पापियों से मुलाकात
शाम चार बजे एसीपी के बुलावे पर विराट राणा उसके कमरे में पहुंचा। दरवाजे के दोनों पल्ले पूरे के पूरे खुले हुए थे और भीतर बैठा अभिषेक सिंह राजावत सिर झुकाये बड़ी तंम्यता के साथ किसी फाईल को पढ़ने में व्यस्त था।
“मे आई कम इन सर?”
“इन तो तुम पहले ही हो चुके हो - फाईल से सिर उठाकर गहरी निगाहों से विराट को देखता एसीपी बोला - आओ बैठो।”
विराट ने आगे बढ़कर पूरी तत्परता के साथ उसे सेल्यूट किया और तनकर उसके सामने खड़ा हो गया।
राजावत ने अपलक उसे देखा।
“आपने खुद मुझे बुलाया है सर, फिर नाराज होकर क्यों दिखा रहे हैं?”
“बैठने को पहले ही कह चुका हूं, फिर सिर पर क्यों खड़े हो अभी तक?”
“सॉरी सर - वह बैठता हुआ बोला - थैंक यू।”
“क्या जरूरत थी?”
“सॉरी के बारे में पूछ रहे हैं, या थैंक्यू के बारे में?”
“कल के तुम्हारे कारनामें के बारे में, क्यों किया उतना सब?”
“जिंदा रहने की ख्वाहिश ने मजबूर कर दिया था सर।”
“तुम्हारे साथ गये सिपाही तो ऐसा नहीं समझते।”
“तभी तो वे लोग सिपाही हैं सर।”
“एनी वे मैंने यहां कल रात के तुम्हारे किये धरे पर सवाल उठाने के लिए नहीं बुलाया है, क्योंकि अभी मैं ये सोचकर ही खुश हूं कि तीन में से दो जिंदा बच गये।”
“उनका बच जाना ही साबित कर देता है सर कि हमने इंटेंशनली वहां कोई गोली नहीं चलाई थी।”
“मैं जानता हूं भई। फुल काबू में आ चुके मुजरिम का घुटना फोड़ देना, या अपने सवाल का जवाब न मिलने पर किसी अपराधी के पंजे में गोली मार देना, भला इंटेंशनली किया धरा कैसे हो सकता है?”
“थैंक यू सर।”
“अभी कोई केस है तुम्हारे पास?”
“कई हैं सर।”
“कई?” एसीपी को थोड़ी हैरानी हुई, क्योंकि उसकी नॉलेज में तो विराट एकदम खाली होना चाहिए था।
“जी हां।”
“उनमें से जो सबसे अहम हो उसके बारे में बताओ।”
“ब्रोकेन ग्लास वाला मामला सर।”
“वो क्या बला है?”
“पिछले महीने कैंटीन में एक चाय का एक गिलास टूट गया था, मैं पता लगाने की कोशिश कर रहा था कि वह जानबूझकर तोड़ा गया, या कोई बेध्यानी में वैसा कर बैठा था।”
“तुमने कहा ‘था’, यानि केस सॉल्व हो चुका है?”
“यस सर, हालांकि मामला बहुत उलझा हुआ था, मगर आप तो जानते ही हैं कि हार मानना मैंने नहीं सीखा है, इसलिए आखिरकार तो उसके लिए जिम्मेदार शख्स को ढूंढ ही निकाला।”
“गिरफ्तार किया या नहीं अभी तक?”
“नहीं।”
“नहीं! वजह?”
“गुनाह छोटा है सर, जबकि जिम्मेदार शख्स का ओहदा बहुत बड़ा है। उसे हथकड़ियां पहनाने की अथॉरिटी भी नहीं है मेरे पास, इसलिए गिरफ्तारी पॉसिबल नहीं हो पाई है अभी तक।”
“है कौन?”
“मुझे अपनी नौकरी बहुत प्यारी है सर।”
“बेफिक्र होकर बताओ, मैं तुमपर कोई आंच नहीं आने दूंगा।”
“प्रॉमिस कर रहे हैं?”
“हां कर रहा हूं।”
“अपने वादे पर डटे रहियेगा सर, वरना मैं बेचारा तो खड़े पैर बेरोजगार हो जाऊंगा।”
“अब बताओ भी।”
“विद सॉरी बोलता हूं सर कि वह जिम्मेदारी आप पर आयद होती है।”
जवाब में पहले तो उसने घूरकर विराट को देखा फिर खुद को जब्त कर के बोला, “तुम्हें लगता है कैंटीन में जाकर गिलास तोड़ने जैसा - तुम्हारी निगाहों में भयानक अपराध - मैंने किया था?”
“नो सर।”
“फिर?”
“गिलास कैंटीन वाले लड़के से टूटा था।”
“फिर भी अपराधी मैं?”
“यस सर।”
“साबित कर के दिखाओ वरना समझ लो मैं अपना वादा भूल गया।”
“मामला बेहद कांप्लीकेटेड है सर। हुआ ये कि छह अक्टूबर की शाम सात बजे आप बहुत ही ज्यादा गुस्से में थे, पूरे स्टॉफ को डांट फटकार रहे थे, जिसमें से एक ये नाचीज भी था। उसी दौरान वह लड़का आपके कमरे में चाय के खाली गिलास उठाने आ गया। आप गुस्से में तो थे ही, इसलिए उसपर भी बरस पड़े और चिल्लाते हुए ये कह दिया कि ‘गिलास क्या कहीं भागे जा रहे थे, बाद में नहीं ले जा सकता था?’ सुनकर लड़का भयभीत हो उठा। बुरी तरह कांपते हाथों से उसने खाली गिलास उठाये और वापिस कैंटीन में पहुंचा, जहां गिलास को सिंक में डाल ही रहा था कि उनमें से एक उसके हाथ से छूट गया, क्योंकि वह बुरी तरह डरा हुआ था। इस तरह से देखें तो गलती भले ही उससे हुई थी मगर जिम्मेदार सरासर आप थे।”
“और कुछ बकना चाहते हो, मेरा मतलब है क्या बाकी के केस भी ऐसे ही हैं जिनपर तुम अपना वक्त जाया कर रहे हो, या आगे करने वाले हो?”
“यस सर।”
“ढंग का काम करना चाहते हो? वह काम जिसके लिए सरकार तुम्हें तंख्वाह देती है।”
“ऑफ कोर्स चाहता हूं सर।”
“शुक्र है - कहकर एसीपी ने अपने सामने रखी खुली हुई फाईल को उसकी तरफ सरका दिया - ध्यान से पढ़ो इसे, और जब मामला पूरी तरह तुम्हारी समझ में आ जाये तो बता देना, उसके बाद हम केस डिस्कस करेंगे।”
सुनकर विराट राणा ने बड़े ही नाटकीय अंदाज में उस फाईल को बंद कर के अपने माथे से लगाया, फिर बारी बारी से दोनों आंखों से टच करने के बाद, वापिस एसीपी की तरफ खिसकाता हुआ बोला, “सब समझ गया सर, अब बेशक आप डिस्कस कर सकते हैं।”
“इंस्पेक्टर विराट सिंह राणा।” राजावत का लहजा थोड़ा सख्त था।
“आपके सामने हाजिर है सर।”
“अव्वल तो ऐसे घटिया मजाक मैं पसंद नहीं करता, फिर भी तुम्हें थोड़ी छूट दे रखी है तो इसका मतलब ये नहीं है कि तुम उसका बेजा फायदा उठाओ। खासतौर से किसी केस से रिलेटेड इस तरह के मजाक मैं हरगिज भी बर्दाश्त नहीं कर सकता, क्या समझे?”
“यही कि आप फुर्सत में बैठे हैं, इसलिए मुद्दे से भटक रहे हैं।”
“तुम चाहते हो कि तंग आकर मैं तुम्हारा ट्रांसफर एंटी क्राईम ब्यूरो से वापिस क्राईम ब्रांच में कर दूं? जहां से तरक्की पाकर तुम यहां पोस्टेड हुए थे।”
“अरे नहीं सर, प्लीज ऐसा मत कीजिएगा। बड़ी मुश्किल से क्राईम ब्रांच के एसीपी जगजीत बच्चन साहब मुझसे पीछा छुड़ाने में कामयाब हुए थे। आपने दोबारा वहां भेज दिया तो गिलास तोड़ने के साथ-साथ उनके हॉर्टफेल का इल्जाम भी आपके सिर आ लगेगा, जो मेरी निगाहों में अच्छी बात तो नहीं कही जा सकती।”
सुनकर राजावत ने बड़ी मुश्किल से खुद को मुस्कराने से रोका।
“आप डिस्कशन शुरू तो कीजिए सर, शिकायत का मौका हरगिज भी नहीं दूंगा।”
“फाईल बाद में पढ़ोगे?”
“दोबारा क्यों पढ़ूंगा सर?”
“तुम ये कहना चाहते हो कि - राजावत उसे घूरता हुआ बोला - फाईल को माथे से लगाते के साथ ही उसकी डिटेल्स तुम्हारे दिमाग की मैमोरी में पहुंच गयी?”
“यस सर।”
“ठीक है - एसीपी का लहजा थोड़ा चैलेंजिंग हो उठा - केस से रिलेटेड कोई भी एक बात मुझे बता दो, तब मैं फौरन तुम्हारी बकवास पर यकीन कर लूंगा।”
“राहुल हांडा, जो कि दो महीने पहले बड़े ही रहस्यमयी परिस्थितियों में अपने ही सात दोस्तों के बीच से लापता हो गया। यूं गायब हुआ जैसे अभी था, अभी नहीं था। हालांकि साउथ एक्स पुलिस ने अपनी तरफ से जांच में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी है, मगर सच यही है कि दो महीने बीत चुकने के बाद भी ना तो उसकी कोई खोज खबर मिली, ना ही कहीं से उसकी डैडबॉडी बरामद हो पायी है।”
राजावत हकबका कर उसकी शक्ल देखने लगा।
“अब डिस्कस करें सर?”
“इतना सबकुछ तुमने फाईल को माथे से सटाकर जान लिया?”
“यस सर, सालों की प्रैक्टिस के बाद बंदे को ये टैलेंट प्राप्त हुआ है।”
“जरूर हिमालय पर जाकर तपस्या की होगी, नहीं?”
“वहां तपस्या करने से ज्ञान की नहीं मोक्ष की प्राप्ति होती है सर, इसलिए मैंने ‘गया’ का फेरा लगाया और सफल होकर लौटा। मेरी मानें तो कम से कम एक बार आपको भी वहां का फेरा जरूर लगाना चाहिए।”
“सोचूंगा उस बारे में, अभी वह सुनो जो मैं कहने जा रहा हूं।”
“यस सर।”
“राहुल हांडा का बाप मनीष हांडा ‘सुपर कूल’ के बोर्ड ऑफ डाइरेक्टर्स में से एक है। तुम्हारा खुद का भी एक बड़ा बिजनेस बैकग्राउंड है इसलिए जानते ही होगे कि ‘सुपर कूल’ मामूली से हीटर से लेकर एसी तक सबकुछ बनाती है।”
“नाम सुना है मैंने हांडा साहब का।”
“गुड, उसकी हैसियत टाटा और अंबानी के मुकाबले भले ही कम हो मगर इस बात में शक की कोई गुंजाईश नहीं है कि दौलत की कोई कमी नहीं है उसके पास। रईस आदमी के सलाहियात, उनके जान पहचान का दायरा भी उसी हिसाब से बड़ा होता है, जिसका फायदा जरूरत पड़ने पर लोग बाग उठाते ही हैं। जैसे कि अभी हांडा ने उठाया और केस को लोकल थाने से हटवाकर हमारे पास ट्रांसफर करा दिया। आगे किसी वजह से हम भी फेल हो जाते हैं तो ये केस सीबीआई के हवाले कर दिया जायेगा।”
“मैं उसकी पहुंच का पहले ही रोब खा चुका हूं सर।”
“अच्छी बात है, अब आगे सुनो - राजावत मेज पर रखे गिलास से पानी का एक घूंट भरकर बोला - जो हुआ वह आज से करीब दो महीने पहले छह और सात अक्टूबर की दरम्यानी रात को हुआ, जिसकी डिटेल्स तुम्हें केस फाईल में मिल जायेगी। मोटे तौर पर पूरी कहानी ये है कि घटना वाली रात जसोला में अपोलो अस्पताल के ठीक पीछे स्थित होटल ‘रॉयल ब्यूटी’ की छत पर एक पार्टी चल रही थी। पार्टी में कुल जमा आठ लोग थे, जिनमें से एक राहुल था जबकि बाकी के उसके दोस्त थे। फिर आधी रात के बाद किसी वक्त लड़का गायब हो गया। यूं हो गया कि लाख सिर पटकने के बाद भी किसी की समझ में कुछ नहीं आया। बिल्डिंग से छलांग वह लगा नहीं सकता था और सीढ़ियों या लिफ्ट के जरिये होटल से बाहर निकलता दिखाई नहीं दिया। साउथ एक्स पुलिस ने वहां की सीसीटीवी फुटेज ना सिर्फ खुद जांची बल्कि ये जानने के लिए कि उसके साथ कोई छेड़छाड़ तो नहीं की गयी थी, फॉरेंसिक लैब भी भेज दी। जहां से यही जवाब हासिल हुआ कि फुटेज के साथ कोई मैनीपुलेशन नहीं किया गया था। किया जा भी नहीं सकता था क्योंकि ‘रॉयल ब्यूटी’ असल में राहुल के बाप मनीष हांडा की ही प्रॉपर्टी है।”
“जसोला में कोई होटल भी है, ये बात पहली बार सुन रहा हूं।”
“अब तो दो तीन निकल आये हैं, जिनका सारा कारोबार उन पेशेंट्स के होते सोतों की वजह से चलता है जो अस्पताल में भर्ती होकर अपना इलाज करा रहे होते हैं। यही कारण है कि वहां के तीनों होटलों में महाना किराये पर भी कमरा हासिल किया जा सकता है।”
“मैं समझ गया सर।”
“गुड तो अब फौरन काम पर लग जाओ। नतीजा हर हाल में निकाल कर दिखाना है विराट क्योंकि ये एसीबी की नाक का सवाल है। फिर इस बार तो तुम ये कंप्लेन भी नहीं कर सकते कि डिपार्टमेंट ने तुम्हें पैरानार्मल इंसीडेंट्स का एक्सपर्ट बनाकर रख दिया है।”
“थैंक यू बोलता हूं न सर।” कहकर वह उठ खड़ा हुआ।
“एक आखिरी सवाल।”
“हुक्म कीजिए।”
“केस क्या है, कैसे जाना? और खबरदार जो इस बार कोई कॉमिक बात कही।”
“इस फाईल को मैंने ही आपकी टेबल तक पहुंचाया था सर, और पढ़ ये सोचकर लिया कि कहीं मेरे खिलाफ जाती कोई बात तो दर्ज नहीं है इसमें।”
“अगर होती भी तो क्या कर लेते?”
