विमल निर्विघ्न गोवा पहुंच गया ।
पंजिम के एक साधारण से होटल में, जहां अधिकतर हिप्पी ठहरते थे, उसने एक कमरा लिया । उसने सुना हुआ था कि आजकल गोवा हिप्पियों का मक्का बना हुआ था और गोवा के बीच आमोद-प्रमोद के लिये उनके बेहद पसंदीदा स्थान थे लेकिन वहां इतने अधिक हिप्पी होंगे, इसकी उसने कल्पना नहीं की थी । कुछ स्थानों पर विशेष रूप से समुद्र तट पर, तो स्थानीय लोगों से अधिक हिप्पी दिखाई देते थे । सूर्य स्नान हिप्पी बालाओं की तफरीह का सबसे बड़ा साधन था । नग्नता की विभिन्न अवस्थाओं में, जिनमें सम्पूर्ण नग्नता भी शामिल थी, वे सोने के कणों सी चमकती रेत में सारा-सारा दिन लेटी रहती थीं । खाना-पीना बहुत सस्ता था इसलिये बीच पर ही खूब जी भर कर मौजमेला चलता था ।
शाम को बीच से सूर्यास्त का ऐसा दृश्य दिखाई देता था कि देखने वाला मन्त्रमुग्ध हो जाता था, अपनी सुध-बुध भूल जाता था ।
वहां पहुंचते ही विमल ने सबसे पहले अपना हिप्पी वाला हुलिया फिर से अख्तियार कर लिया । उसने अपनी संभ्रांत लोगों जैसी एक साफ-सुथरी कमीज उतार कर उसके स्थान पर घिसी हुई बैलबॉटम जीन और कुत्ते के कानों जैसे कॉलरों वाली फिट कमीज पहन ली । गले में उसने वह बड़ा सा कंठा पहन लिया जिस पर हरे कृष्ण हरे राम लिखा हुआ था । अपने गोरे-चिट्टे रंग, फ्रेंचकट दाढ़ी मूंछ और उस परिधान की वजह से वह भी अन्य हिप्पियों जैसा ही लगने लगा था । शुरुआत के तीन-चार दिन तो उसने भी अलसाये भाव से बीच पर लेटे रह कर ही गुजारे । उसने कुछ हिप्पी टोलों के साथ दोस्ती गांठ ली थी लेकिन परिचय अभी इतना गहरा नहीं हुआ था कि वह उनसे अपनी भारत से निकासी से सम्बन्धित कोई बात कर पाता ।
गोवा में वह स्वयं को बड़ा सुरक्षित पा रहा था इसलिये उसे कोई जल्दी भी नहीं थी । वैसे भी बड़े इत्मीनान का आलम था और जिन्दगी का आनन्द आ रहा था ।
उस दौर में उसे उस हिप्पी बाला मारग्रेट की बहुत याद आई, जिसके साथ दिल्ली से भोपाल जाते समय खजुराहो तक उसका गहरा संसर्ग रहा था । अपनी बेवफा पत्नी सुरजीत के बाद वह पहली औरत थी जिसके साथ उसने रति सुख की प्राप्ति की थी ।
चौथे दिन शाम ढल चुकने के बाद जब वह डोनापाल बीच से अपनी बीच बैग कंधे पर लटकाये अपने होटल को वापिस लौट रहा था तो एक घटना घटी जिसने उसके आने वाले दिनों का हुलिया ही बदल दिया ।
उस समय वह एक सुनसान रास्ते से गुजर रहा था । सड़क वहां से कोई पचास गज दूर थी । सड़क पर से एक बड़ी-सी कार गुजर रही थी । तभी एकाएक कार का इंजन घर्र-घर्र करने लगा और कार रुक गई । विमल ने एक उड़ती-सी निगाह कार की दिशा में डाली और पेड़ों के बीच में से गुजरता हुआ आगे बढ़ता रहा ।
तभी एक फायर हुआ ।
विमल की गर्दन फिरकनी की तरह उस तरफ घूम गई जिधर से फायर की आवाज हुई थी । उससे केवल दस गज दूर एक आदमी ऑटोमैटिक रायफल लिये कार को निशाना बना कर गोली चला रहा था । किसी अज्ञात भावना से प्रेरित होकर विमल बगोले की तरह उस आदमी पर झपटा था । उसके रायफल वाले के समीप पहुंचते-पहुंचते चार-पांच फायर और हुए और सभी जाकर कार से कहीं न कहीं टकराये ।
कार की तरफ से कोई जोर से चिल्लाया ।
रायफल का निशाना लगाने में मग्न उस व्यक्ति को इस बात का भान नहीं हुआ कि कोई उसके एकदम पीछे पहुंच गया था । विमल ने अपना बैग हवा में घुमाया ।
भारी बैग रायफल वाले की कनपटी से टकराया । रायफल उसके हाथ से निकल गई और वह जमीन पर लोट गया । नीचे गिरते ही वह तुरन्त सम्भला और अपने से थोड़ी दूर गिरी रायफल पर झपटा । विमल ने अपने जूते की नोक की भरपूर ठोकर उसकी पसलियों पर जमाई । रायफल वाला फिर रायफल से परे उलट गया । विमल ने फिर अपना बैग हवा में घुमाया । इस बार बैग उठने का उपक्रम करते हुये रायफल वाले की छाती से टकराया । उसके मुंह से हाय निकली । वह फिर पीछे को उलटा ।
वह आदमी विमल से दुगना नहीं तो डेढ़ गुना जरूर था । वह जानता था कि अगर उसे एक बार भी विमल पर आक्रमण करने का अवसर मिल गया तो वह उसकी चटनी बना देगा । इसलिये उसके लिये यह जरूरी था कि वह उसे सम्भलने का मौका न दे ।
विमल ने इस बार बैग को उसकी खोपड़ी का निशाना बनाकर घुमाया । लेकिन इस बार बैग उसकी खोपड़ी से नहीं टकराया बैग उस आदमी ने लपककर अपने दोनों हाथों में थाम लिया और उसे पकड़ कर जोर का झटका दिया । बैग की चमड़े की डोरियां विमल के हाथों से निकल गई और वह भरभरा कर रेत पर गिरा ।
जब वह सम्भला तो उसने देखा कि रायफल वाले के हाथ में चाकू था और वह आंखों में खून लिये उसकी तरफ बढ़ रहा था ।
विमल का कलेजा मुंह को आने लगा । वह सोचने लगा कि क्यों उसने खामखाह यह मुसीबत मोल ली ।
रायफल वाले का चाकू वाला हाथ हवा में लहराया ।
“खबरदार !” - एक चेतावनी भरी आवाज आई ।
रायफल वाला ठिठक गया । उसका चाकू वाला हाथ उठे का उठा रह गया ।
विमल ने आवाज की दिशा में देखा । उसके सामने लगभग पैंतीस साल का एक आदमी खड़ा था । उसने एक कीमती सूट पहना हुआ था । उसका चेहरा कठोर था और उसके हाथ में एक रिवॉल्वर दिखाई दे रही थी जिसका रुख चाकू वाले की तरफ था उसके पीछे शोफर की यूनीफॉर्म में एक भयभीत-सा आदमी खड़ा था । विमल कपड़े झाड़ता हुआ उठ खड़ा हुआ ।
“चाकू गिरा दो ।” - रिवॉल्वर वाले ने आदेश दिया ।
रायफल वाले ने तुरन्त चाकू गिरा दिया ।
रिवॉल्वर वाला उसके सामने आ खड़ा हुआ । वह कुछ क्षण गौर से उसे देखता रहा फिर उसका रिवॉल्वर वाला हाथ हवा में घूमा । रिवॉल्वर की नाल सामने खड़े आदमी के चेहरे से टकराई । उसकी दाईं आंख के नीचे से उसका गाल कट गया और उसमें से खून टपकने लगा ।
“कौन हो तुम ?” - रिवॉल्वर वाले ने प्रश्न कीया ।
रायफल वाले ने होंठों पर जुबान फेरी ।
“तुम्हें मुझ पर हमला करने के लिये किसने भेजा था ?”
रायफल वाले ने उत्तर नहीं दिया । उसने धीरे से अपने गाल पर ताजे बने जख्म को एक उंगली से छुआ ।
“तुम एल्बुर्क्क के आदमी हो ?”
एल्बुर्क्क के नाम पर उस आदमी की आंखों में एक विचित्र-सा भाव उभरा ।
एकाएक उसके मुंह से एक घरघराहट-सी निकली । वह एकदम घूमा और अंजाम की परवाह किये बिना बंदूक से छूटी गोली की तरह वहां से भागा ।
“रुक जाओ !” - रिवॉल्वर वाला चेतावनी-भरे स्वर में चिल्लाया - “वरना शूट कर दूंगा ।”
लेकिन रायफल वाले ने जैसे सुना ही नहीं । वह बगोले की तरह पेड़ों के बीच में से होता हुआ भाग रहा था ।
रिवॉल्वर वाले ने फायर किया ।
तभी भागता हुआ आदमी लड़खड़ाया, नीचे गिरा और फिर दोबारा नहीं उठा ।
“जाकर देखो उसे !” - रिवॉल्वर वाले ने शोफर को संकेत किया ।
शोफर उस आदमी की दिशा में भागा ।
विमल ने दूर गिरा अपना बैग उठा लिया ।
रिवॉल्वर वाला कुछ क्षण बड़ी गौर से विमल को देखता रहा फिर एकाएक उसके चहरे से कठोरता उड़ गई और उसका स्थान एक बड़ी मीठी मैत्रीपूर्ण मुस्कराहट ने ले लिया था ।
“थैंक्यू !” - वह बोला ।
विमल चुप रहा । वह नर्वस-सी मुद्रा बनाये उसके सामने खड़ा रहा ।
“तुमने अपनी जान का खतरा उठाकर उस आदमी पर आक्रमण किया था जो मेरा कत्ल करने की खातिर मेरी कार पर गोलियां चला रहा था । ऐसा क्यों किया तुमने ?”
“पता नहीं !” - विमल नर्वस भाव से बोला - “बस कर दिया । शायद मेरा दिल यूं किसी की जान जाती देखना गंवारा नहीं करता । मुझे नहीं मालूम था कार में कौन था । मुझे केवल इतना अनुभव हुआ था कि वह आदमी किसी की जान लेने जा रहा था । मेरे संस्कारों का यही सबक है कि जान इतनी सस्ती चीज नहीं कि यूं खामखाह चली जाने दी जाये ।”
“लेकिन इस चक्कर में तुम्हारी अपनी जान जा सकती थी ?”
“जा सकती थी । अगर वह आदमी अपनी इरादों में कामयाब हो गया होता । आप ऐन मौके पर न पहुंच गये होते तो शायद चली भी गई होती लेकिन उस वक्त मुझे यह सब नहीं सूझा था । उस वक्त इतना कुछ सोचने का वक्त नहीं था ।”
“आई सी ।”
विमल चुप रहा ।
“तुम मुझे जानते हो ?” - रिवॉल्वर वाले ने प्रश्न किया ।
“जी नहीं ।” - विमल बोला ।
“गोवा में नये मालूम होते हो ?”
“जी हां । तीन-चार दिन ही हुए हैं ।”
“तभी तो । वरना गोवा का बच्चा-बच्चा मुझे जानता है ।”
विमल चुप रहा ।
“मेरा नाम मैगुअल अल्फांसो है । मैं स्थानीय सोल्मर नाइट क्लब का मालिक का हूं ।” - उसने रिवॉल्वर जेब में रख ली और विमल की तरफ अपना हाथ बढ़ाया ।
विमल ने झिझकते हुए हाथ थाम लिया और बोला - “मुझे कैलाश मल्होत्रा कहते हैं ।”
तभी शोफर वापिस लौटा ।
“वह तो मर गया, साहब ।” - उसने बताया - “गोली उसकी पीठ में लगी थी और दिल से होकर गुजर गई थी ।”
“कमाल है !” - अल्फांसो बोला - “मेरे निशाने को क्या हो गया । मैंने तो उसकी टांग का निशाना बनाकर गोली चलाई थी ।”
“आपके निशाने को कुछ नहीं हुआ ।” - विमल बोला - “इत्तफाक से जब आपने गोली चलाई थी, तभी वह ठोकर खा गया था । इसीलिये गोली टांग में कहीं लगने की जगह उसकी पीठ में लग गई थी ।”
“बहरहाल मुझे अफसोस हुआ । वह जीवित रहता तो हम कम-से-कम यह तो जान पाते कि मेरी हत्या करने के लिये उसे किसने भेजा था ।”
“क्या यह जरूरी है कि उसे किसी ने भेजा ही हो ?”
“हां । जरूरी है । किसी के किराये का पिट्ठू ही अल्फांसो पर गोली चलाने का हौसला कर सकता है । मैं खूब जानता हूं कि यह काम किसके इशारे पर हुआ है । वह जीवित रहता तो वह खुद मेरे संदेह की पुष्टि करता ।” - फिर वह शोफर की ओर घूमा - “उसकी जेबें टटोलीं ? मालूम हुआ कि वह कौन था ?”
“मैंने उसकी बड़ी बारीकी से तलाशी ली थी, साहब ।” - शोफर बोला - “लेकिन कुछ मालूम नहीं हो सका था, साहब ।”
“नैवर माइंड !” - अल्फांसो बोला । विमल का हाथ अभी भी उसके हाथ में था - “आओ चलें ।”
“अब मैं इजाजत चाहूंगा ।” - विमल धीरे से बोला ।
“ओह नो ।” - अल्फांसो दृढ स्वर में बोला - “अभी इजाजत नहीं मिल सकती । आज रात तुम सोल्मर नाइट क्लब के मेहमान हो ।”
“लेकिन...”
“ओह, कम ऑन ।”
विमल उसके साथ खिंचा-खिंचा कार की तरफ बढ़ा ।
“उस आदमी का क्या होगा ?” - विमल ने पूछा ।
“कौन-सा आदमी ?” - अल्फांसो ने पूछा ।
“वही जो मर गया है ।”
“वह अब आदमी कहां है ! आदमी तो वह तब था जब जिंदा था और एक निगाह से हमारे काम का था ।”
विमल को यह बड़ा क्रूरतापूर्ण उत्तर लगा ।
शोफर उनके आगे-आगे कार की तरफ लपका जा रहा था । उसने कार के पास पहुंचकर उसका हुड उठाया और उसके भीतर झांकने लगा ।
विमल कार के समीप पहुंचा । उसे यह देखकर बड़ी हैरानी हुई कि न तो कार का कोई शीशा चटका था और न ही उसकी बॉडी में कहीं कोई छेद दिखाई दे रहा था जबकि उसने खुद देखा था कि रायफल वाले ने कम-से-कम पांच छः फायर किये थे ।
“यह कार खिड़कियों के शीशों और विंड स्क्रीन सहित बुलेटप्रूफ है ।” - अल्फांसो उसके चेहरे के भावों को पढकर बोला - “इस पर गोली का असर नहीं होता । आज यह बात किसी को मालूम होती तो यह रायफल वाला मुझे यूं गोली का निशाना बनाने न भेजा जाता ।”
“यानी कि मैं खामखाह ही उस पर झपटा ? आपका वैसे भी कुछ नहीं बिगड़ने वाला था ?”
