देवराज चौहान, शर्मा के साथ जब उस फ्लैट पर पहुँचा तो शाम के साढ़े सात बज रहे थे । अँधेरा घिर चुका था । फ्लैट पर पहुँच कर रौशनी जलाई और देवराज चौहान ने वर्दी उतारकर दूसरे कपड़े पहने ।

“सर !” शर्मा बोला, “आप डिनर कब लेंगे ?”

“डिनर लाकर रख दो और तुम जाओ ।”

“ठीक है सर ! उधर अलमारी में एक बोतल रखी है, अगर आप पीना चाहें तो… । ए.सी.पी. साहब के कहने पर ही बोतल रखी गई है । मैं आपके लिए डिनर लेकर आता हूँ । कुछ खास लेना चाहेंगे आप डिनर में ?”

“नहीं !”

शर्मा जल्दी आने को कहकर चला गया । देवराज चौहान ने दरवाजा बन्द किया और हाथ-मुँह धोकर अलमारी से बोतल निकाली और किचन से गिलास लाकर, गिलास तैयार किया और घूंट भरा । चेहरे पर सोचें नाच रही थीं । यहाँ रात को ठंड हो जाती थी । कश्मीर के मौसम का असर जम्मू तक होता था । 

देवराज चौहान की सोचें जब्बार मलिक के गिर्द घूम रही थीं । वह बिगड़ैल इंसान था । ऐसे लोगों को सीधी राह पर लाना सम्भव नहीं हो पाता था । आतंकवाद को वह आजादी की लड़ाई का नाम देना चाहता था । कश्मीर को आजाद कराने को कह रहा था, जो कि पहले से ही आजाद था । कश्मीर के मुसलमान भाइयों पर हिन्दुस्तान की सरकार जुल्म कर रही है, ऐसा जब्बार कहता था, परन्तु इस हकीकत से वह वाकिफ नहीं था कि पाकिस्तान से ज्यादा मुसलमान हिन्दुस्तान में रहते हैं और वह खुश हैं । उसने कभी सोचा नहीं कि अभी तक हिन्दुस्तान ने अपनी कोशिशों से कश्मीर को बचा रखा है, वरना पाकिस्तान ने पूरी तरह कश्मीर का बेड़ा गर्क कर देना था । इन बातों को समझने के लिए जब्बार के पास दिमाग नहीं था ।

जब्बार जैसे और भी ढेरों लोग थे जो आतंकवाद को अपना धंधा बनाये हुए थे । पाकिस्तान के कुछ लोगों ने इनका दिमाग इस तरह बना दिया था कि ये सिर्फ आतंकवाद के बारे में ही सोचें ।

देवराज चौहान व्हिस्की के घूँट भरता रहा । मन ही मन अपनी योजना को तैयार करता रहा । उसकी योजना, उसकी सोचें सब कुछ जब्बार मलिक पर ही टिकी थीं ।

आज की मुलाकात से वह इतना तो महसूस कर चुका था कि जब्बार मलिक बेहद खतरनाक है । ये बात भी वह जानता था कि बड़ा खान उसे जेल से नहीं निकाल सकता । जबरदस्त पहरा था वहाँ । जब्बार मलिक वहाँ से निकलने के लिए तड़प रहा था और बड़ा खान उसे बाहर निकालने के लिए तड़प रहा था ।

एक घण्टे में देवराज चौहान ने एक गिलास समाप्त किया और दूसरा बना लिया और वापस आ बैठा । उसने सिगरेट सुलगा ली । जेहन में सोचें नाच रही थीं । तभी कॉलबेल बज उठी । कश लेते हुए देवराज चौहान उठा और दरवाजे के पास पहुँचकर बोला ।

“कौन है ?”

“मैं हूँ सर !” शर्मा की आवाज आई ।

देवराज चौहान ने दरवाजा खोल दिया ।

शर्मा खाना ले आया था । जो कि लिफाफे में बन्द था । 

“बर्तनों में डाल दूँ खाना सर ?” शर्मा ने पूछा ।

“नहीं, ऐसे ही रख दो । मैं ले लूँगा ।”

शर्मा खाने का लिफाफा किचन में रख आया ।

“आप कहें तो रात मैं यहाँ रुक सकता हूँ ।” शर्मा बोला ।

“जरूरत नहीं । तुम सुबह आ जाना ।”

“कितने बजे सर ?”

“दस-ग्यारह के लगभग ।”

“ठीक है सर । यहाँ रात को सर्दी हो जाती है । मैं जाऊँ अब ?”

देवराज चौहान ने सिर हिला दिया ।

शर्मा सुबह आने को कहकर चला गया ।

देवराज चौहान ने दरवाजा बन्द किया । सिगरेट ऐशट्रे में डाली और गिलास उठाकर घूँट भरा ।

वह मन ही मन फैसला करता जा रहा था कि उसे क्या करना है । वह जानता था कि उसकी सोचें, खतरनाक हदें पार कर रही हैं । पर ये ही करना था उसने । उसके सामने ये ही रास्ता था, जिस पर चलना उसे ठीक लग रहा था । देवराज चौहान ने गिलास खाली किया और किचन की तरफ बढ़ गया । थकान सी महसूस कर रहा था । खाना खाकर नींद लेना चाहता था । बीती रात भी ट्रेन के सफर में ही गुजरी थी । तभी कानों में मोबाइल के बजने का स्वर पड़ा ।

देवराज चौहान किचन से निकला और मोबाइल उठाकर पुनः किचन की तरफ बढ़ आया ।

“हैलो !” देवराज चौहान ने मोबाइल पर बात की ।

“कैसे हो इंस्पेक्टर सूरजभान यादव ।” बड़ा खान की आवाज कानों में पड़ी । देवराज चौहान पल भर के लिए ठिठका । फिर लिफाफों से खाना निकालकर बर्तनों में डालने लगा ।

“शर्मा गया अभी-अभी ।” बड़ा खान की आवाज पुनः कानों में पड़ी ।

“मुझ पर नजर रखवा रहे हो ।” देवराज चौहान बोला ।

“ये तो पता नहीं, पर मेरी नजर हर उस इंसान पर रहती है, जो मेरे काम का हो ।”

“मैं तुम्हारे काम का हूँ ?”

“बहुत । वैसे अब तुम उस खाने को खाओगे, जो शर्मा लाया था ।”

“तैयारी कर रहा हूँ ।”

“उस खाने में जहर भी हो सकता है ।”

पल भर के लिए देवराज चौहान ठिठका फिर सामान्य हो गया ।

“मुझे नहीं लगता ।”

“आज तो जहर नहीं है । परन्तु जहर कभी भी हो सकता है ।”

“मेरी मौत की तुम फिक्र मत करो ।” देवराज चौहान मुस्कुराया ।

“मुझे चिंता है तुम्हारी, क्योंकि तुम चाहो तो जब्बार को जेल से निकाल सकते हो ।”

“मैं क्यों चाहूँगा ?”

“इसलिए कि मैं तुम्हें नोट दूँगा । एक करोड़ कैसा रहेगा ?”

“बहुत कम कीमत लगा रहे हो ।”

“दो करोड़ !”

“बेकार है ।”

“पाँच करोड़ ।” बड़ा खान की आवाज कानों में पड़ी ।

“तुम्हारी छोटी सोच है, इसलिए छोटा सोच रहे हो ।”

“तुम रकम बोलो ।”

“एक पैसा भी नहीं ।”

“सौदा मंजूर नहीं ?”

“नहीं ।”

“क्यों ?”

“जब से वर्दी पहनी है, मैंने कोई गलत काम नहीं किया । तुम जैसों का एनकाउंटर अवश्य किया है ।”

“मेरी बात पर गम्भीरता से विचार करो । तुम जब्बार को बाहर निकालो, मैं तुम्हें दस करोड़ दूँगा ।”

“कोई फायदा नहीं ।”

“रकम बढ़ा लो इंस्पेक्टर । मैं तुम्हें बीस करोड़ तक दे सकता हूँ ।”

“तुम पच्चीस भी दो ।” देवराज चौहान मुस्कुराया ।

उधर से बड़ा खान के साँस लेने की आवाज आई ।

“ठीक है, पच्चीस करोड़ ही सही । बोलो, कहाँ पहुँचाऊ ?”

“मैं लेने को तैयार नहीं ।”

“बेवकूफ, पच्चीस करोड़ तुमने कभी देखे नहीं होंगे और देखोगे भी नहीं ।” बड़ा खान का स्वर शांत था ।

“बहुत ज्यादा जरूरत है तुम्हें जब्बार मलिक की ।”

“क्योंकि वह पागल इंसान है । हिम्मती है । जुनून है उसमें । बड़े से बड़े काम को कर देने की लगन है उसमें । वह जान जाने की भी परवाह नहीं करता । ऐसे लोगों की मुझे बहुत जरूरत रहती है ।” बड़ा खान का स्वर कानों में पड़ा ।

देवराज चौहान खाने का बर्तन उठाये कमरे में पहुँचाने लगा ।

दो चक्कर लगाकर ये काम पूरा किया और सोफे पर बैठता कह उठा ।

“जब्बार से तुमने कोई काम लेना है ?”

“हाँ !”

“वह बहुत खास काम है ?”

“बहुत ही खास । तभी तो जब्बार को तुमसे पच्चीस करोड़ में खरीदने को कह रहा हूँ ।”

“काम क्या है ?”

“ये बात तुम्हारे काम की नहीं है ।”

देवराज चौहान ने खाना खाना शुरू कर दिया ।

“तुम कौन हो ?”

“ये भी तुम्हारे काम की बात नहीं है ।”

“हिंदुस्तान के हो या पाकिस्तान के ?”

चंद पल लाइन पर खामोशी रही फिर बड़ा खान की आवाज आई ।

“पाकिस्तान का ।”

“किसके इशारे पर तुम काम करते हो ?”

“मैं किसी का नौकर नहीं हूँ जो किसी के इशारे पर काम करूँ ।”

“तो ये काम क्यों करते हो ?”

“मेरा अपना संगठन है । लोग हिन्दुस्तान में अपना आतंक फैलाना चाहते हैं । मैं उनसे पैसे लेकर, जहाँ वह चाहते हैं, वहाँ आतंक फैलाता हूँ । उस आतंक की जिम्मेदारी वह लोग अपने सिर पर ले लेते हैं, कि बाजार में उनका रौब कायम रहे ।”

“तो तुम बिजनेस कर रहे हो ये सब करके ?”

“ऐसा कह सकते हो तुम ।”

“जब्बार भी बिजनेस करता है आतंक का ?”

“हाँ, वह भी हर काम के मेरे से पैसे लेता है । परन्तु उसके मन में हिन्दुस्तान के लिए नफरत है । असल काम तो वह नफरत ही करती है ।” बड़ा खान की आवाज में मुस्कान आ गई, “एक खास जुनून है जब्बार में ।”

“उसका फायदा तुम उठाते हो ।”

“बदले में पैसे भी तो देता हूँ ।”

“उसके मन में जो नफरत है वह पाकिस्तान वालों ने ही भरी ?”

“तुम्हें इन बातों से क्या इंस्पेक्टर । तुम अपने पच्चीस करोड़ के बारे में सोचो । ये इतनी बड़ी रकम है कि... ।”

“जैसा काम तुम मुझसे करवाना चाहते हो, वैसा काम मैं नहीं करता ।” देवराज चौहान ने कहा ।

“पच्चीस करोड़ एक साथ देखा है कभी ?”

“नहीं !” देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान आ ठहरी ।

“देखना नहीं चाहोगे ?”

