सुधाकर को कंट्रोल रूम से ‘सिग्मा ट्रेवल्स’ की बस के और ड्राइवर के पनवेल पुलिस के कब्जे में होने की सूचना मिली। कंट्रोल रूम से उसे मौका-ए-वारदात की जगह पर संपत राव के मौजूद होने का पता चला। वह संपत राव को जानता था। उसने तत्काल संपत राव को फोन मिलाया।

“संपत राव। मी सुधाकर शिंदे बोलत आहे। अंधेरी थाना।”

“होय, शिंदे सर। मी एकत आहे। आप बोलिए।”

“जो ड्राइवर तुमने नाके पर पकड़ा है उसे अभी तुम वहीं रखो। बस को एक तरफ साइड में पार्क करवा दो। मैं बस दस मिनट में वहाँ पहुँच रहा हूँ।”

“ओके, वो यहीं है। भागने की कोशिश कर रहा था लेकिन हमने उसे दबोच लिया।”

ड्राइवर के भागने की कोशिश और फिर उसके पकड़े जाने की बात सुन कर उनके साथ मौजूद चरणजीत वालिया की साँसे भी सीने में अटक गयी। किसी अनहोनी घटना के अंदेशे से उसका दिल काँपने लगा।

वाशीपुल के नाके पर पहुँच कर संपत राव ने सेल्यूट कर सुधाकर शिंदे का अभिवादन किया। सुधाकर ने उसका जवाब देकर अपनी तवज्जो पूरी तरह से बस की तरफ केन्द्रित कर दी।

“देखो वालिया, क्या ये तुम्हारी ही टूरिस्ट बस है?”

“हाँ जी सर, लग तो वही रही है।” चरणजीत ने बस का बाहर से ध्यान से मुआयना करते हुए और नम्बर देखते हुए कहा।

“हम्म, संपत राव इस बस में कुछ टूरिस्ट सवार थे, वो कहाँ है?” सुधाकर ने संपत राव की तरफ रुख करते हुए कहा।

“टूरिस्ट? कैसे टूरिस्ट? ड्राइवर ही बड़ी मुश्किल से पकड़ के बरामद किया है। इस बस में तो उसके सिवा और कोई नहीं था। वो भी हमें देख कर ऐसे भागा जैसे कोई भूत देख लिया हो।”

“वालिया साहब! ये क्या मामला है! विस्टा टेक्नोलॉजी के लोगों के लिए तुमने कोई दूसरी बस भेजी थी क्या?”

“नहीं तो, इंस्पेक्टर साहब। हो सकता है कि वह बस रास्ते में कहीं खराब हो गयी हो और वो लोग किसी और साधन से निकल लिए हों।’’ वालिया ने असमंजस में अपनी राय जाहिर की।

“ये तो अब वो ड्राइवर का बच्चा ही बताएगा। संपत, कहाँ पर है वो?” सुधाकर बुरी तरह झल्लाता हुआ बोला।

“उसे जीप में पकड़ कर बैठा रखा है। मैं लाता हूँ उसे।” हामिद ने बताया।

“रुको, वहीं चलते हैं हम भी। आओ राणे।” इतना कहकर सुधाकर उस जीप की तरफ लपका जिसका अभी हामिद ने जिक्र किया था।

जीप में पकड़ा हुआ ड्राइवर पसीने में लथपथ हुआ बैठा था। उसके सिर के पिछले हिस्से में हामिद का डंडा लगने की वजह से एक बड़ा सा गूमड़ निकला हुआ था और गिरने की वजह से माथे पर चोट आयी हुई थी, जिसे उसने अपने गमछे से दबाया हुआ था।

“क्यों बे हलकट। इतनी देर से बस को कहाँ घुमा रहा था जबकि तेरे मालिक के मुताबिक तो तू कल रात को होटल ‘पर्ल रेसीडेंसी’ में पहुँचना चाहिए था?” सुधाकर ने कड़कती हुई आवाज में पूछा।

“मैं ... मैं ... म…” ड्राइवर के मुँह से बोल न फूटा।

“ए मैं… मैं, क्या करता है रे हरामी। मुँह से बोल ना!” संपत झल्लाता हुआ बोला।

“इस बस की सवारियाँ कहाँ पर हैं। उन्हें तूने किसी और बस में बैठाया या वो लोग कहीं आगे चले गए।” सुधाकर ने बड़े सब्र से पूछा।

“साब, मैं...मेरे को...मेरे को नहीं मालूम!” ड्राइवर घिघियाता हुआ बोला।

“तेरे को नहीं मालूम। कहीं नशा-पत्ती कर के, दारू पी के बीच रास्ते में कहीं गर्क हो गया था क्या? बस की सवारियाँ कहाँ गयी, साले को ये भी नहीं मालूम।” संपत फिर बोला।

“अरे वालिया साहब। आपका ड्राइवर तो पक्का नशेड़ी मालूम होता है। इससे आकर के तुम ही पूछो नहीं तो फिर हम अपने स्टाइल में पूछेंगे।” सुधाकर ने चरणजीत वालिया को आवाज लगाते हुए कहा।

चरणजीत वालिया मरे हुए कदमों से सुधाकर के पास जीप की तरफ पहुँचा और फिर उसने सुधाकर की तरफ सवालिया नजरों से देखा।

“मेरी तरफ नहीं, वालिया साहब। अपने ड्राइवर से पूछो कि इसने वो सब के सब विस्टा टेक्नोलॉजी के कर्मचारी कहाँ पर छोड़े या वो लोग कहीं दूसरी जगह गए हैं।”

“किस से पूछूँ इंस्पेक्टर साहब?” वालिया गड़बड़ाया।

“तुम्हारी बस के ड्राइवर से, और किस से!” सुधाकर गुस्से से बोला।

“मेरा ड्राइवर! कहाँ है मेरा ड्राइवर?” वालिया ने उल्टा प्रश्न किया।

“मिस्टर वालिया। आप के सामने जो आदमी जीप में बैठा है, उससे पूछिए, जो आपकी बस चला रहा था।” सुधाकर झल्लाते हुए बोला।

