तंग कालोनी में वो दो कमरे का मकान था। देखने पर ऐसा लगता था जैसे वो मकान, जगह न होने पर भी वहां बना दिया हो। पूरी कालोनी ही तंग थी। चार-चार फीट चौड़ी, गंदगी से भरी नालियां दोनों तरफ। सूर्य की धूप तो यहां पहुंचती ही नहीं थी। शाम हो चुकी थी। अंधेरा छाने को था। उस गली में और लोग भी आ-जा रहे थे। कभी-कभार आने-जाने वालों से कंधा और बाँह टकरा जाती।

तीनों एक बंद दरवाजे के सामने रुके।

तुली ने दरवाजे को धक्का दिया तो वो खुल गया।

उन्होंने भीतर प्रवेश किया।

पहला कमरा छोटा-सा था और वहां दो सोफा चेयर और एक फोल्डिंग बिछा था। कोई न दिखा। घर में शांति थी या लगता है घर में कोई नहीं है। तीरथ ने कहा।

तुली कमरे से लगते दूसरे दरवाजे की तरफ बढ़ गया।

उस दरवाजे में प्रवेश करते ही तुली ठिठका।

तीरथ और मन्नू भी आ पहुंचे।

तीनों की निगाहें कमरे में फिर रही थी। कमरे में व्हिस्की की स्मैल फैली हुई थी।

"लगता है साले ने तगड़ी पार्टी मनाई है।"

उस कमरे में डबल बेड था। पास में रखा टी.वी. टूट कर नीचे गिरा पड़ा था।

कमरे की हालत अस्त-व्यस्त थी। दीवार पर काफी बड़ा आईना लगा रखा था जो कि इस वक्त टूट कर कमरे में बिखरा पड़ा था। बेड पर दो शराब की बोतल मौजूद थी। एक पूरी खाली और दूसरी करीब आधी भरी हुई थी। साथ ही खाने-पीने का कुछ सामान बिखरा हुआ था। राघव बेड पर टांगे फैलाए औंधे मुंह पड़ा था। टांगे फैली हुई थीं। एक बाँह बेड से नीचे लटक रही थी।

तुली ने कमरे के भीतर कदम रखा तो दाएं बाएं से मन्नू और तीरथ भी भीतर आ गए।

"ये है?" तीरथ ने पूछा।

तुली ने सिर हिलाया।

"ये तो शराबी लगता है। तुम जो काम इससे लेना चाहते हो, वो कर पाएगा?" तीरथ ने तुली को देखा।

"ये इस वक्त तकलीफ में है।" तुली ने कहा।

"कैसी तकलीफ?"

"दस दिन पहले इसने 60 लाख रुपये किसी से लूटे थे। साथ में इसका छोटा भाई भी था।"

"छोटा?"

"सिर्फ दो साल छोटा।"

"फिर?"

"कुछ लोगों को पता लग गया कि इनके पास पैसे हैं तो तीन दिन पहले उन्होंने इनसे 60 लाख हथियाने के लिए इनके घर यानी कि यहीं पर आ पहुंचे। तब राघव तो घर पर नहीं था, परंतु छोटा भाई पवन घर पर ही था। उन लोगों ने पवन की हत्या कर दी और 60 लाख लेकर निकल गए। इसे अपने भाई की मौत सता रही है। दोनों में बहुत प्यार था। दो दिन से ये पागलों की तरह उन लोगों को तलाश करता रहा, जिन्होंने इसके भाई को मारा है, परंतु उनके बारे में कोई खबर नहीं मिली और आज सुबह से ही ये शराब पीने, सब कुछ भूलने में लग गया।"

"तुम कैसे जानते हो ये सब?" मन्नू बोला।

"पूछताछ करके ये बातें पता चलीं।"

"उन लोगों के बारे में पता है। जिन्होंने इसके भाई को मारा?"

"नहीं, उनके बारे में मैं कुछ नहीं जानता।"

"इस हालत में तुम्हारे काम का साबित होगा? ये तो अपने भाई की मौत के गम में डूबा है।"

"ये काम का है।" तुली ने विश्वास भरे स्वर में कहा--- "इसे होश में लाओ।"

"कैसे?"

"जैसे शराब में बेहोश बंदे को, होश में लाया जाता है। नहीं जानते तो ये काम मुझे करना पड़ेगा।"

मन्नू और तीरथ, राघव को होश में लाने की कोशिश करने लगे।

तुली ने फोन लगाया और बात की।

"मुझे एक कैमरा चाहिए ताकि पासपोर्ट के लिए तस्वीरें ले सकूं। बापू लेन पर कैमरा ले आओ और मुझे फोन कर देना। मैं आ जाऊंगा।" कहकर तुली ने फोन बंद करके जेब में रखा तो मन्नू कह उठा।

"पहले इस राघव से बात तो कर लो। क्या पता ये तुम्हारे काम के लिए तैयार न हो।"

"तैयार हो जाएगा।"

"इतने विश्वास के साथ कैसे कह सकते हो?"

"बीस लाख कम नहीं होते।"

"लेकिन इसका ताजा-ताजा भाई मरा है और ये दुख में है तो...।"

"मरना-जीना, लगा रहता है।" तुली ने शांत स्वर में कहा--- "और काम भी चलते रहते हैं। इसे इतना होश में ले आओ कि बात कर सके। समझ सके।"

■■■

तुली कैमरा ले आया था।

डेढ़ घंटे की कोशिशों के बाद तीरथ और मन्नू, राघव को होश में लाने में सफल हो सके, परंतु व्हिस्की का असर अभी भी उसके चेहरे और मस्तिष्क पर था, फिर भी वह सुनने-समझने और सोचने के लायक हो गया था।

"कौन हो तुम लोग?" राघव की आवाज में नशा भरा था।

"मैं तुली हूं।"

"क्या तुमने मेरे भाई को मारा?" राघव गुर्रा उठा।

"नहीं, परंतु पवन की मौत का अफसोस है मुझे।" तूली का लहजा सामान्य था।

"मुझे सोने दो।" राघव की आंखें बंद-सी होने लगीं।

"होश में आओ। मैं तुम्हारे लिए काम लाया हूं।"

"नहीं करना मुझे काम, सोने दो।" कहकर वह बेड पर पुनः जा लेटा। आंखें बंद हो गईं।

"इसे खड़ा करो, फर्श पर।"

तीरथ और मन्नू ने राघव को उठाया और फर्श पर खड़ा कर दिया।

"ये क्या कर रहे हो। मैं मार दूंगा तुम्हें।" राघव नशे और गुस्से में कह उठा। आंखें खोलीं, जो कि लाल हो रही थीं।

"तीरथ!" मन्नू बोला इधर--- "किचन होग। चाय-कॉफी जो मिले, बना के ले आ। उसे पीने से ये ठीक होगा।"

"पी लेगा ये?"

"नहीं पिएगा तो इसके सिर में डालेंगे।" मन्नू, राघव को थामे कह उठा।

राघव ने गुस्से से मन्नू को देखते हुए कहा।

"तू मेरे सिर में डालेगा चाय-कॉफी।"

"मैं तेरा यार हूं।" मन्नू मुस्कुराया।

"यार--- तू उल्लू का पट्ठा है--- तू...।"

"उल्लू का पट्ठा तेरे सामने खड़ा है। तुली नाम है उसका। उससे बात कर।"

राघव की सुर्ख आंखें तुली की तरफ घूमीं।

"छोड़ मुझे।" राघव ने मन्नू के हाथ से बाँह छुड़ानी चाही।

"नहीं, तू फिर बेड पर जा लेटेगा।"

"नहीं लेटता, छोड़ दे।" राघव ने बाँह को तीव्र झटका दिया और बाँह छुड़ा ली। अब वो कुछ होश में लग रहा था।

"कौन हो तुम लोग?" राघव बोला--- "मेरे घर में कैसे घुस आए?"

"दरवाजा खुला था।" तुली बोला।

राघव ने हौले से सिर हिलाया।

"जिन लोगों ने तुम्हारे भाई को मारा है वो तुम्हें भी मार सकते हैं। तुम्हें दरवाजा बंद रखना चाहिए था।"

राघव ने गहरी सांस ली, फिर बोला।

"तुम जानते हो कि किसने मेरे भाई को मारा है?"

"नहीं।"

"तुम कौन हो, तुली नाम है तुम्हारा?"

"हां।"

"मेरे पास क्यों आए हो? ये दोनों तुम्हारे साथी हैं?" राघव ने मन्नू को देखा।

"ये भी तुम जैसे ही हैं। तीन घंटे पहले मैं मन्नू से मिला जो कि तुम्हारे पास खड़ा है और डेढ़ घंटा पहले में तीरथ से मिला जो कि इस वक्त किचन में है।" तुली शांत स्वर में कह रहा था--- "मुझे एक आदमी की हत्या करनी है। काम का एक करोड़ मैं एडवांस ले चुका हूं। उसी काम के लिए मुझे तीन लोग चाहिए। दो ये और तीसरे तु। तुमसे बात करने आया हूं।"

"मुझे कैसे जानते हो?"

"अपने काम के आदमियों के बारे में मैंने पहले ही नोट कर रखा था। तुम्हें जानना बहुत आसान है। तुम खतरनाक इंसान हो। बड़े-से-बड़ा काम कर जाने का हौसला है तुममें। तुम मेरे काम आ सकते हो।" तुली के चेहरे पर किसी तरह का भाव नहीं था।

राघव ने गहरी सांस ली।

तभी तीरथ गिलास में चाय बना कर ले आया।

"चाय पियो। इससे तुम्हारी तबीयत संभलेगी।" तीरथ बोला।

राघव ने चाय का गिलास थामा औ रघूंट भर कर कह उठा।

"मैं कोई काम नहीं करूंगा। मुझे उन लोगों की तलाश करनी है जिन्होंने मेरे भाई की जान ली है।" राघव का चेहरा कठोर हो गया।

"वे लोग ताकतवर हुए तो तुम उनका क्या बिगाड़ लोगे?" तुली बोला।

"क्या मतलब?"

"किसी का मुकाबला करने के लिए हौसले के साथ-साथ दौलत की भी जरूरत होती है। दौलत है तुम्हारे पास?"

"नहीं।"

"तो दुश्मन का मुकाबला कैसे करोगे? पास में पैसा हो तो सब काम तसल्ली से पूरे हो जाते हैं।" तुली ने कहा।

"तुम मुझे पैसा दोगे?" राघव ने तुली को देखा।

"बीस लाख।"

राघव खामोश रहा। चाय का घूंट भरा।

"शिकार क्रोशिया में है। मेरे ख्याल से चार दिन से ज्यादा का वक्त नहीं लगेगा। हम आज रात की फ्लाइट से क्रोशिया के लिए चल देंगे और चौथे- पांचवें दिन वापस आ जाएंगे। बीस लाख तुम्हारे पास होगा और तुम अपने भाई के हत्यारे की तलाश कर सकते हो।"

"आज रात कैसे चल सकते हैं? तैयारी भी करनी...।"

"तैयारी करने का काम मेरा है।"

"पासपोर्ट नहीं है मेरे पास।"

"वो अभी तैयार हो जाएगा।"

"अपना शेर तुली, बहुत कमाल का है।" मन्नू मुस्कुरा कर कह उठा--- "लेकिन इसका कोई कमाल अभी मैंने देखा नहीं। सिर्फ सुना ही है।"

राघव राघव खामोश रहा। चेहरे पर सोचें देखती रहीं, फिर कह उठा।

"मेरा मन नहीं है कुछ करने का।"

"चार दिन की बात है राघव! सोच लो, बीस लाख कम नहीं होता। तुम किसी अच्छी जगह पर घर ले सकते हो।"

बहरहाल बीस लाख को पाने के लिए राघव तैयार हो गया।

"एक शर्त है।" तुली बोला--- "मन्नू और तीरथ इस शर्त को मान चुके हैं। तुम्हें भी ऐतराज नहीं होना चाहिए। पार्टी चाहती है कि काम के बाद तुम लोगों को ये याद न रहे कि तुम लोगों ने क्या काम किया है।"

"ये कैसे संभव है कि याद न रहे।" राघव के होंठों से निकला।

"इन चार-पांच दिनों की तुम्हारी याददाश्त मिटा दी जाएगी।"

"इन चार-पांच दिनों की याददाश्त मिटा दी जाएगी। पागल हो क्या? ऐसा भी कभी होता है।"

"आज के वक्त में ऐसा क्या काम है, जो नहीं हो सकता। पार्टी के पास इस बात का इंतजाम है। उसका कहना है कि आधे घंटे में ये हो जाएगा।"

"ये पागलपन है।"

"एक हत्या के लिए एक करोड़ देना भी पागलपन है, लेकिन पार्टी वो भी तो दे रही है।" तुली ने कहा।

राघव तुली को देखने लगा।

कुछ चुप्पी आ ठहरी।

"हम दोनों को इस बात पर एतराज नहीं तो तुम भी ऐतराज मत करो।" मन्नू बोला--- "राजी हो जाओ।"

"ये बकवास है।" राघव बोला--- "याददाश्त मिटाने की क्या जरूरत है। हम अपना मुंह बंद रखेंगे।"

"बीस लाख में ये सब काम होंगे। पार्टी की शर्त है। मैं कुछ नहीं कर सकता।" तुली ने कहा।

"तुम्हें एतराज क्यों है?" तीरथ बोला।

"याददाश्त मिटाने के चक्कर में ये लोग कहीं दिमाग को नुकसान न पहुंचा दें।" राघव कह उठा।

"बहम में मत पड़ो। ये काम ऐसे एक्सपर्ट लोग करेंगे कि तुम सोच भी नहीं सकते।" तुली बोल पड़ा।

"तुम जानते हो उन्हें?"

तुली चुप रहा।

"ठीक है, मैं तैयार हूं।", आखिरकार राघव बोला--- "बीस लाख में कौन तैयार नहीं होगा।"

■■■

तुली मन्नू, राघव और तीरथ ने उसी रात एक बजे की फ्लाइट क्रोशिया की ले ली। पासपोर्ट तैयार हो गए थे और सीट भी रिजर्व हो चुकी थी। जब उनके प्लेन ने क्रोशिया एयरपोर्ट पर ।लैंड किया तो वहां शाम के पांच बज रहे थे।

सामान के नाम पर उनके पास कपड़ों का एक-एक एयरबैग था।

जल्दी ही वे एयरपोर्ट से बाहर आ गए। तुली ने फोन किया तो कानों में मोहन सूरी का स्वर पड़ा।

"हम आ गए हैं।" तुली बोला।

"सैमुअल होटल का कमरा नंबर 12-13 तुम लोगों के लिए बुक है। बड़ा कमरा है। चारों वहां रह सकते हैं।"

"बाकी के हालात कैसे हैं?" तुली ने पूछा।

"तुम वहां पहुंचो। मैं तुमसे मिलूंगा।"

तुली ने फोन बंद किया और फिर उन्होंने टैक्सी ली। ड्राइवर को बताया कि सैमुअल होटल जाना है।

सैमुअल होटल तीसरे दर्जे का था। रहने के लिए लिहाज से वह जगह ठीक थी।

उन्हें 12-13 नंबर कमरे में पहुंचा दिया गया।

"अब क्या करना है?" मन्नू ने पूछा।

"मेरा आदमी अभी मिलेगा। वो शिकार के बारे में खबर देगा।" तुली बोला।

"तुम्हारा आदमी?" राघव बोला--- "तुमने अपने बारे में कुछ नहीं बताया।"

"मैं भी तुम जैसा ही हूं।"

"नहीं, तुम हम जैसे नहीं हो।" राघव ने कहा--- "हमसे बढ़कर हो। तुमने दो घंटे में पासपोर्ट तैयार करवा लिया। प्लेन में जगह भी मिल गई। तुम हम तीनों पर पहले से ही नजर रखे हुए थे और तुम जानते हो कि पार्टी कौन है और शिकार कौन है। हम तो कुछ भी नहीं जानते।"

"मैं तुम लोगों को उतनी ही जानकारी दे रहा हूं, जितनी कि जरूरत है।"

"ऐसा क्यों?"