“इस तरह नहीं ।”

“ठीक है पच्चीस करोड़ के अलावा तुम्हें एक बंगला भी दूँगा दिल्ली में ।”

“कोशिश बेकार है तुम्हारी ।”

“क्या तुम चाहते हो कि अगली बार शर्मा तुम्हारे लिए खाना लाये तो उसमें जहर हो ।”

“वह जहर खाना मुझे पसन्द है, परन्तु वर्दी से गद्दारी पसन्द नहीं ।”

“तुम जैसे बेवकूफ ही मरते हैं ।” बड़ा खान का कानों में पड़ने वाला स्वर शांत था, “मैं तुम्हें तीस करोड़ तक दे सकता हूँ, अगर तुम जब्बार को जेल से बाहर निकाल दो । इतनी बड़ी रकम को ठुकराते मैंने किसी को नहीं देखा ।”

“मैं ठुकरा रहा हूँ ।” कहकर देवराज चौहान ने फोन बन्द करके रख दिया ।

उसने आराम से खाना समाप्त किया ।

चेहरे पर शांत भाव नजर आ रहे थे ।

☐☐☐

सुबह सवा दस बजे सब-इंस्पेक्टर राधे श्याम शर्मा नाश्ते के साथ आ पहुँचा । देवराज चौहान तब नहा रहा था । शर्मा को पंद्रह मिनट बाहर ही खड़े रहना पड़ा । देवराज चौहान जब नहाकर निकला तो उसने दरवाजा खोला ।

“गुड मॉर्निंग सर !” शर्मा मुस्कुराकर भीतर की तरफ आता बोला, “आपके लिये नाश्ता लाया हूँ ।”

देवराज चौहान मुस्कुरा दिया ।

“दूँ सर ?”

“अभी रुको !” देवराज चौहान ने कहा और वर्दी पहनने लगा ।

“वर्दी धुलवानी हो तो बता दीजियेगा सर !” शर्मा बोला ।

देवराज चौहान ने वर्दी पहनने के बाद कहा ।

“नाश्ता ले आओ ।”

शर्मा प्लेट में रखकर नाश्ता ले आया । दो गोभी के पराठे और साथ में दही था ।

“तुमने कर लिया ?” देवराज चौहान ने पूछा ।

“यस सर । अब तो हजम भी होने वाला है ।” शर्मा ने हँसकर कहा ।

नाश्ते के दौरान देवराज चौहान ने पूछा ।

“रात मुझे सपना आया शर्मा !”

“अच्छा सर !”

“मैंने सपने में देखा कि तुम मेरे खाने ने जहर डालकर लाये हो ।”

शर्मा चिहुँककर देवराज चौहान को देखने लगा फिर बोला- “ये कैसा सपना है सर ?”

“सपने तो सपने ही होते हैं ।” देवराज चौहान ने कहा ।

“हाँ सर ! कई बार, बल्कि अक्सर ही, सपनों का सिर-पैर पता नहीं चलता । रात नींद तो ठीक आई ?”

“बढ़िया !” देवराज चौहान ने कहा, “क्या तुम बड़ा खान को जानते हो ?”

“मैं उतना ही जानता हूँ, जितना कि पुलिस जानती है ।” शर्मा ने कहा ।

“मैं ये पूछना चाहता हूँ क्या तुम बड़ा खान के लिए काम करते हो ?”

“ये... ये आप क्या कह रहे हैं सर ?” शर्मा अचकचा उठा ।

“जवाब दो !”

“नहीं सर । मैं पुलिस वाला हूँ । बड़ा खान के लिए काम क्यों करूँगा । ये आपको क्या हो गया है सर ?”

“अगर तुम बड़ा खान के लिए काम कर रहे होते तो तब भी मेरे पूछने पर क्या कहते ?”

शर्मा उलझन भरी नजरों से देवराज चौहान को देखने लगा ।

“जवाब दो ।”

“मैं समझा नहीं कि आप कहना क्या चाहते हैं ?”

“मान लो कि तुम बड़ा खान के लिए काम करते हो और मेरे पूछने पर तुम क्या जवाब देते ? क्या बता देते कि तुम बड़ा खान के लिए... ।”

“बिल्कुल नहीं बताता । बताकर मैं फँसना क्यों चाहूँगा, अगर मैं बड़ा खान के लिए काम करता हूँ तो । लेकिन मैं आपके इन सवालों का मतलब नहीं समझ पाया कि आप क्या... ?”

“मुझे इस बात का भी सपना आया कि तुम बड़ा खान के लिए काम करते हो । लेकिन तुम्हें इस बात की परवाह नहीं करनी चाहिए । क्योंकि सपनों का कोई सिर-पैर नहीं होता ।” देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा ।

शर्मा लम्बी साँस लेकर कह उठा ।

“आपने तो मुझे डरा ही दिया था । मेरा दिल देखिये, जोरों से बज रहा है ।” शर्मा ने अपने दिल पर हाथ रखा ।

देवराज चौहान ने नाश्ता समाप्त किया ।

एकाएक खामोश बैठा शर्मा कह उठा-

“क्या किसी ने आपको मेरे बारे में कुछ कहा है सर ?”

“नहीं तो !”

“फिर आपने मुझे परेशान करने वाली इतनी गम्भीर बात क्यों की । मैं अभी तक समझ नहीं पाया ।”

“वह यूँ ही, मजाक किया था मैंने ।”

“मजाक की आदत हो आपकी, ऐसा लगता तो नहीं ।” शर्मा ने दबे स्वर में कहा ।

“कभी-कभी तो मैं बहुत बड़े मजाक कर देता हूँ । मुझसे सावधान रहना ।” देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा ।

“ठीक है सर । आज आपका कहाँ चलने का... ।”

“जब्बार मलिक के पास जाना है मुझे ।”

☐☐☐

देवराज चौहान और शर्मा जम्मू सेंट्रल जेल में पहुँचे ।

रास्ते में देवराज चौहान ने ये जानने की चेष्टा की कि क्या कोई पीछा कर रहा है । परन्तु इस बारे में वह किसी नतीजे पर नहीं पहुँच पाया ।

जेलर सुधीर लाल अपने ऑफिस में नहीं था परन्तु कबीर अली उन्हें टकरा गया ।

कबीर अली ने कहा कि वह जेलर साहब को तलाश करके लाता है ।

देवराज चौहान और शर्मा ऑफिस में ही बैठे रहे । आधे घण्टे बाद जेलर सुधीर लाल ने भीतर प्रवेश करते हुए कहा ।

“माफ करना, आपको इंतजार करना पड़ा । मैं कैदियों का मुआयना करने गया था ।”

कबीर अली भी वहाँ आ गया था ।

“जब्बार से मिलूँगा मैं ।” देवराज चौहान बोला, “उसकी कोठरी की चाबी चाहिए ।”

”क्यों नहीं ।” कहने के साथ ही जेलर पीछे दीवार के पास रखी मजबूत तिजोरी की तरफ बढ़ गया । जेब से चाबी निकालकर तिजोरी खोली और भीतर पड़ी कुछ चाबियों में से एक चाबी निकालकर तिजोरी बन्द करके देवराज चौहान के पास आया और उसे चाबी देते हुए कह उठा, “इंस्पेक्टर सूरजभान, आप ये चाबी किसी और के हाथ में मत देना ।”

“नहीं । ये मेरे पास सुरक्षित रहेगी ।”

देवराज चौहान जेलर के कमरे से बाहर निकला । शर्मा और कबीर साथ थे ।

“शर्मा तुम कल की तरह यहीं मेरा इंतजार करोगे ।” देवराज चौहान बोला ।

“यस सर !” शर्मा ने कहा ।

“और कबीर साहब आप दो चाय लेकर, जब्बार की कोठरी पर आ जाइये ।”

“जी जनाब !”

देवराज चौहान आगे बढ़ता चला गया । कबीर अली भी वहाँ से चला गया ।

शर्मा ने आस-पास देखा । पुलिस वाले, कैदी लोग आ-जा रहे थे । परन्तु सब व्यस्त थे । शर्मा एक तरफ हुआ और मोबाइल निकालकर नम्बर मिलाने लगा । फिर फोन कान से लगा लिया ।

दूसरी तरफ बेल जा रही थी ।

“हैलो !” कानों में मर्दाना आवाज पड़ी ।

“लगता है इंस्पेक्टर सूरजभान यादव को मुझ पर शक हो गया ।” शर्मा ने धीमे स्वर में कहा ।

“कैसा शक ?”

“वह मुझे बोला कि रात सपना आया उसे कि मैंने खाने में जहर डाल दिया है । फिर उसने मुझसे पूछा कि क्या मैं बड़ा खान के लिए काम करता हूँ । ये बातें सामान्य नहीं कही जा सकतीं । क्या किसी ने कोई बेवकूफी कर दी है ?”

“ऐसा तो नहीं है ।”

“हमारा कोई आदमी सूरजभान से मिला ?”

“बिल्कुल नहीं । किसी को कोई ऐसा आदेश नहीं दिया गया ।” उधर से कहा गया ।

“लेकिन कुछ तो बात है ही जो... ।”

“तुमने तो कहीं पर लापरवाही नहीं कर दी ?”

“क्या बात करते हो । मैं तुम्हें बेवकूफ दिखता हूँ क्या ?”

“हो सकता है वह इंस्पेक्टर तुम्हें यूँ ही चैक कर रहा हो ।”

“लगता तो नहीं कि ऐसा होगा । परन्तु कुछ शक तो उसे मुझ पर हुआ है ।” शर्मा गम्भीर स्वर में बोला ।

“तुम उसके साथ चिपके रहो । टोह लो कि कैसे उस पर काबू पाकर हम जब्बार को आजाद करवा सकते हैं । वह औरतों का शौकीन है ?”

“ऐसी कोई बात उसने नहीं की ।”

“उससे बात करके पता करो । अगर वह औरतों का शौकीन है तो हम उस पर जल्दी काबू पा सकते हैं । वह हमारी गिरफ्त में होगा ।”

“पता करूँगा । लेकिन वह मुझे ऐसा लगता नहीं । जो औरतों का शौकीन होता है, वह ऐसी बात इशारे में कह देता है । मुझे तो लगता है कि उसका पूरा ध्यान जब्बार पर है ।” शर्मा ने फोन पर कहा ।

“अब वह कहाँ है ?”

“जेल में, जब्बार के पास ।”

“तुम उसके साथ हो ?”

“नहीं । वह मुझे जेलर के कमरे के पास रहने को कह गया... ।”

“तुम उसके साथ नहीं जा सकते थे क्या ?” दूसरी तरफ से तीखे स्वर में कहा गया ।

“जब्बार से मिलते वक्त वह मुझे साथ नहीं रखता ।”

“क्यों ?”

“मैं नहीं जानता ।”

“फोन बन्द करो और जब वह वापस लौटे तो उससे पता करने की कोशिश करो कि वह किस फेर में है ।”

☐☐☐

देवराज चौहान ने जब्बार मलिक की कोठरी का दरवाजा खोला और बोला- “बाहर आ जाओ ।”

जब्बार बाहर निकला ।

कल की अपेक्षा आज वह कुछ शांत दिख रहा था ।

“कैसे हो ?” देवराज चौहान मुस्कुराया ।

जवाब में जब्बार ने सिर हिला दिया ।

“कुर्सियाँ ले आओ । बैठ के बातें करते हैं ।” देवराज चौहान ने कहा ।

“चाय मँगवा लो तो अच्छा लगेगा मुझे ।” जब्बार बोला ।

“आ रही है ।”

जब्बार मलिक स्टोर से दो कुर्सियाँ ले आया ।

देवराज चौहान और जब्बार आमने-सामने बैठे ।

वहाँ मौजूद गनमैन सतर्क थे जब्बार से ।

“आज कोई हरकत नहीं करोगे ?” एकाएक देवराज चौहान बोला ।

“तुमने उस बारे में क्या सोचा ?” जब्बार ने गनमैनों पर निगाह मारते दबे स्वर में पूछा ।

“जेल से बाहर निकलने की बात कर रहे हो ?”

