फिरोजशाह रोड पर करीब चार साल पहले जब दर्जनों दुकानों और मकानों को गिराकर एक विशाल बहुमंजिला इमारत बनाई गई तो 'ड्रिंक वैल' नामक एक घटिया बार और उससे जुडे ढाबा टाइप रेस्टोरेंट 'ईट मोर' के मालिक को मुआवज़े के तौर पर अपेक्षाकृत ज्यादा मोटी रकम दी गई थी । मालिक ने उसी पैसे से उसी सड़क पर थोड़ा आगे जाकर क्लब के रुप में बार–कम–रेस्टोरेंट शुरू कर दिया । वो चल निकला । जल्दी ही उसकी गिनती शहर के इस तरह के शानदार और सबसे महंगे स्थानों में होने लगी ।
क्लब का नाम था–गोल्डन क्राउन और मालिक था–करीम भाई दारुवाला और अब हालत यह थी कि डिनर की बात तो दूर रही वहाँ लंच के लिए भी रिजर्वेशन कराना पड़ता था ।
क्लब के सम्मुख टैक्सी से उतरते वक्त जलीस ने नोट किया कि सोनिया के चेहरे पर उलझन भरे भाव थे–उसके लिए कम, खुद अपने लिए ज्यादा । मानों वह तय नहीं कर पा रही थी कि उसके साथ ही रहे या वहाँ से भाग जाए ।
ड्राइवर को भाड़े के सत्तर रुपये की बजाय जलीस ने सौ रुपये का नोट दिया और सोनिया की बाँह थामे प्रवेश द्वार की ओर बढ़ गया ।
"जानते भी हो, कहाँ जा रहे हो ?" सोनिया पूछ ही बैठी ।
"हाँ । यह तुम्हारे ब्वॉय फ्रेंड का क्लब है । यहाँ तुम चीखोगी तो वह मेरी छाती पर आ चढ़ेगा ।"
"तुम वाकई होशियार आदमी हो ।"
"यह मैं पहले भी सुन चुका हूँ ।"
"तुम्हें डर नहीं लग रहा है ?"
" नहीं ।"
सोनिया ने सर्द निगाहों से उसे घूरा ।
"तुम्हें डरना चाहिए ।"
जलीस रुक गया ।
"तुमने कभी मुझे डरते देखा है ?"
"पुराने वक़्तों में तो नहीं देखा ।"
"अब भी नहीं देखोगी ।"
"तुम बहुत 'बड़े' हो ?"
"आजकल सभी मुझसे यह पूछते है और मैं उन्हें बताता हूँ ।" संक्षिप्त मौन के पश्चात् जलीस बोला–"इसलिए तुम्हें भी बता दूँगा । हाँ, मैं बहुत 'बड़ा' हूँ ।"
सोनिया की आँखों में पुनः उलझन पैदा हो गई ।
"तुम्हें कैसे पता चला कि यह करीम का क्लब है ?"
"मत भूलो कि मैं बहुत 'बड़ा' हूँ ।" जलीस ने मुस्कुराकर कहा और उसे साथ लिए क्लब में दाखिल हो गया ।
हैडवेटर पुराना और अनुभवी था । बंबई के ताजमहल होटल से उसे शहर के सबसे बड़े होटल 'पैराडाइज' के मैनेजमेंट द्वारा लाया गया था । वहाँ से ज्यादा वेतन और दूसरी सुविधाओं का लालच देकर 'गोल्डन क्राउन' द्वारा उसे तोड़ लिया गया था । वह गोआनी था और नाम था–जौनी फ्रेडरिक । डिनर के समय बार और रेस्टोरेंट में अपनी अधिकार सीमा में उसकी पूरी हुक़ूमत चलती थी । उसके द्वारा पहचान लिए जाने का सीधा सा अर्थ था–ऊंची चीज होने का सर्टिफ़िकेट पा जाना ।
मेन डाईनिंग रुम के प्रवेश मार्ग पर लगी चेन वहाँ हाउस फुल होने का संकेत दे रही थी । इसीलिए कीमती लिवास वाले काफी लोग लॉबी में खड़े मेजें खाली होने का इंतजार कर रहे थे । उनमें से कुछेक के हाथों में विस्की के गिलास थे जो एक सुंदर वेट्रेस द्वारा क्लब की ओर से ऑफर किए जा रहे थे ।
वैस्टर्न स्टाइल के मुताबिक वहाँ चैक रुम भी था । जलीस अपना रेनकोट और कैप वहाँ मौजूद लड़की को सौंपकर सोनिया की ओर पलटा । प्रत्येक पुरुष की प्रशंसापूर्ण निगाहों का केन्द्र बनी वह शांत एवं सामान्य थी, लेकिन उसकी आँखों में अजीब सी उत्सुकता थी यह देखने की, आगे क्या होगा और अगर वही हुआ जिसकी कि उसे अपेक्षा थी तो मखौल उड़ाने के लिए भी वह तैयार थी ।
लेकिन जो हुआ वो अनपेक्षित और उसे हैरान करने के लिए काफी था ।
जलीस उसे साथ लिए चेन के पास पहुंचा ।
जौनी भी वहीं खड़ा एक वेटर से बातें कर रहा था । उसने जलीस की ओर देखा, मुस्कुराते हुए सर हिलाया और चेन हटा दी ।
जलीस और सोनिया आगे बढ़ गए ।
जौनी सम्मानपूर्वक उन्हें एक मेज के पास ले गया और वहाँ रखी 'रिजर्वड' की वो तख्ती हटा दी जिस पर किसी और का नाम लिखा था ।
वो दोनों बैठ गए ।
जौनी ने स्वयं उनका आर्डर लिया और एक बार फिर मुस्कुराकर चला गया ।
सोनिया अविश्वासपूर्वक जलीस को देख रही थी ।
"तुमने तो कमाल कर दिया, जलीस ।"
"साथ रहोगी तो और भी बहुत कुछ देखोगी ।"
"तुम पहले तो कभी यहाँ नहीं आए ?"
"नहीं ।"
"फिर तुमने यह कैसे कर लिया ?"
