उस पतली गली के लोग अपने घरों में दुबक गये थे। देवेन साठी और उसके आदमियों की भीड़ से जैसे वो गली भर गई थी। गली के लोगों को जैसे एहसास हो गया था कि कुछ होने वाला है।
देवेन साठी ने वहाँ पहले से ही खड़े आदमी पर निगाह मारी।
उस आदमी ने एक कमरे की तरफ इशारा कर दिया। जिसका दरवाजा पहले से ही खुला था और दस कदमों की दूरी पर था। देवेन साठी के चेहरे पर दरिन्दगी नाच उठी। उसने पास खड़े जाफर से कहा।
"नाप ले उसे।" स्वर में गुर्राहट थी वो हथियार डालकर बाहर निकलने वाले नहीं, कमरे से ही गोलियाँ चलायेंगे। उनकी जगह मैं भी होता तो ऐसा ही करता। परन्तु उनके पास गोलियाँ ज्यादा नहीं होंगी। वो जल्दी मर जायेंगे।"
जाफर फौरन रिवॉल्वर निकालकर एक आदमी के साथ आगे बढ़ा और वो दोनों खुले दरवाजे से दायें-बायें खड़े हो गये। दोनों के चेहरों पर खतरनाक भाव और हाथ में रिवॉल्वरें थी। बाकी के साथियों के हाथों में भी रिवॉल्वरें दिखने लगी थी और वे भी दीवारों के साथ चिपक गये थे। माहौल खतरनाक हो उठा था।
दाँत भींचे देवेन साठी आगे बढ़ा और खुले दरवाजे से एक तरफ खड़ा होकर गुर्रा उठा ।
"देवराज चौहान।”
जवाब में कोई आवाज नहीं उभरी।
हर तरफ जैसे सन्नाटा छा गया था।
"देवराज चौहान, मेरी आवाज सुन रहा है ?" देवेन साठी ने पुनः कठोर स्वर में आवाज लगाई।
"देवेन साठी हो तुम?" भीतर से देवराज चौहान की आवाज आई।
"तो बाहर की खबर है तुझे। पता है तुझे कि ये मैं हूँ।" देवेन साठी ने दाँत भींचकर कहा।
"सब पता है।" देवराज चौहान की आवाज भीतर से आई।
"तो भागा क्यों नहीं यहाँ से?"
“खबर जरा देर से मिली। तब तक तेरे आदमी बाहर फैल चुके थे।"
"तेरी मौत आ गई है कुत्ते।" देवेन साठी मौत भरे स्वर में कह उठा--- “तूने मेरे भाई पूरबनाथ साठी को मारा। उसकी कीमत तुम्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ेगी। जगमोहन और खुदे भी तेरे साथ हैं ?"
“हाँ---।"
"अब तू बाहर आता है या मेरे आदमी भीतर आयें?" साठी ने वहशी स्वर में कहा।
"मैंने तेरे भाई का जरूर मारा। परन्तु उसका मेरे हाथों मरना एक हादसा था, विलास डोगरा ने ये खेल---।"
“सुन चुका हूँ ये बकवास। मुझ पर इस बकवास का असर नहीं होने वाला।" साठी ने दांत पीसकर कहा--- “तूने मेरे भाई की हत्या की। बदले में तुझे, जगमोहन और खुदे को अपनी जान गंवानी होगी। ये बात तेरे को पहले ही पता होनी चाहिये थी कि मेरे भाई की जान की कीमत, तुझे जान से चुकानी होगी। उस वक्त तेरे को मेरा ख्याल भी नहीं आया होगा हरामजादे---।"
जवाब में देवराज चौहान की आवाज नहीं आई।
कुछ पल बाद जगमोहन का स्वर सुनाई दिया।
"साठी। मैं जगमोहन हूँ।”
“बाहर निकल आओ तुम सब। आसान मौत दूंगा।" साठी ने खतरनाक स्वर में कहा--- "वरना कुत्ते की मौत मरोगे।"
"तुझे हमारी बात सुननी चाहिये। समझनी भी चाहिये।"
"बाहर निकल---।"
"ये सब विलास डोगरा का---।"
“बाहर निकल---।"
"पहले तेरे को हमारी बात सुननी होगी साठी।" जगमोहन का तेज स्वर कमरे से बाहर आ रहा था--- "विलास डोगरा ने नशीली दवा देकर हमसे चाल चली और हमें तुम्हारे भाई की हत्या करने को कह दिया। तब हम होश में नहीं थे और तुम्हारे भाई को मार बैठे। हमसे ये सब विलास डोगरा ने करवाया था। उस वक्त हमें किसी बात का होश नहीं...।"
"ऐसी बात थी तो सीधे मेरे पास क्यों नहीं आये?" साठी गुर्राया ।
"तुम हमारी बात का यकीन नहीं करते।"
"तो अब क्यों बता रहे हो। अब कैसे यकीन कर लूंगा।" साठी ने दरिन्दगी भरे स्वर में कहा--- "तुम्हारी इस बकवास पर कोई भी यकीन नहीं करेगा। इस तरह तुम लोग बच नहीं सकते। तुम तीनों अभी मरने वाले हो। मैं तीन तक गिनूंगा। अगर तुम लोग बाहर आ गये तो ठीक, नहीं तो मेरे आदमी भीतर आते हुए गोलियाँ चलाने लगेंगे। एक...।"
एकाएक वहाँ मौत-सा सन्नाटा छा गया।
धधक रहा था देवेन साठी का चेहरा ।
हर कोई रिवॉल्वर थामें कमरे में घुसने को तैयार खड़ा था ।
तभी सुनसान पड़ी गली में कदमों की आवाज गूंजी।
“दो---।” कहते हुए साठी ने कदमों की आवाज की तरफ नज़रें घुमाई।
सामने से मोबाइल पर बात करती नगीना आ रही थी।
देवेन साठी खूंखारता भरी निगाहों से करीब आती नगीना को देख रहा था।
सन्नाटा बिखरा था वहाँ।
नगीना ने कान से फोन हटाया और साठी के पास आकर रुकी।
दांत भींचे देवेन साठी, नगीना को देख रहा था।
नगीना ने हाथ में दबा फोन साठी की तरफ बढ़ाते शांत स्वर में कहा।
"अपनी पत्नी आरु से बात कर लो।"
"आरु।" देवेन साठी बुरी तरह चौंका।
नगीना ने फोन वाला हाथ उसकी तरफ कर रखा था।
"बात करो, वो लाइन पर है।"
"तुम कौन हो?" साठी के होंठों से गुर्राता स्वर निकला।
“नगीना। देवराज चौहान की पत्नी---।" साठी एक बार फिर चौंका।
नगीना को देखता रह गया।
"बात करो।" नगीना बोली--- “वो कष्ट में है। उसे तुम्हारी सहायता की जरूरत है साठी।"
साठी ने मोबाइल थामकर बात की।
"अ-आरु---।" देवेन साठी के होंठों से भिंचा स्वर निकला।
"ये क्या हो रहा है देवेन ।" उधर से आरु की आवाज कानों में पड़ी--- "ये जो चाहती है तुम मान क्यों नहीं लेते?"
साठी ने सुलगती निगाहों से नगीना को देखा।
नगीना का चेहरा शांत था।
"तुम ठीक हो?"
"हां, अभी तक तो ठीक---।"
“कब से हो तुम इनके पास?"
"कल से।"
"जाखड़ का फोन आया था दो घंटे पहले कि तुम और बच्चे गायब हो। गुंजन और अर्जुन कैसे हैं?"
“वो ठीक है तुम---।"
"इन्होंने तुम लोगों को कोई तकलीफ तो नहीं दी?" साठी गुर्राया।
"नहीं। ये---।"
“कहाँ हो तुम तीनों ?"
“किसी घर में हैं। यहाँ पर पाटिल भी कैद है। हमे यहाँ से निकालो देवेन। बच्चे घबरा रहे हैं।" दूसरी तरफ से आरु ने परेशान स्वर में कहा।
"फिक्र मत करो। मैं सब ठीक कर दूंगा।" कहकर देवेन साठी ने फोन बंद किया और सुलगती नज़रों से नगीना को देखते रिवॉल्वर निकाली और पलक झपकते ही नगीना की गर्दन से लगाकर गुर्राया--- "आरु और बच्चे कहाँ हैं?"
नगीना ने हाथ बढ़ाकर साठी से मोबाइल लिया और जेब में रख लिया।
इस दौरान रिवॉल्वर की नाल नगीना की गर्दन से लगी रही।
“बोल।” साठी ने दाँत पीस कर कहा--- "आरु और मेरे बच्चे---।"
"रिवॉल्वर हटा ले मुझ पर से।” नगीना गम्भीर स्वर में बोली--- “गलती से गोली चल गई तो समझ ले तेरी बीवी-बच्चे गये। इस वक्त तेरे को उनके बारे में सोचना चाहिये। मेरे साथी हथियार लेकर उनके सिरों पर खड़े हैं।"
"बता वो कहाँ...।"
“तूने कैसे सोच लिया कि मैं बता...।"
तभी गली में दौड़ते कदमों की आवाज आई साठी ने तुरन्त गली में देखा।
सरबत सिंह तेजी से पास आता जा रहा था।
साठी के बाकी आदमी सतर्कता से पोज़िशन लिए खड़े थे।
“ये कौन है?" साठी ने गुर्राकर नगीना से पूछा ।
"मेरा साथी---।” नगीना का स्वर शांत और सामान्य था।
"मेरे बीवी बच्चे कहाँ पर हैं।" साठी ने धधकते स्वर में कहा--- "वरना तू नहीं बचने वाली---।"
“रिवॉल्वर हटा ले साठी।” सरबत सिंह पास पहुँचकर सख्त स्वर में बोला--- “तूने ज़रा भी गड़बड़ की तेरा पूरा का पूरा परिवार गया। यहाँ पर हमारे और लोग भी हैं। बात बढ़ी तो तू जिन्दा गली से बाहर नहीं निकल सकेगा।"
साठी के होंठों से गुर्राहट निकली।
सरबत सिंह ने अपना हाथ आगे बढ़ाया कि उसका रिवॉल्वर, नगीना की गर्दन से हटा सके।
“रुक जा ।” नगीना बोली--- “ये खुद ही रिवॉल्वर हटायेगा।"
साठी ने दाँत पीसते हुए रिवॉल्वर हटाई और गुर्राकर कह उठा ।
"क्या चाहते हो तुम?"
"अभी भी नहीं समझे कि मैं देवराज चौहान की सलामती चाहती हूँ।” नगीना ने कहा ।
"वो हरामजादा मेरे भाई का हत्यारा है। वो बच नहीं---।"
"तुम्हारे भाई का असली हत्यारा विलास डोगरा है। तेरे को ये बात माननी चाहिये।"
"मेरे भाई की देवराज चौहान---।"
"साठी।" नगीना ने ठोस स्वर में कहा--- "तेरे को अपनी पत्नी और बच्चों की जान प्यारी है कि नहीं?"
