4 दिसम्बर : बुधवार
अगले रोज़ के अखबारों में वो ख़बर मौजूद थी।
एक अख़बार में साफ हिंट था कि ख़बर होटल से या पुलिस से लीक नहीं हुई थी, उस नर्सिंग होम से लीक हुई थी जिसमें पुलिस ने अशोक जोगी को पहुंचाया था।
ग़नीमत थी कि खबर में उस हृदयविदारक घटना का ही जिक्र था भुक्तभोगी का उसके नाम से ज़िक्र नहीं था।
फिर भी न अकील सैफी को और न अरमान त्रिपाठी को समझते देर लगी कि वो भुक्तभोगी कौन था और कौन वो लोग थे जिन्होंने उसे अपना शिकार बनाया था।
अमित गोयल की बुरी गत बनाने वालों का दूसरा वार चल गया था। अब दोनों ही पहले से ज्यादा फिक्रमंद थे। खास तौर से अकील। अरमान का नम्बर आखिर में आना था तो फिर अगला नम्बर उसी का था। अल्लाह! रहम!
दोपहरबाद जस्सा मॉडल टाउन पहुंचा।
अट्ठाइस नवम्बर गुरुवार रात की हाइडपार्क की वीडियो क्लिप के साथ।
कोठी के ड्रॉईंगरूम में कदम रखते ही उसका सामना पिता से हुआ।
“आ, जस्से।” – चिन्तामणि बोला – “कैसे आया?”
“अरमान से मिलने आया।” – जस्सा बोला।
“अच्छा हुआ अरमान से मिलने आया, क्योंकि मैं तो रुक नहीं सकता! मेरी बडी इम्पॉर्टेट मीटिंग है। मैं बस, निकल ही रहा था।”
“ओह!”
“बैठ।”
“शुक्रिया।”
“अरमान बाथरूम में है। अभी आता है। तब तक कोई ठण्डा गर्म ले ले।”
“नहीं, जरूरत नहीं।”
“अरे, ले ले न! इतना काम करता है! इतनी भागदौड़ करता है! शक्ल से ही थका हुआ लग रहा है।”
“आप इसरार करते हैं तो . . . बीयर ले लूंगा।”
“अरे, ले न! फ्रिज भरे पड़े हैं। मैं अभी इन्तज़ाम करता हूँ।”
एक सर्वेट ने उसे बीयर सर्व की।
“ये अरमान को तेरी आमद की खबर कर आया है। तू इत्मीनान से बीयर एनजॉय कर। वो आता ही होगा। मैं चलता हूँ।”
जस्से ने सहमति से सिर हिलाया।
चिन्तामणि रूखसत हो गया।
अरमान बीयर खत्म हो जाने के बाद ही ड्रॉईंगरूम में पहुंचा।
“नहा रहा था।” – वो बोला – “आज बहुत लेट उठा सो कर।”
“होता है।”
“कैसे आया?”
जस्से ने बताया।
“फिर तो ऊपर चलते हैं।”
दोनों ऊपर अरमान के बैडरूम में पहुंचे।
अरमान ने पूरी तल्लीनता से वीडियो क्लिप देखी।
“वो” – आखिर वो बोला – “भूरे बालों वाला, लम्बी कलमों वाला, बायीं आंख के नीचे मस्से वाला तो इसमें नहीं दिखाई दे रहा!”
“हां।” – जस्सा बोला, उसने क्लिप को रिवर्स कर के एक जगह फ्रीज़ किया और बोला – “इसको देख, जिसके साथ एक खूबसूरत लड़की ड्रिंक्स शेयर कर रही है – जो उस टेबल से अगली टेबल पर ही बैठे हुए हैं जिस पर अमित गोयल अपनी कम्पैनियन के साथ है।”
“देखा।”
“मैं क्लिप को वहां तक बैक करता हूँ जहां दूसरा लड़का और लड़की एन्ट्री लेते हैं और आकर टेबल पर बैठते हैं। देख।”
जस्से ने कन्ट्रोल्स आपरेट किये।
स्क्रीन पर वो दोनों टेबल पर आ कर बैठ गये, उन्हें ड्रिक्स सर्व हुए।
“क्या देखा?” – जस्सा बोला।
“कुछ नहीं।”
“अरे, वो ब्लू सूट वाला लड़का नहीं देखा जो ऐन्टेंस से लडकी के साथ स्टीवार्ड के पीछे चलता उस टेबल पर पहुंचा जो अमित की टेबल के बाजू में है!”
“देखा। लेकिन खास क्या है उसमें?”
“ है तो सही खास कुछ!”
“क्या? पहेलियां न बुझा, जस्से।”
“इसका कद-काठ, चाल-ढाल सब उस भूरे बाल, लम्बी कलमें और आंख के नीचे मस्से वाले लड़के से मिलता है।”
“लेकिन सूरत नहीं मिलती। ये क्लीनशेव्ड है, वो लम्बी मूंछे और सोल पैच वाला था। उसकी भवें घनी थीं, इसकी बारीक हैं, उसके बाल घने और भूरे थे, इसके शार्ट कट हैं, उसकी कलमें घनी और इतनी लम्बी थीं कि कान की लौ से नीचे तक पहुंचती थीं, उसकी आंखें साफ नीली थीं, इसकी काली हैं। जहां, उसकी बायीं आंख के नीचे काला मस्सा था।”
“सब मेकअप का कमाल हो सकता है।”
“मैं नहीं मानता। जस्से, ये फिल्मी बातें हैं, फिल्मों में ही चलती हैं।”
“ऐसा?”
“काके, मैं तो बड़े अरमान से तुझे ये क्लिप दिखाने लाया था।”
“तेरा दिल क्या कहता है, ये दोनों जने एक हैं?”.
“दिल क्या, मेरा तो दिमाग भी यही कहता है। इसलिये भी कहता है कि ये अमित की तरह हाइड पार्क का रेगुलर नहीं।”
“ये कैसे जाना?”
“तूने पिछली और शामों की वहां की क्लिप निकलवाने के लिये भी तो कहा था!”
“तो?”
“मैंने निकलवाई न और पीछे तीन शामों की क्लिप। काके, इस गुरुवार वाली क्लिप के अलावा ये छोटे बाल, काली आंखों वाला लड़का और किसी क्लिप में नहीं है।”
“हम्म!”
“अगर तू इसे शुक्रवार वाला बन्दा माने जो एक औरत और उस छम्मकछल्लो लड़की के साथ था जिसने अमित को शीशे में उतारा था तो हम कह सकते हैं कि हम वारदात के लिये ज़िम्मेदार हरामी के पिल्ले की असली सूरत पहचानते हैं।”
“कहां, यार, ये क्लिप नाकाफी रौशनी में बनी है। ‘हाइड पार्क’ में कोज़ी, रोमांटिक एटमासफियर बनाने के लिये रात को वहां रोशनियां मद्धिम रखी जाती हैं। फिर सब कुछ लांग शॉट में है, कहां चेहरा साफ दिखाई दे रहा है! क्लोज अप होता तो कोई बात भी थी!”
“कुछ तो दिखाई दे रहा है!”
“कुछ काफी नहीं। जस्से, हम अन्दाज़न किसी के गले नहीं पड़ सकते।”
“अभी तो साफ गले पड़ने को कुछ सामने है भी नहीं!”
“वो बात भी है।”
“काके, मैंने तो तेरी डिमांड पर अमल किया था। लगता है तमाम डिल बेकार गयी।”
“बिल्कुल बेकार नहीं गयी।”
“अच्छा! वो कैसे?”
“इस क्लीनशेव्ड लड़के के साथ जो लड़की है, मैं उसे पहचानता हूँ।”
“पहचानता है! कैसे?”
“रोज़ रात नौ बजे ‘हाइड पार्क’ के आसपास मंडरा रही होती है, ऐसे।”
“मंडरा रही होती है, क्यों?”
अरमान ने वजह बतायी।
“ओह!” – जस्सा बोला, “तेरा मतलब है ये क्लीनशेव्ड लड़के की वाकिफ नहीं, रेगुलर कम्पैनियन नहीं, ‘हाइड पार्क’ में रात को ऐन्ट्री पाने के लिये फीस भर के बतौर कम्पैनियन हासिल की?”
