सोमाथ अपने केबिन से निकला और दरवाजा बंद करते हुए आगे बढ़ गया। उसका चेहरा शांत दिख रहा था। उसने स्क्रीन द्वारा मोना चौधरी, नगीना और जगमोहन, के केबिनों में देखा था तो वहां किसी को भी नहीं पाया। वो समझ गया कि सब बबूसा के साथ पोपा के पीछे वाले हिस्से में मौजूद होंगे। वो जान चुका था कि सब उसके खिलाफ षड्यंत्र रच रहे हैं। उसे जान से खत्म करने की योजना बनाई जा रही है। इस विचार के साथ सोमाथ मुस्करा उठता कि वो पागल लोग अपनी ही मौत की तैयारी कर रहे हैं। रानी ताशा की तरफ से उसे इजाजत मिल चुकी थी कि अगर वे उस पर हमला करें तो वो कुछ भी करने को आजाद है। सोमाथ जानता था कि इस सारे मामले की जड़ बबूसा है। बबूसा ने दूसरों को अपने साथ लगा रखा है।

एक मोड़ से मुड़ने पर वो पतले से रास्ते पर आगे बढ़ा कि तभी पीछे से दबे पांव नगीना उसके पास पहुंची और हाथ में दबी तलवार तीव्रता के साथ सोमाथ की पीठ में घुसेड़ दी। इसके साथ ही नगीना भागती हुई नजरों से ओझल हो गई। सोमाथ के कदम उसी पल रुक गए थे। उसने भागती नगीना को देख लिया था। परंतु उसके पीछे नहीं गया। क्योंकि तलवार पीठ से आती, छाती वाले हिस्से कुछ बाहर आ रही थी। उसने हाथ पीछे किया और तलवार की मूठ पकड़कर धीरे-धीरे बाहर की तरफ खींचने लगा। दो मिनट में ही उसने तलवार बाहर निकालकर फेंक दी और छाती पर बने सुराख को देखा।
वैसे ही खड़ा रहा सोमाथ। मिनट भर में पीठ और छाती फिर से सामान्य हो गई।

सोमाथ के चेहरे पर लापरवाही थी, वो आगे बढ़ गया।

एक अन्य मोड़ मुड़ा कि सामने से जगमोहन और मोना चौधरी आते दिखे। उनके हाथों में तलवारें थीं। सोमाय को एकाएक सामने पाकर वो ठिठक गए। सोमाथ उनके पास जा पहुंचा।

जगमोहन और मोना चौधरी की नजरें मिली। फिर सोमाथ को देखा।

“तुम लोग जानते हो कि मुझे नहीं मारा जा सकता।” सोमाथ शांत स्वर में बोला-फिर क्यों बबूसा की बातों में आकर अपनी जान फंसाते हो। अपनी जान बचा के रखो इसी में समझदरी है।”

“लेकिन हमने तो तुम्हें कुछ भी नहीं कहा।”

“तलवारें हाथ में लेकर क्या कर रहे हो?” सोमाथ मुस्कराया।

“ये तो यूं ही...”

“अभी नगीना ने मुझ पर तलवार से हमला किया और भाग गई। तुम लोग भी मुझे ही ढूंढ रहे हो। बेवकूफी मत करो। पहले भी मुझ पर हमला करके देख चुके हो कि मेरा कुछ नहीं बिगड़ता।”

“नगीना ने ऐसा क्यों किया?” मोना चौधरी बोली-“क्या तुमने उसे कुछ बुरा कहा था।”

“चालाक मत बनो। बबूसा की बातों में मत आओ। मारे जाओगे।” सोमाथ ने सख्त स्वर में कहा।

“पता नहीं तुम ऐसी बातें क्यों कर रहे...” जगमोहन ने कहना चाहा।

तभी मोना चौधरी ने फुर्ती से तलवार का वार सोमाय पर कर दिया।

सोमाथ ने तलवार रोकने के लिए फुर्ती से हाथ आगे बढ़ाया तो उसका हाथ कटता चला गया। इसके साथ ही मोना चौधरी और जगमोहन फुर्ती से पलटे और भागते चले गए।

सोमाथ कठोर निगाहों से, वहीं खड़ा उन्हें तब तक देखता रहा जब तक वो मुड़कर निगाहों से ओझल न हो गए फिर अपने हाथ में देखा, जो कि हथेली तक बीच में से कटा पड़ा था। तीन उंगलियां एक तरफ थी और दूसरी तरफ एक उंगली और अंगूठा था। सोमाथ ने दूसरे हाथ से, हाथ को पकड़कर पुनः ठीक से जोड़ा और दबाए रखा। करीब पांच मिनट तक इसी स्थिति में रहा फिर जब हाथ को छोड़ा तो वो जुड़कर पहले की तरह सामान्य स्थिति में आ चुका था। सोमाथ के होंठ भिंच हुए थे। वो आगे बढ़ गया।

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बबूसा चालक कक्ष में पहुंचा।

किलोरा एक कुर्सी पर गिलास थामे बैठा खोनम के घूंट भर रहा था।

“आओ बबूसा।” एकाएक किलोरा उसे देखते ही बोला-“खोनम पिओगे।”

“तुम पिओ।” बबूसा ने सामने की विंड शील्ड से बाहर देखा।

सूर्य चमक रहा था। तेज रफ्तार से पोपा अपने रास्ते पर बढ़ा जा रहा था।

“आगे कितनी देर का रास्ता साफ है?” बबूसा ने पूछा।

“दो दिन तक रास्ते में कोई समस्या नहीं आएगी। रास्ता साफ बबूसा ने स्क्रीनों की तरफ देखा, जहां से पोपा के हर तरफ का दृश्य दिख रहा था।

“तुम अकेले यहां रहे तो थक जाओगे।”

“कुछ घंटे बाद राजा देव आ जाएंगे, तब मैं आराम कर लूंगा।” किलोरा ने मुस्कराकर कहा।

“राजा देव ने आने को कहा था?”

“हां। वो अभी चक्कर लगा कर गए हैं।”

बबूसा ने किलोरा को देखकर पूछा।

“तुम्हारे ख्याल में राजा देव कितनी देर तक यहां आएंगे?”

“शायद पांच-सात घंटों बाद।”

“पांच-सात घंटे, बहुत हैं, तब तक मैं अपना काम पूरा कर लूंगा।” बबूसा कह उठा।

“कैसा काम बबूसा?”

“मैं तुम्हें कष्ट देना चाहता हूं किलोरा।”

“कष्ट, कैसा कष्ट...?”

उसी पल बबूसा का हाथ उठा और किलोरा के सिर पर जा पड़ा।

किलोरा के होंठों से कराह निकली। खोनम का गिलास हाथ से छूट गया।

तभी बबूसा ने किलोरा की कनपटी पर जोरदार घूंसा मारा।

किलोरा के होंठों से मध्यम-सी चीख निकली और वो कुर्सी पर ही एक तरफ लुढ़क गया। वो बेहोश हो चुका था। इस पर भी बबूसा ने दो और घूंसे उसकी कनपटी पर मारे फिर जेब से पतली-सी डोरी निकालकर उसके हाथ-पांव बांधे और उसे कुर्सी से उठाकर, एक तरफ फर्श पर लिटा दिया।

किलोरा गहरी बेहोशी में था।

इस काम से निबटकर बबूसा कुर्सी पर बैठा और उसके हाथ सामने के डैशबोर्ड के बटनों और लीवरों पर चलने लगे। चेहरे पर गम्भीरता दिख रही थी। करीब दस मिनट बबूसा इसी तरह व्यस्त रहा। फिर एक तरफ लगे मोटर की सुई को देखा। सुई दर्शा रही थी कि पोपा की रफ्तार जीरो के करीब पहुंच चुकी है। मतलब कि पोपा अब एक साइकिल की-सी रफ्तार से आगे बढ़ रहा था।

“अब ठीक है।” बबूसा बड़बड़ाया-’अब मैं अपने चक्रव्यूह पर काम कर सकूँगा और पोपा के भीतर मौजूद किसी को भी इस बात का एहसास नहीं होगा कि पोपा की रफ्तार क्या है। भीतर के लोगों को पोपा की रफ्तार का पता नहीं चलता। बेशक वो तेज हो या धीमा।” इसके साथ ही बबूसा उठा और विंड स्क्रीन से बाहर देखा। रास्ता क्लियर था। फिर छोटी स्क्रीनों की तरफ देखा।

सब ठीक पाकर बबूसा किलोरा के पास पहुंचा। उसे चेक किया। वो गहरी बेहोशी में था।

बबूसा चालक कक्ष से बाहर निकला। दरवाजा बंद किया और बाहर लगी नम्बरों की प्लेट के कुछ बटनों को दबाकर दरवाजा लॉक किया और आगे बढ़ गया। चेहरे पर गम्भीरता दिख रही थी।

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सोमाथ ने अपने केबिन का दरवाजा खोला और भीतर प्रवेश किया। अगले ही पल चौंका। उसके केबिन में नगीना मौजूद थी और देखते ही देखते हाथ में दबी तलवार उसके पेट में घुसेड़ दी।

सोमाथ के शरीर को हल्का-सा झटका लगा लेकिन इसी के साथ ही उसने हाथ बढ़ाकर नगीना की गर्दन पकड़ ली। नगीना छटपटा उठी, परंतु सोमाथ शांत रहा। दूसरे हाथ से उसने पेट में धंसी तलवार बाहर निकाली और पास ही फेंक दी। नगीना खुद को छुड़ाने का असफल प्रयास कर रही थी परंतु उसकी कोशिश सफल नहीं हो पा रही थी।

“मेरे समझाने पर भी तुम लोगों को समझ नहीं आई।” सोमाथ सख्त स्वर में कह उठा।

नगीना खुद को छुड़ाने के लिए जोरों से तड़पी।

लेकिन सोमाथ के हाथ की उंगलियों ने नगीना का गला नहीं छोड़ा।

नगीना का चेहरा दम घुटने से लाल-सुर्ख होने लगा।

“तो तुम पृथ्वी ग्रह पर राजा देव की पत्नी हो।” कहते हुए सोमाथ बेहद शांत भाव में मुस्करा पड़ा।

नगीना का चेहरा लाल-सुर्ख हो चुका था और आंखें फटती जा रही थीं।

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जगमोहन के हाथ में तलवार थी। वो सतर्कता से पोपा के सुनसान रास्तों पर आगे बढ़ रहा था।

उसकी निगाह सोमाथ की तलाश कर रही थी। चेहरे पर खतरनाक भाव छाए हुए थे। तभी सामने से, एक मोड़ पर मोना चौधरी प्रकट हुई। दूर से ही उनकी नजरें मिलीं। जगमोहन ठिठका, मोना चौधरी पास आ पहुंची।

“सोमाथ कहां है?” जगमोहन ने पूछा।

“वो कहीं भी नहीं दिख रहा।” मोना चौधरी बोली।

“कहीं वो अपने केबिन में तो नहीं?”

“मैं नहीं जानती।”

“आओ उसके केबिन की तरफ चलते हैं।”

दोनों एक साथ आगे बढ़ गए।

“नगीना भाभी को देखा है?”

