पारसनाथ, मोदी को रेस्टोरेंट के ऊपर मौजूद अपने घर में ले गया। रिवॉल्वर की वजह से मोदी कुछ नहीं कर सका। कुछ करने की कोशिश भी नहीं की उसने। इस दौरान पारसनाथ ने उसकी जेब से रिवॉल्वर निकालकर, अपने कब्जे में कर ली थी।
ऊपर जाने के लिए पारसनाथ ने पीछे वाली सीढ़ियां इस्तेमाल की थी।
“चुपचाप बैठ जाओ।” पारसनाथ ने कठोर स्वर में कहा –“यहां तुम्हें बचाने कोई नहीं आएगा। बेवकूफों की तरह शोर मचाने की कोशिश मत करना। वरना...।”
“तो इस तरह तुम महाजन को बचा लोगे?” मोदी कड़वे अंदाज में मुस्कराया।
“बात महाजन को बचाने की नहीं है।” पारसनाथ ने उसे घूरा।
“तो?”
“कम से कम इतना तो मालूम हो कि तुम महाजन को फंसा क्यों रहे हो?”
“मैं नहीं फंसा रहा। वह अपने किए के कारण फंसा है।”
“तुम्हारे बिना कहे ही मैं समझ सकता हूं कि महाजन क्या कर सकता है और क्या नहीं।”
“पारसनाथ तुम –।”
“चुप रहो।” पारसनाथ ने अपने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरा –“तुम से जो भी बात करनी है। वह मोना चौधरी करेगी। मेरे से बात करना, तुम्हारे लिए तकलीफदेह साबित हो सकता है।”
“पुलिस वाले को कैद करने की सजा जानते हो?” मोदी ने उसे घूरा।
“सजा का डर मुझे दिखा रहे हो?” पारसनाथ ने शब्दों को चबाया।
तभी कदमों की आहट उनके कानों में पड़ी।
दोनों की गर्दनें घूमी।
मोना चौधरी ने भीतर प्रवेश किया और कड़वी निगाहों से मोदी को देखा।
इंस्पेक्टर विमल कुमार मोदी के चेहरे पर भी वैसी ही कड़वी मुस्कान उभर आई।
“पारसनाथ।” मोना चौधरी ने खतरनाक स्वर में कहा –“अभी इसकी तबीयत ठीक नहीं हुई?”
“तबीयत ठीक करने की कोशिश नहीं की।” पारसनाथ ने खुरदरे स्वर में कहते हुए, खा जाने वाली निगाहों से मोदी को देखा –“तुम पहले इससे बात कर लो। जरूरत पड़ी तो, इसकी तबीयत भी ठीक हो जाएगी।”
मोना चौधरी कुर्सी पर बैठी और सिगरेट सुलगाकर कश लिया।
“हां तो मोदी –महाजन ने अपने बयान में क्या लिखा है?” मोना चौधरी के होंठों पर मुस्कान और आवाज में दरिंदगी थी।
मोदी मुस्कराया। उसने जेब से बयान वाला तह किया कागज निकाला और मोना चौधरी की तरफ बढ़ाया।
“पढ़ लो।”
मोना चौधरी ने कागज लेकर पढ़ा।
“तो यह सब महाजन ने कहा और पुलिस वालों ने लिखा।” मोना चौधरी की आवाज जहरीली हो उठी।
“महाजन के साईन भी हैं नीचे –।”
“देख लिया है। तुम मेरी बात का जवाब दो। महाजन ने दिया यह बयान?”
पारसनाथ, बोतल निकाले, अपना पैग बनाने में व्यस्त था। परंतु उसके कान बातों पर ही थे। चेहरे पर उभरी कठोरता ने उसके खुरदरे चेहरे को और भी सख्त बना दिया था।
“नहीं। मेरे कहने पर ही, यह सब लिखा गया है।” मोदी ने शांत स्वर में स्वीकारा।
मोना चौधरी ने इंस्पेक्टर मोदी को घूरा।
“मतलब कि इसमें महाजन का कहा एक शब्द भी नहीं है?”
“नहीं! महाजन से मैंने न तो कुछ पूछा और न ही पूछने की जरूरत समझी।”
“क्यों?”
मोदी खामोश रहा।
“जवाब दो। चुप बैठने से तुम्हारी गाड़ी नहीं चलने वाली। इस वक्त ऐसी जगह पर हो कि तुम्हारे साथ कुछ भी हो सकता है। इस वहम में मत रहना कि तुम पुलिस वाले हो।” मोना चौधरी की आवाज कठोर हो गई।
मोदी ने मोना चौधरी को देखने के बाद, पारसनाथ पर निगाह मारी जो कुर्सी पर बैठा व्हिस्की के छोटे-छोटे घूंट लेता, उसे ही एकटक देखे जा रहा था।
“सीधी-सीधी बात तो यह है कि महाजन ने कुछ भी नहीं किया।” मोदी ने कहा।
मोना चौधरी के होंठ सिकुड़े।
पारसनाथ का चेहरा कठोर हो गया।
“मतलब कि तुमने उसे जानबूझकर फंसाया है।”
“तुम ऐसा भी नहीं कह सकती।” मोदी ने सोच भरे स्वर में कहा –“क्योंकि महाजन उस फ्लैट पर जिस हालत में मिला था। उसे देखकर, कोई भी कह सकता है कि बलात्कार और हत्या उसी ने की है। अनिता राजपाल उसके पास ही बिना कपड़ों के पड़ी थी। उसे देखकर एक ही निगाह में कहा जा सकता था कि उसके साथ बलात्कार हुआ है। उसके बाद हत्या की गई है और महाजन उसके पास बेहोश पड़ा था। उसकी हालत ऐसी थी कि बलात्कार के बाद कपड़े पहनने शुरू किए हों और किसी ने उसके सिर पर चोट मारकर उसे बेहोश कर दिया। इससे तुम स्थिति का अंदाजा लगा सकती हो।”
“मतलब कि तुम समझते हो कि महाजन निर्दोष है।”
“हां।”
“फिर उसे फंसाने की कोशिश क्यों कर रहे हो?” मोना चौधरी के दांत भिंच गए।
“क्योंकि मैं जानता हूं कि अनिता राजपाल की हत्या किसके इशारे पर की गई है।”
“क्या मतलब?”
“अनिता राजपाल के हत्यारे को मैं जानता हूं।” इंस्पेक्टर विमल कुमार मोदी का स्वर गंभीर था –“लेकिन मैं उसका मुकाबला नहीं कर सकता उसे तलाश नहीं कर सकता। गिरफ्तार नहीं कर सकता।”
“तो इसीलिए तुमने महाजन को मुर्गा बना लिया।” मोना चौधरी ने उसे घूरा।
“नहीं। यह बात नहीं।”
“तो?”
“अनिता राजपाल का जो हत्यारा है। जिसके इशारे पर हत्या की गई है। जिसने महाजन को फंसाया है या फिर कोशिश की है। वह मेरी हिम्मत से दूर की चीज है और तुम उसे आसानी से पकड़ सकती हो।”
“कौन है वह?”
“बख्तावर सिंह –।”
“बख्तावर –।” मोना चौधरी के होंठों से निकला –“वह पाकिस्तानी बख्तावर सिंह?”
“हां। मैं उसी की बात कर रहा हूं। वह कितना खतरनाक और चालाक है। तुम अच्छी तरह जानती हो। अनिता राजपाल की हत्या उसी के इशारे पर हुई है। उसी के इशारे पर ही महाजन को फंसाया गया है।”
मोना चौधरी समझ नहीं पाई कि इंस्पेक्टर मोदी क्या कहना चाहता है?
“तो बख्तावर सिंह हिन्दुस्तान में है?” मोना चौधरी के चेहरे पर अजीब से भाव छाए हुए थे।
“हां –।”
मोना चौधरी और पारसनाथ की निगाह मिली।
“यह इस वक्त खुद को बचाने की झूठी कहानी सुना रहा है।” पारसनाथ ने सख्त स्वर में कहा –“बख्तावर सिंह जैसे इंसान का अनिता राजपाल जैसी लड़की के कत्ल से क्या वास्ता होगा। वह क्यों उसे मारेगा। और फिर महाजन को बख्तावर सिंह फंसाने की कोशिश कर रहा है, यह बात भी गले से नीचे नहीं उतरती।”
“गले से नीचे तो मैं सब कुछ उतार दूंगा।” मोदी का स्वर गंभीर था –“यह जान लो कि महाजन ठीक कहता है कि जब वह अनिता राजपाल के फ्लैट पर पहुंचा तो उसकी मुलाकात अनिता राजपाल से नहीं, बल्कि किसी और से हुई थी। जो खुद को अनिता राजपाल कहकर उससे मिली थी।”
मोना चौधरी के चेहरे पर अजीब से भाव गुड़मुड़ हुए।
“तुम इस बात से वाकिफ हो?” मोना चौधरी के होंठ सिकुड़े।
“हां –।”
“तो फिर महाजन को इस मामले में क्यों खींच रहे हो?”
“मैंने कुछ नहीं किया। बख्तावर सिंह ने महाजन को इस मामले में खींचा है।”
“क्यों?”
