया ।

"बातें बहुत हो गई ।" जोशी ने फोन पर जगमोहन से कहा--- "कमिश्नर से बात करा ।"

"अगले ही पल भूरेलाल की आवाज कानों में पड़ी-

"बोली...।"

"इसे बाहर नहीं निकाल सकता तू ?" सुमित जोशी ने कहा ।

"बताया तो...इन दिनों सख्ती है ।"

"कोई मौका देख...।"

"मौका मिलते ही निकाल दूंगा ।"

"मेरे पे तेरा एहसान होगा । जगमोहन को बाहर निकाल। जो सेवा कहेगा कर दूंगा ।"

"कोशिश करूंगा ।" इसके साथ ही फोन बंद कर दिया उधर से भूरेलाल ने।

देवराज चौहान के चेहरे पर चैन के भाव थे ।

फोन बंद करके जेब में रखता सुमित जोशी बोला-

"जगमोहन से बात करके तेरे को अच्छा लगा ?"

"बहुत...।"

"चौबीसों घंटे में, पुलिस कस्टडी में होते हुए भी जगमोहन से बात करा दी । क्या अब भी यही सोचता है कि मैं तुझे बेवकूफ बना रहा हूं ?"

"वो कमिश्नर जगमोहन को बाहर निकालने के बारे में क्या कहता है ?" देवराज चौहान ने पूछा ।

"कोशिश करेगा वो । शायद जल्दी ही निकाल दे । ये चिंता तू मुझ पर छोड़ दे ।"

देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा ।

"जगमोहन अगर दो महीने से पहले बाहर आ गया तो तब भी तेरे को दो महीने तक मेरा बॉडीगार्ड बन कर रहना होगा ।"

"मैं ऐसा ही करूंगा ।" देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा--- "अब मैं तेरे काम की बात बताता हूं।"

"मेरे काम की बात ? बता...?" सुमित जोशी उसे देखने लगा ।

"C.B.I. वालों की नजर तुम पर है डेढ़ साल में तुम्हारे यहां काम करने वाले तीन वकीलों की हत्या हो गई । C.B.I. को शक है कि तीनों हत्याएं तुमने ही कराई थी ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"C.B.I. मेरे खिलाफ इन्वेस्टिगेशन कर रही है ?" सुमित जोशी चौंका ।

"तीन बॉडीगार्ड तेरे, एक्सीडेंट में मारे गये । C.B.I. को विश्वास है कि अपने वकीलों और बॉडीगार्ड की तूने ही हत्या करवाई है । वो पूरे विश्वास के साथ तेरे पीछे हैं।"

"तेरे को मिले वो ?"

"हां, कुछ देर पहले ही दो C.B.I. वाले रमेश सिंह और दया मुझसे मिले वो बाहर ही हैं ।"

"तेरे को क्यों मिले ?"

"ताकि मैं तुम्हारी खबरें उन्हें दूं कि तुम किससे मिलते हो, क्या बातें करते हो । कौन तुम्हारे पास आता है, किसके फोन आते हैं तुम्हारे पास । उन्हें भरोसा है कि तुम वकालत की आड़ में गलत काम करने में लगे हुए हो।"

"ये साली नई मुसीबत आ गई । फिर तुमने क्या कहा ?"

"मैंने कहा कि मैं उन्हें जरूर खबर दूंगा । इंकार नहीं कर सकता था ।"

सुमित जोशी चिंता भरी नजरों से देवराज चौहान को देखने लगा ।

"तुमने बड़ी-बड़ी मुसीबतें पाल रखी हैं ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"मालूम है ।"

"अपने वकीलों की हत्या तुमने कराई ?"

"हां । वो मुझे ब्लैकमेल करने की कोशिश कर रहे थे । मेरी कई बातें वो जान गये थे । जो जानने के बाद उन्हें चुप रहना चाहिये था । लेकिन मुझे ब्लैकमेल करने की चेष्टा में थे । एक ने तो ये भी कह दिया कि अगर उसकी मांग नहीं मानी गई तो वो पुलिस के पास चला जायेगा । मैंने जो किया मजबूरी में किया।"

"और बॉडीगार्ड ?"

"वो भी मेरे बारे में जानने लगे थे । हर वक्त मेरे साथ रहेंगे तो जानेंगे ही ।"

"तुमने छः हत्याओं की बात कबूली है अभी ।" देवराज चौहान बोला--- "ये संख्या ज्यादा भी होगी ।"

"क्यों अपना सिर खपा रहे हो...।" सुमित जोशी ने बेचैनी से कहा ।

देवराज चौहान मुस्कुराकर कह उठा-

"तुम तो सच में पहुंचे हुए हो ।"

"हर समय चोर-हत्यारों से वास्ता पड़ता रहा। मैं भी उन जैसा कब बन गया...पता ही नहीं चला ।"

"तुम्हें किसी ने कहा नहीं कि तुम उन जैसा बनो । तुमने अपनी मर्जी से राह चुनी । प्रभाकर के पच्चीस करोड़ तुमने खा लिए । फीस भी अलग नहीं । रतनपुरी के साढ़े चार करोड़ तुमने फीस के रूप में पाये और उसके बेटे मक्खन को फांसी हो गई । तुमने उसके लिए कुछ नहीं किया । ऐसे न जाने कितने काम तुमने किए होंगे...।"

"C.B.I. को मेरे खिलाफ कोई सबूत नहीं मिलेगा ।"

"मुझे ऐसा ही लगता है ।"

"तुम्हें क्यों लगता है ?"

"उससे पहले ही तुम्हें कोई और मार देगा ।"

"तुम हो मुझे बचाने वाले...।"

"वहम में मत रहना। मैं भी इंसान हूं। कभी-कभी तो मुझे अपनी जान बचानी भारी पड़ जाती है ।" देवराज चौहान बोला ।

"लेकिन मुझे तुम पर विश्वास है ।"

"वो तुम्हारी इच्छा।"

"तुम मुझे जरूर बचाओगे । क्योंकि मैं सलामत रहा तो जगमोहन को पुलिस के हाथों से बचा लूंगा ।"

"परन्तु मैं गारंटी नहीं देता कि वक्त आने पर तुम्हें बचा ही लूंगा।"

"तुम जरूर बचाओगे ।" सुमित जोशी ने विश्वास भरे स्वर में कहा ।

देवराज चौहान उसे देखता मुस्कुरा पड़ा ।

"मुस्कुराए क्यों ?"