“हाँ ! इसके बदले तुम्हें तगड़े पैसे... ।”

“वर्दी की आड़ में मैं पैसे नहीं लेता । लेकिन एक बात तो है जब्बार ।” देवराज चौहान ने कहा ।

“क्या ?”

“बड़ा खान तुम्हारा दीवाना है ।”

जब्बार की आँखें सिकुड़ी ।

“रात को फोन आया था बड़ा खान का । वह तीस करोड़ देने को तैयार है तुम्हारे लिए ।”

“पैसा कमाने का शानदार मौका है ये तुम्हारे लिए ।” जब्बार कह उठा ।

“बड़ा खान कहता है कि तुम जैसा दूसरा कोई नहीं ।”

“मुझे खुशी है कि बड़ा खान मेरे बारे में ऐसा सोचता है ।” जब्बार मलिक कह उठा ।

“वह इससे भी ज्यादा सोचता है । तुमने उसे काफी प्रभावित कर रखा है ।”

“तीस करोड़ कमाने को तुम तैयार हो ?”

“नहीं !”

“बेवकूफ हो तुम ।” जब्बार मलिक कसमसा उठा ।

“बड़ा खान मुझे खरीद नहीं सकता । लेकिन वह हर हाल में तुम्हें यहाँ से निकाल लेना चाहता है ।”

“तुम्हें तीस करोड़ की बात मान लेनी चाहिए ।”

“वह मुझे दिल्ली में बंगला देने को भी तैयार है ।” देवराज चौहान मुस्कुराया ।

“तुम्हारे तो मजे हो गए ।”

“लेकिन मैं इसी जिंदगी में खुश हूँ । ज्यादा मजे नहीं लेना चाहता ।”

“तुम्हारी माँ पागल थी, जिसने तुम जैसे बेवकूफ को जन्म दिया ।”

मुस्कुराता हुआ देवराज चौहान उसे देखता रहा । 

“पैसा कमाने के मौके जिंदगी में बार-बार नहीं आते इंस्पेक्टर ।” जब्बार कह उठा ।

“जानता हूँ !”

“तुम्हें इस मौके का फायदा उठाना चाहिए और... ।”

“तुम हजारों बार ये बात कह लो, परन्तु मैं अपने इरादे पर पक्का हूँ । वर्दी पहनकर रिश्वत नहीं लूँगा ।”

“ये रिश्वत नहीं, तुम्हारा मेहनताना होगा, मुझे यहाँ से निकालने के लिए ।”

“मुझे उसकी भी जरूरत नहीं ।”

जब्बार मलिक के होंठ भिंच गए । वह नाराज दिखने लगा । तभी कबीर अली चाय के दो गिलास ट्रे में रखे आता दिखा ।

“तुम्हारे लिए चाय आ गई ।” देवराज चौहान ने कहा ।

कबीर ने पास आकर चाय दी ।

एक गिलास देवराज चौहान ने थामा दूसरा जब्बार मलिक ने ।

“और कुछ चाहिए सर ?” कबीर ने पूछा ।

“नहीं, तुम जाओ !”

कबीर चला गया ।

घूंट भरने के पश्चात जब्बार ने कहा- “चाय का शुक्रिया !”

देवराज चौहान ने मुस्कुराते हुए चाय का घूंट भरा ।

“एक मेहरबानी मुझ पर और कर दो ।” जब्बार बोला ।

“क्या ?”

“व्हिस्की नहीं पी महीनों से... ।”

“व्हिस्की तुम्हें नहीं मिल सकती । मैं जेल के नियम नहीं तोड़ सकता ।”

“तुम्हारे लिए मामूली बात है ये ।”

“परन्तु तुम्हें व्हिस्की नहीं दूँगा ।” देवराज चौहान ने कहा ।

जब्बार मलिक ने घूँट भरकर कहा ।

“मैं तो कल से सोच रहा था कि तुम नोट लेने को तैयार हो जाओगे और मुझे जेल से निकाल दोगे ।”

“तुमने गलत सोचा ।”

“भाड़ में जाओ ।” जब्बार ने नाराजगी से कहा “बड़ा खान से मेरी फोन पर बात करा दो ।”

“वह जिस नम्बर से फोन करता है, वह नम्बर मेरे फोन में आया हुआ है, परन्तु मैं बात नहीं करा सकता ।”

“क्यों ?”

“मैं बड़ा खान जैसे आतंकवादी को फोन नहीं करूँगा । उसका फोन बेशक आता रहे ।” देवराज चौहान का स्वर सामान्य था ।

जब्बार के चेहरे पर नाराजगी कायम रही ।

“तुम बड़ा खान के बारे में कुछ बताना पसन्द करोगे ?”

“तुम गलत सोचते हो कि मुझे चाय पिलाकर और मीठा बोलकर, मेरे से कुछ जान सकोगे ।”

“पूछने का मेरा ये मतलब नहीं... ।”

तभी देवराज चौहान का फोन बजा ।

देवराज चौहान ने फोन निकालकर बात की ।

जब्बार मलिक की निगाह देवराज चौहान पर जा टिकी थी ।

“हैलो !” देवराज चौहान बोला ।

“इंस्पेक्टर सूरजभान यादव !” बड़ा खान की आवाज कानों में पड़ी- “मुझे पता है तुम इस वक्त जेल में हो ।”

“ये जानना तुम्हारे लिए बड़ी बात नहीं । जाहिर है कि तुम्हारे आदमी मेरा पीछा कर रहे हैं । वह तुम्हें खबर देते रहते हैं ।”

“मेरे आदमी मुझे वह ही खबर देते हैं, जो मैं जानना चाहूँ । तुम पुलिस वाले की हर खबर मुझ तक पहुँच रही है ।”

“ये बहादुरी का काम नहीं ।”

“तुमने अब तक सोच लिया होगा कि तीस करोड़ को तुम कहाँ पर रखोगे ।”

“बेकार की बातें मैं नहीं सोचता ।”

“इतनी बड़ी रकम लेने से तुम इंकार कर रहे हो ।”

“अब तुमने सही कहा ।”

“कोई मामूली पुलिस वाला इतनी बड़ी दौलत को नहीं ठुकरा सकता ।”

“मैं ठुकरा रहा हूँ ।”

“तुमसे जब भी बात करता हूँ तो मुझे अपने उन आदमियों की बात याद आ जाती है, जिन्होंने दिल्ली में तुम पर हमला किया ।”

“क्या बात ?”

“यही कि उस हमले के बाद तुम जिन्दा नहीं बच सकते । बच गए तो बुरे हाल में रहोगे । बल्कि मेरे एक आदमी का तो यहाँ तक कहना है कि उसने तुम्हें गोलियाँ लगते देखीं थीं । तुम्हें गिरते देखा था ।” बड़ा खान की आवाज कानों में पड़ी ।

“तुम्हारे आदमी बेवकूफ हैं ।”

“वह कैसे ?”

“मैंने छाती पर बुलेट प्रूफ पहन रखा था । उन गोलियों से मेरा कुछ नहीं बिगड़ा और मैं यहाँ हूँ ।”

“हाँ, तुम जम्मू में हो ! दिल्ली पुलिस में मौजूद मैंने अपने आदमियों से तुम्हारे बारे में जानकारी हासिल की है । उन्होंने यही कहा कि इंस्पेक्टर सूरजभान यादव को जब्बार मलिक की देख-रेख के लिए जम्मू भेजा गया है । परन्तु कुछ तो गड़बड़ है । दिल्ली में तुम पर हमला करने वाले ये मानने को तैयार नहीं कि तुम सलामत हो सकते हो ।”

“अपनी ये बकवास बन्द करो ।”

“तो तुम जब्बार को जेल से नहीं निकलोगे ?”

“बड़ा खान, मुझे खरीद नहीं सकते ।” देवराज चौहान ने चुभते स्वर में कहा, “वैसे मैं जब्बार के सामने कुछ शर्तें रखने जा रहा हूँ, अगर वह मेरी बातें मान लेगा तो मैं उसे जेल से बाहर निकाल सकता हूँ ।”

“कैसी शर्तें ?”

“ये तुम्हारे जानने लायक बातें नहीं हैं । मेरे और जब्बार के बीच की बात है ।”

“तुम जब्बार से मेरे बारे में जानना चाहोगे ।”

“मैंने कहा न, ये तुम्हारे जानने लायक बातें नहीं हैं ।”

“जब्बार से मेरी बात कराओगे क्या ?”

“जरूर ! लेकिन आज के बाद कभी भी बात नहीं कराऊँगा । क्योंकि मेरे और जब्बार के बीच जो बातें तय होने जा रही हैं, उनमें तुम अड़चन डाल सकते हो और इस तरह जब्बार भी आजाद होने से रह जायेगा ।”

“जब्बार से मेरी बात कराओ ।”

“बहुत उतावले हो रहे हो ।”

“ऐसी बात नहीं । जब्बार से बात करने का मन कर रहा है ।”

देवराज चौहान ने जब्बार की तरफ फोन बढ़ाकर कहा- “करो बात !”

जब्बार ने तुरन्त फोन लेकर बात की ।

“बड़ा खान !” जब्बार मलिक के होंठों से निकला ।

“ये तुम्हें जेल से निकालने के लिए किस तरह की शर्तें रख रहा है ?” बड़ा खान ने तेज स्वर में पूछा ।

“अभी तो इस बारे में कोई बात नहीं हुई ।” जब्बार ने देवराज चौहान को देखकर कहा ।

देवराज चौहान मुस्कुरा रहा था ।

“तुम इसकी बातों में मत आना ।” बड़ा खान का स्वर जब्बार के कानों में पड़ा, “ये तुमसे मेरे बारे में जानना चाहेगा । मेरे चेहरे के बारे में जानना चाहेगा । हमारे खास लोगों की जानकारी... ।”

“मैं बच्चा नहीं हूँ बड़ा खान ! अभी तक पुलिस वालों को मैं ही सँभालते आया हूँ ।”

“जेल से निकालने के सपने दिखाकर, ये तुमसे बहुत बातें पूछेगा ।”

“परवाह नहीं । मैं इसकी बातों में नहीं आने वाला ।”

“एकदम अपने को पक्का कर लो कि तुमने इसकी किसी बात की परवाह नहीं करनी है । ये तुम्हें... ।”

“तुम चिंता मत करो बड़ा खान । जब्बार के मुँह से कुछ निकलवा पाना इन पुलिस वालों के बस का नहीं है ।”

“शाबाश ! यही सुनना चाहता था मैं । इस बारे में तसल्ली रखो । मैं तुम्हें जल्दी ही जेल से निकालूँगा ।”

“मुझे तुम्हारी बात पर यकीन है ।” जब्बार ने यकीनी भाव में कहा ।

“मेरे आदमी जेल के भीतर तक पहुँच चुके हैं जब्बार और तुम्हें वहाँ से निकालने के लिए खामोशी से ताना-बाना बुन रहे हैं । दस-बीस दिन की बात है और फिर तुम मेरे पास होगे । फिर हिन्दुस्तान को दहलाकर... ।”

उसी पल देवराज चौहान ने जब्बार से फोन ले लिया ।

जब्बार मलिक गहरी साँस लेकर रह गया ।

“बस !” देवराज चौहान फोन कान से लगाता कह उठा- “बहुत बातें हो गईं बड़ा खान ।”

“जब्बार से बात करके मुझे अच्छा लगा ।”

“कानून इस बात की इजाजत नहीं देता कि इस तरह मैं तुम्हारी बातें जब्बार से कराऊँ ।”

“तुम अजीब आदतों के मालिक हो इंस्पेक्टर । हटकर पुलिस वाले हो ।”

“इसमें कोई शक नहीं कि दिल्ली में तुमने मुझ पर जबरदस्त हमला कराया था । मुझे मार देना चाहते थे ।”

“मुझे ऐसा करना पड़ा । क्योंकि तुम जब्बार पर नजर रखने आ रहे थे और तुम्हें बहुत ही खतरनाक पुलिस वाला माना जाता है । मैं नहीं चाहता था कि तुम जब्बार मलिक तक पहुँचो । तुम मेरी कोशिश को फेल कर सकते हो ।”

“जब्बार को जेल से निकालने की कोशिश ?”