"हैडवेटर्स को लोगों को जानने और समझने की ही तनख्वाह दी जाती है और तजुर्बेकार हैडवेटर्स इस काम को सही ढंग से अंजाम दिया करते है ।"
सोनिया असमंजस में फंसी नजर आ रही थी ।
"वह करीम को भी बता देगा ।"
"उसे बताना भी चाहिए ।"
ड्रिंक्स आ पहुँचे ।
फिर डिनर सर्व किया गया ।
खाने के दौरान भी दोनों लगभग खामोश ही रहे थे ।
इस बीच जौनी ने दो बार आकर पूछा कि किसी तरह की कोई कमी तो नहीं थी । जलीस ने कह दिया 'एवरीथिंग इज आल राइट' । आश्वस्त जौनी मुस्कुराता हुआ चला गया ।
डिनर की समाप्ति तक कुछेक मेजें खाली हो चुकी थीं ।
फिर करीम भाई दारुवाला प्रगट हुआ । वह और ज्यादा मोटा हो गया था । कीमती सूट और हीरे की अंगूठियाँ पहने होने के बावजूद हालांकि चेहरे मोहरे से वह मक्कार और घटिया किस्म का आदमी ही नजर आता था लेकिन उसके चलने का अंदाज ऐसा था मानों खुद को दुनिया का सबसे बड़ा आदमी समझ रहा था ।
उसके पीछे दो अन्य आदमी थे–सतर्क लेकिन गुलामों की तरह सर झुकाए । वे दोनों ही पेशेवर बदमाश थे ।
दारुवाला उनकी मेज पर आ पहुँचा । वह पहले सोनिया और फिर जलीस की ओर देखकर मुस्कुराया ।
हैलो डियर, जलीस बोला ।
अगर करीम ने जल्दी से हाथ उठाकर न रोक दिया होता तो जलीस के पीछे खड़े दोनों बदमाशों ने उसे उसी वक्त शूट कर डालना था । लेकिन जलीस जानता था करीम उन्हें फौरन रोक देगा
और उसकी मुस्कुराहट ने शेष चारों को भी बता दिया कि वह इस बात को जानता था ।
"इन्हें भी सामने ही बुला लो, करीम ।" वह बोला–
दारुवाला के मोटे चेहरे पर अभी भी मुस्कुराहट थी–दोस्ताना मुस्कुराहट । उसने संकेत किया तो हुक्म के गुलामों की तरह वे सामने आ खड़े हुए ।
उनमें से एक ऊंचे कद और इकहरे जिस्म का था और दूसरा औसत कद वाला था ।
जलीस ने उन दोनों की ओर सर हिलाया ।
"हरबंस...और शंकर कैसे हो तुम लोग ?"
सिर्फ शंकर यानि औसत कद वाले ने ही मुस्कुराने की कोशिश की ।
"तुम्हारा दोस्त दिल्ली और देहरादून में सजा काट चुका है, शंकर ।" जलीस ने कहा–"यह अच्छा पार्टनर नहीं है ।"
दारुवाला ने जलीस के कंधे पर हाथ रखा ।
"तुम मेरे आदमियों को जानते हो ?"
"हाँ । दोनों पहुँची हुई चीज हैं । लेकिन शंकर ज्यादा तेज है । इसे अपने काबू में ही रखना । इसका कहीं कोई पुलिस रिकॉर्ड नहीं है और यह किसी ऊंचे मुकाम पर पहुँचने के मौके की तलाश में रहता है ।"
शंकर ने उसे घूरा लेकिन बोला कुछ नहीं ।
"यह सही है, शंकर" करीम ने पूछा ।
"मैं आपके लिए काम करता हूँ, बॉस, और आप जानते हैं, मैं क्या कर सकता हूँ ।"
दारुवाला की मुस्कुराहट गहरी हो गई ।
"तुम इस आदमी से कभी मिले हो, शंकर ?"
"नहीं । अगर आप परिचय कराना चाहते हैं तो जरूर कराइए । मैं भी इसे जानना चाहता हूँ ।"
दारुवाला हँसा ।
"जलीस...जलीस खान ?"
"बोलो, कुछ और भी बोलो ।" जलीस ने कहा–"ताकि मुझे तुम तीनों को शूट करने का बहाना मिल सके । पहले तुम्हें, करीम फिर तुम्हारे इन दोनों जोकरों को बोलो, कुछ और भी बोलो ।"
करीम की हँसी में फौरन ब्रेक लग गया ।
"नहीं...जलीस ।" सोनिया फँसी सी आवाज़ में बोली ।
दोनों बदमाश एक कदम आगे आ गए ।
"इन जोकरों को मेरी तरफ से बता दो, करीम ।" जलीस बोला ।
"तुम दोनों बाहर जाओ ।" करीम ने कहा ।
"अगर आप कहें, बॉस...।" शंकर ने कहना आरंभ किया ।
"नहीं ।" करीम ने पुनः कहा–"तुम और हरबंस बाहर जाकर मेरा इंतजार करो ।" और हाथ हिलाकर उन्हें जाने का संकेत कर दिया ।
वे दोनों चले गए ।
करीम धीरे से एक कुर्सी खींचकर बैठ गया ।
"उन दोनों के साथ तुम्हें इस ढंग से पेश नहीं आना चाहिए, जलीस ।"
"क्यों ?"
"वे ऐसी बातें सुनने के आदी नहीं है ।"
"मैं नहीं मानता । यकीनी तौर पर मानने के लिए मैं खुद पता लगाऊंगा फिर तुम्हें बताऊंगा ।"
"तुम तो पहले से ही उनके बारे में काफी कुछ जानते मालूम पड़ते हो ।"
"हर एक जानने लायक चीज को मैं जानता हूँ ।"
करीम के होंठों पर फीकी सी मुस्कुराहट उभरी । सोनिया पर निगाह डालकर बोला–"मैं देख रहा हूँ, हम वापस पुराने वक़्तों में लौट गए हैं ।"
सोनिया का चेहरा तनावपूर्ण था ।
"करीम...।"
"परेशान मत हो, डीयर । हमारा पुराना दोस्त जलीस इतना तेज आदमी है कि आसानी से किसी को भी उलझा सकता है ।"
उसे इस ढंग से बातें करता देखकर जलीस मुस्कुराया ।
"अब तो तुम्हें सलीके से बातें करना भी आ गया है, करीम ।" वह बोला–"आना भी चाहिए क्योंकि अब तुम्हारे ऊँचे ठाठ जो हो गए हैं । पुराने वक़्तों में तो तुम शराब स्मगल करने वाले एक टुच्चे बदमाश हुआ करते थे । लेकिन अब सब बदल गया है । ऊँचे उठ गए हो ।
"तुम फसाद करना चाहते हो, जलीस ।"
"मैं फसाद से नहीं डरता ।"
"इसीलिए वापस इस शहर में आए हो ?"
जलीस ने अपनी कुर्सी की पुश्त से पीठ सटा ली ।
"फसाद या झमेले के लिए मुझे यहाँ आने की जरुरत नहीं थी । ये सब चीजें वहाँ भी बहुत थीं जहाँ मैं था । मैं टॉप पर था और आसानी से इन्हें निपटा दिया करता था । मेरे वापस आने की वजह यह नहीं है ।"
"फिर क्या है ?"