“इंस्पेक्टर साहब, ये मेरा ड्राइवर नहीं है। मैं तो इसको पहली बार देख रहा हूँ।” चरणजीत वालिया ने हकबकाते हुए कहा।

“ये आपका ड्राइवर नहीं है। फिर ये उस बस में क्या कर रहा था ?” मिलिंद राणे ने सवाल उठाया।

“कहीं दिन दहाड़े इस बस को चोरी करके तो नहीं भाग रहा था। तभी तो हमारे रोकते ही सरपट भाग लिया ये श्याणा।” संपत राव ने अपनी दलील दी।

“मैंने कोई चोरी नहीं की साहब। मैं बस को चोरी करके वापस मुंबई में दिन दहाड़े क्यों आऊँगा साहब! मैंने कोई चोरी नहीं की है।” ड्राइवर कलपता हुआ बोला।

“चुप कर, साले। अब बता, ये बस कहाँ से मिली तुझे।” राणे ने एक झापड़ रसीद करते हुए ड्राइवर से पूछा।

“नहीं राणे। सरेआम मैन हैंड़लिंग नहीं। संपत राव, इसे मैं अपनी हिरासत में ले रहा हूँ। बस को एक ड्राइवर के हाथ अंधेरी पुलिस स्टेशन भिजवाने का इंतजाम करो। वहाँ फोरेंसिक एक्सपर्ट से इसकी जाँच करवानी होगी। आगे की पूछताछ हम वहीं कर लेंगे। तुम्हारी जरूरत पड़ेगी तो...”

“कोई वांदा नहीं, सर।” संपत राव मुस्तैदी से बोला।

कागजी खानापूर्ति करने के बाद सुधाकर शिंदे, उस ड्राइवर को हिरासत में लेकर मिलिंद राणे के साथ, अपनी बोलेरो में सवार हो कर अंधेरी की तरफ रवाना हो गया। अधर और पशोपेश में लटका वालिया भी उनके साथ था। सारा रास्ता मन ही मन अपने करतार को याद करता रहा।

‘वाहेगुरु, ए कि स्यापा मेरे गले विच पै गया। रब्बा मेहर करीं। ओ मोया राकेश कित्थे जा के मर गया और ए केड़ा नशेड़ी मेरी बस नु घुमाई जाँदा सी।’

बोलेरो वापस अंधेरी के थाने की तरफ दौड़ पड़ी।

☸☸☸

संपत राव ने जिस ड्राइवर को पकड़ा था, उसने अपना नाम सोमू बताया। सोमू जोगेश्वरी की मराठवाड़ी चाल का बाशिंदा निकला। हर तरह से पूछताछ करने के बावजूद उसने ‘मैं कुछ नहीं जानता’ की रट नहीं छोड़ी। वालिया उससे वाकिफ होने से पहले ही इंकार कर चुका था। सुधाकर शिंदे अब भी उससे कोई जानकारी निकलवाने की पुरजोर कोशिश कर रहा था।

“देखो सोमू, तुम नहीं जानते तुम किस मुसीबत में फँसने वाले हो। अगर तुमने हमसे जरा भी सच्चाई छुपाई तो तुम अपनी ऐसी बुरी गत बनवाओगे कि तुम्हारी आगे की सारी जिंदगी बेकार हो जाएगी।”

“मैं कुछ नहीं जानता साहब। मुझे तो सिर्फ़ इतना कहा गया था कि मैं ये बस पुणे के ‘गणपति ट्रेवल्स’ तक पहुँचा दूँ। लेकिन जब मैं पुणे हाइवे पर दस किलोमीटर चला ही था, मुझे फिर फोन आया कि गणपति ट्रैवल्स का एक आदमी मुंबई आया हुआ है तो वो ही बस को पुणे ले जाएगा। मेरे को वो वापस आने को बोला। मेरे को अपनी पूरी दिहाड़ी मिल चुकी थी तो मुझे इसमें फायदा ही लगा। मेरा दिन भी खोटी नहीं हुआ और पूरा पैसा भी वसूल हो गया।”

“तुझे पुणे जाने के लिए बोला किसने?”

“मेरे साथ के ही एक ड्राइवर राहुल तात्या ने ही बोला था साहब।”

“तेरे साथ वाला! वो तुझे कहाँ मिला?”

“जोगेश्वरी में एक टैक्सी स्टैंड है, वहीं पर ही उससे मेरी जान-पहचान हुई थी, साहब। राहुल ने मुझे फोन कर के बुलाया था उस बस को पुणे ले जाने के लिए। वो बोला कि अर्जेंट है करके।”

“उस आदमी का हुलिया बताओ जिसने तुम्हें फोन किया था और उसका फोन नंबर बताओ? राणे, वालिया से उसके ड्राइवर की फोटो मँगवाओ जो उसकी बस चलाता है। क्या नाम बता रहा था वो उसका। शायद राकेश! जल्दी।” सुधाकर ने राणे को हिदायत देते हुए कहा।

राणे बगल के कमरे में बैठे वालिया के पास गया और उससे ड्राइवर की फोटो अपने मोबाइल पर मँगवाने के लिए कहा।

“ये बस कहाँ से ली तुमने? मतलब तुम्हारे हवाले कहाँ हुई?” सुधाकर ने पूछा।

“वकोला रोड़ पर रीजेंसी होटल के सामने से।” सोमू ने बताया।

“आज कितने बजे बस लेकर गया तू?”

“उसने आज सुबह आठ बजे मुझे रीजेंसी होटल के सामने बुलाया था साहब।”

“तुझे बस देने कौन आया था? वो ही आदमी जिसने तुझे फोन किया था!”