“हां।”
“फिर तो ये इसके बारे में काफी कछ बता सकती है!”
“उम्मीद तो है!”
“बढ़िया! फिर तो . . .”
“और जस्से, गोयल के साथ जो लड़की दिखाई दे रही है, मैं उसे भी जानता हूँ।”
“काके, लड़कियों की तेरी जानकारी बड़ी वसीह है!”
“इसका नाम स्वाति है। गोयल से हाल ही में सैट हुई थी।”
“ओये, काके, ये वारदात की रात गोयल के साथ थी, तू इसे जानता है तो ये तो शुक्रवार रात के वाकयात के बारे में जानकारी की खान साबित हो सकती है! मैं थामता हूं इसे। कोई अता पता बोल इसका।”
“नहीं मालूम।”
“फिर क्या फायदा हुआ!”
“लेकिन रेगुलर बार फ्लाई है।”
“क्या मतलब हुआ इसका? ‘हाइड पार्क’ में अक्सर होती है?”
“हमेशा होती है तू आज रात मेरे साथ ‘हाइड पार्क’ चल। मुझे उम्मीद है दोनों लड़कियां वहीं होंगी।”
“दूसरी का क्या नाम है?”
“नाम नहीं मालूम, लेकिन सूरत से अच्छी तरह वाकिफ हूं। रात नौ बजे ये ‘हाइड पार्क’ के बाहर ज़रूर होगी।”
“और दूसरी – स्वाति बोला – अन्दर?”
“हां। मैनेजर तेरे काबू में है, इन लड़कियों ने मिज़ाज़ दिखाया तो हम उस से भी मदद हासिल कर सकते हैं।”
जस्से की भवें उठीं।
“अरे, ये रेगुलर रैकेट है जिसमें इन लड़कियों की शिरकत है और जो मैनेजमेंट की गुड बुक्स में आये बिना नहीं चल सकता।”
“ओह! ठीक है, चलेंगे।”
शाम को अकील सैफी उस नर्सिंग होम में पहुंचा जिसमें, उसको खबर लगी थी कि, अशोक जोगी भरती था।
मुलाकात की इजाज़त तो उसे न मिली लेकिन अरमान उसे वहां मिल गया।
“तू मिला?” – अकील ने पूछा।
“नहीं।” – अरमान बोला – “किसी को मिलने की इजाजत नहीं है।”
“कब होगी?”
“कल शायद घर चला जायेगा।”
“तब इजाज़ होगी?”
“उम्मीद तो है!”
“ठीक है, कल उसके घर का चक्कर लगाऊंगा।”
“मैं भी।”
“सो, फैंटम स्ट्राइक्स अगेन!”
“हां, यार। और अब . . .”
अरमान जानबूझ कर खामोश हो गया। “क्या अब?”
“ख़ुद सोच।”
“तू सुचवा।”
“अब तेरी बारी।”
अकील हकबकाया।
“फिर मेरी।”
“ओह!”
“क्या करेगा?”
“तू क्या करेगा?”
“मैं क्या कर सकता हूँ? मेरा डैड ही कुछ करेगा तो होगा।”
“वो क्या करेगा?”
“कर रहा है।”
“क्या?”
“काफी कुछ। कोई नतीजा निकलेगा तो बताऊंगा।”
“हँ। लेकिन यार ...”
“बोल।”
“क्या पता फैंटम का तीसरा वार होने से पहले वो पकड़ा ही जाये!”
“ऐसा हो जाये तो कंटक कटे।”
“हो सकता है। इस बार ये गम्भीर पुलिस केस है। होटल में बड़ी शादी में वारदात हुई है तो हमलावर मेहमानों में ही था। पुलिस उसको सिंगल आउट करने की जी जान से कोशिश कर रही होगी। शिवनाथ गुप्ता जी बड़े रसूख वाले हैं, पुलिस पर उनका भी प्रैशर होगा। मेरे को तो लगता है कि वो करतूत करने वाले की – या करने वालों की शिनाख्त हो जायेगी। फिर पुलिस का डंडा घूमेगा तो गिरफ्तारी भी होके रहेगी।”
“यार, ऐसा हो जाये तो जान सांसत से निकले।”
“मेरा दिल कहता है कि होगा। मेरा दिल ये भी कहता है कि अब अमित के साथ बीती भी छुपी नहीं रहेगी। कोई बड़ी बात नहीं अशोक ही इस बाबत सब बक दे। ऐसा हुआ तो फिर ये सीरियल किलर जैस केस होगा और पुलिस पर उसको सॉल्व करने का डबल प्रैशर होगा।”
“अबे, ऐसे तो अशोक हमारे बारे में भी बक सकता है!”
“हां, यार, बात तो तेरी ठीक है! ऐसा होगा तो कुछ हाथ आने से पहले ढेर हाथ से निकल जायेगा। वही मसल होगी कि नमाज़ बख़्शवाने गये, रोज़े गले पड़े।”
“मैं बोलूं तो तू ख्वाब देख रहा है। पुलिस की पकड़ में असलियत नहीं आने वाली। अशोक पर जो मुसीबत टूटी है, वो जिस्मानी है। उससे उसकी अक्ल नहीं मारी गयी। देख लेना, वो असलियत के बारे में कुछ नहीं बकेगा। बकेगा तो मरेगा!”
“भई, बड़ी वारदात है, उसका बयान होगा, कुछ तो उसे कहना पड़ेगा!”
“ही विल प्लीड इग्नोरेंस। मैं अमित को बाखूबी जानता हूँ, मुझे यकीन है कि एक ही जवाब होगा उसका जो कि होना चाहिये।”
“क्या?”
“मुझे नहीं पता क्या हुआ? क्यों हुआ?”
“लेकिन कैसे हुआ, होने की नौबत क्यों कर आयी के बारे में तो वो इग्नोरेंस प्लीड नहीं कर सकता?”
“वो मामूली बात है। नशे में उसने शादी के एक हसीन मेहमान पर लार टपकाई जो उसे होटल के एक कमरे में ले गयी। आगे उसे नहीं पता क्या हुआ, कैसे हुआ, किसने किया!”
“वो हसीना की सोहबत में था, लम्बी सोहबत में था, वो खुद ऐसा कुबूल करेगा तो उसे उसकी शिनाख्त के लिये बोला जायेगा।” ।
“वो पलिस प्रोसीजर की बात है। लम्बी रूटीन है जो उसके परी तरह से तन्दुरुस्त होने से पहले वजूद में नहीं आ सकती। और ऐसा हफ्ता दस दिन से पहले नहीं होने वाला। बाद में बाजरिया शादी की वीडियो और स्टिल फोटोग्राफी ऐसी शिनाख्त वो न कर सका तो किस्सा खत्म, कर सका तो बॉल पुलिस के कोर्ट में होगी। फिर देखेंगे पुलिस क्या कर पाती है, कुछ कर पाती भी है या नहीं।”
“तब तक हम क्या करें?”
“उस बुरी घड़ी को कोसें जब लालच ने हमें सताया और हमने वो . . .
वो हरकत की जो अब जी का जंजाल बनी हुई है।”
“मैंने तो कुछ किया भी नहीं था!”
“स्साले! ये बात तुझे अब याद आयी है!”
“छोड़ वो किस्सा। कोई राय दे मैं क्या करू?”
“वही जो कर सकता है। एहतियात बरत।”
अकील ने संजीदगी से सहमति में सिर हिलाया। नौ बजे से पहले जस्सा और अरमान ‘हाइड पार्क’ के सामने मौजूद थे। जैसा कि अपेक्षित था, मेन डोर से थोड़ा परे हट कर तीन चार नौजवान, माडर्न, सजी-धजी लड़कियाँ आपस में बतिया रही थीं।
“है?” – जस्सा धीरे से बोला।
“हां।” – अरमान ने भी वैसे ही जवाब दिया।
“कौन सी?”
“वो जो लाल स्कर्ट और सफेद कार्डीगन पहने है। लाल हाई हील्स।”
“ठीक! तू इसको काबू में कर, मैं जाकर मैनेजर से बात करता हूँ।”
“मुझे मिलेगा कहां?”