“नहीं। बेला नहीं दिखी। वो भी कहीं पर सोमाथ के लिए, घात लगाए खड़ी होगी।”

“क्या हम ठीक कर रहे हैं?” जगमोहन बोला।

“क्य मतलब?”

“हम सोमाथ का कुछ नहीं बिगाड़ सकते, फिर भी उस पर वार करने की कोशिश कर रहे हैं।”

“ये बबूसा का प्लान है। वो चाहता है कि तंग आकर सोमाथ उसे मारने पोपा के पीछे वाले हिस्से पर आ पहुंचे।”

“बबूसा करना क्या चाहता है?”

“ये नहीं बता रहा वो।”

“कुछ करने से पहले हमें उससे जानना चाहिए था कि उसका प्लान क्या है।” जगमोहन बोला।

“हम अजीबो-गरीब हालातों में फंसे अंजान ग्रह की तरफ जा रहे हैं। हमें नहीं पता कि आगे क्या होने वाला है। सबसे बड़ी समस्या देवराज चौहान की है कि वो हमारी परवाह ही नहीं कर...”

“इससे क्या फर्क पड़ता है?”

“बहुत फर्क पड़ता है।” मोना चौधरी ने कहा-“जिसके लिए हम दूसरे ग्रह का सफर कर रहे हैं, उसे हमारी कोई चिंता नहीं है। वो एक बार भी हमारे पास नहीं आया और रानी ताशा के पहलू में मौजूद रह रहा है। हम देवराज चौहान से कोई बात भी नहीं कर पा रहे, क्योंकि सोमाथ से हमें डर लगता है। अगर सोमाथ नहीं रहेगा तो हम देवराज चौहान से बात कर सकते हैं। कुछ आगे का भी सोच सकते हैं। उसे तो...”

“चुप रहो। हम सोमाथ के केबिन के पास आ पहुंचे हैं।” जगमोहन ने धीमे स्वर में कहा।

दोनों खामोशी से आगे बढ़ते सोमाथ के केबिन के दरवाजे पर जा पहुंचे।

दोनों की निगाहें मिलीं। जगमोहन ने इशारे से वहीं रहने को कहा कि वो भीतर जाकर देखता है।

मोना चौधरी ने सिर हिला दिया।

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सोमाथ अपने केबिन में मौजूद था।

फर्श पर नगीना लुढ़की पड़ी थी। पता नहीं वो बेहोश थी या बेजान थी। उसकी टांगें एक तरफ मुड़ी हुई थीं। बांहें फैली थीं। आंखें बंद थीं सन्नाटा छाया हुआ था वहां।

सोमाथ सामने की स्क्रीन पर जगमोहन और मोना चौधरी को देख रहा था। दोनों के हाथों में तलवारें थीं और वो जानता था कि दोनों उसके केबिन की तरफ ही बढ़ रहे हैं। फिर उसने स्क्रीन पर, दोनों को केबिन से बाहर रुकते देखा तो चेहरे पर कठोरता आ गई।

वो दरवाजे की तरफ बढ़ गया। सावधानी से चल रहा था कि उसके कदमों की आवाज न उठे। दरवाजे की ओट में जा ठिठका और दरवाजा खुलने का इंतजार करने लगा।

चंद पल बीते।

तभी दरवाजा धीरे-धीरे खुला। थोड़ा और खुला और जगमोहन का सिर दिखाई दिया। वो केबिन में झांकना चाहता था। झांका भी, सामने नगीना को फर्श पर लुढ़के पड़े देखा।

“भाभी...” जगमोहन चीखा और होश खो बैठा।

दरवाजा खोलते तेजी से भीतर लपका।

अगले ही पल मोना चौधरी भी भीतर प्रवेश कर आई कि भीतर नगीना के साथ क्या हुआ।

उसी पल सोमाथ ने दरवाजा बंद कर दिया।

दोनों भीतर आ चुके थे और दरवाजा बंद होते पाकर चौंककर पलटे।

जगमोहन को इतना वक्त नहीं मिल सका कि नगीना को देख पाता।

सोमाथ बंद दरवाजे के पास खड़ा कठोर निगाहों से उन्हें देख रहा था।

“तुमने भाभी के साथ क्या किया? मार दिया इसे?” जगमोहन चीखा।

“तुम दोनों अपने अंजाम की परवाह करो।” सोमाथ ने सख्त स्वर में कहा।

तभी जगमोहन और मोना चौधरी तलवारों के साथ, सोमाथ पर झपट पड़े।

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बबूसा पोपा के पीछे हिस्से में मौजूद था और चहलकदमी कर रहा था। उसके चेहरे पर सख्ती नाच रही थी। उसके अलावा वहां और कोई मौजूद नहीं था। काफी देर से वो अकेला था। उसके चेहरे पर बेचैनी छाई हुई थी। एकाएक वो ठिठका और नीचे फैले पड़े मोटे रस्से का सिर उठाकर अपनी कमर से बांधने लगा। रस्से का दूसरा सिर एक रॉड से मजबूती से बांध रखा था। बबूसा ने कमर पर भी मजबूती से रस्सा बांधा कि किसी भी स्थिति में खुल न सके। इन सब बातों के दौरान उसका मस्तिष्क इसी सोच में उलझा हुआ था कि क्या उसके बिछाए चक्रव्यूह में सोमाथ फंसेगा या नहीं? ये उसकी आखिरी कोशिश थी सोमाथ को खत्म करने की और उसे नहीं पता था कि उस कोशिश में वह कितना सफल हो पाएगा। लेकिन उसे अपने पर भरोसा था कि वो सफल हो जाएगा। परंतु रह-रहकर उसकी सोचें डगमगा उठती थीं।

तभी उसके कानों में दौड़ते कदमों की आवाजें पड़ी।

बबूसा सतर्क हो गया।

अगले ही पल सोमारा ने भीतर प्रवेश किया। वो हांफ रही थी।

“बबूसा।” सोमारा जल्दी से परेशान स्वर में कह उठी-“सोमाथ ने सबको मार दिया।”

“सबको?” बबूसा के होंठों से निकला।

“नगीना, जगमोहन और मोना चौधरी को।”

“न-हीं।” बबूसा के होंठों से निकला। वो सोमारा को देखता रह गया।

“म-मैं उन पर नजर रखे थी। उन्हें सोमाथ के केबिन में जाते देखा मैंने। पहले नगीना गई थी। कुछ देर बाद सोमाथ अपने केबिन में गया। उसके कुछ देर बाद मैंने मोना चौधरी और जगमोहन को सोमाथ के केबिन में जाते देखा। मैं जानती हूं कि वो लोग सोमाथ का मुकाबला नहीं कर सकते। तुमने भी तो उन्हें यही कहा था कि सोमाथ पर वार करो और भाग जाओ। तुमने उन्हें समझा दिया था कि उनका मकसद सोमाथ को परेशान करना है कि परेशान होकर वो यहां, तुम्हारे पास चला आए। उन्हें सोमाथ के केबिन में नहीं जाना चाहिए था। उन तीनों में से कोई भी बाहर नहीं निकला। सोमाथ ही बाहर निकला और वहां से चला गया। तब मैंने केबिन का दरवाजा खोलकर भीतर देखा तो उन तीनों को फर्श पर गिरा पाया।”

“जान जा चुकी थी उनकी?” बबूसा का चेहरा खतरनाक हो गया।

“मेरी तो हिम्मत नहीं हुई आगे जाने की। परंतु सोमाथ उन्हें जिंदा क्यों छोड़ने लगा।” सोमारा ने कहा।

“ये तो बहुत बुरा हुआ।” बबूसा गुर्रा उठा-“राजा देव उनकी मौत को कभी भी पसंद नहीं करेंगे।”

“मुझे बताओ अब मैं क्या करूं?”

“तुमने बबूसा पर वार क्यों नहीं किया।”

“मैं...” कहते-कहते सोमारा ठिठक गई।

कदमों की मध्यम-सी आवाजें उनके कानों में पड़ी।

“वो आ गया।” सोमारा के होंठों से निकला।

बबूसा की आंखों में उसी पल खतरनाक चमक नजर आने लगी।

सोमारा पीछे हटती दीवर से जा लगी। तलवार अभी भी उसके हाथ में थी।

बबूसा ने कमरे में बंधे रस्से को चेक किया।

“अ-अब तुम क्या करने वाले हो बबूसा।” सोमारा भय से भरे स्वर में कह उठी।

तभी कदमों की आवाजें पास से आईं और सोमाथ ने भीतर प्रवेश किया।

सोमाथ को वहां आया पाकर बबूसा वहशी अंदाज में मुस्करा पड़ा।

“तो तुमने मुझे ढूंढ़ ही लिया सोमाथ।” बबूसा बोला।

“मैं तुम्हें मारने आया हूं।” सोमाथ ने सख्त स्वर में कहा।

“मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है।” बबूसा पोपा के बंद दरवाजे की तरफ बढ़ा।

“तुमने जगमोहन, नगीना और मोना चौधरी को...”

“मार दिया उन तीनों को तुमने।” दरवाजे के पास पहुंचकर बबूसा ठिठका और सोमाथ को देखा।

“तीनों जिंदा हैं।”

“हैरानी है, मारा क्यों नहीं?”

“उनकी कोई गलती नहीं है। तुमने उन्हें भड़काया है। मेरे पीछे भेजा। अब तुम...”

“पर तुम मुझे नहीं मार सकते।” कहने के साथ ही बबूसा ने दीवार पर लगे बटन की प्लेट में से कुछ बटन दबाए।

सोमाथ की आंखें सिकुड़ीं।

तभी दरवाजा खुलता चला गया।

बाहर से सूर्य की तेज रोशनी भीतर आई।

“मेरे पास आओ सोमारा।” बबूसा बोला।

सोमाथ समझने वाली नजरों से सब कुछ देख रहा था।

सोमारा पास पहुंची तो बबूसा ने उसके कान में कुछ कहा।

सुनकर सोमारा पीछे हट गई।

“तुम क्या करने की सोच रहे हो?” सोमाथ बोला।

“सोमाथ। तुम मुझे नहीं मार सकते। मैं बाहर कूद जाऊंगा।” बबूसा मुस्कराकर कह उठा।

“ये बच्चों जैसी बातें हैं।” सोमाथ मुस्करा पड़ा।

“देख लो, मैंने रस्सा भी बांध रखा है। पोपा की रफ्तार भी बहुत कम है। मैंने कम की थी और...”

“ऐसी बातें करके तुम मुझे भटकाने की चेष्टा कर रहे हो।” सोमाथ बबूसा की तरफ बढ़ा-“तुम कब से मुझे मारने की सोच रहे हो और जानते भी हो कि मुझे नहीं मार सकते। तुम्हारा दिमाग खराब है जो तुमने मेरे खिलाफ साजिश रची। अब मैं किसी भी कीमत पर जिंदा नहीं छोड़ने वाला।”

सोमाथ बबूसा के पास आ पहुंचा था कि उसी पल बबूसा, सोमाथ पर झपट पड़ा।

सोमाथ ने फुर्ती से खुद को बचाया और बबूसा के सिर पर जोरों का घूंसा मारा।

बबूसा का सिर झनझना उठा और दो-तीन कदम पीछे हट गया। सोमाथ को देखा।

दोनों कई पलों तक एक-दूसरे की आंखों में देखते रहे।

“मुझे ये समझ नहीं आया कि तुमने पोपा का दरवाजा क्यों खोला है?” सोमाथ बोला।

“ताकि जब मुझे तुमसे जान का खतरा लगे तो मैं बाहर कूद जाऊं। तभी तो पोपा की रफ्तार भी कम कर रखी है।”

“बात कुछ और है।”

“जो भी तुम समझो। मगर मैंने सच बात कही है।”

“किलोरा कहां है?”