“हाँ !”

“तो तुम कोशिश कर रहे हो । तुम्हारी धमकी खोखली नहीं थी ।”

“बड़ा खान खोखली धमकी नहीं देता ।”

“तुम किसी भी हाल में जब्बार को जेल से नहीं निकलवा सकते ।”

“तुम ही क्यों नहीं मान जाते ।”

“ये बकवास करनी बन्द कर दो अब ।” देवराज चौहान ने कहा और फोन बन्द कर दिया ।

जब्बार मलिक चाय खत्म करके खाली गिलास, नीचे कुर्सी के पास रख चुका था । देवराज चौहान की चाय ठंडी हो गई । उसने भी गिलास नीचे रख दिया ।

जब्बार की निगाह देवराज चौहान पर थी ।

देवराज चौहान मुस्कुराया ।

“ये सच है कि तुम मुझे आसानी से जेल से बाहर निकाल सकते हो ?” जब्बार ने पूछा ।

“सच है !”

“तुम किन शर्तों की बात कर रहे थे ?”

“वह तो मैंने बड़ा खान से कहा था, तुमसे मैं कोई शर्त नहीं रख रहा ।”

“क्या मतलब ?” जब्बार मलिक की आँखें सिकुड़ी ।

“मैं तुम्हें मुफ्त में जेल से बाहर निकालूँगा ।”

जब्बार बुरी तरह चौंका ।

“मुफ्त में ?”

“पूरी तरह मुफ्त में ।” देवराज चौहान के चेहरे पर शांत मुस्कान थी ।

“असम्भव !” जब्बार के होंठों से निकला ।

“क्यों ?”

“बड़ा खान तुम्हें तीस करोड़ देने को तैयार है ।”

“लेकिन मैं रिश्वत नहीं लेता ।”

“तुम जो कह रहे हो, सच कह रहे हो क्या ?” जब्बार मलिक का चेहरा अविश्वास में डूबा था ।

“मैं मजाक नहीं करता ।”

“तुम तीस करोड़ नहीं लोगे और मुफ्त में मुझे जेल से बाहर निकाल दोगे ?”

“अब तुमने ठीक कहा ।”

“ये नहीं हो सकता ।”

“मैं सच कह रहा हूँ ।”

“तुम… तुम बहुत बड़े पागल हो क्या ?”

“नहीं ! मैं समझदार इंसान हूँ । तुम्हें कभी लगा कि मैं पागल हूँ ।”

“अब… अब लग रहा है ।” जब्बार के होंठ भिंच गए ।

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाकर कश लिया और बोला ।

“अगर तुम जेल से बाहर नहीं निकलना चाहते तो जुदा बात है ।”

“मैं… मैं निकलना चाहता हूँ । तुम… तुम ये मेहरबानी मुझ पर क्यों कर रहे हो ?”

“मेरी मर्जी ।”

“मर्जी ? आखिर कुछ तो वजह होगी ?”

“कोई वजह नहीं है । तुम मेरे बारे में न सोचकर अपनी आजादी के बारे में सोचो । तुम बड़ा खान के पास पहुँच जाओगे ।”

जब्बार मलिक देवराज चौहान को खा जाने वाली नजरों से देखने लगा ।

“मैं समझ गया ।” जब्बार बोला ।

“क्या ?”

“तुम मुझे जेल से बाहर निकाल कर, मेरा पीछा करके, मेरे सहारे बड़ा खान तक पहुँच जाने की सोच रहे हो ।”

“तुम्हारी सोच सच में बहुत घटिया है । मैं तुम्हें ऐसा लगता हूँ ।”

जब्बार देवराज चौहान को घूरने लगा ।

“ये बात मेरे और तुम्हारे बीच है । कोई तीसरा इसमें शामिल नहीं है ।”

“मुझे यकीन नहीं आता । तुम्हें तो बड़ा खान ने दिल्ली में, मारने की कोशिश की थी फिर तुम.... ।”

“वह मेरे लिए मामूली बातें हैं । मैं एनकाउंटर स्पेशलिस्ट हूँ । मेरे बहुत दुश्मन हैं ।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा, “मैं तुम्हें यहाँ से फरार करवाने ही आया हूँ । ये मत पूछना क्यों, परन्तु मेरे इरादों के पीछे, बड़ा खान तक पहुँचना नहीं है ।”

“आखिर तुम चाहते क्या हो ?”

“अगर तुम जेल से भाग जाना चाहते हो तो, मैं तुम्हारी मदद करना चाहता हूँ ।”

“मुफ्त में ?”

“हाँ !”

“तीस करोड़ नहीं लोगे ?”

“नहीं !”

“ये ही बात मेरी समझ में नहीं आ रही कि तुम... ।”

“तुम बेकार की बात को समझने की कोशिश कर रहे हो । अगर नहीं निकलना चाहते तो... ।”

“मैं निकलना चाहता हूँ जेल से ।”

देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा ।

जब्बार मलिक देवराज चौहान को देखता रहा ।

“तुम्हें मेरा एहसान मानना चाहिए कि मैं तुम्हें जेल से फरार करवाने को कह रहा हूँ ।”

“जब ऐसा कर दोगे तब मैं अवश्य तुम्हारा एहसान मानूँगा ।”

जब्बार गम्भीर स्वर में बोला, “लेकिन ये ही एक बात समझ में नहीं आ रही कि तुम इस काम के बदले तीस करोड़ क्यों नहीं ले रहे । बड़ा खान तुम्हें पैसा देने को तैयार... ।”

“सच कहूँ ?”

“हाँ, कहो !”

“मैंने बहुत मोटी-मोटी रिश्वतें ली हैं । जिन मगरमच्छों ने रिश्वतें नहीं दीं, उनका एनकाउंटर कर दिया ।”

“ओह, तो ये है तुम्हारे एनकाउंटर का राज ?”

“मेरे पास इतना पैसा इकट्ठा हो चुका है कि अब उसे संभालना कठिन हो रहा है ।” देवराज चौहान ने कहा ।

“ऐसा है तो तुम्हें पुलिस की नौकरी छोड़कर, आराम से जिंदगी बितानी चाहिए ।”

“मैंने ऐसा किया तो बात बाहर आ जायेगी । मैं फँस जाऊँगा । जब तक ये खाकी मेरे जिस्म पर है, तब तक डिपार्टमेंट के लोग भी सम्भले रहते हैं । जुबान बन्द रखते हैं । वर्दी उतरी नहीं कि अपने ही साथी बदला लेने पर लग जाते हैं ।”

“ये बात तो है ।” जब्बार ने सहमति की मोहर लगाई ।

“ये खाकी, अपने को सलामत रखने की आड़ है, वरना नौकरी मैं खुद नहीं करना चाहता ।”

“तुम !” जब्बार बोला, “बड़ा खान को, ये कह सकते थे कि तुम मुझे मुफ्त में.... ।”

“तुम मुझे ठीक लगे । मैंने तुमसे बात कर ली । बड़ा खान को मैंने देखा नहीं । जानता नहीं, और फोन पर ऐसी बातें मैं तय नहीं करता । मैं जानता हूँ कि तुम्हारे मन में मेरे लिए शक है कि मैं तुम्हें मुफ्त में जेल से बाहर क्यों निकाल रहा हूँ । मैं इस स्थिति में होता तो मुझे भी शक होता । लेकिन धीरे-धीरे तुम ठीक हो जाओगे ।”

“मुझे अभी भी यकीन नहीं आ रहा कि तुम जो कह रहे हो वह सच है । तुम मुझे जेल से बाहर निकालोगे ।”

“जल्दी ही ये बात सामने आ जायेगी । वैसे तुम क्या चाहते थे कि बड़ा खान तुम्हें जेल से निकाल ले जाता । वह अपनी इस कोशिश में कभी भी कामयाब नहीं हो सकता । तुम पर सख्त पहरा है ।” देवराज चौहान बोला ।

“तुम मुझे कैसे बाहर निकालोगे ?”

“मैंने प्लानिंग कर ली है ।”

“क्या ?”

“कल बताऊँगा ।” कहने के साथ ही देवराज चौहान उठ खड़ा हुआ ।

“जा रहे हो ?” जब्बार मलिक बेचैन हो उठा ।

“लेकिन मुझे जेल से निकालोगे कब ?”

“परसों ।”

“पक्का ?” जब्बार के चेहरे पर अविश्वास के भाव थे ।

“परसों इस वक्त तक तुम जेल से बाहर, खुली हवा में साँस ले रहे होगे जब्बार !”

“तुम सच में कोई पैसा नहीं लोगे मुझे फरार करवाने की एवज में ?” जब्बार ने खुद को जैसे तिलिस्म में फँसा पाया ।

“ये ही बात सोचते रहो ।” देवराज चौहान ने मुस्कुराकर कहा, “अब उठो । कुर्सियाँ वापस रखो और अपनी कोठरी में पहुँचो कि तुम्हें ताले में बन्द करके जाऊँ और बाकी के काम पूरे करूँ ?”

जब्बार उठते हुए बोला ।

“क्या यहाँ के पहरेदार तुम्हारी योजना में शामिल हैं ?”

“हम जो करने जा रहे हैं, उसमें सिर्फ मैं और तुम ही शामिल हैं ।”

“ये कैसे सम्भव हो सकता है कि... ।”

“वक्त आने पर देख लेना ।”

☐☐☐

देवराज चौहान ने जेलर को चाबी लौटाई ।

“बोला कुछ वह ?” जेलर ने चाबी थामकर पूछा ।

“दो-तीन मुलाकातों के बाद बोलेगा । मैं उससे बातें करके, उसके दिमाग को सही रास्ते पर ला रहा हूँ ।” देवराज चौहान ने कहा ।

“हैरानी होगी कि अगर वह इस तरह मुँह खोल दे । पुलिस तो उसके साथ हर मुमकिन तरकीब लड़ा चुकी है ।”

“जब्बार रास्ते पर आ जायेगा ।” देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा ।

“एक गनमैन ने मुझे अपने मोबाइल से फोन करके बताया कि जब्बार फोन पर बातें कर रहा है ।” जेलर बोला ।

“मैंने बात कराई थी उसकी ।”

“कल भी तुमने बात कराई थी ।”

“हाँ !” देवराज चौहान शांत था ।

“किससे ?”

“क्या ये बताना जरूरी है ?”

जेलर देवराज चौहान को देखने लगा ।

“मैं जो कर रहा हूँ, वह सब मेरी प्लानिंग का हिस्सा है कि जब्बार को लाइन पर ला सकूँ ।” देवराज चौहान ने कहा, “फिर भी आप जानना चाहते हैं कि मैंने किससे बात कराई तो दो दिन बाद इसका जवाब दे दूँगा ।”

“इंस्पेक्टर यादव !” जेलर ने गम्भीर स्वर में कहा, “जब्बार बहुत खतरनाक है । मैं नहीं चाहता कि उसे कुछ करने का मौका मिले । ये तो तुमने देख ही लिया होगा कि उसे बड़ा खान यहाँ से फरार नहीं करवा सकता ।”

“यस सर ! मैं आपकी इस बात से सहमत हूँ ।”

“तो तुम्हें चाहिए कि दिल्ली वालों को इस बारे में अपनी रिपोर्ट दे दो कि जब्बार यहाँ सुरक्षित है ।”

“मैं कुछ और सोच रहा हूँ सर !”

