देवराज चौहान वहां पहुंचा।

आते ही उसकी निगाह श्याम सुन्दर पर जा टिकी। अखबार में देखी तस्वीर की वजह से श्याम सुन्दर उसे फौरन पहचान गया था और सतर्क सा नजर आने लगा था।

“यह है श्याम सुन्दर।” जगमोहन ने तीखे अन्दाज में कहा।

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई और कुर्सी पर बैठता हुआ बोला।

“तुम तो मेरी हत्या करने के लिए मुझे तलाश कर रहे थे।” स्वर बेहद शांत था।

“वो सब ड्रामा था तुम तक पहुंचने का। यह बात मैं इन लोगों को बता चुका हूं।” श्याम सुन्दर ने एक-एक शब्द तोलते हुए कहा –“मैं तुमसे ऐसे काम के वास्ते मिलना चाहता था, जिसके करीब एक अरब की दौलत –।”

“मुझसे मिलने की क्या जरूरत थी। यह काम तुम भी कर सकते हो। जरूरत पड़े तो दो-चार को साथ ले लो।”

“नहीं।” श्याम सुन्दर ने व्याकुलता से कहा –“मैं नहीं कर सकता। कर सकता होता तो, तुम्हें तलाश करता हुआ क्यों भटकता। मेरे लिए यह काम पहाड़ पर चढ़ना है और तुम्हारे लिए हाथ बढ़ाकर, पेड़ की टहनी तोड़ने के बराबर है। तुम डकैती एक्सपर्ट हो। लूट की योजना बनाने और उसे अंजाम देने में माहिर हो। और यह काम मैं नहीं कर सकता। मेरे बस से बाहर की बात है ये मैं तो सिर्फ उसके बारे में बता सकता हूं जिस चीज पर हाथ डालना है। मैंने सोचा था, यह काम खुद कर लूं। लेकिन हिम्मत ने साथ नहीं दिया।”

देवराज चौहान की गहरी निगाह श्याम सुन्दर पर थी।

“तुम कौन हो?”

“अपने बारे में मैं अभी बताना ठीक नहीं समझता। तुम काम करने को तैयार हो गये और काम पूरा हो गया तो अपने बारे में भी बता दूंगा। लेकिन अभी नहीं।” श्याम सुन्दर ने शांत स्वर में कहा।

“नम्बरदार कौन है?”

“नम्बरदार।” श्याम सुन्दर अपने चेहरे पर हैरानी के भाव ले आया –“तुम्हें कहां मिला। तुम उसे कैसे जानते हो?”

“कल रात मिला था वह मुझे।” देवराज चौहान की निगाह श्याम सुन्दर पर ही थी –“और रिवॉल्वर दिखाकर, उसने मुझे धमकी दी कि तुम मुझे जो काम कहो, वह मैंने नहीं करना है।”

“वह मुझसे कलपा हुआ तो है। लेकिन यहां तक पहुंच जायेगा। मैंने नहीं सोचा था।”

“वह है कौन?”

“पुरानी पहचान वाला है। दो-तीन बार हम मिलकर काम कर चुके हैं जिस काम के लिए मैं तुमसे बात करना चाहता हूं। उस काम के लिए पहले उससे बात की थी। वह फौरन तैयार हो गया। लेकिन फिर मुझे लगा कि मैंने इस काम के लिए ठीक आदमी का चुनाव नहीं किया। तब मैंने उससे कहा कि इस काम के लिए देवराज चौहान को साथ ले लेते हैं लेकिन वह इसलिए नहीं माना कि उस रकम में किसी तीसरे को हिस्सेदार नहीं बनाना चाहता था। और मैं सोच चुका था कि यह काम मेरे और नम्बरदार के बस का नहीं। आखिरकार मैं उसे छोड़कर तुम्हारी तलाश में लग गया। नम्बरदार को मालूम हो गया कि इस काम में मैं उसे साथ नहीं रखना चाहता और तुम्हारी तलाश में हूं। इसी बात पर वह खुन्दक खा गया। और बोला कि अगर यह बात है तो, यह काम तुम्हें भी नहीं करने दूंगा। तभी उसने तुम्हें ढूंढ कर धमकी दी कि, मेरी बात नहीं माननी है।”

