सुबह आठ बजे सुनील के फ्लैट पर उसके टेलीफोन की घन्टी बजी।
सुनील ने रिसीवर उठाकर कान से लगा लिया और बोला - “हल्लो!”
“रमाकांत बोल रहा हूं ।” - दूसरी ओर से रमाकांत का चिड़चिड़ा स्वर सुनाई दिया ।
“काम हुआ ?” - सुनील ने आशापूर्ण स्वर से पूछा ।
“सत्तर तरह के पापड़ बेलने के बाद आधी दर्जन लोगों को नींद से जगाने और हजार तरह के झूठ बोलने के बाद जब कल्पना के घर का पता लगा तो वहां न कल्पना थी और न गिरीश । आस-पास से पूछताछ की, कुछ पता नहीं लगा । संयोग से ही एक सूत्र हाथ में लग गया ।”
“क्या ?”
“किसी ने बताया कि कल्पना की कोई सहेली हे जो लिटन रोड की नौ नम्बर इमारत के एक फ्लैट में अकेली रहती है । वह आजकल बम्बई गई हुई है और फ्लैट की चाबी कल्पना को देकर गई हुई है ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि सहेली ने एक मैना पाली हुई है जिसे वह बम्बई अपने साथ नहीं ले जा सकती । कल्पना को मैना के दाना पानी का इन्तजाम करने जाना पड़ता है । जब भी वह सहेली बम्बई जाती है मैना की वजह से अपने फ्लैट की चाबी कल्पना को दे जाती है । इत्तफाक से ही किसी ने उस सहेली का जिक्र कर दिया और काम बन गया ।”
“यानी कि गिरीश लिटन रोड की नौ नम्बर इमारत के फ्लैट में मौजूद है ।”
“मैंने उसे अपनी आंखों से नहीं देखा लेकिन उस फ्लैट में कल्पना के साथ एक आदमी है जरूर । मैंने परदों पर उसका साया पड़ता देखा है । हमने फ्लैट में घुसकर उसे देखने की कोशिश इसलिए नहीं की कि कहीं उसे शक हो गया तो वह वहां से भाग न जाये ।”
“फिर तो सम्भव है उस फ्लैट में गिरीश न हो, कोई और ही आदमी हो ।”
“मुझे तो उस आदमी के गिरीश होने की ही सम्भावना देखाई देती है बशर्ते कि कल्पना नाम की उस लड़की के कई आशिक न हों ।”
“प्लैट का नम्बर क्या है ?”
“उस इमारत के फ्लैटों पर नम्बर नहीं लगे हुए हैं । वह दूसरी मंजिल का सामने का फ्लैट है ।”
“ओके । थैंक्यू ।”
सुनील ने रिसीवर क्रैडिल पर रख दिया ।
दस मिनट से कम समय में वह तैयार हुआ और फ्लैट से बाहर निकल आया ।
मोटर साइकिल पर वह लिटन रोड पहुंचा ।
नौ नम्बर इमारत में दाखिल होने से पहले उसने उसके आस पास एक चक्कर लगाया ।
दूसरी मंजिल के सामने के फ्लैट से बाहर निकलने का एक ही रास्ता था जो सामने सीढियों में पड़ता था ।
सुनील दूसरी मंजिल पर पहुंचा । उसने सामने के फ्लैट की काल बैल पर उंगली रख दी ।
“कौन है ?” - भीतर से एक सशंक स्त्री स्वर सुनाई दिया ।
“पोस्टमैन” - सुनील बोला - “टैलीग्राम है ।”
“किस की ?”
“आपकी ।”
“नाम बताओ ।”
“मिस कल्पना ।”
“कहां से आई है ?”
“बम्बई से ।”
“किसने भेजी है ?”
“मुझे नहीं मालूम ।” - फिर सुनील झुंझलाये स्वर से बोला - “मैडम, दरवाजा खोलिये । मुझे और जगह भी जाना है ।”
कुछ क्षण चुप्पी रही और फिर भीतर से आवाज आई - “टैलीग्राम दरवाजे के नीचे से भीतर धकेल दो ।”
“टैलीग्राम तो धकेल दूंगा लेकिन आपको डिलीवरी डिलीवरी स्लिप पर दस्तखत भी तो करने पड़ेंगे ।”
दरवाजा खुला ।
एक सुन्दर युवती ने बाहर झांका ।
“पोस्टमैन कहां है ?” - वह बोली ।
“आपका नाम कल्पना है ?” - सुनील बोला ।
“हां, लेकिन...”
“मैं ही पोस्टमैन हूं । मुझे भीतर आने दीजिये ।”
और सुनील जबरदस्ती दरवाजा धकेल कर भीतर प्रविष्ट हो गया ।
“यह क्या बद्तमीजी है ।” - कल्पना झल्लाकर बोली । उसके स्वर में भय का स्पष्ट पुट था ।
सुनील ने देखा वह एक काफी बड़ा और खूबसूरत फ्लैट था ।
“गिरीश कहां है ?” - वह फ्लैट में चारों ओर निगाह फिराता हुआ बोला ।
“गिरीश ! कौन गिरीश ?”
“वक्त बरबाद मत कीजिये । आप जानती है मैं किस गिरीश की बात कर रहा हूं ।”
“मैं किसी गिरीश को नहीं जानती ।”
“झूठ मत बोलिये । शायद आप नहीं जानती हैं कि अपराधी को शरण देना भी अपराध है ।”
“वह अपराधी नहीं... मैंने कहा न यहां कोई गिरीश नहीं है ।”
सुनील यूं हंसा जैसे उसने भारी मजाक की बात सुन ली हो ।
“कौन हो तुम ? ...तुम पुलिस के आदमी हो ?”
“नहीं । मैं अखबार का रिपोर्टर हूं । आपको मालूम ही होगा कि एक हत्या हो गई है और उसका सन्देह गिरीश पर किया जा रहा है । हम गिरीश का बयान अपने अखबार में छापना चाहते हैं । मिस कल्पना, विश्वास कीजिये, मुझसे बात करके गिरीश को फायदा ही होगा नुकसान नहीं ।”
“पता नहीं क्या बक रहे हो तुम ? तुम फौरन निकलो यहां से मैं शोर मचाती हूं ।”
“अच्छी बात है” - सुनील निर्णयात्मक स्वर से बोला - “शोर मचाने की जरूरत नहीं । मैं निकल जाता हूं लेकिन आप की जानकारी के लिये मैं इस फ्लैट को बाहर से कुंडा लगा दूंगा और फिर पुलिस को फोन द्वारा सूचित कर दूंगा कि गिरीश यहां छुपा हुआ है । पलक झपकते ही पुलिस यहां पहुंच जायेगी और वह गिरफ्तार हो जायेगा । मुझे मालूम है इस फ्लैट से बाहर निकलने का कोई दूसरा रास्ता नहीं है । पुलिस के पहुंचने तक इस बात का मैं खुद ख्याल रखूंगा कि वह फ्लैट से बाहर न निकल पाये ।”
कल्पना का चेहरा फक पड़ गया ।
“बन्दा चला ।”
उसी क्षण फ्लैट के भीतर का एक दरवाजा खुला । एक आदमी बाहर निकला और बोला - “ठहरो ।”
सुनील ने घूरकर देखा वह वही आदमी था जो कल सुबह माला जायसवाल की कोठी पर सीधा उसका छाती से आ टकराया था ।
“तुम्हारा नाम गिरीश है ?” - सुनील बोला ।
“हां” - वह आदमी तनिक कम्पित स्वर से बोला - “क्या चाहते हो ?”
“मुझे पहचाना ?”
“हां । मैंने कल तुम्हें माला जायसवाल की कोठी से निकलते देखा था ।”
“मेरा नाम सुनील कुमार चक्रवर्ती है । मैं ‘ब्लास्ट’ का विशेष प्रतिनिधि हूं ।”
“क्या चाहते हो ?”
“इन्टरव्यू ।”
“दरवाजा भीतर से बन्द कर दो ।”
सुनील ने दरवाजा भीतर से बन्द कर दिया ।
तीनों बैठ गये ।
“माला जायसवाल से तुम्हारा क्या सम्बन्ध है ?” - गिरीश ने पूछा ।
“कुछ भी नहीं” - सुनील बोला - “मैंने कल से पहले कभी सूरत भी नहीं देखी थी उसकी । मैं तो अखबार के लिये उसका इन्टरव्यू लेने आया था । लेकिन वह क्योंकि तुम्हारा इन्तजार कर रही थी इसलिये उसने मुझे टाल दिया और शायद मजाक में, आधी रात को इन्टरव्यू के लिए आने के लिए कह दिया । मैं आधी रात को वहां तो वह मरी पड़ी थी ।”
“मेरे में क्या दिलचस्पी है तुम्हारी ?”
“तुम्हारी पुलिस को तलाश है ।”
“म... मेरी ?”
“और नहीं तो क्या ? तुमने शाम को माला जायसवाल से शादी की और उसके थोड़ी देर बाद ही उसका कत्ल हो गया । ऐसी हालत में क्या पुलिस को तुम्हारी तलाश नहीं होगी ? तुम उनकी निगाह में सस्पेक्ट नम्बर वन हो ।”
“लेकिन मैंने माला का खून नहीं किया ।”
“पुलिस तो यही समझती है ।”
“मैं माला का खून क्यों करूंगा ।”
“क्योंकि माला डेढ करोड़ रुपये की दौलत की स्वामिनी है और उसकी मौत के बाद उसके कानूनी वारिस तुम हो । पुलिस का ख्याल है कि तुमने दौलत के लालच में माला का खून कर दिया है ।”
“पुलिस का ख्याल गलत है । मैंने माला का खून नहीं किया है । बाई गॉड, मैंने माला का खून नहीं किया है ।”
“तो फिर तुम वहां से भागे क्यों ?”
“मैं डर गया था ।”
“माला के खून के समय तुम कोठी में ही थे ?”
“नहीं । अविनाश कुमार के चले जाने के बाद मैं और माला कोठी में अकेले रह गए थे । उसी वक्त टेलीफोन की घन्टी बज उठी थी । वार्तालाप मैंने सुना था । दूसरी ओर से कोई गिरधारी लाल नाम का आदमी बोल रहा था । वार्तालाप से मैं इतना समझा था कि गिरधारी लाल सिग्मा एक्सपोर्ट्स नाम की किसी कम्पनी का पार्टनर था । उस कम्पनी की पहले सेठ हुकुमचन्द जायसवाल और अब माला जायसवाल पार्टनर थी । माला जायसवाल की बातों से लगता था कि वह सिग्मा एक्सपोर्ट्स के बारे में या गिरधारी लाल के बारे में कुछ भी नहीं जानती थी । सेठ हुकुमचन्द जायसवाल का इतनी कम्पनियों में दखल था कि उन सबकी पूरी जानकारी अभी माला को नहीं थी । गिरधारी लाल किसी महत्वपूर्ण मामले में बात करने के लिए कोठी पर उसी वक्त आना चाहता था । पहले माला ने इनकार कर दिया था लेकिन बाद में वह मान गई थी । फोन रखने के बाद उसने मुझे कहा था कि मैं दो ढाई घण्टे के लिए कहीं चला जाऊं क्योंकि फिलहाल वह हर किसी को मेरी जानकारी नहीं होने देना चाहती थी ।”
“और तुम कोठी से निकल गए ?”
