वक्त बीतता जा रहा था।
काला महल शैतान के आसमान की तरफ बढ़ रहा था।
वो सब थक-टूटकर नीचे बिछे कालीन पर बैठ चुके थे। उनके चेहरों पर निराशा, क्रोध और शैतान के प्रति नफरत झलक रही थी। बेबस से हुए पड़े थे वे सब।
भामा परी खिड़की के पास खड़ी बाहर देख रही थी। जहां नीचे धुंध और ऊपर आसमान जैसा नज़र आ रहा था। चेहरे पर गम्भीरता और दुःख के भाव थे।
आहट पाकर उसने सिर घुमाया तो पास ही जगमोहन को मौजूद पाया।
“परीलोक जाने के लिये तुम्हारा रास्ता छोटा हो जायेगा।” जगमोहन धीमे स्वर में बोला।
“वो कैसे?” भामा परी के होंठों से निकला।
“तुमने बताया था कि तुम्हारा परीलोक भी किसी आसमान पर बसता है।” जगमोहन ने खिड़की से बाहर झांका-“काला महल हमें चार आसमान पार ले जा रहा है। वहां से तुम्हारा परीलोक पास ही होगा।”
“नहीं।” भामा परी ने सिर हिलाया-“शैतान के आसमान से हमारा आसमान बहुत जुदा और बहुत दूर है।”
“क्या मतलब?”
“तुम नहीं समझ पाओगे। आसमान सिर्फ ये ही नहीं होता जो तुम्हें नज़र आता है। ये एक अलग ही दुनिया है। बहुत तरह के आसमान होते हैं। मैं तुम्हें समझा नहीं पाऊंगी।” भामा परी ने गम्भीर स्वर में कहा-“शैतान का आसमान सब आसमानों से अलग-थलग बहुत दूर पड़ता है। शैतान कभी भी ये पसन्द नहीं करता कि कोई है उसके आसमान के पास से भी गुजरे। वो चुपचाप अपने काम करता है। इसलिये वो सबसे बहुत दूर रहता है। हमारे परीलोक में, पैदाईश से ही हमें ये शिक्षा दे दी जाती है कि हमें किसी भी स्थिति में उस तरफ नहीं जाना, जिधर शैतान का आसमान है।”
“क्यों?”
“शैतानों का प्रिय भोजन है हम परीलोक वाले-।”
“शैतान की दुनिया के वासी तुम्हारे परीलोक में आकर-।”
“नहीं। शैतान हमारे परीलोक में प्रवेश नहीं कर सकता। भगवान ने हमें ऐसा आशीर्वाद दे रखा है कि अगर शैतान की दुनिया का कोई कण भी परीलोक की दुनिया में प्रवेश करने की चेष्टा करेगा तो भगवान के आशीर्वाद की वजह से उसका वजूद उसी वक्त मिट जायेगा। इसलिये शैतान लोक के वासी हमारे आसमान की तरफ नहीं आते।”
“अजीब बातें हैं। समझ कर भी, मेरी समझ से बाहर हैं।”
जगमोहन ने गहरी सांस ली।
भामा परी ने कुछ नहीं कहा।
“तुम्हें शिक्षा दी गई है कि शैतान के आसमान की तरफ नहीं
जाना तो अब तुम क्यों जा रही हो?”
“मजबूरी में मुझे जाना पड़ रहा है।” भामा परी ने जगमोहन
को गम्भीर निगाहों से देखा-“हमें ये भी शिक्षा दी जाती है कि दूसरों का भला करो और किसी से एहसान मत लो। लो तो भूलो मत। मुझे तुम लोगों का एहसान लेना पड़ा था। जब मैं कारी राक्षस के तीर लगने की वजह से अपना अस्तित्व समेटकर चिड़िया बनी हुई थी तो तुम लोगों की वजह से ही मैं अपने असली रूप को पा सकी। ये एहसान हो गया था मुझ पर।” कारी राक्षस के बारे में जानने के लिये पढ़ें पूर्व प्रकाशित उपन्यास “दूसरी चोट”-“मेरी सहायता की तुम लोगों ने। और इस वक्त तुम सब मनुष्य मुसीबत में हो। मैं तुम लोगों का साथ नहीं छोड़ सकती।”
“तुम हमारी कोई सहायता नहीं कर सकतीं तो फिर साथ रहने का क्या फायदा?”
“मैं नहीं जानती कि तुम लोगों की सहायता कर सकती हूं या नहीं। लेकिन इस वक्त तुम लोगों का साथ नहीं छोड़ सकती। अपने परीलोक जाकर मुझे जवाब भी देना है कि मैं क्या कर्म करके आई-।” भामा परी ने गम्भीर स्वर में कहा।
“शैतान की दुनिया के लोग, तुम्हें पकड़ भी सकते हैं। तुम्हें खा भी सकते हैं। तुम्हें खतरा...।”
“सबको ही खतरा है। मेरी जान ज्यादा कीमती नहीं है। जीवन सबका एक जैसा होता है।”
जगमोहन ने फिर कुछ नहीं कहा।
कुछ दूर बैठे महाजन ने घूंट भरा। पास बैठी राधा कह उठी।
“नीलू! अगर मेरी बात मानी होती तो किसी को भी आज ये वक्त न देखना पड़ता।”
“मैं समझा नहीं-।”
“वो ही, फटे कपड़ों वाला भिखारी जैसा व्यक्ति, जिसे तुम लोग पेशीराम या फकीर बाबा कहते हो। तुम सब उसकी बातों में आ गये। उसने ही सबको शैतान के अवतार की धरती पर भेजा और अब हम मरने के लिये शैतान की दुनिया में जा रहे हैं। तब मेरी बात मानकर ज़रा सा अक्ल से काम लिया होता तो सब ठीक रहता।” राधा हाथ हिलाकर समझाने वाले ढंग में कह उठी-“बहुत बहादुर बनकर आये थे शैतान के अवतार से टकराने कि उसे, गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल नहीं तलाश करने देंगे। खत्म कर देंगे शैतान के अवतार को। हुआ क्या-? देवराज चौहान मारा गया। हम सब भी जल्दी ही मरने वाले हैं। ऐसे में शैतान के अवतार को मार दिया तो क्या हो गया। गुरुवर की शक्तियों वाली बाल कोई और तलाश करके शैतान के हवाले कर देगा। अपनी जान भी गंवाई और गुरुवर के काम भी न आ सके।”
महाजन गम्भीर निगाहों से राधा को देखने लगा।
मोना चौधरी और जगमोहन की नज़रें मिलीं। आंखों में क्रोध था।
“सच में।” पारसनाथ अपने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरकर सख्त स्वर में कह उठा-“मरने का गम तो अब भी नहीं है। तब खुशी से मौत को गले लगाते कि हम जिस काम के लिये निकले, वो पूरा कर दिया। अगर गुरुवर की बाल को तलाश करके सुरक्षित हाथों में पहुंचा देते।”
“शैतान के आदमी गुरुवर की बाल को पक्का ढूंढेला बाप।” रुस्तम राव होंठ भींचकर बोला-“द्रोणा मरेला तो फर्क नेई पड़ने का। शैतान के पास बोत चेले-चपाटे होएला, बाल को ढूंढने वास्ते।”
“छोरे! ईब म्हारे बसो में कुछ नेई हौवे।”
