बत्तीस वर्षीय डालचन्द ने थके-हारे घर में कदम रखा। वह सामान्य कद-काठी का युवक था। परन्तु कोई कमाई, कोई धन्धा न होने की वजह के कारण पिछले कई महीनों से बहुत परेशान चल रहा था। उसकी चिन्ता और परेशानी के कारण बीमार मां और जवान बहन थी। बीमार मां का इलाज और जवान बहन की शादी नहीं कर पा रहा था वो ।

तीन महीने पहले राजाराम का काम करके पच्चीस हजार मिले तो थे, परन्तु इसमें से पन्द्रह हजार तो उधार देने में चुकता हो गये और बाकी के वो दस, घर के खर्चे पानी में। अब फिर वह खाली था। हर रोज इस आशा के साथ घर से निकलता था कि किसी से सौ-पचास ले आयेगा। लेकिन लाता कहां से, देता कौन? उसकी मां शारदा देवी उसे देखते ही गहरी सांस लेकर बोल उठी---

“आ गया बेटा! ठहर, पानी देती हूं।"

आवाज सुनते ही बहन कमला पानी ले आई। इन्तहाई खूबसूरत थी कमला और उसकी इस खूबसूरती के कारण परेशान था डालचन्द । कहीं ऊंच-नीच हो गई तो किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहेगा। वह जल्दी से उसके हाथ पीले कर देना चाहता था। पानी पीकर डालचन्द ने गिलास उसे वापस लौटा दिया।

“कहां गया था बेटा तू....?"

"तुम सब कुछ जानती हो, फिर पूछने से क्या फायदा!" शारदा देवी की बात का जवाब डालचन्द ने उखड़े लहजे में दिया और कुर्सी पर बैठ गया--- “फालतू बातचीत मत किया करो मुझसे।"

शारदा देवी ने उदास निगाहों से, अपने बेटे को देखा।

"मकान मालिक आया था, किराया मांगने...।"

"तो दे देंगे। भाग थोड़े न जा रहे हैं हम....।" डालचन्द कुढ़कर बोला ।

"कहता था पिछले महीने का भी नहीं दिया।"

“तुमने कहा नहीं, हमें याद है, हमने नहीं दिया...।" डालचन्द क्रोध से भर उठा--- "अब आये तो कह देना, बार-बार चक्कर लगाने की जरूरत नहीं। जब होगा, पहुंचा देंगे।"

"कहता था अगर वक्त पर किराया नहीं देना तो मकान खाली कर दो।"

डालचन्द का चेहरा गुस्से से भर उठा।

“बोल देना उसे, जो बात करनी है, मुझसे करे। मकान तो किसी भी हालत में खाली नहीं होगा, देर-सवेर जो किराया मिलता है वह भी नहीं मिलेगा। मुझे मिला तो अच्छी तरह समझा दूंगा उसे।" डालचन्द के चेहरे पर सख्ती सिमट आई।

“तू तो बात-बात पर गुस्सा करने...।"

“गुस्सा नहीं करूं तो क्या करूं!" डालचन्द ने गहरी सांस ली--- “एक तो काम-धन्धा नहीं। पास में फूटी कौड़ी नहीं। ऊपर से यह मांगने वाले। हद होती है सहने की भी!”

“चाय बना लाऊं भैया....।" तभी कमला बोल पड़ी। डालचन्द ने कमला के चेहरे को देखा।

“रात को बनाने के लिए दाल-रोटी है--- सामान पड़ा है?"

"हां! आज दोपहर में ही बनिये से लाई थी....।"

“तू लाई थी ?”

“हां।” कमला ने सिर हिलाया।

“तेरे को कितनी बार कहा है, बाहर मत जाया कर। खासतौर से बनिये की दुकान पर उधार का सामान लेने। बनिये का लड़का, वहां बैठा तुझे घूरता रहता है। कल तो मुझे कह रहा था, पहले के पैसे लिए बिना उधार नहीं देगा, फिर आज तुझे कैसे दे दिया? मैं नहीं समझता क्या कि उस हरामी की नजर तुझ पर है। खबरदार जो आज के बाद बनिये की दुकान पर गई। तेरे को चाहिए, मेरे को बोल। मैं घर पर नहीं हूं तो आने पर मुझे कह। खामखाह बाहर जाने की जरूरत नहीं है।"

कमला ने कुछ नहीं कहा। सिर झुका लिया।

“डालचन्द के लिए चाय बना ला।"

सिर झुकाये कमला कमरे से चली गई।

"जवान बेटी पर ऐसे नहीं बिगड़ा करते। जो भी बात हो, आराम से ....।"

"तो मां, तू ही समझा लिया कर आराम से। कोशिश किया कर मेरे समझाने की जरूरत ही न पड़े।" डालचन्द ने तीखे स्वर में कहा।

“तुझ से बात करनी थी...।" शारदा देवी ने कहा।

"क्या ?"

"आज दिन में बनिया आया था।"

“बनिया! घर में आया था?” डालचन्द चौंका। माथे पर बल पड़ गये।

"हां! घंटा भर बैठ कर गया है। कमला की बात करने आया था, अपने बेटे के लिए। कहता था दहेज में कुछ भी नहीं चाहिए। दस-बीस को खाना खिला देना बस। कहता था, कमला बहुत खुश रहेगी उसके घर ।"

डालचन्द का चेहरा कड़वाहट से भर गया।

“वो क्या समझता है मेरी बहन फालतू की है या सिर पर बोझ है जो उसे उतार कर उसके कूड़े समान बेटे के पल्ले बांध दूंगा? लफंगा है उसका बेटा। दो साल अपनी बहन को और घर में बिठा लूंगा मां लेकिन, लाला के बेटे के पल्ले नहीं बांधूंगा। तूने क्या कहा?"

“यही कि इस बारे में डालचन्द ही फैसला करेगा।"

“कह देना बनिये से, दोबारा बात करे तो, अभी हमने दो साल कमला की शादी नहीं करनी। जब करनी होगी, तब उससे जरूर बात करेंगे।" डालचन्द ने कड़वे स्वर में कहा।

शारदा देवी ने कुछ नहीं कहा।

“और तू भी सुन ले मां। कमला की बात कहीं भी करने की जरूरत नहीं है। जब पास में थोड़ा बहुत पेसा होगा तो, मैं खुद ढूंढ लूंगा लड़का। शादी-ब्याह कोई खेल नहीं है, सारी जिन्दगी का मामला है। देख-परखकर ही बात होगी, ऐसे नहीं। अरे कमला! चाय बनी कि नहीं---।"

“बन गई भैया। लाती हूं।"

■■■

नीना पाटेकर। इकहरा बदन। उम्र अट्ठाईस बरस कद लम्बा। मोटी आंखें। फिगर ऐसी कि देखने वाला देखता ही रह जाये। खूबसूरती ऐसी कि, बाद में भी चेहरा आंखों के सामने घूमता रहे। वह अधिकतर कमीज-पैंट पहने रहती थी। खूबसूरत चेहरे पर जैसे स्थाई क्रूरता विद्यमान हुई पड़ी थी।

चूंकि कानून की निगाहों में वह वांटेड थी। इसलिये हर किसी के सामने नहीं जा सकती थी, छिपकर रहती थी। चंद खास आदमी उसका ठिकाना जानते थे। सालों की कमाई दौलत को कोई ले उड़ा, वह चाहकर भी उसे नहीं ढूंढ पाई थी। उस इंसान को ढूंढने की कोशिश में, साल भर से कोई काम भी नहीं किया था और कोई काम न करने की वजह के कारण, उसका गिरोह छिन्न-भिन्न हो गया था। अब कोई काम करने की चेष्टा करती भी तो, सब कुछ उसे नये सिरे से शुरू करना पड़ता। पूरा गिरोह तैयार करना अब आसान नहीं था। पास में दौलत तो वैसे ही नहीं थी।

बहरहाल वह इस समय मन-ही-मन भगवान का शुक्र अदा करती थी कि भले वक्त में उसने चला-चलाया रेस्टोरेन्ट कम रेजिडेंस खरीद लिया था, जो कि मौके पर था। उन दिनों तो वह रेस्टोरेन्ट पर ध्यान न देती थी, फुर्सत ही नहीं थी, इस छोटे-से काम की तरफ ध्यान देने की। लेकिन अब, जबकि जेब व माल कम, यानी कि खत्म ही हो गया तो, तब वह रेस्टोरेन्ट की कमाई की तरफ ध्यान देने लगी कि खर्चा-पानी चलता रहे। रेस्टोरेन्ट के ऊपर तीन कमरों की खूबसूरत एकामोडेशन में रहती थी। जहां से वह बहुत ही कम, न के बराबर बाहर निकलती थी, ताकि पुलिस वालों की निगाह उस पर न पड़े। कानून के फंदे में न फंस जाये।

रात के बारह बज रहे थे। नीना पाटेकर रेस्टोरेन्ट के ऊपर, तीन कमरों के मकान के एक कमरे में टहल रही थी। होठों में सिगरेट फंसी थी और सामने ही टेबल पर शराब का भरा गिलास रखा था, जिसमें से वह यदा-कदा घूंट भर लेती थी। चेहरे पर कई तरह की सोचें गुड़मुड़ हो रही थीं। कभी माथे पर बल उभरते तो कभी होंठ भिंच जाते और कभी चेहरा एकदम सामान्य हो जाता।

साढ़े बारह बजे रेस्टोरेन्ट के मैनेजर मलिक ने वहां कदम रखा।

"मैडम! आज का हिसाब।" मलिक की उम्र पचास वर्ष थी। वह नीना पाटेकर के साथ पिछले छः सालों से था।

नीना पाटेकर ठिठकी और मलिक को गर्दन घुमाकर देखा।

"कितना है?" नीना के होठों से बेहद कठोर शब्द निकले।

“छः सौ रुपये.... ।”

"उल्ले के पट्ठे!” नीना पाटेकर के होठों से दरिन्दगी से भरे शब्द निकले--- "इतनी महंगी जगह पर बने रेस्टोरेन्ट के एक दिन की कमाई सिर्फ छः सौ रुपये! पहले तो हजारों में होती थी यहां की रोज की इन्कम और अब जब पैसे की जरूरत है तो सिर्फ छः सौ रुपये। कहीं तूने तो बीच में से माल पीना शुरू नहीं कर दिया।

"कैसी बातें कर रही हैं आप मैडम।” मलिक फौरन संभल कर बोला--- “ऐसा तो मैं सपने में भी नहीं कर सकता। मेरी वफादारी पर शक करना, सरासर गलत है।"

"तो फिर, हजारों की रकम छः सौ में कैसे बदल गई? कई दिनों से मैं देख रही हूं। करीब महीना भर हो गया। आमदनी घटती ही जा रही है।"

“इसमें मेरा कोई कसूर नहीं।” मलिक थूक निगल कर बोला--- "रेस्टोरेन्ट की सर्विस में किसी प्रकार की कमी नहीं। आइटम भी सब बढ़िया हैं। परन्तु आजकल कम्पीटीशन बहुत ही ज्यादा हो गया है। साल भर में हमारे आसपास छः रेस्टोरेन्ट खुले हैं। रेस्टोरेन्ट की संख्या तो बढ़ गई, परन्तु ग्राहक तो वही हैं। वह इधर-उधर ही गये हैं।"

नीना पाटेकर दांत भींचे, मलिक को घूरती रही।

“मेरा यकीन मानिये मैडम, मैं सच कह रहा हूं।”

“इसका मतलब साल भर तक रेस्टोरेन्ट की कमाई न बराबर हो जायेगी।"

“शायद ऐसा ही हो।” मलिक हिचकिचाकर बोला--- "या न भी हो। यकीन के साथ तो कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन इससे बेहतर हालत होने की सम्भावना नहीं है।"

नीना पाटेकर आगे बढ़ी और टेबल पर पड़ा व्हिस्की का गिलास उठाकर एक ही सांस में समाप्त करके उसे वापस रखा और सिगरेट का तगड़ा कश लिया।

“नोट टेबल पर रख दे और तू जा।"

मलिक ने ऐसा ही किया।

नीना पाटेकर ने दरवाजा बन्द किया और अलमारी खोलकर भीतर का बन्द लॉकर खोला। उसमें नोटों की गड्डियां मौजूद थीं। उन गड्डियों को निकालकर गिना। कुल मिलाकर वह एक लाख दस हजार रुपये थे।

"एक लाख दस हजार रुपये।" दांत पीसकर नीना पाटेकर बड़बड़ा उठी--- "इतनी रकम तो मैं अपने किसी आदमी को बढ़िया काम करने पर इनाम स्वरूप दे दिया करती थी और आज यही जमा पूंजी बची है मेरे पास। आखिर इससे कितना वक्त निकलेगा? ज्यादा नहीं निकल सकेगा। रेस्टोरेन्ट से भी ज्यादा आशा नहीं रखी जा सकती। जो कमीना-कुत्ता मेरा सारा माल ले उड़ा है, उसे ढूंढना वक्त बरबाद करना है । अगर उसने मिलना होता तो अब तक वह मिल चुका होता। इस तरह हाथ-पर-हाथ रखे काम नहीं चलेगा, आदमियों को इकट्ठा करना पड़ेगा। मुझे फिर काम के मैदान में उतरना पड़ेगा। दौलत इकट्ठी करने के लिए नये सिरे से काम करना पड़ेगा।"

नीना पाटेकर के चेहरे पर वहशीपन के भाव नाचने लगे थे। चेहरा क्रूरता के भावों के भर उठा था।

पाटेकर ने गड्डियों को वापस अलमारी में बन्द किया और व्हिस्की का नया पैग बनाकर, तगड़ा घूंट भरने के बाद, सिगरेट का कश लिया। उसका दिमाग इस समय तेजी से दौड़ रहा था कि दोबारा मैदान में कूदने के लिए तैयारी की शुरूआत कहां से करनी चाहिए?

