बंगला ईस्ट एन्ड की एक कदरन खामोश सड़क पर निकला । उस साड़ी सड़क पर दोनों ओर वैसे ही रिहायशी बंगले थे जिन पर एक निगाह पड़ने पर ये तक नहीं मालूम होता था कि बंगला आबाद कौन-सा था और खाली कौन-सा था ।
उनका मेजबान जैक रिकार्डो उम्र में पचास के पेटे में था और फिल्म स्टार्स जैसे रख-रखाव के साथ रहता था। उनके आगमन पर बंगले के विशाल बरामदे में पड़ने वाला प्रवेशद्वार उसी ने खोला था ।
एंजो ने जीतसिंह का सबसे परिचय कराया ।
"बद्रीनाथ !" - रिकार्डो बड़ी गर्मजोशी से उससे हाथ मिलाता हुआ बोला - "वैलकम । वैलकम | "
"शुक्रिया ।" - जीतसिंह बोला ।
"आओ।"
रिकार्डो उन्हें एक भीतरी कमरे में ले आया जहां कि आबनूस की काली लकड़ी की एक विशाल मेज पड़ी थी । उस पर दरवाजे की ओर मुंह किये दो व्यक्ति बैठे थे जिनमें से एक रिकार्डो की ही उम्र का था और दूसरा कोई पच्चीसेक साल का दुबला-पतला गोवानी छोकरा था । रिकार्डों ने उनका परिचय दिया तो पता चला कि उसका हमउम्र व्यक्ति उसका जोड़ीदार फरताब था और गोवानी छोकरा मोरानो था ।
अभिवादनों का फिर आदान-प्रदान हुआ ।
फिर सब गोल मेज के गिर्द बैठ गए।
जीतसिंह को जो कुर्सी मिली उसकी कमरे के प्रवेशद्वार की तरफ पीठ थी । उसकी बगल की एक कुर्सी खाली थी।
जीतसिंह ने प्रश्नसूचक निगाह उस कुर्सी पर डाली ।
“अपना बम्बई का बाबू नहीं पहुंचा अभी।" - फरताद बोला "लेकिन आता ही होगा । "
"वो तुम्हारा दोस्त है ?" - जीतसिंह बोला ।
“हम सभी एक-दूसरे के दोस्त हैं।" - फरताद लापरवाही से बोला ।
"लेकिन जानते नहीं एक-दूसरे को ।”
“अब जान जाएंगे । जब दोस्ती हो गई है तो जानकारी क्या पीछे छूट जाएगी ?"
" एग्जैक्टली ।" - रिकार्डो अपने जोड़ीदार के अनुमोदन में गर्दन हिलाता हुआ बोला ।
"नाम क्या है आपके दोस्त का ?"
"बसंत राव । बस आता ही होगा।"
"हूं।"
"एंजो कहता है" - रिकार्डो बोला- "कि या वॉल्ट खोल सकते हो ।" तुम कैसी भी सेफ
"ठीक कहता है ।" - जीतसिंह बोला ।
"आजकल तो वॉल्ट वगैरह कंप्यूटर प्रोग्राम्ड भी बनने लगे हैं । उनमें टाइम लॉक भी होता है । "
"सब खुल जाएगा।"
"बड़े दावे के साथ कह रहे हो ।”
"हां । तभी तो मैं यहां हूं।"
"वो तो है । वो तो है । फिर क्या बात है ? फिर तो जीत हमारी है ।"
“वहां से कितना माल हासिल होने की उमीद है ?"
"कहना मुहाल है लेकिन मेरी खोज-खबर, मेरी जांच-पड़ताल ये ही कहती है कि माल चोखा होगा । "
"ऐसा न हुआ तो ?"
