उस रात अजय का पुलिस हैडक्वार्टर्स पहुंचना महज इत्तिफाक था।

वह सुभाष चन्द बोस ऑडिटोरियम में मशहूर पाकिस्तानी गजल गायक गुलाम अली का प्रोग्राम सुनने गया था। प्रोग्राम बेहद शानदार था और लगभग दो बजे खत्म हुआ। श्रोताओं की भीड़ के साथ बाहर आने के बाद अजय अपनी मोटरसाइकिल पर सवार हुआ और पार्क स्ट्रीट की और ड्राइव करने लगा। लेकिन मुश्किल से दो फलाँग जाने के बाद ही पिछला पहिया पंक्चर हो गया। रात में, उस वक्त उस इलाके में पंक्चर लगवाने की सुविधा प्राप्त होना नामुमकिन था। और अपनी प्रिय मोटरसाइकिल को रात भर सड़क पर अरक्षित छोड़कर जाना अजय नहीं चाहता था। उसके सामने एक ही उपाय था मोटर साइकिल को धकेलकर करीब तीन फलांग दूर स्थित पुलिस हेडक्वार्टर्स पहुंचाए। वहां से फोन करके टैक्सी बुलाकर अपने फ्लैट पर लौटे और दिन में किसी वक्त आकर मोटर साइकिल ले जाये।

वह पुलिस हैडक्वार्टर्स पहुंचा।

मोटर साइकिल पार्किंग लॉट में छोड़कर इमारत में दाखिल हुआ। उसकी जानकारी के मुताबिक इंस्पैक्टर रविशंकर की नाइट ड्यूटी थी।

वह सीधा उसी के आफिस में पहुंचा।

अपने डेस्क के पीछे मौजूद रविशंकर कॉफी की चुस्कियाँ लेता हुआ सामने रखे कागजात का अध्ययन कर रहा था।

–"हलो, रवि।" अजय ने कहा।

रविशंकर ने उसके ओवर कोट और हाथ में पकड़े हैल्मेट पर निगाह डाली।

–"तुम?" उसने पूछा, "इस वक्त कहाँ से आ रहे हो?"

अजय ने हैल्मेट डेस्क पर रख दिया और उसके पास पड़ी कुर्सियों में से एक पर बैठ गया।

–"तुम्हारे पड़ौस में गजलें सुनने आया था।" वह बोला–"लेकिन लौटती दफा मोटरसाइकिल का टायर पंक्चर हो जाने की वजह से मेरा अपना काफिया तंग हो गया।"

–"और अब तुम फोन करके टैक्सी बुलाकर घर जाना चाहते हो?"

–"हो, लेकिन पहले गर्मागर्म कॉफी पीना चाहता हूं।"

इससे पहले कि रविशंकर कुछ कहता या कॉफी लाने के लिए किसी को भेजता, उसके डेस्क पर रखे टेलीफोन की घंटी बजने लगी।

उसने रिसीवर उठा लिया।

–"हलो?" वह माउथपीस में बोला। फिर गौर से सुनने लगा। अन्त में एक कागज पर कुछ लिखने के बाद बोला–"ठीक है। मैं आ रहा हूँ।" और रिसीवर यथा स्थान रखकर खड़ा हो गया–"सॉरी, अजय। इस वक्त तुम्हें कॉफी नहीं पिला सकूँगा।"

–"क्यों?" अजय ने पूछा–"कहीं जा रहे हो?"

–"हाँ, किसी ने काशीनाथ जावेरी का खून कर दिया है।"

अजय बुरी तरह चौंका।

–"क्या?" उसने अविश्वासपूर्वक पूछा–"काशीनाथ का खून कर दिया गया?"

रविशंकर ने उसे घूरा।

–"हाँ, तुम उसे जानते थे?"