“अभी मुझे खुद नहीं मालूम। मोबाइल बजाऊंगा।”
“ठीक है।”
जस्सा चला गया।
अरमान लड़कियों के करीब पहुंचा।
तत्काल उन्होंने बतियाना बन्द कर दिया और उसकी तरफ देखा।
अरमान ने लाल स्कर्ट की ओर इशारा किया।
वो ग्रुप छोड़ कर आगे बढ़ी और उसके करीब पहुंची।
अपेक्षित डायलॉग हुआ। आखिर अरमान ने उसे तीन हज़ार रुपये थमाये।
“थैक्यू।”
“नाम?”
“प्रियंका।”
“मैं अरमान।”
“हल्लो , अरमान! चलें?”
“अभी नहीं। एक कॉल अपने वाली है, वो सुन लूं, फिर चलेंगे।”
“ओके।”
दो मिनट बाद अपेक्षित कॉल आयी।
अरमान ने जस्से की कॉल सुनी। फिर उसने मोबाइल को जेब के हवाले किया और लडकी को इशारा किया। तत्काल उसने उसकी बांह में बांह पिरो दी। दोनों गेट की तरफ बढ़े।
वो भीतर दाखिल हुए तो एक स्टीवार्ड उनकी तरफ बढ़ा। अरमान ने हाथ के इशारे से उसे रोका। वो सकपकाया और ठिठक गया।
मेन डोर के परले सिरे पर ऊपर को जाती सीढ़ियां थीं। लड़की का हाथ थामे अरमान सीढ़ियों की तरफ बढ़ा।
“इधर किधर?” – वो सशंक लेकिन निडर भाव से बोली।
“आ न!” – अरमान बोला।
“लकिन ...”
“अरे, यही हैं। कोई स्वर्ग की सीढ़ी तो नहीं चढ़ने लगे!”
वो खामोश हो गयी।
सीढ़ियों के ऊपर वाले सिरे पर एक बन्द दरवाज़ा था जिस पर लगी नेम प्लेट पर लिखा थाः
नमित मेहरोत्रा
मैनेजर
मैनेजर
अरमान दरवाज़ा धकेल कर लड़की के साथ भीतर दाखिल हुआ।
वो सुसज्जित एग्जीक्यूटिव ऑफिस था जिसकी विशाल ऑफिस टेबल के सामने तीन विज़िटर्स चेयर्स थीं और पीछे चमड़ा मढ़ी एग्जीक्यूटिव चेयर थी। जस्सा एग्जीक्यूटिव चेयर पर मौजूद था। और कोई वहां नहीं था।
“बैठ।” – अरमान बोला।
“क्या है यहां?” – वो संदिग्ध भाव से बोली – “क्यों यहां ...”
“अरे, बैठ तो सही! यहां वहां क्या करती है। ‘हाइड पार्क’ में ही है न! बैठ!”
झिझकती हुई वो एक विज़िटर्स चेयर पर बैठी।
अरमान उसकी बगल में बैठ गया।
“अब” – जस्से को सशंक भाव से देखती वो बोली – “मेहरोत्रा साहब ‘हाइड पार्क’ के मैनेजर नहीं हैं?”
“वहीं हैं। ये जसबीर सिंह हैं। मेरे फ्रेंड हैं।”
“वहां क्यों बैठे हैं?”
“कहीं तो बैठना था! तुझे ऐतराज़ है तो उठ जाते हैं।”
“नहीं, मुझे कोई ऐतराज़ नहीं। लेकिन है क्या यहां? क्यों आये हैं हम यहां?”
“अभी मालूम होता है।” – अरमान ने गुरुवार की क्लिप से निकाली एक तसवीर उसके सामने रखी – “ये तसवीर देख।”
“ये” – वो सकपकाई – “ये तो मैं हूँ।”
“हां। थर्सडे, अट्ठाइस नवम्बर रात की यहीं की तसवीर है। साथ में जो लड़का है, उसकी तरफ ध्यान दे।”
“क्या ध्यान दं?”
“कौन है? कैसे जानती हैं? कैसे तेरे साथ है?”
“पता नहीं। नहीं जानती। वैसे ही साथ है जैसे तुम साथ हो।”
“तुम बतौर कम्पैनियन? उसको ऐन्ट्री दिलाने के लिये?”
“हां।”
“नाम बोला?”
“हां।”
“याद है?”
“हां। विमल।”
“बस, विमल? और कुछ नहीं?”
“हां।”
“उसके साथ जो बीती, सब ब्यान कर।”
“ख़ामख़ाह।”
“ज़रूरी है।”
“तुम्हारे लिये होगा। मैं” – वो उठ खड़ी हुई – “जाती हूँ।”
“अभी नहीं।”
“क्यों नहीं? यू वान्टिड एन इन। यू आर इन। माई जॉब इज़ डन। ओवर एण्ड आल।”
“बैठ जा!” – जस्सा सांप की तरह फुफकारा।
“उसके शरीर में कंपकपी दौड़ गयी।
“कहना नहीं मानेगी” – जस्सा पूर्ववत् फुफकारता बोला – “तो यहां से कभी ऑपरेट नहीं कर सकेगी! मेहरोत्रा साहब की तरफ से ये मैं गारन्टी करता हूँ।”
“हाइड पार्क’ – वो दिलेरी से बोली – “इज़ नॉट दि ओनली प्लेस ...”
“कहीं से भी ऑपरेट नहीं कर सकेगी। लेकिन हमदर्दी बहुत मिलेगी तेरे को।”
“कि-किस की?”
“पब्लिक की। मीडिया की। लीडरान की।”
“क-क्यों?”
“भई, एसिड अटैक सर्वाइवर को मिलती ही है!”
लड़की का चेहरा पीला पड़ गया। जस्से की सूरत पर उसे शैतान का वास लगा।
“क-क्या चाहते हो?” – वो बोली।
“बैठ जा।”
डरती झिझकती वो वापिस कुर्सी पर बैठी।
“इस . . . विमल के साथ अट्ठाइस नवम्बर, गुरुवार को यहां जो बीती, उसे तफसील से बयान कर।”
उसने आदेश का पालन किया।
वो खामोश हुई तो जस्से ने अरमान की तरफ देखा।
“जिस लड़की का नाम तूने स्वाति बताया” – अरमान संजीदगी से बोला – “उसके साथ मेरा जिगरी दोस्त था। नाम अमित गोयल। उससे अगली रात उसके साथ ऐसा हादसा हुआ था जो मौत से बद्तर था . . .’
“क्या हुआ था?”
“हुआ था कुछ। तेरे को बताने लायक नहीं लेकिन हमारा अन्दाज़ा है कि जो हुआ था, उसकी बुनियाद एक दिन पहले बनी थी और इसे . . . इस विमल का उसमें हाथ था। तूने उसकी दरख्वास्त पर स्वाति से उसकी खुफिया मीटिंग का इन्तज़ाम किया था। तुझे मालूम है, उस खुफिया मीटिंग में उन दोनों में क्या बात हुई थी?”
“नहीं।”
“विमल ने कुछ न बताया?”
“मैंने पूछा ही नहीं।”
“उसने खुद कुछ न बताया?”
“न!”
“स्वाति ने?”
“वो तो फिर मेरे से मिली ही नहीं।”
“बाद में मिली हो!”
“मिली थी लेकिन उस मुलाकात का कोई जिक्र नहीं उठा था।”
“स्वाति इस वक्त कहां होगी?”
“वहीं, जहां हमेशा होती है।”
“कहां?”
“बार पर।”
“किसी से सैटिंग की फिराक में?”
“हां।”
“हो चुकी होगी?”
“इतनी जल्दी नहीं।”
“उसे यहां बुला कर ला।”
वो हिचकिचाई।
“बुला कर लाने वो बोला, काकी” – जस्सा क़हर भरे स्वर में बोला – लौटने की जगह खिसक गयी और उसे भी खिसका दिया तो अंजाम बुरा होगा। इस बाबत कोई शक हो तो कोशिश कर देखना। खुल्ली छूट है तुझे।”
बड़ी मुश्किल से वो इंकार में सिर हिला पायी।
“जा।”
वो चली गयी।
पांच मिनट बाद वो स्वाति के साथ लौटी।
अरमान ने उसे अपना और जस्से का परिचय दिया और तसवीर की ओर उसका ध्यान आकर्षित किया।
“थर्सडे, अट्ठाइस नवम्बर को इसने” – उसने प्रियंका की तरफ इशारा किया – “तसवीर वाले इस शख्स से नीचे असिस्टेंट मैनेजर के केबिन में तुम्हारी एक प्राइवेट मीटिंग फिक्स की थी। ठीक?”