"तो...तो..." - रिकार्डो ने अनभिज्ञता से कंधे उकचाये ।
"लेकिन ऐसा होगा नहीं।" - मोराना बोला - "ऐसा हो ही नहीं सकता । आइलैंड का बच्चा बच्चा जानता है कि बुलबुल ब्रांडो एक फिल्दी रिच आदमी है । "
" और इतना अहमक है कि अपनी फिल्दी रिचनैस को, अपने मोटे माल को अपनी उजाड़ एस्टेट के उजाड़ बंगले में सिर्फ तीन अदमियों की रखवाली में बन्द करके रखता है।"
"बॉस, उसे ये खुशफहमी है कि कि उसकी वाल सेफ नहीं खुल सकती ।"
"अब तुम" रिकार्डो बोला- "उसको गलत साबित करके दिखाओगे ।”
"माल का बंटवारा कैसे होगा ?" - जीतसिंह बोला ।
"वैसे ही जैसे होना चाहिए । सब का हिस्सा एक बराबर।"
"मेरे को मिनीमम गारंटी मांगता है ।"
"क्या मतलब ?”
"ये काम करने की मेरी अहमतरीन शर्त ये है कि मुझे इस बात की गारंटी होनी चाहिए कि मेरा हिस्सा दस लाख से कम नहीं होगा ।"
" मैं अभी भी नहीं समझा । "
"मैं समझाता हूं । फर्ज करो कि सेफ में से नब्बे लाख बरामद होते हैं तो जाहिर है कि मेरा हिस्सा पन्दरह लाख होगा । सेफ से साठ लाख बरामद होते हैं तो भी जाहिर है कि मेरा हिस्सा दस लाख होगा । लेकिन अगर पचास लाख बरामद होते हैं तो भी मेरा हिस्सा दस लाख होगा। यानी कि पचास में से दस लाख मेरे और बाकी आठ-आठ लाख आप पांच जनों के । अगर सेफ में से दस लाख बरामद होते हैं तो वो सब मेरे होंगे।"
“क्या कहने !” - रिकार्डो व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला - "अगर सेफ में से कुछ भी नहीं बरामद होता तो तुम्हें दस लाख रुपया हम लोग अपने पल्ले से देंगे ! दो-दो लाख रुपया चन्दा करके ।"
"होना तो ऐसा ही चाहिए। लेकिन नंगा नंगे के क्या कपड़े उतारेगा ! उस सूरत में मैं अपनी रकम का गम खा लूंगा ।”
"लेकिन ये नाजायज बात है।" - फरताद बोला - "तुम्हारा हिस्सा दस लाख से ज्यादा बनेगा तो तुम ज्यादा लोगे लेकिन अगर कम बनेगा तो कमी की भरपाई हमें करनी होगी । "
"हां"
" ऐसी वाहियात शर्त कौन मानेगा ?"
"तुम्हीं लोग मानोगे ।"
"अच्छा ! जबरदस्ती !"
"जबरदस्ती नहीं । राजी-खुशी । तुम लोग एक बात भूल रहे हो कि जो काम तुमने करना है वो कोई भी कर सकता है लेकिन जो काम मैने करना है, उसे मेरे सिवाय कोई नहीं कर सकता । उस लिहाज से मेरी शर्त निहायत मामूली है, खासतौर से तब जब कि तुम सब को गारंटी है कि सेफ से जो माल बरामद होगा, वो करोड़ों में होगा।"
"लेकिन" - रिकार्डो बोला- "डियर ब्रदर, दस लाख की रट तो तुम ऐसे लगा रहे हो जैसे तुम्हें दस लाख न मिले तो तुम्हारी दुनिया उजड़ जाएगी ।"
"ऐन यही बात है ।"
"क्या ?"
"मुझे दस लाख न मिले तो मेरी दुनिया उजड़ जाएगी ।"
"ऐंजो, तेरा दोस्त तो बड़ा अजीब आदमी है।"
"लेकिन बात ऐन फिट बोलता है।" - एंजो बोला- "जब तुम्हें गारंटी है कि माल करोड़ों मे होगा तो... "1
तभी काल बैल बजी ।
"वसंत राव आया होगा।" - फरताद बोला ।
"मैं देखता हूं।" - मोरानो बोला और उठकर दरवाजे की ओर बढ़ा |
पीछे एक आशापूर्ण खामोशी छा गयी ।
बाहर से मेन डोर खुलने और बंद होने की आवाज आई ।
फिर एक घुटी-सी चीख और एक धप्प की आवाज ।
अनायास ही जीतसिंह को अपने रोंगटे खड़े होते महसूस होने लगे ।
बाहर से उस कमरे के दरवाजे की ओर बढ़ते एक जोड़ी कदमों की हल्की आवाज आयी । फिर दरवाजा खुला ।
आगंतुक पर निगाह पड़ते ही जीतसिंह के नेत्र फैले । तत्काल उसने कुर्सी पर बैठे-बैठे ही एक ओर जुस्त लगायी ।
एक फायर हुआ ।
गोली उसके सिर पर से निकली ।
फिर दूसरा । फिर तीसरा ।
वो कुर्सी समेत मेज की परली तरफ लुढ़कनियां खाता रहा। कोई जोर से चीखा ।
किसी भारी चीज के फर्श पर गिरने की धड़ाम की आवाज हुई ।
“हथियार ।” - जीतसिंह चिल्लाया- "हथियार किस के पास है ?"