–"अच्छी तरह। शाम करीब सात बजे उसके घर भी गया था।

रविशंकर की आँखों में सन्देहपूर्ण भाव उत्पन्न हो गए।

–"ठीक है।" वह बोला–"तुम भी साथ चलो। रास्ते में बातें करेंगे।

अजय खड़ा हो गया।

* * * * * *

चन्द मिनटोपरांत पुलिस हेडक्वार्टर्स से जो जीप बाहर निकली उसमें पुलिस दल के साथ अजय भी मौजूद था।

वह आगे रविशंकर की बगल में बैठा था।

–"काशीनाथ जावेरी विराटनगर के प्रमुख जौहरियों में से एक था।" वह बता रहा था–"मीना बाजार में उसका अपना शोरूम है। उसमें उसका एक पार्टनर भी है–मदनमोहन सेठी। लेकिन काशीनाथ का मुख्य काम जवाहरात की खरीद–फरोख्त में दलाली करना था।

–"तुम उसे कब से जानते थे?" रविशंकर ने पूछा।

–"करीब चार साल से।" अजय ने जवाब दिया–"दरअसल काशीनाथ का एक्स साला दिलीप केसवानी मेरा दोस्त है।"

–"एक्स साला?" रविशंकर ने टोका–"वो क्या होता है?"

–"काशीनाथ की पत्नि रंजना ने कोई डेढ़ साल पहले उससे तलाक लेकर दूसरी शादी कर ली थी। इस तरह रंजना का भाई दिलीप केसवानी उसका एक्स साला था। अजय ने जवाब दिया–"वह सेल्स टैक्स–इनकम टैक्स का सफल एडवोकेट है। उसी ने पहली बार एक पार्टी में काशीनाथ से मुझे मिलाया था। पहली मुलाकात में ही हम दोनों एक–दूसरे को पसन्द करने लगे और धीरे–धीरे बेतकल्लुफ दोस्त बन गए। फिर उसका पार्टनर मदनमोहन भी मेरा अच्छा दोस्त बन गया।"

–"शाम सात बजे तुम काशीनाथ के घर किसलिए गए थे?"

–"उसी ने फोन करके बुलाया था।

–"किसलिए?"

–"वह जवाहरात के एक कलैक्शन की फोटुएँ खिंचवाना चाहता था।"

–"उस कलैक्शन में कोई खास बात थी?"

–"कोई नहीं, उसमें तमाम खास बातें थीं। नम्बर एक काशीनाथ ने उसे साढ़े छह बजे पूरे चौबीस लाख रुपए में खरीदा था। दूसरे, उसका ताल्लुक कनकपुर के राजघराने से था। इसीलिए उसका नाम कनकपुर कलैक्शन है। तीसरे, बकौल काशीनाथ उस कलैक्शन के हीरे, मोती और नीलम का आकार असामान्य और आब तथा चमक असाधारण हैं। उसने जिस ढंग से तारीफ की थी उससे लगता था वो कलैक्शन अपने आप में नायाब है। इसीलिए उसने उसकी फोटुएँ खींचने मुझे बुलाया। वह नहीं चाहता था, किसी को उस कलैक्शन के बारे में पता चले।"

–"क्यों? क्या वो कलैक्शन चोरी का था?"

–"नहीं, काशीनाथ गलत धन्धा नहीं करता था।" अजय ने जवाब दिया–"मैं समझता हूं इसकी वजह कलैक्शन का बेशकीमती होना था। काशीनाथ न तो उसे किसी फोटोग्राफर के पास ले जाने का रिस्क लेना चाहता था और न ही किसी पर जाहिर करना चाहता था कि उसके घर में इतनी मूल्यवान चीज मौजूद है।"

–"चोरी के डर से?"

–"हो सकता है।"

–"वो कलैक्शन काशीनाथ ने खरीदा किससे था?"

–"करोड़ीमल जौहरी से।

रविशंकर कुछ नहीं बोला।

* * * * * *

जीप शानदार तीन मंजिला इमारत के सम्मुख पहुँचकर रुक चुकी थी।

वहाँ पहले से ही एक पुलिस पैट्रोल कार खड़ी थी। उसमें एक हेडकांस्टेबल मौजूद था और उसका सारा ध्यान वायरलेस सेट से उभरती आवाज पर केन्द्रित था।