“लेकिन यह बात तुम्हें मालूम थोड़े ही थी ? तुमने जो कुछ किया उसका महत्व यह कहकर नहीं घटाया जा सकता कि इस कार पर गोली का असर नहीं होता ।”
“लेकिन आपकी कार भी तो बड़ी नाजुक घड़ी में बिगड़ी ।”
“इत्तफाक की बात है ।”
तभी शोफर ने हुड गिराया ।
“जॉर्ज !” - अल्फांसो कठोर स्वर में बोला - “क्या हो गया था कार को ?”
“बैटरी के कनैक्शनों में नुक्स आ गया था, साहब !” - शोफर बोला ।
“कार को सही हालत में रखा करो । कल ही इसे सर्विस कराने के लिये लेकर जाओ ।”
“बहुत अच्छा साहब ।”
विमल और अल्फांसो कार की पिछली सीट पर सवार हो गये । शोफर स्टेयरिंग के पीछे पहुंच गया ।
“यह बढ़िया कार है ।” - अल्फांसो ने बताया - “यह पहला मौका है जब यह बीच रास्ते में खराब हुई है ।”
विमल चुप रहा ।
कार आगे बढ गई ।
कुछ क्षण बाद विमल ने महसूस किया कि अल्फांसो बड़ी गौर से उसे देख रहा था । विमल नर्वस भाव से अपनी जेबें टटोलने लगा ।
“मे आई स्मोक ?” - उसने झिझकते हुए पूछा ।
“शौक से !” - अल्फांसो बोला - “मैं सिगरेट पेश करता हूं ।”
और उसने अपनी जेब से सोने का सिगरेट केस निकाला ।
“मेरे पास पाइप है !” - विमल बोला ।
“गो अहैड दैन ।”
विमल ने अपने बीच बैग में से पाइप और तम्बाकू का पैकेट निकाला । उसने पाइप में तम्बाकू भरकर उसे सुलगा लिया । अल्फांसो ने भी एक सिगरेट सुलगा लिया ।
“गोवा में सैर करने आये हो ?” - अल्फांसो ने पूछा ।
“जी हां ।” - विमल सहज भाव से बोला ।
“वैसे कहां के रहने वाले हो ?”
“पंजाब का ।”
“काम क्या करते हो ?”
“आजकल तो कुछ नहीं करता । बेकार हूं ।”
“पहले क्या करते थे ?”
“पहले एक प्राइवेट कम्पनी में एकांउटैंट था ।”
“पंजाब में ही ?”
विमल एक क्षण हिचकिचाया और फिर बोला - “जी हां जालंधर में ।”
“उस नौकरी का क्या हुआ ?”
“छूट गई ।”
“कैसे ?”
“फर्म बन्द हो गई थी ।”
“यह कैलाश मल्होत्रा तुम्हारा असली नाम है ?”
विमल ने चौंककर अल्फांसो की तरफ देखा । अल्फांसो का चेहरा स्लेट की तरह साफ था । हे भगवान ! कहीं यह आदमी उसे पहचान तो नहीं गया था ।
“हां, हां” - विमल बोला - “क्यों पूछा आपने ?”
“मुझे लगा था जैसे अपना नाम बताते हुए तुम तनिक हिचके होवो ।”
“ऐसी कोई बात नहीं है । मेरा नाम कैलाश मल्होत्रा ही है ।”
“मैं तुम्हारे लिए कुछ कर सकता हूं ।”
“आप मेरे लिए बहुत कुछ कर सकते हैं । आप बड़े आदमी हैं । आप मुझे नौकरी दिला सकते हैं ।”
“गोवा में नौकरी कर लोगे ?”
“क्यों नहीं ? मैं कहीं भी नौकरी करने को तैयार हूं । गोवा हो या अंडेमान निकोबार । मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता ।”
अल्फांसो चुप हो गया ।
तभी गाड़ी एक कम्पाउंड में दाखिल हुई और एक विशाल तिमंजिली इमारत के सामने आकर रुकी ।
“आओ ।” - अल्फांसो बोला ।
विमल और अल्फांसो कार से बाहर निकले । ड्राइवर कार आगे बढ़ा ले गया ।
विमल ने देखा, इमारत के मुख्य द्वार पर एक बड़ा-सा नियोन साइन लगा हुआ था जिस पर लिखा था - सोल्मर नाइट क्लब !
वह अल्फांसो के साथ क्लब में दाखिल हुआ । अल्फांसो उसे एक बहुत बड़े, बहुत खूबसूरत बार में ले आया । हॉल की एक पूरी साइड में एक कोई पचास फुट लम्बा चमचमाता हुआ काउण्टर था । अल्फांसो उसे वहां ले आया । दोनों दो ऊंचे स्टूलों पर बैठ गये ।
“क्या पियोगे ?” - अल्फांसो ने पूछा ।
“जो आप पिलायेंगे ।” - विमल बोला ।
“वैरी गुड ।” - अल्फांसो बारटैंडर से सम्बोधित हुआ - “जॉन, दो ब्लडी मैरी ।”
“राइट अवे, सर ।”
जान ने फौरन जिन और टमाटर जूस की दो काकटेल तैयार करके उनके सामने पेश कर दी ।
दोनों ने जाम टकराये ।
तभी डिनर सूट पहने एक आदमी वहां पहुंचा ।
“यहा मेरा मैनेजर है - अल्बर्टो कोटीनो डिकास्टो फ्रांसिस । यह सारा नाम इसी का है ।” - अल्फांसो बोला - “चार आदमियों के चार नाम नहीं हैं ये । सहूलियत के लिए हम इसे केवल अल्बर्टो कहते हैं । और अलबर्टो, ये मिस्टर कैलाश मल्होत्रा हैं । आज इन्होंने वह काम किया है जो केवल एक बहादुर इन्सान ही कर सकता है ।”
“आप तो मुझे शर्मिन्दा कर रहे हैं ।” - विमल बोला ।
“ओह नो । तुमने काबिलेतारीफ काम किया था ।” - अल्फांसो बोला ।
“क्या हुआ था ?” - अल्बर्टो ने पूछा ।
अल्फांसो ने उसे सारी कहानी सुना दी ।
“यह जरूर उस हरामजादे एल्बुर्क्क का काम है ।” - सारी कहानी सुन चुकने के बाद अल्बर्टो क्रोधित स्वर में बोला ।
“मुमकिन है लेकिन हम यह बात सिद्ध नहीं कर सकते । अगर वह रायफल वाला मर न गया होता तो उससे बहुत कुछ कुबुलवाया जा सकता था ।”
“उसके अलावा और कोई आप पर आक्रमण करवाने की जुर्रत नहीं कर सकता था ।”
“ठीक है लेकिन यह सिद्ध भी तो नहीं किया जा सकता कि मुझ पर यह आक्रमण उसके इशारे पर हुआ था । बहरहाल एक काम तो तुम कर ही डालो । उस आक्रमणकारी की लाश को वहां से उठवाओ और हमारी शुभकामनाओं के साथ उसे एल्बुर्क्क के पास भेज दो । कम-से-कम उसे अपने आदमी के अंजाम की खबर तो हो जाये ।”
“ओके ।”
“घटनास्थल तक, जॉर्ज को कहना, तुम्हें ले जाये ।”
“ओ के ।”
“यह एल्बुर्क्क कौन है ?” - विमल ने पूछा ।
“अल्बर्ट” - अल्फांसो उसके प्रश्न पर ध्यान दिये बिना अल्बर्टो से सम्बोधित हुआ - “तुम कह रहे थे कि ऊपरली मंजिल की कैशियर आज से नौकरी छोड़कर जा रही है ।”
“जी हां । वह शादी कर रही है ।” - अल्बर्टो ने बताया ।
“उसकी जगह तुमने किसी दूसरे कैशियर का इन्तजाम कर लिया ?”
“अभी नहीं । लेकिन कल तक कर लूंगा । अभी आज का दिन तो वह ऊपर है ही ।”
“मल्होत्रा साहब को नौकरी की जरूरत है । उस कैशियर की जगह इन्हें रख लो ।”
अल्बर्टो ने संदिग्ध भाव से विमल की ओर देखा और फिर धीरे से बोला - “क्या यह उचित होगा ?”
“क्यों नहीं उचित होगा ?”
“मेरा मतलब है हम लोग अभी इन्हें ठीक से जानते नहीं । ऊपर के लिए तो जो भी कर्मचारी हो, जान-पहचान का होना चाहिए ।”
“उसकी तुम चिन्ता मत करो ।”
“फिर ठीक है । लेकिन इन्हें अपना हुलिया बदलना होगा । यह हिप्पीनुमा हुलिया ऊपर नहीं चलेगा ।”
“मैं बदल लूंगा ।” - विमल जल्दी से बोला ।
“ओ के दैन । मैं चलता हूं ।”
अल्बर्टो चला गया ।
“ऊपर की मंजिल पर क्या कोई खास बात है ?” - विमल ने झिझकते हुए पूछा ।
“तुम नहीं जानते सोल्मर नाइट क्लब की ऊपर की मंजिल पर क्या है ?” - अल्फांसो ने पूछा ।
“नहीं ।”
“कभी जिक्र भी नहीं सुना ?”
“नहीं । मुझे यहां आये तीन-चार दिन ही तो हुए हैं ।”
“ऊपर जुआघर है । गोवा का सबसे बड़ा । सबसे शानदार, सरासर गैरकानूनी लेकिन एकदम सुरक्षित । इस जुआघर को बरकरार रखने के लिए मैं सम्बन्धित अधिकारियों को बहुत तगड़ी रिश्वतें देता हूं । गोवा में ऐसे गैरकानूनी जुआघर दर्जनों की तादाद में हैं लेकिन सब ठाट से चलते हैं । बेईमान और रिश्वतखोर अधिकारियों की मेहरबानी से ।”
“आजकल भी ?”
“जी हां । आजकल भी ।”
“कमाल है ।”
“तुम्हें जुआघर में काम करने से कोई नैतिक एतराज तो नहीं ?”
“मुझे कहीं भी काम करने से कैसा भी कोई एतराज नहीं ।”
“गुड ।”
“एल्बुर्क्क कौन है ?” - विमल ने झिझकते हुए अपना प्रश्न दोहराया ।
“एन्थोनी एल्बुर्क्क गोवा का बहुत बड़ा दादा है ।” - अल्फांसो ने बताया - “गोवा में होने वाला कोई बड़ा गैरकानूनी धन्धा नहीं जिसमें उसका हाथ न हो । यहां कोई आदमी कैसा भी गैरकानूनी धन्धा एल्बुर्क्क की सरपरस्ती के बिना नहीं चला सकता - चाहे वह जुआघर हो, चाहे वह वेश्यालय हो, चाहे वह कोई स्मगलिंग ऑपरेशन हो । पुलिस और प्रशासन की मशीनरी के बड़े-बड़े उच्च अधिकारियों को उसने अपनी ओर मिलाया हुआ है । गोवा के जरायमपेशा वर्ग का वह बेताज बादशाह है । बम्बई के किसी बहुत बड़े माफिया मार्का अपराधियों के संस्थान का भी उसे सहयोग प्रात है इसलिए वह और भी ज्यादा अकड़ता गोवा में मैं अकेला शख्स हूं जो उसकी आर्गेनाइजेशन की छत्रछाया में आये बिना यह नाइट क्लब और जुआघर चला रहा हूं । ऐसा केवल इसलिए है क्योंकि मैं उनके हिमायतियों से ज्यादा बड़े लोगों को ज्यादा बड़ी रिश्वतें देने की क्षमता रखता हूं । आरम्भ में एल्बुर्क्क बहुत कुनमुनाया था, फुंफकारा था, कई बार हम दोनों के दलों में घमासान लड़ाई हुई । बहुत खून बहा । बहुत जानें गई लेकिन एल्बुर्क्क मुझे तोड़ नहीं पाया । बाद में लड़ाई, मार-काट का वह सिलसिला उसे मजबूरन बन्द कर देना पड़ा था क्योंकि ऊपर से यह दबाव पड़ा था कि रोज की मार-पीट से जनता में आक्रोश फैलता जा रहा था । अगर यह सिलसिला फौरन बन्द न हुआ तो मजबूरन तमाम सम्बन्धित व्यक्ति पकड़कर अन्दर कर दिये जायेंगे । उसके बाद आपातकालीन स्थ्‍िाति की घोषणा हो गई तो एल्बुर्क्क बिल्कुल ठंडा पड़ गया । अब काफी अरसे से कोई झगड़ा-फसाद नहीं हुआ । प्रत्यक्षत: मेरी उससे औपचारिक मेल-मुलाकात भी है । मैं यह समझने लगा था कि उसने भविष्य में मेरी ओर आंख उठाने का इरादा छोड़ दिया है । लेकिन आज की घटना से मुझे ऐसा लगता है कि अमन-शान्ति सब दिखावे की है । अपना प्रभुत्व सिद्ध करने के लिए भीतर से वह अभी भी मेरा सफाया ही करने की इच्छा रखता है । लगता है कि मैं हमेशा ही उसे कांटे की तरह खटकता रहूंगा ।”
“यह तो बड़ी वकट स्थ‍िति है । आपको तो हर क्षण अपनी आंखें खुली रखनी पड़ती होंगी ।”
“यही करता हूं । इसीलिये जिन्दा हूं ।”
विमल चुप रहा ।
“वैसे बजातेखुद एल्बुर्क्क मुझसे डरता भी है । ऊपरी तौर पर वह यही जाहिर करता है कि जो हो चुका, वह हो चुका, अब वह मेरा यार है लेकिन जब उसके बम्बई के बॉस लोग उसे डंडा दिखाकर कहते हैं कि गोवा के जरायमपेशा वर्ग में एकछत्र राज रखने के लिए मेरे जैसे स्वतन्त्र रूप से जुआघर चलाने वालों का सफाया होना जरूरी है तो उसे मजबूरन मेरे खिलाफ कदम उठाना पड़ता है । क्योंकि अगर वह अपने बम्बई के बॉस लोगों की हुक्मअदूली करेगा तो वे लोग उसी का सफाया कर देंगे ।”
“ओह !”