श्याम सुन्दर के शब्दों के साथ ही वहां खामोशी छा गई।

सोहनलाल ने ही चुप्पी तोड़ी।

“यार, पता नहीं क्या बात है। तेरी बातें मेरे गले में फंसी जा रही हैं। पेट तक पहुंचती ही नहीं।”

श्याम सुन्दर ने उसे देखा, परन्तु कहा कुछ नहीं।

देवराज चौहान ने सोच भरे अन्दाज में कश लिया और बोला।

“तुम किस काम के वास्ते मुझसे मिलना चाहते थे?”

“अस्सी-नब्बे करोड़ का मामला है।” श्याम सुन्दर ने फौरन कहा –“यानी कि पूरा एक अरब ही लगा लो।”

“बात तो बोल।” जगमोहन कह उठा।

“एयरपोर्ट पर पिछले तीन दिनों से एक अरब के करीब हीरे पकड़े जा चुके हैं। कुछ हीरे तो उसमें इतने बेशकीमती हैं कि अभी उनकी कीमत तय करना कठिन हो रहा है। लेकिन मोटे तौर पर उन सब हीरों की कीमत का अनुमानित मूल्य एक अरब लगाया गया है। और अभी वह हीरे एयरपोर्ट पर ही है।”

“तुम्हारा मतलब कि एयरपोर्ट पर डकैती करके।” जगमोहन ने कहना चाहा।

“नहीं। मेरे खयाल से एयरपोर्ट पर डकैती करना आसान नहीं होगा। क्योंकि जहां पर हीरे रखे गये हैं। वहां तक पहुंच पाना ही सम्भव नहीं।” श्याम सुन्दर ने विश्वास भरे स्वर में कहा।

“तुम्हें यह सब बातें कहां से मालूम हुई?” देवराज चौहान ने पूछा।

“इन्हीं कामों में नजर रखता हूं। मेरा अपना सोर्स है।” श्याम सुन्दर मुस्कराया।

“आगे बोलो।” जगमोहन ने कहा।

“सरकारी खाना-पूर्ति के बाद, परसों उन हीरों को एयरपोर्ट के बाहर ले जाया जायेगा।”

“कहां?”

“कह नहीं सकता। कहां –? मालूम करने की कोशिश की, नहीं पता कर सका।” श्याम सुन्दर ने सिर हिलाया –“लेकिन करीब परसों शाम चार बजे के करीब उन हीरों को सरकारी बख्तरबंद वैन में ले जाया जायेगा। उस वैन पर सिर्फ इतना लिखा होगा कि ‘भारत सरकार का उपक्रम’। वैन किन-किन सड़कों से गुजरेगी। उसका नक्शा मेरे पास है।” कहने के साथ ही उसने जेब से तह किया कागज निकाला और देवराज चौहान की तरफ बढ़ा दिया।

देवराज चौहान ने कागज थामा।

“इस कागज पर सड़कों का नक्शा जहां खत्म होता है, उससे पांच किलोमीटर आगे सरकारी खजाना, रखने की इमारत आती है। अगर उस तरफ न जाकर बाएं को मुड़ जाएं तो तीन किलोमीटर आगे रिजर्व बैंक आ जाता है। यह तो तय है कि एक अरब के हीरे लेकर वे या तो रिजर्व बैंक जायेगी या फिर सरकारी खजाने की इमारत में।”

देवराज चौहान ने श्याम सुन्दर का दिया कागज खोलकर देखा। उस पर बना सड़कों का नक्शा देखा और उसे अच्छी तरह समझने के बाद श्याम सुन्दर को देखा।

“हीरे तीन दिन बाद एयरपोर्ट से, वैन में रवाना होंगे।” देवराज चौहान ने कहा।

“हां।”