“तुम लोग ये क्यों सोचते हो कि गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल असुरक्षित है?” सोहनलाल ने कहा-“यज्ञ आरम्भ करने से पहले गुरुवर ने बाल को बेहद सुरक्षित जगह छिपाया होगा। शैतान की दुनिया के लोग उस शक्तियों से भरी बाल को अवश्य ढूंढ रहे हैं। गुरुवर को अवश्य मालूम होगा कि ऐसा होगा तो उन्होंने अपनी शक्तियों से भरी बाल ऐसी जगह छिपाई होगी कि यहां से उसे कोई ढूंढ न सके।”
“सोहनलाल ठीक कह रहा है।” जगमोहन सुलगते स्वर में
कह उठा-“गुरुवर ज्ञानी हैं। आने वाले वक्त का एहसास अवश्य
उन्हें हो गया होगा। उन्होंने अपनी शक्तियों को समेट कर, बाल में रखा और बाल को ऐसी जगह छिपाया होगा कि शैतानी हवा भी उस बाल को हासिल न कर सके।”
“अगर शैतान के हाथ, गुरुवर की शक्तियों वाली बाल लग गई तो शैतान के पास बे-पनाह शक्तियां इकट्ठी हो जायेंगी। वो कहर बरपा देगा।” महाजन परेशान स्वर में कह उठा।
“तो ईब अंम का करो हो। कछो भी न कर सको हो। म्हारे हाथ-पांव बंधो हो। अंम तो आसमानो और खजूरो में के बीचो झूलो हो। बोत मजबूरो हौवे अंम सबो।”
कुछ पलों के लिये वहां चुप्पी छा गई।
हर कोई मजबूर और गुस्से से भरी नज़रों से एक-दूसरे को देख रहा था।
“हम ऐसी स्थिति में हैं कि गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल के बारे में कुछ नहीं कर सकते। उस बाल को नहीं ढूंढ सकते।” सोहनलाल ने गम्भीर स्वर में कहा-“ये सब बेकार की बातें हैं अब।”
“सोहनलाल ठीक कहेला है।”
“इस वक्त देवराज चौहान पास होता तो शायद हम इतने परेशान न होते।” मोना चौधरी होंठ भींचकर कह उठी।
“तुम भी सोच सकती हो कि...।”
“मैं जो भी सोचती हूं, वो सोच बिखर जाती है। क्योंकि इस वक्त हम बहुत बुरे हालातों में आ फंसे हैं। मेरी और देवराज चौहान की सोच शायद हम सबको किसी मंजिल पर पहुंचा देती। इस वक्त में तुम कोई राय दे सकते हो तो मुझे दो-।” कहते हुए मोना चौधरी की व्याकुल गम्भीर निगाह सब चेहरों पर फिरने लगी।
“हम सबके सामने ऐसे हालात हैं कि राय देना तो दूर, खुद को संभालना भी कठिन हो रहा है।” जगमोहन दुःख भरे स्वर में कह उठा-“हमने कभी सोचा भी नहीं था कि ऐसे हालातों में फंस जायेंगे कि...।”
“म्हारे को तो अभ्भी भी विश्वास न आयो कि देवराज चौहान ‘वडा’ गयो हौवे।” बांकेलाल राठौर ने दर्द भरे स्वर में कहा और निगाहें देवराज चौहान की लाश की तरफ उठ गईं। आंखों में आंसू चमक उठे थे।
देवराज चौहान का कटा सिर गोद में रखे, नगीना बालों में हाथ की उंगलियां फेर रही थी कि बांकेलाल राठौर की बात सुनकर, सिर उठाकर उसे देखा। नगीना की आंखों के आंसू सूख चुके थे, परन्तु आंखों में लाली अवश्य थी।
“बांके-।” नगीना के स्वर में किसी तरह को भाव नहीं था।
“बहना-।” रुस्तम राव का स्वर काँप सा उठा।
सब की निगाह नगीना की तरफ उठने लगी।
नगीना ने गोद में रखा देवराज चौहान का कटा सिर, सामने पड़े देवराज चौहान के मृत शरीर के धड़ के साथ सटाकर रखा और खड़ी हो गई। सुर्ख आंखों को छोड़ दें तो, नगीना हाव-भाव से बेहद सामान्य लग रही थी। गम्भीरता की गहराईयों में डूबी महसूस हो रही थी।
“का बात हौवे बहना-?” बांकेलाल राठौर का स्वर कांपा। आंखों में आंसू टिके, चमक रहे थे।
नगीना धीमे-धीमे कदम उठाती, बांकेलाल राठौर के पास जा पहुंची।
“बांके भैया!” नगीना ने बेहद गम्भीर स्वर में कहा-“तुम्हें देवराज चौहान की मौत को विश्वास नहीं आ रहा। दोबारा ये बात मत कहना कि उनकी मौत का विश्वास नहीं आ रहा।”
“सचो बहनो-म्हारे को-।” बांकेलाल राठौर ने कहना चाहा।
“मैं ये बात सबसे कह रही हूं-।” शांत दृढ़ स्वर में कहते हुए नगीना की नज़रें उनके चेहरों पर फिरने लगीं-“देवराज चौहान की, मेरे पति की मौत हो चुकी है। वो मर चुके...।”
“भा-भी-।” जगमोहन का कंपकंपाता स्वर सबको सुनाई दिया-“ये आपको क्या हो गया है जो...।”
“मुझे कुछ नहीं हुआ जगमोहन।” नगीना ने पूर्ववतः स्वर में कहा-“मैं बिल्कुल ठीक हूं। अगर कोई बात गलत कह रही हूं तो बताओ। जो सच है, वही कह रही हूं और कह रही हूं कि यकीन करो-।”
सब की बेचैन, दुःख भरी नज़रें नगीना पर थीं।
“इस सच्चाई से हम वाकिफ थे कि मोना चौधरी के सामने पड़ने से, अगले दो महीनों में मोना चौधरी से देवराज चौहान का झगड़ा खड़ा हुआ तो वे जिन्दा नहीं रहेंगे। फकीर बाबा ने, पेशीराम ने देवराज चौहान को कितना समझाया। कितना रोका। लेकिन वे नहीं माने। मोना चौधरी से टक्कर लेने के लिये, दिल्ली जाने को वे तैयार थे और जब मैंने देखा कि वो नहीं रुकेंगे तो अपने धर्म का पालन करते हुए, मैं भी साथ चल पड़ी।” इन बातों को जानने के लिये पढ़े अनिल मोहन का एवं प्रकाशित उपन्यास “पहली चोट”।
किसी ने जवाब में कुछ नहीं कहा।
“अब वो ही हुआ, जिसके बारे में फकीर बाबा ने पहले बता दिया था। इस सच को हमें हर हाल में मान लेना चाहिये। देवराज चौहान अब नहीं रहे। हम लोगों से हमेशा-हमेशा के लिये जुदा हो चुके-।”
जगमोहन दोनों हाथों से चेहरा ढाँपें फफक-फफक कर रो पड़ा।
सबकी नज़रें जगमोहन की तरफ उठने लगीं।
“रो क्यों रहा है जगमोहन-।” नगीना का स्वर बेहद शांत और दृढ़ता से भरा था।
जगमोहन फफकता रहा।
“जगमोहन-!” इस बार नगीना का स्वर कठोर और तेज हो गया।
जगमोहन ने चेहरे से दोनों हाथ हटाकर नगीना को देखा।
“सच को स्वीकार करने में तू परेशान क्यों हो रहा है?”
