शराब में ज़हर

वह गुरुवार को बीमार थी,

और शुक्रवार को मर गई,

शनिवार रात को टॉम ख़ुश था,

उसने रविवार को अपनी पत्नी को दफ़ना दिया।

मिस रिप्ली-बीन होटल रॉयल के बियर बाग के एक कोने में सरकंडे की कुर्सी पर बैठी बचपन में पढ़ी कविता गुनगुना रही थीं। तभी वहाँ का पियानोवादक लोबो आया और उसने मिस रिप्ली-बीन के पास नींबू पानी का एक गिलास रख दिया।

‘नींबू या संतरा,’ वह मिस रिप्ली-बीन के पास बैठते हुए बोला। ‘आंटी मे, आपको दोनों में से क्या पसंद है?’

‘दोनों,’ मिस रिप्ली-बीन ने उत्तर दिया। ‘रंग के लिए संतरा और पाचन के लिए नींबू।’

‘ज्ञान की बात है। परंतु वह बचपन की कविता बहुत अजीब थी। मुझे केवल जैक ऐंड जिल जैसी सीधी-सादी कविताएँ ही याद हैं।’

मिस रिप्ली-बीन ने कहा, ‘वह कविता इतनी भी सीधी नहीं है। “जैक नीचे गिर गया और उसका ताज टूट गया” - सिर टूटा होता तो वह जीवित नहीं बचता। हो सकता है, जिल ने उसे पहाड़ी से नीचे धक्का दिया हो और फिर उसके पीछे लुढ़क गई हो!’

‘जैसे कैंप्टी झरने में न्यायाधीश गिर गया था। वह ख़ुद गिरा था या उसे किसी ने धक्का दिया था?’

‘हमें इस बात का पता कभी नहीं लगेगा। कोई गवाह नहीं है। देखो, रॉय दंपति आ गए - ये दोनों कितने अच्छे दिखते हैं!’

रॉय दंपति सचमुच बहुत आकर्षक थे। दिलीप रॉय की आयु पैंतालीस के आस-पास थी, किंतु वह अब भी फ़िल्मी जगत का एक चर्चित नाम था। नक़ली बालों के विग के नीचे उसकी कलमें थोड़ी सफ़ेद होने लगी थीं, पर उसका शरीर पतला व गठा हुआ था। उसे अब भी मसालेदार और रोमांटिक रोल मिल जाते थे। उसकी पत्नी ‘रोज़ी’ रॉय उम्र में दिलीप से दो-तीन साल छोटी थी, लेकिन उसका बदन थोड़ा भारी था।

वह जब लगभग तीस वर्ष की थी तो उसने कुछ अत्यंत चर्चित फ़िल्मों में काम किया था, जिनमें से दो फ़िल्में दिलीप के साथ थीं। उसने कश्मीर में किसी फ़िल्म की शूटिंग के दौरान ही दिलीप से विवाह कर लिया था। परंतु कुछ समय से उसे अपनी पसंद के रोल नहीं मिल रहे थे। उसकी तबियत ठीक नहीं रहती थी और वह सुबह देर तक सोती रहती थी। उसके चिकित्सक को संदेह था कि रोज़ी को मधुमेह है और उसने रोज़ी को जाँच करवाने की सलाह दी थी, लेकिन वह जाँच को भी लगातार टालती जा रही थी।

‘तुम्हें हवा-पानी बदलने के लिए किसी अन्य स्थान पर चले जाना चाहिए,’ दिलीप ने रोज़ी की सेहत पर चिंता जताते हुए कहा। ‘मुंबई से दूर। किसी पहाड़ी इलाक़े में, पंद्रह दिन बिताने से तुम्हें बहुत लाभ होगा। स्विट्ज़रलैंड में शूटिंग पर जाने से पहले, मैं कुछ दिन तुम्हारे साथ रहूँगा। कहाँ जाना चाहोगी - शिमला, मसूरी, दार्जिलिंग, ऊटी?’

‘स्विट्ज़रलैंड क्यों नहीं?’