“और तीन दिन पहले तुम्हें उन सड़कों का नक्शा भी मिल गया, जहां से वैन ने गुजरना है।”

“हां। इसमें हैरानी की क्या बात है।” श्याम सुन्दर अजीब से अन्दाज में मुस्कराया –“हो सकता है, यह तय करने वाला मैं ही होऊं कि वैन को किस रास्ते से गुजारना है। मतलब कि इन बातों पर सोचना छोड़ो। जो मैं कह रहा हूं। सिर्फ उन पर सोचो।”

देवराज चौहान ने श्याम सुन्दर की आंखों में झांका।

“आने वाले तीन दिनों में वे वैन को ले जाने के रास्ते बदल सकते हैं। ऐन मौके पर भी बदल सकते हैं।”

“ऐसा कुछ होने पर, तुम्हें सड़कों का नया नक्शा मिल जायेगा।” श्याम सुन्दर ने विश्वास भरे स्वर में कहा।

“इन बातों को जानने का तुम्हारा सोर्स क्या है?” जगमोहन ने पूछा।

“मैं नहीं बता सकता।”

“अपने बारे में भी नहीं बता रहा। अपने सोर्स के बारे में भी नहीं बता रहा। और –।”

“मैं एक योजना लेकर तुम लोगों के पास आया हूं।” श्याम सुन्दर ने स्पष्ट कहा –“योजना के अलावा बाकी बातें करना बेकार है। मैं कौन हूं, क्या हूं, इन बातों को कहने सुनने से कोई फायदा नहीं। सिर्फ वक्त बरबाद ही होगा। मेरे पास अभी और भी बातें हैं इस सिलसिले में बताने को, लेकिन पहले यह बात तय हो जानी चाहिये कि आप लोग इस काम में हाथ डालने को तैयार हैं या नहीं? एक अरब की रकम, यानी कि सौ करोड़ के मुकाबले, काम में बहुत कम मेहनत है। अगर काम के लिए तैयार हैं तो, इसमें मेरी हिस्सेदारी क्या रहेगी। उन हीरों को लूट लेने के बाद, उसमें से मुझे क्या मिलेगा?”

“तुम कैसे कह सकते हो कि हीरे लूट ही लिये जायेंगे?” सोहनलाल बोला।

“देवराज चौहान के लिए, यह काम मामूली है।” श्याम सुन्दर विश्वास भरे अन्दाज में मुस्कराया।

“साला।” सोहनलाल बड़बड़ाया –“हवा देता है।”

उनके बीच कई पलों तक खामोशी रही।

“जब वैन में सौ करोड़ के हीरे ले जाये जायेंगे तो सिक्योरिटी का क्या बन्दोबस्त रहेगा?” जगमोहन बोला।

“मैंने अभी कहा है कि इस सिलसिले में बताने को मेरे पास और भी बातें हैं लेकिन पहले यह तय हो जाना चाहिये कि आप लोग इस काम के लिए तैयार है। तैयार है तो काम हो जाने पर, मुझे क्या मिलेगा?”

जगमोहन ने कुछ न कहकर हाथ में पकड़ी रिवॉल्वर जेब में डाल ली।

“तुम, कल सोहनलाल से आकर बात कर लेना। तुम्हारे सवाल का जवाब, कल इसके पास होगा।” देवराज चौहान ने नई सिगरेट सुलगाई और श्याम सुन्दर को देखा।

श्याम सुन्दर ने सहमति से सिर हिलाया और सोहनलाल को देखा।

“कितने बजे आऊं?”

“जब मर्जी आ जाना।” सोहनलाल ने मुंह बनाकर कहा –“लेकिन आज की तरह सुबह छः बजे मत आना।”

“मैं दिन में बारह बजे आ जाऊंगा।”

सोहनलाल ने कुछ नहीं कहा। उसे देखता रहा।

श्याम सुन्दर ने देवराज चौहान और जगमोहन पर नजर मारी फिर पलट कर बाहर निकल गया। उसके पीछे-पीछे ही सोहनलाल बाहर निकला। उन्हें कार स्टार्ट होने और जाने की आवाज आई।

सोहनलाल भीतर आया।

“कहां गया था?”