“डीसीपी साहब आपको फोन कर के पूछते कि फाईल मिल गयी? जवाब में आप हैरानी के साथ सवाल कर रहे होते कि ‘कौन सी फाईल सर?’।” कहकर राजावत को जवाब में कुछ कहने का मौका दिये बिना ही विराट राणा वहां से बाहर निकल गया।
अपने कमरे में पहुंचकर विराट ने इंटरकॉम के जरिये कैंटीन में फोन कर के एक चाय भेजने को कहा, फिर मोबाईल उठाकर सब इंस्पेक्टर सुलभ जोशी का नंबर डॉयल करने जा ही रहा था, कि वह खुद वहां पहुंच गया।
“गुड ईवनिंग सर।”
“वेरी गुड ईवनिंग जोशी साहब, आईये विराजिए।”
“थैंक यू सर।”
“उम्र बहुत लंबी है आपकी, बड़ी शिद्दत से याद किया था मैंने।”
“आप कहते हैं तो लंबी ही होगी सर - वह बैठता हुआ बोला - क्योंकि आपके गेस हमेशा सच ही साबित होते हैं - फिर सवाल किया - कोई खास बात हो गयी सर?”
“नौकरी को कुछ दिनों तक और बचाये रखने का जुगाड़ हो गया है।”
“मतलब?”
“एक केस हाथ लगा है, उम्मीद है लंबा खिंचेगा।”
“ये तो वाकई अच्छी खबर है सर, अब सरकार कम से कम हमें निठल्ला तो करार नहीं ही दे पायेगी - जोशी हंसता हुआ बोला - बल्कि मैं तो कहूंगा कि दस दिन में सॉल्व होता दिखाई दे तो आप महीना लगा दीजिएगा। महीना लगता दिखाई दे तो दो महीने तक खींच दीजिएगा। आखिर हमारी नौकरी उस एक केस पर ही तो टिकी होगी, क्योंकि आगे कहीं कोई जुर्म होने के चांसेज खत्म हो गये हैं। राम राज्य जो आ गया है।”
विराट ने घूरकर उसे देखा।
“लगता है कुछ ज्यादा ही बोल दिया, सॉरी। बताइये केस क्या है?”
जवाब में विराट ने पूरा किस्सा कह सुनाया।
“हद है सर - पूरी बात सुनकर वह बोला - आप एक ऐसे केस के लंबा खि्ांचने की उम्मीद कर रहे हैं जो कुर्सी से उठे बिना भी सॉल्व किया जा सकता है।”
“कर तो रहा हूं भई, मगर तुम्हें इतना मामूली क्यों लग रहा है ये?”
“क्योंकि है ही मामूली। एक पार्टी में आठ लोग मौजूद थे, जिनमें से एक गायब हो गया, तो इसमें हमारे करने को भला रखा ही क्या है? सिवाय इसके कि बाकी के सात लोगों इंटेरोगेट कर के असलियत का पता लगा लें, क्योंकि अपराधी या तो उन सातों में से कोई एक होगा, या फिर सातों ने मिलकर उस कारनामें को अंजाम दिया होगा।”
“तुम मामले की गंभीरता को कम कर के आंक रहे हो जोशी साहब।”
“ऐसा?”
“ऑफ कोर्स ऐसा ही है। असल प्रॉब्लम उन सातों को इंटेरोगेशन रूम तक पहुंचाने की ही है, जो कि मुझे नहीं लगता कि हम पहुंचा पायेंगे। इसलिए पहले उनके खिलाफ सबूत इकट्ठा करना पड़ेगा, तब जाकर पूछताछ संभव हो पायेगी।”
“माफी के साथ पूछता हूं सर कि क्यों?”
“इसलिए क्योंकि गुमशुदा लड़के के साथ-साथ उसके सातों दोस्त भी हाई सोसाइटी से संबंध रखते हैं। उनपर हमारी जोर आजमाईश नहीं चल सकती, सवाल-जवाब भी नहीं कर सकते। बल्कि बिना किसी ठोस सबूत के उन सातों को यहां तलब कर पाना ही पॉसिबल नहीं हो पायेगा।”
“ये आप कह रहे हैं, जिसने ऐसी बातों की कभी परवाह नहीं की?”
“हां भई कह रहा हूं, क्योंकि मुझे नहीं लगता कि उन सातों में से किसी एक का भी कोई क्रिमिनल रिकॉर्ड होगा, ऊपर से सब के सब 18-20 आयुवर्ग के बच्चे हैं, इसलिए जाहिर है कि अभी पढ़ाई लिखाई ही कर रहे होंगे। ऐसे बच्चों को अरेस्ट करना और डंडे के बूते पर सच्चाई कबूल करवाना ना तो संभव है ना ही मेरी अंतर्रात्मा मुझे वैसा कुछ करने की इजाजत देती है।”
“शुक्र है खुदा का - जोशी गहरी सांस लेकर बोला - आपने ये नहीं कह दिया कि सब के सब नाबालिग हैं, वरना तो रही सही उम्मीद भी खत्म हो जाती।”
“नहीं नाबालिग तो उनमें से कोई एक जना भी नहीं है।”
“केस रजिस्टर कहां किया गया है?”
“साउथ एक्स थाने में, दो महीना पहले।”
“दो महीने बीत चुके हैं?” जोशी को हैरानी हुई।
“तभी तो राह आसान नहीं दिखती।”
“कुछ तो फिर भी सोचा होगा आपने?”
“कुछ खास नहीं। सबसे पहले हम थाने पहुंचकर इंवेस्टिगेशन ऑफिसर से मिलेंगे, उसके बाद राहुल हांडा के पेरेंट्स से, फिर आखिर में घटना स्थल का फेरा लगायेंगे। तब कहीं जाकर ये तय करेंगे कि हमारा अगला कदम क्या होना चाहिए।”
उसी वक्त चाय की केतली और कप हाथ में लिये एक लड़का वहां आ खड़ा हुआ। उसने एक डिस्पोजल कप मेज पर रखा और चाय डालकर जाने लगा।
“एक और रख जा बेटा - विराट बोला - या जोशी साहब दिखाई नहीं दे रहे तुझे?”
“बाद में लाता हूं सर, अभी कुछ ऑर्डर पहले से हैं।”
“क्यों साहब को नाराज करने पर तुला है? चाय नहीं दे सकता तो एक खाली कप ही रख जा, हम शेयर कर लेंगे।”
लड़के को जैसे उनका लिहाज हो आया, उसने एक खाली कप जोशी के सामने रखा और उसे लबालब चाय से भरकर कमरे से बाहर निकल गया।
“अगर मामला हाई सोसाइटी का है सर, तो अच्छा ही हुआ कि केस आपको सौंप दिया गया। किसी दूसरे को असाइन किया गया होता तो वह बेचारा तो बड़े-बड़े लोगों की धौंस सहकर ही अपना दिमाग खराब करवा लेता, ईमानदारी से ड्यूटी तो क्या कर पाता।”
“यार जोशी साहब, कभी कभी मेरी समझ में नहीं आता कि तुम मुझपर तंज कस रहे हो, या तारीफ कर रहे हो? एकदम से कंफ्यूज होकर रह जाता हूं।”
“मैं खुद भी कहां समझ पाता हूं सर - कहकर उसने चाय का कप उठाकर एक चुस्की ली फिर बोला - लेकिन आपके साथ काम कर के मजा आ जाता है, इस बात में शक की कोई गुंजाईश नहीं है।”
“थैंक यू, अब फटाफट चाय खत्म करो ताकि हम साउथ एक्स पहुंच सकें। देखें वहां की पुलिस किस नतीजे पर पहुंची है, अभी कुछ जान पाये भी हैं या नहीं, वैसे केस फाईल तो यही बताती है कि अभी तक वे लोग कुछ नहीं कर पाये हैं।”
“जाना तो खैर क्या होगा सर? वरना केस सॉल्व नहीं हो चुका होता।”
“यही तो देखना है वहां पहुंचकर।”
कहने के बाद वह कप उठाकर यूं तल्लीनता से चाय की चुस्की लेने में जुट गया जैसे आज की तारीख में उसे खाली करने के अलावा कोई और काम ही न हो उसके पास।
शाम सात बजे दोनों साउथ एक्स थाने पहुंचे, जहां सब इंस्पेक्टर मुकुल सिंह उनका ही इंतजार कर रहा था। इसलिए कर रहा था क्योंकि डीसीपी की तरफ से पहले ही उस बाबत इत्तिला दी जा चुकी थी, और खुद विराट ने भी ऑफिस से निकलने से पहले उससे कह दिया था कि वह थाने में अवेलेबल रहे।
दोनों मुकुल सिंह के सामने उसके कमरे में जा बैठे।
“शुरू करें सर?” विराट ने पूछा।
“यस सर।”
“अरे भई शुरू करने से मेरा मतलब था, तुम शुरू करो। राहुल हांडा के लापता होने के बाद से अब तक का सारा किस्सा कह सुनाओ। बताओ क्या कुछ जान पाये हो इस केस में?”
“कुछ भी नहीं सर, सच पूछिये तो केस जहां से शुरू होता है वहीं खत्म हो जाता है। जिस वक्त शुरू होता है घूम फिर कर वापिस उस वक्त पर ही लौट आता है। मतलब कि कहीं कोई सूत्र नहीं, आगे बढ़ने के तमाम रास्ते बंद। यूं लगता है जैसे लड़का जादू के जोर से गायब कर दिया गया था।”
“होता है कभी कभी - विराट मुस्कराया - लेकिन कुछ न कुछ तो फिर भी किया होगा, वही बता दो। बल्कि शुरू से शुरू करो, उस वक्त से जब पुलिस को घटना की जानकारी दी गयी।”
“सात अक्टूबर की शाम को राहुल का बाप अपनी मिसेज के साथ बेटे की गुमशुदगी करवाने खुद यहां पहुंचा था सर। इत्तेफाक से थाने में एक मैं ही ऐसा सब इंस्पेक्टर था जिसके पास कोई केस नहीं था। इसलिए एसएचओ साहब ने मुझे फौरन अपने कमरे में बुला लिया।”
“राहुल के दोस्तों ने उसके गायब होने की खबर नहीं दी थी पुलिस को?”
“नहीं सर, उल्टा वो सब खुद भी गायब हो गये थे।”
“मतलब?”
“मैं शुरू से बताता हूं आपको कि पार्टी वाली रात क्या हुआ था?”
“दैट्स गुड।”
“वह पार्टी होटल ‘रॉयल ब्यूटी’ की छत पर रखी गयी थी। जिसमें कुल जमा आठ दोस्तों ने शिरकत की थी। मेजबान राहुल हांडा था क्योंकि होटल उसके बाप की ही मिल्कियत है। रात साढ़े बारह तक उनका नाच गाना, खाना पीना निर्विघ्न चलता रहा। फिर अचानक ही सबका ध्यान इस बात की तरफ गया कि राहुल उनके बीच नहीं था। उस बात को नोट कर के सब बड़े हैरान हुए। तत्काल राहुल के मोबाईल पर कॉल की गयी, जो कि बंद पड़ा था। उसके बाद सब होटल मैंनेजर के पास पहुंचे और पूरे होटल में राहुल की तलाश शुरू हो गयी। वह कहीं नहीं था, न तो किसी सीसीटीवी फुटेज में भी वहां से जाता दिखाई दिया ना ही छत पर किसी प्रकार के वॉयलेंस के चिन्ह बरामद हुए।”
“कमाल है, दोस्तों ने कम से कम उसे अपने बीच से उठते तो जरूर देखा होगा, भले ही इस बात का पता न लगा हो कि वह किधर गया।”
“नहीं देखा था सर। हालांकि उनका बयान पांच दिन बाद हासिल कर पाया था, मगर फायदा तो फिर भी कुछ नहीं हुआ।”
“पांच दिन बाद क्यों?”