“क्या ?”

“जब्बार मलिक को दिल्ली ले जाकर तिहाड़ जेल में रखा जाये । वह बहुत सुरक्षित जेल है ।”

“तो तुम्हें लगता है कि जब्बार यहाँ से भाग सकता है ।”

“ये बात नहीं सर । परन्तु तिहाड़ जेल में वह ज्यादा सुरक्षित ढंग से कैद में रहेगा ।”

“ये तुम जानो । इस बारे में तुम्हें दिल्ली वालों से बात करनी चाहिए । मेरा काम कैदियों को ठीक से रखना है ।”

“ठीक है सर । मैं दिल्ली वालों से इस बारे में बात करूँगा । वैसे कल दिल्ली से एक इंस्पेक्टर और आ रहा है ।”

“वह क्यों ?”

“मेरे से रिपोर्ट लेने । जब्बार की रिपोर्ट किसी और तरीके से भेजने के लिए मेरे को मना कर दिया गया है । क्योंकि बड़ा खान के हाथ बहुत लम्बे हैं । पुलिस डिपार्टमेंट में उसके लोग हैं । मुझे पहले ही कह दिया गया था कि मेरे पहुँचने के दो-तीन दिन बाद इंस्पेक्टर राजपाल सिंह को भेजा जायेगा । इंस्पेक्टर राजपाल शायद कल आ जाये सर । इस बारे में मुझे अभी फोन आया है ।”

“ये सब तुम्हारा काम है और तुम जानते हो कि ये काम तुमने कैसे करना है ।”

“जी सर !” देवराज चौहान ने जेलर से हाथ मिलाया, “मैं कल आऊँगा सर !”

देवराज चौहान बाहर निकला तो सब-इंस्पेक्टर राधे श्याम शर्मा भी बाहर आ गया ।

“जब्बार से बहुत बढ़िया बात हुई सर ?” शर्मा ने पूछा ।

“हाँ, आज मुझे सफलता मिली !” देवराज चौहान ने सामान्य स्वर में कहा ।

दोनों बाहर की तरफ बढ़े जा रहे थे ।

“बड़ा खान के बारे में बताया उसने कुछ ?”

“ऐसा ही समझो । मेरे और जब्बार के बीच एक समझौता हुआ है ।”

“कैसा समझौता सर ?”

“ये मैं तुम्हें नहीं बता सकता । सीक्रेट बात है । यूँ समझो कि बड़ा खान का बुरा वक्त शुरू हो गया है ।”

“ऐसा सर ?”

“हाँ !”

“फिर तो जब्बार ने बड़ा खान के बारे में जरूर कोई खास बात बताई है ।”

देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा ।

दोनों जेल से बाहर आकर पार्किंग की तरफ बढ़े एकाएक देवराज चौहान ठिठक कर बोला ।

“ओह, मैं अभी आया ! जेलर से एक बात करनी रह गई, तुम पार्किंग में गाड़ी तक चलो, मैं आया ।” इतना कहकर देवराज चौहान पलटकर जेल के बड़े से गेट की तरफ बढ़ता चला गया ।

सब-इंस्पेक्टर राधे श्याम शर्मा ने ठिठककर देवराज चौहान को जाते देखा । उसके चेहरे पर सोच के भाव नाच रहे थे । फिर पलटकर सामने पार्किंग की तरफ बढ़ गया । साथ ही जेब से मोबाइल निकाला और नम्बर मिलाने लगा कि दूसरी तरफ बेल जाने लगी । शर्मा ठिठककर बात होने का इंतजार करने लगा ।

“हैलो !” उधर से आवाज आई ।

“मेरे पास बुरी खबर है ।” शर्मा ने तेज स्वर में कहा ।

“क्या ?”

“जब्बार और इंस्पेक्टर सूरजभान यादव के बीच कोई समझौता हो गया है । सूरजभान ने ही ये बात मुझे बताई है । मेरे पूछने पर उसने ये ही कहा कि समझो आज से बड़ा खान के बुरे दिन शुरू हो गए हैं ।”

“क्या समझौता हुआ दोनों के बीच ?”

“ये नहीं पता लगा । सूरजभान नहीं बता रहा ।”

“ये ही तो काम की बात है, पता लगाओ ।”

“ये बात जानने के लिए ज्यादा जोर दूँगा तो सूरजभान मुझ पर जरूर शक करेगा ।”

“जैसे भी हो, ये बात पता लगाओ ।”

“कोशिश करता हूँ ।”

“वह औरतों का रसिया है या नहीं ?”

“मौका नहीं लगा इस बारे में बात करने का ।”

“तुम बहुत ढीले चल रहे हो शर्मा ।”

“मैं ठीक काम कर रहा हूँ । जो वर्दी मैंने पहनी है, मुझे उसका भी ध्यान रखना पड़ता है ।”

“जो नोट तुम्हें बड़ा खान की तरफ से मिलते हैं, उनका ज्यादा ध्यान रखो ।” कहकर फोन बन्द कर दिया गया ।

देवराज चौहान दूर से ही शर्मा को मोबाइल पर बात करते देख रहा था । वह जानबूझकर शर्मा से अलग हुआ था कि क्या उसकी कही बात सुनकर शर्मा कहीं फोन करता है और शर्मा ने फोन किया । देवराज चौहान के मन में ये शक बैठा हुआ था कि शर्मा बड़ा खान का आदमी हो सकता है । ये शक तब-से शुरू हुआ था जब बड़ा खान ने उसे फोन पर कहा था कि शर्मा के लाये खाने में जहर हो सकता है । यहीं से शक का बीज पड़ा था और जब भी वह जब्बार से मिलकर आता तो शर्मा दिलचस्पी के साथ पूछता है कि जब्बार से क्या बातें हुईं ? शर्मा ने देवराज चौहान को पास आते देखा । फोन उसने जेब में रख लिया था । 

“बहुत जल्दी आ गए सर ?” शर्मा कह उठा ।

“बात इतनी जरूरी नहीं थी । रास्ते से आ गया । कल कर लूँगा ।” देवराज चौहान ने लापरवाही से कहा ।

दोनों कार में जा बैठे । शर्मा ने कार आगे बढ़ा दी ।

“ए.सी.पी. साहब के पास चलें सर ?” शर्मा ने पूछा ।

“नहीं । मुझे किसी बाजार में ले चलो । भीड़-भरे बाजार में । कुछ सामान खरीदना है ।” देवराज चौहान ने कहा ।

“जी !”

शर्मा सामान्य गति से कार चला रहा था ।

“आप जेलर साहब से कह रहे थे कि दिल्ली से इंस्पेक्टर साहब आ रहे हैं ?” शर्मा बोला ।

“इंस्पेक्टर राजपाल सिंह ।”

“वह क्यों सर ?”

“जब्बार के बारे में मैंने उसे रिपोर्ट देनी है ।”

“सर, रिपोर्ट तो आप फोन पर भी... ।”

“बड़ा खान के लोग पुलिस के बीच में हैं । फोन पर बताई रिपोर्ट बाहर भी जा सकती है ।”

“जब्बार के बारे में ऐसी भी क्या रिपोर्ट है कि उसे इतना गुप्त रखा जा रहा है ।”

“ये डिपार्टमेंट की बातें हैं ।”

“कुछ मुझे भी बताइये सर कि जब्बार खान से आपकी क्या बात हुई ?” शर्मा कह उठा ।

“मुझे बात को बाहर करना मना है शर्मा ।”

“बात बाहर नहीं जायेगी सर । मेरा आपसे वादा है ।”

“ये बात है तो जान लो कि जब्बार मलिक ने मुँह खोल दिया है । उसने मुझे बड़ा खान की भीतरी बातें बताई । उसके खास लोगों के बारे में और उनके ठिकानों के बारे में बताया ।” देवराज चौहान ने कहा ।

“सच सर ?” शर्मा के होंठों से निकला ।

“हाँ । ये बात तुम किसी से कहना नहीं ।”

“नहीं कहूँगा सर । लेकिन उसने इतनी आसानी से आपको क्यों बताया । पहले तो वह... ।”

“मेरा उसके साथ समझौता हुआ है । तुम्हें बताया तो है ।”

“क्या समझौता सर ?”

“वह मुझे बड़ा खान के बारे में बताएगा और मैं उसे जेल से फरार करवा दूँगा ।”

“ओह, आप उसे जेल से फरार करवा रहे हैं ?” शर्मा ने देवराज चौहान को देखा ।

“बेवकूफ हो तुम । ये सब तो मैंने उसका मुँह खुलवाने के लिए नाटक किया है और वह मेरी बातों में फँस गया ।”

“आप तो बहुत चालाक हैं सर ।” शर्मा मुस्कुराया, “वरना जब्बार तो काबू में नहीं आ रहा था ।”

“अभी तो वह और बताएगा । ये तो शुरुआत भर है । बड़ा खान अब ज्यादा देर बच नहीं सकेगा ।”

“आप बड़ा खान का एनकाउंटर कर देंगे सर ?”

“ऐसे लोगों का एनकाउंटर ही किया जाता है ।”

“बड़ा खान का एनकाउंटर जरूर करना सर । हमारे देश में वह बहुत दहशत फैला रहा है । बड़ा खान का ठिकाना आपको पता चला गया ?”

देवराज चौहान ने मुस्कुराकर शर्मा को देखा 

“क्या हुआ सर ?”

“ज्यादा मत पूछो । जो बताया है, वह ही ज्यादा हो गया । सब बातें अपने तक रखना ।”

“बेशक मेरी जान चली जाये, परन्तु ये बातें मुँह से नहीं निकलेंगी ।”

“शाबाश !” देवराज चौहान ने कहकर सिगरेट सुलगा ली ।

“सर, रात के लिए बोतल का इंतजाम करूँ ?”

“वह ही अभी पड़ी है ।”

“कुछ और चाहिए हो तो बता दीजिये ।” शर्मा मुस्कुराया ।

“और ?” देवराज चौहान ने शर्मा को देखा ।

“रात को शराब के साथ, कुछ और । कई अफसर कह देते हैं कि किसी को ले आओ ।”

“समझा । !” देवराज चौहान ने सिर हिलाया ।

“कहें तो बढ़िया चीज का इंतजाम कर... ।”

“नहीं ! ये बातें मुझे पसन्द नहीं । इन कामों के लिए मेरी पत्नी ही बहुत है ।”

“आपकी मर्जी सर !”

कुछ देर बाद शर्मा ने कार को भीड़ भरे बाजार के बाहर रोक दिया ।

“सर, ये ऐसा बाजार है जहाँ आपको जरूरत की हर चीज मिलेगी । मैं गाड़ी पार्किंग में लगाकर आता.... ।”

“तुम्हारी जरूरत नहीं शर्मा । मैं अकेले ही बाजार घूमना चाहता हूँ ।” देवराज चौहान बोला ।

“ठीक है सर ! मैं आपका इंतजार करता हूँ ।” शर्मा ने कहा ।

“बेहतर होगा कि तुम वापस चले जाओ । यहाँ मुझे काफी वक्त लग जायेगा । मैं तुम्हें शाम को फ्लैट पर ही मिलूँगा ।”

“आप कहें तो मैं चार घण्टे भी इंतजार कर लूँगा सर ।”

“जरूरत नहीं !” देवराज चौहान ने कार का दरवाजा खोलते हुए कहा, “तुम पाँच बजे मुझे फ्लैट पर मिलना ।”

“जी !”

देवराज चौहान बाहर निकला और बाजार की तरफ बढ़ गया । 

कार में बैठा शर्मा उसे जाता देखता रहा । परन्तु फौरन देवराज चौहान भीड़ में शामिल होकर नजर आना बन्द हो गया ।

शर्मा ने मोबाइल निकालकर नम्बर मिलाया और तुरन्त ही बात हो गई- “बहुत बुरी खबर है ।” शर्मा ने कहा, “जब्बार ने इंस्पेक्टर सूरजभान यादव के सामने मुँह खोल दिया है ।”

“क्या कह रहे हो शर्मा ?”

