म्यूजियम या अजायबघर
मेंजर को इण्टरनेशनल म्यूजियम ढूंढ़ने मेंकोई कठिनाई नहीं हुई। वह एक बहुत बड़ी दोमंजिली कोठी थी। मेजर और सोनिया ने मुख्य द्वार खोलकर भीतर प्रवेश किया । द्वार खुलने की आवाज सुनकर ऊपर की मंजिल के छज्जे में इन्स्पेक्टर धर्मवीर प्रकट हुआ और उन दोनों को देखकर ठिठक गया। वह मेजर को पहचानता नहीं था इसलिए उसने उन्हें म्यूजियम में आने वाले ग्राहक समझा| मेजर के साथ सोनिया को देखकर उसे ऐसा भ्रम हो ही सकता था। मेजर ने हाथ हिलाकर उसका असमंजस दूर कर दिया और जब उसने यह कहा, "मेजर एट यूअर सविस" (मेजर सेवा में उपस्थित है) तो इन्स्पेक्टर की रगों में जैसे बिजली दौड़ गई। वह तेजी से सीढ़ियां उतरा, आकर बड़े तपाक से मेजर का हाथ दबाते हुए बोला, "मैं कह नहीं सकता कि मैं आपका कितना आभारी हूं।" और फिर मुड़कर बोला, “ये शायद हमारी भाभी हैं ।' इन्स्पेक्टर ने हाथ जोड़कर नमस्ते की तो सोनिया लज्जा से लाल हो गई।"
मेजर ने सोनिया को उस बेतुकी स्थिति से निकालने के लिए इन्स्पेक्टर से उसका परिचय कराया और पूछा, "क्या मृणालिनी सत्यनारायण शुक्ला के यहां खुश थी ?"
"हां, खुश ही थी | सत्यनायण ने उसे बहुत से खिलोने ले दिए थे । वह सचमुच चाइल्ड फिक्सेशन का रोगी था और बहुत ही दयालु स्वभाव का था । मृणालिनीं तो यह समझ रही थी, जैसे वह अपने चाचा के घर में रह रही हो।" इन्स्पेक्टर ने कहा और आश्चर्य से पूछा, "आपने यह कैसे जान लिया था कि मृणालिनी का अपहरण करने वाला झांसी का कोई क्लर्क था ? ”
"पुराने पेन्सिल शार्पनर और, रबड़-पेन्सिल ने मुझे यह बात सुझाई कि अपहरण करने वाला कोई क्लर्क हो सकता है। यह क्लर्क झांसी का ही हो सकता था; क्योंकि निगम बाबू को यहां आए हुए सिर्फ इक्कीस दिन हुए हैं, इतने दिनों में यहां किसी क्लर्क को मृणालिनी से इतना लगाव पैदा नहीं हो सकता था। मृणालिनी के कपड़े गायब थे, इसलिए भी मैं यह समझा कि कोई उसे दूर ले गया है।" मेजर ने कहा-"अच्छा, मैं पहले दीवान सुरेन्द्रनाथ की संक्षिप्त जीवनी जानना चाहता हूं ।" मेजर बोला ।
इन्स्पेक्टर मेजर को इण्टरनेशनल म्यूजियम के दफ्तर के कमरे में ले गया। जब बैठा चुके तो इन्स्पेक्टर धर्मवीर ने कहा, "दीवान सुरेन्द्रनाथ बहुत बड़े रईस और इतिहासवेत्ता थे । कई बार पूरे संसार की सैर कर चुके थे। अफ्रीका महाद्वीप उन्हें विशेषरूप से पसन्द था । अपने जीवन का अधिकांश भाग उन्होंने एक इटालियन प्रोफेसर मोरावियों के साथ अफ्रीका के जंगलों में गुजारा था । प्रोफेसर मोरावियों से उनकी गहरी मित्रता थी। उन्होंने प्रोफेसर मोरावियो की इटालियन पत्नी की छोटी बहन से अफ्रीका में ही शादी कर ली थी। संयोग से दीवान सुरेन्द्रनाथ और प्रोफेसर मोरावियो के यहां थोड़े दिनों के अन्तर