"सावधानी के नाते।"

"जब तुमने हमारी याददाश्त मिटा ही देनी है तो फिर हमें सब कुछ बता देना चाहिए।"

"मैं जरूरत नहीं समझता। जितनी जरूरत है, उतना ही जानो।"

"तुम्हारी बातें तो रहस्य पैदा कर रही हैं।" तीरथ मुंह बनाकर कह उठा।

"ऐसा कुछ नहीं है। अपनी सोचों को खामख्वाह की उड़ान मत दो।"

"तुम मुंबई में कहां रहते हो?" राघव ने पूछा।

"क्यों?"

"हमसे काम करा कर तुम गायब हो गए तो हम बीस लाख किससे लेंगे?"

"मैं हर वक्त तुम लोगों के साथ हूं। हम सब साथ में इंडिया लौटेंगे।" तुली बोला।

"तुम्हें अपना पता बताने में ऐतराज है?"

"ये मत भूलो कि काम के बाद तुम लोगों की, इन दिनों की याददाश्त भी मिटानी है। इसलिए मैं तुम लोगों को साथ ही लेकर जाऊंगा।"

"मतलब कि तुम अपना पता-ठिकाना नहीं बताना चाहते?" मन्नू बोला।

"जोर दोगे तो मैं गलत बता दूंगा।"

"बेकार है इससे कुछ भी पूछना।" तीरथ कह उठा--- "मैं तो नहाने जा रहा हूं।"

उसके बाद वे नहाने-धोने में लग गए।

तभी मोहन सूरी का फोन तुली को आया।

"बाहर आ जाओ। मैं इंतजार कर रहा हूं।"

■■■

"ब्रिगेडियर छिब्बर की कोई खबर?" तुली ने मोहन सूरी से पूछा।

"नहीं, उसकी कोई खबर नहीं है, लेकिन अमेरिकन विदेश मंत्री ड्यूक हैरी आज ही क्रोशिया पहुंचा है। ब्रिगेडियर छिब्बर ने ड्यूक हैरी से मुलाकात करनी है, जो कि एक नाइटक्लब में होगी, परंतु हमें ये नहीं पता कि वो कब मिलने वाले हैं।" मोहन सूरी ने कहा।

"तुम्हें पता करना चाहिए कि...।"

"मेरे लोग ड्यूक हैरी पर निगाह रख रहे हैं। हमें मालूम हो जाएगा ब्रिगेडियर छिब्बर से उसकी मुलाकात होने का।"

"मालूम हो जाएगा। ये तुम क्या कह रहे हो। हमने उन्हें मिलने नहीं देना है। ब्रिगेडियर छिब्बर की खबर हमें पहले चाहिए। क्या तुम्हें नहीं पता था ये।"

"पता है। मैं छिब्बर का पता लगाने की कोशिश कर रहा हूं।"

"हद कर दी तुमने। मैं पूरी तैयारी के साथ क्रोशिया आ पहुंचा हूं और तुम कोशिश की बात करने को कह रहे हो।" तुली ने कहा।

"मैं शायद तुम्हें जल्दी ही खबर दूं।"

"वे आज भी मिल सकते हैं?" तुली ने पूछा।

"संभव है।"

"तो मैं अब क्या करूं? तुम्हें मेरे लिए रास्ता तैयार रखना चाहिए था।"

"तुम अपने लोगों के साथ हर शाम उसी नाइट क्लब में बिताओ।" मोहन सूरी ने ब्रिगेडियर छिब्बर की तस्वीर निकाल कर तुली को दी--- "य अपने साथियों को दिखा देना कि ये शिकार है। तुम चार हो, जब भी ब्रिगेडियर वहां पहुंचा तो उसे पहचान लोगे। इस बीच मुझे कोई खबर मिली तो मैं तुम्हें फोन करूंगा। अब हम सिर्फ फोन पर ही बात करेंगे। मिलेंगे नहीं।"

"उस नाइट क्लब के बारे में बताओ कि वो कहां है?"

मोहन सूरी ने बताया।

"हथियार?" तुली बोला।

"उधर पार्किंग में 7245 नंबर की गाड़ी खड़ी है। उसकी डिग्गी में टेलिस्कोप गन और रिवाल्वर है। कार बड़ी है और तुम चारों के लिए बहुत है। उसे जब भी चाहो कहीं भी छोड़ देना। वो चोरी की है और उसका नंबर बदल रखा है।"

मोहन सूरी चला गया।

तुली वापस होटल के कमरे में पहुंचा

"हमें अभी एक नाइट क्लब में जाना है। वहां पर हमारा शिकार आया हो सकता है।" तुली ने कहा--- "ये शिकार की तस्वीर है।"

मन्नू, राघव और तीरथ ने ब्रिगेडियर छिब्बर की तस्वीर देखी।

"हिन्दुस्तानी है?" तीरथ बोला।

"हां।" तुली ने कहा।

"तुम बाहर किसी से मिलकर आए हो?" राघव ने तुली से पूछा।

हां।"

"हमारा शिकार आज हमें नाइट क्लब में मिलेगा?" मन्नू में तुली को देखा।

"पता नहीं। वो वहां आएगा जरूर। आज-कल-परसों, देखते हैं कब।" तुली ने सिर हिलाकर कहा।

"ज्यादा दिन भी लग सकते हैं?"

"चार दिन से ज्यादा नहीं।"

"वो कैसे?" राघव बोला।

"शिकार ने जिससे मिलना है वो चार दिन के लिए आज ही क्रोशिया पहुंचा है यानी कि मुलाकात चार दिन में ही होगी।"

"उसी नाइट क्लब में?"

"हां।"

"वे जगह बदल भी सकते हैं।"

"मेरे ख्याल में वे वहीं मिलेंगे। इस बात की खबर है मेरे पास।"

"खबर गलत भी हो सकती है।"

"ये मेरी सिरदर्दी है।"

"क्या तुम नहीं जानते कि क्रोशिया में शिकार का ठिकाना किधर है?" राघव ने पूछा।

"बेवकूफी वाले सवाल मत करो। उसका ठिकाना पता होता तो हम उसे नाइट क्लब में क्यों ढूंढते?"

"नाम क्या है शिकार का?" मन्नू ने पूछा।

"कुछ भी हो, तुम्हें उससे कोई मतलब नहीं होना चाहिए।" तुली ने तीनों को देखा--- "हमने शिकार को नाइट क्लब में किसी से मिलने नहीं देना है।"

"ये क्या बात हुई। ये तो हमें बताओ कि वो किससे मिलेगा और हम इस बारे में सतर्क रहें।"

तुली ने पल भर के लिए सोचा, फिर कह उठा।

"शिकार अमेरिकन विदेश मंत्री ड्यूक हैरी से मिलने वाला है वहां।"

"और हमने उसे नहीं मिलने देना।"

"नहीं, उससे पहले ही खत्म कर देना है।"

"अमेरिका का विदेश मंत्री।" राघव बोला--- "क्या तुम सरकारी आदमी हो?"

"नहीं।"

"किसी देश के विदेश मंत्री से मामला वास्ता रखता हो तो क्या वो सरकारी मामला नहीं होगा?"

"वो व्यक्तिगत मामला भी हो सकता है।" तुली बोला।

"तुम्हें, हमें बता देना चाहिए कि शिकार कौन है, ये सब क्या हो रहा है, इससे हमें काम करने में आसानी होगी।"

"जरूरत पड़ी तो ये भी बता दूंगा। हमें उस नाइट क्लब में पहुंचना है। बाहर कार भी है और कार में हथियार भी।"

■■■

उन चारों कि आज तीसरी शाम थी उस नाइट क्लब में।

वे शाम साढ़े सात बजे तक वहां आ जाते और बारह बजे तक वहीं रहते।

परंतु दो शामों में तो उन्हें शिकार नहीं दिखा। आज तीसरी शाम थी। तुली के खर्चे पर वे वहां ड्रिंक करते। नर्तकियों का डांस देखते। दूसरी मंजिल पर जुआघर भी था, वहां भी चक्कर लगा आते, परंतु अधिकतर वे नाइटक्लब की उस जगह पर रहते जहां बार था, जहां से नाइट क्लब की शुरुआत होती थी। वो काफी बड़ा हॉल था। हॉल में टेबल कुर्सियां भी थीं और खड़े होकर भी पीने का इंतजाम था। सेल्फ सर्विस भी थी और टेबल सर्विस भी।

टेबल सर्विस में युवक-युवतियां सफेद ड्रेस पहने व्यस्त दिख रहे थे।

रोज की भांति उन्होंने भीतर प्रवेश किया और इधर-उधर बिखर गए।

तुली ने नजरें घुमाते हुए फोन निकाला और मोहन सूरी से बात की।

"हम आज भी नाइट क्लब में पहुंच गए हैं।"

"अच्छा किया।"

"तुम्हारी ये खबर गलत भी हो सकती है कि ड्यूक हैरी और छिब्बर ने यहां मिलना है।"

"खबर पक्की है।"

"उनका मिलने का प्रोग्राम है भी कि नहीं?"

"है।"

"तुम ब्रिगेडियर छिब्बर का पता नहीं लगा पाए?"

"ये आसान नहीं है। मेरे आदमी ने होटल को चेक किया है। वह कहीं नहीं दिखा। किसी प्राइवेट जगह पर वो टिका है।"

"विदेश मंत्री ने वापस कब जाना है?"

"कल शाम के चार बजे की फ्लाइट से?"

"तुम्हारा मतलब कि क्रोशिया में आज की शाम ही वो?" तुली के माथे पर बल पड़े।

"सही समझे।"

"फिर तो उसे आज यहां आना चाहिए।"

"तुम धोखा खा सकते हो।"

"वो कैसे?"

"नाइटक्लब अपने कस्टमर्स को केबिन भी मुहैया कराता है। घंटे के हिसाब से केबिन का किराया लिया जाता है। ये भी हो सकता है कि उन दोनों ने मुलाकात के लिए कोई केबिन बुक करा रखा हो।"

"बहुत जल्दी ये बात बता दी।" तुली कड़वे स्वर में बोला।

"सॉरी, मैं व्यस्त था। बताना याद नहीं रहा।"

"बेवकूफ हो तुम। अगर उनमें मुलाकात हो चुकी हो तो?" तुली का स्वर सख्त हो गया।

"अभी तक वो दोनों नहीं मिले। मिले होते तो मुझे खबर मिल जाती।"

"ये बात मुझे न बताकर तुमने बहुत बड़ी गलती की।" तुली ने कहा और मन्नू, तीरथ, राघव की तलाश में नजरें घुमाने लगा। पांच-सात मिनट में वे चारों इकट्ठे थे।

"क्या हुआ?" मन्नू ने पूछा।

"यहां पर केबिन भी किराए पर मिलते हैं। हमारा शिकार ड्यूक हैरी से केबिन में भी मिल सकता है।" तुली ने कहा।

"ये बात पहले क्यों नहीं बताई?" राघव बोला।

"मुझे अभी पता चला है।"

"क्या पता वे बीते दो दिनों में यहां किसी केबिन में मिल गए हों?" तीरथ ने कहा।

"मेरी जानकारी के मुताबिक, अभी तक नहीं मिले।"

"ओह!"

"कल शाम की फ्लाइट से अमेरिकन विदेश मंत्री ड्यूक हैरी वापस जा रहा है यानी कि आज की शाम महत्वपूर्ण है।"

"इसका मतलब आज वे मिल सकते हैं।" राघव बोला--- "यहां आ सकते हैं।"

"हमें पता करना होगा कि केबिन उन्होंने बुक कराया है या नहीं--- "कैसे पता करें?" तीरथ बोला।

"ये काम मुझ पर छोड़ दो।" मुन्नू बोला--- "मैं अभी पता लगाता हूं।"

"अभी तक तो हमारा शिकार यहां नहीं पहुंचा?" तुली ने तीनों को देखा।

"नहीं।"

"आज हमें खास सतर्कता की जरूरत है।" तुली बोला, फिर मन्नू को देखा--- "तुम पता करो कि उनके नाम से कोई केबिन बुक है या नहीं?"

"ड्यूक हैरी का नाम तो पता है लेकिन इसके लिए शिकार का नाम भी चाहिए।" मन्नू बोला।

"ब्रिगेडियर छिब्बर--- वी.एल. छिब्बर।" तुली ने कहा।

मन्नू की आंखें सिकुड़ी।

"चक्कर क्या है?" वो बोला--- "एक तरफ हमारे देश का ब्रिगेडियर दूसरी तरफ अमेरिका का विदेश मंत्री। तुम कहां फिट होते हो?"

"वक्त बर्बाद मत करो।" तुली गंभीर स्वर में बोला।

मन्नू वहां से चला गया।

राघव और तीरथ, तुली को ही देख रहे थे।

"मामला क्या है?" राघव ने शांत स्वर में पूछा।

"कुछ नहीं, हमने शिकार को खत्म...।"

"वो हमारे देश का ब्रिगेडियर है। दूसरी तरफ अमेरिका का विदेश मंत्री। ये मामला व्यक्तिगत नहीं हो सकता।"

"व्यक्तिगत ही है।"

"नहीं।" तीरथ ने इंकार में सिर हिलाया--- "तुम हमें बेवकूफ बना रहे हो।"

"मैं बेवकूफ क्यों बनाऊंगा? जो मुझे पार्टी ने बताया, वो ही मैंने तुम लोगों को बताया।"

"पार्टी कौन है?"

"ये बताना मना है।"

"तुम हमसे कुछ छुपा रहे हो।" राघव ने तुली की आंखों में झांका।

"दोस्तों, हमें सिर्फ अपने काम की तरफ ध्यान देना है, क्योंकि पार्टी ने मुझे इस काम का करोड़ रुपया दिया है। उसमें से बीस-बीस लाख तुम लोगों को मिलने जा रहे हैं। यहां पर भी हम पार्टी के पैसों से ही मौज-मस्ती कर रहे हैं। हमारे लिए ये ही बहुत है। हमें भी अपना काम करके पार्टी को दिखाना है कि हम काबिल लोग हैं।"

"तुम सरकारी आदमी हो?" राघव ने पूछा।

"पागल हो क्या। मैं तुम जैसा ही हूं और इस वक्त हम सब मिलकर 'ऑपरेशन टू किल' को अंजाम दे रहे हैं। उसके बाद हमें वापस इंडिया लौट चलना है। ये मामूली-सा काम है जो...।"

"ये मामूली काम नहीं है। एक तरफ हिन्दुस्तान की सेना का ब्रिगेडियर, दूसरी तरफ अमेरिका के विदेश मंत्री। दोनों मिलने जा रहे हैं और तुम उन्हें मिलने नहीं देना चाहते। उससे पहले ही उस ब्रिगेडियर छिब्बर को शूट कर देना चाहते हो। तुम इसे मामूली कहते हो।"

तुली चुप रहा।

"ये हमें बेवकूफ समझता है।" तीरथ ने तीखे स्वर में कहा।

बरबस ही तुली के होंठों पर हल्की-सी मुस्कान उभरी और लुप्त हो गई। वो गंभीर दिखने लगा।

"सच बोल क्या मामला है?" राघव ने कहा--- "नहीं तो हम तुम्हारा साथ नहीं देंगे।"

"वो ब्रिगेडियर हमारे देश के गोपनीय राज, अमेरिका को बेचने जा रहा है।" तुली ने कहा।

"ओह!"

"तो तुम सरकारी आदमी हो।"

"नहीं। मैं भी तुम जैसा ही हूं। आनन-फानन देश की गोपनीय एजेंसी ने मुझे ये काम करने को कहा। तुमने देखा ही कि कैसे आनन-फानन हमने सब काम किए और क्रोशिया आ पहुंचे।" तुली का स्वर सामान्य था।

"लेकिन सरकारी एजेंसी इतना बड़ा काम बाहर वालों को क्यों सौपेंगी?"