“और क्या करता मैं ? मुझे कोई सच ही उसके पति का रुतबा थोड़े ही हासिल हो गया था । आखिर था तो मैं उसका नौकर ही ।”
“तुम कोठी से कितने बजे निकले थे ?”
“आठ बजे ।”
“गए कहां ?”
“मैं कल्पना के घर चला आया था ।”
“यहां ?”
“नहीं” - कल्पना बोली - “यह तो मेरी सहेली का फ्लैट है । मैं तो धर्मपुरे में रहती हूं । गिरीश वहां आया था ।”
“आई सी ! फिर ?”
“लगभग आधी रात को मैं वापिस माला की कोठी पर गया । वहां मैंने पुलिस की जीपें और ढेरों पुलिस के आदमी देखे । अड़ोस-पड़ोस के कई आदमी सड़क पर इकट्ठे हो गये थे । उन्हीं की बात से मुझे मालूम हुआ कि माला का खून हो गया है । मैं घबरा गया और चुपचाप वहां से खिसक आया ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि मुझे लग रहा था कि मैं जान बूझकर इस बखेड़े में फंसाया गया हूं । वह टैम्परेरी शादी वाली बात मुझे हजम नहीं हो रही थी लेकिन उस अजीबोगरीब सिलसिले में सहयोग देने के बदले में मुझे पच्चीस हजार रुपया मिलने वाला था । मुझ जैसे गरीब आदमी के लिए पच्चीस हजार रुपये की रकम का लालच छोड़ पाना असम्भव था । लेकिन कत्ल के बाद मुझे ऐसा लगने लगा कि उस रकम के लालच में डालकर मुझे कत्ल के इलजाम में फंसाने के लिये स्कीम बनाई गई थी ।”
“तुम्हें फिर भी भागना नहीं चाहिए था । भागने से तुमने अपने आपको ज्यादा सन्देहजनक स्थिति में डाल दिया है ।”
गिरीश चुप रहा ।
“अविनाश शाम को कहां था ?”
“शादी के बाद कोठी में तो हम तीनों साथ ही लौटे थे । मैं वापिस लौट आना चाहता था लेकिन माला चाहती थी मैं वहीं रहूं । अविनाश के व्यवहार से ऐसा लगता था कि वह मुझे और माला को वहां अकेला छोड़कर जाना नहीं चाहता था । मैं भी कोठी में माला के साथ अकेला रहकर खुश नहीं था । अविनाश ने कुछ ऐसे शक्की अन्दाज से यह बात माला को कही कि मुझे वहां नहीं रहना चाहिए कि माला चिढ गई और जिद में उसने यह फतवा सुना दिया कि मैं वहीं रहूंगा और अविनाश अब वहां से चला जाए क्योंकि उसकी वहां कोई जरूरत नहीं रह गई थी ।”
“अविनाश वहां से किस वक्त गया था ?”
“सात बजे ।”
“और कुछ ?”
“और कुछ क्या ?”
“कोई ऐसी बात जो इस सारे सिलसिले से सम्बन्धित हो और जिसे तुम जिक्र के काबिल समझते होवो ?”
“कपड़ा मिल में एक छोटी सी घटना घटी थी । अविनाश मुझे अपने साथ वहां नौकरी दिलाने ले गया था । वहां का असिस्टेण्ट परसनल मैनेजर अविनाश का दोस्त था । उसने मुझे तुरन्त नौकरी दे दी थी । उसी दौरान में एक बुनते पर काम करने बाले मजदूर पर अविनाश की निगाह पड़ी थी और वह सख्त हैरान हआ था । उसके कथनानुसार उस मजदूर की शक्ल थोड़ी बहुत वक्त के साथ हुई तबदीली के अलावा हूबहू माला जायसवाल के पहले पति मेजर कश्यप से मिलती थी । अविनाश कहता था कि अगर उसे पूरा विश्वास न होता कि मेजर कश्यप मर चुका है तो वह जरूर उस मजदूर को मेजर कश्यप समझ लेता । असिस्टेन्ट परसनल मैनेजर मित्तल ने भी मजाक में कहा था कि अगर वह मेजर कश्यप होता तो क्या मिल में मजदूर की हैसियत से नौकरी कर रहा होता ?”
“अविनाश ने उस मजदूर से बात नहीं की ?”
“की थी । उसने मजदूर से पूछा था कि क्या उसका मेजर कश्यप से कोई रिश्ता था ? मजदूर ने कहा था कि उसने कीसी मेजर कश्यप का नाम तक नहीं सुना था । मित्तल ने बताया था कि वह मजदूर उसी रोज मिल में भर्ती किया गया था ।”
“और कुछ ?”
गिरीश चुप रहा ।
“देख, दोस्त” - सुनील एक गहरी सांस लेकर बोला - “मुझे तुम बेगुनाह मालूम हो रहे हो । मैं अपने अखबार के माध्यम से तुम्हें बहुत सपोर्ट करूंगा । लेकिन तुम्हारी वर्तमान स्थिति में एक बात बहुत जरूरी है ।”
“क्या ?”
“अपने आपको पुलिस के हवाले के कर दो ।”
“क्या ?”
“मैं ठीक कह रहा हूं । अगर तुम बेगुनाह हो तो तुम्हारा पुलिस की निगाहों में छुपे रहने का कोई मतलब ही नहीं है । पुलिस अभी भी तुम्हारी तलाश में है । अगर उन्होंने तुम्हें फरार करार दे दिया तो तुम भारी मुश्किल में पड़ जाओगे । सम्भव है कोई बेसब्र पुलिस वाला तुम्हें भाग निकलने से रोकने के लिए शूट ही कर दे । और यह निश्चय जानो, गिरीश, कि तुम पकड़े जरूर जाओगे । जैसे मैंने तुम्हारा पता लगा लिया वैसे ही पुलिस भी जरूर तुम्हारा पता लगा लेगी । इसलिए अच्छा यही है कि बजाय इसके कि पुलिस तुम तक पहुंचे तुम खुद पुलिस तक पहुंच जाओ । यह तुम्हारी बेगुनाही का बहुत बड़ा सबूत होगा और इसका पुलिस वालों पर और जनता पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा ।”
गिरीश चुप रहा ।
“क्या ख्याल है ?” - सुनील बोला ।
“ये ठीक कह रहे हैं ?” - कल्पना बोली ।
गिरीश के चेहरे पर अनिश्चय के भाव थे ।
“मैं पुलिस हैडक्वार्टर फोन करूं ।”
गिरीश कुछ नहीं बोला ।
सुनील अपने स्थान से उठा और कोने में रखे टेलीफोन की ओर बढा ।
गिरीश ने उसे रोकने की कोशिश नहीं की ।
सुनील ने पुलिस हैडक्वार्टर में प्रभूदयाल को फोन किया ।
प्रभूदयाल के लाइन पर आते ही वह बोला - “मैं सुनील बोल रहा हूं । गिरीश मिला ?”
“अभी नहीं” - प्रभूदयाल ने उत्तर दिया - “लेकिन जल्दी ही हम उसका पता लगा लेंगे कारपोरेशन के दफ्तर में आदमी भेज दिए हैं । दफ्तर खुलते ही...”
“तलाश बन्द कर दो । मैं गिरीश को लेकर पुलिस हैडक्वार्टर आ रहा हूं ।”
“क्या ?”
“हां ! गिरीश ‘ब्लास्ट’ के दफ्तर में आया है । उसने हमें सारी राम कहानी सुनाई है और हमने उसे स्वयं को पुलिस के सामने पेश कर देने की राय दी है ।”
“बड़ी शराफत दिखाई ।”
“मैं उसे लेकर आ रहा हूं ।” - और सुनील ने रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया ।
“चलो ।” - वह गिरीश की ओर घूमकर बोला ।
गिरीश अनमना सा उठ खड़ा हुआ । सुनील और वह द्वार की ओर बढे ।
“पुलिस हैडक्वार्टर पर क्या होगा ?” - एकाएक गिरीश ने सन्दिग्ध स्वर में प्रशन किया ।
“होना क्या है !” - सुनील लापरवाही से बोला - “वे लोग तुम्हारा बयान लेंगे, तुम्हें क्रॉस क्वेश्चन करेंगे और अगर उन्हें तुम पर ज्यादा ही सन्देह हुआ तो...”
“तो क्या ?”
“तो शायद तुम्हें एक दो दिन हवालात में रहना पड़े ।”
“हवालात ।”
गिरीश के चेहरे का रंग उड़ गया ।
“मैं नहीं जाऊंगा ।” - वह दृढ स्वर से बोला ।
“पागल मत बनो ।” - सुनील बोला और उसने गिरीश की बांह थाम ली ।
एक झटके से गिरीश ने अपनी बांह छुड़ा ली । बड़ी अप्रत्याशित ढंग से उसने सुनील को जोर से धक्का दिया । सुनील भरभराकर भीतर कमरे के फर्श पर जा गिरा ।
“गिरीश !” - कल्पना आंतकित स्वर से चिल्लाई ।
गिरीश ने जैसे सुना ही नहीं । वह छलांग मारकर फ्लैट से बाहर निकल गया । उसने भड़ाक से फ्लैट का दरवाजा बाहर से बन्द कर दिया ।
सुनील टुकर-टुकर बाहर से बन्द दरवाजे को घूर रहा था ।
और उसने प्रभूदयाल को फोन कर दिया था कि वह गिरीश को लेकिर पुलिस हैडक्वार्टर आ रहा था ।
***
प्रभूदयाल ने जोर से मेज पर घूंसा मारा और दहाड़कर बोला - “तुम निकल जाने दिया उसे ।”
“मैं क्या करता” - सुनील दबे स्वर से बोला - “उसने मुझ पर ऐसे अप्रत्याशित ढंग से हमला किया था कि मेरे सम्भलने से पहले ही वह वहां से रफूचक्कर हो गया था और जाती बार बाहर से दरवाजा भी बन्द कर गया था । दस मिनट तो मुझे दरवाजा खुलवाने में ही लग गए थे ।”
“लेकिन तुमने यह नौबत ही क्यों आने दी ?”