साठी होंठ भींचकर खूनी निगाहों से, नगीना को देखने लगा।
"देवराज चौहान की तरफ टेड़ी आँख करके भी देखा तो तेरा परिवार खत्म।" नगीना का स्वर सख्त हो गया--- "ये फैसला तेरे को ही करना है कि अपने परिवार की तुझे जरूरत है कि नहीं।"
साठी ने कुछ लम्बी सांस ली और अपने पर काबू पाने की चेष्टा की।
नगीना और सरबत सिंह की निगाह, साठी पर ही थी।
"तुम्हारा ख्याल गलत है कि इस तरह तुम देवराज चौहान और जगमोहन को बचा लोगी।" साठी खुद को संभालने के प्रयत्न में था।
"मतलब कि तुझे अपने परिवार की जरूरत नहीं ।" नगीना के होंठ भिंच गये।
"जरूरत है।"
"तो खामोशी से यहाँ से चला जा।"
"इस तरह तुम देवराज चौहान को कब तक बचाओगी?" साठी नगीना को सुलगती निगाहों से देखता कह उठा--- "मैं जल्दी ही अपने परिवार को ढूंढ लूंगा और फिर तुम में से कोई भी जिन्दा नहीं बचेगा।"
"तू वहाँ तक कभी नहीं पहुँच सकता, जहाँ तेरी बीवी-बच्चे हैं।" नगीना ने सिर हिलाकर कहा--- “पहुँच सकता है तो पहुँच के दिखा देना। अब ये खेल खतरनाक हो गया है साठी। मैं सिर्फ ये तेरे को बताना चाहती हूँ कि देवराज चौहान निर्दोष है। जगमोहन ने भी कुछ नहीं किया। तुम्हारे भाई की मौत का मुझे अफसोस है। देवराज चौहान ने तेरे भाई को गोली मारी थी। मैं इस बात से इन्कार नहीं करती। परन्तु तब देवराज चौहान और जगमोहन, विलास डोगरा द्वारा धोखे से पिलाई गई नशीली दवा के असर में थे और होशो-हवास में नहीं थे। तब उन्होंने वो ही किया जो कि विलास डोगरा ने करने को कहा था।"
"तुम्हारी ये बात मैं कभी नहीं मान सकता।"
"सच्चाई जानने के लिए तेरे को अब्दुल्ला से मिलना चाहिये, जिसने 'कठपुतली' नाम का वो खतरनाक नशा तैयार करके विलास डोगरा को दिया था। अब्दुल्ला के बारे में पारसनाथ से पूछ लेना कि वो कहाँ मिलेगा।"
साठी आग में सुलगता तिलमिला रहा था। नगीना को खा जाने वाली नज़रों से देख रहा था।
"अपने आदमियों को ले जा यहाँ से। देवराज चौहान से दूर रहना।" नगीना बोली।
"ये कब तक चलेगा।” साठी गुस्से से बोला--- “मेरी पत्नी, मेरे बच्चे कब तक तुम लोगों के पास...।"
"जब तक देवराज चौहान विलास डोगरा से हिसाब बराबर नहीं कर लेता।"
"इसमें तो बहुत वक्त...।"
“ज्यादा वक्त नहीं लगेगा और इस बीच तेरे सामने भी विलास डोगरा का सच लाया जायेगा।"
“मुझे विलास डोगरा से कोई मतलब नहीं, मेरे भाई को देवराज चौहान ने मारा--।"
"ये ही बात तो तेरे को समझानी है।" कहने के साथ ही नगीना ने सरबत सिंह को इशारा किया।
सरबत सिंह आगे बढ़कर उस खुले दरवाजे से भीतर प्रवेश कर गया।
“तुमने मेरी पत्नी और बच्चों का अपहरण क्यों किया था। कल तक तो मुझे पता भी नहीं था इस जगह के बारे में।" साठी बोला।
“मैं तेरे को समझाने की तैयारी कर रही थी कि आज तू यहाँ पहुँच गया।"
“अब तुम भी मेरे हाथों से नहीं बचोगी।" साठी ने दाँत भींचकर कहा।
तभी सरबत सिंह, देवराज चौहान, जगमोहन और हरीश खुदे बाहर निकले।
खुदे का चेहरा घबराया हुआ, फक्क दिख रहा था।
देवराज चौहान और जगमोहन के चेहरों पर गम्भीरता थी ।
देवेन साठी ने तीनों को मौत की सी निगाहों से देखा ।
“तेरा दुश्मन विलास डोगरा है, मैं नहीं।" देवराज चौहान बोला।
“तुम तीनों मेरे हाथों बहुत जल्द बुरी मौत मरोगे।' साठी दाँत किटकिटा कर, सुलगते स्वर में कह उठा।
"मैं तेरे से जल्दी मिलूंगी साठी।” नगीना बोली।
साठी ने मौत से भरी निगाहों से नगीना को देखते हुए कहा।
"मेरी पत्नी और बच्चों को कुछ हुआ तो...।"
"वो आराम से हैं। तुम्हें उनके बारे में चिन्ता करने की जरूरत नहीं।" नगीना कह उठी।
साठी के क्रोध से भरे चेहरे पर कुछ बेचैनी उभरी।
"अपनी पत्नी और बच्चों की खातिर मैं तुम लोगों के लिए विलास डोगरा को मार सकता हूँ।" साठी ने कहा।
"जरूरत नहीं।" देवराज चौहान का स्वर कठोर हो गया--- "विलास डोगरा से मेरा हिसाब है, वो मैं ही निपटाऊँगा।"
साठी की निगाह हरीश खुदे की तरफ उठी ।
खुदे घबराकर जगमोहन के पीछे हो गया।
होठ भींचे, अपने पर काबू पाते साठी ने अपने आदमियों को इशारा किया। उसके आदमी इशारा पाते ही वहाँ से हटे और गली के बाहर की तरफ बढ़ते चले गये। साठी ने नगीना को देखकर भिंचे स्वर में कहा।
"मेरे परिवार की खबर देने तेरे को मेरे पास आते रहना होगा।"
"जरूर आऊँगी।" नगीना बोली।
"मेरे परिवार को छोड़ दे। वादा करता हूँ कि एक महीना, इन तीनों को कुछ नहीं कहूँगा।" साठी बोला।
"अभी ऐसे ही चलने दें। बाकी बात फिर करेंगे।" नगीना कह उठी।
होंठ भींचे देवेन साठी पलटा और गली के बाहर की तरफ बढ़ता चला गया।
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बिल्ला अभी तक दोनों हाथों में ब्रीफकेसों को थामें खड़ा था। अब तो ब्रीफकेस थामें-थामें उसकी बाँहें भी दर्द होने लगी थी। लेकिन बाँहों के दर्द को थोड़ी देर की तकलीफ सोच कर मजे से सह रहा था। टुन्नी का खूबसूरत चेहरा रह-रहकर आँखों के सामने नाच रहा था। उसे ऐसा लगता जैसे टुन्नी बाँहें फैलाये उसकी तरफ बढ़ी चली आ रही हो तो कभी लगता उसे देखते ही टुन्नी ने शर्माकर सिर झुका लिया। ऐसे ही सपनों में तैर रहा था बिल्ला। साथ ही उसके कान गोलियों की आवाजों को सुनने के लिए तरस रहे थे। साठी को उसने अपने आदमियों के साथ गली में जाता देख लिया था। परन्तु इस बात को लेकर वो उलझन में था कि मोना चौधरी गली के किनारे पर क्यों मौजूद है। वो देवराज चौहान को मारने क्यों नहीं गई?
किसी भी पल वो गोलियाँ चलने की आशा कर रहा था। नज़रें गली पर थी। बांकेलाल राठोर और रुस्तम राव की तरफ उसने खास ध्यान नहीं दिया जो कि उसके दाएं-बाएं कुछ फासले पर खड़े थे।
तभी बांकेलाल राठौर उसके पास आ पहुँचा और गली को देखता बोला।
"थारे को का लागे कि देवराज चौहानो मारो जावे।"
"वो मरे ना मरे, पर खुदे जरूर मर जाये।" अपनी सोचों में गुम बिल्ला कह उठा।
"इन्हों ब्रीफकेसों में नोटो भरो हौवे।"
"पूरे दो करोड़ हैं, आज तो मजा आ... ।" कहते-कहते बिल्ला ठिठका और बांके को देखा। चेहरें पर अजीब से भाव आ गये--- "तुम कौन हो?"
"बोत देर बादो महारा ख्याल आयो हो। अम बांके लाल राठौर हौवे हो।"
"तुम्हें कैसे पता कि गली में क्या होने वाला है।”
“महारे को सबो पतो हौवे ।” बांके लाल राठौर का स्वर कठोर हो गया— “तनने देवराज चौहानों के इधरों होने की खबरों को साठो और मोननो चौधरी को बेचो हौवे । वो ही नोटो को ब्रीफकेसों में घूंसे तंम घूमो हो।"
उसकी बात पर बिल्ला चौंक कर उसे देखने लगा।
“ला महारे को दे दयो अपणा बोझो।" बांके ने ब्रीफकेसो की तरफ हाथ बढ़ाया।
"खबरदार।" बिल्ला एक कदम पीछे हटा--- “हाथ मत लगाना ब्रीफकेसों को।"
“थारी मर्जी। अंम तो सोचो हो, तंम थक गयो हो, बोझा उठा-उठा के। थारे को पतो हौवे अंम कोणो हौवे ?"
"कौन हो तुम?"
"देवराज चौहानों का भलो चाहनो वालो, उसो के दोस्त हौवे अंम । तनने देवराज चौहानों को मुसीबतों में डालो हो। ईब उधरो जो भी हौवे, पर तंम तो किसी भी सूरतों में बचों ना। अंम थारे को 'वड' दयो।" बांके के स्वर में खतरनाक भाव आ गये थे।
"त-तुम मेरे को जान से मारने की धमकी दे रहे हो। म-मैं पुलिस को बुला...।"
"पुलिस वालो महारे बगल के घरो में रहो हो। अंम उसो को बुला लयो, तबो तम...।"
तभी रुस्तम राव पास पहुँचा और बिल्ला को घूरते कह उठा।
"तेरा मौत आईला बाप।"
"तुम?" बिल्ला ने घबराकर रुस्तम राव को देखा फिर बांके को देखा--- “तुम लोग मेरे से दो करोड़ लेना चाहते हो, लेकिन मैं नहीं दूंगा। पुलिस को बुला लूंगा। ये पैसा टुन्नी के लिए है। वो खुश हो जायेगी, इतना पैसा देखकर और मेरे से प्यार---।"
"तेरी मौत आईला बाप।" रुस्तम राव के स्वर में खतरनाक भाव थे--- "तू देवराज चौहान को फंसाईला। पर वो नेई फंसेला। उधर देख गली में, वो सब लोग वापस आईला गोली नहीं चलेला।"
बिल्ला की निगाह गली की तरफ उठी ।
गली में से देवेन साठी और उसके आदमियों को वापस आते देखा।
बिल्ला के चेहरे पर अजीब से भाव आ गये।
“ये क्या हो रहा है। वो वापस क्यों लौट रहे हैं। उन्होंने उन तीनों को मारा क्यों नहीं?" बिल्ला के होंठों से निकला।
“दीदी मामला संभालेया बाप। पर तेरे को अब कौन संभालेगा।"
"दीदी।" बिल्ला ने रुस्तम राव को देखा।
रुस्तम राव कठोर निगाहों से बिल्ला को देख रहा था।
"वो तेरा घर होईला जिधर देवराज चौहान, जगमोहन छिपेला ।"
“हाँ। वहाँ पर हरीश खुदे भी है।"
“तूने ये खबर बेचेला साठी और मोना चौधरी को कि वो उधर होईला।"
“हाँ। मैंने टुन्नी से मिलना है। वो भी मुझे चाहती है। पर हरीश खुदे की वजह से हम मिल नहीं पा---।"
"छोरे ।" बांके लाल राठौर गुर्राया--- "वड दयो इसो को।"
तभी रुस्तम राव का हाथ घूमा और कैरेट की शेप में, वेग के साथ बिल्ला की गर्दन पर पड़ा।
'कड़ाक'
मध्यम सी, घुटी सी, हड्डी टूटने की आवाज उभरी। बिल्ला की आँखें फटती चली गई। वो नीचे गिरने को हुआ कि बांके ने फौरन उसे संभाल कर सहारा दिए खड़ा रखा।
बिल्ला मर चुका था।
हाथों में थमें दोनों ब्रीफकेस छूटकर नीचे जा गिरे थे।
रुस्तम राव ने तुरन्त ब्रीफकेसों को उठा लिया। चेहरे पर कठोरता नाच रही थी।
बांकेलाल राठौर ने आहिस्ता से बिल्ला के शरीर को फुटपाथ पर लिटा दिया। उन्हें इस बात की ज़रा भी परवाह नहीं थी कि कोई उन्हें देख रहा है कि नहीं।
"छोरे काम तमाम हो गयो।"
"निपटेला बाप ।"
दोनों की निगाह सामने गली की तरफ थी।
गली के बाहर खड़ी कारों की तरफ साठी और उसक आदमी बढ़ रहे थे। साठी के चेहरे पर गुस्सा दूर से ही नज़र आ रहा था। कार के पास पहुँचकर ठिठकते फिर उसे पलटकर फुटपाथ पर मोना चौधरी की तरफ बढ़ते देखा।
"बहनो ने मामलों को संभाल लयो हो छोरे---।"
"अपुन को भी ऐसा ही लगेला---।" रुस्तम राव की सतर्क निगाहें हर तरफ जा रही थी--- "चलेला बाप---।"
दोनों गली की तरफ, सड़क पार करते, बढ़ गये।
मोना चौधरी के पास पारसनाथ और महाजन खड़े थे।
देवेन साठी उनके पास पहुँचते ही सुलगते स्वर में कह उठा।
"तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया कि देवराज चौहान की पत्नी ने मेरे परिवार को बंधक बना रखा है।"
साठी के शब्दों पर तीनों चौंके।
"परिवार को बंधक?" मोना चौधरी के होंठों से निकला।
“मेरी पत्नी और दोनों बच्चे उसकी कैद में हैं। ये बात मुझे पहले बता देती तो मैं कोई और तैयारी---।"
"मुझे इस बारे में कुछ नहीं पता। मुझे तो ये भी नहीं मालूम कि तुम्हारा परिवार भी है।"
साठी दाँत भींचे मोना चौधरी को देखता रहा।
"हुआ क्या?" मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में पूछा।
"देवराज चौहान और जगमोहन की मौत से ज्यादा मुझे अपने परिवार की जरूरत है।" देवेन साठी गुर्राया।
"तो उन्हें जिन्दा छोड़कर वापस जा रहे हो।" मोना चौधरी गम्भीर थी।
"वो ज्यादा दिन जिन्दा नहीं रहेंगे।" साठी ने दाँत भींचकर कहा--- "तुम नहीं जानती कि मेरे परिवार को कहाँ रखा गया है?"