“हिम्मत साथ नहीं दे रही कि देवराज चौहान की मौत को स्वीकार करूं-।” जगमोहन रोते हुए कह उठा।
“मत स्वीकार कर।” नगीना एक-एक शब्द चबाकर बोली-“लेकिन मुझे इतना बता दे कि सामने जो सिर कटा, मृत शरीर पड़ा है, वो किसका है? क्या देवराज चौहान का नहीं?”
“हां-।” जगमोहन का आंसुओं भरा चेहरा देवराज चौहान की लाश की तरफ उठा-“देवराज चौहान ही है वो।”
“तो उसकी मौत को स्वीकार कर-।”
जगमोहन ने होंठ भींच लिए।
“जैसे जीवन सत्य है। ठीक वैसे ही मौत सत्य है। जिसे बिना किसी हिचक के मान लेना चाहिये।”
“तुमने मान ली देवराज चौहान की मौत?” सोहनलाल ने धीमे स्वर में पूछा।
“हां...।” नगीना ने सोहन लाल को देखा।
“भूल गई देवराज चौहान को?”
“नहीं। जब तक मेरी अंतिम सांस है। देवराज चौहान को नहीं भूल सकूँगी। वो मेरे पति थे। मेरा जीवन उनका ही है। हर सांस के साथ मेरी जुबान पर उनका नाम आता रहेगा। मैं उन्हें नहीं भूल सकती।” नगीना अपनी थरथराती आवाज पर काबू पाने की चेष्टा कर रही थी-“मैं तो इतना कह रही हूं कि उनकी मौत को स्वीकार कर लो कि वो अब हमारे बीच नहीं रहे।”
“इतनी बड़ी बात कैसे स्वीकार करेला बाप।” रुस्तम राव दांत
भींचकर कह उठा-“दिल फटेला है।”
“छोरे! दिल फटो तो फटो। यो बात तो सचो ही होवो। माननो
ही पड़ो हो।”
तभी भामा परी कह उठी।
“नगीना ठीक कहती है कि मरो के साथ मरा नहीं जा सकता। तुम सबको अपने जीवन के बारे में सोचना चाहिये।”
“कहना आसान है भामा परी।” मोना चौधरी भारी स्वर में कह उठी-“ये तो वो ही जानते हैं, जिनके दिल पर बीतती है। कभी-कभी किसी की मौत की वजह से दूसरों का जीवन भी डगमगा जाता है।”
“तुम्हें देवराज चौहान की मौत का ज्यादा दुःख तो नहीं मोना चौधरी?” भामा परी ने सामान्य स्वर में कहा।
“मुझे...?” मोना चौधरी ने दांत भींचकर, भामा परी को देखा- मुझे देवराज चौहान की मौत का सबसे ज्यादा दुःख है।”
“वो क्यों?”
“देवराज चौहान के साथ मेरा रिश्ता तीन जन्मों का था। बेशक दुश्मनी का ही था लेकिन ये तीसरा जन्म था। पुराने रिश्ते का इस तरह टूट जाना दुःखदायी क्यों नहीं होगा।” मोना चौधरी का कठोर स्वर व्याकुल हो गया था।
“थारे को ज्यादो दुःख हौवे का।” बांकेलाल राठौर उखड़े स्वर
में कह उठा-“म्हारो रिश्तो भी देवराज चौहानो के साथो तीनो जन्म का होवे। पेशीराम बतायो कि म्हारा नामो पहलो जन्मो में भंवर सिंह होवे।”
“आपुन का त्रिवेणी। पेशीराम की बेटी लाडो से आपुन का ब्याह होएला। पण आपुन को देवराज चौहान के, कालूराम द्वारा घिरे जाने की खबर मिएला तो आपुन फेरो से भागेला, फाईट के वास्ते।” रुस्तम राव के बारे में ये बातें जानने के लिये पढ़ें अनिल मोहन के पूर्व प्रकाशित उपन्यास “ताज के दावेदार” और “कौन लेगा ताज”।
“तब मैं साथ ही था और मेरा नाम गुलचंद था।” सोहनलाल ने गम्भीर स्वर में कहा।
मोना चौधरी की निगाह उन पर थी।
“पेशीराम ने मुझे बताया था कि मैं पहले जन्म में-दूसरे जन्म में देवराज चौहान का सबसे खास और सबसे करीबी दोस्त था।” जगमोहन दांत भींचकर, शब्दों को चबाते कह उठा-“ये जन्म भी तुम लोगों के सामने ही है। देवराज चौहान की मौत का जितना दुःख मुझे है, उतना तुम में से शायद किसी को भी नहीं।”
“पहले जन्म में मेरा नाम नीलसिंह था।” महाजन ने गहरी सांस ली-“पेशीराम ने ही बताया। हाकिम से टक्कर लेने जब वहां गये तो, तब अपने पहले जन्म की मां से मिला था। उस वक्त थोड़ा-सा पूर्व जन्म के बारे में याद आया था। लेकिन अब कुछ याद नहीं। मोना चौधरी के साथ ही रहा हमेशा।”
“मैं भी तो मोना चौधरी के साथ ही था।” पारसनाथ अपने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरता कह उठा-“परसू होता था मेरा नाम। पेशीराम ने बताया। लेकिन बीते जन्मों की बातें मुझे याद नहीं आ सकीं।”
“पेशीराम ने कई बार कहा है कि वो हम सबको एक साथ बीते जन्मों की सारी बातें बतायेगा। पहले जन्म की कि हम क्या थे। कैसे पैदा हुए। कैसे बढ़े हुए। कैसे झगड़े होने शुरू हुए। इसी तरह दूसरे जन्म के बारे में भी बताना था उसने।” मोना चौधरी
दांतों से होंठ काटते गम्भीर स्वर में कह उठी-“लेकिन अब शायद हम न जान पाये ये बातें। पेशीराम अब नहीं बतायेगा।”
“क्यों?” राधा के होंठों से निकला-“अब वो क्यों नहीं बतायेगा?”
