पेशीराम के शब्द मस्तिष्क से टकराते ही मोना चौधरी के कदम ठिठके।

“ओह! सौदागर सिंह के आजाद होने के साथ ही चक्रव्यूह का नक्शा बदल गया है मिन्नो।”

“क्या मतलब?” मोना चौधरी के होंठों से निकला। साथ ही मोना चौधरी की निगाह हर तरफ फिरी।

हर तरफ हरे-भरे बाग और साफ पानी के तालाब नजर आ रहे थे। बागों में फलों से लदे पेड़ और फूलों की रंग-बिरंगी क्यारियां दिखाई दे रही थीं। दूसरी तरफ, दूर, खेत दिखाई दे रहे थे। पीछे की तरफ मीनार जैसी इमारत नजर आ रही थी, जो कि छः-सात मंजिला ऊंची थी।

“मिन्नो...।” पेशीराम के शब्द, मोना चौधरी के मस्तिष्क को छूते महसूस हुए।

“कहो पेशीराम, क्या बात है।”

“नगीना बेटी के साथ मैं इसी रास्ते से आया था चक्रव्यूह में। लेकिन यहां पर ये सब ऐसा नहीं था। सामने रास्ता जा रहा था। जहां घोड़ागाड़ी थी और सीधी सड़क पार करके खाई में जा गिरी थी।” (ये सब जानने के लिये पढ़ें अनिल मोहन का पूर्व प्रकाशित उपन्यास “तीसरी चोट”) “और उस तरफ सूखा सा जंगल था। नगीना के साथ मैं उसी तरफ गया था। लेकिन लेकिन अब यहां, वो सब नहीं है। सब कुछ नया-नया है।”

“तुम इसी रास्ते से चक्रव्यूह में आये थे।” मोना चौधरी के होंठ हिले।

“हां।”

“गलती पर तो नहीं हो कि-।”

“नहीं। ऐसी बातों में मुझे गलती नहीं होती।”

“हैरानी है कि फिर तुम्हें सब कुछ बदला-बदला क्यों नजर आ रहा है।”

पेशीराम की तरफ से कुछ नहीं कहा गया।

मोना चौधरी अपनी जगह पर खड़ी इधर-उधर देखती रही।

“अब किधर जाना है?”

पेशीराम की तरफ से आवाज नहीं आई।

“पेशीराम-।”

“हूँ।”

“तुम कोई जवाब क्यों नहीं दे रहे?”

“सोच रहा हूं मिन्नो।” पेशीराम के शब्दों का एहसास मोना चौधरी के मस्तिष्क को हुआ-“मेरे ख्याल में ये बदलाव सौदागर सिंह के कैद से मुक्त होने के कारण आया है। ढाई सौ बरस की कैद के बाद सौदागर सिंह आजाद हुआ है और उसके बाद वो इसी रास्ते से होकर गुजरा है। यही वजह है कि यहां अब सब कुछ बदला-बदला नजर आ रहा है।”

“सौदागर सिंह का चक्रव्यूह है ये। उसकी कोई भी शक्ति चक्रव्यूह की रूपरेखा बदल देगी। सौदागर सिंह ने अपनी शक्ति का कोई मंत्र पढ़ा है कि चक्रव्यूह के इस हिस्से का नजारा ही बदल गया।”

मोना चौधरी से कुछ कहते न बना।

“ऐसा करने का भी कारण है।” पेशीराम की आवाज का एहसास मस्तिष्क को हुआ-“मैं, नगीना के साथ पहले भी इधर आ चुका हूं। सौदागर सिंह जानता है ये बात। इस हिस्से में कोई कैसे फंसता है, मैं जानता हूं और दोबारा अब तुम्हें लेकर यहां आते देखकर सौदागर सिंह ने यहां से पुराना चक्रव्यूह हटाकर नया चक्रव्यूह बिछा दिया-ताकि तुम धोखा खाकर उसके चक्रव्यूह में फंस जाओ। पुराने चक्रव्यूह से मैं वाकिफ हो चुका था। इसलिए तुम्हें फंसने नहीं देता।”

“ओह-।” मोना चौधरी के होंठ सिकुड़ गये।

“अब हमें नये सिरे से यहां मेहनत करनी होगी। चक्रव्यूह को भेदने के रास्ते तलाश करने होंगे।”

“यानि कोई ठीक रास्ता न तलाश कर सके तो गलत रास्ते पर पांव पड़ते ही चक्रव्यूह में फंस गये।” मोना चौधरी सोच भरे स्वर में कह उठी-“हमें तो ये भी नहीं मालूम कि सौदागर सिंह के चक्रव्यूह में क्या-क्या करिश्मे हैं।”

“सौदागर सिंह के चक्रव्यूह में जो कुछ भी होगा, खतरनाक होगा।” मोना चौधरी को पेशीराम की आवाज महसूस हुई।

मोना चौधरी होंठ भींचे खामोशी से खड़ी रही।

कुछ पलों बाद पेशीराम के शब्दों का एहसास हुआ।

“यहां से चलो मिन्नो।”

“कहां, किधर?” मोना चौधरी के होंठों से निकला।

“कहीं भी, जिस तरफ तुम्हारा मन करे।”

“ये क्या बात हुई पेशीराम। दिशा निर्धारित किए बिना ही आगे बढ़ जाऊं?”

“कौन सी दिशा निर्धारित करोगी? क्या मंजिल है? किधर जाना है? किस दिशा में क्या है? अगर ये सब मालूम हो तो दिशा निर्धारित की जा सकती है।” मस्तिष्क को पेशीराम की आवाज का एहसास हुआ।

होंठ भींचे मोना चौधरी ने पलट कर उस कमरे जैसी जगह को देखा, जहां से निकल कर वो यहां आ पहुंची थी। फिर नजरें हर तरफ जाने लगीं। मध्यम सी हवा बह रही थी। हर तरफ चुप्पी और शान्ति का माहौल था। कहीं कोई नजर न आ रहा था। सब कुछ ठीक था। फिर भी ऐसी चुप्पी से दिल धड़क-सा उठता था।

“मिन्नो।” आवाज की सरसराहट का एहसास हुआ मोना चौधरी को।

“हूं।”

“क्या सोच रही हो? अब तो-।”

“पेशीराम।” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा-“यहां के हर रास्ते से अन्जान हैं हम और सौदागर सिंह के चक्रव्यूह में मौजूद हैं। ऐसे में मैं बहुत सोच-समझ कर आगे बढ़ेगी-। नगीना की तरह फंसना नहीं चाहती।”

“फिर कैसे तय करोगी कि किस तरफ बढ़ना है?”

“मैं नहीं जानती। तुम इस बारे में मेरी कुछ भी सहायता नहीं कर सकते पेशीराम-।”

“यकीन के साथ नहीं कह सकता। फिर भी मैं फेरा लगा कर आता हूं। चक्रव्यूह के इस हिस्से के बारे में शायद कोई जानकारी मिल सके। तब तक तुम कहां रहोगी?”

“यहीं-आस-पास ही, ज्यादा दूर नहीं जाऊंगी।”

“अच्छी बात है। मैं जल्द ही वापस लौटता हूं।” इसके साथ ही मोना चौधरी के मस्तिष्क को हल्का सा झटका लगा, फिर उसे सब कुछ सामान्य सा लगने लगा। पेशीराम की आत्मा, उसके शरीर से जा चुकी थी।

मोना चौधरी ने आस-पास देखा और आगे बढ़कर घास पर जा बैठी। चेहरे पर गम्भीरता थी।

☐☐☐

चांदी के मग में भरा हरे रंग का मादक द्रव्य पदार्थ शैतान ने जग होंठों से लगाकर एक ही सांस में समाप्त किया और जग को पास ही मौजूद टेबल पर रख दिया।

सामने दो व्यक्ति हाथ बांधे खड़े थे।

शैतान ने होंठों को हाथ से साफ किया और दोनों पर नजर मारी।

“मैंने तुम दोनों को मामूली-सा काम सौंपा और-।” तभी शैतान के सिर को झनझनाहट से भरा झटका लगा-शैतान हड़बड़ा कर जल्दी से उठ खड़ा हुआ।

दोनों व्यक्तियों ने शैतान की हड़बड़ी देखी तो वो उलझन में दिखाई देने लगे।

शैतान के चेहरे पर बदहवासी जैसे भाव आ ठहरे।

“क्या हुआ शैतान?” एक व्यक्ति ने पूछा।

शैतान कुछ कहने लगा कि तभी उसके मस्तिष्क को पुनः धक्का-सा लगा। इसके साथ ही उसे अपनी टांगों में ऐसा भारीपन महसूस हुआ जैसे कोई उसे खींच रहा हो। धकेल रहा हो।

“तुम दोनों जाओ।” शैतान ने उन्हें देखा-“अपने काम को पूर्ण करो।”

दोनों ने सिर हिलाया और पलट कर बाहर निकल गये।

शैतान ने अपने शरीर के बदलते हालातों पर काबू पाने की चेष्टा की और कुर्सी पर बैठ गया।