"मैं कुछ नहीं जानती।"
"मेरी खातिर अगर तुम ये बात पता करो तो बहुत मेहरबानी होगी।" देवेन साठी बहुत गुस्से में था।
"तुम्हें विलास डोगरा के बारे में उन्होंने कुछ नहीं कहा?"
"उनकी बकवास नहीं सुनना चाहता मैं---।"
"शायद वो बात सच है।"
"ये तुम कहती हो कि वो सच कह रहे हैं। हैरानी है मुझे।" साठी ने गुस्से से झल्लाकर कहा--- "कल तक तो तुम देवराज चौहान की जान के पीछे थे और अब तुम ऐसी बातें कर रही हो।"
"ये बात पारसनाथ ने पता लगाई है कि वो सही कह रहे हैं।"
"मेरे भाई को गोली किसने मारी ?"
"देवराज चौहान ने।"
"तो मेरे भाई का हत्यारा कौन हुआ?"
"देवराज चौहान---।"
"ये ही बात---।"
"साठी।" मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा--- “ये काम विलास डोगरा ने देवराज चौहान से करवाया। पहले उसे 'कठपुतली' नाम की नशे की दवा दी, जिसका असर तीन दिन तक रहता है। उस नशे में जो भी किया जाये, होश आने पर कुछ याद नहीं रहता। उस दौरान विलास डोगरा ने उन्हें तुम्हारे भाई और मुझे मारने के लिए कहा। देवराज चौहान और जगमोहन को तब नहीं पता था कि वो क्या कर रहे हैं और क्यों कर रहे थे। विलास डोगरा ने कहा और उन्होंने तुम्हारे भाई पूरबनाथ साठी को मार दिया और मेरी जान भी लेने के लिए मेरे पास आये। परन्तु मैं खुद को किसी तरह बचा गई। इसी दौरान उस पर चढ़ा 'कठपुतली' का नशा उतरा तो वो सामान्य हो गये और उन्हें कुछ नहीं पता चला कि उन्होंने बीते तीन दिनों में क्या किया।" ये सब जानने के लिए पढ़ें अनिल मोहन का पूर्व प्रकाशित उपन्यास 'सबसे बड़ा गुण्डा'--- "ये तो अच्छा हुआ कि वक्त रहते पारसनाथ ने मामले को भांप लिया और सच्चाई हमें पता चल गई। मेरे ख्याल में तुम्हें इस बात पर यकीन कर---।"
"मेरे भाई को देवराज चौहान ने गोली मारी---।" देवेन साठी ने दाँत पीसकर कहा।
“तब वो विलास डोगरा का आदेश मान रहा था। खुद अपने होश में नहीं था।"
"तुम उसकी साइड क्यों ले रही हो?"
"मैं तुम्हें सच बता रही हूँ कि तब असल क्या हुआ था। देवराज चौहान की दुश्मनी थी तुम्हारे भाई से?"
"नहीं---।"
“तो उसने क्यों मारा पूरबनाथ साठी को?"
देवेन साठी के चेहरे पर दरिन्दगी नाच रही थी।
"तुम सब समझ रहे हो, परन्तु सच को स्वीकार नहीं कर रहे।" महाजन कह उठा--- "तुम्हें मान लेना---।"
"मैं तभी मानूंगा जब विलास डोगरा अपने मुंह से ये बात कहेगा।"
"तुम क्या सोचते हो कि विलास डोगरा अब क्या ऐश करेगा।" महाजन ने गम्भीर स्वर में कहा---- "अब देवराज चौहान और जगमोहन की जान वक्ती तौर पर बच गई है। वो विलास डोगरा की ऐसी-तैसी कर देगा। मुझे नहीं लगता कि विलास डोगरा जिन्दा बच पाये। हो सकता है कि देवराज चौहान तुम्हारी एक मुलाकात विलास डोगरा से भी करा दे कि जो सच है, वो तुम उसके मुँह से जान सको। देवराज चौहान जानता है कि वो वक्ती तौर पर तुमसे बचा है। तुमने अपने परिवार को पा लिया तो उसे मार दोगे। ऐसे में वो फुर्ती से विलास डोगरा की तरफ बढ़ेगा कि अपने काम को जल्दी से जल्दी पूरा कर सके।"
"मुझे सिर्फ अपने परिवार को वापस पाने और देवराज चौहान, जगमोहन और खुदे की मौत से मतलब है। मेरे भाई को गोली देवराज चौहान ने मारी और इस बात से वो इन्कार नहीं कर रहा।" देवेन साठी गुर्राकर कह उठा--- "इसके अलावा मुझे किसी बात से मतलब नहीं है।"
"तुम्हारे भाई का असली हत्यारा विलास डोगरा है।" पारसनाथ ने कहा।
"पहले देवराज चौहान।" साठी ने मौत भरे स्वर में कहा--- "उसके बाद विलास डोगरा से बात करूंगा।"
"देवराज चौहान तेरे लिए विलास डोगरा को जिन्दा नहीं छोड़ने वाला।" पारसनाथ ने कहा--- "अगर अपने भाई की मौत का बदला लेना है तो देवराज चौहान से बात करके, उसे विलास डोगरा से दूर रहने को कह दे फिर...।"
"मेरे भाई को देवराज चौहान ने गोली मारी।" साठी ने खतरनाक स्वर में कहा।
"भाड़ में जा।" महाजन के होंठों से निकला--- "तेरे को बात समझ में नहीं आने वाली---।"
"तेरी ये हिम्मत कि मुझसे इस तरह बात करे।" दांत पीसते हुए साठी ने फौरन रिवॉल्वर निकाल ली।
उसी पल मोना चौधरी आगे आ गई।
देवेन साठी और मोना चौधरी की नज़रें मिली।
"अपने पर काबू रख साठी। पहले ही तू मुसीबत में है। ये सब करके अपनी मुसीबत क्यों बढ़ाता है। हमारी कही बात तेरे को समझ में नहीं आ रही तो महाजन का इस लहजे में कहना, सामान्य बात है।"
साठी के चेहरे पर क्रोध नाच रहा था।
उसे रिवॉल्वर निकालते देख, जाफर और बाकी सभी भी वहाँ पहुंचने लगे थे।
"हुक्म साठी साहब?" जाफर कठोर स्वर में बोला। उसकी निगाह इन तीनों पर जा रही थी।
देवेन साठी ने खुद पर काबू पाया और रिवॉल्वर जेब में रखते महाजन से कहा।
"दोबारा कभी मुझसे इस तरह बात मत करना।"
“अगर मुझे पता होता कि तू इस तरह चिढ़ जायेगा तो मैं इस तरह बात ना करता।" महाजन बोला।
देवेन साठी पलटकर अपनी कारों की तरफ बढ़ गया।
बाकी सब उसके साथ चल पड़े।
"जाफर।" साठी ने कहा--- "अपने लोगों को देवराज चौहान के पीछे लगा दे।"
"मैं ऐसा कर चुका हूँ।" जाफर ने कहा।
"मेरे बीवी-बच्चों का पता कर कि उन्हें कहाँ रखा है इन लोगों ने। देवराज चौहान की पत्नी ने मेरी कमजोरी पर हाथ रख दिया वरना आज देवराज चौहान, जगमोहन और खुदे ना बचते। अब तक मर चुके होते।" साठी मौत भरे स्वर में कह रहा था--- "इस बात की मुझे बहुत तकलीफ हो रही है, लेकिन अपने परिवार की खातिर मुझे सब करना पड़ा।"
■■■
मोना चौधरी, पारसनाथ, महाजन, साठी और उसके आदमियों को कारों में बैठकर जाते देखते रहे। तीनों के चेहरों पर गम्भीरता ठहरी हुई थी। महाजन उस खामोशी को तोड़ते हुए कह उठा।
"साठी ये मानने को तैयार ही नहीं कि तब देवराज चौहान और जगमोहन से विलास डोगरा ने काम लिया था। वो कठपुतली के नशे में थे।"
"वो ठीक कहता है कि उसके भाई को गोली देवराज चौहान ने मारी। वो आसानी से दूसरी बात क्यों सुनेगा।" मोना चौधरी ने कहा--- "उसकी नज़रों में उसके भाई का हत्यारा देवराज चौहान ही है।"
"जो कुछ भी हुआ था, वो वास्तव में बहुत अजीब और खतरनाक रहा था।" पारसनाथ ने कहा।
“अब हमें ये देखते रहना है कि देवराज चौहान क्या करता है।" मोना चौधरी ने कहा--- "मेरे ख्याल में वो विलास डोगरा की तरफ बढ़ेगा। हमें इस मामले का अंत देखना है कि अब क्या होगा। बेला ने साठी के परिवार को कैद करके, साठी के पांवों को बांध दिया है। परन्तु साठी भी ज्यादा देर बंधे रहने वाला नहीं। हो सकता है वो जल्दी ही अपने परिवार को तलाश कर ले। ऐसा हो गया तो साठी का बुरा कहर देवराज चौहान पर टूट पड़ेगा आने वाले कल में कुछ भी हो सकता है।"
तभी उन्हें गली में से बाहर आते देवराज चौहान, जगमोहन, नगीना, खुदे, सरबत सिंह दिखे और दूसरी तरफ से बांकेलाल राठौर और रुस्तम राव आकर उनसे आ मिले। रुस्तम राव के हाथ में दोनों ब्रीफकेस देखकर पारसनाथ के होंठ सिकुड़े।
“वो दोनों ब्रीफकेस रुस्तम राव के पास कैसे।" महाजन बोला--- "वो तो बिल्ला के पास थे।"
"बिल्ला का काम कर दिया लगता है इन्होंने।” पारसनाथ ने कहा--- "उसने जो किया, वैसी ही सजा दी होगी इन्होंने ।"
"लेकिन ये तो बिल्ला को पहचानते नहीं थे।" महाजन ने पारसनाथ को देखा।
"मैंने उन्हें बताया था कि बिल्ला किधर खड़ा है।" पारसनाथ ने सपाट स्वर में कहा।
"ओह ।"
तब तक देवराज चौहान की निगाह, इधर इन पर पड़ चुकी थी। फिर वो इसी तरफ बढ़ आया।
"हमारे पास क्यों आ रहे हैं ये?" महाजन कह उठा।
मोना चौधरी गम्भीर, शांत सी देवराज चौहान को आते देख रही थी।
देवराज चौहान पास पहुंचा और तीनों को देखने के बाद, गम्भीर स्वर में मोना चौधरी से कहा।
"मैं नहीं जानता कि मैंने कब तुम्हें मारने की कोशिश की। तब का मुझे कुछ भी याद नहीं है। विलास डोगरा ने मुझे और जगमोहन को खास तरह का नशा दे रखा था। परन्तु बाद में मुझे पता चला कि मैंने ऐसा कुछ किया है। मेरे से तुम्हें जो तकलीफ हुई, उसके लिए माफी चाहता हूँ।"
मोना चौधरी शांत सी, देवराज चौहान को देखती रही।
देवराज चौहान पलटा और वापस चला गया।
“इस पर नज़र रखकर हमें देखना है कि ये क्या करता है अब ।" मोना चौधरी गम्भीर स्वर में कह उठी।
■■■
वे सब बंगले पर पहुंचे।
देवराज चौहान और जगमोहन को अब जैसे होश आ रहा था। उस नशे से उभरने के बाद उन्होंने खुद को मुसीबत में पाया था और अब उन्होंने चैन से भरी सांस ली थी कि वे खुले घूम सकते हैं। परन्तु वो ये भी जानते थे कि उनकी ये आजादी उधार की है। जब तक देवेन साठी का परिवार उनके कब्जे में है, तब तक ही साठी चुप है। परन्तु उन्हें एक हद से ज्यादा कब्जे में नहीं रखा जा सकता। साठी के सब्र का पैमाना कभी भी फूट सकता है।
देवराज चौहान ने नगीना से पूछा।
"साठी का परिवार कहां है?"