"एक दो बार मैंने तुम्हें बचा भी लिया तो कोई फायदा नहीं होगा । देर-सवेर में अवश्य तुम्हें कोई मार देगा ।"

"वो बाद की बात है । तुम्हारे होते हुए कोई मुझ पर हमला करे तो तुम मुझे बचा के रखना ।"

"कोई सामने आकर गन का मुंह खोल देगा तो मैं क्या करूंगा ? तब तो मैं भी मर जाऊंगा ।"

"ये जंगल नहीं है जहां कोई भरी सड़क पर गन लेकर खड़ा हो जायेगा । रिवाल्वर से ही कोई मुझे मारेगा ।"

देवराज चौहान चुप रहा।

"C.B.I. के बारे में बताकर तुमने मुझे और चिंता में डाल दिया है ।" सुमित जोशी कह उठा ।

"तुम्हें C.B.I. की क्या परवाह ।" देवराज चौहान मुस्कुराया--- "तुम तो बहुत हिम्मत वाले हो ।"

"सही कहते हो...।" मैं सच में हिम्मत वाला हूं ।" सुमित जोशी हंसा--- "अपनी जान को कितने पंगे डाल रखे हैं । पता नहीं कब, किधर से गोली आकर मुझे लग जाये...और तुम मुझे हिम्मतवाला कह रहे हो।"

"तुम्हें अपने आस-पास पांच-छः बॉडीगार्ड रखने चाहिये । इससे शायद तुम वक्त आने पर बच सको ।"

"मैं C.B.I. के बारे में सोच रहा हूं । परसों मुझे प्रभाकर को जेल से बाहर लाना है ।"

देवराज चौहान की निगाह इस महान वकील पर थी ।

"C.B.I. वाले मुझ पर नजर रखे हैं ?"

देवराज चौहान ने सहमति से सिर हिलाया ।

"फिर मैं प्रभाकर को कैसे बाहर ला पाऊंगा ? C.B.I. सब देख रही होगी ।"

"वो हर वक्त तुम पर निगाह नही रखते ।"

"क्या पता तब नजर रख रहे हो, जब मैं प्रभाकर के साथ जेल से बाहर आ रहा होऊं...।"

"कुछ भी हो सकता है ।"

"C.B.I. वालों को अपने पीछे से हटाना होगा। तभी काम हो पायेगा ।"

"ये मुमकिन नहीं । वो क्यों पीछे हटेंगे--- वो...।"

"तुम्ही उन्हें हटाओगे देवराज चौहान ।"

"मैं...?"

"हां । तुम्हारी उनसे बात हो चुकी है । वो तुमसे मेरे बारे में गर्मा-गर्म खबर चाहते हैं ।" सुमित जोशी बोला।

देवराज चौहान के होंठ सिकुड़े ।

"समझ गये ?" सुमित जोशी गंभीर स्वर में बोला--- "हम कोई गर्म खबर तैयार कर लेंगे, जो तुम C.B.I. को दोगे । ऐसी खबर कि C.B.I.का ध्यान कुछ देर के लिए मुझ पर से हट जाये और मैं प्रभाकर को जेल से बाहर ला सकूं ।"

"मैंने गलत खबर दी तो बाद में वो मुझे छोड़ेंगे नहीं...।" देवराज चौहान बोला ।

"वो गलत खबर नहीं होगी। समझा करो, तुम्हारे पास कोई खबर है, तुमने वो खबर आगे दे दी । अब किसी के प्लान में कोई बदलाव हो जाता है तो इसमें खबरी का क्या कसूर...।"

"बहुत घिसे हुए हो तुम...।"

"भूल रहे हो तुम कि क्रिमिनल लॉयर हूं । मुम्बई का माना हुआ वकील ।"

"मुझे तो तुम क्रिमिनल लग रहे हो, जो हर कदम पर कानून को तोड़ता फिर रहा है ।"

"मजाक मत करो ।"

"क्या बताऊं C.B.I. वालों को ?"

"बता दूंगा । अभी हमारे पास वक्त है । कल शाम तक उन्हें खबर बता सकते हो। तुमने उनका फोन नम्बर लिया ?"

"नहीं...।"

"ले लेना । फोन होगा तो उनसे बात करने में आसानी होगी ।"

देवराज चौहान सुमित जोशी के केबिन से बाहर निकला और रिसेप्शन पर जा पहुंचा । दिमाग सुमित जोशी की बातों में उलझा हुआ था जो हर कदम पर नई मुसीबत मोल लेने को तैयार रहता था ।

"तुम्हारी चाय ठंडी हो गई सुरेंद्र पाल ।" रिसेप्शनिस्ट बोली--- "मैंने तुम्हें जल्दी आने को कहा था ।"

"बातों में वक्त लग गया ।"

"नई चाय बना लो अगर पीने का मन हो तो...।"

देवराज चौहान वहां पड़े सोफों पर जा बैठा ।।शाम के चार बजने जा रहे थे।

■■■

कोर्ट से प्रदीप जोशी ऑफिस पहुंचा ।

साथ में आठ वकीलों की फौज थी जो कि केसों की फाइल उठाये हुए थे । उनके आते ही ऑफिस में चहल-पहल हो गई । बातें और शोर उठने लगा । तब देवराज चौहान, सुमित जोशी के केबिन में सैटी पर बैठा था, जब प्रदीप भीतर आया ।

सुमित जोशी सोचों में डूबा टेबल के पीछे कुर्सी पर बैठा था ।

"मदन मारा गया सुमित ।" प्रदीप जोशी बैठता हुआ कह उठा--- "लेकिन खतरा अभी टला नहीं है ।"

"वो खतरा तो बाद में आयेगा, पहले जिम्मी की बात तो सुन ले।" सुमित जोशी कह उठा--- "कमीना मेरे को बकरा बनाने के फेर में है । उसने प्लान बताया है कि कैसे प्रभाकर को जेल से निकालना है ।"

"तुम निकालोगे ?" प्रदीप जोशी चौंका ।

"हां, वो...।"

"ये कैसे हो सकता है कि तुम...।"

"हो सकता है । उसने सारा प्लान बना रखा है । जेल के कई पुलिसवालों को नोट देकर पटा लिया है । जिस ढंग से वो बता रहा था, अगर सब कुछ वैसा ही है तो काम कठिन नहीं है ।"

"लेकिन इस तरह तो तुम भी फंस सकते हो ?"