रविशंकर के आदेश पर ड्राइवर को छोड़कर शेष सभी जीप से उतर गए।

इमारत का प्रवेश द्वार खुला था।

पास ही एक कांस्टेबल खड़ा था।

रविशंकर को देखते ही उसने खड़ाक से सैल्यूट मारा।

जवाब में तनिक सर हिलाकर रविशंकर अपने दल–बल सहित भीतर दाखिल हो गया।

वे सब सीढ़ियों के द्वारा सैकेंड फ्लोर पर पहुँचे।

काशीनाथ के अपार्टमेंट का दरवाजा खुला था।

वे भीतर दाखिल हो गए।

कमरा विजिटिंग रूम के अनुरूप था। वहाँ एक इंस्पैक्टर और एस० आई० के अलावा दो अधेड़ भी मौजूद थे। वे दोनों ऊनी टोपी. ड्रेसिंग गाउन और पाजामा पहने थे। काशीनाथ द्वारा घर में दी गई पार्टियों में अजय भी उनसे दो–चार बार मिल चुका था।

उनमें छोटे कद और भारी बदन वाला डॉक्टर शिव कुमार गोयल था। वह ग्राउण्ड फ्लोर पर रहता था।

दूसरा ऊँचे कद, बलिष्ठ शरीर, सुर्ख चेहरे और नोकीली मूंछों वाला ब्रिगेडियर रंजीत सिंह दुग्गल था और वह फर्स्ट फ्लोर पर रहता था।

'हलो' की औपचारिकता के बाद वहां मौजूद इंस्पैक्टर ने रविशंकर को काशीनाथ की लाश, खुली तिजोरी वगैरा के बारे में बताया फिर वह अपने एस० आई० के साथ चला गया।

अजय ने डॉक्टर और ब्रिगेडियर से रविशंकर का परिचय कराया।

उन दोनों ने फायरों की आवाजें और रूबी की चीखें सुन कर जागने, काले लिबास वाले को भागता देखने, राइफल से फायर करने, ऊपर आकर काशीनाथ को मरा पड़ा पाने, वगैरा के बारे में संक्षेप में बता दिया।

रविशंकर ने उन दोनों को थोड़ी देर इन्तजार करने के लिए कहा और अजय सहित मास्टर बैडरूम में पहुंचा।

काशीनाथ की लाश कारपेट पर फैले खून में औंधी पड़ी थी। उसके दोनों हाथ अपनी छाती पर कसे हुए थे। पास ही एक पिस्तौल पड़ी थी।

रविशंकर ने नीचे झुककर उसकी कनपटी को छुआ फिर रुमाल की सहायता से पिस्तौल को नाल से पकड़कर उठाकर सूंघा।

–"उसमें बारूद की जरा भी गंध नहीं थी।

पिस्तौल यथा स्थान रखकर वह सीधा खड़ा हुआ और सेफ के सामने पहुंचा।

कारपेट पर पड़ी नोटों की तीन गड्डियाँ और पैंसिल टार्च से होती हुई उसकी निगाह तिजोरी के दोनों खानों पर जम गई।

–"जिस कलैक्शन के बारे में तुम बता रहे थे।" उसने अपनी बगल में खड़े अजय से पूछा–"वो भी इसी तिजोरी में था?"

–"मैंने काशीनाथ को कलैक्शन निकालते या रखते तो नहीं देखा था।" अजय ने जवाब दिया–"लेकिन मैं समझता हूं वो इसी में रखा होना चाहिए। क्योंकि इसमें और भी ज्वैल बाक्सेज, नोट वगैरा रखे हैं।"

–"इस वक्त वो तुम्हें यहां नजर आ रहा है?"

अजय ज्योंहि सेफ की ओर आगे बढ़ा, रविशंकर ने टोक दिया–"किसी चीज को हाथ मत लगाना।"

–"जानता हूं।" कहकर अजय सेफ के एकदम पास पहुंचा और झुककर बड़ी गौर से अन्दर देखने लगा। कुछ देर बाद सीधा खड़ा होकर विचारपूर्वक बोला–"उस कलैक्शन के बाक्स के आकार का कोई बाक्स यहां नहीं है।"

–"इसका मतलब है या तो तुम्हारे जाने के बाद काशीनाथ ने उसे बेच दिया या फिर चोर उसे ले गया।"

–"उसे चोर ही ले गया, रवि।"

–"यह तुम कैसे कह सकते हो?"