“चालक कक्ष में बेहोश है।”

“तुम अपनी किसी योजना पर काम कर रहे हो। योजना को तुमने चक्रव्यूह का नाम दे रखा है। मैंने तुम्हारी बातें सुनी थीं। पोपा के दरवाजे को इस प्रकार खोलना अन्यथा नहीं है। इसमें तुम्हारी कोई चाल छिपी है। कहीं तुम मुझे तो पोपा से बाहर नहीं फेंकना चाहते।”

“तुम्हारी बात पर मैं गौर करूंगा। ख्याल बुरा नहीं। पर ये दरवाजा मैंने अपने लिए खोला है।”

“तुम दूसरों से मुझ पर वार कराते रहे और खुद यहां पर रहे। मतलब कि तुम मुझे यहां बुलाना चाहते थे।”

“महापंडित ने तुम्हारा निर्माण बहुत बढ़िया किया है। इतना सब कुछ तुम कैसे सोच लेते हो। महापंडित का कमाल हो तुम।”

सोमारा, घबराई-सी एक तरफ खड़ी थी।

घूंसा सोमाथ के चेहरे पर मारते पीछे हो गया।

तभी सोमाथ, बबूसा की तरफ बढ़ा और हाथ बढ़ाकर बबूसा की गर्दन पकड़नी चाही। बबूसा ने सोमाथ का हाथ पकड़कर छटका और जोरों का घूंसा सोमाथ के चेहरे पर मारते पीछे हो गया।

“तुम अच्छी तरह जानते हो कि इन घूंसों का मुझ पर कोई असर नहीं होगा। ये सब करके तुम मुझे उलझाना चाहते हो और मैं सोच रहा हूं कि तुम आखिर क्या चाल चलने वाले हो।” सोमाथ ने शांत स्वर में कहा।

बबूसा मुस्कराकर सोमाथ को देखने लगा।

“तुमने रस्सा क्यों बांधा हुआ है?” सोमाथ बोला।

“तुमसे बचने के लिए मुझे बाहर छलांग लगानी पड़ सकती है। बाहर आकाश गंगा है। गुरुत्वाकर्षण नहीं है। मैं नहीं चाहता कि मैं बाहर ही रह जाऊं और पोपा आगे निकल जाए।”

“तुम असल बात से मुझे भटका रहे हो।” सोमाथ की आंखें सिकुड़ गईं।

बबूसा ने कुछ नहीं कहा।

“तुम्हें खत्म कर देना ही बेहतर होगा बबूसा।” सोमाथ ने एकाएक निर्णायक स्वर में कहा और बबूसा की तरफ बढ़ा।

पास पहुंचकर सोमाथ ने दोनों हाथ बढ़ाकर बबूसा को पकड़ना चाहा।

बबूसा ने तुरंत सोमाथ के आगे बढ़ते हाथों को थामा और पीछे को बेहद तेज झटका दिया।

सोमाथ मात्र एक कदम ही पीछे की तरफ लड़खड़ाया, संभल गया।

तभी तेजी से नगीना ने भीतर प्रवेश किया और यहां का नजारा देखकर ठिठक गई। उसके बाल बिखरे हुए थे। चेहरे पर हल्की-सी चोट का निशान था। वो बेहोशी से बाहर आई तो मोना चौधरी और जगमोहन को भी वहां बेहोश पड़े देखा। उसके बाद सीधी भागती हुई यहां आ पहुंची थी। बबूसा और सोमाथ को उसने टकराव की स्थिति में देखा। आखिरकार उसकी कठोर निगाह बबूसा पर टिक गई कि तभी सोमारा उसका हाथ पकड़कर एक तरफ ले गई और कान में कुछ कहा। सुनकर नगीना के माथे पर बल पड़ गए। उसने बबूसा और सोमाथ को देखा। अपनी जगह पर खड़ी रही।

बबूसा ने मुस्कराकर नगीना को देखा तो नगीना ने सहमति से सिर हिला दिया।

तभी सोमाथ ने बबूसा पर छलांग लगा दी। बबूसा खुद को बचा न सका और सोमाथ ने दोनों बांहों के बीच बबूसा को भींच लिया। ऐसा होते ही सोमाथ, बबूसा पर अपनी बांहों का दबाव बढ़ाने लगा। हर पल उसकी बांहें कसती जा रही थीं। बबूसा ने खुद को आजाद कराने के लिए जोर लगाया, परंतु बेकार रहा।

“सोमारा।” बबूसा कसमसाकर बोला-“इस पर वार करो।”

सोमारा तुरंत तलवार थामे आगे बढ़ी।

“इसके सिर पर वार करना।” नगीना दांत भींचकर बोली।

सोमाथ ने गर्दन घुमाकर सोमारा को देखा।

तब तक सोमारा के हाथ में दबी तलवार उठ चुकी थी। नीचे आई तो तलवार से सोमाथ का सिर बीच में से माथे तक कट गया। सोमारा फुर्ती से तलवार थामे पीछे हो गई। ऐसा होते ही सोमाथ की पकड़ ढीली हो गई। बबूसा आजाद होकर पीछे हटता चला गया।

सोमाथ ने दोनों हाथों से अपने कटे सिर को दबा दिया और खड़ा रहा।

तभी बबूसा, सोमाथ पर झपटा।

सोमाथ ने फौरन टांग घुमाई जो कि बबूसा के पेट में जा लगी। बबूसा के होंठों से कराह निकली और लड़खड़ाकर वो पीछे की तरफ जा गिरा फिर फुर्ती से उठ खड़ा हुआ।

उसी पल सोमाथ ने सिर से अपने दोनों हाथ हटा लिया। उसका सिर पहले की तरह सामान्य हो चुका था। अब सोमाथ के चेहरे पर कठोरता दिखने लगी थी। उसने पलटकर सोमारा को देखा।

सोमाथ को अपनी तरफ देखते पाकर सोमारा का चेहरा फक्क पड़ गया।

सोमाथ, बबूसा को छोड़कर सोमारा की तरफ बढ़ने लगा।

“बबूसा।” सोमारा चीख उठी-“मुझे बचाओ। ये मुझे...”

“मैं जा रहा हूं सोमाथ। तुम मुझे नहीं मार सकते।” बबूसा ने ऊंचे स्वर में कहा और पोपा के खुले दरवाजे से छलांग लगा दी। वहां फैला रस्सा बाहर की तरफ सरकता चला गया और आखिरकार रस्से के आखिरी सिरे पर रुक गया, जो कि पाइप से बंधा था। ऐसा होते पाकर सोमाथ के कदम ठिठक गए। चेहरे पर उलझन उभरी और पलटकर पोपा के खुले दरवाजे पर आ खड़ा हुआ और नीच झांका। परंतु बबूसा नीचे नहीं, पीछे दिखा। रस्से से बंधा वो बेहद मध्यम गति से पोपा के साथ-साथ खिंचा चला आ रहा था। आकाश गंगा में गुरुत्वाकर्षण न होने के कारण, बबूसा नीचे की तरफ नहीं, पोपा के आस-पास डोल रहा था, परंतु बंधे रस्से की वजह से, पोपा के साथ खिंचे चले आने की वजह से, अब वो पोपा के पीछे दिखने लगा था।

दरवाजे पर खड़ा सोमाथ, रस्से में जकड़े बबूसा को देख रहा था।

बबूसा भी उसे देख रहा था। मुस्करा रहा था।

अभी चंद पल ही बीते होंगे सोमाथ को वहां खड़े कि एकाएक नगीना अपनी जगह से दौड़ी और अगले ही पल उछलकर फ्लाइंग किक सोमाथ की पीठ पर मारी।

ये जबर्दस्त धक्का था सोमाथ के लिए।

सोमाथ के पैर उखड़े और वह पोपा से बाहर गिरता चला गया। बाहर गिरते ही उसका शरीर हवा में तैरने लगा और पोपा मध्यम-सी रफ्तार आगे बढ़ता चला गया। रस्से से बंधा बबूसा पोपा से बंधा, पोपा के साथ खिंचा चला आ रहा था। सोमाथ चंद पलों में ही पीछे छूट गया था।

उधर नगीना ने सोमाथ को किक मारते ही अपने को संभालने की चेष्टा की। पोपा का ऊपर का हिस्सा उसने थाम लिया खुद को रोकने के लिए। क्योंकि वो बहुत वेग के साथ, सोमाथ की तरफ बढ़ी थी, परंतु लाख चेष्टा के बाद भी खुद को संभाल न सकी। यहाँ तक कि सोमारा तेजी से दौड़ी थी गिरती नगीना को थामने के लिए, परंतु उसके करीब पहुंचने के पहले ही, नगीना खुले दरवाजे से बाहर गिरती चली गई।

“नगीना। ऽ-ऽ-ऽ-।” सोमारा चीखी।

परंतु अब तक नगीना बाहर खुली सीढ़ियों का एक किनारा थाम चुकी थी और पोपा के साथ-साथ खिंचने लगी। किसी प्रकार नगीना ने खुद को खुली सीढ़ी पर पहुंचाया, परंतु सीढ़ी पर पकड़ बनाए रखी। वो जानती थी कि हाथ छूटा नहीं कि खेल खत्म। फिर उसने सीढ़ी का रेलिंग, जो कि एक पाइप की तरह था, वो थामा और उसे पकड़कर धीरे-धीरे दरवाजे की तरफ आने लगी। दरवाजे पर खड़ी सोमारा का दिल जोरों से बज रहा था।

नगीना कुछ मिनटों की मेहनत के बाद दरवाजे के करीब आ पहुंची तो सोमारा ने अपना हाथ आगे बढ़ाया, जो कि नगीना ने थाम लिया। नगीना ने कोई जल्दी नहीं की भीतर आने की। उसकी जल्दबाजी सोमारा को बाहर गिरा सकती थी। फिर कुछ ही पलों में नगीना भीतर थी।

“तुम बच गई नगीना। मेरा दिल तो देखो, डर के मारे, कितना जोरों से धड़क रहा है।” सोमारा कह उठी।

“सोमाथ को पोपा से बाहर धकेलना भी तो आसान नहीं था।” नगीना पोपा के फर्श पर बैठी, गहरी सांसें लेती कह उठी।

“अब सोमाथ से हमारा पीछा छूट गया। बबूसा का चक्रव्यूह बहुत अच्छा रहा।” सोमारा मुस्कराई।

“बबूसा को देखो।”

सोमारा ने उसी पल बाहर झांका।

बबूसा, रस्से को पकड़-पकड़कर काफी करीब आ चुका था।

“आ जाओ बबूसा।” सोमारा धड़कते दिल के साथ कह उठी।

“मेरी फिक्र मत करो।” बबूसा खुशी से बोला-“हमने सोमाथ से पीछा छुड़ा लिया।”

अगले कुछ ही मिनटों में बबूसा पोपा के भीतर आ गया। खुला दरवाजा बंद कर दिया।

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बबूसा चालक कक्ष में पहुंचा। किलोरा के होश आ चुका था, परंतु वो बंधा हुआ था। पोपा इस वक्त बेहद मध्यम रफ्तार से आगे बढ़ रहा था। किलोरा को देखकर बबूसा मुस्कराया और उसके बंधन खोलने लगा।

“ये क्या हरकत की तुमने बबूसा।” किलोरा नाराजगी से कह उठा-“रानी ताशा से तुम्हारी शिकायत करनी पड़ेगी मुझे।”

“अब सब ठीक है। ऐसा फिर नहीं होगा।”

“तुमने मेरे साथ ऐसा क्यों किया?”