"असली वजह तुम खुद भी जानते हो ।"
"मैं तुमसे सुनना चाहता हूँ ।"
"मैं आर्गेनाइजेशन को अपने हाथों में ले रहा हूँ ।"
"यह तुम्हारा वहम है ।"
"नहीं, मैं ऐसा कर चुका हूँ ।"
करीम का चेहरा सुर्ख़ हो गया । मोटी गरदन तन गई और वह कुर्सी से उठने लगा ।
"हरामजादे, सड़क छाप, बेसमेंट के चूहे...।"
"याद करो करीम, तम्हारी दम पर गोली मारने वाला मैं ही था ।" जलीस ने नर्म लहजे में कहा–"उस वक्त और भी लोग वहाँ थे लेकिन मैंने किसी की परवाह नहीं की । यहाँ भी लोग मौजूद हैं और अब भी किसी की परवाह मैं नहीं करूँगा ।"
एकाएक मानों उसके शरीर को लकवा सा मार गया । वह आधा खड़ा होने की पोजीशन में था और उसी में रह गया ।
"बैठ जाओ, करीम ।"
करीम गहरी साँस लेकर बैठ गया और धीरे–धीरे सामान्य हो गया और अपनी इस हरकत पर शर्मिंदा सा नजर आने लगा ।
"तुम यहाँ सिर्फ डिनर के लिए ही नहीं आए थे ।" अंत में वह बोला ।
"नहीं, मैं तुमसे मिलने आया था । मैं बड़े–छोटे, बढ़िया–घटिया सभी आदमियों से मिल रहा हूँ और उन्हें बता रहा हूँ कि अब बॉस में हूँ इसलिए सीधा चलना ही उनके हक में बेहतर होगा । तुम्हें भी यही बताने आया था कि तुम्हारी चालों को मैं अच्छी तरह समझाता हूँ अगर तुम्हारा इरादा मेरे साथ रहने का है तो अदब से मेरे सामने हाजिर होना ।"
करीम हैरानी से उसका मुँह ताकने लगा ।
"तुमने पहले ही यह सब सोच लिया था ?"
"नहीं, रनधीर के मारे जाने के बाद सोचा था ।"
"मुझे तुम पर ताज्जुब हो रहा है, जलीस ।"
"नहीं होना चाहिए ।"
"यह ताज्जुब की ही तो बात है । इस वक्त आर्गेनाइजेशन इतनी बड़ी है कि पालिटिक्स और बिज़नेस के हर एक मामले में इसका दखल है । जब चाहे लाखों की खरीद फरोख्त आसानी से कर सकती है और तुमने आते ही इस पर कब्ज़ा कर लिया ।"
"हाँ ।"
दारुवाला ने अपने हाथ परस्पर बाँधकर मेज पर रखे और आगे झुक गया ।
"तुमने यह कैसे सोच लिया कि तुम आर्गेनाइजेशन को चला सकते हो ?"
"क्योंकि मैं इसे चला सकता हूँ ।"
"कैसे ?"
"जैसे रनधीर चलाया करता था । वह इसे चला सकता था मैं क्यों नहीं चला सकता ?"
दारुवाला ने मुस्कुराने की नाकाम कोशिश की ।
"तुम्हारा...पुराना पार्टनर रनधीर आर्गेनाइजर था ।"
"जानता हूँ ।"
"उसे संघर्ष करना पड़ा था । वह सख्तजान होने के साथ–साथ तकदीर का भी धनी था । सही वक्त पर सही आदमियों को इस्तेमाल करने में वह माहिर था । वह बेरहम आदमी था । दूसरों की जान लेने में उसे मजा आता था । कुल मिलाकर वह बड़ा ही अजीब किस्म का खतरनाक आदमी था ।"
"इन तमाम बातों को मैं ज्यादा अच्छी तरह जानता हूँ ।"
"इसे मज़ाक मत समझो, जलीस ।"
"तुम भी मुझे बहलाने की कोशिश मत करो, दोस्त ।"
"क्या मतलब ?"
"मेरी दिलचस्पी सिर्फ दूसरी वजह को जानने में है ।"
दारुवाला ने विचारपूर्वक उसे देखा ।
"कौन सी दूसरी वजह ?"
"जिसका अभी तक कोई जिक्र तुमने नहीं किया है । जलीस ने कहा और जौनी को बुलाकर सौ रुपए के दस नोट उसे थमा दिए–"टेक केयर ऑफ अवर बिल ।" फिर खड़ा हो गया–"आओ चलते हैं, सोनिया । अब हमारा यह मोटा दोस्त उन सभी बड़े आदमियों तक खबर पहुँचा देगा जो अभी तक नहीं सुन पाए है ।" उसने दारुवाला के सपाट चेहरे को घूरा–"उन सबको अच्छी तरह समझा देना दोस्त, अब बॉस मैं हूँ । मेरे हर हुक्म की उनको पूरी तरह तामील करनी होगी । अगर कोई मेरे रास्ते में रोड़ा बनने की कोशिश करता है तो उसे जान से हाथ धोना पड़ेगा । अपनी इस बात का यकीन दिलाने के लिए जल्दी ही दो–तीन बड़ी मछलियों को शूट करके मैं सैम्पल के तौर पर पेश करूँगा । इस बीच मुझे यह भी पता लगाना है कि रनधीर की हत्या किसने की थी । यह न तो मुश्किल काम है और न ही ज्यादा वक्त इसमें लगेगा । वैसे मैं चाहता हूँ, रनधीर के हत्यारे तुम निकलो, करीम । इस तरह मुद्दत बाद एक बार फिर तुम्हें शूट करने का मौका मुझे मिल जाएगा ।"
दारुवाला का चेहरा सुर्ख़ हो गया ।
"तुम पागल हो जलीस, और तुम्हारे इस पागलपन का अंजाम होगा–मौत । अगर तुमने गोली की जुबान बोलनी शुरु की तो कानून तुम्हें फाँसी के फंदे पर लटका देगा ।"
"यह तुम सिर्फ खुद को तसल्ली देने के लिए कह रहे हो । क्योंकि मेरे ख़ौफ़ से तुम्हारी जान सूखनी शुरु हो गई है ।"
"गैट आउट ।"
"आओ सोनिया ।" जलीस ने कहा ।
"अगर सोनिया चाहे तो यहाँ रुक सकती है ।"
"ऐसी गलती यह नहीं करेगी । यह मुझको मारा जाता देखना चाहती है । अगर मैं इसकी गैर–मौजूदगी में मारा गया तो यह खुद को कभी माफ नहीं कर सकेगी । कम ऑन, सोनिया ।"
दारुवाला ने सोनिया की ओर देखा ।
"तुम्हारा यहीं रुकना बेहतर होगा ।"
सोनिया ने सर हिलाकर इंकार कर दिया ।
"नहीं करीम, इसने ठीक ही कहा है । मैं अपने सामने इसे दम तोड़ता देखना चाहती हूँ ।" उसने गंभीर स्वर में कहा और अपना पर्स उठाकर खड़ी हो गयी ।
दोनों मेजों के बीच से गुजर कर दरवाजे की ओर बढ़ गए ।
दारुवाला ठहाका लगाकर हंस पड़ा ।
* * * * * *
बाहर अभी भी बूंदा–बाँदी हो रही थी ।
सोनिया की बाँह थामे जलीस इमारतों के साथ–साथ गोखले स्ट्रीट की ओर जा रहा था ।
दोनों खामोश थे ।
मुश्किल से दस मिनट बाद वे औसत दर्जे की एक बार में दाखिल हुए ।
अधेड़ बार टेंडर के अलावा वहाँ कोई नहीं था ।
जलीस ने दो कॉफी का आर्डर दिया और सोनिया को वहीं ठहरने के लिए कहकर कोने में बने टेलीफोन बूथ की ओर बढ़ गया ।
सोनिया के चेहरे पर पुनः अरुचिपूर्ण भाव उत्पन्न हो गए थे ।
कठिनता से पाँच मिनट में तीन फोन काल्स करके जलीस वापस लौटा । बार टेंडर कॉफी सर्व करके दूर काउंटर के सिरे पर बैठा टी.वी. देख रहा था ।
सोनिया कॉफी चुसक रही थी ।
जलीस ने उसकी बगल में बैठ कर अपना प्याला उठा लिया । उसने कॉफी खत्म की तो सोनिया ने पूछा–"अब कहाँ चलना है ?"