“वैसे सोल्मर नाइट क्लब का जुआघर सारे गोवा में प्रसिद्ध है । नगर में दर्जनों जुआघर हैं लेकिन यही एक ऐसी जगह है जहां जुआ पूरी ईमानदारी से होता है । इसलिए बड़े और प्रतिष्ठित लोग यहीं आना पसन्द करते हैं ।”
“हूं ।”
“एक-एक ब्लडी मैरी और हो जाये ?”
“क्या हर्ज है ?” - विमल बोला ।
उस रात कोई तीन बजे विमल वहां से विदा हुआ । अल्फांसो ने उसकी हद से ज्यादा खातिर की थी । बाद में उसने उसे जुआघर के भी दर्शन करवाये थे । जुआघर से ऊपर वाली मंजिल पर उसका और अल्बर्टो का आवास था । उन दोनों में नाम को ही मालिक और कर्मचारी का रिश्ता था । वास्तव में दोनों में भाइयों जैसा सौहाद्र था ।
***
अगली शाम को जब विमल सोल्मर नाइट क्लब पहुंचा तो अल्बर्टो ने एकबारगी तो उसे पहचाना ही नहीं । बाजार से उसने एक नया रैडीमेड सूट, नई कमीज, नई टाई और नये जूते खरीदे थे जो कि वह उस समय पहने हुए था । अपनी फ्रैंच कट दाढ़ी-मूंछ को उसने सलीके से तरशवा लिया था ।
अल्फांसो भी उसे देखकर बहुत खुश हुआ ।
“ब्रेवो” - वह प्रशंसात्मक स्वर में बोला - “यह हुई न बात । पहले क्या हुलिया बना रखा था तुमने ।”
विमल शरमाया ।
उसके बाद जुआघर में कैशियर के पिंजर में उसे स्थापित कर दिया गया । उसका काम था । दस रुपये से लेकर हजार रुपये तक की कीमत के प्लास्टिक के विभिन्न रंगों के गोलाकार टोकन उसकी कीमत के बदले में ग्राहकों को देना । जुए की हारजीत उन्हीं टोकनों से होती थी । बाद में जुआघर के टोकन कैशियर को वापस करके उससे नकद रुपये हासिल किये जा सकते थे ।
ग्यारह बजे तक जुआघर उच्च वर्ग के स्त्री-पुरुषों से खूब भर गया था । टोकनों की बिक्री से विमल सहज ही यह अनुमान लगा सकता था कि वहां बहुत ऊंचे दर्जे का जुआ होता था ।
उस मंजिल पर भी एक शानदार बार था लेकिन वहां मेहमानों को ड्रिंक्स फ्री सर्व की जाती थीं ।
अल्फांसो एक शानदार डिनर सूट पहने लोगों से अभिवादनों का आदान-प्रदान करता हुआ जुए की मेजों के बीच घूम रहा था ।
क्लब में आकर विमल को पता लगा था कि पिछली रात जिस आदमी ने अल्फांसो पर आक्रमण किया था, अल्बर्टो को उसकी लाश घटनास्थल पर नहीं मिली थी । वह अल्फांसो के शोफर जॉर्ज के साथ घटनास्थल पर पहुंचा था तो उसने लाश को वहां से गायब पाया था ।
एकाएक कैशियर के पिंजरे में रखे टैलीफोन की घंटी बजी । विमल ने फोन उठाया और बोला - “हैल्लो !”
“अल्फांसो साहब को बुलाओ ।” - उसे अल्बर्टो का स्वर सुनाई दिया ।
विमल ने काउन्टर खटखटाकर अल्फांसो का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया और हाथ में थमे टेलीफोन रिसीवर की ओर संकेत किया ।
अल्फांसो ने पास आकर रिसीवर ले लिया ।
“हैल्लो” - वह बोला - “अल्फांसो ।”
इयरपीस में से निकलती अल्बर्टो की आवाज विमल को भी सुनाई दी - “अल्बर्टो बोल रहा हूं । नीचे एल्बुर्क्क आया हुआ है । साथ में दो आदमी और लाया है । वह ऊपर जुआघर में आना चाहता था ।”
“क्यों ?”
“वजह वह आप ही को बतायेगा ।”
“कोई गड़बड़ ?”
“दिखाई तो नहीं देती ।”
“उसके साथ जो दो आदमी हैं, वे कौन हैं ?”
“एक तो उसका बॉडीगार्ड मारियो है । दूसरा कोई बाहर से आया हुआ आदमी है जिसे एल्बुर्क्क अपना दोस्त बता रहा है ।”
अल्फांसो कुछ क्षण सोचता रहा और फिर बोला - “आने दो ।”
उसने रिसीवर रख दिया और उन अप्रत्याशित मेहमानों की अगवानी के लिए लिफ्ट के सामने पहुंच गया ।
लिफ्ट का दरवाजा खुला और तीन आदमी बाहर निकले ।
एन्थोनी एल्बुर्क्क एक लगभग पचास साल का खलवाट खोपड़ी वाला सूरत से ही कमीना लगने वाला आदमी था । उसका शरीर लम्बा-चौड़ा जरूर था लेकिन थुलथुल था । तोंद तो उसकी बहुत ज्यादा बड़ी थी । उसकी भवें भारी थीं । और आंखों के नीचे मांस की थैलियां सी लटक रही थीं । वह एक सफेद रंग का ढीला-सा लेकिन कीमती सूट पहने हुए था ।
उसका बॉडीगार्ड मारियो एक गठीले शरीर वाला नौजवान था लेकिन अक्ल से एकदम कोरा मालूम होता था ।
तीसरे व्यक्त‍ि को देखकर अल्फांसो के नेत्र तनिक सिकुड़ गये । वह एक दुबला-पतला लेकिन काफी लम्बा आदमी था । उसका चेहरा एकदम भावहीन था लेकिन आंखें चेहरे से भी ज्यादा भावहीन थीं । वे पत्थर की तरह बेहिस मालूम होती थीं । उसके जबड़े मजबूत थे और होंठ पतले थे । उसके हाथों की उंगलियां पतली और असाधारण रूप से लम्बी थीं । अल्फांसो ऐसे आदमियों की जात को पहचानता था । वह आदमी निश्चय ही कोई पेशेवर हत्यारा था ।
लेकिन अल्फांसो ने अपने मन के भाव अपने चेहरे पर प्रकट नहीं होने दिये । उसने मुस्कराते हुए एल्बुर्क्क से हाथ मिलाया और बोला - “वैलकम । वैलकम । आज तो चींटी के घर भगवान आ गये ।”
“हल्लो” - एल्बुर्क्क बोला - “मेरे दोस्त से मिलो । मिस्टर छौगुले बम्बई से आये हैं । और छौगुले, ये हैं इस क्लब के मालिक मिस्टर मैगुअल अल्फांसो ।”
अल्फांसो ने छौगुले से हाथ मिलया । छौगुले की उंगलियों की पकड़ असाधारण रूप से मजबूत थी ।
“मिस्टर छौगुले जुआ खेलना चाहते थे” - एल्बुर्क्क बोला - “मैं जुए के लिए इन्हें अपने तीन क्लबों में से किसी में लेकर जाता तो और ये वहां हार जाते तो ये समझते कि एल्बुर्क्क ने उन्हें ठग लिया ।” - और उसने यूं अट्टाहस किया जैसे उसने कोई भारी मजाक की बात कही हो - “इसलिए मैंने सोचा कि मैं इन्हें सोल्मर क्लब लेकर चलता हूं । शायद तुम हमें यहां घुस आने की इजाजत दे दो ।”
“यहां तुम्हारा हमेशा स्वागत है, एल्बुर्क्क ।” - अल्फांसो बोला । उसने चुटकी बजाई । ड्रिंक्स की एक ट्रे उठाकर मेहमानों में फिरती एक वेट्रेस तुरन्त वहां पहुंची । अल्फांसो ने सबको ड्रिंक्स सर्व की और बोला - “यह स्कॉच है । किसी और ड्रिंक में दिलचस्पी हो तो बारटेण्डर से कह दीजिएगा ।”
“जरूर ।” - एल्बुर्क्क बोला ।
“आइये मैं आप लोगों को कैशियर के पास ले चलूं ।”
“खेलना केवल छौगुले ने है” - एल्बुर्क्क बोला - “मैं तो खेल का नजारा करने आया हूं ।”
“आप आइये, मिस्टर छौगुले ।”
छौगुले अल्फांसो के साथ हो लिया । अल्फांसो उसे कैशियर के पिंजरे के पास ले आया । छौगुले ने जेब से सौ-सौ के नोटों की गड्डी निकाली और खिड़की में से कैशियर की तरफ बढाई ।
छौगुले पर निगाह पड़ते ही विमल के चेहरे का रंग उड़ गया । उसके नेत्रों में आतंक की छाया तैर गई, बड़ी कठिनाई से उसने स्वयं को संभाला ।
छौगुले का ध्यान विमल की तरफ कतई नहीं मालूम होता था ।
लेकिन अल्फांसो बड़ी गौर से विमल के चेहरे के बदलते भावों को देख रहा था ।
विमल ने नोट गिनकर उनके बदले में छौगुले को टोकन दिये । छौगुले वहां से हटकर जुए की एक मेज की तरफ बढ गया ।
“क्या बात है, कैलाश ?” - अल्फांसो ने समीप आकर विमल से पूछा ।
“ज- जी-जी कुछ नहीं ।” - विमल हड़बड़ाकर बोला ।
“इस आदमी को देखकर तुम्हारे चेहरे का रंग क्यों उड़ गया था ?”
“ज- जी- जी, कुछ नहीं... नहीं तो ।”
“तुम अभी भी घबराये हुए हो ।”
“अल्फांसो साहब, मेरी आपसे प्रार्थना है कि आप मुझे यहां से जाने की इजाजत दे दें । अभी । इसी वक्त ।”
“और कैशियर मैं खुद बन जाऊं । है न ?”
“मैं माफी चाहता हूं । मैं...”
“बात क्या है ? कुछ कहो भी तो ।”
“बात मेरी एक निजी मुसीबत से सम्बन्धित है जिसका अंग मैं आपको नहीं बनाना चाहता ।”
“ओह, कम ऑन । तुमने मुझे बिना जाने-पहचाने मेरी मुसीबत में मेरी मदद की । मैं तुम्हें जानते-बूझते तुम्हारी कोई मदद नहीं करूंगा ?”
“लेकिन साहब...”
“अब कह भी चुको ।”
“लेकिन...”
“देखो मेरे सब्र का इम्तहान मत लो । और कुछ नहीं तो तुम मेरे कर्मचारी तो हो ही । तुम्हारा मालिक होने के नाते तुम्हारे हिताहित की चिन्ता करना मेरा फर्ज है, खास तौर से तब जबकि तुम ड्यूटी पर हो ।”
“आप जानते हैं यह आदमी कौन है ?”
“एल्बुर्क्क का कोई दोस्त है । बम्बई से आया है । छौगुले नाम है ।”
“आपने विशम्बरदास नारंग का नाम सुना है ?”
“उसका नाम किसने नहीं सुना ? बहुत बड़ा दादा है । बहुत बड़ा स्मगलर है । कई खून कर चुका है । लेकिन कभी पकड़ा नहीं गया ! बम्बई के जरायमपेशा वर्ग का वह बेताज बादशाह है । गोवा तक उसका दबदबा है । खुद एल्बुर्क्क उससे डरता है ।”
“यह आदमी उसी नारंग का दायां हाथ है । मैं इसे रणजीत के नाम से जानता हूं ।”
“रणजीत !” - अल्फांसो चौंका - “मेरा यह नाम भी सुना हुआ है । वह तो नारंग का जल्लाद है । कई कत्ल कर चुका है । यह है वह आदमी ?”
“जी हां । और यहां मेरा भी कत्ल ही करने आया है ।”
“क्यों ?”
“यह एक लम्बी कहानी है ।”
“ठीक है । तुम्हारी कहानी मैं बाद में सुनूंगा । फिलहाल तुम इत्मीनान से बैठो और बिल्कुल मत डरो । जब तक मैगुअल अल्फांसो जिन्दा है, सोल्मर नाइट क्लब के किसी कर्मचारी का बाल भी बांका नहीं हो सकता ।”
और अल्फांसो वहां से हट गया
उसने देखा रणजीत छौगुले जुए की एक मेज पर जम गया था । प्रत्यक्षत: विमल में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई दे रही थी । टोकन लेने के बाद से उसने एक बार भी उसकी दिशा में सिर उठाकर नहीं देखा था ।
एल्बुर्क्क अपने बॉडीगार्ड के साथ सारे हॉल में घूम रहा था और हर मेज पर होते जुए को बड़ी गौर से देख रहा था । शायद वह वहां लग रहे दावों की तुलना अपने जुआघरों से कर रहा था ।
कोई एक घंटे बाद रणजीत मेज से उठ गया । उसने अपने सारे टोकन विमल को वापस करके नगद रुपये ले लिए ।
दूर से अल्फांसो यह न जान सका कि रणजीत जीता था या हारा था ।
एल्बुर्क्क और मारिया उसके पास पहुंच गये ।
“बस ?” - अल्फांसो ने पास आकर पूछा ।
“हां” - एल्बुर्क्क बोला - “मेहमाननवाजी का शुक्रिया ।”
“चलो, तुम लोगों को नीचे तक छोड़ आऊं ।”
“अरे नहीं, तकलीफ न करो । हम चले जायेंगे ।”
“तकलीफ कैसी ? और फिर इतने बड़े क्लब में तुम रास्ता भूल गये तो ?”
एल्बुर्क्क ने जोर का अट्टहास किया । लेकिन हंसी का वह भाव उसकी आंखों से नहीं झलका ।
अल्फांसो उन तीनों को लेकर लिफ्ट पर सवार हुआ । लिफ्ट ग्राउंड फ्लोर पर पहुंची ।
वह एक विशेष प्रकार की लिफ्ट थी । अपनी मंजिल पर पहुंचने के बाद उसका दरवाजा अपने-आप ही खुलता था । दरवाजा खोलने के लिए पैनल में लगा एक विशेष बटन दबाना पड़ता था । लिफ्ट का दरवाजा भी विशेष प्रकार का था । उसमें से भीतर से बाहर तो देखा जा सकता था लेकिन बाहर से भीतर नहीं झांका जा सकता था । बाहर से देखने वाले को यह भी नहीं मालूम होता था कि वहां कोई लिफ्ट थी ।
अल्फांसो ने लिफ्ट का दरवाजा खींचा । वे सब बाहर निकले । अल्फांसो उनको क्लब के मुख्य द्वार तक छोड़कर आया । वहां उसने किसी से हाथ नहीं मिलाया केवल हाथ हिलाकर उसने उनका अभिवादन किया ।
अल्फांसो वापस लौटा ।
उसे बार के पास अल्बर्टो खड़ा दिखाई दिया ।
“अल्बर्टो” - वह उसके समीप आकर बोला - “अगर एल्बुर्क्क का दोस्त भविष्य में कभी यहां फिर आये - अकेला या एल्बुर्क्क के साथ भी - तो उसे ऊपर मत जाने देना ।”
“वजह ?”
