6-अभिनव का ड्रामा
अपनी बंदूक की सारी गोलियाँ डाकू के सीने में दागकर अभिनव ने अपनी मुछों पर ताव दिया और बंदूक अपने कंधे पर रख ली। गाँव के सारे लोगों ने आकर उसे हाथ जोड़कर शुक्रिया किया। अभिनव तो एक हीरो था, उसने गाँव वालों को हाथ जोड़ने से मना किया और उनसे कहा “आप सब आराम से रहिए। अब कोई डाकू आप को परेशान नहीं करेगा मैं आ गया हूँ किसी को डरने की कोई जरूरत नहीं है।”
गाँव वाले तो चले गए लेकिन अभिनव के सामने एक नई चुनौती थी और वह था गाँव में आतंक फैलाने वाला एक बड़ा और शक्तिशाली शेर। अभी वह उसके बारे में सोच ही रहा था कि शेर सामने आ गया। शेर बहुत ही खतरनाक था। अचानक शेर का मुँह देखकर अभिनव ज़ोर से चीखा।
"क्या हुआ अभिनव? क्यों चिल्लाए इतनी ज़ोर से, बाहर निकलो, बाथरूम में कितनी देर लगा रहे हो?”
मम्मी की आवाज़ सुनकर अभिनव को अपनी गलती का अहसास हुआ। "लगता है ज्यादा ज़ोर से चिल्ला दिया।” उसने सामने देखा तो शेर गायब था। उसे अपनी ही शक्ल शीशे पर दिखाई दे रही थी।
"अभी निकलता हूँ मम्मी। ब्रश कर लूँ फिर आता हूँ।” अभिनव बाथरूम के अंदर से बोला।
“अरे इतनी देर हो गई अभी ब्रश ही नहीं किया है। स्कूल बस आने वाली होगी। तुम्हें तैयार होना है और नाश्ता भी करना है।” अजिता का चेहरा गुस्से में लाल होने लगता था।
अभिनव के पास रोज़ ही स्कूल न जाने का कोई न कोई बहाना रहता था। जब से स्कूल में होम वर्क मिलना शुरू हुआ है उसका स्कूल से मन हटने लगा था।
पिछले साल केवल खेलना और मस्ती करना होता था तब आराम से स्कूल चला जाता था। लेकिन इस साल वह स्कूल और टीचरों से बहुत गुस्सा रहता और उन्हें गंदी मैम कहकर ही बुलाता। अजिता ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की, कभी कुछ लालच देती कभी उसे प्रोत्साहन देती लेकिन कुछ नहीं बदला। अभिनव ने साफ मना कर दिया कि वह नहीं पढ़ेगा और बड़ा होकर छक्कन अंकल की तरह दूध बेचेगा। अभिनव अक्सर अपनी दादी के साथ दूध लेने जाता था।
सुबह-सुबह काफी लोग वहाँ आते और उस डेयरी का मालिक छक्कन सिंह दूध की बाल्टी रखकर बैठ जाता और सबके बर्तन में दूध नापकर डालता जाता। उसे देखकर अभिनव को बड़ा मज़ा आता था और उसे भी दूध बेचने का मन होता।
"बाहर निकलते हो या मैं तुम्हारे टिफिन से सैंडविच खा जाऊँ?" अजिता अपने गुस्से पर काबू करते हुए बोली
“सैंडविच! मम्मी खा जाएगी।” जैसे ही अभिनव ने सुना तो सामने टॉम एंड जैरी की लड़ाई में जैरी की मदद करना छोड़ कर उसने मुँह का टूथपेस्ट जल्दी से वाँशबेशीन में थूका और चिल्लाया “नहीं मम्मी! मैं आ रहा हूँ आप नहीं खाना। मैं जल्दी आ रहा हूँ।”
सैंडविच का नाम सुनकर अभिनव के मुँह में पानी आ रहा था। बाथरूम में काफी देर से रहने के कारण उसे अब ज़ोर से भूख लग आई थी।
फिर उसने गाँववालों और जैरी को उनके हाल पर छोड़कर जल्दी से नहाया और अपना सैंडविच बचाने के लिए बाथरूम से बाहर आ गया।
"पहले तो मम्मी इस तरह केवल डराती थी लेकिन अब सच में सैंडविच खा लेती हैं। कुछ दिन पहले टिफिन में हलवा रखा था, और जब वह पेट दर्द का बहाना बनाकर स्कूल जाने के बजाए जाकर बिस्तर पर लेट गया तो मम्मी ने पूरा हलवा उसके सामने ही बैठ कर खा लिया। कितनी गंदी है मम्मी। कोई ऐसे किसी का टिफिन खा लेता है क्या?”