"इस वक्त उनके पास काम के लिए कोई बेहतरीन एजेंट नहीं था, जबकि वक्त गुजर रहा था।"

राघव और तीरथ की नजरें मिलीं।

"मेरे ख्याल से अब तो तुम्हें काम करने से ऐतराज नहीं होगा? ये देश का काम है।"

"हम ये काम करेंगे।" राघव बोला--- "लेकिन एक बात पक्की है कि तुम भी सरकारी आदमी हो।"

"मेरे बारे में तुम लोग जो भी सोचो। मुझे इसकी परवाह नहीं है। मन्नू को देखो, वो कहां है और क्या कर रहा है। हर तरफ नजर रखो। आज की रात हमें सतर्क रहना है। मुझे पूरा विश्वास है कि वे दोनों आज यहां आएंगे।"

■■■

मन्नू ने केबिनों की बुकिंग के बारे में नाइट क्लब के रिसेप्शन से जानना चाहा, परंतु वहां मौजूद युवती ने मीठा-सा जवाब दिया कि केबिन बुकिंग की जानकारी हम किसी को नहीं देते। ये प्राइवेट रहता है।

मन्नू वहां से हट गया। ये जानकारी लेना जरूरी था। उसकी निगाह उस वेट्रेस को ढूंढने लगी, जिससे हर शाम ही उसकी आंखें चार होती थीं और वो मुस्कुरा देती थी। मन्नू को मालूम था कि वो भी इंडियन है।

वो दिखी। मन्नू फौरन उसके पास जा पहुंचा। दांत फाड़ कर मुस्कुराया।

वो भी मुस्कुराई।

"मैं मन्नू।" मन्नू बोला--- "मुंबई से।"

"मैं जगदीप कौर।" उसने मुस्कुराते हुए कहा--- "अमृतसर से। लोग प्यार से मुझे जैनी कहते हैं।"

"जब एक ही देश के दो लोग विदेश में मिलते हैं तो कितनी खुशी होती है।" मन्नू गहरी सांस लेकर बोला।

"सच में। सोनिया गांधी कैसी हैं?"

"सो... सोनिया गांधी?" मन्नू अचकचाया।

"वो ही, काग्रेस पार्टी वाली।" जैनी ने कहा।

"वो...वो ठीक हैं।" मन्नू ने अपने को संभाला।

"अटल बिहारी बाजपेयी?"

"वो--- वो भी ठीक हैं।"

"ये दोनों मुझे बहुत अच्छे लगते हैं। तुम कब से हो क्रोशिया में?"

"तीन दिन से।"

"उससे पहले?"

"मुंबई।"

"मतलब कि अभी आए हो।" जैनी ने समझने वाले ढंग से सिर हिलाया--- "मैं तुम्हें दो दिन से यहां देख रही हूं।"

"जानता हूं, तुम मुझे देखती हो और मुस्कुराती भी हो।"

"क्योंकि हम एक ही देश के हैं। मैं यहां पर पांच सालों से हूं।" उसने बताया।

"पांच सालों से?"

"बीस की थी तो पढ़ने आ गई। उसके बाद वापस नहीं गई। अमृतसर जाने का मन तो बहुत करता है पर घरवालों से फोन पर ही बात हो जाती है। यहां एक दूर की रिश्तेदार है लीवनों में। समझो उसी के पास रहती हूं। हर शनिवार छुट्टी पर उसके पास चली जाती हूं। तुम कहां ठहरे हो?"

"वो भी बताऊंगा। हम डिनर भी साथ करेंगे जैनी! लेकिन पहले मेरा एक काम कर दो।"

"क्या?"

"केबिन के बारे में पूछना है कि...।"

"मेरे लिए बुक करा रहे हो?" जैनी मुस्कुराई।

"अभी ऐसी नौबत नहीं आई। पहले सुन तो लो, मुझे मालूम करना है कि ब्रिगेडियर छिब्बर या ड्यूक हैरी, इनमें से कोई भी नाम का केबिन बुक है। वो केबिन नंबर कितना है?" मन्नू ने उसे समझाया।

जैनी ने गहरी निगाहों से मन्नू को देखा।

"क्या हुआ?" मन्नू के होंठों से निकला।

"चक्कर क्या है?"

'कुछ भी नहीं। चक्कर क्या--- एक काम है--- प्लीज कर दो। उसके बाद हम डिनर...।"

"डिनर की छोड़, डॉलरों की बात कर।"

"डॉलरों की?"

"हाँ, तू इंडिया से इसी काम के लिए क्रोशिया आया है?"

"हाँ।"

"जो भी काम है, उसमें डॉलर भी कमा रहा होगा?"

"हाँ।" मन्नू के होंठों से निकल गया।

"तो तेरा ये काम करने के बदले मुझे भी कुछ मिलना चाहिए।" जैनी मुस्कुराई।

"हम एक ही देश के हैं और...।"

"अमृतसर से मुंबई बहुत दूर है।"

"क्या मतलब?"

"अगर तू जालंधर का होता, लुधियाना का होता तो तेरा ये काम मैं मुफ्त में कर देती। चल, अगर तू चंडीगढ़ या मोहाली का भी होता तो तेरा काम मुफ्त में हो जाता, पर मुंबई तो बहुत दूर है। डॉलर तो मुझे देने ही होंगे। तभी काम होगा।"

"ये तो तूने मुसीबत खड़ी कर दी।"

"क्यों?"

"मेरे पास कुछ भी नहीं है।"

"कंगला है?"

"हां।" मन्नू ने गहरी निगाह उधर डाली, जिधर तुली था--- "कितने मांगती है तू?"

"सौ डॉलर तो मिलना ही चाहिए।"

"मैं तेरे को हजार दिलाता हूं।"

"हजार?" जैनी सकपकाई।

"हां, मैं तेरे को तुली नाम के आदमी के पास ले जा रहा हूं, उसे तू हजार डॉलर बोलना।"

"तेरे साथ कोई और भी है?"

"हां--- चल...।"

दोनों एक तरफ खड़े तुली के पास पहुंचे।

तुली ने भरपूर निगाहों से जैनी को देखा।

जैनी उसे देख कर मुस्कुराई।

"इसे हजार डॉलर दे दे।" मन्नू ने तुली से कहा।

"हजार--- क्यों?"

"केबिन रिजर्व के बारे में रिसेप्शन वाले नहीं बता रहे। इसे पटाया है, ये पता कर देगी। हजार डॉलर मांगती है।"

"इस काम के हजार डॉलर ज्यादा हैं।" तुली ने जैनी को देखा।

"मैंने तो दो हजार मांगे थे।" जैनी बोली--- "ये तो इसके कहने पर हजार में मान गई।"

"ह...हां।" मन्नू ने फौरन सिर हिलाकर कहा--- "दे--- दे।"

"तुम पहले पता करो।" तुली वक्त बर्बाद न करते हुए कह उठा--- "जब जानकारी दोगी, तो हजार डॉलर मिल जाएंगे।"

"सब इस वक्त हजार डॉलर दो कि ये काम करे। हम यहां काम करने आए हैं, पैसा बचाने नहीं।"

तुली ने जेब से डॉलर निकाले और हजार निकालकर जैनी को दिए।

जैनी का चेहरा खिल उठा।

मन्नू जैनी का हाथ पकड़े वहां से चल पड़ा।

"ये तो मजा आ गया।"

"सब मेरी मेहरबानी है। अब तुम वो जल्दी से पता करो, जो मैंने कहा है।"

"ब्रिगेडियर छिब्बर या ड्यूक हैरी किसके नाम से कितना नंबर केबिन बुक है।"

"ठीक समझी।"

"लेकिन चक्कर क्या है?"

"फिर.. चक्कर कुछ नहीं है, तुम्हें जो कहा है पता करो।" मन्नू ने मुंह बिगाड़ा।

"वो तुम्हारा बॉस है--- तुली?"

"हां।"

"वो जिस तरह पैसे उड़ा रहा है, उससे लगता है कि वह कोई गड़बड़ करना चाहता है।" जैनी बोली।

मन्नू ने जैनी को घूरा, फिर कह उठा।

"तुम हजार डालर वापस दे दो। तुम सौ कह रही थी। मैंने ही तुम्हें हजार दिलवाए और अब...।"

"ठीक है--- नाराज क्यों होता है। डिनर पक्का रहा ना?"

"पक्का।"

जैनी उसे वहीं रहने को कह कर एक तरफ चली गई।

दस मिनट बाद जैनी लौटी। रात के दस बज रहे थे तब...आते ही वो बोली।

"कोई फायदा नहीं हुआ। कोई केबिन बुक नहीं है।"

"कोई नहीं, तुमने अच्छी तरह चैक किया?"

"हजार डॉलर लिए हैं तो डबल अच्छी तरह चेक किया। छिब्बर या ड्यूक हैरी, किसी के नाम से केबिन बुक नहीं है।"

तभी राघव मन्नू के पास पहुंचा।

"वो नजर आ गया है।" राघव कह उठा।

"कौन--- छिब्बर या...।"

"छिब्बर।"

मन्नू और राघव की नजरें मिलीं।

जैनी ने राघव को देखा।

"तुम तो काफी लोग हो एक साथ।" जैनी कह उठी।

"मैं तुमसे कुछ देर बाद मिलता हूं जैनी!" मन्नू ने एकाएक मुस्कुराकर कहा।

"डिनर के लिए?"

"हां।" कहने के साथ ही मन्नू राघव का हाथ पकड़े एक तरफ बढ़ गया।

■■■

तीरथ तुली के पास पहुंचा।

तुली की एकटक निगाह ब्रिगेडियर छिब्बर पर थी, जिसने कि अभी-अभी बार काउंटर से पैग लिया था और वहीं खड़ा, हॉल में नजरें दौड़ाता, गिलास में से छोटे-छोटे घूंट भर रहा था।

"तुमने शिकार को देखा?" तुली शांत स्वर में बोला।

"देख चुका हूं।" तीरथ ने कहा।

तुली ने कोट से एक पेपर लिफाफा निकाला और तीरथ को दिया।

"तुम अच्छे निशानेबाज हो। और इसमें साइलेंसर लगी रिवाल्वर है।"

तीरथ ने लिफाफा थाम लिया।

"काम के बाद होटल पहुंचना। वहीं मिलेंगे।"

तीरथ खामोशी से, तुली के पास से हटता चला गया।

तभी मन्नू और राघव उसके पास आ पहुंचे।

"हमने उसे देख लिया है।" मन्नू बोला।

"तुम दोनों मेरे पास ही रहो।" तुली ने कहा।

तभी उन्होंने देखा कि ब्रिगेडियर छिब्बर गिलास थामें तेजी से एक तरफ बढ़ने लगा है।

तुली की निगाह दूसरी तरफ घूमीं तो होंठ कस गए।

ड्यूक हैरी भी वहां आ पहुंचा था। वो उसी की तरफ बढ़ रहा था। ड्यूक हैरी ने ब्रीफकेस थाम रखा था।

"ड्यूक हैरी भी आ गया।" तुली के होंठों से निकला--- "वे मिलने वाले हैं।"

"तुम मुझे रिवाल्वर दो।" राघव ने जल्दी से कहा।

"तीरथ शूट करने गया है।" तुली कह उठा--- "उसे अब तक काम कर देना चाहिए था।"

"वे दोनों पास पहुंच गए। मिल रहे हैं।" मन्नू बोला।

तुली का चेहरा कठोर हो चुका था।

उनके देखते-ही-देखते ब्रिगेडियर और अमेरिका विदेश मंत्री ने हाथ मिलाया और पास ही टेबल पर बैठ गए।

तुली की कठोर निगाह उन दोनों पर थी।

"ये अमेरिका का विदेश मंत्री अकेला आया है यहां।" राघव बोला।

"इसके साथ के लोग बाहर खड़े होंगे। यहां तो इसे दो मिनट से ज्यादा का काम नहीं।" तुली होंठ भींचे कह उठा।

"तीरथ ने अभी तक अपना काम नहीं किया।" मन्नू कह उठा।

उनके देखते-ही-देखते ब्रिगेडियर छिब्बर ने कोट की जेब से एक लिफाफा निकाला और ड्यूक हैरी को दे दिया।

"ये गलत हुआ।" तुली बेचैन-सा कह उठा--- "मन्नू तीरथ को तलाश करो उसे कहो, दोनों को खत्म कर दे।"

"ठीक...।"

"वो सफल न हो सके तो, ये काम तुम्हें करना है। जो बचे उसे तुम शूट कर देना और होटल पहुंचना।" कहने के साथ ही उसने मन्नू की जेब में फुर्ती के साथ रिवाल्वर डाल दी। मन्नू तुरंत वहां से दूर हटता चला गया।

अब एक-एक पल बीतना भारी लगने लगा था।

"राघव!" तुली गंभीर धीमे स्वर में बोला--- "वे दोनों अब मरने वाले हैं, इस वक्त जो लिफाफा ड्यूक हैरी के हाथ में है, वो मुझे चाहिए। उस लिफाफे को तुमने ले भागना है और होटल पहुंच जाना।"

राघव ने सिर हिलाया और तुली के पास से हट गया।

तुली बार काउंटर पर पहुंचा और एक पैग लिया। नजरें छिब्बर और हैरी पर थीं।

और उसी पल उसने ब्रिगेडियर छिब्बर को टेबल से टकराकर कुर्सी से नीचे गिरते देखा। तुली समझ गया कि इसका काम हो गया है। ऐसा होते ही ड्यूक हैरी फुर्ती से उठ खड़ा हुआ। लिफाफा उसके हाथ में था। इसी पल उसकी छाती पर दो लाल से धब्बे उभरते दिखे, फिर उसे नीचे गिरते देखा। किसी को नहीं पता चला था कि वहां कुछ हो गया है।

इसी पल ड्यूक हैरी की लाश के पास राघव दिखा। राघव ने ड्यूक हैरी की लाश के पंजे में फंसा वो लिफाफा लिया और आगे बढ़ता चला गया। तुली ने मुंह फेर लिया। तीरथ, मन्नू और राघव ने सफलता से अपना काम पूरा किया था। उसने सही लोग चुने थे। जब पैग समाप्त करके वह बाहर की तरफ बढ़ा तो तब तक वहां दो हत्याएं होने का शोर पड़ चुका था। अफरा-तफरी मच गई थी।

■■■

तुली पार्किंग में खड़ी कार की ड्राइविंग सीट पर जा बैठा। मिनट पर तुली खामोशी से बैठा सोचों में डूबा रहा। नाइट क्लब से उठता शोर बाहर तक आ रहा था। कई लोग बाहर आ चुके थे। कुछ कारें स्टार्ट करते हुए वहां से निकल जाने की फिराक में थे।

तुली ने कोट की जेब से मोबाइल फोन निकाला और नंबर मिलाने लगा, परंतु इस बात का उसे जरा भी अहसास न हुआ कि कार के पीछे वाली सीट पर मन्नू मौजूद है। काम खत्म होते ही मन्नू पार्किंग में खड़ी कार के पीछे वाली सीट पर आ बैठा था, जबकि तुली ने उसे होटल पहुंचने को कहा था। मन्नू तो ये सोचकर कार में आ गया था कि तुली ने भी होटल वापस ही जाना है। जब कार चल पड़ेगी तो तुली को अपने वहां होने का एहसास दिला देगा। तब तुली उसे रास्ते में तो उतारने से रहा। बहरहाल ये सब मन्नू की अपनी सोचें थीं।

तुली ने फोन पर बात की।

"जिन्न।" बात होते ही तुली ने कहा--- "दीवान से बात कराओ।"

"कोड नंबर?"

"2732।" तुली बोला।

चंद पलों बाद ही दीवान का स्वर कानों में पड़ा।

"कहो तुली!"

"ऑपरेशन टू किल सफलता से पूरा हुआ।"

"गुड!" दीवान की आवाज कानों में पड़ी--- "अपने लोग ठीक हैं?"

"सब ठीक रहा।"

"पेपर्स?"