बैठकर एक सांस भी ठीक तरह से नहीं ली होगी कि ऐसे उठा जैसे किसी ने खींच कर उठाया हो। इसके साथ ही शैतान के चेहरे पर गुस्सा और उलझन दिखाई देने लगी। उसने अपने शरीर को और फिर कमरे में हर तरफ देखा।

कमरा खाली था।

उसी पल टांगों में भारीपन-सा महसूस होने लगा। शैतान ने जल्दी से झुककर अपनी टांगों को थपथपाया। वो समझ नहीं पा रहा था कि उसके शरीर को क्या हो रहा है। इन प्रभावों से मुक्त होने के लिये शैतान ने मंत्र बुदबुदाया। परन्तु कोई फर्क न पड़ा था। तभी उसकी टांगों पर ऐसा दबाव पड़ने लगा, जैसे टांगें चलने पर आमादा हों। शैतान ने टांगों की ख्वाईश पर काबू पाने की चेष्टा की। परन्तु सफल नहीं हो सका। दूसरे ही पल उसकी मर्जी के बिना टांगें आगे बढ़ने लगीं।

शैतान का अपना ही शरीर, उसके काबू से बाहर हो रहा था। वो समझ नहीं पाया कि उसके साथ क्या हो रहा है। उसके शक्तिशाली मंत्र भी उसकी हालत को दुरुस्त नहीं कर पा रहे थे।

बे-काबू सा हुआ शैतान कमरे से बाहर निकल कर आगे बढ़ने लगा। वो खुद को रोक नहीं पा रहा था। रास्ते में कहीं मुड़ना चाहकर भी मुड़ नहीं पा रहा था। अपने शरीर पर उसकी मर्जी नहीं चल रही थी। वो आगे बढ़ा जा रहा था। ये उसका खूबसूरत महल था। रास्ते में खड़े पहरेदार और पास से गुजरते कर्मचारी उसकी स्थिति को भला कैसे समझते। अपने मुंह से ऐसी कोई बात कहना, शैतान अपनी तौहीन समझता था।

शैतान को इस बात का एहसास हो चुका था कि कोई शक्ति उसकी टांगों पर काबू पा चुकी है। उसे अपनी मर्जी से चला रही है। उस शक्ति से मुक्त होने के लिये शैतान कई तरह के मंत्र पढ़ चुका था, लेकिन फायदा नहीं हुआ। कदम आगे की तरफ उठते जा रहे थे।

☐☐☐

शैतान उस कमरे में प्रवेश होता चला गया, जहां वो महामाया को बुलाने के लिये आह्वान करता था। वहां प्रवेश होते ही शैतान को एहसास हुआ जैसे कैद कर रखी टांगों को किसी ने आजाद कर दिया हो। खुद को वो मुक्त महसूस करने लगा। परन्तु शैतान का चेहरा गम्भीर नजर आ रहा था। उसकी निगाह कमरे में फिर रही थी। उसकी टांगों को अन्जानी शक्ति कैद करके, उसे यहां लाई थी। कौन-सी शक्ति उसे यहां ला सकती है?

महामाया की शक्ति उसे यहां लाई है। यानि कि महामाया उससे बात करना चाहती है।

शैतान की निगाह हवनकुण्ड पर जा टिकी।

फिर शैतान ने पलट कर दरवाजा बंद किया और महामाया को बुलाने की तैयारी करने लगा।

जल्दी ही उसने हवन कुंड में अग्नि सुलगा ली। सामग्री से भरा थाल थामें हवन-कुण्ड की तरफ पीठ करके, घुटनों के बल बैठ गया और होंठों ही होंठों में मंत्र वुदबुदाये, हवन सामग्री को मुट्ठी में भरता और अपने सिर के पार, पीछे की तरफ फेंकता। सामग्री सुलगते हवन कुंड में गिरती तो धुआं और आग में तेजी आ जाती।

कमरे में शैतान के होंठों से निकलती, मंत्रों की बुदबुदाहट बढ़ रही थी।

धीरे-धीरे पूरा कमरा धुएं से भरने लगा।

शैतान को धुएं से कोई परेशानी नहीं हो रही थी। उसके होंठों से निकलता मंत्रों का उच्चारण बराबर जारी था। (महामाया के बारे में जानने के लिये पढ़े अनिल मोहन का पूर्व प्रकाशित उपन्यास “तीसरी चोट”)।

इस प्रकार कुछ वक्त बीत गया।

कमरे का माहौल रहस्य से भरा महसूस होने लगा। रोशनी के नाम वहां, हवन कुंड से उठती चंद लपटें ही थीं। तभी धीरे-धीरे कमरे में छाया धुआं कम होने लगा। हर पल के साथ धुआं कम होता जा रहा था। परन्तु शैतान द्वारा मंत्रों का बुदबुदाना और सिर के पार पीछे सामग्री फेंकना बराबर जारी था।

और फिर कमरे से धुआं बिलकुल ही गायब हो गया।

हवन कुंड से धुंए की चंद लकीरें उठती और गुम हो जाती। तभी हवन कुंड से उठती लकीरें एक साथ मिलकर, इकट्ठी होने लगीं। वो लकीरें हवन-कुंड के ऊपर ठहर रही थीं। फिर देखते ही देखते धुएं रूपी वो लकीरें, आकृति का रूप लेने लगीं और फिर धुएं की वो आकृति औरत जैसी नजर आने लगी। परन्तु धुएं रूपी औरत की आकृति की टांगें हवन कुंड में जाकर गुम सी हो रही थीं और रहस्य जैसा माहौल वहां छाया हुआ था। आकृति के धुएं वाली बांहें और गर्दन जरूरत के मुताबिक थोड़ी बहुत हिल रही थी।

“शैतान-।” वहां औरत के स्वर की मध्यम-सी गूंज उठा।

“महामाया!” शैतान के होंठों से निकला-“महामाया के सामने सिर झुकाता हूं। तुमने ही मुझे इस कमरे में आने के लिये मजबूर किया?”

“हां। तेरे मस्तिष्क से लेकर, तेरे शरीर का एक-एक अंग मेरे काबू में है।”

“इस बात की मुझे खबर है महामाया।”

“मैं तेरे शरीर की किसी भी चीज पर कभी भी अधिकार पा सकती हूं।” महामाया का स्वर वहां गूंजा।

“मैं तो तुम्हारा सेवक हूं महामाया।” उसी मुद्रा में बैठा शैतान कह उठा-“मेरा जीवन तुम्हारी ही देन है।”

“लेकिन मुझे एहसास हो रहा है कि तेरे को शैतान बनाकर मैंने गलत किया।” महामाया का स्वर गूंजा।

“नहीं महामाया।” शैतान जल्दी से कह उठा-“मैंने कोई काम गलत नहीं किया।”

“तू शैतान है। हमने तेरे को दस आंखें दे रखी हैं कि तू छिपकर हर तरफ नजर रखे। पर तू तो दसों आंखों को बंद करके नींद लेता रहता है।”

“ये गलत है महामाया। मैं-।”

“मुझे गलत कहता है?”

शैतान की तरफ से आवाज नहीं आई।

“तू मुझे गलत कह भी ले तो कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि मुझे तेरे को जवाब नहीं देना। मेरे ऊपर कई और लोग हैं लेकिन तेरे ऊपर मैं हूं। तूने मेरे को जवाब देना है, मैंने तेरे को जवाब नहीं देना है। मैं चाहूं तो तेरे से शैतान का ओहदा अभी वापस ले सकती हूं। लेकिन इसके लिये मुझे अपने ऊपर वालों को जवाब देना पड़ेगा। और तेरी गलतियों का ढेर है मेरे पास। उस ढेर में एक पत्थर और बढ़ गया है जिसके लिये मुझे यहां आना पड़ा।”

“मैं समझा नहीं महामाया?”

“सौदागर सिंह आजाद हो चुका है कैद से।”

“ओह!” शैतान का स्वर सुनाई दिया-“तो ढाई सौ बरस बाद सौदागर सिंह की शक्ति ने, उसे कैद से मुक्त कर दिया।”

“सौदागर सिंह आजाद हुआ। अपने चक्रव्यूह में चला गया और तुम्हें मालूम नहीं हो सका।”

“मैं ज्यादा व्यस्त था। लेकिन ये बात मुझे अभी मालूम हो जानी थी।”

“अभी तक मालूम क्यों नहीं हुई?”

“व्यस्त था मैं और-।”

“धरती से आने वाले मनुष्यों को समाप्त किया शैतान?” महामाया की आवाज गूंजी।

“द्रोणा (शैतान का अवतार) और प्रेतनी चंदा को आदेश दे दिया है कि उन मनुष्यों को खत्म कर दें।” शैतान बोला-“जिन्न बाधात उससे आत्मा के बारे में मालूम करने की चेष्टा कर रहा है, जो धरती से इन मनुष्यों के साथ यहां तक आ पहुंचा है और हमारे खिलाफ मनुष्यों की सहायता कर रही है।”

“मतलब कि सब काम हो रहे हैं और कोई भी कार्य पूरा नहीं हुआ।” महामाया की आवाज में तीखापन आ गया।

शैतान के होंठों से कोई शब्द नहीं निकला।

कुछ पलों बाद महामाया की आवाज पुनः गूंजी।

“शैतान। सौदागर सिंह आजाद नहीं हुआ, बल्कि उसे आजाद किया गया है।”

“ये कैसे हो सकता है?”