“मुझे बेहद जरूरी काम करना था और उसके लिए पोपा की रफ्तार बहुत कम करनी थी।” बंधन खोलता बबूसा बोला-“मैं तुम्हें ऐसा करने को कहता तो तुम नहीं मानते। इसलिए तुम्हें बेहोश करना पड़ा।”

“परंतु ऐसा क्या काम था जो कि तुम...”

बबूसा ने बंधन खोल दिए।

“अब पोपा को संभालो। उसकी रफ्तार खूब तेज कर दो ताकि हम जल्दी से सदूर पर पहुंच सके।” बबूसा खुशी से मुस्करा रहा था।

“मुझे तुम्हारी बातें समझ नहीं आ रहीं कि तुम क्या कर...”

“बातें खत्म हो चुकी हैं। तुम पोपा को संभालो।” बबूसा हंस पड़ा।

किलोरा उठ खड़ा हुआ। चेहरे पर उलझन थी।

बबूसा चालक कक्ष से बाहर निकलता चला गया। वहां से पोपा के ऊपरी हिस्से में, रानी ताशा वाले कमरे के बाहर जा पहुंचा। दरवाजा बंद था तो उसने बेचैनी भरे अंदाज में दरवाजा थपथपाया फौरन ही दरवाजा खुला। सामने रानी ताशा खड़ी थी।

“कहो बबूसा।”

“एक खबर है मेरे पास मेरे लिए तो वो अच्छी है परंतु आपके लिए शायद सुखद न हो रानी ताशा।”

“कहो।” रानी ताशा ने गहरी निगाहों से बबूसा को देखा।

“राजा देव भी अगर पास में होते तो...”

तभी देवराज चौहान उनके पास आ पहुंचा।

“राजा देव।” बबूसा खुशी से कह उठा-“मैं जीत गया। सोमाथ अब नहीं रहा।”

देवराज चौंका, फिर मुस्करा पड़ा।

“असम्भव।” रानी ताशा के होंठों से निकला-“सोमाथ को खत्म नहीं किया जा सकता। महापंडित ने मुझे ऐसा ही कहा था।”

“आप सही कहती हैं रानी ताशा। सोमाथ को मैं खत्म नहीं कर सका, परंतु उसे पोपा के बाहर फेंक दिया।”

“कब?” रानी ताशा के माथे पर बल पड़ गए।

“कुछ ही देर पहले। अभी की तो बात है और आपको खबर देने आ गया था।”

रानी ताशा ने गर्दन घुमाकर देवराज चौहान को देखा।

देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान थी।

“सोमाथ ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था बबूसा?” रानी ताशा बोली।

“उसने मुझे मारना चाहा था। मुझे पसंद नहीं कि कोई मुझे जीत ले।” (विस्तार से जानने के लिए पढ़ें ‘बबूसा खतरे में’।)

“तुम जिद्दी हो।” रानी ताशा ने गम्भीर स्वर में कहा।

“महापंडित ने मेरे में राजा देव के गुण डालकर, इस बार मेरा जन्म कराया था।” बबूसा खुश था फिर देवराज चौहान से कहा-“इस काम में जगमोहन, मोना चौधरी और आपकी पृथ्वी की पत्नी नगीना ने मेरी सहायता की। नगीना ने तो काफी ज्यादा सहायता की सोमाथ को पोपा के बाहर फेंकने में। उसी कारण मैं सफल हो सका।”

देवराज चौहान मुस्कराते हुए बबूसा को देख रहा था।

“सोमाथ मेरा प्यारा साथी था बबूसा।”

“क्षमा करें रानी ताशा। मैं उसे अपना दुश्मन मान चुका था तब से, जब उसने मेरा गला दबाकर मुझे मारना चाहा था।”

“तुमने अच्छा नहीं किया।” रानी ताशा के चेहरे पर गुस्सा चमका।

“मुझे अभी काम है, मैं चलता हूं।” बबूसा ने कहा और पलटकर चला गया।

रानी ताशा ने पलटकर देवराज चौहान को देखते हुए कहा।

“देव, आपने बबूसा को सिर पर चढ़ा रखा है।”

“खतरा उसे भी था। सोमाथ बबूसा को भी जान से मार सकता था।” देवराज चौहान ने कहा।

“सोमाथ मेरे हक में बहुत अच्छा था। मुझे उसका बहुत सहारा था।”

“अब तुम्हारा सहारा मैं हूं। तब मैं तुम्हारे पास नहीं था।” देवराज चौहान ने मुस्कराकर कहा।

“देव। मेरे देव।” रानी ताशा का स्वर कांपा और वो देवराज चौहान के करीब जा पहुंची।

देवराज चौहान ने रानी ताशा के बांहों में समेट लिया।

“आप कितने अच्छे हैं देव।” रानी ताशा का स्वर कांपा।

“तुम मेरे से ज्यादा अच्छी हो। मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता ताशा।” देवराज चौहान ने प्यार से कहा।

“ओह। सदूर पर अब हमारा वक्त कितना अच्छा निकलने वाला है। हम कितने किस्मत वाले हैं देव।”
 

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बबूसा वहाँ से कुछ आगे हो गया था कि तभी रानी ताशा का एक आदमी सामने से आया और बोला।

“बबूसा। महापंडित तुमसे बात करना चाहता है।”

“महापंडित?” बबूसा की आंखें सिकुड़ी।

“वो संबंध बनाए हुए है। जाकर उससे बात करो।”

बबूसा तेजी से आगे बढ़ गया।

बबूसा उसी कमरे में पहुंचा। सामने स्क्रीन पर महापंडित की तस्वीर नजर आ रही थी। बबूसा ने हेडफोन जैसा यंत्र कानों पर लगाया तो स्क्रीन पर नजर आ रहे महापंडित की निगाह अपने पर टिकती देखी बबूसा ने।

“कहो महापंडित।” बबूसा बोला।

“मेरी मशीनों ने मुझे अभी-अभी बताया है कि तुमने सोमाथ को कोई नुकसान पहुंचा दिया है।” महापंडित की आवाज यंत्र से उभरी।

“सच में?” बबूसा मुस्कराया-“पर तुमने तो सोमाथ को ऐसा बनाया कि उसे नुकसान नहीं पहुंचाया जा सकता।”

“इसी कारण तो मैं हैरान हूं कि ऐसा कैसे हो सकता है।”

बबूसा बराबर मुस्कराए जा रहा था।

“मुझे बताओ तुम्हारे और सोमाथ के बीच क्या हुआ है?”

“इसमें कोई शक नहीं कि तुमने सोमाथ का बेहतरीन निर्माण किया था। उसकी ताकत, उसका दिमाग सब कुछ शानदार था। उसका मुकाबला नहीं किया जा सकता था। परंतु मैंने किसी तरह उसे पोपा के बाहर आकाशगंगा में गिरा दिया।”

“ओह।”

“अब सोमाथ पोपा पर नहीं है। वो आकाश गंगा में भटकता रहेगा। उसे करंट कहां से मिलता था महापंडित?”

“बैटरी से। वो खुद ही अपने भीतर बैटरी लगाता था बैटरी बदलते वक्त भी उसमें करंट रहता था। मैंने उसके भीतर ऐसा सिस्टम लगाया था कि बैटरी निकाल लेने के बाद भी देर तक उसके भीतर करंट रहे।” महापंडित की निगाह आवाज यंत्र में उभरी।

“तो जब तक उसकी बैटरी में करंट रहेगा, तब तक वो आकाशगंगा में भटकता हाथ पांव मारता रहेगा फिर शांत हो जाएगा। मुझे इस बात का ज्यादा अफसोस नहीं कि मैंने तुम्हारी बेहतरीन चीज को बेकार कर दिया। मैंने उसे कभी भी पसंद नहीं किया।”

“ऐसा करके सोचते हो कि तुमने सोमाथ से पीछा छुड़ा लिया।” महापंडित स्कीन पर मुस्कारता दिखा।

“बेशक। सोमाथ अब वापस नहीं आ सकता।”

“तुम सदूर पर पहुंची। वहां सोमाथ तुम्हारे स्वागत में खड़ा मिलेगा।”

“ये कैसे सम्भव हो सकता है?” बबूसा के माथे पर बल दिखने लगे।

“मैं एक और सोमाथ बना चुका हूं।”

“क्या?”

“ठीक पहले वाले सोमाथ जैसा। नए सोमाथ के दिमाग में मैं मशीनों द्वारा हर वो जानकारी डालने जा रहा हूं जो पुराने सोमाथ के पास थी। उसके पास ये भी जानकारी होगी कि तुमने उसके साथ क्या किया।” महापंडित की आवाज यंत्र से उभर रही थी-“परंतु इस बार मैंने सोमाथ को कुछ लचीला बनाया है कि वो इंसानों का बेहतर दोस्त बन सके। उनकी तरह फालतू बातें कर सके।”

“मेरे ख्याल में महापंडित, सोमाथ की अब किसी को भी जरूरत नहीं है।” बबूसा ने कहा।

“मेरी मशीनों ने मुझे बताया है कि सोमाथ की बहुत जरूरत पड़ेगी आने वाले वक्त में।”

“क्यों?”

चंद पलों के पश्चात महापंडित की आवाज पुनः यंत्र से उभरी।

“मशीनों का कहना है कि इस बारे में बबूसा से तब तक बात न करूं, जब तक वो सदूर पर न पहुंच जाए। अगर बात की गई तो बबूसा बातों का जवाब नहीं दे पाएगा। किसी ने उसे रोक रखा है।”

बबूसा समझ गया कि बातें ‘धरा’ से वास्ता रखती होंगी।

“अगर तुमने पहले ही मेरे से सोमाथ के बारे में जिक्र किया होता तो मैं सोमाथ से तुम्हारी दोस्ती करा देता।” महापंडित की आवाज उभरी।

परंतु बबूसा का ध्यान धरा की तरफ हो चुका था।

“क्या तुम जानते हो कि पोपा के सदूर पर पहुंचने पर क्या होने वाला है।” बबूसा बोला।

“मेरी मशीनों ने कई बातें बताई हैं परंतु मैं अभी तक नहीं जान पाया कि उस लड़की की हकीकत क्या है।”

“मैं जान चुका हूं।” बबूसा गम्भीर स्वर में बोला-“परन्तु उसका नाम नहीं बता सकता अभी...”