"हमारे पास वापस आ गए।"

"वहां क्या-क्या हुआ--- मुझे बताओ।"

पीछे वाली सीट पर मौजूद मन्नू तुली और दीवान की आवाजें स्पष्ट सुन रहा था।

तुली ने सब कुछ बताया।

"तुमने अपने पीछे खतरा छोड़ दिया तुली--- वो जैनी नाम की लड़की...।"

"जैनी हमारे बारे में कुछ नहीं जानती।" तुली ने कहा।

"वो तुम्हारे, मन्नू और राघव के चेहरों से वाकिफ है। वो जान चुकी होगी कि ये काम तुम लोगों ने किया है।"

तुली के होंठ भिंच गए।

"तुली!" दीवान की आवाज कानों में पड़ी।

"सुन रहा हूं।"

"ये अब ब्रिगेडियर छिब्बर ही नहीं, अमेरिका के विदेश मंत्री की भी हत्या का मामला है। C.I.A. जैनी तक पहुंच सकती है।"

"तुम ठीक कहते हो।"

"जैनी को फौरन खत्म कर दो।"

"ठीक है, मैं अभी जैनी को ढूंढता हूं।"

"एक बात और।" दीवान की आवाज कानों में पड़ रही थी।

"क्या?"

"वे तीनों हमारे लिए खतरा बन सकते हैं।"

"मन्नू, राघव, तीरथ की बात कर रहे हो?"

"हां---वे...।"

"उनकी तो याददाश्त साफ कर देनी है हमने कि ये काम उन्होंने किया है।" तुली बोला।

"मेरे ख्याल से तो उन्हें क्रोशिया में शूट करके वापस इंडिया में  लौट आओ। इस तरह...।"

"ये गलत होगा दीवान! उन्होंने मेरा काम किया है और हमारे पास कोई ठोस वजह नहीं है कि उनकी जान ली जाए।"

कुछ चुप्पी के बाद दीवान की आवाज आई।

"वे तीनों तुम्हारे बस में हैं?"

"हां।"

"ठीक है, उन्हें लेकर इंडिया पहुंचो। तुम्हारे आने पर ही उनके बारे में फैसला करेंगे।"

'उन तीनों को जान से नहीं मारा जाएगा। उन्होंने सफलता से 'जिन्न' का काम किया है।"

"वे कागजात जला दो, जिन्हें तुमने हासिल किया है।"

"जला दूंगा।"

"सबसे पहले उस लड़की जैनी को खत्म करो। वो हमारे लिए मुसीबत खड़ी कर सकती है।"

तुली ने फोन बंद किया और कार से बाहर निकलकर नाइट क्लब के दरवाजे की तरफ़ बढ़ गया।

पीछे वाली सीट पर बैठे मन्नू के होश गुम हो गए थे।

"जिन्न।"

वो नहीं जानता था कि इंडिया की सरकारी संस्था 'जिन्न' के लिए काम कर बैठा था।

तुली और वो दीवान, 'जिन्न' संगठन के ही लोग थे।

उसने साफ-साफ सुना था कि दीवान उन तीनों को खत्म करने को कह रहा था, जबकि तुली इस बात से इंकार कर रहा था तो दीवान ने कहा कि उनके वापस आने पर ही फैसला किया जाएगा, इस बात का।

मिलने वाले बीस लाख तो मन्नू भूल ही गया था।

अपनी जान का खतरा उसे लगने लगा था।

राघव और तीरथ जाने किधर थे, वरना ये बात उन्हें भी बताता।

जैनी!

तुली जैनी को मारने नाइट क्लब के भीतर गया था।

जैनी उसे प्यारी लगने लगी थी। वह मर जाएगी। तुली उसे मार देगा? नहीं! जैनी को बचाना होगा। उसने ही जैनी को इस काम में लाने के लिए तैयार किया था। वो मरी तो उसकी मौत उसके सिर होगी।

मन्नू कार का दरवाजा खोलकर बाहर निकला।

उसने स्पष्ट महसूस किया कि उसकी टांगें हौले-हौले काँप रही हैं। पुलिस की कारें सायरन बजाती नाइटक्लब पहुंचने लगी थीं।

बहुत शोर हो रहा था।

लेकिन मन्नू को जैनी की चिंता थी कि तुली उसे शूट न कर दे। अगर उसे पहले मालूम हो जाता था कि यह काम जिन्न से वास्ता रखता है तो इस काम में कभी हाथ न डालता, परंतु वो वक्त निकल चुका था। अब बात जैनी की थी। उसे बचाना था। जैनी का चेहरा उसकी आंखों के सामने घूमने लगा।

■■■

मन्नू ने जैनी को तुली से पहले ढूंढ निकाला।

तुली से पहले इसलिए कि जैनी उसे जिंदा मिली। तुली ने उसे ढूंढा होता तो साइलेंसर लगी रिवाल्वर से, खामोशी से जैनी को शूट करके वो खिसक चुका होता। मन्नू की जान में जान आई, जैनी को ठीक देखकर।

जैनी का चेहरा फक्क पड़ा हुआ था।

मन्नू को देखते ही जैनी की हालत और बुरी हो गई।

मन्नू जैनी को लेकर एक तरफ पहुंचा।

"त...तुमने मारा, उन दोनों को।" जैनी ने घबराए स्वर में कहा--- "मुझे मालूम हो गया है कि उनमें से एक अमेरिका का विदेश मंत्री ड्यूक हैरी था।"

"तुम्हें लगता है कि मैंने मारा होगा उन्हें।" मन्नू ने बात को संभालने की कोशिश की।

"तुम उन दोनों के बारे में पता कर रहे थे, मैं इस बात की गवाह...।"

"तुम खतरे में हो, मैं तुम्हें बचाने आया हूं।"

"क्या?" वो चिंहुक उठी।

"हां, मैं धोखे में रहा। मुझे लगा मैं शरीफ लोगों के साथ काम कर रहा हूं, लेकिन वे हत्यारे निकले।" मन्नू ने झूठ कहा।

"तुम किसकी बात कर रहे हो?"

"तुली की। जिसने तुम्हें हजार डॉलर दिए थे। वो तुम्हें गोली मारने के लिए ढूंढ रहा है।"

"क...क्यों?"

"क्योंकि तुम उसे---- मुझे और राघव को पहचानती हो। उसे डर है कि उनके बारे में तुम पुलिस को बता दोगी।"

"हां, मैंने बताने ही वाली थी।"

"पागलपन मत करो। यहां रुको भी मत। मैं तुम्हें बचाने आया हूं। निकल चलो यहां से। वो कभी भी यहां आ सकता है।"

"ओह!" जैनी पूरी तरह घबरा चुकी थी।

"नाइट क्लब के बाहर निकलने का कोई चोर रास्ता है?"

"हां। उधर है। आओ मेरे साथ।"

दोनों नाइट क्लब के पीछे के रास्ते से बाहर निकले।

"तुमने मुझे मुसीबत में डाल दिया है।" जैनी गुस्से से बोली।

"मुझे क्या पता था कि ये सब होगा।" मन्नू ने गहरी सांस ली।

पीछे की गली में खड़ी एक छोटी कार के पास पहुंचे वे।

"ये तुम्हारी कार है?"

"हां।" वो दरवाजा खोलकर भीतर बैठती कह उठी।

मन्नू ने भी दरवाजा खोला तो सीट पर बैठती वह बोली।

"तुम मेरे साथ क्यों चल रहे हो?"

"मुझे भी उससे खतरा है, तुली से। वो मुझे भी मार देगा।" भीतर बैठता मन्नू कह उठा।

जैनी कार स्टार्ट करते हुए बोली।

"तुम्हें क्यों खतरा है, तुम तो उसके साथी हो?"

"मैं उसका साथी नहीं हूं। उसने धोखे से मुझे अपने काम में फंसा लिया। इंडिया से यहां ले आया।"

जैनी ने कार आगे बढ़ा दी।

"मैं नहीं मानती।"

कार गली से निकल कर सड़क पर आ गई।

"मेरी बात का यकीन करो जैनी। इंडिया में उसने मुझे कहा कि क्रोशिया में मुझे काम दिलाएगा। इधर पहुंचकर बोला कि ब्रिगेडियर छिब्बर और ड्यूक हैरी नाइट क्लब में आने वाले हैं। उनके बारे में पता करो। ये भी पता करो कि मिलने के लिए उन्होंने केबिन तो बुक नहीं करा रखा। अब मुझे क्या पता कि उसका इरादा क्या है।"

"मैंने उसे गोली चलाते देखा था।"

"किसे?"

"मैं उसका नाम नहीं जानती, लेकिन मैंने उसे गोली चलाते देखा। उसने उन दोनों को मारा था।"

मन्नू ने गहरी सांस ली।

जैनी उसे, राघव, तीरथ, सबको पहचान चुकी थी।

"तुम्हें कैसे पता कि वो मुझे मारने आ रहा है।" जैनी ने पूछा।

"मैं क्लब से बाहर निकलकर बाहर खड़ी कार उस कार के पीछे वाली सीट पर जा बैठा था। वहां अंधेरा था वो आया और कार में बैठकर फोन पर किसी से बात करने लगा। मैंने उसकी सारी बातें सुनीं। इसके बाद वो कार से निकलकर तुम्हें मारने क्लब के भीतर आ गया तो मैं तुम्हें बचाने के लिए भीतर दौड़ा। मुझे तो डर था कि उसने तुम्हें मार न दिया हो।"

"तुम मुसीबत हो।"

"ऐसा मत कहो। मैंने तुम्हें उससे हजार डॉलर दिलवाए थे।"

"वहीं से तो मुसीबत शुरू हुई।" जैनी तीखे स्वर में बोली।

और मन्नू झूठ-सच बोलकर जैनी के साथ चिपके रहना चाहता था। क्योंकि ये उनके लिए अजनबी देश था। उसे अपनी जान बचानी थी। तुली उसे ढूंढने की पूरी कोशिश करेगा। वे लोग उसकी जान ले सकते थे तुली और दीवान की बात उसने स्पष्ट सुनी थी। राघव और तीरथ होटल जा रहे होंगे। वो उन्हें भी बताना चाहता था कि तुली से उन्हें जान का खतरा है, परंतु अब ये बात बताने के लिए होटल तक जाने का खतरा नहीं मोल ले सकता था।

"तुम अब उतर जाओ मेरी कार से। हम नाइटक्लब से दूर आ चुके हैं।" जैनी बोली।

"उतर जाऊं?" मन्नू के होंठों से निकला--- "ये तुम क्या कह रही हो। मैं यहां किसी को जानता नहीं। कहां जाऊंगा?"

"कहीं भी जाओ।"

"हम एक ही देश के हैं और परदेस में हैं। मुसीबत की इस घड़ी में तुम्हें मेरा साथ देना चाहिए।"

"मैं तुम्हें अपने साथ नहीं ले जा सकती। मेरा कोई घर नहीं है।'

"कोई बात नहीं। तुम जहां रहोगी, वहीं मैं रह लूंगा। अभी मैं इंडिया वापस नहीं जाना चाहता। दो-चार महीने यहीं गुजारना चाहता हूं। उसके लिए मुझे तुम्हारे सहारे की जरूरत है। तुम्हारी तरह मेरी जान को भी खतरा है।"

"अजीब मुसीबत है।" जैनी उखड़े स्वर में बड़बड़ा उठी।

■■■

क्रोशिया से दो सौ किलोमीटर की दूरी पर लीवनों नाम का छोटा-सा शहर पड़ता था। जैनी सीधी वहां पहुंची। वहां उसकी सत्तर बरस की बूढ़ी दूर की रिश्तेदार रहती थी। उसका पति दस साल पहले मर चुका था। दो कमरे का घर था और कुछ दूरी पर बाजार में उसकी छोटी-सी दुकान थी। गुजारे के लिए वो उस उम्र में भी दुकान खोलती थी। जैनी ने मन्नू का परिचय उसे ये कहकर कराया कि वो पंजाब से ही आया है और वह उसे पहले से जानती है।

बहरहाल मन्नू वहीं टिक गया।

बूढ़ी रिश्तेदार के कहने पर जैनी दुकान पर जाकर बैठने लगी। क्योंकि बूढ़ी की तबीयत ठीक नहीं चल रही थी और सप्ताह-भर बाद ही बूढ़ी को दिल का दौरा पड़ा। उसे अस्पताल ले जाना पड़ा।

पन्द्रह दिन अस्पताल में रहने के बाद वो चल बसी।

बाद में पता चला कि वसीयत में उसने दुकान और फ्लैट जैनी के नाम कर रखा है।

फिर वहीं जैनी और मन्नू रहने लगे। दिल मिल गए। जिस्म मिल गए। दोनों की अच्छी पटने लगी। इंडिया को जैसे भूल ही गया था मन्नू। दोनों दुकान पर जाते और काम करते। खर्चा निकल जाता था।

जैनी के साथ मन्नू के सात साल कैसे निकल गए। पता ही न चला। इस दौरान जैनी को पता चल चुका था कि मन्नू क्या करने क्रोशिया आया था, लेकिन दोनों में बढ़िया पट रही थी। जैनी ने उसकी बीती जिंदगी पर कोई ऐतराज न उठाया। दोनों को जैसे एक-दूसरे का ही सहारा था।

परंतु आठवें साल मन्नू को जुए की बुरी आदत पड़ गई।

लीवनों में तीन कैसीनो थे। वो मशीनों पर जुआ खेलने जाने लगा। एक बार जीतता और दस बार हारता। जैनी उसकी इस आदत से परेशान रहने लगी थी। जो भी कमाई होती मन्नू जुए में उड़ा देता। वो पैसा कम पड़ने लगा तो उसे किसी ने मार्शल नाम के आदमी से मिला दिया, जो कि दादा था लीवनो का।

साल-भर में ही उसने मार्शल से पैंसठ हजार डॉलर ब्याज ले लिए, परंतु लौटाने का कोई रास्ता न था।

मार्शल ने पैंसठ हजार डॉलर पर, पैंतीस हजार डॉलर ब्याज लगा दिया यानी कि उससी से पूरे एक लाख डॉलर मांगे। वो कहां से देता! मार्शल ने जैनी को उठवा लिया और कहा कि वो एक महीने में पैसा लौटा दे, वरना उसे गोली मार दी जाएगी और दुकान-फ्लैट वो ले लेगा। मन्नू को जैनी से सच्चा प्यार था। जैनी से अलग-अलग रहने की सोच भी नहीं सकता था।

परंतु एक लाख डॉलर कहां से लाए?