“मैं सच कह रहा हूँ, इंस्पेक्टर यादव ने मुझे राजदार बनाकर ये बात बताई है । इंस्पेक्टर यादव और जब्बार के बीच समझौता हो गया है कि वह बड़ा खान के बारे में सब कुछ बताएगा और इंस्पेक्टर यादव उसे जेल से बाहर निकाल देगा । जबकि इंस्पेक्टर यादव का कहना है कि उसका ऐसा कोई इरादा नहीं है । उसने तो मुँह खुलवाने के लिए जब्बार से ऐसा कहा है ।”

“जब्बार धोखेबाजी नहीं कर सकता ।”

“उसने ऐसा कर दिया है । तुम्हें मेरी बात का भरोसा करना चाहिए । इंस्पेक्टर यादव ने राजदार बनाकर मुझे ये सब बातें कहीं ।”’

“यकीन नहीं होता ।”

“इंस्पेक्टर सूरजभान यादव ने कहा कि जब्बार ने बड़ा खान के बारे में बताना शुरू कर दिया है । कल वह और बातें बताएगा । वह कहता है कि जब्बार के मुँह से उसे बहुत महत्वपूर्ण बातें पता चली हैं और आगे भी पता चलेंगी ।”

“मुझे सच में विश्वास नहीं हो रहा ।”

“बकवास मत करो । मत भूलो कि ये खबर मैं दे रहा हूँ ।”

उधर से गहरी साँस लेने का स्वर शर्मा के कानों में पड़ा ।

“जब्बार ने बड़ा खान के खास लोगों के बारे में और उनके ठिकानों के बारे में बताया है इंस्पेक्टर यादव को ।”

“बहुत गलत किया जब्बार ने ।”

“जब्बार को इंस्पेक्टर यादव ने अपनी बातों में फँसा लिया है । धोखे में फँस गया जब्बार ।”

“जब्बार इतना बेवकूफ नहीं है कि इंस्पेक्टर की बातों में आ जाये ।”

“वह आ चुका है । अब क्या करोगे ?”

“मेरा काम ऊपर तक पहुँचाना है । बड़ा खान को बताऊँगा । जो करना होगा वह ही करेगा ।”

“मेरी राय है कि इंस्पेक्टर यादव को खत्म कर दिया जाये ।” शर्मा ने कठोर स्वर में कहा ।

“तुम्हारी राय बड़ा खान तक पहुँचा दूँगा ।”

“बेशक ये काम करने को मुझे दे दिया जाये । ठीक मौका देखकर मैं इंस्पेक्टर यादव को शूट कर दूँगा ।”

“बड़ा खान के हुक्म के बिना तुम कुछ नहीं करोगे ।”

“मैं अपनी राय दे रहा हूँ ।”

“अब कहाँ है सूरजभान यादव ?”

“एक मार्केट में गया है । कहता है कुछ खरीदना है । शाम पाँच बजे मुझे फ्लैट पर मिलने को कहा है ।”

“तुम्हें साथ क्यों नहीं ले गया ?”

“मैंने साथ जाने की कोशिश की, परन्तु उसने मना कर दिया ।”

“एक बात बताओ शर्मा ।” उधर से आती सोच-भरी आवाज कानों में पड़ी, “अगर जब्बार ने सूरजभान यादव को कुछ बताया है तो जेल से निकलने के पश्चात उसे ए.सी.पी. संजय कौल के पास जाकर उसे बताना चाहिए था । जब्बार का मामला ए.सी.पी. कौल ही देख रहा है । वह जेल से सीधा बाजार क्यों गया ?”

“इंस्पेक्टर सूरजभान यादव अपनी रिपोर्ट ए.सी.पी. कौल को नहीं दे रहा । जब्बार से जुड़ी बातों की रिपोर्ट लेने दिल्ली से कोई इंस्पेक्टर राजपाल सिंह आजकल में जम्मू आ रहा है । यादव अपनी रिपोर्ट उसके हाथों में सौंपेगा या उसे बताएगा । कोई तो खास बात होगी कि जो यादव ने दिल्ली से किसी को बुलाया है ।”

“इसका मतलब जब्बार ने सच में मुँह खोल दिया है ।”

“तो क्या अब तक तुम मेरी बात को बकवास समझ रहे थे ?” शर्मा ने गुस्से में कहा ।

“मेरा काम बातें लेकर, बड़ा खान तक पहुँचाना है । मैं कुछ नहीं समझ रहा था ।”

“तो जो तुम्हारा काम है, वह ही करो ।”

“औरत वाली बात की तुमने ?”

“की । परन्तु उसने मना कर दिया ।”

“ओह ! मैं तो सोच रहा था कि रूबी को भेजूँगा । वह उसे शीशे में उतार लेगी ।”

“मैंने जो तुम्हें बताया है, वह सब कुछ बड़ा खान को बताओ ।”

“मुझे पता है मुझे क्या करना है ।” कहने के साथ ही उधर से फोन बन्द कर दिया गया ।

सोचो में डूबे शर्मा ने फोन जेब में डाला और कार स्टार्ट करके आगे बढ़ा दी ।

उधर कुछ दूर बाजार की भीड़ में छिपा देवराज चौहान फोन पर बातें करते हुए शर्मा को ही देख रहा था । शर्मा का चरित्र उसके लिए संदिग्ध बनता जा रहा था । फोन पर बात करना मामूली बात थी । परन्तु उसके कार से जाते ही किसी से फोन पर बात करने लग जाने का मतलब था कि ताजा हालात के बारे में किसी को बता रहा है । जेल के बाहर भी जब उसने कुछ देर के लिए शर्मा को छोड़ा तो शर्मा तुरन्त फोन पर बातें करने लग गया था । शर्मा का चरित्र संदिग्ध होने की वजह से ही देवराज चौहान उसे झूठी बातें बता रहा था कि जब्बार के साथ उसका समझौता हो गया है और जब्बार ने मुँह खोल दिया है । अगर शर्मा सच में खबरें बड़ा खान को दे रहा था तो बड़ा खान के हाथ उसकी आशा से कहीं ज्यादा लम्बे थे ।

☐☐☐

आधा घण्टा पैदल चलने के बाद देवराज चौहान बाजार के दूसरे कोने से बाहर निकला तो सामने सड़क को पाया । वाहन वहाँ से आ- जजा रहे थे । टैक्सी की तलाश में देवराज चौहान सड़क किनारे पैदल ही चल पड़ा । बाजार में इस बात का पता नहीं चल पा रहा था कि कोई पीछे है या नहीं, परन्तु सड़क किनारे चलने वालों की संख्या ज्यादा नहीं थी । वह पीछे भी नजर रखने लगा और टैक्सी को भी देखता रहा कि वह खाली जाती मिल जाये ।

जम्मू जैसे शहर में टैक्सी से ज्यादा ऑटो का चलन था । ऐसे में टैक्सी मिलना आसान नहीं था ।

पाँच-सात मिनट बाद ही देवराज चौहान को उस इंसान का पता चल गया जो उसके पीछे था ।

वह पैंतीस बरस का स्वस्थ व फुर्तीला इंसान था । कद पाँच फुट दस इंच था । उसने कमीज-पैंट पहनी हुई थी और वह करीब तीस कदम पीछे आ रहा था । उसके सिर के बाल आगे से साफ थे । देवराज चौहान समझ गया कि ये तब से पीछे है, जब से वह शर्मा से अलग हुआ था । यानी उस पर बड़ा खान पूरी तरह नजर रखवा रहा है । चलते-चलते देवराज चौहान ने मोबाइल निकालकर, वक्त देखा ।

दोपहर के ढाई बज रहे थे ।

कुछ आगे जाने पर देवराज चौहान को एक रेस्टोरेंट दिखा तो लंच के इरादे से और पीछा करने वाले से निबटने की सोचकर रेस्टोरेंट में प्रवेश कर गया ।

चूँकि वह पुलिस की वर्दी में था, इसलिए रेस्टोरेंट वालों ने उसे पूरी तवज्जो दी ।

उसे एक खाली टेबल दी गई । खाना भी जल्दी ही उसे सर्व कर दिया गया ।

इस दौरान देवराज चौहान पीछा करने वाले को देख चुका था कि वह भी रेस्टोरेंट के भीतर आकर वेटर को खाने का ऑर्डर दे रहा है । उसकी टेबल बाहर निकलने वाले दरवाजे के करीब थी ।

देवराज चौहान को लगा कि उस हरी कार में बैठे, उसे इसी व्यक्ति की झलक मिली थी । परन्तु विश्वास के साथ कुछ नहीं कह सकता था । लेकिन एक बात उसे सतर्क कर देने के लिए काफी थी कि जब से शर्मा ने उस हरी कार में बैठे लोगों से जाकर बात की थी, तब से ही हरी कार को उसने अपने पीछे नहीं देखा था ।

स्पष्ट था कि पीछा करने वालों ने कार बदल ली है और अब वह सतर्कता से काम ले रहे हैं ।

देवराज चौहान ने लंच समाप्त किया ।

पीछा करने वाला अभी भी लंच में व्यस्त था और रह-रहकर देवराज चौहान को देख लेता था ।

देवराज चौहान ने टिप के साथ ‘बिल’ पे किया और देखा कि पीछा करने वाले ने भी लंच करना छोड़ दिया है और वेटर को बुलाकर लंच के पैसे दे रहा है ।

देवराज चौहान उठा और बाहर की तरफ बढ़ गया ।

रेस्टोरेंट से बाहर निकलते ही देवराज चौहान बाईं तरफ सरककर खड़ा हो गया ।

चंद पल बीते कि पीछा करने वाला बाहर निकला । फौरन ही ठिठककर देवराज चौहान की तलाश में हर तरफ नजर मारी कि उसी पल देवराज चौहान को अपने पास पहुँचा पाकर उसने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।

“हैलो !” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा, “तुम अच्छी तरह जानते हो कि मैं इंस्पेक्टर सूरजभान यादव हूँ ।”

वह हड़बड़ाया हुआ सा चुप रहा ।

“मैं जानता हूँ तुम मेरा पीछा कर रहे हो ।”

“मैं... मैं पीछा क्यों करूँगा पुलिस वाले का ।” वह कह उठा ।

“चलो, उधर पार्किंग में चलकर बात करते... !”

“मैं क्यों चलूँ तुम्हारे साथ । तुम खामख्वाह मेरे गले पड़ रहे... ।”

“ठीक है तब पुलिस स्टेशन चलते हैं ।”

“लेकिन मैंने किया क्या है ?” वह खीझकर कह उठा ।

“मेरा पीछा ।”

“तुम्हें गलतफहमी हुई है, मैं भला तुम्हारा पीछा क्यों करूँगा ।”

देवराज चौहान ने उसकी आँखों में देखकर कठोर स्वर में कहा- “तुम अच्छी तरह जानते हो कि दिल्ली में मुझे एनकाउंटर स्पेशलिस्ट कहा जाता... ।”

“ठीक है, ठीक है !” मैंने तुम्हारी बात मान ली । चलो पार्किंग में !” वह नर्वस-सा कह उठा ।

देवराज चौहान उसे लेकर पास ही रेस्टोरेंट की पार्किंग में एक कार की ओट में पहुँचा ।

“अपनी रिवॉल्वर निकालो ।” देवराज चौहान ने कहा ।

वह अब घबराया हुआ था । उसके चेहरे पर हिचक आ ठहरी ।

देवराज चौहान ने होलेस्टर से रिवॉल्वर निकाली तो वह फौरन कह उठा ।

“ठहरो, देता हूँ !” इसके साथ ही उसने रिवॉल्वर निकाली और देवराज चौहान को दे दी ।

देवराज चौहान ने अपनी रिवॉल्वर की नाल उसके माथे पर रख दी ।

“ये... ये क्या कर रहे हो ?” वह भय से चीखा ।

वहाँ एक दो लोग और भी थे । ये देखकर वह पीछे हो गए । चूँकि देवराज चौहान पुलिस की वर्दी में था इसलिए किसी ने शोर-शराबा डालने की चेष्टा नहीं की ।

“मैं चाहता हूँ तुम अपने बारे में तुरन्त सब कुछ बिना पूछे बता दो या फिर गोली खाकर मर जाओ ।”

“ब... बताता हूँ !” वह हांफता-सा कह उठा ।

“बोलो !” देवराज चौहान ने रिवॉल्वर वाला हाथ नीचे किया ।

“म... मैं बड़ा खान के लिए काम करता हूँ और इस वक्त तुम पर नजर रख रहा हूँ । तुम जो करते हो । जहाँ जाते हो, उसकी रिपोर्ट बड़ा खान के आदमी को देता हूँ ।”

“बड़ा खान कहाँ मिलेगा ?”