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उस्मान अली। उम्र पैंतालीस बरस । ठिगने, पतले शरीर पर हमेशा सादे से कपड़े मौजूद रहते। उसे देखकर कोई सोच भी नहीं सकता कि वह चार हत्याओं का कातिल है। पिछले चालीस सालों से वह लूटपाट का काम कर रहा था और अपने पीछे ऐसा कोई सबूत नहीं छोड़ा था कि पुलिस उसे फंसा पाये।

आज तक उसने सैकड़ों हाथ मारे थे। छोटे भी बड़े भी। कभी माल कम लगा हाथ में तो कभी ज्यादा। परन्तु उसे कभी दिली तसल्ली न मिली थी। उम्र बढ़ती जा रही थी। हिम्मत कम होती जा रही थी। अक्सर यह सोचता कि ऐसा कब तक चलेगा! अगर यही हाल रहा तो दो-तीन सालों में बढ़ती उम्र के साथ उससे कोई गलती होगी और सीधा कानून के फंदे में जा फंसेगा। फिर उसके अगले-पिछले सारे जुर्मों का हिसाब होगा कि जब जेल से बाहर आयेगा तो मुंह में एक भी दांत भी नहीं बचेगा। चलने के काबिल भी नहीं रहेगा। कमर झुकी होगी और बुढ़ापा तब नर्क से भी बुरा होगा।

कल ही उस्मान अली ने एक सेठ की तिजोरी लूटी थी। हजार उसके हिस्से में आये थे और पच्चीस-पच्चीस उसने उन दोनों आदमियों को बांट दिया था जो इस काम में उसके सहायक थे। उस्मान अली के पास जब भी पैसे आते तो हर बार वह यही सोचता कि अगली बार वह बड़ा हाथ मारेगा, ताकि अपनी जिन्दगी बना सके। परन्तु जब पैसा खत्म हो जाता, जेब खाली हो जाती तो, बड़ा काम भूल जाता और छोटा हाथ मारकर ही अपना खर्चा-पानी  चलाने की सोचता।

दरअसल उस्मान अली अपनी कमजोरी जानता था। उसे मालूम था कि वह अकेला कुछ नहीं कर सकता। बड़ा काम करने के लिए उसे दिल-गुर्दे वाले विश्वसनीय व्यक्ति चाहिए, जो कि उसे हासिल नहीं थे, वह छोटा-मोटा शिकार करना ही जानते थे, बड़े कामों में हाथ डालने का उनमें हौसला नहीं था। वह अक्सर यही सोचता कि उसे कुछ ऐसे साथी तलाश करने चाहिए जो उसकी ही तरह बड़ा हाथ मारने के ख्वाहिशमंद हों। लेकिन वह बाखूबी जानता था कि ऐसे लोगों को ढूंढ पाना आसान काम नहीं है। वह छोटे स्केल का शिकारी है, बड़े शिकारी उसे घास भी नहीं डालेंगे।

बहरहाल उस्मान अली को यह सब सोचते-सोचते साल गुजर गया था और उसका दिल जानता था कि अगले दस साल भी यही सोचते-सोचते गुजर जायेंगे। जो वह कर रहा है, वही करता रहेगा। बड़ा काम करना उसके बस का नहीं है। जबकि बड़ा काम वह हर हाल में करने का ख्वाहिशमंद था।

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मोटे नटियाल के दारू के अवैध अड्डे पर रोज शाम की भांति मंगल पांडे बैठा व्हिस्की का पैग धीरे-धीरे सिप कर रहा था और अपने अगले कदम के बारे में सोच रहा था कि दौलत प्राप्ति के लिए अब क्या कदम उठाये; कहां हाथ मारे? उसके आदमियों ने भी, उसके पास चक्कर लगाने शुरू कर दिये थे कि माल-पानी ख़त्म हो रहा है, कहीं हाथ मारना चाहिए। पांडे खुद भी अपनी जेब को हल्का महसूस कर रहा था, इन दिनों।

तभी मंगल पांडे की निगाह खूबचन्द पर पड़ी जो कभी-कभार ही मोटे नटियाल के दारू के अड्डे पर नजर आता था। खूबचन्द की सबसे बड़ी खूबी थी कि वह बदन पर कीमती बढ़िया कपड़े पहनता था। जूते भी कीमती होते, परन्तु उसके चेहरे पर शेव हमेशा आधा-आधा इंच बढ़ी रहती, जिसे वह बिना वजह खुजलाता रहता था।

मंगल पांडे उसे ही देखे जा रहा था।

खूबचन्द की निगाहें दारू के सारे अड्डे में घूम रही थीं। वह अड़तीस वर्ष का लफंगा-सा दिखने वाला इंसान था, लेकिन बदन पर वह कीमती कपड़े पहन खुद को सभ्रांत समझने लगता था। आखिरकार उसकी निगाहें मंगल पांडे पर ठिठकीं ।

उसे अपनी ओर देखते पाकर, मंगल पांडे ने मुंह घुमा लिया।

कुछ क्षण सोचकर, खूबचन्द मंगल पांडे के पास चला आया।

मंगल पांडे ने निगाह उठाकर उसे देखा।

"क्या है?" मंगल पांडे के लहजे में तीखापन था ।

"मैं यहां बैठ जाऊं....।" खूबचन्द ने शेव में उंगलियां खुजलाकर कहा।

"और कितनी जगह खाली है--- वहां जाकर बैठ।”

“मुझे तुमसे बात करनी है?"

मंगल पांडे की आंखें सिकुड़ गईं।

"तूने मुझसे बात करनी है?"

"हां।”

"बैठ जा। अपनी जिन्दगी में पहली बार तूने कहा है कि तूने मुझसे बात करनी है। जरा सुनूं तो सही कि तेरी खोपड़ी में क्या बज रहा है।" मंगल पांडे ने होंठ सिकोड़ कर कहा।

खूबचन्द बैठा और कीमती सिगरेट सुलगाकर बोला---

“तू आज दोपहर घर पर आया था।"

"तेरे को किसने कहा ?”

"उस सिगरेट के टुकड़ों में जिस ब्रांड की तू पीता है। तेरे ब्रांड की व्हिस्की की बोतल मुझे खाली मिली। बात समझने के लिए इतना ही काफी है।" खूबचन्द ने सिर हिलाया।

“हां, आया था।” पांडे ने तीखी मुस्कान के साथ कहा---  “आगे बोल ।"

“तू वहां मत जाया कर।"

"सुन बे, तेरी बहन वहां दुकान खोल कर बैठी है। मैं आऊं वहां या काला चोर, तेरे बाप का क्या जाता है-- ।"

"जाता है। बहुत कुछ जाता है।" खूबचन्द अपने शब्दों पर जोर देकर कह उठा--- "काले चोर में और तुझमें बहुत बड़ा फर्क है। शामली बेवकूफ है। बात को समझती नहीं। तू है बहुत खतरनाक । खतरनाक ही काम करता है। शामली से तेरा पुराना सम्बन्ध है। अगर कभी भारी गड़बड़ कर दी तूने तो, पुलिस ने शामली के पास आ धमकना है। उसे तंग करेगी पुलिस। शामली का बिजनेस बंद हो जायेगा। वह जायेगी कहां से?"

"सीधा कह न कि तेरी बहन ने धंधा बन्द कर दिया तो तेरी हालत बिगड़ जायेगी। तेरे खर्चे कौन पूरा करेगा। बहन के धंधे पर ही तो तेरी गाड़ी चलती है।" मंगल पांडे ने कड़े स्वर में कहा तो खूबचन्द तिलमिला उठा।

"ऐसा ही सही। पर तू शामली के पास आना छोड़ दे।"

"तुझे एक राय देता हूं खूबचन्द।" मंगल पांडे ने गिलास में से तगड़ा घूंट भरा--- “शामली के पास आना तो मैं छोडूंगा नहीं। अब तेरे लिए सलाह है कि तू कोई काम शुरू कर दे। चोरी चकारी तू कई बार कर चुका है। राह चलते लोगों को तूने कई बार लूटा है। तबीयत से इसी धंधे पर लग जा। अपने पांवों पर खड़े होना सीख। बहन की कमाई पर नजर रखना छोड़ दे, बल्कि खुद कमा कर उसे भी खिला, उसके खर्चे पूरे कर ताकि, वह धन्धा न करके शराफत की जिन्दगी बिताये। जब ऐसा होगा तो मैं खुद आना छोड़ दूंगा। नहीं तो जब तक दुकान खुली रहेगी, तू मेरा तो क्या किसी का भी वहां जाना बन्द नहीं कर सकता। करायेगा तो भूखा मरेगा। धंधा बिल्कुल ही बन्द हो जायेगा ।"

“मंगल तुम.... ।”

“सुन बे!” मंगल पांडे एकाएक खतरनाक भाव से गुर्रा उठा--- "तू मुझे अच्छी तरह जानता है, फिर भी फालतू की बकवास करे जा रहा है। मैं एक आवाज निकालूं तो तेरी बहन की दुकानदारी हमेशा के लिए बन्द हो जाये। इस इलाके में ऐसा कोई नहीं जो मेरी बात न माने या मेरे खिलाफ जाये। उठ और दफा हो जा। दोबारा इस मामले में बात की तो मोटे नटियाल के पीछे वाले कमरे में ले जाकर तेरे टुकड़े कर दूंगा। सतनाम की याद है न तुझे ? डेढ़ महीना पहले एक छोकरी को लेकर भाग गया था मेरे से । तो उसे मोटे नटियाल के कमरे में ही ले जा मारा था और लाश नाले में मिली थी। एकबारगी मैं पैसा तो छोड़ सकता हूं लेकिन छोकरी नहीं। भेजे में आई तेरे बात कि नहीं?"

तभी मोटा नटियाल वहां आ पहुंचा। पचपन बरस, ठिगने कद का मोटा उसकी आधी से ज्यादा जिन्दगी अपराधियों के बीच बीती थी।

"यह तेरे पास क्या कर रहा है?" मोटे नटियाल ने मंगल से पूछा।

"साला कहता है, मैं लफाड़ी आदमी हूं इसलिए उसकी बहन की दुकान पर न जाऊं। कभी लफड़ा हो गया तो पुलिस इसकी बहन की दुकानदारी बन्द कर देगी, क्योंकि मैं सालों से इसकी बहन की दुकान का शटर उठाने जाता हूं।" मंगल पांडे धधकते स्वर में बोला।

मोटे नटियाल ने अपनी छोटी आंखों को और भी सिकोड़ लिया।

"मंगल! पीछे वाला कमरा खाली है, वहां ले जा इसे। इसके सारे दुख-दर्द दूर हो जायेंगे।"

नटियाल के खतरनाक शब्द सुनते ही खूबचन्द हड़बड़ाकर उठ गया।

"क्या हुआ--- उठ गया!"

खूबचन्द के होंठ हिले, बिना कुछ कहे पलटा और दूर जाकर अन्य टेबल पर बैठ गया। उसके चेहरे पर घबराहट के भाव हावी हो चुके थे।

"हरामखोर कुत्ता कहीं का!" नटियाल बड़बड़ाया और वहां से चला गया।

मंगल पांडे ने गहरी सांस ली और टेबल पर पड़े गिलास को उठाकर एक ही सांस में खाली किया और उसे वापस रखकर सिगरेट सुलगा ली। फिर यूं ही वहां बैठे लोगों पर निगाहें दौड़ाने लगा। तभी उसकी निगाहें देवराज चौहान पर जा अटकीं। जो कुछ दूर बैठा होठों पर मुस्कान लिए उसे देख रहा था। उसे अपनी ओर देखते पाकर देवराज चौहान ने हाथ से उसे पास आने का इशारा किया।

मंगल पांडे ने हैरानी से आसपास देखा और फिर देवराज चौहान को।

देवराज चौहान ने पुनः उसे अपने पास आने का इशारा किया। मंगल पांडे की आंखें सिकुड़ गई। यहां किसी की हिम्मत न थी कि कोई उसे इस प्रकार बुलाये। सब उसे जानते थे और उससे कतराते थे। इसका मतलब यह नया चेहरा, उसके बारे में कुछ नहीं जानता। अगर जानता है तो अपने आपको ज्यादा खतरनाक साबित करना है। उसे इस प्रकार बुलाकर मंगल पांडे मन-ही-मन उसकी अक्ल ठिकाने लगाने का फैसला कर चुका या और उठकर देवराज चौहान की तरफ बढ़ गया।

■■■

“तूने मुझे बुलाया?" मंगल पांडे करीब पहुंचकर क्रूरता भरे स्वर में बोला।

देवराज चौहान ने मुस्कुराकर सहमति में सिर हिलाया।

“जानता है मुझे?” वह पुनः गुर्राया ।

देवराज चौहान ने फिर सहमति में सिर हिलाया।

“अच्छी तरह जानता है या ऊपर-ऊपर से---।"

“अच्छी तरह से।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।

“इस पर भी तूने मुझे बुलाने की हिम्मत की?”

“हां। नजरें टकरा गईं तो बुला लिया, नहीं तो मैं खुद तेरे  पास आने वाला था। बैठ, तेरे से काम की बात करनी है।" देवराज चौहान बोला।

अनिश्चित-सा मंगल पांडे खड़ा देवराज चौहान को देखता रहा। वह समझ नहीं पा रहा था कि यह नया चेहरा उससे बिल्कुल भी नहीं डर रहा, और बात भी ऐसे कर रहा है जैसे आम आदमी से बात कर रहा हो। ऊपर से कहता है काम की बात करनी है।

“तू है कौन? तेरा लेबल क्या है?"

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई और उठ खड़ा हुआ।

“नटियाल वाले कमरे में चलें, वहां आराम से बात करेंगे।”

मंगल पांडे चौंका। तो वह नटियाल के पीछे वाले कमरे के बारे में भी जानता है। कौन है यह? पुलिस का आदमी? किसी मामले में फंसाने आया है उसे? उसने दारू के अड्डे पर निगाह मारी, ताकि यह जान सके कि, इसके और कितने साथी यहां मौजूद हैं। परन्तु वहां सब पुराने ही चेहरे थे, अलबत्ता खूबचन्द को अवश्य अपनी तरफ देखते पाया, जिसने कि उसे देखते ही सकपका कर निगाहें फेर ली थीं।

“चल।” मंगल पांडे ने सर्द भाव से देवराज चौहान से कहा।

पांडे देवराज चौहान को लेकर आगे बढ़ा। काउंटर के पास खड़ा मोटा नटियाल उन दोनों को देख रहा था, पांडे उसके करीब ठिठका।

"हम कमरे में जा रहे हैं। मारधाड़ सुनाई दे तो ध्यान मत देना।"

मोटे नटियाल की सर्द निगाहें देवराज चौहान पर जा टिकीं।

दोनों आगे बढ़े और काउंटर के पीछे से होकर छोटी-सी गैलरी को पार करके कोने में बने एक कमरे में प्रवेश कर गये। यहां सिर्फ टेबल के अलावा तीन कुर्सियां पड़ी थीं। भीतर प्रवेश करके दरवाजा बन्द करके पलटते हुए मंगल पांडे ने रिवाल्वर निकाला। तभी देवराज चौहान की रिवाल्वर उसकी कमर में जा लगी।

"मंगल पांडे!" देवराज चौहान शांत स्वर में बोला--- "मैं तुमसे मुंह से बात करने आया हूं। हथियार से नहीं। जब तेरा हाथ जेब में गया था तो मैं समझ गया था कि रिवाल्वर निकालने जा रहा है। कान खोलकर सुन ले, मैंने तेरे से सिर्फ बात करनी है।" कहने के साथ ही देवराज चौहान ने उसकी कमर से रिवाल्वर हटाई और जेब में डाल ली। फिर होठों में फंसी सिगरेट का कश लेकर अंगुलियों में फंसा ली।

मंगल पांडे ने देवराज चौहान की इस हरकत से समझ लिया कि यह भी उससे कम नहीं है। उसने यही सोचा कि सुन लेना चाहिए यह क्या-क्या कहना चाहता है। इस विचार के साथ ही मंगल पांडे ने रिवाल्वर वापस जेब में रख लिया।

■■■

"क्या नाम है तेरा?” कुर्सी पर बैठता हुआ मंगल पांडे बोला ।

“देवराज चौहान।”

“देवराज चौहान!” मंगल पांडे उसके नाम को दोहरा कर, कुछ कहने ही जा रहा था कि अगले ही पल चौंका--- “देवराज चौहान, कौन देवराज चौहान ?”

“क्राइम वर्ल्ड में सिर्फ एक ही देवराज चौहान है।"

मंगल पांडे हक्का-बक्का-सा उसे देखता रह गया था। आंखों में हैरानी का समुन्दर आकर ठहर गया था। कई पल तक उसके मुंह से बोल न फूटा।

“क्या हुआ?”

“क....कुछ नहीं। तू...तुम वही देवराज चौहान हो, जिसने दो महीने पहले ही हीराभाई ओमभाई के जवाहरातों के शोरूम में छः करोड़ की डकैती की थी।”

"हां। मैं ही उस छः करोड़ की डकैती का जन्मदाता था।"

“यार, फिर तो तुम्हारे पास बहुत माल होगा---।" मंगल पांडे प्रभावित नजर आने लगा।

"तुम्हें डकैती का ब्यौरा मालूम है?" देवराज चौहान मुस्कुराया।

"नहीं।"

“तो इस बारे में बात मत करो कि मेरे पास माल है या नहीं।"

"मैं तो कभी सोच नहीं सकता था कि तुम्हारे जैसी बड़ी हस्ती मुझसे मिलेगी ही नहीं, बल्कि खुद मेरे पास आयेगी....मैं मैं...।”

"मैं बड़ी हस्ती हूं?”