बाथरूम से बाहर निकलकर उसने स्कूल ड्रेस पहनी और अपना टिफिन बैग में रख लिया।
“बचा लिया टिफिन मम्मी से।” अपना टिफिन बैग में सुरक्षित रखकर उसने सोचा। अचानक उसे याद आया कि कल स्कूल में 'गंदी मैम' ने कहा था कि इग्ज़ाम आने वाले हैं इसलिए गेम्स के पीरियड में भी पढ़ाई होगी। इसलिए स्पोर्ट शूज नहीं पहनने हैं बल्कि स्कूल शूज ही पहनकर जाना है। पढ़ाई की याद आते ही उसका मन उदास हो गया। काश कि बस आज आए ही नहीं, टूट जाए वह। बारिश ही हो जाए और स्कूल बंद हो जाए। लेकिन कुछ भी नहीं होने वाला था। बस का हार्न सुनाई देने लगा था। बस मोड़ पर आते ही हार्न देना शुरू कर देती थी। क्या कहें मम्मी से आज? रोना भी नहीं आ रहा था कि बीमारी का बहाना बनायें।
“मम्मी मैं स्कूल नहीं जाऊँगा।” उसने सीधे जाकर मम्मी से बोल दिया। बहाना कुछ समझ नहीं आ रहा था इसलिए उसने सोचा कि आज मम्मी पूछेगी तो सच ही बता दूँगा। लेकिन यह क्या? अजिता ने बिना कुछ बोले अभिनव को गोद में उठा लिया कमरे से बैग उठाया और सीढ़ियों से उतरकर नीचे आ गई। बस में बैठाकर, आँखें तरेरते हुए अभिनव से कहा।
“चुपचाप स्कूल जाओ और मन लगाकर पढ़ाई करो।”
जल्दी-जल्दी में पानी की बोतल उठाई और आकार बस के कंडक्टर को पकड़ा दी। बस तुरंत चल दी और बेचारा अभिनव भौचक्का सा मम्मी को देखता रहा। रोज 'बाय' करता था लेकिन उस दिन न उसे याद रहा न मम्मी को।
अजिता कुछ देर वहाँ खड़ी रही फिर ऊपर अपने घर आ कर सोफ़े में बैठ गई। इतनी देर में गुस्सा कब ग्लानि और मोह में बदलकर आँसूओं के रूप में आँखों में आ गया।
"बेचारा उसका छोटा सा मासूम बच्चा! कितनी ज़ोर से डाँट दिया उसने। कितनी निरीह होकर वह अपनी मम्मी को देख रहा था।”
अजिता को अपने ऊपर गुस्सा आने लगा और विजय पर भी गुस्सा आने लगा जो अक्सर ही टूर पर बाहर चले जाते थे।
अभिनव की सारी ज़िम्मेदारी खुद उसे ही उठानी पड़ती थी । अगर विजय भी घर पर होते तो कभी-कभी वह भी अभिनव को समझाते।
उसने सोच लिया था कि अबकी बार वह विजय से कहेगी कि टूर कम बनाए और अभिनव को ज्यादा समय दें। वह तो उसकी सास घर पर नहीं थीं, नहीं तो अभिनव स्कूल नहीं जा पाता। वह हमेशा अभिनव की तरफदारी करती और अजिता से कहती,” पढ़ाई के लिए अभिनव के पीछे इतना क्यों पड़ती हो, क्या अभी डिग्री दिलाएगी?”