“हां।” – स्वाति नि:संकोच बोली।
ज़रूर प्रियंका उसे समझा कर लायी थी कि असहयोग की सूरत से उसका क्या अंजाम हो सकता था।
“क्या चाहता था?”
“चाहता था मैं अगले रोज़ यहां न आऊ।”
“अगले रोज़, यानी शुक्रवार उनत्तीस नवम्बर को, तुम्हारा यहां आना फिक्स था?”
“हां। मेरी अपने ब्वाय फ्रेंड से अप्वायमेंट थी।”
“अमित गोयल से?”
उसके चेहरे पर हैरानी के भाव आये।
“और ये बात उस शख्स को मालूम थी?”
“मालूम थी। उसने साफ अमित का नाम लिया था। उसने साफ हिंट दिया था कि उसे कल नौ बजे की मेरी उसके साथ यहां की अप्वायमेंट की खबर थी। साफ कहा था – आई रिपीट हिज़ ऐग्जैक्ट वर्ड्स – ‘अमित गोयल को उसके कहे मुताबिक कल यहां बार पर नहीं मिलना है।’ मैंने उसकी बात मानने से इंकार किया तो उसने जेब से नाइयों वाला उस्तरा निकाला और उसे मेरे –” उसने झुरझुरी लेते हुए अपने कपोल को छुआ – “यहां पर रख दिया। बोला, दोनों गाल कानों तक काट देगा। मेरे प्राण कांप गये। मेरे को हां बोलना पड़ा, कहना पड़ा कि अगले रोज़ रात नौ बजे मैं यहां नहीं आऊंगी भले ही अमित उस धोखे की वजह से मेरा कितना ही बुरा हाल करे। सर, जवाब में उसने गारन्टी से कहा कि ... कि ...”
“क्या? क्या कहा?”
“कि कल के बाद वो मेरे पास भी नहीं फटकेगा, ताज़िन्दगी मुझे कभी अपनी शक्ल नहीं दिखायेगा।”
“ऐसा कहा उसने?”
“पूरे विश्वास के साथ। गारन्टी के साथ।”
अरमान और जस्से की निगाहें मिली।
“ये तो” – जस्सा धीरे से बोला – “जो हुआ उसकी तरफ साफ इशारा हुआ!”
अरमान ने संजीदगी में सहमति में सिर हिलाया।
“उसे” – वो फिर स्वाति की तरफ मुखातिब हुआ – “दोबारा देखोगी तो पहचान लोगी?”
“हां।” – वो बोली – “जो मेरा मुंह उस्तरे से काटने पर आमादा था, उसे कैसे भूल जाऊंगी!”
अरमान ने प्रियंका की तरफ देखा।
उसने भी पूरे विश्वास के साथ सहमति से सिर हिलाया।
“और?” – अरमान वापिस स्वाति की तरफ घूमा।
“और उसने मुझे वार्निंग दी कि उस बाबत मैंने जा कर अमित को कुछ नहीं बोलना था।”
“और?”
“और आखिर में एक बात हुई जो . . . जो मुझे बड़ी ... अजीब लगी।”
“क्या? क्या बात?”
“मैंने उससे पूछा कि वो कौन था तो . . . उसने बड़ा अजीब जवाब दिया।”
“क्या?”
“बोला, फैंटम! घोस्ट हू वाक्स!”
तत्काल अरमान के चेहरे पर उत्तेजना के भाव आये।
“सहयोग का शुक्रिया।” – वो जल्दी से बोला – जा सकती हो।”
साफ-साफ छुटकारे की सांस लेती दोनों वहां से रुखसत हुईं।
“वही था!” – पीछे अरमान भड़कता-सा बोला – “वही था मादर ... जो मुझे महरौली के खंडहर में मिला था। साला मुंह पर फैंटम का मास्क चढ़ाये था लेकिन अब हम इसकी सूरत से वाकिफ हैं। ये है” – अरमान ने एक उंगली से मेज पर पड़ी तसवीर खटखटाई – “उस की सूरत।” ।
“पर, काके, तू खूद मानता है कि ये कम रौशनी में खिंची हुई लांग शॉट की तसवीर है ...”
“जूम कर के क्लोज अप में लायी जा सकती है सूरत।”
“पहले न सूझा!”
“नहीं ही सूझा।
अब घर जा कर पहला काम यही करूंगा।”
“ठीक है, करना।” – जस्सा एक क्षण ठिठका फिर बोला – “बहरहाल ये अब तयशुदा बात है कि इस बात का बाकायदा इन्तज़ाम किया गया कि अगले रोज़, वारदात के रोज़, अमित यहां अकेला हो, उसके साथ कोई – जैसे वो लड़की – कम्पैनियन न हो।”
“वो तो जो हआ उसकी रू में जरूरी था।”
“ज़रूरत पूरी की गयी!”
“ज़ाहिर है।”
“फौजदारी के तरीके से!”
“अरे, जिस शख्स ने इतना बड़ा कांड कर डाला, उसे छोटी फौजदारी से, एक लड़की को धमकाने जैसी छोटी फौजदारी से क्या गुरेज होगा!”
“काके, मेरा इशारा किसी और तरफ है।”
“किस तरफ?”
“हम ये मान के चल रहे हैं कि जिस औरत के साथ तुम लोगों ने बद्फ़ेली की, वो शख्स उसका कोई सगे वाला है।”
“हां।”
“जैसे कि खाविन्द!”
“खाविन्द इतने दिल गुर्दे वाले होते हैं?”
“कहना क्या चाहता है?”
“ये कि जो हो रहा है वो किसी आम बन्दे की नहीं, किसी आम गृहस्थ बन्दे की नहीं, किसी तजुर्बेदार मुजरिम की कारगुजरियां हैं।”
“उस औरत का खाविन्द कोई छंटा हुआ मुजरिम?”
“हां।”
“लेकिन जो हुआ, उसने तो न किया! वो तो उस बला की हसीना ने किया जिसपर दोनों यारों ने लार टपकाई!”
“वारदात को ऑर्गेनाइज़ किसने किया? खुद उस हसीना ने?”
“ये तो नहीं हो सकता!”
“यानी हर मूव ऑर्गेनाइज़ मर्द ने की और क्लाइमैक्स को उस औरत ने टेकओवर किया! दोनों बार!”
“हमें अमित का पता है कि उसका अंग भंग एक हसीना ने किया, अशोक की इस बाबत हमें कोई खबर नहीं।”
“देख लेना, जब कहेगा यही कहेगा जो किया उस औरत ने किया जिस पर उसने लार टपकाई, जिस के जाल में वो फंसा।”
“ठीक है, कहेगा। तो? कहना क्या चाहता है?”
“मेरे यकीन में नहीं आता कि कोई औरतज़ात इतने सिद्धहस्त ढंग से किसी मर्द का अंग भग कर सकती है।”
“हद है तेरे वाली भी! अरे, खुद कहता है जो किया उस परीचेहरा हसीना ने किया, फिर खुद शक जाहिर करता है कि ये किसी औरत के बूते का काम नहीं! एक बात पर रह, जस्से!”
“कैसे रहूं! मैं कनफ्यूज्ड हूँ। कहीं कोई भेद है जो मेरी पकड़ में नहीं आ रहा।”
“अशोक ठीक हो ले, बोलने के काबिल हो ले, फिर उस से बात करेंगे। शायद तब तेरा कनफ्यूज़न दूर हो!”
“हां, शायद।”
“तो चलें अब?”