बहुत बड़ी रकम थी ये।

उसे अफसोस हुआ कि क्यों जुआ खेलने के चक्कर में पड़ा।

सब कुछ तो ठीक चल रहा था। जैनी को वो हर हाल में बचाना चाहता था, परंतु रास्ता नजर नहीं आ रहा था।

तीसरे, चौथे दिन उसे रास्ता दिखा।

वो रास्ता, जिसके बारे में तो सोचना भी पसंद नहीं था, परंतु मजबूरी थी कि वो अब कुछ करें।

आठ साल पहले के अखबार उसने अब तक संभाल रखे थे। जिनमें नाइट क्लब में हुई हत्याओं के बारे में खबरें छपती रहती थीं। तब C.I.A. ने बहुत कोशिश की थी कि अपने देश के विदेश मंत्री के हत्यारे तक पहुंच सके, परंतु C.I.A. को कोई कामयाबी नहीं मिली थी।

C.I.A. ने अखबारों में ईनाम की भी घोषणा की थी, कि कोई खबर दे, परंतु कोई फायदा न हुआ था।

और मन्नू के पास तो सारे मामले की पूरी जानकारी थी।

लाख डॉलर की जरूरत ने ही उससे C.I.A. चीफ टॉम लैरी को न्यूयॉर्क फोन करवाया था और दस लाख डॉलर की मांग रखी थी, ड्यूक हैरी की हत्या के बारे में सारी जानकारी देने के लिए। वो जानता था कि उसने ठीक नहीं किया ऐसा करके, लेकिन जैनी को बचाने के लिए ऐसा करना जरूरी था।

मन्नू ने गहरी सांस ली और सोचों से बाहर आ गया।

घड़ी में वक्त देखा। रात के दो बज रहे थे। सुबह उठना भी था। वो सोने का प्रयत्न करने लगा, परंतु मस्तिष्क में फंसी सोचें दौड़ रही थीं। जैनी, दस लाख डॉलर, माईक, टॉम लैरी और कभी-कभी तुली की भी याद आ जाती थी उसे।

■■■

अगले दिन शाम पांच बजे तक मन्नू ने दुकान खोली। वह सब कुछ सामान्य दर्शाना चाहता था दूसरों को। अभी ये खबर आम नहीं हुई थी कि मार्शल ने जैनी को उठा लिया है और उसकी जुए की लत की वजह से, उसने मार्शल का एक लाख डॉलर देना है।

ऐसी बात खुलना, उसके हक में अच्छा नहीं था।

एक लाख डॉलर जैसी बड़ी रकम उसे कोई उधार नहीं देगा। लेकिन अब उसकी चिंता काफी कम हो गई थी। C.I.A. चीफ टॉम लैरी ने दस लाख डॉलर देने की हां कर दी थी। बदले में उसे 'ऑपरेशन टू किल' की सारी जानकारी देनी थी, जिसे C.I.A हासिल नहीं कर पाई थी।

परंतु मन्नू जानता था कि इसमें भारी खतरा था।

'जिन्न' के हाथ भी लंबे थे और उसे इस बात की हवा मिल सकती थी कि आठ साल पुराने मामले में फिर कोई हलचल होनी आरंभ हो गई है। ऐसा हुआ तो उसके हक में बुरा होगा।

उसे हर काम सावधानी से करने की जरूरत है।

माईक से बहुत संभलकर, सावधानी से मिलना होगा।

पांच बजे दुकान बंद करने के बाद उसने कार पर लीवनों से क्रोशिया का सफर पूरा किया। रास्ते में सोचता रहा था कि क्या 'जिन्न' ने राघव और तीरथ की जान ले ली होगी? उसके न मिलने पर तुली की क्या हालत हुई होगी। उसे ढूंढा तो बहुत होगा। जैनी को भी ढूंढा होगा, परंतु वो दोनों लीवनो में सुरक्षित रहे। मन्नू इस मामले के बारे में जिंदगी में कभी सोचना भी नहीं चाहता था, परंतु अब हालात बदल चुके थे। जैनी को बचाने के लिए उसे लाख डालर की हर हाल में जरूरत थी। जैनी उसकी जिंदगी की एक जरूरत बन चुकी थी।

मन्नू में जब उस नाइट क्लब की पार्किंग में कार रोकी तो पौने आठ बज रहे थे। इंजन बंद करके मन्नू कार में ही बैठा रहा और नजरें दौड़ाता रहा।अंधेरा हो गया था। आठ साल पहले की पुरानी यादें फिर ताजा हो उठीं। उस रात के बाद से वो आज ही यहां आया था।

जाने क्या होगा?

कुछ घबराहट तो हुई, परंतु हिम्मत बांधकर वो कार से बाहर निकला और प्रवेश द्वार की तरफ बढ़ गया। वो जानता था कि कोई खतरा नहीं है, परंतु उसे नहीं मालूम था कि खतरा-ही-खतरा है हर तरफ। 'जिन्न' सतर्क हो चुका है और उस नाइटक्लब पर उसकी पूरी नजर है।

उसके कदम बड़ी मुसीबत की तरफ बढ़ रहे हैं।

उसने नाइट क्लब के बार हॉल में कदम रखा। ठिठककर हर तरफ देखा। आठ सालों में यहां बहुत कुछ बदल दिया था। पहचान में ही नहीं आ रहा था कि ये वो ही नाइटक्लब है।

मन्नू बार काउंटर पर पहुंचा और लार्ज पैग का आर्डर दिया। उसके बाद उसकी निगाहें हॉल में जाने लगीं। आज माईक को यहां होना चाहिए था। यहां पचास से ज्यादा लोग थे और वो नहीं जानता था कि माईक उनमें कौन हो सकता है? क्या पता वो यहां है भी या नहीं? इस वक्त माईक को पहचानना उसके लिए समस्या थी। पहले उसने इस बात पर ध्यान नहीं दिया था।

माईक को पहचानने के लिए उसे न्यूयॉर्क C.I.A. को फोन करना होगा। तभी माईक के बारे में कुछ पता चल सकता था। पैग समाप्त करके उसने पेमेंट दी और बाहर की तरफ बढ़ गया। नाइट क्लब के साथ वाली बिल्डिंग में पब्लिक फोन लगा था। वहां से उसने अपने कार्ड का इस्तेमाल करते हुए न्यूयॉर्क C.I.A. के ऑफिस फोन किया। उसने हिसाब लगा लिया था कि इस वक्त न्यूयॉर्क में दिन का एक बज रहा है।

पहले उसकी सूजी से बात हुई।

फिर टॉम लैरी से।

"क्या तुम माईक से मिले?" उधर से चीफ लैरी ने पूछा।

"मैं उसे नहीं पहचानता।"

"लेकिन इस वक्त वो उसी नाइट क्लब में होगा। क्रोशिया में इस वक्त कितना बजा है?" चीफ लैरी की आवाज कानों में पड़ी।

"शाम के साढ़े आठ।" मन्नू ने कहा।

"माईक उसी नाइट क्लब में...।"

"मैं भी वही हूं, लेकिन उसे पहचानूं कैसे? क्या उसके पास मोबाइल है?"

"हां, तुम उसका नंबर नोट करो।" इसके साथ ही लैरी ने माइक का फोन नंबर उसे बताया।

"शुक्रिया।"

"क्या तुम माईक से मिलने जा रहे हो?"

"शायद, लेकिन तुम अभी उसे फोन मत करना। मैं उसे फोन करने जा रहा हूं।"

मन्नू ने फोन काटा और माईक का नंबर मिलाया।

एक बार में ही दूसरी तरफ बेल जाने लगी।

"हैलो।" फिर उधर से आवाज कानों में पड़ी।

"माईक?" मन्नू बोला।

"यस। तुम कौन हो?"

"मैं वही हूं, जिससे मिलने तुम क्रोशिया में आए थे।" मन्नू ने शांत स्वर में कहा।

"ओह, मेरा नंबर तुम्हें कहां से मिला?"

"तुम्हारे चीफ से।"

"कहां हो तुम?"

"नाइट क्लब के बाहर। मैं तुम्हें पहचानता नहीं हूं।" मन्नू ने कहा।

"मैंने काला सूट पहन रखा है और मेरे हाथ में छोटा-सा, सुर्ख रंग का ब्रीफकेस है। मैं तुम्हें बार काउंटर के पास मिलूंगा।"

"तुम बाहर आ जाओ।"

"बाहर।"

"आ जाओ, मैं मिल लूंगा तुमसे।" कह कर मन्नू ने फोन बंद कर दिया।

बूथ से निकलकर मन्नू वापस नाइट क्लब की बिल्डिंग की तरफ चल पड़ा।

मस्तिष्क में कई तरह के विचार बन-बिगड़ रहे थे।

वो बेचैन और व्याकुल हो रहा था।

उसका मन नहीं कर रहा था कि 'ऑपरेशन टू किल' की सत्यता अमेरिका को बताए, परंतु मजबूरी थी थी। जैनी को मार्शल के हाथों से बचाना भी था। जैनी की जरूरत थी उसे।

मन्नू नाइट क्लब की इमारत से बाहर पहुंचा। वहां रोशनी भी थी और अंधेरा भी। नाइट क्लब का माथा सजा हुआ था। एक तरफ पार्क की गई कारों की कतारें मध्यम रोशनी में नजर आ रही थीं।

मन्नू ने हर तरफ नजरें घुमाईं।

कई लोग खड़े थे। कुछ आ-जा रहे थे।

एक तरफ तीस बरस का काला सूट पहने स्मार्ट-सा दिखने वाला युवक दिखा। जिसके हाथ में ब्रीफकेस था। जबकि मन्नू इस वक्त काफी हद तक कम रोशनी वाले हिस्से में खड़ा था।

वो ब्रीफकेस वाला उसकी तरफ ही देख रहा था कि मन्नू ने हाथ हिलाकर इशारा किया।

वो अपनी जगह से हिला और ब्रीफकेस थामें मन्नू की तरफ बढ़ने लगा।

पीछे से माईक आया और उसके साथ चलने लगा।

"तुम हो?" माईक बोला

"नाम?" मन्नू ने चलते हुए पूछा।

"माईक।"

"तुम्हारी काम है यहां?"

"उस तरफ।"

"चलो तुम्हारी कार में बैठते हैं।" मन्नू ने कहा। उसका दिमाग तेजी से चल रहा था। बहुत कुछ सोच रहा था वो।

"तुम्हारा नाम?" माईक ने पूछा।

"जल्दी क्या है। मालूम हो जाएगा। वैसे मैं अपने बारे में बताना नहीं चाहता।"

"सब कुछ बताओगे तो अपने बारे में भी बताओगे ही।" माईक बोला।

मन्नू खामोश रहा।

दोनों पार्किंग में खड़ी एक कार के पास पहुंचे। माईक ने चाबी लगाकर कार का दरवाजा खोला।

"तुम आगे बैठो।" मनु बोला और पीछे वाली सीट पर जा बैठा।

माईक आगे बैठा और दरवाजा बंद करता हुआ कह उठा।

"तुम किससे डर रहे हो?"

"उन लोगों से जिन्होंने ब्रिगेडियर छिब्बर और ड्यूक हैरी को मारा था। वर भी C.I.A. जैसे ही खतरनाक हैं।"

"कौन हैं वे?"

"अभी मैंने ये नहीं कहा कि मैं तुम्हें कुछ बताने जा रहा हूं।" मन्नू ने शांत स्वर में कहा।

"तो?"

"दस लाख डॉलर लाए हो?"

"हां, ब्रीफकेस में...।"

"खोलकर दिखाओ।"

माइक ने ब्रीफकेस खोला।

भीतर सौ-सौ डॉलर की गड्डियां ठुंसी पड़ी दिखीं।

" दस लाख डॉलर पूरे हैं?" मन्नू कह उठा।

"हां।"

"डॉलर असली हैं?"

"पूरी तरह।"

मन्नू ने एक गड्डी उठाई और फुरेरी दी डॉलरों को,  फिर माईक को देखा।

माईक उसे ही देख रहा था।

पार्किंग के इस हिस्से में काफी है अंधेरा था। वे एक-दूसरे का चेहरा नहीं देख पा रहे थे।

"मुझे कैसे यकीन हो कि ये डॉलर असली हैं।" मन्नू बोला।

"तुमने कैसे सोचा कि C.I.A. नकली डॉलर देगी तुम्हें?" माईक ने कहा।

"क्या भरोसा, कुछ भी हो सकता है।" मन्नू ने कहा और गिन कर दस गड्डियां निकाली फिर बोला--- "ब्रीफकेस बंद कर लो। ये दस गड्डियां मैं साथ ले जा रहा हूं, ताकि चेक कर सकूं कि डॉलर असली ही हैं।"

"तो क्या तुम जा रहे हो?" माईक उलझन भरे स्वर में बोला।

"हां।"

"हमें बात करनी चाहिए। तुम मुझे ड्यूक हैरी के हत्यारों के बारे में बताने वाले हो।"

"नकली डॉलर लेकर नहीं।"

"ये असली हैं।"

"वो ही देखने के लिए लाख डॉलर मैं साथ ले जा रहा हूं।"

"तुम्हें मुझ पर विश्वास करना चाहिए।"

"नहीं कर सकता।" मन्नू ने कहा और गड्डियों को अपने कपड़ों में ठूंसने लगा।

माईक कुछ पल खामोश रहा।

"मेरी नहीं समझ में आ रहा कि तुम क्या करने वाले हो। डॉलर चेक करने हैं तो एक गड्डी ही बहुत है। तुम दस...।"

"क्या पता तुमने असली-नकली डॉलर मिक्स न कर रखे हों।"

"क्या बकवास है।" माईक उखड़ा--- "ये सब असली हैं। तुम्हें काम की बात शुरु कर देनी चाहिए।

"मुझे कोई जल्दी नहीं है।" डॉलरों की गड्डियों को वो अपने कपड़ों में छुपा चुका था--- "चलूंगा अब।"

"फिर कब मिलोगे।"

"कल फोन करूंगा। सब ठीक होगा तो तुम्हें जल्दी मिलूंगा।"

"तुम जान-बूझकर बात को लंबा कर रहे हो। हमें मुद्दे पर आ जाना चाहिए।" माईक झल्लाया।

मन्नू ने कार का दरवाजा खोला और बाहर निकल गया। उसका दिल जोरों से बज रहा था। लाख डॉलर हाथ में आ गए थे। आसानी से आ गए थे और अब दोबारा माईक से मिलने का उसका कोई इरादा नहीं था।

माईक भी बाहर निकला।

"मुझे अपना चेहरा दिखाओ।" माइक बोला।

"क्यों?"

"तुम लाख डॉलर बिना कुछ बताए ले जा रहे हो। ऐसे में कम-से-कम तुम्हारा चेहरा देखने का तो हकदार बनता ही हूं।"

"विश्वास नहीं मुझ पर।" मन्नू बोला।

"तुम मुझ पर भरोसा नहीं कर रहे तो मैं तुम पर क्यों करूं? तुम डॉलरों के असली होने के बारे में संदेह कर रहे हो। मैं तुम्हारा चेहरा देखूंगा, तभी तुम्हें डॉलर ले जाने दूंगा।" माईक में दृढ़ता से कहा।

"मैं तुमसे दोबारा जल्दी ही मिलने वाला हूं।"

"बेशक मिलो, परंतु अपना चेहरा दिखाओ ताकि मैं तुम्हें दोबारा अच्छी तरह पहचान सकूं।" इस दौरान माईक ने जेब से लाइटर निकाल लिया था। उसने लाइटर जला दिया।

मन्नू उसे अपना चेहरा नहीं दिखाना चाहता था।

परंतु माईक देखना चाहता था।

लाइटर की रोशनी में दोनों ने एक-दूसरे को देखा।

"इंडियन हो?" माईक लाइट बंद करते कह उठा।

"सौ प्रतिशत, मैं चलता...।"

तभी पास की कार के पीछे सरसराहट हुई।

मन्नू के शब्द अधूरे रह गए।

माईक भी चौंका।

अंधेरे में दोनों की नजरें मिलीं, फिर दोनों ही आहट की तरफ झपटे।

वो दिख गया।

अंधेरे में दो कारों के बीच वो दुबका हुआ था।

"ये हमारी बातें सुन रहा था।" माईक ने दांत भींचकर कहा और रिवाल्वर उसके हाथ में नजर आने लगी।

मन्नू का दिल धड़का।

खुद को फंसा पाकर वो जो भी था, सीधा खड़ा हो गया।

"रिवाल्वर निकालने की कोशिश मत करना।" माईक उस पर गुर्राया, फिर मन्नू से बोला--- "तुम इसकी तलाशी लो।"

मन्नू फौरन आगे बढ़ा।

उसकी तलाशी ली। रिवाल्वर मिला, जो कि उसने अपनी जेब में डाल लिया।

"कौन हो तुम?" माईक ने दबी गुर्राहट में पूछा।

"रुको।" मन्नू जल्दी से बोला--- "लाइटर जलाओ।"

माईक ने दूसरे हाथ से लाइटर जलाया।

मन्नू ने उस व्यक्ति का चेहरा देखा और उसकी आशंका सही निकली।

वो कोई इंडियन था।

'जिन्न' मन्नू के मस्तिष्क में कौंधा।

"तुम मन्नू हो?" वो व्यक्ति कह उठा।

मन्नू को घबराहट-सी हुई।

"तुम कौन हो?" मन्नू ने अपने पर काबू पाते पूछा।

"जिन्न।" वो व्यक्ति मुस्कुरा पड़ा--- "और तुम माईक को 'ऑपरेशन टू किल' के बारे में बताने वाले हो। तुम क्या समझते हो कि 'जिन्न' तुमसे बेखबर है। कई सालों से 'जिन्न' जानता है कि तुम और जैनी लीवनों में हो। तुम पर 'जिन्न' नजर रखता है।"

मन्नू को काटो तो खून नहीं।

"तुम माईक से बात करके देश से गद्दारी कर रहे हो।"

माईक सावधानी से रिवाल्वर थामें सब सुन रहा था।

मन्नू नहीं चाहता था कि माईक ये सब जाने।

दूसरी तरफ उसे यह भी डर लगा कि 'जिन्न' पूरी तरह जान जाएगा कि वो माईक से मिला है।

"क्या तुम्हें यानी कि जिन्न को मालूम था कि मैं यहां माईक से मिलने वाला हूं।" कहते हुए मन्नू ने रिवाल्वर निकाल ली।

"माईक यहां 'ऑपरेशन टू किल' के संबंध में किसी से मिलने जा रहा है, ये तो जिन्न को मालूम था, परंतु ये अब पता चला कि वह गद्दार तुम हो।"

तो अभी सिर्फ यही उसके बारे में जानता है?