“ये हो चुका है और तुम्हें खबर भी नहीं। सुनकर हैरानी जाहिर कर रहे हो।”

शैतान का स्वर नहीं आया।

“पूछोगे नहीं कि किसने सौदागर सिंह को आजाद किया?”

“कि-किसने?”

“मिन्नो ने-।”

“मिन्नो-? वो मनुष्य जो धरती से इस आसमान पर आ पहुंची है।” शैतान के होंठों से निकला।

“हां, वो ही मिन्नो, जो देवा की दुश्मन थी।”

“ले-लेकिन महामाया, मिन्नो वहां कैसे पहुंची जहां सौदागर सिंह कैद था? वहां तो पहरेदार हैं और-।”

“स्पष्ट है कि तुम्हारा इन्तजाम कमजोर था। तभी तो मिन्नो सौदागर सिंह के पास पहुंच गई। उसके साथ वो आत्मा भी है, जो धरती से आई है। जिसके बारे में तुम नहीं जान सके कि वो कौन है?”

“क्षमा महामाया। उसने कहा था कि तुम उस आत्मा के बारे में जानती हो। परन्तु मुझे नहीं बताया आत्मा के बारे में।”

“पेशीराम की आत्मा है वो।”

“पेशीराम-गुरुवर का खास शिष्य?” शैतान के होंठों से निकला।

“हां। वो ही पेशाराम। खास शक्ति का इस्तेमाल करके अपने शरीर को धरती पर ही कहीं आया हैं। क्योंकि उसके गुरुवर की आज्ञा नहीं थी इन मनुष्यों के साथ जाने की। आत्मा के रूप में वो साथ आ गया।”

“ओह-।”

“पेशीराम की आत्मा, चक्रव्यूह में मिन्नो की ज्यादा सहायक में नहीं हो सकती। क्योंकि आत्मा के पास शक्तियाँ नहीं है। शरीर पास न हो तो शक्तियाँ ओझल हो जाती हैं।” महामाया की आवाज गूंज रही थी-“मिन्नो चक्रव्यूह में पहुंच चुकी है। वो देवा की आत्मा को पाना चाहती है। सौदागर सिंह भी चक्रव्यूह में जा चुका है।”

“सौदागार सिंह को मिन्नो ने आजाद किया है।” शैतान बोला।

“हाँ।”

“तो सौदागर सिंह, देवा की आत्मा मिन्नो के हवाले कर सकता है। वो सारा चक्रव्यूह उसी का बनाया तो है। उसे उन कैदी आत्माओं तक पहुँचने में भला क्या परेशानी हो सकती है।”

“परन्तु सौदागर सिंह मिन्नो का कोई काम नहीं कर रहा। बहती हवा ने मुझे खबर दी कि कैद से आजाद होते ही सौदागर सिंह मिन्नो के साथ किए वायदों से पीछे हट गया। सौदागर सिंह का कहना है कि आज उसकी शक्ति से उसे आजाद करा ही देना था। ऐसे में मिन्नो की दी आजादी को वो अहम नहीं मानता।”

“सौदागर सिंह में यही तो खास बात है कि अपनी कही बात से पीछे हटने में वो देर नहीं लगाता।”

जवाब में महामाया की हंसी गूंजी। कुंड से उभरी धुएं की आकृति हिली।

“तू हंसी क्यों महामाया?”

“तुम्हारी बेवकूफी से भरी सोच की वजह से।” महामाया का स्वर गूंजा-“बेकार की बातों और सोचों में वक्त खराब कर रहे हो तुम। तुम्हारा अस्तित्व खतरे में पड़ चुका है शैतान। सौदागर सिंह को तुमने ढाई सौ बरस से कैद में रखा हुआ था। जाहिर है कि आजाद होने के बाद सबसे पहले वो तुमसे बदला लेगा। सौदागर सिंह ज्यादा ताकत रखता है। उसके पास शैतानी शक्तियाँ भी हैं और पवित्र शक्तियाँ दोनों तरह की शक्तियाँ इस्तेमाल करके वो तुम्हें बेबस कर सकता है। तुम किसी भी तरफ से खैरियत में नहीं हो।”

“सच कहती हो महामाया।” शैतान के होंठों में व्याकुल-सा स्वर निकला-“सौदागर सिंह से टक्कर मैं शायद न ले सकूँ। फिर भी कमजोर नहीं रहूंगा, ऐसा वक्त आने पर अगर तुम मेरी सहायता करो तो...।”

“मुझसे आशा मत रखो शैतान। मैंने तुम्हें बहुत शक्तियाँ दे रखी हैं। मेरी दी शक्तियों की वजह से ही तुम हर ग्रह पर अपने कर्मों को फैला रहे हो। आज तुम बेपनाह ताकत के मालिक हो। ऐसे में तुम्हें कोई और शक्ति दी जाये, ये गलत होगा। फिर भी मैं ऊपर से ऐसा कोई आदेश लेने की कोशिश करूंगी।”

शैतान ने जवाब में कुछ नहीं कहा।

“शैतान।”

“महामाया।”

“अभी भी मौका है तुम्हारे पास।” महामाया की आवाज वहाँ गूंज उठी-“सौदागर सिंह से बात करो शैतान। हो सकता है, सौदागर सिंह, तुम्हारे साथ मिलने को तैयार हो जाये। अगर सौदागर सिंह तुम्हारा साथ देने को तैयार हो गया तो तुम्हारे शैतानी कर्म हर ग्रह पर चमकेंगे। हर तरफ तुम्हारा नाम होगा।”

“हाँ महामाया। मैं-मैं कोशिश करूँगा ऐसा ही हो।”

“ऐसा तब होगा, जब सौदागर सिंह तुम्हारा साथ देगा। अपनी शक्तियाँ शैतानी कामों में लगाएगा। ख्यालों में मत रखो इस बात को-सौदागर सिंह से बात करो।”

“मैं जल्द से जल्द सौदागर सिंह को तलाश करके उससे बात करता हूँ।”

“याद रखना शैतान। सौदागर सिंह ने कैद में रहते तुम्हारी बात नहीं मानी थी। अब तो वो आजाद है। वो तुम पर वार भी कर सकता है। उसकी जुबान पर विश्वास करना खतरनाक होगा। परन्तु वो हाँ कहता है तुम्हारा साथ देने की तो, तुम्हें विश्वास करना होगा। सौदागर सिंह से हाथ मिलाना, सच में खतरनाक बात होगी।”

“महामाया! सौदागर सिंह से बात करने के लिये इतना खतरा तो उठाना ही पड़ेगा।”

“तुम्हें कोई ऐतराज नहीं, ये खतरा उठाने पर...?”

“मुझे कोई ऐतराज नहीं।” शैतान ने कहा।

“ऊपर वालों को तुम्हारी हाँ के बारे में बता दूँ?”

“हाँ। मैं सौदागर सिंह के पास जाऊँगा बात करने। वो जहाँ भी होगा, मैं उसे तलाश कर लूंगा।”

“मुझे आशा है कि तुम सफल रहोगे।” महामाया का स्वर गूंजा।

“अवश्य।”

“सौदागर सिंह से मुलाकात करते हुए इस बात का ध्यान रखना वो तुम्हें मार सकता है।”

“मैं सुरक्षित शक्ति के घेरे में उसके सामने जाऊँगा। तब वो मेरी जान नहीं ले पायेगा।”

“हो सकता है सौदागर सिंह कहे कि वो शैतान बनना चाहता है।” महामाया की आवाज कमरे में गूंज रही थी।

शैतान की तरफ से कोई आवाज नहीं आई।

“कहना, उसे शैतान बना दिया जायेगा।”

“वो-वो शैतान बनेगा तो-तो-म-मेरा क्या होगा महामाया?”