“मुझे क्या पता ? मैं बड़ा खान के किसी ठिकाने को नहीं जानता । फोन पर ऑर्डर मिलता है । पैसे घर पहुँच जाते हैं । बड़ा खान के लिए इसी तरह के काम मुझे करने पड़ते हैं ।” उसने घबराये स्वर में कहा ।

“नाम ?”

“जसबीर सिंह ।”

“पहले तुम हरे रंग की कार में मेरा पीछा कर रहे थे । मुझ पर नजर रख रहे थे ।”

“ह… हाँ !”

“अब जो सवाल मैं तुमसे पूछने जा रहा हूँ उसके जवाब पर ही तुम्हारा जीना-मरना तय है ।”

“म... मैंने तुम्हें सब सच बताया है ।”

“मैं ये कह रहा हूँ कि इस सवाल के जवाब में भी सच बोलना ।”

वह थूक निगलकर रह गया ।

“परसों जब मैं सब इंस्पेक्टर शर्मा के साथ जेल से बाहर निकला तो तुम वहाँ हरी कार में मुझ पर नजर रख रहे थे ।”

“ह...हाँ ! मेरे साथ, एक और भी था ।”

“तब शर्मा तुम्हारे पास आया ।”

उसने सहमति से सिर हिलाया ।

“शर्मा ने तुमसे क्या कहा कि तुम लोग फौरन वहाँ से चले गए ।”

वह एकाएक चुप कर गया ।

“इसी सवाल के जवाब पर तुम्हारा जीना-मरना तय है । वैसे मैं शर्मा की असलियत जान चुका हूँ ।”

“क... कैसी असलियत ?” उसके होंठों से निकला ।

“जो तुम बताने से हिचक रहे हो ।”

“मैं... मैं !”

“मेरे सवाल का जवाब दो ।” देवराज चौहान ने दाँत भींचकर कहा और रिवॉल्वर की नाल पुनः उसके माथे पर रख दी ।

“तु... तुम्हारा ख्याल ठीक है ।” वह डर से काँपकर कह उठा ।

“कैसा ख्याल ?”

“कि... कि शर्मा बड़ा खान के लिए काम करता है ।”

देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा । रिवॉल्वर वाला हाथ नीचे कर लिया ।

“तुम सच बोले, तुम्हारी जिंदगी बच गई ।” देवराज चौहान ने कहा ।

उसने राहत भरी साँस ली ।

“चले जाओ यहाँ से । मैं किसी को नहीं बताऊँगा कि हमारी कोई बात हुई है । समझ गए ?”

“ह...हाँ ! मैं तुम्हारा एहसानमन्द रहूँगा । अगर तुमने शर्मा को नहीं बताया कि मैंने तुम्हें उसके बारे में बता दिया है ।”

“मैं शर्मा तो क्या, किसी से भी कुछ नहीं कहूँगा । परन्तु तुम मुझे दोबारा पीछे नजर मत आना ।”

उसने सिर हिलाया और वहाँ से चला गया ।

देवराज चौहान ने अपनी रिवॉल्वर होलेस्टर में डाली । उसकी रिवॉल्वर जेब में रखी और पार्किंग से बाहर आ गया । सड़क पर नजर मारी, परन्तु टैक्सी कहीं नहीं दिखी ।

देवराज चौहान ने जेब से मोबाइल निकालकर जगमोहन का नम्बर मिलाया ।

“सूरजभान की हालत अब कैसी है ?” देवराज चौहान ने पूछा ।

“बेहतर है । सुधार हो रहा है ।” जगमोहन की आवाज कानों में पड़ी ।

“उसकी पत्नी-बच्चे पास ही हैं उसके ?”

“हाँ ! सोहनलाल भी उनकी बहुत मदद कर रहा है । सब ठीक है, तुम जम्मू में हो ?”

“हाँ !”

“क्या कर रहे हो ?”

“जो कर रहा हूँ ठीक कर रहा... ।”

“तुम्हारी चिंता है मुझे, सूरजभान बनकर पुलिसवालों के बीच तुम कब तक सलामत रह सकते हो ?”

“अभी तक तो सब ठीक चला रहा है ।” कहकर देवराज चौहान ने फोन बन्द कर दिया और जेब में रखा ।

तभी उसे एक खाली ऑटो मिल गया ।

देवराज चौहान ऑटो में बैठा और कैलाश कॉलोनी चलने को कहा । चालीस मिनट बाद देवराज चौहान कैलाश कॉलोनी में 40 नम्बर का मकान ढूंढ रहा था । वह मकान जल्दी ही उसे मिल गया । जो कि दो मंजिला मकान था । बाहर दो-तीन कारें खड़ी थीं । एक-दो लोगों को आते-जाते भी देखा । देवराज चौहान खुले गेट से भीतर प्रवेश कर गया । चूँकि वह पुलिस की वर्दी में था, भीतर मौजूद दो-तीन लोगों की नजर उस पर जा टिकी । एक व्यक्ति तुरन्त पास आया और बोला ।

“हुक्म कीजिये साब ?”

“राठी से मिलना है ।” देवराज चौहान ने कहा ।

“खास काम है साब जी ?”

“उसे कहो दिल्ली से इंस्पेक्टर सूरजभान यादव आया है ।”

“मैं अभी आया ।” कहकर वह मकान के साइड के दरवाजे से भीतर प्रवेश कर गया ।

मिनट भर बाद वह वापस आया तो उसके साथ साठ बरस का एक आदमी भी था जिसने कीमती कपड़े पहने हुए थे । गले में सोने की चैन, हाथ की उँगलियों में सोने की अंगूठियाँ थीं ।

देवराज चौहान उसे देखते ही समझ गया कि वह ही राठी है । 

परन्तु वह व्यक्ति देवराज चौहान को देखते ही बोला ।

“तुम इंस्पेक्टर सूरजभान यादव नहीं हो ।”

देवराज चौहान मुस्कुराया और उसके पास आकर छाती पर लगी नेम प्लेट की तरफ इशारा किया ।

“मैं जिसे इंस्पेक्टर सूरजभान यादव समझकर बाहर आया था, वह तुम नहीं हो ।”

“हम भीतर चलकर बात करें ।” देवराज चौहान ने कहा ।

“नहीं !” उसने स्पष्ट इंकार कर दिया, “मैं तुमसे न तो मिलना चाहता हूँ, न ही बात करना चाहता हूँ ।”

देवराज चौहान ने जेब से मोबाइल निकाला और जगमोहन के नम्बर मिलाता कह उठा ।

“इंस्पेक्टर सूरजभान यादव ने एक बार तुम्हारी जिंदगी बख्शी थी । याद है कि भूल गए ?”

राठी की आँखें सिकुड़ी ।

देवराज चौहान ने फोन कान से लगा लिया । उधर बेल जा रही थी । फिर जगमोहन की आवाज कानों में पड़ी ।

“हैलो !”

“सूरजभान की बात कराओ राठी से ।”

“रुको !”

देवराज चौहान ने मोबाइल राठी की तरफ बढ़ाकर कहा ।

“इंस्पेक्टर सूरजभान यादव से बात कर लो ।”

उलझन में फंसे राठी ने फोन थामा और कान से लगा लिया ।

तभी मध्यम-सी आवाज कानों में पड़ी ।

“राठी !”

“ओह इंस्पेक्टर साहब !” राठी के चेहरे पर मुस्कान उभरी, “मेरा नमस्कार कुबूल कीजिये । मैं.... ।”

“राठी !” आवाज से लग रहा था कि जैसे वह हिम्मत इकट्ठी करके बोल रहा है, “तुम्हारे सामने भी एक इंस्पेक्टर सूरजभान यादव खड़ा है । ये तुमसे जो कहे, वह काम पूरा करना ये मेरा आदमी है ।”

“आपका हुक्म हो गया तो समझिये काम हो गया ।” राठी ने हँसकर कहा ।

इसके साथ ही उधर से फोन बन्द हो गया ।

राठी ने देवराज चौहान को फोन थमाते हुए कहा- “आइये भीतर चलते हैं ।”

भीतर साधारण से ड्राइंग रूम में दोनों जा बैठे । राठी ने वहाँ मौजूद एक आदमी से चाय और खाने-पीने का सामान लाने को कहा । फिर देवराज चौहान से बोला- “आप इंस्पेक्टर यादव साहब के बहुत खास लगते हैं ।”

जवाब में देवराज चौहान मुस्कुराया ।

“मेरे लिए सेवा बताइये ।” राठी ने कहा ।

“मुझे एक ऐसे बन्दे की जरूरत है जो खतरा उठाना जानता हो । मुसीबत मोल ले सके । सूरजभान ने मुझे कहा था कि मैं आप पर भरोसा कर सकता हूँ । किन्हीं भी हालातों में आप मुझे धोखा नहीं देंगे ।”

“सूरजभान की खातिर मैं कुछ भी कर सकता हूँ । अगर आप मुझे पूरी बात बता दें तो काम करने में मुझे आसानी रहेगी ।”

“मैंने एक आदमी को जम्मू जेल से निकालना है ।”

“ओह !”

“वह छः फुट लम्बा, अच्छी सेहत वाला है । मुझे उस जैसा ही आदमी चाहिए कि वह मेरे साथ पुलिस की वर्दी पहनकर, उस कोठरी में जाये और वापसी में पुलिस की वर्दी में कैदी मेरे साथ हो । आपका हाजिर किया बन्दा उसकी जगह कोठरी में रह जायेगा कि उस वक्त सब ये ही समझें कि कैदी अपनी जगह पर मौजूद है ।”

“बहुत खतरनाक योजना है तुम्हारी ।”

“बस ये ही एक रास्ता है उस कैदी को बाहर निकालने का ।”

राठी की पैनी निगाह देवराज चौहान पर थी ।

“पुलिस वाले होकर तुम गैरकानूनी काम कर रहे हो ।”

“इसकी फिक्र आप न करें ।”

“सूरजभान तुम्हारे इरादे जानता है ?”

“नहीं ! आप चाहें तो उससे बात कर सकते हैं ।” देवराज चौहान ने कहा ।

“मुझे सूरजभान ने कहा है कि तुम मुझसे जो कहो, उसे मैं पूरा करूँ ।”

“ये आपकी मर्जी कि आप अब उससे बात करना चाहते हैं या... ।”

“करना चाहता हूँ । नम्बर मिलाकर दो ।”

देवराज चौहान ने फोन निकालकर जगमोहन से बात की ।

“सूरजभान से राठी बात करना चाहता है ।” कहकर देवराज चौहान ने फोन राठी को दे दिया ।

राठी ने फोन कान से लगा लिया ।

कुछ पलों बाद सूरजभान की आवाज राठी के कानों में पड़ी ।

“कहो राठी !”