“वह रणजीत है । नारंग का जल्लाद ।”
“ओह ! तभी एल्बुर्क्क उसके लिए इस कदर बिछा जा रहा था ।”
“हां । वह ‘मुझे प्यार करो, मेरे कुत्ते को भी प्यार करो’ वाली मिसाल को मानने वाला आदमी है । नारंग को खुश करने के लिए वह उसके किसी चमचे को भी खुश रखना फर्ज समझता है ।”
“वह उसे यहां क्यों लाया ?”
“कहता तो है तफरीह के लिए । लेकिन वजह कोई और ही दिखाई देती है । तुम बार बन्द होने के बाद ऊपर मेरे पास आना ।”
“बेहतर ।”
अल्फांसो वापस जुआघर में आ गया ।
“वह जीता था या हारा था ?” - उसने विमल के समीप आकर पूछा ।
“जीता था ।” - विमल ने उत्तर दिया - “चार हजार रुपये ।”
“बास्टर्ड !” - अल्फांसो मुंह बिगाड़कर बोला - “तुम पहले भी वही हिप्पीनुमा हुलिया बनाकर रखते थे जिसमें मैंने तुम्हें कल देखा था ?”
“दाढी मूंछ तब भी रखता था । लेकिन कपड़े वैसे नहीं पहनता था ।” - विमल ने उत्तर दिया ।
“तुम्हारे उस हुलिये में और मौजूदा हुलिये में तो काफी फर्क है । उसने तो केवल एक बड़ी संक्षिप्त, सरसरी निगाह तुम पर डाली थी और फिर दोबारा तुम्हारी तरफ झांका तक नहीं था । शायद वह इत्तफाक से ही यहां आ गया हो । शायद उसने तुम्हें पहचाना ही न हो ।”
“शायद ।”
“आखिर उसे कैसे पता लग सकता है कि कोई व्यक्ति-विशेष उसे यहां मिलेगा ।”
विमल चुप रहा । लेकिन उसका दिल नहीं मान रहा था कि रणजीत वहां इत्तफाक से ही आ गया था ।
“खैर, जो चक्कर होगा, बाद में सामने आ जायेगा । हम इस बारे में क्लब बन्द होने के बाद बात करेंगे । घर जाने से पहले मेरे ऑफिस में आना ।”
विमल ने सहमतिपूर्वक ढंग से सिर हिलाया ।
***
क्लब बन्द होने के समय से कोई आधा घंटा पहले अल्फांसो दूसरी मंजिल पर स्थित अपने आवास में गया । वहां उसने एक हल्का-सा ओवरकोट पहना और सिर पर चौड़े किनार वाला हैट रखा । उसने ओवरकोट के कॉलर ऊंचे कर लिए और हैट को सामने से आंखों तक झुका लिया ।
वह लिफ्ट द्वारा नीचे पहुंचा ।
अल्बर्टो की प्रश्नसूचक निगाहों की ओर ध्यान दिये बिना वह पिछवाड़े के रास्ते से इमारत से बाहर निकल गया । उधर रोशनी के लिये केवल एक ही बल्ब जल रहा था जो दरवाजे के ऊपर लगा हुआ था । राहदारी से पार कार पार्क था । वहां दरवाजे के ठीके सामने एक एम्बैसेडर कार खड़ी थी जिसके स्टेयरिंग के पीछे उसे एक उकडू-सा बैठा आदमी साफ दिखाई दिया । उस कार की बगल में उसकी अपनी बुलेटप्रूफ कार खड़ी थी । वह लम्बे डग भरता हुआ अपनी कार की ओर बढा । बगल की कार में बैठे आदमी की ओर ध्यान दिये बिना वह अपनी कार में सवार हुआ और उसे ड्राइव करता हुए पार्किंग से बाहर आया । इमारत का घेरा काटकर वह उसके अग्रभाग में पहुंचा । वहां क्लब के मुख्य द्वार के सामने भी कुछ कारें खड़ी थीं । उनमें से एक कार में उसे रणजीत का भावहीन, पतला चेहरा दिखाई दिया । उसने कार को आगे बढाया और इस बार इमारत दूसरी साइड से घेरा काटकर फिर वहीं पहुंच गया जहां से वह चला था । उसने कार को पहले वाले स्थान पर फिर खड़ा कर दिया और कार से बाहर निकल कर, बगल की कार में बैठे आदमी की तरफ निगाह उठाये बिना आगे बढ़ा और पिछले दरवाजे से फिर इमारत में दाखिल हो गया ।
वह जुआघर में पहुंचा और सीधा अपने ऑफिस में जा बैठा ।
सदा की तरह दो बजे जुआघर बंद हो गया और हॉल खाली हो गया ।
जिस वक्त विमल अल्फांसो के ऑफिस में पहुंचा, उस वक्त वहां अल्बर्टो भी मौजूद था ।
“बैठो ।” - अल्फांसो ने आदेश दिया ।
विमल झिझकता हुआ अल्बर्टो की बगल में एक कुर्सी पर बैठ गया ।
“तुम्हारा संदेह सही है ।” - अल्फांसो बोला - “रणजीत छौगुले ने तुम्हें पहचान लिया है । वह क्लब के बाहर बैठा तुम्हारी यहां से निकलने की प्रतीक्षा कर रहा है । उसका एक आदमी पिछवाड़े में भी तैनात है ।”
“किस्सा क्या है ?” - अल्बर्टो बोला - “कुछ मुझे भी तो बताओ ।”
“फिलहाल खुद मुझे नहीं मालूम । कैलाश का कहना है कि रणजीत उसका कत्ल करने ही गोवा आया है । मुझे इसका कथन सच लग रहा है । अब यह यही बतायेगा कि नारंग इसका कत्ल क्यों करना चाहता है ।”
“सान्ता मारिया !” - अल्बर्टो बड़बड़ा कर बोला - “अगर इस आदमी की नारंग से कोई अदावत है तो हमें सारे बखेड़े से अलग ही रहना चाहिए । हम नारंग से बैर मोल नहीं सकते ।”
“क्या करना चाहिए हमें ?” - अल्फांसो व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला - “इसे यहां से बाहर निकाल देना चाहिए, ताकि वे लोग इसे गोली से उड़ा दें ?”
“मेरा मतलब यह नहीं था ।” - अल्बर्टो हड़बड़ाकर बोला ।
“तो क्या मतलब था तुम्हारा ?”
“मुझे नहीं मालूम । मैं पागल हूं । यूं ही भौंकता रहता हूं ।”
“कैलाश ।” - अल्फांसो की तरफ घूमा - “अब तुम शुरु करो क्या किस्सा है ।”
विमल ने एक गहरी सांस ली और बोला - “कुछ दिन पहले अखबार में बम्बई के एक नामी वकील और भूतपूर्व संसद सदस्य की हत्या का समाचार छपा था । आपने पढा था ?”
“हां” - अल्फांसो बोला - “ठाकरे और दामले नामक दो अन्य व्यक्‍तियों की हत्या के साथ उस वकील की भी हत्या की खबर छपी थी जिसका नाम शायद त्रिलोकीनाथ था । अखबार में यह भी छपा था कि त्रिलोकीनाथ का एक क्लर्क बड़े रहस्यपूर्ण ढंग से गायब हो गया था । पुलिस की धारणा है कि उसकी भी हत्या हो गई है लेकिन लाश बरामद नहीं हो सकी है ।”
“त्रिलोकीनाथ का वह क्लर्क मैं हूं ।”
“ओह ! तुम भागे क्यों थे ?”
“क्योंकि रणजीत वहां भी मेरा कत्ल करने पहुंच गया था । मैं तो तकदीर से ही बच निकलने में कामयाब हो गया था ।”
“चक्कर क्या है ? सारी कहानी सुनाओ ।”
विमल ने बड़ी शराफत से त्रिलोकीनाथ और नारंग के झगड़े और बाद में त्रिलोकीनाथ द्वारा लिखे बयान की सारी कहानी कह सुनाई ।
“हूं ।” - सारी कहानी सुन चुकने के बाद अल्फांसो बोला - “ज्यों ही उन्हें यह मालूम हुआ कि बयान पर गवाह के रूप में तुम्हारे हस्ताक्षर थे और तुमने बयान को पढा था, उन्हें तुम्हारा कत्ल करना जरूरी लगने लगा ?”
“हां ।” - विमल कठिन स्वर में बोला ।
“तुम पुलिस के पास क्यों नहीं गये ?”
विमल पुलिस के पास न जाने की असली वजह तो बता नहीं सकता था, वह इशितहारी मुजरिम था । पुलिस के पास जाकर उसने मरना था । प्रत्यक्षत: वह बोला - “मैं इतना ज्यादा डर गया था कि भाग निकलने के अलावा उस वक्त मुझे कुछ सूझा ही नहीं । बाद में जब मैं सुरक्षित गोवा पहुंच गया तो मैंने इस बारे में अपनी जुबान बंद रखना ही मुनासिब समझा ।”
“लेकिन रणजीत तुम्हारे पीछे-पीछे यहां भी पहुंच गया ।” - अल्बर्टो बोला ।
“अल्बर्टो” - अल्फांसो गम्भीर स्वर में बोला - “रणजीत का इसके पीछे गोवा पहुंच जाना तो समझ में आता है लेकिन यह बात सरासर मेरी समझ से बाहर है कि उसे यह कैसे मालूम हुआ कि जिस आदमी को वह तलाश कर रहा है, वह सोल्मर नाइट क्लब में उपलब्ध है ?”
अल्बर्टो सोच में पड़ गया ।
“कैलाश अपनी वर्तमान और हिप्पीनुमा दोनों सूरतों में क्लब में देखा गया है । जरूर क्लब के ही किसी कर्मचारी ने यह यह बात बाहर तक पहुंचाई है कि फलां हुलिए वाला आदमी यहां है जो कि आजकल फलां हुलिए में है ।”
“यह असम्भव है ।” - अल्बर्टो विरोधपूर्ण स्वर में बोला - “क्लब के सारे कर्मचारी हमारे परखे हुए हैं और शर्तिया ईमानदार और स्वामी-भक्त हैं ।”
“आज के जमाने में इन्सान की नीयत बदलते पता नहीं लगता । अल्बर्टो, सब को फिर से टटोलो । जरूर हमारा ही कोई आदमी दुश्मन भेदिया बन गया है । उसे तलाश करके उसे ऐसी कड़ी सजा दो कि औरों को सबक मिले ।”
“ओके, बॉस ।”
“और तुम” - वह विमल की ओर घूमा - “और कुछ भी हो, इस वक्त क्लब के कर्मचारी हो । अपना वर्तमान दबदबा बरकरार रखने के लिये यह जरूरी है कि किसी की मेरे किसी भी कर्मचारी की तरफ आंख उठाने की हिम्मत न हो । क्योंकि जो आंख आज मेरे किसी कर्मचारी की तरफ उठ सकती है, वह कल मेरी तरफ भी उठ सकती है । इसलिये मेरे अपने हित के लिए यह जरूरी है कि तुम पर आंच न आये ।”
विमल हैरानी से उसका मुंह देखने लगा । वह कुछ न बोला ।
“अल्बर्टो” - अल्फांसो बोला - “विमल आज रात यहीं रहेगा । ऊपर इसके लिये एक कमरा ठीक करवा दो ।”
“यस, बॉस ।” - अल्बर्टो तत्पर स्वर में बोला ।
“जाओ ।” - उसने विमल को आदेश दिया ।
“लेकिन अल्फांसो साहब” - विमल ने विरोध किया - “मैं नहीं चाहता कि मेरी वजह से आप किसी बखड़े में फंसे । क्या यह अच्छा नहीं होगा...”
“जो कहा वह करो ।” - अल्फांसो कर्कश स्वर में बोला ।
“यस सर ।” - विमल सकपका कर बोला और उठ खड़ा हुआ ।
अल्बर्टो उसे साथ लेकर ऑफिस से बाहर निकल गया ।
अल्फांसो ने मेज का एक दराज खोलकर एक रिवॉल्वर निकाली और ओवरकोट की जेब में रख ली । फिर वह अपने स्थान से उठा और ऑफिस से बाहर निकल गया ।
जुआघर बंद हो जाने के बाद ऊपर की दोनों मंजिलें इस प्रकार सील कर दी जाती थीं कि तोप का गोला ही उनमें रास्ता बना सकता था । उसने चाबी लगाकर लिफ्ट का दरवाजा खोला और भीतर दाखिल हुआ । लिफ्ट नीचे पहुंची । नीचे का दरवाजा भी उसे चाबी लगाकर खोलना पड़ा क्योंकि जुआघर बंद हो जाने के बाद वहां लिफ्ट के दरवाजे पर मोटी इस्पात की चादर का बना एक और दरवाजा चढ जाता था । उस लिफ्ट की वैसी केवल दो चाबियां थीं । उनमें से एक अल्फांसो के पास थी और दूसरी अल्बर्टो के पास । नीचे बार भी बंद हो चुका था । अधिकतर कर्मचारी जा चुके थे । जो रह गए थे, वे भी जाने की तैयारी कर रहे थे ।
वह पिछले दरवाजे से इमारत से बाहर निकला । उसने देखा अब अधिकतर कारें वहां से जा चुकी थीं । पहले देखी अम्बैसेडर कार और अल्फांसो की बुलेट प्रूफ कार के अलावा वहां तीन-चार कारें ही और मौजूद थीं ।
वह अपनी कार की ओर बढा । अपनी कार के समीप पहुंच कर भी उसने बगल की कार वाले की तरफ कतई ध्यान नहीं दिया । उसने बड़ी लापरवाही से अपनी कार के समीप जाकर उसका उस आदमी की तरफ वाला दरवाजा खोला । भीतर घुसने का उपक्रम करते समय उसका हाथ धीरे से ओवरकोट की जेब में सरक गया । एकाएक वह वापिस घूमा, उसका हाथ रिवॉल्वर लिए ओवरकोट से बाहर निकला और अगले ही क्षण एम्बैसेडर में बैठे आदमी ने स्वयं को एक रिवॉल्वर की नाल में झांकते हुए पाया ।
उसने धीरे से हाय बढाकर एम्बैसेडर का दरवाजा खोला और दबे स्वर में बोला - “चुपचाप बाहर निकल आओ । कोई शरारत न हो ।”
वह आदमी हक्का-बक्का सा उसका मुंह देखने लगा । अल्फांसो ने रिवॉल्वर उसके माथे से सटाई और हाथ बढाकर उसका शरीर थपथपाया । उसके कोट की दाईं जेब से उसने एक भारी रिवॉल्वर निकाली और उसे अपनी कार की ओर उछाल दिया ।
वह आदमी बिना अल्फांसो के ऐसा कहे ही अपने हाथ अपने कंधों से ऊपर उठाये कार से बाहर निकला । वह एक मोटा-सा, ठिगना-सा आदमी था ।
अल्फांसो ने अपनी रिवॉल्वर अपनी जेब में डाल ली और उसे देखकर मुस्कराया ।
“क्या नाम है तुम्हारा ?” - उसने पूछा ।
नाम बताने के स्थान पर वह हैरानी से उसका मुंह देखने लगा । फिर उसने बिजली की फुर्ती से एक प्रचंड घूंसा अल्फांसो के जबडे़ का निशाना बना कर चलाया ।
अल्फांसो ने बड़ी सहूलियत से वार बचा लिया और साथ ही जैसे जादू के जोर से रिवॉल्वर फिर उसके हाथ में प्रकट हो गई और उसकी नाल मोटे के पेट में चुभने लगी । वह यूं हैरान परेशान अल्फांसो का मुंह देखने लगा जैसे जो कुछ वह देख रहा हो उसे उस पर विश्वास न आ रहा हो ।
“यह रिवॉल्वर कितनी फुर्ती से मेरी जेब से निकलकर मेरे हाथ में प्रकट हो सकती है, इसका नमूना मैंने अभी तुम्हारे सामने पेश किया है ।” - अल्फांसो सहज स्वर में बोला - “तुमने ठीक से देख लिया कि मैं क्या कर सकता हूं ?”