कोई जवाब न मिला ।
नीचे गिरे जीतसिंह का हाथ एक स्टूल के पाये पर पड़ा । उसने स्टूल उठाया और उसे दरवाज की तरफ फेंककर मारा । तभी दरवाजे का एक पल्ला बन्द हुआ, नतीजतन स्टूल चौखट पर मौजूद आगंतुक से टकराने के स्थान पर पल्ले से टकराया और फिर एक ओर जा गिरा ।
फिर दरवाजे की चौखट पर से आगंतुक गायब हो गया । फिर बाहर से भागते कदमों की दूर होती आवाज आने लगी ।
जीतसिंह ने सिर उकसाया तो पाया कि रिकार्डो के हाथ में रिवॉल्वर थी लेकिन उसका उसे चलाने का कोई इरादा नहीं मालूम होता था । वो उछलकर खड़ा हुआ । एक ही झपट्टे में उसने रिकार्डो के हाथ से रिवॉल्वर झपट ली और बाहर को भागा । उसने बरामसे में कदम रखा तो उसे आगंतुक का साया बरामदे आगे के विशाल लॉन के सिरे पर बने आयरन गेट पर दिखाई दिया । उसने साए पर एक फायर झोंका ।
साए की रफ्तार में कोई कमी नहीं आई । वो झपटकर बाहर खड़ी एक फिएट कार में सवार हुआ और पलक झपकते ही उसने फिएट सामने सड़क पर दौड़ा दी ।
जीतसिंह लपककर सड़क पर पहुंचा। वो एक घुटने के बल नीचे सड़क पर बैठ गया लौर घुटने पर रिवॉल्वर वाले हाथ की कोहनी टिका कर उसने ताक-ताककर फियेट के पीछे फायर झोंके ।
फियेट बदस्तूर सड़क पर उससे परे भागती रही ।
रिवॉल्वर की आखिरी गोली भी यूं ही बेकार गयी ।
लानत ! - वो होंठों में बुदबुदाया और उठकर सीधा हुआ । रात के अंधेरे में वो फियेट का नम्बर तक नहीं देख पाया था ।
वो वापिस लौटा ।
प्रवेशद्वार के करीब दीवार थामे आगे-पीछे झूलता-सा उसे मोरानो दिखाई दिया ।
"तुझे क्या हुआ ?" - जीतसंह बोला ।
"उसी कमीने ने मेरी कनपटी पर अपनी गन का बट मारा और मुझे धक्का दिया ।" - जवाब मिला ।
"अब कैसा है ?"
"ठीक हूं । बस जरा चक्कर आ रहा है।"
"ठीक हो जायेगा । बाकी लोग कहां हैं ?"
"वहीं हैं । भीतरी कमरे में। "
"इतने हाहाकार में कोई बाहर नहीं निकला ?"
"नहीं।"
"कमाल है । "
वो भीतर को बढ़ा |
झूमता-लड़खड़ाता मोरानो भी उसके पीछे हो लिया ।
रिकार्डो उसे दरवाजे पर मिला ।
"ये क्या हो रहा है ?" - वो भुनभुनाया - " बद्रीनाथ, ये क्या हो रहा है ?"