“क्योंकि देवराज चौहान हमारे बीच नहीं रहा।” मोना चौधरी
के दांत भिंच गये-“मेरी या देवराज चौहान की गैर मौजूदगी में,
सिर्फ एक को पेशीराम बीते, पूर्व जन्मों की बातें नहीं बताएगा। उसने ये बात कई बार कहीं है कि सबको एक साथ ही पूर्व जन्मों की बातें बतायेगा।”
“इसका मतलब अब वो बातें होंगी ही नहीं-। हम पूर्वजन्मों का कुछ नहीं जान...।” महाजन ने कहना चाहा।
“हम करेंगे भी क्या, पूर्व जन्मों की बातें जानकर-।” जगमोहन कड़वे स्वर में कह उठा-“खुद का तो भरोसा नहीं कि हमारी जिन्दगी का कितना वक्त बचा है। शैतान की शैतानियों का काला साया हमारे सिरों पर मंडरा रहा है। कभी भी वो हमारी जान ले लेगा। जिन्दगी की बची हुई चंद सांसों में, पूर्व जन्म की बातें जानकर हम करेंगे भी क्या। इस जन्म की भागदौड़ का अंत कभी भी हो जायेगा।”
“हां-।” मोना चौधरी शब्दों को भींचकर कह उठी-“लेकिन ये क्यों भूल रहे हैं हम कि पेशीराम को गुरुवर से श्राप मिला हुआ है कि जब तक वो देवा और मिन्नो में दोस्ती नहीं करा देता, तब तक उसे श्राप से मुक्ति नहीं मिलेगी। क्योंकि देवराज चौहान के साथ तीन जन्म पहले शुरू हुई दुश्मनी की वजह पेशीराम ने ही पैदा की थी। इस दुश्मनी के लिये वो ही गुनाहगार था।”
“तभी तो गुरुवर ने पेशीराम को श्राप दिया।” पारसनाथ सपाट स्वर में कह उठा।
“तुम कहना क्या चाहती हो?” जगमोहन की सिकुड़ी निगाह, मोना चौधरी पर जा टिकी।
“यही कि हम फिर जन्म लेंगे। पेशीराम हर बार की तरह हमारे जन्म का हिसाब रखेगा कि हम कहां पैदा हुए? अगले जन्म में हम बड़े होंगे तो, पेशीराम फिर हमारे सामने आयेगा और देवराज चौहान के साथ, मेरी दोस्ती कराने की चेष्टा करेगा। उस स्थिति में भी उसे पूर्व जन्मों के बारे में बताना ही पड़ेगा।”
“मतलब कि पूर्व जन्मों की बातें हम अगले जन्म में जान सकेंगे।” महाजन के होंठों से निकला।
“हां-।”
तभी नगीना शांत दृढ़ स्वर में बोली।
“बात देवराज चौहान की मौत का विश्वास करने की हो रही थी। तुम लोगों की बातों से ये तो जाहिर हो जाता है कि देवराज चौहान की मौत को तुम लोगों ने स्वीकार कर लिया है।”
सबकी नज़रें नगीना के चेहरे पर जा ठहरीं।
“मौत को मैंने अवश्य स्वीकार कर लिया है।” एकाएक नगीना का चेहरा क्रोध से भर उठा-“लेकिन उसे माफ नहीं किया, जिसने मुझे विधवा बना दिया है। मैं उसे नहीं छोड़ूँगी।”
“तुम शैतान का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकतीं।” मोना चौधरी होंठ भींचे बेबस स्वर में कह उठी।
“ऐसा इसलिये कह रही हो कि उसके पास असीमित ताकत है।” नगीना गुस्से में शब्दों को चबाकर कह उठी।
“हां। हम उससे टकरा नहीं...।”
“मोना चौधरी!” नगीना भिंचे स्वर में कह उठी-“मैं शैतान से टकराकर जीत नहीं सकती। लेकिन अपने सुहाग की मौत का बदला लेते हुए अपनी जान तो दे सकती हूं।”
नगीना के इन शब्दों के साथ ही पल भर के लिए वहां सन्नाटा छा गया।
“जान तो मैं भी दूंगा भाभी-।” जगमोहन के होंठों से वहशी गुर्राहट निकली।
“अंम अपणे को शैतान से ‘वडा’ लेगा।” बांकेलाल राठौर खतरनाक स्वर में कह उठा।
“बाप-।” रुस्तम राव ने दांत भींचे-“आपुन नेई मरेला। आपुन शैतान को...।”
“भाभी-ऽ-ऽ-ऽ-।” जगमोहन के होंठों से चीख भरी आवाज निकली। वो फुर्ती से नगीना की तरफ लपका।
सबकी नज़रें तुरन्त नगीना की तरफ उठीं।
नगीना एकाएक अपना सिर दोनों हाथों से थाम चुकी थी। चेहरे पर पीड़ा के भाव नज़र आ रहे थे। उसकी टांगें मुड़ती जा रही थीं। वो गिरने को थी। जगमोहन के पास पहुंचने से पहले ही, चार कदमों के फासले पर खड़ी राधा ने नगीना को थाम लिया। चंद पलों में ही ये सब हुआ।
“क्या हुआ भाभी?” पास पहुंच कर बदहवास सा जगमोहन बोला-“तुम ठीक तो हो?”
“बहना-!”
“दीदी-!”
बांकेलाल राठौर और रुस्तम राव भी पास आ पहुंचे।
एकाएक बिगड़ी नगीना की हालत सुधरने लगी।
मोना चौधरी होंठ भींचे, नगीना को देख रही थी।
“क्या हुआ बहन-।” पास पहुंचकर पारसनाथ गम्भीर व्याकुल स्वर में कह उठा।
“कुछो तो कहो बहनो-।” बांकेलाल राठौर परेशान सा कह उठा।
नगीना को पल भर के लिये ऐसे लगा, जैसे किसी ने उसकी ताकत खींच ली हो। परन्तु अब वो बहुत हद तक सामान्य लगने लगी थी। अपनी टांगों पर खड़ी हो गई थी।
“तुम ठीक हो?” राधा बोली।
“हां-।” नगीना ने गहरी सांस ली।
“छोड़ दूं तुम्हें?” राधा पुनः कह उठी।
नगीना के सिर हिलाने पर, राधा ने उसे छोड़ दिया।
“क्या छोड़ेला दीदी-?” रुस्तम राव ने पूछा।
“यूं ही।” नगीना अब पहले की तरह सामान्य हो चुकी थी-“चक्कर सा आ गया था।”
“राधा!” पास आकर महाजन ने कहा-“नगीना भाभी को बेड पर लिटा दो। इन्हें आराम की जरूरत है।”
“नहीं। मैं ठीक...।” नगीना ने कहना चाहा।
“सब ही ठीक हैं।” राधा, नगीना की कलाई थामते हुए कह उठी-“फिर भी आराम की जरूरत तो पड़ती ही है। क्या हर्ज है थोड़ा सा आराम कर लेने में। आओ-।”
“कुछ देर आराम कर लो-।” जगमोहन व्याकुल से स्वर में बोला।
“आओ-आओ।” राधा, नगीना को खींचते हुए बेड की तरफ ले गई।
मोना चौधरी वहां से हटी और खिड़की के पास पहुंचकर बाहर झांका।