"सरबत सिंह के घर ।"
देवराज चौहान ने सरबत सिंह को देखकर गम्भीर स्वर में कहा।
"तुम मेरे बहुत काम आ रहे हो।"
"तुम भी तो मेरे बहुत काम आये थे।" सरबत सिंह कह उठा।
"लोग भूल जाते हैं।" जगमोहन बोला--- “खुशी की बात है कि तुम्हें याद तो है।"
"मैं भूलने वालों में से नहीं हूँ।"
"तुम ।" देवराज चौहान ने नगीना से कहा--- "साठी के परिवार के पास जाओ। बाकी का मामला देखना मेरा काम है।"
"मैं नहीं जा सकती। सरबत सिंह भी नहीं जायेगा।” नगीना बोली--- "देवेन साठी अब सतर्क हो चुका है वो हम पर नज़र रखवा रहा होगा कि हम कब उस जगह पर जाते हैं, जहां उसका परिवार है।"
देवराज चौहान के होंठ भिंच गये।
"भाभी ठीक कह रही हैं।" जगमोहन बोला--- "साठी को अपनी पत्नी-बच्चे मिल गये तो वो हमको नहीं छोड़ने वाला। वैसे भी वो ज्यादा देर चुप नहीं बैठेगा। हमारे पास वक्त कम है। हमें विलास डोगरा को निपटा देना चाहिये।"
देवराज चौहान के चेहरे पर दरिन्दगी मचल उठी।
“भाभी, सोहन लाल, वहां उन सब लोगों को संभाल लेगा?" जगमोहन ने पूछा।
"उसके लिए कुछ दिक्कत तो जरूर आयेंगी। वहां पाटिल भी है।" नगीना ने सोच भरे स्वर में कहा--- "उसे सामान लाने बाहर भी जाना पड़ेगा। उसके पास एक और कोई होता तो ज्यादा ठीक था।"
"आपुन उधर जाईला बाप।" रुस्तम राव कह उठा।
सबकी निगाह रुस्तम राव की तरफ उठी।
"आपुन को घर का पता बताइला कि वो किधर होईला।" रुस्तम राव ने कहा--- "आपुन सीधा उधर नेई जायेला इधर से ऑफिस और उधर से अपने घर पर रात टिकेला सुबह फिर ऑफिस पौंचला। उसके बाद सावधानी से उधर पौंचेला आपुन पर कोई नजर भी रखेला ती गच्चा खाईला बाप। आपुन सब फिर करेला बाप।"
देवराज चौहान और जगमोहन की नजरें मिली।
"सोहन लाल भैया के पास रुस्तम का पहुंच जाना ठीक रहेगा।" नगीना बोली--- "अगर ये खामोशी से वहां पहुंचे तो ।"
"आपुन उधर सेफ पौंचेला ।"
"रुस्तम।" जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा--- "अगर तुम्हारे पीछे-पीछे साठी के आदमी भी वहां पहुंच गये तो खेल खत्म हो जायेगा। साठी को अपना परिवार मिलने की देर है कि उसने हमारे पीछे पड़ जाना है।"
"आपुन पर भरोसा करेला बाप। साठी को कुछ भी पता नेई लगेला ।" रुस्तम राव ने दृढ़ स्वर में कहा।
"सरबत भैया, रुस्तम को अपने घर का पता समझा दो।"
सरबत सिंह, रुस्तम राव को लिए कुछ कदम दूर हट गया।
"यो म्हारा बोझा भी हलको करो हो।" बांकेलाल राठौर कह उठा।
"तेरे को क्या हुआ?" जगमोहन बोला।
"अंम कबो से यो दोनों ब्रीफकेसों को उठाये घूमो हो। भोत से नोट भरो हो। यो संभालो ईब।"
"ये कहां से आये?"
"बिल्ला से।"
खामोश खड़ा खुदे हड़बड़ा कर कह उठा।
"बिल्ला ? वो हरामजादा कहां है, सबसे पहले मैं उसे... ।” खुदे ने कहना चाहा।
"वो तो भगवानों के घरों में पौंच के चैनों की बंसी बजायो हो।"
"भगवान के घर?” खुदे नहीं समझा।
"महारे छोरे ने बिल्ला को 'वड' दयो हो।"
"मार दिया?"
"हां वो गद्दारो को उसी की सजा दे दयो हो।"
"हरामजादा।" खुदे दांत भींचकर कह उठा।
"तुम म्हारे को गाली दयो हो ?" बांके लाल राठौर का हाथ मूंछ पर पहुंच गया।
"बिल्ले को दे रहा हूँ। उसने धोखेबाजी कर के हमें साठी के हाथों फंसवा दिया था।" हरीश खुदे ने कठोर स्वर में कहा--- "मरते-मरते बचे हैं हम। साठी तो मुझे घूर रहा था जैसे कच्चा खा जाना चाहता हो मुझे।"
"उसे बातों का थारे को ईब डर लागे हो?"
"रहने दो। तब तो मेरी टांगें जोरों से कांप रही थी।" खुदे ने गहरी सांस ली।
"अभी भी तुम खतरे से बाहर नहीं हो।" जगमोहन बोला--- "साठी कभी भी कुछ भी कर सकता है।"
खुदे सूखे होंठों पर जीभ फेर कर रह गया।
तभी सरबत सिंह और रुस्तम राव वापस पास आ पहुंचे।
"आपुन को सही से सरबत सिंह के घर का पता लगेला बाप ।" रुस्तम राव ने कहा।
"तो तुम अभी यहां से चले जाओ।" देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा--- “सोहनलाल को फोन पर बता देंगे कि तुम उनके पास आने वाले हो। सतर्कता बरतना। अगर साठी के आदमी तुम पर नज़र रखे हों, वहां मत जाना।"
रुस्तम राव वहां से चला गया।
देवराज चौहान ने सिग्रेट सुलगा कर कश लिया। चेहरे पर दरिन्दगी नाच उठी थी।
"हमारे पास वक्त कम है।" जगमोहन क्रोध भरे स्वर में कह उठा--- "अब क्या करने का विचार है तुम्हारा?"
"विलास डोगरा ।" देवराज चौहान के होंठों से गुर्राहट निकली--- "वो हमारा सबसे बड़ा मुजरिम है। हम आराम से जिन्दगी बिता रहे थे और उसने हमें ये कहकर बुलाया कि वो किसी मुसीबत में फंसा है। हमारी सहायता की जरूरत है।" पढ़ें 'सबसे बड़ा गुण्डा'--- "और हमारे वहां पहुंचने पर उसने हमें स्क्वैश में कठपुतली नाम की नशीली दवा मिला कर पिला दी। हम होश खो बैठे और उसके इशारों पर चलने लगे। हमारे द्वारा वो पूरब नाथ साठी और मोना चौधरी से अपनी बेइज्जती का बदला लेना चाहता था। उसने हमें मुसीबतों से भरे कुएँ में धकेल दिया और अपनी इस हरकत को वो मेरे सामने फोन पर शान से स्वीकार भी कर चुका है। विलास डोगरा अब हमारे हाथों से नहीं बचेगा। साठी गलतफहमी में हमारी जान के पीछे है, जबकि उसकी हत्या में विलास डोगरा का ही हाथ है। हमें तो अब उनके द्वारा दिए गये नशे में ये भी नहीं पता था कि हम क्या कर रहे हैं और क्यों कर रहे हैं। पूरबनाथ साठी को मारना है तो मारना है मार दिया। मोना चौधरी को मारना है, ये ही धुन दिमाग में रही और उसके पीछे पड़े रहे। परन्तु वो---।"
"विलास डोगरा पर हाथ डालना मजाक की बात नहीं है।” खुदे ने कहा--- "वो साठी से भी खतरनाक---।"
"इन हालातों में वो हमारे लिए, हमारे सामने कुछ भी नहीं है।" जगमोहन दांत भींचकर कह उठा--- “हमारे पीछे साठी है। वक्त कम है, हमें बहुत तेजी दिखानी होगी विलास डोगरा तक पहुंचने और उसे खत्म करने में।"
"कोशिश करेंगे कि एक बार देवेन साठी से उनका सामना करा दें।” देवराज चौहान सुलगते स्वर में बोला ।
"क्यों?" जगमोहन के होंठों से निकला।
“ताकि साठी को अच्छी तरह पता चल सके कि हम जो कह रहे हैं वो ही सच है।"
“शायद हमें मौका न मिले ऐसा करने का।" जगमोहन गुर्रा उठा--- "मैं विलास डोगरा को देखते ही खत्म कर दूंगा।"
"देवराज चौहान ठीक कह रहा है कि विलास डोगरा और साठी की एक मुलाकात करा देनी चाहिये, जिसमें कि डोगरा इस बात को मानेगा कि उसने ही तुम दोनों को नशीली दवा पिलाकर ये सब करने को मजबूर किया।" खुदे कह उठा।
जगमोहन होंठ भींचे हरीश खुदे को देखने लगा।
"जब विलास डोगरा हमारे हाथ लगेगा। तब जो हालात होंगे, वैसे ही करेंगे।" देवराज चौहान कह उठा।
“इस काम में मैं आपके साथ रहूंगी।" नगीना कह उठी।
"मैं भी।” सरबत सिंह दृढ़ स्वर में कह उठा।
देवराज चौहान ने दोनों को देखा।
"म्हारे को कार्य को छोड़ो हो।" बांकेलाल राठौर का हाथ मुंह पर जा पहुंचा--- "अंम सबो को 'वड' दयोगे।"
"हम सब मिलकर ये काम करेंगे तो रास्ता लम्बा हो जायेगा।" देवराज चौहान ने कहा-- "हमें अलग-अलग इस काम पर लगना होगा। इससे रास्ता छोटा हो जायेगा। मैं हरीश खुदे और जगमोहन एक साथ काम करेंगे। तुम तीनों एक साथ विलास डोगरा को तलाश करोगे। सिर्फ तलाश ही करना है, उसे कुछ कहना नहीं है। उसका पता लगते ही हमें खबर देना। विलास डोगरा से हम आखिरी मुलाकात करेंगे। बहुत हिसाब चुकाना है उसने। हमसे मिलने से पहले, उसकी जान नहीं जानी चाहिये।"
■■■
"रीटा डार्लिंग।” विलास डोगरा ने रीटा का हाथ पकड़ा और चूमकर बोला--- "तुम तो मेरी जान हो, जान।"
रीटा खिलखिलाकर हंस पड़ी और अदा के साथ मुस्करा कर बोली।
"फिर मजाक करने लगे डोगरा साहब।"
“कसम से। तेरे बिना मैं खुद को अधूरा पाता हूं।" विलास डोगरा ने गहरी सांस ली।
“अब तो आप मुझे बनाने भी लगे।"
“विश्वास नहीं आता तुम्हें।" विलास डोगरा ने उसके हाथ को झटका दिया तो रीटा उसकी गोद में आ गिरी और खिलखिला उठी। डोगरा रीटा के खूबसूरत चेहरे को देखने लगा ।
"ऐसे क्या देख रहे हैं डोगरा साहब।" रीटा ने डोगरा के गाल पर हाथ फेरा।
"तुम दिन-ब-दिन खूबसूरत होती जा रही हो। मेरा दिल लूट लिया है तुमने।"
"बातें बनाना तो कोई आपसे सीखे। आपकी आशिकी देखकर कोई नहीं कह सकता कि अण्डरवर्ल्ड डॉन हैं आप।"
"वो काम अपनी जगह और तुमसे प्यार करना अपनी जगह उम्र पैंतालिस की है, पर दिल पन्द्रह साल के लड़के की तरह जवान है। ये सब तुम्हारा कसूर है। तुम ना होती तो मैं कब का बूढ़ा हो चुका होता। तुमने ही मुझे जवान रखा हुआ है, रीटा डार्लिंग।"
"ऐसी बातें करके तो आप मेरी जान ही निकाल लेंगे डोगरा साहब।" रीटा उंगली से डोगरा की नाक दबाकर कह उठी।
"तेरी जान में तो, मेरी जान अटकी है। उसे कैसे निकलने दूंगा।" विलास डोगरा ने लिपिस्टिक से रंगे रीटा के होंठों को चूमा--- "मैं हमेशा सोचता हूं कि अगर तू ना होती तो मेरा क्या होता।"
"कितनी बार तो कहा है आपसे कि मैं न होती तो कोई दूसरी होती।"
“पर वो मेरी जान ना बन पाती। जो तुझमें है, वो किसी और में ना मिलता।"
"भूल है आपकी। जो मुझमें है, वो ही सब में है। जरा भी फर्क नहीं।" रीटा ने हंसकर कहा।
"तेरा दिमाग हर किसी में नहीं हो सकता रीटा डार्लिंग। खूबसूरत तो तू जी भर के है। लेकिन तेरा तेज दिमाग, जैसे खूबसूरती की काकटेल बनाकर, हर वक्त मेरे सिर पर सवार रहता है। मेरे ज्यादातर काम तूने अपने सिर पर ले रखे हैं। मेरे धंधे का भी तू ख्याल रखती है और मुझे बढ़िया-बढ़िया सलाह देती है। मैं जब भी परेशानी में पड़ता हूं तो तेरे से सलाह लेना नहीं भूलता। तभी तो कहता हूं कि तू ना होती तो मैं कब का बरबाद हो चुका होता। तू तो मेरी जान है, जान।"
रीटा पुनः खिलखिला कर हंसी।
"जब तू हंसती है तो तेरे मुंह से फूल झड़ते हैं। तेरे ऊपर के दाँतों की लड़ी मेरी जान ही निकाल देती है। कभी-कभी तो सोचता हूं कि तू इतनी खूबसूरत क्यों है ।" विलास डोगरा ने गहरी सांस लेकर कहा।
“आपका दिल लगाए रखने के लिये भगवान ने मुझे इतना खूबसूरत बनाया है।"
"आह, जरूर ये ही बात होगी। तेरे बिना तो मैं पागल हो जाता। मेरी सलामती का राज ही तू है। तू ही मेरी जान है, जिन्दगी है और मेरे दिल की धड़कन है। तेरे बिना तो डोगरा बिल्कुल बेकार है।"
"हवा दे रहे हैं मुझे।"
"तेरी कसम रीटा डार्लिंग।" विलास डोगरा ने आंखें बंद करके उसकी छातियों पर सिर रख लिया--- “तू मेरी सांस है। मुझे तेरे से ऑक्सीजन मिलती है और मेरी सांसें चलती हैं। तू मेरे पास है तो मुझे सब कुछ हरा-हरा नज़र आता...।"
“आपको तो अण्डरवर्ल्ड किंग नहीं, शायर होना चाहिये। दीवानों की तरह बातें कर रहे...।"
"तूने मुझे दीवाना बना दिया है रीटा डार्लिंग। आह, कितना अच्छा लग रहा है तेरे सीने में मुंह छिपाकर, लगता है जैसे---।"
तभी विलास डोगरा का मोबाइल बज उठा।
दो पल के लिए वहां चुप्पी छा गई।
विलास डोगरा इस वक्त अपने उसी ठिकाने पर था, जहां वो अक्सर होता था। ये शानदार हॉल कमरा था और फर्श पर कालीन बिछा था। इधर सोफे पड़े थे जिस पर वे खुद मौजूद थे। एक कोने में छोटा-सा खूबसूरत बॉर बना था। दूसरी तरफ डबल बैड लगा था। ज़रूरत की हर वस्तु यहां मौजूद थी। खाने-पीने का सामान रीटा खुद तैयार करके डोगरा को देती थी।
विलास डोगरा ने आंखें खोली और उसके सीने से सिर उठाता बोला।
"कितना अच्छा सपना आ रहा था। सब खराब हो गया देख तो, फोन किसने किया?"