दिलीप रॉय असहज ढंग से हँसा। ‘वहाँ छुट्टी बिताने जैसी कोई बात नहीं होगी। मैं पूरा समय शूटिंग में व्यस्त रहूँगा और वहाँ के लोग और प्रशंसक तुम्हें परेशान करते रहेंगे।’

‘पूर्व प्रशंसक।’

‘किसी के न होने से पूर्व प्रशंसक होना बेहतर है। मुझे अब भी तुमसे जलन होती है।’

उन्होंने मसूरी जाना तय किया। एक कारण यह भी था कि दिलीप रॉय के पिता, होटल रॉयल के मालिक नंदू के पुराने मित्र थे और दूसरा, रोज़ी ने बचपन के कुछ दिन मसूरी के बर्लोगंज में अपनी एक आंटी के घर में बिताए थे।

वे दोनों जब होटल आए थे तो उनकी सबसे पहली भेंट मिस रिप्ली-बीन से ही हुई थी। उस समय मिस रिप्ली-बीन, रॉयल के बरामदे में गमलों में लगे वर्म-तारा के पौधों में पानी दे रही थीं।

‘हैलो,’ रोज़ी ने मिस रिप्ली-बीन से मुस्कराते हुए कहा। ‘क्या आप यहाँ की नई मालिन हैं?

‘मैं पुरानी मालिन हूँ,’ मिस रिप्ली-बीन ने कहा। ‘दरअसल, मैं यहीं रहती हूँ। परंतु यहाँ का माली इन पौधों में पानी नहीं देता। उसे लगता है कि इनका पानी के बिना भी काम चल सकता है। किंतु पौधे भी इंसानों की तरह होते हैं - उन्हें समय-समय पर देखभाल की ज़रूरत होती है, अन्यथा वह लापरवाही के कारण मर जाते हैं। मैंने आपको शायद पहले कहीं देखा है?’

‘हाँ, अगर आप फ़िल्में देखती हैं,’ रोज़ी ने उत्तर दिया और फिर जोड़ा, ‘पुरानी फ़िल्में।’

‘आप रोज़ी रॉय हैं!’ मिस रिप्ली-बीन ने कहा। ‘मैंने आपको कोबरा लेडी में देखा है।’

‘वह बहुत ख़राब फ़िल्म थी, है न?’

‘वह इतनी ख़राब थी कि मैंने हर पल उसका भरपूर आनंद लिया। और आपके साथ यह दिलीप रॉय होंगे,’ मिस रिप्ली-बीन ने ध्यान से देखते हुए कहा। उनके पीछे-पीछे उनका सामान उठाए होटल के लड़के आ गए। ‘लव इन काठमांडू के नायक।’

नायक दिलीप रॉय ने मिस रिप्ली-बीन की बात पर ध्यान नहीं दिया। वह बरामदे की सीढ़ियों से ऊपर चला गया। उसके पीछे उसकी पत्नी और होटल के लड़के भी ऊपर चले गए। मिस रिप्ली-बीन फिर से पौधों में पानी देने लगीं।

‘नायिका का स्वभाव मिलनसार है, लेकिन नायक उतना मैत्रीशील नहीं है,’ मिस रिप्ली-बीन ने एक पौधे को सुनाते हुए कहा। वर्म-तारा भी मानो उनकी बात से सहमत था।

रॉय दंपति सहज हो गए थे। अगले कुछ दिनों में मिस रिप्ली-बीन ने उन्हें कई बार देखा परंतु वह उनके बीच में नहीं पड़ती थी क्योंकि यह स्पष्ट था कि रॉय दंपति को किसी मित्र की आवश्यकता नहीं थी।

शाम के समय दिलीप रॉय बार के स्टूल पर बैठकर व्हिस्की पीता था और बार वाले या किसी ग्राहक द्वारा विनम्रता से पूछे गए प्रश्न के बहुत कम उत्तर देता था। वह अधिकतर समय उदास और विचारों में खोया दिखता था। वहीं पीछे बैठा लोबो, पियानो पर चर्चित गानों की धुनें बजाता रहता था किंतु उसे किसी से प्रोत्साहन या प्रशंसा नहीं मिलती थी।

रोज़ी अपने पति के साथ बार में नहीं आती थी। कभी-कभी मार्टिनी के एक या दो गिलास उसके कमरे में ही पहुँचा दिए जाते थे। उसे कभी-कभार शराब और वेर्मुठ का मिश्रण पीना पसंद था। नंदू ने रोज़ी को कॉन्याक शराब की एक बोतल भेंट की थी, जिसे रोज़ी ने अपनी मेज़ के पास रख दिया था। उसका इरादा था कि उसका पति यदि किसी दिन उसके साथ बैठकर पीने का इच्छुक होगा तो ही उस बोतल को खोला जाए।