“कार का नम्बर देखने।” सोहनलाल ने गम्भीरता से कहा –“मुझे जाने क्यों यह बंदा ठीक नहीं लग रहा। कार के नम्बर के दम पर मैं साले के बारे में मालूम करके ही रहूंगा कि –।”

“सौ करोड़ का मामला है। खामख्वाह शक मत-कर।” जगमोहन ने कहा –“शक की कोई वजह है तो बता?”

“वजह ही तो ढूंढ रहा हूं।” सोहनलाल ने गोली वाली सिगरेट का तगड़ा कश लिया।

देवराज चौहान के चेहरे पर सोच के गहरे भाव नजर आ रहे थे।

☐☐☐

करीब पन्द्रह मिनट बाद श्याम सुन्दर ने सड़क के किनारे कार रोकी। इस दौरान इस बात का पक्के तौर पर यकीन कर चुका था कि कोई उसका पीछा नहीं कर रहा। सड़क पर से ट्रैफिक गुजर रहा था, जिसकी उसे परवाह नहीं थी। एक बार फिर सतर्कता भरी निगाह उसने, हर तरफ मारी।

फिर कलाई पर बंधी घड़ी को सेट करके बात की।

“हैलो–हैलो।” श्याम सुन्दर घड़ी को मुंह के बोला –“श्याम सुन्दर दिस साइड। श्याम...।”

“कहो।” घड़ी से बारीक सी आवाज निकल कर उसके कानों में पड़ी –“श्याम सुन्दर, तुमने कल रात से बात नहीं की। मुझे चिन्ता हो रही थी। सब ठीक तो है?”

“हां। सब ठीक है।”

“देवराज चौहान मिला?”

“मिला। बात हुई।”

“बात बनती नजर आई?”

“पक्का नहीं कह सकता। हो सकता है बात बन जाये।” श्याम सुन्दर ने कहा –“अगर मैं देवराज चौहान की आदतों से पूरी तरह, वाकिफ होता तो शायद बता सकता कि बात बने या न बने।”

“हूँ।”

“लेकिन जगमोहन पूरी तरह मेरी बात में दिलचस्पी ले रहा था।”

“दौलत की खुशबू मिलते ही जगमोहन के पेट में खुजली होने लगती है।” घड़ी में से पतली सी आवाज निकल कर उसके कानों में पड़ रही थी –“देवराज चौहान से क्या बात हुई, सिलसिलेवार बताओ।”

श्याम सुन्दर ने सारी बात बता दी।

“गुड। तुम पर किसी तरह का शक तो नहीं हुआ?”

“नहीं लेकिन मेरी रिवॉल्वर वहीं रह गई है। वह –।”

“उसकी फिक्र मत करो। कल सोहनलाल से मिलोगे तो मांग लेना। शायद वह दे देगा। नहीं तो तुम्हें नई मिल जायेगी।”

“ठीक है।”

“तुम्हारे पीछे तो कोई नहीं है?”

“नहीं।”

“इतने विश्वास के साथ मत कहो। वह लोग बहुत खतरनाक हैं। कोई भी कम नहीं। वह वहां तक सोच लेते हैं, जहां तक तुम्हारी सोच भी नहीं पहुंच सकती। इस काम में हमेशा सतर्क रहो।”

“मैं सतर्क ही हूं।”

“तुम्हें हमारे पास आने की जरूरत नहीं। और भी कहीं मत जाना। किसी होटल में कमरा ले लो।”

“लेकिन –।”

“जो मैं कह रहा हूं सिर्फ वही करो।” इस बार आवाज में सख्ती आ गई थी।

“अच्छा।”

“कल बारह बजे सोहनलाल के पास पहुंच जाना।”