“मैं कर क्या सकता था ? मैं कोई पुलिस मैन तो हूं नहीं जो उसके हाथों में हथकड़ियां डाल देता । और फिर वह खुद मेरे साथ पुलिस हैडक्वार्टर आने के लिए राजी हुआ था । मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि वह यूं एकाएक भाग खड़ा होगा ।”
“लेकिन वह भागा क्यों ?”
“साइकलोजी । हवालात के नाम से उसका फ्यूज उड़ गया था ।”
“तुमने हवालात का जिक्र क्यों किया ?”
सुनील चुप रहा ।
प्रभूदयाल कुछ क्षण कहर भरी निगाहों से सुनील को घूरता रहा और फिर कुर्सी में धसक गया ।
“मैं अभी साले का वारन्ट निकलवाता हूं ।”
“वह बेगुनाह है ।”
“हां, क्यों नहीं । इसलिए तो वह पुलिस हैडक्वार्टर आने के नाम फरार हो गया । ...और साइकालोजी वाली बात अपने पास ही रखो । मैं ऐसे लोगों की साइकालोजी खूब समझता हूं । और मुझे किसी के यह समझाने की भी जरूरत नहीं है कि वह बेगुनाह है ।”
“कोई नई बात हो गई है ?”
“हमने गिरीश के घर का पता लगा लिया है । वहां से हमने गिरीश की उंगलियों के निशान उठाये हैं और जिस पीतल के फूलदान से माला जायसवाल की हत्या हुई है उस पर गिरीश की उंगलियों के निशान हैं । रही सही कसर उसने पुलिस हैडक्वार्टर आने से बचने के लिए फरार होकर पूरी कर दी है । क्या अब भी कहते हो कि वह बेगुनाह है ?”
“फूलदान पर उसकी उंगलियों के निशान उसे हत्यारा साबित करने के लिए काफी नहीं । इससे सिर्फ यही सिद्ध होता है कि उसने फूलदान को छुआ था, यह सिद्ध नहीं होता कि उसने फूलदान उठा कर माला के सिर पर भी मारा था ।”
“उसकी उंगलियों के निशान साफ बताते हैं कि उसके बाद फूलदान के किसी ने नहीं छुआ । इससे जाहिर होता है कि हत्या उसने की है । अगर थोड़ी देर के लिए यह मान लिया जाए कि वह हत्या के बाद वहां आया था और उसने बाद में फूलदान छुआ था तो इसका मतलब है कि उसे माला की हत्या की जानकारी हो चुकी थी । फिर एक ईमानदार नागरिक की तरह उसने हत्या की सूचना पुलिस को क्यों नहीं दी ? वह चुपचाप वहां से खिसक क्यों गया ?”
सुनील चुप रहा ।
“अब फूटो यहां से ।” - प्रभूदयाल बोला ।
सुनील उठ खड़ा हुआ ।
“और मैं तुम्हें आखिरी बार वार्निंग दे रहा हूं” - प्रभूदयाल दांत भींचकर बोला - “अगर अब तुमने दुबारा इस केस में टांग अड़ाने की कोशिश की तो मैं तुम्हारी वो गत बनाऊंगा कि तुम जिन्दगी भर याद रखोगे ।”
“मैं ध्यान रखूंगा ।” - सुनील बोला और प्रभूदयाल के कमरे से बाहर निकल आया ।
***
टेलीफोन डायरेक्ट्री के अनुसार सिग्मा एक्सपोर्ट्स का पार्टनर गिरधारी लाल मौजैस्टिक सरकल पर स्थित हसन मंजिल नाम की इमारत में रहता था । उसी इमारत की तीसरी मंजिल पर सिग्मा एक्सपोर्ट्स का दफ्तर था और पांचवीं मंजिल पर गिरधारी लाल का फ्लैट था ।
दफ्तर अभी खुला नहीं था ।
सुनील पांचवीं मंजिल पर पहुंचा ।
उसने गिरधारी लाल के फ्लैट की काल बैल के पुश पर उंगली रख दी ।
दरवाजा खुला । एक सूट-बूट धारी नौजवान चौखट पर प्रकट हआ ।
“मिस्टर गिरधारी लाल ?” - सुनील ने शिष्ट स्वर से पूछा ।
“नहीं” - नौजवान बोला - “मेरा नाम कुमार है । मैं उनका सेक्रेट्री हूं । फरमाइये ।”
“मुझे मिस्टर गिरधारी लाल से मिलना है ।”
“किस सिलसिले में ?”
“यह मैं उन्हें ही बताऊंगा ।”
“सॉरी, फिर तो मुलाकात नहीं हो सकेगी । साहब इस वक्त बिजी हैं ।”
“मैं इन्तजार कर लूंगा ।”
“आप काम मुझे बताइये । शायद मुझसे ही आपका मतलब हल हो जाये ।”
“नहीं होगा ।”
“फिर तो...”
“मेरा नाम सुनील है । मैं ‘ब्लास्ट’ का प्रतिनिधि हूं । यह मेरा कार्ड उन तक पहुंचा दो और उन्हें कह दो कि मैं माला जायसवाल के बारे में उनसे बात करने आया हूं । मेरे से न मिलना उनकी तन्दरुस्ती के लिये नुकसानदेय साबित हो सकता है ।”
कुमार का चेहरा कठोर हो गया । एक क्षण के लिये सुनील को यूं लगा जैसे वह उसे वहां से खिसक जाने के लिये कहने वाला हो लेकिन फिर उसने हाथ बढाकर सुनील का कार्ड ले लिया । वह सुनील को वहीं खड़ा छोड़कर भीतर फ्लैट में कहीं गुम हो गया ।
तीन मिनट बाद जब वह वापिस लौटा तो उसका चेहरा विनम्रता की प्रतिमूर्ति बना हुआ था ।
“तशरीफ लाइये ।” - वह बोला ।
“थैंक्यू ।” - सुनील बोला ।
कुमार उसे एक आफिसनुमा कमरे में छोड़ गया । कमरे में एक विशाल मेज के पीछे पड़ी घूमने वाली कुर्सी पर एक मोटा ताजा आदमी बैठा था । उसने एक निगाह सिर से पांव तक सुनील पर डाली और फिर बोला - “आप हैं मिस्टर सुनील !”
“जी हां” - सुनील बोला - “आप...”
“गिरधारी लाल” - वह व्यस्त स्वर से बोला - “फरमाइये ।”
“आप मुझे बैठने के लिये नहीं कहेंगे, मिस्टर गिरधारी लाल !” - सुनील शान्त स्वर से बोला ।
गिरधारी लाल ने कुर्सी में पहलू बदला । कुर्सी उसके वजन से चरमराई । उसके चेहरे पर नाराजगी के लक्षण प्रकट हुए और गायब हो गये ।
“सॉरी” - वह कठिन स्वर से बोला - “तशरीफ रखिये ।”
सुनील एक कुर्सी खींचकर बैठ गया ।
“फरमाइये” - वह बोला - “और जल्दी कीजिये । मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं ।”
“जो मैं आपसे कहने आया हूं” - सुनील सावधानी से शब्द चयन करता हुआ बोला - “मुझे विश्वास है उसे सुन चुकने के बाद आपके पास काफी वक्त निकल आयेगा ।”
“मैं सुन रहा हूं ।”
“आपके पार्टनर की हत्या हो गई है ।”
“आप माला जायसवाल की बात कर रहे हैं ?”
“जी हां ।”
“मुझे मालूम है । मैंने आज का अखबार पढा है । आप मुझ यही बताने आये हैं ?”
“नहीं । वास्तव में मैं आपके यह बताने आया हूं कि कल रात आप माला जायसवाल की हत्या के समय के आस पास माल जायसवाल की कोठी पर गये थे और यह तथ्य अभी न अखबार में छपा है और न पुलिस की जानकारी में आया है ।”
गिरधारी लाल कसमसाया । कुर्सी पहले से ज्यादा जोर से चरमराई ।
“तुम्हें गलतफहमी हुई है” - वह जोर से बोला - “मैं कल वहां नहीं गया ।”
सुनील मुस्कराया और फिर बोला - “कल शाम को साढे आठ बजे के करीब आपने माला जायसवाल को फोन किया था । माला जायसवाल ने आपको पहचाना नहीं था । आप ही ने उसे बताया था कि आप सिग्मा एक्सपोर्ट्स नाम की फर्म में उसके पार्टनर हैं और आपने उससे तुरन्त मिलने की इच्छा प्रकट की थी । वह आपसे उस समय मिलने को तैयार नहीं थी लेकिन बाद में आपके तीव्र अनुरोध पर उसने हामी भर दी थी । बाद में आप उसकी कोठी पर गये थे ।” - सुनील आखिरी वाक्य के एक-एक शब्द पर जोर देता हुआ बोला - “इस हकीकत को आप मेरे सामने नकार सकते हैं लेकिन जब यह बात ‘ब्लास्ट’ के माध्यम से पुलिस को मालूम होगी तो आप इनकार नहीं कर सकेंगे ।”
गिरधारी लाल परेशान दिखाई देने लगा ।
“मिस्टर गिरधारी लाल” - सुनील बोला - “आप माला जायसवाल को जीवित देखने वाले आखिरी आदमी थे ।”
“मैं नहीं” - गिरधारी लाल कठिन स्वर से बोला - “हत्यारा ! माला को जीवित देखने वाला आखिरी आदमी हत्यारा था । मैं तो उसे वहां जीती-जागती और सही सलामत छोड़कर आया था ।”
“यानी कि आप स्वीकार करते हैं कि आप वहां गये थे ?”
“आप चाहते क्या हैं, मिस्टर सुनील ?”
“मैं माला जायसवाल की हत्या के रहस्य की तह तक पहुंचना चाहता हूं ।”
“आप क्यों ? यह तो पुलिस का काम है । उसे करने दीजिये ।”
“शायद आपने मेरे परिचय पर ध्यान नहीं दिया । मैं ‘ब्लास्ट’ का रिपोर्टर हूं । अपने अखबार के पाठकों को फर्स्ट हैण्ड रीडिंग मैटर देना मेरा परम कर्तव्य है ।”
“और इसीलिए आप हत्या के रहस्य की तह तक पुलिस से पहले पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं ।”
“जी हां ।”
“बात कुछ जमी नहीं ।”
सुनील चुप रहा ।
“आपको यह कैसे मालूम हुआ मैं माला की कोठी पर गया था ?”
सुनील एक क्षण हिचकिचाया और फिर बोला - “मुझे गिरीश ने बताया है । आपका फोन आने के समय वह वहां मौजूद था ।”
“गिरीश ने यह बात पुलिस को भी बताई होगी ?” - गिरधारी लाल बेचैनी से बोला ।
“नहीं । अभी वह पुलिस के साथ नहीं लगा है ।”
“मैं चाहता हूं कि यह बात पुलिस को न मालूम हो कि हत्या की रात को मैं माला की कोठी पर गया था ।”
“क्यों ?”