“हुआ ये सर कि राहुल के गायब होने के बाद सबने मिलकर उसे ढूंढना शुरू कर दिया और सुबह तक बस ढूंढते ही रहे थे। उसकी कार होटल की पार्किंग में तब भी मौजूद थी, मतलब वह खुद कहीं चला नहीं गया था। हैरानी की बात ये थी सर कि उन सातों ने ना तो खुद पुलिस को उस बात की जानकारी दी ना ही होटल के मैंनेजर को देने दिया। उसे ये कहकर चुप करा दिया गया कि कहीं ना कहीं से वे लोग अपने दोस्त को खोज लायेंगे, तब तक वह जुबान बंद कर के बैठे। यहां तक कि राहुल के घरवालों को भी उस बात की खबर अगले रोज जाकर लगी थी। आगे हुआ ये कि लड़के को ढूंढ पाने में नाकाम होकर सातों दोस्त सुबह चार बजे के करीब एक गाड़ी में सवार हुए और हरिद्वार निकल गये।”
“वॉट?” विराट के माथे पर बल पड़ गये।
“है न मजे की बात सर, उनका एक दोस्त गायब था, और वो सब पुलिस को खबर करने की बजाये हरिद्वार जा रहे थे। बाद में वापिस लौटने पर जब मैंने उनसे पूछताछ की तो सबके सब एक सुर में कहने लगे कि राहुल के गायब होने से उनका मन बहुत विचलित हो गया था, इसलिए शांति की तलाश में निकल गये थे।”
“बकवास, कोई बड़ा बुजुर्ग होता तो एक बार को ये कहानी चल भी जाती। मगर 18-20 साल के आयुवर्ग वाले बच्चे शांति की तलाश में कहीं चले गये थे, ये क्या कोई मानने वाली बात है। फिर जाना ही था तो राहुल की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद, या उसके घरवालों को इंफॉर्म कर के भी तो जा सकते थे?”
“एग्जैक्टली सर, तभी तो मुझे बार बार शक होता है कि जो हुआ वह उन सातों के किये ही हुआ था। उनका मन अशांत इसलिए नहीं था क्योंकि उनका एक दोस्त गायब हो गया था, बल्कि इसलिए था क्योंकि उसे उन लोगों ने खुद गायब कर दिया था। करने के बाद डर गये इसलिए फौरन दिल्ली से भाग खड़े हुए।”
“सख्ती तो बरती नहीं होगी?”
“मेरी क्या मजाल सर कि ऐसा कर पाता, उल्टा जब उन्हें पूछताछ के लिए थाने आने को कहा गया तो दर्जनों वकीलों को अपने साथ ले आये। जिनकी सबसे पहली मांग यही थी कि जो भी सवाल जवाब किये जायेंगे वह उनकी और किसी बड़े पुलिस अफसर की मौजूदगी में ही हो सकते थे। तब मजबूरन एसएचओ साहब ने डीसीपी साहब को कॉल कर के यहां बुला लिया। लंबी पूछताछ हुई, मगर हासिल कुछ भी नहीं हुआ। होता भी कैसे सर? मुजरिमों को भला इस ढंग से भी कहीं तोड़ा जा सकता है, जब उन्हें पहले से पता हो कि हम उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकते। लिहाजा हर सवाल का बस एक ही जवाब मिला कि उन्हें नहीं मालूम राहुल कहां था।”
“फिर तुमने क्या किया?”
“प्रोसिजर फॉलो करते हुए दिल्ली एनसीआर के तमाम थानों को राहुल हांडा की फोटो भेज दी गयी, साथ ही छह तारीख के बाद बरामद हुईं लावारिश लाशों की भी खूब जांच पड़ताल की गयी, मगर हासिल फिर भी कुछ नहीं हुआ। हां उस दौरान हमने कुछ ऐसी डैड बॉडीज के बारे में जरूर पता लगा लिया जिनकी कद काठी राहुल हांडा से मिलती थी, मगर आखिरकार तो वह किसी और की ही निकली थीं।”
“मोबाईल लोकेशन के जरिये कोई रिजल्ट नहीं निकला?”
“नो सर, एक बार राहुल का मोबाईल ऑफ हुआ तो दोबारा आज तक कभी एक पल के लिए भी ऑन नहीं किया गया है, इसलिए मुझे यही लगता है कि विक्टिम का मोबाईल भी उसकी लाश के साथ ही कहीं दफ्न कर दिया गया होगा।”
“तुम तो उसके मर चुका होने के प्रति एकदम श्योर लगते हो मुकुल जी?”
“मर ही गया होगा सर, तभी तो तमाम कोशिशों के बावजूद उसका कोई सुराग नहीं मिल पा रहा। और लाश के बारे में मेरा अपना अंदाजा है कि उसे पहाड़ों पर ले जाकर कहीं किसी खाई में धकेल दिया गया होगा, जहां से शायद ही कभी बरामद हो सके।”
“यानि हरिद्वार जाने की एक वजह लाश को ठिकाने लगाना भी रहा हो सकता है?”
“थी ही वही वजह सर।”
“खैर ये बताओ कि बाद में ही सही मामले की खबर मनीष हांडा तक कैसे पहुंची?”
“मैंनेजर ने ही उसे इंफॉर्म किया था सर। हुआ ये कि जब अगले रोज दोपहर तक राहुल का मोबाईल ऑन नहीं हुआ और उसके दोस्तों का नंबर भी बंद आने लगा, तो मैंनेजर ने घबराकर उस बात की जानकारी राहुल के पिता को दे दी। जिसके बाद उसने खुद भी बाकी के दोस्तों को फोन करने की कोशिश की, और उनका नंबर बंद पाकर रिपोर्ट लिखवाने थाने आ गया।”
“और कुछ?”
“बताने लायक कुछ भी नहीं है सर।”
“ठीक है मुकुल साहब - विराट उठता हुआ बोला - अब हम चलते हैं, देखें जहां तुमने छोड़ा है वहां से आगे बढ़ पाते भी हैं या नहीं।”
“मुझे अपनी नाकामयाबी का बहुत अफसोस है सर। यकीन जानिये अगर राहुल के दोस्तों को इंटेरोगेट करने का मौका हासिल हो गया होता, तो केस कब का सॉल्व कर चुका होता मैं।”
“दिल छोटा मत करो यार, हमारी नौकरी ही ऐसी है। फूंक फूंक कर कदम रखना पड़ता है। खासतौर से तब जब संदिग्ध किसी बड़े बाप की औलाद निकल आता है। जबकि यहां तो सातों के सातों ही रईस परिवारों से संबंध रखते हैं।”
सुनकर मुकुल ने बड़े ही गंभीर भाव से ऊपर नीचे मुंडी हिला दी।
रात नौ बजे के करीब दोनों पुलिस ऑफिसर्स राहुल के बंगले पर पहुंचे। आने से पहले विराट उसके बाप को फोन कर के मुलाकात का वक्त हासिल कर चुका था, बावजूद इसके वहां पहुंचने पर मालूम पड़ा कि मनीष हांडा तब तक घर नहीं लौटा था।
“साहब का फोन आया था सर जी - गार्ड ने बताया - वह किसी मीटिंग में थे, इसलिए लौटने में देर हो गयी। उन्होंने आप लोगों को भीतर बैठाने को कहा है।”
“उनकी मिसेज तो होंगी घर में?”
“जी नहीं।”
“कहीं बाहर गयी हैं?”
“हॉस्पिटल में हैं सर, जिस दिन राहुल साहब के गायब होने का पता लगा, उसी शाम उन्हें दिल का दौरा पड़ गया था। और एक बार हॉस्पिटल में एडमिट क्या हुईं आज तक वहां से निकल ही नहीं पाई हैं। बीच में बस एक दिन के लिए वापिस लौटी थीं, मगर रात को तबियत फिर से खराब हो गयी जिसके बाद हांडा साहब ने वापिस उन्हें अस्पताल ले जाकर एडमिट करा दिया था।
“और कौन है बंगले में?”
“घर का आदमी तो कोई नहीं सर जी, बस नौकर चाकर ही हैं। लेकिन साहब ने बताया था कि साढ़े नौ तक पक्का आ जायेंगे, तब तक आप लोग वेट कर लीजिए।”
विराट ने घड़ी देखी तो पाया कि नौ बजकर पांच मिनट हो रहे थे। ऐसे में ऑफिस जाकर वापिस लौटने का कोई मतलब नहीं बनता था, क्योंकि ओखला तक का अपडाउन करने में ही उन्हें 40-45 मिनट लग जाते।
उसने इंतजार करने का फैसला किया।
गार्ड ने गेट खोलकर उन्हें भीतर भेजा और बंगले में किसी को फोन कर के उस बात की जानकारी भी दे दी।
दोनों सामने दिखाई दे रही दो मंजिला इमारत तक पहुंचे तो एक नौकर उनके सामने आ खड़ा हुआ। जिसने उन्हें ले जाकर ड्राईंगरूम में बैठाया और बिना पूछे पहले पानी फिर चाय दे गया।
मनीष हांडा का इंतजार विराट और जोशी के लिए बड़ा ही लंबा और थकाऊ साबित हुआ, क्योंकि साढ़े नौ बज चुकने के बाद भी उसका कोई अता-पता नहीं था।
उकताकर विराट ने उसका नंबर डॉयल किया तो हांडा ने सॉरी बोलते हुए दस मिनट का वक्त और हासिल कर लिया, अलबत्ता दस बजे से पहले तो फिर भी नहीं लौट पाया।
ड्राईंगरूम में कदम रखने के साथ ही उसने बड़ी शालीनता के साथ दोनों को एक बार फिर से सॉरी कहा और उनके सामने बैठता हुआ बोला, “बहुत बुरा फंस गया था इंस्पेक्टर। बोर्ड ऑफ डाइरेक्टर्स की मीटिंग थी, जो उम्मीद से कहीं ज्यादा लंबी खिंच गयी। वरना तो छह बजे की फ्लाईट में सीट पहले से रिजर्व थी मेरी, इसलिए नौ बजे तक हर हाल में घर पहुंच जाता। मगर लेट लतीफी के कारण दूसरी फ्लाईट लेनी पड़ी जो कि सात बजे की थी। अभी सीधा एयरपोर्ट से ही चला आ रहा हूं।”
“आप मीटिंग के लिए कहीं बाहर गये थे?” विराट ने हैरानी से पूछा।
“हां भई मुम्बई, तभी तो इतना वक्त लग गया।”
“ऐसे में सॉरी तो हमें बोलना चाहिए सर, एहसास तक नहीं था कि आप दिल्ली से बाहर हैं।”
“इट्स ओके आखिर काम तो मेरा ही कर रहे हैं आप लोग। कहिए क्या जानना चाहते हैं, या कुछ बताने आये हैं?”
“नहीं सर बताने को तो कुछ भी नहीं है, क्योंकि केस आज ही हमारे हाथ में आया है। हां सवाल बहुतेरे हैं, जिनमें से कुछ एक का जवाब आपसे हासिल होने की उम्मीद लेकर आये हैं।”
“मैं भी क्या बता सकता हूं भई? - वह अफसोस भरे लहजे में बोला - दो महीने हो गये उसे गायब हुए, और पुलिस ये तक कहने की स्थिति में नहीं पहुंच पाई कि राहुल जिंदा है भी या नहीं?”
“मुझे अफसोस है सर - वह धीरे से बोला - लेकिन अब ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। राहुल के साथ उस रात क्या हुआ था, मैं जल्द ही इस बात का पता लगा लूंगा। साथ ही ईश्वर से प्रार्थना करूंगा कि जो बात सामने आये वह आपके लिए गुड न्यूज का दर्जा रखती हो।”
“अब तो बैड न्यूज का भी स्वागत करने को मैं तैयार हूं इंस्पेक्टर, कम से कम आस तो खत्म होगी। दो महीने हो गये लेकिन उसकी मां सदमें से उबर नहीं पाई है, आज भी हॉस्पिटल में पड़ी वह हमारे राहुल की राह देख रही है।”
“सॉरी सर।”
“खैर पूछो क्या जानना चाहते हो?”
“साउथ एक्स पुलिस की जांच रिपोर्ट हासिल कर चुके हैं हम, उससे पता लगा कि गायब होने से पहले आखिरी बार आपका बेटा आपके ही एक होटल ‘रॉयल ब्यूटी’ की छत पर दोस्तों के साथ पार्टी कर रहा था। जहां से वह अचानक किसी की निगाहों में आये बिना गायब हो गया। आप अपनी तरफ से इसमें कुछ जोड़ना चाहते हैं?”
“नहीं बस इतना ही हुआ था, मेरा मतलब है जो पता लगा वह इतना ही था। पुलिस के साथ-साथ होटल की फुटेज मैंने भी देखी थी, उसमें राहुल अपने दोस्तों के साथ वहां दाखिल होता तो बराबर दिखाई देता था मगर जाता हुआ नहीं दिखा।”
“छत पर तो सीसीटीवी नहीं लगी होगी?”
“नहीं, कभी कोई जरूरत ही महसूस नहीं हुई। वैसे भी सीसीटीवी का असली काम वहां पहुंचे मेहमानों पर नजर रखना होता है, जिनके छत पर जाने का कोई मतलब नहीं बनता, क्योंकि वहां दरवाजे पर हर वक्त ताला लगा होता है।”
“बाकी का पूरा होटल सीसीटीवी सर्विलांस के दायरे में आता है?”
“पिछले हिस्से को छोड़कर। उस तरफ डीडीए का बनाया एक पार्क है, जो साल भर पहले बहुत बड़े बखेड़े की वजह बन गया था, उसी वजह से उस तरफ लगे तमाम कैमरे हमें हटाने पड़े गये थे।”
“कैसा बखेड़ा?”