वह आदमी कुछ न बोला । वह अपने होंठों पर जुबान फेरता रहा ।
अल्फांसो ने रिवॉल्वर वापिस अपनी जेब में रख ली ।
“यह नमूना मैंने इसलिए पेश किया है क्योंकि अभी मैं तुम्हारे साथ सामने सड़क पर जाने वाला हूं । वहां रात के इस समय भी आवाजाही रहती है । मैं नहीं चाहता कि लोग मेरे हाथ में रिवॉल्वर देखें । साथ ही मैं यह भी नहीं चाहता कि तुम इस गलतफहमी में रहो कि रिवॉल्वर मेरे हाथ में न पाकर तुम मुझ पर आक्रमण कर सकते हो या भाग खड़े हो सकते हो । अगली बार मैं रिवॉल्वर की नाल तुम्हारे पेट में चुभोऊंगा नहीं बल्कि तुम्हारा भेजा उड़ा दूंगा । समझ गए ?”
उस आदमी ने जल्दी-जल्दी सहमतिसूचक ढंग से फिर हिलाया ।
“नाम क्या है तुम्हारा ?”
उसने उत्तर नहीं दिया ।
“कोई बात नहीं मैं तुम्हें मोटू के नाम से पुकारूंगा । यह नाम तुम्हारे व्यक्तित्व से मेल भी खाता है । आगे बढो, मोटू ।”
उसने तुरन्त आज्ञा का पालन किया ।
दोनों अगल-बगल आगे बढे । मोटू रह-रहकर कनखियों से उसे देख लेता था । लेकिन जिस बला की फुर्ती से वह अल्फांसो को जेब से रिवॉल्वर निकालते देख चुका था, उसको ध्यान में रखते हुए इच्छा होते हुये भी उसका कोई शरारत करने का हौसला नहीं हो पा रहा था ।
“हमारा लक्ष्य क्लब के सामने खड़ी वह कार है” - अल्फांसो उसे समझाता हुआ बोला - “जिसमें रणजीत बैठा है । तुम उसकी कार का दरवाजा खोलोगे और कहोगे - रणजीत, मुझे वह आदमी आज क्लब से बाहर निकलता दिखाई नहीं देता - यह फिकरा अच्छी तरह याद करो । इसके अलावा तुम्हारे मुंह ने एक अक्षर भी निकला तो तुम्हारा भेजा खोपड़ी में से निकलकर सड़क पर बिखरा पड़ा होगा । समझ गये ?”
मोटू ने हामी भरी ।
“उसके बाद तुमने कार में घुसकर रणजीत की बगल में बैठ जाना है ओके ?”
उसने फिर सिर हिलाया ।
वे आगे बढते रहे । मोड़ काटकर वे इमारत के सामने वाले भाग में पहुंच गये । वे इस प्रकार रणजीत की कार की तरफ बढ़े कि कार का पृष्ठ भाग उनकी तरफ था । जब वे कार से कोई आठ-दस कदम परे रह गये तो अल्फांसो ठिठक गया । उसने मोटू को आगे बढते रहने का संकेत किया ।
मोटू झिझकता हुआ आगे बढा । कार के समीप पहुंच कर उसने स्टेयरिंग से परे वाला अगला दरवाजा खोला और खोखले स्वर में बोला - “रणजीत, मुझे वह आदमी आज क्लब से बाहर निकलता दिखाई नहीं देता ।”
“बेवकूफ” - रणजीत का फुंफकार भरा स्वर सुनाई दिया - “तुझे वहां से हिलने के लिये किसने कहा था । तुझे तो...”
बाकी के शब्द उसके मुंह में ही रह गये । तक तक अल्फांसो कार का पिछला दरवाजा खोलकर कार में घुस आया था और उसने रिवॉल्वर रणजीत की खोपड़ी पर तानी हुई थी । मोटू असहाय भाव से कंधे झटकता हुआ कार में रणजीत की बगल में आ बैठा और उसने कार का दरवाजा बंद कर लिया ।
“अपनी रिवॉल्वर नाल की तरफ से पकड़ कर पीछे मेरी तरफ बढा दो ।” - अल्फांसो ने आदेश दिया ।
रणजीत ने अनिच्छापूर्ण ढंग से गोद में रखी रिवॉल्वर उठाई और उसे अल्फांसो के आदेशानुसार पीछे को बढा दिया ।
अल्फांसो ने रिवॉल्वर ले ली और फिर शरीर को अच्छी तरह थपथपाकर यह तसल्ली कर ली कि उसके पास कोई और हथियार नहीं था ।
“मांडवी होटल का रास्ता जानते हो ?” - अल्फांसो ने सवाल किया ।
रणजीत ने सहमति में सिर हिलाया ।
“चलो ।”
रणजीत ने कार आगे बढा दी ।
“मोटू” - रास्ते में अल्फांसो बोला - “होटल पहुंचने से पहले ही अपने उस्ताद को मेरी रिवॉल्वर के बारे में समझा दो । मैं होटल की लॉबी में तुम दोनों की पीठ पर रिवॉल्वर ताने नहीं दाखिल होना चाहता ।”
“रणजीत !” - मोटू तनिक हड़बड़ाये स्वर में बोला - “यह आदमी पलक झपकाने से भी ज्यादा तेज रफ्तार से रिवॉल्वर निकालकर हाथ में ले सकता है । रिवॉल्वर इसके हाथ में न पाकर कोई गलत हरकत मत कर बैठना । हम दोनों मारे जायेंगे ।”
“शाबाश !” - अल्फांसो प्रशंसात्मक स्वर में बोला ।
कार मांडवी नदी के किनारे पर बने उसी नाम के शानदार होटल के सामने पहुंची ।
अल्फांसो ने पहले उन दोनों को कार से उतर जाने दिया । फिर उनके पीछे वह भी कार से निकला । रिवॉल्वर उसने फिर अपने ओवरकोट की जेब में डाल ली थी । वह उनसे कोई एक गज पीछे-पीछे चलने लगा । उसके संकेत पर दोनों होटल की लॉबी में दाखिल हुए ।
“सीधे लिफ्ट की ओर बढे चलो ।” - अल्फांसो ने आदेश दिया ।
वे होटल की लॉबी में पहुंचे और लिफ्ट में सवार हुए ।
अल्फांसो के आदेश पर लिफ्ट ऑपरेटर उन्हें होटल की सबसे ऊपरली मंजिल पर ले आया ।
उस मंजिल पर पांच कमरों का केवल एक सूट था । वे उस सूट के प्रवेशद्वार के सामने पहुंचे ।
“घंटी बजाओ ।” - अल्फांसो ने आदेश दिया ।
मोटू ने घंटी बजाई ।
दो मिनट के इंतजार के बाद शीशे के दरवाजे की दूसरी तरफ मारियो प्रकट हुआ । पहले उसकी निगाह रणजीत और मोटू पर पड़ी । फिर उसने उनके पीछे खड़े अल्फांसो को देखा ।
“क्या चाहते हो ?” - वह रूखे स्वर में बोला ।
“अंधे हो ?” - अल्फांसो बोला - “देख नहीं सकते हम भीतर आना चाहते हैं ।”
“क्यों ?”
“हम तुम्हारे बॉस से मिलना चाहते हैं ।”
“साहब सोया पड़ा है । तीन बज रहे हैं ।”
“वक्त देखना मुझे आता है । इस वक्त तक मुझे खुद सोया हुआ होना चाहिए था । दरवाजा खोलो ।”
“यह आदमी कौन है ?” - वह मोटू की ओर संकेत करता संदिग्ध स्वर में बोला ।
“रणजीत से पूछो ।” - अल्फांसो बोला ।
“यह मेरा आदमी है ।” - रणजीत खोखले स्वर में बोला ।
“और इस वक्त दोनों निशस्त्र हैं” - अल्फांसो बोला - “इसलिए निश्चन्त रहो । रिवॉल्वर केवल मेरे पास है लेकिन कम से कम आज की रात मेरा तुम्हारे साहब को शूट करने का कोई इरादा नहीं है । दरवाजा खोलते हो या नहीं ?”
तीव्र अनिच्छा का प्रदर्शन करते हुए मारियो ने दरवाजा खोला और स्वयं एक तरफ हट गया ।
अल्फांसो ने दोनों आदमियों को अपने आगे धकेला और फिर उनके पीछे-पीछे स्वयं भी एक बड़े खूबसूरती से सजे हॉल में दाखिल हुआ ।
“वहां अगल-बगल बैठ जाओ ।” - अल्फांसो एक कोने में रखे एक सोफे की तरफ संकेत करता हुआ बोला ।
रणजीत और मोटू भारी कदमों से चलते हुए सोफे तक पहुंचे और उस पर जा बैठे ।
“क्या बात है ?” - मारियो उलझनपूर्ण स्वर में बोला ।
“अपने बॉस को बुलाओ ।” - अल्फांसो बोला ।
“बॉस सो रहा है ।”
“तो उसे जगा कर लाओ ।”
मारियो वहां से चला गया ।
थोड़ी देर बाद एक स्लीपिंग गाऊन पहने और आंखें मलते हुए एल्बुर्क्क मारियो के साथ पहुंचा । उसने उलझनपूर्ण नेत्रों से पहले भीगी बिल्ली बने सोफे पर बैठे रणजीत और मोटे को देखा और फिर बोला - “अल्फांसो, क्या आफत आ गई है ?”
“तुम्हें नहीं मालूम !” - अल्फांसो कठोर स्वर में बोला ।
“मतलब ?” - एल्बुर्क्क हड़बड़ाया ।
“क्या यह दोनों नारंग के आदमी नहीं हैं ?” - अल्फांसो रणजीत और मोटू की ओर संकेत करता हुआ बोला - “क्या यह सच नहीं है कि वे लोग मेरी क्लब के एक कर्मचारी की हत्या करना चाहते हैं और तुम इनकी मदद कर रहे हो ?”
एल्बुर्क्क चुप रहा । तब शायद उसे पहली बार महसूस हुआ कि वे तीनों आदमी वहां इकट्ठे जरूर पहुंचे थे लेकिन वे सद्भावनापूर्ण माहौल में वहां नहीं आये थे ।
“मुझे नहीं मालूम इन दोनों की नीयत क्या है ।” - एल्बुर्क्क खोखले स्वर में बोला ।
“लेकिन रणजीत को मेरी क्लब में तुम लाये थे । तुम साथ न आते तो यह कभी मेरी क्लब में दाखिल न हो पाते । इस लिहाज से तुम इसके मददगार हुए या नहीं हुए ?”
तभी अल्फांसो ने देखा कि मारियो का दायां हाथ धीरे से अपनी जेब में सरक गया था ।
“अपने इस पालतू कुत्ते को कहो कि अपना हाथ अपनी रिवॉल्वर से दूर रखे ।” - अल्फांसो अपने कहरभरे स्वर में बोला - “वर्ना इसकी खोपड़ी में एक झरोखा दिखाई देने लगेगा ।”
“मारियो” - एल्बुर्क्क बोला - “जेब से हाथ निकाल लो ।”
मारियो ने अनिच्छापूर्ण ढंग से जेब से हाथ निकाल लिया ।
“मुझे नहीं मालूम तुम क्या कह रहे हो, अल्फांसो ।” - एल्बुर्क्क नर्म स्वर में बोला - “मुझे नहीं मालूम रणजीत क्या चाहता है । मेरे सामने इसने कभी ऐसा जिक्र नहीं किया था कि यह तुम्हारे किसी कर्मचारी पर हाथ डालना चाहता था ।”
“तुम इसे मेरी क्लब में क्यों लाये ?”
“वजह वही थी जो मैंने तुम्हें बताई थी । कसम सेंट फ्रांसिस की, मुझे नहीं मालूम था कि यह वास्तव में किस फिराक में था ।”
“तुम झूठ बोल रहे हो ।”
“मैंने जो कहा है, सेंट फ्रांसिस की कसम खाकर कहा है । क्या रणजीत ने तुम्हारे किसी कर्मचारी की हत्या कर दी है ।”
“करना चाहता था लेकिन कर नहीं पाया । बिल्कुल वैसे ही जैसे कल रात तुम्हारा कोई और चमचा मेरी हत्या करना चाहता था लेकिन कर नहीं पाया था ।”
“क्या कह रहे हो ?” - एल्बुर्क्क दहशतभरे स्वर में बोला ।
“मैं यह कह रहा हूं कि तुम्हारे सारे आदमी निकम्मे हैं । तुम्हारा कोई भी आदमी काम ठीक से नहीं कर पाता ।”
“क्या किसी ने तुम्हारी हत्या करने की कोशिश की थी ?”
“जैसे तुम्हें मालूम नहीं ।”
“अल्फांसो, तुम खामखाह मुझ पर इलजाम लगा रहे हो । मैं सपने में भी तुम्हारी हत्या करने का ख्याल नहीं कर सकता ।”
“ख्याल ? मुझे पूरा विश्वास है तुम दिन-रात मेरी मौत की कामना करते होवोगे ।”
“अल्फांसो, मैं...”