से बेटियां पैदा हुई । प्रोफेसर मोरावियो भाषाविज्ञान के विशेषज्ञ थे और यूनानी, लैटिन, अरबी, चीनी, जापानी और सुआहिली भाषाओं के अतिरिक्त भारत की कई भाषाएं जानते थे। उन्हें भारतीय नाम भी बहुत पसन्द थे । इसलिए उन्होंने अपनी बेटी का नाम रजनी और दीवान साहब की बेटी का नाम कामिनी रखा था। रजनी और कामिनी अभी सात-सात वर्ष की थीं कि अफ्रीका में एक अज्ञात महामारी फूट पड़ी और दोनों की माताएं उस महामारी में चल बसीं । दीवान साहब अफ्रीका के वातावरण से ऊब गए। वे अपनी बेटी कामिनी के साथ भारत वापस चले आये । कामिनी को नैनीताल के एक अंग्रेजी स्कूल में भरती करवा दिया गया, जहां रईसों और राजा-महाराजाओं के बेटे-बेटियां पढ़ते थे । अठारह वर्ष की आयु तक कामिनी वहीं रही। उसने सोनियर कैम्ब्रिज कर लिया और कलकत्ता के एक कालेज में प्रवेश ले लिया। इस बीच में दीवान साहब अपने मित्र प्रोफेसर मोरावियो और उसकी बेटी रजनी को भी अपने यहां बुला चुके थे। प्रोफेसर मोरावियो अपने साथ अपने एक वफादार नौकर- अफ्रीकी हब्शी सिद्दीकू को भी लाए थे। प्रोफेसर मोरावियो कुछ वर्षों तक अपने मित्र के पास रहे और फिर उनका देहान्त हो गया । मरने से पहले प्रोफेसर ने एक अजायबघर खोलने की इच्छा प्रकट की थी। उन्होंने अपनी इस योजना की एक विस्तृत रूपरेखा भी तैयार की थी। वे इस अजायबघर का नाम 'इण्टरनेशनल म्यूजियम' रखना चाहते थे । प्रोफेसर मोरावियो के देहान्त के बाद दीवान साहब ने रजनी और सिद्दीकू को हमेशा के लिए अपने पास रखने का फैसला कर लिया। अफ्रीकी हब्शी सिद्दीकू ने रजनी की मां की मृत्यु के बाद रजनी को पालापोसा था । वह प्रोफेसर का पुराना और बड़ा विश्वस्त सेवक था। रजनी को प्रसन्न करने के लिए दीवान साहब ने उसके पिता और अपने मित्र प्रोफेसर मोरावियो की योजना को क्रियान्वित कर दिया और यों इण्टरनेशनल म्यूजियम स्थापित हो गया । देवी-देवताओं की मूर्तियों में कोई त्रुटि न रहने पाए, इसलिए उन्होंने भारत के प्रसिद्ध इतिहासकार और भाषाविज्ञान के विशेषज्ञ डाक्टर अजयकुमार बनर्जी की सेवाएं प्राप्त कर लीं। मूर्तियां तैयार करने का काम शुरू हो गया। कामिनी छुट्टियों में घर आई तो उसने अपने पिता के इस नये काम को पसन्द नहीं किया। रजनी से अपने पिता का बेपनाह लगाव भी उसे अच्छा न लगा। वह रजनी से ईर्ष्या करने लगी और जब उसने यह देखा कि भारत का प्रसिद्ध इतिहासकार डाक्टर बनर्जी रजनी पर जान छिड़कता है तो वह और भी जल-भुन गई। कामिनी छुट्टियां समाप्त होने से पहले ही कालेज वापस चली गई। दीवान साहब अपनी बेटी के इस व्यवहार को बिल्कुल नहीं समझ पाए। अगले वर्ष कामिनी छुट्टियों में घर न आई । उसने अपने पिता को पत्र लिखने भी बन्द कर दिये। दीवान साहब बेटी से मिलने