“हमें शैतानी कर्मों से मतलब है कि शैतानी कर्म हर ग्रह पर ज्यादा से ज्यादा फैले। हमारा अस्तित्व कायम रहे। ये सब तुम करो या करे सौदागर सिंह, हमें कोई मतलब नहीं।” महामाया के स्वर में किसी तरह का भाव नहीं था।

“महामाया।” शैतान के होंठों से निकला-“सौदागर सिंह को मैं अपने साथ मिलाने की कोशिश करूँगा।”

“जो भी करो। हमें तो शैतानी कर्मों से मतलब है। सौदागर सिंह को अपने लिये काम कराने से मतलब है। चलती हूँ। सौदागर सिंह के बारे में तुझे खबर देनी थी क्योंकि तेरे को उसकी खबर नहीं थी। सौदागर सिंह से जो भी बातचीत हो, मुझे खबर कर देना।” इसके साथ ही मुंह से निकली धुएं से भरी आकृति सिमटने लगी। देखते ही देखते रूई का गोला बनती हुई आकृति हवन कुंड में जाकर गुम हो गई।

कुछ पलों तक वहाँ खामोशी रही तो शैतान समझ गया कि महामाया जा चुकी है।

वो उठ खड़ा हुआ।

☐☐☐

युवती का खूबसूरत शरीर बेड पर पीठ के बल पड़ा था। उसका सीना उठ-बैठ रहा था। इसी से एहसास हो रहा था कि वो जिन्दा है। देखकर अंदाजा होता था कि पच्चीस बरस की उम्र रही होगी उसकी।

उसके पास ही, अट्ठाइस-तीस बरस का आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक, वो कमर पर हाथ बांधे टहल रहा था। बीच-बीच में वो रुकता। युवती के बेहोश शरीर को देखने लगता। पन्द्रह-बीस मिनट से इस कमरे में यही सब हो रहा था।

ये किसी महल का कमरा लग रहा था। फर्श पर बिछा नर्म गद्देदार कालीन। डबल बेड इतना बड़ा था कि चार व्यक्ति मस्ती के ढंग में उस पर एक साथ नींद ले सकते थे। बेड पर गद्दे ऐसे थे कि उन पर पड़ी युवती का शरीर उसमें धंसता-सा महसूस हो रहा था। दीवारों पर खूबसूरत-कीमती पेंटिग्स लगी थीं। एक तरफ बहुत बड़ा वार्डरोब था। सामने की दीवार में आगे जाने के लिये दरवाजा दिखाई दे रहा था। छत पर रंग-बिरंगी रोशनियाँ फैलाते दो फानूस लटक रहे थे।

बेड से चंद कदमों के फासले पर छोटी सी टेबल और चार कुर्सियां रखी हुई थीं।

उस व्यक्ति ने थकान, या चहल कदमी से बोरियत महसूस की तो आगे बढ़ा और एक कुर्सी खींचकर उस पर बैठ गया। चेहरे पर शांत भाव थे। बैठते ही उसने बेड की तरफ निगाह मारी तो उसके होंठ सिकुड़ गये। बेड पर पड़ा युवती का शरीर हौले-हौले हिलने लगा था।

उसकी निगाह बेड पर टिकी रही। वो कुर्सी पर बैठा रहा।

चंद पलों बाद युवती ने आँखें खोली और उठ बैठी। उसका शरीर ही नहीं, वो स्वयं भी अथाह खूबसूरती की मालकिन थी। शरीर पर चोली-घाघरा पहन रखा था। चोली, वक्षों के आकार को देखते हुए नाकाफी थी। घाघरा तंग था और नीचे बाँध रखा था।

युवती की गर्दन घूमी और नजरें उस व्यक्ति पर गईं।

वो मुस्कराया।

“मैंने तो सोचा था तुम चले गये होंगे।” बेड से उतरते ही युवती कह उठी।

“कैसे जाता...।” उसने कुर्सी पर बैठे-बैठे मुस्करा कर कह उठा-“तुम तो मेरी कमजोरी हो महामाया। तुम्हारा साथ पाने के लिये मैं कई महत्वपूर्ण काम छोड़कर आता हूँ। वरना शैतान लोक के कामों को छोड़कर आ पाना आसान नहीं। बाखूबी मालूम है तुम्हें कि मैं कितना व्यस्त रहता हूँ। ऐसे में मैं तुम्हारे पास आऊँ और तुम्हें बाँहों में लिए बिना ही वापस जाऊँ तो कैसे चैन मिलेगा मुझे।”

महामाया थी वो।

महामाया ने बाँहें उठाकर अंगड़ाई ली। कयामत बनकर गिरी वो उस व्यक्ति पर।

“तुम सामने होती तो खुद पर काबू रखना कठिन हो जाता है।”

महामाया मुस्कराई। उसने लम्बे बालों को खोला सिर को झटका दिया। फैले बालों ने उसकी खूबसूरती को और बढ़ा दिया था।

“मुझे भी तो तुम्हारे आने का इन्तजार रहता है काकोदर। तुम्हें देखकर कुछ राहत मिलती है मुझे। वरना कामों में इतना व्यस्त हो जाती हूँ कि अपना भी होश नहीं रहता। तुम्हारी बाँहों में समा कर सब कुछ भूल जाती हूँ।”

कुछ पल उनके बीच चुप्पी रही।

महामाया, काकोदर से छः कदम पहले रुककर मुस्कराई।

काकोदर ने उसे सिर से पाँव तक देखा। परन्तु चेहरे पर वो भाव न आये जो हमेशा आ जाते थे।

महामाया ने इस बात को महसूस किया। काकोदर की आँखों में छिपी गम्भीरता को भांपा।

“क्या बात है काकोदर?” महामाया ने कहा-“क्या सोच रहे हो?”

“शैतान से क्या बात हुई?”

“मैं तो उसे सावधान करने गई थी कि सौदागर सिंह आजाद हो गया है कैद से।” महामाया ने कहा-“तुम्हें बताकर गई थी। ज्यादा देर तो नहीं लगी मुझे आने में।”

“शैतान ने क्या तय किया तुम्हारी बात सुनकर?” काकोदर शांत-चुप सा था।

“वो, सौदागर सिंह को तलाश करके, उसे अपने साथ मिलाने की चेष्टा करेगा। इससे दो फायदे होंगे उसे-कि सौदागर सिंह का डर, शैतान से दूर हो जायेगा और सौदागर सिंह की ताकत को शैतान इस्तेमाल कर पायेगा।”

“शैतान कुछ भी नहीं कर पायेगा महामाया।” काकोदर ने गम्भीर स्वर में कहा।

“बात क्या है काकोदर?” महामाया की नज़रें काकोदर के चेहरे पर जा टिकीं।

“तुम्हारे जाने के बाद मैंने अपनी उस शक्ति का इस्तेमाल किया, जिससे कि आने वाले पाँच दिनों में, किसी के साथ क्या होने वाला है, मालूम हो जाता है।” काकोदर ने धीमे स्वर में कहा।

“उस शक्ति का इस्तेमाल करके किसे देखा?” महामाया की निगाह काकोदर पर थी।

“शैतान के अगले पाँच दिनों को देखा।”

“कुछ खास देखा क्या? इस पाँच दिनों में शैतान के साथ क्या होने वाला है?”

“वो मर जायेगा।”

“क्या?” महामाया के चेहरे का रंग बदला-“शैतान मर जायेगा?”

“हाँ।”

“कौन मारेगा उसे?”

“मैं नहीं जान सका ये।” काकोदर ने शांत निगाहों से महामाया को देखा।

महामाया बेचैन सी दिखी।

“परेशान हो गई।” काकोदर मुस्करा पड़ा।

“तुम नहीं समझोगे काकोदर। शैतान को अभी मरना नहीं चाहिये। शैतान की कुर्सी कभी भी खाली नहीं रह सकती और मेरे पास ऐसा कोई नहीं कि जिसे शैतान का नाम देकर सबके सामने कर सकूँ।”

“ऐसा कोई, तुम्हें तैयार रखना चाहिये था।”

“मैं हमेशा तैयार रखती हूँ। परन्तु इस बार ज्यादा व्यस्त होने की वजह से किसी ऐसे को तैयार नहीं रख पाई जो वक्त आने पर फौरन शैतान बनकर सबके सामने कर सकूँ। अगर शैतान को कुछ हो जाता है तो मैं शैतान लोक में क्या जवाब दूंगी कि आगामी शैतान को वक्त रहते, क्यों मैंने तैयार नहीं किया?”

महामाया के परेशान चेहरे को देखकर काकोदर पुनः मुस्कराया।

“ये कोई समस्या नहीं। समस्या तो ये है कि तुम मुझसे दूर हो महामाया। मैं तुम्हें बाँहों में लेने के लिये बेचैन हुआ जा रहा हूँ। हर काम हो जायेगा। ये काम रह गया तो रह जायेगा।”

महामाया के होंठों पर मुस्कराहट नज़र आने लगी।

“काकोदर।”

“कहो महामाया।”

“मैं आ रही हूँ।” कहने के साथ ही महामाया ने अपनी चोली खोली और फर्श पर गिरा दी। उसके वयस्क किन्तु छोटे उरोज मचलने के अंदाज में नज़र आने लगे।

काकोदर की निगाह उरोजों पर जा टिकी।

महामाया को कोई हरकत न करते पाकर काकोदर ने महामाया को देखा। महामाया के चेहरे पर फैली मुस्कान को देखकर वो हौले से हंसा।

“क्या बात है महामाया?” काकोदर कह उठा।

“लहंगा! इस तरह नहीं उतारूंगी काकोदर।”

“अच्छा तो फिर कैसे उतरेगा?” काकोदर के चेहरे पर गहरी मुस्कान नाच उठी।

“नशीला पदार्थ गिलासों में डालो।” महामाया हंसी-“उसके बिना तो खेल अधूरा सा महसूस होगा।”