“नहीं साहब इस बस का ड्राइवर था। वो बोला उसकी बहन की शादी थी और उसकी ट्रेवल कंपनी में आदमियों का तोड़ा था। उसके मालिक को ये बस पुणे पहुँचानी थी जहाँ किसी एजेंसी ने आगे की बुकिंग कर रखी थी।”

“तुझे यह बस सिर्फ़ पुणे पहुँचा कर आनी थी। तो फिर मुंबई वापस क्यों आया?”

“मुझसे फोन पर उसी आदमी ने कहा था, जो इस बस का ड्राइवर था और जिसने मुझे बस दी थी, कि अब बस को गणपति ट्रेवल्स का ही आदमी पुणे लेकर जाएगा। मैं बस को वापस रीजेंसी होटल के पास ले आऊँ जहाँ से मैंने बस ली थी; लेकिन रास्ते में ही पुलिस ने मुझे पकड़ लिया साहब। मैंने कुछ नहीं किया, साहब। मुझे एक दिन का दो हजार रुपए रोकड़ा मिल रहा था और बस छोडने के बाद पुणे से वापस आने का किराया भी। मेरे को क्या पता इस काम में भी कोई लोचा होएँगा साहब।” सोमू आर्तनाद करता हुआ बोला।

“अबे साले। लोचा तो तेरे लिए आगे होएँगा जब तू हमें ये बताएगा कि इस बस में पंद्रह सवारियाँ थी जो एक कंपनी के कर्मचारी थे, विस्टा टेक्नोलॉजी के, वो सब कहाँ है?”

सोमू का चेहरा एकदम फ़क पड गया और आँखें फैल गयी। सुधाकर को लगा जैसे उसका दिल बैठने वाला हो। सुधाकर ने अपने हाथों से उसका चेहरा ज़ोर से थपथपाया। जैसे ही उसके होश कुछ ठिकाने आये तो वो ज़ोर-ज़ोर से दहाड़े मार कर रोने लगा। उसकी सुई फिर दोबारा ‘मुझे कुछ नहीं पता’ पर जाकर अटक गयी।

सुधाकर ने असहाय भाव से अपनी गर्दन हिलाई। उसने एक सिपाही को बुलाकर उसे वापस हवालात की कोठरी में ले जाने को कहा। तभी मिलिंद राणे वालिया के साथ उस कमरे में पहुँचा।

“वालिया साहब। ये सोमू आपका ड्राइवर नहीं है?”

“नहीं जनाब। मैंने तो आज से पहले उसकी कभी सूरत नहीं देखी। मेरा ड्राइवर तो राकेश है, जो इस बस पर तब से है, जब से मैंने ये बस खरीदी है।”

“इस बस की आपने कोई आगे बुकिंग कर रखी थी?”

“नहीं, ये बस तो मैंने सिर्फ़ होटल के टूरिस्टों के लिए रख रखी है। इस बुकिंग की बाद होटल सन-व्यू के लिए दो दिन की बुकिंग थी।”

“ये सन-व्यू होटल क्या पुणे में है?”

“नहीं जनाब, वो तो इधर ही सहर रोड पर ही है !”

“लेकिन तुम्हारे ड्राइवर ने तो ये बस पुणे के लिए रवाना कर दी थी।”

“पुणे के लिए! मेरे ड्राइवर ने! लेकिन मुझ से पूछे बिना वो ऐसा क्यों करेगा? कई बार अगर कोई बाहर की बुकिंग हो, तो भी वो लोग मेरे से पूछ कर ही उसे उठाते हैं; लेकिन उसने मुझे तो इस बारे में कुछ बताया नहीं।”

“सोमू के मुताबिक तो उसको तुम्हारे ड्राइवर ने पुणे के लिए रवाना किया था। विशंभर, उस सोमू को एक बार फिर यहाँ ले कर आ। तुम्हारे ड्राइवर की फोटो आ गयी?”

वालिया ने सहमति में सिर हिलाया। राणे ने राकेश की फोटो अपने मोबाइल पर सुधाकर को दिखाई। थोड़ी देर में सोमू उनके सामने फिर से बैठा हुआ काँप रहा था। उसने सोचा था कि शायद उसका कुछ देर इस पूछताछ से पीछा छूटेगा लेकिन इतनी जल्दी दोबारा बुलाने से वह और भी बुरी तरह से डर गया। जब वो कमरे में घुसा तो वहाँ पर अबकी बार उसके सामने एक सरदार जी भी बैठे थे। उसे कुर्सी पर बैठा कर सुधाकर शिंदे फिर सोमू के सिर पर सवार हो गया।

“अब क्या हो गया, साहब। मैं कुछ नहीं ...”

“अबे चुप। जो पूछा जाए, सिर्फ़ उस के बारे में जवाब दे। ये जो आदमी तेरे सामने बैठा है, तूने इसे पहले कभी देखा है?”

“नहीं साहब ! मैं तो इन साहब से कभी नहीं मिला।”

“ये आदमी सिग्मा ट्रैवल का मालिक है, जिसकी बस चलाता हुआ तू पकड़ा गया है। तूने कहा था कि वो बस तुझे उस बस के ड्राइवर ने दी। तू उस ड्राइवर को पहचान लेगा?”

“हाँ साहब। आज सुबह ही तो उसे मिला था। अगर मुझे मिल जाए तो...” सोमू गुस्से में दाँत किटकिटाता हुआ बोला।

“बस, बस, अपना गुस्सा संभाल कर रख। जेल में तेरे को हौसला देगा। ले देख, ये उस ड्राइवर की फोटो है जो इस बस पर काम करता था। ध्यान से देख, क्या ये वही आदमी है जो सुबह तुझे रीजेंसी होटल के बाहर मिला था?”