“इस तरह से तो अभिनव की जरूर पढ़ाई होगी” उसने सोचा, मन में नकारात्मक विचार आने लगे तो अजिता ने अपने मन पर काबू किया और तुरंत उठकर खड़ी हो गई “कोई न कोई रास्ता निकाल लूँगी, अभी तो अभिनव छोटा है। हमेशा ऐसे थोड़े ही रहेगा।”
7-अजिता की उलझन
दोपहर के खाने में वह अभिनव की मनपसंद मटर पनीर की सब्जी और हलवा बनाने किचन में चली गई।
एक बजे बस की आवाज़ सुनाई पड़ी तो अजिता ने खाना टेबल पर लगा दिया और हलवा गरम करने के लिए चढ़ा दिया।
दस मिनट हो गए, अभिनव ऊपर नहीं आया तो उसने बालकनी से नीचे देखा। बस तो न जाने कब की जा चुकी थी लेकिन उसे वहाँ कोई नहीं दिखा। कहाँ रह गया अभिनव? हो सकता है कि सीढ़ियों पर बैठा हो। वह दौड़ती हुई जीने पर गई और फिर नीचे देखा। कहीं नहीं दिखा वह।
मन घबरा गया, परेशान सी वह, उसने ज्योति के घर का दरवाजा खटखटाया जो अभिनव के साथ ही बस में जाती थी। ज्योति का फ्लैट भी पहली मंजिल पर ही था।
“ज्योति तो उसी समय ऊपर आ गई थी, क्या अभिनव ऊपर नहीं आया?” ज्योति की माँ, गुरिंदर ने पूछा।
"नहीं, ऊपर नहीं आया और वहाँ नीचे भी कोई नहीं है। मैं नीचे सब तरफ देख आई हूँ।” अजिता घबराई हुई बोली। उसका दिल बैठा जा रहा था और गला सुख रहा था।”
"घबराओ नहीं अजिता, इधर ही होगा। अभिनव तो अभी ज्योति के साथ ही था। मैंने बालकनी से दोनों को बस से उतरते हुए देखा था, फिर मैं ज्योति को खाना देने अंदर आ गई।
"कहाँ चला गया होगा?" अजिता को एक अंजान डर ने घेर लिया था। “वह मुझसे गुस्सा होकर कहीं चला तो नहीं गया, सुबह-सुबह बेचारे को डाँट दिया था। अगर वह पढ़ाई नहीं करना चाहता है तो न पढ़े। वह इतना छोटा है अगर अभी नहीं पढ़ेगा तो कोई नुकसान नहीं हो जाएगा। मैं क्यूँ इतना पीछे लग जाती हूँ। हे भगवान मेरे बच्चे की रक्षा करना। अब मैं उसे कभी कुछ भी नहीं कहूँगी। बस मेरे बच्चे को मुझसे मिलवा दो।”
"चलो अजिता सबके घर में चल के पूछते हैं कि कहीं वह किसी के घर न चला गया हो।” अजिता को परेशान देखकर गुरिंदर ने कहा।
"मैं अपने घर में फिर से देख आती हूँ कहीं अब अंदर आ गया हो।” मन में भगवान से प्रार्थना करते हुए अजिता चली गई। सबसे पहले अपने बेडरूम में देखा। बेड के नीचे झाँका। उसके नीचे अभिनव के स्पोर्ट शूज पड़े थे। मन उत्साह से भर गया। दौड़ती हुई बाहर आई और बाथरूम मे झाँका। वहाँ नहीं था फिर दूसरे कमरे में गई जहाँ अभिनव और अजिता की सास सोते थे। वह वहाँ भी नहीं था। उसका बैग भी नहीं दिख रहा था।
कमरा वैसा ही था जैसा अजिता ने थोड़ी देर पहले सफाई करके छोड़ा था। अभिनव की सारी चीज़ें जो फैली थी वह अजिता ने समेटकर रख दी थी। उस कमरे को देखकर लग नहीं रहा था कि अभिनव वहाँ आया हो। अजिता का मन फिर से घबराने लगा वह तेज़ी से किचन में गई, वहाँ भी नहीं था। एक बार फिर से वह सभी जगह देखने के लिए तेज़ कदमों से जाने लगीं तो जल्दी में उसका पाँव साड़ी में फँस गया और वह लड़खड़ा कर गिर गई। गुरिंदर जो बाहर थी, आवाज़ सुनकर अंदर आई और अजिता को संभालते हुए बोली–