नीचे गहरी धुंध और ऊपर नीला आसमान दिखाई दिया। पहले ऊपर का आसमान बहुत दूर नज़र आ रहा था। लेकिन अब वो
पहले से कुछ पास आया लगा। यानि कि फासला तय हो रहा था।
सोहनलाल ने भी पास पहुंचकर, बाहर देखा।
“कितनी देर हो गई होगी, इस काला महल को जमीन छोड़े-?” मोना चौधरी गम्भीर थी।
सोहनलाल गहरी सांस लेकर, पीछे हटता हुआ बोला।
“मालूम नहीं।”
“ये सफर कितना लम्बा है?” मिट्टी के बुत से बनी युवती पास आकर कह उठी।
“इस बात का जवाब शायद किसी के भी पास नहीं है।” सोहनलाल ने गम्भीर निगाहों से उसे देखा।
सरजू और दया सहमे से एक-दूसरे का हाथ थामे दीवार के पास बैठ गये थे।
नगीना को, राधा ने जबरदस्ती ही बेड पर लिटा दिया था।
देवराज चौहान के मृत शरीर की तरफ रह-रह कर सबकी नज़रें उठ जाती थीं।
“नीलू-।” राधा कह उठी-“मुझे भूख लगी है।”
“यहां खाने को कुछ नहीं मिलेगा।”
“मैं तो भूख से मर जाऊंगी।” राधा ने उखड़े स्वर में कहा।
“सबो को ही मरणो हौवे। कोई बाद में मरो तो कोई पैले मरो हो।”
राधा ने तीखी निगाहों से बांकेलाल राठौर को देखा।
“नीलू! मेरी बात के बीच में क्यों बोलता है ये मूंछों वाला।” महाजन ने कुछ नहीं कहा और हाथ में पकड़ी बोतल से घूंट भरा।
“कुछ कहो नीलू। तुम तो बहादुर हो।”
“क्या कहूं? इसे घूंसा मारूं-।” महाजन ने झुंझलाहट भरे स्वर में कहा।
राधा ने बांकेलाल राठौर को देखा।
बांकेलाल राठौर कठोर निगाहों से उसे देखता, अपनी मूंछ मरोड़ रहा था।
राधा ने फौरन उस पर से निगाह हटाकर, महाजन से कहा।
“रहने दे नीलू। घूंसा क्या मारना। ये तो शैतान के हाथों मरने ही वाला है।
“बाप-!” रुस्तम राव कह उठा-“आपुन को भी भूख लगेला।”
“बहुत देर हो गई कुछ खाये।” जगमोहन ने कहा।
“यहां खाने को भला क्या होगा।” मोना चौधरी गम्भीर स्वर में बोली-“हमें भूखे रहकर ही वक्त बिताना होगा।”
“महल में वो जगह देखो, जहां खाना बनाया जाता है।” भामा परी ने कहा।
“वहां खाने को कुछ मिलेगा?” राधा के होंठों से निकला।
“हां। मुझे खाने के सामान की खुशबू का एहसास हो रहा है।”
“नीलू-नीलू आ।” राधा बोली-“खाने का सामान ढूंढते हैं। मैं तुझे अपने हाथों से खिलाऊंगी।”
“छोरे-!” बांकेलाल राठौर ने पुनः मूंछ पर हाथ फेरा।
“हां बाप-।”
“म्हारा हाथो सलामत होवे। अंम तो खुदो ही खायो-।”
“पक्का बाप-।” रुस्तम राव ने कहा-“महाजन के खाने का डिपार्टमेंट, राधा संभाएला-।”
“छोरे-!” बांकेलाल राठौर के स्वर में भर्राहट आ गई।
“बाप-!” रुस्तम राव ने फौरन बांकेलाल राठौर को देखा। अगले ही पल उसने होंठ भींच लिए।
बांकेलाल राठौर गीली आंखों से कुछ दूर मौजूद देवराज चौहान की लाश देख रहा था।
“क्या होएला बाप?” रुस्तम राव के स्वर में हल्की सी लड़खड़ाहट उभरी।
“म्हारे को भूख न ही हौवे। अंम खाणा न खायो।” कहते हुए बांकेलाल राठौर सुबक उठा।
रुस्तम राव ने होंठ भींच लिये। आंखें जैसे अंगारे बनकर दहक उठीं। लेकिन उनमें आंसू भी चमक उठे थे
☐☐☐
नगीना बेड पर लेटी थी।
थकान का नामोनिशान नहीं था उसके शरीर में। वो खुद नहीं समझ पाई थी कि उसे कैसे चक्कर आ गया। मिनट भर ही बीता था उसे लेटे कि उठने की इच्छा हुई। सोचे-दिल, सब कुछ तो उसका देवराज चौहान की लाश के पास था। वो उठी। बेड से उतरने को हुई कि उसके कानों में फुसफुसाहट पड़ी।
“नगीना...।”
नगीना चिहुंक उठी।
उसने आसपास देखा।
“मुझे ढूंढ रही हो।” वो ही फुसफुसाहट पुनः कानों में पड़ी।
“बाबा! फकीर बाबा?” नगीना के होंठों से सरसरता, हैरानी भरा स्वर निकला।
“हां बेटी। मैं पेशीराम ही हूं।” वो ही फुसफुसाहट, शब्दों के रूप में उसके कानों में पड़ी।
“आ-प-आप कहां हैं बाबा?”
“तुम मुझे नहीं देख सकतीं। मेरी आत्मा तेरे शरीर में प्रवेश कर चुकी है बेटी।”
“आपकी आत्मा-म-मेरे शरीर में?” नगीना का मुंह हैरानी से खुला का खुला रह गया।
“हां। मुझे आना ही पड़ा। यहां के हालात तुम सब के बस के बाहर हो चुके हैं।” फकीर बाबा की फुसफुसाहट में व्याकुलता थी-“मैं अब और नहीं सहन कर सकता था। गुरुवर का आदेश नहीं था। उन्होंने मेरे लिए हुक्म जारी नहीं किया था कि मैं उनके काम में दखल दूं। जब तक गुरुवर के श्राप से मैं मुक्त नहीं हो जाता, तब तक उनके काम में दखल देने पर मुझे पाबन्दी है। लेकिन मैंने आज मनमानी कर ली। इसके लिये गुरुवर जो भी सजा देंगे, मैं खुशी से स्वीकार कर लूंगा। मुझे अपना शरीर छोड़कर आना ही पड़ा।”
“गुरुवर आपसे नाराज हो जायेंगे फकीर बाबा-।”
“मैं नहीं जानता अब क्या होगा।” फकीर बाबा की फुसफुसाहट सुनाई दी-“मैं सिर्फ अपना कर्म कर रहा हूं-।”
“लेकिन...।”
“लेट जा बेटी। कोई तुम्हें बातें करते देखेगा तो पास आ सकता है।”
“तो क्या हो गया। आपको तो सब जानते-।”
“ये सामान्य वक्त नहीं है कि मैं सबके सामने अपनी मौजूदगी दर्शाऊं। लेट जाओ।”
नगीना पुनः बेड पर लेट गई।
“आपने जब पहले मुझसे बात की थी, क्या तब भी मेरे शरीर में प्रवेश किया था?”
“नहीं। तब मैं हवा बनकर तुम्हारे पास था।”
“तो अब मेरे शरीर में क्यों प्रवेश किया?”