“तुम्हारा आदमी बहुत ही खतरनाक काम करने को कह रहा है, ये कहता है कि... ।”

“राठी !” सूरजभान की आवाज कानों में पड़ी, “ये जो भी कहता है उसे पूरा करो । सवाल मत करो ।”

“मैं समझ गया ।” कहकर राठी ने फोन देवराज चौहान को देकर कहा, “तुम अपने किसी आदमी को फोन करते हो, फिर वह सूरजभान से बात कराता है । तुम सीधे सूरजभान को क्यों नहीं फोन करते ?”

“ये बात तुम्हें उसी से पूछनी चाहिए थी । फिर भी तुम्हें बता देता हूँ कि सूरजभान घायल है और मेरे दो साथी उसकी देखभाल कर रहे हैं । सूरजभान का परिवार भी, सूरजभान के साथ है ।”

“ओह, कैसे घायल हुआ सूरजभान ?”

“ये बातें करके बात को लम्बा मत करो । मेरी जरूरत तुमने जान ली है कि मुझे कैसा आदमी चाहिए ।”

राठी चुप रहा ।

“ऐसा आदमी है तुम्हारे पास ?”

“इंतजाम हो जायेगा । तुम मुझे अपना नम्बर दे दो । मैं कल सुबह तुम्हें फोन करूँगा ।”

देवराज चौहान ने राठी को अपना फोन नम्बर दिया और वहाँ से बाहर आकर पैदल ही आगे बढ़ गया ।

शाम के पाँच बज रहे थे ।

देवराज चौहान ऑटो-टैक्सी की तलाश में आगे बढ़ा जा रहा था कि फोन बजा ।

“हैलो !” देवराज चौहान ने बात की ।

“इंस्पेक्टर सूरजभान यादव !” बड़ा खान की आवाज कानों में पड़ी ।

“तुम ?” देवराज चौहान के चेहरे पर कड़वी मुस्कान उभरी ।

“सुबह तुमने कहा कि जब्बार के साथ तुम्हारा समझौता होने जा रहा है अगर उसने तुम्हारी शर्तें मान ली तो... ।”

“हाँ, ऐसा ही कहा था मैंने !”

“क्या बात हुई जब्बार से ?”

“तुम्हारे हाथ तो बहुत लम्बे हैं बड़ा खान । ये बात तुम्हें पता नहीं चली कि मेरी क्या बात हुई जब्बार से ?”

दो पलों की खामोशी के बाद आवाज आई बड़ा खान की ।

“मुझे पता चल चुका है, परन्तु मैं तुम्हारे मुँह से सुनना चाहता हूँ ।”

देवराज चौहान समझ गया कि शर्मा ने ही आगे खबर भेजी है । उसके अलावा तो ये बात उसने किसी से की नहीं थी । देवराज चौहान की आँखों के सामने शर्मा का चेहरा नाच उठा ।

“जब्बार मलिक से मेरा समझौता हो गया है । सुनकर तुम्हें दुःख होगा ।

“क्या ?”

“वह मुझे तुम्हारे बारे में सब कुछ बताएगा और मैं उसे जेल से बाहर निकाल दूँगा ।”

“जब्बार मलिक ऐसा घटिया इंसान नहीं है ।”

“वह बहुत बढ़िया इंसान है । उसने आज मुझे तुम्हारे बारे में बहुत कुछ बताया । तुम्हारे आदमियों के बारे में बताया । उनके ठिकानों के बारे में बताया । वह समझौते पर खरा उतर रहा है ।”

“मैं तुम्हारी बात पर यकीन नहीं कर सकता । जब्बार ऐसा नहीं है ।”

“मैं तुम्हें यकीन दिलाना भी नहीं चाहता । कल जब्बार मुझे और भी बहुत बातें बताएगा । मैं उसे रजिस्टर और पेन देकर आया हूँ । वह सब बातें लिखता रहेगा । कल मैं जाऊँगा तो रजिस्टर मुझे दे देगा ।”

बड़ा खान की आवाज नहीं आई ।

“चुप क्यों हो गए ?” देवराज चौहान सड़क के किनारे आगे बढ़ा जा रहा था ।

“जब्बार ऐसा नहीं है ।”

“तो तुम चाहते हो कि मैं तुम्हें यकीन दिलाऊँ ?” देवराज चौहान हँसा ।

बड़ा खान की आवाज नहीं आई ।

“मैं तुम्हें यकीन भी दिला सकता हूँ ।” देवराज चौहान ने कहा ।

“कैसे ?” बड़ा खान की आवाज कानों में पड़ी ।

“चार-पाँच दिनों के बाद जब्बार मलिक को मैं जेल से फरार करवा दूँगा । उसने ईमानदारी से मुझे सब कुछ बताया है तो मैं भी अपनी बात पूरी करूँगा, उसे जेल से बाहर निकलवा दूँगा ।”

“अगर तुमने ये ही काम करना था तो मेरे से तीस करोड़ लेकर करते ।”

“मैं तुम्हारे बारे में जानना चाहता था । ताकि तुम्हारा एनकाउंटर करके नाम कमा सकूँ ।”

“तीस करोड़ कमाना ज्यादा समझदारी वाली बात है ।”

“मैंने अपनी समझ के हिसाब से जब्बार से सौदा किया है ।”

“यकीन नहीं होता तुम्हारी बात पर ।”

“कुछ दिन रुको । जब्बार के जेल से फरार होने की खबर सुनकर यकीन कर लेना ।”

“मैं अभी भी तुम्हें तीस करोड़ दे सकता हूँ ।”

“क्यों ?”

“जब्बार से मिलने वाली जानकारी किसी को न बताओ । वह सारी मेरे हवाले कर दो ।”

“कभी नहीं । उस जानकारी को पाने के लिए मुझे जब्बार पर बहुत मेहनत करनी पड़ी । उसे रास्ते पर लाना आसान नहीं था । मैं इस बात को कभी नहीं भूल सकता कि तुमने दिल्ली में मुझे मारने की चेष्टा की थी ।”

“मैं तुम्हें तीस करोड़ की रकम देने को तैयार हूँ ।”

“जिसकी मैं जरूरत नहीं समझता ।”

“इस बार के हमले में तुम मर भी सकते हो । हर बार किस्मत साथ नहीं देती ।”

“बेशक मैं मर जाऊँ लेकिन तुम्हारा काम हो ही गया बड़ा खान ।”

“जब्बार इतना भी नहीं जानता कि मुझे मुसीबत में डाल सके ।” बड़ा खान की शांत आवाज आई ।

“वह तुम्हारे बारे में बहुत कुछ जानता है, जिसकी तुम्हें खबर भी नहीं है । अभी तक आज सुबह उसने जो बताया है, वह बातें ही पुलिस के लिए काफी हैं तुम्हारी गर्दन पकड़ने के लिए । लेकिन तुम्हारा एनकाउंटर मैं करूँगा ।” देवराज चौहान ने कहा और फोन बन्द कर दिया । चेहरे पर जहरीले भाव नाच रहे थे । मन ही मन अंदाजा लग रहा था कि बड़ा खान इस वक्त क्या सोच रहा होगा और अब क्या करेगा ?”

तभी खाली टैक्सी मिल गई । देवराज चौहान ने टैक्सी को रुकवाया और उसमें बैठते हुए ड्राइवर को बताया कि कहाँ जाना है । टैक्सी आगे बढ़ गई ।

देवराज चौहान अब फ्लैट पर जाना चाहता था । 

तभी फोन बजा । देवराज चौहान ने बात की । दूसरी तरफ शर्मा था ।

“सर आप कहाँ हैं, आपने पाँच बजे मुझे फ्लैट पर आने को कहा था । पर आप यहाँ नहीं हैं ।”

“आ रहा हूँ ।” देवराज चौहान ने कहा ।

☐☐☐

शर्मा बाहर ही इंतजार करता मिला । देवराज चौहान ने उसे चाबी दी तो वह फ्लैट खोलते कह उठा ।

“बाजार से कुछ खरीददारी नहीं की सर ?”

“नहीं ! आज ये देखा कि वहाँ क्या-क्या मिलता है । कल फिर जाऊँगा ।” देवराज चौहान ने कहा ।

दोनों भीतर प्रवेश कर गए ।

“कॉफी बनाऊँ सर ?” शर्मा बोला ।

“हाँ !”

शर्मा किचन में चला गया ।

देवराज चौहान ने वर्दी उतारकर, दूसरे कपड़े पहने और सिगरेट सुलगाकर बैठ गया ।

कुछ ही देर में शर्मा दो कॉफी बना लाया । एक उसे दी, दूसरी खुद थामकर बैठ गया ।

देवराज चौहान ने कॉफी का घूँट भरा तो शर्मा कह उठा ।

“सर, मैं अभी तक जब्बार के बारे में सोच रहा हूँ !”

“उसके बारे में सोचने को है ही क्या ?” देवराज चौहान मुस्कुराया ।

“आपने किस चालाकी के साथ उस पर काबू पा लिया । उसके भीतर की बातें जान लीं ।”

“कल वह और भी बहुत कुछ बताने वाला है ।”

“बड़ा खान के बारे में आपको काफी कुछ बता दिया जब्बार ने ?”

“बहुत कुछ !” देवराज चौहान ने कॉफी का घूँट लेते शर्मा को देखा ।

“तो आपको फौरन बड़ा खान के खिलाफ एक्शन लेना चाहिए ।”

“मैं जल्दबाजी नहीं करता । मेरा काम करने का ढंग औरों से अलग है । लेकिन वह बचेगा नहीं । मेरी नजर अब बड़ा खान पर टिक चुकी है । उसकी मौत के साथ ही ये खेल खत्म होगा ।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा ।

“मुझे और बताइये सर कि जब्बार ने क्या-क्या बताया ?” शर्मा ने मुस्कुराकर कहा ।

“तुम ये बातें जानने को बहुत उत्सुक हो रहे हो ।”

“उत्सुकता तो होती ही है सर कि जब्बार का मुँह कोई नहीं खुलवा सका और ये काम आपने कर दिखाया ।”

“इस बारे में मुझसे ज्यादा मत पूछो । तुम्हें जल्दी ही मैं बड़ा खान की लाश दिखाऊँगा ।”

शर्मा सिर हिलाकर रह गया ।

“बड़ा खान का एनकाउंटर करने के लिये मैंने अपना काम शुरू कर दिया है ।” देवराज चौहान बोला ।

“ओह !”

“लेकिन आप तो अकेले जम्मू आये थे । आपके आदमी तो मैंने देखे नहीं ।” शर्मा कह उठा ।

“ये ही तो मेरा काम करने का ढंग है कि मरने वाले को पता नहीं चलता कि उसकी मौत आ गई है । मैं कहीं भी अकेला नहीं जाता परन्तु अकेला दिखता हूँ । बड़ा खान मुझ पर नजर रखवा रहा है । ये मैं जानता हूँ । परन्तु वह ये नहीं जानता कि मेरे आदमी उसके खिलाफ काम शुरू कर चुके हैं । वह अब बच नहीं सकेगा ।”

“ओह ! आप तो बहुत ही छुपे रुस्तम हैं ।”

देवराज चौहान ने मुस्कुराकर कॉफी का प्याला रखा ।

“मैं कुछ देर आराम करना चाहता हूँ शर्मा ।”

“जरूर सर । मुझे बताइये मैं आपके लिए क्या करूँ ?” शर्मा बोला ।

“जो तुम्हारे मन में आये करो ।”

“रात के खाने में कुछ खास चाहिए तो कह दीजिये ।” शर्मा ने कहा ।

“कुछ भी खास नहीं ।” देवराज चौहान उठता हुआ बोला, “जो तुम खाओगे, मैं खा लूँगा ।”

☐☐☐