–"जब काशीनाथ ने मुझे कलैक्शन के बारे में बताया तो मैंने उससे कहा था इतनी कीमती चीज उसे घर में नहीं रखनी चाहिए। वह भी मेरी इस बात से काफी सहमत तो था मगर उसका कहना था चौबीस घंटे में कलैक्शन का ग्राहक आकर उसे ले जाएगा।"

–"फिर भी काशीनाथ उसे बैंक लॉकर या अपनी दुकान में तो रख ही सकता था। जहां वो ज्यादा महफूज रहना था।"

–"बैंक तो उस वक्त तक बन्द हो चुके थे और दुकान में काशीनाथ उसे रखना नहीं चाहता होगा।" अजय ने कहा–"हो सकता है उसे अपनी सेफ की मजबूती पर इतना ज्यादा भरोसा रहा हो कि वह कलैक्शन को यहां भी पूरी तरह महफूज समझता था। खासतौर से उस सूरत में जबकि उसके कहने के मुताबिक मैं ही अकेला आदमी था जिसे कलैक्शन की यहां मौजूदगी के बारे में जानकारी थी।"

–"काशीनाथ को कलैक्शन बेचने वाला करोड़ीमल जौहरी भी नहीं जानता था?"

–"करोड़ीमल को इस बात का पता कैसे हो सकता था कि कलैक्शन काशीनाथ के घर में था।"

–"उसका कोई भी आदमी काशीनाथ का पीछा करके आसानी से पता लगा सकता था उसकी दुकान से आने के बाद काशीनाथ अपने घर आया और फिर कहीं नहीं गया। इसका सीधा सा मतलब था कलैक्शन काशीनाथ के पास उसके घर में ही था।"

बात सही थी।

अजय को सहमत होना पड़ा।

–"इसके अलावा एक सम्भावना और भी है, रिपोर्टर साहब।" रविशंकर ने कहा–"तुमने खुद कबूल किया है, काशीनाथ के अलावा सिर्फ तुम्हें ही कलैक्शन की यहाँ मौजूदगी के बारे में पता था।"

अजय फौरन उसका आशय समझ गया।

–"तुम समझते हो मैंने चोर को यह जानकारी पास कर दी थी?" उसने पूछा।

–"मैंने एक ठोस संभावना जाहिर की है। जहां तक मेरे , समझने का सवाल है। फिलहाल मैं सिर्फ यह समझ रहा हूं बकौल तुम्हारे कलैक्शन की कीमत चौबीस लाख रुपए थी और इतनी रकम हाथी के पांवों से कम नहीं, पूरे हाथी से भी ज्यादा होती है।"

अजय ने उसे घूरा।

–"तुम कहना क्या चाहते हो?"

–"इस कमरे की हालत से जाहिर है काशीनाथ ने चोर को रंगे हाथों पकड़ लिया था।" रविशंकर उसके सवाल को नजरअंदाज करता हुआ बोला–"फलस्वरूप चोर ने उसे शूट कर दिया। साथ ही यह भी साफ जाहिर है तिजोरी को बाकायदा खोला गया है। इसका मतलब है चोर को न सिर्फ सेफ के काम्बीनेशन की जानकारी थी बल्कि सेफ की चाबी भी उसके पास थी। यानी या तो चोर कोई ऐसा व्यक्ति था जिस पर काशीनाथ को अखंड विश्वास था या फिर वह काशीनाथ के ऐसे करीबी व्यक्तियों में से था जिसकी इस तिजोरी पर पहुंच थी। उसे किसी तरह सेफ के काम्बीनेशन का पता चल गया था और सेफ की चाबी भी उसने जुटा ली।"

वह तनिक रुका फिर बोला–"बाहर मौजूद दोनों आदमियों के बयानों से जाहिर है काशीनाथ को करीब सवा दो बजे शूट किया गया था। मैं यह मानने के लिए तैयार नहीं हूं चोर ने शाम साढ़े छह बजे से रात दो बजे के बीच में ही काम्बीनेशन की जानकारी और चाबी हासिल की थी। ये दोनों चीजें उसे पहले ही हासिल हो चुकी थीं। अब सवाल यह उठता है चोर ने आज रात ही तिजोरी को अपना निशाना क्यों बनाया? इसका सिर्फ एक ही मुनासिब जवाब हो सकता है, चोर का असली मकसद उसी कलैक्शन को चुराना था और उसे उस कलैक्शन की तिजोरी में मौजूदगी की जानकारी थी।" उसने अर्थपूर्ण निगाहों से अजय की ओर देखा–"में जानना चाहता हूं, चोर को यह जानकारी कैसे मिली?"

