“कैसा लग रहा है ?” - विंग कमाण्डर रामू ने सुनील से पूछा ।
सुनील हवाई जहाज के काकपिट में रामू की बगल में कोपायलेट की सीट में बैठा था । उसने नीचे झांककर देखा । विशाल सागर के गहरे नीचे जल के अतिरिक्त उसे कुछ भी दिखाई नहीं दिया । उसने एक दृष्टि अपने शरीर पर बन्धे पैराशूट पर डाली और फिर उसके शरीर में झुरझुरी सी दौड़ गई ।
“मैंने हवाई जहाज में बहुत सफर किया है ।” - सुनील बोला - “लेकिन प्यारे ऐसे जहाज में नहीं जिसमें एक को-पायलेट और नेवीगेटर तक न हो ।”
“कर्मिशयल प्लेन की बातें कर रहो हो मिस्टर ।” - रामू बोला - “अपने प्लेन का सब कुछ मैं ही होता हूं । मैंने बहुत सोलो फ्लाइट ली हैं ।”
उसी समय सुनील को नीचे पानी में एक विशाल जहाज दिखाई दिया । उसने दूरबीन की सहायता से फिर नीचे को झांका ।
“यही है ?” - रामू ने पूछा । वह भी पैराशूट पहने हुए था ।
“इतनी ऊंचाई से कुछ पता नहीं लगता ।” - सुनील बोला ।
रामू ने प्लेन जहाज से आगे निकाल लिया और दूसरी बार जब वह जहाज के ऊपर लौटकर आया तो वह बहुत नीचा उड़ रहा था ।
“यही है ।” - सुनील दूरबीन में से देखता हुआ बोला - “जहाज के ब्रिज पर खड़े लोग हमें देख रहे हैं ।”
“उसका भी इन्तजाम करता हूं ।” - रामू बोला । फौरन ही प्लेन डगमगाने लगा - “अब सम्भल कर बैठो ।”
प्लेन ने एक गोता सा मारा और एक बार तो सुनील को यूं लगा जैसे वह सीधा जहाज से जा टकराएगा लेकिन प्लेन सम्भल गया और एकदम ऊपर उठने लगा ।
जहाज के ब्रिज पर आदमी बढते जा रहे थे ।
रामू का प्लेन बुरी तरह डगमगाने लगा था और वह जहाज के ईर्द गिर्द यूं चक्कर काटने लगा था जैसे प्लेन गिरने वाला हो ।
“हैल्लो, हैल्लो ।” - रामू घबराये स्वर में ट्रांसमीटर में बोला - “कैन यू लिसिन मी, कौन यू कैच माई वायस क्या आपका ट्रांसमीटर मेरी आवाज पकड़ रहा है ? ओवर ।”
“यस” - फौरन ही उत्तर मिला - “काल फ्राम लिंकन । वी आर लिसनिंग यू । क्या हो गया है ? ओवर ।”
“इन्जन में गड़बड़ हो गई है ।” - रामू बोला - “मेरे साथ एक साथी और है, मैं प्लेन को समुद्र में गिराने लगा हूं । कृपया हमें बचाने का इन्तजाम कीजिये, ओवर ।”
“तैयारियां की जा रही हैं, ओवर ।” - उत्तर मिला ।
सुनील ने देखा, जहाज के डैक पर क्रियू के आदमी इकट्ठे हो रहे थे ।
रामू का प्लेन बुरी तरह जहाज के ईर्द गिर्द चक्कर काट रहा था ।
“प्लेन को लिंकन से अलग रखो ।” - जहाज से सन्देश मिला ।
“मैं, कोशिश कर रहा हूं लेकिन प्लेन मुझ से सम्भल नहीं रहा है ।” - रामू बोला ।
उसी समय प्लेन के एक इन्जन में से आग की लपटें फूटने लगीं ।
“यह क्या हुआ ?” - सुनील घबरा कर बोला ।
“रामू का छोटा सा कमाल ।” - रामू निश्चित स्वर से बोला ।
“अबे मरवाओगे क्या ?” - सुनील सच ही घबरा गया ।
“बस ?” - रामू उपहासपूर्ण स्वर से बोला - “इतने से ही घबरा गये ।”
“भाई वार हीरो तुम हो, मैं नहीं । मैं तो एक सीधा-साधा सिविलियन हूं तुम्हारी तरह विंग कमान्डर नहीं ।”
“कूदने की तैयारी कर लो ।” - रामू बोला - “और कूदते ही पैराशूट की डोरी खीचना मत भूल जाना ।”
“अच्छा ।” - सुनील व्यग्र स्वर से बोला ।
प्लेन के इन्जन की आग भभकती जा रही थी । प्लेन अब सीधा साठ अंश का कोण बनाता हुआ समुन्द्र की ओर बढ रहा था ।
“कूदो ?” - रामू बोला ।
दोनों ओर से काकपिट की खिड़कियां एक साथ खुलीं और दोनों एक साथ ही बाहर कूद पड़े ।
प्लेन उनसे कोई चार सौ फुट दूर एक भयानक आवाज के साथ समुन्द्र में जा गिरा ।
“पैराशूट खोलने की कोशिश करो ।” - रामू जो उससे पचास फुट दूर गिरा था, चिल्लाया ।
सुनील पैराशूट खोलने का प्रयत्न करने लगा ।
लिंकन से उतारी गई मोटर बोट उनकी ओर बढ रही थी ।
सुनील से पैराशूट नहीं खुल रहा था और उसे पैराशूट का भार यूं लग रहा था जैसे डूबो देगा । वह तैरने के लिये बुरी तरह हाथ मार रहा था ।
रामू अपना पैराशूट शरीर से अलग कर चुका था । उसने सुनील की यह दशा देखी तो वह तेजी से उसकी ओर बढा ।
सुनील बुरी तरह छटपटा रहा था ।
रामू और मोटरबोट दोनों इकट्ठे ही सुनील के पास पहुंचे ।
रामू के हाथ में एक चाकू था । उसने जल्दी से सुनील के पैराशूट की रस्सियां काटनी आरम्भ कर दीं ।
बाद में दोनों मोटर बोट पर खींच लिये गये ।
मोटर बोट वापिस लिंकन की ओर चल दी ।
आधे घन्टे बाद सुनील और रामू दोनों लिंकन के फोसल पर कैप्टन ब्राउन के सामने खड़े थे ।
“थैंक्स फार सेविंग अवर लाइव्ज, कैप्टन ।” - रामू कृतज्ञ स्वर से बोला ।
“क्या हुआ था ?” - ब्राउन ने पूछा ।
“मैं प्लेन को ईंगलैंड से भारत ला रहा था । इन्जन में कोई खराबी आ गई, फिर आग लग गई और नतीजा आपने देखा ही है ।”
“अब आप लोग क्या चाहते हैं ?”
“आप हमारी सरकार को परिणाम से अवगत कराने के लिये एक वायरलैस सन्देश भिजवा दीजिए । हमारी सरकार जैसी हमें करने के लिये कहेगी हम करेंगे ।”
“अच्छा ।” - ब्राउन बोला और ब्रिज के पास बने वायरलैस में घुस गया ।
सुनील ने देखा जहाज के डेकों पर यात्री इकट्ठे हो गये थे और उन्हें गहन उत्सुकतापूर्ण नजरों से देख रहे थे ।
लगभग पन्द्रह मिनट बाद कैप्टन वापस लौटा ।
“तुम लोगों के लिये तुम्हारी सरकार ने आदेश दिया है कि तुम्हें किसी भी अगली बन्दरगाह पर उतार दिया जाये, वहां से ये तुम्हें पिक कर लेंगे ।” - ब्राउन बोला ।
“आल राईट सर ।”
“यू आर ए विंग कमाण्डर ।” - कैप्टन उसकी यूनीफार्म देखकर बोला ।
“यस सर ।” - रामू बोला - “दी नेम इज रामू”
“एण्ड यू ?” - ब्राउन ने सुनील से पूछा ।
“ही ईज माई नेवीगेटर ।” - उत्तर रामू ने दिया - “सुनील ।”
“लुक हेयर, मिस्टर ।” ब्राउन बोला - “लिंकन एकदम भरा हुआ जहाज है इसमें एक भी केबिन खाली नहीं है । जब तक लिंकन अगली बन्दरगाह पर नहीं पहुंच जाता तुम्हें लिंकन के क्रियु के साथ ही रहना होगा ।”
“हमें कोई ऐतराज नहीं है साहब ।”
“तुम लोग फर्स्ट आफीसर के साथ रहोगे । उसके पास डबल केबिन है ।”
“थैंक्स, अगेन, सर ।”
कैप्टन ब्राउन वहां से हट गया ।
***
सुनील और रामू को लिंकन पर दो दिन गुजर गये थे । दो दिनों में जहाज पर कहीं भी घूमने की पूरी स्वतंत्रता न होने के बावजूद भी उन्होंने कई बातें पता लगा ली थीं ।
ईहकैराक से जहाज पर चढाये गये बड़े-बड़े पांच क्रेट चार नम्बर कार्गो होल्ड में थे और वहीं वे दो ताबूत भी रखे थे जिनमें वो अमरीकन नागरिकों की कथित लाशें थी ।
टूटी हुई टांगों वाले मिस्टर होल्डन उसकी नर्स और बाकी के दोनों स्मिथ और ग्रेगरी नाम के सज्जनों को ‘ऐ’ डैक पर एक डबल केबिन मिला हुआ था । उन दो सज्जनों में से युवक का नाम स्मिथ था और दाढी मूंछ वाला कुबड़ा लंगड़ा और गंजा आदमी ग्रगेरी था जो वास्तव में कार्ल प्लूमर था ।
जहाज में आने के बाद से होल्डन और उसकी नर्स ने एक बार भी केबिन से बाहर कदम नहीं रखा था । जहाज के पिचहत्तर प्रतिशत यात्रियों ने तो एक बार भी उनकी सूरत नहीं देखी थी ।
ग्रेगरी उर्फ कार्ल प्लूमर और स्मिथ बाहर घूमते थे और होल्डन के विषय में पूछे जाने पर यही उत्तर देते थे कि मिस्टर होल्डन की हालत बहुत खराब है और उनके लिये यही बेहतर है कि वे आराम करें । लोग हमदर्दी जता कर चुप हो जाते थे । उन्होंने होल्डन के लिये जहाज के डाक्टर की सेवायें भी अस्वीकार कर दी थी क्योंकि उनके कथनानुसार नर्स उसकी भली भांति देख भाल कर रही है और अगर जहाज के डाक्टर की जरूरत पड़ेंगी जी वे उसे बुला लेंगे ।
सुनील को अभी तक चार नम्बर होल्ड में रखे ताबूतों को खोल कर देखने का अवसर नहीं मिल रहा था कि उनमें वास्तव में ही लाशें हैं या कुछ और ।
रात के नौ बजे थे । फर्स्ट आफीसर ड्यूटी पर था । रामू और सुनील ने केबिन में ही रात का खाना खाया था । दोनों सिगरेट सुलगाये भविष्य की योजना निर्धारित करने का प्रयत्न कर रहे थे ।
उसी समय किसी ने द्वार खटखटाया ।
“कम इन प्लीज ।” - सुनील बोला ।
फर्स्ट आफीसर चेहरे का पसीना पोंछता हुआ भीतर आ गया ।
वह धम्म से एक कुर्सी पर बैठ गया ।
“गिव मी ए सिगरेट ।” - वह थके स्वर से बोला ।
रामू ने उसे एक सिगरेट दे दिया, फर्स्ट आफीसर ने सिगरेट ले लिया और उसके गहरे-कश लेने लगा ।
“परेशान क्यों हो ?” - रामू ने पूछा ।
वार्तालाप में सुनील अक्सर चुप हो रहता था क्योंकि जहाज के क्रियू और यात्रियों की नजर में रामू तो एक विंग कमाण्डर था और सुनील केवल नेवीगेटर ।
“हमारा बावर्ची गायब हो गया है ।” - फर्स्ट आफीसर परेशान स्वर में बोला ।
“गायब हो गया है ? क्या मतलब ?”
“मतलब यह कि दो घन्टे की भरपूर तलाश के बाद हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि जहाज का बावर्ची हरबर्ट जहाज पर कहीं भी नहीं है । जहाज का एक-एक स्थान यहां तक कि किसी न किसी बहाने से यात्रियों के केबिन भी देख डाले गये हैं लेकिन हरबर्ट का कहीं पता नहीं लगा ।”
“मिस्टर होल्डन वगैरह का केबिन भी देखा है ?” - सुनील ने पूछा ।
“हां, खूब अच्छी तरह से । बाकी लोगों के केबिन तो हमने अनजाने में देख लिये थे लेकिन होल्डन और उसकी नर्स क्योंकि कभी भी अपने कमरे से बाहर नहीं निकलते हैं, इसलिये हमें उन्हीं से पूछना पड़ा था कि क्या उन्होंने कहीं हमारे बावर्ची हरबर्ट को देखा है । केवल इतनी सी बात के लिये वह इतना नाराज हुआ है कि वह कैप्टन को मेरी रिपोर्ट कर रहा है । कि मैंने उसे एक निहायत मामूली बात के लिये खामखाह डिस्टर्ब किया है ।”
“कमाल का आदमी है !” - रामू बोला ।
“उससे भी ज्यादा हरामजादी तो उसकी वह मरदानी नर्स है । वह तो मुझे केबिन में घुसने देने के लिये भी तैयार नहीं थी । मिस्टर होल्डन डिस्टर्ब हो जायेंगे । यह वाक्य वह एक मिनट में छ: बार की स्पीड से दोहराती थी ।”
“लेकिन एकाएक ऐसे कोई आदमी जहाज से कैसे गायब हो सकता है ?” - रामू बोला ।
“एक सम्भावना है ।” - फर्स्ट आफीसर यूं बोला जैसे उस सम्भावना के विषय में सोचने से ही उसका दिल टूट रहा हो ।
“क्या ?”