“पार्क में दिन के वक्त नौजवान जोड़ों का आना जाना खूब होता है, जो कि सीसीटीवी के कारण हमारे सिस्टम में ना चाहते हुए भी रिकॉर्ड हो जाया करता था। मुसीबत तब सामने आई जब हमारे तब के रिसेप्शनिस्ट ने वहां मस्ती कर रहे एक जोड़े की बड़ी आपत्तिजनक वीडियो अलग से कॉपी कर ली। फिर जाने कैसे उसने पता लगा लिया कि उन दोनों में से जो लड़का था वह किसी एमएलए का बेटा था, जबकि लड़की एक पुलिस ऑफिसर की बेटी थी। रिसेप्शिनिस्ट ने कमीनगी ये दिखाई कि उस वीडियो की बिना पर दोनों को ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया। मामला एमएलए से होते हुए उस पुलिस अफसर तक पहुंचा, जिसने असलियत का पता लगाया और हमारे रिसेप्शनिस्ट को गिरफ्तार करवा दिया। उसके पास मौजूद फुटेज की कॉपी और हमारे होटल की तब तक की सारी रिकॉर्डिंग भी डिलीट करा दी गयी। आगे से वैसा कोई बखेड़ा न हो, इसलिए सावधानी बरतते हुए मैंने खुद उधर लगे तमाम कैमरे हटवा दिये थे।”
“यानि पूरे होटल में कम से कम एक जगह तो जरूर ऐसी थी जिधर से आपके बेटे को कैमरे की निगाहों में आये गायब किया जा सकता था?”
“कैसे पॉसिबल है भई? होटल चार मंजिलों तक उठा हुआ है, उतनी ऊंचाई से कोई राहुल को पूरी खामोशी के साथ नीचे कैसे ले जा सकता था। और ले गया होता तो क्या उसके दोस्तों को खबर नहीं लगी होती?”
“फिलहाल आपके इस सवाल का मेरे पास कोई जवाब नहीं है सर - कहकर विराट बड़े ही विश्वास के साथ बोला - लेकिन जल्दी ही होगा।”
“आई होप सो।”
“और कोई बात जो तफ्तीश में हमारे काम आ सके?”
“भई उसके दोस्तों की खबर तो तुम लोगों को पहले से है। उनसे पूछताछ भी हो चुकी है इसलिए जानते ही होगे कि मालूम कुछ भी नहीं पड़ा। बाद में मैंने भी एक एक कर के सबको अपने विश्वास में लेकर राहुल के बारे में सवाल जवाब किया था, मगर सातों ने उसके बारे में कुछ भी जानता होने से साफ इंकार कर दिया था। इसके अलावा बताने को मेरे पास रह ही क्या जाता है?”
“निजी पूछताछ के दौरान कोई बात आपको खटकी हो, या ये लगा हो कि उनमें से कोई एक या सब के सब कुछ छिपाने की कोशिश कर रहे थे?”
“नहीं मैंने ऐसा कुछ भी महसूस नहीं किया था।”
“किसी के साथ कोई दुश्मनी?”
“नहीं है।”
“बिजनेस में कोई कंपीटीटर?”
“ऐसा कोई नहीं जो मेरे बेटे को गायब कर दे, फिर हासिल क्या होना था वैसा कुछ कर के? और लाख रूपये का सवाल ये कि होटल में किसी की निगाहों में आये बिना कोई राहुल को उठाकर कैसे ले जा सकता था?”
“दोस्तों में सबसे ज्यादा उसकी किसके साथ बनती थी?”
“सबके साथ ही अच्छी बनती थी।”
“पार्टी में शामिल दोस्तों के अलावा कोई और जिसे राहुल का दोस्त कहा जा सके?”
“मेरे दूर के एक रिश्तेदार का बेटा है जयदीप, राहुल का उसके साथ अक्सर मिलना-जुलना हो जाया करता था। घर भी आया करता था हमारे। बल्कि राहुल के गायब होने के बाद तो लगातार कई दिनों तक आता रहा था।”
“उसका कोई पता-ठिकाना?”
“लाजपत नगर में ‘जैम्स’ का एक बड़ा शोरूम है उसके फादर का, ‘प्योर जैम्स’ के नाम से। घर भी वहीं सेंट्रल मॉर्केट के करीब में कहीं है। लेकिन स्ट्रीट एड्रेस मैं नहीं जानता। जरूरत हो तो बताओ मैं पता लगा लूंगा।”
“नो प्रॉब्लम सर, हम खुद ढूंढ लेंगे।”
“जैसा तुम लोग ठीक समझो।”
“राहुल की कोई गर्लफ्रैंड?”
“नैना सबरवाल।”
“उसका कोई कांटेक्ट नंबर?”
“मेरे पास नहीं है, मगर सब इंस्पेक्टर मुकुल के पास जरूर होगा।”
“आपका बेटा करता क्या था?”
“कुछ नहीं करता था, लॉस्ट इयर ग्रेज्युएट होने के बाद उसने आगे पढ़ने से मना कर दिया, और बिजनेस में उसकी कोई रूचि थी नहीं, इसलिए यारबाजी के अलावा उसके पास कोई दूसरा काम नहीं था।”
“जिस तरह उन आठों ने छह अक्टूबर की पार्टी अरेंज की थी, क्या वैसा पहले भी कर चुके थे?”
“हर शनिवार को करते थे। पूरी रात घर से बाहर रहते और अगले रोज वापिस लौट आते थे। कई बार सब दोस्त मिलकर कहीं लंबा भी निकल लेते हैं। कोई अंकुश नहीं, मां-बाप का कोई भय नहीं। यंग जनरेशन तो जैसे खुले आसमान में बिना पंख के उड़ना चाहती है। बच्चे को बच्चा कह दो तो उसे गाली लगती है, फौरन इस बात का एहसास करा देता है कि वह अठारह का हो चुका है। हमारे जमाने में हाल ये था कि दोस्तों के साथ मूवी देखने भी घरवालों से छिप छिपाकर जाया करते थे जबकि आज का बच्चा खुलेआम अपनी गर्लफ्रैंड के साथ घूमता है। मां-बाप का लिहाज करना तो जैसे पैदा होने के साथ ही भुला दिया जाता है।”
“वेरी वैल सेड सर - विराट बोला - अगर आपको असुविधा न हो तो क्या हम अभी रात के वक्त आपके होटल जाकर तफ्तीश कर सकते हैं?”
“असुविधा कैसी भई, चले जाओ। मैं मैंनेजर को फोन कर दूंगा।”
“थैंक यू सर।” कहकर विराट उठ खड़ा हुआ।
बाहर निकल कर दोनों गाड़ी में सवार हुए तो जोशी जो अब तक बड़ी मुश्किल से जब्त किये था, बोल पड़ा, “मुझे तो जैसे यकीन ही आ गया सर कि अपराधी राहुल के दोस्तों में से ही कोई एक या फिर सातों हैं।”
“बड़े उतावले हो यार।”
“हां वो तो मैं बराबर हूं सर, लेकिन मेरा उतावलापन बेवजह नहीं है। सातों के साथ सख्ती तो हमें बरतनी ही पड़ेगी, वरना हम भी मुकुल की तरह बस भटकते ही रह जायेंगे, पहुंच कहीं नहीं पायेंगे।”
जवाब देने की बजाये विराट गहरी सोच में डूब गया।
होटल ‘रॉयल ब्यूटी’ चमक दमक और खूबसूरती के मामले में अपने नाम को सार्थक करता जान पड़ता था। ऐन उसी वजह से आस-पास की इमारतों की शोभा धूमिल पड़ जाती थी।
विराट और जोशी गाड़ी से उतरकर भीतर दाखिल हुए ही थे कि सूट बूट में सजा धजा तीस-पैंतीस साल का एक युवक उनके सामने आ खड़ा हुआ।
“नमस्कार सर - वह मुस्कराया - मैं यहां का मैंनेजर शिव आनंद प्रसाद हूं। हांडा साहब का फोन आया था, उन्होंने आप लोगों को पूरा होटल दिखाने को कहा है।”
“देखने नहीं आये हैं शिवानंद साहब, केस इंवेस्टिगेट करने आये हैं।”
“सॉरी सर, मेरा मतलब वही था, कहिये पहले कहां चलना पसंद करेंगे? वैसे आपके डिपार्टमेंट के लोग दो महीने पहले जमकर पूरे होटल का मुआयना कर चुके हैं, इसलिए मुझे नहीं लगता कि यहां कुछ हासिल होगा।”
“कोई बात नहीं भई, एक कोशिश और सही - जोशी बोला - चलकर इमारत की छत दिखाओ हमें।”
मैंनेजर ने सहमति में सिर हिलाया और उनके आगे आगे चल पड़ा।
रिसेप्शन एरिया में पहुंचकर तीनों लिफ्ट में सवार हो गये। फिर टॉप फ्लोर पर पहुंचकर छत का रास्ता सीढ़ियों के जरिये तय किया। तत्पश्चात मैंनेजर ने वहां दरवाजे पर लगा खोला और सब छत पर आ गये।
वह करीब तीन सौ फीट लंबी और उतनी ही चौड़ी छत थी, जिसपर पानी की तीन बड़ी टंकियों और एक जगह इकट्ठा कर के रखे गये टेबल कुर्सी के कबाड़ के अलावा और कुछ नहीं था।
छत की मुंडेर करीब दो फीट ऊंची थी। लेफ्ट में जसोला-अपोला मैट्रो स्टेशन दिखाई दे रहा था, राईट में होटल की ही तरह एक बड़ी बिल्डिंग थी, फ्रंट में दिल्ली को नोयडा के साथ जोड़ती सड़क, जबकि बैक में डीडीए का बनाया वह पार्क था जिसका जिक्र हांडा पहले ही कर चुका था।
दस मिनट में दोनों पूरी छत पर घूम आये। दाईं ओर वाली इमारत होटल के बराबर ही उठी हुई थी मगर दोनों बिल्डिंग्स के बीच का फासला कम से कम भी बीस फीट तो यकीनन रहा होगा, इसलिए ये नहीं हो सकता था कि किडनैपर राहुल को लेकर वहां से दूसरी छत पर पहुंच गया हो। ऊपर से वह ऑफिशियल कांप्लैक्स था जिसके आधी रात तक खुला होने का कोई मतलब नहीं बनता था।
छत के मुआयने से फारिग होकर दोनों मैंनेजर के पास आकर खड़े हो गये।
“पार्टी वाली रात क्या तुम भी यहां पहुंचे थे, चाहे किसी भी काम से आना हुआ हो?”
“दो बार आया था सर, पहली बार रात साढ़े दस बजे खाने का ऑर्डर लेने, और दूसरी बार ग्यारह बजे के करीब खाना सर्व करवाने। उसके बाद मैं वापिस लौट गया और तीसरी बार छत पर कदम तभी रखा, जब रात एक बजे राहुल साहब के दोस्तों ने नीचे पहुंचकर मुझे बताया कि वह उन्हें ढूंढे नहीं मिल रहे थे।”
“दूसरे फेरे में तुमने यहां क्या देखा था?”
“आठों लोग ड्रिंक कर रहे थे। एक तरफ डांसिंग फ्लोर रखा हुआ था, जिसमें सतरंगी लाईटें जल रही थीं। कोई म्युजिक भी बराबर सुनाई दिया था, मगर लाउड नहीं था।”
“तब राहुल यहां मौजूद था?”
“जी हां।”
“कोई और भी था? मेरा मतलब है उन आठों के अलावा कोई और, भले ही तुम्हें उसका नाम न पता हो।”
“नो सर, यहां तो बस आठ लोग ही थे।”
“टुन्न थे?”
“डिनर सर्व किये जाने तक तो नहीं थे सर, लेकिन बाद में जब बाकी के सातों ने नीचे पहुंचकर मुझे जगाया था, तो साफ-साफ नशे में जान पड़ते थे।”
“पार्टी कब तक चली थी?”
“मालूम नहीं सर, मगर रात एक बजे से पहले तो हो ही गयी थी, क्योंकि उसके बाद सब राहुल साहब को ढूंढने में जुट गये थे। उनकी बात सुनकर मैंने भी होटल स्टॉफ को इकट्ठा किया और सबको राहुल साहब की तलाश में लगा दिया। एक आदमी को पॉर्किंग में ये देखने के लिए भी भेजा था कि उनकी गाड़ी वहां मौजूद थी या नहीं।”
“उसके बाद?”
“सातों दोस्तों के साथ बैठकर मैंने सीसीटीवी की रिकॉर्डिंग देखी, जिसमें राहुल साहब होटल से बाहर निकलते नहीं दिखाई दिये।”
“उसका मतलब क्या ये नहीं बनता कि राहुल छत से उतरा ही नहीं था?”
“बनता तो यही है सर लेकिन वह छत पर भी तो नहीं थे, होते तो क्या किसी को दिखाई नहीं देते, और दिख गये होते तो आज दो महीने बाद भी आप लोग उन्हें तलाश क्यों रहे होते?”
सुनकर जोशी ने खा जाने वाली निगाहों से उसे घूरा, जिसका कोई असर शायद ही उसपर हुआ हो। कम से कम सूरत पर तो उस तरह के कोई भाव नहीं उभरे।
“तुम खाना सर्व करवा कर जब वापिस लौट गये, तो क्या उसके बाद क्या किसी और के भी कदम यहां छत पर पड़े थे, भले ही होटल का कोई वेटर ही क्यों न रहा हो?”
“नरेश सिंह आया था सर।”
“वह कौन है?”