“मजबूरी है। मेरी आत्मा हवा के रूप में यहां रहे तो शैतानी ताकतें मेरी आत्मा को कैद कर सकती हैं। अब मेरी आत्मा सुरक्षित है। वो तुम्हारे शरीर में है।” पेशीराम की फुसफुसाहट नगीना महसूस कर रही थी।
तभी नगीना की आंखों से आंसू बह उठे। उसने होंठ भींच लिए।
“रो रही हो बेटी। देवा की मौत का दुःख है।”
नगीना के होंठ भिंचे रहे।
“मैं खुद देवा की मौत से हिल गया हूं। तुम नहीं समझ सकतीं कि देवा की मौत ने मुझे कितनी ज्यादा तकलीफ में ला खड़ा किया है। मैं देवा और मिन्नो में दोस्ती कराकर श्राप से मुक्त हो जाना चाहता था। लेकिन अब शायद गुरुवर के श्राप से मुक्त न हो सकूं। देवा का ये जन्म खत्म हो गया है। अब मुझे अगले जन्म का इन्तजार करना होगा। इस लम्बे इन्तजार में जर्जर हो चुके मेरे बूढ़े शरीर को बहुत तकलीफ होगी। देवा और मिन्नो के चौथे जन्म में ही शायद मैं गुरुवर के श्राप से मुक्त हो पाऊं।”
“सब बातें एक तरफ बाबा। मेरे पति तो नहीं रहे। मेरा सुहाग मिट गया।” नगीना रोते हुए भिंचे स्वर में कह उठी।
“तुम्हारी तकलीफ का एहसास है मुझे-।” पेशीराम की फुसफुसाहट में तड़प मौजूद थी।
“मैं मिट गई बाबा।”
“हौसला रखो बेटी। इस वक्त मैं बहुत जरूरी काम से तुम्हारे पास आया हूं-।”
“मैं कोई काम नहीं कर पाऊंगी। मैं टूट चुकी हूं। किसी दूसरे को अपना काम कह दो।”
“मेरा काम सिर्फ तू ही कर सकती है नगीना बेटी-।”
“मैं?” नगीना आंसुओं भरी आंखों को पोंछती हुई कह उठी।
“हां बेटी तुम।” फकीर बाबा की गम्भीर फुसफुसाहट कानों में गूंज सी रही थी-“इस काम के लिए तेरे ग्रह ही उपयुक्त हैं। तू इस काम को पूर्ण करेगी तो कठिन रास्ते भी आसान हो सकते हैं।”
“नहीं बाबा। मैं...।”
“इन्कार मत कर बेटी। सबकी जिन्दगी का सवाल है।”
“क्या मतलब?” नगीना के होंठों से निकला। उसने उठना चाहा। परन्तु नगीना उठ नहीं सकी।
उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने दबाव डालकर उसे उठने नहीं दिया।
“लेटी रहो बेटी।”
नगीना ने अपना शरीर ढीला छोड़ दिया।
“आप कहना क्या चाहते हैं बाबा?”
“वक्त आने पर सब कुछ तेरे सामने होगा बेटी। इस वक्त मैं जो कहता हूं, वो ही कर।”
नगीना ने जवाब में कुछ नहीं कहा।
“नगीना-!”
“कहो बाबा!” नगीना के होंठ हिले-“अगर तुम्हारी बात पसन्द न आई तो मैं तुम्हारा कहा नहीं करूंगी।”
“तब जैसा ठीक समझना, वैसा ही करना।” पेशीराम की फुसफुसाहट कानों में पड़ी-“तुम तो जानती ही हो कि गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल की शैतान को तलाश है, जिसे कोई ढूंढ नहीं पा रहा।”
“मालूम है।”
“वो बाल जिसके हाथ लग गई, वो ही उन शक्तियों का मालिक बन जायेगा। बशर्ते कि उसे शक्तियों का इस्तेमाल करना आता हो और शैतान हर तरीके से वाकिफ है, परन्तु उसे शक्तियों से भरी वो बाल नहीं मिल रही। मुझे भी उस बाल की तलाश थी कि, मैं और भी बेहतर ढंग से उसे सुरक्षित रख सकूँ। मैं व्याकुल था कि अगर शैतान ने शक्तियों से भरी उस बाल को पा लिया तो वो पूरी हवा में अपनी शैतानियत फैला देगा। आखिरकार मैंने अपनी बेहद खास शक्ति का इस्तेमाल किया। ऐसी शक्ति का इस्तेमाल, जिसे सिर्फ एक बार ही इस्तेमाल किया जा सकता है। उसके बाद वो शक्ति समाप्त हो जाती है। उस शक्ति को पुनः प्राप्त करने के लिये इकत्तीस बरस की खास ढंग की तपस्या करनी पड़ती है। इस तरह मुझे मालूम हुआ कि गुरुवर की शक्तियों से भरी वो बाल कहां है।”
“कहां पर है?” नगीना के होंठ हिले।
“यहीं-! शैतान के अवतार (द्रोणा) के काला महल में।”
“क्या?” नगीना ने चिहुंक कर उठना चाहा।
लेकिन उसे लगा जैसे किसी ने उसे कंधों से पकड़कर दबा रखा हो।
“अपने पर काबू रखो बेटी।” पेशीराम की फुसफुसाहट कानों में पड़ी।
नगीना ने खुद को संभाला।
“ये-ये कैसे हो सकता है कि गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल इसी काला महल में...।”
“मेरी बात पर शक है?”
“न-हीं।” नगीना ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी।
“तुम्हारे चेहरे और आंखों में शक है बेटी।”
“मैं ये सोच रही हूं कि अगर शक्तियों से भरी बाल यहां थी तो शैतान के अवतार को ये बात मालूम क्यों नहीं हुई? वो परेशान होकर हर तरफ बाल क्यों ढूंढते रहे? शैतान के पास भी शक्तियां हैं। उसकी शक्तियों ने उसे इस बात का एहसास क्यों नहीं कराया कि...।”
“गुरुवर की शक्ति रास्ते में आ जाती थीं।”
“मैं समझी नहीं।”
“गुरुवर ने वो बाल अपनी ऐसी शक्ति में लपेटकर यहां छिपाई है कि उस शक्ति को काट कर शैतान बाल को नहीं देख सकता। यही वजह है कि शैतान उस बाल तक नहीं पहुंच सका। जबकि बाल इसी काला महल में है।”
“हैरानी है कि गुरुवर ने अपनी शक्तियों से भरी बाल यज्ञ में व्यस्त होने से पहले, शैतान के अवतार के महल में ही क्यों रखी। यहां से शक्तियों से भरी वो बाल शैतान आसानी से हासिल कर सकता था।” नगीना ने कहा।
“गुरुवर ने ठीक किया।”
“कैसे?”
“शैतान कभी सोच भी नहीं सकता कि गुरुवर अपनी असीम शक्तियों से भरी बाल को, काला महल में रखेंगे। द्रोणा उस शक्तियों से भरी बाल को ढूंढने के लिए गुरुवर की नगरी जाता रहा। शैतान ने भी अपनी सारी शक्तियां उस बाल की तलाश में, गुरुवर की नगरी में और उसके बाहर लगा रखी थीं। और गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल इस काला महल में बेहद सुरक्षित रही।” पेशीराम की फुसफुसाहट में गम्भीरता थी।
“शैतान का अवतार बाल को इस महल में देख सकता था बाबा-।”
“नहीं देख सकता था।” पेशीराम का स्वर सुनाई दे रहा था-“गुरुवर ने बाल पर ऐसी शक्ति इस्तेमाल कर रखी थी कि शैतान से वास्ता रखती कोई भी नज़र, बाल को नहीं देख पायेगी। उसे बाल नज़र ही नहीं आयेगी।”
“ओह-।”
“नगीना बेटी! वक्त बीतता जा रहा है। तेरे को बहुत ही जरूरी काम करना है।”
“क्या बाबा?”
“मैं तेरे को उस बाल तक ले चलता हूं, जिसमें गुरुवर की सारी शक्तियां सिमटी पड़ी हैं। गुरुवर का यज्ञ समाप्त होने में अभी वक्त बाकी है। वो, चाहकर भी उस बाल की तरफ ध्यान नहीं दे
सकते। यज्ञ पूर्ण करने से पहले, गुरुवर यज्ञ से उठ गये तो उनकी
सारी मेहनत बेकार चली जायेगी। यज्ञ पूर्ण होने पर, गुरुवर को
बेहद खास शक्ति हासिल होने वाली है। उस स्थिति में उन्हें वो
शक्ति कभी हासिल नहीं होगी।”
“मैं उस बाल का क्या करूंगी?”