काकोदर हंसा और उस तरफ बढ़ गया जहाँ गिलास और जग पड़ा दिखाई दे रहा था।

महामाया हौले से हंसी और लहंगा उतार कर नीचे गिरा दिया। वहाँ फैली रोशनी में महामाया का चाँद, जैसा शरीर चमक रहा था। लंहगा-चोली के नीचे उसने कुछ भी नहीं पहना था।

☐☐☐

तीन घंटे बाद का वक्त।

बेड की पुश्त से टेक लगाए, महामाया बैठी थी। सिर महामाया के घुटने पर रखे, बेड पर लेटा काकोदर, चेहरे पर सुकून के भाव समेटे हुए था। उधर महामाया का जिस्म कई जगह से दुख रहा था।

“तुम्हारे पास आकर तो लगता है जैसे मेरी सांसों को नई जिन्दगी मिल जाती है।” काकोदर बोला।

“यही सब तो मेरे साथ होता है।” महामाया ने मुस्करा कर गहरी साँस ली-“तुम मुझे बाँहों में समेटते हो तो, मैं होश खो देती हूँ। उसके बाद तो होश ही तब आता है, जब तृप्त हो जाती हूँ।”

दोनों के जिस्म पर, कपड़े के नाम पर एक धागा भी नहीं था।

“इतना अच्छा तो मुझे तब भी नहीं लगता था, जब मैं धरती पर इन्सान था।” काकोदर बोला।

“हाँ।” महामाया ने गहरी सांस ली-“धरती पर तो मर्द का साथ मुझे जरा भी अच्छा नहीं लगता था। मर्द जब पास आता तो उसे भुगतने के लिये नीचे लेट जाती थी। मनुष्य के जीवन में तो ये सब करना, सजा जैसा लगता था। और अब तो ऐसे सुख की अनुभूति होती है कि मैं बयान नहीं कर पाऊँगी।”

“मनुष्य का जन्म श्रेष्ठ है।” काकोदर ने महामाया का घुटना थपथपाया-“सच बात तो ये है कि कई देवी-देवता या शैतान लोक के हम जैसे बड़े भी, मनुष्य योनि में जन्म लेने की चेष्टा में रहते हैं। मनुष्य के रूप में हर सुख को हासिल किया जा सकता है। परन्तु कई बार मर्द-औरत, धरती ग्रह पर, एक-दूसरे का सुख नहीं ले पाते जैसे कि तुम्हें धरती पर मर्द का साथ अच्छा नहीं लगता था।”

“हाँ। लेकिन अब मर्द का साथ बहुत अच्छा लगता है। तेरा साथ...।” महामाया हंसी।

काकोदर हाथ बढ़ाकर उसके गाल को सहलाने लगा।

“काकोदर।” महामाया एकाएक कह उठी।

“हाँ।”

“मैं परेशान हो रही हूं कि शैतान की मौत के बाद कौन शैतान के रूप में सामने जायेगा। शैतान को अपनी जगह पर न पाकर, शैतान का साम्राज्य डगमगा जायेगा। ऐसे वक्त के लिये मुझे किसी ऐसे को तैयार रखना चाहिये, जो शैतान की जगह ले सके। बड़ों ने ये काम मेरे हवाले कर रखा है। ऐसा वक्त आने पर बड़े यही कहेंगे कि मैंने अपने फर्ज की तरफ ध्यान नहीं दिया।”

“तुम्हें ध्यान रखना चाहिये था महामाया।”

“अपने फर्ज के प्रति मैं कभी लापरवाह नहीं होती। वक्त आने पर शैतान की जगह जिसने लेनी थी, उसे तैयार करके विद्या सिखा रही थी कि ऐसे मंत्र का गलत उच्चारण कर गया। जिसकी वजह से वो उसी पल जलकर राख हो गया। उसके बाद मुझे वक्त नहीं मिला कि किसी दूसरे को शैतान की जगह के लिये तैयार कर पाती। और अब तुमने बताया कि शैतान की मौत होने वाली है।”

“हाँ। शैतान अब कभी भी मर सकता है।” काकोदर बोला-“मैं उसकी मौत भविष्य के आईने में देख चुका हूँ।”

“तुम ये नहीं बता सके कि शैतान की मौत कैसे होगी। कौन उसकी जान लेगा।”

“ये नहीं जान सका महामाया।”

“मैं अब क्या करूँ काकोदर।” महामाया कह उठी-“शैतान की मौत के बाद किसे शैतान की जगह...।”

“तुम्हारे सामने गम्भीर समस्या आ ठहरी है।” काकोदर बोला।

“तुम मेरी सहायता करो काकोदर।”

“तुम्हारी शक्तियाँ असीमित हैं महामाया। मुझसे सहायता मत मांगो।”

“मेरी सहायता नहीं करोगे?”

“मैं जानता हूँ तुम खुद ही सारा मामला निपटा लोगी।” काकोदर कह उठा।

“जरूरत पड़ी तो सहायता करोगे?”

“वायदे की हाँ नहीं करूँगा।” काकोदर ने शांत स्वर में कहा।

“धोखेबाजी पर आ गये।”

“नहीं महामाया। सच बात तो ये है कि शैतान लोक से मुझे इजाजत नहीं है तुम्हारे काम में दखल दूं।” काकोदर की आवाज में गम्भीरता भर आई-“शैतान लोक में इस बात की अर्जी लगाकर देखूंगा। शायद तुम्हारा साथ देने की इजाजत...।”

“अगर शैतान लोक से इजाजत न मिली तो?” महामाया की निगाह काकोदर पर थी।

“महामाया।”

“जवाब दो काकोदर।”

“दे रहा हूँ।” काकोदर ने अभी तक महामाया के घुटने पर सिर रखा हुआ था-“तुम एक बात का जवाब दो कि अगर शैतान लोक से तुम्हें आदेश मिल्ने कि काकोदर का साथ छोड़ दो तो तुम क्या करोगी?”

“मैं फौरन तुम्हारा साथ छोड़ दूंगी।”

“इसी तरह अगर शैतान लोक से मुझे तुम्हारी सहायता करने का हुक्म नहीं मिलेगा तो मैं सहायता नहीं करूँगा।” काकोदर शांत स्वर में कह उठा-“शैतान लोक के हुक्म को मानना हम दोनों के शैतानी धर्म में शामिल है महामाया। तुम्हारा ओहदा महामाया का है। शैतान लोक ने तुम पर भरोसा करके तुम्हें शैतान से बड़ा ओहदा दिया है। ऐसे में शैतान लोक वाले तुमसे आशा रखते है कि तुम उसकी परीक्षा में खरी उतरो। शैतान लोक के सभी कार्य मेरे सुपुर्द हैं। इतने बड़े ओहदे को मैं पूर्णरूप से निभाता हूँ। शैतान लोक ने उसे शक्तियाँ दी है तो वे मेरे से आशा रखते हैं कि मैं उनके कार्यों को संभालूं।”

महामाया के चेहरे पर गम्भीर भाव दिखाई देने लगे।

“शैतान लोक ने हमें सम्बन्ध बनाने की छूट देकर, हम दोनों पर बहुत मेहरबानी की है। ये ठीक है कि हम दोनों बेपनाह शक्तियों के मालिक हैं। परन्तु यहाँ पर इन शक्तियों की कोई कीमत नहीं। यहाँ से बाहर हमारी शक्तियों का मुकाबला करना आसान काम नहीं।”

महामाया ने घुटनों पर सिर रखे, काकोदर को देखा।

“क्या मेरी शक्ति, सौदागर सिंह का मुकाबला कर पायेगी। उसे हार दे देगी।”

“ये तुमने क्यों पूछा महामाया।” काकोदर गम्भीर स्वर में बोला-“क्या तुम्हें अपनी शक्ति पर विश्वास नहीं रहा?”

“विश्वास है। ये सवाल मैंने इसलिये पूछा है कि सौदागर सिंह के पास शैतानी और पवित्र, दोनों शक्तियाँ हैं। कहीं मेरी शक्ति, उसकी शक्तियों के सामने कमजोर तो नहीं पड़ जायेगी।” महामाया गम्भीर थी।

कुछ पलों की खामोशी के बाद काकोदर कह उठा।

“महामाया। सौदागर सिंह की...।”

“काकोदर।” महामाया के होंठों से अजीब-सा स्वर निकला-“उठो।”

“क्या हुआ?”

“वो देखो!”