"हां । लेकिन मुझे ये काम करना पड़ेगा । उसने रिवाल्वर मेरे सिर से लगा दी, बोला कि मैं हां कहूं, नही  तो मुझे गोली मार देगा । हमने उसका पच्चीस करोड़ खाया है, वसूल तो करेगा ही।" सुमित जोशी ने बेचैनी से कहा।

"वसूल करने के बाद वो भूल जायेगा ।"

"प्रभाकर भूलने वाला नहीं है, जिम्मी तो जरा भी नहीं भूलेगा ।"

"प्रभाकर के दोनों भाई...। वो...।"

"बांटू और गोवर्धन...।"

"वो ही । हम इन चारों से नहीं टकरा सकते । जिम्मी अकेला था या बांटू-गोवर्धन भी साथ थे...।"

"अकेला था ।"

"तूने क्या सोचा ?"

"जिम्मी की बात माननी पड़ेगी । वरना वो मुझे मार देगा । पागल है साला ।"

प्रदीप जोशी ने गर्दन घुमाकर देवराज चौहान को देखा ।

देवराज चौहान उसे अपनी तरफ देखता पाकर मुस्कुराया ।

प्रदीप जोशी पुनः सुमित को देखने वाला।

"क्या प्लान बताया जिम्मी ने ?"

सुमित जोशी ने बताया ।

सुनने के बाद प्रदीप ने कहा---

"सुनने पर तो ये काम कठिन लगता ।"

"एक और नई बात सुन ले...।" सुमित जोशी बोला ।

"क्या ?"

"C.B.I. हमारे पीछे हैं । उन्हें लगता है वहां तीन वकीलों की जो हत्या हुई, वो हमने कराई है ।"

"नहीं...।" प्रदीप जोशी के होंठों से निकला ।

"तीनों बॉडीगार्ड के मरने का शक भी वे हम पर कर रहे हैं ।"

"कौन कहता है ?"

"C.B.I. वाले देवराज चौहान से मिले । वो इसे तैयार कर रहे हैं कि भीतर की खबरें उन्हें दे ।"

प्रदीप जोशी ने घबराकर देवराज चौहान को देखा ।

देवराज चौहान मुस्कुराया ।

"इसने बताया तेरे को ?"

"हां, वो बाहर रहकर हम पर नजर रख रहे हैं ।"

"हे भगवान ! क्या हो रहा है ।" प्रदीप जोशी ने माथा पकड़ लिया।

"जो किया है वो सामने आ रहा है ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"कब से है C.B.I. वाले हमारी ताक में ?"

"मुझे क्या पता ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"तुमने उन्हें कुछ बताया तो नहीं ?"

"मैं क्यों बताऊंगा...।"

सुमित जोशी ने परेशानी से कुर्सी पर पहलू बदला ।

"C.B.I. से कैसे बचोगे ?" प्रदीप जोशी ने अपने भाई से पूछा ।

"उनकी फिक्र मत करो ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"क्यों ?"

"C.B.I. के कुछ करने से पहले ही, कोई तुम्हारे भाई को मार देगा। दुश्मनों की लिस्ट बहुत लम्बी है । ये ही मैंने अब तक महसूस किया है, इसलिए C.B.I. को परवाह जरा भी मत करो।"

"इस मौके पर तुम्हें मजाक सूझ रहा है ?"

"मैं सिर्फ तमाशबीन हूं । देख रहा हूं क्या-क्या हो रहा है ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"तमाशबीन ! तुम सुमित के बॉडीगार्ड हो और...।"

"प्रदीप...।" सुमित जोशी ने टोका--- "देवराज चौहान अपना काम ठीक से कर रहा है । उसकी बात छोड़ ।"

"लेकिन अब होगा क्या ?" प्रदीप जोशी बेचैनी से बोला ।

"करेंगे कुछ...।" सुमित जोशी ने सिर हिलाया ।

"C.B.I. वाले पीछे हैं तो तुम प्रभाकर को भी जेल से नहीं निकाल सकते। जिम्मी से क्या कहोगे ?"

"जिम्मी से पीछा छुड़ाने की चेष्टा करूंगा। पीछा न छूटा तो कोई रास्ता निकालना ही पड़ेगा ।"

घंटा भर इन्हीं बातों में सिर खपाकर प्रदीप जोशी बाहर निकल गया।

सुमित जोशी कुर्सी पर सीधा होकर बैठा और देवराज चौहान को देखकर मुस्कुराया ।

"तो तुम तमाशबीन हो देवराज चौहान ?"