“मैं पुलिस के बखेड़े में नहीं पड़ना चाहता । क्या आप इस मामले में अपनी जुबान बन्द रख सकते हैं ? मैं आपकी खामोशी की कोई भी कीमत अदा करने के लिये तैयार हूं ।”
सुनील ने एक जोर की जमहाई ली और फिर सरल स्वर से बोला - “गिरधारी लाल जी, देखिये खिड़की के बाहर कितनी अच्छी चिड़ियां उड़ रही हैं ।”
गिरधारी लाल ने खिड़खी की ओर देखने की तकलीफ नहीं की । उसने एक गहरी सांस ली और वह बोला - “अगर मैं आपको सारी दास्तान सच-सच सुना दूं और सुन चुकने के बाद अगर आपको ऐसा लगे कि पिछली रात मेरी और माला की मुलाकात का उसकी हत्या से कोई सम्बन्ध नहीं है तो क्या आप अपनी जुबान बन्द रखेंगे ?”
“यह हो सकता है ।”
“कल रात से पहले मैंने अपनी जिन्दगी में कभी माला जायसवाल की सूरत नहीं देखी थी । सिग्मा एक्सपोर्ट्स में मेरे पार्टनर सेठ हुकुमचन्द जायसवाल थे । अपनी जिन्दगी में ही उन्होंने यह पार्टनरशिप माला के नाम कर दी थी अर्थात इसका माला को विरासत में मिली जायदाद से कोई वास्ता नहीं है और उसकी बहन सरिता का इसमें कोई दखल नहीं है । सिग्मा एक्सपोर्ट्स एक स्वतन्त्र संस्था है । इसका जायसवाल इन्डस्ट्रीज से इतना ही सम्बन्ध है कि हम जायसवाल इन्डस्ट्रीज की दर्जन भर मिलों में बनने वाले माल को विदेशों में निर्यात करते हैं । आप मेरी बात समझ रहे हैं न ?”
“जी हां । मैं सुन रहा हूं ।”
“दुर्भाग्यवश माला जायसवाल की सिग्मा एक्सपोर्ट्स में कोई दिलचस्पी नहीं थी विशेष रूप से इसलिए क्योंकि अब उसे एक दर्जन बड़ी-बड़ी मिलों की मिल्कियत विरासत में मिल गई थी । इस विरासत के मुकाबले में सिग्मा एक्सपोर्ट्स का धन्धा बहुत छोटा है, बहुत मामूली है । माला जायसवाल सिग्मा एक्सपोर्ट्स से अपना हाथ खींच लेना चाहती थी । उसका यह फैसला मुझे तबाह कर सकता था ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि माला के इस कम्पनी से हाथ खींच लेने से जायसवाल इन्डस्ट्रीज की जो गुडविल हमें मिली हुई थी वह खत्म हो जाती । जायसवाल इंडस्ट्रीज का एक्सपोर्ट्स का काम सम्भालने के लिए कई और कम्पनियां सामने आ जातीं जो धन्धे में सिग्मा एक्सपोर्ट्स से अच्छी साबित हो सकती थीं या फिर जायसवाल इन्डस्ट्रीज अपना एक्सपोर्ट्स का काम खुद सम्भाल सकती थी । कहने का मतलब यह है कि माला जायसवाल का सहयोग खतम होते ही सिग्मा एक्सपोर्ट्स से नाम की फर्म के ही खतम होने की हालत पैदा हो सकती थी ।”
“फिर ?”
“जब से मुझे यह पता लगा था कि माला जायसवाल सिग्मा एक्सपोर्ट्स से अपनी पार्टनरशिप खतम कर देना चाहती है मैं तभी से उससे सम्पर्क स्थापित करने की कोशिश कर रहा था लेकिन मुझे कामयाबी हासिल नहीं हो रही थी । संयोगवश ही मैं पिछली रात उससे फोन पर बात करने में सफल हो गया था । बड़ी मुश्किल से मैं थोड़ा समय देने के लिए उसे तैयार कर पाया । मैं उसकी कोठी पर पहुंचा ।”
“कितने बजे ?”
“लगभग नौ बजे । मेरी उससे काफी लम्बी बातचीत हुई । मैंने बड़े सब्र से उसे सारी स्थिति समझाई ।”
“कोई नतीजा निकला ?”
“वह बोली कि वह फिर से सोचेगी और खुद ही अपने फैसले की मुझे सूचना दे देगी । साढे दस बजे मैं वहां से चला आया । ग्यारह बजे मैं यहां वापिस पहुंच गया था । मेरा सैक्रेट्री कुमार इस बात का गवाह है । पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार माला की हत्या ग्यारह बजे के बाद ही किसी समय हुई थी । इसलिए मैं तो उसका कातिल हो ही नहीं सकता । मैं तो उसे सही सलामत छोड़कर आया था ।”
उसी क्षण मेज पर रखे फोन की घन्टी बज उठी ।
गिरधारी लाल ने हाथ बढाकर फोन उठा लिया ।
“गिरधारी लाल !” - वह टेलीफोन में बोला । एक क्षण वह फोन सुनता रहा, फिर उसके माथे पर बल पड़ गए । उसने एक उड़ती निगाह सुनील पर डाली और फिर फोन में बोला - “हां हां, मैंने फोन किया था लेकिन इस वक्त मैं बिजी हूं । इस वक्त मुलाकात मुमकिन नहीं । तुम आधे घन्टे बाद आना ।”
और गिरधारी लाल ने रिसीवर रख दिया ।
“आपने नाहक किसी को आधा घंटा इन्तजार करवा दिया” - सुनील अपने स्थान से उठता हुआ बोला - “मैं तो जा रहा था ।”
“अरे बैठिये, साहब । चाय तो पीकर जाइए ।”
“नो थैंक्स” - सुनील बोला - “मैं चलूंगा ।”
“जैसी आपकी मर्जी” - गिरधारी लाल भी उठ खड़ा हुआ - “आपने देख ही लिया है मिस्टर सुनील कि मेरे माला के फ्लैट पर जाने का उसकी हत्या से कोई वास्ता नहीं है । यह महज एक इत्तफाक था कि मैं उसी रात को माला से मिला जिस रात उसकी हत्या हुई ।”
“ऐसा ही लगता है ।”
“तो मैं भरोसा रखूं कि इस बारे में आप अपने अखबार में कुछ नहीं छापेगे और पुलिस से भी इसका जिक्र नहीं करेगे ?”
“यह बात तो खुलेगी ही, गिरधारी लाल जी । मैं नहीं तो गिरीश इसका जिक्र पुलिस से करेगा ।”
“उसका भी मैं कोई हल सोचूंगा । फिलहाल आपकी तरफ से तो मैं निश्चिन्त रहूं न ?”
“फिलहाल ।”
“और बाद में ?”
“बाद की बाद में देखी जाएगी ।”
“आप कोई सन्तोषजनक बात नहीं कर रहे हैं ।”
सुनील केवल मुस्कराया ।
गिरधारी लाल फिर नहीं बोला ।
सुनील ने उसका अभिवादन किया और कमरे से बाहर निकल आया । बाहर कुमार मौजूद था । वह सुनील को फ्लैट के बाहर तक छोड़ने आया ।
लिफ्ट उसी फ्लैट पर खड़ी थी । सुनील लिफ्ट में प्रविष्ट हुआ । उसने चौथी मंजिल का बटन दबा दिया । लिफ्ट का दरवाजा बन्द होने तक कुमार फ्लैट से बाहर गलियारे में खड़ा रहा ।
लिफ्ट चौथी मंजिल पर रुकी । सुनील लिफ्ट से बाहर निकला और सीढियों के रास्ते वापिस पांचवीं मंजिल पर पहुंचा ।
गलियारा खाली था ।
सुनील पांचवीं मंजिल से ऊपर छत की ओर जाने वाली सीढियों पर पहुंचा और मोड़ पर छुपकर खड़ा हो गया ।
गिरधारी लाल ने किसी को आधे घन्टे बाद वहां आने के लिए कहा था । सुनील आगन्तुक की सूरत देखना चाहता था ।
ठीक आधे घन्टे बाद लिफ्ट पांचवीं मंजिल पर आकर रुकी ।
एक आदमी लिफ्ट से बाहर निकला और गिरधारी लाल के फ्लैट के दरवाजे पर जा खड़ा हुआ ।
सुनील ने सावधानी से गरदन निकाल कर सामने झांका । वह अविनाश था ।
***
सुनील ‘ब्लास्ट’ के आफिस में पहुंचा ।
वह रिसैप्शन के आगे से गुजरा ।
“मिस्टर सुनील ।” - रिसैप्शनिस्ट-कम-टेलीफोन आपरेटर रेणु ने इतने ज्यादा शिष्ट स्वर से आवाज लगाई कि सुनील घूम कर हैरानी से उसका मुंह देखने लगा ।
“क्या बात है” - वह बोला - “तबीयत तो ठीक है, मेम साहब ।”
“ए जन्टलमैन इज वेटिंग फार यू” - रेणु एक क्षण के लिए ठिठकी और फिर बोली - “सिन्स वैरी लांग ।”
सुनील ने देखा, रिसैप्शन डैस्क के सामने पड़ी गद्देदार कुर्सियों पर केवल एक ही ‘जन्टलमैन’ मौजूद था । सुनील का नाम पुकारा जाता सुनकर वह व्यग्रता से उठकर खड़ा हो गया ।
“मिस्टर सुनील ?” - वह आशापूर्ण स्वर में बोला ।
“जी हां” - सुनील बोला - “फरमाइये ।”
“मेरा नाम मजूमदार है ।”
दोनों ने हाथ मिलाया ।
“एण्ड वाट कैन आई डू फार यू, मिस्टर मजूमदार ?” - सुनील बोला ।
“मैं आपसे एक बहुत महत्वपूर्ण विषय पर बात करने आया हूं ।”
“तो कीजिए न ।”
“यहीं ?” - मजूमदार की व्याकुल दृष्टि अपने आसपास घूम गई ।
सुनील ने उसे सिर से पांव तक देखा । वह एक कम से कम पचपन साल का तन्दुरुस्त बूढा था और वह शानदार सूट पहने हुए था ।
“तशरीफ लाइये ।” - सुनील निर्णयात्मक स्वर से बोला ।
एक ओर जंगले लगे लम्बे गलियारे में से होता हुआ सुनील उसे अपने छोटे से केबिन में ले आया ।
“सिगरेट !” - सुनील ने अपने लक्की स्ट्राइक पैकेट में से एक सिगरेट लगाकर उसकी ओर बढाया ।
“थैंक्यू ।” - मजूमदार ने एक सिगरेट ले लिया ।
सुनील ने भी अपने लिए एक सिगरेट चुना । उसने पहले मजूमदार का और फिर अपना सिगरेट सुलगा लिया ।
“अब फरमाइये ।” - सुनील बोला ।
“मैं मजूमदार, मजूमदार चटर्जी अग्रवाल नाम की वकीलों की फर्म का सीनियर पार्टनर हूं । लाला जगतराम हमारे क्लायन्ट हैं आपने उनका नाम सुना होगा ।”
सुनील ने सहमति सूचक ढंग से सिर हिलाया । लाला जगत राम नगर के एक प्रतिष्ठित उद्योगपति थे ।
“मैं उन्हीं की ओर से आपसे बात करने आया हूं ।” - मजूमदार बोला ।
“किस सिलसिले में ?”