“वेटर है, रात पौने बारह बजे राहुल बाबा ने किचन में फोन कर के आठों जनों के लिए सूप लाने को बोला था, उसी को सर्व करने नरेश यहां पहुंचा था।”
“कितने बजे?”
“सवा बारह के करीब।”
“अभी कहां होगा ये नरेश सिंह?”
“होटल में ही है, बुलाऊं?”
“हां प्लीज।”
मैंनेजर ने मोबाईल निकाला और नरेश को वहां आने को बोल दिया।
थोड़ी देर बाद नरेश सिंह ने छत पर पहुंचकर दोनों को नमस्कार किया फिर मैंनेजर की तरफ देखता हुआ बोला, “क्या बात हो गयी?”
“इंस्पेक्टर साहब कुछ पूछना चाहते हैं?”
“पूछिये सर?” कहकर उसने बेखौफ विराट की तरफ देखा।
“जिस रात राहुल लापता हुआ था, उस रात सूप सर्व करने तुम कितने बजे पहुंचे थे यहां?”
“बारह बजकर बीस मिनट पर सर।”
“तब यहां कितने लोग थे?”
“गिनती तो नहीं की थी सर लेकिन आठ ही रहे होंगे, क्योंकि उतने ही लोगों के लिए सूप मंगवाया गया था।”
“उनके बीच राहुल दिखाई दिया था तुम्हें?”
“नहीं सर।”
“क्यों?”
“उस वक्त यहां की लाइटें बुझी हुई थीं, बस डांस वाले डिब्बे की जल रही थीं, जो रंग बिरंगी थीं इसलिए साफ-साफ कुछ नजर नहीं आ रहा था।”
“सूप तुमने बारी बारी से सबको दिया था या रखकर चले गये?”
“एक एक के हाथ में थमाया था सर, रखकर कैसे जा सकता था?”
“पहले ना सही, सूप थमाते वक्त तो राहुल जरूर दिखाई दिया होगा तुम्हें?”
“नहीं सर, बता तो रहा हूं कि बहुत अंधेरा था यहां, मैं तो बस अंदाजे से ही कप उठाकर आगे बढ़ा देता, जिसे कोई न कोई थाम लेता था।”
“और कोई खास बात जो तुमने नोट की हो, या ऐसी बात जो अजीब लगी हो?”
“नहीं सर जी, ऐसा तो कुछ भी नहीं हुआ था।”
“ठीक है तुम जा सकते हो।”
सुनकर नरेश सिंह सीढ़ियों की तरफ बढ़ा, मगर कुछ कदम आगे जाते ही ठिठक गया, फिर वापिस उनकी तरफ घूमकर खड़ा हो गया, जैसे अचानक कोई बात याद आ गयी हो।
“एक बात और बतानी थी साहब जी।”
“क्या?”
“मैं जब एक एक कर के कप उन्हें थमा रहा था तो एक जना बोला था कि ‘मुझे दो दे दे, एक राहुल का और दूसरा मेरा’ इसका मतलब तो यही हुआ न साहब जी कि मैंने अपने हाथों से राहुल साहब को कप नहीं थमाया था।”
“एकदम सही मतलब निकाला है तुमने - कहकर विराट ने मैंनेजर की तरफ देखा - यहां कोई सीढ़ी होगी, या तीन चार फीट ऊंचा स्टूल?”
“दोनों ही चीजें मिल जायेंगी सर, आप बताइये क्या चाहिए?”
“स्टूल मंगवा लो।”
“नरेश, सुना साहब ने क्या कहा?”
“जी अभी लाता हूं।” कहकर वह चला गया।
“पार्टी यहां छत पर क्यों चल रही थी, वह किसी कमरे में भी तो अरेंज की जा सकती थी? - जोशी ने पूछा - या होटल के तमाम कमरे आकूपाईड थे उस रात?”
“कमरे तो हर वक्त दर्जनों खाली रहते हैं यहां, लेकिन उन लोगों ने पार्टी के लिए छत का ही चुनाव किया तो उसमें भला मैं क्या कर सकता था? हां राहुल साहब को ऑफर बराबर किया था, मगर उन्होंने साफ मना कर दिया। कहने लगे कि उनके दोस्त खुले में पार्टी करना चाहते हैं, जिसके लिए छत ही ठीक रहेगी।”
“यहां से नीचे जाने का कोई और रास्ता?”
“फायर इस्केप की सीढ़ियां पर तो आपकी नजर पड़ ही गयी होगी सर, लेकिन वह भी सीसीटीवी के दायरे में आती हैं, जिसकी फुटेज देखने पर साफ हो गया था कि उधर से रात के वक्त कोई आवागमन नहीं हुआ था।”
“अच्छा जरा याद कर के बताओ कि राहुल के लापता होने के अगले रोज जब पुलिस यहां पहुंची थी, तो क्या उन लोगों ने पानी की इन तीनों टंकियों के भीतर भी झांका था?”
“जी हां, एक सिपाही ने मोबाईल का टॉर्च जलाकर सबका मुआयना किया था, मगर हासिल कुछ नहीं हुआ।”
“टॉर्च क्यों, अंधेरा था क्या?”
“जी सर, पुलिस यहां रात आठ बजे के बाद पहुंची थी, फिर छत की जांच करते करते नौ बज गये, उसके बाद कहीं जाकर टंकियों में झांकने की बारी आई। मगर राहुल बाबा टंकी के भीतर कैसे हो सकते थे, होते तो क्या उनके दोस्तों को खबर नहीं लगी होती?”
विराट ने उस बात का जवाब देने की कोई कोशिश नहीं की।
स्टूल लेने गया नरेश पांच मिनट बाद वापिस लौटा तो विराट ने उसे एक टंकी के पास रखा और उसपर चढ़कर खड़ा हो गया। फिर टंकी का ढक्कन हटाने के बाद मोबाईल का टार्च जलाकर ध्यान से भीतर झांकने लगा। पानी एकदम साफ था मगर तले में काई जमी हुई थी। और कोई खास बात उसकी निगाहों में नहीं आई।
वह नीचे उतरा फिर दूसरी टंकी के पास पहुंचकर उसके भीतर झांकने लगा। वहां भी टंकी के तले में काई जमी हुई थी, जिसकी परत पहली टंकी से कहीं ज्यादा मोटी महसूस हुई। मगर मतलब का कुछ भी नहीं दिखाई दिया। तत्पश्चात तीसरी टंकी में झांककर वह स्टूल से नीचे उतर आया।
“टंकियों को खाली करा सकते हो?” उसने मैंनेजर से पूछा।
“अभी?”
“और क्या साल भर बाद कराओगे?”
“करा तो सकता हूं सर लेकिन वक्त लग जायेगा।”
“कोई बात नहीं कराओ।”
सुनकर उसने होटल के प्लंबर को फोन कर के वहां बुला लिया।
“टंकी खाली करनी है भई।”
“तीनों?” वह सकपकाता हुआ बोला।
“हां तीनों।”
सुनकर प्लंबर ने स्टूल पर चढ़कर टंकियों का मुआयना किया फिर नीचे उतरता हुआ बोला, “ये तो पूरी की पूरी भरी पड़ी है।”
“सुना नहीं क्या कह रहा हूं?”
“सुन लिया, गुस्सा क्यों हो रहे हैं?”
कहकर उसने अपने थैले से पाईप रिंच निकाला और एक टंकी का गेटवॉल बंद करके उससे जुड़े पाईप को खोलने में जुट गया।
मिनट भर बाद जब पाईप अलग हो गया तो प्लंबर ने गेटवॉल को फिर से खोल दिया। तत्काल पानी की मोटी धार पूरी रफ्तार के साथ बाहर छत पर पहुंचने लगी।
सब इंतजार करते रहे।
उसी दौरान प्लंबर ने बाकी की दोनों टंकियों का भी पानी खोल दिया।
पहली टंकी को खाली होने में पंद्रह मिनट का वक्त लग गया। उसके बाद विराट ने स्टूल पर चढ़कर एक बार फिर से उसके भीतर झांका, मगर सिवाय निराशा के कुछ हाथ नहीं लगा।
फिर दूसरी टंकी भी खाली हो गयी।
विराट ने मोबाईल की रोशनी अंदर डालकर ध्यान से उसका मुआयना करना शुरू कर दिया। असल बात तो ये थी कि वह खुद नहीं जानता था कि टंकी से क्या हासिल होने की उम्मीद कर रहा था।
मगर कर बराबर रहा था।
फिर उसकी निगाह भीतर मौजूद पत्थर के टुकड़े जैसी किसी चीज पर पड़ी। पत्थर इसलिए महसूस हुआ क्योंकि वह काई में लिपटा होने के कारण थोड़ा गोल दिखाई दे रहा था और सतह से उभरा हुआ भी जान पड़ता था।
उसने अपना पूरा ध्यान उस चीज पर जमा दिया, मगर वह था क्या, ये बात पकड़ाई में नहीं आ सकी।
“अंदर घुस सकते हो?” उसने प्लंबर से पूछा।
“जी हां, उसमें क्या दिक्कत है।”
“ठीक है घुसो।”
सुनकर उसने अपने जूते उतारे फिर स्टूल पर खड़ा हुआ और दोनों हाथों को टंकी के मुहाने पर टिकाता हुआ उचककर उसके ऊपर बैठ गया, फिर अंदर पहुंचने में जरा भी देर नहीं लगी।
“करना क्या है साहब जी?”
“अंदर पत्थर जैसी कोई चीज पड़ी है, उठाकर देखो वह क्या है?”
प्लंबर तुरंत नीचे बैठ गया और काई में इधर उधर हाथ मारने लगा। तत्काल कोई चीज उसके हाथों से टकराई, जिसे उठाकर टंकी में सीधा खड़ा हो गया।
“ये तो घड़ी मालूम पड़ती है सर जी।” कहकर उसने हाथ बाहर निकालकर उसकी तरफ बढ़ा दिया।
वह घड़ी ही थी, फिर विराट ने उसपर जम चुकी काई की परत को थोड़ा साफ कर के देखा, तो ये जानकर हैरान रह गया कि वह कोई मामूली घड़ी नहीं थी, रौलेक्स की थी जो लाखों में आती है।
“बाहर आ जाओ - कहकर उसने मैनेजर की तरफ देखा - पहचानते हैं इस घड़ी को?”
“नहीं सर, मुझे तो इसी बात पर हैरानी हो रही है कि टंकी में कोई घड़ी पड़ी थी - फिर उसने प्लंबर की तरफ देखा - कहीं तेरी ही तो नहीं है राम प्रसाद?”
“नहीं मेरी नहीं है, वैसे भी मोबाईल के जमाने में घड़ी पहनना मुझे मूर्खता की बात लगती है - बोलते वक्त उसकी निगाह विराट की कलाई पर गयी तो वहां घड़ी बंधी देखकर थोड़ा हड़बड़ा सा गया - मेरा मतलब है हम जैसे गरीब लोग मोबाईल से ही घड़ी का काम चला लेते हैं।”
उस बात पर विराट और जोशी ने बड़ी मुश्किल से खुद को मुस्कराने से रोका।
तब तक तीसरी टंकी भी खाली हो चुकी थी। विराट एक बार फिर स्टूल पर चढ़कर खड़ा हो गया। मगर टंकी के तले में सिवाय काई के और कुछ दिखाई नहीं दिया।
आगे घंटा भर और जाया कर के दोनों ने फारवर्ड मोड पर उस रात की सीसीटीवी फुटेज देखी और कुछ हासिल होता न पाकर होटल से बाहर निकल आये।
“अब क्या करने का इरादा है सर?” जोशी ने पूछा।
“घर चलते हैं और क्या करेंगे?” कहते हुए विराट ने गाड़ी स्टार्ट की और मुख्य सड़क पर पहुंचकर यू टर्न लेने के लिए कालिंदी कुंज की तरफ बढ़ चला।
आगे बामुश्किल दो सौ मीटर गया होगा कि एक सफारी दुर्त गति से उसकी फॉर्च्यूनर के बगल से निकली, दोनों के रियर व्यू मिरर आपस में टकराये, शुक्र था टूटा एक भी नहीं।
विराट ने मुश्किल से खुद को जब्त किया और विंडो ग्लास नीचे सरकाकर मिरर के बिगड़ चुके एंगल को वापिस दुरूस्त कर दिया। सफारी के ड्राईवर पर उसे गुस्सा तो बहुत आया, मगर अगले ही पल उस भाव को अपने जेहन से झटक दिया।
तभी एक दूसरी और बड़ी घटना घटित हो गयी।
सड़क पर एक जगह चार पुलिसवाले बैरिकेडिंग लगाये खड़े थे, अलबत्ता उसके कारण कोई जाम नहीं दिख रहा था, क्योंकि उस वक्त ट्रैफिक ना के बराबर था।
बैरिकेडिंग के बीच इतनी जगह भी बराबर थी कि अकेला वाहन बड़े आराम से उससे होकर गुजर सकता था। मगर सफारी का ड्राईवर या तो अंधा था, या फिर तेज रफ्तार गाड़ी को संभाल नहीं सका, नतीजा ये हुआ कि बैरिकेडिंग उड़ाता हुआ वहां से भाग निकला।
चारों सिपाहियों ने बड़ी मुश्किल से खुद को उस दुर्घटना के चपेट में आने से बचाया, फिर भी एक जना खुद को नीचे गिरने से नहीं रोक पाया, अलबत्ता गिरने का अंदाज ही बता गया कि उसे कोई गंभीर चोट नहीं आई थी।
विराट ने तुरंत एक्सीलेटर पर दबाव बढ़ा दिया।
देखा जाये तो उन दोनों पुलिस अफसरों का उस मामले से कोई लेना देना नहीं था। मगर विराट था कि उनको पकड़ने की जिद ठान बैठा, लिहाजा दोनों गाड़ियां अंधाधुन गति से कालिंदी कुंज की तरफ दौड़ी जा रही थीं।
देखते ही देखते सफारी यमुना पुल क्रॉस कर के यूपी में दाखिल हो गयी। आगे महामाया फ्लाईओवर पर चढ़कर राउंड अबाउट से लेफ्ट लिया और ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेस वे पर आगे बढ़ने लगी।
तब तक पौने एक बज चुके थे।
हाईवे पर ट्रैफिक की बात तो रहने ही दें, गाड़ियां भी बस इक्का दुक्का ही नजर आ रही थीं। ऐसे में इस बात का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता था कि कहां पहुंचकर चोर पुलिस के उस गेम का अंत होने वाला था।
दोनों पुलिस अफसरों को तो ये तक नहीं मालूम था कि सफारी में सवार लोग भाग क्यों रहे थे? क्या किया था जिसके कारण उन्हें अपने पकड़ लिये जाने का भय सता रहा था? मगर भागे क्योंकि बैरिकेडिंग तोड़ कर थे, इसलिए ये भी रहा हो सकता था कि कहीं किसी बड़ी वारदात को अंजाम देकर आ रहे हों। क्योंकि बात अगर सिर्फ बैरिकेडिंग तोड़ने की होती तो अपने पीछे पुलिस को आता न देखकर अब तक रफ्तार कम कर चुके होते।
सफारी का लुक भी बड़ा अजीबो गरीब था। उसपर तरह तरह के स्टीकर्स चिपकाये गये थे। किसी में डेंजर का निशान बना था तो किसी में अर्धनग्न लड़की नृत्य करती दिखाई दे रही थी। ऐसे ही एक स्टीकर पर मोटे मोटे अक्षरों में लिखा था, ‘नथिंग गोज रांग इन दिस वर्ल्ड’। रेसिंग कार और मोटरसाइकिल की तस्वीरों वाले स्टीकर्स भी लगे हुए थे। छत पर लगा रूफ रेल भी खासा दिलचस्प था, आम से कहीं ज्यादा चौड़ा और दो पैरलल रॉड्स वाला। पहला गाड़ी की छत से चिपका हुआ था, जबकि दूसरा चार इंच की ऊंचाई पर नीचे वाले के साथ जुड़ा था। और पीछे की तरफ गाड़ी के पांचवें गेट पर लगाये गये स्टीकर पर मोटे मोटे अक्षरों में लिखा था, ‘हम पापी हैं’।
“सफारी तो रुकती ही नहीं दिखाई दे रही सर - जोशी बोला - ऐसे तो हम इनके पीछे-पीछे आगरा जा पहुंचेगे।”
“ठोंक दूं?”