"मेरी निगाहों में तो तुम क्राइम वर्ल्ड के बादशाह हो।"

"हे भगवान! चार डकैती क्या मार ली, बादशाह बन गया।"

“खैर छोड़ो, यह बताओ कौन-से ब्रांड की व्हिस्की है।”

"मैं शराब नहीं पीता।”

“क्या तुम शराब नहीं पीते?” मंगल पांडे हैरानी से कह उठा ।

"नहीं। इंसान के लिए शराब पीना जरूरी नहीं होता।”

“वास्तव में अजीब आदमी हो तुम। शराब नहीं पीते, परन्तु क्राइम वर्ल्ड में, अपने झण्डे को लहराते फिर रहे हो।" मंगल पांडे ने गहरी सांस लेकर कहा।

देवराज चौहान ने सिगरेट का कश लिया और फिर बोला---

“मैं तुम्हारे पास किसी खास काम के लिए आया था।"

“बोलो....बोलो। तुम्हारे लिए तो पूरा-का-पूरा हाजिर हूं।"

“आजकल क्या कर रहे हो? किसी काम में हाथ डाला हुआ है?"

“नहीं। दो-चार दिन में डालने की सोच रहा था ।"

“यानी कुछ नहीं कर रहे?"

"नहीं।"

देवराज चौहान ने सिर हिलाया, फिर दो पल खामोश रह कर बोला---

“मैं कुछ करने जा रहा हूं। मेरे साथ काम करोगे?”

“तुम्हारे साथ काम करूंगा--- तो मेरी जिन्दगी बन जायेगी। वैसे क्या काम करने का इरादा है तुम्हारा? कहां हाथ मार रहे हो?"

“बैंक डकैती।”

“बैंक डकैती।” मंगल पांडे चौंका, फिर बोला--- “कहां?”

"वजीर चन्द प्लेस का नाम सुना है?"

"सुना क्या देखा भी है। तुम बात बोलो। मंगल पांडे जल्दी से कह उठा।

"वजीर चन्द प्लेस में हिन्दुस्तान बैंक की बहुत बड़ी ब्रांच है। उसी जगह डकैती का प्रोग्राम बनाया है।" देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा--- "दस करोड़ के आसपास माल हाथ लगने की आशा है। हिस्से बराबर के होंगे। सोच लो, ऐसा मौका फिर हाथ नहीं आयेगा। कोई दबाव नहीं है। अगर तुम्हें मंजूर न हो तो स्पष्ट कह दो। मुझे आदमियों की कमी नहीं है।"

मंगल पांडे देवराज चौहान का चेहरा देखता रह गया।

"दस करोड़ की बैंक डकैती ?"

"हां।"

"हो जायेगी--- मेरा मतलब है सफल डकैती हो जायेगी ना?"

"काम तो सोचकर ही किया जा रहा है।" देवराज चौहान मुस्कुराया ।

"लेकिन वजीर चन्द प्लेस तो बहुत व्यस्त इलाका है। वहां पर ऐसा काम करना ठीक होगा?” एकाएक मंगल पांडे कह उठा।

"मंगल पांडे।" देवराज चौहान एक-एक शब्द चबाकर कह उठा--- "खतरा तो हर काम में होता है। छोटे काम में छोटा खतरा, बड़े काम में बड़ा खतरा। मैंने, जिस बैंक को लूटने की योजना बनाई है, वहां से करोड़ों मिलने की आशा है। इसलिए खतरा भी इसी हिसाब से है। यह हजारों का खेल नहीं है कि बीस दिन बाद फिर सोचना पड़े कि हाथ कहां मारना है, यह मोटा है, अगर सफल हाथ पड़ गया तो जिन्दगी में दोबारा काम करने की जरूरत नहीं। सफल न भी हुए तो जान बचाकर भाग निकलने का मौका तो मिलेगा ही। आज तक मेरी कोई योजना असफल नहीं हुई। भगवान ने चाहा तो इस बार भी हमें सफलता ही मिलेगी।"

मंगल पांडे ने आवेश में कांपते हाथों से सिगरेट सुलगाई।

"वैसे कितना खतरा है इस काम में?"

"दस करोड़ जितना!"

"यानी कि अधिक है---।"

"मतलब तुम कुछ भी निकालो।"

"योजना क्या है?"

"अभी नहीं बताऊंगा। जब सब एकत्र होंगे, तब बताऊंगा।

"तुम तब तक अपना मन बना लो कि खतरे वाले काम में हाथ डालना है या नहीं। मैं फिर मिलूंगा तुमसे।”

"खतरे वाले काम में तो मैं हाथ डालता ही रहता हूं। यूं कहो कि ज्यादा खतरे वाले काम में हाथ डालना है या नहीं। वैसे इस बात को इस नजरिये से भी सोचा जा सकता है कि मोटे माल को हासिल करने वाले काम में हाथ डालना है कि नहीं।"

"शायद अब तुम....।" देवराज चौहान मुस्कुराया--- "सही ढंग से सोच रहे हो।"

“एक बात बताओ...।"

“बोलो....।”

“डकैती असफल होने की स्थिति में, हम सब मरेंगे?” पांडे ने पूछा।

“अगर डकैती पूरी तरह असफल रही तो, फिर शायद हम सब ही मरें। ऐसी हालत में कोई किस्मत वाला ही बच पायेगा। और जो डकैती में लापरवाह रहेगा, उसके मरने के चांसिज ज्यादा हैं। मेरा प्लान ही कुछ ऐसा है अगर हमारा कोई साथी मरता है या फंस जाता है तो उसे बचाया नहीं जायेगा। हमारा इकलौता मकसद होगा, डकैती डालो और भाग लो। पीछे मुड़कर नहीं देखना है हमें.... ।”

“ऐसे विचार वाले लोग ही तरक्की करते हैं।” मंगल पांडे ने सहमति में गर्दन हिला दी--- “सुनो, मैं तुम्हारे साथ हूं। छोटे हाथ तो बहुत मारे, इस बार बड़ा दांव ही सही, देखी जायेगी। आर या पार! सफल रहे तो जिन्दगी बन जाएगी।"

देवराज चौहान ने उसकी आंखों में झांका।

“सोच लो ! इतनी जल्दी फैसला मत करो।"

"ऐसी बातों में फैसले सोचकर नहीं किये जाते। काम कब शुरू करना है?"

“एक बार हां कहने के बाद, पीछे हटना तुम्हारे लिए खतरनाक सिद्ध हो सकता है।”

“मंगल पांडे हमेशा कदम आगे की तरफ उठाता है, पीछे की तरफ नहीं।"

“गुड...!" देवराज चौहान ने तसल्ली भरे अन्दाज में सिर हिलाया--- “तो फिर इतना ध्यान रखना कि अब तुमने किसी भी काम में हाथ नहीं डालना है। हाथ पर हाथ धरे बैठे रहो और अगली मुलाकात का इंतजार करो। मैं या मेरा साथी जगमोहन जल्दी ही तुम्हारे पास आयेंगे और इस बारे में अपना मुंह बन्द रखना। बात मुंह से बाहर न निकले।"

मंगल पांडे ने सिर हिलाया फिर कहा---

"काम कब शुरू करना है?"

"मुनासिब वक्त पर तुम्हें हर बात का जवाब मिल जाएगा।" कहने के साथ देवराज चौहान उठा और विदा लेकर बाहर निकल गया।

मंगल पांडे वहीं बैठा था। सोचों में गुम। मन में करोड़ों रुपया हासिल करने के लिए खुशी भी थी और डकैती में आने वाले खतरे की उसे परवाह नहीं थी। मन-ही-मन हिसाब लगाया कि अगर उसे एक करोड़ रुपया भी मिल जाये तो, उसकी जिन्दगी बन जायेगी।

मोटे नटियाल के आने पर, मंगल पांडे अपने गुड़मुड़ विचारों से बाहर निकला।

“कौन था यह?”

मंगल पांडे ने नटियाल को देखा।

“देवराज चौहान, अपनी ही लाइन वाला....।"

"यह, यहां क्या करने आया था?” मोटा नटियाल चौंका। “काम की बात करने आया था। फिर बताऊंगा।" कहने के साथ ही पांडे बाहर निकल गया।

मोटे नटियाल की आंखों में व्याकुलता भर आई।

■■■

और बात जो भी हो, लेकिन खूबचन्द की यह खूबी थी कि जिसे एक बार देख लेता था, उसे कभी भूलता नहीं था। इन मामलों में उसका दिमाग बहुत तेज था। नटियाल और पांडे की पीछे वाले कमरे की, धमकी सुनकर वह फौरन वहां से खिसक कर हटकर आ बैठा था और मन-ही-मन भुनभुनाता हुआ, रह-रहकर, मंगल पांडे को देखता हुआ सोच रहा था कि अगर उसका बस चले तो मंगल पांडे का नामोनिशान मिटा दे। लेकिन वह अपनी मजबूरी को भी समझता था कि कम-से-कम इस जन्म में तो मंगल पांडे का बाल भी बांका नहीं कर पायेगा। उनकी उंगली का नाखून तक नहीं उखाड़ पायेगा।

खूबचन्द इन की बातों को लेकर सोच रहा था कि तभी उसने मंगल पांडे को अपनी टेबल से उठकर, दूसरी टेबल की तरफ बढ़ते देखा, फिर जिस आदमी के पास जाकर पांडे रुका, उसे देखते ही खूबचन्द चौंका, मस्तिष्क में धमाका फूटा कि उसने इस आदमी को पहले कहां देखा है। क्या नाम है इसका....?

दूसरे ही पल मस्तिष्क में ज्ञान का दूसरा धमाका फूटा।

उसे याद आया कि दो-तीन महीने पहले किसी डकैती के सिलसिले में इसकी तस्वीर अखबार में देखी थी और इसका नाम देवराज चौहान है।

देवराज चौहान! खतरनाक शख्सियत ! क्राइम की दुनिया का एक हिस्सा। बड़े-से-बड़ा दादा भी जिससे कन्नी कतरा जाये। ऐसे खतरनाक इंसान का मंगल पांडे जैसे आम दादों से क्या वास्ता? फिर उसके देखते-ही-देखते, देवराज चौहान और मंगल पांडे दारू के अड्डे के पीछे बने मोटे नटियाल के कमरे की तरफ चले गये।

बाल की खाल निकालना खूबचन्द की खूबी थी। इस काम में वह माहिर था। वह अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाता हुआ देवराज चौहान और मंगल पांडे के बीच की कड़ी को तलाशने लगा कि किस आधार पर दोनों मिले हैं? बीच में क्या है?

देवराज चौहान के बारे में वह अच्छी तरह जानता था कि वह सिर्फ काम के ही बन्दों से वास्ता रखता था, बेकार में वह किसी के पास नहीं जाता था। किसी से बात नहीं करता था। इसका मतलब साफ था देवराज चौहान किसी प्रकार की खिचड़ी बनाने की तैयारी में था और मंगल पांडे उस खिचड़ी का हिस्सेदार बनने जा रहा था। खूबचन्द के मन में मंगल पांडे के प्रति बैर था, इसलिए उसने इस मामले पर निगाह रखने की सोची, ताकि अगर कहीं मौका मिले तो, सामने आये बिना ही मंगल पांडे की खोपड़ी दुरुस्त कर सके।

आधे घण्टे के बाद जब देवराज चौहान, मोटे नटियाल के दारू के अड्डे से बाहर निकला तो खूबचन्द सावधानी से देवराज चौहान के पीछे लग गया।

■■■

मंगल पांडे से मिलने के बाद देवराज चौहान सीधा डालचन्द के घर पर पहुंचा। दरवाजा थपथपाने पर शारदा देवी ने दरवाजा खोला।

“नमस्कार मां जी....!" देवराज चौहान ने हाथ जोड़कर कहा।

"जुग-जियो बेटा! कौन हो तुम?" शारदा देवी ने प्यार से कहा।

"मां जी, मैं डालचन्द का दोस्त हूं। उसी के साथ कम्पनी में काम करता था। यहां से निकल रहा था तो सोचा मिलता चलूं....। कहां है डालचन्द...।"

"वह तो घर पर नहीं है बेटा। शाम हो गई है, आने ही वाला होगा।" शारदा देवी ने अपनत्व से कहा--- "आओ बेटा....भीतर आ जाओ....।"

"मां जी! मैं थोड़ी देर बाद आऊंगा। थोड़ा-सा आगे कुछ काम था, तब तक डालचन्द भी आ जायेगा।" देवराज चौहान ने मुस्कुराकर कहा।

"पानी तो पी लो...मैं...।"

"बस मां जी.....अभी आकर पानी क्या, साथ में चाय भी पीऊंगा।" देवराज चौहान ने विदा ली और मकान से कुछ हटकर बनी चाय की दुकान पर जा बैठा और निगाहें डालचन्द के घर पर टिका दीं, ताकि डालचन्द आये तो उसे बाहर ही थाम ले। चाय वाले को चाय का आर्डर दे दिया। चाय आई तो वक्त बिताने की खातिर चाय के घूंट भरने लगा।

मोटे नटियाल के दारू के अड्डे से ही खूबचन्द उसके पीछे था।

खूबचन्द ने देवराज चौहान को डालचन्द के घर पर जाते देखा। उसकी मां से बात करते देखा। वह समझ गया कि देवराज चौहान को जिससे मिलना था, उसे वह मिला नहीं और अब उसके इंतजार में चाय की दुकान में बैठा है।

कुछ दूर रहकर खूबचन्द ने मुनासिब जगह सम्भाली और देवराज चौहान पर निगाह रखने लगा। कभी-कभार वह डालचन्द के मकान के बंद दरवाजे की ओर भी देख लेता था। यह सब वह मंगल पांडे को सबक सिखाने की खातिर कर रहा था कि मालूम तो हो कि देवराज चौहान के साथ पांडे किस फेर में है। तब किसी तरह पांडे की खोपड़ी दुरुस्त करेगा।

■■■

सात बजे डालचन्द लौटा। थका-हारा हमेशा की तरह। चेहरा उतरा हुआ था। जेब में अठन्नी का सिक्का पड़ा था। जूते घिसकर बराबर हुए जा रहे थे। आज वह पुराने दोस्त के पास कुछ पैसे उधार मांगने गया था परन्तु उसने स्पष्ट इंकार कर दिया था। सुबह नौकरी के लिए इन्टरव्यू था, लेकिन मालूम हुआ, इन्टरव्यू से पहले ही किसी खास आदमी की सिफारिश पर दूसरे को नौकरी पर रख दिया था।

डालचन्द को अपनी जिन्दगी में हर तरफ अन्धेरा-ही-अन्धेरा नजर आ रहा था। मां की बीमारी का इलाज वह करा नहीं पा रहा था और कमला की शादी की बात तो दूर की थी। अपनी किस्मत पर आंसू बहाता घर की तरफ बढ़ रहा था कि देवराज चौहान उसके सामने आ खड़ा हुआ। डालचन्द ठिठका। बुझी-सी निगाहों से उसे देखा।

“कैसे हो डालचंद?” देवराज चौहान एकाएक मुस्कुराकर बोला ।

डालचन्द ने असमंजसता भरी निगाहों से उसे देखा।

“शायद सोच रहे हो कि मुझे पहले कहां देखा है।" देवराज चौहान हौले से हंसा।

डालचन्द ने उलझन भरी निगाहों से सिर हिलाया।

“तुमने मुझे पहले कभी नहीं देखा।"

“फिर तुम मुझे कैसे जानते हो?" डालचन्द के होठों से निकला।

देवराज चौहान ने अपनेपन से उसके कंधे पर हाथ रखा।

“आओ, वहां बैठकर बात करते हैं। चाय भी पियेंगे।"

कुछ न समझते भी डालचन्द देवराज चौहान के साथ हो गया। वह दोनों चाय की दुकान पर एकान्त में बैठे। आर्डर देते ही चाय आ गई।

डालचन्द ने चाय का घूंट भरा तो जैसे दिन भर की थकावट उतरती महसूस हुई। उसने गहरी निगाहों से देवराज चौहान को देखा।

“कौन हो तुम?” डालचन्द ने चाय का घूंट भरा ।

"देवराज चौहान नाम है मेरा।"

“लेकिन मुझसे क्या चाहते हो?"