मन्नू ने रिवाल्वर की नाल उसके सिर पर रखी और ट्रेगर दबा दिया।

जोरदार धमाका हुआ।

गोली उसकी खोपड़ी में छेद बनाती माथे के रास्ते बाहर निकल गई।

"ये तुमने क्या किया?" माईक हक्का-बक्का रह गया।

"यहां से भाग जाओ। मैं तुम्हें फिर फोन करूंगा।" मन्नू होंठ भींचकर बोला।

"इससे कई बातें मालूम हो सकती थीं।"

"बातें तुम्हें मैं बता दूंगा, लेकिन अभी हमें यहां से भाग जाना चाहिए। यहां अब लोग और पुलिस इकट्ठी होने वाली है।"

"तुम्हारा नाम मन्नू है।"

"बकवास मत करो। निकलो यहां से।"

"मैं जिन्न के बारे में जानता हूं। वे खतरनाक लोग हैं--- वे...।"

मन्नू ने माईक की बात नहीं सुनी और दूर खड़ी अपनी कार की तरफ भागता चला गया। लाख डॉलर वो हासिल कर चुका था। जैनी को मार्शल के कब्जे से आजाद करा सकता था। अगले चंद पलों में ही वो कार पर सवार हो होटल से बाहर निकल चुका था। वहां अब लोग इकट्ठे होने शुरू हो गए थे। पुलिस सायरन की आवाज भी कानों में पड़ रही थी।

बाल-बाल बचा था वो।

एकाएक उसके शरीर में कंपन भरी लहर दौड़ती चली गई।

तो जिन्न को उसके बारे में खबर है कि वो और जैनी लीवनो में रह रहे हैं।

'जिन्न' उन पर नजर रख रहा है।

मन्नू को अपना गला सूखता-सा महसूस हुआ।

जबकि वो सोचता था कि जिन्न की पहुंच से दूर हो चुका है। उसने तो जिन्न के बारे में सोचना ही छोड़ दिया था। लेकिन 'जिन्न' तो हर पल उसके सिर पर सवार था और उसे कुछ भी नहीं पता था।

'जिन्न' को यहां तक पता था कि C.I.A. जासूस माईक से नाइट क्लब में कोई 'ऑपरेशन टू किल' के संबंध में मिलने वाला है। जबकि इस काम में पूरी तरह गोपनीयता बरत रहा था वो।

ये सोचने का वक्त नहीं था कि 'जिन्न' को यह सारी खबर कैसे मिली?

जिन्न ने नाइट क्लब में अपना जाल बिछा दिया था। सिर्फ वो ही जान सका था कि मन्नू माईक से मिला है और उसने उसे शूट कर दिया था कि ये बात दूसरों को न बता सके।

क्या किसी और ने भी उसे देखा? पहचाना?

कुछ भी हो सकता था। वो खतरे में था। खतरा पास भी हो सकता था और दूर भी। खतरा अभी भी उसके गले को जकड़ सकता था और बाद में भी उसका गला पकड़ा जा सकता था।

सोए मामले को उसने जगा दिया था।

'जिन्न' अपने आदमी की मौत को कभी भी मामूली ढंग से नहीं लेगा। क्या वो जान जान जाएगा कि उसने ही उसे शूट किया है? माईक उसका नाम जान गया था। 'जिन्न' के बारे में जान गया था। इतना तो वो समझ ही गया होगा कि मामले में जिन्न है और भी कई बातें वो समझा होगा, लेकिन वो किसी को नहीं बतायागा कि वो मन्नू से मिला था?

इस बात से मन्नू को राहत मिली।

उसकी कार क्रोशिया से लीवनो की तरफ दौड़ी जा रही थी।

लीवनो में उसके लिए खतरे-ही-खतरे थे।

मन्नू जैनी को आजाद कराकर लीवनों से कहीं दूर भाग जाना चाहता था, जहां 'जिन्न' न पहुंच सके।

■■■

माईक भी सकुशल अपनी कार पर वहां से निकल गया था। किसी का ध्यान उसकी तरफ नहीं गया था।

वो सीधा क्रोशिया स्थित अमेरिकन एजेंसी पहुंचा और वहां से उसने टॉम लैरी को न्यूयॉर्क फोन किया।

सारा मामला बताया।

टॉम लैरी ने सब्र के साथ सब कुछ सुना, फिर कहा।

"इन हालात से हम सोच सकते हैं कि हमारे विदेश मंत्री की हत्या में 'जिन्न' शामिल है।"

"पक्का चीफ!"

"मन्नू अब तुमसे कब मिलेगा?"

"उसने कहा है कि वह कल फोन करेगा, लेकिन मुझे नहीं लगता है कि वह फोन करे। 'जिन्न' के बीच में आ जाने से वह घबरा गया है। मुझे लगता है कि वो यहां से कहीं दूर जाने की कोशिश करेगा।" माईक ने कहा।

"उसे लाख डालर नहीं देना चाहिए था। डॉलर पास होने पर वह आसानी से कहीं दूर चला जाएगा।"

"वो किसी जैनी के साथ लीवनो में रहता है और जिन्न की नजर में था वो। मैं लीवनो जाकर उसे ढूंढता हूं।"

"जिन्न के साथ उसका क्या झगड़ा है?"

"नहीं पता।"

"तुम मन्नू को ढूंढने की कोशिश करो। वो हमें बहुत कुछ बता सकता है। उसे कहना कि हम उसे जिन्न से बचा सकते हैं।"

"वो मिला तो जरूर कहूंगा।"

"तुम भी सतर्क रहना। अब 'जिन्न' को F.I.A. के नाम से जाना जाता है। इंडिया कि ये खतरनाक जासूसी संस्था है। बेरहम भी है। इस वक्त तुम F.I.A. की नजर में हो और उनका पुराना मामला उखाड़ रहे हो। वे तुम्हें शूट कर सकते हैं।"

"मैं सतर्क रहूंगा चीफ!"

■■■

F.I.A.

फेडरल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी।

यानी कि सरकारी हत्याओं की संस्था 'जिन्न'!

'जिन्न' को नया नाम मिल चुका था, फेडरल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी। देश के हित में ये सरकारी संगठन किसी की भी हत्या करने से नहीं चूकता था। F.I.A. के मेंबर देश के कोने-कोने में मौजूद थे। विदेशों में भी F.I.A. की जड़ें गहरी थीं। F.I.A. सिर्फ राष्ट्रपति के सामने जवाबदेही थी। काम के ऑर्डर भी राष्ट्रपति से ही मिलते थे। F.I.A. को किसी भी काम में दखल देने का पूरा अधिकार था। किसी भी काम को देश के लिए खतरा मानते हुए अपने हाथों में ले सकता था। इस संस्था का हर काम गोपनीय रहता था। F.I.A. क्या है, ये किसी को न मालूम था। उसके सदस्यों में जेल में सजा काटे खतरनाक लोग भी थे पढ़े-लिखे सभ्य समाज में रह रहे लोग भी। जो F.I.A. को अपने काम का लगता उसे खामोशी से F.I.A. में काम करने का ऑफर दिया जाता। बदले में मोटी रकम ऑफर की जाती कि सामने वाला इंकार न कर पाता।

F.I.A. यानी कि 'जिन्न' से आप लोग कई उपन्यासों में मिल चुके हैं

'जिन्न' का वही ठिकाना। वो ही कमरा।

अंडे के आकार की लंबी टेबल। जिसके गिर्द करीब तीस लोगों के बैठने का इंतजाम था। साउंडप्रूफ। एकदम सुरक्षित जगह। इस वक्त वहां कपूर और दीवान मौजूद थे। दोनों की उम्र साठ-बासठ थी। इस वक्त दोनों ने सूट पहन रखे थे और वे खामोश थे। बीते तीन-चार मिनट से उनमें बात न हुई थी। उनके चेहरे गंभीर नजर आ रहे थे।

एकाएक दीवान उठा और जेबों में हाथ डाले चहलकदमी करने लगा।

कपूर ने सिगरेट निकाली और सुलगाकर कश लिया। नजरें टेबल पर रखे लिफाफे पर पड़ी। कुछ पल वो लिफाफे को देखता रहा, फिर गहरी सांस लेकर दीवान को देखते हुए धीमे स्वर में कह उठा।

"गलत होने जा रहा है।"

टहलते हुए दीवान ने कपूर को देखा, परंतु कहा कुछ नहीं।

"तुमने जवाब नहीं दिया।" कपूर पुनः धीमे-स्वर में बोला।

दीवान ठिठका, फिर पास आकर धीमे स्वर में बोला।

"F.I.A. को गलत-सही से कोई मतलब नहीं है कपूर! हमारा काम देश की सेवा करना है। F.I.A. यानी कि 'जिन्न' ने हमेशा देश को बेहतर बनाने के लिए काम किए हैं। अगर देश पर कोई खतरा आता है तो उसे दूर करना हमारा काम है।"

"तुम ठीक कहते हो लेकिन--- अब जो होने जा रहा है, वो गलत है दीवान!" कपूर का स्वर शांत था।

"मैंने इस बारे में नहीं सोचा।" दीवान ने कहा और मुंह फेरकर पुनः टहलने लगा।

कपूर ने भी नजरें फेर ली। सिगरेट का कश लिया, तभी दरवाजे के ऊपर लगी हरी लाइट जली और बजर बजा। दीवान ठिठका। कपूर ने दरवाजे को देखा, फिर टेबल के नीचे कहीं लगा बटन दबाया और बोला।

"कौन?"

"तुली।" टेबल के नीचे लगे स्पीकर से आवाज आई।

कपूर ने एक अन्य बटन दबा दिया।

उसी पल दरवाजा खुला और पचास वर्षीय व्यक्ति ने भीतर प्रवेश किया। दरवाजा बंद हो गया।

तुली के कंधे चौड़े थे। वो पांच फीट चार इंच का साधारण कद वाला व्यक्ति था। वो F.I.A. का पेशेवर हत्यारा था। संगठन के लिए वो सिर्फ हत्याएं करता थ। उसकी खासियत थी कि हालात कैसे भी हों, वो घबराता नहीं था। चेहरा शांत रहता था और अपना काम पूरा करके ही वापस लौटता था। वो तेज दिमाग का खतरनाक इंसान था। कम बोलता था वो। अपने मतलब से मतलब रखता था।

तुली ने कपूर और दीवान को देखा और कुर्सी पर आ बैठा। दीवान जेबों में हाथ डाले, तुली के पीछे चार कदम इधर तो चार कदम उधर टहलने लगा।

"तुली!" कपूर ने कश लिया--- "आज से आठ साल पहले तुम्हें एक काम सौंपा था। जिसका नाम था 'ऑपरेशन टू किल'।"

दीवान फौरन तुली के करीब पहुंचकर ठिठका।

तुली ने सहमति में सिर हिलाया। नजरों में पैनापना आ गया था।

"आज आठ साल के बाद तुम्हें उसी ऑपरेशन को आगे बढ़ाना है। तुम्हारे इस काम को भी हम 'ऑपरेशन टू किल' का नाम दे रहे हैं, क्योंकि आठ साल पहले तुमने जो ऑपरेशन सफलता से पूरा किया था, अब उसी को तुम आगे बढ़ाओगे।"

तुली सतर्क-सा नजर आने लगा। बोला।

"वो ऑपरेशन समाप्त हो चुका है।"

"हालात ऐसे हैं कि हमें 'ऑपरेशन टू किल' की फाइल दोबारा खोलनी पड़ रही है।" कपूर ने सिर हिलाकर कहा।

"ये कैसे हो सकता है?" तुली ने शांत स्वर में कहा।

दीवान कुर्सी खींचकर तुली के करीब बैठता हुआ कह उठा।

"तुम्हें 'ऑपरेशन टू किल' के सारे हालात याद हैं?'

कपूर ने दीवान को देखा, फिर मुंह फेरकर कश लिया।

"याद है।" तुली बोला।

"तुम 'ऑपरेशन टू किल' को दोहरा सकते हो?"

"दीवान!" तुली ने सहज स्वर में कहा--- "जो काम मैं पूरा कर चुका हूं, उसे दोहराने का क्या फायदा?"

"क्योंकि 'ऑपरेशन टू किल' का दूसरा हिस्सा वहीं से शुरू होगा, जहां तुमने काम को रोका था।" दीवान ने गंभीर स्वर में कहा।

तुली ने दीवान की आंखों में झांका।

"शुरू हो जाओ। मैं तुम्हारी याददाश्त देखना चाहता हूं कि बीती बातें तुम कितनी याद रखते हो। क्या था वो 'ऑपरेशन टू किल'?"

तुली चंद क्षण चुप रह कर कह उठा।

"आठ साल पहले थल सेना के ब्रिगेडियर छिब्बर को सस्पेंड कर दिया गया और उसके खिलाफ सी.बी.आई. ने जांच शुरू कर दी। उस पर चार्ज था कि वो देश के खुफिया रहस्य अमेरिका को बेच रहा है, परंतु सी.बी.आई. को उस वक्त तगड़ा झटका लगा, जब ब्रिगेडियर छिब्बर एकाएक इंडिया से खिसक गया। वो भाग गया था और पता चला कि उसके पास भारत के परमाणु कार्यक्रमों की लिस्ट भी थी जो कि देश के लिए बेहद महत्वपूर्ण दस्तावेज था। सरकार नहीं चाहती थी कोई यह जाने कि हम अपने परमाणु कार्यक्रम में कितना आगे बढ़ चुके हैं क्योंकि कई देशों के साथ इस बात की संधि थी कि इंडिया एक हद से आगे परमाणु कार्यक्रमों में नहीं जाएगा। ये बात खुलने पर देश को जवाब देना कठिन हो जाता। इस स्थिति में देश पर कई तरह के प्रतिबंध लग जाते। परमाणु कार्यक्रमों की लिस्ट ब्रिगेडियर सिब्बल ने विनोद महतो के दफ्तर से हासिल की थी। विनोद महतो परमाणु कार्यक्रमों की देख-रेख करते थे। जब ब्रिगेडियर छिब्बर ये लिस्ट चोरी कर रहा था तो अचानक ही ऊपर से विनोद महतो आ पहुंचा था। दोनों दोस्त थे, तब ब्रिगेडियर छिब्बर ने उसे दो गोलियां मारीं और लिस्ट लेकर फरार हो गया, परंतु विनोद महतो जिंदा रहा और मरने से पहले सारी बात अपने असिस्टेंट को बता दी थी।"

"गुड!" दीवान ने गंभीरता से सिर हिलाया--- "तुम्हें सब याद है।"

"आगे कहो।" कपूर बोला।

"इस बात का खुलासा होते ही ऊपर से यह मामला हमें सौंप दिया गया, परंतु तब तक ब्रिगेडियर छिब्बर देश छोड़कर जा चुका था। एयरपोर्ट पर इंक्वायरी करने से पता चला कि वह साउथ ईस्ट यूरोप में क्रोशिया गया है। आप लोगों ने फौरन क्रोशिया स्थित अपने एजेंट मोहन सूरी से बात की और ब्रिगेडियर छिब्बर को तलाश करने को कहा और इधर ब्रिगेडियर छिब्बर की हत्या करने का का काम मेरे हवाले कर दिया गया। इस काम को 'ऑपरेशन टू किल' का नाम दिया गया।" तुली पर भर के लिए ठिठका।

"तुम्हें किस तरह ये काम सौंपा गया?" दीवान बोला।

"मुझे व्यक्तिगत तौर पर ये काम करने को कहा गया कि इस काम के दौरान 'जिन्न' से मेरा कोई वास्ता नहीं होगा। काम के साथी मुझे खुद ढूंढने थे, जिन्हें अपने साथ लेकर, ब्रिगेडियर छिब्बर की हत्या करने क्रोशिया जाना था। अपने साथियों को तलाश करने के लिए मुझे 12 घंटे का वक्त दिया गया। मैंने बारह घंटों में राघव, तीरथ और मन्नू नाम के तीन युवक ढूंढ निकाले, जो कि खतरनाक थे। पैसे के लिए हर तरह का काम करते थे। मैंने उन्हें बताया कि क्रोशिया में एक आदमी की हत्या करनी है। जिसके लिए उन्हें बीस-बीस लाख रुपया दिया गया। आप लोगों की तरफ से मुझे कहा गया कि उनसे ये भी बात करूं कि काम के बाद उनकी थोड़ी याददाश्त साफ कर दी जाएगी, ताकि उन्हें याद न रहे कि उन्होंने ये काम किया। चूंकि उन्हें बीस लाख मिल रहा था, इसलिए इस काम की यादाश्त मिटाने वाली बात पर किसी ने भी ऐतराज नहीं किया। बारह घंटे में मैं ये काम करके हटा तो मुझे बताया गया कि क्रोशिया से मोहन सूरी ने बताया है कि ब्रिगेडियर छिब्बर को उसने ढूंढ निकाला है और दो दिन बाद क्रोशिया पहुंच रहे अमेरिकी विदेश मंत्री ड्यूक हैरी से ब्रिगेडियर छिब्बर मिलेगा और इस वक्त वो कहीं छिपा हुआ है यानी कि ये बात स्पष्ट हो गई थी कि ब्रिगेडियर छिब्बर परमाणु कार्यक्रमों की लिस्ट अमेरिका को बेचने जा रहा है।"

"फिर?"