"हां...।"

"जगमोहन को आजाद कराना है तो मुझे दुश्मनों से बचा के रखना ।"

"मैं सोचता था कि मैंने तुम्हें बहुत दुनिया देख ली, परंतु आज मुझे लग रहा है कि अभी बहुत कुछ देखना बाकी है । तुम शरीफ वकीलों का नया चेहरा शायद मैंने पहली बार देखा है । इन हालातों में मुझे मजा आ रहा है।"

"तूने कम पाप नहीं किए ।" सुमित जोशी मुस्कुराया ।

"मैंने बहुत कुछ किया है और छाती ठोक कर किया है । तुम्हारी तरह वकालत की आड़ में नहीं किया । इंसानों के बीच रहते हो और काम जानवरों वाले। तुम तो बदमाशों से भी बढ़कर हो ।"

"कह लो, बुरा वक्त है तुम भी भड़ास निकाल लो ।"

"मुझे क्या, जो मन में आये वो करो । तुम मर जाओगे तो जगमोहन के लिए कोई दूसरा रास्ता तलाश करूंगा ।"

सुमित जोशी ने गहरी सांस ली 

"मैं तो परेशान हो गया हूं ऐसी जिंदगी से ।"

"फिक्र मत करो । जल्दी ही कोई तुम्हें परेशानियों से मुक्ति दिला देगा। जिंदगी से आजाद हो जाओगे ।"

"अच्छे बॉडीगार्ड हो ! मेरी मौत की कल्पना कर रहे हो ।"

"मैं कुछ नहीं कर रहा । तुम्हारे रंग-ढंग देख रहा हूं...।"

सुमित जोशी ने हाथ बढ़ाकर अपना मोबाइल उठाया और जिम्मी के नम्बर मिलाने लगा ।

एक बार में ही नम्बर लगा और बात हो गई ।

"बोल कमीने वकील...।" जिम्मी की घटनाओं में पड़ी ।

"मैं नई मुसीबत में फंस गया हूं...।" सुमित जोशी जल्दी से बोला।

"मैंने तो सोचा था कि तू अपने मरने की खबर देगा कि नर्क से बोल रहा हूं...।"

"मैं सच में मुसीबत में...।"

"बात बोल...।"

"C.B.I. वाले मुझ पर नजर रख रहे हैं ।"

"उन्हें तो चाहिए था कि अब तक तेरे को गोली मार देते। वो इतनी देर क्यों लगा रहे हैं ?"

"प्लीज जिम्मी...मैं...।"

"मैं क्या करूं अगर वो सी.बी.आई.  वाले तेरे पीछे हैं तो...।"

"वो मुझ पर लगातार नजर रख रहे हैं । ऐसे में मैं प्रभाकर को जेल से बाहर कैसे लाऊंगा ।"

"तू लायेगा ।"

"ऐसा मत कह ।" सुमित जोशी मरे स्वर में बोला--- "जेल से बाहर निकलते ही वो मुझे और प्रभाकर को पकड़ लेंगे ।"

"उन्हें सपना आयेगा कि तू जेल से पापा के साथ बाहर आया है ? वो तो वकीलों के कपड़ों में होंगे। चेहरे पर दाढ़ी-मूंछ होंगी ।"

"समझा कर जिम्मी...वो...।"

"अपने आदमी भेजूं ? वो तेरे शरीर में गोलियां उतार देंगे और C.B.I. वाले भी घर जाकर चैन से नींद सोएंगे।"

"प्लीज जिम्मी, मैं इस काम में किसी दूसरे वकील को...।"

"भेजता हूं आदमी...।"

"नहीं ।" सुमित जोशी तेज स्वर में बोला--- "म...मैं कर दूंगा ये काम...।"

"उल्लू का पट्ठा ।" उधर से जिम्मी ने कड़वे स्वर में कहा ।

सुमित जोशी ने फोन बंद करके टेबल पर रखा ।

देवराज चौहान शांत निगाहों से उसे देख रहा था ।

"खाना-पीना सब हराम कर रखा है कुत्तों ने...।" सुमित जोशी बड़बड़ाया ।

"चाय बनवा लाऊं ?" देवराज चौहान मीठे स्वर में कह उठा ।

"नहीं...।" सुमित जोशी ने उसे देखा--- "तुम...तुम उन C.B.I. वालों के फोन नम्बर ले लो । उन्हें खबर देकर परसों सुबह अपने पीछे से हटाना होगा । तभी मैं प्रभाकर को जेल से बाहर ला सकूंगा ।"

देवराज चौहान उठा और बाहर निकल गया।

■■■

देवराज चौहान जोशी एंड जोशी एसोसिएट से बाहर निकला और ठिठककर सिगरेट सुलगाते हुए नजरें घुमाई और काफी दूरी पर उसे कार में बैठा रमेश सिंह दिखा तो वो उसकी तरफ बढ़ गया । चाल में लापरवाही थी । कार के पास पहुंचकर ठिठककर उसने इधर-उधर देखा । रमेश सिंह को दिखावा किया कि वो सतर्क है ।

"भीतर बैठ जाओ ।" रमेश सिंह बोला ।

देवराज चौहान ने कार के पीछे का दरवाजा खोला और भीतर बैठ गया ।

पीछे वाली सीट पर दयाल भी बैठा था।

"तुम भी हो ।" देवराज चौहान कह उठा।

"क्या खबर लाये ?" रमेश सिंह सिर पीछे घुमा के कह उठा ।

"अभी तो खबर नहीं है ।" देवराज चौहान ने कहा--- "मैं तुम लोगों का फोन नम्बर लेने...।"

"हां, उस वक्त हमें भी देना याद न रहा ।" दयाल बोला ।

"मैंने कभी खबर देनी हो तो, फोन पर दे दूंगा । वरना कहां ढूंढता रहूंगा मौके पर ।"

दोनों ने अपना मोबाइल नम्बर देवराज चौहान को दिया ।

"तुम भी अपना नम्बर दे दो ।"

देना पड़ा देवराज चौहान को नम्बर । उसके बाद बोला---

"पांच सौ रुपया देना ।"

"क्या ?"