“वो तो ठीक है। लेकिन सोहनलाल जाने क्यों मुझ पर शक कर रहा है। मैंने उसे शक का कोई मौका नहीं दिया। वह आगे चलकर मामला खराब कर सकता है। उसका इन्तजाम कर दिया जाये तो –।”

“बेवकूफी मत कर बैठना।” इस बार भी आने वाला स्वर सख्त ही था –“कोई भी उल्टा फैसला नहीं लोगे। हर बात की खबर मुझे देते रहो और वही करो जो मैं कहूं। किसी का कोई इंतजाम करने की जरूरत नहीं। खुद, वही काम करने का फैसला करोगे, जिससे हमारी योजना को ताकत मिले। हमें फायदा हो।”

“मुझे क्या –मैं ऐसा ही करूंगा। सोहनलाल के कारण कोई गड़बड़ हुई तो जिम्मेवारी मेरी नहीं होगी।”

“जिम्मेवारी लेने के लिए मैं बैठा हूं। तुम अपने हिस्से का काम समझदारी से करते रहो।”

“योजना के बाकी हिस्से तैयार हैं?”

“हाँ। जब भी कोई खास बात हो, फौरन खबर करना।”

श्याम सुन्दर ने ट्रांसमीटर ऑफ करके उसे घड़ी का रूप दिया और कार स्टार्ट करके आगे बढ़ा दी।

☐☐☐

“मैं उस, श्याम सुन्दर की कार के नम्बर के बारे में पूछताछ करने जा रहा हूं।” सोहनलाल ने कहा –“कम से कम उसका ठइया-ठिकाना तो पता चले कि रहता कहां है? है कौन वह?”

“यह बात तो तुम दो-तीन घंटे में मालूम कर लोगे।” जगमोहन बोला।

जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा।

“अब क्या करना है। श्याम सुन्दर की बातों पर गौर किया?”

जगमोहन ने पूछा।

“सबसे पहले तो यह मालूम करना है कि वह जो कह रहा है, सच है।” देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में कहा –“कहीं वह अपना ही कोई उल्लू सीधा करने की कोशिश तो नहीं कर रहा।”

“कैसे मालूम करोगे?”

“एयरपोर्ट जाकर।”

जगमोहन ने समझने वाले भाव में सिर हिलाया।

“मैं भी साथ चलता हूं।”

“नहीं दोनों का वहां जाकर पूछताछ करना, किसी की भी निगाहों में शक पैदा कर सकता है। मैं अकेला ही वहां जाऊंगा। कार ले जा रहा हूं, तुम टैक्सी का इस्तेमाल कर लेना। बेहतर होगा कि सोहनलाल के साथ श्याम सुन्दर की कार के नम्बर द्वारा उसके बारे में जानने की कोशिश करो।”

“यह भी ठीक रहेगा।” जगमोहन ने कहा –“उससे हमें नम्बरदार के बारे में पूछना चाहिये था। अगर नम्बरदार के बारे में मालूम हो जाता तो, उससे श्याम सुन्दर के बारे में भी जानकारी मिल जाती।”

“वह अपने बारे में नहीं बता रहा तो नम्बरदार के बारे में भी नहीं बतायेगा।” देवराज चौहान ने कहा और बाहर निकलता चला गया।

जगमोहन और सोहनलाल की नजरें मिलीं।

“मेरी मानो यह श्याम सुन्दर कहीं न कहीं से गड़बड़ बंदा है।” सोहनलाल ने कहा।

“अपनी समझदारी ज्यादा मत झाड़ो।” जगमोहन ने मुंह बनाकर कहा –“वो सौ करोड़ की बात कर रहा था।”

“तू तो गया काम से।” सोहनलाल मुस्कराया।

“सौ करोड़ सुनकर तेरे को कुछ-कुछ नहीं हो रहा?”