"कहीं नहीं, अभी यहीं बैठेंगे ।"
"क्यों ?"
"काम है ।"
"क्या ?"
"खुद ही देख लेना ।"
सोनिया ने जिद नहीं की ।
लगभग बीस मिनट बाद, छोटी–छोटी आँखों और बारीक मूंछों वाला सहमा सा एक आदमी वहाँ पहुँचा । जगह–जगह चिकनाई के दाग लगे उसके कपड़ों से पसीने और मैल की बू आ रही थी ।
"आओ प्रीतम ।" जलीस ने कहा और बगल में पड़े स्टूल की ओर हाथ से संकेत करके पूछा–"पैग मारोगे ?"
"नहीं," आगंतुक ने जवाब दिया ।
"पैसा चाहिए ?"
"नहीं, आपसे कुछ नहीं चाहिए । मुझे यहाँ आने के लिए कहा गया था इसलिए आ गया । आप बताइए, मुझसे क्या चाहते हैं ?"
"बैठो ।"
"बैठूँगा नहीं ।"
"तुम बैठोगे ।" जलीस ने उसकी बाँयी बाँह पकड़कर खींचा और अपनी बगल में स्टूल पर बैठा दिया और सोनिया को हिकारत से अपनी ओर देखती पाकर मुस्कुराकर बोला–"यह उन्हीं लोगों में से है जिन्हें तुम पसंद करती हो । जिनके बचाव के लिए अपना प्रभाव इस्तेमाल करती हो ?"
"अपना काम जारी रखो, जलीस । तुम सही नहीं कर रहे हो ।"
"शुक्रिया बेबी । मैं अपनी कोशिश जारी रखूँगा । मैं चाहता हूँ जब मैं मारा जाऊँ तो तुम्हें बेहद खुशी हो । इस मामले में हमारे इस दोस्त प्रीतम की बड़ी अहमियत है । ठीक है प्रीतम ?"
"मैं नहीं जानता आप क्या कह रहे हैं ।" प्रीतम ने कहा । वह हाथों से अपना पेट दबाए बैठा था ।
"तुम इस बेचारे से चाहते क्या हो जलीस ?" सोनिया ने तीव्र स्वर में पूछा ।
"कुछ नहीं बेबी, दरअसल प्रीतम मुझे एक कहानी सुनाने वाला है । जानते हो कौन सी कहानी प्रीतम ?"
प्रीतम ने नर्वस भाव से सर हिलाकर इंकार कर दिया ।
"ओ.के., मैं याद दिलाता हूँ । तुमने बताना है कि रनधीर की हत्या के बाद उसकी लाश तुम्हें कहाँ और कैसे मिली ?"
सोनिया चौकी और मुँह की ओर कॉफी का प्याला ले जाता उसका हाथ बीच में ही रुक गया ।
प्रीतम ने अपने हाथों का कंपन रोकने के लिए उन्हें परस्पर कस लिया और फौरन दरवाजे की ओर देखा । उसका आशय भांपकर जलीस ने सर हिलाया तो उसकी आँखों से बेचारगी झलकने लगी और वह कपड़ों के अंदर सिकुड़ सा गया ।
"म...मैं...।"
"हाँ, बोलो प्रीतम ।"
"मैं नहीं जानता, आप क्या कह रहे हैं । मैं सच कह रहा हूँ…।"
"ठीक है दोस्त ।" जलीस मुस्कुराया–"जरा अपनी बाँयी जेब में हाथ डालो ।"
प्रीतम का हाथ अपने कोट की जेब में सरक गया । वहाँ पड़ी चीजें टटोलते ही उसका चेहरा फक पड़ गया और उसने तुरंत उठना चाहा । लेकिन जलीस ने उसकी बहिं पकड़कर उसे बैठे रहने पर मजबूर कर दिया ।
प्रीतम बुरी तरह काँप रहा था ।
"क्या हुआ इसे ?" सोनिया ने पूछा ।
जलीस की मुस्कुराहट गहरी हो गई ।
"कुछ खास नहीं ।" वह चटखारा सा लेकर बोला–"मैने अपने इस दोस्त को कानून के झमेले में फँसाने का इंतजाम कर दिया है । यह हेरोइन एडिक्ट है । इसलिए मैंने कुछेक रोज के 'फिक्स' की खुराक, स्पून और सिरींज चुपके से इसकी जेब में डाल दिए थे । अब अगर पुलिस इसे पकड़ लेती है तो यह जेल में पहुँच जाएगा । ठीक पाँच मिनट बाद एक पुलिसमैन यहाँ आएगा और इसे अरेस्ट करके ले जाएगा । लेकिन अगर यह मुझे कहानी सुना देता है तो मुफ्त में इस 'माल' का मालिक बन सकता है ।"
सोनिया ने बड़ी ही हिकारत भरी निगाहों से जलीस को घूरकर मुँह फेर लिया ।
"तुम्हारे पास सिर्फ चार मिनट बचे है, प्रीतम ।" जलीस ने कहा–"क्या फैसला करते हो ?"
"आप किसी को बताएँगे तो नहीं ?" प्रीतम ने मरी सी आवाज़ में पूछा ।
"नहीं ।"
"म...मैंने रनधीर की हत्या नहीं की । वह पहले से ही वहाँ पड़ा था...मरा हुआ ।" प्रीतम कठिन स्वर में बोला–"उसके गले में बड़ा सा सुराख बना हुआ था ।" उसने अपने गले को थपथपाया जहाँ गरदन शेष शरीर से जुड़ती है–"मैंने उसकी घड़ी उतार ली । घड़ी ज्यादा बढ़िया नहीं थी । सिर्फ सौ रुपए में बिकी । उसका पर्स भी मैंने निकाला था । उसमें बारह सौ रुपए थे । उसकी एक जेब में भी चार सौ रुपए थे । मैने सब ले लिए और वहाँ से भाग गया । मुझे यकीन है कि किसी ने मुझे वो सब करते नहीं देखा था । बस यही है सारी कहानी ।"
"उसका पर्स कहाँ है ?"
"मैंने फैंक दिया था ।"
"कहाँ ?"
"मुझे वो जगह याद है ।"
"पर्स ढूंढकर अपने घर ले जाना और मेरे वहाँ आने तक उसे अपने पास ही रखना । समझ गए ?"