कलकत्ता गये। वहां पहुंचकर उन्हें पता चला कि कामिनी इंटरनेशनल म्यूजियम स्थापित किए जाने पर खफा थी। क्यों खफा थी ? इसका कारण वे मालूम न कर सके। वे केवल इतना ही अनुमान लगा सके कि कामिनी को प्राचीन और भयानक मूर्तियां तैयार करने का व्यवसाय पसन्द नहीं था । उसका खयाल था कि इस व्यवसाय में सारा धन नष्ट हो जाएगा। लेकिन दीवान साहब अपनी धुन के पक्के थे। वे अपनी बेटी के भ्रम के कारण यह योजना त्यागने के लिए तैयार न हुए। इण्टरनेनशल म्यूजियम स्थापित कर दिया और व्यवसाय काफी चमक उठा। इस व्यवसाय की सफलता ने कामिनी को और भी बोखला दिया । वह भी अपनी हठ पकड़ चुकी थी | उसने बी० ए० किया और बम्बई चली गई कि आत्मनिर्भर होकर अपना जीवन बिताएगी और अपने पिता के धन से कोई सरोकार नहीं रखेगी। इस बीच में डाक्टर अजयकुमार बनर्जी और रजनी का प्रेम चुका था। दीवान सुरेन्द्रनाथ ने डॉक्टर बनर्जी से रजनी की शादी कर दी और उनको अपने इण्टरनेशनल म्यूजियम की ऊपरी मंजिल रहने को दे दी । कामिनी रजनी की शादी में नहीं आई । ऊपर की मंजिल पर डाक्टर बनर्जी, रजनी और हब्शी सिद्दीकू रहते हैं। कोठी के पिछवाड़े में नौकरों के क्वार्टर हैं। वहां रूपा नाम का बावर्ची और लक्ष्मी नाम की नौकरानी रहती हैं और बायें कोने में दीवान साहब का एक अनाथ भतीजा राजेश रहता है। राजेश इतिहास में एम० ए० है | कई भाषाएं जानता है और पुरातत्त्व - विज्ञान का अच्छा विशेषज्ञ माना जाता है । वह डाक्टर बनर्जी का शिष्य भी है...।" इन्स्पेक्टर धर्मवीर सलूजा ने गहरी सांस लेते हुए कहा । "
"क्या मैं पूछ सकता हूं कि ये सब बातें आपको किसने बताई हैं ?
“राजेश ने।” इन्स्पेक्टर ने उत्तर दिया, "एक बात मैं आपको बताना भूल गया । यहां पुरातत्त्व - विज्ञान का एक अंग्रेज विशेषज्ञ डिक्सन भी काम करता है -- वह कैलाश कालोनी में रहता है । आज सुबह डिक्सन दस की वजाय साढ़े दस बजे काम पर आया और उसने ही सबसे पहले दीवान सुरेन्द्रनाथ को अफ्रीकी देवताओं की मूर्तियों वाले कमरे में मृत पड़ा देखा। उसने ही पुलिस को फोन किया । "
"क्या डिक्सन भी बहुत सी भाषाएं जानता है ? "
"जी हां, हिन्दुस्तानी बड़ी रवानी से बोलता है।"
"क्या मैं डिक्सन से मिल सकता हूं ?"
"क्यों नहीं - ऊपर चलिए ।" इन्स्पेक्टर उठकर खड़ा हो गया । मेजर् और सोनिया इन्स्पेक्टर के पीछे-पीछे ऊपर पहुंचे ।
डिक्सन डाक्टर बनर्जी के ड्राइंगरूम में सोफे पर अकेला बैठा गहरे शोक में डूबा हुआ था और सिगरेट के लम्बे-लम्बे कश ले रहा था । उसने इन लोगों को भीतर आते देखा तो उनके सम्मान में उठ खड़ा हुआ । इन्स्पेक्टर ने सोनिया और मेजर से परिचय कराया और फिर वोला, "आपको कष्ट तो होगा मिस्टर डिक्सन ! लेकिन क्या आप अपना पूरा बयान दोहरा सकते हैं ?"