सोमू ने बड़े ध्यान से सुधाकर के हाथ में थमे मोबाइल पर फोटो देखी; लेकिन उसके चेहरे पर पहचान के भाव नहीं आए। उसने इंकार में अपने सिर को हिलाया। सुधाकर ने असहाय भाव से गर्दन हिलाई और वालिया भोचक्का हो कर कभी सुधाकर और कभी सोमू की तरफ देखने लगा।

“ये बंदा हम सब को बेवकूफ बना रहा है।” वालिया कलपता हुआ बोला। “ये हमारी बस को चुरा कर कहीं ले जा रहा था। अब पकड़े जाने पर अनाप-शनाप बक रहा है। ये खुद मेरे ड्राइवर से गाड़ी ली हुई बताता है और उसे ही पहचानने से इंकार कर रहा है।”

“मैं सच कह रहा हूँ। मैंने जिस आदमी से बस ली थी, वो ये आदमी नहीं है, जिसकी फोटो इंस्पेक्टर साहब मुझे मोबाइल में दिखा रहें हैं।”

“अबे मा﹡﹡﹡﹡ यही सिग्मा का असली ड्राइवर है, इसका नाम राकेश है। लगता है, तूने इस ड्राइवर को भी कहीं गायब कर दिया है या मार डाला है। असली बात बता...” इतना कह कर मिलिंद राणे ने एक धौल सोमू की कमर पर जमा दी।

सोमू कुर्सी से लुड़क कर जमीन पर जा पड़ा। सुधाकर ने राणे को रुकने का इशारा किया। राणे ने सोमू की गर्दन पकड़ कर वापस कुर्सी पर बिठाया।

“देख सोमू, तू चोरी के इल्जाम में तो फँस ही गया है। अगर हमें असली ड्राइवर राकेश नहीं मिला तो उसके अंजाम का ज़िम्मेवार भी तू ही होगा। सवारियों का पेंच तो अभी बाकी है ही। तुझे आज रात तक का समय देता हूँ। अभी तो तुझे अदालत में पेश कर के तेरा रिमांड लेना बाकी है। तेरे सगेवालों को ये खबर पता नहीं कब पहुँचेगी और पता नहीं कि पहुँचेगी या नहीं। जब तक तू हमें सच नहीं बताता तब तक तू यहाँ पर ही है बेटा... ” सुधाकर ने विशंभर को फिर उसे हवालात में ले जाने को कहा।

सुधाकर ने राणे को स्केच आर्टिस्ट बुला कर सोमू के बताए हुए हुलिये के अनुसार स्केच बनवाने के लिए इंतजाम करने के लिए कहा।

‘अगर सोमू राकेश को नहीं पहचान रहा था, तो उस आदमी की शक्ल से पुलिस का वाकिफ होना बड़ा जरूरी था, जिससे सोमू ने बस ली थी।’ सुधाकर ने मन ही मन सोचा।

“राणे, विस्टा टेक्नोलॉजी के आदमियों की लिस्ट और उनके फोन नंबर ट्रेस करवाओ। साथ में इस सोमू के फोन नंबर की कॉल डीटेल भी निकलवाओ। वालिया से उसके ड्राइवर राकेश का नंबर लेकर उसे ट्रेस करने की कोशिश करो और इन दोनों आदमियों की कॉल डीटेल को मैच करके देखो कि कहीं उन दोनों का आपस में कोई कनेक्शन है या नहीं।”

“यस सर।” इतना कहकर राणे उस कमरे से बाहर निकल गया।

“वालिया साहब, अपने ड्राइवर का पता ठिकाना अपने लेवल पर भी पता करने की कोशिश करो और मुझे ये भी पता कर के बताओ कि तुम्हारे ट्रांसपोर्ट के धंधे के किसी और आदमी ने विस्टा टेक्नोलॉजी के कर्मचारियों के लिए कोई बस तो नहीं भेजी। जितनी जल्दी तुम ये पता कर सको, उतनी जल्दी करो और यहीं पर बैठ कर ये सारा काम करो। मुझे जल्दी से जल्दी ये जानकारी चाहिए। अपने घर इस बात की जानकारी दे दो कि तुम अपने काम में व्यस्त हो। जब तक हमें कुछ पता नहीं चल जाता तुम यहीं रहोगे। समझे?”

“क्या मैं गिरफ्तार हूँ?” वालिया ने रोष जताते हुए कहा।

“नहीं, वालिया साहब। आप गिरफ्तार नहीं हैं, आप एक अच्छे नागरिक की तरह हमारा सहयोग कर रहें हैं। यदि आप नहीं करना चाहेंगे तो हमें तुम्हारे बारे में फिर सोचना पड़ेगा। उस हालत में तुम पूछताछ के लिए हिरासत में लिए जा सकते हो। तब तुम में और उस सोमू में कोई फ़र्क नहीं रहेगा। समझे?”

सुधाकर के सर्द लहजे को समझते वालिया को देर नहीं लगी। वह तुरंत अपना फोन लेकर उस कमरे से बाहर निकल गया और अपने तमाम ट्रैवल अजेंसी के साथियों को संपर्क करने लगा।

सुधाकर शिंदे ने ‘पर्ल रेसीडेंसी’ में माधव अधिकारी को कोई अपडेट पता करने के लिए फोन किया। माधव अधिकारी ने विस्टा टेक्नोलॉजी के किसी भी कर्मचारी द्वारा होटल में संपर्क या खुद किसी के होटल लौटने से इंकार किया।

सुधाकर शिंदे हालाँकि सीनियर इंस्पेक्टर था पर अब उसके लिए ये मामला अपने उच्च अधिकारियों के सामने लाना जरूरी हो गया। उसने अपने डिविजन के आला अफ़सर एसीपी आलोक देसाई के ऑफिस में फोन लगाया और मिलने का समय माँगा।

☸☸☸

डिवीज़नल एसीपी आलोक देसाई अपनी पुलिस फोर्स के लिए हमेशा उपलब्ध रहने वाला बड़ा ही ज़हीन अफसर था। अपनी फोर्स के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ने वाला आदमी था आलोक देसाई और इसीलिए मुंबई पुलिस में उसका अलग ही रुतबा था। क्राइम के जरूरी मामले में सुधाकर शिंदे की मिलने की अपील के बारे में पता चलते ही उसने तुरंत सुधाकर के पास खुद मोबाइल से संपर्क करवाया।