“हां। तू नीचे चल। मैं मैनेजर का शुक्रिया अदा कर के आता हूं।”
“ओके।”
नौ बजे नख शिख तक सजे-धजे विमल और अल्तमश ‘गोल्डन गेट’ में थे।
अल्तमश उस दिन सोने के तार के काम वाला महरून गरारा सूट पहने था, भारी ज़ेवर पहने था, फुल मेकअप में था और हमेशा की तरह जगमग जगमग कर रहा था।
विमल शेरवानी और सलवार में था, उसने चेहरे पर फुल दाढ़ी-मूंछ थीं, आंखों पर स्टाइलिश ब्राउन फोटोक्रोमेटिक लैंसिज़ वाला चश्मा था और सिर पर कश्मीरी टोपी थी।
अशरफ उन्हें बाहर उतार कर चला गया था और एक घन्टे में आने को बोल गया था। खुद विमल का वहां एक-सवा घन्टे से ज्यादा रुकने का इरादा नहीं था इसलिये तय हुआ था अशरफ लौट कर पार्किंग में ही इन्तज़ार करेगा।
उस रोज़ उन्हें जो टेबल मिली वो हाल के काफी अन्तर थी और रिज़र्ड टेबल्स से कदरन करीब थी।
चौहान के उन्हें हाल में उस रोज़ भी दर्शन हुए लेकिन वो जब भी दिखा, अकेला दिखा, पिछली बार की तरह किसी पार्टनर के साथ डांस फ्लोर पर कभी न दिखा।
दोनों ने ड्रिंक्स का आर्डर दिया।
रिज़र्ल्ड टेबल्स के क्लेमेंट्स की आवाजाही वहां उस रोज़ भी थी लेकिन पिछली बार की कोई पहचानी सूरत उन्हें न दिखाई दी।
सिन्धी सेठ कीमतराय सुखनानी भी नहीं।
एक घन्टा यूं ही गुज़रा, नया कुछ पेश न आया।
फिर एकाएक विमल सचेत हुआ, उसके नेत्र फैले, वो तन कर, सीधा होकर बैठा।
अलत्मश से वो प्रतिक्रिया छुपी न रही।
“क्या हुआ?” – वो सकपकाया सा बोला।
“उधर देख।” – विमल उसकी ओर झुकता धीरे से बोला – “दरवाज़े की ओर। चार मेज़ परे।”
अल्तमश ने निर्देशित दिशा में निगाह दौड़ाई।
“भाभी जान!” – उसके मुंह से निकला।
“नीलम के इतवार रात के मेकअप से मिलती शक्ल वाली। जिसके धोखे में मकतूला मीनू ईरानी ने नीलम को रुक्का थमाया था। जिसने अगली सुबह उसके ईस्ट पटेल नगर वाले फ्लैट में मेरे पर हमला किया था और लिस्टे कब्जा कर हवा हो गयी थी!”
“वो यहां!”
“क्या बड़ी बात है! उसका यहां होना एक्सपेक्टिड होता है, तभी तो मीनू ईरानी ने नीलम के धोखे में इसको यहां मौजूद समझा।”
“ठीक।”
“मैं इससे बात करता हूं।”
“ये करेगी?”
“एक तरकीब है जो कहती है कि करेगी। तू यहीं टिक के बैठ, मैं जाता हूं।”
अल्तमश ने संजीदगी से सहमति में सिर हिलाया।
विमल उठा।
तभी मोबाइल बजा।
अशरफ की काल थी, उसने रिसीव की।
“मैं लौट आया हूं।” – वो बोला।
“अच्छे मौके पर लौटा।” – विमल बोला – कहां है?”
“पार्किंग में। गेट के पास। दायीं तरफ।”
“वहीं रहना।”
विमल ने मोबाइल वापिस जेब के हवाले किया और लम्बे डग भरता दोहरे बदन वाली, विग की तरह सैट बालों वाली उस औरत की टेबल पर पहुंचा जो वहां अकेली बैठी कोई ड्रिंक चुसक रही थी। बेतकल्लुफी से वो उसके सामने जा बैठा।
“हल्लो!” – वह मधुर स्वर में बोला।
उसने अपने ड्रिंक पर से सिर उठाया और माथे पर बल डाल के विमल को देखा।
विमल ने मुस्कुराते हुए निर्दोष भाव से उससे निगाह मिलाई।
“हू आर यू?” – वो शुष्क स्वर में बोली।
“फ्रेंड!” – विमल बोला।।
“ओ, कम ऑन। आई हैव नो फ्रेंड हू लुक्स लाइक यू। यू आर इनट्रयूडिंग।”
विमल उसकी तरफ झुका और दबे स्वर में बोला – “मैं फेरा का आदमी हूं।”
उस नाम ने उस पर जादुई असर किया। तत्काल उसका मिज़ाज़ बदला।
“मीनू ईरानी की जगह।”
“ओह! इट इज़ अबाउट टाइम। नाम?”
“गिरीश। गिरीश माथुर। तुम्हारा?”
“तुम्हें नहीं मालूम?”
“चौहान ने बताया तो था लेकिन . . . सॉरी! भूल गया।”
“जसमिन। जसमिन माने।”
“हल्लो , जसमिन।”
“कहीं नोट कर लो। वर्ना फिर भूल जाओगे।”
“अब नहीं भूलूंगा।”
“मैसेज इधर करो।”
हां नहीं। इस जगह से मुझे वहम हो गया है। एक छोटी सी गलती की मीनू को कितनी बड़ी सज़ा मिली!”
“गलती की न! जो तुम तो नहीं करोगे न!”
“क्या पता लगता है!”
“वॉट नानसेंस! मुझे पहचान के मेरे पास आये हो न!”
“हां।”
“नाम भूल गये लेकिन मालूम तो था न!”
“हां।”
“तो फिर?”
“मैसेज लिखत में नहीं है।”
“क्या बोला?”
“मुंह जुबानी है। लम्बा मैसेज है इसलिये लिखत में नहीं है। लम्बा मैसेज, ख़ुद फैसला करो, क्या यहां डिलीवर करना ठीक होगा?”
“गलत भी क्या होगा!”
“दीवारों के भी कान होते हैं।”
“होते होंगे। दीवारें बहुत दूर हैं।”
“मुहावरा इस्तेमाल किया था। मतलब समझो।”
“तुम तो मेरे को भी वहम में डाल रहे हो!”
विमल खामोश रहा।
“क्या चाहते हो?”
“यहां से चलो।”
“कहां?”
“दूर नहीं। बस, बाहर। पार्किंग में।”
“वहां कहां?”
“वहां मेरी कार खड़ी है। मैं पहले जा के कार में बैठता हूं। फिर तुम आना।”
“अरे, पार्किंग तो रात की इस घड़ी कारों से भरी पड़ी होती है!”
“सफेद ‘असैंट’। गेट के पास। दायीं तरफ!”
“ओके। मेरे पर निगाह रखना। भटकती लगूं तो हार्न देना।”
“ओके। जाता हूं।”
विमल उठा और बाहर की ओर बढ़ा।
बाहर पार्किंग में वो ‘असैंट’ के पास पहुंचा।
अशरद स्टियरिंग के पीछे बैठा था।
विमल पिछली सीट पर बैठा।
“अल्तमश!” – अरशद ने पूछा।
“अभी भीतर है। अभी नया कुछ हुआ है जिसकी वजह से मैं यहां हूं।”
“क्या? क्या हुआ है?”
विमल ने बताया।
“ओह! इरादा क्या है?”
“वो यहां आ रही है। इरादा माहौल के मुताबिक बनेगा। पता नहीं मैं उसे ठीक से हैंडल कर भी पाऊंगा या नहीं!”
“ओह!”
“कार में तुम्हें देख कर उसे गलत सिग्नल पहुंच सकता है। रियरव्यू मिरर पर निगाह रखना। इधर आती दिखाई दे तो निकल लेना।”
“लौटूं कब?”
“फोन करूंगा।”
“ठीक। मेरे ख़याल से आ रही है। चलता हूं।”
उसने हौले से कार का दरवाज़ा खोला और चुपचाप बाहर निकल गया।
विमल सम्भल कर बैठा।
वो करीब पहुंची तो उसने परली तरफ का कार का दरवाज़ा खोल दिया।
वो दरवाज़े पर पहुंच कर ठिठकी।
“भीतर आ जाओ।” – विमल बोला।
“अभी यहां कोई था।” – वो सन्दिग्ध भाव से बोली।
“कहां कोई था?”