"आज मैं हमेशा को निस्वत जरा देर से यहां आया । वाहर का दरवाजा थोड़ा-सा खुला था । मुझे दरवाजे को खुला पाकर कुछ आश्कर्य हुआ क्योंकि बाहर का दरवाजा हमेशा बन्द रहता है और आने वाले को घंटी बजानी पड़ती है। खैर, मैं भीतर आया । उस दरवाजे के बाद एक और दरवाजा आता है जो अजायबघर में खुलता है । यह दरवाजा अक्सर खुला ही रहता है क्योंकि उसके पास से नीचे जाने की सीढ़ियां शुरू होती हैं। सीढ़ियां उतरने के बाद हाल कमरा आता है । उससे गुजरने के बाद दूसरे कमरों में जाया जा सकता है । कुल दस कमरे हैं, जिनमें अलग-अलग इलाकों के देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं । मैं इन दिनों अफ्रीका के प्राचीन देवी-देवताओं पर काम कर रहा हूं । उस कमरे का दरवाजा भी थोड़ा-सा खुला था । मैं उसे पूरा खोलकर भीतर पहुंचा तो एकदम ठिठककर रह गया। कमरे में एक कोने में कोई चित लेटा हुआ था। पहले तो मैं यह समझा कि वह कोई मूर्ति है जो गिर पड़ी है | कमरे में कुछ अंधेरा था । लेकिन जल्दी ही मेरी आंखें उस अंधेरे की अभ्यस्त हो गई और मैंने देखा कि वह दीवान सुरेन्द्रनाथ थे। उनके बाजू उनके सिर के पीछे फैले हुए थे । इस पर भी मैं यही समझा कि वे गिर पड़े हैं और बेहोश हो गए हैं। मैं उनकी ओर बढ़ा | मैं ब्यान नहीं कर सकता कि वह कितना भयानक दृश्य था ! उनके सिर पर एक मूर्ति गिर पड़ी थी और उनकी खोपड़ी टुकड़े-टुकड़े हो गई थी । वह मूर्ति उनके निकट ही औंधे मूंह पड़ी थी । "
"आपने दीवान सुरेन्द्रनाथ को मृत पाकर क्या किया ? "
"मैंने डाक्टर बनर्जी को आवाज दी। ऊपर उनके पढ़नेका कमरा है। मुझे उनकी ओर से कोई उत्तर नहीं मिला।"
- "कोई उत्तर नहीं मिला ?"
"नहीं | मैं भयभीत हो गया। मैं इस बात से घबरा गया कि मैं एक मृत व्यक्ति के साथ कमरे में अकेला था। मैं दरवाजे की ओर बढ़ा। मेरे जी में आया कि मैं चुपके से निकलकर अपने घर पहुंच जाऊं। लेकिन मैं जानता था कि अगर मैं चुपके से खिसक गया और बाद में भेद खुल गया तो लेने के देने पड़ जाएंगे।"
"उस समय घर के नौकर लोग कहां थे?"
"वे इस बंगले के पिछवाड़े में थे। वे मेरी आवाज नहीं सुन सकते थे। मेरी आवाज़ अगर कोई सुन सकता था तो बस डाक्टर बनर्जी, लेकिन वे शायद अपने कमरे थे।"
"क्षमा कीजिएगा, मैं एक बहुत स्पष्ट-सा सवाल करूंगा | क्या आपने अपने विशेष उद्देश्य से तो दीवान सुरेन्द्रनाथ को अपनी राह से नहीं हटा दिया ?"
"ओह, आप यह क्या कह रहे हैं ! मुझे तो यह भय है कि अब यह कारोबार ठप्प हो जाएगा और हम बेकार हो जाएंगे।"
"अच्छा तो क्या आप यह बता सकते हैं कि दीवान साहब की हत्या क्यों की गई?"
"मैं यह निर्णय नहीं कर सकता कि उनकी हत्या की गई है या यह एक दुर्घटना है। उनकी हत्या कोई क्यों कर सकता था ? वे एक दयावान व्यक्ति थे ।"
"क्या दीवान साहब दस बजे से पहले अपने कमरे से बाहर निकलने के आदी थे?"- मेजर ने पूछा ।
"नहीं, आज डाक्टर बनर्जी ने उनसे सुबह नौ बजे मिलने का समय तय कर रखा था। वैसे दीवान साहव सर्दियों में सुबह ग्यारह बजे से पहले अपने कमरे से कभी नहीं जाते थे।"
"क्या आपको मालूम था कि डाक्टर बनर्जी ने उनसे सुबह नौ बजे मिलने का तय कर रखा था ?”