सुधाकर के फोन की घंटी बजी।

“हेलो, गुड ईवनिंग सर।” सुधाकर ने सधे हुए स्वर में कहा।

“अगर यह ईवनिंग गुड होता तो तुम और मैं इस वक्त बात नहीं कर रहे होते ऑफिसर। आई होप देयर इज एवरीथिंग फ़ाइन ऑन यूअर साइड। बोलो, मुझसे किस घटना के बारे में बात करना चाह रहे थे।” आलोक देसाई ने पूछा।

सुधाकर ने एसीपी आलोक देसाई को ‘विस्टा टेक्नोलॉजी’ के कर्मचारियों और ‘पर्ल रेसीडेंसी’ के कस्टमरों के बारे में पूरे विस्तार से बताया।

“सर। दिखने में तो ये एक बस चोरी का मामला है पर एक बात है जो इसे अलग बना रही है।” सुधाकर अंत में बोला।

“तुमने एक बस की चोरी के बारे में डिस्कस करने के लिए मुझसे मिलने का समय माँगा?” आलोक देसाई हैरान होते हुए सुधाकर से बोला।

“नहीं सर” सुधाकर हडबड़ाया, “उस बस में ‘विस्टा टेक्नोलॉजी’ के कर्मचारी सवार थे, जिनसे न तो उनके परिवार वालों का संपर्क हो पा रहा है और न ही जिस होटल में वो ठहरे थे उस स्टाफ का संपर्क हो पा रहा है। जो बस हमने बरामद की है... ” उसकी बात को आलोक देसाई की आवाज ने काटा।

“तुम खुद ही परेशान क्यों हो रहे हो? ‘विस्टा टेक्नोलॉजी’ के मैनेजमेंट से इस बारे में बात करो। इस टीम के मेम्बर्स की आखिरी वक़्त की गतिविधियों को ट्रेस करो और फिर मुझे अपडेट करो।” इतना कह कर आलोक देसाई ने फोन रख दिया।

सुधाकर फोन डिस्कनेक्ट होने के बाद कुछ पल के लिए एक टक शून्य में ताकता रहा।

उसकी खामोशी को राणे ने आकर भंग किया। उसने बताया कि स्केच आर्टिस्ट को बुला लिया गया था। फोरेंसिक डिपार्टमेंट की टीम भी वहाँ पहुँच गयी थी और उन्होंने बस में अपनी कार्यवाही शुरू कर दी थी।

“राणे, उन पंद्रह आदमियों की लिस्ट निकाल कर ला, जो हमें होटल से मिली है, जिसमें उन लोगों के नाम और एड्रेस लिखे हुए हैं।” सुधाकर ने राणे को कहा।

राणे ने वो लिस्ट निकाल कर मेज पर रख दी। सुधाकर उस लिस्ट को देखने लगा जिसमें उन लोगों के नाम तो थे पर उनके कंपनी में क्या काम थे और क्या ओहदे थे, इस बात का कुछ पता नहीं चलता था। इन सब बातों का पता तो उस कंपनी के दफ़्तर में ही जाकर पता चल सकता था।

उसने घड़ी की तरफ देखा। शाम के छह बजने वाले थे।

उसने ‘विस्टा टेक्नोलॉजी’ के ऑफिस में फोन लगाया। उधर से किसी रिसेप्शनिस्ट ने फोन उठाया। सुधाकर फोन करने वाली को बोला, “क्या ये विस्टा टेक्नोलॉजी का ऑफिस है?”

“यस सर। कहिए, हाउ कैन आइ हेल्प यू? मैं आपकी क्या सहायता कर सकती हूँ?”

“मैं अंधेरी पुलिस स्टेशन से सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर सुधाकर शिंदे बोल रहा हूँ। मेरी बात ध्यान से सुनो। मुझे तुम्हारा कोई कंपनी वाला हाई-फाई ड्रामा नहीं चाहिए। तुम तुरंत मेरी बात अपने किसी ज़िम्मेवार ओहदेदार... ऑफिसर से करवाओ। इट इस वेरी अरजेंट...”

सुनने वाली ने एक बार तो रिसीवर की तरफ सकपका कर घूरा, फिर मुँह बिचकाते हुए तुरंत सुधाकर की कॉल को किसी के पास ट्रांसफर किया।

“सर, अंधेरी पुलिस स्टेशन से कोई सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर सुधाकर शिंदे बात करना चाहते हैं। वो कह रहे हैं ‘इट्स वेरी अर्जेंट’।”

“पुलिस इंस्पेक्टर! मुझसे? क्या बात करना चाहते हैं?”

“ही इस ऑन द लाइन! आइ एम कनेक्टिंग?”

“यस, हू इस दिस?” सुधाकर शिंदे के कानों में एक प्रश्न पूछती आवाज टकरायी।

“मैं अंधेरी पुलिस स्टेशन से सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर सुधाकर शिंदे।” सुधाकर ने धैर्य से जवाब दिया। “मुझे किसी ऐसे आदमी से बात करनी है जिसकी विस्टा टेक्नोलॉजी में कोई पूछ हो। क्या मैं आप से ऐसे उम्मीद कर सकता हूँ और जान सकता हूँ किन से बात हो रही है?”