“इस कार में।”
“वहम हुआ तुम्हें। इसमें मैं हूं, बस।”
“मुझे आगे से कोई निकलकर जाता लगा था।”
“बोल न, वहम हुआ तुम्हें। ये मेरी कार है और मैंने ही आकर खोला इसे, कैसे कोई भीतर होता?”
“तुम पीछे क्यों बैठे हुए हो?”
“अरे, पीछे सहूलियत से बैठा जाता है। आगे ज़रा करवट बदलो तो स्टियरिंग छाती से टकराता है।”
“लेकिन ...”
“भीतर आके बैठो। टाइम ज़ाया न करो।”
“म-मैं . . . जाती हूं।”
फुर्ती से विमल ने ऐंकल होल्स्टर से गन खींची और उसकी तरफ तान दी।
“भीतर आ।” – वो फुकारता-सा बोला – “वर्ना गोली मार दूंगा।”
“इस खिलौने से?”
“बाइस कैलीबर की रीयल गन है। शार्ट डिस्टेंस से हाई कैलीबर गन जैसी ही फैटल साबित होती है। ‘जाती हूं’ पर अमल कर के देखो, अभी हकीकत सामने आ जायेगी।”
वो अनिश्चित सी ठिठकी खड़ी रही।
“गैट इन, डैम य!” – विमल हिंसक भाव से बोला।
वो भीतर आ बैठी। उसने दरवाजा खींच कर बन्द किया।
विमल ने गन वाला हाथ अपनी खिड़की की ओर वाली जांघ की ओट में कर लिया।
जसमिन गहरी सांस लेती बोली – “शक की घन्टी तो बजी मेरे जेहन में लेकिन देर से बजी।”
“अफसोस! अफसोस!”
“कौन हो तुम? तुम्हारी ये गन वाली हरकत ही बताती है कि फेरा के आदमी तो तुम हो नहीं सकते। लेकिन नेम ड्रॉपिंग अच्छी की; फेरा का ही नहीं, चौहान का नाम भी लिया, मीनू का नाम लिया। काफी पहुंचे हुए आदमी हो! कौन हो?”
“पहचाना नहीं?”
“नहीं।”
विमल ने सिर पर से टोपी उतारी।
“हाथ आगे करो।” – फिर बोला।
हिचकते हुए उसने किया।
विमल ने उसका हाथ थाम कर सिर पर वहां रखा जहां गूमड़ अभी भी मौजूद था।
“ईस्ट पटेल नगर में मीनू ईरानी के फ्लैट में ये ताज तुमने मुझे पहनाया था पीछे से वार कर के। क्या मारा था?”
“तु-तुम . . . तुम वो आदमी हो!”
“गूमड़ क्या कहता है?”
“दाढ़ी मूंछ नकली है।”
“हां।”
“देवा! मेरे पीछे क्यों पड़े हो?”
“तुम क्यों पड़ी थीं मेरे पीछे?”
“नहीं पड़ी थी। मैंने तो सपने में नहीं सोचा था कि फ्लैट के भीतर कोई होगा। तुम . . . भीतर क्योंकर थे? फ्लैट की चाबी कहां से आयी तुम्हारे पास?”
“कहीं से न आयी। ताले के छेद में फूंक मारी, वो खुल गया।”
“नॉनसेंस! देखो, मेरी तुम्हारे से कोई ज़ाती अदावत नहीं। तुम भीतर मौजूद थे, ये मेरे लिये भारी शॉक की बात थी। फिर तुम्हारे हाथ में लिस्टें देख कर तो मेरे छक्के ही छूट गये थे। वो लिस्टें राइटिंग डैस्क के दराज़ में इतने खुफिया तरीके से मुकाम पाती थीं, फिर भी तुम्हारे हाथ में थीं। उन्हें हासिल करना मेरे लिये निहायत ज़रूरी था। मैं वहां पहुंची ही इस काम के लिये थी। मैं मांगती तो वो लिस्टें तुम मुझे दे देते? मैं कहती ‘भाई साहब, ये लिस्टं तुम्हारे काम की नहीं, मेरे काम की हैं, प्लीज़, मुझे दो’। दे देते?”
विमल ने इंकार में सिर हिलाया।
“उन्हें मैं जबरन ही हासिल कर सकती थी, इसलिये तुम्हारे पर वार करना ज़रूरी था। इसलिये उस घड़ी जो हाथ आया मैंने . . . दे मारा।”
“क्या हाथ आया?”
“फूलदान। पीतल का।”
“दाता! मेरी खोपड़ी क्रैक हो सकती थी। भेजा बाहर निकल पड़ सकता था। शुक्र है ऐसा हुआ नहीं।”
“हां, शुक्र है। वर्ना मेरे पर कत्ल का इलज़ाम आता।”
“इरादायेकत्ल भी कोई कम गम्भीर अपराध नहीं होता।”
“बोला न, मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था। तुम्हें भीतर नहीं होना चाहिये था।”
“मेरे ख़याल से तुम इस अरेंजमेंट के तहत वहां थीं कि अगर मीनू ईरानी को कुछ हो जाये तो वो लिस्टें तुम टेकओवर कर लो। इसीलिये उसके फ्लैट की चाबी तुम्हारे पास थी और इसीलिये फ्लैट में लिस्टों को महफूज़ रखने की पोशीदा जगह से तुम वाकिफ थीं। से यस!”
“यस।”
“थैंक्स! अभी तुमने कहा कि तुम्हारी मेरे से कोई जाती अदावत नहीं। मैं भी यहीं कहना चाहता हूं कि मेरी तुम्हारे से कोई जाती अदावत नहीं।”
“जिससे अदावत न हो, उस पर गन तानते हैं?”
“नाहक न तानी। तुम चल देने पर आमादा थीं, तुम्हें रोकने के लिये तानी।”
“न रुकती तो क्या करते?”
“न रुकना मुझे गोली चलाने पर मजबूर करना होता। खुद अपनी हालत आ बैल मुझे मार जैसी करना होता।”
“अब चाहते क्या हो?”
“तुम से चन्द सवाल करना चाहता हूं। और उम्मीद करता हूं कि उन के दुरुस्त और मुनासिब जवाब देने में तुम कोई हील-हुज्जत नहीं करोगी।”
“मैं तुम्हारे फोकस में आ कैसे गयी?”
“मीनू ईरानी ने तुम्हें समझ कर जिस औरत को फेरा का मैसेज थमा दिया था, वो मेरी बीवी थी।”
“ओह!”
“लेकिन एक छोटी सी भूल की इतनी बड़ी सज़ा!”
“मैं ख़ुद हैरान हूं। मीनू के अंजाम का ख़याल करके मेरे प्राण कांपते हैं। लेकिन तुम कौन हो? तुम्हारा इन बातों से क्या लेना देना है? गलती से एक मैसेज तुम्हारे पास पहुंच भी गया तो वो तुम्हारे किस काम का था! तुम्हारी, या किसी दूसरे की, तो वो समझ में ही नहीं आने वाला था? तुम सारे सिलसिले में कहां फिट होते हो?”
“तुम बात को यूं समझो कि किसी ने मेरे लिये कांटा बोया, तो उसके लिये फूल बोने वाली किस्म का भलामानस ऊपर वाले ने मुझे नहीं बनाया। मैं उसके लिये त्रिशूल बोना चाहता हूं। क्यों ऐसा चाहता हूं ये एक लम्बी कहानी है, और ऐसी कहानी है जो मैं अपनी जुबान पर नहीं ला पाऊंगा। इस वजह से मेरा लिहाज़ करो, मेरे पर रहम खाओ और चन्द बातों का मुझे जवाब दो। बदले में मैं वादा करता हूं कि उन जवाबों की वजह से तुम्हारे पर कोई आंच नहीं आयेगी।”
“क्या पूछना चाहते हो?”
“सब से पहले तो यही बताओ कि फेरा कौन है?”
“ ‘भाई’ है। मुम्बई का बड़ा गैंगस्टर है। अन्डरवर्ल्ड डॉन है। पूरा नाम स्टीवन फेरा है।”
“मुम्बई का डॉन है तो दिल्ली में उसका क्या दखल है?”
“वो ‘गोल्डन गेट’ का मालिक है।”
“वो! वो मालिक है तो त्रिपाठी ब्रदर्स क्या हैं?”