अजय ने जवाब नहीं दिया। उसे लगा अनायास ही वह खुद शक के दायरे में आ गया था।

रविशंकर उसकी ओर ध्यान न देकर कमरे की बारीकी से जांच करने लगा।

फिर वह बालकनी में पहुंचा।

अजय ने भी उसका अनुकरण किया।

दोनों ने वहां लटकी रस्सी का मुआयना किया फिर विजीटिंग रूम में आ गए।

रविशंकर ने अपने साथ आए फोटोग्राफर को घटनास्थल की फोटुएं खींचने का आदेश दे दिया।

उसके आदेश पर फिंगर प्रिंट्स सैक्शन से आए आदमी भी अपने काम में जुट गए।

उसने अपने साथ आए एक एस० आई० को भी जरूरी हिदायतें देकर मास्टर बैडरूम में भेज दिया।

रविशंकर ने डॉक्टर और ब्रिगेडियर की ओर देखा।

–"काशीनाथ की बेटी कहां है?" उसने पूछा।

–"उसे इस हादसे से तगड़ा शॉक लगा है–"डॉक्टर ने जवाब दिया–"मैंने उसे नींद का इंजैक्शन देकर सुला दिया है। दो तीन दिन उसे डिस्टर्ब न करना ही ठीक होगा।" उसने तनिक रुकने के बाद कहा–"हमने चंडीगढ़ में काशीनाथ के भाई साहब को फोन पर हादसे की सूचना दे दी है।"

फिर रविशंकर ने डॉक्टर और ब्रिगेडियर से विस्तारपूर्वक पूछताछ करने के साथ–साथ उनके परिवारों के व्यक्तियों से भी पूछताछ की।

मगर कोई कारामद जानकारी हासिल न हो सकी।

ब्रिगेडियर की पत्नी ने सिर्फ इतना बताया उसने काले लिबास वाले एक औसत कद–बूत के आदमी को रस्सी से उतरते और गेट की ओर भागते देखा था। उसके चेहरे पर भी काला कपड़ा बंधा हुआ था।

तत्पश्चात रविशंकर ने नीचे मौजूद अपने ड्राइवर को भेज कर उस इलाके में पहरा दे रहे चौकीदार को बुलवाया।

लेकिन गोरखा चौकीदार से भी कोई दमदार बात पता नहीं लग सकी।

उसने करीब सवा दो बजे काले लिबास वाले एक व्यक्ति को काली कार का इंजन स्टार्ट करते देखा था। फिर अचानक गोली चलने के कारण वह बुरी तरह घबरा गया। घबराहट की वजह से कार के नंबर की ओर उसका ध्यान नहीं जा सका। अलबत्ता उसने यकीनी तौर पर बताया कि गोली कार की डिग्गी पर लगी थी।

इन सबसे फारिग होते–होते सुबह के पौने पांच बज गए। डॉक्टर और ब्रिगेडियर को वहीं रुकने के लिए कह कर रविशंकर अजय सहित मास्टर बैडरूम में पहुंचा।

फिंगर प्रिंटस वालों ने उसे सूचना दी कि पैंसिल टार्च और सेफ की चाबी पर से किसी की भी उंगलियों के निशान नहीं मिले। ज्वैल बाक्सेज और सेफ पर जो भी फिंगर प्रिंटस मिले वे सब एक ही आदमी यानी मृतक काशीनाथ की उंगलियों के थे। पिस्तौल पर भी उसी अकेले की उंगलियों के निशान पाए गए।

साबित हो गया चोर दस्ताने पहने था।

अचानक रविशंकर अजय से मुखातिब हुआ।

–"तुमने मेरे सवाल के बारे में सोचा कि चोर को कैसे पता चला आज रात तिजोरी में वो कलैक्शन मौजूद था?" उसने पूछा।

–"हां. और मैं तुम्हारी बात से सहमत हूँ कलैक्शन की यहां मौजूदगी के बारे में किरोड़ीमल भी जानता हो सकता था।" अजय ने जवाब दिया।

–"लेकिन मैं नहीं मानता शहर का सबसे बड़ा जौहरी करोडीमल किसी ऐसे ज्वैल्स कलैक्शन की चोरी कराएगा जिसे बेचकर वह पूरी कीमत वसूल कर चुका था।"

–"फिर?"