“नहीं। मेरे होशो-हवास पूरी तरह ठिकाने पर हैं।”

“चल। कार के नम्बर के बारे में मालूम करते हैं।”

“दस मिनट । नहा तो लूं। वक्त ही नहीं मिला। सुबह से वह साला श्याम सुन्दर सिर पर चढ़ा बैठा था।”

☐☐☐

देवराज चौहान ने एयरपोर्ट की इमारत में प्रवेश किया।

चेहरे पर बेहद हल्का मेकअप कर रखा था। ऐसा मेकअप कि जो उसे अच्छी तरह पहचानते हैं, वही पहचान सके। राह चलता उसे देवराज चौहान के रूप में न पहचान सके।

शाम के चार बज रहे थे। एयरपोर्ट पर इस वक्त सामान्य भीड़ थी। दोनों हाथ जेबों में डाले, लापरवाही से चलते, इधर-उधर देखते वह लॉबी की तरफ बढ़ने लगा। उसकी निगाहें एयरपोर्ट के किसी ऐसे कर्मचारी की तलाश कर रही थी, जो उसे पक्की जानकारी लाकर दे सके।

लॉबी में पहुंचकर, वहां मौजूद कुर्सियों में से, कुर्सी पर बैठा और सिगरेट सुलगा कर कश लेने लगा। निगाहें अपने काम के आदमी को, तलाश करने में व्यस्त थी।

वह हवलदार था।

वर्दी से स्पष्ट नजर आ रहा था।

जब से देवराज चौहान ने एयरपोर्ट में प्रवेश किया था, तबसे ही उसकी निगाह देवराज चौहान पर टिकी थी। बगल में अपना डण्डा दबा रखा था और रह-रह कर अपनी मूंछों पर हाथ फेर रहा था। जबकि उसकी मूंछें इतनी छोटी थी कि हाथ तो क्या, उंगली फेरने के भी लायक नहीं थी।

उसके सीने पर पट्टी लगी थी, जिस पर दीपसिंह लिखा हुआ था।

देखता रहा वह, देवराज चौहान को। दस मिनट बीत गये। एक सिगरेट समाप्त करके उसने दूसरी सुलगाई तो हवलदार दीपसिंह ने बगल में दबा रखा डण्डा हाथ में पकड़ा और उसे हौले-हौले हिलाते हुए, देवराज चौहान की तरफ बढ़ने लगा। अब उसकी नजरें इधर-उधर भी जा रही थी।

बिना किसी हिचक के वह देवराज चौहान के बगल वाली कुर्सी पर जा बैठा। जबकि वहां, आसपास ही, और भी कई खाली कुर्सियां मौजूद थी। बैठते ही वह हौले से खांसा।

देवराज चौहान ने उसे देखा फिर निगाह फेर ली।

“साहब जी, नमस्कार।” हवलदार दीपसिंह ने दांत फाड़ने वाले अन्दाज में कहा।

देवराज चौहान ने पुनः उसे देखा फिर हौले से सिर हिला दिया।

“सिगरेट होगी आपके पास। मेरा पैकेट खत्म हो गया है।” हवलदार दीपसिंह ने पहले वाले लहजे में कहा।

देवराज चौहान ने पैकेट निकाल कर उसकी तरफ बढ़ाया।

“शुक्रिया। मेहरबानी।” दीपसिंह ने पैकिट थामा –“माचिस है मेरे पास।” कहने के साथ ही उसने बिना किसी हिचक के, पैकेट में से दो सिगरेट निकाल कर ऊपर की जेब में डाली और तीसरी होंठों में लगाकर देवराज चौहान को पैकेट वापस लौटाता हुआ बोला –“एक बार फिर धन्यवाद। वो दो सिगरेट एमरजेंसी के लिए जेब में रखी हैं। फिर किसी अनजान व्यक्ति से न मांगनी पड़े। मेरा पैकेट खत्म हो गया है ना।” फिर अपनी जेब से माचिस निकालकर सिगरेट सुलगाई।