"पांच सौ का नोट...।"

"अभी तो हजार दिए थे...।"

"अब पांच सौ की और जरूरत पड़ गई ।"

दयाल ने शराफत से जेब से पांच सौ का नोट निकालकर उसे दिया ।

"मुझे इसकी जरूरत थी, वरना मांगता नहीं ।"

"कोई बात नहीं ।" दयाल मुस्कुराया--- "जब जरूरत पड़े ले लेना । हमें तो अपने काम की बढ़िया खबर चाहिये ।"

"कुछ पता लगते ही फोन करूंगा । अब मैं जाऊं...।"

"हां...।"

"तुम लोग इस तरह कब तक वकील पर नजर रखोगे ? कोई खबर होगी तो मैं ही फोन पर बता दूंगा।"

"हमें हमारा काम करने दो ।"

"ठीक है ।" देवराज चौहान कार से बाहर निकला और सामने नजर आ रहे ऑफिस की तरफ चल पड़ा ।

देवराज चौहान ने सुमित जोशी के केबिन में प्रवेश किया ।

सुमित जोशी ने सवालिया निगाहों से उसे देखा ।

"ले आया हूं उन दोनों C.B.I. के जासूसों के नम्बर ।"

"तो वो अभी भी बाहर है । कमीने कहीं के...।" सुमित जोशी ने कड़वे स्वर में कहा ।

देवराज चौहान कुर्सी पर जा बैठा।

"और क्या कह रहे थे ?" पूछा सुमित जोशी ने ।

"मेरे से कोई अच्छी खबर पाने की आशा कर रहे हैं ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"देंगे ! सालों को अच्छी खबर देंगे ।" सुमित जोशी ने दांत भींचकर कहा ।

तभी सुमित जोशी का मोबाइल बजा ।

"हैलो ।" उसने बात की ।

"मरवा दिया मदन को ?" कानों में भारी-भरकम आवाज पड़ी ।

"रतनपुरी ?" सुमित जोशी के होंठों से निकला ।

देवराज चौहान की निगाह सुमित जोशी के चेहरे पर जा टिकी।

"तुमने मदन को मरवाकर अच्छा नहीं किया ।" रतनपुरी की आवाज पुनः कानों में पड़ी ।

"म...मैंने ये काम नहीं किया था । प...पुलिस ने उसे मारा...।"

"पुलिस को खबर तो तूने दी...।"

"म...मैंने नहीं दी पुरी । मैं तो...मैं तो अपने ऑफिस में भी नहीं था । जब आया तो तब पता चला । पुलिस ने बताया कि मरने वाला मदन था, तुम्हारा खास आदमी । मैं तो अभी तक हैरान हो रहा...।"

"बकवास बंद ।" रतनपुरी की गुर्राहट कानों में पड़ी ।

सुमित जोशी फौरन खामोश हो गया ।

"सुबह नौ बजे तेरा भाई प्रदीप दस मिनट के लिये ऑफिस आया था । उसने मदन को देखा ।"

"नहीं...।"

"दोनों की नजरें मिली थीं । मदन ने फोन पर मेरे को ये बात बताई ।"

"अच्छा, मुझे नहीं पता कि...।"

"प्रदीप ने तेरे को बताया कि मदन बाहर खड़ा है, तब तूने पुलिस को खबर...।"

"नहीं । मेरे को कुछ नहीं पता । प्रदीप ने मुझे मदन के बारे में कुछ नहीं बताया । मैं तो...।"

"मेरे से गोलियां खेलता है ?"

"पूरी, मेरी बात सुन । मैंने कुछ नहीं किया ।" सुमित जोशी तेज स्वर में कह रहा था--- "मैं ऐसा करूंगा भी क्यों ? तुम तो मेरे क्लाइंट हो । वकील अपने क्लाइंट का बुरा कभी नहीं चाह सकता । मैंने मक्खन की अपील सुप्रीम कोर्ट में कर दी है । मुझे पूरा विश्वास है कि उसकी सजा कम करा कर पांच-सात साल तक ले आऊंगा।"

"अभी मैंने मक्खन की बात नहीं की, मदन की बात कर रहा हूं...।"

"तुम ये क्यों सोचते हो पुरी कि मदन की मौत में मेरा हाथ है ? ये ठीक है कि ये सब मेरे ऑफिस के बाहर हुआ । परंतु मैं हर बात से अंजान था । मेरा इन बातों से क्या वास्ता ? गलती तेरी थी ।"

"मेरी गलती ?"

"तेरे को फोन करके बताना चाहिए था कि तू किसी काम के लिए मदन को भेज रहा है । तो मैं पहले से ही उसके लिए सुरक्षित जगह तैयार करके रखता । पुलिस को उससी हवा भी नहीं मिलती । वैसे मुझे मदन की मौत का बहुत दुख है । वो अच्छा आदमी था । मेरे से जब भी मिला, बहुत अच्छी तरह मिला ।"

"तूने मदन की मौजूदगी की खबर पुलिस को दी, क्योंकि तू समझ गया था कि मदन क्यों आया है ।"

"मैंने पुलिस को कोई खबर नहीं दी । तू बार-बार ये बात क्यों कहता है ?"

"जानता है, मदन तेरे ऑफिस के बाहर क्या कर रहा था ?"

"क्या कर रहा था ?" सुमित जोशी ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।

"मैंने उसे भेजा था...कि वो तेरे को मार दे...।"

सुमित जोशी को अपनी सांसे रूकती-सी लगी ।

"तूने मेरी हत्या करने के लिए मदन को भेजा था ?" सुमित जोशी के होंठों से निकला ।

देवराज चौहान ने लम्बी सांस ली ।

"इसका जवाब तेरे पास है कि मैंने उसे क्यों मारने भेजा।"

रतनपुरी की भारी आवाज, जोशी के कानों में पड़ी ।

"देख पुरी । मैंने मक्खन को बचाने की बहुत कोशिश की...मैंने...।"

"में तो इतना जानता हूं कि तूने मेरे से साढ़े चार करोड़ वसूले कि मक्खन को कानून के हाथों से बाइज्जत बरी करा लेगा । ये तेरे-मेरे बीच का सौदा था । पर तू अपने सौदे पर खरा नहीं उतरा। मक्खन को फांसी हो गई...।"

"अभी तो सुप्रीम कोर्ट बाकी है, दिल छोटा क्यों करता...।"

"अब ये केस दूसरा वकील लड़ेगा, तू नहीं...।"

"ऐसा मत कर पुरी, मैं मक्खन को...।"