“मैं समझ रहा हूं।” महापंडित के स्वर में इस बार गम्भीरता थी।

बबूसा चुप रहा।

“राजा देव और रानी ताशा को लड़की की हकीकत के बारे में पता है?” महापंडित ने पूछा।

“हकीकत तो क्या, वो उसके बारे में कुछ भी नहीं जानते।”

“तुमने बताया?”

“कोशिश की, परंतु बताने में नाकाम रहा। सोमारा अवश्य जानती है।”

“अब शेष बातें तभी होंगी जब पोपा सदूर पर पहुंचेगा। परंतु सोमाथ को खो देने का मुझे अफसोस है। सोमाथ जैसी चीज का निर्माण करने में बहुत मेहनत और वक्त लगता है। मशीनों ने एक अजीब बात कही मुझसे।”

“क्या?”

“रानी ताशा, राजा देव को, सदूर पर पहुंचते ही खो देगी।”

“ऐसा ही होगा।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा-“इससे ज्यादा मैं अभी नहीं बता सकता महापंडित।”

“क्या रानी ताशा को इस बात का एहसास है?”

“उन्हें कुछ भी नहीं मालूम। ये सब धरा...ओह-बस करो महापंडित। बातों का रुख उधर ही मुड़ रहा है। इस बारे में मुझे बात करने से रोका जाता है। मैं चाहकर भी बात पूरी नहीं कर सकता।” बबूसा ने कठिनता से कहा।

उधर से महापंडित ने बात खत्म कर दी।

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जगमोहन और मोना चौधरी को होश आ चुका था। इस वक्त वो सोमाथ के केबिन में ही थे। नगीना और सोमारा पास में थीं। उन्हें पता चल गया था कि बबूसा ने किस तरह सोमाथ को पोपा से बाहर आकाश गंगा में धकेल दिया। ये जानकर वो खुश थे कि सोमाथ से पीछा छूट गया। तब मोना चौधरी ने कहा।

“अब हमें देवराज चौहान से सीधी बात करनी चाहिए कि वो ये सब क्या कर रहा है।”

“तुम ठीक कहती हो। अभी तक सोमाथ की वजह से हमें देवराज चौहान से बात करने का मौका नहीं मिला था।” जगमोहन बोला।

“देवराज चौहान, रानी ताशा के साथ खुश है और अपनी इच्छा से ताशा के साथ रह रहा है।” नगीना कह उठी-“ऐसे में हमें उनके बीच नहीं आना चाहिए। देवराज चौहान की खुशी में ही मेरी...”

“नहीं बेला।” मोना चौधरी का स्वर कठोर हो गया-“मैं बात जरूर करूंगी।”

“मोना चौधरी ठीक कह रही है भाभी।” जगमोहन गम्भीर दिखा-“हमें देवराज चौहान से स्पष्ट बात करनी चाहिए। पहले तो हमें सोमाथ के डर ने रोका हुआ था, लेकिन अब ऐसा कुछ भी नहीं...”

तभी दरवाजा खुला और बबूसा ने भीतर प्रवेश किया।

“क्या हाल है दोस्तों।” बबूसा खुशी से कह उठा-“तुम सबकी सहायता के बिना, सोमाथ से पीछा नहीं छूट पाता।”

“परंतु तुमने भी अपना चक्रव्यूह बढ़िया बना रखा था।” जगमोहन मुस्करा पड़ा-“तभी तो काम हो सका।”

“तुम्हें चाहिए था कि हमें अपनी सोचों से अवगत करा देते। तुमने हमें पहले बताया क्यों नहीं कि क्या करना चाहते हो।” मोना चौधरी बोली।

“पोपा में ऐसे यंत्र लगे हुए हैं कि सोमाथ हमारी बातें सुन सकता था, इसलिए मैंने हमेशा ही चक्रव्यूह बताने की बात को नजरअंदाज किया।” कहने के साथ ही उसने नगीना को देखा-“तुमने बेहद अच्छा मेरा साथ दिया, नहीं तो सोमाथ को आकाश गंगा में गिराने में दिक्कत आती।”

“मुझे सोमारा ने कान में बताया था कि सोमाथ को आकाशगंगा में गिराना है। उस वक्त सोमाथ खुले दरवाजे पर खड़ा था और ये अच्छा मौका था कि मैं उसे बाहर धकेल देती, तब मैंने ऐसा ही किया।”

“जब सोमाथ वहां पहुंचा तो सोमारा के कान में मैंने ही बताया था कि सोमाथ को आकाशगंगा में गिराना है। जब वो सोमारा को मारने के लिए आगे बढ़ा तो सोमाथ का ध्यान भटकाने के लिए मैं आकाशगंगा में कूद गया। मैं जानता था कि मुझे देखने सोमाथ खुले दरवाजे पर जरूर आएगा और ऐसा ही हुआ। मैंने रस्सा बांध रखा था, इसलिए संभला रहा। पोपा की रफ्तार ‘जीरो’ पर मैं पहले ही ला चुका था। सब कुछ वैसा ही हुआ जैसा मैंने सोचा था। अब सोचता हूं कि अगर नगीना वहां न होती तो सोमाथ को आकाशगंगा में गिराना आसान काम नहीं था। सोमारा इस काम को करने में कमजोर पड़ जाती।”

“हां।” सोमारा ने कहा-“मेरे लिए ये सच में कठिन काम था। मैं तब सोच ही रही थी और नगीना हरकत में आ गई।”

“हम देवराज चौहान से बात करने जा रहे हैं।” मोना चौधरी बोली-“अब हमें सोमाथ का डर नहीं रहा।”

“क्या बात करनी है राजा देव से?” बबूसा बोला।

“ये ही कि रानी ताशा के लिए बेला को क्यों छोड़ रखा...”

“अभी ऐसी कोई बात मत छेड़ो।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा-“पोपा को सदूर पर पहुंचने दो।”

“तब क्या होगा जो...”

“राजा देव फिर से नगीना के पास आ जाएंगे।”

“रानी ताशा को छोड़कर।” मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ीं।

“हां।”

“ये बात तुम्हें देवराज चौहान ने कही?”

“नहीं। परंतु मुझे मालूम है कि ऐसा होने वाला है। मेरी बात का भरोसा करो।”

“स्पष्ट कहो कि तुम क्या कहना चाहते हो?” जगमोहन बोला।

“कुछ भी स्पष्ट नहीं बता सकता। अगर मुझ पर भरोसा है तो पोपा के सदूर पर पहुंच जाने का इंतजार करो। ऐसी बहुत-सी नई बातें हैं जो तुम सबको और परेशानी में डाल देंगी। मैं स्वयं आने वाले वक्त के बारे मैं चिंतित हूं।”

“तो हमें बताओ कि क्या बात है।” नगीना बोली।

“चाहकर भी नहीं बता सकता।” बबूसा के चेहरे पर सख्ती आ गई-“भरोसा करो मैं सच कह रहा हूं। अभी शांत रहो, चुप रहो। सोमाथ से हमने छुटकारा पा लिया है परंतु महापंडित का कहना है कि सदूर पर पहुंचने पर एक नया सोमाथ वहां पर मौजूद होगा।”

“क्या?” सोमारा चौंकी।

“ऐसा क्यों?” जगमोहन बोला।

“पता नहीं, पर महापंडित कोई भी काम बिना वजह नहीं करता। कुछ तो बात होगी ही। परंतु महापंडित कहता है कि इस बार सोमाथ पहले से अलग आदतों वाला होगा। हर तरफ परेशानी ही परेशानी है।” बबूसा गम्भीर दिख रहा था।

“तो देवराज चौहान से बात न करें?” जगमोहन सोच भरे स्वर में कह उठा।

“मुझ पर भरोसा रखो और पोपा को सदूर पर पहुंचने दो।”

उसके बाद बबूसा धरा के केबिन में पहुंचा।

दरवाजा खोला तो धरा को केबिन में टहलते पाया। उसे देखकर मुस्कराई तो निचला होंठ टेढ़ा हो गया। फिर वो बेड पर जा बैठी और बबूसा को शांत निगाहों से देखने लगी। कुछ पल उसे देखने के बाद बबूसा ने कहा।

“अब मैं फुर्सत में आ गया हूं। पहले मेरा ध्यान दो तरफ बंटा हुआ था।”

“बहुत खुश हो सोमाथ को पोपा से बाहर धकेल कर।”

“अब।” बबूसा ने धरा को गहरी निगाहों से देखा-“मैं तुम पर ध्यान दे सकता हूं। तुम...”

“खूब।” धरा मुस्कराई तो निचला होंठ टेढ़ा हो गया-“अब तुम मुझ पर ध्यान देने वाले हो।”

बबूसा धरा को देखता रहा।

“सोमाथ को पोपा से बाहर धकेल कर ये तो नहीं सोच रहे कि तुम मुझे भी बाहर फेंक दोगे।”

“मैं ऐसा करना चाहता हूं।” बबूसा बोला।

“तो करो, आओ मेरे पास-मुझे उठाओ और पोपा से बाहर फेंक दो।” धरा हंस पड़ी।

बबूसा वहीं खड़ा धरा को देखता रहा।

“मुझसे डरते हो।” धरा ने कहा।

“बबूसा किसी से नहीं डरता। डरती तो तुम हो जो किन्हीं ताकतों का सहारा ले रही हो।”

“वो ताकतें ही तो मेरे वजूद को कायम रख रही हैं, वरना खुंबरी तो कब की खत्म हो गई होती।”

“मैं कोई ऐसा रास्ता तलाश करूंगा कि जिससे तुमसे मुकाबला कर सकूँ।”

“तो तुम मेरा मुकाबला करने की सोच रहे हो।” धरा हंसी-“मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?”

“तुमने अपनी ताकतों से, राजा देव को रानी ताशा को दीवाना बना रखा है। इससे राजा देव भी धोखे में हैं और रानी ताशा भी धोखे में जी रही है। क्योंकि सदूर पर पहुंचते ही राजा देव पर से तुम्हारी ताकतों का असर हट जाएगा और वो रानी ताशा को छोड़कर, वापस नगीना का हाथ थाम लेंगे। इससे रानी ताशा को कितनी तकलीफ होगी।”

“मुझे क्या, मेरा मतलब तो सदूर पर पहुंचने से है।”

“और तुम सदूर की रानी बनने की सोच रही हो।”

“सदूर की मालकिन बनना मेरे लिए नया अनुभव नहीं है। मैं पहले भी सदूर की मालकिन थी। धरा ने तनकर कहा-“सदूर सिर्फ मेरा है। अब फिर मेरी ताकतें मुझे सदूर की मालकिन बना देंगी। लेकिन मेरा पहला काम होगा डुमरा से पांच सौ साल, मुझे सदूर से दूर रखने का बदला लेना।”

धरा के चेहरे पर दरिंदगी नाच उठी-“पहले मैं डुमरा को मौत की नींद सुलाऊंगी फिर सदूर की रानी बनूंगी। बहुत गलत किया था डुमरा ने मेरे साथ-मैं उसे...”

“तुम्हारी ताकतों में क्रूरता है, डुमरा ने इसीलिए तुम्हें सदूर से भगा देना चाहा।”

धरा ने बबूसा को क्रोध भरी नजरों से घूरा।

“तुम खुंबरी के सामने डुमरा को सही कह रहे हो।” धरा ने कठोर स्वर में कहा।

“सही बात कहने में गलत क्या?”