देवराज चौहान पैकेट जेब में डालकर, दूसरी तरफ देखने लगा।

हवलदार दीपसिंह ने सिगरेट के दो तगड़े कश लिए फिर देवराज चौहान पर नजर मारी।

“पचास का नोट होगा। कल दे दूंगा। मेरा पर्स घर में रह गया है।” दीपसिंह बोला।

देवराज चौहान ने गर्दन घुमाकर उसे घूरा फिर परे देखने लगा।

“छुट्टे नहीं होंगे। सौ से छोटा नोट नहीं होगा।” दीपसिंह की बड़बड़ाहट देवराज चौहान ने स्पष्ट सुनी –“अब सौ मांगे भी नहीं जाते। पचास तक तो लेन-देन ठीक रहता है।”

देवराज चौहान की निगाह, अपने काम के व्यक्ति को ढूंढने में व्यस्त थी।

“साहब, कहीं जा रहे हैं।” हवलदार दीपसिंह ने पूछा।

“नहीं।” देवराज चौहान ने उसे बिना देखे कहा।

“कोई आ रहा है क्या?”

“नहीं।”

“किसी से मिलने आये हैं आप?”

“नहीं।” देवराज चौहान का स्वर बेहद शांत था।

“अजीब बात है। एयरपोर्ट के भीतर बैठे हैं।” हवलदार दीपसिंह ने मुंह बनाकर कहा –“कहीं जाना भी नहीं है। किसी ने आना भी नहीं है। और किसी का इन्तजार भी नहीं है।” एकाएक दीपसिंह ने आंखें सिकोड़कर देवराज चौहान को देखा –“कहीं, एयरपोर्ट पर बम वगैरह रखने तो नहीं आये।”

देवराज चौहान ने गर्दन घुमाकर, उसे घूरा।

“भीतर आने से पहले इस बात की चैकिंग हो गई थी कि मेरे पास कोई विस्फोटक चीज है कि नहीं।” देवराज चौहान का लहजा शांत ही रहा –“अच्छा यही होगा कि तुम कहीं और जाकर, अपनी ड्यूटी दो।”

“देखते नहीं। वर्दी पहनी है। ड्यूटी ही दे रहा हूं।” कहने के बाद वह बड़बडा उठा –“आज का सारा दिन खराब गया। सब सयाने हो गये हैं। कोई भी मुर्गा नहीं बना। खर्चा-पानी कहां से निकलेगा।”

देवराज चौहान ने उसे गहरी निगाहों से देखा।

हवलदार दीपसिंह ने मुंह बनाया और उखड़े अन्दाज में उठा।

“बैठो।” देवराज चौहान ने टोका।

“क्या?”

“मैंने कहा है बैठो।”

“नहीं मैं ड्यूटी पर वक्त बरबाद नहीं करता। अभी कई काम करने हैं मुझे। मैं –।”

“मेरे पास पचास का नोट है।” देवराज चौहान ने कहा।

“हैं?” दीपसिंह ने दांत फाड़े और फौरन बैठ गया –“कहां हैं?”

“जेब में।”

“तो फिर निकालो साहब जी। वहां पड़ा-पड़ा क्या कर रहा है।” दीपसिंह का पूरा चेहरा लालच से भर उठा था।

“कितना बना लेते हो रोज, इस तरह?”

“अब क्या कहूं साहब जी। खर्चा-पानी निकल ही आता है। सरकार जितनी तनख्वाह देती है। उससे कुछ ज्यादा ही हो जाता है। रही बात हर रोज की तो यह आप जैसे मेहरबानों पर निर्भर करता है। कभी पचास भी होते हैं तो कभी पांच सौ भी हो जाते हैं और हजार भी। एयरपोर्ट की ड्यूटी भी महान है।” हवलदार दीपसिंह दांत फाड़े कह रहा था –“यहां पर ड्यूटी ऐसे ही तो मिली नहीं। पूरे पन्द्रह हजार देने पड़े थे ऑफिसर को। ऊपर से चमचागिरी अलग। आजकल कोई काम आसान रह गया है क्या?”

देवराज चौहान ने गहरी निगाहों से उसे देखा।

“साहब जी वो, पचास का।”

“आज कितना कमाना चाहते हो?”