"मुझे क्या पता क्या हो रहा है।" - जीतसिंह भी तीखे स्वर में बोला- "तुम मेजबान हो । वो शख्स तुम्हारा मेहमान था । तुम बताओ ये क्या हो रहा है ? और क्यों हो रहा है ?"
"तुमने सड़क पर जाकर गोलियां चलानी शुरू कर दीं !"
" और क्या करता ? गुलेल चलाता ? पत्थर फेंक के मारता अपने हमलावर पर ?"
"ये रिहायशी इलाका है । गोलियों की आवाज कइयों ने सुनी होगी। किसी ने पुलिस को फोन कर दिया हुआ तो.... तो बहुत मुश्किल हो जाएगी । तुम्हारी चलाई गोली किसी को लग जाती तो बेड़ा ही गर्क था । "
"मैंने आत्मरक्षा के लिए गोली चलाई थी ।"
"जब वो भाग ही गया था तो..."
"भागते को रोकना भी पड़ता है ।"
"रोके पाये ?"
"नहीं।"
"सो देयर ।"
"तुम्हारी रिवॉल्वर का बैलेंस खराब है। घोड़ा खींचने पर झटके से दाई ओर जाती है ।"
"फायरआर्म्स की काफी जानकारी मालूम होती है तुम्हें ?"
"ऐसा हथियार रखने का क्या फायदा जो वक्त पर काम न आये ।"
“वापिस करो ।”
जीतसिंह ने खाली रिवॉल्वर उसे सौंप दी।
"था कौन वो ?" - रिकार्डो बोला ।
"अच्छा ! ये मैं बताऊं ?"
"मोरानो !"
"वो कह रहा था कि वो फरताद के बुलावे पर बम्बई से आया था ।" - मोरानो बोला ।
"फिर तो वो वसन्त राव था, लेकिन उसने आते ही तुम्हारी जान लेने की कौशिश क्यों की ?"
"क्योंकि वो वसन्त राव नहीं था" - जीतसिंह बोला - "वो काशीनाथ देवरे नाम का बम्बई का एक टॉप का हरामी था।"
“तुम उसे जानते हो ?"
"हां | अच्छी तरह से ।"
"क्यों वो तुम्हारी जान लेने पर तुला था ?"
"वो एक लम्बी कहानी है लेकिन पहले मेरा सवाल ये है कि अगर वो तुम्हारे जोड़ीदार फरताद का दोस्त था तो उसे मालूम होना चाहिए था कि उसका असली नाम काशीनाथ देवरे था । उसने ये झूठ क्यों बोला कि वो वसंत राव था ?”
"क्यों बोला ?"
"क्योंकि देवरे के हाथों यहां मेरे कत्ल के षड्यन्त्र में वो भी शामिल था ।”
"तुम क्या चीज हो, भई ?”
"पता चल जाएगा, पहले मुझे फरताद से अपने सवाल का जवाब चाहिए । बाजू हटो ।"
"वो तो मैं हटता हूं लेकिन फरताद" - उसके स्वर में गहन चिंता का पुट का गया - "तुम्हारे किसी सवाल का जवाब देने की हालत में नहीं है । "
"क्यों ?"
"उस... उस आदमी की चलाई एक गोली उसे लग गई है।"
"लानत !"
वो कमरे में दाखिल हुआ ।
फरताद मेज के करीब फर्श पर पीठ के बल लुढका पड़ा था । उसकी छाती में से खून बह रहा था, उसका चेहरा कागज की तरह सफेद था और आंखे बंद थीं ।
ऐंजो हकबकाया सा उसके करीब खड़ा था ।
जीतसिंह उसके करीब पहुंचा और घुटनों के बल उसके पहलू में बैठ गया । उसने उसकी नब्ज टटोली । गाल थपथपाये और व्यग्र भाव से बोला - "फरताद ! फरताद ! सुन रहे हो ? तुम्हारा वो बम्बई का बाबू असल में काशीनाथ देवरे था । तुमने क्यों झूठ बोला कि वो कोई वसन्त राव था ?”