“छोड़ो । मुझ पर आक्रमण करने वाला आदमी जरा जल्दी मर गया था वर्ना मैं उसी के मुंह से कुबुलवाता कि मेरी हत्या करने के लिए उसे तुमने भेजा था । तब मैं हर काम छोड़कर सीधा यहां पहुंचता और आकर तुम्हारा यह मोटा पेट फाड़ देता ।”
“अल्फांसो, तुम जरा इधर आओ ।”
और एल्बुर्क्क कमरे के एक दूर के कोने की तरफ बढ़ा । वह एक बहुत बड़ा कमरा था । उस कमरे में दूर का वह कोना सच में बहुत दूर था ।
अल्फांसो उसके पीछे-पीछे दूर के कोने में पहुंच गया ।
“अल्फांसो” - एल्बुर्क्क फुसफुसाता हुआ बोला - “तुम पागल तो नहीं हो गये हो ? ये दोनों नारंग के आदमी हैं ।”
“मुझे मालूम है ।” - अल्फांसो सख्त स्वर में बोला - “नारंग ने ही इन्हें कैलाश मल्होत्रा का कत्ल करने भेजा है ।”
“कैलाश मल्होत्रा तुम्हारे जुआघर के कैशियर का नाम है ?”
“हां ।”
“उसमें तुम्हारी कोई खास दिलचस्पी है ?”
“वह सोल्मर क्लब का कर्मचारी है ।”
“बस ! अरे, तुम उसे इन लोगों के हवाले क्यो नहीं कर देते हो ?” - एल्बुर्क्क खुशामदभरे स्वर में बोला - “एक मामूली आदमी के लिये नारंग से झगड़ा मोल लेना क्या कोई समझदारी की बात होगी ? वह नाराज हो गया तो हम दोनों के लिए मुसीबत हो जायेगी । हम लोग उसका मुकाबला नहीं कर सकते । वह तो वैसे ही गोवा पर छा जाने का कोई बहाना तलाश कर रहा है । मैं ही जानता हूं मैं कैसे उसे इस नगर से बाहर रखे हुए हूं । अल्फांसो अपनी सलामती के लिये मेरे लिये यह जरूरी है कि मैं उससे मित्रता का व्यवहार रखूं और अगर कभी कोई छोटी-मोटी मेहरबानी वह मुझ से चाहे तो वह उसे हासिल होती रहे । इसीलिये मैं रणजीत को तुम्हारे क्लब में लेकर गया था । लेकिन मुझे वाकई यह नहीं मालूम था कि वास्तव में वह वहां क्यों जाना चाहता था और न ही मैंने उससे पूछा था ।”
“मैंने सुन लिया तुम्हारा व्याख्यान ! तुम नारंग से या उसके चमचों से कैसा भी रिश्ता रखो, मुझे उससे कोई मतलब नहीं लेकिन अगर किसी ने सोल्मर क्लब या उसके किसी कर्मचारी की तरफ उंगली उठाई तो मैं उस उंगली वाली बांह काट दूंगा । समझ गए ?”
एल्बुर्क्क परेशानहाल वहां खड़ा रहा ।
अल्फांसो लम्बे डग भरता हुआ आगे बढ़ा और रणजीत और मोटू के सामने जा खड़ा हुआ ।
“अपने नारंग साहब को मेरा एक संदेशा दे देना” - वह कठोर स्वर में बोला - “उसे कह देना कि इस क्षण से उसकी जिंदगी की डोर कैलाश मल्होत्रा की जिंदगी की डोर से जुड़ गई है । इसलिए उसे कहना कि भविष्य में वह कैलाश मल्होत्रा की जिंदगी की दुआ मांगा करे । जिस दिन उसे कुछ हो गया वह दिन नारंग की जिंदगी का आखिरी दिन होगा । मैं खुद बम्बई आकर उसका गला काट दूंगा ।”
दोनों आदमी दांत भींचे चुपचाप बठे रहे ।
“मैं तुम दोनों को भी एक संदेश देना चाहता हूं ।” - अल्फांसो बोला - “कल सुबह जो पहली गाड़ी, स्टीमर, बस, टैक्सी या हवाईजहाज गोवा से बाहर जाता हो, तुम दोनों उस पर सवार हो जाना । कल दोपहर के बाद अगर तुम मुझे गोवा में दिखाई दिये तो तुम्हारी खैर नहीं ।”
और फिर वह लम्बे डग भरता हुआ दरवाजे की तरफ बढ गया । दरवाजे पर वह एक क्षण को ठिठका, घूमा और फिर बोला - “एल्बुर्क्क, क्या तुम्हारे लिये भी संदेश छोड़ जाऊं !”
“ओह माई गॉड !” - एल्बुर्क्क असहाय भाव से बोला - “अरे बाबा, मैंने कहा न मेरा उस छोकरे से कोई वास्ता नहीं ।”
अल्फांसो ने उसकी बात नहीं सुनी । उसने दरवाजा खोला और बाहर निकल गया ।
***
वह एक टैक्सी पर सोल्मर क्लब वापिस पहुंचा । रणजीत की कार उसने होटल के सामने छोड़ दी थी ।
अल्बर्टो और विमल ग्राउंड फ्लोर के बार में बैठे थे । दोनों के चेहरे पर गहन चिन्ता के भाव थे ।
अल्फांसो को देखकर अल्बर्टो की जान में जान आई ।
“कहां चले गए थे आप ?” - झल्लाये स्वर में वह बोला ।
“एल्बुर्क्क से मिलने ।” - अल्फांसो ने सहज भाव से बताया ।
अल्बर्टो भौचक्का-सा उसका मुंह देखने लगा ।
“मिल आये ?” - उसके मुंह से निकला ।
“हां ।” - अल्फांसो बोला और उसने सारी कहानी सुना दी ।
विमल भी सब सुन रहा था । अन्त में वह मन ही मन यह सोचे बिना न रह सका कि वह आदमी हद से ज्यादा दिलेर और निडर था ।
“और तुम” - अल्फांसो विमल से बोला - “अब मेरी इजाजत के बिना इस इमारत के बाहर नहीं निकलोगे ।”
“अल्फांसो साहब” - विमल झिझकता हुआ बोला - “मैं पहले भी कहना चाहता था कि क्या यह ज्यादा अच्छा नहीं होगा कि आप मेरा चुपचाप इस नगर से बाहर कहीं खिसक जाने का इन्तजाम कर दें ?”
“नहीं ।” - अल्फांसो कठोर स्वर में बोला - “यह ज्यादा अच्छा नहीं होगा । और तुम खुद भी ऐसी कोई कोशिश भी मत करना । तुम यहां से खिसक गए तो कोई यह नहीं मानेगा कि तुम अपनी मर्जी से यहां से गए हो । हर कोई यही समझेगा कि मैं नारंग के चमचों से डर गया और मैंने तुम्हें चुपचाप यहां से भगा दिया । एक बार यहां के लोगों में यह धारणा बन गई कि अल्फांसो डर सकता है तो एल्बुर्क्क तो शेर हो ही जायेगा, छोटे-मोटे मच्छर, चूहे भी मेरे खिलाफ सिर उठाने लगेंगे । इस नगर पर मेरा एक विशेष प्रकार का दबदबा है । मैं उस पर हर्फ आता नहीं देख सकता । इसलिए ऐसी हरकत भूलकर भी मत करना ।”
विमल चुप रहा ।
“यह सिद्धांत की बात है । अब अपनी नाक ऊंची रखने के लिए मुझे तुम्हारी हिफाजत करनी होगी, चाहे यह बात मुझे पसन्द आये या ना आये । मुझे किसी भी मामले में एक बार नीचा देखना पड़ गया तो फिर नारंग तो क्या एल्बुर्क्क ही मुझे हड़प जायेगा । तब या तो मुझे उसका प्रभुत्व स्वीकार करना पड़ेगा और या फिर इस नगर से मुझे अपना बोरिया बिस्तर लपेटकर कूच कर जाना पड़ेगा । मिस्टर, मुझे ये दोनों ही काम पसन्द नहीं ।”
विमल कुछ न बोला ।
“तुम ठहरे कहां हुए हो ?”
विमल ने अपने होटल का नाम बता दिया ।
“अल्बर्टो” - अल्फांसो अल्बर्टो की तरफ घूमा - “कल इसके होटल से इसका सामान यहां मंगवा लेना ।”
“ओके !” - अल्बर्टो बोला ।
***
अगली शाम को क्लब खुलने के बाद एन्थोनी एल्बुर्क्क ने अल्फांसो को फोन किया ।
“रणजीत और उसका साथी आज दोपहर के प्लेन से वापस बम्बई चले गये हैं ।” - एल्बुर्क्क ने बताया ।
“जानकर खुशी हुई ।” - अल्फांसो शुष्क स्वर में बोला - “मैं दो कत्ल करने से बच गया ।”
“लेकिन नारंग यह तौहीन बर्दाश्त नहीं करेगा, अल्फांसो ! देख लेना रणजीत उल्टे पांव वापस लौटेगा और इस बार वह एकाध नहीं सौ पचास आदमी साथ लेकर आयेगा । मुमकिन है खुद नारंग भी साथ आये ।”
“देखा जायेगा ।”
“क्या देखा जायेगा ? अपने साथ मेरा भी बेड़ा गर्क करवाओगे तुम । तुम अगर उस छोकरे को नारंग के आदमियों के हवाले नहीं करना चाहते तो कोई बीच का रास्ता अख्तियार कर लो ।”
“कैसा बीच का रास्ता ?”
“उस छोकरे को कहीं गोवा से बाहर भगा दो ताकि मैं यह कहने वाला बनूं कि वह यहां पर है ही नहीं । फिर नारंग हमारा पीछा छोड़ देगा क्योंकि उसकी दिलचस्पी केवल उस छोकरे में है ।”
“ऐसा नहीं हो सकता ।”
“यह तुम्हारा आखिरी फैसला है ?”
“हां ।”
“तुम मुझे कोई सख्त कदम उठाने के लिए मजबूर कर रहे हो ।”
“क्या सख्त कदम उठा सकते हो तुम ?”
कुछ क्षण चुप्पी रही, फिर एल्बुर्क्क का बर्फ-सा सर्द स्वर सुनाई दिया - “अच्छी बात है । अब देखो मैं क्या करता हूं ।”
सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।
***
उस शाम को अल्फांसो ने जुआघर में रौलट की मेज पर एक असाधारण रूप से सुन्दर महिला को देखा । वह एक लम्बी ऊंची कद्दावर औरत थी । रंग एकदम गोरा था । नयन नक्श बहुत तीखे थे और जिस्म के कटाव बहुत लुभावने । वह भड़कीले लाल रंग की सिल्क की कीमती साड़ी और वैसा ही ब्लाउज पहने हुए थी । ब्लाउज में से उसके जाफरान मिले दूध की रंगत के पुष्ट उरोज आधे से ज्यादा बाहर झलक रहे थे ।
अल्फांसो ने एक बार निगाह भरकर जुआ खेलने में मग्न उस युवती को देखा और फिर अपने ऑफिस में गया ।
जुआघर में ऐसी सुन्दरियों का आगमन कोई असाधरण बात नहीं थी । लेकिन उस युवती को उसने वहां पहले कभी नहीं देखा था । जरूर वह किसी मेहमान की पत्नी थी जिसे वह उस रोज से पहले कभी वहां नहीं लाया था ।
रात साढे ग्यारह बजे के करीब वह महिला उसके ऑफिस में आई ।
“आप मिस्टर अल्फांसो हैं ?” - उसने मधुर स्वर में पूछा ।
“जी हां ।” - अल्फांसो बोला - “फरमाइये मैं आपकी क्या खिदमत कर सकता हूं ?”
“मेरा नाम सुन्दरी है ।” - वह बोली ।
“नाम आपके व्यक्तित्व के अनुरूप है । वैसे आपका नाम महासुन्दरी होता तो ज्यादा अच्छा रहता ।”
महिला खिलखिलाकर हंसी ।
“तशरीफ रखिये ।” - अल्फांसो बोला ।
वह बैठ गई ।
अल्फांसो को उसकी सांसों से विस्की की गन्ध का आभास मिला ।
“मेरी एक समस्या है कि जिसे आप हल कर सकते हैं ।” - वह बोली ।
“क्या ?”
“मैं जितना पैसा लाई थी सब जुए में हार गई हूं । मैं चाहती हूं कि आप मेरा एक चैक कैश कर दें ।”
“कितनी रकम का ?” - अल्फांसो के नेत्र सिकुड़ गये ।
“पांच हजार रुपये काफी होंगे ।”
“हमारे यहां चैक कैश करने का दस्तूर तो है लेकिन यह सेवा हम अपने उन्हीं मेहमानों के लिए सुरक्षित रखते हैं जिन्हें हम निजी तौर से जानते हैं । आप अपने पति को बुलाइए । शायद हम उन्हें जानते हों ।”
“अपने पति को यहां कैसे बुलाऊं मैं ? वह तो अहमदाबाद में है ।”
“यानी कि आप यहां अकेली आई ?”
“जी हां ।”
“आपके पति...”
“मिस्टर तारापोरवाला । वे कोचीन ऑटोमोबाइल कम्पनी में मालिक हैं ।”
“मैंने नाम सुना है उनका ।”
“जरूर सुना होगा । मशहूर आदमी हैं वे । लेकिन मेरे चैक के बारे में कोई जवाब नहीं दिया ।”
अल्फांसो फैसला नहीं कर पर रहा था कि वह चैक के बारे में उसे क्या जवाब दे । वह औरत कोई ठग लगती तो नहीं थी और सम्पन्नता उसके परिधान और शक्ल-सूरत दोनों से झलक रही थी । उसने अपने बाएं हाथ की दो उंगलियों में हीरे की अंगूठियां पहनी हुई थी । अल्फांसो का उनकी तरफ विशेष रूप से ध्यान गया ।
“आप कुछ पिएंगी ?” - उसने पूछा ।
“आप कुछ पिलाएंगे ?” - सुन्दरी मादक स्वर में बोली ।
अल्फांसो ने अपनी मेज की दराज से शिवाज रीगल की एक बोतल और दो गिलास निकाले । उसने गिलासों को विस्की से आधा-आधा भरा । उसने एक गिलास उसकी तरफ सरका दिया और दूसरा स्वयं उठा लिया ।
“चियर्स !” - अल्फांसो बोला ।
“चियर्स !” - सुन्दरी गिलास ऊंचा करती हुई बोली ।
उसने एक घूंट विस्की पी और उसे मेज पर अपने सामने रख लिया ।
“नीट विस्की आप अक्सर पी लेती हैं ?” - अल्फांसो ने पूछा ।
“हां ।” - सुन्दरी सहज भाव से बोली ।
“आई सी । जिंदगी का पूरा लत्फ उठाने में विश्वास रखती हैं, आप ?”