वे दोनों साथ में जब भी घूमने निकलते तो बाज़ार से दूर रहते थे ताकि स्थानीय लोगों और आगंतुकों से बचा जा सके। उन्हें कभी-कभी रास्ते में मिस रिप्ली-बीन मिल जाती थीं क्योंकि वह भी घूमने जाती थीं। वे लोग एक ही होटल में रहते थे, इसलिए चलते-चलते मौसम, होटल, वहाँ से दिखने वाले दृश्य, शहर, कभी देश और दुनिया के बारे में बातें हो जाती थीं। परंतु पहाड़ों के शांत वातावरण में बाहर की दुनिया बहुत दूर नज़र आती है।

रोज़ी रॉय को मिस रिप्ली-बीन देखने में अच्छी लगती थीं और वह हमेशा रुककर उनसे बात करने को तत्पर रहती थी। दिलीप रॉय विनम्र, लेकिन अशिष्ट था। उसे स्थानीय गप्पबाज़ी में कोई रुचि नहीं थी और वह मिस रिप्ली-बीन को अंग्रेज़ों के ज़माने की अजीब और थोड़ी-सी मूर्ख क़िस्म की औरत समझता था। तब फिर रोज़ी तर्क देती थी कि वहाँ के होटल, घर, घुमावदार रास्ते, वह समूचा पर्वतीय इलाक़ा ही अंग्रेज़ों के ज़माने का है और यदि वह प्राचीन वातावरण आपको ख़ुशी नहीं देता, तो गोवा में छुट्टियाँ बिताना तथा पुर्तगाली माहौल में ख़ुद को डुबाना बेहतर था!

भारत अपना इतिहास कभी नहीं भुला सकेगा…

एक दिन रॉय दंपति में ज़ोरदार झगड़ा हो गया। मिस रिप्ली-बीन को छिपकर दूसरों की बातें सुनने की आदत नहीं थी लेकिन उन्हें फिर भी हर शब्द साफ़ सुनाई दे रहा था। उन्हें ऊँची गुड़हर की झाड़ी के पीछे लगी बेंच पर बैठना बेहद पसंद था। वहाँ से सामने पहाड़ों पर फैली बर्फ़ नज़र आती थी। मिस रिप्ली-बीन को हाथ में क़िताब लेकर वहाँ आधा घंटा बिताना बहुत अच्छा लगता था। इस बीच उनका तिब्बती शिकारी कुत्ता फ़्लफ़ पहाड़ी के पास टहलते हुए चूहों के बिल खोजता था। बियर बाग से वह बेंच दिखाई नहीं पड़ती थी और उसी बियर बाग में रोज़ी और दिलीप रॉय झगड़ रहे थे।

‘तुम्हारा मूड उस बाँद्रा वाली औरत की वजह से ख़राब है,’ रोज़ी ने तीखी आवाज़ में कहा। ‘उससे एक सप्ताह दूर रहते हो तो मजनूं जैसे दिखने लगते हो - बीमार और उदास!’

‘बातें मत बनाओ।’ दिलीप रॉय उदास कम और बेचैन ज़्यादा लग रहा था। ‘तुम्हें अच्छी तरह पता है कि अगले सप्ताह फ़िल्म की शूटिंग है और वह बाँद्रा में नहीं, बल्कि स्विट्ज़रलैंड में हो रही है।’

‘तुम तो फ़िल्म के हीरो नहीं हो। वे तुम्हारे बिना भी शूटिंग कर सकते हैं। तुम काफ़ी मोटे हो गए हो, इसलिए तुम्हें मुख्य भूमिका नहीं मिलेगी। तुम पीने भी बहुत लगे हो।’

‘मैं यहाँ कुछ और दिन रहा तो पियक्कड़ हो जाऊँगा। चिकित्सकों ने आराम करने की सलाह मुझे नहीं, तुम्हें दी है। घाव तुम्हारे शरीर में हैं और यदि तुम इस तरह छोटी-छोटी बातों की चिंता करोगी तो तुम्हारी तबियत ठीक नहीं होगी।’