मोदी ने सिगरेट सुलगाई।
मोना चौधरी पास ही पड़ी कुर्सी पर बैठ गई।
“मैं तुम दोनों को सब कुछ बताता हूं।” मोदी ने सोच भरे स्वर में कहा –“बात सिर्फ अनिता राजपाल की हत्या या महाजन की नहीं है। इसमें और कुछ भी, बहुत है।”
दो पलों के लिए कमरे में सन्नाटा छाया रहा।
फिर मोदी ही बोला।
“पिछले तीन-चार महीने से शहर में बम-ब्लास्ट हो रहे हैं। कई बार तो दिन में चार-चार जगह बम-ब्लास्ट होते हैं। अब तक करीब दो हजार लोग बम-ब्लास्टों में मारे जा चुके हैं। और हजार के करीब ऐसे हैं कि जो इन ब्लास्टों की वजह से अपंग होकर रह गए हैं। किसी की बांह उड़ गई तो किसी की दोनों टांगे। यानी कि बचने वालों की हालत मौत से भी बुरी हो गई। बम-ब्लास्ट करने वाले कानून की नजरों से दूर ही रहे। लाख कोशिशों के बाद भी आतंकवाद फैलाने वाले पकड़ में नहीं आए।”
“बम-ब्लास्ट का महाजन से क्या वास्ता?” मोना चौधरी ने टोका।
“अभी मालूम हो जाएगा।” मोदी ने कहा –“आखिरकार गोपनीय तौर पर मुझे यह केस सौंपा गया कि शहर में हो रहे बम-ब्लास्टों की छानबीन करूं और ऐसे लोगों को पकडूं या गोली मार दूं। बीते तीन-चार महीनों से मैं इस केस पर काम कर रहा हूं। और मुखबिर की सूचना पर एक ऐसे आदमी को घेरकर पकड़ा। जिसका संबंध शहर में हो रहे बम-ब्लास्टों से था। पहले तो वह माना नहीं। फिर जब डंडा चढ़ाया तो वह बोला। उसने मुझे कश्मीर स्थित एक आदमी के बारे में बताया, जिसने उसे दिल्ली भेजा था इन कामों के लिए। रहने के लिए किराए के उस कमरे का इंतजाम भी, उसने पहले ही कर रखा था। उसी में वह ठहरा। लेकिन दिल्ली में वह किसी और को नहीं जानता था। उसके पास पावरफुल बम पहुंचा दिए जाते और बता दिया जाता कि अब उसे कहां ब्लास्ट करना है। मतलब कि वह सिर्फ कश्मीर स्थित उस बन्दे का नाम-पता ही बता सका जिसकी मार्फत वह बम-ब्लास्ट कर रहा था। मेरा सारा काम गोपनीय तरीके से हो रहा था। सिर्फ एक सब-इंस्पेक्टर को ही मैंने इस काम में साथ लिया हुआ था जो कि मेरा विश्वासी था। उस व्यक्ति को रखने के लिए मेरे पास कोई जगह नहीं थी। अगर उसे पुलिस के हवाले करता तो बात खुल सकती थी। मजबूरन उसे गोली मारकर, उसकी लाश मैंने ही बरामद की और बाद में उसे लावारिस करार देकर उसका संस्कार कर दिया कि उसके बारे में कोई जान ही न सके कि वह कहां गया?”
मोना चौधरी की निगाह, मोदी के गंभीर चेहरे पर थी।
पारसनाथ व्हिस्की के छोटे-छोटे घूंट ले रहा था । उसके कान मोदी के शब्दों पर थे।
“मैंने सारी रिपोर्ट कमिश्नर दीवान को दी। कमिश्नर साहब ने गृहमंत्री से बात की और मुझे अथॉरिटी लैटर थमा दिया गया कि कश्मीर पहुंचकर मैं, उस लैटर को दिखाकर पुलिस या मिलिट्री की सहायता ले सकता हूं। जो मैं कहूंगा मेरी हर बात मानी जाएगी। उस व्यक्ति ने कश्मीर स्थित जिस व्यक्ति का नाम रज्जाक खान बताया था। अद मुझे उस पर हाथ टालना था। मैं अकेला ही कश्मीर पहुंचा। पता मेरे पास था। मैंने उसे तलाश किया और महसूस किया कि उस पर हाथ डालना मामूली काम नहीं। वह अक्सर लोगों से घिरा रहता था और इलेक्शन जीता हुआ व्यक्ति था। आखिरकार गृहमंत्री के अथॉरिटी लैटर के दम पर मैंने मिलिट्री वालों की सहायता ली। उन्हें सारा मामला बताकर समझाया की रज्जाक खान को यहां से निकालकर दिल्ली ले जाना जरूरी है। ताकि तसल्ली से पूछताछ की जा सके। मिलिट्री वालों ने जैसे यह सारा काम अपने सिर पर ले लिया। इस काम में मिलिट्री के छः कमांडो, आठ दिन तक बराबर लगे रहे और फिर मौका मिलते ही, उसका अपहरण कर लिया। उसी रात मिलिट्री वालों ने मुझे रज्जाक खान को दिल्ली भेजने का इंतजाम कर दिया और मैं रज्जाक खान को लिए दिल्ली आ पहुंचा। दिल्ली में उसे गुप्त जगह पर रखा। मैंने, मेरे साथी सब-इंस्पेक्टर ने और कमिश्नर दीवान से रज्जाक खान से पूछताछ की।”
मोना चौधरी ने सिगरेट सुलगाकर कश लिया।
पारसनाथ ने अपना गिलास खाली कर दिया था।
“पहले तो रज्जाक खान बतौर नेता तरह-तरह की धमकियां देता रहा। आखिरकार जब मैंने तबीयत से डंडा चढ़ाया तो उसने मुंह खोल दिया। उसने बताया कि वह कश्मीर स्थित पाकिस्तान का एजेंट है। और पाकिस्तान से दौलत, हथियार, बारूद, यानी कि हर संभव सहायता मिलती है और उसका काम हिन्दुस्तान के खास-खास शहरों में बम-ब्लास्ट करके आतंक फैलाना है । जोकि वह करवा रहा था। तगड़ी पूछताछ पर उसने बताया कि शहर के तगड़े रईस, सूरज प्रकाश राजपाल के, पाकिस्तान के खास खतरनाक ओहदेदार बख्तावर सिंह से कोई सम्बन्ध है। यह बात तो और भी चौंकाने वाली थी। क्योंकि सूरजप्रकाश राजपाल नामी हस्ती है। लेकिन रज्जाक खान को झूठा भी नहीं कहा जा सकता। बहरहाल रज्जाक खान को गिरफ्तार करके केस चलाने का कोई खास फायदा नहीं था। भविष्य में वह बेदाग बरी हो सकता था। ऐसे में रज्जाक खान को भी गोली मार दी गई। बाद में पुलिस ने उसकी लाश को लावारिस करार देते हुए उसका संस्कार कर दिया। और फिर मेरी निगाह सूरजप्रकाश राजपाल पर जा टिकी।”
“अपने ही गद्दारी कर रहे हैं तो, दूसरों को क्या कहा जाए?” मोना चौधरी ने गहरी सांस ली।
मोदी ने गंभीर भाव में सिर हिलाया। फिर कहा।
“सूरजप्रकाश राजपाल पर मैंने अपने खास-खास तीन मुखबिर लगा दिए। साथ ही राजपाल के बारे में जानकारी पानी शुरू की। राजपाल को मैंने बहुत व्यस्त पाया। उसके ढेर सारे बिजनेस हैं। कभी यहां तो कभी वहां। हर रोज वह जाने किन-किन लोगों से मिलता है। परिवार के नाम पर लड़का और लड़की है। लड़का जापान में सैटल है। और लड़की अनिता राजपाल की अपने बाप से जरा भी नहीं बनती थी। वह अपने बाप की हैसियत के हिसाब से मामूली-सी जगह पर रह रही थी। बाप-बेटी में बातचीत बंद थी। राजपाल की तरफ से खर्चे गुजारे के लिए, रकम अनिता राजपाल के पास पहुंच जाती थी। राजपाल के साथ-साथ मैंने एक मुखबिर को अनिता राजपाल की निगरानी पर भी लगा दिया। और मेरा मुखबिर उसी बिल्डिंग का वाचमैन बन गया, जहां अनिता राजपाल रह रही थी। जैसे भी हो, मैं राजपाल के बारे में अच्छी तरह जान लेना चाहता था कि उसकी हरकतें क्या हैं। वह बख्तावर सिंह से संबंध रखता है?”
“यह बात तुमने जानी?”
“हां।” मोदी ने बेचैनी से पहलू बदला –“चार दिन पहले जानी। मुखबिर की सूचना पर मैं स्टार होटल पहुंचा। वहीं पहुंचने पर मुखबिर ने बताया कि राजपाल रूम नम्बर एक सौ चार में किसी व्यक्ति से मिलने गया है। और राजपाल का यह कदम, उसकी दिनचर्या को नजर में रखते हुए शक से भरा है। बात ठीक भी थी। अगर होटल में वह किसी युवती से, बंद कमरे में मिलता तो शायद मैं शक न खाता। मुखबिर के साथ-साथ मैंने भी होटल के उस कमरे पर नजर रखी। करीब घंटे बाद राजपाल उस कमरे से बाहर निकला और अपनी कार में बैठकर चला गया। मुखबिर को मैंने, राजपाल के पीछे लगा दिया और खुद उस कमरे पर नजर रखता रहा। करीब आधी रात को उस कमरे में मौजूद व्यक्ति तैयार होकर बाहर निकला तो मैंने उसे फौरन पहचाना। वह बख्तावर सिंह था। लेकिन उसे रोकने-टोकने या गिरफ्तार करना मेरे अकेले के बस में नहीं था। क्योंकि मैं उसकी हौसलामंदी के बारे में जानता था। वैसे भी मेरा निशाना राजपाल था। बख्तावर सिंह किसी कार में बैठकर गया तो उस वक्त मेरी जेब में छोटा-सा ट्रांसमीटर था। किसी तरह बख्तावर सिंह वाले कमरे में पहुंचकर मैंने वह ट्रांसमीटर छिपा दिया ताकि उसके कमरे में होने वाली बातें सुन सकूं। और उसके साथ वाला कमरा मैंने ले लिया। और कानों पर हेडफोन लगाए, सुनाई देने वाली आवाज का इंतजार करने लगा।”
“बख्तावर सिंह को शक नहीं हुआ कि उसके कमरे में ट्रांसमीटर छिपाया गया है?”
“नहीं। इस मामले में मेरी किस्मत अच्छी रही।”
मोना चौधरी ने कश लिया।
मोदी ने पुनः कहा।
“बख्तावर सिंह होटल के उस कमरे में अगले दिन तक रहा। और इतने वक्त में ही मेरे सामने कई बातें आईं। जो मेरे लिए नई थी। और मैं समझ गया कि यह मामला मेरे बस से बाहर की बात है।”
“जैसे?”
“बताता हूं। अगले दिन भी राजपाल आया और बख्तावर सिंह के साथ उसकी बहुत गर्मा-गर्मी हुई। यहां तक कि दोनों ने एक दूसरे को खत्म करने की भी धमकी दी। उसके कमरे में छिपाए ट्रांसमीटर से आती मेरे हेडफोन में आवाजें स्पष्ट हो रही थी।”
“उनके झगड़े का मुद्दा क्या था?” मोना चौधरी ने पूछा।
“एक मिनट। तो उस वक्त उनका झगड़ा यहां तक पहुंच गया कि दोनों एक-दूसरे को खत्म करने को तैयार थे। लेकिन दोनों में से कोई भी सफल नहीं हो सका और राजपाल होटल के कमरे से भाग निकला और उसके जाने के पांच मिनट के भीतर ही बख्तावर सिंह ने भी होटल छोड़ दिया। शायद यह सोचकर कि राजपाल उसके बारे में पुलिस को खबर न कर दे।” मोदी ने कहा और दोनों हथेलियां रगड़कर बोला –“बरसों पहले राजपाल ने अपने बिजनेस पार्टनर की हत्या की थी।”
“बिजनेस पार्टनर की हत्या?”