“हरबर्ट की आदत थी कि खाना तैयार हो चुकने के बाद और सर्व होने से पहले वह एक आध सिगरेट पीने के लिये डैक पर चला जाता था । सम्भव है इस बार संयोगवश वह डैक की रेलिंग के पास खड़ा हो और कोई धक्का लग जाने पर रेलिंग से उलट कर नीचे समुद्र में जा गिरा हो ।”
“या किसी ने उसे धक्का दे दिया हो ।” - सुनील बोला ।
“डोन्ट बी ए फूल, मिस्टर ।” - फर्स्ट आफीसर ताड़ना भरे स्वर से बोल - “भला हरबर्ट को कोई समुद्र में धक्का क्यों देगा ? हरबर्ट को लिंकन की नौकरी में तेरह साल हो गये हैं और आज तक किसी की उससे तू-तू मैं-मैं तक नहीं हुई और तुम मुझे बता रहे हो कि हरबर्ट को किसी ने समुद्र में धक्का दे दिया होगा । वह क्रियू में सबसे ज्यादा पसन्द किये जाने वाला आदमी है ।”
“अगर उसकी यह तेरह साल पुरानी आदत थी कि खाना तैयार हो जाने के बाद वह डैक पर सिगरेट पीने जाया करता था जो फिर आज ही वह रेलिंग से उलट कर समुद्र में क्यों गिरा ? क्या उसे मालूम नहीं था कि जहाज में रेलिंग के एकदम पास जाना खतरनाक होता है ।”
“जरूर कोई दुर्घटना हो गई होगी ।” - फर्स्ट आफीसर बोला ।
“या कोई दुर्घटना कर दी गयी होगी ।”
“यह असम्भव है ।” - फर्स्ट आफीसर बोला लेकिन इस बार उसकी आवाज में पहले जैसा बल नहीं था ।
उस समय किसी ने दरवाजा खटखटाया ।
“कम इन ।” - फर्स्ट आफीसर बोला ।
आगन्तुक एक नौसैनिक था ।
“कैप्टन ने आपको वायरलेस आफिस में बुलाया है, सर ।” - वह शिष्ट स्वर में आफीसर से बोला ।
फर्स्ट आफीसर उठ खड़ा हुआ ।
“हरबर्ट का कुछ पता लगा ?” - उसने पूछा ।
“नो सर, लेकिन तलाश अभी भी हो रही है ।”
फर्स्ट आफीसर नौसैनिक के साथ बाहर निकल गया ।
“चलो ।” - सुनील उठ खड़ा हुआ ।
“कहां ?” - रामू ने पूछा ।
“बाहर । जरा तेल देखें और तेल की धार देखें ।”
दोनों केबिन से बाहर निकल आये ।
वायरलैस आफिस के सामने भीड़ लगी हुई थी । हर कोई उत्तेजित दिखाई दे रहा था ।
दोनों लपक कर ऊपर पहुंचे ।
“क्या हुआ है ?” - रामू ने एक से पूछा ।
“वायरलैस आपरेटर मर गया है ।” - उत्तर मिला ।
“कैसे ?”
“पता नहीं । शायद हार्टफेल हो गया है उसका । जहाज का डाक्टर देख रहा है ।”
सुनील किसी प्रकार लोगों के बीच में से रास्ता बनाता हुआ केबिन में घुस गया ।
भीतर कैप्टन ब्राउन, फर्स्ट आफीसर वगैरह खड़े थे ।
वायरलैस आपरेटर का शरीर कुर्सी पर पड़ा था । उसका सिर मेज पर टिका हुआ था और दायां हाथ दाई ओर रखे टेलीफोन की ओर फैला हुआ था । मेज पर रखी वायरलैस सन्देश नोट करने वाली डुप्लीकेट बुक के पन्ने हवा मे फड़फड़ा रहे थे । डुप्लीकेट बुक में कार्बन नहीं था । आपरेटर के चेहरे पर गहन पीड़ा के भाव थे ।
डाक्टर स्टेथस्कोप से मृत शरीर को टटोल रहा था ।
“हार्ट अटैक ।” - डाक्टर सीधा खड़ा हो गया बोला - “हृदय की धड़कन एकदम रुक गयी है । मरने से पहले शायद इसे एक बार महसूस हुआ था कि उसे दिल का दौरा पड़ रहा है और शायद उसने टेलीफोन करके मुझे बुलाने का प्रयत्न किया था लेकिन बेचारे का हाथ टेलीफोन तक पहुंचा ही था कि प्राण निकल गये ।”
सुनील ने देखा आपरेटर की गरदन पर रेत के छोटे-छोटे कण चमक रहे थे और कान के पीछे चमड़ी पर गहरी लाली आ गयी थी ।
फिर उसकी दृष्टि हवा में फड़फड़ाती डुप्लीकेट बुक पर पड़ी । उसने उसे उठा लिया और उसने उसे सीधा करके रखने के बहाने उसका पहला पृष्ठ फाड़ा और जेब में रख लिया ।
रामू हैरानी से उसका हर ऐक्शन नेाट कर रहा था ।
फार्स्ट आफीसर आफिस से बाहर निकला । सुनील उसके समीप पहुंचा और बोला - “खाना पका चुकने के बाद हरबर्ट सिगरेट पीने कहां आया करता था ?”
“वहां ।” - फर्स्ट आफीसर ने डैक की ओर संकेत कर दिया - “क्यों ।”
“यूं ही ।” - सुनील बोला और वहां से हट गया ।
वह अपने केबिन में लौट आया रामू उसके साथ था ।
लगभग दो घन्टे बाद सब शान्त हो गया । वायरलैस आपरेटर की लाश हटा ली गई और उसका स्थान दूसरे वायरलैस आपरेटर ने ले लिया ।
जहाज के वातावरण में एक विचित्र सा भारीपन पैदा हो गया ।
फर्स्ट आफीसर बारह बजे केबिन में लौटा । वह बेहद थका हुआ लग रहा था ।
“इस समय कैप्टन कहां है ?” - सुनील ने पूछा ।
“क्यों ?” - फर्स्ट आफीसर ने रूखे स्वर में प्रश्न किया ।
“मैं उससे कुछ बातें करना चाहता हूं ।”
“क्या बातें ?”
“मैं तुम्हें नहीं बताऊंगा । लेकिन मैं तुम्हें इतना विश्वास दिलाता हूं कि यह सारे जहाज के हित की बात है ।” - सुनील असाधारण गम्भीर स्वर में बोला ।
और शायद उसी असाधारण गम्भीरता का प्रभाव था कि फर्स्ट आफीसर टेलीफोन की ओर बढा । कुछ क्षण टेलीफोन पर बात करते रहने पर वह सुनील से बोला - “आओ ।”
“आओ रामू !” - सुनील बोला ।
तीनों कैप्टन के शानदार केबिन में आ गये ।
“सिट डाउन ।” - कैप्टन ब्राउन अधिकारपूर्ण स्वर में बोला ।
तीनों बैठ गये ।
“वैल, मिस्टर ?” - वह सीधा सुनील से बोला ।
“वायरलैस आपरेटर की मृत्यु के विषय में आपका क्या ख्याल है ?” - सुनील ने स्थिर स्वर से प्रश्न किया ।
ब्राउन ने एक बार तेज नजरों से उसे घूरा और बोला - “क्या इसी प्रश्न के उत्तर में जहाज का हित निर्भर करता है !”
“किसी हद तक हां ।” - सुनील निडर स्वर से बोला ।
“उसका हार्टफेल हो गया है ।”
“और हरबर्ट ?”
“वह शायद अपनी असावधानी से समुद्र में गिर गया है ।”
“अगर आपको यह पता लगे कि आपके इन दोनों आदमियों की हत्या की गई है तो आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी ?”
“तो... तो” - ब्राउन एकदम बिफर पड़ा - “तो मैं हत्यारे की गरदन खुद अपने हाथो से मरोड़ दूंगा । लेकिन मैं जानता हूं ऐसा हुआ नहीं है ।”
“क्यों ?”
“हरबर्ट के विषय में तो मैं कुछ कहता नहीं लेकिन आपरेटर की मृत्यु हृदय गति रुक जाने से हुई है यह बात स्वयं डाक्टर ने कही है ।”
“डाक्टर से गलती हुई है ।”
“क्या कह रहे हो मिस्टर ।” - ब्राउन अविश्वासपूर्ण स्वर से बोला ।
“कैप्टन साहब, आपरेटर की हत्या हुई है ।” - सुनील एक-एक शब्द पर जोर देता हुआ बोला - “किसी ने पीछे से उसकी गरदन पर रेत की थैली से प्रहार किया था जिससे वह अपनी चेतना खो बैठा था । आपरेटर की गरदन पर मौजूद रेत के कण और कान के पास गहरा लाल निशान इस बात का सबूत है । बाद में उसकी रक्त वाहिनी नसें दबा दी गई थी जिससे उसके हृदय की गति रुक गई और वह मर गया । मैंने इस ढंग की हत्या का केस पहले भी देखा है । कैप्टन साहब स्थूल रूप से लक्षण हार्ट अटैक के ही प्रकट होते है । अगर आप डाक्टर को लाश की जांच दुबारा करने के लिये कहें तो वह भी जान जायेगा कि मैं सच कह रहा हूं ।”
ब्राउन गम्भीर हो गया ।
“और हरबर्ट ?” - कई क्षण बाद उसने पूछा ।
“जिस समय हरबर्ट नीचे डैक पर सिगरेट पीने आया था, उसी समय शायद आपरेटर की हत्या की जा रही थी । वायरलैस आफिस डैक के एकदम सामने है । शायद हरबर्ट ने हत्यारों को देखा था या हत्या होती देखी थी और इसके पहले कि वह शोर मचा पाता वह भी मार दिया गया था और उसकी लाश समुद्र में फेक दी गई ।”
“लेकिन क्यों ?” - ब्राउन मेज पर मुक्का मारकर बोला - “ऐसा क्यों किया किसी ने ?”
“पहले मेरे एक प्रश्न का उत्तर दीजिये ।”
“क्या ?”
“आपके पास आपरेटर ने आखिरी वायरलेस सन्देश की कापी कब भेजी थी ।”
“मुझे आखिरी सन्देश आठ बत्तीस पर रिसीव किया हुआ मिला था ।”
“लेकिन मैं सिद्ध कर सकता हूं कि एक सन्देश आठ पचास पर भी रिसीव किया गया था ।”
“असम्भव !” - कैप्टन बोला - “अगर ऐसा होता तो मेरे पास उसकी कापी जरूर पहुंची होती । हर सन्देश डुप्लीकेट बुक में नोट किया जाता है । एक कापी फौरन मेरे पास भेज दी जाती है और दूसरी आपरेटर फाइल में लगा देता है ।”
“लेकिन आठ पचास वाला सन्देश आप तक नहीं पहुंच पाया ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि सन्देश नोट होते ही आपरेटर की हत्या हो गई और हत्यारों ने डुप्लीकेट बुक में से वह सन्देश उड़ा लिया । यह देखिये ।” - सुनील अपनी जेब में से एक कागज निकालकर कैप्टन को थमाता हुआ बोला - “यह कागज मैंने आपरेटर की डुप्लीकेट बुक में से फाड़ा है । इसके ऊपर के दो पृष्ठों पर आठ बजकर पचास मिनट वाला सन्देश था जो हत्यारे फाड़ कर ले गये लेकिन फिर भी कापिग पेन्सिल का थोड़ा-सा दबाब इस पृष्ठ पर भी गया है । सन्देश तो नहीं पढा जा रहा लेकिन “2050” साफ पढा जा सकता है ।”
कैप्टन कुछ क्षण पेपर देखता रहा और फिर एकदम बोल पड़ा - “बाई गाड, यू आर राइट । लेकिन किसी को पता कैसे लग सकता है कि हमारे जहाज के रिसीविंग सैट पर कोई विशेष सन्देश रिसीव किया गया है । सन्देश तो केवल आपरेटर को अपने इयरफोन में सुनाई देता है जो उसके कानों पर चढा होता है ।”
“केवल एक ही तरीका हो सकता है ।”
“क्या ?”
“कि जहाज पर कहीं इसी वेव लैग्थ पर ट्यून किया हुआ एक और रिसीवर भी हो ।”
“लेकिन यह कैसे हो सकता है ?”
“इसके सिवाय और कोई सम्भावना नहीं है । आठ पचास वाला यह सन्देश वायरलैस आपरेटर के अतिरक्त किसी और ने भी सुना । वह सन्देश इतना महत्वपूर्ण था कि आपरेटर ने आपको सन्देश की कापी भेजने के स्थान पर फौरन टेलीफोन पर सूचना देनी चाही लेकिन तभी वह आदमी वहां पहुंच गया जिसने अपने रिसीवर पर वह सन्देश सुना था । परिणामस्वरूप आपरेटर की हत्या कर दी गई । वह सन्देश डुप्लीकेट बुक में से फाड़ लिया गया । हरबर्ट ने यह दृश्य देखा और उसकी भी हत्या कर दी गई ।”
“लेकिन दूसरा रिसीवर कहां हो सकता है ?”
“जहां भी होगा वायरलैस आफिस से अधिक दूर नहीं होगा, क्योंकि सन्देश सुनते ही हत्यारे इतनी जल्दी वायरलैस आफिस में पहुंच गये थे कि आपरेटर का हाथ टेलीफोन तक भी नहीं पहुंच पाया था । दूसरा रिसीवर किसी ऐसे स्थान पर होनी चाहिये जहां से वायरलैस आफिस तक केवल दस सेकन्ड में पहुचा जा सके ।”
“ऐसी तो बहुत-सी जगह हैं ।” - फर्स्ट आफिसर बोला - “ब्रिज, फ्लैग-आफिस, राडार-आफिस, चार्ट रूम, जहाज के कर्मचारियों के केबिन, डाइनिंग रूम, पैन्ट्री, यात्रियों का ‘ए’ डैक और किसी हद तक बी डैक भी, सभी वायरलैस आफिस से इतनी दूर हैं कि दस सेकेन्ड में वहां तक पहुंचा जा सकता है ।”
“आपके क्रियू के आदमी कैसे हैं ?” - सुनील ने ब्राउन से पूछा ।
“बेहद विश्वसनीय ! मैं पच्चीस साल से सिल्वर लाइन की नौकरी कर रहा हूं, मिस्टर ! मुझे अपने आदमियों पर पूरा भरोसा है ।”
“तो फिर रिसीवर यात्रियों में से किसी के पास है ।”
“लेकिन किसके पास है ?”
“मैं अपना सन्देह बताऊं ?”
“बताओ ।”
“मुझे होल्डन, स्मिथ और ग्रेगरी वगैरह पर संदेह है ।”
“कारण ?”
“कई हैं ।” - सुनील बोला - “पहला तो यह कि ‘ए’ डैक पर उनका केबिन वायरलैस आफिस के एकदम नीचे है । आदमी पलक झपकते ही वहां से वायरलैस आफिस में पहुंच सकता है । दूसरी बात यह कि उन्हें ही ऐसा कोई रिसीवर प्रयोग में लाने की सबसे अधिक सहूलियत है । होल्डन और उसकी नर्स चौबीस घंटे अपने केबिन में रहते हैं । न तो वे बाहर निकलते है और न ही वे आसानी से किसी को भीतर आने देते हैं । फर्स्ट आफिसर इस बात का गवाह है ।”
फर्स्ट आफिसर ने सहमति सूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
“लेकिन वह सन्देश क्या था जिसे मेरी नजर में आने से रोकने के लिये दो आदमी जान से मार डाले गये ?” - ब्राउन बोला ।
सुनील ने अनभिज्ञतापूर्ण ढंग से कन्धे उचकाये ।
“और फिर बिना होल्डन की जानकारी में आये यह बात कैसे जानी कि उनके केबिन में रिसीवर है या नहीं ?”
“उसकी एक तरकीब हो सकती है ।”
“क्या ?”
“आप जहाज के किसी विश्वसनीय यात्री से बात कर लीजिये । उसे कहिये कि वह कल शाम किसी बहाने जहाज के सहयात्रियों को एक पार्टी दे दे और होल्डन से पार्टी में शामिल होने के लिये विशेष रूप से प्रार्थना करे । होल्डन की टांग जरूर टूटी हुई है लेकिन वह इतना बीमार नहीं है कि अपनी पहियों वाली कुर्सी पर बैठा कुछ देर पार्टी में शामिल न हो सके । वह अपने किसी सहयात्री के निमन्त्रण को ठुकरा कर खामखाह अपने आपको संदेह में नहीं डालेगा । अगर होल्डन पार्टी में आयेगा तो साथ में उसकी नर्स भी आयेगी । एक बार केबिन खाली मिलते ही उसकी भरपूर तलाशी ली जा सकती है ।”
“अगर रिसीवर न मिला ?”