“फेरा उन्हें ट्रीट तो मुलाजिमों की तरह ही करता है लेकिन उन की नाक नीची न हो, उनकी इज्जत रह जाये, इसलिये उन को जूनियर पार्टनर बोलता है।”
“पर ‘गोल्डन गेट’ इतना बड़ा बिजनेस तो नहीं कि एक बड़े अन्डरवर्ल्ड डॉन को – वो भी जो आठ सौ मील दूर मुम्बई में मुकाम पाता है – अपने लिये मुफीद लगे!”
“मुझे पता नहीं कि अन्डरवर्ल्ड के ‘भाई’ लोगों की तुम्हें क्या जानकारी है लेकिन इनकी ज़िन्दगी डे-टू-डे होती है। एक मूव उलटी पड़ जाये तो इन का एम्पायर उजड़ते वक्त नहीं लगता। तुम्हारी बात का एक जवाब तो ये है कि फेरा ने ‘गोल्डन गेट’ को अपने बुरे वक्त का आसरा बना के रखा हुआ है।”
“ओह!”
“दूसरे, तुम्हारी यही ख़ामख्याली हो सकती है कि वो बड़ा बिजनेस नहीं।”
“प्लीज़ एक्सप्लेन।”
“ये राज़ की बात है लेकिन पता नहीं तुम्हारे में क्या खूबी है कि तुम्हारे सामने मेरी वाणी अपने आप मुखर हो रही है।”
“क्या कहने!”
“क्योंकि तुम्हारे भीतर जो अच्छाई की देवी बैठी है, वो तुम्हें प्रेरित कर रही है कि मेरा सिर फोड़ने का कोई ख़ामियाजा तुम्हें चुकाना चाहिये।”
वो हंसी, तत्काल संजीदा हुई। “देखो’ – उसका स्वर धीमा पड़ा – “मैं यकीनी तौर पर नहीं कुछ जानती लेकिन मेरा ख़याल है कि ‘गोल्डन गेट’ की ओट से और इसके बाजू की उस गारमेंट फैक्ट्री की ओट से यहां कोई दो नम्बर का धन्धा भी चलता है।”
विमल सावधान हुआ।
“इस बाबत कोई अन्दाज़ा?”
“स्मगलिंग। मेरे ख़याल से यहां स्मगलिंग के माल के बड़े सौदे होते हैं और गारमेंट फैक्ट्री की ओट से माल इधर से उधर होता है। रात को यहां स्मगलिंग के माल के होलसेल डीलर आते हैं और ‘गोल्डन गेट’ के भीतर किसी खुफिया जगह बैठ कर बड़े-बड़े सौदे कर के जाते हैं, यहीं जिन की पेमेंट कलैक्ट की जाती है।”
“ऐसे लोग आते तो हैं यहां लेकिन वो तो कई घन्टे ठहर के सुबह सवेरे मुंह अन्धेरे जाते हैं। समगलिंग के कथित सौदों में इतना टाइम थोड़े ही लगता है!”
“अय्याश भी तो हैं सब के सब! यहां उन के लिये हर सर्विस फ्री है। नौजवान लड़कियों की खुल्ली सोहबत समेत, बढ़िया स्काच समेत जिन की हर खिदमत जी भर के यहां होती हो, उन्हें यहां से जाने की क्या जल्दी होगी भला!”
“ठीक! इस सैटअप में मीनू ईरानी का क्या रोल था?”
“मीनू ईरानी फेरा की भरोसे की लड़की थी, यहां के लिये जो भी हिदायत उसने जारी करनी होती थी, वो मार्फत मीनू ईरानी करता था।”
“और तुम?”
“जो काम मीनू ईरानी फेरा के लिये करती थी, वो मैं लोकल बॉसिज़ के लिये करती हूं। मीनू को जो हिदायत मुम्बई से मिलती थी, उसे वो मेरे को ट्रांसफर करती थी और मैं उसे आगे लोकन बॉसिज़ तक पहुंचाती थी।”
“जब ये उसका रेगुलर काम था तो इतवार को धोखा कैसे खा गयी? क्यों उसने किसी और को तुम समझ कर फेरा का मैसेज किसी और को थमा दिया?”
“अब क्या बोलूं?”
“कुछ तो बोलो।”
“अपनी शामत उसने खुद बुलाई।”
“क्या किया?”
“नशा करने लगी। आजकल के माडर्न नशों की गिरफ्त में आ गयी। कभी हेरोइन का इंजेक्शन, कभी एस्टेसी की गोली, कभी एलएसडी की एक ड्रॉप। कोई ऐसे नशों के हवाले होकर ज़िम्मेदारी के काम को अंजाम देगा तो कोताही तो हो के रहेगी!”
“ओह!”
“इसी की उसे सज़ा मिली।”
“आज तुम रेस्टोरेंट में क्यों थीं? क्या मीनू की जगह कोई ले चुका है?”
“नहीं, अभी नहीं। दरअसल मैं यही पता करने आयी थी कि मीनू की जगह किसी ने ली या नहीं। इसी वजह से तुम्हारे से धोखा खा गयी। तुमने कहा तुम फेरा के आदमी थे और मैंने झट यकीन कर लिया। आखिर किसी ने तो मीनू की जगह लेनी ही थी, मैंने सोचा तुमने ली थी।”
“वो लिस्टें क्या थीं? एक तीन पेज की लिस्ट में नब्बे नाम थे। किनके थे?”
“स्मगलिंग के माल के व्यापारियों के। जब नया माल आता है तो सब को ख़बर की जाती है और ‘गोल्डन गेट’ में वाकया किसी खुफिया जगह पर नयी आइटमों को कीमतों के साथ डिस्पले पर लगाया जाता है। मीनू का काम था नये माल की आमद की व्यापारियों को खबर करना।”
“और दूसरी, एक पेज की लिस्ट? इस में इकत्तीस कोड दर्ज थे?”
“वो ‘गोल्डन गेट’ की खफिया जगह में एन्टी के परमिट का काम करते है।”
“मीनू का खून किसने किया?”
“मुझे नहीं मालूम। ऑनेस्ट। लेकिन इतना अन्दाजा मुझे फिर भी है कि इन्तज़ाम चौहान ने ही किया होगा।”
“हम्म।”
“और कुछ?”
“नहीं, काफी है।”
“आई कैन गो नाओ?”
“यस, प्लीज़। एण्ड थैक्स फार दि कोऑपरेशन।”
“वैलकम।”
वो चली गयी। अशरफ प्रेत की तरह प्रकट हुआ।
“क्या हुआ?” – वो बोला।
“कथा कर गयी। अब पता नहीं कितना सच बोल कर गयी और कितनी झूठ की चासनी घोल कर गयी।”
“क्या बोली?”
विमल ने बताया।
“स्मगलिंग!” – अशरफ बोला – “हो तो सकता है! खाली एक बात ऐतबार में नहीं आती।”
“कौन सी?”
“सिन्धी सेठ सुखनानी भी स्मगलर! साथ में छोकरीबाज!”
“हूं।”
“जमा, तीस छोकरीबाज़ों के लिये सिर्फ सात-आठ छोकरियां!”
“घट बढ़ होती रहती होगी! जिस दिन तुमने देखीं, उस दिन इतनियों का ही इन्तज़ाम हो सका होगा!”
“लिहाज़ा, गुस्ताखी माफ, एक-एक पर चार-चार सवार!”
“सब छोकरीबाज़ नहीं होंगे!”
“तो सुबह तक रुके क्यों?”
“बाटलीबाज़ होंगे। टुन्न हो गये होंगे। ये सूझने लायक होश ही सवेरे आया होगा कि घर भी जाना था।”
“आप तो हर बात को जायज ठहराये दे रहे हैं!”
“नहीं, भई। खाली लाउड थिंकिंग कर रहा हूं। तू सिन्धी सेठ से मेरी बात मुलाकात होने दे, फिर काफी बातों का खुलासा होगा।”
“ठीक।”
“मुझे भीतर का एक चक्कर लगाना पड़ेगा क्यों कि बिल अदा करना है। पांच मिनट में लौटता हूं अल्तमश के साथ। ओके?”