“मतलब?” वह हड़बड़ाकर बोला।
“पीछे से ठोंक दूं?”
“स्पीड बहुत ज्यादा है सर - जोशी विचारपूर्ण भाव से बोला - बड़ी दुर्घटना हो सकती है, जिसमें घायल सिर्फ वही लोग होंगे इस बात की भी गारंटी नहीं की जा सकती।”
“गारंटी हो तो ठोंक दूं?”
“सब के सब मारे जायेंगे सर, जवाब देना भारी पड़ जायेगा। फिर जरा स्पीड भी तो देखिये। एक सौ दस की रफ्तार से दौड़ रहे हैं हम, जरा सी असावधानी हुई नहीं कि परलोक के दर्शन हो जायेंगे।”
“यही सोचकर तो गोली नहीं चला रहा जोशी साहब - विराट कसमसाता सा बोला - वरना क्या दस बारह किलोमीटर तक गाड़ी भगा लाने में कामयाब हो गये होते साले?”
“वो तो खैर सफारी वालों पर आपकी बहुत बड़ी मेहरबानी है सर जी, लेकिन सवाल ये है कि आगे अगर उनकी गाड़ी ने ताज एक्सप्रेस वे पकड़ लिया तो हम क्या करेंगे?”
“पक्का पकड़ेंगे, और कोई चारा ही नहीं है उनके पास।”
“फिर तो समझ लीजिए हम आगरा पहुंचे ही पहुंचे।”
“एनी एडवाईज?”
“है, लेकिन आपको कबूल नहीं होगी।”
“अरे बोलो तो सही।”
“वापिस लौट चलते हैं।”
“फिर तो वाकई कबूल नहीं होगी जोशी साहब। कल को अगर पता लगा कि ये लोग किसी बड़ी वारदात को अंजाम देकर भाग रहे थे, तो क्या हम जीवन भर ये सोचकर पछताते नहीं रह जायेंगे कि काश हम उनके पीछे बने रह गये होते। और इस ‘काश’ से मुझे बहुत बहुत नफरत है, इसलिए है क्योंकि जब भी मुंह से निकलता है अपनी ही किसी गलती का, किसी नाकामी का, किसी लेट लतीफी का एहसास कराता है।”
“ठीक है फिर चलते रहिए, आई होप कि कभी ना कभी तो उनकी गाड़ी का फ्यूल खत्म होगा, और वे लोग रूकने को मजबूर हो जायेंगे। क्योंकि रोक पाने का कोई रास्ता तो नहीं दिखाई देता।”
“जैसे हम लोग पैट्रोल पंप साथ लेकर चल रहे हैं।”
“मतलब?”
“बहुत पूछते हो। अरे उनकी गाड़ी का फ्यूल खत्म होगा तो क्या हमारा बचा रह जायेगा? बल्कि होने को ये भी हो सकता है कि उनसे पहले हमारी ही गाड़ी की टंकी खाली हो जाये।”
“प्रॉब्लम तो है सर - कहकर उसने पूछा - बाई द वे अभी क्या पोजिशन है?”
“परसों टंकी फुल कराई थी, लेकिन फ्यूल मीटर और डीटीई पर यकीन करें तो हमें चिंता करने की जरूरत नहीं है, कम से कम आगरा तक तो उनके पीछे बराबर बने रह सकते हैं।”
“डीटीई?”
“डिस्टेंस टिल एम्पटी, जिसके अनुसार अभी ये गाड़ी ढाई सौ किलोमीटर तक जा सकती है। कई बार धोखा भी दे जाता है मगर वैसा आखिरी कुछ लीटर्स के दौरान होता है, इसलिए इतना तो हम मान ही सकते हैं कि दो सौ किलोमीटर तक यकीनन चल जायेगी।”
“साले अहमक।”
“कौन?”
“सफारी वाले सर, दो मिनट आगे पीछे नहीं हो सकते थे, तब या तो आप जा चुके होते, या बाद में पहुंचे होते, और हम इस मुसीबत से बच जाते। साथ में सफारी वाले भी।”
विराट हंसा।
“वैसे भगवान न करें कि आगरा तक जाने की नौबत आये।”
“नहीं आयेगी - विराट बड़े ही विश्वास के साथ बोला - ताज एक्सप्रेस वे पर तो मैं उन्हें हरगिज भी नहीं चढ़ने दूंगा, चाहे गाड़ी ठोंकनी पड़े या गोली चलाकर टायर फाड़ना पड़ जाये। उससे पहले कोई प्लॉन बी आ गया दिमाग में तो बात और है।”
“आपका सिगरेट सुलगाने को तो नहीं कह रहे?”
“क्या बात है जोशी साहब - विराट उसे तिरछी नजरों से देखता हुआ बोला - ऐसा हिंट पकड़ते तुम्हें पहली बार देख रहा हूं, जो दिया ही न गया हो।”
“जब आपके साथ होता हूं न सर तो दिमाग बहुत तेज दौड़ता है।”
कहते हुए उसने ग्लब बॉक्स से सिगरेट का पैकेट और लाइटर निकाला फिर दो सिगरेट सुलगाने के बाद एक विराट को थमाता हुआ बोला, “इनकी स्पीड कम करने का कोई न कोई रास्ता सोचना ही पड़ेगा सर।”
“और अभी तक हम क्या कर रहे थे?” कहते हुए उसने एक गहरा कश लिया और विंडो ग्लास डाउन कर के धुआं उगल दिया।
“सोच तो वही रहे थे, क्योंकि दूसरा कोई रास्ता नहीं है। हां स्पीड धीमी हो जाये तो गाड़ी के टायरों को निशाना बनाकर उन्हें रुकने को मजबूर किया जा सकता है। एक्सीडेंट का खतरा तो तब भी होगा मगर भयानक दुर्घटना के चांसेज कम हो जायेंगे।”
“सोच लिया।”
“क्या सोच लिया सर?”
“यही कि इनकी स्पीड धीमी कैसे करनी है।”
“कैसे?”
“जरा डिक्की तक घूमकर आओ, और इससे पहले कि तुम उस बात का कोई मतलब पूछो मैं खुद ही बताये देता हूं, वहां से तुम्हें टायर लीवर निकालकर लाना है।”
“अभी लीजिए।” कहकर उसने अपनी सीट को थोड़ा पीछे खिसकाया, और पूरा का पूरा नीचे झुका दिया। फिर उसके ऊपर से गुजरकर पिछली सीट पर पहुंचा और दूसरी तरफ हाथ लटका कर वहां रखा टायर लीवर उठा लिया।
“मिल गया सर।”
“गुड, अब वापिस अपनी जगह पर आ जाओ।”
“यस सर - कहता हुआ वह आगे पहुंचा और सीट को सीधी करता हुआ बोला - करना क्या है?”
“अभी मैं अपनी गाड़ी को सफारी के पैरलल लेकर जाऊंगा, तब तुम्हें करना ये है कि टायर लीवर को पूरी ताकत से उनके ड्राईविंग विंडो पर दे मारना है। कुछ इस तरह कि शीशा बेशक टूट जाये मगर ड्राईवर को नुकसान न पहुंचे, वरना एक्सीडेंट होकर रहेगा।”
“फायदा क्या होगा सर?”
“कुछ तो यकीनन होगा, और नहीं तो यूं हमला होता देखकर वह बौखला उठेगा, और उन हालात में ब्रेक भी बराबर लगायेगा। उसकी जगह मैं भी होता तो यही करता।”
“और लगाकर फिर से एक्सीलेटर बढ़ा देगा।”
“नहीं, एक बार सफारी को ब्रेक लग चुकने के बाद मैं उसे आगे जाने का मौका नहीं दूंगा, गाड़ी को बैक कर के निकलने की कोशिश करेगा तो भी नहीं।”
“दोनों गाड़ियां करीब होंगी तो साइड से टकरा भी तो सकती हैं?”
“बेशक टकरा जायें, उससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि दोनों की ही बॉडी बेहद मजबूत है। इसलिए नुकसान ना तो उन्हें पहुंचेगा ना ही हमें। मगर तुम्हारे लिए सावधानी बरतना फिर भी जरूरी है।”
“कैसी सावधानी सर?”
“हमला करते के साथ ही सीट पर मेरी तरफ खिसक आना। उस स्थिति में दोनों एक दूसरे से टकरा भी गयीं तो तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा।”
“मैं समझ गया सर।”
“गुड।” कहकर विराट ने जोशी वाले साईड का विंडो ग्लास पूरा का पूरा नीचे खिसका दिया, तेज हवा सरसराहट का स्वर उत्पन्न करती गाड़ी के भीतर पहुंचने लगी जो किसी भयानक तूफान जैसा एहसास करा रही थी।
“तैयार?” विराट ने पूछा।
“फुल।”
विराट ने गाड़ी की स्पीड बढ़ा दी। आगे जैसे ही उसने फॉर्च्यूनर को सफारी के राईट साईड में पहुंचना चाहा, ड्राईवर ने रफ्तार बढ़ा दी। फिर तो जैसे दोनों के बीच एक अनकही शर्त लग गयी। सफारी वाला किसी भी हाल में उसे अपने बराबर नहीं पहुंचने देना चाहता था और विराट था कि पहुंचने की कसम खाये बैठा था।
आखिरकार फॉर्च्यूनर ने सफारी को मात दे दी।
उस वक्त दोनों गाड़ियां एक सौ बीस की रफ्तार से अगल बगल दौड़ रही थीं, जब जोशी ने हाथ में थमा टायर लीवर पूरी ताकत से सफारी के ड्राईविंग विंडो पर दे मारा।
पलक झपकते ही उसका शीशा चूर चूर हो गया।
अफसोस कि गाड़ी की रफ्तार में कोई परिवर्तन नहीं आया, उल्टा कुछ ऐसा दिखाई दिया जिसने सुलभ जोशी के होश उड़ाकर रख दिये।
“झुक जाइये सर।” चिल्लाता हुआ जोशी एकदम से डुबकी मार गया।
“आ ऽ ऽ ऽ...” कोई जोर से चींखा।
शुक्र था विराट ने उसकी चेतावनी फॉलो करने में जरा भी वक्त जाया नहीं किया, वरना जोशी भले ही बच जाता मगर सफारी के ड्राईवर की तरफ से चलाई गई गोली विराट राणा का भेजा उड़ा गयी होती, और उन हालात में गोली से बचने के बावजूद जोशी की जान जाकर रहनी थी।
देखा जाये तो उस क्षण चार लोग एक साथ हरकत में आये थे।
सफारी की तरफ से गोली चली, जोशी ने खुद को नीचे झुकाया, एक लड़की गला फाड़कर चिल्लाई, विराट ने खुद को नीचे झुकाते हुए पूरी ताकत से ब्रेक का पैडल दबा दिया।
सफारी तोप से छूटे गोले की तरह आगे निकल गयी।
उस दौरान फॉर्च्यूनर थोड़ा डगमगाई जरूर लेकिन विराट ने जैसे तैसे उसे संभाल लिया, फिर सफारी के आगे जाते ही उसने फिर अपनी रफ्तार बढ़ा दी।
“कोई लड़की चीखी थी सर, इसलिए मामला किडनैपिंग का भी हो सकता है।” जोशी ने अंदेशा जाहिर किया।
“सही कहा, इसलिए अब हम चाहकर भी नहीं रुक सकते।”
“जैसे कोई और बात होती तो आप रुक ही जाते - कहकर उसने पूछा - आपकी ये कोशिश तो फेल हो गयी अब क्या करेंगे? गोली तो हरगिज नहीं चला सकते वरना उनके साथ साथ बंधक लड़की भी अपनी जान से हाथ धो बैठेगी।”
“प्रॉब्लम तो बड़ी है जोशी साहब, मगर हर समस्या का कोई ना कोई निदान जरूर होता है, इसलिए इसका भी बराबर है।”
“मतलब? - कहकर वह जल्दी से बोल पड़ा - मालूम है बहुत पूछता हूं।”
विराट की हंसी छूट गयी।
“क्या करने वाले हैं?”