“तो फिर सबसे सीधा तरीका यह है कि आप चुपचाप बिना यात्रियों को बताये उस बन्दरगाह को रुख कर लीजिये जो यहां सबसे समीप हो और मामला वहां की पुलिस के हाथों सौप दीजिये । लिंकन के यात्रियों की भावनाओं, उनके सुख और सुविधा का ख्याल रखना आपकी जिम्मेदारी तो हो सकता है, पुलिस की नहीं । फिलहाल आप यही प्रयत्न कीजिये कि किसी को यह पता न लगे कि आप समझते हैं कि आपके दोनों आदमी स्वाभाविक मौत नहीं मरे । इससे हत्यारे समझेंगे कि उनकी चाल चल गई है और वह निश्चित हो जायेंगे ।”
ब्राउन कई क्षण चुप रहा और फिर बोला - “मैं पार्टी का इन्तजाम कर दूंगा ।”
“फाईन !” - सुनील संतुष्ट स्वर से बोला ।
फर्स्ट आफिसर विचित्र नेत्रों से सुनील को घूर रहा था ।
***
पार्टी अमेरिकन करोड़पति जूलियस बैडफोर्ड ने अपनी बीस वर्षीय लड़की साराह के जन्म दिन के उपलक्ष में दी थी और कैप्टन ब्राउन के लिये यह भारी संतोष का विषय था कि जहाज का एक-एक यात्री पार्टी में मौजूद था । होल्डन अपनी पहियों वाली कुर्सी पर हाल के कोने की एक मेज के सामने बैठा था ।
साथ में उसकी नर्स भी थी । स्मिथ और ग्रेगरी उर्फ कार्ल प्लूमर हाथ मे विस्की के गिलास लिये भीड़ में मिले पार्टी का आनन्द ले रहे थे । सुनील भी फर्स्ट आफिसर का एक सूट पहने पार्टी में शामिल था ।
बैडफोर्ड सुनील के समीप पहुंचा ।
“हल्लो मिस्टर !” - बैडफोर्ड बोला - “तुम्हारा साथी नहीं दिखाई दे रहा है ।”
“वह अभी तो यहीं था, मिस्टर बैडफोर्ड लेकिन एकाएक उसकी तबियत खराब हो गई थी इसलिये फर्स्ट आफिसर उसे केबिन में ले गया है ।”
“ओह !” - बैडफोर्ड चिन्ता व्यक्त करता हुआ बोला - “कोई गंभीर बात तो नहीं ?”
“जी नहीं ! कोई गंभीर बात नहीं है ।”
“गुड ! एन्जाय योर सैल्फ माई ब्वाय ।”
और बैडफोर्ड वहां से हट गया ।
सुनील ने अपने गिलास की बची हुई विस्की हलक में उड़ेली और हाल के किनारे में बने बार काउन्टर की ओर बढ गया ।
“ए डबल विस्की प्लीज !” - सुनील बार टेन्डर से बोला ।
“राइट अवे, सर !” - बार टेन्डर बोला ।
सुनील ने दो बार काउन्टर ठकठकाया और फिर धीमे स्वर में बोला - “कैसे हो, प्यारेलाल ?”
काउन्टर के नीचे से, जहां अक्सर बोतल रखी जाती है, रामू की आवाज आई - “मर रहे हैं प्यारे ! तुम विस्की उड़ाओ तुम्हें क्या ?”
“यह डबल पेग तुम्हारे लिये है ।” - सुनील बोला और बारटेन्डर को संकेत किया ।
बारटेन्डर ने चुपचाप गिलास काउन्टर के नीचे छिपे रामू के हाथ में थमा दिया ।
“मैं यहां कब तक पैक रहूंगा ?” - रामू की आवाज आई ।
“बस केवल दस पन्दह मिनट और । हमारे दोस्त काफी पी चुके हैं और अब काफी लापरवाह दिखाई दे रहे हैं ।”
“लेकिन...”
“श...”
रामू चुप हो गया ।
सुनील काउन्टर के पास से हट गया ।
वह चुपचाप हाल से बाहर निकल आया । किसी ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया । उसने चारों ओर देखा और फिर धीरे से सीटी बजा दी ।
फर्स्ट आफिसर उसके सामने आ खड़ा हुआ ।
सुनील ने एक बार अपनी जेब में रखा कर्नल मुखर्जी का दिया मोजर रिवाल्वर थपथपाया और फिर उसने फर्स्ट आफिसर को संकेत किया ।
“तुम दरवाजे पर ही खड़े रहो ।” - सुनील कमरे में घुसता हुआ बोला ।
फर्स्ट आफिसर ने स्वीकृति सूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
वह डबल केबिन था । वह सीधा भीतर वाले केबिन में घुस गया जहां दो पलंग बिछे हुए थे । वह गौर से केबिन की एक-एक चीज का निरीक्षण करने लगा । फिर वह उस पलंग की ओर बढा जिसकी साइड में दीवार पर एक प्लग लगा हुआ था । उसने बिस्तर उलट दिया ।
पलंग लकड़ी के तख्तों का बना हुआ था । सुनील बारी-बारी उन समानान्तर तख्तों को छू कर देखने लगा । एक तख्ता उसे ढीला लगा । उसने तख्ते को एक ओर से उमेठा । तख्ता उठ गया । और नीचे एक छोटा सा खाना निकल आया ।
सुनील ने भीतर झांका ।
भीतर एक इयरफोन रखा था ।
सुनील ने इयर फोन निकाल लिया । इयर फोन के साथ एक लम्बी तार लगी हुई थी । सुनील ने तार का दूसरा सिरा प्लग में लगा दिया और इयरफोन अपने कानों पर चढा लिया ।
फौरन ही उसे वायरलैस ट्रांसमीटर की सायं-सायं सुनाई देने लगी ।
वायरलैस आफिस उस केबिन के एकदम ऊपर था ।
सुनील ने सन्तुष्टिपूर्ण ढंग से सिर हिलाया और उसने इयर फोन कानों पर से उतार लिया ।
वह बाहर निकल आया ।
उसने इयर फोन फर्स्ट आफिसर के सामने कर दिया ।
“यह... यह.. इयर फोन ।” - फर्स्ट आफिसर हैरानी से फुसफुसाया - “कहां से मिला ?”
“उस पलंग में से । किसका है वह ?”
“होल्डन का ।”
“चलो ।”
दोनों लम्बे डग भरते हुए हाल में आ गये ।
पार्टी अपने पूरे शबाब पर थी ।
कार्ल प्लूमर और स्मिथ बाहर काउन्टर के सामने खड़े थे ।
होल्डन और उसकी नर्स उसी स्थान पर बैठे थे जहां वह उन्हें छोड़ कर गया था ।
फर्स्ट आफिसर कैप्टेन ब्राउन के पास पहुंचा । उसने ब्राउन के कान में कुछ कहा और फिर दोनों लम्बे डग भरते हुए, होल्डन के सामने जा खड़े हुए ।
ब्राउन का चेहरा कोध से अंगारे की तरह भभक रहा था ।
सुनील उनके पीछे था ।
फर्स्ट आफिसर ने अपनी जैकेट में से इयरफोन निकाला और उसे होल्डन की गोद में फेंक दिया ।
“इसे पहचानते हैं आप ?” - वह कठोर स्वर में बोला ।
होल्डन की आंखें फट पड़ी । उसका मुंह राख की तरह सफेद हो गया ।
ब्राउन का दांया हाथ वज्र की तरह होल्डन के चेहरे से टकराया । उस प्रहार के पीछे ब्राउन के दो आदमियों के मारे जाने के दुख की तमाम शक्ति निहित थी ।
होल्डन कुर्सी समेत पीछे उलट गया ।
होल्डन की नर्स बिजली की फुर्ती से उठ खड़ी हुई । उसने अपने हाथ में थामे गिलास की शराब एकदम फर्स्ट आफिसर के चेहरे पर फेंक दी ।
फर्स्ट आफिसर जैसे एकदम अन्धा हो गया । वह दोनों हाथों से अपनी आंखें रगड़ने लगा ।
उतनी ही फुर्ती से नर्स ने अपना पर्स खोला और उसमें से रिवाल्वर निकाल लिया ।
ब्राउन उसके रिवाल्वर वाले हाथ की ओर झपटा ।
नर्स ने फायर किया ।
कैप्टन के मुंह से भयानक चीख निकली और वह कटे वृक्ष की तरह धम्म से लकड़ी के फर्श पर आ गिरा ।
तब तक सुनील भी रिवाल्वर निकाल चुका था । उसने नर्स को निशाना बनाकर दो फायर कर दिये ।
दोनों गोलियां नर्स के माथे पर लगी ।
मोजर रिवाल्वर की दो गोलियां खोपड़ी में घुस जाने के बाद किसी को जीवित रह जाना संसार आठवां आश्चर्य था ।
नर्स धड़ाम से फर्श पर गिरी ।
उसका सिर फर्श से टकराया और उसके सिर से बालों का विग सरक गया ।
“अरे यह तो आदमी है ।” - कोई चिल्लाया ।
सब कुछ एक क्षण में हो गया ।
तब तक फर्स्ट आफिसर सम्भल चुका था उसने झपट कर नर्स के हाथ से रिवाल्वर निकाल लिया ।
सुनील ने बार काउन्टर को ओर देखा ।
रामू, स्मिथ और कार्ल प्लूमर के सामने खड़ा था उसके हाथ में बड़ा सा लोहे का हथौड़ा था ।
“अगर तुम दोनों में से किसी ने हिलने की कोशिश की तो दोनों को खोपड़ी का भुर्ता बना दूंगा ।” - विंग कमान्डर रामू इतने गम्भीर स्वर से बोला जैसे किन्हीं नए हवाबाजों की क्लास में भाषण दे रहा हो ।
लेकिन शायद कार्ल प्लूमर को उसकी धमकी पर विश्वास नहीं हुआ । उसका हाथ बिजली की तरह काउन्टर पर रखे शीशे के जग की ओर बढा जिसे शायद वह रामू को दे मारना चाहता था ।
रामू का हथोड़े वाला हाथ हवा में घूमा । एक भड़ाक की आवाज हुई और शीशे के जग, लकड़ी के काउन्टर और कार्ल प्लूमर के हाथ तीनों के परखचे उड़ गये ।
“मिस्टर कार्ल प्लूमर ।” - रामू उतने ही गम्भीर स्वर से बोला - “यह प्रहार तुम्हारी खोपड़ी पर इसलिये नहीं पड़ा क्योंकि अभी हमें तुम्हारी जरूरत है ।”
कार्ल प्लूमर के चेहरे पर पीड़ा के साथ-साथ गहरी हैरानी के लक्षण भी उभर आये ।
यात्री बुरी तरह डरे हुए जैसे अपने-अपने स्थानों से चिपके खड़े थे ।
“स्टेंड बैक एवरीवन ।” - फर्स्ट आफिसर का अधिकार पूर्ण स्वर हाल में गूंज गया - “कैप्टेन ब्राउन इज डैड । नाउ आई एम दि मास्टर आफ दिस शिप (कैप्टन ब्राउन मर चुका है । अब मैं इस हाज का कैप्टन हूं) ।”
हाल में मौत का सन्नाटा छाया हुआ था ।
“आप लोग मिस्टर स्मिथ और मिस्टर ग्रेगरी से अलग हट जायें । मिस्टर सुनील इन दोनों की तलाशी लो ।”
सुनील में रिवाल्वर अपनी पैंट की बेल्ट में खोंस ली और आगे बढकर स्मिथ और ग्रेगरी उर्फ कार्ल प्लूमर दोनों की जेबें टटोलने लगा ।
दोनों के पास रिवाल्वर थे ।
सुनील ने दोनों रिवाल्वर रामू की ओर उछाल दिये । रामू ने हथोड़ा फेंक दिया और रिवाल्वर सम्भाल ली ।
“जब तक लिंकन किसी बन्दरगाह पर नहीं पहुंच जाता आप लोग जहाज की जेल में गिरफ्तार रहेंगे । आपको कुछ कहना है ?” - फर्स्ट आफिसर बोला ।
कोई कुछ नहीं बोला ।
सुनील उसके पास से हट गया और जमीन पर पड़े होल्डन की ओर बढा । वह अभी भी कुर्सी समेत फर्श पर उलटा पड़ा था और शायद चेतना खो बैठा था । उसकी टांगों पर से कम्बल हट गया था ।
सुनील समीप आकर उसकी टांगे टटोलने लगा । फिर उसने उसकी एक टांग की पट्टियां खोल दी ।
वह उठ खड़ा हुआ ।
“यह लंगड़ा नहीं है । इसकी टांगें बिल्कुल ठीक हैं ।” - सुनील बोला ।
“और नर्स के भेष में एक आदमी था ।” - फर्स्ट आफिसर बोला - “आप लोग कौन सा तमाशा करना चाहते थे, मिस्टर स्मिथ ?”
उत्तर नहीं मिला ।
“मिस्टर रामू, इनके हाथ पांव बांध दो ।”
रामू आगे बढा ।
उसी समय बाहर कहीं मशीनगन की रेट-रेट की आवाज सुनाई दी और फिर सारी बत्तियां बुझ गईं ।
सुनील बिजली की तेजी से कार्ल प्लूमर की ओर लपका उसकी दांई बांह उसकी गर्दन से गिर्द लिपट गई ।
“कार्ल प्लूमर ।” - वह बोला - “हिले तो गर्दन तोड़ दूंगा ।”
लोग सांस रोके खड़े थे । उस सन्नाटे में छन से शीशे टूटने की आवाज पूरी तरह गूंज जाती थी ।
उसी समय बत्तियां जल उठीं ।
हाल में स्मिथ की आवाज गूंज गई - “अपने रिवाल्वर नीचे गिरा दो वर्ना कोई भी जिन्दा नहीं बचेगा ।”
सुनील ने अपने चारों ओर देखा । हाल की चारों खिड़कियों के शीशे टूटे पड़े थे और उन खिड़कियो में गुन्डे से लगने वाले चार आदमी हाथों में मशीनगन लिये खड़े थे । हाल के मुख्य द्वार पर भी एक आदमी खड़ा था । उसके हाथ में भी मशीनगन थी ।
बाजी पलट गई थी ।
उसी क्षण सुनील की नजर फर्स्ट आफिसर पर पड़ी । उसने अपनी जैकेट में से नर्स वाला रिवाल्वर निकाल लिया था । पांच मशीनगनों के सामने रिवाल्वर इस्तेमाल करने का इरादा करना भी आत्महत्या जैसा था ।
“नो डोन्ट डू देट ।” - सुनील चिल्लाया और फिर उसने कार्ल प्लूमर को एक ओर धकेला और फर्स्ट आफिसर की ओर लपका ।
लेकिन फर्स्ट आफिसर ने पहले ही गोली चला दी ।
द्वार पर खडे आदमी के हाथ में से मशीनगन निकल गई और वह वहीं द्वार के पास लोट गया ।
द्वार के पास की खिड़की में खड़े आदमी ने अपनी मशीनगन का रुख एकदम फर्स्ट आफिसर की ओर कर दिया ।
फर्स्ट आफिसर को बचाने का एक ही तरीका था ।
सुनील ने झपट कर अपना रिवाल्वर निकाला और गोली चला दी ।
वह मशीनगन वाला भी एक लम्बी हाय के साथ हाल में आ गिरा ।
लेकिन तब तक सबका ध्यान उस ओर आकर्षित हो चुका था और अब तीन मशीनगन लगातार फायर कर रही थी ।
सुनील को एकाएक यूं लगा जैसे उसकी बाईं जांघ में लोहे की दहकती हई सलाख भोक दी गई हो ।
वह धड़ाम से फर्श पर आ गिया ।
चेतना लुप्त होने से पहले उसने रामू को भी फर्श पर गिरते देखा ।
***
होश आने पर सुनील ने स्वयं को जहाज के क्लीनिक में पाया । उसने आपपास दृष्टि दौड़ाई । बगल में दो बिस्तर और लगे हुये थे । एक कोने पर रामू था और दूसरे पर फर्स्ट आफिसर । दोनों बेहोश थे । एक कोने में डाक्टर खड़ा आक्सीजन के सिलन्डर का निरीक्षण कर रहा था । आक्सीजन की नली फर्स्ट आफिसर की नाक में घुसी हुई थी ।
क्लीनिक के खुले द्वार के बाहर फर्श पर ही मैले कुचेले कपड़े पहने एक आदमी बैठा था । उसकी दाढी बढी हुई थी और वह एक मुड़े तुड़े सिगरेट के कश लगा रहा था । उसकी जांघ के साथ टिकी हुई मशीन गन रखी थी ।
सुनील ने आंख के इशारे से डाक्टर को अपने समीप बुलाया ।
डाक्टर उसके समीप आ खड़ा हुआ ।
“डाक्टर ।” - सुनील फुसफुसाया - “मेरी टांग की हालत कैसी है ?”