उसी समय कुछ नवयुवक वहाँ आ पहुँचे और दोनों से उनके हस्ताक्षर माँगने लगे। मिस रिप्ली-बीन ने मौक़े का फ़ायदा उठाया और चुपचाप लंबे रास्ते से चलकर अपने कमरे में पहुँच गईं। फ़्लफ़ ने लंबे रास्ते का पूरा मज़ा लिया।

उस दिन शाम को दिलीप रॉय ने कॉन्याक शराब की बोतल खोली। उसे अगले दिन सुबह निकलना था, इसलिए वह जश्न के मूड में था। परंतु उसे कॉन्याक पसंद नहीं थी। वह अपनी स्कॉच की बोतल से ही ख़ुश था। रोज़ी ने अपने लिए एक गिलास में कॉन्याक निकाली और फिर उसे वहीं मेज़ पर रख दिया। वह बोतल रात-भर वहीं रखी रही।

दिलीप रॉय ने सुबह अकेले नाश्ता किया और फिर देहरादून जाने के लिए टैक्सी मँगवाई। रोज़ी उसे छोड़ने बाहर नहीं आई।

‘वह देर से उठेगी,’ दिलीप रॉय ने बताया। ‘उसके सिर में दर्द है। उसे परेशान मत करना।’

‘स्विट्ज़रलैंड का आनंद लीजिए,’ मिलनसार नंदू ने कहा।

‘रोज़ी का ध्यान रखना,’ दिलीप ने कहा। ‘उसे आराम करने देना।’

सब लोगों ने रोज़ी के आराम और स्वागत पर पूरा ध्यान दिया क्योंकि वह स्वभाव से बहुत विनीत थी। होटल के मैनेजर और कर्मचारी उसका ध्यान रखते थे और लोबो, अपने पियानो पर रोज़ी की मनपसंद धुनें बजाता था।

जो भी होगा, देखा जाएगा,

आने वाले कल से हमें क्या…

यहाँ तक कि मिस रिप्ली-बीन भी रोज़ी की तरफ़ आकर्षित हो गईं और बगीचे के निरीक्षण पर उसके साथ जाने लगीं क्योंकि दोनों को फूल पसंद थे। गर्मियों में ज़मीन भड़कीले पीले रंग के गेंदे, मालती, लार्कसपूर और गुलाब के फूलों से ढँक जाती थी। वे दोनों साथ में कॉफ़ी पीते और रोज़ी अपने माता-पिता तथा मसूरी में बिताए बचपन के ख़ुशहाल दिनों को याद करती थी। वह अपने विवाह के विषय में बात नहीं करती थी।

शाम होने पर, रोज़ी अपने कमरे में चली जाती और मार्टिनी शराब एकाध गिलास मँगवा लेती थी। वह कमरे में ही हलका भोजन करती - सामान्य तौर पर चिकन अथवा मशरूम सूप के साथ टोस्ट - और आख़िर में कॉन्याक के कुछ घूँट पीकर सो जाती थी!

उसका यह नियम तीन-चार दिन चला। कॉन्याक की बोतल तब तक भी आधी थी क्योंकि रोज़ी को मार्टिनी अधिक पसंद थी। दिलीप रॉय ने मुंबई से एकाध बार फ़ोन किया और बताया कि शूटिंग दल किसी भी दिन स्विट्ज़रलैंड के लिए रवाना हो जाएगा और इस बीच वे लोग लोनावला में कुछ दृश्यों की शूटिंग कर रहे थे।

दिलीप को गए एक सप्ताह हुआ था कि अचानक रोज़ी बीमार पड़ गई। उसने रात के भोजन के बाद लगभग दस बजे मदद के लिए घंटी बजाई। एक नौकर कमरे में आया तो उसने देखा कि रोज़ी बिस्तर पर लेटी थी और उसे दौरे पड़ रहे थे। नौकर ने भागकर मैनेजर को सूचित किया।

मैनेजर शीघ्र ही कमरे में आया। उसके पीछे लोबो भी पहुँच गया। रोज़ी को तब भी दौरे पड़ रहे थे।