"तू मक्खन की फिक्र मत कर। अपनी फिक्र कर । तेरे जैसे दोगले वकील को मैं जिंदा नहीं छोडूंगा ।"

"ये क्या कह रहा है पुरी ? तू मेरी जान लेगा ? हम दोस्त हैं । साथ बैठकर पी थी हमने । ताश खेली थी और...।"

'तब मैं नहीं जानता था कि तू हरामी है । जानता होता तो वो ही बोतल तेरे पर उड़ेलकर तुझे आग लगा देता ।"

"पुरी, तू पागल हो गया है ।"

"तेरे जैसे जाने कितने मेरी जेबों में पड़े रहते हैं । तूने अभी मेरे को जाना नहीं ।" रतनपुरी की गुर्राहट सुमित जोशी के कानों में पड़ी--- "आज से अपने दिन गिनना शुरू कर दे ।"

"पुरी तू...।"

रतनपुरी ने उधर से फोन काट दिया।

सुमित जोशी ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी। कान से हटाकर फोन को देखा।

देवराज चौहान की निगाह उस पर थी ।

"किसी ने सच कहा है...।" सुमित जोशी बड़बड़ाया--- "जब मुसीबत आती है तो हर तरफ से आती है ।"

"क्या बोला पुरी ?" देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा ।

"वो कहता है कि मुझे मार देगा । मदन को उसने मुझे मारने को ही भेजा था ।" सुमित जोशी मरे स्वर में बोला--- "परंतु मैं ये बात पहले ही समझ गया था । तभी तो उसके बारे में पुलिस को खबर कर दी और बच गया । अब पुरी हाथ धोकर मेरे पीछे पड़ गया है ।"

"उसका बस चलता तो उधर से वो फोन पर ही तुझे गोली मार देता ।

सुमित जोशी ने देवराज चौहान को देखा ।

"उसने छाती ठोककर मुझे मारने की धमकी दी है।"

"मैं पहले ही तुम्हें कह चुका हूं कि C.B.I. वालों की परवाह मत करो ।"

सुमित जोशी ने देवराज चौहान को घूरा, फिर कह उठा---

"रतनपुरी बहुत खतरनाक गैंगस्टर है ।"

"ये तुम्हें पहले सोचना चाहिये था, जब उसका केस हाथ में लिया । उससे वादा किया कि तुम उसके बेटे को बचा लोगे...और इसी आशा की आड़ में उससे साढ़े चार करोड़ों रुपया झाड़ लिया । तुमने तो हद ही कर दी ।"

"ये ही तो मेरा धंधा है ।"

"भुगतो ।"

"तुम्हें सतर्क रहना होगा देवराज चौहान...।"

'उसने मुझे नहीं, तुम्हें मारने को कहा है ।"

'तुम मेरे बॉडीगार्ड हो ।"

"मैं पूरी कोशिश करूंगा कि जब तुम पर गोलियां चले तो, मैं खुद को गोलियों से बचा सकूं।"

"मैं मर गया तो जगमोहन...।" सुमित जोशी ने कहना चाहा ।

"जगमोहन के लिए तब मैं कोई और रास्ता देखूंगा ।" देवराज चौहान मुस्कुराया ।

"वो रास्ता अब ही क्यों नहीं देख लेते ?" सुमित जोशी ने तीखे स्वर में कहा 

"अभी तुम जिंदा हो और मुझे थोड़ी-सी आशा है कि तुम शायद जगमोहन को बाहर ले आओगे ।"

सुमित जोशी ने गहरी सांस ली ।

"मैं फंसा पड़ा हूं।"

"तुम्हारी जगह में होता तो इन हालातों में तो अब तक खिसक गया होता कहीं ।"

"मैं भागूंगा नहीं । डरपोक नहीं हूं मैं...।"

"वो तो मैं देख ही रहा हूं...।"

"दिमाग खराब हो गया है मेरा तो ।" सुमित जोशी ने होंठ भींचकर कहा ।

"ऐसे फोन पहले भी आते होंगे...धमकी भरे ?"

"हां । परन्तु एक-दो बार के अलावा, ज्यादा कुछ नहीं हुआ।"

सुमित जोशी गंभीर था ।

"और उस एक-दो बार में तुम बच गये । किस्मत वाले निकले ।

"लेकिन इस बार रतनपुरी जैसा गैंगस्टर सामने है ।"

"रतनपुरी ना भी हो, तब भी तुम अपना बचाव नहीं कर सकते ।"

"क्या मतलब ?"

"जब कोई, किसी की हत्या करने के लिए पीछे पड़ जाता है, तो उसे ज्यादा देर नहीं रोका जा सकता । हत्या करने वाले के लिये पचासों मौकें होते हैं । बहुत वक्त होता है उसके पास । वो अपना शिकार कर ही लेता है । उससे बचने का एक ही उपाय है कि उसे ढूंढ कर खत्म कर दो । इस मामले में सबसे सुरक्षित सिर्फ ये ही रास्ता है ।"

"ओह ।" तुम रतनपुरी को खत्म कर सकते हो देवराज चौहान ?"

"मैं ऐसा नहीं करूंगा ।" देवराज चौहान ने कार में सिर हिलाया।

"क्यों ?"

"तुम्हारे मामले में भीतर तक दखल देने की मैं जरूरत नहीं समझता ।"

"तुमने मुझे बचाना है देवराज चौहान । तुम मेरे बॉडीगार्ड...।"

"कोई तुम्हारे पास पहुंचेगा तो उसे रोकने की चेष्टा करूंगा । परन्तु तुम्हारे लिये किसी की जान लेने, उसके घर तक नहीं जाऊंगा । ये मेरे उसूल के खिलाफ है । बॉडीगार्ड का काम तुम्हें सुरक्षा देना है।"

सुमित जोशी, देवराज चौहान को देखने लगा, फिर सिर हिलाकर बोला---

"कैसे अजीब हो तुम ।"

"मुझे पूंछ हिलाने वाला कुत्ता मत समझ लेना ।" देवराज चौहान ने कहा--- "ये मत भूलो कि मैं कौन हूं।"

"मुझे हमेशा याद रहता है कि तुम कौन हो ।" सुमित जोशी ने मुस्कुराने की चेष्टा की ।

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई कश लिया । बोला---

"अब तुम क्या करोगे ?"