“जांघ में एक ही स्थान पर तीन गोलियां लगी हैं ।” - डाक्टर धीमे किन्तु गम्भीर स्वरे में बोला - “दो अभी भी जांघ के मांस में ही धसी हुई हैं लेकिन जहाज पर सर्जरी की अच्छी व्यवस्था न होने के कारण आसानी से निकाली नहीं जा सकती ।”
“और हड्डी ?”
“हड्डी ठीक है । तुम्हारी तकदीर अच्छी थी एक भी गोली हड्डी से नहीं टकराई है ।”
“स्मिथ या ग्रेगरी में से कोई अभी तक यहां आया है ?”
“नहीं ?”
“डाक्टर, मेरी जांघ की हड्डी चूर-चूर हो चुकी है ।”
“नहीं, हड्डी ठीक है ।”
“मेरी जांघ की हड्डी चूर-चूर हो चुकी है ।” - सुनील एक-एक शब्द पर बल देता हुआ फिर बोला ।
डाक्टर दुबारा प्रतिवाद करने ही वाला था कि बात उसकी समझ में आ गई ।
“हां तुम्हारी टांग की हड्डी चूर-चूर हो गई है ।” - वह बोला ।
“और मैं अपने स्थान से हिल भी नहीं सकता ।” - सुनील बोला ।
“हां ! टांग की हड्डी टूट जाने के बाद हिलने डुलने का सवाल ही पैदा नहीं होता ।”
“आप मेरी टांग की ड्रेसिंग भी इसी आधार पर कीजिये ।”
“अच्छा !” - डाक्टर बोला और उसने ड्रेसिंग शुरू कर दी ।
डाक्टर ने उसकी टांग की पूरी लम्बाई के आस-पास लकड़ी की खपच्चियां लगा कर ड्रेसिंग कर दी ।
“यात्री कहां हैं ?”
“यात्री हाल में ही बन्द किये हुये हैं और उनकी छाती पर दो आदमी मशीनगन लिये खड़े हैं और उन्हें मालूम नहीं कि सारे डैक आफिसर मार दिये गये हैं । जहाज पर उन लोगों का पूरा अधिकार है ।”
“फर्स्ट आफिसर की हालत कैसी है ?”
“बहुत नाजुक । गोलियों से उसके फेफड़े छलनी हो गये हैं । मुंह से खून आ रहा है । सांस बहुत कठिनाई से आ रही है । आक्सीजन मैंने लगा दी है । अगर जल्दी से ही उसे किसी बड़े अस्पताल में नहीं पहुंचाया गया तो वह बच नहीं पायेगा ।”
“और रामू ?”
“बहुत गोलियां लगी हैं उसके लेकिन कोई भी किसी घातक स्थान पर नहीं लगी है । वह बच जायेगा ।”
उसी क्षण क्लीनिक में कार्ल प्लूमर और स्मिथ ने प्रवेश किया ।
“हल्लो !” - सुनील को देख कर कार्ल प्लूमर बोला - “कैसे हो ?”
“तुम्हें कैसा दिखाई दे रहा हूं ?” - सुनील जले स्वर से बोला ।
“क्या हुआ है ?” - उसने डाक्टर से पूछा ।
“टांग की हड्डी चूर-चूर हो गई है ।” - डाक्टर ने बताया ।
“मुझे दुख है ।” - कार्ल प्लूमर बोला - “लेकिन अगर तुम मर जाते तो मुझे और भी दुख होता ।”
“क्यों ?”
“फिर मैं कभी यह नहीं जान पाता कि तुम कौन हो और मुझे कैसे जानते हो ?”
“यह तो तुम अब भी नहीं जान पाओगे ।”
“तुम्हारा यह दावा कितना झूठा है यह तुम जल्दी ही जान जाओगे ।” - कार्ल प्लूमर बोला ।
सुनील चुप रहा । उसने देखा, रामू और फर्स्ट आफिसर भी होश में आ चुके थे और दोनों स्थिर नेत्रों से कार्ल प्लूमर को देख रहे थे ।
कार्ल प्लूमर रामू की ओर घूमा और उसे पट्टियों से ढका अपना हाथ दिखाता हुआ बोला -“मैं तुमसे वादा करता हूं, दोस्त, इस कुचले हुये हाथ के बदले में मैं तुम्हारी समूची बांह उखाड़ लूंगा ।”
रामू का चेहरा सलेट की तरह साफ था । लगता था जैसे उसने कुछ सुना नहीं था ।
“मैं खून खराबा पसन्द नहीं करता हूं ।” - कार्ल प्लूमर फिर बोला - “आप लोगों की और आप के कुछ साथियों की यह हालत फर्स्ट आफिसर की बेवकूफी से हुई । उसे गोली नहीं चलानी चाहिये थी । अब भी अगर आप लोग कोई गड़बड़ न करें तो आप को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा ।”
“हमारी स्थिति ऐसी नहीं है कि हम तुम्हें कोई नुकसान पहुंचा सकें ?” - सुनील व्यंगपूर्ण स्वर से बोला ।
“यह सबसे अच्छी बात है ।” - कार्ल प्लूमर सन्तुष्टिपूर्ण स्वर में बोला ।
“एक बात बताओगे ?” - सुनील बोला ।
“बीस पूछो ।”
“जहाज में ये लोग कहां से आ टपके ?” - सुनील ने बाहर बैठे मशीनगन वाले दादा की ओर संकेत करते हुये पूछा ।
“ईहकैराक की बन्दरगाह पर जहाज में पांच बड़े-बड़े क्रेट चढाये गये थे जिसमें नैटसीकाप सरकार के अनुसार अमेरिका को डायनेमो और जरनेटर भेजे जा रहे थे । उनमें से दो में वे आदमी बन्द थे ।”
“कितने ?”
“चालीस । लेकिन अब अड़तीस रह गये हैं । एक तुमने मार दिया और एक फर्स्ट आफिसर की गोली का शिकार हो गया ।”
“बाकी के तीन क्रेटों में क्या है ?” - सुनील ने पूछा ।
“तोपें !” - कार्ल प्लूमर बोला ।
“तोपें ?” सुनील हैरान हो कर बोला - “तोपें किसलिये ?”
“हम लिंकन और लिंकन पर लगी तोपों की सहायता से एक अन्य अमेरिकी जहाज यार्क लाईन को रोकने वाले हैं । यार्क लाइन पर, तुम्हारी जानकारी के लिये बता रहा हूं, अस्सी करोड़ डालर की कीमत का शुद्ध सोना लदा हुआ है और हमें यह भी मालूम है कि वह सोना जहाज के डैक के अगले भाग में रखी बीस पेटियों में है । जिन पर लिखा है कि उन में एयर कन्डीशनिंग की मशीनरी है ।”
सुनील की आंखें फट पड़ी ।
“जिस समय वह जहाज ईहकैराक की बन्दरगाह पर रुका था, उसका वायरलैस आपरेटर सख्त बीमार हो गया था या यह समझो कि सख्त बीमार कर दिया गया था । इस समय उसके स्थान पर जो वायरलेस अपरेटर है, वह हमारा आदमी है । वही हमें समय समय पर समुद्र में यार्क लाइन की स्थिति की सूचना भेजता है और उसी ने हमें बताया कि सोना किन पेटियों में है ।”
“तो उस सन्देश के कारण ही लिंकन के वायरलैस आपरेटर की हत्या की तुमने ?”
“मैंने नहीं, नर्स ने । वायरलेस आपरेटर का खतम होना जरूरी था । नर्स ने उसे मार डाला था लेकिन हरबर्ट ने उस नर्स को हत्या करते देख लिया था । इसलिये हरबर्ट को भी मारना पड़ा । बाद में हरबर्ट की लाश समुद्र में फेंक दी गई थी ?”
“तो तुम लोग यार्क लाइन को लूटना चाहते हो ?”
“यह भी कहने की बात है ?”
“मुझे ऐसी आशा नहीं थी कि एक राष्ट्र की सरकार बटमरी और डकैती जैसे गन्दे तरीकों पर उतर आयेगी ।”
“यह काम किसी राष्ट्र की सरकार नहीं कर रही, मैं कर रहा हूं ।” - कार्ल प्लूमर ने प्रतिवाद किया ।
“मुझे बेवकूफ बनाने की कोशिश मत करो, कार्ल प्लूमर ।” - सुनील बोला - “जो कुछ भी तुम कर रहे हो जनरल ब्यूआ के संकेत पर कर रहे हो । जनरल ब्यूआ जब और किसी तरीके से अपने देश की मुद्रा की स्थिति नहीं सुधार सका और देश में फैली भुखमरी दूर नहीं कर सका तो उसने समुद्र में दूसरे राष्ट्र का माल लूटने की गन्दी तरकीब सोच डाली ।”
“मैं कहता हूं नैटसीकाप सरकार या जनरल ब्यूआ का इसमें कोई हाथ नहीं है ।” - कार्ल प्लूमर ने फिर प्रतिवाद किया ।
“तुम झूठ बोलते हो ।” - सुनील चिल्लाया - “अगर सोना लूटने की स्कीम में जनरल ब्यूआ का हाथ नहीं है तो यह कैसे सम्भव हुआ कि तुमने ईहकैराक के कस्टम अधिकारियों की आंखों में धूल झोंककर अपने चालीस आदमियों और तोपों से भरे क्रेटों को लिंकन पर चढा लिया । ईहकैराक के कस्टम अधिकारियों ने क्यों उन क्रेटों के मामले में अपनी आंखें बन्द कर लीं । उन क्रेटों के बारे में यह कहा गया था कि वे डायनेमो और जनरेटर हैं जो इस्तेमाल के बाद अमेरिकन सरकार को वापिस किये जा रहे हैं । और फिर सरकारी दबाव के कारण ही तुम्हें लिंकन में जगह मिली । गज भर लम्बी वेटिंग लिस्ट होने के बावजूद भी तुम्हें लिंकन पर चढाया गया । क्योंकि तुम्हारी सरकार ने झूठ बोला कि तुम लोग अमेरिकन नागरिक हो जिनमें से दो दुर्घटना का शिकार होकर मर गये हैं और जिनका वापिस स्वदेश पहुंचना जरूरी है । इस सिलसिले में तुमने नेटसीकाप में अमेरिकन राजदूत का झूठा हवाला दिया । ईहकैराक में जहाज का वायरलेस यन्त्र ठीक करने के लिये जो इन्जीनियर आया था शायद उसी ने वायरलेस रिसीवर का कनैक्शन तुम्हारे कमरे में मिले इयर फोन से फिट कर दिया था ताकि बाहर से आने वाला हर सन्देश तुम सुन सको । इतनी लम्बी चौड़ी गड़बड़ सरकारी दखल के बिना कैसे सम्भव हो सकती है ?”
“जो कुछ तुमने कहा है, सब ठीक है ।” - कार्ल प्लूमर बड़बड़ाया - “लेकिन तुम यह सब कैसे जानते हो ?”
“मेरे पास अलादीन का चिराग है ।” - सुनील ने अपना घिसा पिटा जवाब दोहरा दिया ।
“नहीं ।” - वह एकाएक उत्तेजित हो उठा - “मैं समझ गया तुम यह सब कैसे जानते हो । मैंने तुम्हें ईहकैराक में भारतीय युद्ध पोत के ब्रिज पर खड़े देखा था ।”
सुनील के शरीर में झुरझुरी सी दौड़ गई ।
“मुझे शुरू से ही तुम्हारी सूरत परचानी हुई लग रही थी लेकिन याद नहीं आ रहा था कि मैंने तुम्हें कहां देखा है । अब तुम्हारी मौत निश्चित हो गई है, मिस्टर ।”
“कोई फर्क नहीं पड़ता ।” - सुनील लापरवाही से बोला - “लेकिन तुम अपनी स्कीम में सफल नहीं हो सकते ।”
“क्यों ?”
“तुम यार्क लाइन तक कैसे पहुंचोगे ?”
“शायद तुम्हें मालूम नहीं स्मिथ जल सेना में लैफ्टीनेन्ट कमांडर रह चुका है । यार्क लाइन के आपरेटर से मिली सूचनाओं के कारण हमें यार्क लाइन की सही स्थिति और रफ्तार दोनों मालूम हैं । यार्क लाइन दस नाट की रफ्तार से उत्तर की ओर बढ रहा है । लिंकन इस समय सोलह नाट की रफ्तार से बढ रहा है । इस हिसाब से हम सुबह पांच बजे तक उसे पकड़ लेंगे ।”
“लेकिन तुम उसे रोकोगे कैसे ? अगर तुमने गोला बारी शुरू की तो यार्क लाइन एकदम विपरीत दिशा में भाग निकलेगा । दो चार गोले अगर उसे लग भी गये तो इतने से उसका कुछ बिगड़ेगा नहीं । परिणाम यह होगा कि तुम कभी भी यार्क लाइन के समीप नहीं पहुंच सकोगे ।”
“हम यार्क लाइन के समीप नहीं पहुंचेगे, यार्क लाइन हमारे समीप आएगा ।” - कार्ल प्लूमर आत्मविश्वासपूर्ण स्वर में बोला ।
“कैसे ?”