“मैं आपके लिए एक ऐसी प्रपोजल लाया हूं जिससे आपको ढेरों रुपया हासिल हो सकता है ।”
“कितना ?”
मजूमदार एक क्षण हिचकिचाया और फिर बोला - “एक लाख । आप चाहें तो इससे भी ज्यादा ।”
तीन घन्टे से भी कम समय में यह दूसरा मौका था जब सुनील को दौलत की झलक दिखाई जा रही थी ।
“प्रपोजल क्या है ?” - उसने भावहीन स्वर से पूछा ।
“पहले मैं आपसे एक वादा चाहता हूं । वादा कीजिए कि आप मेरी बताई बातों को गोपनीय रखेंगे ।”
“बिना बात सुने ऐसा कोई वादा मैं कैसे कर सकता हूं ?”
“आप कर सकते हैं । क्योंकि जो बाते मैं आपको बताने जा रहा हूं । उनसे आपका वास्ता निकलना तो दूर की बात है उनमें आपकी दिलचस्पी भी नहीं पैदा होगी । विश्वास कीजिए ।”
“फिर मुझे ऐसो कोई वादा करने में क्या एतराज हो सकता है ?”
“थैंक्यू ।” - मजूमदार ने यूं शांति की सांस ली जैसे कोई किला फतह हो गया हो - “हमारे क्लायन्ट लाला जगतराम एक मुद्दत से जायसवाल इन्डसट्रीज का कन्ट्रोल अपने हाथ में लेने के लिए लालायित हैं । यह एक ऐसी इच्छा थी जिसका सेठ हुकुमचन्द जायसवाल की जिन्दगी में पूरा होना सम्भव नहीं था ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि जायसवाल इन्डस्ट्रीज के साठ प्रतिशत शेयर सेठ हुकुमचन्द जायसवाल के पास थे इसलिए वोट के दम पर कम्पनी का कन्ट्रोल उनके हाथ से निकालना असम्भव था लेकिन सेठ हुकुमचन्द जायसवाल की मौत के बाद स्थिति एक ऐसा अप्रत्याशित पलटा खा गई कि लाला जगतराम को अपना सपना पूरा होने की सम्भावना दिखाई देने लगी ।”
“क्या फर्क आ गया ?”
“सेठ हुकुमचन्द जायसवाल अपनी सारी सम्पति अपनी दो भतीजियों के नाम कर गये यानी कि अब दोनों भतीजियां तीस-तीस प्रतिशत शेयरों की स्वामिनी बन गई । लाला जगतराम चुपचाप जायसवाल इन्डस्ट्रीज के पच्चीस प्रतिशत शेयर मार्केट से खरीद चुके हैं इससे अधिक शेयर मार्केट में बिकाऊ नहीं हैं । अब स्थिति यह है कि तीस प्रतिशत शेयरों की स्वामिनी माला जायसवाल है, पच्चीस प्रतिशत शेयर सेठ जगतराम के पास हैं और बाकी के पन्द्रह प्रतिशत शेयर सौ-सौ, दो-दो सौ, पांच-पांच सौ, हजार-हजार की गिनती में अन्य लोगों के पास हैं । यदि दोनों बहनों में से कोई अपने शेयर लाला जगतराम को बेचने के लिए तैयार हो जाए तो उनके पास पचपन प्रतिशत शेयर हो जाते हैं और कम्पनी का कन्ट्रोल उनके साथ में आ जाता है । छोटी बहन सरिता से तो शेयर बेचने की अपेक्षा करना भी बेकार था क्योंकि उसका पति शान्ति स्वरूप कम्पनी का वर्तमान प्रेसीडैन्ट है और वह अपनी बीवी को अपने शेयर हरगिज नहीं बेचने देगा । जाहिर है कि सरिता वही करेगी जो उसका पति उसको करने के लिए कहेगा । हमारी सारी उम्मीदें माला जायसवाल पर लगी हुई थीं ।”
मजूमदार एक क्षण रुका और फिर बोला - “दो बातें ऐसी थीं जिसकी वजह से हमें पूरा विश्वास था कि माला जायसवाल को अपने शेयर बेचने के लिए मनाया जा सकता था । एक तो उसकी जायसवाल इन्डस्ट्रीज में कोई दिलचस्पी नहीं थी और दूसरे उसे अपने जीजा शान्ति स्वरूप सख्त नापसन्द थे ।”
“क्यों ?”
“वजह हमें नहीं मालूम लेकिन हमें विश्वस्त सूत्रों से मालूम हुआ था कि माला जायसवाल को शान्ति स्वरूप इस हद तक नापसन्द है कि अगर उसे शान्ति स्वरूप को कोई चोट पहुंचाने का मौका मिलेगा तो वह इसे छोड़ेगी नहीं । अपने शेयर लाला जगतराम को बेचकर वह शान्ति स्वरूप को बहुत भारी झटका दे सकती थी । तब शान्ति स्वरूप कम्पनी का प्रेसीडेन्ट नहीं रह पाता । माला जायसवाल का सहयोग निकल जाने पर कम्पनी का कंट्रोल उसके हाथ से निकल जाता ।”
“आपने माला से बात की ?”
“जी हां, और उसे बड़े धीरज के साथ सारी स्थिति समझाई । माला जायसवाल बड़ी आसानी से अपने शेयर बेचने के लिए तैयार हो गई लेकिन इससे पहले कि वह अपने शेयर बेच पाती उसकी हत्या हो गई और हमारे सारे किए धरे पर पानी फिर गया । अब वर्तमान स्थिति में हम कामयाबी की आशा तभी कर सकते हैं जबकि आप हमारी मदद करें ।”
“मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूं ?” - सुनील हैरानी से बोला ।
“अब तो सब कुछ आप ही के हाथ में है साहब” - मजूमदार हाथ फैलाकर बोला - “माला जायसवाल का चन्द घन्टों का पति गिरीश अगर माला जायसवाल की हत्या के इलजाम से बरी हो जाये तो वह माला की सम्पति का कानूनी हकदार होगा । तब जायसवाल इन्डस्ट्रीज के तीस प्रतिशत शेयरों का मालिक वह होगा ।”
“वह तो ठीक है लेकिन मैं इस तसवीर में कहां फिट होता हूं ?”
“वही बताने जा रहा हूं । मुझे विश्वस्त सूत्रों से मालूम हुआ है कि आप गिरीश के सम्पर्क में हैं । आपने गिरीश को पुलिस की नजरों से बचाकर कहीं छुपा रखा है ।”
“मैने उसे कहीं छुपा रखा है ?” - सुनील हैरानी से बोला - “क्या... कह रहे हैं आप !”
“देखिए नाराज होने की बात नहीं है” - मजूमदार विनम्र स्वर से बोला - “मुझे ऐसी ही सूचना मिली है । मुझे बताया गया है कि आपने पुलिस हैडक्वार्टर फोन करके कहा कि आप गिरीश को वहां ला रहे हैं लेकिन लाए नहीं । शायद बाद में आपका इरादा बदल गया और आपने उसे कहीं छुपा दिया ।”
“बड़ी हैरानी की बात है कि आप जैसे समझदार और तजुर्बेकार आदमी ने इस चण्डूखाने की गप्प पर विश्वास कर लिया । गिरीश क्या मेरा चाचा लगता है जो मैं उसके लिए इतना खतरा उठाऊंगा । और फिर...”
“प्लीज ! प्लीज ! प्लीज, मिस्टर सुनील ! आई एम आफुली सॉरी । भगवान के लिये मुझे गलत मत समझिये । मैने जैसा सुना था वैसा आपसे कह दिया लेकिन अगर आपके कथनानुसार मेरी सूचना गलत भी है तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता । आप फिर भी हमारी मदद कर सकते हैं ।”
“मैं सुन रहा हूं ।”
“गिरीश देर सवेर गिरफ्तार तो हो ही जायेगा । अगर आप गिरीश को बेगुनाह सिद्ध करने में कामयाब हो जायें और बाद में उसे अपने शेयर हमें बेचने के लिए तैयार कर लें तो हम आप को नकद एक लाख रुपया देने के लिये तैयार हैं ।”
“हूं ।”
“साहब, अगर कहीं गिरीश गुनहगार सिद्ध हो गया तो हमारी सारी योजना चौपट हो जायेगी । तब माला का हिस्सा भी सरिता को मिल जायेगा और फिर शान्ति स्वरूप के हाथ से कम्पनी का कन्ट्रोल छीनना एक असम्भव काम हो जायेगा ।”
“अगर माला की जायदाद का हक हासिल हो जाने के बाद गिरीश अपने शेयर बेचने के लिए तैयार न हुआ तो ?”
“शेयर तो उसे बेचने पड़ेगे, साहब । मजबूरन बेचने पड़ेंगे । डेढ करोड़ रुपये की जायदाद पर उस लाखों रुपये की एस्टेट ड्यूटी देनी पड़ेगी । शेयर बेचे बिना लाखों रुपया गवर्नमेंट को देने के लिए कहां से लायेगा वह । शेयर तो वह बेचेगा ही । फर्क सिर्फ यह पड़ेगा कि आपके कहने पर वह शेयर हमें ही बेचेगा किसी और को नहीं ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि आप उसे हत्या के इलजाम से बरी करायेंगे तो वह आपका अहसान मानेगा और फिर वह आपकी बात को टालेगा नहीं । विशेष रूप से जब कि हमारा उसके शेयर बाजार भाव से सस्ते में खरीदने का कतई इरादा नहीं है । हम तो उसके शेयर मार्केट के वर्तमान भाव पर खरीदने को तैयार हैं । अगर वह अपने सारे शेयर खुद बेचने की कोशिश करेगा तो शेयर का भाव एकदम नीचे आ जायेगा । हमें शेयर बेचने में उसे हर हाल में फायदा है ।”
सुनील चुप रहा ।
“तो फिर मैं आपके सहयोग की उम्मीद रखूं साहब ?” - मजूमदार व्यग्र स्वर से बोला ।
“अभी मैं कुछ नहीं कह सकता ।”
“लेकिन आप हमारी प्रपोजल पर विचार तो करेंगे ? विश्वास जानिये, सुनील साहब, इस में कोई धोखाधड़ी या शरारत वाली बात नहीं है । यह एकदम फेयर आफर है ।”
“इसीलिए तो मैंने सीधे-सीधे इनकार नहीं किया है ।”
“यानी कि मैं उम्मीद रखूं ?”