“डुमरा गलत है। मैंने उसे कुछ नहीं कहा था। उसकी मेरी कोई लड़ाई नहीं थी।” धरा फुंफकार उठी।

“इस बात का जवाब तो डुमरा ही दे सकता है।” बबूसा बोला।

उसी पल बबूसा को लगा किसी ने उसके पैरों को पकड़कर खींच लिया हो।

बबूसा धड़ाम से नीचे जा गिरा। होंठों से कराह निकली। वो संभला और जल्दी खड़ा हो गया। धरा गुस्से से बबूसा के घूर रही थी। बबूसा ने उसके चेहरे के भाव देखे तो बोला।

“ये तुमने मेरे साथ क्या किया?”

“तुम्हें डुमरा को सही कहने की सजा मिली है। दोबारा तुमने ऐसा कुछ कहा तो सजा और भी सख्त होगी।”

“तुम्हारा मतलब कि मैं तुम्हारे हक में बात कहूं।”

धरा के चेहरे पर क्रोध नाच रहा था।

“मैंने तुम्हें एक-एक बात बताई कि मेरे और डुमरा के बीच क्या हुआ था। तब भी तुम्हें समझ न आई कि गलती किसकी थी।”

“मैं समझ सकता हूं कि डुमरा तुम्हारी तरफ क्यों बढ़ा होगा।”

“क्यों?”

“क्योंकि तुम सदूर की शासक थी और मासूम लोगों पर जुल्म और क्रूरता कर रही थीं।”

“तो इसमें डुमरा का क्या जाता है। मैं सदूर की रानी हूं जो मेरे मन में आएगा, वे करूंगी।”

“डुमरा जानता था कि तुम नागाथ की ताकतों का इस्तेमाल करती हो, जो कि क्रूर हैं।”

“इससे डुमरा को क्या।” धरा फुंफकार उठी।

“इस बात का जवाब डुमरा ही देगा। वो बिना वजह तो तुम्हारी तरफ बढ़ा नहीं होगा। तुमने उससे नहीं पूछा?”

“वो बेवकूफ मेरे हर सवाल पर एक ही रट लगाए हुए था कि नागाथ की ताकतों को छोड़ दूं।”

“और तुम्हें ये बात पसंद नहीं थी।”

“इसी से समझ लो कि ये बात मुझे कितनी नापसंद थी कि मैंने पांच सौ साल सदूर से दूर रहना पसंद किया, परंतु उन ताकतों को नहीं छोड़ा। उन ताकतों ने इस बात का सिला भी दिया मुझे। वो हमेशा मेरे साथ रहीं, इन पांच सौ सालों में। इस वक्त भी मुझे वापस सदूर पर पहुंचाने में, सहायक हो रही हैं। ऐसी ताकतों के बिना कौन रहना चाहेगा। मेरा वजूद ही इन ताकतों के साथ है, वरना खुंबरी बेकार है।”

“तुमने इन ताकतों को देखा है?” बबूसा ने गम्भीर स्वर में पूछा।

“सहायक ताकतों को नहीं, परंतु मुख्य ताकतों से सदूर पर मेरी मुलाकात होती थी। वो मुख्य ताकतें जो सहायक ताकतों से काम लेती हैं। तुम इन बातों को नहीं समझ पाओगे बबूसा।”

“मुख्य ताकतें इंसान के रूप में होती हैं?”

“नहीं। उनका अपना रूप होता है। सबसे जुदा, सबसे अलग रूप।”

“वो तुमसे मिलने आती हैं?”

“मैं जब भी बुलाती हूं वो ताकतें आती हैं। क्यों न आएंगी, वो मेरा हुक्म मानती हैं। वो सब मेरे काबू में हैं। नागाथ महान था, जिसने इन ताकतों को काबू में कर रखा था।” धरा मुस्कराई तो निचला होंठ टेढ़ा हो गया।

“तुम सदूर पर कहां जाओगी?”

“अपनी उसी गुप्त जगह पर, जहां दोलाम मेरे शरीर को सुरक्षित रखे हुए है और मेरी हर जरूरी चीज वहां पर मौजूद है। सदूर छोड़ते वक्त पांच सौ साल पहले मैं पूरी तैयारी करके चली थी कि वापसी पर मेरे को किसी तरह की परेशानी न हो, अपनी चीजों को तलाशने में।” धरा ने हंसकर कहा।

“वो जगह कहां है?”

“ये नहीं बताऊंगी। बताने की जरूरत भी क्या है।”

“तुम डर रही हो, तभी नहीं बता रही।”

“मैं शोर नहीं चाहती कि वहां पर तुम या कोई और आकर मेरी शांति भंग करे। वहां पहुंचकर मुझे बहुत से काम करने हैं। अपनी ताकतों को जगाना है। मंत्रों वाला कटोरा तैयार करना है और भी बहुत कुछ...”

“मुझे तो लगता है कि पांच सौ साल बीत जाने के बाद, तुम्हारा शरीर खराब हो गया होगा।”

“ऐसा कभी नहीं हो सकता।” धरा गुर्रा उठी-“दोलाम लापरवाही करके सजा का हकदार नहीं बनना चाहेगा। उसने मेरे शरीर को बहुत हिफाजत से रखा होगा।”

“पांच सौ सालों में, कितनी भी हिफाजत में रखा जाए, कोई भी शरीर सलामत नहीं रहता।” बबूसा ने कहा।

“दोलाम बहुत काबिल इंसान है। वो अपना काम करना बखूबी जानता है।”

“पांच सौ साल जितनी लम्बी किसी की उम्र नहीं होती। शायद दोलाम मर गया हो।”

“वो जिंदा है। स्वस्थ है। बिल्कुल पहले की तरह।”

“तुम्हें कैसे पता?”

“मेरी ताकतें मुझे बताती रहती हैं। दोलाम को मेरी ताकतें उम्र दे रही हैं कि वो मेरे शरीर को सुरक्षित रख सके।”

“तुम्हारी ताकतें भी तुम्हारे शरीर का ध्यान रख रही होंगी?”

“ये काम ताकतें नहीं कर सकतीं। परंतु दोलाम से ये काम करवा सकती हैं। दोलाम को किसी भी चीज की जरूरत हो तो ये बता देती हैं कि वो चीज कहां पर मिलेगी...”

“इस वक्त ‘बटाका’ कहां है?”

“उसी गुप्त जगह पर सुरक्षित रखा है।”

“मैं तुम्हारे साथ वहां चलना चाहूं तो क्या मुझे साथ ले चलोगी?” बबूसा ने कहा।

“मुझे तुम्हारी कोई जरूरत नहीं?” धरा ने स्पष्ट इंकार किया।

“तो क्या हो गया, फिर भी मैं तुम्हारे साथ चल सकता हूं।”

धरा चंद पल चुप रहकर बोली।

“तुम साथ नहीं चल सकते। मुझे इंकार का इशारा मिल रहा है।”

“कौन दे रहा है इशारा?”

“वो ही ताकत दे रही है जिसने तुम्हें अभी सजा दी थी।”

“तो तुम ताकतों के इशारे पर काम करती हो।”

“कभी-कभी। ताकतों की सलाह मेरे फायदे के लिए ही होती है। मैं खुशी से उनकी बात मानती हूं।”

“तो अब तुम सदूर पर पहुंचकर डुमरा से बदला लोगी।”

“ये मेरा पहला काम है। उसके बाद ही सदूर की रानी बनूंगी।”

“तुम रानी बनोगी तो रानी ताशा-राजा देव का क्या होगा, जो अभी सदूर के मालिक हैं।”

“ऐसे मामूली लोगों की मैं कभी भी परवाह नहीं करती।” धरा मुस्कराई तो होंठ टेढ़ा हो गया।

बबूसा की गम्भीर निगाह धरा पर थी।

“तुम तो देवराज चौहान के बहुत वफादार हो।”

“राजा देव को मैं पसंद करता हूं।”

“मुझे पसंद नहीं करते?”

“तुम्हें? मैं सोमारा से शादी करूंगा।”

“गलत मत समझो। मैं सेवक के नाते तुमसे बात कर रही हूं कि अगर तुम मुझे भी देवराज चौहान की तरह पसंद करो तो मैं तुम्हें अपना सेवक बना लूंगी। ये मत भूलो कि मैं अब सदूर की रानी बनूंगी। मेरी सेवा में रहकर तुम्हें बहुत फायदा होगा।”

“मैं सिर्फ राजा देव की सेवा कर सकता हूं।” बबूसा मुस्कराया-“किसी और की नहीं। क्योंकि मैं राजा देव को पसंद करता हूं। राजा देव के साथ रहता हूं तो मुझे बहुत खुशी मिलती है। तुम कोई और सेवक ढूंढ लो।”

धरा मुस्कराई तो उसका निचला होंठ टेढ़ा हो गया।

“अगर मुझे पृथ्वी ग्रह पर ही पता चल जाता कि तुम खुंबरी हो तो मैं तुम्हें कभी भी साथ नहीं लाता।” बबूसा बोला।

“क्यों?”

“क्योंकि तुम सदूर की शांति भंग करने वाली हो। डुमरा भी अब बहुत बूढ़ा हो चुका होगा और तुम...”

“वो बूढ़ा नहीं है।” धरा ने इंकार में सिर हिलाया-“महापंडित अपने पिता डुमरा को, बूढ़े होने पर, हर बार उसे नया जवान शरीर दे देता है। मेरी ताकतें मुझे बता चुकी हैं कि कुछ वक्त पहले ही डुमरा को नया शरीर मिला है।”

“फिर तो वो तुम्हें जबर्दस्त टक्कर देगा।”

धरा की आंखों में खतरनाक चमक उभरी। वो मुस्कराई।

“तुम जाओ बबूसा। बहुत बातें हो गईं। तुम्हारे और मेरे रास्ते अलग हैं। तुम देवराज चौहान की सेवा करो, जिसका कोई भविष्य नहीं है। मैं जल्दी ही तुम्हें सदूर की मालकिन बनी दिखूंगी। खुंबरी सबसे ताकतवर है। सदूर की एकमात्र ताकत खुंबरी होगी।” कहने के साथ ही धरा ठहाका मारकर हंस पड़ी-“कोई मेरा मुकाबला नहीं कर सकेगा।”

बबूसा पलटा और बाहर निकल गया। पतले रास्ते पर आगे बढ़ता चला गया। चेहरे पर गम्भीरता दिख रही थी।

वो अपनी ही सोचों में उलझ गया था कि खुंबरी सदूर पर क्या रंग दिखाने वाली है। ये बात पोपा में हर कोई जान चुका था कि बबूसा ने सोमाथ को आकाशगंगा में फेंक दिया है। रानी ताशा का एक कर्मचारी हाथों में सामान उठाए जा रहा था कि बबूसा को देखकर ठिठक गया और पास पहुंचने पर वो कह उठा।

“सोमाथ को तुमने आकाशगंगा में कैसे फेंका। जब से मैंने सुना है, तभी से हैरान हूं।”

जवाब में बबूसा उसे मुस्कराकर देखता, आगे बढ़ता चला गया।

बबूसा चालक कक्ष में पहुंचा। वो जानना चाहता था कि पोपा कितनी रफ्तार पर है।

“बबूसा।” किलोरा उसे देखते ही चिल्लाया-“पता चला तुमने सोमाथ को आकाशगंगा में फेंक दिया।”

“ऐसा कुछ नहीं है।” बबूसा विंडशील्ड के बाहर पोपा की रफ्तार को नजरों से पहचानता बोला-“सोमाथ सदूर पर हमारा इंतजार करता मिलेगा। मैंने उसे महापंडित के पास पहुंचा दिया है।”

“ये कैसी अजीब बात कर रहे हो। ऐसा कैसे हो सकता है। सोमाथ का मुकाबला करने में बहुत परेशानी आई होगी।”

“बहुत।”

“जब तुमने मुझे बेहोश करके बांधा, उसके बाद ही तुमने ये सब किया होगा।” किलोरा उत्सुक था।

“ठीक समझे।” बबूसा सुइयों पर निगाह मारकर बोला-“अभी तुम पोपा की रफ्तार और बढ़ा सकते हो। बढ़ाते क्यों नहीं?”