रीटा उसकी टांगों से उठी और सामने सोफे पर पड़े फोन को उठाकर बात की।
"हैलो।"
"डोगरा साहब से बात कराओ।" उधर से आवाज आई।
"बात कीजिये डोगरा साहब।" रीटा ने आगे बढ़कर डोगरा को फोन दिया--- "गोकुल का फोन है।"
डोगरा ने मोबाइल थाम कर बात की।
"बोल गोकुल।"
उधर से गोकुल कुछ बताने लगा ।
विलास डोगरा सुनता रहा।
डोगरा के माथे पर बल पड़ते दिखे। फिर बोला ।
"तू इसी तरह सब मामले पर नज़र रख और मुझे बताता रह।" कहकर डोगरा ने फोन बंद कर दिया।
डोगरा के माथे पर बल देखकर रीटा कह उठी।
"क्या बात हो गई डोगरा साहब?"
"हमें ये जगह फौरन छोड़नी होगी।" डोगरा सोच भरे स्वर में कह उठा--- "देवराज चौहान ये जगह जानता है।"
"वो देवराज चौहान, जिसे आपने चूहा बना दिया ।"
“शेर को चूहा बनाया था, पर लगता है शेर, चूहा नहीं बन सकता शेर, शेर ही रहता है।" विलास डोगरा होंठ सिकोड़कर बोला।
"क्या मतलब?"
"बातें बाद में। हमें वहां से इसी वक्त निकल चलना होगा।"
"ऐसी भी क्या बात है। हमारे आदमी यहां पर हैं। फिर देवराज चौहान तो छिपा बैठा है। देवेन साठी और मोना चौधरी से उसको जान बचने वाली नहीं। वो यहां कैसे आ सकता है।" रीटा ने कहा।
“चाल चल गया है वो।" विलास डोगरा उठता हुआ बोला--- “बाकी बातें बाद में करेंगे।"
रीटा के चेहरे पर गम्भीरता उभरी।
उसने वैन के ड्राइवर दया को फोन किया।
"वैन तैयार रख दया, हम आ रहे हैं।"
वैन मध्यम रफ्तार से सड़क पर दौड़ रही थी। सड़क पर शाम का वक्त होने की वजह से ट्रैफिक बढ़ गया था। वैन के पीछे लगे कैमरे की वजह से, पीछे का दृश्य वैन में लगी स्क्रीन पर आ रहा था। विलास डोगरा की नज़रें उस स्क्रीन पर टिकी थी। चेहरे पर शांत भाव थे। पास ही रीटा बैठी थी। उसका एक हाथ डोगरा की टांग पर था।
“अब तो बताइये डोगरा साहब कि---।"
"रीटा डार्लिंग।" एकाएक विलास डोगरा मुस्कराया और झुककर उसकी गर्दन को चूमा--- "एक पैग बना के दे।"
"अभी लीजिये।” कहकर रीटा उठी और वैन के पिछले हिस्से में चली गई।
डोगरा की निगाह स्क्रीन पर टिकी थी।
पीछे ऐसा कोई वाहन नहीं था जो उनके पीछे लगा दिख रहा हो।
विलास डोगरा ने इत्मिनान से सिग्रेट सुलगाई और कश लिया।
“लीजिये डोगरा साहब।” रीटा पैग लिए पास आ पहुंची।
डोगरा ने स्क्रीन से नज़रें हटाकर पैग लिया और घूंट भरा।
रीटा पुनः पास बैठते कह उठी।
"क्या कोई पीछे है हमारे ?"
"अभी तक तो कोई नहीं।" विलास डोगरा ने मुस्करा कर उसे देखा।
"अब तो बताइये कि बात क्या है।"
"रीटा डार्लिंग।" विलास डोगरा ने सिग्रेट ऐश ट्रे में रखी और रीटा का हाथ थाम लिया--- "मुझे पूरा यकीन था कि देवेन साठी या मोना चौधरी, देवराज चौहान और जगमोहन को कभी भी खत्म कर सकते हैं। हमारा ये सोचना सही भी था। परन्तु देवराज चौहान चाल चल गया, दो घंटे पहले देवेन साठी उस जगह पर जा पहुंचा जहां देवराज चौहान, जगमोहन और खुदे मौजूद थे।"
"तो मर गया देवराज चौहान? जगमोहन भी।"
"देवराज चौहान चाल खेल गया। हरामी बच निकला।" विलास डोगरा ने नाराजगी से कहा।
"ये कैसे हो सकता है।" रीटा के होंठों से निकला।
"हो गया ये। देवराज चौहान अपनी पत्नी और दो-तीन लोगों को इस मामले में पहले ही खींच चुका था, जिनके बारे में हमें नहीं पता था। उन्होंने देवन साठी की पत्नी और दोनों बच्चों को बंधक बना लिया और देवेन साठी को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। इस वक्त देवराज चौहान, जगमोहन और खुदे आजाद घूम रहे हैं।"
"देवेन साठी ने उन्हें नहीं मारा?"
"उसका परिवार देवराज चौहान की पकड़ में है। उसने देवरान चौहान को मारा तो उसका परिवार गया।"
"तो मोना चौधरी तो है। वो उन्हें।"
"मोना चौधरी हमारे बारे में जान गई है, सारा मामला उसे समझ आ गया है जो भी हुआ, उसमें वो देवराज चौहान और जगमोहन की गलती नहीं मानती और वो इस मामले से पीछे हट गयी है।"
"ओह। बुरा हुआ।"
"बुरा क्या, बहुत ही बुरा हुआ। हमारा सारा प्लॉन फेल हो गया।"
"अब देवराज चौहान आजाद है?"
"वो अपने साथियों के साथ अपने बंगले पर जा पहुंचा है।"
"फिर तो देवराज चौहान और जगमोहन हमारे पीछे पड़ जायेंगे।"
"तभी तो हम उस जगह से निकल आये। क्योंकि वो ठिकाना देवराज चौहान जानता है।"
"देवेन साठी के परिवार को उन्होंने कहां रखा है?"
"इस बारे में कुछ नहीं पता।"
"परन्तु इस तरह देवेन साठी कब तक चुप बैठेगा?"
"जब तक, उसे उसकी पत्नी और बच्चे नहीं मिल जाते ।" विलास डोगरा ने घूंट भरा।
“उनके बारे में हम पता लगाकर, साठी तक ये खबर पहुंचा देते !"
"इन हालातों में देवेन साठी के परिवार के बारे में पता लगाना नामुमकिन काम है। उन्हें बेहद सुरक्षित जगह पर रखा गया होगा। वैसे भी हमें इस मामले में हाथ डालने की जरूरत नहीं। हमें देवराज चौहान से खुद को बचाये रखना है। उसकी उम्र ज्यादा लम्बी नहीं है, देवेन साठी का दिमाग कभी भी खराब हो सकता है और वो देवराज चौहान, जगमोहन को मार देगा।"
“अपनी पत्नी बच्चों की परवाह ना करके, वो ऐसा करेगा?"
"वो कुछ भी कर सकता है। नहीं पता कि आगे क्या होगा।"
"और आपका मतलब कि हम देवराज चौहान से बचकर भागते फिरें ?"
"हां।"
"ये तो गलत है कि आप देवराज चौहान से डरने लगे डोगरा साहब ।"
"इसे डरना नहीं कहते रीटा डार्लिंग।" विलास डोगरा मुस्करा कर प्यार भरे स्वर में कह उठा--- "इसे कुछ वक्त बिताना कहते हैं। देवराज चौहान की जिन्दगी, साठी कभी भी खत्म कर सकता है। वो जरूर उस पर नज़र रखे होगा।"
"हम ही क्यों ना देवराज चौहान को खत्म कर दें?"
"हमें अपनी ताकत का प्रदर्शन करने की जरूरत नहीं है। काम वैसे ही हो जायेगा तो हम क्यों कष्ट करें। वैसे भी देवराज चौहान इस वक्त पागल शेर बन चुका होगा। अब वो मेरे को खत्म करना...।"
"देवराज चौहान ने जरूर साठी को आपके बारे में बताया होगा।"
“उसकी बात पर साठी भरोसा करने वाला नहीं।" विलास डोगरा मुस्कराया--- "देवराज चौहान ने पूरबनाथ साठी को खुद गोली मारी थी। साठी उसे ही अपने भाई का हत्यारा मानेगा। वो उनकी बात पर जरा भी विश्वास नहीं करेगा।"
"हालात अचानक ही बहुत बदल गये हैं डोगरा साहब।" रीटा सोच भरे स्वर में बोली।
"कोई बात नहीं। हालात फिर बदल जायेंगे।" विलास डोगरा का स्वर सख्त हो गया--- "देवराज चौहान साठी के हाथों मरेगा।"
"मेरे ख्याल में हमें साठी के परिवार का पता लगाकर, साठी को बता देना चाहिये।"
"साठी इस बारे में कोई कसर नहीं छोड़ेगा। वो देवराज चौहान पर भी नज़र रखेगा और अपने परिवार को भी ढूंढ निकालेगा।"
“और हमें क्या करना होगा?"
"कुछ दिन देवराज चौहान की नज़रों से बचकर रहना होगा। वैसे भी हमारे पास वक्त कहां है। दो दिन बाद तो वैसे भी हमें काम के सिलसिले में हिन्दुस्तान के कई शहरों मे टूर के लिए निकलना है। कई बातें संभालनी है। हमारा पन्द्रह दिन का प्रोग्राम पहले होता है। इतने दिनों में साठी ही देवराज चौहान से निपट लेगा। इस बारे में हमें सोचना ही नहीं पड़ेगा।"
"डोगरा साहब।" रीटा मुस्करा पड़ी--- "आपने कमाल का दिमाग पाया है।"
“रीटा डार्लिंग।। मैं तो तेरे दिमाग का कायल हूं। जैसी तू शानदार, वैसा तेरा दिमाग लाजबाब ।”
“शरारती लहजे में बात करना तो कोई आपसे सीखे।" रीटा खिलखिलाकर हंस पड़ी।
"तू तो मेरी जान लेकर रहेगी।" विलास डोगरा उसके खूबसूरत चेहरे को देखता कह उठा।
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देवेन साठी इस वक्त उस बंगले पर था जहां आरु और बच्चे रहते थे। वो यहां नहीं आता था कि उसका परिवार सुरक्षित रहे। किसी को पता न चले कि उसका परिवार कहां रहता है। बहुत जरूरी काम होने पर आता भी तो रात के अंधेरे में और अंधेरे में ही चला जाता। वहां उसके साथ जाफर भी आया था। उसके आते ही बंगले के नौकर सतर्क दिखने लगे थे।
"जाखड़ कहां है?" देवेन साठी सोफे पर बैठा, एक नौकर से बोला ।
"वो तो मालकिन की तलाश में भागा फिर रहा है।" नौकर ने बताया।
"कब का गया है बंगले से?"
"सुबह से ही।"
देवेन साठी ने सोच भरे ढंग से सिग्रेट सुलगा ली।
“कॉफी बना के ला।" साठी बोला।
नौकर चला गया।
“बैठ जाफर खड़ा क्यों है?" साठी ने कश लेते हुए कहा।
जाफर सोफे पर बैठ गया वो गम्भीर था।
देवेन साठी भी गम्भीर दिख रहा था और गुस्से में भी था। परन्तु अपने गुस्से पर उसने काबू पा रखा था वो वक्त पर देवराज चौहान के करीब पहुंच गया था परन्तु उसकी पत्नी ने वहां पहुंचकर बाजी पलट दी।
साठी को अपने परिवार की चिन्ता थी।
पहले परिवार बाद में देवराज चौहान और जगमोहन की मौत।
परिवार के खातिर ही उसने अपने कदम पीछे हटा लिए थे।
"जाफर।" साठी शब्दों को चबाकर बोला--- "मुझे अपने परिवार की चिन्ता है।"
"ये चिन्ता ज्यादा देर नहीं रहेगी साठी साहब।" जाफर विश्वार भरे स्वर में कह उठा--- "हम उन्हें ढूंढ निकालेंगे।”
"क्या इन्तज़ाम किए हैं?"