"मेरे ख्याल में रतनपुरी का गुस्सा ठंडा हो जायेगा । वो...।"

"ऐसा नहीं होगा ।" देवराज चौहान मुस्कुराया--- "वो तुम्हें मार के रहेगा।"

"तुम मुझसे उलटी बातें मत किया करो...।"

"तुम्हारी जगह मैं होता तो एक-दो महीने के लिए अंडरग्राउंड हो जाता ।"

"पहले मैंने ही कहा है कि मैं डरपोक नहीं हूं...।"

"सच में ।" देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा--- "तुम्हारी बहादुरी के तो बाजारों में पोस्टर बिक रहे हैं ।"

तभी प्रदीप जोशी ने भीतर प्रवेश किया और सुमित के चेहरे के भावों को देखकर बोला---

"क्या बात है ?"

"रतनपुरी का फोन आया है ।" सुमित जोशी खार खाये स्वर में कह उठा--- "उसने मुझे धमकी दी है मारने की । वो कहता है कि मैंने मदन के बारे में पुलिस को खबर दी । उसके बेटे के अंजाम का भी मैं जिम्मेवार हूं ।"

"ये तो भारी खतरे वाली बात हो गई ।" प्रदीप जोशी चिंतित स्वर में बोला--- "तुम्हें कहीं छिप जाना चाहिये ।"

"उससे क्या होगा ? मैं छिप गया तो वो गुस्से में तुम्हें मार देगा।" सुमित जोशी ने दांत भींचकर कहा।

"तो तुमने क्या सोचा ?"

"कुछ नहीं सोचा । सवाल-जवाब करके मुझे परेशान मत कर ।"

"मैं घर जा रहा हूं ।" प्रदीप जोशी ने चिंतित नजरों से उसे देखा।

"तो यहां क्यों खड़ा है, जा...।" सुमित खींझकर कह उठा ।

प्रदीप जोशी बाहर निकल गया ।

देवराज चौहान ने मुस्कुराकर, सुमित जोशी को देखा ।

"चल...।" एकाएक सुमित जोशी उठते हुए बोला--- "यहां से चलें ।"

देवराज चौहान उठ खड़ा हुआ।

दोनों बाहर निकले । सुमित जोशी रिसेप्शनिस्ट से बोला---

"प्रदीप के जाने के बाद ऑफिस बंद करवा देना । अब मैं नहीं आऊंगा ।"

"जी सर ।" वो जल्दी में बोली--- "सर, मैं आपसे कोई बात करना चाहती थी ।"

"क्या ?" सुमित जोशी ने उसे देखा ।

"सर, व...वो मैं तनख्वाह के बारे में बात करना चाहती थी । महंगाई बहुत हो गई है । थोड़ी-सी बढ़ा दीजिए ।" वो जल्दी से बोली।

"तुम दूसरी नौकरी ढूंढ लो । मुझे लगता है ये ऑफिस जल्दी ही बंद हो जायेगा ।"

"नहीं सर । ऑफिस बंद मत कीजिये । मैं इसी तनख्वाह पर काम करूंगी ।"

सुमित जोशी बाहर की तरफ बढ़ गया ।

"ये ठीक कहता है ।" देवराज चौहान ने रिसेप्शनिस्ट से कहा--- "ये ऑफिस कभी भी बंद हो सकता है ।"

"लेकिन क्यों ?"

"इन वकील भाइयों के काम ही ऐसे हैं । कोई भी इन्हें मार सकता है ।" कहकर देवराज चौहान भी बाहर की तरफ बढ़ गया ।

बाहर निकला तो सुमित जोशी को पार्किंग में खड़ी कार में बैठते देखा।

देवराज चौहान भी पास पहुंचा और कार में जोशी के साथ बैठकर दरवाजा बंद किया ।

ड्राइवर ने कार आगे बढ़ा दी ।

"सनलाइट कॉलोनी चलना है ।" सुमित जोशी ने ड्राइवर से कहा--- "वहीं पर...।"

"जी सर ।" ड्राइवर ने कहा ।

सुमित जोशी देवराज चौहान को देखकर कह उठा---

"यहां अपनी जान पर बनी है और वो तनख्वाह बढ़ाने को कह रही है...।"

"तुम्हें अपनी बातों की चिंता है और उसे अपनी बातों की उसे क्या पता तुमने क्या गुल खिला रखे हैं...।"

सुमित जोशी ने बुरा-सा मुंह बनाया ।

"अब तुम जा कहां रहे हो ?" देवराज चौहान ने पूछा ।

"मौज-मस्ती करने । ये सब तो चलता ही रहेगा ।" उसने गहरी सांस ली।

"मौज-मस्ती ?" देवराज चौहान ने उसे देखा ।

"कोई है उसके पास कभी-कभार जाता हूं ।"

"औरत ?"

"हां ।"

"तुम तो शादीशुदा हो । औरत तो तुम्हारे घर में है, फिर बाहर क्यों...।"

"बाहर की औरत चेंज के लिए होती है । उसके साथ कुछ देर खाना-पीना हो जाता है ।"

"ये चेंज तो तुम घर की औरत के साथ भी कर सकते हो । उसके साथ खा-पी लो ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"खाने-पीने का मतलब है व्हिस्की पीना...।"

"ये काम तो घर की औरत भी कर लेगी, अगर तुम चाहो...।"

"ये काम घर पर नहीं हो सकता ।"

"क्यों ?"