क्षण भर ठिठक कर देवराज चौहान ने सिर हिलाया, फिर बोला---

“आजकल तुम बहुत तंगी के दौर से गुजर रहे हो। नौकरी रही नहीं। तुम्हारे रिकार्ड खराब होने के कारण दूसरी नौकरी तुम्हें मिल नहीं रही....!"

डालचन्द के चेहरे पर उखड़ेपन के भाव आ गये।

"यही सब बताने के लिए तुम मुझे चाय पिला रहे हो?"

"नहीं! मैं तो यों ही बात कर रहा था....।" देवराज चौहान के होठों पर मुस्कुराहट थी।

"बात क्या है? क्या चाहते हो मुझसे? चाय क्यों पिलाई मुझे? दोस्ताना ढंग से क्यों पेश आ रहे हो मेरे से? इतना तो मैं समझता हूं कि तुम मुझसे अवश्य कुछ चाहते हो।" डालचन्द के होठों से रूखा सा स्वर निकला।

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई और बोला---

"तीन महीने पहले तुमने राजाराम का काम किया था....।”

डालचन्द चौंका।

“क्या बोला तू....। कौन-सा काम किया था मैंने राजाराम का?"

“खैर! इतना तो माना कि तुम राजाराम को जानते हो !” देवराज चौहान ने मुस्कुराकर कहा--- “रही बात काम की, तो उसे ढका ही रहने दो। जो वक्त निकल जाये उसे दोहराना नहीं चाहिए। इसमें कोई शक नहीं कि तुम बेहतरीन दक्ष ड्राईवर हो।"

डालचन्द ने उसकी आंखों में झांका। सामने पड़ी चाय पीना वह भूल गया था।

"तुम्हारी असलियत क्या है?" डालचन्द की आवाज में सख्ती भर आई थी।

“मैं क्राइम वर्ल्ड से सम्बन्ध रखता हूं। देवराज चौहान....!"

डालचन्द चौंका। देवराज चौहान का नाम उसने सुन रखा था।

"तुम वही तो नहीं, जिसने कई डकैतियां डाली हैं---।"

“हां। मैं वही हूं.... !”

डालचन्द की जैसे सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई।

“मुझसे क्या चाहते हो ?”

"मेरे बारे में जानते ही तुम घबरा क्यों गये?" देवराज चौहान हौले से हंसा ।

जवाब में डालचन्द ने कुछ नहीं कहा।

“सुनो डालचन्द । राजाराम की तरह मुझे भी तुमसे काम है। राजाराम से तुम्हें सिर्फ पच्चीस हजार मिले थे। लेकिन मैं तुम्हें बहुत बड़ी रकम दूंगा। इतनी बड़ी कि सारी उम्र....फिर भी तुम्हें कुछ भी करने की जरूरत नहीं। अपनी बीमार मां का इलाज करा सकते हो। अपनी बहन की शादी शान से कर सकते हो। अपनी हर ख्वाहिश को पूरा कर सकते हो।"

डालचन्द फिर भी कुछ न बोला।

"यों समझो कि मैं तुम्हारी गरीबी दूर करने आया हूं। इसमें खतरा इतना ही है, जितना कि राजाराम के काम में था। परन्तु दौलत इतनी कि तुम सोच भी नहीं सकते। राजाराम जैसे तुम्हारे पैरों में पड़े होंगे।" देवराज चौहान ने सिगरेट का कश लेकर गम्भीर स्वर में कहा--- "मेरे साथ चलकर फायदे में रहोगे डालचन्द...।"

डालचन्द ने सूखे होठों पर जीभ फेरी, फिर खुश्क गले से बोला ।

"कितना मिलेगा?”

“एक करोड़ से ज्यादा....।"

डालचन्द का शरीर कांपा, फिर स्थिर हो गया।

“क्या हुआ?” देवराज चौहान ने उसके चेहरे को निहारा।

डालचन्द का शरीर इस प्रकार कांपा जैसे उसमें जान पड़ गई हो।

“तुमने एक करोड़ कहा था ना?”

"हां...।"

“मुझे नहीं करना तुम्हारे साथ काम.... ।”

"क्यों?" देवराज चौहान चौंका।

"कार ड्राइविंग के बदले तुम मुझे एक करोड़ रुपया दे रहे हो। जो भी सुनेगा, तुम्हें पागल कहेगा।" डालचन्द उठ खड़ा हुआ--- “या फिर कहो कि मामला खतरनाक है। काम सिर्फ ड्राईविंग का ही नहीं, और भी कुछ है। ऐसे करोड़ रुपये का मैं क्या करूंगा, जिसे इस्तेमाल करने के लिए मैं जिन्दा ही न रहूं....।"

देवराज चौहान ने उसकी कलाई पकड़कर वापस बिठा लिया।

"मैं तो मजाक कर रहा था।" देवराज चौहान के होठों पर गहरी मुस्कान बिखर गई।

"क्या मतलब?”

“काम करने की एवज में तुम्हें पचास हजार रुपया मिलेगा।"

“पचास हजार.... ।" डालचन्द ने उसके शब्द दोहराये।

"हां।"

"क्या करना है?"

"मैं अपने साथियों के साथ बैंक लूट रहा हूं। तुम कार के साथ बैंक से कम से कम एक किलोमीटर दूर खड़े होगे। हम आयेंगे, कार में बैठेंगे। तुम्हें कार भगानी होगी। ध्यान रहे, तब तक शहर भर की पैट्रोल कारों को हम लोगों के बारे में सूचित कर दिया गया होगा।”

डालचन्द ने सूखे होठों पर जीभ फेरी।

"इस काम के मुझे पचास हजार मिलेंगे।"

“हां। तुम हमें ठिकाने पर पहुंचाओगे, हम फौरन पचास हजार तुम्हें दे देंगे।”

“बैंक डकैती से तो मेरा कोई ताल्लुक नहीं होगा?" डालचन्द ने पूछा।

"नहीं। मुझे सिर्फ फास्ट ड्राईवर की जरूरत है, जो उस कम समय में हमें पुलिस के फैलाये जाल से निकाल सके। और यह काम तुम कर सकते हो डालचन्द । बोलो, मंजूर है?”

“नहीं.... ।”

“नहीं....क्यों?” देवराज चौहान चौंका।

“मान लिया, उस वक्त पुलिस के फैले जाल में जा फंसे तो, जानते हो क्या होगा? तब पुलिस वाले मुझे भी बैंक डकैती में शामिल समझेंगे..... । लम्बी जेल हो जाएगी मुझे।"

“इसका मतलब तुम्हें अपनी कार ड्राईविंग पर भरोसा नहीं रहा....।"

डालचन्द ने होंठ भींचकर उसे देखा।

“तुम तो कार रेसिंग के ड्राईवर हो आज कल तुम्हारी जेब खाली है, इसलिए हौसला छोड़ बैठे हो, सोचते हो तुमसे कोई काम नहीं हो सकेगा। तुम किसी काबिल नहीं रहे। अपना विश्वास वापस लाओ डालचन्द । तुम्हारी हिम्मत वापस लाने में मैं तुम्हारा पूरा साथ दूंगा।"

"कैसे?" डालचन्द को महसूस हुआ, देवराज चौहान वास्तव में सही कह रहा । परेशानियों ने उसे इस कदर घेर रखा है कि उसका विश्वास छिन्न-भिन्न हो चुका है।

देवराज चौहान ने जेब में हाथ डाला और पचास के नोटों की गड्डी निकाल आहिस्ता से उसकी जेब में सरका दी। डालचन्द सिर्फ गड्डी की झलक ही देख सका। इतने सारे नोटों को अपनी जेब से सरकते देखकर, उसका गला खुश्क होने लगा। वह तो सौ पचास ही तलाश कर रहा था और इतने सारे नोट?

"पांच हजार है यह....। अपनी जरूरतें पूरी करो। यह रकम उस पचास हजार में से एडवांस नहीं है। यह तुम्हारी हां की कीमत है। काम पूरा होते ही तुम्हें पचास हजार मिलेगा। साथ में एक वायदा भी कि अगर डकैती मोटी रही तो, तुम्हें उसी हिसाब से पैसा मिलेगा।"

डालचन्द उसे देखता रहा। बोला कुछ नहीं।

"मेरा ख्याल है कि कम से कम तुम्हें इतने पैसे मिल जायेंगे कि अपनी बहन की शादी कर सको। अपनी बीमार मां का इलाज अच्छी तरह करा सको और अपनी बेरोजगारी दूर करके कोई नया काम शुरू कर सको। और यह सब काम तुम्हें इस शहर के बाहर करने होंगे। क्योंकि जब किसी कंगले के पास एकदम दौलत आ जाए तो पुलिस की निगाहें उस पर टिक जाती हैं। ऐसे समय में जरा सी लापरवाही, इंसान को हमेशा के लिए जेल में ठूंस देती है।"

डालचन्द ने सिर हिलाया।

"मैं समझता हूं, इन बातों को।" एकाएक उसकी आवाज में विश्वास का पुट आ गया था।

“अब घर पर ही रहना। जरूरत पड़ने पर तुम्हें इन्फार्म कर देंगे कि काम कब करना है।"

"वैसे काम कब तक होगा....।"

"दस-पन्द्रह दिन तक....।" देवराज चौहान उठ खड़ा हुआ--- "इस मामले में जुबान बन्द और कान-आंखें खुले रखना।"

डालचन्द के सिर हिलाने पर देवराज चौहान वहां से चला गया।

डालचन्द ऐसे काम में हाथ नहीं डालना चाहता था, लेकिन तीन महीनों में एक-एक पैसे की मोहताजगी ने उसे सिखा दिया था कि दौलत ही धरती का भगवान है। और अब आती दौलत को ठुकराना किसी भी तरह से समझदारी नहीं थी।

■■■

खूबचन्द की खूबियों में यह खूबी भी शामिल थी उसकी आंखें बिल्ली की भांति तेज थीं। दूर की चीज को भी ऐसे देख लेता था जैसे लोग दूरबीन से देखते हैं। जब देवराज चौहान ने नोटों की गड्डी डालचन्द की तरफ सरकाई तो न केवल उसने गड्डी देखी, बल्कि यह भी देख लिया कि गड्डी पचास के नोटों की थी। देवराज चौहान के चले जाने के बाद, डालचन्द तो उठकर अपने घर की तरफ बढ़ गया था। वह पहले मुर्दानी चाल से चल रहा था, अब शान से चल रहा था। खूबचन्द ने सब कुछ नोट किया और सोचने लगा, मामला क्या है?

देवराज चौहान पहले मंगल पांडे के पास गया। उससे बात की। उसे भी नोटों की गड्डी दी या नहीं, यह तो उसे नहीं मालूम था, क्योंकि सारी बात बन्द कमरे में हुई थी। उसके बाद देवराज चौहान इस इंसान से मिला। इसे नोटों की गड्डी दी। देवराज चौहान कोई पागल तो नहीं है कि जो यों ही नोट बांटता फिरेगा। यानी मामला गहरा ही है।

लेकिन यह है कौन जिसे देवराज चौहान ने नोटों की गड्डी दी?

खूबचन्द वहीं रुक गया। देवराज चौहान के पीछे नहीं गया। उसने डालचन्द के बारे में आसपास से मालूम करना शुरू किया। डालचन्द के बारे में जानकारी इकट्ठी करने में उसे पूरे तीन घन्टे लगे। तीन घण्टों में डालचन्द के बारे में एक-एक बात जान ली थी उसने। बाकी सब बातें तो उसके लिए आम ही थीं, लेकिन यह बात उसे कारआमद लगी कि वह रेसिंग कार ड्राईवर है। अब खूबचन्द कड़ियां मिलाने लगा।

खुद देवराज चौहान खतरनाक वांटेड है। इसके साथ रहने वाला इसका खतरनाक दोस्त जगमोहन। देवराज चौहान का मंगल पांडे से मिलना। पांडे भी खतरनाक इंसान और डकैतियां वगैरा डालता है। फिर देवराज चौहान का कार रेसर से मिलना और उसे नोटों की गड्डी देना। यानी कि यह लोग कुछ करने जा रहे हैं और कार रेसर डालचन्द ने बाद में कार को भगाना था।

एकाएक खूबचन्द को पछतावा होने लगा कि वह देवराज चौहान के पीछे क्यों नहीं गया। क्या मालूम जो काम वह करने जा रहा है, उसमें किसी और को भी शामिल कर रखा हो और वह उसके बारे में भी जान जाता।

बहरहाल जो हो गया सो हो गया। अब उसने यही फैसला किया कि वह मंगल पांडे और कार रेसर डालचन्द पर निगाह रखना जरूरी है। ऐसा करने पर ही आगे के हालातों से वह वाकिफ हो सकेगा।

■■■

देवराज चौहान नीना पाटेकर के रेस्टोरेन्ट के सामने पहुंचा।

जगमोहन वहां पहले से ही मौजूद पाटेकर के रेस्टोरेन्ट की निगरानी पर था। वह पास आ गया।

"पांडे और डालचन्द से मिले।" जगमोहन ने पूछा।

"हां वह दोनों तैयार हैं।"

"कोई अड़चन तो नहीं?"

"नहीं। अलबत्ता डालचन्द ने यह जानकर कि उसे करोड़ मिलेगा तो उसने काम करने से इंकार कर दिया था।" देवराज चौहान मुस्कुराया--- "बात भी ठीक थी कि कार की ड्राईविंग के बदले इतनी बड़ी रकम कभी हासिल नहीं होती। बहरहाल मैंने उसे पचास हजार में सौदा तय किया है। लेकिन डकैती में उसका बराबर का हिस्सा होगा।"

"जब पचास हजार में काम चल रहा है तो क्या जरूरत है बराबर का हिस्सा देने की?"

देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा।

"कार ड्राईविंग के साथ अगर वह पकड़ा गया तो पुलिस वाले उसे बैंक डकैती का बराबर का हिस्सेदार मानेंगे। तब कोई बात नहीं सुनेगा कि वह तो डकैती के समय कार के साथ घटनास्थल से एक किलोमीटर की दूरी पर खड़ा था। कानून की निगाहों में वह हम सब के बराबर का ही मुजरिम होगा। डकैती में अगर हम लोगों के हाथों दो चार कत्ल भी हुए होंगे तो पुलिस उन कत्लों में भी उसे हिस्सेदार मानेगी। यानी कि उसके लिए भी खतरा हम लोगों के बराबर है तो हिस्सा बराबर क्यों न हो उसका ?"