“ये रफ्तार ही काफी ज्यादा है। मैं पोपा को खतरे में नहीं डालना चाहता।” किलोरा ने कहा-“हमें सुरक्षित होकर यात्रा करनी चाहिए, जम्बरा ने मुझे ये ही सिखाया है कि जहां तक हो सके पोपा की रफ्तार कम रखो।”

“मैं जल्दी सदूर पर पहुंचना चाहता हूं।”

“पोपा की रफ्तार मैं इससे तेज नहीं कर सकता। ये अभी भी तूफानी रफ्तार से जा रहा है।”

बबूसा चालक कक्ष से बाहर निकला और पोपा के किचन में पहुंचा।

वहां दो आदमी खाना तैयार कर रहे थे। खुशबू फैली थी।

“जल्दी से खाना तैयार करो। मुझे भूख लगी है।” बबूसा ने कहा।

“हमें हैरानी है कि तुमने सोमाथ का मुकाबला करके उसे, पोपा के बाहर फेंक दिया। ये तुमने कैसे किया?” एक ने हैरानी से पूछा।

“हर कोई ये ही पूछ रहा है।” बबूसा ने कहा और वहां से चला आया।

वापस केबिनों की कतार में पहुंचा और एक केबिन में जगमोहन और नगीना बातें करते मिले।

“अब मजा आ रहा है।” बबूसा हंसकर बोला-“सोमाथ पोपा में नहीं है।”

जगमोहन और नगीना मुस्करा पड़े।

“भूख लग रही है। खाने का कोई इंतजाम हो जाए तो ज्यादा मजा आ जाएगा।” जगमोहन ने कहा।

“खाना तैयार हो रहा है।”

सोमारा, एक केबिन में मोना चौधरी के साथ बैठी थी।

बबूसा, सोमारा को बाहर बुला लाया और अकेले में, धरा (खुंबरी) की बातें करने लगा। बबूसा उसे खुंबरी के इरादों से अवगत करा रहा था।

दोनों चिंतित थे।

“क्या हम धरा को पोपा के बाहर नहीं फेंक सकते?” सोमारा कह उठी।

“पोपा में खुंबरी की ताकतें सक्रिय हैं। हम कुछ करना चाहेंगे भी तो वो ताकतें हमें कुछ नहीं करने देंगी। मैंने जरा-सी डुमरा की साइड क्या ले ली, खुंबरी की ताकतों ने उसी पल मुझे ‘धड़ाम’ से नीचे गिरा दिया। खुंबरी सच में खतरनाक है, उससे जितना दूर रहा जाए, उतना ही अच्छा है। लेकिन एक अच्छी खबर है।”

“क्या?”

“महापंडित ने अपने पिता डुमरा को कुछ वक्त पहले ही नया शरीर दिया है। मतलब कि डुमरा स्वस्थ है और खुंबरी का अच्छी तरह मुकाबला कर सकता है।” बबूसा ने बताया।

“तुम्हें कैसे पता ये बात?”

“खुंबरी ने बताया है।”

“क्या पता महापंडित को खुंबरी के बारे में मशीनों ने बता दिया हो, तभी उसने अपने पिता डुमरा को नया शरीर...”

“मेरे ख्याल में महापंडित खुंबरी के बारे में नहीं जानता। जानता होता तो मुझे बता देता। अब हमारा बाकी का सफर आराम से कटेगा। क्योंकि जो भी होना होगा, वो सदूर पर होगा। आने वाले वक्त का इंतजार रहेगा मुझे।”

“तू भूल गया बबूसा, सदूर पर पहुंचकर सबसे पहला काम तुझे क्या करना है?” सोमारा ने बबूसा की बांह पकड़ ली।

“क्या?”

“मेरे से शादी करनी है तूने।”

“ओह, सच में, मैं भूल ही गया था।” बबूसा मुस्कराया-“ये तो सबसे जरूर काम है हमारे लिए।”

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सदूर ग्रह तक, पहुंचने तक जिक्र के काबिल खास बात नहीं हुई। देवराज चौहान, रानी ताशा के साथ ही रहता और किलोरा को आराम देने के लिए चालक कक्ष में चला जाता। देवराज चौहान जब तक पोपा संभालता, तब तक किलोरा नींद ले लेता। इस दौरान बबूसा, चालक कक्ष में आ जाता और देवराज चौहान से बातें करता रहता। नगीना, मोना चौधरी और जगमोहन अपने केबिनों वाले हिस्से में ही रहे। देवराज चौहान से उनकी कोई मुलाकात नहीं हुई। रानी ताशा खुश थी कि राजा देव को लेकर, वापस सदूर पर जा रही है। धरा अपने केबिन में ही रही।

फिर वो वक्त भी आ गया जब पोपा सदूर पर जा पहुंचा था।

“हम सदूर पर पहुंच गए देव।” रानी ताशा का स्वर खुशी से कांप रहा था-“अब हम इकट्ठे सदूर पर जीवन बिताएंगे।”

“हां ताशा। सदूर को फिर से देखने का मेरा कितना मन है। मैं तुम्हारे साथ फिर से सदूर पर रहूंगा। कितना अच्छा लगेगा।”

“अब तो मैं आपसे और भी ज्यादा प्यार करूंगी।” रानी ताशा की नीली आंखों में आंसू चमक उठे।

देवराज चौहान ने हथेली से उसकी आंखें साफ करते कहा।

“मैं तुम्हारी आंखों में आंसू नहीं देख सकता।”

“आप कितने अच्छे हैं देव।” रानी ताशा का स्वर थरथरा उठा-“सदूर से भी ज्यादा अच्छे। आप सदूर को देखकर हैरान रह जाएंगे। बहुत बदल गया है सदूर। कुछ भी पहले जैसा नहीं रहा। आप सदूर को पहचान ही नहीं पाएंगे।”

“सदूर कितना भी बदल जाए, पर हम नहीं बदलेंगे ताशा। हम एक-दूसरे के बने रहेंगे।” देवराज चौहान ने प्यार से कहा।

“हां देव। हम कभी नहीं बदलेंगे।”

तभी दरवाजा थपथपाया गया।

देवराज चौहान ने आगे बढ़कर दरवाजा खोला तो बबूसा सामने खड़ा था।

“राजा देव।” बबूसा उत्साह भरे स्वर में कह उठा-“हम सदूर पर आ पहुंचे हैं। पोपा सदूर की जमीन पर उतरने वाला है।”

“फिर तो मुझे किलोरा के पास चालक कक्ष में जाना चाहिए।” देवराज चौहान बोला।

“मैं भी आपके साथ चलूंगी देव।” रानी ताशा पास आते बोली।

देवराज चौहान और रानी ताशा अपने कमरे से निकलकर आगे बढ़ते चले गए।

बबूसा वहीं खड़ा उन्हें जाता देखता रहा फिर पलटकर उल्टी दिशा में चल पड़ा और कुछ रास्तों के पार करता धरा के केबिन पर पहुंचा और दरवाजे को खोला। सामने ही धरा मौजूद थी। वो बेड पर आंखें बंद किए लेटी हुई थी। आहट पाकर भी उसने आंखें नहीं खोलीं। बबूसा भीतर प्रवेश कर आया।

“आ बबूसा।” धरा उसी तरह बंद आंखों से कह उठी।

“तुम्हें कैसे पता कि मैं हूं।” बबूसा गम्भीर स्वर में बोला।

“मेरी ताकतों ने मुझे बता दिया था।”

“पोपा सदूर पर उतरने जा रहा है।”

“जानती हूं, मेरा सदूर आ गया। पांच सौ बरस भी अभी-अभी पूरे हुए हैं।” धरा ने आंखें नहीं खोली थीं।

“अभी-अभी पूरे हुए हैं?”

“हां। कुछ पल पहले ही।”

“अगर पांच सौ बरस पूरे होने से पहले ही पोपा सदूर पर उतर जाता तो क्या फर्क पड़ता?”

“मेरी जान चली जाती। मैंने श्राप को स्वीकार कर लिया था तो मुझे श्राप के मुताबिक ही चलना पड़ रहा था। पांच सौ बरस पूरे होने के बाद ही मैं सदूर पर पहुंच सकती हूं, पहले पहुंची तो मेरी जान गई।” उसी मुद्रा धरा ने कहा-“डुमरा ने श्राप में बहुत सख्त बातों का इस्तेमाल किया था। उसका इरादा था कि मैं जिंदा ही न रहूं, परंतु मैंने श्राप को स्वीकार करके बहुत समझदारी दिखाई थी। श्राप के स्वीकार करते ही डुमरा मन ही मन तिलमिला गया होगा कि मैंने श्राप स्वीकार कर लिया।” उसी पल धरा आंखें खोली और उठ बैठी। शांत निगाहों से बबूसा के देखा-“डुमरा चाहता था कि मैं जिद पर अड़ जाऊं, श्राप स्वीकार न करूं और जान चली जाए मेरी। अगर उसे पता होता कि मैं श्राप स्वीकार कर लूंगी तो वो मुझे और भी कठोर श्राप देता।”

“ये भी सम्भव है कि अभी पांच सौ बरस पूरे न हुए हों और...”

“पूरे हो गए हैं। पृथ्वी के वक्त के हिसाब से दस घंटे पहले, पांच सौ साल पूरे हो गए हैं। ये हिसाब मेरा नहीं, मेरी ताकतों का है। वो मेरे एक-एक पल का हिसाब रख रही हैं। ताकतों ने ही मुझे बताया था कि श्राप के पांच सौ साल पूर्ण हो गए हैं।”

“तुम्हें खुशी तो बहुत हो रही होगी, पांच सौ साल पूरे करके सदूर पर आ पहुंचने की।”

“बहुत।” धरा मुस्कराई तो उसका निचला होंठ टेढ़ा हो गया-“अपने घर आना किसे अच्छा नहीं लगता। मेरी ताकतें बेसब्री से मेरे वापस आने की राह देख रही हैं। पांच सौ साल की तकलीफ मैंने ही नहीं, मेरी ताकतों ने भी सही हैं, जो तब से एक ही जगह फंसी हुई हैं। परंतु अब वो पहले से ज्यादा ताकतवर हो गई हैं। वो सब खुशी से पागल हो रही हैं कि मैं जल्दी से उनके पास पहुंच जाऊं। सबसे ज्यादा तकलीफ तो डुमरा को हो रही होगी कि मैं सही-सलामत, पांच सौ साल पूरे होते ही वापस आ गई। ये वक्त मैंने बहुत कष्ट में रहकर पूरा किया है। इससे बड़ा कष्ट क्या होगा कि सदूर को छोड़कर मुझे दूसरे ग्रह पृथ्वी पर जाकर जन्म लेने पड़े। जबकि हर पल मुझे सदूर की मालकिन होने का एहसास होता रहा। तड़पती रही मैं। लेकिन वक्त कट ही गया। मैं डुमरा को बहुत बुरी मौत दूंगी कि...”