"अरे भई, घर की औरत को घर के की ढेरों काम होते हैं । उसके पास बैठो तो उसकी ही सुनते रहो।"

"वो तुम्हारी औरत है, तुम्हें उसकी सुननी चाहिये...।"

"चेंज के लिये मैं कभी-कभी बाहर वाली के पास जाता हूं । वो मन करे तो नाचती भी है कभी-कभी...।"

"घर की औरत को कमरा बंद करवाकर नचवा लो ।"

"उसकी तो कमर में ही दर्द रहता है ।"

देवराज चौहान ने गहरी सांस ली ।

"थोड़ी मौज-मस्ती की खातिर सब करना पड़ता है ।" सुमित जोशी मुस्कुराया ।

"तुम्हें इस वक्त अपनी जान की चिंता करनी चाहिये । प्रभाकर...रतनपुरी तुम्हें कभी भी मार सकते हैं ।"

"उस चिंता को भुलाने के लिए ही तो मौज-मस्ती करता हूं...।"

"खूब ! कब से रखी हुई है ये औरत ।

"दो साल पहले मेरे पास आई थी, केस के सिलसिले में । उसने अपने पति की हत्या कर दी थी ।"

"क्या कहने...।"

"उसका पति शराब पीकर उसे मारा करता था। इसलिए उसने उसे मार दिया ।"

"तुम्हारा मतलब कि उसने ठीक किया ?"

"मुझे क्या । ठीक-गलत देखना अदालत का काम है ।"

"फिर तुमने क्या किया ?"

"वो ठीक-ठाक औरत है । तीस-बत्तीस की। उसके पास पैसे नहीं थे मेरी फीस देने के । परन्तु वो खुद को हाजिर करने को तैयार थी । इस तरह वो अभी तक फीस देती आ रही है । सच बात तो ये है कि मैं ही उसे नोट दे रहा हूं । एक नौकर भी उसे दे रखा है। वो मेरा ध्यान रखती है और मैं उसका ध्यान रखता हूं । बढ़िया गाड़ी चल रही है ।"

"तुमने कोई कमीनगी करने से छोड़ी भी है ?"

सुमित जोशी देवराज चौहान को देखकर मुस्कुराया । बोला---

"ये जिंदगी है । इसमें सब कुछ चलता है ।"

"सब कुछ में, किसी के द्वारा तुम्हें गोली मारना भी आता है ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"हां । लेकिन अभी तक मैं बचा हुआ हूं और मुझे पूरा भरोसा है कि मैं बचा रहूंगा ।"

"मैं नहीं समझता कि तुम ज्यादा देर बचे रहोगे।"

"ऐसा मत कहो, तुम मेरे बॉडीगार्ड हो ।"

"हो सकता है वो औरत अब मजबूरी में तुम्हें बर्दाश्त कर रही हो ?"

"मैं उसे हर महीने हजारों नोट देता हूं । वो तो मुझे मुर्गा समझती होगी ।" सुमित जोशी हंसा ।

"हद है । तुम खुद को सुधारने की सोचते भी नहीं ।"

"चुप रहो अब । मेरी मौज-मस्ती का मजा खराब मत करो ।"

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली । कार का शीशा थोड़ा नीचे कर लिया ।

"तुम्हारी बातें सुनकर मुझे हैरानी होती है।" सुमित जोशी बोला--- "क्या तुम सच में डकैती मास्टर देवराज चौहान हो ?"

"हां । देवराज चौहान ही हूं...।"

"तुम जैसे लोग तो खाने-पीने और मौज-मस्ती करने वाले होते हैं।"

"किसने कह दिया ?" देवराज चौहान ने उसे देखा ।

"मुझे पता है । मेरा पाला तुम जैसे लोगों से ही पड़ता है ।" सुमित जोशी ने कहा ।

"गलती तुम्हारी नहीं है, तुम्हारे सोच-विचारों और नजरिए की गलती है । गैर-कानूनी काम करने वाले लोगों के लिए तुमने अपने मन में गलत धारणा बना रखी है । सब एक जैसे नहीं होते । तुम अपने को ही लो । तुम तो गैर कानूनी काम नहीं करते । वकालत करते हो परन्तु वकालत की आड़ में ढेरों गैर कानूनी काम कर रहे हो । क्या सब अकेले ऐसे ही होते हैं ?"

"तुम तो मुझे उधेड़ रहे हो ।"

"मैं तुम्हें समझा रहा हूं कि सब वकील तुम जैसे नहीं होते । इसी तरह अंडरवर्ल्ड के लोग भी, जरूरी नहीं, हर बुरे काम में शामिल हो ।"

"अब तुम मुझे पाठ पढ़ाने लगे ।"

"मेरी इतनी औकात कहां कि इतने पाठ पढ़ा सकूं ।" देवराज चौहान मुस्कुराया--- "तुम तो खुद ही पहुंचे हुए हो ।"

कार सनलाइट कॉलोनी के फ्लैटों के पास जा रुकी ।

सुमित जोशी कलाई पर बंधी घड़ी पर निगाह मारकर बोला ।

"पौने सात बजे हैं । मुझे दस तो बज ही जायेंगे । तुम कहीं जाना चाहो तो जा सकते हो ।"

"मुझे कहीं नहीं जाना ।"

"तो क्या तीन-चार घंटे यहीं रहोगे ?"

"मेरी फिक्र मत करो ।"

सुमित जोशी कार से बाहर निकला और पास ही बने फ्लैटों की सीढ़ियों की तरफ बढ़ गया ।

देवराज चौहान ने कार में बैठे हर तरफ नजरें घुमाई ।

पीछे कुछ कदमों की दूरी पर उसने एक मोटरसाइकिल रुकती देखी। दो युवक थे उस पर । देवराज चौहान ने उन पर से नजरें घुमा ली।  सब ठीक था । तभी ड्राइवर कह उठा---

"मालिक को आने में वक्त लगेगा ।" ड्राइवर ने कहा--- "तुम कहीं घूम आओ।"

"कब से हो तुम अपने मालिक के साथ ?"

"चार साल हो गये ।"

"खूब वफादारी निभा रहे हो । तभी नौकरी बनी हुई है ।"

"क्या मतलब ?"

"मतलब समझना जरूरी है क्या ?"

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