"समझ गया । आप जानते है...।"
"हाँ, मैं जानता हूँ तुम कहाँ रहते हो ।"
प्रीतम ने कुछ कहने के लिये मुँह खोला । फिर इरादा बदलकर स्टूल से उठा और साए की भांति निः शब्द चलता हुआ बाहर निकल गया ।
दरवाज़ा बंद हो जाने के बाद सोनिया जलीस की ओर पलटी । उसके चेहरे पर गहन असमंजसतापूर्ण भाव थे ।
"रनधीर अपने कमरे में मरा पड़ा पाया गया था ।" वह बोली ।
"वो बाद की बात थी ।"
"तुम कैसे जानते हो ?"
यह वही सवाल था जो प्रीतम की जुबान तक तो आ गया था मगर पूछने का साहस वह नहीं कर पाया था ।
"दुनिया में सिर्फ एक आदमी रनधीर के इतना करीब पहुँच सकता था कि उसके अपने ही घर में उसे शूट कर सके ।" जलीस ने कहा ।
"कौन ?"
"मैं... हनी । रनधीर अपने घर में भी अपनी सतर्कता में कभी कमी नहीं आने देता था । क्योंकि वह डर की हद तक इस वहम का शिकार था कि उसके अपने ही ईरानी कारपेट पर भी उसकी जान ली जा सकती थी । उसकी छोटी–छोटी कमजोरियों में से यह भी एक थी ।"
"तुमने वाकई बड़ी होशियारी से काम लिया, जलीस । तुम्हारी घुसपैठ काफी अंदर तक है ?"
"नहीं...इसकी वजह थी–शोहरत । उस घड़ी पर पीछे कुछ खुदा हुआ था और प्रीतम ने वो घड़ी एक ऐसे 'ब्लैक कोबरा' को बेची थी जो उसका मतलब जानता था...।"
"साफ–साफ बताओ ।"
"बरसों पहले वो घड़ी मैंने एक वॉच शॉप से चुराई थी और उसके केस के निचले भाग पर खुदवा दिया था 'टू रनधीर फ्रॉम जलीस ।' घड़ी ज्यादा बढ़िया या कीमती नहीं थी लेकिन रनधीर को वो बेहद पसंद थी । 'ब्लैक कोबरा' शहर के दूसरे सिरे पर कमसिन बदमाशों का एक गैंग है । घड़ी के पीछे खुदे उन शब्दों का मतलब वे जानते थे और 'ड्रग्स एडिक्टस' में एक बुरी आदत यह होती है कि मस्ती के आलम में वे अपना मुँह खोल बैठते हैं । इस तरह प्रीतम ने यह बात लीक कर दी फिर यह तेजी से मुझ तक पहुँच गई ।"
"कैसे ?"
"गुंडों–बदमाशों के भी अपने हीरो होते हैं । रनधीर ऐसा ही हीरो था और मैं एक पुराना घोड़ा हूँ जो अभी भी दौड़ रहा है ।"
"लेकिन पुलिस से नहीं ।" सोनिया ने तल्खी से कहा–"वे इस बारे में नहीं जानते थे ।"
"तुम अपने बचपन को भूल रही हो, बेबी ।" जलीस भी उसी के लहजे में बोला–"तुमने किसी महल में परवरिश नहीं पायी थी । गोविंदपुरी के जिस इलाके में मैं पला था वही तुम्हारा भी इलाक़ा था । उस दौरान तुमने भी कई बार चोरी की, चीजों की भी और पैसों की भी । चाहो तो यह भी बता सकता हूँ कि कब और कहाँ । इसलिए तुम भी जानती हो कि उन बदमाश छोकरों ने पुलिस को सही वाक़या नहीं बताना था और अपने पर्सनल हीरोज के मामले में तो उनका पुलिस के पास जाने का सवाल ही पैदा नहीं होता ।"
"ठीक कहते हो ।"
जलीस के संकेत पर बार टेंडर काफी के कंटेनर से और कॉफी सर्व करके वापिस दूर काउंटर के सिरे पर जा बैठा ।
करीब दस मिनट बाद एक लंबे–चौड़े आदमी ने बार में प्रवेश किया । उसकी चाल में अकड़ थी । उसने अपने रेनकोट के बटन खोलकर पैंट की जेबों में हाथ घुसेड़े तो उसकी पुलिस की वर्दी नजर आने लगी ।
सोनिया की ओर देखे बगैर वह बोला–"आप जाइए मैडम ।"
वह चुपचाप उठकर लेडीज टॉयलेट की ओर चली गई ।
"ले आए ?" जलीस ने पूछा ।
आगंतुक ने तह किए हुए दो कागज निकालकर उसे थमा दिए और चुटकी बजाने लगा ।
"थोड़ी देर सब्र करो, दोस्त ।" जलीस ने कहा, और कागज खोलकर ध्यानपूर्वक उन्हें पढ़ने लगा ।
अंत में उसने कागज मोड़कर जेब में रखे और सौ रुपए के नोटों की गड्डी से बीस नोट अलग करके उसे दे दिए ।
ठीक उसी क्षण सोनिया वापस लौटी और नोटों पर निगाह डालकर अपने स्टूल पर बैठ गई ।
उस आदमी के जाते ही सोनिया ने कड़ी निगाहों से जलीस को घूरा ।
"लेन–देन हो गया ?" वह बोली । धीमा होने के बावजूद उसका स्वर नफरत से भरा था ।
"हाँ ।" जलीस ने भी चुभते स्वर में जवाब दिया–"आजकल इसी तरह काम निकाले जाते हैं । जो चीज चाहिए उसे हासिल करने के दो ही तरीके है–खरीद लो या छीन लो । मैं ये दोनों ही तरीके अपनाता हूँ और जो चाहता हूँ हासिल कर लेता हूँ ।"
"हमेशा ?"
"हाँ, तुम भी इस बात को भूलना मत ।"
"इस दफा क्या हासिल किया है ?"
"रनधीर की मौत की पुलिस ऑफिशियल रिपोर्ट ।"
टिप सहित कॉफी का बिल चुकाकर जलीस खड़ा हो गया ।
सोनिया भी उठ गई ।
दोनों बार से बाहर आ गए ।
टैक्सी के इंतजार में खड़े जलीस ने देखा, सोनिया विचारपूर्वक उसे देख रही थी ।
"जलीस ।" अंत में वह बोली–"तुम आए कहाँ से हो ?"
"क्यों ?"
"क्योंकि तुम इस बखेड़े और गंदगी का एक हिस्सा हो । सभी एंगिल्स की जानकारी तुम्हें है । सभी जवाब भी तुम जानते हो । इस धंधे की हर ऊंच–नीच से तुम पूरी तरह वाक़िफ़ हो । तुम सड़क पर चलते हो तो तुम्हें देखने वाली हर एक आँख जानती है कि तुम दूसरे लोगों से बिल्कुल अलग हो । बेहद खतरनाक और कमीने । तुम्हारे जिस्म पर सर से पाँव तक एक ही चीज लिखी हुई है–मौत । मैं समझ नहीं पा रही हूँ, असल में तुम कौन हो और कहाँ से आए हो ।"
"अच्छा ?"