“वो बाल मिन्नो के हवाले कर देना।”
“तब क्या होगा?”
“इससे ज्यादा मैं नहीं बता सकता।” पेशीराम की व्याकुलता भरी फुसफुसाहट नगीना को सुनाई दी-“अपनी तरफ से मैं अच्छे के लिये कोशिश कर रहा हूं, परन्तु आगे क्या होगा। मुझे जानकारी नहीं है। उठो, रास्ते में जो भी मिले सामान्य ढंग से बात करना। यहां जो नज़र न आये तो समझ लेना वो खाना ढूंढ रहे हैं इस काला महल में।”
नगीना उठी और बेड से उतर गई।
“गैलरी की तरफ चलो।” पेशीराम का स्वर सुनाई दिया-“गैलरी पार कर जाना।”
नगीना सामान्य ढंग से उसी तरफ बढ़ी।
मोना चौधरी कमर पर हाथ बांधे वहां टहल रही थी। चेहरे पर गुस्से के भाव थे।
पारसनाथ एक तरफ कुर्सी पर बैठा था। पास में बांकेलाल राठौर मौजूद था।
मिट्टी के बुत वाली युवती सरजू और दया के पास खड़ी थी। बातें कर रही थी।
बाकी लोग महल के भीतरी हिस्सों में चले गये थे, खाने की तलाश में।
उन्होंने नगीना को गैलरी की तरफ जाते देखा, परन्तु कहा कुछ नहीं। यही समझे कि नगीना भी दूसरों की तरह खाने की तलाश में महल के भीतरी हिस्सों में जा रही है।
गैलरी में प्रवेश करके नगीना आगे बढ़ती गई।
“गैलरी खत्म होने पर बाईं तरफ मुड़ जाना।” पेशीराम की फुसफुसाहट कानों में महसूस हुई।
नगीना बिना कुछ कहे गैलरी खत्म होने पर बाईं तरफ मुड़ गई।
सामने बहुत ही चौड़ा रास्ता था। वहां कोई भी नज़र नहीं आया।
नगीना सामान्य गति से आगे बढ़ती रही। कुछ देर बाद एक तरफ दरवाजे नज़र आने लगे। बहुत ही मोटे-मोटे दरवाजे थे, परन्तु उनका रंग स्याह काला था।
“अब जो दरवाजा आयेगा; तुम्हें उसमें प्रवेश करना है बेटी।”
तभी दरवाजा नजर आया। पास पहुंचकर नगीना ठिठकी।
“दरवाजे के पल्लों को धक्का दो।” पेशीराम के शब्द कानों में गूंजे।
नगीना ने दोनों हाथ दरवाजों के पल्लों पर रखे और धक्का दिया।
दरवाजे के भारी पल्ले खुलते चले गये।
“भीतर चलो-।”
नगीना भीतर प्रवेश कर गई।
यह साधारण सा कमरा था। दीवारें काले रंग की थीं। दीवारों पर दो अजीब-से चित्र लटके हुए थे। वो भी स्याहपन ही लिए हुए थे। कमरे के बीचो-बीच बड़ी सी टेबल और उसके गिर्द चार कुर्सियां मौजूद थीं। मेज पर पीतल या सोने का फूलों का गुलदस्ता पड़ा फूल भरे हुए थे। गुलदस्ते पर काले रंग के फूलों की था, जिसमें छाप थी।
“टेबल के पास चलो-।”
नगीना टेबल के पास पहुंचकर ठिठकी।
“शैतान का अवतार यानि कि पूर्व जन्म का द्रोणा को जब किसी से खास बात करनी होती तो वो इस कमरे में बात करता था। तुम ये फूलदान उठाओ और इसके नीचे के हिस्से को खोलो। खुल जायेगा। उसके भीतर ही तुम्हें गुरुवर की शक्तियों भरी वो बाल नज़र आयेगी।” पेशीराम के शब्द नगीना के कानों में पड़ रहे थे-“असल में ये फूलदान वो नहीं है, जो कभी पहले हुआ करता था। लेकिन ठीक उस जैसा ही है। गुरुवर ने उस फूलदान को अपनी शक्ति का इस्तेमाल करके गायब कर दिया था और इस फूलदान में बाल रखकर इसको यहां पहुंचा दिया। गुरुवर ने अपनी शक्ति के दम पर, इस अदला-बदली का किसी को एहसास भी नहीं होने दिया। वरना ये सब होने की खबर शैतान को तो अवश्य हो जाती।”
“शैतान को अब मालूम हो सकता है।” नगीना ने कहा।
“अब वो वक्त निकल चुका है, जब शैतान को ये बात पता चलती। तुम्हारे ग्रहों के हिसाब से अभी वक्त हमारे साथ है। अगले ढाई दिन तक तुम्हारी किसी हरकत की खबर शैतान को नहीं होगी। फूलदान उठाओ बेटी।”
नगीना ने हाथ बढ़ाकर टेबल के बीचो-बीच रखा फूलदान उठाया। वो भारी था। उसके बीच काले गुलाब रखे हुए थे, जो कि ताजे थे। मध्यम सी खुशबू उनमें से उठ रही थी।
“इसका नीचे का गोल हिस्सा घुमाओ।” पेशीराम की आवाज कानों में पड़ती महसूस हुई।
नगीना ने होंठ भींचे आसपास देखा फिर फूलदान का नीचे का हिस्सा घुमाने लगी।
नीचे का आधा फूलदान घूमने लगा। नगीना ने फूलदान को संभाल कर थाम लिया। वो खुलता नज़र आ रहा था, इस तरह जैसे बोतल का ढक्कन।
फिर वो पूरा खुल गया।
उसके दो हिस्से हो गये।
नीचे का हिस्सा छोटे से कटोरे की तरह खाली था और उसके बीच सुर्ख मखमल के कपड़े में लिपटी, गोल जैसी किसी चीज का एहसास हुआ।
नगीना की आंखें सिकुड़ गईं।
“नगीना बेटी-।” पेशीराम के शब्द मस्तिष्क से टकराये-“सुर्ख मखमल के कपड़े में वो ही बाल है, जिसमें गुरुवर की असीम शक्तियां मौजूद हैं। शैतान इस बाल को पाने के लिये पागल हुआ पड़ा है।”
नगीना की आंखें उसी सुर्ख कपड़े पर टिकी रहीं।
“ये सिर्फ सुर्ख कपड़ा ही नहीं है। इस कपड़े में गुरुवर की खास शक्ति मौजूद है जब तक ये कपड़ा इस बाल पर लिपटा रहेगा, तब तक कोई भी शैतानी निगाह इसे नहीं देख पायेगी। शैतानी निगाह को कुछ भी नज़र नहीं आयेगा।”
“कपड़ा हटाने पर शैतानी नज़रें बाल को देखने लगेंगी?” नगीना ने पूछा।
“ये मैं नहीं जानता। बाल को अपने हाथ में लो। कपड़ा हटाने की चेष्टा मत करना।”
नगीना ने फूलदान का एक हिस्सा टेबल पर रखा और हाथ बढ़ाकर बाल को उठा लिया फिर फूलदान का दूसरा हिस्सा भी टेबल पर रख दिया।
“अब क्या करूं बाबा?” नगीना के होंठ हिले।
“तुम्हें ये बाल मिन्नो को देनी है।”
“कपड़ा हटाने के लिये मुझे क्यों रोका जा रहा है?”