‘मैं डॉ. बिष्ट को बुलाता हूँ,’ लोबो ने कहा और तेज़ी-से कमरे से निकल गया। कुछ ही मिनटों बाद उसके स्कूटर की आवाज़ आई। वह तुरंत बाज़ार की ओर रवाना हो गया। डॉ. बिष्ट के पास भी स्कूटर था - वह स्कूटर का ही ज़माना था। उसने समय से पहुँचकर रोज़ी को प्राथमिक उपचार दिया और फिर उसे अस्पताल ले जाने की व्यवस्था की। उसने ध्यान से जाँच की। ‘लगता है ख़राब खाने से ऐसा हुआ है,’ उसने कहा और फिर उसकी नज़र कॉन्याक की खुली बोतल पर पड़ी, जो आधी भरी थी।

गिलास में थोड़ी शराब बाक़ी थी। चिकित्सक ने उसे सूँघा तो मुँह बिचकाया। ‘या फिर कुछ और! हमें इस बोतल की जाँच करवानी चाहिए,’ वह बोला। परंतु इसमें समय लगना था…

दिलीप रॉय को उसके स्टूडियो में फ़ोन मिलाया गया, लेकिन तब तक वह स्विट्ज़रलैंड पहुँच गया था। उन दिनों उड़ानें जल्दी-जल्दी नहीं चलती थीं। उसे लौटने में दो से तीन दिन लग सकते थे।

मिस रिप्ली-बीन प्रतिदिन रोज़ी से मिलने जाती थीं। नंदू और लोबो कभी-कभी जाते थे। सबको यह देखकर आश्चर्य हुआ और राहत भी मिली कि रोज़ी की सेहत में तेज़ी-से सुधार हो रहा था।

कॉन्याक की बोतल के तले में ज़हर के कण पाए गए, किंतु वे अभी घुलना शुरू ही हुए थे। उसे एक दिन और पी लेने से रोज़ी का जीवित बचना मुश्किल था। यह साफ़ था कि किसी ने उसकी बोतल में ज़हर मिलाया था और वह दिलीप रॉय के अतिरिक्त कोई नहीं हो सकता था। उसने मसूरी से जाने से पहले यह किया होगा। उसके पास बच निकलने के लिए यह बढ़िया बहाना था कि अपनी पत्नी की मृत्यु के समय वह मसूरी से बाहर था।

निस्संदेह कुछ भी सिद्ध नहीं हो पाया - केवल संदेह और अनुमान था - परंतु रोज़ी को यह विश्वास था कि उसका पति उससे छुटकारा पाना चाहता था और वह ऐसा करने में लगभग सफल भी हो गया था।

रोज़ी और मिस रिप्ली-बीन पक्के दोस्त बन गए थे। रोज़ी अब उनसे अपने डर और संशय पर खुलकर बात करती और मिस रिप्ली-बीन से सलाह और मार्गदर्शन लेती थी।

वे दोनों होटल के बगीचे में बैठे थे। रोज़ी आराम कुर्सी पर और मिस रिप्ली-बीन लकड़ी की बेंच पर बैठी थीं। अंदर से लोबो द्वारा बजाए जा रहे ‘सितंबर गीत’ की धुन सुनाई दे रही थी। मिस रिप्ली-बीन उस गीत को बहुत धीरे गुनगुना रही थीं:

मई से दिसंबर का सफ़र बहुत लंबा लगता है,

लेकिन सितंबर के बाद दिन छोटे होने लगते हैं।

‘यह बड़ा अच्छा गीत है,’ रोज़ी ने कहा। ‘हालाँकि उदासी-भरा है।’

‘सितंबर उदासी का महीना होता है,’ मिस रिप्ली-बीन ने सोचकर कहा। ‘गर्मियों का अंत। शानदार सैर-सपाटा समाप्त हो जाता है। हाथ पकड़कर पहाड़ी नदियों में पैडल बोट चलाना। गर्मी-भरे दिन। उसके बाद वर्षा - कई सप्ताह लगातार चलने वाली वर्षा और धुंध। सितंबर में धूप लौट आती है लेकिन सिर्फ़ कुछ समय के लिए। उसके बाद फिर पहाड़ों से बर्फ़ीली हवाएँ चलने लगती हैं।’

‘कितना रोमांटिक है!’ रोज़ी ने कहा। ‘आप बहुत भाग्यशाली हैं कि आपका अधिकांश जीवन यहाँ बीता है। मैं अपने उस बदमाश पति से मुंबई में निपटने के बाद शायद आपके पास यहीं रहना चाहूँगी।’

‘तुम क्या करना चाहती हो? उसकी शराब में संखिया मिलाओगी?’