“हां। और उस हत्या के सबूत जाने कैसे बख्तावर सिंह के पास मौजूद थे। और उन्हीं सबूतों के दम पर बख्तावर सिंह, राजपाल को अपने इशारों पर नचा रहा था और राजपाल, बख्तावर सिंह से तंग आ चुका था। उससे पीछा छुड़ाना चाहता था। यह उन दोनों के झगड़े की वजह थी। राजपाल उन सबूतों को पाना चाहता था। और बख्तावर सिंह, राजपाल को आजाद करने को तैयार नहीं था।”
“राजपाल, बख्तावर सिंह के लिए करता क्या था?” मोना चौधरी ने पूछा।
“बहुत कुछ। उन दोनों के झगड़े में, उनके मुंह से सब कुछ निकला था।” मोदी ने गंभीर स्वर में कहा –“राजपाल का शहर में रुतबा है। अरब-खरबपति है वह। ऐसे लोगों की पहचान हर जगह तक होती है। इसी पहचान की आड़ में वह लोगों को पार्टियां देता। बड़े-बड़े सरकारी ओहदेदार उसकी पार्टी में आते और देश के रहस्य, महत्वपूर्ण कागज या उनकी फोटोकॉपी, मुनासिब कीमत पर राजपाल को देते और वह सब बख्तावर सिंह के पास पहुंच जाता। ऐसा काम करने वाले मिलिट्री के भी कई ऑफिसर हैं। उनकी बातों से यह स्पष्ट जाहिर था। लेकिन उन गद्दारों के बारे में, मैं नहीं जान पाया।”
“तुम्हारी बातें अभी, महाजन तक नहीं पहुंची।” पारसनाथ ने मोदी को घूरते हुए कहा और गिलास थामे, उस तरफ बढ़ गया, जहां बोतल पड़ी थी।
“वहीं आ रहा हूं।” मोदी ने पहलू बदला –उसके बाद भी राजपाल और बख्तावर सिंह के बीच कुछ हुआ होगा। लेकिन उसकी मुझे कोई खबर नहीं है। लेकिन हुआ जरूर। क्योंकि तगड़ी दुश्मनी की वजह से ही बख्तावर सिंह ने किराए के लोगों से, उसकी बेटी अनिता राजपाल की हत्या करा दी।”
“किराए के लोगों से?”
“हां। बख्तावर सिंह ने अनिता राजपाल की हत्या के लिए दो बदमाशों को दो लाख रुपए दिए।” मोदी ने कहा –“छिप-छिपाकर वह अनिता राजपाल के पास पहुंचे और उसकी हत्या करने से पहले, उसके साथ बलात्कार भी किया। लेकिन वह नहीं जानते थे कि उस बिल्डिंग का दरबान, पुलिस का मुखबिर है। उसके कानों में कुछ शोर पड़ा। वह अनिता राजपाल के फ्लैट पर पहुंचा। लेकिन तब तक अनिता राजपाल खत्म हो चुकी थी। परन्तु एक बदमाश को उसने पकड़ लिया। और पूछताछ में जो हुलिया सामने आया वह बख्तावर सिंह का था।”
“तो महाजन इसमें कहां फिट हुआ?”
“महाजन।” मोदी ने सिर हिलाया –“हां बख्तावर सिंह से थोड़ी सी चूक हो गई। मेरा मुखबिर, उस बदमाश को पकड़कर, मेरे पास ले आया था। अनिता राजपाल की लाश अभी उसके घर पर ही थी। मैंने मुखबिर को ड्यूटी पर भेज दिया और उस बदमाश से पूछताछ करने लगा। मुखबिर अभी वापस पहुंचा ही था कि भीतर से निकलकर, एक युवती वहां पहुंची। उसने उस युवती को, पहले कभी उस बिल्डिंग में नहीं देखा था। दरबान बना मेरा मुखबिर अनजान सा बना रहा। उसने, दरबान को बताया कि वह अनिता राजपाल की सहेली है और अभी मिस्टर महाजन आने वाले हैं। उन्हें अनिता राजपाल के पास भेज दूं। इसके साथ ही उसने कॉपी में महाजन का नाम लिखा। स्पष्ट था कि वह युवती उस बिल्डिंग में तब पहुंची, जब दरबान उस बदमाश को लेकर मेरे पास आया था। बहरहाल दरबान ने अनजान बने सहमति में सिर हिला दिया। जबकि वह हैरान था कि यह कौन है अनिता राजपाल जिन्दा कैसे हो गई। जिसकी लाश उसने अपनी आंखों से देखी थी। इस बीच उसने मुझे फोन पर खबर देने की कोशिश की लेकिन तब मेरा फोन लंबे समय तक व्यस्त था। और वह मौके पर खबर नहीं दे पाया।”
इतना कहकर मोदी ने खामोश होकर मोना चौधरी और पारसनाथ को देखा।
“कुछ समझे मामले को?” मोदी ने पूछा।
“तू समझा।” पारसनाथ ने नए तैयार गिलास से घूंट भरा।
“बख्तावर सिंह की नीलू महाजन से तो कोई खास रंजिश नहीं हो सकती। लेकिन मोना चौधरी से है और वह जानता है कि महाजन, तुम्हारा खास है। तुम्हें तकलीफ देने के लिए, जानबूझकर उसने महाजन को अनिता राजपाल के यहां बुलाया और सिर पर चोट मारकर बेहोश कर दिया। उसके बाद सौ नम्बर पर अनिता राजपाल की हत्या और बलात्कार के सिलसिले में फोन आया।”
“फोन आया?”
“जो कि यकीनन बख्तावर सिंह की तरफ से किया गया होगा। क्योंकि अनिता राजपाल की हत्या से कोई और, उस समय तक वाकिफ नहीं था, जो यह सब करता।”
“तुम्हारा मतलब कि महाजन को जो लड़की मिली। जिसने अपना नाम अनिता राजपाल बताया। वह हकीकत में बख्तावर सिंह की भेजी हुई थी?” मोना चौधरी ने पूछा।
“हां। वह...।”
“बकवास –।” पारसनाथ ने सख्त स्वर में कहा और व्हिस्की का घूंट भरा।
मोना चौधरी मुस्कराकर मोदी से बोली।
“बख्तावर सिंह ऐसा बेकार का काम नहीं कर सकता। वह –।”
“कम से कम मैं तो इसी नतीजे पर पहुंचा हूं।” मोदी ने गम्भीर स्वर में कहा –“मैं जानता हूं कि मेरी इस बात पर तुम्हें यकीन नहीं आएगा। लेकिन यही सच है। अगर महाजन का कोई दुश्मन उसे फंसाना चाहता और उसने ही ऐसा किया है तो फिर उसे वह जैसे खबर मिली कि अनिता राजपाल को लाश वहां पड़ी है। महाजन को फंसा दिया जाए। जबकि उस लाश के बारे में –मेरा मुखबिर और बख्तावर सिंह ही जानता था।”
“मोदी।” मोना चौधरी ने सिर हिलाकर कहा –“मैं तुम्हारी इस बात को मानती हूं कि बख्तावर सिंह हिन्दुस्तान में है। क्योंकि अपने आदमी भेजकर वह मेरी जान लेने की कोशिश कर चुका है। यह जुदा बात है कि उसके आदमियों को लाशों को, महाजन ने ठिकाने लगाया।”
“मतलब कि तुमने उन सबको मार दिया, जो तुम्हें मारने आए थे।”
“हां। नहीं तो वह मेरी जान ले लेते। लेकिन जब बख्तावर सिंह खामोशी से निकल जाने की कोशिश करेगा।”
“वह निकल चुका है। महाजन को फंसाना उसका आखिरी काम रहा होगा। और यह काम उसकी गैर मौजूदगी में भी किया जा सकता है।” मोदी ने गंभीर स्वर में कहा –“बख्तावर सिंह नेपाल जा चुका है।”
“नेपाल?”
“हां। जब मैं होटल के कमरे में ट्रांसमीटर रखे बातें सुन रहा था तो बख्तावर सिंह को फोन पर किसी से कहते सुना था कि वह नेपाल पहुंच रहा है और नेपाल आजकल पाकिस्तानी आतंकवादियों का खास ठिकाना बन गया है। उनके छिपने की बहुत बढ़िया जगह है नेपाल और जिस गोला-बारूद और विस्फोटक सामग्री को वह लोग कोई और बॉर्डर पार करके नहीं ला सकते उसे चीन की सरहद से सटे रास्ते से नेपाल पहुंचाते हैं और नेपाल से हिन्दुस्तान। मैं तुम्हें बख्तावर सिंह की हरकत के बारे में बताना चाहता था कि उसने ही महाजन को फंसाने।”
“छोड़ो इन बातों को।” मोना चौधरी ने लापरवाही से कहा –“अब तुम्हारे मुंह से ही यह बात साफ हो गई की महाजन निर्दोष है तो उसे गिरफ्तार क्यों कर रखा है।”
“मानता हूं महाजन निर्दोष है लेकिन जो सबूतों का घेरा उसके खिलाफ, उसके पास से मिला है। उससे इनकार नहीं किया जा सकता। उन सबूतों के दम पर अदालत उसे नहीं छोड़ेगी।”
मोना चौधरी ने मोदी की आंखों में झांका।
“तुम कहना क्या चाहते हो?”
“यह जानते हुए कि महाजन बेगुनाह है। मैं उसे छोड़ सकता हूं। लेकिन बदले में मुझे क्या मिलेगा?”
“तुम क्या चाहते हो?”
मोदी ने कमीज के पीछे छिपी मोना चौधरी की छातियों पर निगाह मारने की कोशिश की।
“सोच-समझकर मांगना।” मोना चौधरी की आंखों में वहशी चमक उभरी।
मोदी ने खुद को संभाला।
“राजपाल।” मोदी ने पहलू बदला –“अपनी बेटी की हत्या के बाद शहर भर में जाने किसे ढूंढता रहा। मेरे ख्याल में बख्तावर सिंह को तलाश कर रहा होगा। शायद वह जान गया है कि उसकी बेटी की जान बख्तावर सिंह के इशारों पर ली गई है। फिर उसे जाने क्या हुआ कि एकाएक वह पटना चला गया।”
“पटना?”