काकोदर ने ज़रा-सा सिर उठाया। सामने देखा।

तब तक महामाया फुर्ती से बेड से उतर कर पेट के बल नीचे लेट गई थी। दोनों हाथ प्रणाम की मुद्रा में जोड़कर आगे की तरफ कर लिये थे।

तब तक काकोदर भी बेड से नीचे आकर हाथ जोड़ने की मुद्रा में फर्श पर लेट चुका था।

महामाया और काकोदर, दोनों ही वस्त्रहीन थे। परन्तु वस्त्रहीनता का उन्हें होश ही कहाँ था।

वहाँ एकाएक पैना सन्नाटा छा गया था।

कई कदमों की दूरी पर, फर्श पर स्याह काली किन्तु पारदर्शी आकृति खड़ी थी। उस आकृति का हुलिया बेहद अजीब-सा महसूस हो रहा था। आकृति के सिर पर छोटे से मुकुट जैसी छाया नज़र आ रही थी। उसके पहनावे में मात्र धोती लिपटने का एहसास हो रहा था। दोनों कलाइयों को देखने से ऐसा एहसास हो रहा था जैसे वहाँ कड़ी जैसी कोई चीज पहनी हो। कानों में कुण्डल लटकते से महसूस हो रहे थे। परन्तु वो स्याह काली आकृति थी। परछाईं जैसी थी। छाया जैसी थी। हकीकत में वो कोई शरीर नहीं था। छाया आकृति थी।

तभी आकृति का हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में ऊपर उठा।

“सदा शैतान लोक की सेवा में रहो।”

आवाज गूंजी और इसके साथ ही आकृति का उठा हाथ नीचे आ गया।

महामाया और काकोदर वैसे ही पेट के बल लेटे, दोनों हाथ आगे को जोड़े रहे।

“खड़े हो जाओ मेरे बच्चो।”

महामाया और काकोदर के शरीर हिले, फिर खड़े हो गये।

निवस्त्र थे दोनों।

“मालिक।” महामाया ने सिर उठाकर आकृति को देखा-“मैं क्षमा चाहती हूँ कि तुम्हारे आने पर, हम तुम्हें निर्वस्त्र मिले।”

“क्षमा कैसी महामाया? तुम तो शैतानी नियमों का पालन मन से कर रही हो। हमें ऐसे कर्म ही तो चाहिये, जिनमें शैतानियत कूट-कूट कर भरी हो। वस्त्रों के बिना रहना भी तो शैतानियत का हिस्सा है। जब तुम दोनों के सम्बन्धों के बारे में मुझे अर्जी मिली थी। सब कुछ ठीक मानकर, अपनी सर्व सहमति से उस अर्जी पर हस्ताक्षर किए थे कि तुम दोनों आपस में प्यार के सम्बन्ध बना सकते हो।”

“ओह।” महामाया को होंठों से निकला-“मैं तो डर ही गई थी।”

“शैतानी कर्मों में लिप्त रहकर मुझसे मत डरा करो। तुम्हारा धर्म यही सब तो करने को करता है।”

महामाया ने कुछ नहीं कहा।

“तुम क्यों खामोश हो काकोदर?” आकृति का स्वर पुनः सुनाई दिया।

“मैं सोच रहा हूँ मालिक कि ये आपकी महानता है-आप हमें दंड नहीं दे रहे, ऐसी स्थिति में देखकर।”

“इसमें तुम दोनों की क्या गलती है। शैतानियत के खिलाफ काम कर रहे होते तो अब तक तुम दोनों बुरी सजा पा चुके होते। फिर तुम लोगों का क्या मालूम था कि मैं आने वाला हूँ। मालूम होता और फिर भी तुम दोनों इसी स्थिति में मिलते तो अवश्य सजा के हकदार बन जाते।” आकृति की तरफ से आने वाला स्वर शांत था।

महामाया और काकोदर की नज़रें मिलीं।

“मैं तो तुम दोनों के पिता समान हूँ। अगर गलती भी की होती तो माफ कर देता।”

महामाया के होंठों पर शांत-सी मुस्कान उभरी।

“मालिक। आप तो शैतानी सृष्टि के जन्मदाता है। सब खेल तो आपका ही है। आप तो कुछ भी कर सकते हैं।” महामाया ने आभार भरे स्वर में कहा-“हम आपके चरणों में रहते हैं हम तो आपके हुक्म के गुलाम हैं।”

काली छाया की तरफ से हल्की सी हंसी सुनाई दी।

“मालिक। हमारे लायक सेवा बताइये। आप आये हैं तो अवश्य खास बात ही होगी।”

“संयोग से तुम दोनों का वार्तालाप सुन लिया।” आकृति का सिर हिलता महसूस हुआ-“मालूम हुआ कि शैतान की मौत होने वाली है। हमने क्या यही सुना?”

“हाँ।” काकोदर कह उठा-“आपने ही मुझे शक्ति दी है कि भविष्य के आगामी पाँच दिनों का हाल में जान सकता हूँ। महामाया मेरे पास थी कि इसे शैतान के पास जाना पड़ा, खबर देने के लिये कि सौदागर सिंह आजाद हो चुका है। तब खुद को फुर्सत पाकर यूँ ही अपनी केन्द्र दृष्टि शैतान के आने वाले पाँच दिनों पर लगाई तो मुझे उसका मृत शरीर दिखाई दिया।”

“हूँ।” आकृति की तरफ से हल्की सी आवाज आई।

चुप्पी सी छा गई वहाँ।

“महामाया।” कुछ पलों बाद आकृति की आवाज गूंजी।

“आज्ञा मालिक।”

“तुम शैतान से मिलीं। सौदागर सिंह के बारे में खबर दी तो तो शैतान ने जवाब में क्या कहा?”

“शैतान ने यही तय किया कि वो सौदागर सिंह को अपने साथ मिलाने की भरपूर चेष्टा करेगा। इसी सिलसिले में वो सौदागर सिंह से मिलने का प्रयत्न करेगा।” महामाया गम्भीर स्वर में कह उठी-“मालिक, शैतान को सौदागर सिंह से ही खतरा हो सकता है। अगर शैतान को, इस सौदागर सिंह से मुलाकात के लिये मना कर दें तो...।”

“अब कुछ नहीं हो सकता। काकोदर शैतान का भविष्य देख चुका है। उसके मृत शरीर को देखा है इसने।”

“ओह।”

तभी वो आकृति अपनी जगह से हिली और इधर-उधर चलने लगी। काली छाया पर पारदर्शी थी। उसके पास आसानी से देखा जा सकता था। परन्तु वो स्याह सी थी।

“तुमने दूसरा शैतान तैयार नहीं किया।”

“क्षमा मालिक। चूक हो गई। अब तक शैतान तैयार हो चुका होता, अगर उसने गलत मंत्र न पढ़ा होता।” महामाया सिर झुकाकर कह उठी-“गलत मंत्र पढ़ते ही वो जलकर खाक हो गया।”

“शैतान की मौत के बाद उसकी जगह कौन देखेगा? शैतान से ऊँचा ओहदा है तुम्हारा। ये सब काम तो तुमने देखना है।”

महामाया कुछ न बोली।

“मालिक।” काकोदर बोला-“आपसे आज्ञा चाहता हूँ।”

“महामाया का साथ देना चाहते हो।” काली छाया कह उठी।

“जी।”

“क्यों-महामाया का क्या इरादा है?”

“शैतान की मौत होने जा रही है।” काकोदर ने कहा-“जाने शैतान को कौन मारेगा। शैतान की जगह लेने के लिये दूसरा कोई हाथ में नहीं है। ऐसे में महामाया को स्वयं आगे जाना होगा। शैतान की जान लेने वाले को, महामाया मारेगी। अगर वो सौदागर सिंह हुआ तो महामाया को मेरी सहायता की जरूरत पड़ सकती है।”

“तुम अपने काम में व्यस्त रहो काकोदर।” टहलते हुए, आकृति रुकी-“अगर महामाया को सौदागर सिंह से टक्कर लेनी पड़ी तो तुम साथ देने आगे आ सकते हो। मेरी तरफ से आज्ञा है।”

“ये कहकर आपने खुश कर दिया मालिक।”

“मालिक।” महामाया ने आकृति को देखा-“आपके पास तो भविष्य का आईना है। आपने देख लिया होगा कि कौन शैतान की जान लेगा। ये बात आप हमें बता सकते हैं।”

“इन्तजार करने की आदत डालो। देखो-कौन मारता है शैतान को।”

“जी।” महामाया के होंठों से निकला।

“शैतान की मौत से मेरी छवि को नुकसान तो होगा, परन्तु ये नुकसान सहना ही होगा मुझे।” आकृति की तरफ से गम्भीर आवाज आई-“परन्तु उसके बाद के हालातों को ठीक तरह से संभाल लेना महामाया।”

“अवश्य मालिक।”

“अन्य किसी शक्ति की आवश्यकता हो तो मुझसे मांग सकती हो।” आकृति बोली।

“इच्छा नहीं। मेरे पास आपकी दी शक्तियों का भण्डार है।”

“विदा।” आकृति की तरफ से आवाज आई और देखते ही देखते आकृति इस तरह गायब हो गई जैसे हवा में घुल गई हो। वहाँ पर पलों पहले कुछ हो ही नहीं।

काकोदर और महामाया की नज़रें मिलीं।

“तुमने मालिक से ज्यादा बात नहीं की काकोदर।” महामाया का स्वर गम्भीर था।

“हाँ।” काकोदर ने सिर हिलाया-“वस्त्रों के बिना मालिक के सामने मौजूद था। मुझे तो शर्म खाये जा रही थी कि मालिक ने मुझे इस हाल में देख लिया।”

“मुझे तो शर्म नहीं आई। मत भूलो-मालिक के सामने हम बच्चों की तरह हैं।”

“ठीक कहती हो। लेकिन जब बच्चे बड़े हो जायें तो तन ढाँप कर रखना चाहिये।” काकोदर बोला।

महामाया गहरी सांस लेकर रह गई।

“तुम भारी जंजाल में फंसने जा रही हो महामाया।”

“कैसे?” महामाया ने काकोदर को देखा।

“मालिक ने कहा है कि तुम्हें हालातों को संभालना है शैतान की मौत के बाद।”

“तो?”