“अजिता, तुम इतना क्यों परेशान हो रही हो? अभिनव यहीं कहीं होगा, मिल जाएगा। देखो तुम्हारे हाथ में चोट लग गई है। मैं बैंडेज लेकर आती हूँ।”
"नहीं गुरिंदर अभी नहीं। पहले चलकर अभिनव को देखकर आते हैं।” अजिता मुश्किल से खड़े होकर बोली। उसकी आँखों में आँसू आ रहे थे। दोनों घर से बाहर आ गए और अपनी बिल्डिंग के सारे घरों में देखने चली गई।
आस पास के सभी घरो में ढूंढने वह दोनों चली गईं। सभी जगह से निराशा ही हाथ लगी। कुछ पडोसी आस पास मोहल्ले में देखने के लिए चले गए। अजिता परेशानी से व्याकुल हो उठी तो गुरिंदर उसे लेकर अपनी बिल्डिंग की सीढ़ियों में बैठ गई। अब क्या करना है यह सोचने के लिए।
अचानक ज्योति अपने घर से दौड़ती हुई बाहर आई और सिढ़ियों पर बैठी अपनी मम्मी और अजिता को देखकर बोली,
“मम्मी, मैं अभी एक मिनट में आती हूँ।” यह कहकर जल्दी से सीढ़ियों से नीचे उतर गई।
"कहाँ जा रही है तू।” गुरिंदर भी उठी और ज्योति के पीछे नीचे उतर गई।
अजिता जो शिथिल सी बैठी हुई थी वह भी उठी और कुछ आशा के साथ नीचे उतर गई। जब नीचे पहुँची तो उसे न गुरिंदर और न ही ज्योति कोई नहीं दिखाई दिए बल्कि और लोग जो अभिनव को ढूँढने गए थे वह लोग कोई सड़क पर, कोई किसी दुकान पर या कोई आसपास के घरों से निकले हुए दिखे। सभी के चेहरे पर निराशा दिख रही थी।
इतनी भीड़ वाली रोड पर उनका बच्चा कहाँ चला गया होगा किसी को कुछ पता ही नहीं चला।
8-ज्योति की सूझ बूझ
"कोई उठाकर तो नहीं ले गया।” अजिता का दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा।
वह न्यूज़ पेपर में अक्सर पढ़ती है कि कभी-कभी कुछ लोग बच्चों को अगवा कर लेते हैं। अजिता ने कभी किसी के साथ कुछ बुरा नहीं किया और न विजय ने, ऐसे में फिर कोई क्यों उनके बच्चे को ले जाएगा।
अजिता को अचानक विचार आया कि इसकी रिपोर्ट पुलिस में करा देनी चाहिये।
“विजय बाहर गए थे उन्हें कैसे बताएँ? ऑफिस फोन करना पड़ेगा। ऑफिस का फोन नंबर डायरी में लिखा है। ऊपर जाकर ले आती हूँ, फिर सामने डाक्टर की क्लीनिक से फोन कर दूँगी। विजय से बात हो जाए तो पुलिस में रिपोर्ट करा दूँ।”
सामने से बनर्जी साहब आ रहे थे बोले” बहन जी अभी तो अभिनव का कुछ पता नहीं चल पाया है।”
वह बात पूरी कर पाते इसके पहले अजिता बोली,
“भाई साहब क्या पुलिस में रिपोर्ट लिखवा दें। अभी बहुत देर नहीं हुई है, पुलिस जल्दी ढूँढ लेगी।” अजिता खुद को संभालने की कोशिश कर रही थी ताकि वह अभिनव को ढूँढने में कदम बढ़ा सके।
“हाँ बहन जी, यह ठीक रहेगा। आप मेरे साथ चलिए पुलिस थाने रिपोर्ट लिखवा आते हैं और उनसे अभिनव को जल्दी ढूँढने के लिए प्रार्थना करेंगे। आप अभिनव की एक फोटो ले आइए।”