“यार्क लाइन से कुछ दूर पहुंचकर हम संकट का संकेत प्रसारित करने आरम्भ कर देगे कि हमारा जहाज डूब रहा है हमारी रक्षा करो । संकट संकेत प्राप्त होने पर याक लाइन हमारे समीप जरूर आयेगा । हम अपनी तोपें कैनवस से ढक कर रखेंगे । सुबह के अन्धकार में वह कभी नहीं जान पाएगा कि डैक पर तोपें लगी हुई हैं । एक बार समीप आ जाने के बाद वह वापिस भागने का फैसला नहीं कर सकता ।”
“फिर भी तुम सफल नहीं हो सकोगे ।” - यह जानते हुये भी कि स्कीम मास्टर पीस है, सुनील बोला ।
“क्यों ?” - कार्ल प्लूमर ने पूछा ।
सुनील ने कोई उत्तर नहीं दिया ।
“मिस्टर, तुम यही देखने के लिये जीवित रहोगे कि मैं सफल होता हूं या नहीं ।” - कार्ल प्लूमर बोला और द्वार से बाहर की ओर चल दिया ।
“एक मिनिट, प्लीज ।” - डाक्टर एक दम आगे बढ कर बोला ।
स्मिथ और कार्ल प्लूमर दोनों रुक गये ।
“क्या यह दरवाजा हम बन्द रख सकते हैं ?” - डाक्टर बोला ।
“क्यों ?”
“आपका आदमी बाहर बैठा सिगरेट पीता है और धुंआ भीतर आता है । फर्स्ट आफीसर के फेफड़े छलनी हुए पड़े हैं धुयें वाली हवा उसके गले में जाती है तो वह और तड़प जाता है ।”
“दरवाजा बन्द कर लो लेकिन भीतर से कुन्डा मत लगाना ।” - कार्ल प्लूमर बोला - “और कोई शरारत नहीं होनी चाहिये ।”
“किसी शरारत की गुंजायश ही नहीं । रास्ता तो ये ही है । कोई खिड़की के रास्ते समुद्र में तो छलांग लगायेगा नहीं और फिर यहां तो सभी ऐसे हैं जो अपने बिस्तर से हिल भी नहीं सकते ।”
“ओके ।” - कार्ल प्लूमर बोला और फिर स्मिथ के साथ बाहर निकल गया ।
डाक्टर ने द्वार बन्द कर दिया ।
“थैंक्यू डाक्टर ।” - सुनील बोला ।
“अपनी टांग की हालत के बारे में झूठ बोलने के बाद, मैंने सोचा, शायद तुम्हें यह स्थिति पसन्द न आये कि बाहर बैठा मशीनगन वाला यमदूत हर वक्त अपनी आंखें क्लीनिक के भीतर ही रखे ।” - डाक्टर बोला ।
“लेकिन वह मशीनगन वाला जब चाहे द्वार खोलकर भीतर झांक सकता है ।” सुनील अर्थपूर्ण स्वर में बोला ।
“उसका भी इन्तजाम किया जा सकता है लेकिन तुम करना क्या चाहते हो ?”
“मैं किसी प्रकार वायरलैस आफिस में पहुंचना चाहता हूं ।” - सुनील बोला ।
“उससे क्या होगा ?”
“मैं कार्ल प्लूमर के वायरलैस रिसीवर पर बैठे आदमी को किसी प्रकार अपने कब्जे में करके एक वायरलैस संदेश भेजना चाहता हूं कि लिंकन को शत्रुओं ने अपने अधिकार में कर लिया है और हमें सहायता की आवश्यकता है ।”
“तुम कभी सफल नहीं हो सकोगे ।” - डाक्टर निर्णयपूर्ण स्वर से बोला ।
“क्यों ?”
“वायरलैस आफिस की रखवाली के लिये कार्ल प्लूमर ने कम से कम छः आदमी तैनात कर रखे हैं और इस जख्मी हालत में तुम एक का भी मुकाबला करने के योग्य नहीं हो ।”
“लेकिन फिर भी कार्ल प्लूमर के हाथों खामखाह मरने से अच्छा है, मैं उसका मुकाबला करते हुये मरूं ।”
“देखो मिस्टर !” - डाक्टर गंभीर स्वर से बोला - “मैं तुम्हारी बात नहीं करता लेकिन जब मैं ग्रेगरी या जिसे तुम कार्ल प्लूमर कह रहे हो के हाथ की ड्रेसिंग करने गया था, उस समय उसने यात्रियों से वायदा किया था कि वह किसी को भी नुकसान नहीं पहुंचायेगा । सोना लूटकर लिंकन पर चढा लेने के बाद वह लिंकन के सारे आदमियों को यार्क लाइन पर चढा देगा ।”
“और आपने उसकी बात पर विश्वास कर लिया ?”
“अविश्वास वाली कौन सी बात है ?” - डाक्टर बोला - “आखिर उसे खामखाह इतने आदमी हलाल करने की आवश्यकता क्या है ?”
“आवश्यकता ?” - सुनील एकदम बोल पड़ा - “डाक्टर साहब इसे लिख लीजिये, अगर कार्ल प्लूमर अपने मिशन में सफल हो गया तो दोनों जहाजों के आदमियों की तो बात ही क्या, एक चूहा भी जिन्दा नहीं बचेगा ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि एक भी आदमी के जीवित बचने से यह बात प्रकाश में आ जाने का खतरा है कि यह जनरल ब्यूआ की करतूत है और एक बार अमेरिका को यह मालूम होने की देर है कि उसका सोना नेटसीकाप के डिक्टेटर जनरल ब्यूआ ने लूटा है कि अमेरिका के राकेट संसार के नक्शे पर से नेटसीकाप का नाम मिटा देंगे । उस समय नेटसीकाप को रूस तो क्या भगवान भी नहीं बचा सकेगा ।”
डाक्टर सोच में पड़ गया ।
“कार्ल प्लूमर ने इस बात का पूरा इन्तजाम कर लिया है कि इस सारे किस्से से सम्बन्धित एक भी आदमी जीवित न बचे ।”
“क्या ?”
“हमारे देश के डाक्टर चन्द्रशेखरन नाम के एक वैज्ञानिक ने डेस्ट्रायर नाम के एक भयानक शस्त्र का अविष्कार किया है । एक डेस्ट्रायर एक वर्गमील के क्षेत्र में से मानव, वनस्पति वगैरह का समूल नाश कर देने की क्षमता रखता है । कार्ल प्लूमर डाक्टर चन्द्रशेखरन और उसके अविष्कार को भारत से चुरा लाया है और मुझे पूरा विश्वास है कि डाक्टर चन्द्रशेखरन और डेस्ट्रायर दोनों ही जहाज के चार नम्बर कार्गो होल्ड में रखे ताबूतों में बन्द हैं । कार्ल प्लूमर डेस्ट्रायर से ही हमारा और यार्क लाइन के लोगों का खातमा करने वाला है ।”
“लेकिन अगर वह ऐसा करना ही चाहता है तो इसमें डेस्ट्रायर ही क्यों महत्त्वपूर्ण है ? यह काम तो कोई भी बम कर सकता है ।”
“डेस्ट्रायर आवश्यक है क्योंकि वह ही एक वर्गमील के क्षेत्रफल में समूल नाश की गारन्टी है । द्वितीय महायुद्ध में ऐसा कई बार होता देखा गया है कि जहाज पर बमों की लगातार वर्षा और बमों के सीधे वायलर में जाकर गिरने के बावजूद भी जहाज पर मौजूद एक दो आदमी बच ही गये थे । कार्ल प्लूमर ऐसा रिस्क नहीं ले सकता । इस बार तो अगर एक भी आदमी बच गया तो वह नेटसीकाप के बच्चे-बच्चे के लिये मौत का परवाना साबित हो जायेगा ।”
डाक्टर गंभीर स्वर से बोला - “अगर यह सच भी है तो भी तुम्हारा तो कोई भी प्रयत्न आत्महत्या जैसा है ।”
“डाक्टर, अगले कुछ घंटों में मौत तो निश्चित है ही । कुछ घंटे कम जिये या ज्यादा, क्या फर्क पड़ता है । तुम अपना काम करो, मैं अपना काम करने की कोशिश करता हूं ।”
“ओके ।” - डाक्टर बोला । वह एक बार अपने दवाखाने में गया और फिर बाहर निकल आया ।
उसने क्लीनिक का द्वार खोल दिया ।
मशीनगन वाला एकदम उठ खड़ा हुआ ।
“क्या है ?” - वह अवज्ञापूर्ण स्वर से बोला ।
“जरा अपने साहब को बुला सकते हो ?” - डाक्टर बोला ।
“क्यों ?”
“उनसे काम है ?”
“कोई काम नहीं है । सुबह होने से पहले यहां कोई नहीं आयेगा ।”
“अच्छा !” - डाक्टर निराश स्वर से बोला और वापिस क्लीनिक की ओर मुड़ा ।
भीतर आकर द्वार बन्द करने से पहले डाक्टर का बांया हाथ खुला और क्षण भर के लिये सुनील को मशीनगन वाले के चेहरे के सामने एक सफेद पाउडर सा उड़ता दिखाई दिया फिर एक छींक सुनाई दी । आधे मिनट से भी पहले बाहर लकड़ी के फर्श पर धड़ाम से कुछ गिरने की आवाज आई ।
“इतनी जल्दी असर करने वाला पाउडर नहीं देखा होगा ।” - डाक्टर बोला - “एक घन्टे से पहले तो अब वह अपनी उंगली भी नहीं हिलायेगा ।”
“एक घन्टा मेरे लिये बहुत समय है ।” - सुनील बोला - “अब आप मेरी पट्टियां खोलिये ।”
डाक्टर के सिद्धहस्त हाथ काम करने लगे । कुछ ही क्षण बाद सुनील की टांग पट्टियों से मुक्त हो चुकी थी ।
सुनील बिस्तर से उठ खड़ा हुआ । उसने अपने दोनों पांव जमीन पर टिकाये और उठने के लिये टांगों पर जोर डाला ।
उसके मुंह से एक दर्द भरी सिसकारी निकली और वह धड़ाम से फर्श पर आ गिरा ।
डाक्टर ने लपक कर उसे सहारा दिया ।
“घायल टांग तो जमीन से लगती ही नहीं है । एकदम निकम्मी हो गई है यह !” - सुनील डाक्टर का सहारा लेकर लड़खड़ाता हुआ उठा ।
“मिस्टर !” - डाक्टर चिंतित स्वर में बोला - “तुम्हारे में तो खड़े होने की भी शक्ति नहीं है । बहुत खून बह चुका है । तुम कुछ भी कर पाने की स्थिति में नहीं हो ।”
“लेकिन मुझे कुछ न कुछ करना ही है ।” - सुनील दृढ स्वर से बोला ।
रामू अपलक नेत्रों से सुनील को देख रहा था ।
“तुम खामखाह हीरो बनने की कोशिश कर रहे हो ।” - डाक्टर बोला - “यह कोई जासूसी फिल्म नहीं है जिसमें हीरो की हालत कितनी भी नाजुक क्यों न हो, उसे शत्रुओं को परास्त करता हुआ दिखाया जाता है ।”
“मजाक छोड़ो, डाक्टर । मेरी बात का जवाब दो ।”
डाक्टर की प्रश्नसूचक दृष्टि उसकी ओर उठ गई ।
“तुम्हारे पास मार्फिन है ?” - सुनील बिस्तर का सहारा लेता हुआ बड़े कष्टपूर्ण स्वर से बोला ।
“है ।” - डाक्टर सशंक स्वर से बोला - “उससे क्या होगा ?”
“डाक्टर, अपने कालेज की फुटबाल टीम का मैं सैंटर फारवर्ड था, इन्टर-यूनीवर्सिटी फाइनल में खेल समाप्त होने में केवल पन्द्रह मिनट रह गए थे और अभी तक स्कोर बराबर था । तभी मेरे पांव में मोच आ गई थी । मैं दर्द से मरा जा रहा था और खेलने योग्य नहीं रहा था । मेरे टीम से निकल जाने पर हमारे कालेज के जीतने की सम्भावना पच्चीस प्रतिशत रह जाती थी । उस समय मुझे याद है, मेरे कोच ने मुझे मार्फिन का इन्जेक्शन दिलवाया था और मैं बाकी के पन्द्रह मिन्टों में एक क्षण भी दर्द महसूस किये बिना ठाठ से खेला था ।”
“इसीलिये शायद अब भी तुम मार्फिन का इन्जेक्शन लेना चाहते हो, ताकि कुछ देर के लिये तुम में यह अनुभूति न रहे कि तुम्हारी टांग घायल है ?”
“हां ।”
“लेकिन, मिस्टर तुमने यह नहीं बताया कि मार्फिन का प्रभाव समाप्त होने के बाद तुम्हारी क्या हालत हुई थी ।”
“यह ठीक है कि बाद में मुझे पहले से दस गुना अधिक दर्द महसूस हुआ था और मुझे यूं लगा था जैसे मेरे शरीर से खून की आखिरी बून्द भी निचुड़ गई हो लेकिन” - सुनील धीमे स्वर से बोला - “मौके पर काम तो हो गया था ।”
“तुम्हारी हालत बहुत नाजुक है ।” - डाक्टर बोला - “मैं तुम्हे मोर्फीन देकर आत्महत्या के लिये प्रेरित नहीं करना चहाता ।”
“डाक्टर प्लीज ।” - सुनील अनुनयपूर्ण स्वर से बोला ।
डाक्टर ने कोई उत्तर नहीं दिया ।
“कम आन, डाक्टर ।” - रामू क्षीण स्वर से बोला - “डू व्हाट ही सेज (जो वह कहता है, करो ) ।”
डाक्टर ने एक हताशपूर्ण दृष्टि सुनील पर डाली और फिर लम्बे डग भरता हुआ दवाखाने में घुस गया ।
जब वह लौटा तो उसके हाथ में एक सिरिन्ज थी ।
“तगड़ा डोज होना चाहिये, डाक्टर ।” - सुनील बोला ।
“शटअप ।” - डाक्टर नाराज स्वर से बोला और उसने सुनील की बांह से इन्जेक्शन लगा दिया ।
“अब भगवान के लिये लापरवाही में ऊंघ मत जाना ।” - डाक्टर बोला - “वर्ना फौरन नींद आ दबोचेगी तुम्हें ।”
“मैं जानता हूं ।” - सुनील बोला और उठ खड़ा हुआ । इस बार वह तनिक लड़खड़ाया तो जरूर लेकिन गिरा नहीं । वह अपनी बांई टांग पर कम से कम भार डालता हुआ चलने लगा और बाहर निकल आया ।
पहरेदार बेहोश पड़ा था ।
सुनील ने उसके हाथ में से मशीनगन निकाल ली और फिर क्लीनिक के भीतर आ गया ।
“मशीनगन चला पाओगे ?” - उसने रामू से पूछा ।
“इसे तुम अपने लिये रखो ।” - रामू बोला ।
“तुम्हें ज्यादा जरूरत पड़ेगी ।” - सुनील उसे मशीनगन देता हुआ बोला - “इसे तुम रखो । कोई भी आदमी भीतर घुसे तो उसे शूट कर देना ।”
रामू ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
“मेरे लिये यह काफी है ।” - सुनील बोला और उसने आइस बाक्स के पास रखी बर्फ तोड़ने वाला सुआ उठा कर कोट की जेब में रख लिया ।
वह बाहर की ओर बढा ।
“मैं भी आ रहा हूं ।” - एकाएक डाक्टर बोला ।
“डाक्टर !” - सुनील ने प्रतिवाद किया ।
“बकवास मत करो ।” - डाक्टर डपटकर बोला - “अगर मुझे रोकोगे तो अभी कार्ल प्लूमर को तुम्हारे इरादों की सूचना दे आऊंगा ।”
“आप ऐसा करेंगे ?” - सुनील हैरानी से बोला ।
“अगर मुझे साथ ले जाने से इन्कार करोगे तो हां ।”
“लेकिन आप...”