“और जिंदगी है किसलिए ?” - सुन्दरी एक अंगड़ाई लेती हुई बोली - “विशेष रूप से जबकि जिंदगी का पूरा लुत्फ उठाने के साधन भी हों ।”
“आप ठीक कह रही हैं ।”
“चैक की जरूरत नहीं मेरा कैशियर ऐसे ही आपको पांच हजार रुपया दे देगा ।”
“ऐसे तो मैं लूंगी नहीं ।”
“तो फिर लाइए चैक ।”
सुन्दरी ने अपने पर्स से एक नई चैक बुक निकाली । उसने एक चैक में पांच हजार रुपये की रकम भरकर साईन किए और चैक फाड़कर अल्फांसो के सामने रख दिया ।
अल्फांसो ने नोट किया कि वह उस चैक बुक का पहला चैक था । उसने चैक मेज के दराज में डाल दिया । उसने अपना विस्की का गिलास खाली किया और अपने स्थान से उठा ।
“आइए ।” - वह बोला ।
सुन्दरी ने भी गिलास खाली किया और उठ खड़ी हुई ।
दोनों बाहर निकले । उसके ऑफिस से लेकर कैशियर के पिंजरे तक के थोड़े से फासले में सुन्दरी उससे एकदम सटकर चली ।
कैशियर के पिंजरे में विमल मौजूद था । उस रोज उसने अपनी फ्रैंचकट दाढी-मूंछ भी साफ कर दी थी और दिल्ली की बैंक वैन रॉबरी के हंगामे के बाद चौधरी से मिले कॉन्टैक्ट लैंसों को आंखों से निकालकर उसने आंखों पर अपना सुनहरी फ्रेम वाला पुराना चश्मा लगा लिया था ।
“कैलाश” - अल्फांसो पिंजरे के पास पहुंचा और बोला - “मैडम को पांच हजार रुपए दो ।”
“कैश या टोकन, सर !” - कैलाश ने पूछा ।
अल्फांसो ने प्रश्नवाचक नेत्रों से सुन्दरी की तरफ देखा ।
“टोकन” - सुन्दरी बोली - “पचास और सौ के ।”
“आप यहां पहली बार आई हैं ?” - अल्फांसो ने पूछा ।
“जी हां ।” - सुन्दरी बोली ।
“उम्मीद है दोबारा आएंगी ।”
“मैं गोवा में तफरीह के लिए आई हूं । जब तक यहां हूं जरूर आऊंगी ।”
“आपके पति साथ नहीं आए ?”
“वे साथ आते तो फिर तफरीह कैसे होती मिस्टर अल्फांसो इस वक्त मिस्टर तारापोरवाल की उम्र बासठ साल है ।”
“आई सी ।”
“और उनका दुनिया में एक ही शौक है । पैसा कमाना । ये अच्छा भी है । बुजुर्गवार पैसा कमाते रहें और उनकी जवान बीवी उसे उजाड़ती रहे ।”
अल्फांसो बड़ी शिष्टता से धीरे-से हंसा ।
“आज सुबह वे कोचीन से अहमदाबाद रवाना हुए और मैं यहां आ गई ।”
“कोचीन से ?”
“हां ।”
“गोवा आप पहली बार आई हैं ?”
“जी हां ।”
तभी कैलाश धीरे से बोला ।
सुन्दरी का ध्यान उस ओर आकर्षित हुआ ।
कैलाश ने एक प्लास्टिक की छोटी-सी ट्रे में टोकन उसकी ओर बढा दिये ।
सुन्दरी ने टोकन ले लिए और अपने होंठों पर एक चमकीली मुस्कराहट लाती हुई बोली - “थैंक्स ।”
“यू आर वैलकम, मैडम ।” - विमल शिष्ट स्वर में बोला ।
“मिस्टर अलफांसो” - सुन्दरी अल्फांसो की तरफ घूमी - “आपका कैशियर बड़ा खूबसूरत नौजवान है ।”
अल्फांसो को लगा कि वह नशे की स्थिति में पंहुच गई थी, पिए वह पहले से ही हुए थी । थोड़ी देर पहले आधा गिलास शिवाज रीगल और पी लेने से उसकी वाणी मुखर हो उठी थी ।
“वह सौभाग्यशाली है” - प्रत्यक्षत: वह बोला - “जो उसे आप जैसी सुन्दरी के मुंह से प्रशंसात्मक शब्द सुनने को मिले ।”
“तुम्हारा नाम क्या है, नौजवान ?” - सुन्दरी ने विमल से पूछा ।
“कैलाश” - विमल बोला - “कैलाश मल्होत्रा !”
“हाउ नाइस” - वह बोली - “विश मी लक, मिस्टर मल्होत्रा ।”
“आई विश यू आल दि बैस्ट, मैडम ।”
“थैंक्यू ।”
सुन्दरी वहां से परे हट गई ।
विमल का चेहरा एकाएक बेहद गम्भीर हो उठा ।
“अगर आपको मेरी किसी सेवा की जरूरत हो” - अल्फांसो सुन्दरी से कह रहा था - “तो मैं आपको अपने ऑफिस में ही मिलूंगा ।”
“थैंक्यू” - सुन्दरी बोली - “मैं याद रखूंगी ।”
अल्फांसो घूमा । उसने प्रश्नसूचक नेत्रों से विमल की तरफ देखा ।
“जरा सुनिए ।”
अल्फांसो पिंजरे के समीप पहुंचा ।
“ये महिला कौन है ?” - विमल ने पूछा ।
“क्लब की मेहमान है । कोचीन के किसी धनवान व्यक्त‍ि की बीवी है । नाम सुन्दरी है । और कुछ नहीं जानता मैं इसके बारे में ।”
“मुझे ऐसा अनुभव हो रहा है” - विमल बोला - “जैसे मैं किसी-न-किसी संदर्भ में इन्हें पहचानता हूं ।”
“कैसे पहचानते हो ?”
“यह तो याद नहीं आ रहा लेकिन मेरा दिल गवाही दे रहा है कि इस औरत में कोई ऐसी बात है जो मेरी जानी-पहचानी है ।”
“अरे, कभी कभी निगाह पड़ गई होगी इस पर । निहायत खूबसूरत औरत है । एक बार देख लेने पर आसानी से भूल जाने वाली चीज नहीं यह । खास तौर से तुम्हारे जैसे नौजवान आदमी को ।”
“हां ! शायद ।” - विमल बोला ।
लेकिन वह आश्वस्त्त नहीं हो सका । पता नहीं क्यों एकाएक उसके कानों में खतरे की घंटियां बजने लगी थीं ।
बारह बजे के करीब सुन्दरी कैशियर के पिंजरे के पास पहुंची । उसकी बांछें खिली हुई थीं और उसके हाथों में टोकनों से लबालब भरी दो ट्रे थी ।
“मिस्टर कैलाश” - वह दोनों ट्रे उसकी तरफ धकेलती हुई बोली - “तुम मेरे लिए बहुत लक्की साबित हुए । तुमने मेरी जीत की कामना की थी न । देखो, मैं कितना माल जीती हूं ।”
“मुबारक हो ।” - विमल औपचारिक स्वर में बोला ।
“इन्हें कैश कर दो ।”
विमल ने सारे टोकन गिने । वह वाकई काफी जीती थी । वे सारे टोकन पूरे पैंतालीस हजार रुपये की कीमत के थे ।
“कितने हैं ?” - सुन्दरी ने पूछा ।
“पैंतालीस हजार मैडम ।”
“ओह माई गॉड । मैं तो पूरे चालीस हजार रुपये जीत गई ।”
विमल ने पैंतालीस हजार रुपये के नोट उसकी तरफ बढा दिए । सुन्दरी ने नोट अपने बैग में ठूंस लिए । सारा बैग नोटों से भर गया ।
“मिस्टर कलाश, मुझे तो चिंता होने लगी है ।” - एकाएक वह गम्भीर स्वर में बोली ।
“किस बात की, मैडम ?”
“मेरे पास इतना नकद रुपया है । आधी रात का वक्त है । आजकल गोवा में हिप्पियों की भरमार है और जानते हो मुझे कहां जाना है ?”
“कहां ?”
“डोना पाला बीच पर स्थित एक उजाड़ कॉटेज में । अगर रास्ते में इस रुपए की खातिर किसी ने मेरा गला काट दिया तो !”
“ऐसा कुछ नहीं होगा, मैडम । आप तो गाड़ी पर जायेंगी न !”
“टैक्सी पर ।”
“फिर क्या खतरा है ?”
“अगर टैक्सी वाले की ही नीयत बद हो गई तो ।”
“ऐसा नहीं होगा मैडम ।”
“लेकिन मुझे बड़ा डर लग रहा है ।”
“डरने वाली कोई बात नहीं, मैडम ।”
“सुनो, क्या तुम मुझे मेरे कॉटेज तक छोड़कर नहीं आ सकते ?”
“मैं कैसीनो छोड़कर नहीं जा सकता ।”
“ऐसा करने को कौन कह रहा है तुम्हें । यहां जुआ सारी रात तो चलता नहीं होगा । क्लब कितने बजे बंद होता है ?”
“दो बजे ।”
“फिर क्या है । मैं दो घंटे इंतजार कर लूंगी ।”
“मैडम, मैं माफी चाहता हूं । मेरा जा पाना सम्भव नहीं ।”
“क्यों ? क्या तुम क्लब की चौबीस घंटे की नौकरी करते हो ।”
“नहीं लेकिन...”
“देखो । अक्लमंद को इशारा ही काफी होता है” - सुन्दरी अपना निचला होंठ चबाती हुई बोली - “मैं केवल रकम की हिफाजत के लिए ही तुम्हें साथ नहीं ले जाना चाहती । मैं गोवा में अकेली हूं और...”
“आपकी ऐसी कोई खिदमत मेरा कैशियर नहीं कर सकता है लेकिन मैं कर सकता हूं और...”
सुन्दरी चौंककर घूमी । उसने अपने पीछे अल्फांसो को खड़ा पाया ।
“मैडम बहुत रुपया जीत गई हैं” - विमल जल्दी से बोला - “ये चाहती हैं कि कोई इन्हें उनके निवास-स्थान तक छोड़ आए ।”
“ओह ! मुबारक हो ।”
सुन्दरी केवल मुस्कराई ।
“बन्दे को सेवा का मौका दीजिए ।” - अल्फांसो बोला ।
“आप मुझे छोड़ने जायेंगे ?”
“यह मेरा सौभाग्य होगा । आप जैसी परम सुन्दरी के संसर्ग का मौका भला कौन छोड़ना चाहेगा ?”
“आपका कैशियर तो छोड़ रहा है ।”
“वह मूर्ख है । नादान है । उसे सुन्दरता की कद्र नहीं ।”
“लेकिन मैं आपको तकलीफ नहीं देना चाहती । आप मिस्टर कैलाश को ही कह दीजिये...”
“अजी तकलीफ कैसी । कहा न यह मेरा सौभाग्य होगा ।”
सुन्दरी हिचकिचाने लगी ।
“अब आप मेरे साथ अन्याय कर रही हैं ।”
“मतलब !”
“हम भी किसी से कम नहीं ।”
“ओह, आप गलत समझ रहे हैं । ठीक है, चलिए । लेकिन पहले मैं आपको अपनी रकम लौटाकर अपना चैक वापस हासिल करना चाहती हूं ।”
“तो आइए । पहले ऑफिस में चलते हैं ।”
अल्फांसो ने सुन्दरी की कमर में हाथ डाला और उसे ऑफिस की ओर ले चला ।
विमल उन्हें जाता देखता रहा ।
एकाएक वह भारी बैचेनी का अनुभव करने लगा ।
वास्तव में कौन थी वह औरत और क्यों खामखाह उसके गले पड़ रही थी ?
दिमाग पर बहुत जोर देने के बावजूद वह याद नहीं कर पाया कि उसमें ऐसा क्या था जो उसे जाना-पहचाना लग रहा था ।
उसे अल्फांसो का इस प्रकार उस औरत के साथ जाना भी नहीं जंच रहा था । कोई दखलअंदाजी भी उचित नहीं लग रही थी । अल्फांसो खूबसूरत आदमी था और औरतों का रसिया था । किसी औरत से उसका ऐसा तालमेल उसके लिए स्वाभाविक बात थी । कोई दखलअंदाजी करने पर कहीं वह उससे खफा ही न हो जाए ।
उसने मन-ही-मन एक फैसला किया । उसने हाथ बढाकर रिसीवर उठा लिया और नीचे बार में अल्बर्टो को फोन किया ।
“आप थोड़ी देर के लिए ऊपर आ सकते हैं ?” - वह फोन में बोला ।
“क्यों ?” - अल्बर्टो ने सवाल किया ।
“मैं जरा क्लॉक रूम जाना चाहता हूं ।”
“आता हूं ।”
थोड़ी देर बाद अल्बर्टो ऊपर पहुंचा । उसने कैशियर के पिंजरे में विमल की जगह ले ली और उसे अस्थायी तौर पर मुक्त कर दिया ।
विमल जल्दी न मचाने का भरसक प्रयत्न करता हुआ लिफ्ट के पास पहुंचा ।
ऑपरेटर उसे नीचे ले आया ।
वह अल्बर्टो के ऑफिस में पहुंचा । वह जानता था कि अलबर्टो अपनी कार की चाबी अपनी मेज के बाईं ओर के सब से ऊपरले दराज में रखता था । उसने वह दराज टटोला । उसमें ताला नहीं लगा हुआ था । उसमें कार की चाबी मौजूद थी । उसने चाबी उठा ली । दराज में एक रिवॉल्वर भी पड़ी थी ।
वह एक क्षण हिचकिचाया फिर उसने रिवॉल्वर भी उठा ली और उसे अपनी पतलून की बैल्ट में खोंस लिया ।
फिर पिछवाड़े के दरवाजे से वह इमारत से बाहर निकल आया ।
पार्किंग में उसे अल्फांसो की बुलेट-प्रूफ कार नहीं दिखाई दी ।
वह अल्बर्टो की कार में सवार हो गया । उसने कार को पार्किंग से निकाला और उसे डोना पाला बीच के रास्ते की तरफ दौड़ा दिया ।
थोड़ी ही देर बाद उसे आगे सड़क पर अल्फांसो की कार दिखाई दी । कार अल्फांसो खुद चला रहा था । उसकी बगल में उसके कंधे पर सिर रखे सुन्दरी बैठी थी ।
विमल बड़ी सावधानी से अल्फांसो की कार के पीछे लगा रहा । अल्फांसो की कार डोना पाला बीच के एक उजाड़ कॉटेज के सामने जाकर रुकी ।
विमल ने अपनी कार काफी परे मुख्य सड़क से उतारकर पेड़ों के झुरमुट में छुपाकर खड़ी कर दी । फिर वह कार से निकला और पैदल आगे बढ़ा । जब तक वह कॉटेज के समीप पहुंचा, अल्फांसो और सुन्दरी कॉटेज के भीतर पहुंच चुके थे । उस कॉटेज की दो-तीन खिड़कियों में रोशनी दिखाई दे रही थी । उस कॉटेज के आसपास और भी कॉटेज थे लेकिन सब में अंधेरा था ।
विमल ने सुन्दरी वाले कॉटेज का एक पूरा चक्कर लगाया लेकिन उसे कहीं कोई संदिग्ध बात नहीं दिखाई दी ।
तो क्या यह वाकई यौनाकर्षण का सिलसिला था ? क्या यहां कोई गड़बड़ वाली बात नहीं थी ।
शायद कॉटेज के भीतर...