“हां। आज ही गया है। और राजपाल की मुझे सख्त जरूरत है। क्योंकि वह देशद्रोही है और चार महीनों की मेहनत के पश्चात मैं उस तक पहुंचा हूं। एक बार वह मेरे हाथ आ जाए तो, मैं सब कुछ उसके मुंह से निकलवा लूंगा।” मोदी ने कहा।
“तो पटना कौन-सा दूर है। मालूम करो वह कहां है। और गिरफ्तार कर लो।”
“मुझे मालूम है पटना में वह कहां है।” मोदी ने गंभीर स्वर में कहा –“लेकिन वह हाथ नहीं आएगा। क्योंकि उसकी उड़ान नेपाल तक की है। जहां बख्तावर सिंह है। मेरा ख्याल है कि वह हर हालत में बख्तावर सिंह से, अपनी बेटी की मौत का बदला लेना चाहता है। बख्तावर सिंह नेपाल गया है।”
मोना चौधरी को ध्यान आया कि पटना से भी आसान रास्ता नेपाल जाता है।
“तुम्हारा मतलब कि राजपाल अगर नेपाल गया है तो, उसे वहां से पकड़कर लाऊं। तब तुम महाजन को छोड़ोगे।” मोना चौधरी ने कड़वे स्वर में कहा।
“राजपाल, अगर बख्तावर सिंह के पीछे-पीछे नेपाल पहुंच गया है तो फिर उसे इस तरह लाना आसान नहीं। आखिर वह भी दम रखता है। ऐसा हुआ तो नेपाल में उसे शूट कर दो। एक देशद्रोही तो कम होगा।”
मोना चौधरी चेहरे पर तीखे भाव समेटे उठी।
“मोदी। मैं पुलिस के मामले में नहीं पड़ना चाहती। अगर तुम यह सोचते हो कि महाजन के दम पर तुम मुझसे अपना काम करा लोगे तो, यह तुम्हारी भूल है। मुझे तुम्हारी कोई शर्त मंजूर नहीं। तुम महाजन को कल अदालत में पेश नहीं करोगे। उसे आज रात ही छोड़ दोगे।”
“अगर तुम मेरा काम करो, तो मेरे यहीं से फोन करते ही महाजन को छोड़ –।”
“मैं तुम्हारा कोई काम नहीं करूंगी।”
“फिर तो मैं महाजन को भी नहीं छोड़ सकता।”
“यह तुम्हारा फैसला है?”
“हां। महाजन को जिन हालातों में गिरफ्तार किया गया। वह सब मैं अदालत के सामने रख दूंगा। और महाजन के पास ऐसा कुछ नहीं है कि अपना बचाव कर सके।”
“बहुत बोल रहा है तू मोदी –।” पारसनाथ सख्त स्वर में कह उठा।
मोदी ने पारसनाथ को देखा। बोला कुछ नहीं।
“पारसनाथ?” मोना चौधरी के होंठों से गुर्राहट निकली। नजरें मोदी पर थी।
“हां।”
“इसे हर तरह से समझा लिया है। लेकिन यह मानने को तैयार नहीं है। न चाहते हुए भी मुझे यह कहना पड़ रहा है कि अगर यह महाजन को छोड़ने को तैयार न हो तो आज रात ही इसे खत्म करके इसकी लाश कहीं फेंक दो।” मोना चौधरी की आवाज में मौत के भाव नाच रहे थे।
“ठीक है।” पारसनाथ की कठोर निगाह, मोदी पर जा टिकी।
मोना चौधरी ने दो कदम आगे बढ़ाए और जोरदार घूंसा, मोदी के चेहरे पर लगाया। मोदी ने फौरन खुद को संभाल लिया। गाल फट जाने के कारण, होंठों के किनारे से खून छलक उठा था।
मोना चौधरी बिना कुछ कहे तेज-तेज कदम उठाती हुई, वहां से चली गई।
फिर पारसनाथ और मोदी की निगाह मिली।
“तूने गलत सोचा कि महाजन को फांसकर तू मोना चौधरी के दम पर राजपाल को पकड़ लेगा। तेरे सारे पासे उलटे पड़ गए।” पारसनाथ ने अपने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरते हुए कड़े स्वर में कहा –“अब तू अपनी सुना।”
कोई जवाब देने की अपेक्षा मोदी बाहर जाने वाले दरवाजे की तरफ बढ़ा।
“नहीं इंस्पेक्टर मोदी।” पारसनाथ की आवाज में दरिंदगी झलकी –“अब तुम यहां से बाहर नहीं जा सकते।”
मोदी ने ठिठककर गर्दन घुमाई।
पारसनाथ के हाथ में रिवॉल्वर दबी हुई थी।
☐☐☐
मोना चौधरी अपने फ्लैट में पहुंची और कपड़े उतारकर बाथरूम में प्रवेश कर गई। सुबह से वह कई कामों में व्यस्त रही थी। और अब फ्लैट पर पहुंची थी। नहा-धोकर कॉफी पीने को उसने सोचा था। जब बाथरूम से निकली तो जिस्म पर एक भी कपड़ा नहीं था। ओस की बूंदों की तरह, पानी की बूंदे, उसके जिस्म से चिपकी हुई थी।
मोना चौधरी वार्डरोब तक पहुंची। पल्ले खोले और महीन सी नाइटी निकालकर पहनी। जिससे उसके कूल्हे कठिनता से ही छिप पा रहे थे। किचन में जाकर कॉफी बना लाई और कुर्सी पर बैठकर सोच भरे अंदाज में घूंट भरने लगी।
मोना चौधरी की सोचों का केंद्र महाजन था।
नीलू महाजन। जिसने जाने कितनी बार अपनी जान पर खेलकर, खतरनाक से खतरनाक कामों में उसका साथ दिया था। कभी भी इंकार नहीं किया था। इस वक्त वह पुलिस स्टेशन में बंद था। उस पर बलात्कार और हत्या का जुर्म लगा हुआ था।
यह जानते हुए भी कि महाजन निर्दोष है इंस्पेक्टर मोदी उसे छोड़ने को तैयार नहीं था। मोदी चाहता था कि वह, उसके लिए राजपाल को पकड़े। मोना चौधरी इस तरह महाजन को मुसीबत में नहीं छोड़ सकती थी। सुबह से पहले उसे पुलिस के चंगुल से निकालना हर हालत में जरूरी था।
कॉफी समाप्त करके मोना चौधरी उठी और फोन के पास पहुंची। पारसनाथ का नंबर मिलाया।
“हैलो।” पारसनाथ की आवाज कानों में पड़ी।
“वह माना?”
“नहीं।”
“कोशिश करो वह मान जाए।”
“कर रहा हूं।” पारसनाथ की आवाज आई –“लेकिन लगता नहीं, वह मानेगा।”
“वह मानेगा।” मोना चौधरी के दांत भिंच गए –“इसलिए कि उसकी अपनी जान दांव पर लगी हुई है।” कहने के साथ मोना चौधरी ने रिसीवर रख दिया। चेहरे पर क्रोध के भाव नाच रहे थे। बेचैनी से वह कमरे में टहलने लगी। उसकी सोचों में यह भी आया कि महाजन को पुलिस स्टेशन से निकाल ले। लेकिन यह सोचकर रह गई कि उसके बाद पुलिस हमेशा के लिए उसके पीछे लग जाएगी। जो कि ठीक नहीं होगा।
तभी फोन की बेल बजी।
मोना चौधरी ने फौरन आगे बढ़कर रिसीवर उठाया –“हैलो –।”
“कैसी हो मोना चौधरी –?”
मोना चौधरी के मस्तिष्क में जबरदस्त धमाका हुआ।
बख्तावर सिंह!
“तुम?” मोना चौधरी के होंठों से निकला। बख्तावर सिंह का फोन आने की वह सोच भी नहीं सकती थी।
“मैं जानता था कि तुम पहचान लोगी।”
मोना चौधरी ने जल्दी से खुद को संभाला।
“अच्छा।” मोना चौधरी का अंदाज कुरेदने जैसा था। कुछ कहने से पहले वह जान लेना चाहती थी कि बख्तावर सिंह चाहता क्या है? उसने फोन क्यों किया?
“अब जा रहा हूं।”
“मिलोगे नहीं?” मोना चौधरी का स्वर तीखा हो गया।
“जरूर मिलता। लेकिन कहीं जरूरी पहुंचना है। तुम्हारे लिए तोहफा छोड़े जा रहा हूं।”
“तोहफा?” मोना चौधरी की आवाज में व्यंग्य भर आया –“तोहफे के रूप में तुमने मेरे पास चार आदमी भेजे थे। उनकी लाशें सड़कों पर या नाले में पड़ी, कहीं न कहीं से तो मिल ही गई होगी। उसे मेरी तरफ से अपने लिए तोहफा समझना बख्तावर सिंह।”
“वह किराये के आदमी थे। सोचा हिन्दुस्तान आया हूं तो, तुमसे हैलो करता चलूं। इसीलिए उन लोगों को भेजा। मैं जानता हूं तुम्हें खत्म करना आसान नहीं। लेकिन कोशिश करने में क्या हर्ज है।”
“कोई हर्ज नहीं।” मोना चौधरी ने तीखे स्वर में कहा –“तो अब कोई और तोहफा दे रहे हो?”
“हां। महाजन के रूप में। हिन्दुस्तान आऊं, और तुम्हें यादगार तोहफा न दूं, तो गलत बात होगी। अब महाजन ने गलत काम करना शुरू कर दिया है। बलात्कार और फिर हत्या। ऐसे हैं तुम्हारे साथी –।”
मोना चौधरी के चेहरे पर दरिंदगी के भाव नाचने लगे।
“तो महाजन को फंसाने में तुम्हारा हाथ था।”
“मैंने।” बख्तावर सिंह की हंसी से भरी आवाज आई –“अपना काम तो कर लिया था। इसमें कोई शक नहीं कि तुम जब भी पाकिस्तान आई। मुझे मात ही दी। अब मैं हिन्दुस्तान आया तो, तुम्हें कोई तोहफा दिए बिना कैसे जा सकता था। मेरे भेजे आदमियों से तुम बच गई। लेकिन यह तोहफा तुम्हें याद रहेगा। क्योंकि महाजन ऐसे तगड़े केस में फंस चुका है कि बचने वाला नहीं। मजा आया।”
“बख्तावर सिंह–।” मोना चौधरी दांत पीसकर गुर्रा उठी –“तुम –।”
जवाब में बख्तावर सिंह के हंसने की आवाज आई फिर उसने फोन बंद कर दिया।
मोना चौधरी के चेहरे पर खतरनाक भाव उभरे स्पष्ट नजर आ रहे थे। इंस्पेक्टर मोदी की जिस बात को वह झूठा और मक्कारी भरा समझ रही थी। वह सच थी।
मोना चौधरी ने पारसनाथ का नंबर मिलाया।
“हैलो।” पारसनाथ का स्वर कानों में पड़ा।
“मोदी तैयार हुआ?”