“खास शक्ति से भरा ये सुर्ख कपड़ा हटाना और पहले पहल शक्तियों से भरी बाल को देखना, तेरे ग्रहों के अनुसार अशुभ है। अगर तूने ऐसा किया तो अनर्थ हो जायेगा।
“इस बाल से कपड़ा कैसे हटाया जायेगा?”
“इसके लिये मिन्नो के ग्रह अनूकुल हैं।” पेशीराम की आवाज नगीना के मस्तिष्क से टकराई-“तेरे ग्रहों के हिसाब से शक्तियों
से भरी बाल से कपड़ा तो तू ही हटायेगी बेटी, लेकिन इसे सबसे पहले मिन्नो ही देखे तो शुभ होगा। तब तुम लोग गुरुवर की इन शक्तियों का इस्तेमाल शैतान के खिलाफ कर सकोगे।”
“ओह-!” नगीना का चेहरा एकाएक कठोर हो गया-“तब तो मैं शैतान से अपने विधवा होने का बदला भी ले सकूँगी।”
पेशीराम की तरफ से कोई आवाज नहीं आई।
“बाबा-!”
“हां-।”
“मैं मोना चौधरी के पास जाऊं?”
“हां। वापस मिन्नो के पास चल।” पेशीराम का परेशान-सा स्वर कानों में पड़ रहा था-“अभी तुम लोगों को बहुत कुछ करना है। मैं नहीं जानता कि तुम लोग कहां तक, क्या कर पाओगे।”
“तुम्हें तो पता होगा बाबा! तुम तो भविष्य में झांक लेते हो
और...।”
“ये शैतान की धरती है। यहां हर तरफ शैतानी हवा फैली है। इसलिये मैं अपनी शक्तियों का खुलकर इस्तेमाल नहीं कर सकता। वैसे भी गुरुवर की आज्ञा के बिना ये सब कर रहा हूं। इसलिये अपनी ज्यादा शक्तियां इस्तेमाल न करके, वो ही काम कर रहा हूं, जिससे कि इन हालातों में तुम लोग संभल सको। चल बेटी।”
हाथ में कपड़े में लिपटी बाल थामे नगीना दरवाजे की तरफ बढ़ गई। वो सिर से पांव तक अविश्वास में घिरी थी कि क्या वास्तव में गुरुवर की अद्भुत शक्तियों वाली बाल उसके हाथों में है?
“इस भ्रम को मन में मत पालो बेटी कि तुम्हारे हाथ में थमी बाल में गुरुवर की शक्तियां नहीं हैं।”
“ओह! तो बाबा तुम मेरे मन की बात भी भांप लेते हो।” नगीना के होंठों से निकला।
“तुम भूल रही हो बेटी कि मेरी आत्मा इस वक्त तुम्हारे शरीर में मौजूद है। तुम्हारी हर सोच मुझे छू रही है।” पेशीराम की आवाज नगीना के दिमाग से टकरा रही थी-“मैं चाहूं तो पूरी तरह तुम्हारे मस्तिष्क पर अधिकार पाकर, वो काम करवा सकता हूं, जो काम तुम्हें करने को कह रहा हूं-।”
“ऐसा किया क्यों नहीं?”
“मुझे जरूरत महसूस नहीं हुई। जो मैं चाहता हूं, वो होता जा रहा है।”
नगीना कमरे से बाहर निकलकर, खुले रास्ते में वापस जा रही थी।
“तुम किसी के भी शरीर में अधिकार कर सकते हो?”
“सिर्फ पवित्र शरीर में ही मेरी आत्मा वास कर सकती है। जिस इन्सान में ज़रा भी खोट होगा। मेरी आत्मा उसके भीतर नहीं जा पायेगी, जो सादगी से जीवन व्यतीत करता है। धर्म-वर्ग का सम्मान करता है। वो ही पवित्र है।”
पेशीराम का गम्भीर स्वर, नगीना के कानों से टकरा रहा था।
नगीना गैलरी में प्रवेश कर गई थी।
“बेटी!”
“हां बाबा!”
“अब जो वक्त आने वाला है, उसमें ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है।” पेशीराम का गम्भीर स्वर, जैसे नगीना को सुनाई दे रहा था-“तुमसे कहीं भी चूक हो सकती है।”
“कहना क्या चाहते हो बाबा?”
“मैं तुम्हारे मस्तिष्क पर पूरा अधिकार करने जा रहा हूं। जो मैं कहूंगा-करूंगा, वो तुम्हारी ही आवाज होगी। तुम ही करोगी,
परन्तु सब कुछ मैं ही करूंगा।” पेशीराम की आवाज उसके मस्तिष्क से टकरा रही थी-“किन्तु तुम सब कुछ देख-समझ और महसूस कर रही होंगी। जो भी होगा, वो तुम स्पष्ट देखोगी।”
नगीना कुछ नहीं बोली।
“तुमने जवाब नहीं दिया बेटी।”
“मैं समझ नहीं पा रही हूं कि क्या कहूं।” नगीना गम्भीर सी बोली-“यही सोच रही हूं कि तुम जो भी करोगे, हमारे भले के लिये करोगे। इससे ज्यादा और कुछ नहीं कहने को। एक बात पूछूँ।”
“पूछो बेटी-।”
“मैंने क्या पाप कर दिया जो ऊपरवाले ने मुझे विधवा बना दिया-?” नगीना का स्वर भर्रा उठा।
“इस बात का जवाब मेरे पास नहीं है।”
“क्यों नहीं है?”
“मैं तुम्हारी जिन्दगी को नहीं पढ़ सकता।” पेशीराम का स्वर जैसे उसे सुनाई दे रहा था-“क्योंकि तुम्हारे साथ, मेरा वास्ता जन्मों का नहीं है। जिनसे मेरा वास्ता जन्मों का है, मैं उनके बारे में ही कुछ बता सकता हूं।”
नगीना ने होंठ भींच लिए।
“ये रास्ता खत्म होने वाला है। तुम उस हॉल में पहुंच रही हो, जहां सब हैं।” पेशीराम का गम्भीर स्वर कानों में पड़ा-“अब तुम सिर्फ देख-सुन सकोगी। जो भी अब होगा, वो मैं तुम्हें माध्यम बनाकर करूंगा।”
“जैसा आप ठीक समझें बाबा-।” नगीना ने बेहद शांत स्वर में कहा।
तभी नगीना ने अपने सिर में हल्का सा कम्पन महसूस किया। फिर सब पहले जैसा ही लगा। लेकिन उसे लगा जैसे अपने शरीर पर उसका काबू नहीं रहा। उसकी हरकतें उसकी सोचों के मुताबिक नहीं हो रहीं। वो समझ गई कि फकीर बाबा की आत्मा उसके मस्तिष्क को अपने अधिकार में ले चुकी है।
ठीक इसी वक्त वो गैलरी पार करके, वापस उस हॉल में प्रवेश कर गई।
☐☐☐
0 Comments