“जी ... मैं विस्टा टेक्नोलॉजी से एचआरएम (ह्यूमन रिसोर्स मैनेजर) पीयूष बत्रा बोल रहा हूँ। कहिए इंस्पेक्टर सुधाकर, मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूँ।” पीयूष बत्रा एक बार सकपकाया लेकिन फिर अपने अपने आप को संभालते हुए बोला। डे ऑफ के बाद घर जाने से पहले किसी पुलिसिए से यूँ बातचीत होने का उसे स्वप्न में भी गुमान न था।

“मिस्टर पीयूष बत्रा। आपके कर्मचारियों की एक टीम होटल ‘पर्ल रेसीडेंसी’ में रुकी हुई थी। टीम के स्थापित रूटीन के मुताबिक उन्हें कल रात दस बजे तक अपने होटल में मौजूद होना चाहिए था… ऐसा उस होटल के मैनेजर का कहना है; लेकिन वो लोग वहाँ अब तक नहीं पहुँचे है और ना ही उनकी तरफ से कोई सूचना ही है। मैं आपके पास आधे घंटे में पहुँच रहा हूँ, तब तक आप ये कन्फ़र्म कर लें कि उस टीम में कितने आदमी थे? उन लोगों का शैड्यूल क्या था? इस सबके अलावा, उस टीम में जुड़े हरेक आदमी का डीटेल्ड प्रोफ़ाइल मुझे चाहिए।”

“लेकिन... ”

“बाकी बात मैं वहाँ पर आकर करूँगा। जो आपसे मैंने कहा है, उम्मीद है उसे आपने सुन लिया होगा और आप इसमें हमारा सहयोग करेंगे।”

“लेकिन इस वक्त ...”

“जी हाँ, इस वक्त। अभी तो मैं आपके पास आपके ‘ऑफिस’ आ रहा हूँ। हो सकता है फिर आपको अपने सारे तामझाम के साथ हमारे ‘ऑफिस’ आना पड़े। अगर विस्टा टेक्नोलॉजी के लोग बीच में न घुसे होते तो बात अलग थी; पर अब बात अलग है। ठीक है? आधा घंटा! जो मैंने आपको कहा है, वे डीटेल्स तैयार रखना। समय बचेगा, आपका भी और मेरा भी।"

सुधाकर ने इस के बाद फोन रख दिया।

☸☸☸

कोई आधे घंटे बाद सुधाकर शिंदे विस्टा टेक्नोलॉजी के ऑफिस में पहुँचा, जो सांता क्रूज के इलाके में पड़ता था। वह एक बहुमंजिला इमारत थी जिसे ‘विस्टा हाउस’ के नाम से जाना चाहता था। ‘विस्टा’ विभिन्न कंपनियों का एक विशाल समूह था, जिसका कारोबार शिपिंग, मेटल्स, टेक्नोलॉजी, इंश्योरेंस और रीटेल में फैला हुआ था।

विस्टा समूह के चेयरमेन की गद्दी पर इस वक्त विश्वरूप रूंगटा नाम की देश की जानी मानी शख्शियत विराजमान थी और विस्टा टेक्नोलॉजी की कमान सीईओ नलिनी दासगुप्ता ने संभाल रखी थी। इस विशालकाय समूह के अदने से कर्मचारी के व्यक्तित्व के अंदर भी श्रेष्ठता का एक भाव या यूँ कहे गरुर अनजाने में ही समाविष्ट हो जाता था। सुधाकर ने थर्ड फ्लोर पर एचआरएम पीयूष बत्रा के ऑफिस में कदम रखा। वह उसी का ही इंतजार कर रहा था।

“सही आधे घंटे में आ गए आप!” पीयूष बत्रा ने एक व्यवसाय सुलभ मिठास के साथ शिंदे का अभिवादन करते हुए कहा।

“बिल्कुल, मेरी चंद बुरी आदतों में टाइम पर पहुँचना भी शुमार है। आपका ज्यादा समय न लेते हुए, जो प्रोफ़ाइल लिस्ट मैंने आपसे माँगी थी, उसे देखना चाहूँगा।” सुधाकर ने बिना किसी लाग लपेट के कहा।

पीयूष बत्रा ने एक फ़ाइल उसके सामने मेज पर रख दी। सुधाकर उसे ध्यान से देखने लगा। उसके सामने उन पंद्रह लोगों की लिस्ट थी, जो ‘पर्ल रेसीडेंसी’ में कंपनी की तरफ से रुके हुए थे।

“इन लोगों का आपसे आज कोई संपर्क नहीं हुआ?” सुधाकर ने पूछा।

“इस ग्रुप की ‘इन सर्विस ट्रेनिंग’ परसों शाम को ही पूरी हो गयी थी। हम लोगों ने इन्हें अपने यहाँ से रिलीव कर दिया था। इन्हें दो दिन के बाद हमारे बेंगलूरु के ऑफिस में रिपोर्ट करना था। बीच का एक दिन ये कैसे बिताते हैं, इस बारे में हमारे ऑफिस और इनके बीच में कोई ऑफिशियल संपर्क नहीं था।” पीयूष बत्रा ने सफाई दी।

“अब मैं आपको कह रहा हूँ कि ‘पर्ल रेसीडेंसी’ ने इन लोगों से कोई संपर्क न होने की बात हमें बतायी है तो लगता है इस बात का आप लोगों की सेहत पर कोई खास असर नहीं पड़ा है।” सुधाकर सख्त लहजे में बोला।

“बिल्कुल पड़ा है, सर। हमने तुरंत होटल से और अपने बेंगलूरु ऑफिस से संपर्क किया है। वहाँ से भी हमें कोई इन्फॉर्मेशन नहीं मिली है। इस बात के लिए मैंने अपने ऊपर के अधिकारियों को बता दिया है। वो आगे की कार्यवाही के बारे में विचार कर रहें है।”

“किस किस्म की कार्यवाही। पुलिस में रिपोर्ट?”

“अगर कल तक हमें कोई सूचना नहीं मिलती है तो मैनेजमेंट अवश्य ही ऐसा सोचेगी। कई बार लोग ऐसी ट्रैनिंग के बाद घूमने चले जाते हैं, किसी दूसरी कंपनी में इंटरव्यू प्लान कर लेते हैं, कुछ लोग अपने... ”

“होटल से चेक आउट किए बगैर। सभी लोग एक साथ?”