“नहीं। लेकिन तुम गुस्से में –।” दूसरी तरफ से पारसनाथ ने कहना चाहा।
“मैं आ रही हूं।” कहने के साथ ही मोना चौधरी ने रिसीवर रख दिया। चेहरा क्रोध से धधक रहा था।
☐☐☐
मोना चौधरी में बदलाव पाकर, पारसनाथ मन ही मन सतर्क हुआ। वह समझ नहीं पा रहा था कि रात के इस वक्त मोना चौधरी के आने की वजह क्या है?
मोदी को उसने कुर्सी पर बिठा रखा था। पारसनाथ की सतर्कता की यह हद थी कि मोदी न तो वहां से निकल पा रहा था और न ही पारसनाथ पर हमला कर पा रहा था।
मोना चौधरी ने वहां पहुंचते ही, इंस्पेक्टर मोदी पर सरसरी निगाह मारकर पारसनाथ को देखा।
“तो यह नहीं मानता?”
“नहीं।” पारसनाथ ने अपने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरकर, कड़वी निगाहों से इंस्पेक्टर मोदी को देखा –“महाजन को छोड़ने के लिए यह तैयार नहीं है। बोलता है, महाजन के बदले राजपाल को मेरे हवाले करो –।”
मोना चौधरी कुर्सी पर बैठी और सिगरेट सुलगाई।
“लेकिन तुम इस वक्त क्यों आई?” पारसनाथ ने पूछा।
मोना चौधरी की निगाह मोदी पर थी।
“राजपाल कहां है?”
“पटना गया है।” मोदी की आंखें सिकुड़ी।
“तुम कह रहे थे कि वह पटना से नेपाल जाएगा।” मोना चौधरी का स्वर गंभीर था।
“ऐसा मेरा ख्याल है।” मोदी के चेहरे पर, मोना चौधरी के प्रति उलझन के भाव थे –“मेरे ख्याल में वह बख्तावर सिंह से अपनी बेटी की मौत का बदला लेगा और बख्तावर सिंह ने यहां से नेपाल जाना था।”
“नेपाल में बख्तावर सिंह कहां मिलेगा?”
“मुझे नहीं मालूम। लेकिन यह बात राजपाल अवश्य जानता होगा।” मोदी ने कहा।
“तुम इसकी बात मानने जा रही हो मोना चौधरी?” पारसनाथ का स्वर कठोर था।
“हां।” मोना चौधरी के होंठों पर खतरनाक मुस्कान उभरी।
“कोई जरूरत नहीं। महाजन को हम किसी और तरीके से भी –।”
“पारसनाथ।” मोना चौधरी दांत भींचकर कह उठी –“कुछ देर पहले बख्तावर सिंह का फोन आया था।”
“बख्तावर सिंह का फोन?” पारसनाथ की आंखें सिकुड़ी।
“हां।” मोना चौधरी की निगाह मोदी पर जा टिकी –“मोदी का कहना ठीक है कि बख्तावर सिंह ने जानबूझकर महाजन को, बलात्कार-हत्या के मामले में फंसाया है। यही बात बख्तावर सिंह ने मुझसे कही कि मेरे को परेशानी में डालने के लिए उसने महाजन को पुलिस के चक्कर में उलझा दिया है। उसके शब्दों के मुताबिक, महाजन के साथ जो कुछ भी उसने किया, वह सब मेरे लिए तोहफा है। बख्तावर सिंह का –।”
“तो यह बात है।” पारसनाथ शब्दों को चबाकर बोला –“अब कहां है बख्तावर सिंह?”
“बख्तावर सिंह ने तो कुछ नहीं बताया। पूछने की नौबत भी नहीं आई। लेकिन मोदी का कहना है कि वह नेपाल गया है।” कहने के साथ ही मोना चौधरी ने प्रश्न भरी निगाहों से मोदी को देखा।
“हां।” मोदी ने सिर हिलाया। उसकी आंखों में चमक थी –“मैंने ट्रांसमीटर के जरिए, बख्तावर सिंह की बातें सुनी थी, वह फोन पर किसी से कह रहा था कि यहां से नेपाल जाएगा।”
“राजपाल पटना में कहां गया है?”
“जेल रोड पर। हिन्दुस्तान टाइम्स का ऑफिस भी वहीं पड़ता है। वहां पास में ही कोई झा का बंगला है। मेरे पास सिर्फ यही खबर है कि राजपाल झा के पास गया है।” मोदी ने जल्दी से कहा।
“ठीक है।” मोना चौधरी की आवाज में मौत के सर्द भाव महसूस होने लगे –“तुम महाजन को अभी छोड़ो। राजपाल को लेकर, तुम्हारा जो काम है वह हो जाएगा।”
“राजपाल अगर जिन्दा मेरे हाथ आ जाए और वह मुंह खोल दे। अपने सारे जुर्म मान ले तो मेरी तरक्की हो जाएगी।” मोदी के भिंचे होंठों से निकला।
“यह बाद की बात है कि वह जिन्दा हाथ लगता है या मरा हुआ।” मोना चौधरी ने सख्त स्वर में कहा –“तुम महाजन को छोड़ो। उसके बाद हम देखते हैं कि हमने क्या करना है।”
“मैं तुम पर विश्वास कर रहा हूं। धोखा तो नहीं दोगी?” मोदी ने कहा।
“जब हां कह दी तो, कह दी। हो सका तो राजपाल, तुम तक पहुँच जाएगा।”
मोदी ने फोन पर इंस्पेक्टर रामलाल से बात की।
“रामलाल! महाजन को छोड़ दो –।”
“लेकिन उसे तो कल सुबह अदालत में पेश करना है।”
“जो मैं कह रहा हूं। वही करो। महाजन को कहना, पारसनाथ के यहां पहुंच जाए –।”
“ठीक है।”
“महाजन के खिलाफ जो फाइल तैयार की है। यानी उसके खिलाफ जो कुछ भी है। खत्म कर दो। और अनिता राजपाल के केस के आगे यह टिप्पणी लगा दो कि तफ्तीश जारी है।”
“अभी करता हूं।”
मोदी ने फोन बंद करके, मोना चौधरी को देखा।
“पारसनाथ।” मोना चौधरी बोली –“तुम तैयार रहना। जरूरत पड़ने पर तुम्हें फौरन नेपाल पहुंचना होगा।”
“अच्छी बात है।” पारसनाथ ने सिर हिलाया –“साथ में महाजन जाएगा।”
“हां। सुबह चार बजे एक फ्लाइट पटना के लिए जाती है। हम उसी में जाएंगे। देर करना ठीक नहीं।” मोना चौधरी ने दांत भींचकर एक-एक शब्द चबाकर सख्त स्वर में कहा।
“मेरे लिए कोई काम हो तो –कहो?”
“नहीं। जो काम अब होने हैं। उनमें तुम्हारी कोई गुंजाइश नहीं है।”
“ध्यान रखना मोना चौधरी, मैंने आतंकवादियों को पकड़ने में बहुत मेहनत की है। तब कहीं जाकर मैं राजपाल तक पहुंचा हूं। तुम्हें जो जानकारी मिली है। वह मेरी महीनों की मेहनत है।” मोदी ने गंभीर स्वर में कहा।
“बार-बार मत कहो। राजपाल को तुम तक पहुंचा सकी तो, जरूर पहुंचाऊंगी–।”
“आज बच गया तू इंस्पेक्टर।” पारसनाथ ने घूंट भरा –“बख्तावर सिंह, मोना चौधरी को फोन करके, तेरी बात पर सच की मोहर न लगाता तो, आज तू गया था।”
जवाब में मोदी मुस्करा कर रह गया।
“तुम बख्तावर सिंह को तलाश करोगी? नेपाल जाओगी?” मोदी ने पूछा।
“हां। बख्तावर सिंह ने हिन्दुस्तान आकर मुझे तोहफा दिया है। ऐसे में मेरा फर्ज भी बनता है कि कोई सौगात देकर ही, बख्तावर सिंह को हिन्दुस्तान से विदा करूं –।” मोना चौधरी की आंखों में वहशी चमक उभर आई थी।
और मोदी की आंखों में तीव्र चमक लहरा उठी थी।
☐☐☐
प्लेन के पहिए रनवे से टकराते ही, यात्रियों को तीव्र झटका लगा और उसके बाद फिर पहले जैसा हो गया। विमान पटना एयरपोर्ट पर लैंड कर गया था।
मोना चौधरी के चेहरे पर हल्का मेकअप था। जिसकी वजह से बतौर मोना चौधरी उसे पहचान पाना आसान काम नहीं था। महाजन की सीट उससे कुछ हटकर थी। उस छोटे से सफर में महाजन व्हिस्की की बोतल खत्म कर चुका था।
मोना चौधरी और नीलू महाजन जब एयरपोर्ट से टैक्सी लेकर निकले तो दिन का उजाला फैलना शुरू हो चुका था। टैक्सी ड्राइवर को जेल रोड चलने को कह दिया था।
“इंस्पेक्टर मोदी की हरकत मेरी समझ से बाहर रही।” महाजन गंभीर स्वर में बोला।
“इसलिए कि निर्दोष होने पर भी उसने तुम्हारे खिलाफ केस तैयार कर दिया था।” मोना चौधरी ने उसे देखा।
“हां।”
“ऐसा मोदी ने जानबूझकर किया था। दरअसल वह राजपाल को गिरफ्तार करना चाहता था। लेकिन वह उसकी पकड़ में नहीं आ रहा था । तुम्हें फंसते पाकर, उसने यही सोचा कि राजपाल को पकड़ने का काम मुझसे ले सकता है। लेकिन मेरे से बात करने की उसकी हिम्मत नहीं थी। और उसके पास पैसे भी नहीं थे कि मुझे कीमत देकर, काम करवा पाता। तभी उसने यह सोचा कि तुम्हें पकड़कर वह मुझसे अपना काम करवा सकता है और ऐसा ही हुआ –।”
“मोदी को जब मालूम था कि राजपाल पटना में कहां गया है तो वह उसे गिरफ्तार –।”
“नहीं। मोदी का ख्याल है कि राजपाल पटना होते हुए नेपाल निकल गया है बख्तावर सिंह के पीछे। ऐसे में राजपाल को पकड़ पाना उसके दायरे से बाहर हो गया।” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा।
“जो भी हो। मोदी ने मेरे साथ ज्यादती की है।” महाजन उखड़े स्वर में बोला।
“खैर मनाओ कि मेरी बात पर विश्वास करके उसने तुम्हें छोड़ दिया।” मोना चौधरी मुस्कराई।
“जो भी हो। मोदी जब मेरे हत्थे चढ़ेगा तो मैं उसे छोड़ने वाला नहीं –।”
मोना चौधरी मुस्करा कर रह गई।
“नेपाल में बख्तावर सिंह हाथ लगा और उसकी गर्दन तोड़ने का मौका मिला तो वह भी बचने वाला नहीं। साले ने मेरे को मुर्गा बनाकर, तोहफे के रूप में, तेरे सामने रख दिया।” महाजन के चेहरे पर वास्तव में गुस्सा झलक उठा –“बेबी, एक ही रात हवालात में बिताकर, मेरा तो बुरा हाल हो गया था। ऊपर से साले मोदी ने पीने को एक बूंद नहीं दी।”
मोना चौधरी कुछ नहीं बोली।
“नेपाल में बख्तावर सिंह कहां मिल सकेगा?” महाजन ने पूछा।
“राजपाल से यह बात मालूम हो जाएगी।”
“और बेबी। अगर राजपाल ही न मिला तो?”