“क्यों नहीं, उम्मीद पर तो दुनिया कायम है ।”
“ओह थैंक्यू वैरी मच, मिस्टर सुनील ।” - मजूमदार ने यूं झपट कर सुनील से हाथ मिलाना आरम्भ किया जैसे अभी-अभी सुनील ने उसके नाम सारी खुदाई लिख दी हो ।
सुनील बड़ी मुश्किल से मजूमदार की गिरफ्त से अपना हाथ निकाल पाया ।
“और भगवान् के लिए यह बात राज ही रखिएगा कि लाला जगतराम जायसवाल इन्डस्ट्रीज का कन्ट्रोल अपने हाथ में लेने की कोशिश कर रहा है ।”
“निश्चिन्त रहिये ।”
कृतज्ञताज्ञापन के लिए मजूमदार ने फिर सुनील का हाथ झपटने की कोशिश की लेकिन सुनील ने अपने दोनों हाथ पतलून की जेब में धंसा लिए ।
मजूमदार ने अपनी जेब से सौ सौ के नोटों की एक गड्डी निकाली और उसे यूं सुनील के सामने रख दिया जैसे वह श्रद्धा से विभोर होकर भगवान की प्रतिमा को फूल अर्पित कर रहा हो ।
“यह क्या है ?” - सुनील ने नम्र स्वर से पूछा ।
“दस हजार रुपया” - मजूमदार बोला - “एडवांस ।”
“जरूरत नहीं, मजूमदार साहब । मुझे पहले आपके माल का हकदार बनने दीजिये ।”
“लेकिन फिर भी...”
सुनील ने नोटों की गड्डी उठाई और उसे जबरदस्ती मजूमदार के कोट की जेब में ठूंस दिया ।
“हीं हीं हीं ।” - मजूमदार ने खीसें निपोरीं ।
“नमस्ते ।” - सुनील बोला ।
मजूमदार वहां से यूं विदा हुआ जैसे सुनील से बिछड़ने में उसे बहुत तकलीफ हो रही हो ।
मजूमदार के आगमन ने केस में कई सम्भावनायें उत्पन्न कर दी थीं । शान्ति स्वरूप अब उसे ज्यादा तगड़ा सस्पैक्ट लगने लगा था । अगर उसे मालूम था कि माला जयसवाल अपने शेयर लाला जगतराम को बेचने वाली थी तो उसे ऐसा करने से रोकने के लिए सम्भव था उसने माला की हत्या कर दी हो । और यह शायद उसे मालूम नहीं हो सका था कि माला पहले ही गिरीश से शादी कर चुकी थी ।
हत्यारा गिरधारी लाल भी हो सकता था । शायद माला उसके आग्रह पर सिग्मा एक्सपोर्ट्स से अपना हाथ खींच लेने के इरादे पर अटल रही हो और इसी बात को लेकर काफी तू तू मैं मैं हो गई हो और गिरधारी लाल से क्रोध मे आकर माला के सिर पर फूलदान दे मारा हो । उसने खुद स्वीकार किया था कि सिग्मा एक्सपोर्ट्स से माला के हाथ खींच लेने पर उसके बिजनेस का सर्वनाश हो सकता था । और उसकी ग्यारह बजे तक अपने घर लौट चुका होने वाली बात भी झूठ हो सकती थी । उसका इकलौता गवाह उसका सेक्रेट्री कुमार था और वह गिरधारी लाल के कहने पर झूठ बोल सकता था ।
एक बड़ी दूर की सम्भावना गिरीश की प्रेमिका कल्पना के हत्यारा होने की भी थी । गिरीश कल्पना को बता चुका था कि माला उससे टैम्परेरी शादी कर रही थी । कल्पना के मन में यह सम्भावना आई होगी कि अगर माला तलाक से पहले मर जाये तो उसकी सारी जायदाद का मालिक गिरीश बन जाएगा और उसने गिरीश को बिना बताये माला की हत्या कर दी हो ।
इस थ्योरी में सिर्फ एक ही खराबी थी । कल्पना बहुत खूबसूरत लड़की थी और सुनील की निगाह में औरत में या खूबसूरती होती है या अक्ल होती है । कल्पना जैसी लड़की के लिये लाभ का ऐसा लम्बा चौड़ा सिलसिला सोचना सुनील को सम्भव नहीं लग रहा था ।
या शायद कल्पना और गिरीश दोनों ने मिलकर ही माला की हत्या की स्कीम बनाई थी । और गिरीश तो पुलिस का पसन्दीदा सस्पैक्ट था ही ।
यह एक ऐसा केस था जिसमें सन्दिग्ध व्यक्तियों की कमी नहीं थी । हर किसी के पास ठोस उद्देश्य था । हत्यारा कोई भी हो सकता था ।
सुनील ने डायरेक्ट्री में शान्ति स्वरूप का नम्बर देखा और रेणु से वह नम्बर मांगा । रेणु ने तुरन्त नम्बर मिला दिया ।
“हल्लो ।” - उसे शान्ति स्वरूप की आवाज आई ।
“सुनील बोल रहा हूं” - सुनील बोला - “पहचाना साहब ? पिछली रात आपकी साली की कोठी पर आप से मुलाकात हुई थी ।”
“क्या चाहते हो ?” - शान्ति स्वरूप रूखे स्वर में बोला ।
“आपको एक बड़े काम की जानकारी देना चाहता हूं ।”
“क्या ?”
“माला का पहला पति मेजर कश्यप जो सात साल से लापता है और जिसे हर कोई मरा समझ रहा है आपकी कपड़ा मिल के एक खाते में मजदूर की हैसियत से काम कर रहा है ।”
“क्या कहा ?” - इस बार शान्ति स्वरूप के स्वर में रूखापन गायब हो चुका था ।
सुनील ने अपनी बात दोहरा दी ।
दूसरी ओर से सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।
सुनील ने रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया और अपने केबिन से बाहर निकल आया ।
“किस की जान लेने का इरादा है ?” - रिसैप्शन के समीप से गुजरते समय उसके कानों में रेणु का धीमा स्वर पड़ा ।
सुनील एक क्षण के लिए ठिठका, एक चमचमाती हुई मुस्कराहट उसने रेणु की ओर फेंकी, एबाउट टर्न किया और सीधा दफ्तर से बाहर निकल गया ।
रेणु ने उसके पीछे बुरा सा मुंह बनाया और होंठों में बुद बदाई - “पता नहीं क्या समझता है अपने आपको ।”
***
जायसवाल काटन मिल के सामने सुनील ने अपनी मोटर साइकिल रोकी और प्रतीक्षा करने लगा ।
थोड़ी ही देर बाद एक नई इम्पाला गाड़ी वहां प्रकट हुई ।
मिल के गेट कीपर ने ठोक कर सलाम मारा ।
गाड़ी मिल के भीतर प्रविष्ट हो गई ।
गाड़ी की पिछली सीट पर शान्ति स्वरूप बैठा था ।
सुनील भी मिल के भीतर की ओर बढा ।
“किससे मिलना है, साहब ?” - गेट कीपर ने उसे टोका ।
“असिस्टेण्ट परसनल मैनेजर मित्तल से ।” - सुनील बोला ।
“बाईं ओर रिसैप्शन पर जाइए, साहब ।”
सुनील उस इमारत की ओर बढ गया जिधर गेट कीपर ने संकेत किया था । सुनील उस इमारत के प्रवेश द्वार पर पहुंच कर ठिठका । उसने एक उड़ती निगाह गेट की ओर डाली ।
गेट कीपर एक ट्रक को पास देने में व्यस्त था ।
सुनील मुड़ा और सीधा मिल के भीतर घुस गया ।
उस विशाल मिल में शान्ति स्वरूप को तलाश करने में उसे अपेक्षा से ज्यादा समय लग गया ।
एक खाते के सामने मजदूरों की भीड़ लगी हुई थी । उनके बीच में शान्ति स्वरूप खड़ा था ।
“सिक्योरिटी आफिसर को बुलाओ ।” - उसे शान्ति स्वरूप की दहाड़ सुनाई दी ।
पलक झपकते ही कोई सिक्योरिटी आफिसर को बुला लाया । सिक्योरिटी आफिसर एक भारी भरकम आदमी था जो वहां पहुंचने में बुरी तरह हांफ गया था । उसने शान्ति स्वरूप को ठोक कर सैल्यूट मारा और फिर आदरपूर्ण स्वर से बोला
“क्या बात है, साहब ?”
“फोरमैन !” - शान्ति स्वरूप दहाड़ा ।
एक आदमी तत्काल आगे बढा और शान्ति स्वरूप के सामने खड़े एक मजदूर की ओर संकेत करके बोला - “यह आदमी अपना नाम वीरेन्द्र कुमार बताता है । साहब ने इसे नौकरी से निकाल दिया है लेकिन यह मिल से बाहर निकलने से इनकार कर रहा है ।”
“क्यों ?” - सिक्योरिटी आफिसर खा जाने वाली निगाहों से उस मजदूर को घूरता हुआ बोला ।
वह मजदूर लगता था किसी का रोब खाने के मूड में नहीं था । वह चुपचाप खड़ा रहा । उसके होंठों पर एक कुटिल मुस्कराहट थी ।
“यह एक महीने का नोटिस चाहता है ।” - फोरमैन बोला ।
“नोटिस की जरूरत नहीं” - सिक्योरिटी आफिसर बोला - “इसे एक महीने की तनख्वाह एडवांस में दे दो । चल भई” - वह उस मजदूर की ओर मुड़ा - “कैशियर के पास पहुंच, अपना पैसा ले और भाग यहां से ।”
वह अपनी जगह से हिला भी नहीं ।
“इसे किसने भरती किया था ?” - शान्ति स्वरूप कठिन स्वर से बोला ।
किसी ने असिस्टेन्ट परसनल मैनेजर मित्तल का नाम लिया । फिर कोई दौड़कर मित्तल को बुला लाया ।
“इसे तुमने भरती किया था ?” - शान्ति स्वरूप बोला ।
“जी ! जी हां, जी हां ।” - मित्तल हकलाया ।
“जानते हो यह कौन है ?”