“वह डकैती में तो शामिल नहीं होगा, तब तो वह आराम से कार में बैठा होगा। मौत से तो हम ही खेल रहे होंगे।" जगमोहन ने अपने शब्दों पर जोर देकर कहा।

"मानता हूं। जब हम सब को बिठाये कार भगा रहा होगा, आगे पीछे दांये-बायें पुलिस की कार होगी-- तब तो हम भी आराम से बैठे होंगे। सारी जिम्मेदारी उसकी ही होगी। उसकी जरा सी लापरवाही लूटी गई सारी दौलत और हमें भी पुलिस के फंदे में फंसवा सकती है। यह क्यों भूलते हो तुम---।"

जवाब में जगमोहन मुंह बिचका कर रह गया।

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई और रेस्टोरेन्ट पर निगाह मार कर बोला---

“नीना पाटेकर अन्दर है?"

"हां। रेस्टोरेन्ट के ऊपरी हिस्से में।" जगमोहन बोला--- "खिड़की पर से एक झलक देखी थी उसकी। इस बात को घन्टा हो चुका है।"

"ठीक है, मैं उससे मिलकर आता हूं।" कहने के साथ देवराज चौहान रेस्टोरेन्ट की तरफ बढ़ गया। शाम के साढ़े आठ बजे थे।

■■■

देवराज चौहान सब की निगाहों से बचकर रेस्टोरेन्ट के पीछे वाले हिस्से में पहुंचा और ऊपर जाने वाली सीढ़ियां चढ़ने लगा। सीढ़ियां समाप्त ही हुई थीं कि उसकी कमर से रिवाल्वर की नाल सट गई।

देवराज चौहान ठिठका।

“कौन हो तुम?” नीना पाटेकर का सख्त स्वर उसके कानों में पड़ा।

देवराज चौहान ने निगाहें घुमाकर देखा तो दांई ओर पाटेकर को खड़े पाया। वह उसे खतरनाक निगाहों से देख रही थी।

“रिवाल्वर हटा लो, मैं तुम्हारा दोस्त ही हूं।"

“तुम्हारा आदमी ही मेरे रेस्टोरेन्ट की निगरानी कर रहा है?"

"हां।"

"क्यों?"

“क्योंकि मुझे तुम्हारे पास आना था और मैं जानना चाहता था कि तुम यहां मौजूद हो या नहीं।"

“यहां क्यों आये हो?” नीना पाटेकर की आवाज में सख्ती थी।

“रिवाल्वर हटा लो तो फिर आराम से बातें हों।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।

“पुलिस के आदमी हो?"

“पागल हो गई है। मेरा नाम देवराज चौहान है। क्राईम वर्ल्ड से सम्बन्ध रखता हूं।"

नीना पाटेकर के मस्तिष्क को झटका लगा।

“देवराज चौहान!"

देवराज ने सहमति में सिर हिलाया।

“हाथ ऊपर करो और कमरे के बीच जाकर मेरी तरफ मुंह करके खड़े हो जाओ। देवराज चौहान की तस्वीर मैं अखबारों में देख चुकी हूं। मुझे अपना चेहरा दिखाओ।"

दोनों हाथ ऊपर उठाकर देवराज चौहान कमरे के बीच पहुंचा और नीना पाटेकर की तरफ मुंह करके खड़ा हो गया। दो पल नीना पाटेकर ने उसका चेहरा देखा, फिर रिवाल्वर जेब में डालकर दरवाजा बन्द कर लिया।

“तसल्ली हो गई ?”

जवाब में नीना पाटेकर ने सिर हिला दिया।

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई और सोफे पर बैठ गया।

"मुझे हैरानी है कि तुम जैसी शख्सियत यहां, मेरे पास।" नीना पाटेकर ने सिगरेट सुलगाकर कश लिया--- “मेरा पता तुझे किसने बताया?"

"देवराज चौहान को जिसके पते की जरूरत होती है, वह जान लेता है।"

नीना पाटेकर सिर हिलाकर रह गई।

“क्या लोगे, व्हिस्की-बीयर, चाय-कॉफी, कोल्ड ड्रिंक्स या---।"

“कुछ नहीं। मेरा साथी नीचे खड़ा है।"

"उसे भी ऊपर ले आते।”

"नीचे का ध्यान भी रखना जरूरी था।”

नीना पाटेकर ने पुनः सहमति से सिर हिलाया ।

“कुछ खास ही काम होगा मुझसे ?"

"हां, खास ही काम था।" देवराज चौहान ने सिर हिलाया--- “आजकल क्या कर रही हो?"

"कुछ नहीं।" नीना पाटेकर ने सपाट स्वर में कहा।

“सुना है, कोई तुम्हारा सारा माल ले उड़ा?”

"हां। मेरी सारी जमा पूंजी कोई हरामजादा ले उड़ा है। बहुत ढूंढा उसे---मेरे हाथ नहीं आया। बहुत बड़ा हरामजादा होगा। छोटा-मोटा होता तो पकड़ में आ गया होता।" नीना पाटेकर ने दांत भींचकर कहा--- “तुम अपनी कहो।"

“काम करने का इरादा है तेरा?”

नीना पाटेकर ने देवराज चौहान की आंखों में झांका।

"इन दिनों मैं एक-एक पैसे को लेकर तंग हूं। तुम्हारे साथ काम करके मुझे खुशी होगी।"

“यानी कि काम जाने बिना ही काम के लिए तैयार हो।"

"हां। बस इतना बता दो पल्ले क्या पड़ेगा?"

"करोड़ के आसपास।"

"फिर तो चिन्ता की कोई बात नहीं।"

"तुमने तो नहीं पूछा, परन्तु मैं बता देता हूं कि मैंने क्या करने की सोची है।"

"रहने दो।" नीना पाटेकर ने हाथ उठाकर, देवराज चौहान को रोका--- "मत बताओ, मुझे तुम पर पूरा भरोसा है कि तुम जो भी काम करने की सोचोगे, ठीक सोचोगे। बहुत नाम सुन रखा तुम्हारा। बस इतना बता दो कि काम शुरू कब होगा?"

"दस-पन्द्रह दिन तक।"

"ठीक है। वैसे तो मैं यहीं बंद रहती हूं। कहीं भी आती-जाती नहीं और अगले पन्द्रह दिनों तक मैं हर पल यहीं रहकर, तुम्हारे आने का इंतजार करूंगी।"

देवराज चौहान ने मुस्कुराकर सिर हिलाया और उठ खड़ा हुआ। नीना पाटेकर की आंखों में तीव्र चमक विराजमान हो चुकी थी। मस्तिष्क में एक करोड़ घूम रहा था। अगर इतना माल हाथ लग जाये तो सारा नुकसान पूरा हो जायेगा।

"बहुत जल्द दोबारा मुलाकात होगी।"

"मुझे तुम्हारे आने का इंतजार रहेगा।"

देवराज चौहान ने आगे बढ़कर दरवाजा खोला और सीढ़ियां उतरता चला गया।

■■■

देवराज चौहान और जगमोहन जब उस्मान अली के ठिकाने पर पहुंचे तो रात के दस बज चुके थे। उस्मान अली एक कमरे के छोटे से घर में रहता था। उस वक्त वह घर पर नहीं था। इस वक्त कहां होगा, यकीन के साथ कुछ भी नहीं कहा जा सकता था। देवराज चौहान ने दरवाजे पर लटका छोटा-सा ताला खोला और जगमोहन के साथ भीतर प्रवेश कर गया।

भीतर एक चारपाई और दो कुर्सियां पड़ी थीं।

दोनों कुर्सियों पर जा बैठे।

"इस तरह कब तक उस्मान अली का इंतजार किया जायेगा?" जगमोहन बोला।

"जब तक वह नहीं आयेगा।" देवराज चौहान ने जवाब दिया।

“फिर तो हमें काफी इंतजार करना पड़ सकता है।"

“देखते हैं।"

"उस्मान अली से हम कल भी तो मिल सकते हैं।"

"अभी हमें बहुत काम करने हैं जगमोहन। काम की इतनी लम्बी लिस्ट हमारे पास है, इसलिये जो काम पूरा हो जाये वही अच्छा। उस ठिकाने का इंतजाम करना है जहां बैंक डकैती के बाद माल ले जाना है। कारों का इंतजाम करना है। और भी जाने क्या-क्या करना है। जबकि हमारे पास बारह दिन पड़े है। सबको इकट्ठा करके योजना समझानी है। अगर किसी ने योजना में कमी निकाल दी तो, उस पर भी गौर करना पड़ेगा। आज के काम को कल पर छोड़ते रहे तो सारे काम अधूरे ही रह जायेंगे।"

जवाब में जगमोहन ने खामोशी से सिगरेट सुलगा ली।

रात को साढ़े बारह के आसपास उस्मान अली अपने ठिकाने पर आया। दरवाजा खुला और भीतर दो अंजान लोगों को बैठा पाकर हड़बड़ा उठा।

"मेरे भाइयों!" उस्मान अली जल्दी से बोला--- “तुम लोगों ने गलत ताला खोल दिया है। इस घर में तुम लोगों को कुछ नहीं मिलेगा। अगर हाथ मारना ही है तो मेरे साथ चलो। दो-तीन घर मेरी नजर में हैं। दिखा देता हूं।"

"उस्मान अली।" देवराज चौहान मुस्कुराया--- “जो हाथ मारने आते हैं, वह इस तरह आराम से कुर्सियों पर बैठते नहीं।"

उस्मान अली ने दोनों को ध्यान से देखा।

"मैंने तुम लोगों को पहले कभी नहीं देखा, इसलिए मेहमान तो हो नहीं सकते। फिर बन्धुओं, आराम से मेरे घर का ताला तोड़कर कुर्सियों पर क्यों बैठे हो। मेरे आने का इंतजार कर रहे थे?"

"हां। बैड पर बैठो, तुमसे बात करनी है।"

असमंजसता में घिरा उस्मान अली आगे बढ़कर बैड पर जा बैठा। देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई और कश लेकर शांत स्वर में बोला---

"आजकल क्या कर रहे हो?"

"कौन हो तुम लोग?"

"शक में न पड़ो। मेरा नाम देवराज चौहान है। और यह मेरा दोस्त जगमोहन।"

"देवराज चौहान!" उस्मान अली बड़बड़ाया।

"हां। कई डकैतियां डाल चुका हूं।"

"याद आया।" उस्मान अली बीच में ही बोल पड़ा--- "दो तीन महीने पहले ही अखबारों में तुम्हारी तस्वीर देखी थीं। हां, अब पहचान रहा हूं। वह तस्वीर तुम्हारी ही थी। लेकिन तुम लोग मेरे यहां! हैरानी। इतनी बड़ी हस्ती....मेरे घर में क्यों....मैंने तो तुम लोगों के खिलाफ कुछ नहीं किया....मैं तो....।"

"बीच में मत बोलो।" देवराज चौहान ने कहा--- “हम तुमसे बात करने आये हैं।"

"क्या ?"

"हमें मालूम हुआ है तुम बड़ा हाथ मारने के ख्वाहिशमंद हो।"

“तुम्हें किसने बताया?” उस्मान अली का मुंह खुला का खुला रह गया।

"अपने ढंग से हमने मालूम कर लिया। तुम अपनी कहो।”

“हां।" उस्मान अली ने सहमति से सिर हिलाया।

“हमारे साथ मिलकर कुछ करना चाहते हो?"

“तुम्हारे साथ?” हैरानी से उस्मान अली का मुंह खुला का खुला रह गया।

"हां?"

"क्या ?"

“बैंक डकैती।”

"डकैती!” पलभर के लिए उस्मान अली की जान खुश्क हुई।

“हां। मोटी बैंक डकैती होगी। तगड़ा माल हाथ आयेगा। करोड़ों का माल। बस हौसले की जरूरत है। अगर तुममें हौसला हो तो हमारे साथ काम कर सकते हो।”

उस्मान अली की सांस वापस लौटी।

“हौसले की आखिरी किश्त दिलो-दिमाग में बची है।" उस्मान अली ने होठों पर जीभ फेरी--- "कई बार सोचता था कि कहीं यह किश्त खत्म न हो जाये, उससे पहले ही कुछ कर लूं। कुछ ऐसा कर लूंगा कि बुढ़ापे की चिन्ता न रहे। लेकिन अकेला कुछ भी करने का हौसला जुटा नहीं पाता था और मेरे लिए साथियों को जुटा पाना असम्भव था, अगर साथी इकट्ठे भी कर लेता तो उन्हें कमाण्ड करना मेरे लिए आसान नहीं होता। कहां बड़ा हाथ मारना है? किस तरह मारना है, इन बातों की कहां समझ है मुझे।"

“तैयार हो ?”

“सौ प्रतिशत।”

“सोच लो उस्मान अली। मौत के बराबर का खतरा है इस बैंक डकैती में साठ प्रतिशत बचने की और चालीस प्रतिशत मरने की उम्मीद है। यानी कि आधा-आधा।"

"देवराज चौहान।" उस्मान अली उसकी बात काटकर बोल पड़ा--- "क्राइम की दुनिया का क....ख....ग....मुझे मत सिखाओ। सारी जिन्दगी मैंने इसी काम में बिताई है। जान देने वाली बात है--- जिस डकैती से करोड़ों रुपया हासिल होना हो, इसी से हिसाब लग जाता है कि मामला कितना खतरनाक होगा। परवाह नहीं। रहेंगे या अल्ला के पास जायेंगे। यूं कौन-सा प्रसन्न रह रहे हैं। रो धोकर पेट ही भर रहा हूं। मोटा हाथ मारने का मौका मिला है, जिसे मैं किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ सकता।"

"ठीक है।” देवराज चौहान खड़ा हुआ तो जगमोहन भी खड़ा हो गया--- "मैं कुछ ही दिनों में काम शुरू करने जा रहा हूं। कोशिश करना कि हर समय यहीं रहो और हमारे बुलावे का इंतजार करो।"

उस्मान अली ने सहमति से सिर हिला दिया।

देवराज और जगमोहन बाहर निकल गये।

■■■

अगले दिन सुबह मंगल पांडे शामली के घर पहुंचा। उसे देखते ही शामली चहक उठी।

“तुम इतनी सुबह-सुबह ? खैरियत तो है?"

“खैरियत है जानेमन...मन किया....चला आया।”

"लेकिन इतनी सुबह तो तुम पहले कभी नहीं आये।” वह बोली ।

“तुम सही कह रही हो....जेब खाली थी, इसलिए आना पड़ा।"

"मैं समझी नहीं---।"

“अब तू क्यों समझेगी? मुझे माल चाहिए.... पैसा समझी!"

“कितने?”

“तेरे पास कितने हैं?"

“मेरी बात छोड़--- तू अपनी कह। कितने में तेरा काम चल जाएगा?"

“दो-तीन हजार दे दे।”

शामली दूसरे कमरे में गई और चंद क्षणों बाद नोट लेकर लौटी।

मंगल ने नोट थामे और फिर अपनी जेब के हवाले किये।

"मंगल, एक बात कहूं।"

"दो कह।"

"ऐसा कब तक चलेगा?"

"तू कहना क्या चाहती है?"

"यही कि कुछ कर....कोई भला काम कर।"

“भला काम क्या है.... मैं नहीं जानता....लेकिन कुछ ऐसा काम कर रहा हूं कि कुछ ही दिनों में जिन्दगी के क्लेश कट जायेंगे।"

"ऐसा क्या करने वाला है तू---।"

"तेरे को बताने का नहीं है।"

"क्या तू मुझे अपना नहीं समझता ?"