“तो नेपाल पहुंचकर देखेंगे कि बख्तावर सिंह के बारे में कैसे मालूम किया जा सकता है।”
“यह तो दिक्कत वाली बात हो गई। बख्तावर सिंह को नेपाल में एक-आध दिन ही रुकना हुआ तो, वह निकल जाएगा और हम उसे ढूंढ़ते ही रह जाएंगे।” महाजन गहरी सांस लेकर कह उठा।
टैक्सी जेल रोड पर पहुंची।
“जेल रोड आ गया।” टैक्सी ड्राइवर बोला –“कहां जाना है?”
“हिन्दुस्तान टाइम्स की बिल्डिंग के सामने रोक देना –।”
कुछ आगे पहुंचकर, ड्राइवर ने टैक्सी रोकी। किराया चुकता करके दोनों नीचे उतरे और पैदल ही आगे बढ़ गए। सड़क के दोनों तरफ इमारतें और कुछ बंगले नजर आ रहे थे। सुबह का वक्त होने के कारण लोगों का आना-जाना कम था। सैर करने वाले कुछ लोग नजर आ रहे थे।
“यहां कहीं झा का बंगला है।” मोना चौधरी बोली –“मोदी के मुताबिक राजपाल यहीं आया है।”
“लेकिन कैसे मालूम हो कि झा का बंगला –।”
“इस सड़क पर ज्यादा बंगले नहीं हैं। झा के बंगले को हम आसानी से ढूंढ सकते हैं।”
करीब एक घंटे का वक्त लगा, झा के बंगले को तलाशने में। दिक्कत यहां आई कि उन बंगलों में तीन बंगले ऐसे थे, जिनके बाहर ‘झा’ नाम की नेमप्लेट लगी थी। इन तीनों में से उनके काम का ‘झा’ कौन सा है?
“यहां ‘झा’ नाम के आदमियों के तीन बंगले हैं।” महाजन ने होंठ सिकोड़े।
“हां। इन तीनों में से हमारे काम का झा कौन सा है?”
“मालूम करना पड़ेगा।” महाजन ने मोना चौधरी को देखा –“मैं पता लगाता हूं।”
“कैसे?”
महाजन मुस्कराकर, बिना कुछ कहे आगे बढ़ गया।
मोना चौधरी ने सिगरेट सुलगाई।
करीब आधे घंटे बाद महाजन लौटा।
“सफेद वाला बंगला हमारे काम का है।” महाजन ने बताया।
“कैसे जाना?” मोना चौधरी ने सड़क पर निगाह मारी, जहां अब वाहन दौड़ते नजर आने लगे थे।
“बंगलों के बाहर दरबान खड़े हैं। उन्हें बातों में लगाया और बोला कि मेरे मालिक दिल्ली से आने वाले थे। उन्होंने इसी बंगले में मुझसे मिलने को कहा था। दो बंगलों के दरबानों ने तो बताया कि यहां कोई मेहमान नहीं आया लेकिन तीसरे बंगले के दरबान ने बताया कि रात को ही दिल्ली से साहब आए हैं और बंगले में ही हैं। मैं यह कहकर खिसक आया कि तैयार होकर आता हूं मालिक से मिलने के लिए।”
मोना चौधरी की आंखों में तीव्र चमक उभरी।
“इसका मतलब राजपाल बंगले के भीतर है।”
“हां। महाजन ने गंभीरता से सिर हिलाया और कपड़ों में फंसी व्हिस्की की बोतल निकालकर घूंट भरा –“परन्तु मैं इस नजरिए से भी नजर मार आया हूं कि बंगले में भीतर जाना आसान नहीं।”
“बंगले में जाने का कोई रास्ता तो निकालना ही होगा। वह भी जल्दी।” मोना चौधरी शब्दों को चबाकर बोली –“हमारा राजपाल से फौरन मिलना बहुत जरूरी है।”
☐☐☐
उस वक्त दिन के दस बज रहे थे।
मोना चौधरी और नीलू महाजन उस बंगले के पीछे वाली गली में थे, जो दस फीट चौड़ी थी और वहां इक्का-दुक्का लोग आते-जाते नजर आ रहे थे। उस सड़क पर चाय-पकौड़ों की कुछ दुकानें भी थी। उन्होंने गली के माहौल का जायजा लिया।
बंगले के पीछे वाली दीवार आठ फीट ऊंची थी।
“यहां से दीवार फलांग कर जाने का मतलब है, लोगों की नजर में आना।” मोना चौधरी बोली।
“मैं भी यही सोच रहा हूं।” महाजन ने होंठ सिकोड़ कर आसपास देखते हुए कहा।
“लेकिन हम दोनों में से एक तो मौका पाकर, दीवार फलांग सकता है। दोनों ने ऐसा किया तो, गली में आते-जाते लोग, पक्के तौर पर हमारी हरकत देख लेंगे।” मोना चौधरी ने कहा –“तुम यहीं रहो। मैं बंगले में जाऊंगी।”
“भीतर खतरा हो सकता है।” महाजन बोला।
“उसकी फिक्र न करो।”
“राजपाल को न तो तुम पहचानती हो और न मैं।”
“मैं भीतर जा रही हूं।” मोना चौधरी की आवाज और चेहरा शांत था। नजरें आसपास से गुजरते लोगों को देख रही थी। और मुनासिब मौके की इन्तजार में थी।
महाजन ने बोतल निकाली और तगड़ा घूंट भरा।
“साले मोदी ने तो सूखा-सूखा लॉकअप में फेंक दिया था।” महाजन बड़बड़ाया।
तभी पास से गुजरता, फटीचर-सा व्यक्ति ठिठका और उसे देखकर बोला।
“साहब जी, सुबह सुबह –।”
“तेरे बाप का माल है क्या?” महाजन ने उसे घूरा।
“माल तो साहब का ही है। मैं तो पूछ रहा था।” फटीचर ने दांत फाड़े –“जनाब के लिए गिलास लाएं क्या?”
“कोई जरूरत नहीं।”
फटीचर की पीठ थी मोना चौधरी की तरफ। और उस वक्त इत्तेफाक ही था कि वह रास्ता चंद पलों के लिए सुनसान नजर आया। मोना चौधरी ने वक्त गंवाना मुनासिब नहीं समझा और पलक झपकते ही दीवार की मुंडेर पर और फिर दूसरी छलांग में दीवार के उस पार कूद गई।
महाजन ने छिपी निगाहों से मोना चौधरी को बंगले में जाते देख लिया था। अब वह तब तक फुर्सत में था। जब तक मोना चौधरी की वापसी न होती।
“गिलास न सही तो मसालेदार बढ़िया-सा नमकीन ले आऊं –।” खाली-खाली ठीक नहीं होता।”
“वह मैंने बोतल खोलने से पहले ही ले लिया है।” महाजन ने मुस्कराकर कहा।
“वाह! अपने साहब तो पहुंचे हुए लगते हैं।” उसने पुनः दांत दिखाए –“अगर आपको गिलास की जरूरत नहीं तो कोई बात नहीं। हुक्म हो तो अपने लिए गिलास ले आऊं।”
“यह तुम्हारे पीने का वक्त है?”
“मुफ्त के माल का भी कोई वक्त होता है। अभी आया –।”
महाजन के देखते ही देखते कुछ दूर नजर आ रही, चाय की दुकान से वह गिलास ले आया। और पास आकर आसपास देखता हुआ बोला।
“वह मेमसाहब कहां गई जो विदेशी सी लगती थी।”
“मेमसाहब –।” महाजन लापरवाही से बोला –“बोतल देखकर ही चढ़ गई। पैग मारकर क्या होगा?”
फटीचर ने हड़बड़ाकर उस तरफ देखा जहां पहले मोना चौधरी खड़ी थी।
“तो वह मेमसाहब आपके साथ नहीं होगी। होगी कोई। चली गई।” फटीचर ने सिर हिलाकर गिलास आगे बढ़ाया।
महाजन उसके गिलास में व्हिस्की डालता हुआ बोला।
“पानी डाल लेना।”
“जब आपको पानी की जरूरत नहीं तो, मैं गुस्ताखी कैसे कर सकता हूं।” कहने के साथ ही उसने एक ही सांस में गिलास खाली किया और आगे बढ़ाकर बोला, “गला ही गीला हुआ है। पेट तक तो पहुंची नहीं।”
महाजन ने मुस्कराते हुए, उसका गिलास फिर भर दिया।
इस बार उसने तसल्ली से घूंट भरा, और मस्ती भरे अंदाज में बोला।
“तो साहब का पीने के बाद क्या प्रोग्राम है?”
“प्रोग्राम?”
“हां।” उसने पुनः घूंट भरकर कहा।
महाजन समझ गया कि उसे व्हिस्की का असर होना शुरू हो गया है। दिखने में वह ठीक लग रहा था।
“मेरा तो कोई प्रोग्राम नहीं।”
“तो प्रोग्राम होना चाहिए।” फटीचर महाजन के कंधे पर हाथ मारकर हंसा –“वैसे भी आप साहब का सड़क पर खड़े होकर पीना ठीक नहीं। मुझ जैसों का क्या है। सब चलता है।”
महाजन ने घूंट भरा और होंठ सिकोड़कर उसे देखा।
“मेरे घर चलो।” कहकर उसने एक और घूंट भरा अपने गिलास से।
“घर –वहां क्या है?”