“जी... जी... गरीब आदमी है । मैंने बुनते में लगाया है इसे मैंने...”
“जानते हो यह कौन है ?”
मित्तल के मुंह से बोल नहीं फूटा ।
“तुम कम्पनी के इतने पुराने नौकर हो । तुम्हें इसको पहचानना चाहिए था । यह मिसेज माला जायसवाल का पति मेजर कश्यप है ।”
“लेकिन... लेकिन... वह तो मर...”
“मरा नहीं है यह । यह जीता जागता सही सलामत यहां खड़ा है ।”
“म.. मैंने यह तो जरूर नोट किया था साहब कि.. कि इसकी... सूरत मेजर कश्यप से मिलती है लेकिन क्योंकि मैं मेजर कश्यप को मरा समझ रहा था इसलिए... इसलिए ।”
“शट अप । फौरन इसे मिल से बाहर निकालो ।”
सिक्योरिटी आफिसर ने मजबूती से उस मजदूर की जो वास्तव में मेजर कश्यप था बांह थामी और कठोर स्वर से बोला - “चलो ।”
मेजर कश्यप ने एक ही झटके से अपनी बांह छुड़ा ली और बर्फ जैसे ठण्डे स्वर से बोला - “दुबारा मुझे हाथ लगाया तो तुम्हारी बांह कन्धे से उखाड़ दूंगा ।”
उसके स्वर में कुछ ऐसा प्रभाव था कि सिक्योरिटी आफिसर अपने आपमें सिकुड़ कर रह गया ।
“साथियो” - मेजर कश्यप उच्च स्वर में मजदूरों से सम्बोधित हुआ - “मैं जा रहा हूं । ये लोग मिल के रिकार्ड में यह जाहिर करने की कोशिश कर सकते हैं कि मैंने इस मिल में कभी नौकरी नहीं की लेकिन आप लोग मेरे गवाह हैं कि मैं इस मिल का यानी कि जायसवाल इन्डस्ट्रीज का कर्मचारी था । साथियो मुझे आप लोगों की शहादत की जरूरत पड़ सकती है । मुझे उम्मीद है आप इन मोटे पेट वाले सरमायेदारों का नहीं मेरा साथ देंगे जिसने आपके साथ कन्धे से कन्धा भिड़ाकर इस मिल में खड्डी चलाई है । दोस्तो, अपना हक हासिल कर चुकने के बाद मैं आप लोगों में फिर वापिस आऊंगा लेकिन जायसवाल इन्डस्ट्रीज के तीस प्रतिशत शेयरों के मालिक के रूप में नहीं आप लोगों के ही एक साथी मजदूर के रूप में । तब तक के लिए अलविदा साथियो ।”
कोई कुछ नहीं बोला लेकिन मेजर कश्यप के वक्तव्य का हर किसी के चेहरे पर स्पष्ट प्रभाव दिखाई दे रहा था ।
मेजर कश्यप ने इतनी जोर से अपने रूई के गालों और धूल से भरे कपड़े फटकारे कि धूल और रूई शान्ति स्वरूप के साफ सुथरे सूट तक पहुंच गई ।
उसने सिक्योरिटी आफिसर को एक ओर धकेला और शाही ठाठ से चलता हुआ मिल के फाटक की ओर बढ गया ।
“चलो, चलो । काम करो ।” - फोरमैन बोला ।
सुनील भीड़ के पीछे से चुपचाप खिसक गया ।
वह लपक कर मिल से बाहर पहुंचा ।
मेजर कश्यप टैक्सी स्टैण्ड की ओर बढ रहा था ।
“मेजर साहब !” - सुनील ने आवाज लगाई ।
मेजर कश्यप ठिठक गया ।
सुनील लपक कर उसके पास पहुंचा । अपनी जेब से अपना विजिटिंग कार्ड निकाल कर जबरदस्ती उसके हाथ में ठूंसता हुआ बोला - “मेरा नाम सुनील है । मैं ‘ब्लास्ट’ का रिपोर्टर हूं अभी कुछ देर पहले मिल में घटी घटना का मैं भी एक दर्शक था ।”
“क्या चाहते हैं आप ?” - वह नम्र स्वर से बोला ।
“आपका इन्टरव्यू । आपसे चन्द सवाल पूछना चाहता हूं ।”
“क्या पूछना चाहते हैं आप ?”
“आपके बारे में तो यह कहा गया था कि आप... आप...”
“मर गया हूं मैं ?”
“जी हां । जी हां ।”
“लेकिन मैं तो जीता जागता सही सलामत आपके सामने मौजूद हूं ।”
“जी हां । वह तो मैं देख रहा हूं लेकिन आप इतने साल गायब कहां रहे ?”
“पैंसठ की लड़ाई में मेरे दिमाग पर ऐसी चोट लगी थी कि मैं अपने बारे में सब कुछ भूल गया था । दो दिन तो मैं फ्रन्ट पर लाशों में ही दबा पड़ा रहा था । उसके बाद मैं पाकिस्तानियों द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया था । पहले तो वह यही समझते रहे कि मैं याददाश्त खो चुकने का बहाना कर रहा हूं लेकिन बाद में जब उन्हें मेरी हकीकत पर विश्वास हो गया तो उन्होंने मुझे पागलखाने भजे दिया और फिर अधिकारी मुझे भूल गए । लगभग सात साल मैं पागलखाने में बन्द रहा । वहां से ठीक होकर छूटा तो बेपनाह मुसीबतें उठाने के बाद हिन्दोस्तान पहुंचने में कामयाब हो गया । मैं वापिस राजनगर आया तो मालूम हुआ कि सेठ हुकुम चन्द जायसवाल मर चुके हैं और वे अपनी सारी जायदाद माला और सरिता के नाम छोड़ गए हैं । मुझे वसीयत की यह शर्त भी मालूम हुई कि माला के पति का जायसवाल इन्डस्ट्रीज का कर्मचारी होना जरूरी है । इसलिए मैं चुपचाप आकर कपड़ा मिल में भरती हो गया । माला के मौजूदा प्रेमी अविनाश ने तो मुझे पहचान भी लिया था लेकिन हर कोई मुझे शर्तिया मरा हुआ समझ रहा था इसलिए उसने इसे एक इत्तफाक ही समझा कि एक मिल मजदूर की सूरत मेजर कश्यप से मिलती थी ।”
“आपको मालूम है न कि माला की हत्या हो चुकी है ?”
“मालूम है ।”
“अब आपका क्या इरादा है ?”
“मेरा इरादा साफ है । मैं माला का पति हूं और कानूनी तौर पर अब माला की जायदाद का इकलौता वारिस हूं ।”
“लेकिन माला तो दूसरी शादी कर चुकी है ।”
“वह शादी गैरकानूनी है । अपने पहले पति को तलाक दिए बिना वह दूसरी शादी कैसे कर सकती है ?”
“मुझे तो आपकी कानूनी स्थिति कमजोर मालूम होती है । जो आदमी सात साल तक गायब रहे वह कानून की रूह में मरा समझ लिया जाता है चाहे वह बाद में जिन्दा ही क्यों न निकल आए । इस लिहाज से तो माला दूसरी शादी करने के लिए कानूनी तौर पर आजाद थी ।”
“इस बात में दो खराबियां है । पहली तो यही कि अभी सात साल ही पूरे नहीं हुए हैं और दूसरी यह कि माला को कानूनी तौर पर नई शादी करने से पहले अखबार में एक विज्ञापन देना था जिसमें यह घोषणा होती कि क्योंकि उसका पहला पति सात साल से लापता है इसलिए वह उसे मृत समझ कर दूसरी शादी कर रही है । माला ने ऐसी कोई विज्ञप्ति अखबार में नहीं छपवाई इसलिये उसकी गिरीश से शादी गैरकानूनी करार दी जा सकती है ।”
“आपने तो यूं एकाएक टपककर बड़ी पेचीदगी पैदा कर दी ।”
“इसमें मैं क्या कर सकता हूं । लोगों की सहूलियत के लिए मैं क्या सचमुच मर जाता ?”
“आपको उम्मीद है कि कोर्ट आपको माला की जायदाद का कानूनी वारिस करार दे देगा ?”
“उम्मीद क्या मुझे तो पूरा भरोसा है । मेरा तो एकदम ठोस केस है । गिरीश की तो इस सारे सिलसिले में कोई पूछ ही नहीं है । उसे अगर पहले से ही विवाहित औरत से शादी करने के इलजाम में सजा न हो तो भी उसे समझना चाहिए कि वह सस्ता छूटा । और मेरे जिन्दा रहते सरिता का तो जायदाद पर कोई हक ही नहीं बनता । शान्ति स्वरूप जो कि माला का हिस्सा सरिता को मिलने की उम्मीद कर रहा था बहुत मायूस होगा ।”
“आपको यह भी मालूम है ?”
“मुझे क्या नहीं मालूम । मैं जानता हूं कि मेरे एकाएक टपक पड़ने से शान्ति स्वरूप की सारी स्कीम चौपट हो गई है । वह शायद सोच रहा था कि माला की हत्या के इलजाम में गिरीश फांसी चढ जाएगा और जायदाद सरिता के हिस्से में आ जाएगी । सरिता जायसवाल इन्डस्ट्रीज के साठ प्रतिशत शेयरों की स्वामिनी बन जाएगी और कम्पनी में उसको प्रेसीडेन्टशिप से कोई कभी भी नहीं हिला सकेगा । लेकिन अब कम्पनी में मेरा भी उतना ही महत्व होगा जितना कि शांति स्वरूप का बल्कि उससे भी ज्यादा क्योंकि शेयरों की वास्तविक मालकिन उसकी बीवी है वह नहीं ।”
“आप अपने राजनगर में आगमन के बाद माला से मिले हैं ?”
मेजर कश्यप एक क्षण हिचकिचाया और फिर उसने नकारात्मक ढंग से सिर हिला दिया ।
“नहीं ?” - सुनील हैरानी से बोला ।
“नहीं ।” - मेजर कश्यप अविचलित स्वर से बोला ।
“अजीब बात है । आप इतने सालों बाद राजनगर में आए और आपको अपनी पत्नी से मिलने जाना जरूरी नहीं लगा । आपको तो सबसे पहले उसी से मिलने जाना चाहिए था ।”
“चाहता मैं भी था । लेकिन सात साल के लम्बे अरसे में समय में बहुत परिवर्तन आ गए थे । मैं माला से मिलने जाने में पहले हालात का जायजा ले लेना चाहता था और जो कुछ मुझे मालूम हुआ था उसकी रूह में मुझे विश्वास नहीं था कि माला मुझे देख कर खुश होती । मेरी लम्बी गैरहाजिरी की वजह से उसने मुझे बिल्कुल भुला दिया था और अपने भावी जीवन की दिशा इस ढंग से निर्धारित कर ली थी कि अब उसके जीवन में मेरे लिए कोई जगह नहीं थी । वह गले-गले तक अविनाश के इश्क में फंसी हुई थी और जल्दी ही उससे पहले शादी करने वाली थी । मुझे हालात ऐसे नहीं दिखाई दे रहे थे कि वह मुझे पति के रूप में स्वीकार कर लेती ।”
“उसके स्वीकारने न स्वीकारने से क्या होता है । रहते तो आप उसके पति ही ।”
“ठीक है लेकिन वह मुझे बाकायदा तलाक भी दे सकती थी ।”
“तलाक के सामने में आप कोई बखेड़ा खड़ा नहीं करते ?”