“आंटी-आंटी! अभिनव मिल गया।” जिन शब्दों को सुनने को वह बेकरार थी उनके कानों में पड़ते ही अजिता ने पीछे मुड़कर देखा तो उसकी नज़र अभिनव पर पड़ी जो अपने हाथों में ढेर सारे फूल पकड़े, डरा हुआ सा ज्योति और गुरिंदर के साथ चला आ रहा था।
"लो संभालो अजिता, अपने लाडले को। पार्क के अंदर अकेले फूल तोड़ रहा था।”
अजिता को किसी की बात सुनाई नहीं पड़ रही थी। बेचारा अभिनव भौचक्का सा गोदी में दुबका हुआ था। उसे तो पता ही नहीं था कि उसकी मम्मी जो सुबह इतना गुस्सा कर रही थी, वह अभी रो क्यों रही है। उसके हाथ में जो फूल थे वह सब नीचे गिर गए थे। वह फूलों को उठाने के लिए गोदी से उतरना चाहता था। यह देखकर गुरिंदर और ज्योति दोनों ने मिलकर उसके फूल उठाए और उसके बैग में डाल दिए, तब जा कर अभिनव को चैन आया।
अभिनव सोच रहा था , "मम्मी, पता नहीं क्यों रो रही है। मैं तो आ ही गया हूँ।”
उसे क्या मालूम था कि उसकी माँ की जिंदगी के वह कुछ मिनट उन्हें कुछ सदियों का एहसास करा गए होंगे। उन चंद लम्हों ने अजिता की जिंदगी के मायने ही बदल दिए। जिस माँ और बच्चे के रिश्ते को वह केवल प्यार और ममता का रिश्ता समझ रही थी। वह उससे कहीं ज्यादा ज़िम्मेदारी का भी होता है।
अभिनव को गोद में लिए वह जैसे-जैसे सीढ़ियाँ चढ़ती जा रही थी उसके मन में जिम्मेदारियाँ का एहसास और बढ़ता जा रहा था।
घर पहुँचने पर सभी बिल्डिंग के लोग अजिता को बधाई देने पहुँच गए। आसपास के लोगों को भी इस घटना का पता चल गया था तो वह भी अजिता से मिलने आए।
सबके जाने के बाद अजिता ने ज्योति से पूछा, “तुम्हें कैसे मालूम पड़ा कि अभिनव पार्क में होगा।”
“आंटी, हम लोग जब स्कूल से लौटते हैं, तो पार्क में ढ़ेर सारे फूल दिखाई पड़ते हैं। अभिनव ने कई बार पार्क में चलने को कहा लेकिन हम लोग कभी गए नहीं। इसलिए मुझे लगा कि हो सकता है अभिनव वहीं गया होगा।”
"हाँ अजिता, ज्योति ने मुझे भी बताया था कि अभिनव स्कूल के बाद वहाँ जाने के लिए कहता है लेकिन मुझे तो यह बात याद नहीं रही। वह तो अच्छा हुआ ज्योति के दिमाग में यह बात आ गई नहीं तो आज बहुत परेशानी होती। अभिनव पार्क में बैठा होगा, यह तो कोई सोच भी नहीं सकता था।” गुरिंदर बोली
"मेरे लिए ज्योति आज भगवान बनकर आई है। मैं जिंदगी भर ज्योति की आभारी रहूँगी। अजिता ने यह कहते हुए ज्योति को अपने गले लगा लिया और उसका हाथ चूमते हुए बस इतना ही कह पाई,
“थैंक यूँ बेटा"
"ऐसी कोई बात नहीं है अजिता। यह तो हम सबको एक दूसरे के लिए करना ही चाहिए। आखिर अभिनव ज्योति का भाई जैसा है। अब तुम लोग खाना खाओ। बहुत देर हो गई है। अभिनव को बहुत भूख लगी होगी और थक भी गया होगा, हम लोग अभी चलते हैं, शाम को आएंगे। विजय भईया कब आ रहे हैं?"