“मेरे घर बैठकर पीना।” इसके साथ ही उसने गिलास खाली करके आगे बढ़ाया तो महाजन ने उसे फिर भर दिया तो एक ही बार में उसने आधा गिलास खाली करके कहा –“वहां मेरी कजन है पूरे उन्नीस की –।”
“उन्नीस की।” महाजन के होंठों पर छाई मुस्कान गहरी हो गई।
“हां। वैसे मैं हर किसी को घर नहीं ले जाता।” उसने दांत फाड़े –“लेकिन आप बहुत अच्छे इंसान हैं। दरियादिली है आपकी। कितनी महंगी व्हिस्की मुझे पिला दी। मेरी कजन आपको अपने पास बिठाकर अपने हाथों से पिलाएगी। वह मेरी बात नहीं टालती। बहुत सेवा करेगी आपकी। ड्राइंगरूम में भी, बेडरूम में भी। सच कह रहा हूं। बहुत मजा आएगा। वैसे देखने में वह सत्रह की ही लगती है।”
“सत्रह की?”
“हां।” उसने हाथ में पकड़ा गिलास खाली कर दिया –“आपको तो यकीनन वह सोलह की ही लगेगी।”
“हूं।” महाजन के होंठों पर व्यंग्य के भाव उभरे –“सोलह से तो छोटी नहीं है?”
“अब मैं अपने मुंह से आपको क्या कहूं।” उसने खाली गिलास थपथपाया –“अगर वह चुटिया कर ले तो पन्द्रह से ज्यादा नहीं लगती।”
“पन्द्रह?” महाजन ने होंठ सिकोड़े –
“इससे भी छोटी चाहिए तो कोई बात नहीं। उसे स्कर्ट और टॉप डलवा देंगे। तब तो चौदह से ज्यादा की लगेगी ही नहीं।”
“अच्छा?” महाजन ने आंखें फैलाई।
“मेरी बात पर विश्वास नहीं आ रहा क्या?”
“आ रहा है, आ रहा है।” कहते हुए महाजन ने फिर से उसका गिलास भर दिया–“चौदह से कम नहीं लग सकती?”
“कोई दिक्कत नहीं। लग जाएगी।”
“उसके लिए क्या करना होगा?” महाजन ने घूंट भरा।
“खास कुछ नहीं। एक के बदले, दो चोटियों कर देते हैं।” कहकर उसने घूंट भरा।
“इससे वह तेरह की हो जाएगी।”
“पूरे तेरह की –”
“बारह साल की वह हो जाए। इसका कोई जुगाड़ नहीं है।” महाजन ने अपने कान की लौ मसली।
“क्यों नहीं है। स्कर्ट की लंबाई थोड़ी सी छोटी कर देते हैं और टॉप का साइज भी छोटा कर देते हैं। हो गई बारह की। और साहब जी। बारह से कम का कोई फायदा नहीं। आखिर कुछ तो माल-पानी हो। खाली बोतल का क्या फायदा?”
“ठीक कहते हो।” महाजन ने सिर हिलाया।
“तो चले?” अपना चौथा गिलास खाली करके, वह दांत फाड़कर बोला। नशे से उसका चेहरा सुर्ख हो चुका था। आंखें भारी होकर मिचमिचा रही थी। शरीर भी लहराने-सा लगा था।
“चलते हैं। एक बात तो बता –।”
“क्या?”
“वैसे है वो कितने साल की?”
“बताया तो।”
“वो तो ठीक है। आपस की बात है। वैसे है वो कितने साल की। किसी से कहूंगा नहीं।”
“बताना नहीं किसी को।” वह कान में कहने वाले लेकिन ऊंचे स्वर में बोला।
“नहीं बताऊंगा। घर की बात है। तो वह कितने की है?”
“दो दिन पहले ही चालीस बरस पूरे किए हैं।”
“चालीस।”
“बताना नहीं किसी को।” आवाज नशे से भरभरा रही थी।
“मैं क्यों बताऊंगा।”
“अब तो बेकार हो गई है साली। पूरी की पूरी थुलथुल। मालूम ही नहीं होता कि शरीर का कौन सा हिस्सा कहां है। ढूंढना पड़ता है। जवानी में जबरदस्त थी।” वह अब नशे में बोलने लगा था।
“ठीक है।” महाजन ने तीखे स्वर में कहा –“जा अब। काम हो गया।”
“काम हो गया?” नशे में वह बोला –“कैसे हो गया। तुम तो यहीं खड़े हो।”
“खड़े-खड़े हो गया। फूट ले यहां से।”
फटीचर नशे में जोरों से हंसा –“भाई तू तो हमारा भी उस्ताद निकला।”
“क्यों?”
“बारह साल वाली से मजा ले लिया। खड़े-खड़े तेरा काम भी हो गया। मुझे पता भी नहीं लगा। निकाल।”
“क्या?”
“रोकड़ा। बारह साल के, पूरे पांच सौ रुपए लगते हैं।” नशे में उसने हाथ आगे बढ़ाया।
“तूने छः सौ रुपए की व्हिस्की पी है। सौ तेरी तरफ निकले। वापस दे।”
“सौ मैने देने हैं।” नशे में उसका हाल बुरा होना शुरू हो चुका था।
“हां –।”
“यही मुझ में बुरी आदत है। पीने के बाद सब कुछ भूल जाता हूं। खैर अभी तो सौ रुपए हैं नहीं मेरे पास –।”
“छुट्टे करा ले।”
“छुट्टे?”
“बारह साल वाली को पांच सौ का नोट दिया था।”
“पांच सौ दिया था।” नशे में वह जोरों से लड़खड़ाया –“साली ने मुझे बताया नहीं। पहले भी कई बार ऐसा कर चुकी है। सुनो –तुम यहीं रहना मैं अभी उसके हाथ-पांव तोड़कर आता हूं।”
“एक मिनट।” महाजन ने उसका गिलास वाला हाथ सीधा किया और पुनः गिलास भर दिया –“जाते हुए घूंट भरते जाना। बारह साली तक पहुंचते-पहुंचते, सारे हाथ-पांव बराबर हो जाएंगे।”
“बहुत बढ़िया।” नशे में उसके शब्द, होंठों से पूरे नहीं निकल रहे थे –“तुम यहीं रहना –।”
“चिन्ता मत कर। मैं यहीं खड़ा बजाऊंगा, तेरी ड्यूटी।” महाजन ने व्यंग्य से कहा।
और वह नशेड़ी-फटीचर हाथ हिलाते, गिलास को खाली किया और उसे थामे लड़खड़ाते हुए आगे बढ़ गया। उसकी हालत ऐसी थी कि वह कभी भी लुढ़क सकता था।
महाजन ने खाली होने जा रही बोतल वापस कपड़ों में फंसाई और उसका ध्यान बंगले के भीतर गई मोना चौधरी की तरफ हो गया कि बंगले में वह क्या कर रही होगी?
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चार दीवारी फलांगते ही गोना चौधरी वहीं दुबक गई। उसकी सतर्क निगाह हर तरफ घूमने लगी। बंगले के पीछे वाले हिस्से में भी खूबसूरत लॉन था। मखमली घास बहुत अच्छी तरह कटी, किसी कालीन की तरह लग रही थी। बीच में खूबसूरत फूलों के पौधे और भी आकर्षण बढ़ा रहे थे। लॉन में ही दो बड़े-बड़े छाया फैलाते पेड़ भी अच्छे लग रहे थे। उन पेड़ों के नीचे आरामदेह झूला रखा हुआ था।
हर चीज पर बहुत अच्छे से ध्यान दिया हुआ था।
उसी झूले पर पेड़ के छाया के नीचे, काले कपड़े में गनमैन मौजूद था। पास में ही लापरवाही वाले अंदाज में उसने गन रखी हुई थी। स्पष्ट तौर पर उसने मोना चौधरी को दीवार से भीतर कूदते देखा था। उसने फौरन गन थामी और झूले से नीचे उतरकर, सावधानी से, धीरे-धीरे मोना चौधरी की तरफ बढ़ा।
मोना चौधरी की नजरें भी उस पर टिक चुकी थी।
वह अकेला इंसान था जो वहां नजर आया था और उसने उसे देख लिया था। मोना चौधरी धीरे-धीरे खड़ी हुई। तब तक वह सात-आठ कदम पहले रुक गया था। उसकी गन सीधी हो गई थी। परंतु उसकी आंखें मोना चौधरी को सिर से पांव तक बार-बार देखते हुए कभी-कभार बीच में अटक जाती थी। चेहरे पर प्रशंसा के भाव थे कि, कपड़ों के पीछे क्या नजारा हो सकता है। शायद इसका अंदाजा उसने लगा लिया था।
“यहां कैसे?” गनमैन ने आंखें नचाई।
मोना चौधरी ने गर्दन गुमाकर दीवार की तरफ देखा फिर जल्दी से बोली।
“मेरे पीछे बदमाश पड़े हैं। वह –।”
“फिर तो वह ठीक ही पड़े हैं।” गनमैन की निगाह पुनः ऊपर नीचे गई –“तुम हो ही ऐसी।”
“प्लीज मुझे बचा लो। मैं –।”
“चिंता मत करो।” वह अजीब से अंदाज में हंसा –“भीतर आने की किसी की हिम्मत नहीं। तुम बच गई। लेकिन एक बात समझ में नहीं आ रही।”
मोना चौधरी खामोशी से उसे देखती रही।
“यह आठ फीट की दीवार तुमने फलांग कैसे ली?”
“वो-वो बाहर दीवार के साथ कुछ पड़ा है। उस पर पांव रखकर दीवार की मुंडेर थामी और ऊपर चढ़कर यहां कूद गई। प्लीज, मुझे यहां से जाने को मत कहना। बाहर वह बदमाश हो सकते हैं।”
“तू जाना भी चाहेगी तो तब भी नहीं जाने दूंगा।” गनमैन होठों ही होंठों में बड़बढ़ाया फिर बोला –“चिंता मत करो। बदमाशों को मैं देख लूंगा। आ, तू मेरे साथ चल। मालिकों ने देख लिया तो मेरे हाथ कुछ नहीं लगेगा।”
“क्या?”
“मेरा मतलब है मालिकों ने देख लिया तो वह तुम्हें बाहर निकाल देंगे। बाहर बदमाश हैं। आ मेरे साथ।”
“कहां?”