‘संखिया बहुत धीमा ज़हर है, पर यदि वह ढेर-से चॉकलेट का लेप चढ़े हुए बादाम खा ले, जो उसे बहुत पसंद भी हैं, तो मुझे विश्वास है कि वह बच नहीं पाएगा!’

‘क्या मतलब?’

‘आंटी मे, यह बात मैं सिर्फ़ आपको बता रही हूँ,’ मिस रिप्ली-बीन को कोई रहस्य बताते समय, रोज़ी उन्हें उनके पहले नाम से बुलाती थी। ‘मुझे पता है यदि कुछ हो गया तो आप किसी से नहीं कहेंगी।’

‘अब क्या होने वाला है?’

‘मैं पिछले दो साल से इतनी परेशान हूँ कि मैं हर समय अपने साथ साइनाइड की गोलियाँ रखती थी ताकि ज़्यादा दुखी हो जाने पर, जब चाहूँ अपनी जान ले सकूँ।’

‘अरे, मेरी बच्ची। उसे फेंक दो। कभी ऐसा करने के बारे में सोचना भी मत!’

‘मैंने दरअसल, उन गोलियों पर चॉकलेट का बढ़िया लेप करके उन्हें बादाम चॉकलेट के साथ मिला दिया और एक डिब्बे में भर दिया था। दिलीप उसे डिब्बे को हमेशा साथ रखता है।’

‘ओह, यह तुमने बहुत बुरा किया! यह बड़ा ग़लत काम है! उसने तुम्हारे साथ जो किया उसे देखते हुए यह समझ में आता है, लेकिन फिर भी, यदि किसी दिन उसने वह चॉकलेट खा लिया और…’

‘मामला ख़त्म!’ रोज़ी की बादामी आँखों में चमक आ गई।

‘पर अब इसे काफ़ी समय हो गया है न? उसे गए हुए भी तीन सप्ताह हो गए हैं। किसी और ने वह चॉकलेट खा लिया तो…’

तभी उन्हें नंदू आता दिखाई दिया। वह अपनी सामान्य चाल से नहीं चल रहा था। उसे देखने से लगा कि वह किसी काम से आ रहा था।

‘बुरी ख़बर है,’ उसने नज़दीक पहुँचकर कहा। ‘मेरे पास अभी दिलीप रॉय के मैनेजर का फ़ोन आया था। श्रीमती रॉय, आपके पति की कल रात मृत्यु हो गई। ऐसा लगता है, उन्होंने आत्महत्या कर ली। साइनाइड! आपके साथ जो कुछ हुआ, उसके लिए उन्हें अवश्य बाद में ग्लानि हुई होगी। मुझे बहुत अफ़सोस है…’

उस रात मिस रिप्ली-बीन ने रोज़ी के साथ पुरानी नृत्यशाला में खाना खाया। सैर-सपाटे का मौसम समाप्त होने को था इसलिए वहाँ बहुत कम लोग बैठे थे। लोबो हमेशा की तरह पियानो पर पुराने गीतों की धुन बजा रहा था।

‘आंटी मे, आप क्या लेंगी?’ रोज़ी ने कहा। ‘आप आज मेरी ख़ास मेहमान हैं। ऐसा नहीं है कि मैं कोई जश्न मनाना चाहती हूँ…’

‘मैं समझ सकती हूँ,’ मिस रिप्ली-बीन ने कहा।

‘आज आपको उस भयानक पुदीना शराब की जगह बढ़िया शराब पीनी चाहिए। यह लीजिए, शराब की सूची!’

मिस रिप्ली-बीन ने सूची पर नज़र डाली। उन्हें किसी से फ़ायदा उठाने की आदत नहीं थी, किंतु वह भीतर से ख़ुद को ज़्यादा सशक्त महसूस कर रही थीं। उन्होंने रोज़ी को अपनी पसंद बता दी। उन्हें अच्छी शराब पिए हुए काफ़ी समय बीत चुका था। इसलिए उन्होंने सूची में से सबसे महँगी शराब चुनी और फिर आराम-से बैठकर शराब के आने की प्रतीक्षा करने लगीं।