“कुछ तूफानी।”
“जैसे कि?”
“फिल्मों में होते हैं, एक्शन सींस।”
“मैं अभी भी नहीं समझा।”
“ड्राईविंग संभालो।”
“ओके, तो आप गाड़ी रोक रहे हैं?”
“नहीं ऐसे ही संभालो, वरना सफारी दूर निकल जायेगी, वैसे भी ताज कॉरीडोर अब 8-9 किलोमीटर से ज्यादा दूर नहीं रह गया है।”
“रफ्तार बहुत है सर, अदला बदली संभव नहीं है।”
“संभव बनाना होगा - फिर गाड़ी का सन रूफ ओपन करता हुआ बोला - मैं उन कमीनों को बताना चाहता हूं कि दुनिया में एक वही पागल नहीं हैं, मैं भी हूं, बल्कि उनसे बड़ा पागल।”
“आप मेरी तरफ आ रहे हैं?”
“नहीं बाहर जा रहा हूं तभी अदला बदली मुमकिन हो पायेगी - कहते हुए उसने ड्राईविंग डोर खोला और बाहर की तरफ खिसक कर गाड़ी चलाने लगा - संभालो जल्दी करो।”
तत्काल गाड़ी जोर जोर से बीप की ध्वनि निकालती हुई दरवाजा खुला होने की चेतावनी देने लगी।
“आप करने क्या वाले हैं?” कहता हुआ सुलभ जोशी जैसे तैसे उसके बगल में जा बैठा।
“अब मैं तुम्हारी गोद से गुजरकर दूसरी तरफ पहुंचूंगा, थोड़ी देर के लिए सड़क नजर आनी बंद हो जायेगी, इसलिए पहले ही ध्यान से देख लो।
“देख लिया सर।”
“गुड।” कहता हुआ विराट बंदरों जैसे पोज में चलता हुआ जोशी के पैरों के ऊपर से होकर पैसेंजर सीट पर पहुंच गया।
तब तक हवा के दबाव से ड्राईविंग डोर खुद ब खुद बंद हो चुका था।
पैसेंजर सीट पर पहुंच चुका विराट राणा सीट को पीछे खिसका कर एकदम से खड़ा हो गया। अब उसका छाती से ऊपर का हिस्सा गाड़ी से बाहर था और तेज हवा के थपेड़े उसे पीछे की तरफ धकेले जा रहे थे।
अगले ही पल वह उचक कर गाड़ी की छत पर चढ़ने की कोशिश करने लगा।
“ये सरासर आत्महत्या है सर।”
“लड़की के साथ कुछ बुरा घटित हो गया तो सुसाईड के अलावा हमारे पास और चारा भी क्या होगा जोशी साहब।” कहता हुआ वह छत पर पहुंच गया।
सुलभ जोशी गाड़ी को यथासंभव एक सीध में ड्राईव करने लगा, ताकि छत पर बैठे विराट को झटके न लगने पायें।
“आगे क्या करना है सर?” जोशी चिल्लाता हुआ बोला।
“गाड़ी को सफारी के बगल में लेकर चलो, इस बार उसके बाईं तरफ, और जब पहुंच जाओ तो कोशिश करना कि उनकी रफ्तार से रफ्तार मिलाकर चल सको।”
“मैं इतनी स्पीड में गाड़ी को इस ढंग से कंट्रोल नहीं कर सकता सर।”
“कोई बात नहीं वक्त बहुत कुछ सिखा देता है, तुम भी सीख जाओगे।” कहता हुआ वह दोनों तरफ की रूफ रेल पकड़े गाड़ी पर अपनी पकड़ बनाकर बैठ गया।
जोशी ने स्पीड बढ़ानी शुरू कर दी।
सफारी की भी बढ़ी।
सांसे रोक देने वाला नजारा था।
जोशी बार बार फॉर्च्यूनर को सफारी के बगल में पहुंचाने की कोशिश करता और वह बार बार उसे धता बताकर आगे निकल जाती।
ऐसा कई बार हुआ।
मगर जिद! वो तो हमेशा कहर ही ढाती है।
कई जानलेवा कोशिशों के बाद आखिरकार जोशी अपना टॉस्क पूरा करने में कामयाब हो गया। दोनों गाड़ियां मुश्किल से दो या तीन सेकेंड के लिए बराबर की रफ्तार में पहुंची होंगी, जिसका पूरा पूरा फायदा उठाते हुए विराट ने सफारी का रूफ रेल थामा और अगले ही पल उसकी छत के ऊपर पहुंच गया।
तभी जोशी को मजबूरन ब्रेक लगाना पड़ गया, क्योंकि एक बार फिर ड्राईवर का हाथ खिड़की से बाहर निकलता दिखाई दिया, जिसमें गन थमी थी।
गोली की जोरदार आवाज गूंजी, मगर तब तक फॉर्च्यूनर थोड़ा पीछे हो चुकी थी इसलिए सफारी के ड्राईवर की चलाई गोली उसके विंड स्क्रीन के सामने से गुजरती चली गयी।
“ये पुलिसवाले तो नहीं हैं?” सफारी की पिछली सीट पर बैठी एक लड़की बोली।
“तेरा दिमाग खराब हो गया है, साफ साफ लुटरे जान पड़ते हैं?” ड्राईव करता लड़का थोड़ा हड़बड़ाकर बोला।
“मुझे तो लगता है पुलिस ही पीछे पड़ी है। लुटेरे होते तो तुझे गोली चलाता देखकर कब का पीछा छोड़ चुके होते।”
“नो प्रॉब्लम पापियों - कोई यूं बोला जैसे नशे में हो - गोली मारकर किस्सा खत्म करो सालों का। कब तक हम यूं भागते रहेंगे, वापिस लौटकर चिलम भी तो जलानी है।”
“पागल हो गया बहन चो...” - एक नया जनाना स्वर - पुलिस पर गोली चलायेंगे हम?”
“पहले भी तो चला चुका है ये, अब क्या फर्क पड़ जायेगा?”
“मैं नहीं जानता था कि फॉर्च्यूनर में पुलिस बैठी है - ड्राईवर बोला - ख्याल तक नहीं आया था।”
“अभी भी क्या पता कि पुलिसवाले ही हैं?” फिर एक नया स्वर गूंजा।
“डर क्यों रहा है, रिवाल्वर का मुंह छत की तरफ कर के ठांय ठांय कर दे, भला ही होगा साले का। चलता फिरता मर जायेगा, फिर ड्यूटी पर जान देने के लिए कोई मैडल भी उसके परिवारवालों को जरूर मिलेगा।”
“बकवास बंद कर बहन चो...” किसी लड़की ने उसे जोर से घुड़का।
“ठीक है तू ही बता दे कि ऐसे हालात में हमें क्या करना चाहिए, क्योंकि गिरफ्तार होने को तो मैं जरा भी तैयार नहीं हूं।”
“जैसे हम सब मरे जा रहे हैं जेल जाने को।” किसी ने व्यंग्य किया।
“मैं उससे बात करती हूं।” एक लड़की बोली।
“वह शूट कर देगा।”
“नहीं करेगा, पुलिस वाला है तो हरगिज भी नहीं करेगा।”
“बकवास बंद कर और जहां है वहीं बैठी रह।
भीतर हो रही बातचीत का एक लफ्ज भी विराट के कानों तक नहीं पहुंच पा रहा था। उनकी बातों से अंजान वह गाड़ी पर पेट के बल लेट गया। लेटकर अपनी सर्विस रिवाल्वर को नाल की तरफ से थामा और हाथ नीचे ले जाकर पूरी ताकत से पिछले हिस्से के बाईं तरफ वाले विंडो ग्लास पर दे मारा।
भीतर कई चींखें एक साथ गूंजी।
“गाड़ी रोक दो - वह जोर से बोला - वरना मैं आंख बंद कर के गोलियां चलाना शुरू कर दूंगा, फिर कौन सी गोली किसके जिस्म में सुराख बनायेगी ये तो मैं नहीं जानता, मगर बचेगा तुममें से एक भी नहीं, इस बात की गारंटी करता हूं।”
कहते के साथ ही वह गोल गोल घूमकर गाड़ी के दाहिने हिस्से में सरक गया। वैसी सावधानी बरतना इसलिए जरूरी था क्योंकि भीतर कम से कम एक हथियारबंद शख्स तो यकीनन मौजूद था, जबकि होने को ज्यादा भी हो सकते थे।
अगर होते तो विराट की वह सावधानी धरी की धरी रह जानी थी, क्योंकि नीचे से छत की तरफ चलाई गयी कोई न कोई गोली उसे लगकर रहनी थी, मगर उतना रिस्क लेना अब उसकी मजबूरी बन चुकी थी।
कोई जवाब नहीं मिला।
“ठीक है मैं तीन तक गिनती गिनूंगा फिर फायर करना शुरू कर दूंगा।” कहने के बाद वह वापिस पहले वाली जगह पर लौट आया।
शुक्र था नीचे से कोई गोली नहीं चली।
फिर एक जनाना स्वर उसके कानों में पड़ा। यूं महसूस हुआ जैसे कोई खिड़की से गर्दन निकालकर बोल रहा हो।
“हैलो, क्या तुम मेरी आवाज सुन रहे हो?”
“सुन रहा हूं।”
“कौन हो तुम?”
“पुलिस।”
“सच बोल रहे हो?”
“नहीं इतना रिस्क लेकर नौटंकी करने आया हूं।”
“सॉरी डियर हमें नहीं मालूम था कि फॉर्च्यूनर में पुलिस है।”
“बिना मालूम पड़े ही गोली चला दिया?”
“हमें लगा कोई लूटने के लिए हमारी गाड़ी जबरन रोकने की कोशिश कर रहा था।”
“पक्का यही सोचा था?”
“ऑफ कोर्स डियर, पुलिस पर भला हम गोली क्यों चलायेंगे?”
“अगर तुम सच बोल रही हो तो ड्राईवर से कहो कि गाड़ी रोक दे।”
“अभी रोक देगा बस अपनी आइडेंटिटी कंफर्म करा दो प्लीज।”
विराट को उस बात पर गुस्सा तो बहुत आया, मगर जब्त कर जाना ही उस वक्त मुनासिब लगा, इसलिए पर्स से आई कार्ड निकालकर उधर को लटका दिया जिधर से लड़की उससे बात कर रही थी।
लड़की ने आई कॉर्ड लिया और गर्दन अंदर कर ली।
“कोई मोबाईल का टॉर्च दिखाओ इधर।”
लड़की ने कहा तो बगल में बैठे उसके साथी ने फौरन रोशनी कर दी।
“ये तो सच में पुलिसवाला ही है - लड़की के मुंह से सिसकारी सी निकल गयी - नाम है विराट राणा, इंस्पेक्टर की रैंक का है।”
“वो तो ठीक है लेकिन गाड़ी रोकेंगे तो फंस नहीं जायेंगे हम?”