“उधर, दीवार के पास कोने में चार सर्वेंट क्वार्टर हैं। उनमें से एक मेरा है। वहीं चलते हैं।” कहते हुए उसने गन नीची की और पलटकर एक तरफ बढ़ा।
मोना चौधरी ने जल्दी से हर तरफ नजर मारी। बंगले की तरफ भी देखा। शीशे के दरवाजों और खिड़कियों के पीछे कोई भी नजर नहीं आया। यह अच्छा था कि किसी ने उसे देखा नहीं था। वह शांत भाव से गनमैन की तरफ बढ़ गई।
“आ-जा। आ-जा।” चलते-चलते गनमैन पीछे देखते हुए, हाथ का इशारा करते हुए बोला।
☐☐☐
गनमैन, मोना चौधरी को जिस सर्वेंट क्वार्टर में ले गया। वहां एक फोल्डिंग बेड के अलावा दो कुर्सियां और छोटा-सा टेबल था । दीवार पर लगी खूंटी पर कपड़े लटके हुए थे।
“कैसा लगा मेरा क्वार्टर?” उसकी निगाह छातियों वाली जगह पर जा टिकी।
“बहुत अच्छा।” मोना चौधरी खुश होकर बोली –“यहां वो बदमाश नहीं आ सकते।”
“उनकी फिक्र मत कर। सालों की ऐसी-तैसी।” उसने अपनी छोटी सी मूंछ पर हाथ फेरा।
जवाब में मोना चौधरी मुस्कराई।
“यह क्या है?” मोना चौधरी ने उसके कंधे पर लटकी गन की तरफ इशारा किया।
“यह –।” वह हंसा –“गन है। दस सेकेंड में दस को मार देती है।”
“अच्छा-अच्छा। बंदूक है। जो फिल्म में पुतलीबाई लेकर –।”
“पुतलीबाई वाली बंदूक की बात मत कर। वो नकली होती है। आग और धुआं छोड़ने वाली। यह तो असली है मेरी जान। यह पास हो तो जिगर गज भर लंबा हो जाता है।”
“अच्छा –।”
“हां।” कहने के साथ ही उसने जेब से कुछ नोट निकाले और आगे बढ़कर मोना चौधरी की हथेली में ठूंसने वाले अंदाज में बोला –“यह रख ले।”
“लेकिन –।”
“चिंता मत कर। बाहर जाकर जूस पी लेना और एक-दो किलो दूध मार लेना। मेहनत करने के बाद कुछ खा-पी लेना ठीक रहता है।” कहने के साथ ही उसने गन को टेबल पर रखा और अपनी कमीज खोलने लगा।
“यह क्या कर रहे हो?” मोना चौधरी ने हड़बड़ाकर कहा।
“टाइम तो पास करना ही है। बाहर बदमाश हैं। अकेली बैठी कब तक बोर होती रहेगी। हम दोनों ही मौज-मस्ती करते हैं। वो दो-चार तो होंगे। मैं तो अकेला हूं।”
“नहीं मैं–।”
“चुप–।” उसने घुड़की दी–“ज्यादा बोली तो बंगले से बाहर कर दूंगा। फिर निपटती रहना उन चारों से। शोर मचाया तो और भी गड़बड़ हो जाएगी। मेरा साहब पक्का औरतखोर है। वह तो तेरे जैसी चीज की कम से कम एक महीना बांध के कमरे में रखेगा। रात को खोलेगा और सुबह बांध देगा। सबसे सस्ता सौदा मेरे पास है। एक घंटे में निपटारा।”
मोना चौधरी ने चेहरे पर घबराहट के भाव ओढ़ लिए थे।
उसने कमीज उतारकर एक तरफ फेंकी और डराने वाले स्वर में बोला –“जल्दी उतार –।”
“क-क्या?”
“कपड़े और क्या। नखरे नहीं चलेंगे मेरे सामने। फटाफट निपट –।”
“ज –जरूरी है।” मोना चौधरी की आवाज में घबराहट थी।
“बहुत जरूरी है। पूरे बीस दिन हो गए आज –।”
“बीस दिन?”
“ज्यादा पूछताछ मत कर। कपड़े खोल। मुझे ड्यूटी पर जाना है। जूस और दूध के लिए नोट तेरे को दे दिए हैं। मजे ही मजे हैं, तेरे तो हर तरफ से। खोल –।”
मोना चौधरी जबरदस्ती वाले अन्दाज में अपनी कमीज के बटन खोलने लगी।
थोड़ा सा नजारा हुआ कि गनमैन का गला सूखने-सा लगा।
“धीरे-धीरे न कर। फुर्ती दिखा फुर्ती–।”
बटन खुल चुके थे। कमीज अलग होकर बेड पर जा गिरी। नकाबिल ब्रा से जो नजारा नजर आया। उससे गनमैन के होश उड़ने लगे। उसने बाज की तरह झपट्टा मारा और मोना चौधरी से मकड़े की भांति जा चिपका।
“क्या कर रहे हो।” मोना चौधरी ने उसे अलग करना चाहा। साथ ही उसकी निगाह टेबल पर पड़ी गन पर जा टिकी थी। अब गन को हासिल किया जा सकता था। वरना दूसरी स्थिति में गन पर हाथ नहीं डालने देता यह।
चिपकने के बाद, वह हटने का नाम नहीं ले रहा था।
“छोड़ो भी –।”
“क्या?” उसकी सांसों में उखड़ा पन आ गया था।
“सब्र करो। तुम तो पन्द्रह साल के लड़के की तरह कर रहे हो।” मोना चौधरी ने उसे अलग करने की कोशिश की। परंतु उसने अभी भी अपनी पकड़ नहीं छोड़ी।
“तुमने मुझे पागल कर दिया है। तुम जैसी पहले –।”
“मेरा दम घुट रहा है। सांस नहीं आ रही। एक मिनट –।”
वह जरा सा पीछे हुआ।
मोना चौधरी ने उसे धकेलकर दो-तीन कदम पीछे कर दिया। वह ऐसे हांफ रहा था जैसे लंबी दौड़ लगाकर आया हो। नजरें जिस्म पर फिरी जा रही थी।
“पागल हो तुम। ऐसे करते हैं।” मोना चौधरी ने मीठी झिड़की दी।
“क-कैसे करते हैं।” वह जैसे अपने होश में नहीं था।
“बेड पर बैठो –।”
“बेड पर?” वह होठों पर जीभ फेरता छातियों को देख रहा था।
“हां।”
“वहां क्यों?”
“मैं तुम्हें बताऊंगी सब कुछ कैसे होता है।”
“ओह।” उसने चमक भरी निगाहों से मोना चौधरी के चेहरे को देखा –“तुम बताओगी। फिर तो मजा आ जाएगा।” कहने के साथ ही वह छलांग मारने वाले अंदाज में बेड पर पहुंच गया –“बताओ।”
मोना चौधरी के होंठों पर मीठी मुस्कान उभरी। आंखों में जहरीले भाव। वह बेहद शांत ढंग से तीन कदम आगे बढ़ी। टेबल के पास पहुंची और गन को उठा लिया।
ऐसा करते देख, गनमैन हड़बड़ाया।
“बेवकूफ। इसे रख दो। यह पुतलीबाई वाली बंदूक नहीं है। कोई मर-मरा जाएगा।”
चेहरे पर खतरनाक भाव समेटे मोना चौधरी ने गन का रुख उसकी तरफ किया।
“कोई नहीं, तू मरेगा, कुत्ते।” मोना चौधरी के होंठों से सर्द स्वर निकला।
मोना चौधरी का बदला रूप देखते ही उसकी झाग नीचे बैठती चली गई।
“पागल तो नहीं हो गई तुम। मैं जो भी कर रहा था तुम्हारी रजामंदी से कर रहा था।” वह घबराए स्वर में जल्दी से कह उठा –“अगर तुम्हें नहीं पसन्द तो नहीं करता।”
दांत भींचे मोना चौधरी आगे बढ़ी और गन की नाल उसकी छाती पर रख दी।
गनमैन के चेहरे पर सफेदी की परत उभरी।
“य-यह क्या कर रही हो। मुझे मत मारो। गोली चल जाएगी। पी-पीछे हटा लो। मैं–।”
“चुप –।” मोना चौधरी दबे स्वर में गुर्राई।
उसने तुरंत हो भींच लिए।
“बंगले में कोई दिल्ली से आया है।”
“ह–हाँ।”
“कौन?”
“मैं नहीं जानता। स-सेठ जी का दोस्त है।” उसका स्वर खौफ से कांप रहा था। “वह भीतर है?”
“ह–हाँ?”
“गन लेकर तुम पहरा क्यों दे रहे हो? यह तुम्हारी हर रोज की ड्यूटी है?”
“न-नहीं। मेरे ख्याल में दिल्ली से आए मेहमान की वजह से सेठ जी ने पहरा देने को कहा है।”
“बंगले में कौन-कौन है?”
“सेठ जी। दिल्ली वाला मेहमान। नौकर वगैरह –।”
“सेठ के घरवाले?”
“वो तो सप्ताह के लिए कश्मीर घूमने गए हैं।”
“तुम जैसे पहरेदार कितने हैं बंगले में?”
“मुझे मिलाकर दो। द-दूसरा आगे क-की तरफ है। तु-तुम कौन हो?”
“सवाल मत करो।”
गनमैन सूखे होंठों पर जीभ फेरकर रह गया।
“उठो। और दरवाजे की तरफ मुंह करके खड़े हो जाओ।”
वह जल्दी से उठा और दरवाजे की तरफ मुंह करके खड़ा हो गया। चेहरे पर घबराहट और पसीना हावी था। गले में खुश्की के कांटे चुभ रहे थे।
उस पर नजर रखे, मोना चौधरी ने कमीज पहनी।
“चलो।” मोना चौधरी ने गन की नाल उसकी पीठ से टकराई –“बंगले के अंदर। वहां, जहां तुम्हारा सेठ और उसका दिल्ली से आया मेहमान है।”
“सवाल नहीं करता।” वह सूखे स्वर में बोला –“यूं ही पूछ रहा हूं, तुम चाहती क्या हो।”
“जो कहा है, वही करो, वरना।” दरिंदगी भरे स्वर में कहते हुए, गन की नाल से उसे आगे को धक्का दिया।
“कमीज पहन –।”
“शटअप। ऐसे ही चलो।”
कांपती टांगों से वह क्वार्टर से बाहर निकला। गन लिए मोना चौधरी उसके पीछे थी।
“कोई चालाकी मत करना। वरना –।”
“मैं कुछ नहीं करूंगा। भगवान के लिए गन का मुंह मेरी तरफ न रखो। गोली चल–।”
“तुम तभी मरोगे, जब मैं चाहूंगी। वैसे नहीं मरोगे।”
☐☐☐
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