“बहस नहीं ।”
“ओके, आइये ।” - सुनील लाचार स्वर से बोला ।
दोनों बाहर निकल आये ।
द्वार बन्द होने से पहले सुनील के कान में रामू का क्षीण स्वर पड़ा - “गुड लक, मैन ।”
दोनों डैक पर आ गये ।
डैक पर तोपें गाड़ी जा चुकी थीं और वे कैनवास से ढकी हुई थीं । जहाज बेहद तेज गति से चल रहा था इसलिये बुरी तरह से हिल रहा था । जहाज पर एक भी बत्ती नहीं जल रही थी । वह अन्धेरे पहाड़ की तरह आगे बढ रहा था ।
दोनों चुपचाप सीढियां चढते हुए ए डैक पर आ गये ।
सुनील ने अन्धकार में आंखें फाड़ फाड़ कर ऊपर वायरलैस आफिस की ओर देखा । आफिर का द्वार बन्द था और उसके सामने खड़े तीन साये दिखाई दे रहे थे ।
“मैंने कहा था या नहीं ।” - डाक्टर फुसफुसाया - “हमें तो तीन पहरेदार ही दिखाई दे रहे हैं, आसपास और भी होंगे और तुम एक बर्फ काटने वाले सुए के दम पर वायरलैस आफिस पर कब्जा करना चाहते हो ।”
सुनील चुप रहा । उसका मस्तिष्क बहुत तेजी से काम कर रहा था । अगर किसी प्रकार कार्ल प्लूमर उसके हत्थे चढ जाए उसने सोचा - तब भी तो काफी लाभ हो सकता है ।
“आइये ।” - वह गलियारे में बढता हुआ बोजा ।
“कहां ?”
“कार्ल प्लूमर के कमरे में ।”
डाक्टर उसके पीछे चल दिया ।
वहां भी अन्धकार था । एक पोर्ट होल खुला था । सुनील ने भीतर झांका लेकिन उसे कुछ भी दिखाई नहीं दिया ।
“बहुत अन्धेरा है ।” - सुनील फुसफुसाया ।
“मेरे पास टार्च है ।” - डाक्टर बोला और उसने एक फाउन्टेन पैन के आकार की टार्च सुनील की ओर बढा दी ।
सुनील ने टार्च का प्रकाश भीतर डाला । बाहर का कमरा एकदम खाली था । भीतर के कमरे का द्वार खुला था ।
उसने प्रकाश का रुख भीतर की ओर कर दिया ।
भीतर उस पलंग पर जिसमें से सुनील ने इयरफोन निकाला था, कोई लेटा हुआ था । सुनील ने उसके चेहरे पर प्रकाश डाला और एकाएक उसके मुंह से एक तेज सिसकारी निकल गई ।
पलंग पर होल्डन लेटा हुआ था । उसका शरीर रस्सियों की सहायता से पलंग के साथ बंधा हुआ था । उसके नेत्र मुंदे हुये थे । उसके चेहरे से फ्रेंच कट दाढ़ी मूंछ गायब थीं । उसके चेहरे का रंग अब अंग्रेजों जैसा गोरा नहीं था । प्रकाश में उसकी धूप में झुलसी हुई काली खाल स्पष्ट झलक रही थी लेकिन फिर भी कहीं कहीं गोरे रंग के चकते से दिखाई दे रहे थे जिसके कारण उसकी सूरत बेहद हास्यास्पद हो गई थी ।
वह डाक्टर चन्द्रशेखन थे । कर्नल मुखर्जी ने सुनील को उसकी कई तसवीरें दिखाई थी ।
“क्या हुआ ?” - डाक्टर ने पूछा ।
“होल्डन ही हमारे देश से भगाये हुये वैज्ञानिक चन्द्रशेखरन है ।” - सुनील बोला ।
सुनील ने टार्च बन्द कर दी और द्वार के समीप पहुंचा । उसे यह देखकर भारी निराशा हुई कि द्वार पर बहुत बड़ा ताला लटक रहा था ।
सुनील गलियारे से बाहर की ओर बढ गया ।
“अब कहां ?” - डाक्टर उसके साथ चलता हुआ बोला ।
“चार नम्बर कार्गो होल्ड में ।” - सुनील बोला - “मेरा एक अनुमान बहुत ही गलत निकला ।”
“कौन सा ?”
“मैं समझता था कि डाक्टर चन्द्रशेखरन और उसका अविष्कार चार नम्बर कार्गो होल्ड में रखे ताबूतों में बन्द होंगे लेकिन डाक्टर चन्द्रशेखरन तो होल्डन के रूप में हर समय हमारी आंखों के सामने थे । मैं देखना चाहता हूं कि उन ताबूतों में क्या है ?”
“मेरी एक बात समझ में नहीं आई ।” - डाक्टर बोला ।
“क्या ?”
“इन लोगों को डाक्टर चन्द्रशेखरन को साथ लाने की क्या आवश्यकता थी ?”
“क्योंकि केवल डाक्टर चन्द्रशेखरन ही डेस्ट्रायर को चालू करना जानता है ।”
“ओह ।” - डॉक्टर बोला - “लेकिन मिस्टर, डाक्टर चन्द्रशेखरन की सूरत छुपाने के लिये उसका मेकअप करके उन्हें होल्डन बना देने का तो कारण समझ में आता है लेकिन उन्हें लंगड़ा बनाने की क्या आवश्यकता थी ?”
“आवश्यकता थी ।” - सुनील बोला - “डाक्टर चन्द्रशेखरन का कद छ: फुट चार इन्च है । उनका हर समय व्हील चेयर पर बैठा रहना उनका असाधारण कद छुपाये रखने में काफी सहायक सिद्ध हुआ है और फिर उन्हें लाचार प्रकट करने से उनकी नर्स को, जो वास्तव में आदमी था, चौबीस घण्टे केबिन में रहने का मौका मिल जाता था जिससे वह हर समय लिंकन को मिलने वाले रेडियो सन्देश टेप कर सकते थे ।”
“आई सी ।” - डॉक्टर बोला और चुप हो गया ।
दोनों चार नम्बर कार्गो होल्ड के समीप पहुंच गये ।
कार्गो होल्ड की छत सामान रखने और निकालने के लिये किसी फाटक की तरह खुल जाती थी लेकिन उस समय बन्द थी । छत के एक कोने में एक दो फुट व्यास का छेद था । जिसमें से एक लोहे की सीढी सीधी नीचे लटकी हुई थी । छेद के ऊपर कैनवास का टुकड़ा पड़ा था ।
सुनील उस छेद के पास लेट गया । उसने कैनवस का थोड़ा सा भाग हटाया और छेद के भीतर झांका ।
भीतर घना काला अन्धकार छाया हुआ था ।
“कोई है ?” - उसने छेद में मुंह डालकर आवाज दी ।
भीतर से कोई उत्तर नहीं मिला ।
उसने भीतर टार्च का प्रकाश डाला ।
भीतर कोई नहीं था ।
उसने कैनवास हटा दिया और डाक्टर को नीचे ठहर जाने का संकेत किया ।
डाक्टर छेद में घुस गया ।
उसके पीछे ही सुनील ने भी भीतर कदम रख दिया ।
भीतर जाने के बाद उसने कैनवास को फिर छेद पर ही तान दिया ।
दोनों सीढी द्वारा नीचे कार्गो होल्ड में उतर गये ।
सुनील ने टार्च फिर जला ली ।
फर्श पर उन क्रेटों के तख्ते अब भी फैले हुए थे जिनमें से आदमी और तोपें निकली थीं ।
सुनील ने तख्तों के बीच में पड़ा एक बड़ा सा पेचकस उठा लिया । वह टार्च के प्रकाश को हर दिशा में फिराने लगा ।
एक स्थान पर उसे बड़ी-बड़ी पेटियों के बीच में ताबूत रखे दिखाई दे गये ।
सुनील उस ओर बढा । डाक्टर उसके पीछे था ।
जहाज बुरी तरह डोल रहा था । हर समय यही लगता था कि कोई पेटी अपने स्थान से लुढक कर उनके ऊपर न आ पड़े ।
सुनील ताबूतों के पास जा पहुंचा ।
उसने एक ताबूत के ढक्कन के पेज खोलने आरम्भ कर दिये ।
थोड़ी ही देर में ढक्कन ताबूत से अलग हो गया ।
सुनील ने टार्च का प्रकाश भीतर डाला ।
ताबूत में केवल लोहे की चादरें रखी थी । चादरों के अतिरिक्त भीतर कुछ नहीं था ।
उसने चुपचाप ढक्कन लगाया और पेंच दुबारा कस दिये ।
उसी प्रकार सुनील ने दूसरा ताबूत भी खोल लिया और फिर टार्च का प्रकाश भीतर डाला ।
“देखो डाक्टर !” - सुनील बोला ।
डाक्टर ने झुक कर देखा भीतर एक लगभग साढे छ: फुट लम्बा और एक फुट व्यास का एल्यूमीनियम का चमकदार सिलेन्डर रखा था । उसका आगे का आधा फुट भाग राकेट की तरह शंक्वाकार था ।
“यह है डेस्ट्रायर !” - सुनील बोला - “हम लोगों की मौत का परधाना । डाक्टर चन्द्रशेखरन का भयानक अविष्कार ।”
“क्या... क्या हम इसे नष्ट नहीं कर सकते ?” - डाक्टर ने कम्पित स्वर से पूछा ।
“क्या कर सकते हैं हम ?” - सुनील बोला - “इसका वजन, मुझे बताया गया है, कम से कम चार मन है और वह जरा सा भी उल्टा सीधा झटका लग जाने से एकदम फट सकता है । मैं घायल हूं आप वृद्ध हैं । क्या हम दोनों इसे एकदम स्थिर अवस्था में इस लोहे की पतली और एकदम सीधी सीढी के रास्ते ऊपर चढाकर बाहर समुद्र में फेंक पाने की क्षमता रखते हैं ?”
“नहीं असम्भव ।” - डाक्टर बोला ।
“इसका तो कुछ इन्तजाम वही कर सकते हैं, जिन्होंने उसे बनाया है और भगवान जाने वे भी कुछ कर सकते है या नहीं ।”
“तुम्हारा मतलब वैज्ञानिक से है ?”
“हां ।” - सुनील बोला ।
वह ताबूत के पेंच फिर कसने लगा ।
“लेकिन उसे यहां लाओगे कैसे ? द्वार पर तो मन भर का ताला लटक रहा है ।”
“कुछ तो करेंगे ही । पहले यहां से तो हिलें ।” - सुनील बोला ।
डाक्टर फिर नहीं बोला ।
सुनील ने ताबूत के ढक्कन का आखिरी पेंच कसा और उठ खड़ा हुआ । उसने पेचकस तख्तों के बीच में फेंक दिया और सीढी की ओर बढता हुआ बोला - “आइए ।”
डाक्टर उसके पीछे-पीछे चल दिया ।
सुनील सीढियां चढने लगा ।
वह कैनवास हटाकर बाहर निकल आया ।
उसने अपने चारों ओर देखा । कहीं कोई नहीं था ।
एकाएक उसके कानों में लकड़ी के फर्श पर भारी जूतों के पड़ने की आवाज सुनाई दी । आवाज बढती जा रही थी । कोई उसी ओर आ रहा था ।
“डाक्टर ।” - सुनील एकदम लेट गया और छेद के समीप मुंह ले जाकर बोला - “जल्दी, कोई इसी ओर आ रहा है ।”
डाक्टर जल्दी-जल्दी सीढियां चढने लगा । उसका सिर बाहर निकलते ही सुनील ने उसकी बांहें पकड़ कर उसे बाहर खींच लिया ।
पैरों की आहट और समीप होती जा रही थी ।
सुनील ने जल्दी से छेद को पहले की तरह कैनवास से ढक दिया ।
“जल्दी, सामने... लाईफ बोट के पीछे ।” सुनील बोला और दबे पांव सिर झुकाए डैक पर रखी नाव के पिछले भाग की ओर भागा ।
डाक्टर उसके पीछे था ।
दोनों नाव के पीछे पहुंचे ही थे कि उन्हें सामने से तीन आदमी आते दिखाई दिये । उनमें से एक के एक हाथ में तेज प्रकाश वाली टार्च थी और दूसरे में टामीगन थी । दूसरा आदमी कार्ल प्लूमर था और तीसरे को तो बिना प्रकाश के भी पहचाना जा सकता था । डाक्टर चन्द्रशेखरन की छ: फुट चार इन्च की असाधारण लम्बाई उनकी सबसे बड़ी पहचान थी । उनके सिर पर लाल बालों का विग अब भी मौजूद था ।
तीनों कार्गो होल्ड के छेद के समीप पहुंच गये ।
टामीगन वाले ने छेद पर के कैनवास हटा लिया ।
पहले डाक्टर चन्द्रशेखरन भीतर घुसे । उनके पीछे टामीगन वाला था और सबसे पीछे कार्ल प्लूमर था ।
सुनील सांस रोके खड़ा रहा ।
“आप यहीं रहियेगा ।” - कुछ क्षण बाद वह डाक्टर से बोला और लपक कर छेद के समीप आ गया ।
वह छेद के पास लेट गया और सावधानी से नीचे झांकने लगा ।
टार्च अब कार्ल प्लूमर के हाथ में थी टामीगन वाले ने टामीगन अपनी बगल में दबा ली थी और एक पेचकस से उस ताबूत के ढक्कन के पेच खोल रहा था जिसमें डेस्ट्रायर था ।
डाक्टर चन्द्रशेखरन ढीले से खड़े थे । उनके कन्धे आगे को झुके हुये थे ।
“मुझे यहां क्यों लाये हो ?” - सुनील को डाक्टर चन्द्रशेखरन की आवाज सुनाई दी ।
“आपसे एक प्रार्थना है, वैज्ञानिक महोदय !” - कार्ल प्लूमर चिकने-चुपड़े स्वर से बोला ।
“क्या ?”
“कृपया डेस्ट्रायर के फटने का टाइम आठ बजे पर फिक्स कर दीजिये ।”
“क्यों ?”
“फालतू प्रश्न पूछना आप जैसे महान आदमी को शोभा नहीं देता ।”
“तुम करना क्या चाहते हो ?”
“मैं क्या करना चाहता हूं, यह आप शीघ्र ही जान जायेंगे । फिलहाल आप वह कीजिये जो मैं कह रहा हूं ।”
“मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगा ?”
कार्ल प्लूमर कुछ क्षण चुप रहा और फिर एकदम कठोर स्वर से बोला - “यह मत भूलिये डाक्टर चन्द्रशेखरन कि जिन लोगों के सामने डेस्ट्रायर चुराते समय आपका विरोध काम नहीं आया वे इतने छोटे से काम के लिये आपका मुंह नहीं देखते रहेंगे । अभी भी आपको ट्रुथ सीरम का एक इन्जेक्शन देने का इन्तजाम किया जा सकता है । आप जानते ही हैं, वह इन्जेक्शन देने के बाद अगर आपको समुद्र में छलांग लगाने के लिये भी कहा जायेगा तो भी आप इन्कार नहीं करेंगे ।”
“तुम बेहद कमीने आदमी हो !” - चन्द्रशेखरन क्रोधित स्वर में बोले ।
“आपने यह टाईटल मुझे पहली बार नहीं दिया है और न ही आप पहले आदमी हैं जिसने मुझे कमीना कहा है लेकिन मैं यह सोचकर परवाह नहीं करता कि मेरे बारे में लोगों की राय गलत भी तो हो सकती है ।”
डाक्टर चन्द्रशेखरन चुप रहे ।
“अब जो मैं कह रहा हूं, वह करेंगे या मैं इन्जेक्शन मंगवाऊं ?”