रविशंकर की निगाहें उस पर जम गई।

–"तुमने जानबूझकर या अनजाने में किसी को कलैक्शन के बारे में में बताया था?

–"नहीं।" अजय ने दृढ़ता पूर्वक कहा।

–"तब तो एक ही संभावना शेष बचती है, काशीनाथ ने जिस व्यक्ति को बेचने के लिए कलैक्शन खरीदा था उसे भी कलैक्शन यहां होने के बारे में, पता था।"

–"और उसने कीमत चुकाकर खरीदने के बजाय उसे चोरी करा दिया?" अजय ने पूछा।

–"हां। तुम बता सकते हो काशीनाथ से कलैक्शन किसने खरीदना था।"

–"नहीं। मैंने काशीनाथ से पूछा भी था मगर वह इसे बिजनेस सीक्रेट कहकर टाल गया।

–"अगर तुम दोबारा उस कलैक्शन को आंखों से देखो तो पहचान लोगे?"

–"हाँ।"

–"कैसे?"

–"उस कलैक्शन के ज्वैल्स में असामान्य आकार और असाधारण चमक के अलावा। एक और भी खास बात थी। उसके चारों हीरे हूबहू एक जैसे थे। इसी तरह चारों मोती और चारों नीलम में जरा भी फर्क नहीं था।

–"काशीनाथ ने कलैक्शन की फोटुएँ किसलिए खिंचवाई थीं?"

–"काशीनाथ इस तरह अपने हर एक सौदे का पर्सनल रिकार्ड रखता था।"

–"वो फिल्म कहां है?"

–"मैंने डेवलेपिंग के लिए दी हुई है। शाम तक मिल जाएगी।

–"तुम्हारे विचार से कलैक्शन की खरीददारी का और किसको पता हो सकता है?

–"काशीनाथ के पार्टनर मदन मोहन सेठी को।"

–"ओह उसे तो मैं भूल ही गया था। वह कहां रहता है?"

अजय ने पता बता दिया।

तभी बगल वाले बैडरूम में टेलीफोन की घंटी की आवाज सुनाई दी।

रविशंकर फौरन तेजी से कमरे से निकल गया।

अजय सिगरेट सुलगाकर उसका इंतजार करने लगा।

कोई दो मिनट बाद रविशंकर वापस लौटा।

–"तुम दोनो का काम खत्म हो गया। उसने फिगर प्रिंटस वालों से पूछा।

–"यस सर।"

–"गुड।" रविशंकर ने कहा फिर एस० आई० से बोला–"फोन करके एम्बूलेंस बुला लो। लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा देना। बाहर बैठे डॉक्टर और ब्रिगेडियर की मौजूदगी में इस सेफ की चीजों की लिस्ट बनाकर सेफ को सील करा देना। अपार्टमेंट को भी लॉक कराकर सील करा देना और अपने दो आदमी बुलाकर यहां तैनात करा देना।"

–"राइट, सर।" एस० आई० ने जवाब दिया।

–"तुम कहीं जा रहे हो, रवि?" अजय ने हैरानगी से पूछा।

–"हां।" रविशंकर ने जवाब दिया।

–"कहां?"

–"सॉरी, यह मैं नहीं बता सकता।" रविशंकर ने शुष्क स्वर में कहा और पलटकर बाहर निकल गया।

अजय समझ गया उसे फोन पर कोई तगड़ी टिप मिल गई थी और अब रविशंकर उसे साथ रखना नहीं चाहता था।

डॉक्टर और ब्रिगेडियर अन्दर आ गए।

एस० आई० उनके सामने सेफ की चीजों की लिस्ट बनाने लगा।

अजय देर तक खड़ा सोचता रहा फिर अपार्टमेंट से बाहर आ गया।

इमारत से निकलते ही उसने देखा रविशंकर की जीप जा चुकी थी।

वह गेट से निकला और करीब छह फर्लांग दूर स्थित टैक्सी स्टैंड की ओर बढ़ गया।

* * * * * *