“जबकि शैतान की मौत के बाद ये काम तुम किसी अन्य से भी करा सकती थीं लेकिन शैतान ने तुम्हें ही सब संभालने को कहा। यानि कि कठिन बात होगी, जो तुम्हें संभालना होगा।”

महामाया गम्भीर निगाहों से काकोदर को देखती रही। फिर बोली।

“शायद...तुम्हारा विचार गलत हो।”

“अभी मैं और भी साबित कर सकता हूँ महामाया।” काकोदर गम्भीर था।

“करो।”

“मालिक कभी भी पसन्द नहीं करते कि एक की सहायता दूसरा करे।” काकोदर ने महामाया को देखा।

“ठीक कहते हो।”

“इस पर मालिक ने फौरन मान लिया कि वक्त आने पर मैं बेशक तुम्हारी सहायता कर सकता हूँ। मालिक ने फौरन रजामंदी इसलिये दे दी कि आने वाले वक्त को उन्होंने देख लिया होगा। समय वास्तव में खतरनाक होगा।”

देखती रही महामाया काकोदर को।

“चुप क्यों हो?”

“सोच रही हूँ।” महामाया ने कहा और हाथ अपने निर्वस्त्र जिस्म पर फेरने लगी।

“क्या?” काकोदर की नजरें भी उसके बदन के खास हिस्सों पर जाने लगी।

“तुम्हारा कहना-सोचना गलत भी हो सकता है।”

काकोदर के होंठों पर तीखी मुस्कान उभरी।

“काकोदर की बात बहुत कम गलत निकलती है।” वो कह उठा।

“मैं सोच रही हूँ काकोदर।”

“क्या?”

“अगर सौदागर सिंह से टकराना पड़ा तो शायद हम उसका मुकाबला न कर सकें। वो ज्यादा शक्तिशाली है हमसे। उसके पास शैतानी और पवित्र, दोनों तरह की शक्तियाँ हैं। वो घातक वार कर सकता है हम पर।”

“तुम्हारी और मेरी शक्ति मिल जायेगी तो सौदागर सिंह को पीछे हटना ही पड़ेगा।” काकोदर के दाँत भिंच गये-“मेरे पास जिन्न-प्रेतनी और ऐसी रहस्यमय शक्तियाँ हैं जो शायद सौदागर सिंह के पास न हों।”

“मेरी शक्तियाँ तो अद्भुत हैं।” महामाया जहरीले स्वर में कह उठी-“सौदागर सिंह बच नहीं पायेगा।”

“जब मेरी जरूरत पड़े तो बुला लेना।”

“अवश्य।” महामाया के हाथ अभी भी अपने जिस्म पर फिर रहे थे।

“जाने से पहले एक बार फिर तुम्हें बाँहों में बांध लेना चाहता हूँ महामाया। आओ।”

“मन नहीं भरा अभी क्या?”

“नहीं।” काकोदर ने मुस्कराकर होंठ सिकोड़े-“परन्तु अब मन भर जायेगा।”

“अभी भी नहीं भरेगा काकोदर।” महामाया हंस पड़ी-“मेरी माया ही ऐसी है कि सब प्यासे रह जाते हैं।”

काकोदर आगे बढ़ा और महामाया को अपनी बाँहों में बाँध लिया।

☐☐☐

मोना चौधरी पेशीराम की आत्मा के साथ जा चुकी थी।

जगमोहन ने आंसुओं से भरी आँखों को साफ किया और गर्दन झुकाकर सब पर निगाह मारी।

महाजन, राधा, पारसनाथ, रुस्तम, सोहनलाल, बांकेलाल राठौर गम्भीर निगाहों से जगमोहन को देख रहे थे। उनके चेहरों पर व्याकुलता और आँखों में भीगापन था। सब कुछ तो उनके सामने हो रहा था। देवराज चौहान की मौत। नगीना का सौदागर सिंह के चक्रव्यूह में फंसना और अब मोना चौधरी का जाना, सौदागर सिंह के चक्रव्यूह में, देवराज चौहान की आत्मा लेने के लिये। न मालूम मोना चौधरी भी लौट पाती है या नहीं?

इधर ये सब भारी खतरे में थे।

मालूम हो चुका था कि शैतान ने उन्हें खत्म करने के लिये शैतान के अवतार (द्रोणा) और प्रेतनी की चंदा को, शैतान ने समस्त शक्तियों के साथ पुनः जीवन दान दे दिया था। दोनों ही शक्तिशाली थे। कर्म भी उन पर हमला कर सकते थे। जगमोहन के पास चंद शैतानी शक्तियाँ अवश्य थीं, जिनसे थोड़ा सा उनका मुकाबला किया जा सकता जो कि नाकामयाब रहता। ऐसा होने पर वो अवश्य जीतेंगे। वो हार जायेगा, उसके जीवन का अंत हो जायेगा। शैतान का अवतार और प्रेतनी चंदा बाकियों को भी खत्म कर देंगे।

मोना चौधरी बहुत बड़ी जिम्मेदारी उसे सौंप गई थी। सबको, प्रेतनी चंदा और शैतान के अवतार से बचाना है। परन्तु जगमोहन जानता था कि उसके पास पर्याप्त ताकत नहीं थी। यानि कि सबकी जान खतरे में थी। द्रोणा और प्रेतनी चंदा का हमला हुआ तो वो इन्हें सुरक्षित नहीं रख पायेगा।

“ईब का होएगा बाप।” रुस्तम राव परेशान भरे स्वर में कह उठा।

“सबो ही फंसो छोटे। याँ पे अंम में से कोई भी बचो ना।” बांकेलाल राठौर सिर हिलाकर बोला-“बारो-बारो सबो खत्मो हुओ जावो। यो शैतान का आसमानो हौवे। याँ पे म्हारो बस न चलो हो।”

महाजन ने घूंट भरा और बोतल पैंट में फंसा ली।

“मोना चौधरी वापस आयेगी नीलू।”

“महारे को तो ना लागे वो वापस लौटो हो।”

“देखा नीलू। ये मूंछों वाला मेरी बात में जरूर बोलता है।” राधा ने बांकेलाल राठौर को घूरा।

महाजन ने राधा को देखा। चेहरा बेचैन-सा हुआ पड़ा था।

“तू परेशान क्यों है नीलू।” राधा कह उठी।

“हम सब भारी मुसीबत में है।”

“घबरा मत। मैं तेरे साथ हूँ।” राधा ने नीलू की बाँह पकड़ी-“देखती हूं तेरे का कौन कुछ कहता है।”

“शैतान के आसमान पर हम मामूली इन्सानों की नहीं चलेगी।” पारसनाथ ने खुरदरे स्वर में कहा-“शैतानों को पार पाने के लिये हमारे पास शैतानी शक्तियाँ होनी चाहिये। उन्हें इस्तेमाल करने का ढंग आना चाहिये। शैतानी दुनिया का कोई ऐसा हो, जो हमारा मार्गदर्शन करे। तब कहीं शैतानी शक्तियों का मुकाबला करने की सोची जा सकती है।”

जगमोहन के होंठ भिंचे थे। वो बारी-बारी परेशान-सा सबको देख रहा था।

सोहनलाल जगमोहन के पास आया और गोली वाली सिगरेट सुलगाई।

“जगमोहन।” सोहनलाल का स्वर बेहद धीमा था।

“हूं।” जगमोहन ने सोहनलाल की तरफ सिर घुमाया।

“हम सब को बचाने की जिम्मेदारी, मोना चौधरी ने तुम पर डाल दी है। जिम्मेदारी पूरी कर पाओगे।”

“मेरे पास मौजूद शैतानी शक्तियाँ इतनी ताकतवर नहीं कि प्रेतनी चंदा और द्रोणा का मुकाबला किया जा सके।” होंठ भींचे कह उठा जगमोहन-“गलत बात कहकर मैं तुम लोगों को धोखे में नहीं रखना चाहता।”

पारसनाथ करीब आ पहुंचा था।

“मुझे एहसास है इस बात का कि तुम्हारे पास मौजूद शैतानी शक्तियाँ अधूरी हैं।” बोला पारसनाथ-“इन शक्तियों से शैतान के अवतार और प्रेतनी चंदा से टक्कर नहीं ली जा सकती।”

“अब क्या किया जाये नीलू ।” राधा कह उठी।

“करणो का होवे। भागो लो। चादरो ओढ़ कर छिपे जायो। ज्यादो बहादुरी दिखाओ अच्छी न होवे।”