"मर गया मालूम होता है ।" - एंजो धीरे से बोला ।
"नहीं । अभी बेहोश है। लेकिन है बुरी हालत में।"
जीतसिंह ने आखिरी बार उसे होश में लाने की नाकाम कोशिश की और फिर उठ खड़ा हुआ ।
"देवरे को और कौन जानता था ?" - वो बारी-बारी रिकार्डो और मोरानो को देखता हुआ बोला ।
दोनों ने अनभिज्ञता से कंधे झटकाए ।
" यानी कि ये कहना मुहाल है कि यहां से भागकर वो कहां गया होगा ?"
“आइलैंड से पणजी के लिए तो वो फौरन कूच कर गया होगा।" - रिकार्डो बोला- “आगे कहां गया होगा, क्या पता ?" "हूं।"
"लेकिन जब तुम उसे जानते हो तो उसका बम्बई का पता तो तुम्हें मालूम ही होगा ।"
"मालूम है।" - जीतसिंह वितृष्णापूर्ण भाव से बोला "लेकिन अब जब कि वो मुझे शूट करने में नाकाम रहा है तो वो मुझे उस पते पर नहीं मिलने वाला । "
" है क्यों वो तुम्हारी जान का दुश्मन ?"
"क्योंकि वक्त रहते मैं उसकी जान का दुश्मन न बन सका। चूक गया मैं ।"
"क्या मतलब ?"
"छोड़ो वो किस्सा । इस वक्त ये सवाल अहम नहीं है । "
"यू आर राइट ।" - उसने एक चिंतापूर्ण निगाह फरताद पर डाली - "इस वक्त अहम सवाल ये है कि इसका क्या होगा ?"
"हमें इसके लिए कोई डॉक्टर बुलाना चाहिए।" - मोरानो व्यग्र भाव से बोला ।
"नो । नैवर ।" - रिकार्डो ने तत्काल प्रतिवाद किया - "इसे गोली लगी है । कोई आम डॉक्टर इसे हाथ भी नहीं लगाएगा |"
"लेकिन कोई खास डॉक्टर...."
"मैं किसी को नहीं जानता। मैं इस इलाके में नया हूं। मैंने हाल ही में ये बंगला किराये पर लिया है । "
"क्यों ?" - जीतसिंह तीखे स्वर में बोला ।
"भई, बुलबुल ब्रांडो की एस्टेट को लूटने के काम को अंजाम देने के लिए हमें यहां अपना कोई हैडक्वार्टर भी बनाना था या नहीं ?"
जीतसिंह खामोश रहा । उसके चेहरे पर असंतोष के भाव और गहरे हो गए ।
"डॉक्टरी इमदाद के बिना तो ये मर जाएगा ।" - मोरानो बोला ।
"नहीं, नहीं।" - रिकार्डो हड़बड़ाया- "यहां नहीं मरना चाहिए इसे ।"
"क्या हर्ज है ?" - जीतसिंह बोला- "बंगला किराए का है। यहां तुम्हारा जो छोटा-मोटा सामान है उसे समेटो और चुपचाप खिसक जाओ।"
"ऐसा नही हो सकता ।”
"क्यों ? क्यों नहीं हो सकता ?"
"लैंडलार्ड मुझे जाती तौर पर जानता है।"
"बढ़िया ।"
"हमें इसे यहां से निकालना होगा । जिन्दा या मुर्दा कैसे भी यहां से निकालना होगा। इसी में हम सबकी भलाई है।"
"हम सबकी ?"
"हां ।" - वो सख्ती से बोला ।
" यानी कि अगर तुम पकड़े गए तो तुम बाकियों की भी पोल खोल दोगे ?”
"यहां सब जनों के फिंगरप्रिंट्स हैं । और भी कई तरीकों से इस छोटे से आइलैंड पर हम में से किसी की भी शिनाख्त हो सकती है। हम में से कोई मेरे से पहले पकड़ा जा सकता है ।”
"ठीक है । मुझे तुम्हारी बात से इत्तफाक है कि लाश यहां से बरामद नहीं होनी चाहिए । अब जरा हाथ-पांव हिलाओ ।”
“क्या करू मैं ?"
"सबसे पहले एक कम्बल लाओ । खूब बड़ा । है ?" "है । अभी लाता हूं।" "वो लम्बे डग भरता वहां से रुख्सत हो गया ।
"बाहर जो स्टेशन वैगन खड़ी है" - जीतसिंह मोरानो से सम्बोधित हुआ - "वो किसकी है ?"