"जी हां - मैंने और डाक्टर बनर्जी ने कश्मीर में पुरातत्त्व की दृष्टि से महत्त्वअवशेषों की खुदाई के लिए रिपोर्ट कल रात तैयार की थी। दीवान सुरेन्द्रनाथ उस ई का खर्चा उठाने के लिए तैयार थे, लेकिन पैसा लगाने से पहले वे रिपोर्ट का अध्ययन करना चाहते थे । डाक्टर बनर्जी आज सुबह नौ बजे अपनी रिपोर्ट उनको सुनाना चाहते थे।"
"इसका मतलब तो यह हुआ कि कुछ और लोगों को भी यह मालूम था कि दीवान सुरेन्द्रनाथ आज सुबह नौ बजे अपने कमरे से बाहर आएंगे...?
"हां, राजेश और डाक्टर बनर्जी की पत्नी को भी पता था।"
इतने में एक व्यक्ति ने दबे पांव कमरे में प्रवेश किया। उसके हाथ में एक तश्तरी थी। तश्तरी में एक प्लेट थी और पानी से भरा हुआ गिलास था। प्लेट में कटा नींबू था| शायद डिक्सन ने मेजर के आगमन से पहले उस व्यक्ति से पानी और नींबू मंगवाया था। मेजर ने उस व्यक्ति की ओर ध्यान से देखा जो पानी और डिक्सन के आगे पढ़ी हुई छोटी-सी तिपाई पर रखकर दरवाजे की ओर जा रहा था- "ठहरो, अगर मैं गलती नहीं करता तो तुम ही बावर्ची रूपा हो ! " मेजर ने कहा।
"जी, मेरे मां-बाप ने तो मेरा नाम रूपलाल रखा था, लेकिन यह भाग्य में नही के बूढ़ा हो जाने पर भी किसी के मुंह से अपना पूरा नाम सुन सकूंगा। बावर्ची ने निरीह स्वर में कहा |
"रूपलाल | " मेजर ने प्यार-भरे स्वर में कहा, "देख लो, मैं पहला व्यक्ति हूं, जो तुम्हारा पूरा नाम लेकर तुम्हारा भाग्य बदल रहा हूं ! अच्छा यह बताओ रूपा इस घर के सब आदमी सुबह नौ बजे इस घर में मौजूद थे?
"नहीं साहब ! दो आदमी नहीं थे। मेम साहब पौने नौ बजे कुछ सामान खरीदने चली गई थीं। उनके पीछे-पीछे कुछ मिनट के बाद राजेश बाबू भी घर से बाहर निकल गए थे ।”
“दीवान साहब कितने बजे अपने कमरे से बाहर आए थे ?"
"नौ बजने में पांच मिनट पर।"
"क्या तुमने डाक्टर बनर्जी को जाकर यह सूचना दी थी कि दीवान साहब ऊपर आ रहे हैं ?"
“नहीं, हुजूर ! दीवान साहब ने मना कर दिया था कि मैं डाक्टर साहब से जाकर कुछ न कहूं | वे अजायबघर का एक चक्कर लगाकर ऊपर जाना चाहते थे ।”
"उस समय डाक्टर साहब कहां थे ?"
"अपने पढ़ने के कमरे में।"
"और सिद्दीकू कहां था ?"
" अपने कमरे में लेटा हुआ था। उसकी तबियत खराब थी। ”
"तुम दीवान साहब को अजायबघर में छोड़कर कहां गए थे ?"
"बावर्चीखाने में । "
“क्या तुमने मिंस्टर डिक्सन को साढ़े दस बजे अजायबघर में प्रवेश करते देखा था या उनके पैरों की आहट सुनी हो या फिर उनकी आवाज तुम्हारे कान में पड़ी थी?"
"सरकार, मैं इन बातों पर ध्यान नहीं दे सका, क्योंकि ट्रांजिस्टर पर मालिक पुखराज की गाई हुई गजल सुन रहा था।"
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