“बाप।”

“बोल छोटे।”

“मूंछें रखो के, भागने की सोचे ला।”

“ये मूंछ तो मच्छरों वास्ते हौवे कि वो नाक-मूं में न घुसो।” बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर पहुँच गया-“मूंछों का यो मतलब न हौवे कि आपणो गर्दन दूसरों के हाथों में फंसा दयो।”

“सोचने की बात है कि अब क्या किया जाये?” महाजन ने शब्दों पर जोर देकर कहा।

वे एक-दूसरे को देखने लगे।

“नीलू।” राधा कह उठी-“भामा परी, सरजू और दया समझदार है, जो कि काला महल में ही रहे। मैं भी काला महल में ही रहती, अगर तुम बाहर आने को न कहते। बिल्ली ने कहा था कि जो भी काला महल में रहेगा, शैतानी शक्तियाँ उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकेंगी। शैतानी शक्तियों का असर काला महल के भीतर नहीं हो सकता, क्योंकि वहाँ गुरुवर की शक्तियों ने अधिकार कर रखा है।”

“यो तो कालों महलो की तरफ भागने की सोचो हो।”

“मूंछों वाले तू मेरी बात में मत बोला कर।” राधा मुँह बनाकर कह उठी।

बांकेलाल राठौर उखड़े अंदाज में कुछ कहने लगा कि रुस्तम राव को टोका।

“छोड़ बाप। बच्ची होएला।”

बांकेलाल राठौर ने रुस्तम राव को घूरा।

रुस्तम राव ने मुँह फेरकर जल्दी से जगमोहन से कहा।

“सोच बाप। आपुन लोग अब क्या करेला?”

जगमाहन ने गम्भीर निगाहों से सब को देखा, फिर सख्त से स्वर में कह उठा।

“मेरे पास इतनी शैतानी शक्तियाँ नहीं हैं कि ज्यादा देर तक शैतान के अवतार, द्रोणा या प्रेतनी चंदा का मुकाबला कर सकूं। द्रोणा और प्रेतनी चंदा को पुनः शैतान का आशीर्वाद प्राप्त हो चुका है। शैतानी शक्तियाँ उन्हें पुनः हासिल हो चुकी थीं। उन दोनों की शैतानी शक्तियों के बारे में तो हमें बहुत हद तक पता है।”

उनकी नज़रें एक-दूसरे पर फिरने लगीं।

“तुम कहना क्या चाहते हो जगमोहन।” महाजन गम्भीर स्वर में कह उठा।

“मैंने कहा है कि मेरे पास इतनी शैतानी शक्तियाँ नहीं हैं कि शैतान के अवतार और प्रेतनी चंदा का मुकाबला कर सकूँ। तुम सबको उनके शैतानी वारों से नहीं बचा सकता मैं।” जगमोहन ने एक-एक शब्द चबाकर कहा-“सच बात तो ये है कि शायद खुद को भी उनसे न बचा सकूँ। मेरे पास मौजूद शैतानी ताकत कमजोर है।”

“छोटे।”

“हाँ बाप।”

“जगमोहन तो भगाने का प्रोग्राम बनायो लाये हो।”

“समझदारी होएला। सामने वाला पॉवरफुल होएला।”

बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर जा पहुंचा।

“उन दोनों शैतानों को ‘वड’ देगा।”

“दुश्मन ताकतवर हो।” जगमोहन कह उठा-“और दिल कहे कि दुश्मन को जीता नहीं जा सकता तो पीछे हट जाना चाहिये। ऐसी लड़ाई का क्या फायदा कि मालूम हो, जिन्दगी की आखिरी लड़ाई है ये।”

“तुम कहना क्या चाहते हो?” पारसनाथ का हाथ अपने खुरदरे चेहरे पर जा टिका।

जगमोहन ने गम्भीर निगाह सब पर मारी फिर कह उठा।

“काला महल के भीतर शैतानी शक्ति अपना असर नहीं दिखाएगी। कोई भी शैतानी शक्ति वाला महल के भीतर नहीं जा सकती क्योंकि गुरुवर की पवित्र शक्तियों ने वहाँ अधिकार कर रखा है। इधर हम शैतान के अवतार द्रोणा और प्रेतनी चंदा का मुकाबला नहीं कर सकते। ऐसे में काला महल के भीतर पहुँच जाना ही ठीक रहेगा।”

“नीलू। ये तो डर कर काला महल में छिपने को कह रहा है।” राधा कह उठी।

महाजन ने घूंट भरा। कहा कुछ नहीं।

“थारो मनो न करो छिपणो वास्ते?”

“मैंने तेरे से बात नहीं की मूंछो वाले।” राधा मुँह बनाकर बोली।

“अम तो यारे से ही बात करो कि तम छाती ठोको के उनो दोनों का मुकाबला करो हो।”

“देखा नीलू।” राधा बोली-“ये जानबूझकर मुझसे बात कर रहा है।”

“थारो थोबड़ो इतणों खूबसूरतो न होवो कि अंग थारे से जानबूझो के बातों करो हो।” बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर पहुँच गया-“म्हारी गुरदासपुर वाली की खूबसूरती तंम न जाणो हो। ईक बारो ऊपर जा रमो प्लेन से उसो को कोई देखो तो उसो ने विमानो से ही छाल मार दयो उसो के वास्ते। म्हारी गुरदासपुरो वाली से ज्यादा खूबसूरत कोणों न होवो।”

“नीलू।” राधा ने महाजन को देखा-“ये तो।”

“राधा। प्लीज, ये बातें बाद में हो जायेंगी। इस वक्त बहुत परेशानी में हैं सब।”

“ठीक है। लेकिन इससे फाईनल बात जरूर करना। भूलना नहीं।”

महाजन ने गम्भीर निगाहों से जगमोहन को देखा।

“तुम ठीक कहते हो कि काला महल में हमें चले जाना चाहिये।” महाजन ने कहा-“शैतान का आसमान है ये। हम शैतानी शक्तियों का मुकाबला नहीं कर सकते। बिना वजह जान गंवाने की क्या फायदा।”

“महाजन की बात से मैं सहमत हूँ।” सोहनलाल ने धीमे स्वर में कहा।

किसी ने एतराज नहीं किया।

“हमें फौरन यहाँ से काला महल की तरफ चल देना चाहिये।” जगमोहन बोला-“काला महल में शैतानी शक्तियों के वारों से हम सुरक्षित रह सकेंगे। महल के भीतर कोई भी शैतानी शक्ति प्रवेश नहीं कर सकती। कहीं ऐसा न हो कि द्रोणा और प्रेतनी चंदा की शैतानी शक्तियाँ हमें घेर लें। बचने का हमें रास्ता भी न मिले।”

उसके बाद कोई नहीं रुका। सब तेजी से आगे बढ़ने लगे।

काला महल ज्यादा दूर नहीं था।

“छोरे।”

“हाँ बाप।”

“बहना (नगीना) तो शैतानों के चक्रव्यूह में फंसो गयो।”

“हाँ बाप। दीदी का आपुन को बोत दर्द होईला। मालूम नहीं वा कैसा होईला अब।”

“बहनो वापस आ सको के ना?”

“इस बात का भी पक्का नहीं कि देवराज चौहान की आत्मा को शैतान की कैद से कोई ला पाता है या नहीं?” सोहनलाल बोला।

“मोना चौधरी देवराज चौहान की आत्मा को ले आयेगी।” राधा कह उठी।

“ये बात विश्वास के साथ नहीं की जा सकती।” सोहनलाल ने उसे देखा।

“मेरा दिल कहता है कि-।” राधा ने कहना चाहा।

“यहाँ दिल की बात का कोई महत्व नहीं राधा।” महाजन कह उठा-“शैतान का आसमान है ये।”

“ऐसी बुरी तरह तो कभी भी नहीं फंसेला बाप।”

“म्हारे संग रहो छोटे तो यो ही ऐश करो हो।”

“इस बारे में कुछ भी पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि मोना चौधरी सलामत वापस लौट पाती है या नहीं?” पारसनाथ ने कहा।

“हालात बहुत खतरनाक है।” महाजन दाँत भींचकर कह उठा।

“इन हालातों से निकल पाना आसान काम नहीं।” जगमोहन बेबस से स्वर में कह उठा-“देवराज चौहान की जान जा चुकी है। नगीना भाभी शैतान के चक्रव्यूह में जा फसी है। मोना चौधरी की वापसी की कोई गारण्टी नहीं। हम शैतान के आसमान पर भी करने में काबिल नहीं रहे। बुरी तरह फंस चुके हैं हम-।”

“काला महल में मौजूद बिल्ली हमें बचा सकती है।” राधा बोली-“उसके पास गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल है। बाल में मौजूद गुरुवर की शक्तियाँ हमें दे दें तो हम शैतानी शक्तियों से आसानी से मुकाबला कर सकते हैं।”

“बोत कमीनो बिल्ली हौवे वो। वो शक्ति न दयो किसे को।”

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