"रिकार्डो की ।" - मोरानो बोला । "चाबी कहां है ?"
"बाहर दरवाजे की बगल में एक खूटी पर टंगी है।"
"चाबी को काबू में कर और स्टेशन वैगन को फाटक के भीतर उलटी चलाकर बाहर बरामदे तक ले के आ ।”
मोरानो हिचकिचाया ।
"सुना नहीं।" - जीतसिंह ऐसे कहरभरे स्वर में गुर्राया कि मोरानो क्या, ऐंजो भी घबराकर एक कदम पीछे हट गया।
फिर सहमति में सिर हिलाता मोरानी वहां से बाहर निकल गया ।
रिकार्डो खूब बड़े, खूब मोटे एक कम्बल के साथ वापिस लौटा ।
जीतसिंह के इशारे पर उसने कम्बल लाश के पहलू में फर्श पर बिछा दिया । जीतसिंह और मोरानो ने सावधानी से लाश को उठाया और उसको कम्बल पर स्थानान्तरित कर दिया । दोनों ने उसकी गठरी-सी बनाई ।
"बाहर जाकर" - जीतसिंह बोला- "अपनी स्टेशन वैगन का पिछला दरवाजा खोलो और मोरानो से कहो कि गाड़ी को स्टार्ट करके रखे और खुद तुम जाकर किसी आए-गए की चौकसी में सड़क पर खड़े हो जाओ।"
"आए-गए की चौकसी में ?" - रिकार्डो सकपकाया ।
"अभी तुमने कहा नहीं था कि गोलियां चलने की आवाज सुनकर किसी पड़ोसी ने पुलिस को फोन कर दिया हो सकता है । क्या पता पुलिस इलाके में पहुंच भी चुकी हो !"
“आह ! ओह !"
फिर वो तेजी से बाहर की तरफ लपका ।
जीतसिंह प्रतीक्षा करने लगा ।
बाहर से इंजन के स्टार्ट होने की आवाज आई तो उसने ऐंजो को इशारा किया। दोनों ने लाश की गठरी उठाई और बाहर को चल दिए ।
और दो मिनट बाद लाश की गठरी स्टेशन वैगन के पृष्ठभाग में बन्द थी और वो चारों आगे स्टेशन वैगन में सवार थे ।
जीतसिंह के इशारे पर मोरानो ने गाड़ी आगे बढ़ाई |
"मर गया ?" - सड़क पर पहुंचकर वो सस्पेंसभरे स्वर में बोला ।
"नहीं।" - जीतसिंह बोला- "अभी जिन्दा है । "
"सांता मारिया ! सांता मारिया !"
"गाड़ी धीरे चला । एहतियात से ।"
"चलूं किधर ?"
"किधर भी चल लेकिन इस इलाके से कहीं दूर चल ।"
गाड़ी सड़क पर दौड़ने लगी ।
पांच मिनट बाद वो बीच के एक उजाड़ हिस्से में पहुंचे ।
"ठीक है जगह ।" - एकाएक जीतसिंह बोला - "रोक ।”
स्टेशन वैगन रेत के एक टीले के करीब रुकी। सब उसमें से उतरे । उन्होंने लाश की गठरी बाहर निकाली और उसे खोला । जीतसिंह ने फिर उसकी नब्ज टटोली और बोला - "अभी जिन्दा है ।”
कोई कुछ न बोला ।
लाश को कंबल पर से रेत पर लुढ़का दिया गया । रिकार्डो कम्बल समेटने लगा तो एकाएक बोला- "ये तो खून से लथपथ है ।"
"धो लेना ।" - जीतसिंह बोला ।
“या जला देना ।" - ऐंजो बोला ।
रिकार्डो ने कम्बल को तह करके गाड़ी में डाला ।
"चलो।" - जीतसिंह बोला ।
“वो जिन्दा है ।" - मोरानो व्याकुल भाव से बोला ।
“तो क्या करें ?” - जीतसिंह चिढ़कर बोला ।
"हम कहीं से पुलिस को एक गुमनाम फोन कर देना चाहिए और उन्हें बता देना चाहिए कि ये यहां, किस हालत में पड़ा है । फिर हो सकता हैं कि पुलिस की मेहरबानी से ही इसकी जान बच जाए ।”
" और ये" - ऐंजो विरोधपूर्ण स्वर में बोला- "जान बच जाने के बाद अक्खा वाक्या पुलिस को कह सुनाए और हम सब को गिरफ्तार करा दे ।"
"किसलिए? हमने क्या किया है ?"