"अपना न समझता तो यह भी न बताता। काम होते ही तेरे पैसे ब्याज सहित लौटा दूंगा।"

“तेरे से पैसे मांगे हैं मैंने....? सब तेरा ही माल तो है।"

मंगल ने मुस्कुरा कर शामली का गाल मसला....और पलट कर बाहर चला गया। शामली उसे देखती रह गई....उसने कभी मंगल को ग्राहक नहीं समझा। न ही वह ग्राहक बनकर उसके पास आता था।

उसके देखते-ही-देखते खूबचन्द ने भीतर प्रवेश किया और उखड़े स्वर में बोला---

"क्यों आया था वह यहां ?"

“काम था।"

“क्या काम था।”

"पैसे लेने आया था.... आजकल कड़की में है।"

"बाहर खड़ा मैं सब सुन रहा था....कोई मोटा हाथ मारने जा रहा है वह।”

शामली ने सहमति में सिर हिला दिया।

"उसने यह नहीं बताया कि कहां हाथ मारने जा रहा है?"

"नहीं।"

“उसे बातों में लगाकर पूछना।"

"क्यों?"

“क्यों? मत पूछ....जो मैंने कहा, वही करना तू।"

शामली ने गहरी निगाहों से उसे देखा।

“तू कहना क्या चाहता है?"

“कुछ नहीं।"

"तो फिर मंगल के कामों से तुझे क्या वास्ता पड़ गया?"

"पड़ गया।"

"मुझे तो लगता है कि पागल हो गया है तू ।"

"होश में रहकर बात कर.... अगर मंगल सुन लगा तो हड्डियां तोड़कर रख देगा।”

“कौन बताएगा उसे...तू..?”

"मुझे क्या पड़ी है। लेकिन याद रख, दीवारों के भी कान होते हैं।"

“शामली।”

“चिल्ला मत, आराम से बात कर ।" खूबचन्द को महसूस हो गया कि वह शामली को ठीक ढंग से सम्भाल नहीं पाया, उसे सोच-समझ कर बात करनी चाहिए।

"शामली, मेरी बहन.... मैंने तेरे लिए कितने सारे सपने संजोये हैं। तुझे दुल्हन बनाकर अच्छे से घर में विदा करने का...तेरी शादी किसी अच्छे, शरीफ और ऊंचे खानदान के लड़के से करने का सपना है मेरा....लेकिन ये सपना तब तक पूरा नहीं हो सकता, जब तक दौलत हाथ न आ जाए। आजकल दौलत पाने के ही रास्ते तलाश कर रहा हूं। इसलिए जानना चाहता हूं कि मंगल कौन-से काम में हाथ डाल रहा है? लेकिन तू है कि मानती ही नहीं। क्या अपने भाई के सपने को पूरा नहीं होने देगी?" खूबचन्द ने कहा।

मन-ही-मन हैरान शामली ने खूबचन्द को गौर से देखा।

“तू जा अब....मुझे आराम करने दे ।”

खूबचन्द पलटकर बाहर चला गया। वह जानता था कि उसकी बातों ने शामली पर असर किया है। शायद उसका तीर चल जाये।

■■■

कमरे में तीखा सन्नाटा व्याप्त था।

वहां पर मंगल पांडे, उस्माल अली, नीना पाटेकर और डालचन्द मौजूद थे। एक तरफ कुर्सी पर जगमोहन जमा हुआ था। सबकी निगाहें सामने बैठे देवराज चौहान पर टिकी थीं ।

"तुम सब लोग जानते हो कि हम डकैती डालने जा रहे हैं।" देवराज ने खामोशी को तोड़ा--- "डकैती किस बैंक में डालनी है... क्या प्लान बनाया है मैंने... तुम सभी को बताता हूँ।"

कहने के साथ ही देवराज चौहान ने सब पर निगाह डाली।

"वजीर चन्द प्लेस में हिन्दुस्तान बैंक की बेहद व्यस्त शाखा है। उसी में डकैती डालने का प्लान है।"

"यह तो बहुत बिजी इलाका है-- वहां डकैती डालना इतना आसान नहीं होगा।" उस्मान अली ने कहा।

"अगर सावधानी से चला जाए तो कोई भी काम... कठिन नहीं।"

"मेरे ख्याल से वह बड़ी ब्रांच है.....वहां दो सौ से ज्यादा आदमी काम करते हैं।" नीना ने विचार भरे स्वर में कहा।

“तुम्हारा ख्याल सही है।" बोला देवराज चौहान।

“दो सौ स्टाफ के और इतने हर समय बतौर ग्राहक के... इतने आदमियों के बीच डकैती का सफल होना इतना आसान नहीं। होगा।" नीना पुनः बोली ।

"हम फंस भी सकते हैं।" देवराज चौहान ने कहा--- "मारे भी जा सकते हैं और सफल होकर करोड़ों की दौलत के साथ यहां से खिसक भी सकते हैं। हर बात के पूरे-पूरे चांस हैं।"

“तुम्हारा प्लान क्या है?"

देवराज ने सिगरेट सुलगाकर एक गहरा कश लिया....फिर कहना शुरू किया---

"वजीर चन्द प्लेस बहुत ही बड़ा और छः-मंजिला... व्यावसायिक संस्थान है। वहां का ग्राउण्ड फ्लोर आया तो हिन्दुस्तान बैंक ने ले रखा है और आधे हिस्से में देश के सुप्रसिद्ध कपड़े बनाने वाली मिल का शोरूम है और ऊपर की छः-मंजिलों पर बड़ी-बड़ी कम्पनियों, मिलों व कई तरह के बिजनेस मैनों ने अपने-अपने ऑफिस बना रखे हैं। हजारों कर्मचारी वहां काम करते हैं। लगभग हर कम्पनी का खाता हिन्दुस्तान बैंक में है। इसी कारण रोज लेन-देन ही एक करोड़ से ऊपर का हो जाता है।"

देवराज चौहान क्षण भर के लिए रुका।

तभी मंगल पांडे बोल उठा---

"तो क्या तुम उसी पैसे पर हाथ साफ करने की सोच रहे हो?”

"नहीं....! आप लोगों ने मुलखराज एण्ड कम्पनी का नाम तो सुना होगा... उसकी शिपिंग कम्पनी है... कई मिलें हैं.... शोरूम हैं और भी न जाने कितने बिजनेस उसने फैला रखे हैं। उसका ऑफिस दूसरी मंजिल पर है। महीने की आखिरी तारीख को यह कम्पनी हिन्दुस्तान बैंक से अपने वर्करों की तनख्वाह के साथ-साथ साढ़े चार करोड़ रुपया और निकलवा रही है।"

“वह किसलिए?” उस्मान अली ने पूछा।

"मुलखराज विदेश से शिपिंग कम्पनी के लिए एक जहाज खरीद रहा है। उसी की अग्रिम राशि देने के लिए यह पैसा निकाला जा रहा है। यानी आज से तीन दिन बाद बैंक से निकलवाई जाने वाली रकम साढ़े पांच करोड़ के आस-पास होगी।"

“ओह.... वण्डरफुल... फिर तो मजा आ जायेगा....।" मंगल पांडे ने कहा।

“जितना रिस्क हम उठा रहे हैं, उस हिसाब से यह रकम कम है।” देवराज चौहान ने कहा।

“क्या मतलब?” उस्मान अली चौंका।

“मुलखराज कम्पनी की तरह ही सेवाराम मेवाराम इम्पोर्ट एक्सपोर्ट कम्पनी है। विदेशों में करोड़ों का व्यापार होता है इसका। इस कम्पनी ने किसी विदेशी कम्पनी से चार करोड़ का माल मंगवाया है जिसका पेमेन्ट पहली तारीख को होना है। यानी कि सेवाराम-मेवाराम कम्पनी एक तारीख को हिन्दुस्तान बैंक से चार करोड़ कैश निकालेगी।”

चन्द क्षण बाद वह पुनः बोला---

“यानी दोनों कम्पनियों द्वारा निकाली जाने वाली कुल रकम साढ़े नौ करोड़ के आसपास होगी। अगर हम....मुलखराज एण्ड कम्पनी की साढ़े पांच करोड़ की रकम को महीने की आखिरी तारीख को न निकलने दें तो एक तारीख को बैंक में साढ़े नौ करोड़ रुपया होगा और पहली तारीख ही हमारी डकैती का दिन होगा। अगर हम समझदारी से काम लें तो बैंक लूटने में सफल हो सकते हैं।"

“तुम्हारा दिमाग खराब हो गया लगता है।" मंगल पांडे तेज स्वर में बोला।

"क्या मतलब?”

“तुम क्या समझते हो कि इतना पैसा बिना सुरक्षा के वह वैन में भरकर ले जाएगा?"

"मैंने यह तो नहीं कहा कि तुम जाओ और रुपया उठा लाओ। करोड़ों रुपया पाने के लिए खतरा उठाना ही पड़ेगा।"

तभी नीना बोल पड़ी---

"यह तो पहली तारीख की बात है। पहले इकत्तीस तारीख की बात करो। हम मुलखराज एण्ड कम्पनी को एक दिन के लिए बैंक से रुपया निकालने से कैसे रोक सकते हैं?"

"रोकना है... हर हाल में रोकना है। उस दिन सुबह बैंक खुलते ही वहां इस तरह से बम बरसाये जाएं कि बाहर खड़े वाहनों के अलावा और कोई नुकसान न हो....ऐसा होते ही वहां पुलिस इकट्ठी हो जायेगी और हालात को देखते हुए मुलखराज एण्ड कम्पनी को भेजी जाने वाली वह रकम बैंक से नहीं निकाली जायेगी। कम-से-कम एक दिन के लिए तो बैंक सील हो ही जायेगा।"

“वास्तव में सही सोचा है तुमने....।" मंगल पांडे ने कहा।

“लेकिन डकैती का क्या प्लान है?" नीना पाटेकर ने पूछा।

“जब हम फिर से इकत्तीस तारीख को यहां पर इकट्ठे होंगे, तब डकैती का प्लान बताऊंगा।”

सभी अपनी कुर्सियों से उठकर खड़े हो गये।

इससे पहले कि वह लोग बाहर निकलते, मंगल पांडे ने होंठ गोल करके नीना पाटेकर को देखा और चटकारा लेकर कह उठा---

“क्या चीज हो जानेमन! एक-एक हिस्सा फिट है।"

सबकी निगाहें तुरन्त मंगल पांडे की तरफ गईं।

नीना पाटेकर की आंखें सिकुड़ीं ।

“तुमने यह शब्द मुझसे कहे?” नीना पाटेकर बोली।

“यहां पर दूसरी हसीना है ही कौन जिसे कह सकूं। फुर्सत में है तो चल। कहीं पर बैठकर प्यार-मोहब्बत की दो-चार बातें करते हैं।"

जवाब में एकाएक पाटेकर मुस्कुरा पड़ी।

“यह तो मजबूरी है कि इस समय तेरे साथ यहां पर हूं। वरना मुझे तो तेरा थोबड़ा भी पसन्द नहीं!" पाटेकर ने कड़वे स्वर में कहा।

“लेकिन मुझे तो तेरा सब कुछ पसन्द है।" मंगल पांडे ढीठता से कह उठा।

तभी डालचन्द झपट्टा मारने वाले अन्दाज में मंगल पांडे के सामने जा पहुंचा। कोई कुछ समझता, डालचंद का जबरदस्त घूंसा मंगल पांडे के गाल पर पड़ा।

अचानक पड़ने वाले घूंसे से मंगल पांडे सम्भल नहीं सका और लड़खड़ा कर पीछे हो गया। अगले ही पल सुर्ख आंखों से वह डालचंद को देखने लगा। डालचंद के चेहरे पर गुस्सा नाच रहा था।

"तेरी इतनी हिम्मत कि मुझ पर हाथ उठाये।" मंगल पांडे गुर्राया।

"तेरे को औरतों से बात करने की तमीज नहीं है क्या?" डालचंद ने दांत भींचकर कहा।

"मेरे को औरतों को इस्तेमाल करने की तमीज है।" मंगल पांडे ने खतरनाक स्वर में कहा--- “तमीज से बात करने के लिये तेरे जैसे बेवकूफ बहुत हैं दुनिया में... ।"

“साले...कुत्ते....।" डालचंद गुर्राकर मंगल पांडे पर झपटा।

उसी पल पांडे ने रिवॉल्वर निकाल ली।

डालचंद ठिठका। गुस्से से उसका चेहरा भर उठा।

नीना पाटेकर सतर्क सी हो गई थी पांडे के हाथ में रिवॉल्वर देखकर ।

“तू बात को बढ़ा रहा है पांडे।" डालचंद उखड़े स्वर में बोला।

"बीच में से हट जा। ये मेरा और इस छोकरी का मामला है।" मंगल ने रिवॉल्वर वाला हाथ हिलाया।

जगमोहन ने देवराज चौहान पर नजर मारी।

देवराज होंठ सिकोड़े मंगल पांडे को देख रहा था।

"रिवॉल्वर जेब में रख ले।" डालचंद का मामले से हटने का इरादा नहीं लगा।

"नहीं हटा तो पहले तू मरेगा।" मंगल पांडे दांत किटकिटा उठा।

तभी नीना पाटेकर मंगल पांडे पर झपटी ।

मंगल, नीना के प्रति कुछ असावधान हो गया था।

नीना पाटेकर ने उसकी रिवॉल्वर वाली कलाई पर हाथ मारा और दूसरे ही पल रिवॉल्वर उसके हाथ में थी। पाटेकर ने रिवॉल्वर डालचंद की तरफ उछाल दी।

डालचंद ने रिवॉल्वर लपक ली।

ये सब दो पलों में गया।

मंगल पांडे के होंठों से गुर्राहट निकली और पाटेकर पर पलट पड़ा--- “साली, तेरी तो---।"

पाटेकर ने जोरों का घूंसा मंगल पांडे के पेट पर ठोक दिया।

मंगल पांडे पेट थामे पीड़ा से दोहरा हो गया।

उसी पल गुस्से से भरा डालचंद, मंगल पांडे की तरफ बढ़ा।

तभी देवराज चौहान बीच में आ गया। उसने डालचंद को पीछे धकेल कर कठोर स्वर में कहा---

“अपने पर काबू रखो डालचंद ।”

"मैं काबू रखूं। और ये ये---।"

देवराज चौहान ने सख्त निगाहों में मंगल पांडे को देखा।

"हम यहां पर काम करने के लिए इकट्ठा हुए हैं। लड़ाई झगड़ा करने या किसी का जिस्म देखने के लिये नहीं। हम सब यहां एक-दूसरे के साथी हैं।" देवराज चौहान ने एक-एक शब्द चबाकर कहा--- "काम के दौरान कोई गड़बड़ी फैलाने की कोशिश ना करे। पांडे, इस मामले में गलती तुम्हारी है और दोबारा ऐसी गलती नहीं होनी चाहिये।"

"किसी औरत को बुरी नजरों से देखना या उसके बारे में बुरा कहना गलत बात है।" डालचंद बोला--- “ऐसा कहने से पहले सोच लेता कि तेरे घर में भी मां-बहन हैं।"

नीना पाटेकर डालचंद को शांत निगाहों से देख रही थी।

पांडे ने मौत की सी निगाहों से डालचंद को देखा।

"जगमोहन!” देवराज चौहान बोला--- "पांडे को चालीस हजार रुपये दे दे।"

"क्यों?"