“ऊपर वाले की मेहरबानी जितनी होगी, उतना हो जायेगा। वो पचास का।”

“पांच हजार मिलें तो कैसा रहे?”

“पांच हजार। वाह, मजा आ जायेगा। सोचने में कितना अच्छा लगता।”

“मैं सोचने नहीं देने को कह रहा हूं।”

“देने को?” दीपसिंह का मुंह फौरन बंद हो गया। उसने देवराज चौहान को देखा –“साहब जी देंगे?”

“हां।”

“लॉटरी लगी है।”

“छोटा सा काम करना होगा। उसके बदले तुम्हें पांच हजार मिल जायेंगे।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।

“छोटा सा काम और पांच हजार?” हवलदार दीपसिंह ने सोच भरे अन्दाज में सिर हिलाया –“क्या है छोटा सा काम?”

“पिछले दिनों एयरपोर्ट पर हीरे पकड़े गये हैं।”

“तो?”

“यह मालूम करना है कि वास्तव में पकड़े गये हैं या खबर गलत है।”

“बस।”

“और मालूम करना है कि अगर हीरे पकड़े गये हैं तो वह एयरपोर्ट पर ही हैं या नहीं हैं।”

हवलदार दीपसिंह ने गहरी निगाहों से देवराज चौहान को देखा।

“क्यों साहब मामला क्या है?”

“कुछ नहीं।”

“बात हीरों की करते हैं और कहते हैं मामला कुछ नहीं। पूछते हैं हीरे अभी एयरपोर्ट पर ही हैं या नहीं, और कहते हैं मामला कुछ नहीं। आप मुझे ठीक नहीं लग रहे। पूछताछ करनी पड़ेगी आपसे कि –।”

“ज्यादा मत बोलो।” देवराज चौहान ने कठोर स्वर में कहा –“बात कुछ भी नहीं है। मैंने किसी से पेमेंट लेनी थी। उसने कहा था कि उसके हीरे आ रहे हैं। दे देगा। फिर कहने लगा कि हीरे पकड़े गये हैं। मुझे लगता है कि वह झूठ कह रहा है। इसलिए मालूम करने आ गया।”

हवलदार दीपसिंह शक भरी निगाहों से देवराज चौहान को देखता रहा।

“झूठ तो नहीं कह रहे?”

“लगता है तुम्हें पांच हजार नहीं कमाने।”

“नहीं, वो बात नहीं है। आपकी शक्ल से तो लगता है कि झूठ नहीं कह रहे। लेकिन डर लगता है कि आप कहीं लफड़े वाले आदमी न हो और बिना बात पर मेरी नौकरी न चली जाये।”

“ऐसी कोई बात नहीं।”

“ठीक है। मैं मालूम करके आता हूं। आप पांच हजार तैयार रखिये।” कहने के साथ, दीपसिंह बैठा ही रहा। उसने उठने की कोई चेष्टा नहीं की।

देवराज चौहान ने प्रश्नभरी निगाहों से उसे देखा।

“हाथी निकल गया, लेकिन पूंछ फंस गई।” हवलदार दीपसिंह ने व्याकुल स्वर में कहा।

“क्या?”

“साहब जी, यह बात मालूम करने के लिए, भीतर भी तो कुछ देना होगा।” एकाएक दीपसिंह ने दांत फाड़े –“पांच हजार में से मेरे पास बचेगा ही क्या। मजा नहीं आयेगा।”

देवराज चौहान उसे घूरता रहा।

“दस हजार चलेगा।” देवराज ऐसे बोला, जैसे उसे राय दे रहा हो।

“ठीक है।”

“पक्का? कहीं ऐसा न हो कि बाद में आप कहें, मेरे पास चार हजार ही हैं या।”

“ऐसा कुछ नहीं होगा।” देवराज चौहान ने कहा।

“ये हुई न बात। मैं मालूम करके आता हूं।” कहने के साथ ही दीपसिंह उठा और डण्डा थामे आगे बढ़ता चला गया।