"वह आज रात को आएंगे।” अजिता ने कहा और गुरिंदर और ज्योति को छोड़ने के लिए दरवाजे तक आई।
"गुरिंदर हम तुम्हारा धन्यवाद तो नहीं कर सकते क्योंकि तुमने जो किया है वह अनमोल है। बस इतना कहूँगी कि मेरा भाग्य बहुत अच्छा है कि मुझे तुम जैसी सहेली मिली। यहाँ आसपास रहने वाले सब लोगों से जो सहारा मिलता है, वह मेरे लिए किसी खज़ाने से कम नहीं है।”
9- बर्थडे पार्टी
अगले दिन अजिता जब सोकर सुबह उठी तो उसे तेज़ सर दर्द हो रहा था। उसे फिर से वही सपना दिखाई पड़ा जो उसे अभिनव के जन्म के बाद से दिखता आ रहा था। सपने में उसे एक बड़ा सा हॉस्पिटल और कुछ अंक दिखाई देते थे। वैसा हॉस्पिटल उसने कभी भी नहीं देखा था और जो अंक दिखते थे, वह हर बार वही होते थे। अजिता, जब भी वह सपना देखती, उसे अगले दिन सुबह सरदर्द जरूर होता। पता नहीं क्या रहस्य था उसमें। पहले अजिता डरती थी कि कहीं इसका मतलब यह तो नहीं कि कोई बीमार पड़ने वाला है, लेकिन भगवान की कृपा से ऐसा कभी नहीं हुआ। फिर भी अजिता जानना चाहती थी कि इस सपने का क्या मतलब है क्योंकि उसे यह विश्वास हो गया था कि उस सपने का अजिता के जीवन से कोई न कोई संबंध जरूर था।
खैर वह बिस्तर से उठी क्योंकि उसे विजय के लिए चाय बनानी थी। कल की घटना को याद आते ही उसका दिल सहम गया। पास में सोये अभिनव को देखकर उसे राहत मिली। भगवान का शुक्रिया करके वह तैयार होकर किचन में चली गई, उस दिन स्कूल से लौटकर अभिनव बहुत खुश था, क्योंकि शाम को उसके दोस्त नीरज की बर्थडे पार्टी थी।
नीरज का घर ठीक सामने था, काफी बड़ा बंगला था उसका। बंगले में कई कमरे और बाहर बड़ा सा लॉन था जिसमें घास के ऊपर एक झूला लगा था। शाम को नीरज के दोस्त उसके घर जाते और झूला झूलते थे। अभिनव को भी नीरज के घर में बहुत अच्छा लगता।
नीरज की माँ सुनन्दा, अजिता की सहेली थी इसलिए बर्थडे पार्टी में अजिता को भी बुलाया था। अजिता को उनके घर जाने में बहुत संकोच होता था इसलिए वह उनके घर कभी अंदर नहीं गई थी। उन लोगों की मुलाक़ात अक्सर मार्केट में हो जाती थी।
"मम्मी, मैं क्या पहनूँगा? मेरे पास कोई नई ड्रेस नहीं है," अभिनव के चेहरे पर थकान और परेशानी दिख रही थी। स्कूल से लौटते ही उसने अपने कपड़ों की अलमारी पूरी बेड पर खाली कर दी थी और कुछ जमीन पर गिरे हुए थे।
"यह क्या किया बेटा।'' काम फैला देखकर अजिता पास में रखी कुर्सी पर बैठ गई। अभी तो वह किचन का काम समेट कर आई थी कि जाकर थोड़ी देर आराम करे लेकिन जिस तरह से अभिनव ने कपड़े फैला दिए थे उसे सेट करने में काफी समय लगाना पड़ेगा।
“मैं कपड़े ढूँढ रहा हूँ, मम्मी! यह सब तो पुराने हैं। नीरज के तो नए कपड़े आए हैं।" अभिनव अपनी मम्मी की गोद में चढ़ कर बोला । उसे जब भी कुछ चाहिए होता है तो वह अजिता की गोद में चढ़कर, उनका चेहरा अपने हथेलियों के बीच में रखकर अपनी बात कहता है। अजिता अपने बेटे की इस मासूमियत पर निहाल होकर उसकी बात पूरी कर देती है।
"बेटा, आज नीरज का जन्मदिन है, तुम्हारा नहीं इसलिए नये कपड़े नीरज को पहनने चाहिए, उसके दोस्तों को नहीं। तुम्हें वह नीली शर्ट और जींस पहननी चाहिए। उसमें तुम बिलकुल हीरो लगते हो। उनके साथ नये वाले शूज पहन लेना, फिर देखना कितने स्मार्ट लगोगे।" अजिता अभिनव के बालों को सहलाते हुए बोली। उसे मालूम था कि अभिनव को कैसे मनाना है।
"सच मम्मी! मैं हीरो लगूँगा?"