“कॉर्पोरेट वर्ल्ड में कई बार एक कंपनी से दूसरी कंपनी के अंदर लोगों का मास एक्सोडस[1] होता है। हमारी पोजीशन टेक्नोलॉजी के फील्ड में टॉप पर है तो कई दूसरी फ़र्म हमारे ऑफिसर रैंक के लोगों को ललचाने में लगी रहती हैं; लेकिन एक के बदले दस नये टैलेंट हमारे पास आने के लिए तैयार रहते हैं। अभी तक किसी इक्का-दुक्का घटना को छोड़ कर हमारे साथ ऐसा हुआ भी नहीं है।”

“इन लोगों ने ट्रेनिंग का आखिरी सेशन कहाँ पर बिताया? इसी हेड ऑफिस में?”

“नहीं। उन लोगों का आखिरी सेशन हमारे ‘वर्क ऑफिस’ में था।”

“वर्क ऑफिस? यहीं अंधेरी में?”

“नहीं। विस्टा टेक वर्ल्ड। नवी मुंबई में बेलापुर रोड़, तुर्भे में, सैक्टर ट्वेंटी टू के पास।”

तुर्भे के नाम पर सुधाकर शिंदे के कान में घंटियाँ सी बजी। तुर्भे नवी मुंबई का इलाका था, जो ठाणे के क्षेत्र में पड़ता था। वहाँ जाने के लिए वाशी पुल पार करना पड़ता था। संपत राव ने सोमू को वहीं से पकड़ा था। ये क्या माजरा था?

“वे लोग ‘विस्टा टेक वर्ल्ड’ में कब तक रहे थे?”

“इनकी मीटिंग का टाइम शैड्यूल शाम को पाँच बजे तक था। उसके बाद वे लोग हमारी तरफ से फ्री थे।”

“यानी कल शाम को पाँच बजे वो लोग फ्री हुए तो उन लोगों को हद से हद सात बजे तक होटल ‘पर्ल रेसीडेंसी’ पहुँच जाना चाहिए था। हम्म!”

सुधाकर ने मिलिंद राणे को फोन मिलाया।

“राणे। मैं तुमको ‘विस्टा टेक्नोलॉजी’ के लोगों की एक लिस्ट भेज रहा हूँ। तुम कल पाँच बजे के बाद बेंगलूरु जाने वाली अब तक की सभी फ्लाइट में पता लगाओ कि क्या इनमें से कोई बेंगलूरु गया है। रेलवे स्टेशन से भी इस बारे में पता करो।”

“ठीक है। वो स्केच आर्टिस्ट भी यहाँ आया हुआ है। जिस आदमी को सोमू ड्राइवर के रूप में तस्दीक़ करता है, उसका हुलिया बना ही समझो।”

“बढ़िया। जब बन जाये तो अपने इलाके के नोन-क्रिमिनल्स का रिकॉर्ड उसे दिखाओ और पहचान करवाओ। मैं भी जल्द ही पहुँचता हूँ।” राणे की सहमति भरी हुँकार सुनने के बाद उसने फोन काट दिया।

इसके बाद सुधाकर ने पीयूष की तरफ रुख किया।

“आप इन लोगों के बारे में कोई खास बात जानते हो जो हमारे काम आ सके।”

तभी सुधाकर के फोन की घंटी बजी।

“फौरन मुंबई पुलिस के हेडक्वार्टर में तुरंत पहुँचो। जहाँ भी जिस हाल में हो।” उसे फोन पर आलोक देसाई का दनदनाता हुक्म सुनाई दिया।

आलोक देसाई की आवाज की तल्खी से सुधाकर को आने वाले समय में आसार कुछ ठीक नहीं दिखाई दिए। सुधाकर खड़े पैर विस्टा टेक्नोलॉजी के ऑफिस से निकल कर क्राफोर्ड मार्केट में स्थित मुंबई पुलिस कमिश्नर के ऑफिस की तरफ रवाना हो गया।

जब वह कमिश्नर ऑफिस पहुँचा तो एसीपी आलोक देसाई के साथ-साथ वहाँ पर मुंबई पुलिस कमिश्नर धनंजय रॉय खुद मौजूद थे। उसका इस वक्त वहाँ मौजूद होना इस बात का पुख्ता सबूत था कि मामला ज्यादा गंभीर था। सुधाकर शिंदे ने पूरी मुस्तैदी से दोनों अफसरों का अभिवादन किया।

“सर, इंस्पेक्टर सुधाकर शिंदे, फ्रॉम अंधेरी वेस्ट पुलिस स्टेशन।” आलोक देसाई ने कमिश्नर धनंजय को बताया।

“हम्म। बी ईज़ी इंस्पेक्टर। विस्टा टेक्नोलॉजी के आदमी अपने होटल पहुँच गए हैं या उनकी कोई खोज खबर लगी।” कमिश्नर धनंजय रॉय ने सीधा प्रश्न दागा।

सुधाकर शिंदे इसके लिए मानसिक रूप से तैयार था। उसने अब तक की अपनी भाग दौड़ की जानकारी ब्रीफ़ में कमिश्नर को दी।

“तुमने इस कंपनी के लापता आदमियों के बारे में क्या जानकारी निकाली है।”

“सर, मैं अभी वहाँ से इनकी लिस्ट लेकर निकला ही था कि...” सुधाकर के बाकी शब्द मुँह में ही रह गए।

“इंस्पेक्टर शिंदे... शायद तुम अभी तक ये लिस्ट देख नहीं पाये हो। हमने तुम्हें खड़े पैर यहाँ पर बुलाया तो इससे तुम्हें इतना तो अंदाजा लग ही गया होगा कि ये मामला कितना गंभीर है। हम लोग यहाँ पर इस वक़्त तुम्हारे सामने मौजूद है, इतना इशारा काफी है यह बताने के लिए। इस लिस्ट को ध्यान से देखो।” कमिश्नर रॉय ने कहा।

सुधाकर ने उस लिस्ट को बड़े ध्यान से देखा। हर नाम के ऊपर उसने जल्दी से सोचा। कोई खास बात उसकी नज़र में नहीं आयी। आलोक देसाई और धनंजय रॉय की नजरें उस पर लगी हुई थी। लिस्ट को उसने दोबारा फिर पढ़ा।