“रोकना पड़ेगा पापियों, हम एक पुलिसवाले की जान नहीं ले सकते।”
“सोच लो गिरफ्तार होना पड़ सकता है।” कोई बोला।
“कोशिश करेंगे कि वैसा न हो - लड़की बोली - वैसे भी वह दिल्ली पुलिस से है, जबकि हम इस वक्त यूपी में हैं। आठ लोगों को गिरफ्तार करने लायक फोर्स बुलाने में उसे बहुत वक्त लगने वाला है। तब तक हम कोई ना कोई रास्ता निकाल लेंगे, बस मौके की ताक में रहना सब लोग।”
“ठीक है।”
“उससे बोल दो कि हम गाड़ी रोक रहे हैं।”
लड़की ने फौरन वह काम कर दिखाया।
तत्पश्चात सफारी साईड लेने लगी और आखिरकार स्थिर हो गयी।
“गाड़ी से बाहर निकलो सब लोग।” विराट ने ऊपर बैठे ही बैठे हुक्म दिया। उसे डर था कि नीचे उतरा तो वे लोग फौरन गाड़ी भगा ले जायेंगे।
चारों दरवाजे एक साथ खुले, और सब के सब नीचे पहुंच गये।
उसी वक्त जोशी ने फॉर्च्यूनर को सफारी के पीछे कुछ कदमों की दूरी पर खड़ा कर दिया।
विराट गाड़ी की छत से नीचे कूद गया। उसने मन ही मन गिनती की तो पाया कुल जमा आठ लोग थे, जिनमें से चार लड़के और उतनी ही लड़कियां। सब के सब अच्छे परिवारों से दिखते थे, अलग अलग तरह के परफ्यूम की खुशबू फूट रही थी। सूट से लेकर जूते तक ब्रांडेड और बेहद कीमती जान पड़ते थे। ऊपर से किसी की भी उम्र अठारह उन्नीस साल से ज्यादा नहीं दिखाई दे रही थी।
उसका तो दिमाग ही चकरा कर रह गया।
जैसे उसके भीतर से आवाज आई कि वो आठों बच्चे क्रिमिनल्स नहीं हो सकते थे। और खुद के नतीजे पर उसे कितना भरोसा था इसका पता इसी से लग जाता था कि उनपर एक निगाह डालते के साथ ही सर्विस रिवाल्वर वापिस होलस्टर में रख ली।
हां जोशी बदस्तूर उनकी तरफ गन ताने खड़ा था।
“कौन हो तुम लोग?” विराट ने पूछा।
“पापी।” कई स्वर एक साथ गूंजे।
“कमाल है पहली बार किसी को अपने मुंह से खुद को पापी कहते सुन रहा हूं - कहकर उसने पूछा - ठीक है बताओ क्या पाप कर के आ रहे हो?”
“कुछ भी नहीं इंस्पेक्टर - एक लड़की बोली - हम खुद को पापी इसलिए बुलाते हैं क्योंकि हमारा मानना है कि इस संसार में ऐसा कोई नहीं है जिसने कभी पाप न किया हो। भले ही जानबूझकर किया हो या अंजाने में, मगर किया सबने होता है।”
“अच्छा, मुझे तो याद नहीं पड़ता कि मैंने कभी कोई गलत काम किया होगा।”
“गलत काम और पाप में फर्क होता है इंस्पेक्टर - एक लड़का बोला - गलत काम के बारे में हर किसी को पता होता है कि वह गलत है। जबकि पाप की परिभाषा हर किसी के लिए जुदा होती है, और कई बार अंजाने में भी हो जाया करता है - कहकर उसने पूछा - अच्छा ये बताइये कि आप जीव हत्या को पाप मानते हैं या नहीं?”
“मानता हूं।”
“चाहे कैसा भी जीव हो?”
“अगर वह मेरे लिए खतरनाक नहीं है तो हां उसकी हत्या को पाप समझता हूं मैं। मगर बकरे और मुर्गे का नाम लेने का कोई फायदा नहीं होगा, क्योंकि मैं प्योर वेजिटेरियन हूं।”
“ये तो बहुत अच्छी बात है - एक अन्य लड़की बोली - मगर क्या आप इस बात की गारंटी कर सकते हैं कि राह चलते कभी आपके पैरों के नीचे आकर कोई चींटी या कीड़ा मर नहीं गया होगा?”
“नहीं मैं नहीं कर सकता।”
“लीजिए बन गये न आप पापी।”
“तर्क अच्छे दे लेते हो, मगर उससे तुम लोगों की खलासी नहीं होने वाली। साफ-साफ बताओ कि भाग क्यों रहे थे, और मुझे तुम्हारी गाड़ी से किसी लड़की के जोर से चींखने की आवाज भी सुनाई दी थी।”
“मैं चीखी थी - एक लड़की बोली - सूरज ने गोली चलाई तो डर के मारे मेरी चीख निकल गयी।”
“भाग क्यों रहे थे?”
“बात ये है इंस्पेक्टर कि हम लोग लांग ड्राईव के लिए निकले थे। रास्ते में सरिता विहार के फ्लाई ओवर के पास इसने - एक लड़के की तरफ इशारा कर के बोली - बैरिकेडिंग तोड़ दी, उसके बाद इतना डर गया कि गाड़ी भगाता चला गया।”
“बैरिकेडिंग तोड़ने की सजा फांसी तो नहीं होती जो तुम अंधाधुंध गाड़ी दौड़ाते चले गये? रुककर वहां खड़े सिपाहियों के सामने अपनी गलती मानते हुए सॉरी बोल देते तो शायद तुम लोगों को थाने तक भी नहीं जाना पड़ता।”
“बात ये है सर कि सूरज थोड़ा नशे में था, इसलिए डर गया।”
“हम तो इससे बार बार रुकने को कह रहे थे इंस्पेक्टर साहब - एक लड़का बोला - लेकिन ये डर के मारे सुनने को ही तैयार नहीं हुआ। कहने लगा इसके पापा को पता लग गया तो घर से बाहर निकलना बंद कर देंगे। और रही बात गोली की तो वह ये सोचकर बिल्कुल भी नहीं चलाई थी कि मुकाबला पुलिस से था। हम तो सोच भी नहीं सकते थे कि फॉर्च्यूनर में आप लोग हो सकते हैं। और उस बात का अंदाजा इसी से लगा लीजिए कि हमें जैसे ही पता लगा आप पुलिसवाले हैं हमने गाड़ी रोक दी।”
“गोली किसने चलाई थी?”
“जी मैंने - अब तक खामोश खड़ा एक लड़का बोला - मुझे लगा जैसे लुटेरे हमारे पीछे पड़ गये थे, इसलिए डरकर फायर कर बैठा - ऊपर से जिस तरह हमारी गाड़ी का विंडो ग्लास तोड़ा गया वह भी साफ साफ किन्हीं क्रिमिनल्स का ही काम जान पड़ता था। या किसी ऐसे शख्स का जो हम सबको मार गिराना चाहता हो। ऐसे में मैं गोली नहीं चलाता सर तो और क्या करता?”
“नाम क्या है तुम्हारा?”
“जी सूरज सिंह।”
“गन दिखाओ अपनी।”
उसने दिखाया। विराट ने चेक किया तो पाया उसमें बस दो गोलियां ही कम थीं।
“किसी और के पास कोई हथियार है तो अभी बता दो।” सूरज की गन वापिस लौटते हुए उसने सवाल किया।
“नहीं है।” सब एक साथ बोले।
“पहले कभी गोली चलाई है?” उसने सूरज से पूछा।
“सिर्फ एक बार, दोस्त की शादी में फायरिंग की थी।”
“लाइसेंस है?”
“जी है, मगर घर पर है।”
“ठीक है घर का नंबर बताओ।” कहकर विराट ने अपना मोबाईल निकाल लिया।
“सर प्लीज उन्हें ये मत बताइयेगा कि मैंने क्या किया है?”
“भई जेल जाओगे तो पता लग ही जायेगा।”
“आपको पता है मेरी उम्र कितनी है?”
“खुद बता दो।”
“उन्नीस से बस कुछ महीने ज्यादा, एमकॉम फर्स्ट इयर में हूं। जरा सोच कर देखिये कि जिस वक्त आप मुझे हथकड़ी लगाकर कोर्ट ले जा रहे होंगे, उस वक्त कैसे मीडिया वाले मेरे नाम का हौव्वा बना रहे होंगे। ऐसा हौव्वा जो मेरे रिहा हो जाने के बाद भी मेरा पीछा नहीं छोड़ेगा। बल्कि जीवन भर के लिए मेरे माथे से जेलबर्ड का तमगा लग जायेगा। मेरे यार दोस्त रिश्तेदार सब मुझसे दूर भागना शुरू कर देंगे। और जब इतना कुछ हो रहा होगा तो क्या मैं चुपचाप बर्दाश्त कर लूंगा? नहीं इतनी बेइज्जती को सह जाना मेरे वश से बाहर है। तब होगा ये कि मैं आत्महत्या कर लूंगा, यानि अंत पंत तो मेरी जान निकल ही जानी है इंस्पेक्टर, तो आप ऐसा कीजिए कि अभी मुझे गोली मार दीजिए।”
“और सूरज ने अगर अपनी जान दे दी तो जिंदा हम भी नहीं रहेंगे। सब के सब फांसी के फंदे से लटक जायेंगे - एक लड़की बोली - मरकर हम लोग तो तमाम मुसीबतों से दूर हो जायेंगे इंस्पेक्टर, मगर क्या आप इतना बड़ा पाप अपने सिर लेने को तैयार हैं, अगर आपका जवाब हां में है तो बेशक गोली चला सकते हैं, क्योंकि हम आपके साथ तो जाने से रहे।”
कहकर वह लड़की जाकर सफारी के भीतर बैठ गयी।
विराट हकबकाया सा देखता रहा।
“मरना हमारी नियति है इंस्पेक्टर, आज नहीं तो कल मौत आकर रहनी है। तो क्या फर्क पड़ता है कि हम आज ही मर जायें। बेशक शूट कर सकते हैं आप।” कहकर सूरज सिंह भी सफारी में सवार हो गया।
“गोली चलाने से पहले एक बार बस अपने दिल की सुनियेगा, अगर आपको लगे कि हमारा गुनाह इतना बड़ा है कि हमें गोली मार देनी चाहिए तो बेशक मार दीजिएगा, अपने कत्ल के लिए मैं अभी से माफ करती हूं आपको।” एक लड़की ने कहा और वह भी गाड़ी में सवार हो गयी।
“ये तो सब भागे जा रहे हैं सर।” जोशी हड़बड़ाकर बोला।
“नहीं हम भाग नहीं रहे हैं, बल्कि आपको मौका दे रहे हैं कि हमारे गुनाहों की सजा दीजिए। गोली चलाइये इंस्पेक्टर, क्योंकि कानून की निगाहों में तो गुनाह बस गुनाह होता है जिसकी सजा हमें मिलनी ही चाहिए। मगर वह सजा यहां सिर्फ एक ही हो सकती है, हमारी मौत, गोली चलाइये और हम आठ पापियों को इस जिंदगी से मुक्त कर दीजिए।”
इसी तरह नये नये डॉयलाग बोलकर सब गाड़ी में सवार होते चले गये। कोई इस तरफ से तो कोई उस तरफ से। विराट राणा अजीब सी निगाहों से उन्हें देखता रहा, जबकि जोशी उस बात पर बुरी तरह छटपटा रहा था। बार बार रिवाल्वर का रूख सफारी की तरफ करता और फिर नीचे झुका लेता।
तभी सफारी का इंजिन गरजा, उनकी तरफ के दोनों विंडो ग्लास ओपेन हुए, फिर आगे से एक लड़का और पीछे से एक लड़की ने गर्दन बाहर निकाला।
‘ए ऽ ऽ ऽ।’ जोर की आवाज निकालते हुए दोनों ने अपनी जुबान बाहर निकाल दी।
“एक बार और ट्राई कर लो इंस्पेक्टर।” कोई जोर से बोला, तभी सफारी एक झटके के साथ आगे बढ़ गयी।
जोशी का चेहरा गुस्से से लाल हो उठा।
पलक झपकते ही वह एक्शन की मुद्रा में आ गया।
उसने अपना एक घुटना सड़क पर टिकाया और दूसरे को सीधा रखते हुए, रिवाल्वर को दोनों हाथों से पकड़कर सफारी के बायें पहिये का निशाना लेने ही लगा था कि विराट ने रोक दिया।
“जाने दे यार।” वह हंसता हुआ बोला।
“आप ऐसा कह रहे हैं? - वह हैरानी से बोला - भूल गये कि वह कमीने हमें मुंह चिढ़ाकर गये हैं।”
“मुंह नहीं जोशी साहब जुबान चिढ़ाई थी।”
“मेरे लिए दोनों एक ही बात है सर।”
“छोड़ न यार, खामख्वाह जेल भरने का क्या फायदा, फिर इनकी जो हैसियत नजर आ रही है, उसको ध्यान में रखकर कहूं, तो हम अगर जिद पर ही नहीं उतर आते, तो उनमें से किसी को भी हवालात से आगे ले जा पाना संभव नहीं हो पाता।”
“आप भूल गये कि उन्हें पकड़ने के लिए आप कैसे अपनी जान पर खेल गये?”
“मजबूरी थी यार, बल्कि गलतफहमी कह लो। क्योंकि लड़की के चिल्लाने के कारण मामला हमें किडनैपिंग का मालूम पड़ने लगा था। मुझे क्या पता था कि उसमें आठ बच्चे सवार थे, वरना इतनी स्पीड में उन्हें गाड़ी चलाने को मजबूर कर के उनकी जान जोखिम में क्यों डालता?”
“यानि यहां तक खामख्वाह आये, कम से कम उनमें से किसी को जोर का एक थप्पड़ भी मार लिया होता तो मन को चैन पड़ जाता। वैसे सफारी का नंबर याद है मुझे।”
“अब जाने भी दो जोशी साहब, नौजवान बच्चे हैं, तूफानी वो नहीं करेंगे तो क्या हम करेंगे?”
“आपका इस वक्त का रवैया भी मेरी समझ से बाहर है सर। मैं तो आपको बड़ा कड़क ऑफिसर समझता था।”
“पहले हुआ करता था, जब जवान था।”
“तो क्या बत्तीस की उम्र में बूढे़ हो गये हैं आप?”
“ऐसा ही समझ लो, चलो अब घर चलते हैं।
“आपकी महिमा गजब है प्रभु।” जोशी अपने दोनों हाथों को बड़े ड्रैमैटिक अंदाज में जोड़ता हुआ बोला।
विराट ने जोर का ठहाका लगाया।
तत्पश्चात दोनों गाड़ी में सवार हो गये।
*****
0 Comments