डाक्टर चन्द्रशेखरन आगे बढे । उन्होंने टामीगन वाले के हाथ से पेचकस लगभग झटक लिया और फिर डेस्ट्रायर पर झुक गये ।
कार्ल प्लूमर संतुष्टिपूर्ण ढंग से सिर हिलाता रहा ।
डाक्टर चन्द्रशेखरन अपना काम करते रहे ।
“डेस्ट्रायर आठ बजे फटना चाहिये ।” - कार्ल प्लूमर ने उसे याद कराया ।
“कीप यूअर ब्लडी माउथ शट ।” - डाक्टर चन्द्रशेखरन भड़क कर बोले ।
“आई एम सारी, सर !” - कार्ल प्लूमर शराफत का पुतला बनता हुआ बोला ।
लगभग पांच मिनट बाद डाक्टर चन्द्रशेखरन उठ खड़े हुये । उन्होंने पेचकस फर्श पर फेंक दिया ।
“ओवर ?” - कार्ल प्लूमर ने पूछा ।
चन्द्रशेखरन ने कोई उत्तर नहीं दिया ।
“थैंक्यू, डाक्टर !” - कार्ल प्लूमर बोला और उसने टामीगन वाले को संकेत दिया ।
टामीगन वाले ने पेचकस संभाला और ताबूत का ढक्कन फिर ताबूत पर कस दिया ।
“साहब को इनके केबिन में छोड़ आओ ।” - कार्ल प्लूमर बोला ।
“यस सर !” - टामीगन वाला बोला ।
“वैज्ञानिक सर !” - वह डाक्टर चन्द्रशेखरन से बोला - “आपको जो तकलीफ हुई उसके लिये मैं माफी चाहता हूं ।”
“गो टू हेल ।” - डाक्टर चन्द्रशेखरन उच्च स्वर से बोले ।
कार्ल प्लूमर ने टामीगन वाले को संकेत दिया ।
“आइये साहब !” - टामीगन वाला डाक्टर चन्द्रशेखरन की बांह थामता हुआ बोला ।
डाक्टर चन्द्रशेखरन ने उसका हाथ झटक दिया और सीढी की ओर बढ गये ।
टामीगन वाले ने कार्ल प्लूमर की ओर देखा । कार्ल प्लूमर ने डाक्टर चन्द्रशेखरन की ओर संकेत करके अपनी गर्दन पर हाथ फेरा । टामीगन वाले ने सहमति सूचक ढंग से सिर हिलाया और डाक्टर चन्द्रशेखरन के साथ हो लिया ।
सुनील समझ गया, चन्द्रशेखरन की मौत आ गई है ।
सुनील उठ खड़ा हुआ और दबे पांव बोट के पीछे जा छुपा ।
डाक्टर ने एक प्रश्नसूचक दृष्टि उस पर डाली लेकिन मुंह से कुछ नहीं बोला ।
सुनील ने भी कुछ बताने का उपक्रम नहीं किया ।
डाक्टर चन्द्रशेखरन छेद में से बाहर निकल आये । उनके पीछे-पीछे टामीगन संभाले दूसरा आदमी भी था ।
डाक्टर चन्द्रशेखरन गैंगवे की ओर बढा ।
“इधर से आइये, साहब !” - टामीगन वाला बोला ।
“क्यों, इधर से भी तो रास्ता है ?” - डाक्टर चन्द्रशेखरन ने प्रतिवाद किया ।
“जहाज बड़ी तेज रफ्तार से जा रहा है इसलिये बुरी तरह हिल रहा है ।” - टामीगन वाला बोला - “गैंगवे से नीचे जा गिरने का खतरा है ।”
डाक्टर चन्द्रशेखरन उसके साथ डैक की ओर हो लिए ।
सुनील भी ओट में से निकलकर दबे पांव उनके पीछे चल रहा था ।
डैक के स्थान पर पहुंच कर पिछले आदमी ने एकाएक टामीगन को नाल की ओर से पकड़ लिया ।
सुनील ने अपने कोट की जेब से बर्फ काटने का सुआ निकाल कर मजबूती से हाथ में थाम लिया और दबे पांव उसकी ओर भागा ।
टामीगन वाले के दोनों हाथों में नाल की ओर से थमी टामीगन हवा में लहराई और बिजली की तरह डाक्टर चन्द्रशेखरन की खोपड़ी के पिछले भाग की ओर लपकी ।
लेकिन उससे पहले कि टामीगन चन्द्रशेखरन के सिर से टकरा पाती सुनील के हाथ में थमा सुआ मूठ तक उसकी गर्दन में जा घुसा ।
टामीगन वाले के मुंह से हाय भी नहीं निकली । उसके हाथ से टामीगन छूट कर लकड़ी के फर्श से जा टकराई । उसका शरीर लहरा गया लेकिन सुनील ने पहले ही उसकी कमर में हाथ डालकर उसे थाम लिया ।
टामीगन के फर्श से टकराने की आवाज चन्द्रशेखरन के कानों में भी पड़ चुकी थी । उसने घूमकर पीछे देखा और पीछे का दृश्य देखकर चेहरे के भाव बिलकुल बदलने लगे ।
“चुप !” - सुनील एकदम बोला - “अगर आप जीवित रहना चाहते हैं तो बोलियेगा मत ।”
“क्या क्या बात...”
“चुप रहिये ।” - सुनील फिर बोला ।
सुनील ने टामीगन वाले का दिल टटोला । वह मर चुका था ।
“अगर मैं समय पर नहीं पहुंच जाता तो अभी तक आपके परखचे उड़ गये होते ।” - सुनील संयत स्वर से बोला ।
डाक्टर चन्द्रशेखरन जो अब तक स्थिति समझ चुके थे, धीरे से बोले - “तुम कौन हो ?”
“मैं भारतीय सीक्रेट सर्विस से सम्बन्धित हूं । आप ही के छुटकारे के लिये यह सब पापड़ बेल रहा हूं ।”
“ये आदमी मर गया ?”
“हां ?”
“अब इसका क्या करोगे ?”
“यही तो समस्या हो गई है ।” - सुनील चिंतित स्वर से बोला - “अगर यह आदमी कार्ल प्लूमर को बताने नहीं गया कि वह आपका काम तमाम कर गया है तो वह सन्दिग्ध हो उठेगा और इसकी तलाशी शुरू करवा देगा ।”
“इसे समुन्द्र में फेंक दो ।”
“वह तो करूंगा ही लेकिन इसका एकाएक गायब हो जाना भारी सन्देह का कारण बन सकता है ।”
“तो फिर ?”
“फिर यह कि मेरी टांग घायल है । मैं अकेला इसके शरीर को घसीट कर समुन्द्र में नहीं फेंक सकता । आप मेरी सहायता कीजिये ।”
“ओके ।” - डाक्टर चन्द्रशेखरन बोला ।
दोनों ने उसकी लाश घसीटकर समुन्द्र में फेंक दी ।
“अब आप अपना यह लाल बालों वाला विग उतारिये ।” - सुनील बोला ।
“क्या ?”
“अपना विग उतारिये ।”
“बरखुरदार तुम्हारा क्या ख्याल है बाकी सारा मेकअप अपने चेहरे से उतार देने के बाद भी मैंने अभी तक विग क्यों नहीं उतारा है ।”
“मैं आपकी बात समझा नहीं ।”
“यह विग मेरी खोपड़ी से चिपका हुआ है । यह नहीं उतर सकता ।”
सुनील कुछ क्षण चुप रहा और फिर निश्चयपूर्ण स्वर से बोला ।
“आई एम सारी, सर चाहे आपकी चमड़ी उखड़ जाये, विग आपको उतारना ही पड़ेगा ।”
“नो ।” - डाक्टर चन्द्रशेखरन भयभीत स्वर से बोला ।
सुनील ने लपक कर उसकी गरदन के आस-पास अपनी बांहें लपटे ली । उसने उसी बांह के हाथ से उसका मुंह दबाया और दूसरे हाथ से विग पकड़ कर उसे पूरे जोर से झटका दिया ।
विग उतरता चला गया ।
डाक्टर के गले से निकलने वाली चीख उनके गले में ही घुटकर रह गई ।
सुनील ने देखा, विग के भीतरी भाग के साथ डाक्टर चन्द्रशेखरन के कितने ही सफेद बाल उतर आये थे और कुछ खून की बूंदे दिखाई दे रही थी ।
जब डाक्टर चन्द्रशेखरन ने दर्द से बिलबिलाना बन्द कर दिया तो सुनील ने उसे छोड़ दिया ।
“ओह गाड ।” - डाक्टर चन्द्रशेखरन लम्बी सांस लेता हुआ बोला ।
सुनील ने विग डैक की रेलिंग के पास रख दिया और साथ ही बड़ी लापरवाही से टामीगन फेंक दी ।
“मेरे साथ इतनी निर्दयता से पेश आने का क्या फायदा हुआ ?” - डाक्टर चन्द्रशेखरन क्रुद्ध स्वर से बोले ।
“बहुत फायदा हुआ ।” - सुनील सन्तुष्ट स्वर में बोला - “अब अगर कार्ल प्लूमर रेलिंग के पास आपका विग और टामीगन पड़ी देखेगा तो यही समझेगा कि आप सावधान हो गये थे और अपने हत्यारे से जान बचाने के लिये उससे भिड़ गये थे । उस लड़ाई में आपका विग उखड़ गया उसकी टामीगन हाथ से निकल गई और आप दोनों एक दूसर से उलझे-उलझे समुद्र में जा गिरे ।”
“ओह !” - डाक्टर चन्द्रशेखरन बोले ।
“यहां से हिलिये !” - सुनील बोला - “कार्ल प्लूमर किसी भी क्षण कार्गो होल्ड से बाहर निकल सकता है ।”
“कहां ?”
“मेरे साथ आइये ।”
डाक्टर चन्द्रशेखरन उसके साथ हो लिये । दोनों फिर नाव के पीछे डाक्टर के पास जा छुपे और कार्ल प्लूमर के बाहर निकलने की प्रतीक्षा करने लगे ।
लगभग पांच मिनट बाद कार्ल प्लूमर बाहर निकला । उसने छेद को कैनवास से ढक दिया और डैक की ओर चल दिया ।
विग और टामीगन के पास वह कुछ क्षण ठिठका । फिर उसने दोनों चीजे उठा लीं । विग समुन्द्र में फेंक दिया और टामीगन बगल में दबाये वह ए डैक की ओर बढ गया ।
सुनील नाव के पीछे से निकल आया और फिर छेद के सामने पहुंच गया । उसने कैनवास फिर हटा दिया और नीचे उतरने लगा ।
“आइये ।” - वह उतरता हुआ बोला ।
डाक्टर चन्द्रशेखरन और डाक्टर भी उसके नीचे आ गये ।
सुनील ने तख्तों के बीच में पड़ा पेचकस फिर उठा लिया और कुछ ही क्षणों में उसने डेस्ट्रायर वाले ताबूत का ढक्कन फिर खोल दिया ।
“आइये चन्द्रशेखरन सर ।” - सुनील बोला ।
“मैं समझा नहीं ।” - डाक्टर चन्द्रशेखरन उलझन पूर्ण स्वर से बोला ।
“इसे निष्क्रिय कर दीजिये ताकि समय आने पर यह फट सके ।”
“यह नहीं हो सकता ।”
“क्यों ?” - सुनील के माथे पर बल पड़ गये ।
“क्योंकि एक बार समय के अनुसार इसका डायल सैट कर देने के बाद इसमें आटोमैटिक लाक लग जाता है और चाबी इस समय कार्ल प्लूमर की जेब में है ।”
“हे भगवान !” - निराशा से सुनील ने सिर ठोक लिया । उसे एकाएक यूं लगने लगा जैसे वह एक बेहद थका हुआ इन्सान हो, और सब कुछ भी कर पाने के लिये उसके शरीर में जान बाकी न रही हो ।
कई क्षण तीनों सन्नाटे की हालत में खड़े रहे ।
फिर एकाएक सुनील चौंक पड़ा - “आप लोग इसे ताबूत में से निकालने में मेरी सहायता कीजिये ।”
“क्या करोगे ?” डाक्टर चन्द्रशेखरन एकदम सशंक स्वर में बोले ।
“आप सहारा तो दीजिये ।”
“मिस्टर, अगर तुम्हारा इरादा इसे यहां से निकालकर और ऊपर ले जाकर समुद्र में फेंकने का है तो तुम एक बेहद घातक हरकत कर रहे हो चार मन का डेस्ट्रायर हम बिना किसी हरकत के या कोई ठोकर लगे ऊपर नहीं ले जा सकते जबकि जहाज भी इस बुरी तरह से हिल रहा है । डेस्ट्रायर समय से पहले फट जायेगा और...”
“आप चुप तो कीजिये ।” - सुनील चिढ कर बोला - “मैं इसे ऊपर नहीं ले जा रहा हूं ।”
“तो फिर ?”
“इसे बाहर निकलवाइये ।”
तीनों ने सावधानी से डेस्ट्रायर को बाहर निकाला और सुनील के निर्देशानुसार उसे एक अन्धेरे कोने में ले गये जहां कपास के गट्ठर पड़े थे । सुनील ने एक गट्ठर खोल डाला और वहां डेस्ट्रायर को इस प्रकार टिका दिया कि वह झटके से हिलाने पर यह फट न सके ।
“अब आपका इन्तजाम करना है ।” - वह डाक्टर चन्द्रशेखरन से बोला ।
“मेरा इन्तजाम ।”
“हां ! अगर कार्ल प्लूमर को पता लग गया कि आप जीवित हैं तो सब कबाड़ा हो जायेगा ।”
“मेरा क्या करोगे ?”
“यह !” - सुनील बोला और उसने एक नपा तुला भरपूर घूंसा डाक्टर चन्द्रशेखरन के जबड़े पर जड़ दिया । चन्द्रशेखरन का वृद्ध शरीर एक ही घूंसे की मार से भरभरा गया और अचेत होकर फर्श पर आ गिरा ।
“यह.. यह क्या किया तुमने ?” - डाक्टर हकलाया ।
“आप कृपया अपने आप पर कन्ट्रोल रखिये और देखते जाइये ।” - सुनील व्यस्त स्वर से बोला - “और हो सके तो मेरी सहायता कीजिये ।”
लगभग बीस मिनट बाद डाक्टर और सुनील चार नम्बर कार्गो होल्ड के बाहर डैक पर खड़े थे ।
“अब ?” - डाक्टर ने पूछा ।
“अब किसी प्रकार वायरलैस आफिस में घुसना है ।” - सुनील बोला ।
“अधिक समय नहीं है । पहरेदार अधिक से अधिक दस मिनट बाद होश में आ जायेगा ।”
“मुझ पर से भी मोर्फीन का प्रभाव घटने लगा है । अब मैं फिर टांग में दर्द महसूस करने लगा हूं ।”
“तुम चाहते क्या हो ?”