“हमारे सब आदमी आपके परिवार की खबर पाने को दौड़े फिर रहे हैं। अण्डरवर्ल्ड में भी ये खबर दे दी है कि जो भी साठी साहब के परिवार के बारे में जानकारी देगा, उसे पांच करोड़ रुपया नकद दिय जायेगा। ये खबर फैलती जा रही है कि देवराज चौहान ने आपके परिवार को कहीं पर कैद कर रखा है। हम जल्दी उन्हें पा लेंगे।"
साठी ने, भिंचे होंठों वाला चेहरा हिलाया।
"देवराज चौहान की पत्नी नगीना कौन है?" साठी ने पूछा।
"मैं नहीं जानता।"
"वो साधारण औरत नहीं है। खतरनाक है। परन्तु उसका नाम पहले कभी नहीं सुना।"
"एक बार आपका परिवार मिल जाये फिर सबको सबक सिखा देंगे।" जाफर ने गुर्राकर कहा--- “उस वक्त गोली में नगीना के साथ सरबात सिंह था। हमारे एक आदमी ने उसका नाम मुझे बताया था।"
"कौन सरबत सिंह?"
“अण्डरवर्ल्ड से ही वास्ता रखता है और अपने लिए भी छोटे-मोटे काम करता है।"
"वो देवराज चौहान को जानता है। तभी मेरे खिलाफ उनकी सहायता को, उसके साथ है। सब रगड़े जायेंगे एक बार आरु और बच्चे मिल जायें। देवराज चौहान ने गलत किया, मेरे परिवार पर हाथ डालकर मुझे रोकने के लिए उसी ने अपनी पत्नी से कहा होगा कि मेरे परिवार पर हाथ डाले। हमारे कामों में परिवार को बीच में नहीं घसीटना चाहिये।" देवेन साठी कठोर स्वर में बोला।
"हमने भी तो हरीश खुदे की पत्नी से कुछ नहीं कहा। हम चाहते तो उसे अपने पास कैद में रख सकते थे।" जाफर ने कहा।
कठोर अंदाज में देवेन साठी ने सिग्रेट का कश लिया।
नौकर आया। कॉफी के दो प्याले रखे और बोला ।
"मालिक रात को खाना खायेंगे ?" "
"हां।" सोचों में डूबे साठी ने सिर हिलाया।
नौकर चला गया तो जाफर ने गम्भीर स्वर में कहा।
"कुछ बातें मेरी समझ में नहीं आ रही साठी साहब।"
"क्या?" साठी ने उसे देखा।
"देवराज चौहान ये क्या कहता है कि विलास डोगरा ने उसे नशे में रखकर उससे ये काम कराया है।"
"हरामजादा बकवास करता है।" देवेन साठी गुर्रा उठा ।
"लेकिन उसकी बात में कुछ तो होगा।"
"क्या मतलब?"
"आपके परिवार को कैद करके, उसने सिर्फ आजादी हासिल की है और कोई शर्त नहीं रखी। जबकि वो ये बात भी जानता है कि ये आजादी लम्बे समय के लिए नहीं है। वक्ती तौर पर है। उनकी कैद में, अपने परिवार को ढूंढ सकते हैं, या फिर गुस्से में आकर अपने परिवार को एक तरफ करके उनकी हत्या करके ये सब खत्म कर देंगे।"
"तुम कहना क्या चाहते हो?"
"देवराज चौहान जो कहता है उस पर एक बार सोचना चाहिये कि---।"
"देवराज चौहान ने मेरे भाई को गोली मारी?" गुर्रा उठा साठी।
"हां, ये तो जग जाहिर बात है।"
"तो बात खत्म। मुझे देवराज चौहान से अपने भाई की मौत का बदला लेना है।" साठी ने दांत भींचकर कहा।
"हमारा हर कदम आपके साथ है।" जाफर ने फौरन कहा।
"देवराज चौहान पर नज़र रखने को, अपने कितने आदमी लगा रखे हैं।"
"सात-आठ आदमी हैं। वो हमारी नज़रों से दूर नहीं जाने वाला।"
"उसकी पत्नी और दूसरों पर भी नजर रखो। वो कभी भी वहां जा सकते हैं, जहां मेरा परिवार कैद है।"
"सब पर नज़र है। इन सब कामों को मैं संभाल रहा हूं। जब कभी ऐसा हुआ तो हमें फौरन पता चल जायेगा।" जाफर ने सोच भरे स्वर में कहा--- "परन्तु वो जरूर ये बात जानते होंगे कि हम उन पर नज़र जरूर रखेंगे। ऐसे में वो उस तरफ नहीं जायेंगे, जहां पर आपका परिवार कैद है। वो ऐसी बेवकूफी नहीं करेंगे। शायद कर भी जायें।"
साठी ने कॉफी का प्याला उठाया और घूंट भरा।
"मैं कुछ कहूँ साठी साहब।"
"बोलते रहो।"
“आपको एक बार विलास डोगरा से बात करनी चाहिये कि इस बारे में वो क्या कहता है।"
"मेरा विलास डोगरा से क्या मतलब। ये मामला अलग है।"
"परन्तु देवराज चौहान कहता है, इस मामले का विलास डोगरा से सम्बंध है। देवराज चौहान के पास आपका परिवार बंधक है लेकिन उसने आप पर जोर नहीं डाला कि आप उसकी बात मानें। उसने साधारण तौर पर अपनी बात रखी। उसके बाद खत्म। परन्तु आपको एक बार विलास डोगरा से बात जरूर करनी चाहिये।"
साठी जाफर को देखने लगा फिर सिर हिलाया। बोला।
"देवराज चौहान ने मेरे भाई को शूट किया। इसमें विलास डोगरा कहाँ से आ गया?"
"वो कहता है विलास डोगरा के इशारे पर उसने ऐसा---।"
"ऐसा कहकर वो अपनी चाल खेल रहा है। वो चाहता है विलास डोगरा के साथ मेरा पंगा खड़ा हो जाये और इसका फायदा उसे मिले। मैं देवराज चौहान की चाल में फंसने वाला नहीं। विलास डोगरा का इस मामले में कोई मतलब नहीं है। साठी ने दृढ़ स्वर में कहा--- “सब समझ रहा हूं देवराज चौहान का खेल।"
जाफर ने कुछ नहीं कहा और कॉफी का प्याला उठा लिया।
सोचों में डूबे देवेन साठी ने कॉफी समाप्त की और नगीना को फोन किया।
"हैलो।" नगीना की आवाज कानों में पड़ी।
“मेरी पत्नी और बच्चों को कोई तकलीफ मत देना।" देवेन साठी ने बेहद शांत स्वर में कहा।
“तुम देवराज चौहान से जितना दूर रहोगे, वो उतने ही खुश रहेंगे।” नगीना ने उधर से कहा।
साठी के चेहरे पर कसाव आ गया।
"मेरे परिवार को कोई तकलीफ पहुंची तो ये तुम लोगों के लिए बुरा होगा।"
"वो मजे में है।"
"ये बात भी कान खोलकर सुन लो कि ये सब ज्यादा देर नहीं चलने वाला। एक वक्त से ज्यादा मैं चुप नहीं बैठ सकता। मुझे मेरा परिवार वापस चाहिये।" देवेन साठी के होंठों से गुर्राहट निकली।
"देवराज चौहान विलास डोगरा को सजा के तौर पर मारना चाहता है। जब वो मरेगा, उसी दिन तुम्हें तुम्हारा परिवार मिल जायेगा।"
“देवराज चौहान के लिए मैं विलास डोगरा को खत्म कर दूं?" साठी बोला।
"भूलकर भी ऐसा मत करना।" नगीना की आवाज कानों में पड़ी--- "ये देवराज चौहान का मामला है और वो ही निपटेगा। तुम्हें बीच में दखल देने की जरूरत नहीं। बेहतर होगा कि तुम चुपचाप बैठे रहो।"
साठी कसमसा कर रह गया ।
“मैं आरु से बात करना चाहता हूं।" साठी बोला।
"मैं तुम्हारे पास आऊंगी और तुम्हारी पत्नी से बात करा दूंगी।"
"तुम मुझे वहां मौजूद किसी आदमी का नम्बर क्यों नहीं दे देती कि मैं जब चाहूं उससे बात कर लूं।"
"ज्यादा चालाक बनने की कोशिश मत करो साठी। इस वक्त चुपचाप बैठना ही तुम्हारे लिए अच्छा है।" उधर से नगीना ने शांत स्वर में कहा और फोन बंद कर दिया।
देवेन साठी के चेहरे पर कठोरता नाचती रही।
■■■
हंसराज, भीम प्रसाद और प्रेम लाल ।
ये तीनों सरबत सिंह के करीबी थे। करीबी इस तरह कि छोटे-मोटे काम सरबत सिंह इनके साथ मिलकर ही किया करता। छः-सात सालों से ये इकट्ठे ही काम कर रहे थे। इस ग्रुप में हंसराज, हंसा के नाम से जाना जाता था तो भीम प्रसाद, जंबाई के नाम से और प्रेमलाल को सब प्रेमी कहते थे।
भीम प्रसाद को जंबाई इसलिये कहते कि वो हमेशा दूसरों से अपने काम करवाने की चेष्टा करता रहता, जबकि खुद कुछ नहीं करता। इसी वजह से उसके साथी उसे जंबाई कहने लगे थे। ये सब इकट्ठे काम करते और ईमानदारी से मिले माल का बंटवारा करते। रुपये-पैसे को लेकर कभी भी तनातनी नहीं होती थी। तीनों के पास रहने का अपने ठिकाने थे और इन सब में सरबत सिंह ही ऐसा था, जिसके पास मकान था। अक्सर ये लोग इकट्ठे होते, बेशक काम न भी हो। बैठकर खाते-पीते और बातें करते। फुर्सत के दिनों में इनकी पार्टी रात भर चलती थी।
हंसराज यानी कि हंसा अपने दो कमरे के मकान में मौजूद था, जो कि कच्ची कालोनी में बना था। दो साल पहले हंसा को एक काम में पांच लाख रुपया हाथ लग गया था तो उस पैसे से उसने मकान ले लिया था कि रहने की जगह पास में जरूर होनी चाहिये। इस वक्त शाम के छः बजे थे और हंसा के दो कमरे के मकान के दरवाजे खुले हुए थे। कमरे के बाहर खिड़की में लगा कूलर धड़-धड़ की आवाज के साथ चल रहा था और हंसा कमरे के भीतर कूलर की हवा के सामने चारपाई पर आंखें बंद किए लेटा था। उसने लुंगी और बनियान पहन रखी थी। बयालीस की उम्र थी, शरीर सामान्य था ना मोटा ना पतला। सिर के बाल काले थे। किसी से माल छीनकर दौड़ने में उस्ताद था वो। कभी छीना-झपटी, राहजनी किया करता था, परन्तु जब से जंबाई, प्रेमी, सरबत सिंह के साथ हुआ तो छोटे काम छोड़ दिए थे और कुछ बड़े काम ही करते। जिसमें कुछ लाख रुपया हाथ लगे और एक-दो-चार महीने आराम से कटें।
बहरहाल किसी तरह खींच-खांचकर उनका वक्त निकल रहा था। उनके हिसाब से तो बढ़िया ही चल रहा था। पन्द्रह दिन पहले उन चारों ने एक जगह हाथ मारा था और हर एक के पल्ले एक लाख बीस हजार पड़ा था और इस वक्त सबका खर्चा-पानी मजे से चल रहा था। चार-पांच दिन से तो चारों में से कोई भी एक-दूसरे से मिला नहीं था। वे चारो ज्यादा से ज्यादा चार-पांच दिन ही एक-दूसरे से अलग रहते थे उसके बाद फिर एक बार मिल बैठते। खाते-पीते। इसी तरह मजे से इनकी जिन्दगी दौड़ रही थी।
तभी हंसा के कानों में फट-फट की आवाज पड़ी।
"आ गया साला जंबाई।" उसी तरह पड़े हंसा बड़बड़ा उठा।
फट-फट उसके मकान के दरवाजे के बाहर बंद हो गई। ये जंबाई की मोटर साइकिल की आवाज थी। जिसे वो बड़े प्यार से रखता था, परन्तु साइलेंसर की आवाज ऐसी थी कि पूरे मोहल्ले को पता चला जाता था कि जंबाई आ गया ।
हंसा वैसे ही लेटा रहा।
चंद पलों बाद भीतर प्रवेश होने की कदमों की आहट उसे सुनाई दी तो उसने फौरन अनुमान लगाया कि ये दो जोड़ी कदमों की आवाजें हैं तो हंसा ने आंखें खोलकर देखा।
जंबाई के साथ प्रेमी भी था।
"आराम हो रहा साले।" जंबाई बोला--- "चल, उठकर हमारे लिए चाय बना।"
"चाय सुबह से मैंने अपने लिए नहीं बनाई तो तेरे लिए क्यों बनाऊंगा।" हंसा करवट लेकर बोला।
"उठ जा। बहाने मत लगा।" जंबाई ने प्लास्टिक की दो कुर्सियां खींचकर करीब की और एक पर बैठता कह उठा---- "हमने रास्ते में नहीं पी, सोचा तेरे हाथ की चाय पिएंगे। क्यों प्रेमी?"