“इकत्तीस तारीख के लिए बमों का इन्तजाम करेगा ये ।" देवराज चौहान ने कहा ।

जगमोहन ने चालीस हजार पांडे को दे दिए।

पांडे ने नोट जेबों में डाले और डालचंद को घूरा। देख लेने वाले अन्दाज में। आंखों में खतरनाक भाव लहरा रहे थे। फिर नीना पाटेकर को देखा।

पाटेकर ने अपने जिस्म पर मंगल पांडे की नजरों को चुभता महसूस किया।

“क्या बात है पांडे?” एकाएक जगमोहन बोला। देखा।

"कुछ नहीं।" पांडे ने मुस्कराकर जगमोहन को देखा।

“तूने काम करना है कि नहीं?”

"करना क्यों नहीं?"

“तो अपनी नजरें सीधी रख। अब की बार ऐसा कोई पंगा उठा तो तेरी खैर नहीं।" जगमोहन ने सख्त स्वर में कहा।

"ऐसा दोबारा नहीं होगा।" मंगल पांडे बराबर मुस्करा रहा था, फिर डालचंद से बोला--- “मेरी रिवॉल्वर दे।"

डालचंद ने रिवॉल्वर अपनी जेब में डाली और कह उठा---

“कल दूंगा ।"

"मुझे अभी चाहिये।" पांडे के माथे पर बल पड़े।

"नहीं। अभी नहीं। कल से पहले तेरे को रिवॉल्वर नहीं मिलेगी। तूने मेरे ऊपर रिवॉल्वर तानी तो इतना मेरा हक बनता है कि एक दिन तुझे रिवॉल्वर से दूर रखूं।"

"देख लूंगा तुझे।" मंगल पांडे ने खा जाने वाले स्वर में कहा फिर जेब में रखे चालीस हजार को टटोलता पलट कर बाहर निकल गया।

उसके जाने के बाद नीना बोली---

“तुम्हें उसके सामने नहीं आना चाहिए था ।"

“क्यों?" डालचंद ने उखड़े स्वर में कहा।

“पांडे बहुत खतरनाक है और तुम शरीफ आदमी हो।"

“साला खतरनाक होगा अपने घर का...मैं किसी भी औरत की बेइज्जती बर्दाश्त नहीं कर सकता। वह तो तेरी इज्जत उतारने पर आमादा था।"

“तो तेरा क्या जा रहा था?"

"अजीब लड़की है तू! क्या उस भेड़िये को...।"

"नहीं, मेरा यह मतलब नहीं था। मैं तो यह कह रही थी कि मैं मामला संभाल लेती....तुझे बीच में नहीं आना चाहिए था....वह खतरनाक है...खून-खराबा उसका पेशा है....तेरे को फाड़कर रख देगा वह।"

"जब ऐसा वक्त आयेगा तो देख लेंगे।"

उस्मान अली ने देवराज चौहान को देखा।

“तुम बीच में क्यों नहीं आये?"

"जरूरत नहीं समझी....।" बोला देवराज चौहान--- "डालचंद को बीच में नहीं आना चाहिए। उससे सावधान रहना डालचंद। वह नाग से कम खतरनाक नहीं। पीछे से भी डस सकता है।"

"ऐसे आदमी को अपने साथ मिलाने की क्या जरूरत थी?" उस्मान ने कहा।

“जो काम हम करने जा रहे हैं, उसमें ऐसा खतरनाक इंसान भी चाहिए था। वह कई डकैतियां डाल चुका है, और हम डकैती डालने जा रहे हैं। इन मामलों में वह बहुत एक्सपर्ट है। अगर वह औरतों का रसिया न होता तो अब तक बहुत तरक्की कर चुका होता।" देवराज ने कहा।

नीना पाटेकर ने सिगरेट का एक कश लिया और डालचंद को देखने लगी।

देवराज चौहान बोला---

"अब तुम लोग जाओ.... कल शाम को आ जाना।"

■■■

खूबचन्द साये के समान मंगल पांडे के पीछे लगा हुआ था।

पांडे पर निगाह रखकर ही उसने देवराज चौहान का ठिकाना देखा। बाद में उसने वहां से सबको एक-एक करके निकलते देखा। पहले मंगल पांडे निकला था... जो कि कुछ गुस्से में लग रहा था।

फिर उस्मान अली निकला।

खूबचन्द उसे पहचान तो न सका.... परन्तु इतना तो समझ ही गया कि यह आदमी दो नम्बर के धन्धे का मालिक होगा।

फिर उसने नीना पाटेकर और डालचंद को एक साथ निकलते देखा ।

नीना को देखते ही वह ओट में हो गया.....जोरों से दिल धड़क उठा।

नीना को वह अच्छी तरह से पहचानता था।

मंगल! नीना! जगमोहन! और दो अन्य जिन्हें वह पहचानता नहीं।

खूबचन्द के कान तो क्या दिमाग की इन्द्रियां भी खड़ी हो गयीं। इतने खतरनाक-खतरनाक लोग इकट्ठे हुए हैं तो मामला अवश्य खतरनाक है..... और उसे यह जानना है कि मामला क्या है?

■■■

नटियाल के बार तक आते-आते पांडे तनाव मुक्त हो चुका था। अब उसके दिमाग में बम और डकैती थी....यह जुदा बात थी कि कभी-कभार उसकी आंखों के सामने नीना का जानलेवा हुस्न-भरा शरीर घूम जाता था।

मोटे नटियाल ने खोजभरी निगाह मंगल पांडे पर मारी ।

पांडे बार काउन्टर पर पहुंचा।

तभी मोटे नटियाल का स्वर उसके कानों में पड़ा---

“साहब को एक बढ़िया पैग बनाकर दो....इन्हें व्हिस्की की जरूरत है।"

पांडे नटियाल की ओर घूमा।

“तेरी तबीयत तो ठीक है न?"

"मेरी तो ठीक है....लेकिन मुझे तेरी ठीक नहीं लग रही।"

“क्या मतलब?"

"पहले पैग पी ले, तब मेरी बात आसानी से तेरे समझ में आएगी।"

तभी बारमैन ने व्हिस्की का एक पैग बनाकर काउंटर पर रख दिया।

मंगल ने एक ही सांस में पैग खाली कर दिया।

“और पीनी हैं.... ?”

“जल्दी क्या है......?" पांडे ने लापरवाही से कहा--- “पी लेंगे।"

"आ।"

"कहां?"

"मेरे साथ कमरे में....तुझसे बात करनी है।"

“अभी करनी है?"

"हां।"

“चल।"

वह दोनों गैलरी पार करके पीछे वाले कमरे में जा पहुंचे।

कुर्सी पर बैठने के बाद पांडे ने सिगरेट सुलगाई और कश लेते हुए बोला---

"बता अब-- क्या कहना चाहता है तू?"

“तूने आज तक जो भी काम किया....मुझे बताया कि तू क्या करने जा रहा है....। जरूरत पड़ने पर मैंने सलाह भी दी तुझे।"

“दी।"

"तो अब तेरा मुंह क्यों बन्द है?"

"समझा नहीं।"

"उस दिन कौन आया था तेरे से मिलने.... जिसे कमरे तक ले आया था? मैंने तो उसकी सूरत पहले कभी नहीं देखी थी।"

पांडे खामोश रहा।

"नहीं मुंह खुल रहा न उसके बारे में...अच्छा छोड़ इसे ... यह बता आ कहां से रहा है?"

“यूं ही घूमने गया था।"

"घूमने गया था! ठीक है।" नटियाल ने सिर हिलाया--- "खड़ा हो।"

“क्या?"

पांडे ने उसे हैरानी से देखा।

"खड़ा तो हो---।"

असमंजसता में घिरा पांडे खड़ा हो गया।

"नोटों की गड्डियां निकाल।"

पांडे ने जेब में हाथ डाला और चारों गड्डियां उसने मेज पर रखी दीं।

“चालीस हजार.... ये कहां से मिला तुझे?"

पांडे के चेहरे पर बेचैनी की लहरें उभरीं।

"मंगल.... आज मुझे तेरे व्यवहार पर हैरानी हो रही है। मैंने तुझे दोस्त कम और भाई ज्यादा माना है। तेरा रवैया मेरी समझ में नहीं आ रहा।"

“ऐसा नहीं है।”

“तो कैसा है?"

"मैंने आज तक तेरे से कुछ नहीं छुपाया।"

"तो आज क्यों छुपा रहा है?"

“आज तक मैंने अपनी योजना पर काम किया....इसलिए बताने में कोई हर्ज नहीं समझता था। लेकिन इस समय मैं किसी और की योजना पर काम रहा हूं....और उसने मना कर रखा है। बात आगे करने को। बस यही बात है।"

“जो आया था यहां, उसी की योजना पर काम रहा है तू?"

"हां।"

“ठीक है.... उसने मना किया और तूने बात आगे नहीं की। लेकिन क्या मैं भी आगे वाले लोगों में आता हूं...। अरे, मुझसे ये बात क्या बाहर जाएगी....? अरे बता तो।"

"वह देवराज चौहान था।" पांडे बोला।

"देवराज चौहान, वह खतरनाक आदमी ?"

"हां।"

"क्या काम करने जा रहा है?"

“साढ़े नौ करोड़ की बैंक डकैती।"

"इस काम में तू अकेला है....या दो-चार आदमी और भी हैं?”

“और भी हैं।

“वह भी तेरी तरह खतरनाक ही होंगे?"

"हां!"

और पांडे ने आज की हुई मीटिंग के बारे में उसे सब कुछ बता दिया। साथ ही नीना पाटेकर से हुए झगड़े के बारे में बता दिया।

"वह तो बहुत खतरनाक लड़की है। अगर वह तुझे... गोली मार देती तो?"

"छोड़ इन बातों को!” पांडे लापरवाही से बोला--- "मैं सबको देख लूंगा।"

"देखना डकैती के बाद। अभी नहीं। यह चालीस हजार किसलिए?"

"बम खरीदने के लिए।"

“तू रामविलास के पास चला जा। वो बमों का सारा इन्तजाम करा देगा।"

पांडे सिर हिलाकर बाहर निकल गया।

मोटा नटियाल वहीं कुर्सी पर बैठा भारी सोच में डूबा रहा।

■■■

मंगल पांडे ने शामली के घर में प्रवेश किया तो....खूबचन्द को लुंगी को दो दुनी चार किए एक कुर्सी पर बैठे पाया।

शामली उसे देखते ही चहक उठी---

“आज तो बहुत दिनों के बाद आया तू---।"

"टैम नहीं मिला तेरे पास आने को....। तू ठीक तो है न?"

“मैं बिल्कुल ठीक हूं.... ।”

“गला बड़ा खुश्क हो रहा है....।"

“अभी लाई।”

कुछ क्षण बाद शामली जब लौटी तो उसके हाथ में व्हिस्की से भरा एक गिलास था। वह पांडे के करीब बैठती हुई बोली---

“कहां था तू इतने दिन तक?”

“बोला न....टैम नहीं था।"

“क्या कर रहा है?”

“वही जो पहले करता था।" उसने कहा और एक ही सांस में पैग पी लिया।

शामली ने मंगल पांडे का हाथ अपने हाथ में थाम लिया।

“एक बात कहूं---।"

"कह।"

“बुरे काम छोड़ दे।"

“मैं तुझे कहूं कि धन्धा छोड़ दे तो क्या छोड़ देगी ?"

“हां.... छोड़ दूंगी....तू कह के तो देख---।"

"शरीफ कब से बन गई तू?"

"मजबूरी है। नहीं तो शरीफ मैं पहले से ही थी।"

"ठीक है। तू धन्धा छोड़ दे.... दस-पन्द्रह दिन में मैं तुझे इतना पैसा दे दूंगा कि तुझे पेट भरने की चिन्ता नहीं रहेगी।"

"कहां से आयेगा दस-पन्द्रह दिन में पैसा?"

"बैंक में डकैती डालने जा रहा हूं....यह मेरी जिन्दगी का आखिरी काम है। इसके बाद मेरे पास दौलत की कमी नहीं रहेगी... सारी जिन्दगी चैन से काटूंगा।"

"मंगल... अगर तुझे कुछ हो गया तो?"

"आज तक नहीं हुआ तो अब क्या होगा! तुझे अगर मेरे साथ जिन्दगी बितानी है तो अपना बोरिया-बिस्तर तैयार रख।"

कहने के बाद पांडे उठा और पलटकर बाहर निकल गया।

शामली उसे देखती रह गई।

■■■

पांडे के जाते ही खूबचन्द ने भीतर प्रवेश किया।

"मालूम किया?"

“क्या?” शामली ने उसे देखा।

“यही कि आजकल वह किस फिराक में है?"

“पूछा था....लेकिन उसने बताया नहीं।" वह लापरवाही से बोली।

“हरामजादी....झूठ बोलती है.... मैं सब सुन रहा था। वह किसी बैंक में डाका मारने जा रहा है।"

"सुना है तो मुझसे क्यों पूछता है?"

“ज्यादा उड़ मत मुझसे।" वह गुर्राया--- “किस बैंक में डाल रहा है डकैती?”

“तू सब सुन रहा था तो यह भी सुना होगा---।”

“यह नहीं सुना--- तभी तो पूछ रहा हूं।"

“इस बारे में वह कुछ नहीं बोला।"

“तूने पूछा क्यों नहीं?"

"वह जल्दी में था ।"

“हरामजादी! मेरे सामने चालाक बनती है।" खूबचन्द दांत पीसता हुआ आगे बढ़ा और उसकी बांह पकड़ कर ऐंठ दी--- “मैंने तेरे को जो काम पूरा करने को कहा वह..... तूने पूरा क्यों नहीं किया?"

"बांह छोड़ कमीने!" शामली दर्द से चीखी।

खूबचन्द ने गुस्से से झटका देकर उसकी बांह छोड़ दी।

"आज के बाद अपनी दादागिरी किसी और को दिखाना....अगर मेरे पे जोर आजमाइश की तो ठीक नहीं होगा....समझे।"

"अच्छा! तो फिर तू क्या करेगी?"

"तेरा खर्चा बन्द कर दूंगी....एक पैसा भी तुझे नहीं दूंगी।"

“शामली!”

“दफा हो जा यहां से.... चूहे जैसा दिल है....हिम्मत है नहीं और चला है मंगल के काम में दखल देने---।"

खूबचन्द दांत पीसता हुआ दूसरे कमरे में जाकर.....कपड़े चेंज करने लगा। उसने निश्चय किया कि पांडे के मामले में वह कुछ-न-कुछ करके रहेगा। अब वह डालचंद के घर का एक चक्कर लगा आना चाहता था।

■■■

डालचन्द घर पहुंचा तो साथ में ढेर सारा सामान उठाये हुए था।

"यह क्या है बेटा?" शारदा देवी उसे देखते ही चारपाई से उठ बैठी।

“घर का सामान है मां। ओ कमला....ले ये सारा सामान ठिकाने लगा दे।"

“आई भैया ।" दूसरे कमरे से कमला आई और सामान समेटने लगी।

“इधर आ।” शारदा देवी चारपाई पर सरक कर एक तरफ हो गयी---"यहां बैठ ।”

डालचन्द आगे बढ़ा और चारपाई के एक कोने पर जा बैठा।

“बोल मां....क्या बात है?"

“तू आजकल किस फेर में है?"

“मैं समझा नहीं मां.... ।"

“ढेर सारे पैसे ले आया... ...तुझे कहां की नौकरी मिली है?"

डालचन्द मुस्कुराया ।

“मां, तू क्यों फिक्र करती है?”

“बेटे, मां तो होती ही है फिक्र करने के लिए। बता तो.... कैसी नौकरी है यह जो पैसे तो ढेर सारे देती है...लेकिन काम नहीं लेती?"