"रनधीर की वसीयत के बारे में भी मैने सुना था ।" उसके स्वर में तिरस्कार का पुट था–"तुमने दो दिन के अंदर यहाँ पहुँचना था । उसकी मौत की खबर देशभर के सभी बड़े अखबारों में छपी थी । इसलिए तुम्हें भी इस बारे में तभी पता लग गया होगा । फिर भी यहां पहुंचने में तुम्हें चार दिन लग गए । वो जगह कौन सी है जहाँ से यहाँ तक पहुँचने में चार रोज लगते है ?"
तभी एक खाली टैक्सी आती दिखाई दी । जलीस ने जवाब देने की बजाय उसे रोका और सोनिया को उसमें सवार करा दिया ।
"माला के पास जाकर उसका हाल पता करना और मेरे आने तक वहीं ठहरना ।" उसने कहा और दरवाज़ा बंद कर दिया ।
ज्यों ही टैक्सी ने रेंगना शुरु किया, सोनिया की दहशत से फैल गई आँखें लक्ष्य करके जलीस ने फौरन अपना सर बाँयी ओर झटक दिया । तत्क्षण उसके कंधे पर कोड़े का इतना भारी प्रहार हुआ कि अगर वो सर पर पड़ा होता तो सर के टुकड़े हो जाने थे ।
जलीस की पूरी दाँयी बाँह सुन्न हो गई थी । लेकिन इससे पहले कि दूसरा प्रहार किया जाता जलीस फुर्ती से तनिक घुमा और हमलावर की जाँघों के जोड़ पर ठोकर जमा दी । हमलावर शंकर पीठ के बल पीछे जा गिरा ।
सड़क पर फिसलती टैक्सी की पिछली खिड़की से सर निकाल आतंकित सोनिया अभी भी उधर देख रही थी । जलीस ने हाथ हिलाकर उसे आश्वस्त कर दिया और शंकर के कोड़े वाले हाथ को पैर से कुचलकर कार्नर की ओर बढ़ गया जहाँ एक खाली टैक्सी ट्रैफिक लाइट ग्रीन होने का इंतजार कर रही थी ।
पीछे एक औरत की चीख उभरी फिर उसने चिल्लाना शुरु कर दिया–"पुलिस...पुलिस...।"
* * * * * *
जिस इमारत में रनधीर की मृत्यु हुई थी वसीयत के मुताबिक अब वो जलीस खान की थी । हालांकि रनधीर और भी कई शानदार इमारतों का मालिक था लेकिन गोविंदपुरी के इलाके और उस इमारत से जज्बाती तौर पर जुड़ा होने की वजह से अपनी रिहाइश के लिए उसने उसी को चुना और नाम रख दिया था–फ्रेंड्स विला ।
अमोलक राय का इंतजार करता जलीस पूरे ब्लॉक पर निगाहें दौड़ा रहा था यह वही जगह थी जहाँ उसका, रनधीर का और दूसरे साथियों का बचपन और किशोरावस्था गुजरे थे ।
उस इलाके में कोई खास तब्दीली उसे नजर नहीं आई । वही गंध थी और वे ही दबी–दबी सी आवाजें ।
जलीस ने छत की ओर देखा । मुंडेर का वो हिस्सा अभी भी टूटा नजर आ रहा था जहाँ से उसने और रनधीर ने एक रात ईटें निकालकर दूसरे इलाके के उन बदमाशों पर बरसाई थीं जो उन पर हमला करने आए थे । फिर जलीस की निगाहें स्वयमेव स्ट्रीट लाइट के उस पोल की ओर चली गई जिसके नीचे हमलावर बदमाशों में से दो बुरी तरह जख्मी होकर गिरे थे । उनके बेहोश शरीरों से सड़क पर खून बहता रहा था । फिर पुलिस साइरनों की आवाजें सुनकर वह और रनधीर छतों पर भागते हुए उस इलाके से दूर जा पहुँचे थे । उस रात का वो वाक़या अपने आपमें इस लिहाज से अहम था कि उन पर पहली दफा गोलियाँ चलाई गई थीं और इस बात ने उनका दर्जा इतना ऊंचा कर दिया था कि इलाके में उन्हें बड़ा समझा जाने लगा था । अगले रोज भरत सिंह ने जो बंबई में तुकाराम भौंसले के गिरोह में रह चुका था, उनकी हौसलामंदी की खूब तारीफ की थी । फिर एक हफ्ते बाद उसने संगठित अपराधों के 'सिंडिकेट' के एक ओहदेदार गनपत राव के लिए उनसे काम कराना शुरु कर दिया था । तब उसे और रनधीर को पहली बार पता चला था कि ताकत का क्या मतलब था और पैसे से क्या कुछ किया जा सकता था...।
पुरानी यादों में खोया जलीस कदमों की आहट सुनकर पलट गया ।
अमोलक आ पहुँचा था । वह चाबियाँ देकर बोला–"महाजन ने काफी आना–कानी के बाद ही मुझे चाबियाँ दी हैं ।"
"तुमने बताया था उसे ?"
"हाँ, तुमने उसे बुरी तरह परेशान कर दिया है ।"
"यह सिर्फ शुरुआत है, अमोलक ।" जलीस ने कहा–"आओ ।"
सड़क पार करके इमारत के प्रवेश द्वार की ओर जाता जलीस जानता था उन्हें देखा जा रहा होगा । उस ब्लॉक के लोगों की निगाहों से ज्यादा कुछ छुपा नहीं रहता था । अपने दरवाज़ों और खिड़कियों से वे चुपचाप सब देखते रहते थे । वो सड़क उनके लिए एक स्टेज की तरह थी जहाँ जिंदगी के असली नाटक होते रहते थे–मार–पीट, चीख–पुकार, चाकू–बाजी, शूटिंग वगैरा की शक्ल में ।
"कल तक यहाँ पुलिस मौजूद थी ।" अमोलक ने कहा–"एक पुलिस मैन छत पर, एक यहाँ नीचे और दो सड़क पर गश्त लगाते हुए ।"
"वो पुलिस रुटीन था ।" जलीस ने कहा ।
"हाँ ।"
चार सीढ़ियाँ तय करके वे प्रवेश द्वार पर पहुंचे ।
जलीस ने ताला खोलकर अंदर प्रवेश किया और लाइट का स्विच ऑन कर दिया । रोशनी में जो नजर आया उसे हैरान करने के लिए काफी था । हालांकि वह जानता था, इमारत की भीतरी हालत बदल चुकी होगी लेकिन इतनी ज्यादा बदल चुकी होगी यह उसने नहीं सोचा था ।
प्लास्टिक पेंट से चमकती दीवारें, छत और सुरुचिपूर्ण ढंग से सजी मशहूर कलाकारों की ओरीजिनल आयल पेंटिंग्स । पुरानी सीढ़ियां गायब हो चुकी थीं । उनके स्थान पर पृष्ठ भाग में छोटी सी लिफ्ट लगी थी ।
अमोलक ने आगे बढ़कर एक अन्य दरवाज़ा खोला । कमरा सुसज्जित था लेकिन ज्यादा इस्तेमाल किया जाता नहीं लगता था । प्रत्यक्षतः वो ऐसी जगह थी जहाँ रनधीर उन लोगों से मिलता था जिन्हें अपने निजी आवास वाले कमरों तक नहीं ले जाना चाहता था । उन्हें वहीं थोड़ा एन्टरटेन करके चलता कर दिया करता था ।
"इस इमारत के बारे में बताओ, अमोलक ।"
"यह कुछ नहीं है ।" वह कमरे की ओर हाथ हिलाकर बोला–"तीन कमरे मुख्य रुप से बिजनेस के लिए इस्तेमाल किए जाते थे । रनधीर मलिक एक नौकर और एक नौकरानी को लगभग स्थायी रुप से यहाँ रखता था । रनधीर की मौत के बाद महाजन ने उनकी छुट्टी कर दी ।" जलीस ने कुछ कहना चाहा तो अमोलक ने सर हिला दिया–"वे आपको कुछ नहीं बता सकते थे । दोनों भाई–बहन थे–पैदाइशी गूंगे और बहरे । मिस्टर मलिक इसी तरह की एहतियात बरतते थे ।"
"अजीब बात है । मैं नहीं जानता था कि वह इस कदर होशियार था ।"
"यह गलती बहुत लोगों से हुई थी । इसीलिए उन्हें मिस्टर मलिक से हार माननी पड़ी ।"
"अच्छा ?" जलीस उपहासपूर्वक मुस्कुराया–"तुम रनधीर के साथ क्यों नहीं रहे, अमोलक ?"