"फिर दो घंटों में ही राघव, मन्नू और तीरथ के पासपोर्ट तैयार हो गए और मैंने उसी रात उन तीनों के साथ क्रोशिया के लिए फ्लाइट पकड़ ली। वहां पर अपने काम के लिए एक युवती की जरूरत महसूस हुई तो हमने जगदीप कौर नाम की युवती को अपने साथ मिला लिया, जो कि खुद को जैनी कहलवाना पसंद करती थी। इस काम के लिए उसे सिर्फ हजार डॉलर दिए गए थे।" तुली का गंभीर स्वर दोनों के कानों में पड़ रहा था--- "परंतु वहां काम के दौरान दो गड़बड़े हो गई थीं।"

"वो भी बोलो।" दीवान ने कहा।

"एक तो ये कि ब्रिगेडियर छिब्बर की अमेरिका के विदेश मंत्री ड्यूक हैरी के साथ मुलाकात हो गई और हमारी देखते-ही-देखते छिब्बर ने ड्यूक हैरी को लिफाफा दिया। तब दोनों एक नाइटक्लब में मिले थे और रात के दस बज रहे थे। ड्यूक हैरी अकेला ही नाइट क्लब के भीतर आया था। उसकी सारी सिक्योरिटी बाहर ही रही थी। शायद वो नहीं चाहता था कि उसके यहां मौजूद होने का पता किसी को चले। ये बात हमें फायदा दे गई। ड्यूक हैरी ने लिफाफा से कागजात निकाल कर देखे, उसके बाद हाथ में थाम रखा ब्रीफकेस ब्रिगेडियर छिब्बर को दिया था, जिसमें उन कागजात की कीमत डॉलरों में थी, लेकिन हमारे लिए वो शानदार मौका था उन्हें खत्म करने का, परंतु तब हमें ब्रिगेडियर छिब्बर के साथ ड्यूक हैरी को भी खत्म करना पड़ा था क्योंकि परमाणु कार्यक्रमों की लिस्ट उसके पास थी। उस वक्त सोचने का ज्यादा वक्त मेरे पास नहीं था। मैंने तीरथ के हाथ में साइलेंसर लगी रिवाल्वर दी और राघव को बताया कि वह दोनों मरने जा रहे हैं और उसे ड्यूक हैरी के हाथ में दबा लिफाफा ले उड़ना है। उन दोनों को मार दिया गया परमाणु कार्यक्रमों की लिस्ट हमने वापस पा ली।"

"तो एक गड़बड़ ये रही कि अमेरिकी विदेश मंत्री की भी हत्या करनी पड़ी।" दीवान बोला।

"हां।"

"दूसरी गड़बड़?"

"उसी रात मन्नू कहीं गायब हो गया।" तुली ने गंभीर स्वर में कहा--- "उसे बहुत ढूंढा परंतु वो नहीं मिला। इंडिया आकर भी उसके ठिकानों पर उसे ढूंढा परंतु उसकी कोई खबर नहीं लगी। आज भी उसका कुछ पता नहीं।"

"आज भी नहीं पता, ये तुम कैसे जानते हो तुली?"

"मैं कई बार फुर्सत में मन्नू के बारे में पूछताछ करता हूं। उसके घर पर जाता हूं पता करने, परंतु वो गायब ही है। खैर तो काम होने के बाद राघव और तीरथ के साथ हम वापस आ गए इंडिया। मैंने अपने आने की खबर आप लोगों को दे दी थी। एयरपोर्ट पर ही राघव और तीरथ को पकड़कर वैन में डाला गया। उनकी याददाश्त जो मिटानी थी कि क्रोशिया में किए, इस काम को वे याद न रख सकें और किसी को पता न सकें। उसी रात उनकी याददाश्त का वह हिस्सा साफ कर दिया गया, जो क्रोशिया में उन्होंने बिताया था। ये काम हमारे डॉ. अकरम ने किया था। अगले पांच दिन तक उन्हें चैक किया गया। तसल्ली होने के बाद उन्हें बीस-बीस लाख रुपया देकर यहां से बाहर ले जाकर छोड़ दिया गया।"

"और जैनी, यानी कि जगदीप कौर, जिसे क्रोशिया में हजार डॉलर देकर इस काम में इस्तेमाल किया था?"

"वो भी तो मन्नू की तरह गायब हो गई थी। शायद दोनों एक साथ ही कहीं गायब हुए, परंतु जैनी ने बहाने से, जरूरत की दुहाई देकर, हजार डॉलर मुझसे काम के बीच ही ले लिए थे।" तुली बोला।

"मैंने सोचा कि शायद तुम जैनी को भूल गए।" दीवान ने सिर हिलाया।

"वो याद है मुझे।"

"तुम्हें सब कुछ याद है?"

तुली ने सिर हिलाया।

"अब तुम्हारे 'ऑपरेशन टू किल' का दूसरा भाग शुरू होता है, 'ऑपरेशन टू किल-2' कह लो इसे।" खामोश बैठा कपूर कह उठा--- "लेकिन इस बार तुम्हारे शिकार वे ही हैं, जिन्होंने इस काम में तुम्हारा साथ दिया था।"

तुली की नजरें कपूर पर जा टिकीं। आंखें कुछ सिकुड़ी।

"समझे?" कपूर बोला।

"तुम्हारा मतलब कि मुझे राघव, तीरथ और मन्नू और जैनी की हत्या करनी है?" तुली कह उठा।

"सही समझे तुम।"

"क्यों?" तुली ने पहलू बदला। उसकी आंखों में बेचैनी भर आई थी।

"क्योंकि आठ साल बाद अमेरिका की खुफिया संस्था C.I.A. ने अपने विदेश मंत्री ड्यूक हैरी की हत्या की फाइल खोल ली है। उसी समय भी C.I.A. ने बहुत भागदौड़ की थी कि मालूम हो सके ड्यूक हैरी का हत्यारा कौन है, परंतु ये पता नहीं लगा पाई C.I.A.। लेकिन अचानक ही आठ सालबाद C.I.A. ने पुनः ये फाइल खोली। अपने खतरनाक एजेंट माईक के हवाले ये काम कर दिया कि वो पता करे कि ड्यूक हैरी का हत्यारा कौन है, परंतु हम समझ सकते हैं कि फाइल खामख्वाह ही नहीं खोली गई। C.I.A. के हाथ कोई पुख्ता बात लगी है, तभी ये फाइल खोली गई और माईक इस वक्त क्रोशिया में मौजूद है।"

तुली कपूर को देखता रहा।

"हम जानते हैं कि माईक जल्द ही मामले की तह तक पहुंच जायेगा। वो तुम्हारे उन साथियों तक पहुंच जाएगा, जो इस काम में तुम्हारे साथ थे। इससे पहले कि वो पहुंचे, उन लोगों को शूट कर दो।" कपूर की निगाहें तुली पर थीं।

"क्या जरूरत है उन्हें मारने की।" तुली ने कहा--- "वो हमारे बारे में, मामले के बारे में कुछ भी नहीं जानते। उनकी उस वक्त की याददाश्त मिटाई जा चुकी है। माईक को वे कुछ भी नहीं बता सकते।"

"ये ठीक है कि हमने उनकी याददाश्त मिटा दी थी, परंतु डॉक्टर अकरम का कहना है कि खास तरह के ट्रीटमेंट के बाद याददाश्त वापस लाया जा सकता है। याददाश्त पूरी तरह मिटाई नहीं जा सकती, उसे केवल मस्तिष्क में ही कहीं दबा दिया जाता है यानी कि उसे दोबारा भी ठीक किया जा सकता है और हम नहीं चाहते कि C.I.A. ये जाने कि आठ साल पहले अमेरिकी विदेश मंत्री ड्यूक हैरी की हत्या में हमारी सरकार का हाथ है। इससे अमेरिका और क्रोशिया के साथ हमारे रिश्ते खराब हो सकते हैं। यही वजह है कि तुम्हें इस ऑपरेशन के सब साथियों को शूट करना होगा, ताकि माईक के हाथ कुछ भी न लगे।"

"बेहतर होगा कि माईक को खत्म कर दिया जाए।" तुली ने सपाट स्वर में कहा।

"उससे कोई फायदा नहीं होगा, तब C.I.A. एक की जगह चार एजेंट इस काम पर लगा देगी। बात तभी बनेगी, जब माईक के हाथ इस मामले में कुछ न लगे। भटककर, थककर वो वापस चला जाए।" कपूर ने कहा।

"लेकिन मन्नू और जैनी का हमें पता नहीं कि...।"

"पता है।" दीवान बोला--- "चार साल पहले हमारे क्रोशिया के एजेंट मोहन सूरी ने उन्हें ढूंढ निकाला था। वे दोनों क्रोशिया के पास लीवनो नाम के शहर में पति-पत्नी बनकर रह रहे हैं। उनका कोई बच्चा नहीं है। खाने-पीने के सामान की एक छोटी-सी दुकान के मालिक हैं और मजे से जिंदगी बिता रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल हमारे सामने ये है कि आठ साल बाद C.I.A. को ऐसी क्या जरूरत महसूस हुई कि ड्यूक हैरी के हत्यारों तक पहुंचने के लिए माईक को लगा दिया। आखिर वो क्या बात है कि आठ साल बाद C.I.A. पुनः हरकत में आ गई?"

"हां।" तुली ने सिर हिलाया--- "कोई तो बात होगी ही। आप लोगों को चार साल से मन्नू और जैनी का पता था। मुझे नहीं बताया?"

"अब जरूरत पड़ी तो बता दिया।"

कुछ पलों की खामोशी के बाद कपूर ने कहा।

"तुम्हें 'ऑपरेशन टू किल 2' पर अभी से लग जाना है। ये काम तुम्हें अकेले ही करना है। हम नहीं चाहते कि इस मामले को कोई और जाने। ये गोपनीय काम है।"

तुली ने दीवान और कपूर पर निगाह डाली।

"उन लोगों को खत्म करना मुझे अच्छा नहीं लगेगा।" तुली बोला--- "वे सब हिम्मतवाले और शानदार लोग हैं।"

"इन चारों को खत्म न किया तो माइक इन तक पहुंचने में सफल हो सकता है। इस तरह अमेरिका जान जाएगा कि आठ साल पहले उनका विदेश मंत्री क्रोशिया में कैसे मरा। वे समझ जाएंगे कि ड्यूक हैरी की मौत के पीछे हमारी सरकार का हाथ है।"

"तब वो हमारे देश के रहस्य ब्रिगेडियर से खरीद रहा था।" तुली ने कहा।

"इस बात को वो कभी नहीं मानेंगे, बल्कि मामले को तोड़-मरोड़कर पेश करेंगे देश के सामने।"

"मेरे ख्याल से इतनी-सी बात के लिए अभी राघव, तीरथ की जान लेना ठीक नहीं।" तुली ने गंभीर स्वर में कहा--- "अभी हमें देख लेना चाहिए कि मामला किस करवट बैठता है। जरूरी तो नहीं कि माईक इस मामले में आगे बढ़ जाए। राघव, तीरथ तो हमारे हाथों से दूर नहीं हैं। जरूरत पड़ने पर हम उन्हें फौरन खत्म कर सकते हैं।"

दीवान और कपूर की नजरें मिलीं।

"क्रोशिया में दो घंटे पहले उसी नाइट क्लब की पार्किंग में हमारा एक एजेंट मारा गया।" कपूर बोला।

"ये कैसे हुआ?" तुली के होंठों से निकला।

"हमारे दो आदमी उसी नाइट क्लब में माईक पर नजर रख रहे थे। वे मोहन सूरी के इशारे पर काम कर रहे थे, तभी माईक को एक ने बाहर जाते देखा तो उसके पीछे हो गया। उसके कुछ देर बाद नाइट क्लब की पार्किंग में गोली चली, तब तक दूसरा एजेंट भी बाहर आ चुका था। उसका कहना था कि वो तब दूर था और जहां हमारा एजेंट मारा गया, वहां उसने दो आदमी देखे, जोकि गोली के बाद आनन-फानन अपनी कारों पर वहां से निकल गए और वो पीछा नहीं कर सका। उनमें से एक माईक था।"

"और दूसरा?"

"मालूम नहीं।"

"वो दूसरा, वो ही तो नहीं, जो माईक से वहां मिलने वाला था।" तुली बोला।

"हो सकता है। वो भी हो सकता है।" कपूर ने सिर हिलाया।

"आखिर वो कौन हो सकता है?"

"मन्नू हो सकता है।" कपूर ने कहा--- "खैर! जो भी हो वो, वो माईक से मिल चुका है। दोनों की बात हो चुकी है। उसने 'ऑपरेशन तो किल' के बारे में माईक को जानकारी दे दी होगी। माईक बहुत कुछ जान चुका होगा। राघव, तीरथ के बारे में भी जान गया होगा। शायद मन्नू जैनी के बारे में भी और अब वो इन सब तक पहुंचने की चेष्टा करेगा कि इनसे पूरी जानकारी ले सके और इन्हें गवाह के तौर पर इस्तेमाल कर सके।"

"फिर तो मामला गंभीर हो गया है।" तुली बोला।

"बहुत ही गंभीर।"

"मन्नू और जैनी के बारे में क्या किया जा रहा है?"

"उन दोनों को खत्म करने के आर्डर मोहन सूरी को दिए जा चुके हैं। कुछ ही घंटों में वो अपना काम पूरा कर लेगा। इधर तुम राघव, तीरथ को खत्म करो, ताकि माईक के हाथ कुछ न लगे।" कपूर ने टेबल पर रखा लिफाफा तुली की तरफ सरकाते हुए कहा--- "इसमें राघव और तीरथ की नई तस्वीर है और उनके पते हैं। तुम्हें काम सावधानी से करना है।"

तुली ने लिफाफा थामते हुए कहा।

"मैं सावधानी से ही काम करूंगा।"

"तीरथ मुंबई में ही है और ड्रग्स के कामों में लगा हुआ है, परंतु राघव के बारे में तुम्हें सावधान रहना होगा।"

"वो क्यों?"