"मां, कई तरह की नौकरियां होती हैं....तू नहीं समझेगी इन बातों को।"

"तू मुझे बच्ची समझता है। मैं.... ।”

"मां।" डालचन्द बीच में ही बोल पड़ा--- "मेरी घूमने की नौकरी है....तुम नहीं समझोगी। अब देखो न, कुछ ही दिनों बाद कम्पनी वाले कुछ दिन के लिए इस शहर से बाहर भेज रहे हैं।"

"बाहर कहां?"

"टूर पर। कम्पनी का आर्डर वगैरा लाना पड़ता है न ।” डालचन्द हंसकर कह उठा--- “अब तो तुम्हारा इलाज भी कराऊंगा। कमला की शादी भी दो-चार महीने में....अच्छा-सा लड़का देखकर कर दूंगा।"

"जुग-जुग जियो बेटा.... भगवान तेरी रोटी-रोजी को सलामत रखे।"

तभी कमला पानी का गिलास ले आई।

डालचन्द ने पानी पीकर गिलास उसे थमाया ।

"चाय रखी है भैया।” कमला ने कहा और गिलास लेकर चली गई।

तभी दरवाजा थपथपाया गया।

"कौन आ गया?”

“देखता हूं मां.... ।” डालचन्द उठा और आगे बढ़कर दरवाजा खोला।

सामने खड़े व्यक्ति को देखते ही वह चौंका।

चालीस बरस की मीडियम सेहत वाला चेहरे से दादा नजर आने वाला व्यक्ति खड़ा था।

वह बसन्त था।

राजाराम का आदमी।

“तुम?" डालचन्द के होठों से निकला।

“हां...तुम्हें राजाराम ने बुलाया है।"

“राजाराम ने?”

“हां....कुछ काम है। "

“लेकिन इन दिनों मैं व्यस्त हूं। इसलिए नहीं आ सकता।”

“तेरी इतनी हिम्मत कि तू हमारी बात को इंकार करे।" उसके दांत भिंच गये।

“धमकी मत दे मुझे.... तेरा थोबड़ा बिगाड़ कर रख दूंगा।"

"तू मुझे ऐसा बोला....राजाराम से कह दूं?" उसने कहा।

"हां.... हां.... कह दे। साथ में बता देना कि तूने क्या कहा है? फूट साले!!"

"बहुत बड़ी-बड़ी बातें कर रहा है तू । राजाराम तेरा होश दुरुस्त कर देगा।"

“दफा हो जा.... नहीं तो यहां से टूटा थोबड़ा लेकर जायेगा।"

बसन्त ने दांत भींचकर उसे घूरा....फिर पलट कर चला गया।

डालचन्द पलटा तो शारदा देवी बोल पड़ी---

“कौन था बेटे ?”

“कम्पनी से एक आदमी आया था मां....कुछ काम था...कह दिया, सुबह आऊंगा।”

“अभी चला जाता।”

“अभी तो लौटा हूं....आते ही कैसे चला जाऊं....? कमला, चाय ला।”

कमला ने चाय का गिलास उसे दे दिया।

■■■

डेढ़ घण्टे बाद डालचन्द के घर का दरवाजा पुनः खटखटाया गया।

डालचन्द ने दरवाजा खोला।

बाहर भीमराव था। राजाराम का आदमी।

"क्या बात है.... पहले बसन्त आया और अब तू?" डालचन्द ने पूछा ।

“तूने बसन्त को मना किया?" भीमराव सख्त स्वर में बोला।

“किया। साला अपने आप को तोप समझ रहा था....उसे समझाकर भेजना चाहिए था कि डालचन्द कुत्तों की तरह भौंकने वाले आदमियों को कभी पसन्द नहीं करता है।"

“वह तेरे से टेढ़ा बोला था ?” भीमराव का तनाव कुछ ढीला पड़ा।

"हां.... जैसे मेरा मालिक हो।”

“मुझे नहीं पता था....मैं बात करूंगा उससे। अब तू चल।”

“राजाराम के पास। काम है।"

"कहां?"

"आज मैं बहुत थका हुआ हूं।" डालचन्द ने सर हिलाकर कहा ।

"तू कितना भी थका क्यों न हो....तुझे चलना ही पड़ेगा। खास काम है।"

"क्या खास काम है?"

"राजाराम के पास क्या खास काम होता है?"

"कहीं माल पहुंचाना है?"

"शायद ऐसा ही हो....मेरे को पक्का पता नहीं है। अब चल ।”

“ठहर.... मैं मां को बोलकर आता हूं।” “यह भी बोल देना कि तू रात को शायद घर न आ सके।"

■■■

राजाराम !

गैंगस्टर राजाराम ।

स्मगलिंग, चोर बाजारी कालाबाजारी डकैती.... कत्ल.... यानी समय के अनुसार वह हर काम कर लेता था ।

उम्र पचास बरस पांच फीट लम्बाई। पतला गठा बदन। परन्तु दिलदार आदमी था।

खतरे से भरा हर काम हंसकर करता था....इंकार सुनने का आदी नहीं था वह।

राजाराम ने गहरी निगाहों से डालचन्द को घूरते हुए कहा---

“तूने आने से मना किया था?"

“हां।"

“यह जानकर भी मना किया कि तेरे को मैंने बुलाया है?”

"हां।"

“इतनी हिम्मत आ गई तेरे में?”

“इसमें हिम्मत की क्या बात है? वह बहुत बढ़-चढ़कर बातें कर रहा था।"

“कमाल है....तू बसन्त से नहीं डरा---।”

“उसके बाप की खाता हूं क्या जो डरूं?"

“तू अपने आप को बहुत बड़ा दादा समझता है क्या?”

“दादा तो तू है.... मैं तो कुछ भी नहीं। काम बोल....बुलाया क्यों है मुझे?"

“राजगढ़ माल पहुंचाना है....इस समय शाम के आठ बजे हैं। तेरे को फास्ट ड्राइविंग करनी है। बिना एक्सीडेंट के ठीक दस बजे वहां पहुंच जाना है।"

"अगर साढ़े दस बज जाएं तो कौन-सी आफत आ जाएगी?"

"आ जाएगी....तेरे को नहीं मालूम....राजाराम अपनी जुबान का पक्का है। तेरे साथ बसन्त जायेगा....साथ में दो और।"

"बसन्त नहीं जायेगा मेरे साथ।"

"काये कू?"

"मेरे को वह आदमी पसन्द नहीं।"

"वही जायेगा तेरे साथ।"

"अगर वह जायेगा तो कार भी वही चलाएगा....मैं नहीं।"

राजाराम ने सख्त निगाहों से उसे घूरा।

"तू मेरे बात कू मना कर रहा है?"

"हां....काम मैंने करना है। काम के समय मेरी नापसन्द का आदमी साथ होगा तो कार उलट भी सकती है....राजाराम ।"

राजाराम कई पल उसे घूरता रहा।

"भीमराव चलेगा?”

“चलेगा।"

“ठीक है, भीमराव ही जायेगा तेरे साथ। अब जा, जल्दी कर।"

"कितना मिलेगा?"

"दस ।"

"पिछली बार तो पच्चीस दिया था।"

“तब काम खतरनाक था.... ..पुलिस का रेड अलर्ट था हर तरफ।"

“अब भी खतरनाक है। रास्ते में कई पुलिस बैरियर पड़ेंगे।"

"तो क्या वह तेरे को पकड़ने के लिए वहां पर बैठे हुए है?"

"अगर पकड़ लें तो? भागना पड़ेगा बैरियर तोड़कर....तब?"

“ठीक है....पन्द्रह ले लियो....अब जा जल्दी कर....भीमराव को अन्दर भेज दे।"

डालचन्द बाहर निकल गया।

■■■

अगले दिन शाम को सब देवराज के घर पर इकट्ठे हुए।

मंगल पांडे एक छोटे से एयर बैग के साथ वहां पर पहुंचा था।

"इस बैग में पूरे बारह बम हैं। पावरफुल और धमाकेदार । जिससे यह लिए हैं, उसे बारह हजार रुपये और देने हैं।"

देवराज चौहान ने बैग से बम निकालकर उसका मुआयना किया।

"धोखा तो नहीं देंगे यह?"

"नहीं।"

"बावन हजार के आये हैं?"

"हां।"

"अब तुम्हें बारह और देने हैं?"

"हां।"

देवराज ने जगमोहन को देखा।

"इसे बारह हजार और दो।"

"क्यों दूं....हमें क्या मालूम बावन के आये हैं....या पैंतीस हजार के?"

मंगल के चेहरे पर क्रोध नाच उठा।

“तुम्हारा मतलब कि मैं झूठ बोल रहा हूं?" गुर्राया वह ।

“मैं तुमसे बात नहीं कर रहा। तुम खामोश रहो....।" जगमोहन दांत भींचकर बोला।

“तुमने मुझे धोखेबाज कहा है।" पांडे चीखा--- "कान खोलकर सुन ले.... दस-बीस की हेरा-फेरी नहीं करता मैं। जब करता हूं तो मोटे माल की करता हूं। अपने जैसा सबको मत समझ!"

जगमोहन कुछ कहने वाला था कि देवराज चौहान की आवाज सुनकर ठिठका ।

“इसे बारह हजार दे दे। साथ में मुंह बन्द रख...।"

भुनभुनाता हुआ जगमोहन दूसरे कमरे में गया और बारह हजार के साथ लौटा। नोटों को टेबिल पर रख दिया।

"मैंने अभी बारह हजार बम वाले को देने हैं।" पांडे पैसे उठाता हुआ बोला--- “वह इस मामले में किसी से उधार नहीं करता, लेकिन मेरी पुरानी पहचान वाला है और मैं इस बात की जरूरत भी नहीं समझता कि तुममें से किसी को उस तक ले जाऊं।"

"हमें उसके पास जाने की जरूरत ही नहीं है।" नीना पाटेकर ने मुंह खोला--- "हमें इस बात का विश्वास है कि छोटी-सी रकम के लिए तुम गलत नहीं कहोगे।"

मंगल पांडे ने नीना पाटेकर पर निगाह मारी, फिर मुंह फेर लिया।

“तुम लोग परसों सुबह आठ बजे यहां आ जाना। परसों तीस तारीख है और इन बर्मों के दम पर, हम मुलखराज कंम्पनी का साढ़े पांच करोड़ रुपया बैंक से बाहर जाने से रोकना है। हमें पूरी कोशिश करनी है कि इकत्तीस की अपेक्षा पहली को ही सेवाराम-मेवाराम इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट कम्पनी के पैसे के साथ बाहर निकलें और हम, निकलने से पहले ही, डकैती कर लें। परसों सुबह मैं बताऊंगा कि इनका इस्तेमाल कैसे करना है। हमें हर काम सावधानी और सम्भलकर करना पड़ेगा। मैं नहीं चाहता कि इकत्तीस को कोई ऐसी गड़बड़ हो कि पहली को होने वाली डकैती खटाई में पड़ जाए ।"

"कैसी गड़बड़ ?" उस्मान अली बोला।

“गड़बड़ की कोई उपमा...शक्ल नहीं होती उस्मान अली। मैंने ऐन मौकों पर ऐसी-ऐसी गड़बड़ें होती देखी हैं कि इन्सान बौखला उठता है। ऐसे मौकों पर हमेशा संयम से काम लेना चाहिए। जरा-सी घबराहट इंसान को मौत के मुंह में धकेल देती है। इस बात को हमेशा अपने पल्ले बांधकर रखना।" देवराज चौहान गम्भीर स्वर में बोला।

उस्मान अली सिर हिलाकर रह गया।

"तो अब परसों सुबह आठ बजे आयें.... ।" मंगल पांडे बोला।

"हां। साढ़े नौ बजे तक हमें बैंक के सामने पहुंच जाना है और ठीक दस बजे एक्शन में आ जाना है।" देवराज चौहान ने सिर हिलाया।

"ठीक है।" पांडे ने डालचन्द को देखा--- “मेरी रिवाल्वर दे।"

“लाया नहीं....।" डालचन्द ने जेब टटोलकर कहा।

“लाया नहीं क्या मतलब?" पांडे के होठों से सख्ती भरे शब्द निकले।

“मतलब कि नहीं लाया।" डालचन्द ने तीखे स्वर में कहा--- "भूल गया क्योंकि रिवाल्वर जेब में रखने की आदत नहीं है मुझे। आदत होती तो लेकर आता।”

“मुझे रिवाल्वर चाहिए।” मंगल पांडे एक-एक शब्द चबाकर बोला ।

"परसों सुबह जब यहां आओगे तो ले लेना। भूलूंगा नहीं, ले आऊंगा।"

“और अगर इस बीच मुझे रिवाल्वर की जरूरत पड़ गई तो?"

“हद-से-हद मर ही जाएगा ना, कोई बात नहीं.....मैं...।”

"सुनो।" नीना पाटेकर ने बीच में टोका-- और मंगल पांडे से कहा--- "अगर तुम्हें वास्तव में रिवाल्वर की जरूरत है तो मुझ से ले लो। परसों डालचन्द तुम्हारी ले आएगा तो में अपनी वापस ले लूंगी।"

मंगल पांडे ने कुछ नहीं कहा। नीना पाटेकर पर निगाह मारकर, दांत भींचे डालचन्द को देखते हुए पलटा और नोटों को जेब में डालते हुए बाहर निकल गया।

नीना पाटेकर ने कंधे उचकाए और डालचन्द से बोली---

"तुम मेरे साथ चलो, मैं तुम्हें घर छोड़ दूंगी।"

"नहीं। यह अभी नहीं जाएगा, मुझे इससे कुछ काम है।" देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाते हुए कहा--- "तुम जाओ। इसे अभी चार घण्टे लग जाएंगे....।"

नीना पाटेकर सिर हिलाकर उठी और डालचन्द पर निगाह डाल कर बाहर निकल गई। उस्मान अली भी चला गया।

डालचन्द ने प्रश्न भरी निगाहों से देवराज चौहान को देखा।

"डालचंद, मैं तेरे को वह जगह दिखाना चाहता हूं, जहां पर तुझे डकैती के बाद नोटों से भरी कार ले जानी है। मैं चाहता हूं, तू बैंक से लेकर वहां तक के सारे रास्ते जान ले। तब भागते समय जाने तुझे किन-किन रास्तों से गुजरना है। समझा, तू हर उस रास्ते को जान ले, जो बैंक से वहां तक जाता है। अब तुझे आराम से नहीं बैठना। रास्तों की पहचान करने लग जाना है। तुझे वह ठिकाना बता देता हूं, कल से तू रास्तों की पहचान पर लग जाएगा।"

डालचन्द ने सहमति से सिर हिलाया।

“और वह ठिकाना तू किसी को भी नहीं बतायेगा।"

“मैंने भला किसको बताना है।"

“नीना पाटेकर को।" देवराज चौहान ने उसकी आंखों में झांका--- "वह तुझ पर मेहरबान लग रही है। औरत की आंखों को मैं अच्छी तरह पहचानता हूँ। तुम दोनों जो भी करो, मुझे इस बात से कोई वास्ता नहीं। लेकिन हममें जो बात हो, वह बाहर न जाये।"

“वह मुझ पर मेहरबान है तो उसका मतलब यह नहीं कि सब कुछ सामने खोलकर रख दूंगा।" डालचन्द ने लापरवाही से बोला--- “मेरा उसका कोई मेल नहीं। तुम इस मामले में किसी बात की फिक्र न करो।"

"साली अपने पर कोई मेहरबान नहीं होती।" जगमोहन होंठों-ही-होठों में बड़बड़ाया।

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