"दरअसल जब मिस्टर मलिक इस मुकाम पर पहुँचने के लिए संघर्ष कर रहे थे तब उनका साथ देना और बात थी लेकिन इस मुकाम पर पहुँचने के बाद इस पर बने रहने की खास ख़ूबियाँ उनमें नहीं थी ।"
"फिर भी वह काफी अर्से तक जमा रहा ।"
"इसकी इकलौती वजह थी–उसका होशियार होना ।"
"और महाजन के पास क्या था ?"
"महाजन चालाक और दूर तक की सोचने वाला आदमी है । इस स्टेज पर उसी का पलड़ा भारी था ।"
"लेकिन दूसरे लोग खतरनाक है वे आसानी से बूढे महाजन का पत्ता साफ कर सकते थे ।"
"हो सकता है, मगर उस सूरत में उन्हें भी जल्दी मरना पड़ता । क्योंकि उनमें आपस में खून–ख़राबा जरुर होना था । सभी पहलूओं से सोचने के बाद महाजन का साथ ही मुझे अपने लिए सबसे ठीक लगा था ।"
"तुम्हारा मतलब है, मेरे आने से पहले तक ।"
"हाँ ।"
"और मौजूदा हालात के बारे में तुम्हारी क्या राय है ?"
उसका आशय समझकर अमोलक मुस्कुराया ।
"जाहिर है कि सभी खतरनाक समुझे जाने वालों का तुम सफाया कर दोगे जलीस । चालाकी करने वालों को भी तुम किनारे कर दोगे और उसी ढंग से काम करोगे जैसे सत्रह साल पहले तुमने और रनधीर ने योजना बनाई थी । यानि पूरी 'हुक़ूमत' की बागडोर तुम्हारे हाथों में आ जाएगी लेकिन सिर्फ कुछ अर्से के लिए । फिर वो तुम्हारे हाथ से जाती रहेगी । अगर तुम्हारा इरादा सिर्फ रनधीर के 'तख्त' को हासिल करना होता तो तुम हासिल कर सकते थे । लेकिन तुम्हारे वापस लौटने की असली वजह हत्यारे का पता लगाकर उससे बदला लेना है । इसमें कामयाब तो तुम हो जाओगे लेकिन इस चक्कर में खुद भी मारे जाओगे । अगर कानून तुम तक नहीं पहुंच पाया तो किसी की गोली जरुर पहुँच जाएगी ।"
"तुम मुझे खत्म कर सकते हो ?"
"मुझे ऐसा करने की जरुरत ही नहीं पड़ेगी ।"
"और मेरे मरने के बाद क्या होगा ?"
"तब मैं बॉस बन जाऊँगा क्योंकि तब तक ऐसा कोई भी आदमी नहीं बचेगा जो मेरा विरोध कर सके । उस वक्त तक मैं ही अकेला ऐसा शख्स बचूँगा जिसे पूरे ऑप्रेशन की मुकम्मल जानकारी होगी ।"
अमोलक का इस ढंग से सोचना इतना तर्कसंगत था कोई सोच भी नहीं सकता था वह झुग्गी–झोपड़ी की पैदावार था ।
"मान लो 'हुक़ूमत' पर कब्ज़ा करने के बाद इसे संभाले रहने में भी मैं कामयाब हो गया तब क्या होगा ?"
"वो भी मेरे हक में ठीक ही रहेगा । मैं 'तख्त' के एकदम पास रहूँगा लेकिन 'तख्त' के मालिक होने की वजह से टारगेट तुम रहोगे ।"
"तुम हर एक पहलू से सब सोच चुके हो ।"
"हाँ ।"
"ओ.के., अब तुम इस इमारत के बाकी कमरे दिखाओ ।"
"आओ ।"
दोनों लिफ्ट में सवार हो गए । पुलिस द्वारा जाँच किए जाने के स्पष्ट चिंह जगह–जगह मौजूद थे । फिंगर प्रिंटस उभारने के लिए छिड़का गया पाउडर और फर्श पर बिखरे सिगरेट के टुकड़े ।
पहले खंड पर बिलियर्ड रुम, बढ़िया किस्म की शराब की बोतलों से सजी बार और लाइब्रेरी थी । वहाँ भी पुलिस जाँच के चिंह साफ नजर आ रहे थे । क्योंकि पुलिस को यह छुपाने की कोई जरुरत नहीं थी कि वहाँ बारीकी से जाँच की गई थी । लेकिन जिस चीज की तलाश उन्हें थी या तो वो मिली नहीं थी या फिर वहाँ वो थी ही नहीं । हालांकि बिलियर्ड टेबल को खिसकाकर उसके पायों के नीचे भी देखने की कोशिश की गई थी ।
रनधीर की रिहाइश तीसरे खंड पर थी । उसकी मृत्यु भी वहीं हुई थी । उसकी अपनी शख्सियत की स्पष्ट छाप वहाँ हर एक जगह नजर आ रही थी । आरामदेह लेकिन बेमेल और भड़कीले लाल रंग का फर्नीचर । पैडेस्टल लैम्पों के नकली आबनूस वाले बेस की आकृति सहवासरत स्त्री–पुरुष की थी । फर्नीचर का प्रत्येक पीस नग्न स्त्रियों के हस्ताक्षर युक्त कामुकतापूर्ण रंगीन फोटुओं द्वारा सजा था । बार के लिए महोगनी और ब्रास का जरुरत से ज्यादा इस्तेमाल किया गया था । टी.वी. और रिकार्ड प्लेयर का कंबीनेशन बेमेल था । लापरवाही से जलती सिगरेट रख दिए जाने से बने निशान भी उनकी केबिनेट पर दिखाई दे रहे थे ।
इस सबको देखते जलीस को अजीब सा अहसास हुआ कि वह इससे परिचित था । लेकिन उसने फौरन ही इसे दिमाग से झटक दिया ।
वह डेस्क के पास पहुंचा ।
डेस्क की बगल में फर्श पर चाक द्वारा मानव शरीर की आकृति बनी हुई थी ।
"पुलिस को रनधीर की लाश यहाँ मिली थी ।" जलीस ने सपाट स्वर में पूछा ।
उसके लहजे से तनिक चौंक गया अमोलक बोला–"वह यहीं मरा था ।"
"नहीं, यहाँ नहीं मरा लेकिन उसकी लाश यहीं पायी गयी थी ।"
अमोलक चकराया । उसने पहले जलीस की ओर देखा फिर कारपेट पर बने सूखे खून के दागों से होती हुई उसकी निगाहें दरवाजे की ओर उठीं, वहाँ भी खून के सूखे दाग थे और दीवार पर खून से सने हाथ की छाप नजर आ रही थी ।
जलीस ने जेब से पुलिस रिपोर्ट की कापी निकालकर ध्यानपूर्वक पढ़ी । फिर उसे थमा दी ।
"पुलिस की थ्योरी है कि रनधीर को यहाँ शूट किया गया था । मरने से पहले वह इधर–उधर गिरता पड़ता रहा था । जिसकी वजह से यहाँ जगह–जगह खून फैल गया । पुलिस की राय के मुताबिक रनधीर का हत्यारा उसका कोई परिचित गैस्ट था ।"
अमोलक की निगाहें रिपोर्ट पर जमी थीं ।
"गलत ।" वह बोला–"न तो कोई भी रनधीर के इतना नज़दीक पहुँच सकता था और न ही रनधीर कभी किसी गैस्ट को इस खंड पर लाता था ।"
"तुम इस इमारत में आते रहे हो । इस कमरे में भी कभी आए थे ?"