"हां-हां क्यों नहीं।" प्रेमी ने फौरन सिर हिलाया--- “पर रास्ते में चाय वाला तो दिखा नहीं।"
जंबाई ने प्रेमी को घूरा।
प्रेमी दांत दिखाने लगा।
"तू हमेशा बात का सत्यनाश किया कर। साले तेरे को रास्ते में चाय पीने को कहा नहीं था।"
"कहा होगा, मैंने कब मना किया है। पर मैंने सुना नहीं था।" प्रेमी ने पुनः दांत दिखाये।
"उल्लू का पट्ठा।" जंबाई ने तीखे स्वर में कहा।
“उल्लू का पट्ठा होगा तेरा बाप।” प्रेमी बराबर उसे दांत दिखा रहा था।
हंसा मुस्करा दिया।
"सिग्रेट कहां है?" जंबाई ने हंसा से पूछा।
"उधर टेबल पर पड़ी है।"
जंबाई ने उठकर सिग्रेट का पैकिट और माचिस उठाई और वापस कुर्सी पर आ बैठा।
"सरबत सिंह नहीं आया ?" हंसा बोला--- “उसे भी बुला लेते।"
"तेरे से खास बात करने आये हैं।" प्रेमी बोला । उसके दांत दिखने अब बंद हो गये थे।
"क्या?"
ऐसे नहीं।" सिग्रेट सुलगाकर जंबाई बोला--- "पहले चाय बना।"
"जाकर खुद बना ले।" हंसा ने कहा फिर प्रेमी से बोला--- “बात बता।"
"मैं बताऊंगा।" जंबाई फौरन बोला।
"तू हर बात में मत कूदा कर जंबाई। प्रेमी ने उसे घूरा--- "ये मेरा आइडिया था।"
"ठीक है तू ही बता।" जंबाई ने सिर हिलाया।
"तू चाय बना तब तक।"
"मैं क्यों बनाऊं ।" जंबाई ने मुंह बनाया--- "मैं क्या यहां चाय बनाने आया हूं।"
"हम सब तुझे ठीक ही करते हैं जंबाई कहकर। कभी तो खुद भी काम किया कर।"
“मेरी आदत नहीं है ऐसे काम करने की।"
"खाने-पीने को पहले आ जाता है।"
“वो मेरी आदत है।" जंबाई मुस्करा पड़ा।
"कीचड़ के नाले में धक्का दूंगा। देख लेना एक दिन ।"
"तुझे साथ लेकर गिरूंगा, धक्का देकर देख ले।" जंबाई हंस पड़ा।
“कमीना ही बना रहियो। इंसान मत बनना कभी।"
"इंसान नहीं हूं तो तेरे को क्या नज़र आता हूं।" जंबाई ने व्यंग से कहा।
हंसा शांत-सा दोनों को देखे जा रहा था।
जब दोनों का पेट भर गया तो हंसा बोला।
"क्या खास बात है ।"
"देखा जाये तो खास बात है। ना समझो तो प्यारे कुछ भी नहीं है बात में।" प्रेमी बोला ।
हंसा प्रेमी को देखता रहा।
खामोश बैठा जंबाई सिग्रेट के कश लेने लगा।
"सरबत सिंह ने हमें कई बार छाती ठोककर बताया है कि उसने डकैती मॉस्टर देवराज चौहान के साथ छोटा-सा काम किया था।"
"ये तो पुरानी बात हो गई।"
"इतनी भी पुरानी नहीं। छः-आठ महीने हो गये होंगे।" प्रेमी बोला।
"तो?"
"मैं ये कहना चाहता हूँ कि सरबत सिंह का वास्ता देवराज चौहान से तो है ही।"
"आगे बोल।"
"पता चला है कि देवराज चौहान ने देवेन साठी की पत्नी और बच्चे का अपहरण कर लिया है।"
"देवेन साठी और देवराज चौहान में पंगा पड़ा हुआ है। मैं जानता हूँ। दस-बारह दिन पहले या हफ्ता पहले देवराज चौहान ने पूरबनाथ साठी की गोली मारकर हत्या कर दी थी। इतनी ख़बर तो मुझे भी है।"
"अब देवेन साठी, देवराज चौहान की जान के पीछे है।"
"वो तो होगा ही।"
"देवराज चौहान ने बचने के लिए देवेन साठी के परिवार का अपहरण करके कहीं छिपा दिया है। पता चला है कि देवराज चौहान ने देवेन साठी को धमकी दी है कि अगर उसे कुछ किया तो, उसका परिवार नहीं बचेगा। अब हालात ये है कि देवराज चौहान खुला घूम रहा है और देवेन साठी अपने परिवार की वजह से तिलमिलाया-सा, हाथ पर हाथ रखे बेबस बैठा है। ये खबर आज की ही है।"
"इन बातों से हमारा क्या वास्ता प्रेमी। वो डकैती मास्टर देवराज चौहान है और वो अण्डरवर्ल्ड किंग...।"
"बात तो सुन लो।"
“सुना।”
"देवेन साठी ने पांच करोड़ का इनाम रखा है जो उसके परिवार की जानकारी देगा।"
"मतलब कि जो उसे ये बतायेगा कि देवराज चौहान ने उसके परिवार को कहां पर रखा है।" हंसा बोला।
“सही समझा तू ।"
"कहीं तेरे दिमाग में ये तो नहीं कि पांच करोड़ के लिए हम देवेन साठी के परिवार को ढूंढे।"
"हमें ढूंढने की क्या जरूरत है। अपना सरबत सिंह है ना। वो देवराज चौहान को जानता है। सरबत सिंह से कहते हैं कि देवराज चौहान से मिलकर वो किसी तरह देवेन साठी के परिवार के बारे में पता करे।"
"सरबत सिंह करेगा ऐसा?"
"क्यों नहीं करेगा। पांच करोड़ का सवाल है। काम बन गया तो सवा-सवा करोड़ हर एक को मिलेगा।"
"मुझे नहीं लगता सरबत सिंह इस काम को राजी हो।"
"क्यों?"
"देवराज चौहान ने उसे, उसकी बहन की शादी के लिए पैसे दिए थे। ऐसे में वो देवराज चौहान से गड़बड़ नहीं करेगा।"
"तेरे को ज्यादा पता है कि वो ऐसा करेगा कि नहीं।" प्रेमी ने नाराजगी से कहा।
हंसा ने जंबाई को देखा, जिसकी सिग्रेट खत्म होने को थी।
“अब तू बोल जंबाई।" प्रेमी ने कहा।
"तू चाय बनाकर ला।" जंबाई बोला।
"चाय छोड़, शाम हो गई है, अभी बोतल खोलेंगे।" प्रेमी ने कहा।
“ठीक है। बोतल लेकर आ ।"
“पहले इस बारे में हंसा से बात कर। ये कहता है सरबत सिंह नहीं मानेगा ऐसा करने को।"
"पांच करोड़ का मामला है। वो जरूर मानेगा।"
"तो उससे बात करते।" हंसा ने सोच भरे स्वर में कहा।
“फोन किया था उसे। फोन का स्विच ऑफ कर रखा है उसने।" जंबाई ने कहा।
"वो फोन क्यों बंद करेगा। फोन तो वो तब बंद करता है, जब वो कोई खास काम कर रहा हो।" हंसा बोला---- “हमारे बिना वो कोई खास काम करेगा नहीं। करेगा तो कम से कम हमें खबर तो होगी कि वो कुछ कर रहा है।"
"जो भी हो उसका फोन बंद है।"
"क्या पता अब खुल गया हो।" हंसा ने तकिये के नीचे से मोबाइल निकाला और सरबत सिंह का नम्बर मिलाने लगा।
"तू बोतल ले आ प्रेमी।" जंबाई बोला।
“मैं क्यों लाऊं, तू ला।"
"मेरी मोटर साइकिल ले जा। दस मिनट में ले आयेगा।" जंबाई ने दांत दिखाये।
"तू खुद कोई काम करता है।"
"खाने-पीने के काम तो मैं ही करता...।"
"मैं तो नहीं लाने वाला।" प्रेमी ने सिर हिलाया--- "तू ही लाएगा।"
"पैसे में दे देता...।"
"वो तेरे को मैं दे दूंगा।" प्रेमी ने कड़वे स्वर में कहा--- "पर लायेगा तू ।"
तभी हंसा कान से फोन हटाता बोला।
"सरबत सिंह के फोन का स्विच ऑफ आ रहा है।"
"साला, हमें बताये बिना किसी काम में तो नहीं लगा वो।" जंबाई बोला
"हो सकता है।" प्रेमी ने कहा।
"उसके घर जाना पड़ेगा।" हंसा ने कहा।
"क्या पता वो घर पर भी ना मिले। या हो सकता है फोन बंद करके इन दिनों आराम कर रहा हो।" प्रेमी हंसा।
"उसका घर दूर पड़ता है।" जंबाई ने कहा--- “आज तो पीने का मन है। कल सुबह मैं उनके घर जाऊंगा।"
"अभी क्यों नहीं।"
"इतनी भी जल्दी क्या है प्रेमी। मैं...।"
"पांच करोड़ का सवाल है।" प्रेमी ने उसे घूरा--- "तू आज का काम कल पर छोड़ रहा है। ऐसा मौका बार-बार हाथ नहीं आयेगा। तेजी दिखा, तेजी।"
"कल सुबह उठते ही सरबत सिंह के घर पहुंच जाऊंगा। पक्का...।"
प्रेमी ने हंसा को देखकर कहा।
"समझा इसे।"
"जल्दी क्या है।" हंसा सोच भरे स्वर में बोला--- "सरबत सिंह से कल बात हो जायेगी।"
"सुन लिया।" जंबाई ने प्रेमी को देखा--- "मेरे और हंसा के विचार मिलते हैं जा बोतल ला ।"
"वो तो तू ही लायेगा। मैं नहीं जाने वाला।" प्रेमी ने पक्के स्वर में कहा।
“बोतल रखी है मेरे पास।" हंसा कह उठा--- "पीने का शौक है तो बोतल रखना भी सीखो।"
"सुना।" प्रेमी ने जंबाई को घूरा।
"ये बात वो तेरे से कह रहा है।" जंबाई ने मुंह बनाकर कहा ।
"पूछ ले। वो तेरे से कह रहा है।" प्रेमी ने हाथ आगे बढ़ाया--- "शर्त लगा ले।"
"पहले पी लेने दे। उसके बाद से लगाएंगे।"
"बकवास बंद करो।" हंसा ने दोनों को घूरा--- "मैं देवेन साठी के परिवार के बारे में सोच रहा हूं।"
"क्या?"
"यही कि देवराज चौहान ने उन्हें कहां छिपा रखा होगा। तुम में से कोई देवराज चौहान का ठिकाना जानता है।"
प्रेमी और जंबाई ने एक दूसरे को देखा।
दोनों के सिर इन्कार में हिले ।
"हमें देवराज चौहान को ढूंढ कर उस पर भी नज़र रखनी चाहिये। कभी तो वो वहां जायेगा, जहां उन लोगों को रखा है।"
"मेरे ख्याल में हमें इतने परेशान होने की जरूरत नहीं।" जंबाई बोला--- "सारी समस्या को सरबत सिंह हल कर देगा। वो देवराज चोहान का ठिकाना भी जानता होगा और वो पता भी लगा लेगा कि साठी का परिवार कहां पर है। बहुत ही आसान मौका हाथ आया है। पांच करोड़ कमाने का सवा करोड़ मेरे हिस्से में आयेगा। आज तक मैंने शादी नहीं की कि ढंग के नोटों का जुगाड़ नहीं हो पाया। सवा करोड़ हाथ में आते ही मैं शादी करूंगा और कोई कोई दुकान खोलकर बैठ जाऊंगा। दुकान का सारा काम मेरी बीबी संभाला करेगी और मैं आराम करूंगा।"
"तेरी बीवी दुकान संभालने में लगी रहेगी तो तू कैसे मौज कर लेगा?" प्रेमी कह उठा।
"तेरे को नहीं पता।" जंबाई मुस्कराया--- "मैं कर लूंगा ।"
"तो असली जंबाई बनने को सोच रहा है तू।"
“हां, ससुराल वालों से अपनी खूब सेवा कराऊंगा। मजे में रहूंगा।"
"सुन लिया।" प्रेमी ने हंसा को देखकर कहा--- "ससुराल वालों से सेवा करायेगा अपनी ।"
"तुम दोनों की बेकार की बातों से मुझे कोई मतलब नहीं। मैं तो साठी के परिवार के बारे में सोच रहा हूं कि उसे कहां रखा होगा देवराज चौहान ने।" हंसा ने कहा--- "मुझे ये काम आसान नहीं लगता।"
"क्यों?"