"छः साल से राघव-धर्मा-एक्स्ट्रा की तिगड़ी बन चुकी है। ये तीनों खतरनाक हैं और इकट्ठे काम करते हैं। अंडरवर्ल्ड में इन्हें आर.डी. एक्स. के नाम से जाना जाता है। राघव का काम इस तरह खत्म करना कि धर्मा और एक्स्ट्रा को हवा भी न लगे। गड़बड़ हुई तो धर्मा-एक्स्ट्रा तुम्हारे पीछे पड़ जाएंगे और शायद तब वो इतना भी मौका न दें कि हम तुम्हें बचा सकें।"

"मैं सतर्क रहूंगा।" तुली ने गंभीरता से कहा।

इसके साथ ही तुली लिफाफा थामें पलटा और बाहर निकलता चला गया।

दरवाजा बंद हो गया।

दीवान और कपूर की नजरें मिलीं।

उनके बीच चुप्पी रही।

"इससे आगे कुछ भी करना गलत होगा दीवान!" कपूर कह उठा।

"करना होगा।" दीवान ने सख्त स्वर में कहा।

"तुली हमारा आदमी है। हम इसे कैसे शूट कर सकते हैं।" कपूर ने तीखे स्वर में कहा।

"तो तुम क्या चाहते हो कि माईक तुली को तलाश कर ले। उसका मुंह खुलवा ले। माईक को उन चारों के अलावा तुली की भी खबर हो चुकी होगी। तुली ने मुंह खोल दिया तो हमारी सरकार को जवाब देना भारी पड़ जाएगा।" दीवान ने कपूर की आंखों में झांकते हुए कहा--- "जब तुली, राघव-तीरथ को खत्म कर दे तो तुली को भी शूट कर देना।"

■■■

रात दो बजे मन्नू लीवनो पहुंचा।

सड़कें सुनसान थीं। जगह-जगह नियॉन साइन बोर्ड चमक रहे थे--- जगमग हो रहे थे।

लेकिन मन्नू के तो होश अभी तक गुम थे। उसके मस्तिष्क में जिन्न, C.I.A. डॉलर माईक जैनी, मार्शल और उस इंसान का चेहरा घूम रहा था, जिसे गोली मारी थी।

मन्नू के सिर में ढेर सारी परेशानी उठ रही थी।

वो जानता था कि लीवनो शहर में उसका दाना-पानी उठ गया है। जिन्न उस पर लीवनो में नजर रख रहा है। उसे देर-सवेर किसी तरह पता चल जाएगा कि वो नाइट क्लब में माईक से मिला था। वहां जिन्न के आदमी पहले से ही मौजूद थे। हर तरफ गड़बड़-ही-गड़बड़ थी।

मन्नू अपने फ्लैट पर नहीं जाना चाहता था, क्योंकि जिन्न के आदमी वहां नजर रखते हो सकते थे, परंतु कुछ जरूरी सामान था जो उठा लाना था इसलिए वो फ्लैट पर गया। मन में ये भी था कि हो सकता है रात के वक्त कोई वहां नजर न रख रहा हो। ये बात तो वो सोच भी नहीं सकता था कि लीवनो स्थित एजेंट को, मोहन सूरी ने क्रोशिया से फोन करके, उसके फ्लैट पर अभी नजर रखने को कहा था। मोहन सूरी जानना चाहता था कि नाइट क्लब में हुए हादसे के वक्त मन्नू और जैनी क्या अपने फ्लैट में ही थे। ये जानने के लिए एजेंट अमर ने फ्लैट की कॉलबैल कई बार बजाई। परंतु दरवाजा नहीं खोला गया। भीतर रोशनी भी नहीं थी। अमन ने मोहन सूरी को फोन किया था।

"लगता है मन्नू और जैनी फ्लैट पर नहीं हैं।" अमन बोल।

"क्या हुआ?"

"सुनो अमन, जब भी जैनी या मन्नू दोनों में से कोई भी फ्लैट पर पहुंचे, मुझे फोन पर बताना।"

"ठीक है।" उसके बाद अमन उस फ्लैट पर नजर रखता एक तरफ अंधेरे में खड़ा हो गया था।

मन्नू कुछ पहले ही सड़क के किनारे कार रोकी और इंजन बंद कर दिया था। कार में बैठा नजरें घुमाता रहा। सब ठीक लगा तो कार से निकलकर आगे बढ़ने लगा। उसने अपनी टांगों में कंपन महसूस किया। वो घबराया हुआ था, परंतु खुद को तसल्ली दे रहा था कि उसके पास रिवाल्वर है, कोई खतरा आया तो निबट लेगा।

पैदल चलता हुआ अपने फ्लैट पर पहुंचा और चाबी लगाकर दरवाजा खोलते हुए भीतर प्रवेश कर गया।

■■■

अमन ने मन्नू को फ्लैट में जाते देख लिया था।

उसने मोहन सूरी को क्रोशिया फोन किया। बात होती ही बोला।

"मन्नू अकेला ही फ्लैट पर पहुंचा है। जैनी उसके साथ नहीं है।"

"वो किस हाल में है?"

"वो चोरों की तरह अपने फ्लैट में घुसा है, जैसे किसी से डर रहा हो।" अमन ने बताया।

"क्या उसकी कार लंबे सफर से आई है। लगता है जैसे वो क्रोशिया से सीधा वहां आ रहा हो।"

"मैंने कार नहीं देखी। वो पैदल ही आया है।"

"अब क्या पोजीशन है?"

"वो अपने फ्लैट में हैं। फ्लैट की लाइट जल चुकी है।"

दो क्षण के पश्चात मोहन सूरी का स्वर कानों में पड़ा।

"अमन! मन्नू को अपने कब्जे में ले लो। मैं यहां से लीवनो के लिए चल रहा हूं।"

"मामला गंभीर है।"

"जैनी को भी शूट करना है, परंतु वो साथ में नहीं है, जबकि आधी रात को जैनी को उसके साथ होना चाहिए।"

"समझा।"

"मन्नू को उसके फ्लैट में ही बंधक बनाकर मुझे खबर दे देना। मैं रास्ते में होऊंगा। उससे जैनी के बारे में भी पूछना।"

"ठीक है।" अमन ने कहा और फोन बंद कर दिया।

■■■

मन्नू ने फ्लैट का दरवाजा बंद किया और चैन की सांस ली, फिर कमरे में नजर दौड़ाई। आठ साल वो जैनी के साथ मजेदार जिंदगी बिताते हुए इसी फ्लैट में रहा, परंतु अब उसे यहां से जाना पड़ेगा। जैनी को भी ये बात समझानी पड़ेगी। लीवनो छोड़ने की बात सुनकर वह जरूर परेशान हो जाएगी, लेकिन दूसरा रास्ता भी तो नहीं था। यहां से जल्दी निकल जाना चाहिए उसे।

मन्नू आगे बढ़ा और दूसरे कमरे में पहुंचा।

ये बेडरूम था। दूसरी तरफ वार्डरोब था। उसके साथ ही एक टेबल थी, जिसमें चार ड्राज थी।

मन्नू ड्राजों को खोल-खोलकर चेक करने लगा, तभी नीचे वाले ड्राज से उसे अपना और जैनी का पासपोर्ट मिला। जिसे उसने टेबल पर रख लिया।उसके बाद अपने कपड़ों में फंसी डॉलरों की गड्डियां निकालने लगा। सब टेबल पर रखीं। उन्हें गिना। पूरी दस थीं वो यानी कि एक लाख डॉलर। ये सब मार्शल को देना था, तभी तो वो जैनी को वापस देगा, लेकिन उसे भी तो डॉलरों की जरूरत थी। जैनी के साथ कहीं दूर जाकर बसने के लिए।

कुछ पैसे उसने और जैनी ने इकट्ठे कर रखे थे। वार्डरोब में लकड़ी का छोटा-सा बक्सा था। उसने उस बक्से को तलाशा और उसे तोड़ा। क्योंकि बक्से की चाबी जैनी ने ही कहीं रखी थी। बक्से में रखे डॉलर गिनने लगा। कुल मिलाकर वो सिर्फ 800 डॉलर थे। सौ-डेढ़ सौ उसकी जेब में थे। ये कम थे। उसके पास और होने चाहिए।

परंतु इन हालातों में इन्हीं से काम चलाना पड़ेगा।

वे सब उसने जेब में ठूंसे। पासपोर्ट भी जेब में रखे। उसके बाद एक लिफाफे में लाख डॉलर डालकर उस लिफाफे का पैकिट बनाया। साथ सब ठीक हो गया था। वो सुबह-सुबह ही मार्शल से मिल लेना चाहता था। रात के दो-तीन घंटे ही बिताने थे। सवेरा होने का इंतजार करना था, परंतु यहां रुकने का वो खतरा मोल नहीं लेना चाहता था।

मन्नू वहां से चलने की तैयारी कर ही रहा था कि दूसरे कमरे में कुछ आहट मिली।

मन्नू चौंका।

होंठ भिंच गए उसके। रिवाल्वर जेब से निकालकर हाथ में ले ली। दबे पांव दूसरे कमरे के दरवाजे की तरफ बढ़ा। परंतु इतना सावधान नहीं था जितना कि उसे होना चाहिए था।

रिवाल्वर वाला हाथ आगे किये ज्यों ही उसने दूसरे कमरे में कदम रखा...।

तभी जूते की ठोकर उसके रिवाल्वर वाले हाथ पर पड़ी और रिवाल्वर हाथ से निकलकर दूर जा गिरी। अमन रिवाल्वर थामे वहां खड़ा था। उसके पीछे खिड़की खुली हुई थी। वो वहां से भीतर आया था।

"कैसे हो मन्नू?" अमन ने सपाट स्वर में पूछा।

"कौन हो तुम?" मन्नू के होंठ से निकला।

"जिन्न।" मन्नू के शरीर में चीटियां रेंगती चली गईं। वो अवाक-सा अमन को देखता रहा। उसकी आशा से कहीं ज्यादा जल्दी 'जिन्न' उसके पास आ पहुंचा था। वो फंस चुका था।

"बैठ जाओ।" रिवाल्वर थामें अमन ने सावधानी से कहा।

न चाहते हुए भी मन्नू को उसकी बात माननी पड़ रही थी। वो कुर्सी पर जा बैठा। चेहरा मुरझा गया था।

"मुझ तक कैसे पहुंचे?" मन्नू ने पूछा।

"मैं चार सालों से तुम पर और जैनी पर नजर रख रहा हूं। 'जिन्न' के लिए लीवनो के काम मैं ही करता हूं।"

मन्नू उसे देखता रहा। शरीर में बेचैनी का समुद्र उछाले मार रहा था कि मौका मिले तो निकल भागे।

"क्या चाहते हो?"

अमन मन्नू के प्रति पूरी तरह सतर्क था।

"कहां से आ रहे हो?" अमन ने पूछा।

"क्या?" मन्नू के होंठों से निकला। सूखे होंठों पर जीभ फेरी।

"क्या करके आ रहे हो?"

मन्नू अमन को देखता रहा।

"मैं जानता हूं कि तुम इस वक्त सीधे क्रोशिया से आ रहे हो।" अमन ने शांत स्वर में कहा--- "वहां तुमने क्या किया?"

मन्नू को अपना गला सूखता-सा महसूस हुआ।

"चुप रहकर तुम बच नहीं सकते। अभी और भी लोग आ रहे हैं।" अमन पुनः कह उठा।

"तुम अकेले हो?"

"अभी तो अकेला ही हूं और तुम्हारे लिए बहुत हूं। भागने की सोच रहे हो?" अमन ने उसे घूरा।

"नहीं, ऐसा तो मैं सोच भी नहीं सकता।"

"मैं जानता हूं कि तुम बहुत कुछ सोच सकते हो। तो तुम क्रोशिया में क्या कर के आ रहे हो?"

मन्नू ने पुनः सूख रहे होंठों पर जीभ फेरी। वो अमन को देखता रहा।

"मैं जानता हूं तुम क्रोशिया में क्या कर के आ रहे हो।" अमन ने कहा।

"क्या?" उसके होंठों से निकला।

अमन समझगया कि मन्नू क्रोशिया से ही आया है। मोहन सूरी का ख्याल ठीक था।

"सब कुछ मैं ही बता दूंगा तो तुम क्या बताओगे। तुम तुम्हें भी कुछ बताना चाहिए।"

मन्नू के होंठ भिंच गए। वो अमन को देखे जा रहा था।

"तुम अब बचने वाले नहीं।" अमन ने पुनः कहा--- "आठ साल पहले तो तुम 'जिन्न' के हाथों से बच निकले थे, परंतु तुम्हें ढूंढ लिया गया और तुम्हें खबर भी न हुई। बेवकूफ हो तुम जो तुमने सोचा 'जिन्न' के हाथों से बच जाओगे। मुझे बताओ कि तुम क्रोशिया में क्या करके आ रहे हो? इस तरह चुप बैठे रहोगे तो हमारा वक्त कैसे बीतेगा?"

"मुझे जाने दो।" मन्नू कह उठा--- "मैं तुम्हें दस हजार डॉलर दे सकता हूं।"

अमन मुस्कुरा पड़ा।

"दूं?" मन्नू का स्वर आशा से भरा था।

"हिलना मत, वरना शूट कर दूंगा।"

मन्नू दांतो से होंठ काटता बैठा रहा।

"घर में कोई डोरी है, जिससे मैं तुम्हारे हाथ बांध सकूं?" अमन बोला।

"नहीं।"

"फिर तो मुझे तुम्हें बेहोश करना पड़ेगा। मैं दो घंटे तक तुम पर रिवॉलवर ताने नहीं रह सकता।"

मन्नू व्याकुलता भरी नजरों से उसे देख रहा था।

"खड़े हो जाओ।" अमन ने रिवाल्वर हिलाते हुए कहा।

बेचैनी से भरा मन्नू खड़ा हो गया।

"घूम जाओ। पीठ मेरी तरफ करो।"

मन्नू ने ऐसा ही किया।

अमन रिवाल्वर थामें उसके पास पहुंच गया।

"मैं तुम्हें बेहोश करने जा रहा हूं,  सिर्फ दो चोटें और तुम बेहोश हो जाओगे। उसके बाद सुबह...।" कहते हुए अमन ने रिवाल्वर वाला हाथ ऊपर ऊपर उठाया।

मन्नू के सिर पर चोट करने के लिए और मन-ही-मन इसी वक्त का हिसाब लगा रहा था।

उसी पल वो बिजली की-सी फुर्ती के साथ पलटा।

अमन का हाथ ऊपर था। रिवाल्वर वाला।

मन्नू ने उसकी रिवाल्वर वाली कलाई थामी और जोर से उसके चेहरे पर घूंसा मारा।

अमन के होंठ से चीख निकली।

मन्नू ने फुर्ती से उसके हाथ से रिवाल्वर झटक ली।

ये सब कुछ चार पलों में हो गया था।

गाल पर हाथ रखे अमन स्तब्ध रह गया था।

मन्नू कम नहीं था। आखिर आठ साल पहले 'जिन्न' ने उसे अपने काम में इस्तेमाल किया था। मन्नू ने उसे संभलने का जरा भी मौका न दिया और उसके पेट में ठोकर मारी। अमन चीखते हुए नीचे जा गिरा। मन्नू ने रिवाल्वर को अपने दांतों में फंसाया और वहां रखा सेंटर टेबल उठाकर पूरी ताकत से अमन के सिर पर मारा। दोबारा मारा। तिबारा मारा।

अमन फिर उठ न सका।

उसका सिर गिरे तरबूजे की तरह खुल गया था। और फर्श खून से रंगने लगा।

चंद घण्टों में मन्नू, दूसरी बार बाल-बाल बचा था।

पासपोर्ट तो उसके जेब में ही थे। रिवाल्वर भी उसने जेब में रखी और डॉलरों वाला पैकिट उठाकर फ्लैट से बाहर निकला। सावधान था, सतर्क था, परंतु कोई खतरा न आया सामने।

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