“हाँ बिलकुल। मैं झूठ थोड़े ही बोल रही हूँ।"
"ठीक है, मैं अभी तैयार हो जाता हूँ," अभिनव गोदी से उतरते हुए बोला।
"अरे अभी नहीं पार्टी तो शाम को होगी, तब तक कपड़े गंदे हो जाएँगे अभी तुम आराम करो, फिर शाम को चलेंगे।”
"मैं थका नहीं हूँ मम्मी! आराम करने से देर हो जाएगी, सब बच्चे तैयार होकर पहुँच जाएँगे।"
"अभी बहुत जल्दी है, तुम आओ, मैं तुम्हें एक नई कहानी सुनाती हूँ।"
कहानी के नाम पर अभिनव, अजिता के साथ आ गया। अभिनव को बिस्तर में लिटा कर अजिता ने कहानी सुनाई तो थोड़ी देर में ही अभिनव को नींद आ गई।
10-अपना प्यारा घर
अभिनव के सोने के बाद अजिता उठी और सारे कपड़े अलमारी में सेट किये फिर शाम की पार्टी में जाने के लिए अपनी साड़ी देखने चली गई। सुनन्दा के घर जाने के लिए अजिता ने अपनी सबसे पसंदीदा पिंक कलर की साड़ी निकाली। वैसे तो अजिता हमेशा ही सुंदर दिखती थी लेकिन पिंक साड़ी में उसका गोरा रंग और भी खूबसूरत लगता।
शाम को वे दोनों समय से पार्टी में पहुँच गये। बंगले की खूबसूरती उस दिन देखते ही बनती थी, रोशनी से जगमगा रहा था, अंदर हॉल को गुब्बारों, फूलों और रंगबिरंगों झालरों से सजाया गया था। वातावरण में सुगंध फैली हुई थी। बच्चे संगीत की धुन पर नाच रहे थे। अजीता ने इससे पहले कभी ऐसी जन्मदिन पार्टी नहीं देखी थी। बंगला परिवार की अमीरी और शोहरत को प्रकट कर रहा था।
अभिनव दौड़कर अपने दोस्तों के बीच पहुँच गया। एक बड़ा सा केक हर बच्चे की आँखों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ था। मेज़ तोहफों से भरी पड़ी थी, कुछ बच्चे महँगे खिलौने से खेल रहे थे। अजिता ने सुनन्दा को बधाई दी। सुनन्दा उसे कमरे के भीतर ले गई।
"तुम हमेशा अपने कामों में व्यस्त रहती हो, अजिता! मैंने कभी तुम्हें आराम से बालकनी में बैठे हुए नहीं देखा। तुम्हें याद होगा हम आखिरी बार बनिये की दुकान में मिले थे, वह भी करीब छह महीने पहले। कौन कहेगा की हम आमने-सामने रहते हैं।" सुनन्दा अपने बैठक कक्ष में एक सुंदर से सोफ़े पर बैठते हुए बोली। उसकी क्रेप की साड़ी झूमर की रोशनी में काफी चमकदार और आकर्षक दिख रही थी।
"तुम कैसे समय निकाल लेती हो?" अजिता ने सुनन्दा से पूछा। अजिता को सुनन्दा के परिवार की हर जानकारी अपनी सास से मालूम हो जाती थी जो अक्सर सुनन्दा के घर आती-जाती रहती थी। उन्होंने अजिता को बताया था कि सुनन्दा का परिवार काफी मिलनसार स्वाभाव का था और वे लोग अतिथि सत्कार भी बहुत करते हैं। घर की देख-रेख के लिए दो घरेलू सहायक पूरे दिन रहते थे और सुनन्दा ख़रीदारी करने में, पार्लर जाने में और गपशप करने में बहुत व्यस्त रहती थी।
हालाँकि दोनों महिलाओं का स्वभाव काफी अलग था पर दोनों में आत्मीयता बहुत थी; प्रेम में कोई शर्त नहीं होती।
पार्टी खत्म होने के बाद नीरज और उसके दोस्त तोहफे खोल कर देखने लगे। उनमें कई खिलौने, कपड़े, घड़ी और भी कई तरह के तोहफे थे। इतने अच्छे तोहफे देखकर सभी दोस्त बहुत खुश थे। अभिनव भी अपना रिटर्न गिफ्ट देखकर बहुत खुश था, उसमें चाकलेट से भरा एक बाक्स था। घर पहुँच कर अभिनव अपने पिता को पार्टी के बारे में बताने के लिए काफी उत्साहित था लेकिन देर काफी हो चुकी थी इसलिए अजिता ने उसे सोने जाने के लिए कहा। अजिता को पहली बार अपना घर साधारण लग रहा था। उसकी धनवान सहेली के मकान जैसा कुछ भी मेल नहीं खा रहा था पर फिर भी वह उसका अपना प्यारा घर था।
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