"हां।" - रिकार्डो बोला- "गोली तो इसे इसी के आदमी ने मारी । ये बच गया । तो ये भला हमारे खिलाफ क्यों बोलेगा ?"
"ठीक है।" - जीतसिंह बोला- "यहां से हिलो । रास्ते में कहीं से पुलिस को फोन करते हैं । "
सब स्टेशन वैगन में सवार हो गए। स्टेशन वैगन वहां से लौट चली ।
"अब आगे क्या इरादा है ?" - रिकार्डो बोला ।
"किस बाबत ?" - जीतसिंह हैरानी से बोला ।
"बुलबुल ब्रांडो की वाल सेफ खोलने की बाबत ।”
"वो किस्सा खत्म । मौजूदा हालात में मैं अपनी परछाई भी इस आइलैंड पर कहीं पड़ती नहीं देखना चाहता ।"
"लेकिन बिगड़ा क्या है अभी ? अभी तो...'
"तुम पागल हो । मेरे उस्ताद ने मुझे यही सिखाया है कि जिस खीर में एक बार मक्खी पड़ जाए, उसका ख्याल छोड़ देना चाहिए । मिस्टर रिकार्डो, ये सपने देखने का नहीं, घर- घर कूच करने का वक्त है ।”
"फिर भी..."
"अरे, जिस इलाके में एक नोन गैंगस्टर गोली खाए पड़ा मिला हो और जो तुम्हारा जोड़ीदार हो, उस इलाके से यूं
परेहज करना चाहिए जैसे वहां प्लेग फैली हुई हो ।"
"मेरा फिरेंड ठीक बोलता है।" - ऐंजो बोला ।
मोरानो का सिर भी सहमति में हिला ।
"लेकिन" - ऐंजो अर्थपूर्ण स्वर में बोला- "अगर वो मरा पड़ा मिले तो बात दूसरी है ।"
"क्या मतलब ?" - रिकार्डो बोला ।
"मुर्दे नहीं बोलते ।”
"क्या !"
"समझो ।"
"तुम्हारा मतलब है हमीं वापिस जाकर उसका काम तमाम कर दें ?"
"एक गोली । एक गोली और । इसी में उसकी भलाई है । और हमारी भी ।"
"ओह, नो ।” “दैन फारगेट इट, मैन ।”
रिकार्डो एक क्षण खामोश रहा और फिर मायूसी से बोला - "ब्रांडो पर इतनी रिसर्च की थी मैंने । इतनी मेहनत से प्लान तैयार किया था मैंने इतनी मेहनत से प्लान पर अमल करने वाले इकट्ठे किए थे मैंने । इतने..."
"सब भूल जाओ । लालच बुरी बला होती है।"
"गोली लगे उस हरामजादे देवरे को ।"
"लगेगी।" - जीतसिंह पूरे विश्वास के साथ बोला- "लगेगी।”
रिकार्डो ने सकपकाकर उसकी तरफ देखा ।
"इसलिए" - जीतसिंह बोला- "किसी को देवरे की कोई खोज-खबर लगे तो वो मुझे जरूर खबर करे।"
"तुम्हारा उसके पीछे पड़ने का इरादा है ?"
“यही तरीका है उससे पीछा छुड़ाने का । नहीं तो वो मेरे पीछे पड़ा रहेगा । इस बार वो अपनी कोशिश में नाकाम हो गया, अगली बार शायद ऐसा न हो ।"
" तुम्हारी उससे अदावत क्या है ?"
"वो एक लम्बी कहानी है । "
"फिर भी..."
"ऐंजो ! सिगरेट निकाल | "
वार्तालाप वहीं समाप्त हो गया ।
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