“मैं वायरलैस आफिस तक पहुंचकर एक सन्देश प्रसारित करना चाहता हूं ।”
“किसे ?”
“यार्क लाइन के कैप्टन को ।”
डाक्टर कुछ क्षण चुप रहा और फिर बोला - “चलो ।”
“कहां ?”
“वायरलेस आफिस ।”
“लेकिन वहां तो पहरेदार...”
“तुम आओ तो सही ।” - डाक्टर बोला ।
दोनों चुपचाप वायरलेस आफिस के एकदम नीचे जा पहुंचे ।
वायरलेस आफिस के द्वार पर तीन आदमी खड़े थे ।
डाक्टर ने अपनी जेब में से छः इन्च लम्बी नलकी निकाली और उसे पहरेदार की दिशा में करके फूंक मार दी ।
डाक्टर की करामाती पाउडर फिर हवा में उड़ने लगा ।
“थोड़ी देर के लिये सांस बन्द कर लो ।” - डॉक्टर बोला - “पाउडर यहां पहुंचेगा तो नहीं लेकिन फिर भी सावधानी रखनी चाहिये ।”
सुनील ने ऐसा ही किया ।
दो ही क्षणों में तीनों पहरेदार लड़खड़ा कर जमीन पर आ पड़े ।
“थोड़ी देर रुको ।” - डॉक्टर बोला - “पाउडर का प्रभाव हवा में से निकल जाने दो ।”
“डाक्टर, यू आर वन्डर फुल ।” - सुनील प्रसन्नतापूर्ण स्वर से बोला ।
“इस पाउडर की करामात यह है ।” - डाक्टर अपनी ही धुन में बोलता गया - “कि होश में आने पर शिकार यह अनुभव नहीं कर सकता कि उसे बेहोश किया गया था या वह स्वभाविक नींद सोया था ।
दो मिनट बाद वे दोनों वायरलैस आफिस के सामने जा पहुंचे ।
डॉक्टर ने द्वार को जरा सा खोला ।
भीतर उसकी ओर पीठ किये आपरेटर बैठा था ।
डाक्टर ने उस दरार में से थोड़ा सा पाउडर भीतर फूंक दिया ।
“यह क्या किया आपने ?” - सुनील व्यग्र स्वर में फुसफुसाया ।
“क्यों ?”
“आपने तो आपरेटर को भी बेहोश कर दिया । अब सन्देश कौन भेजेगा । मुझे तो वायरलेस सन्देश भेजना आता नहीं ।”
“मुझे आता है ।” - डॉक्टर शान्ति से बोला ।
सुनील ने चैन की सांस ली ।
दोनों भीतर घुस गये और द्वार बन्द कर लिया ।
डॉक्टर ने आपरेटर के कान से इयर फोन उतार कर अपने कान पर चढा लिया ।
तुम कागज पर सन्देश लिख दो मैं प्रसारित कर दूंगा । वह बोला ।
सुनील ने एक कागज और पेन्सिल उठा ली । उसने एक सन्देश लिखा और उसके नीचे लिख दिया अमरीकी यातायात मन्त्रालय के आफिस से वाइस एडमिरल द्वारा प्रसारित ।
डाक्टर ने यार्क लाइन का कोड साइन टेप किया और दूसरी ओर से उत्तर मिलते ही वह ‘अत्यावश्यक’ सन्देश प्रसारित कर दिया ।
उसने इयर फोन फिर आपरेटर के कान पर चढा दिया और दोनों बाहर निकल आये ।
वे चुपचाप वापिस क्लीनिक में लौट आये ।
पहरेदार अब भी बेहोश था ।
उन्हें देखते ही रामू के मुंह से शांति की एक दीर्घ नि:श्वास निकल गई ।
डाक्टर ने उससे मशीनगन ले ली और उसे बाहर पहरेदार की गोद में डाल दिया ।
सुनील बिस्तर पर लेट गया ।
***
होश आने पर सुनील ने स्वयं को एक स्ट्रेचर पर पाया । उसने देखा सुबह हो चुकी थी । समुद्र के बीचोंबीच लिंकन की बगल में लिंकन जितना ही लम्बा चौड़ा एक और जहाज यार्क लाइन खड़ा था । दोनों जहाजों को रस्से डालकर एक दूसरे के साथ बांधा हुआ था और उनके डेकों के बीच में लकड़ी के लम्बे-लम्बे तख्ते डालकर एक पुल बनाया हुआ था जिस पर से उस समय दो आदमी उसे स्ट्रेचर में डाले दूसरे जहाज की ओर ले जा रहे थे ।
लिंकन पर गाड़ी तोपों का रुख यार्क लाइन की ओर था । उन तोपों के आस पास कार्ल प्लूमर के आदमी हाथों में मशीन गन लिये खड़े थे । यार्क लाइन का सारा क्रियू यार्क लाईन के डैक पर लाइन लगाये खड़ा था । लिंकन के मुसाफिर और क्रियू के बचे खुचे लोग भी यार्क लाइन पर खड़े दिखाई दे रहे थे ।
सुनील के पीछे-पीछे ही दो स्ट्रेचरों पर रामू और लिंकन के फर्स्ट आफिसर को लाया जा रहा था ।
लिंकन पर लगी एक क्रेन की सहायता से यार्क लाइन के पिछले भाग में से कुछ पेटियां उठा-उठा कर लिंकन में रखी जा रही थी ।
सुनील ने घड़ी देखी । सवा सात बज गये थे ।
लिंकन के डैक पर बड़ी व्यवस्तता के भाव से कार्ल प्लूमर घूम रहा था और सबको चिल्ला-चिल्लाकर निर्देश दे रहा था ।
सुनील का स्ट्रेचर यार्क लाइन के डैक पर रख दिया गया । वह उठकर बैठ गया ।
उसके पीछे-पीछे ही रामू और फर्स्ट आफीसर के स्ट्रेचर भी पहुंच गये ।
लगभग पन्द्रह मिनट बाद बीस बड़ी-बड़ी पेटियां यार्क लाइन के डैक के पिछले भाग में से उठवाकर लिंकन पर पहुंचा दी गई थीं ।
उसके बाद ताबूत उठवाकर यार्क लाइन पर लाये गये ।
उनके पीछे-पीछे कार्ल प्लूमर भी था ।
“मैं आप लोगों से असुविधा के लिये माफी चाहता हूं ।” - वह विनयशील स्वर से बोला - “इन ताबूतों में अमेरिकन नागरिकों की लाशें हैं । मैं लाशों की तौहीन नहीं करना चाहता, इसलिये ये ताबूत भी मैंने यहां पहुंचा दिये हैं ताकि ये अमेरिका पहुंच जायें । मैंने लिंकन के यात्रियों से वायदा किया था कि अगर वे कोई शरारत नहीं करेंगे तो उनकी जान को कोई खतरा नहीं होगा । मुझे खुशी है कि मैंने अपना वायदा पूर्ण किया है और लिंकन के हर जीवित प्राणी को सुरक्षित यार्क लाइन पर पहुंचा दिया ।”
वह रामू के समीप पहुंचकर बोला - “मिस्टर, जी तो अब भी यही चाहता है कि अपने कुचले हुये हाथ के बदले में तुम्हारी समूची बांह उखाड़ लूं लेकिन मैं राग द्वेष जल्दी भूल जाने वाला आदमी हूं, इसलिये तुम्हें छोड़ रहा हूं ।”
“थैंक्यू !” - रामू व्यंगपूर्ण स्वर से बोला ।
“और इसी आधार पर आपकी भी जान बख्शी जा रही है, मिस्टर !” - वह सुनील से बोला ।
“मैं आपका यह अहसान जन्म जन्मान्तर नहीं भूलूंगा, साहब ।” - वह बोला ।
“और अब सज्जनों, मैं आप सब लोगों से अन्तिम विदा लेता हूं ।” - वह बड़े नाटकीय ढंग से सब के सामने झुका और वापिस लिंकन पर चला गया ।
दोनों जहाजों को बांधने वाले रस्से खोल दिये गये । लकड़ी के तख्तों का पुल उठा लिया गया ।
थोड़ी ही देर बाद लिंकन अथाह सागर के किन्हीं अनजाने रास्तों पर चल दिया ।
सुनील ने घड़ी देखी । आठ बजने में दस मिनट रह गये थे ।
“कैप्टन !” - सुनील ने यार्क लाइन के कैप्टन को आवाज दी - “प्लीज ।”
कैप्टन उसके समीप खड़ा हुआ और प्रश्नसूचक दृष्टि से उसे देखता हुआ बोला - “यस !”
“अगर आप अपने जहाज की, और जहाज पर मौजूद लोगों की सलामती चाहते हैं तो फौरन लिंकन की विपरीत दिशा में भाग निकलिये ।”
“क्यों ?” कैप्टन हैरानी से बोला ।
“लिंकन में एक भयानक एटामिक बम रखा है जो ठीक आठ बजे फट जाने वाली है । उसके विस्फोट से समुद्र के दो तीन मील के क्षेत्रफल में इतनी तबाही मचने वाली है और समुद्र की लहरें इतनी अधिक उत्तेजित हो जाने वाली है कि अगर यह जहाज यहीं खड़ा रहा तो निश्चय ही डूब जायेगा ।”
“सच कह रहे हो ?” - कैप्टन ने उसे अनिश्चित ढंग से देखते हुये पूछा ।
“अगर आप मेरी बात का विश्वास नहीं करते तो आठ बजते ही अन्जाम आप अपनी आंखों से देख लेंगे ।”
कैप्टन एकदम घूमा । उसने एक आफीसर से कुछ कहा । आफिसर कन्ट्रोलरूम की ओर भागा ।
दो ही मिनटों में यार्क लाइन लिंकन के विपरीत दिशा में भाग निकला ।
“अब भगवान के लिये उस ताबूत को खोलिये ।” - सुनील दो में से एक ताबूत की ओर संकेत करता हुआ बोला - “वर्ना एक आदमी की हत्या मेरे सिर पर होगी ।”
“उसमें तो लाशें हैं ।” - कैप्टन बोला ।
“लाश नहीं जीवित आदमी है ।” - सुनील बोला ।
कैप्टन फिर उलझन में पड़ गया लेकिन इस बार उसने बहस नहीं की । उसने एक आदमी को संकेत किया ।
पलक झपकते ही उसने ताबूत को उखाड़ डाला ।
ताबूत में से लाश जैसा सफेद चेहरा लिये डाक्टर चन्द्रशेखरन निकल आये ।
“शुक्र है आप मर नहीं गये ।” सुनील बोला - “हवा आने के लिये ताबूत के निचले भाग में चार पांच छोटे-छोटे छेद भी कर दिये थे मैंने ।”
लेकिन डाक्टर चन्द्रशेखकर ने शायद सुनील की बात नहीं सुनी । वह बुरी तरह से हांफ रहा था ।
उसी समय एक इतनी जोर का धमाका हुआ जैसे सैकड़ों मन बारूद में आग लग गई हो । सबकी नजरें धमाके की ओर घूम गई । लिंकन के परखचे उड़ गये थे और शोलों की लपटों से आसमान लाल हो उठा था ।
पन्द्रह मिनट में लोगों के देखते-देखते लिंकन समुद्र के गर्भ में समा गया ।
“लिंकन डूब गया ।” - फर्स्ट आफीसर गहरी सांस लेकर बोला ।
“और साथ ही अस्सी करोड़ डालर का शुद्ध सोना भी ।” - यार्क लाइन का कैप्टन बोला ।
“केवल जहाज ही ।” - सुनील बोला - “सोना नहीं ।”
“क्या मतलब ?” - कैप्टन के लिये सुनील एक पहेली बन गया था ।
“जो पेटियां लिंकन पर चढाई गई थी, उनमें सोना नहीं था ।”
“गलत, मिस्टर, उन्हीं में सोना था । पहले मैं भी यही समझता था कि सोना सामने के भाग में रखी उन बीस पेटियों में था जिस पर एयर कन्डीशनिंग की मशीनरी लिखा है । लेकिन कुछ ही घन्टे पहले इस जहाज पर यातायात मन्त्रालय से वाइस एडमीरल का एक सन्देश प्राप्त हुआ था कि सोने के लदान में भारी भूल हो गई है । सोना...”
“सोना आगे के भाग में रखी बीस पेटियों में नहीं, पीछे के भाग में रखी पेटियों में सबसे ऊपर की बीस पेटियों में है, यही न ?”
कैप्टन की आंख आश्चर्य से फट पड़ी ।
“तुम्हें कैसे मालूम ?” - वह हक्का बक्का सा बोला ।
“क्योंकि वह सन्देश वाइस एडमिरल के नाम से मैंने भेजा था । यातायात मन्त्रालय ने नहीं, लिंकन से, ताकि लुटेरा कार्ल प्लूमर धोखा खा जाये और वह धोखा खा गया । आपका सोना अभी जहाज पर ही है, कैप्टन साहब ।”
कैप्टन का चेहरा खुशी से दमक उठा । उसने कई आदमी चैक अप के लिये लगा दिये ।
“मेरा आपरेटर शत्रुओं से मिला हुआ था ।” - कैप्टन बोला - “उसने यह सन्देश रिसीव किया और सन्देश मुझ तक पहुंचाने के स्थान पर उसने वह सन्देश उस लुटेरे के हाथ में दे दिया । वही लुटेरा ही जाता हुआ मेरा अपमान करने के लिये वह सन्देश मुझे पकड़ा गया था । तभी मैं समझ गया था कि वे लोग पिछले भाग की पेटियां क्यों उठा रहे हैं । लेकिन अच्छा हुआ वह अपनी चाल में खुद मारा गया... मिस्टर भगवान जाने तुम कौन हो लेकिन मेरे लिये तो तुम एक हीरो से कम नहीं हो । इतनी बड़ी चोट हो जाने के बाद मैं तो शायद आत्महत्या ही कर लेता ।”
“इसी खुशी में आप जहाज किसी नजदीकी बन्दरगाह पर पहुंचाइये ताकि घायल प्राणियों की जान बच सके ।”
“किसी को कुछ नहीं होगा ।” - कैप्टन विश्वासपूर्ण स्वर से बोला ।
सुनील ने नेत्र बन्द कर लिये ।
सुनील रामू, और डाक्टर चन्द्रशेखरन वापिस भारत लौट आये । अखबार में उस अभियान की सफलता का जो विवरण छपा उसमें सी आई बी की स्पेशल ईन्टेलीजेन्स ब्रांच का या सुनील का या रामू का या गोपाल का कतई जिक्र नहीं था । अखबारों में सी आई बी के सुयोग्य जासूसों की शान में कसीदे पढे गये थे ।
अभियान के असली हीरो केवल अपनी ब्रांच के डायरेक्टर कर्नल मुखर्जी की ही तारीफी निगाहों के हकदार थे ।
सुनील के मिलने वालों के लिये विशेष रूप से रमाकांत, प्रमिला, रेणु और मलिक साहब के लिये यह सब भी एक रहस्य का विषय था कि सुनील पिछले बाइस दिन कहां रहा और लौटने के तीन महीने बाद तक भी वह लड़खड़ा कर क्यों चलता रहा ।
समाप्त