“क्या फायदा होता । सच पूछो तो मेरी भी माला में कोई दिलचस्पी बाकी नहीं रह गई थी । वह बहुत चंचल औरत थी । मेरी सात साल की गैरहाजिरी में वह कोई मेरे नाम की माला तो जपती नहीं रही होगी । उस दौर में उसकी जिन्दगी में पता नहीं कितने मर्द आए होंगे । उल्टे अगर वह मुझे तलाक का सुझाव देती और मेरी थोड़ी सी माली तौर पर भरपाई कर देती तो मैं तो उसे खुशी से तलाक दे देता ।”
“कितनी रकम की उम्मीद कर रहे थे आप ?”
“यही कोई पांच साल लाख रुपये ।”
“यह तो काफी मोटी रकम होती है ।”
“मेरे आपके लिए । माला जायसवाल के लिए नहीं ।”
“और अपनी स्थिति मजबूत रखने के लिए आपने जायसवाल काटन मिल में नौकरी की थी ।”
“जी हां, विरासत की इस शर्त की भनक मुझे भी पड़ चुकी थी । मैं हर स्थिति के लिए तैयार रहना चाहता था इसलिए मैं वहां भरती हो गया । आज सुबह जब मुझे माला जायसवाल की हत्या की खबर लगी तो मैंने उस मुबारक मौके को बहुत-बहुत याद किया जब मेरे दिमाग में काटन मिल में भरती होने का फायदेमन्द ख्याल आया था ।”
“मेजर साहब, आपने यह बात महसूस की है कि अगर आप राजनगर आने पर सीधे अपनी पत्नी के पास पहुंच जाते जैसा कि आपसे अपेक्षित था तो शायद उसकी हत्या होती ही नहीं । न वह गिरीश से शादी करती और न वह गरीब आदमी माला की हत्या के मामले में पुलिस की निगाहों में सस्पैक्ट नम्बर वन बन जाता ।”
“सम्भव है हत्या वाकई गिरीश ने की हो ।”
“सम्भव क्या नहीं है । जब तक हकीकत सामने न आ जाये तब तक तो कुछ भी सम्भव होता है । सम्भव तो यह भी है... बुरा मत मानियेगा, साहब... कि हत्या आपने की हो ।”
“मैंने ?”
“जी हां ! क्यों नहीं । आपने खुद स्वीकार किया है कि माला की आप में कोई दिलचस्पी बाकी नहीं थी । अगर आप जबरदस्ती उसके गले पड़ने की कोशिश करते तो वह आप को तलाक देकर आपसे पीछा छुड़ा लेती । लेकिन अगर माला मर जाये तो आप उसके कानूनी पति बने रहेंगे और परिणामस्वरूप विरासत में उसकी सारी सम्पत्ति आपको मिल जायेगी । आपको तो इस नाजुक मौके पर माला का खून कर देने से बहुत फायदा है साहब ।”
“आपकी थ्योरी में वजन है ।” - मेजर कश्यप ने स्वीकार किया ।
“लेकिन यह हकीकत नहीं है ?”
“सवाल ही नहीं पैदा होता । मैं ऐसी हत्यारी प्रवृत्तियों का आदमी नहीं कि दौलत के लालच में मैं किसी का खून कर दूं ।”
“मैं आपकी साफगोई की तारीफ करता हूं । अब एक आखिरी बात और बताइये ।”
“फरमाइये ।”
“शान्ति स्वरूप अविनाश को इतना नापसन्द क्यों करता है । सेठ हुकुम चन्द जायसवाल के मरते ही ज्यों ही उसके हाथ में अथारिटी आई उसने सबसे पहले अविनाश को ही नौकरी से निकाला ।
“सॉरी, मैं इस बारे में कुछ नहीं जानता ।”
“ओह !”
“लेकिन आपको अपने इस सवाल का जवाब मिल सकता है ।”
“कैसे ?” - सुनील आशान्वित स्वर से बोला ।
“जिस खाते में मैं काम करता था उसमें एक गफूर मियां नाम के बुजुर्गवार हैं । मिल के बहुत पुराने कर्मचारी हैं । बातें सूंघना और चटखारे ले लेकर उसे अपने संगी साथियों को सुनाना उनका व्यसन है । मिल के मालिकों या कर्मचारियों से सम्बन्धित शायद ही ऐसी कोई बात होगी जो उन्हें न मालूम हो । बड़ी हंगामाखेज बातें सुनाते हैं । साहब, मैं आपकी गफूर मियां से मुलाकात करवा देता हूं । आप अपना यह सवाल उनसे पूछियेगा ।”
“मिलवाइये उनसे ।”
“अभी लंच का भौंपू बजेगा । गफूर मियां बाहर निकलेंगे, मैं आपसे उनकी बात करवाऊंगा ।”
“बहुत मेहरबानी साहब ।”
दोनों प्रतीक्षा करने लगे । सुनील ने जेब से लक्की स्ट्राइक का पैकेट निकाला । दोनों ने एक-एक सिगरेट सुलगा लिया ।
लगभग पांच मिनट बाद मिल का भौंपू बजा ।
लोग बाहर निकलने लगे ।
मेजर कश्यप सुनील को वहीं खड़ा छोड़कर आगे बढा और गेट के समीप जा खड़ा हुआ ।
थोड़ी देर बाद वह एक सिर से गंजे और सफेद लम्बी दाढी वाले बुजुर्गवार के साथ सुनील के पास पहुंचा । वृद्ध घुटनों तक का एक लम्बा कच्छा और बनियान पहने हुए थे । उसकी दाढी और सारा जिस्म रुई के गालों से अटा हुआ था ।
“गफूर मियां” - मेजर कश्यप बोला - “ये सुनील साहब हैं । अखबार नवीस हैं । तुम से एक दो बातें पूछना चाहते हैं ।”
“आदाब बजा लाता हूं बड़े मियां ।” - सुनील चिकने चुपड़े स्वर से बोला ।
“जीते रहो बरखुरदार” - गफूर मियां अपनी दांतों से लगभग खाली मुंह मुस्कराहट की शक्ल में फैलाते हुए बोले - “क्या पूछना चाहते ही ?”
“जी मैं...”
“आओ होटल में चलकर बैठें ।”
तीनों एक ढाबे में जा बैठे । सुनील ने चाय मंगा ली ।
“अब बोलो ।” - गफूर मियां एक बीड़ी सुलगा चुकने के बाद बोले ।
“आप शान्ति स्वरूप को तो जानते ही हैं ?” - सुनील बोला ।
“हां साहब, मालिक हैं हमारे वो ।”
“और अविनाश को ?”
“उसे भी जानता हूं । कुछ दिन पहले तक वह कम्पनी का बड़ा अफसर था लेकिन बड़े सेठ की मौत के फौरन बाद ही शांति स्वरूप ने उसे नौकरी से निकाल दिया था ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि... क्योंकि... असली वजह बताऊं ?”
“जी हां । नवाजिश होगी ।”
“शान्ति स्वरूप को अविनाश से बेहद नफरत है । इसलिए मौका हाथ में आते ही उसने सबसे पहले अविनाश का पत्ता काटा ।”
“लेकिन नफरत क्यों है ?”
“यही बात पूछना चाहते थे तुम मुझसे ?”
“जी हां ।”
“अखबार में छापने के लिए ?”
सुनील विचलित नेत्रों से मेजर कश्यप का मुंह देखने लगा ।
“कोई जरूरी नहीं है गफूर मियां ।” - मेजर कश्यप बोला ।
“जरूरी हो भी तो मुझे क्या ? मैं तो हकीकत बयान कर रहा हूं । मैं कोई झूठ थोड़े ही बोल रहा हूं । बस छापे में मेरा नाम मत देना नहीं तो ये लोग नोंच खायेंगे मुझे ।”
“आप जैसा कहेंगे, वैसा ही होगा, बड़े मियां ।”
गफूर मियां आगे को झुके और सख्त राजदाराना अन्दाज से बोले - “तकरीबन दो साल पहले शान्ति स्वरूप साहब की बेगम साहिबा की और अविनाश बाबू की गहरी आशनाई थी ।”
“क्या कह रहे हैं आप ?” - सुनील हैरानी से बोला ।
“मैं हकीकत बयान कर रहा हूं बरखुरदार ।”
“यानी कि दो साल पहले सरिता और अविनाश आपस में...”
“बिल्कुल ।”
“लेकिन अविनाश तो बड़ी बहन माला से मुहब्बत करता है ।”
“अब करता है । तब नहीं करता था और जहां तक मेरा ख्याल है माला को यह बात आज तक नहीं मालूम है वर्ना वो अविनाश से शादी करने का इरादा न रखती ।”
“तब शान्ति स्वरूप को मालूम था कि सरिता का और अविनाश का आपस में कुछ... मेल मिलाप है ।”
“बिल्कुल मालूम था । इसलिए तो वह अविनाश की सूरत से बेजार है । तब बड़े सेठ जी के अलावा किसी की चलती नहीं थी वर्ना वह तो तभी अविनाश को दफा कर देता । बाद में जिस रफ्तार से उसने अविनाश का पत्ता काटा उससे साफ जाहिर होता है कि दो साल के वक्फे में शान्ति स्वरूप के मन से अविनाश के लिए नफरत की आग ठंडी नहीं हुई थी ।”
“लेकिन.. लेकिन मैंने तो सुना है सरिता बहुत चरित्रवान लड़की है ।”
गफूर मियां यूं हंसे जैसे उन्होंने भारी मजाक की बात सुन ली हो ।
सुनील कई क्षण चुप रहा । उसे गफूर मियां से एक बहुत महत्वपूर्ण बात मालूम हुई थी ।
“अच्छा गफूर मियां” - अन्त में वह बोला - “मदद के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया ।”
“शुक्रिया की कोई बात नहीं लेकिन बाबू, मेरा नाम छापे में नहीं आना चाहिए ।”
“इतमीनान रखो, गफूर मियां, नहीं आयेगा ।”
केस में एक नई सम्भावना पैदा हो गई थी ।
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