"काम आसान होता तो देवेन साठी पांच करोड़ का इनाम क्यों रखता। देवेन साठी के पास ताकत की कमी नहीं है। काम टेड़ा है। तभी तो उसने पांच करोड़ का इनाम रखा है इस मामले में।"
"काम कितना भी टेड़ा हो।" प्रेमी बोला--- "सरबत सिंह के लिये काम आसान है। वो देवराज चौहान को जानता है और उससे मिलकर पता कर सकता है कि देवेन साठी का परिवार कहां है। ये काम करना सरबत सिंह के लिये मामूली बात है।"
"सुबह जाऊंगा सरबत सिंह के घर ।" जंबाई सिर हिलाता कह उठा--- "अब बोतल खोलो, देर क्यों लगा रहे हो?"
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रात के ग्यारह बज रहे थे।
देवराज चौहान, जगमोहन और खुदे अभी-अभी उस चार मंजिला इमारत के बाहर पहुंचे थे जो कि विलास डोगरा का वो ही ठिकाना था जहां देवराज चौहान और जगमोहन को बुलाकर उसने 'कठपुतली' नाम की नशीली दवा पिलाई थी। कार उन्होंने दूसरी इमारत के पास खड़ी कर रखी थी। सड़क पर ट्रेफिक निकल रहा था। हैडलाइट चमक रही थी।
देवराज चौहान और जगमोहन के चेहरे पर दरिन्दगी नाच रही थी। गुस्से से भरे चेहरे। आंखों में वहशी भाव उनकी हर हरकत से जैसे मौत के भाव टपक रहे थे। जगमोहन के कंधे पर छोटा-सा बैग मौजूद था, जिसमें ग्रेनेड और बम थे।
इमारत के भीतर रोशनी थी।
नीचे का हिस्सा खाली था और वहां कारें पार्क की जाती थी। पूरी इमारत पिलरों पर खड़ी थी। दूसरी और तीसरी मंजिल पर रोशनी हो रही थी और मध्यम सी रोशनियां नीचे पार्किंग वाले हिस्से में फैली थी।
"डर लग रहा है खुदे ?" देवराज चौहान ने खतरनाक स्वर में पूछा।
“त-तुम लोग साथ हो तो डर क्यों लगेगा।" खुदे ने खुद को संभलते हुए कहा ।
"हम भीतर जा रहे हैं।" देवराज चौहान भिंचे स्वर में बोला--- “विलास डोगरा भीतर मिल गया तो आज ही ये मामला खत्म हो जायेगा।"
“ठ-ठीक है।" खुदे के होंठों से निकला।
"तुम बाहर अंधेरे में गेट के पास रिवॉल्वर लिए खड़े रहोगे। फालतू मैग्जीने तुम्हारी जेब में है। भीतर वालों को हम संभाल लेंगे । इस दौरान कोई गेट से निकलकर बाहर भागना चाहे तो उसे तू भागने नहीं देना। शूट कर देना।"
"मैं ऐसा ही करूंगा देवराज चौहान।" खुदे का स्वर सख्त हो गया।
देवराज चौहान और जगमोहन सामने गेट की तरफ बढ़ गये।
खुदे की निगाह उन पर थी और जेब में पड़ी रिवॉल्वर पर उसने हाथ रखा और सिर घुमाकर सड़क की तरफ देखा, जहां से ढेरों ट्रेफिक निकल रहा था फिर वापस गेट की तरफ देखने लगा। देवराज चौहान और जगमोहन वहां पहुंच चुके थे और गेट पर दो आदमी टहलते दिखाई दे रहे थे। खुदे वहीं खड़ा देखता रहा। फिर उसने उन दो आदमियों को गिरते देखा।
खुदे समझ गया कि देवराज चौहान और जगमोहन ने साइलेंसर लगी रिवॉल्वर से उन पर फायर किए हैं। फिर उसने दोनों को गेट खोलकर भीतर जाते देखा तो खुदे ने रिवॉल्वर निकाली और गेट के पास सरक आया। उसके रिवॉल्वर की नाल पर भी साइलेंसर चढ़ा था। भीतर निगाह मारी तो गेट के भीतर की तरफ दो लोग गिरे दिखे।
तभी खुदे का फोन बज उठा।
“मुसीबत।" खुदे बड़बड़ाया और फोन निकालकर बात की--- "हैलो।”
"कैसे हो?" टुन्नी के गहरी सांस लेने का स्वर कानों में पड़ा--- "आ क्यों नहीं जाते।"
"नहीं आ सकता। तेरे को सब पता तो है कि मैं मुसीबत में पड़ा हूं।" खुदे की निगाह गेट से भीतर जा रही थी।
"क्या कर रहे हो?"
खुदे ने हाथ में पकड़ी रिवॉल्वर को देखा फिर कह उठा।
"बाहर सड़क पर टहल रहा हूं।"
"बाहर क्यों निकले। साठी के आदमियों ने तुम्हें देख लिया तो मार देंगे।" टुन्नी का तेज स्वर कानों में पड़ा।
"अब साठी की चिन्ता नहीं है कुछ दिन तो।"
"क्यों?"
“देवराज चौहान की पत्नी ने साठी के परिवार को बंधक बनाकर, कुछ वक्त के लिए उसे चुप रहने को कहा है।"
"सच ?" उधर से टुन्नी खुश हो उठी--- "फिर तो तुम मेरे पास आ सकते हो।"
"इधर बहुत काम है।"
"ऐसा क्या काम है जो तुम अपनी पत्नी के पास भी नहीं आ सकते। कितने दिन हो---।"
"समझा कर टुन्नी। इधर जान को जंजाल पड़ा हुआ है। मैं इस वक्त देवराज चौहान और जगमोहन के साथ विलास डोगरा के ठिकाने पर धावा बोल रहा हूँ। एक मिनट की भी फुर्सत नहीं।"
"अब तुम्हें क्या जरूरत है इन दोनों के साथ रहने...।"
"मेरी प्यारी टुन्नी। समझा कर।" खुदे सब्र के साथ बोला--- "देवराज चौहान ने मुझसे वादा किया है कि ये काम निपटाकर वो डकेती करेगा और मुझे अच्छी खासी रकम मुहैया करायेगा। उन पैसे से हमारे सारे कलेश कट जायेंगे। थोड़ी दिनों की बात है और सब कुछ तुझे पहले भी बता चुका हूं। महीने भर की तो बात है उसके बाद हम चैन से रहेंगे।"
“तेरे बिना मेरा दिल नहीं लगता।" उधर से टुन्नी ने मुंह बनाकर कहा।
"मेरा कहां लगता है, पर काम में फंसा हूं तो उसे भी निपटाना है। देवराज चौहान के साथ डकैती करूंगा तो सारी उम्र का खर्चा एक ही झटके में वसूल हो जाएगा। उसके बाद तो हमेशा तेरे ही पास...टुन्नी एक खुशखबरी सुन।" खुदे एकाएक बोला।
“क्या?"
"बिल्ले का काम हो गया।"
"काम हो गया?"
"मेरा मतलब मर गया। किसी ने उसे मार... ।"
"तूने तो नहीं मारा?"
"मेरे मारने से पहले ही वो किसी और के हाथों मारा गया ।" हरीश खुदे ने कड़वे स्वर में कहा--- "हरामजादे ने बहुत बड़ी गद्दारी की हमारे साथ। देवराज चौहान के बारे में देवेन साठी और मोना चौधरी को एक-एक करोड़ लेकर बता दिया कि हम कहां छिपे हैं?"
“सत्यानाश हो उसका ।"
"वो तो हो गया जैसा काम किया था वैसा ही उसे फल मिला।"
"अच्छा हुआ मेरे पीछे तो हाथ धोकर पड़ा था। बहुत घटिया दोस्त था तुम्हारा।"
"भूल जाओ, मर गया वो।"
"वो मुझे याद ही कब था जो भूलूँ। तू वादा कर कि बीच में वक्त लगा तो तू मेरे पास जरूर आएगा।"
"पक्का आऊंगा।" खुदे ने कहा और फोन बंद करके जेब में रख लिया।
उसी पल उसके कानों में एक धमाकेदार आवाज पड़ी।
खुदे समझ गया किसी ने देवराज चौहान या जगमोहन पर गोली चलाई होगी। परंतु उसके बाद फायर की आवाज नहीं आई तो खुदे ये भी समझ गया कि साइलेंसर लगे रिवॉल्वर बढ़िया काम कर रहे हैं।
हरीश खुदे वहीं पर टिका रहा। रिवॉल्वर हाथ में थी, अंधेरा था। वो सुरक्षित था।
आधा घंटा बीतने पर एक आदमी गेट की तरफ आता दिखा। वो घायल था। लंगड़ा रहा था। उसी पल खुदे सामने आया और उस पर गोली चला दी। 'पिट' की आवाज उभरी और वो गेट के भीतर ही गिर गया। खुदे पुनः ओट में हो गया।
इस तरह खुदे ने सात लोगों को मारा। भीतर से यदा-कदा गोली चलने की आवाज आ जाती थी।
उनके बाहर आने से खुदे को समझते देर नहीं लगी कि देवराज चौहान और जगमोहन ने खासा कोहराम मचा रखा होगा। तभी तो चुहे खुली हवा लेने के लिए बाहर भागे आ रहे हैं।
डेढ़ घंटा बीत चुका था।
खुदे सब्र के साथ ड्यूटी संभाले हुए था।
फिर एक आदमी और भीतर से गेट की तरफ भागता आता दिखा। जबकि खुदे मन ही मन सोच रहा था कि क्या विलास डोगरा भीतर है। भीतर हो तो आज रात ही काम निपट जाएगा। परंतु वो जान लेना चाहता था कि विलास डोगरा भीतर है कि नहीं। उत्सुकता थी मन में। वो रिवॉल्वर थामें फौरन गेट पर आ खड़ा हुआ और भागकर आते आदमी से बोला ।
"रुक जाओ।" इसके साथ ही हरीश खुदे ने उस पर रिवॉल्वर तान दी।
वो आदमी रुका। मध्यम रोशनी में उसका चेहरा ज्यादा स्पष्ट नहीं दिख पा रहा था।
"विलास डोगरा भीतर है?" खुदे ने एक खतरनाक स्वर में पूछा।
"नहीं।" वो घबराया सा कह उठा--- "मुझे जाने दो, मैं...।"
तभी खुदे ने ट्रेगर दबा दिया तो अगले ही पल वो पीछे जा गिरा।
खुदे पुनः ओट में खड़ा होकर भीतर झांकने लगा। ये अच्छा था कि अभी बाहर से कोई भीतर नहीं आया था। कोई आता तो उसके साथ पंगा खड़ा हो जाना था क्योंकि आने वाले ने उसे छिपे, पहले ही देख लेना था।
कुल मिलाकर दो घंटे बाद देवराज चौहान और जगमोहन बाहर आए। अब जगमोहन के कंधे पर वमों वाला छोटा-सा बैग नहीं था। अंधेरे में उनके चेहरे स्पष्ट नहीं दिख रहे थे।
"यहां से चलो, ये बिल्डिंग उड़ने वाली है।" देवराज चौहान के होंठों से गुर्राहट निकली और वो तीनों तेजी से उधर दौड़ते चले गए जहां उन्होंने कार खड़ी की थी वो कार में जा बैठे।
खुदे ने कार स्टार्ट की कार जल्दी से आगे बढ़ी।
वो वहां से कुछ आगे आ गए।
“बस, यहीं रुको।" जगमोहन ने दरिंदगी भरे स्वर में कहा।
खुदे ने सड़क किनारे कार रोकी तो उसकी निगाहें जगमोहन की बाजू पर पड़ी।
"तुम्हारी बांह को क्या हुआ?" खुदे ने पूछा।
"गोली बांह का मांस उड़ाते हुए निकल गई। सब ठीक है चिंता की कोई बात नहीं है।"
"तुम ठीक हो?" खुदे ने पिछली सीट पर मौजूद देवराज चौहान पर निगाह मारी।
"हां।" देवराज चौहान के होंठों से गुर्राहट निकली।
"कितने आदमी थे भीतर ?"
"बीस के करीब होंगे।" जगमोहन बोला--- “सब मारे जा चुके हैं। विलास डोगरा भीतर नहीं था बच गया हरामी ।"
तभी कानों को फाड़ देने वाले धमाके हुए।
एक, दो, तीन, चार, पांच...।
अजीब सी गर्जना जैसी आवाज उभरी, जैसे इमारत हिली या गिरी हो ।
"चलो।" जगमोहन ने होंठ भींचकर कहा।
खुदे ने कार आगे बढ़ा दी।
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