वह दबे पांव आगे बढ़ा और एक सड़क के नीचे आ खड़ा हुआ ।
भीतर से वार्तालाप की आवाजें आ रही थी ।
“रेफ्रीजरेटर में स्कॉच की बोतल है” - सुन्दरी कह रही थी - “तुम ड्रिंक्स तैयार करो । मैं कपड़े बदलकर आती हूं ।”
“ओके ।” - अल्फांसो की आवाज आई ।
थोड़ी देर बाद सुन्दरी का स्वर सुनाई दिया - “क्या बात है ? कॉटेज की तलाशी ले रहे हो क्या ?”
“देख रहा हूं” - अल्फांसो बोला - “कि तुम्हारे पति ने अपनी सुन्दर पत्नी पर निगाह रखने के लिए यहां कहीं कोई जासूस तो नहीं छुपा रखा ।”
“नॉनसेंस ।”
विमल ने तनिक चैन की सांस ली । अल्फांसो बड़ा चौकस रहने वाला आदमी था । वह किसी औरत के छलावे में आने में आने वाला नहीं मालूम होता था ।
फिर दो गिलासों के आपस में टकराने की आवाज आई ।
फिर थोड़ी देर तक इतने मध्यम स्वर में वार्तालाप होता रहा कि विमल को एक शब्द भी सुनाई न दिया ।
थोड़ी देर बाद उसे एक बार सुन्दरी के मुंह से निकली एक जोर की ‘उई’ की आवाज सुनाई दी और फिर वह मदभरे स्वर में बोली - “हौसला रखो । मेरी नाइटी फट जाएगी ।”
उत्तर में अल्फांसो ने कुछ कहा जो विमल की समझ में नहीं आया ।
थोड़ी देर तक एकदम चुप्पी रही ।
विमल ने सिर उठाकर सावधानी से खिड़की के शीशे में से भीतर झांका । उसने देखा अल्फांसो सुन्दरी को अपनी गोद में उठाए बगल के कमरे की ओर जा रहा था । सुन्दरी सम्पूर्ण नग्नावस्था में थी और उसने अपनी बांहें अल्फांसो की गरदन के गिर्द लपेटी हुई थीं ।
फिर वे दोनों दृष्टि से ओझल हो गये ।
विमल कॉटेज से परे हट गया और चुपचाप अपनी कार की तरफ लौट पड़ा ।
वहां उसे अल्फांसो को कोई खतरे वाली बात नहीं दिखाई दे रही थी ।
वह अपनी कार में आ बैठा ।
उसने अपना पाइप निकाला और उसे सुलगाकर उसके कश लगाने लगा । पहले तो उसने फौरन वहां से रवाना हो जाना चाहा लेकिन फिर उसने थोड़ी देर और इन्तजार करने का फैसला किया ।
क्या पता कोई अल्फांसो के सुन्दरी के रूपजाल में फंसकर निश्चित और लापरवाह हो जाने की प्रतीक्षा कर रहा हो ।
उसने अपनी पतलून की बैल्ट से अल्बर्टो की रिवॉल्वर निकाली । पता नहीं उसमें गोलियां भी थीं या नहीं । उसने चैम्बर खोलकर भीतर झांका । गोलियां थीं । लेकिन उससे क्या होता था । नौबत आने पर पता नहीं वह उसे चला पायेगा या नहीं । आज के पहले उसने रिवॉल्वर थामी जरूर थी लेकिन उससे निशाना लगाने की नौबत कभी नहीं आई थी ।
उसने रिवॉल्वर अपनी पतलून की बैल्ट में खोंस ली और पाइप के कश लगाता हुआ प्रतीक्षा करने लगा ।
कोई आधे घंटे बाद कॉटेज का दरवाजा खुला और अल्फांसो बाहर निकला ! विमल को चौखट पर सुन्दरी भी दिखाई दी । उस वक्त अपने नग्न शरीर पर जो नाइटी वह पहने थी, वह न होने जैसी थी । अल्फांसो ने उसे अपनी बांहों में भरकर उसका एक आखिरी चुम्बन किया और फिर अपनी कार की तरफ बढ गया । वह अपनी कार में सवार हुआ और वहां से रवाना हो गया ।
कॉटेज का दरवाजा बन्द हो गया ।
किसी ने अल्फांसो की कार का पीछा करने का उपक्रम नहीं किया था ।
जब अल्फांसो की कार विमल के सामने से गुजर गई तो उसने भी कार स्टार्ट की और उसे पेड़ों के झुरमुट के पीछे से निकालकर मुख्य सड़क पर ले आया । वह सावधानी से अपनी और अल्फांसो की कार के बीच काफी फासला रखे कार चलाता रहा ।
यह सोचकर वह बड़ी राहत महसूस कर रहा था कि उसका वहम बेबुनियाद निकला था । कोई गड़बड़ नहीं हुई थी ।
अल्फांसो की कार बीच के इलाके से निकलकर घनी आबादी वाले भाग में पहुंची । फिर वह एवेन्यू गैस्पर दियास से गुजरी ।
एकाएक अल्फांसो की कार बुरी तरह डगमगाई । ब्रेकों की चरचराहट से वातावरण गूंज उठा । लगता था कार का कोई टायर बोल गया था । रात का समय था । सड़क पर नाम मात्र का ट्रैफिक था, इसलिए कार कहीं टकराई नहीं, वर्ना भयंकर दुर्घटना की सम्भावना थी ।
कार लगभग गतिशून्य हो गई ।
तभी कहीं से गोलियों की बौछार होने लगी । अल्फांसो की बुलेटप्रूफ कार के शीशे तड़ाक-तड़ाक करके टूटे । विमल ने स्टेयरिंग के पीछे बैठे अल्फांसो को एक ओर गिरते देखा । गोली उसे लग गई मालूम होती थी ।
विमल जोर से चिल्लाया । उसने कार का एक्सीलेटर दबाया और स्टेयरिंग को एक ही हाथ से सम्भालते हुए उसने रिवॉल्वर हाथ में ली और उसका रुख उस दिशा की ओर करके, जिधर से कि गोलियां चली थीं, उसने अन्धाधुन्ध फायर करने आरम्भ कर दिये । एक गोली उसकी भी विंडस्क्रीन से आकर टकराई और विंडस्क्रीन के परखच्चे उड़ गये ।
फिर एकाएक गोलियां चलनी बन्द हो गईं । बगल की एक अन्धेरी-सी गली में से भागते कदमों की दूर होती हुई आवाज थोड़ी देर आती रही और फिर गायब हो गई । लेकिन विमल को भागते आदमी की गली के दहाने से भीतर गायब होने से पहले एक झलक मिल गई ।
विमल की कार अल्फांसो की कार के कोई एक फुट पीछे आकर रुकी । वह झपटकर कार से बाहर निकला और अल्फांसो की कार की तरफ भागा ।
सड़क पर जो इक्के-दुक्के लोग मौजूद थे वे भी वहां जमा होने लगे ।
विमल ने समीप आकर देखा कि कार का स्टेयरिंग वाली साइड का दरवाजा खुला हुआ था और उसमें से अल्फांसो का आधा शरीर कार से इस प्रकार बाहर लटका हुआ था कि कमर और टांगे तो अभी भी कार के भीतर थीं और सिर और एक बांह कार से बाहर लटकी हुई थी । सिर नीचे को झुकाकर फुटपाथ से जाकर लगा हुआ था । उसके कपड़े खून से तर थे । कनपटी से भी फव्वारे की तरह खून बह रहा था और उसके सिर के पास जमीन पर इकट्ठा होता जा रहा था ।
लगता था उसे कई गोलियां लगी थी । एक कनपटी और दांए कन्धे में तो गोली का छेद स्पष्ट दिखाई दे रहा था ।
“अरे !” - कार के आस-पास आ खड़े हुए लोगों में से एक आदमी एकाएक बोल पड़ा - “ये तो अल्फांसो साहब हैं ।”
आतंकित विमल ने हाथ बढ़ाकर अल्फांसो की नब्ज टटोली । नब्ज चल रही थी । बहुत धीमी । बहुत ही धीमी ।
“भाइयो ।” - विमल याचनापूर्ण स्वर में बोला - “आप इन्हें मेरी कार में पहुंचाने में मेरी मदद कीजिए । और अगर कोई साहब आस-पास किसी अस्पताल की जानकारी रखते हों तो मुझे रास्ता बता दें । शायद अभी भी अल्फांसो साहब की जान बच जाये ।”
लोग तुरन्त सहायता के लिए तैयार हो गये ।
अल्फांसो को बड़ी सावधानी से उठाकर विमल वाली कार की पिछली सीट पर लिटा दिया गया ।
जिस आदमी ने अल्फांसो को पहचाना था वह विमल के साथ कार में सवार हो गया । विमल ने कार आगे बढ़ा दी । वह आदमी उसे अस्पताल का रास्ता बताने लगा । उसके निर्देश पर कार चलाता हुआ विमल सेंट फ्रांसिस अस्पताल की विशाल छ: मंजिली इमारत के सामने पहुंचा ।
अल्फांसो पंजिम की जानी-पहचानी हस्ती था । तुरन्त कई डॉक्टर उसके गिर्द इकट्ठे हो गये और उसको जो बेहतरीन डॉक्टरी सहायता दी जा सकती थी, दी जाने लगी ।
अल्फांसो को तुरन्त एक स्ट्रेचर पर लिटाया गया और उसे इमरजेन्सी वार्ड में ले जाया गया ।
दस मिनट बाद एक डॉक्टर ने विमल को आकर बताया कि अल्फांसो की हालत बहुत सोचनीय थी । उसे तीन गोलियां लगी थी । एक कन्धे में, एक बांह में और एक कनपटी पर । कनपटी पर लगी गोली ने ही उसे खतरनाक हालत में पहुंचाया था । तुरन्त ऑपरेशन करना जरूरी था । ऑपरेशन की कामयाबी पर ही अल्फांसो का जीवन निर्भर करता था । ऑपरेशन की तैयारियां की जा रही थीं । एक बहुत बड़े सर्जन को फोन किया जा चुका था । उसके अस्पताल पहुंचते ही एक बड़ा नाजुक और पेचीदा ऑपरेशन शुरु होने वाला था ।
तभी बड़ा सर्जन वहां पहुंच गया और अल्फांसो को ऑपरेशन थियेटर में ले जाया गया ।
विमल लॉबी में लगे टेलीफोन बूथ की तरफ दौड़ा ।
उसने सोल्मर क्लब टेलीफोन किया और अल्बर्टो को स्थिति की सूचना दी ।
अल्बर्टो के छक्के छूट गये । उसने तुरन्त क्लब बन्द करवा दी और हवा से बातें करता हुआ अस्पताल पहुंचा । वह अपने साथ दस सशस्त्र आदमी भी लाया था जिन्होंने फौरन अस्पताल के इर्द-गिर्द घेरा डाल दिया । वह सावधानी उसने इसलिए जरूरी समझी थी, क्योंकि उसके कथनानुसार, जब अल्फांसो पर आक्रमण करने वालों को मालूम होगा कि उनके आक्रमण से अल्फांसो अभी मरा नहीं था तो उनके होश फाख्ता हो जायेंगे । अल्फांसो की शक्ति से गोवा में कोई भी अपरिचित नहीं था । वह मर जाता तो आक्रमणकारियों का खौफ खत्म हो जाता, लेकिन उसकी जिन्दगी आक्रमणकारियों की मौत थी । इसलिए अल्फांसो को खत्म करने की दोबारा से कोशिश हो सकती थी ।
किसी ने अल्बर्टो को बताया कि अस्पताल पर अल्फांसो की सुरक्षा के लिए पुलिस भी तैनात थी, लेकिन अल्बर्टो को पुलिस का भरोसा नहीं था ।
पुलिस के आगमन से विमल को अपनी फिक्र हो गई थी कि कहीं कोई उसे पहचान न ले, लेकिन वह वक्त वहां से निकल जाने का भी तो नहीं था ।
सुबह चार बजे अल्फांसो को ऑपरेशन थियेटर से निकाल कर पोस्ट ऑपरेशन वार्ड की बगल के एक कमरे में ले जाया गया ।
सर्जन ने उन्हें बताया कि अल्फांसो की खोपड़ी, बांह तथा कंधे से गोलियां निकाल दी गई थी, लेकिन अभी भी वह खतरे से बाहर नहीं था । अगले चौबीस घंटे निर्विघ्न गुजर जाने के बाद ही निश्चित रूप से कुछ कहा जा सकता था ।
उसके बाद अल्बर्टो के कहने पर विमल वापस क्लब चला आया । अल्बर्टो का कथन था कि उसका दुश्मनों के हाथ पड़ जाना अल्फांसो के लिये भारी तौहीन की बात होती, इसलिए उसे सुबह होने से पहले ही क्लब की इमारत की सुरक्षा में पहुंच जाना चाहिए था ।
इच्छा न होते हुए भी विमल वापस क्लब में लौट आया । उसकी आंखों के सामने बार-बार उस आदमी की आकृति घूम रही थी, जिसे उसने अल्फांसो पर गोलियां बरसाने के बाद गली में गायब होते देखा था । वह फैसला नहीं कर पा रहा था कि उसे कोई वहम हो गया था या उसने वाकई सही आकृति देखी थी । गली के दहाने पर रोशनी कम थी । गलती की भी पूर्ण गुंजायश थी ।
यह भी उसके लिए एक हैरानी की बात थी कि अल्फांसो की बुलेटप्रूफ कार के शीशे जब पहले आक्रमण में नहीं टूटे तो दूसरी बार के आक्रमण से कैसे टूट गये ।
और क्या इस हादसे में सुन्दरी का कोई हाथ था ?
विमल कोई फैसला न कर सका ।