“आपके कुछ ध्यान में आ रहा है, इंस्पेक्टर शिंदे?” आलोक देसाई ने सुधाकर से पूछा।

“सर, इसमें एक नाम कुछ अलग सा और सुना हुआ सा लगता है सरनेम के लिहाज़ से... नीलेश पासी।” सुधाकर सोचता हुआ बोला।

“सही पकड़ा तुमने… नीलेश पासी। ये योगराज पासी का लड़का है। योगराज पासी का नाम तुमने सुन ही रखा होगा।” आलोक देसाई ने कहा।

“जी सर। उत्तर प्रदेश के बाहुबली नेता हैं और केन्द्रीय सरकार को उनकी पार्टी का समर्थन है। यहाँ पर भी अब की बार कई सीटें जीतने में कामयाब रहें है।” जवाब देने के साथ-साथ सुधाकर ने अपने माथे पर पसीने का अनुभव किया।

तो इसका मतलब उन पंद्रह लोगों में नीलेश पासी भी था और उसका बाप था योगराज पासी, एक कद्दावर नेता। तभी उन अफसरों को नींद नहीं आ रही थी।

“आलोक। तुम इस मामले को खुद देखो। किसी किस्म की ढिलाई हमें इस केस में नहीं बरतनी है। अव्वल तो ये लोग अपनी बस के खराब होने की वजह से दूसरी बस में कहीं घूमने चले गए होंगे। उनकी सूचना आती ही होगी। इस बात की भनक अभी तक किसी न्यूज़ चैनल वालों को नहीं लगी है। लेकिन इससे पहले यह बात उन तक पहुँचे और वो इस पर पूरा बवंडर उठा दें, तुम लोग इस केस पर पूरी तरह से जुट जाओ।”

“यस सर। मैं अपना फील्ड-ऑफिस सुधाकर के ऑफिस में बना लेता हूँ।” आलोक देसाई ने तत्पर स्वर में कहा।

आलोक देसाई की बात सुनकर सुधाकर समझ नहीं पाया कि ये उसके लिए पॉज़िटिव बात थी या नेगेटिव पर इतना तय था कि उसकी और उसके स्टाफ की वाट लगने वाली थी।

“इट विल बी गुड। कीप आई.टी. सेल एंड क्राइम डिपार्टमेन्ट ऑन द लूप। लेट्स होप दिस केस विल बी सॉल्व एट द अरलिएस्ट।” कमिश्नर रॉय ने आलोक देसाई को कहा।

इसके बाद मीटिंग बर्खास्त हो गयी।

आलोक देसाई और सुधाकर शिंदे अंधेरी पुलिस स्टेशन की तरफ रवाना हो गए। सुधाकर शिंदे के साथ-साथ एसीपी आलोक को आया देख मिलिंद राणे सकपकाया। उसने हवलदार विशंभर को ऑफिस ठीक करने को बोला। सुधाकर एसीपी आलोक देसाई के साथ अपने ऑफिस पहुँचा। ऑफिस में आलोक साइड में लगी एक कुर्सी को एक तरफ कर उस पर बैठ गया। सुधाकर को उसने अपनी ही चेयर पर बैठने के लिए इशारा किया।

“नहीं, तुम अपनी चेयर पर बैठो। उस आदमी को बुलाओ जिसे कल हिरासत में लिया गया है। सुधाकर, तुमने ड्राइवर की शिनाख्त कैसे की?” आलोक देसाई ने पूछा।

सुधाकर ने चरणजीत वालिया और सोमू को ऑफिस में बुलाया।

सोमू की कहानी सुनकर आलोक देसाई ने एक गहरी साँस छोड़ते हुए कहा, “उस ड्राइवर राकेश की फोटो और जो स्केच तुमने बनवाया है, उसे कंट्रोल रूम में भेजो। सभी पुलिस स्टेशन में उसे सर्क्युलेट करवाओ। इस बस का नंबर मुझे दो। मैं आईटी सेल को इसे सीसीटीवी कैमरा से ट्रेस करने के लिए बोलता हूँ।”

सुधाकर ने बस का नंबर, उन लापता पंद्रह लोगों के फोन के नंबर, राकेश की फोटो और स्केच आलोक देसाई के हवाले किए।

आलोक देसाई ने जॉइन्ट कमिश्नर, क्राइम ब्रांच राजन रस्तोगी को फोन लगाया और पुलिस कमिश्नर धनंजय रॉय से हुई मीटिंग का हवाला देते हुए उसे सारी बात बतायी। राजन रस्तोगी ने पूछा कि वो इसमें क्या कर सकता था। आलोक देसाई ने उसे बताया।

राजन रस्तोगी ने तुरंत आईटी और साइबर क्राइम यूनिट को इस केस में एसीपी आलोक देसाई के सहयोग के लिए अपने दो-दो आदमियों की यूनिट अंधेरी वेस्ट पुलिस स्टेशन में डेप्यूट करने के लिए आदेश कर दिये। आलोक देसाई ने उन लोगों को बस का नंबर, उन पंद्रह लोगों के फोन के नंबर, ड्राइवर राकेश की फोटो और और सोमू के द्वारा बनवाया गया स्केच भेज कर इस मामले में छानबीन करने के आदेश दिये।

चरणजीत वालिया ने सभी ट्रेवल कंपनियों से पता करवा लिया था कि किसी ने अभी हाल फिलहाल अपनी कोई टूरिस्ट बस ‘विस्टा टेक्नोलॉजी’ के आदमियों के लिए ‘पर्ल रेसीडेंसी’ या उसके तुर्भे के ब्रांच ऑफिस ‘विस्टा टेक वर्ल्ड’ में तो नहीं भेजी थी। उसकी इस मेहनत की वजह से सुधाकर ने उसे फिलहाल घर जाने की छूट दे दी लेकिन हर वक़्त पुलिस को उपलब्ध रहने की वार्निंग भी साथ में दी गयी थी।

अब उनके पास अगले दिन की इंतजार के सिवा कोई चारा नहीं था।