अशरफ ने सहमति में सिर हिलाया।
विमल ने वापिस हाल में कदम रखा तो फासले से ही उसे दिखाई दिया कि उन की टेबल पर अल्तमश एक सूटबूटधारी व्यक्ति के साथ सिर जोड़े बैठा बतिया रहा था। विमल अभी आधे रास्ते में था कि अल्तमश की उस पर निगाह पड़ी। उसने जल्दी से उस व्यक्ति के कान में कुछ कहा। उस व्यक्ति ने एक बार विमल की दिशा में निगाह उठाई, फिर एकाएक उठा और वहां से विदा हो गया।
विमल टेबल पर पहुंचा।
उसने देखा अल्तमश के सामने नया ड्रिंक था।
“कौन था?” – वो उत्सुक भाव से बोला।
“क्या पता!” – अल्तमश लापरवाही से बोला।
“क्या बकता है! सिर से सिर जोड़े इतनी मसरूफ़ियत से जिस के साथ फाख्ताओं के जोड़े की तरह गुटरगू कर रहा था, नहीं जानता कौन था?”
“भंवरा था, फूल पर मंडरा रहा था। परवाना था, शमा पर निसार होने को मरा जा रहा था। आप के जाते ही कच्चे धागे से बन्धे सरकार खुद ही चले आये और लगे बहेलिये की तरह जाल फैलाने। मैंने शह दी तो खुशफहमी में आ गये कि चिडिया फंस रही थी। जब कि नहीं जानते थे कि बहेलिया फंस रहा था, चिडिया फंसा रही थी।”
“वो कैसे?”
“मेरे लिये दो लार्ज आर्डर किये और सारा बिल चुकता किया।”
“सारा?”
“यस, सर।”
“बेचारा! उसके हाथ क्या आया?”
“थोड़ा सा टटोल गया, बाकी कल हाथ आयेगा।”
“क्या बोला?”
“मैंने वादा दिया न कल शाम फिर आऊंगी। अकेली। खाविन्द के बिना।”
“खाविन्द मैं?”
“हां। तभी तो जब बोला आप आ रहे थे तो वो खिसक गया! अब कलेजा थामे कल शाम होने का इन्तज़ार करेगा ताकि आज जो सैम्पल मिला, कल समूचा हज़्म कर सके।”
“कमाल है! कैसे कर लेता है?”
“मैं क्या करता हूं?’ – वो धूर्त भाव से हंसा – “मैं तो बस तरह देता . . देती हूं, बाकी सब करने वाले खुद करते हैं।”
“बिल वाकई पेड है?”
“हां।”
“तो उठ। चल।”
अल्तमश लहराता, बल खाता उसके साथ हो लिया।
जसमिन भारी पशोपेश में थी।
अनायास ही उसके हाथ में एक विस्फोटक जानकारी लग गयी थी और उसका दिल गवाही देता था कि उसकी उसको कोई बड़ी शाबाशी मिलनी चाहिये थी। स्वाभाविक तौर पर उससे अपेक्षित था कि वो जानकारी गजानन चौहान से शेयर करती या बड़ी हद चिन्तामणि त्रिपाठी से बात करती लेकिन वो जानती थी कि शाबाशी के मद में उसे उन दोनों से ही झुनझुना ही हासिल नहीं होने वाला था।
वो मुम्बई से थी, अपनी बालिग ज़िन्दगी का एक बड़ा हिस्सा उसने मुम्बई में गुजारा था इसलिये जाने अनजाने वो ‘कम्पनी’ के कारनामों से वाकिफ थी और सोहल के ‘कम्पनी’ से चले – राजबहादुर बखिया से व्यास शंकर गजरे तक चले – लम्बे टकराव से भी वाकिफ थी। बखिया के बाद ‘कम्पनी’ की गद्दी पर काबिज़ होने वाले इकबाल सिंह ने मुम्बई के सारे अन्डरवर्ल्ड में सोहल की बाबत इश्तिहार इस ऐलान के साथ बंटवाये गये थे कि जो कोई भी सोहल का कोई अता पता ‘कम्पनी’ में पहुंचायेगा, उसे पचास पेटी नकद ईनाम के अलावा ‘कम्पनी’ में ओहदेदारी से भी नवाजा जायेगा। उन इश्तिहारों में सोहल की चेहरे की प्लास्टिक सर्जरी से पहले की और बाद की दोनों सूरतें दर्ज थीं और एक इश्तिहार में तबकी सूरत भी दर्ज थी जब कि वो इलाहाबाद एरिक जॉनसन कम्पनी की नौकरी करता था और सिख था।
पार्किंग में ‘असैंट’ में बैठे जिस शख्स ने उस पर गन तानी थी, उसने उसको बतौर सोहल साफ पहचाना था और उसके साफ कहे बिना ही समझा था कि – वजह कोई भी थी – वो फेरा का दिल्ली का सैटअप तबाह करने पर आमादा था। गन की धमकी में आकर उसने ‘गोल्डन गेट’ से चलने वाले खुफिया कारोबार की जो कहानी उसे परोसी थी वो बेबुनियाद थी और वो उसने हाथ के हाथ गढ़ी थी। उस शख्स को – जो सोहल था पर अपना नाम गिरीश बताता था – लगता था कि उसकी कहानी पर मुकम्मल नहीं तो औना-पौना यकीन आ भी गया था। उसने जान जोखम में डाल कर इतना बड़ा काम किया था तो उसकी शाबाशी तो उसे बनती थी न!
और बड़ी शाबाशी उसे कोई दे सकता था तो वो न चौहान था, न चिन्तामणि था; वो सिर्फ और सिर्फ बिग बॉस, ‘भाई’, स्टीवन फेरा था।
संयोगवश उसे वो नम्बर मालूम था जिस पर बिग बॉस फेरा से सीधे सम्पर्क किया जा सकता था। उसने वो नम्बर खड़काने की हिम्मत करने का फैसला किया।
डरते-डरते उसने वो काम किया।
नम्बर तो लगा लेकिन जवाब फेरा के ख़ास लेफ्टीनेंट जेकब परेरा ने दिया।
“मैं जसमिन बोलती दिल्ली से।” – वो बोली।
“बोल, जसमिन।”
“बिग बॉस से बात करने का।”
“मेरे से कर।”
“बहुत इम्पॉर्टेट कर के बात है, परेरा, बिग बॉस से ही करने का।”
“अरे, मेरे से कर न इम्पॉर्टेट कर के बात! मैं भी तो साला इम्पॉर्टेट कर के भीड़ है!”
“बिग बॉस तो नहीं है न! फिर बात ही ऐसा है कि बिग बॉस ही नहीं चाहेगा कि मैं वो तेरे से करे।”
“ऐसा?”
“हां।”
“फिर तो तेरे को बाद में काल लगाने का।”
“कितना बाद में।”
“सैवरल डेज़ बाद में।”
“क्या बात करता है!”
“बॉस मुम्बई में नहीं है।”
“अच्छा! किधर गया?”
“काठमाण्डू गया। उधर एशिया के बिग डॉन लोगों की खुफिया कर के कान्फ्रेंस है। बॉस उधर कम्यूनीकेशन नहीं मांगता। मेरे को भी बोल के गया कि काल नहीं लगाने का। बोले तो अभी बॉस मुम्बई बैक मारेगा तो तेरा बात होयेंगा।”
“तू बोला सैवरल डेज़ में?”
“अर्ली भी बैक मार सकता है। अर्ली आ गया तो मैं तेरे को खबर करेगा न!”
“बढ़िया। ज़रूर करना। मैं एडवांस में बैंक्यू बोलती है।”
“पण तू मेरे को बोल तो सही कि बात क्या है?”
“क्या फायदा! जब तू बोलता है कि खुद तू भी बिग बॉस से काठमाण्डू कम्यूनीकेट नहीं कर सकता तो क्या फायदा!”
“अरे कोई हिन्ट तो दे!”
“बॉस को देगा न। हिंट भी और डिटेल भी।”
उसने लाइन काट दी।
जिस तबाही का अन्देशा था, वो ओवरनाइट नहीं आ जाने वाली थी। अभी तो ‘गोल्डन गेट’ के बारे में उसी ने सोहल को भटका दिया था। जब तक वो सही राह लगेगा तब तक बिग बॉस काठमाण्डू से मुम्बई लौट आया होगा।
आई विल वेट!
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