“क्या डुमरा को पता होगा कि तुम आ गई हो?”

“उसके पास तो मेरा पूरा हिसाब होगा।”

“मतलब कि वो जानता है कि तुम पोपा में बैठकर आ रही हो?”

धरा, बबूसा को देखती रही फिर शांत अंदाज में मुस्कराई।

“डुमरा जानता है। मुझे मालूम है कि तुम क्या सोच रहे हो बबूसा।”

“क्या?”

“यही कि मेरे पोपा से बाहर आते ही डुमरा मुझ पर वार कर सकता है, जबकि मेरे पास दो-तीन ताकतें ही हैं।”

बबूसा की नजरें धरा पर ही रहीं।

“परंतु डुमरा ऐसा नहीं कर सकता।”

“क्यों?”

“डुमरा को श्राप के नियम से चलना होगा, वरना मुझे दिया श्राप उसे भुगतना पड़ सकता है।”

“कैसा नियम?”

“नियम है कि श्राप पूरा करने पर, श्राप देने वाला, पहला वार उस पर तब तक नहीं करेगा जब तक कि श्राप पूरा करने वाला उस पर वार न कर दे। अगर अब डुमरा ने वार मुझ पर कर दिया तो पांच सौ सालों का श्राप उसे भी भुगतना पड़ेगा।”

“ओह।”

“डुमरा मेरे पहले वार का इंतजार करेगा।” धरा खतरनाक अंदाज में हंस पड़ी-“पर मैं उसे निराश नहीं करूंगी। जल्दी ही उस पर वार करके उसे वार करने का मौका दूंगी। खुंबरी किसी से झगड़ा लेती है तो छाती ठोककर सामने वाले को भी मौका देती है।”

“मैं तुम्हें एक रास्ता बता सकता हूं कि उससे, ये झगड़ा नहीं होगा।” बबूसा ने कहा।

“रास्ता?” धरा हंसी और बबूसा को देखा।

“तुम डुमरा पर वार न करो।”

“तुम्हारा मतलब कि मैं डुमरा को माफ कर दूं।” धरा के माथे पर बल पड़ गए।

“कुछ भी समझो। इससे झगड़ा ही खड़ा नहीं होगा और...”

“तुम बेवकूफ हो बबूसा।” धरा गुर्रा उठी-“तुम चाहते हो कि झगड़े के डर से मैं डुमरा को जाने दूं। नहीं, ये कभी नहीं हो सकता और मेरी ताकतें तो इस बात को जरा भी पसंद नहीं करेंगी। वो मेरा काम करना बंद कर देंगी।”

“काम करना बंद कर देंगी। परंतु वो तो तुम्हारे अधीन हैं और उन्हें तुम्हारी बात माननी पड़ेगी।”

“बेशक। परंतु वो अपनी मनमानी भी कर सकती हैं। मेरे कामों को पूरा करने में देर लगा सकती हैं। नाराजगी से काम करेंगी तो मुझे नुकसान होगा। लेकिन बात ये नहीं, मैं डुमरा को सबक सिखाना चाहती हूं। मैं बदला लेकर रहूंगी। खुंबरी को झगड़ा करना अच्छा लगता है। खुंबरी ने कभी डरना नहीं सीखा। बदले की मुझमें तीव्र इच्छा है, तभी तो मैं सदूर की रानी बाद में बनूंगी, पहले डुमरा से बदला लूंगी। पांच सौ साल कम नहीं होते बबूसा। डुमरा ने खुंबरी पर अपनी शक्तियों का प्रयोग धोखे से किया। जब मेरा ‘बटाका’ गिर गया तो तब उसने मुझे घेरा। मैं बेबस हो गई थी तब। तभी तो वो मुझे श्राप दे सका। और...”

“मैं चाहता हूं तुम्हारा और डुमरा का झगड़ा न हो।”

“तेरे को क्या पड़ी है, ऐसा चाहने की।”

“तुम्हारे झगड़े में सदूर की हालत बिगड़ेगी। ये चिंता है मुझे।”

“पर मुझे चिंता नहीं है। वैसे भी सदूर का कुछ नहीं बिगड़ेगा। ये मेरा और डुमरा के बीच का मामला है।”

“मतलब कि तुम डुमरा से बदला लेकर रहोगी।” बबूसा गम्भीर हो गया।

धरा ठठाकर हंस पड़ी।

“खुंबरी अपने दुश्मन को कभी नहीं छोड़ती। डुमरा को तो बिल्कुल नहीं छोडूंगी।”

बबूसा कई क्षणों तक धरा को देखता रहा फिर बोला।

“तुम्हारी बातें मुझे राजा देव को बतानी होंगी।”

“जरूर बताओ।” धरा मुस्कराई तो निचला होंठ टेढ़ा हो गया-“जब मैं पोपा से उतरकर चली जाऊंगी तो बता देना।”

“तुमने सही कहा था कि तुम्हारी ताकतों ने राजा देव को, रानी ताशा का दीवाना बना रखा है।”

“देख लेना। सदूर अब दूर तो नहीं रहा।” धरा ने आंखें नचाईं।

“रानी ताशा के दिल को तकलीफ पहुंचेगी, जब राजा देव, उसका साथ छोड़ देंगे।”

“खुंबरी इन बेकार की बातों की परवाह नहीं करती।”

“ये प्यार की बातें है। प्यार में जब दिल टूटता है तो...”

“बकवास। प्यार-व्यार कुछ नहीं होता। खुंबरी की निगाह में प्यार पागल लोगों की चीज है। अगर प्यार सच में बढ़िया होता तो खुंबरी को कब का किसी से प्यार हो गया होता। परंतु खुंबरी को प्यार की कमी जरूरत ही महसूस नहीं हुई।”

“तुमने कभी प्यार नहीं किया?”

“कभी भी नहीं।”

“पृथ्वी पर तो...”

“नहीं। मुझे कोई मर्द कभी पसंद नहीं आया। मैंने किसी भी जन्म में शादी नहीं की।”

“सहवास तो किया होगा?”

“वो भी नहीं।” खुंबरी ने शांत स्वर में कहा-“जब सदूर पर थी तब भी नहीं किया। जब पृथ्वी पर गई तब भी नहीं किया। प्यार को मैंने हमेशा ही बेकार की चीज समझा है। मुझे मर्द की कभी भी जरूरत ही महसूस नहीं हुई।”

“हैरानी है।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा।

“खुंबरी है ही ऐसी।”

“जब तुम्हें प्यार का एहसास होगा तो तब पता चलेगा कि ये पागल लोगों का काम नहीं है।”

“इन बातों की मुझे जरूरत नहीं।”

“तो तुम्हारे जीवन में है ही क्या? सदूर की रानी बनना और डुमरा से बदला लेना। बस। ये ही है तुम्हारी जिंदगी।”

“सब की ये ही जिंदगी होती...”

“सबकी जिंदगी में प्यार होता है।” बबूसा ने शांत स्वर में कहा-“मेरे ख्याल में तुम्हें एक बार प्यार का स्वाद चखना चाहिए।”

“इन बातों के लिए मेरे पास वक्त ही नहीं है।”

“प्यार करने के लिए वक्त नहीं चाहिए होता, सिर्फ प्यार चाहिए होता है। किसी से प्यार करोगी तो अपनी जिंदगी को बदला हुआ पाओगी।”

“तुम्हें मेरी बहुत चिंता हो रही है बबूसा। कहीं तुम्हारे मन में ये तो नहीं कि ऐसी बातें करके तुम मुझसे प्यार कर लोगे।”

बबूसा ने धरा को देखा और पलटकर बाहर निकलता चला गया।

बबूसा चालक कक्ष में पहुंचा तो देवराज चौहान और रानी ताशा को वहां मौजूद पाया।

“बस राजा देव।” किलोरा कह रहा था-“कुछ ही मिनट में हमें सदूर की ऊंची इमारतें दिखने लगेंगी।”

“ऊंची इमारतें?” देवराज चौहान के होंठ सिकुड़े।

“हां देव।” रानी ताशा मुस्कराकर कह उठी-“मैंने आपको बताया तो था कि जम्बरा ने एक नया सदूर खड़ा कर दिया है। दो लोगों के बैठने के वाहन चलते हैं सड़कों पर। आपके लिए बड़ा वाहन बनाया है उसने। वैसा कुछ भी सदूर पर नहीं है, जैसा कि आपने पहले देखा था।”

“ये तो देखने पर ही समझ पाएंगे राजा देव कि सदूर कितना बदला है।” बबूसा ने कहा।

“तुमने तो बदला हुआ सदूर देखा है बबूसा।” देवराज चौहान ने कहा।

“हां राजा देव। सिर्फ तीस साल पहले ही तो महापंडित ने मेरा जन्म करा कर, मुझे पृथ्वी की डोबू जाति में छोड़ा था।”

“तीस सालों में भी काफी बदलाव आ चुके हैं।” रानी ताशा ने कहा।

कुछ ही देर बाद, किलोरा ने पोपा की रफ्तार कम कर दी। इस वक्त पोपा एक चपटे ग्रह के ऊपर पहुंच चुका था। नीचे सब कुछ छोटा-छोटा नजर आ रहा था। किलोरा पोपा को नीचे की तरफ लेता चला गया। कुछ ही पलों में सदूर का हाल स्पष्ट दिखने लगा। ऊंची-ऊंची इमारतों का जाल नजर आ रहा था। सड़कें लकीरों की तरह, जाल जैसा दृश्य बना रही थीं। पहाड़, पेड़ बहुत कुछ नजर आ रहा था। देवराज चौहान चमक भरी निगाहों पोपा के विंड शील्ड के पार सदूर को देख रहा था।

“हम पहुंच गए देव।” रानी ताशा खुशी भरे स्वर में कह उठी।

देवराज चौहान ने मुस्कराकर रानी ताशा को देखा।

जबकि बबूसा गम्भीर निगाहों से दोनों को देख रहा था।

“हम कुछ ही देर में जमीन पर होंगे।” किलोरा ने कहा।

रानी ताशा ने पलटकर बबूसा से कहा।

“सबसे कहो अपने को बेल्टों से बांध लें। जमीन पर उतरते समय झटका लग सकता है।”

बबूसा उसी पल वहां से चला गया।

“देव।” रानी ताशा बोली-“मैं भी अपने को बेल्ट में बांधने जा रही हूँ। आप यहीं कुर्सी पर बेल्ट लगा लें।” रानी ताशा कहकर चली गई।

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