"सिर्फ दो बार ।" पुर्ववत् रिपोर्ट पढ़ते अमोलक ने जवाब दिया–"उन दिनों रनधीर बीमार था और कुछ जरुरी लीगल काम आ पड़ा था । उसके और महाजन के बीचलायजन एजेंट की हैसियत से तब मैं यहाँ आया था । मेरी यहाँ मौजूदगी के दौरान उसका हाथ बराबर अपनी गन पर रहा था ।" उसने रिपोर्ट खत्म करके वापस लौटा दी ।
"रनधीर की मौत पिछली गली में हुई थी ।" जलीस ने कहा और डिटेल्स उसे बता दी । लेकिन यह नहीं बताया कि प्रीतम कौन था ।
अमोलक ने इस बारे में सोचा फिर सर हिला दिया ।
"यह पहेली मेरी समझ में नहीं आ रही है ।"
"अभी तो मेरी समझ में भी नहीं आ रही है, लेकिन आ जाएगी ।" कहकर जलीस ने पूछा–"वे रनधीर को क्यों मारना चाहते थे ?"
"वे...।"
"नहीं हत्यारा । मेरा मतलब है रनधीर की हत्या क्यों की गई ?"
"वह बॉस था ।"
"जानता हूँ ।"
"और बॉस हमेशा टारगेट होता है ।"
"क्यों ?"
"मैं सिर्फ अंदाजा लगा सकता हूँ ।"
"लगाओ ।"
"सुना है कि 'सिंडिकेट' अपना प्रभाव बढ़ा रहा है ।"
"लेकिन रनधीर का 'सिंडिकेट' से समझौता था ।"
"नहीं, रनधीर डरपोक आदमी था । सिंडिकेट को यह पता लग गया मालूम होता था...और डरपोक आदमियों से समझौता वे नहीं किया करते ।"
"तुम्हारा अंदाजा ठीक हो सकता है लेकिन इसमें एक गड़बड़ है । जिस ढंग से रनधीर की हत्या की गई थी वो सिंडिकेट के काम करने के ढंग से मेल नहीं खाता । इस तरह के मामले में वे लोग बाहर से पेशेवर हत्यारे को बुलाकर उसे कांट्रेक्ट दे देते हैं लेकिन उसे यह पता नहीं चल पाता कि उसकी सेवाएं प्राप्त करने वाला असली आदमी कौन है । वह अपना काम करके, तय की गई रकम लेता है और वापस चला जाता है । लेकिन कोई भी पेशेवर हत्यारा न तो हत्या के लिए बाईस कैलिबर जैसी लाइट गन इस्तेमाल करता है और न ही अपने शिकार को करीब दो फुट दूर जैसे कम फासले से गरदन में गोली मारता है । तुम जानते हो, पेशेवर हत्यारों द्वारा किए गए मर्डर आमतौर पर अनसॉल्वड रहते हैं ?"
"लेकिन इस केस में ऐसा नहीं है ।"
"हो सकता है ।"
"रनधीर की हत्या सफाई से की गई हत्या का एक ऐसा मामला है जिसमें पुलिस के लिए पेचीदगी पैदा करने की पूरी कोशिश की गई है और इसकी इकलौती वजह है, पुलिस नहीं जानती कि रनधीर यहाँ नहीं मरा था ।"
"पुलिस पता तो लगा सकती है ।"
"मैं नहीं समझता कि पुलिस इस मामले में कुछ और करेगी ।" जलीस ने लापरवाही से कहकर पूछा–"इतना चालाक कौन हो सकता था ? कौन था जो इस बुरी तरह रनधीर की जान का दुश्मन था ?"
"रनधीर के दुश्मनों की कमी नहीं थी ।"
"क्या उससे बेहद नफरत करने वाला कोई था ।"
"हर एक आर्गेनाइजेशन में बॉस से नफरत करने वाले भी बहुत होते है ।"
"ठीक कहते हो ।"
जलीस ने पुनः कमरे का निरीक्षण किया, फिर बैडरुम और बॉथरुम का और फिर किचिन में आ गया । इन सभी स्थानों पर बारीकी से तलाशी ली गई थी । पहले यह काम पुलिस ने किया था लेकिन बाद में किसी और ने भी किया था ।
जलीस ने अमोलक को बुलाकर फर्श पर बने वे निशान दिखाए जो स्टेंड के बगैर सीधे फर्श पर रखे रेफ्रिजेरेटर को आगे और फिर पीछे खिसकाए जाने से बने हुए थे ।
"इन निशानों का क्या मतलब है ?"
"ये फ्रिज को खिसकाए जाने से बने हैं ।" अमोलक ने जवाब दिया ।
"यानि यहाँ भी तलाशी ली गई थी ?"
"हाँ, लेकिन यह काम पुलिस का नहीं है ।"
"करैक्ट, पुलिस वाले इस ढंग से तलाशी नहीं लिया करते ।"
"ऐसी क्या चीज हो सकती है । जिसे फ्रिज के नीचे छुपाया जा सके ?"
"इतनी जगह में आसानी से आ जाने वाली कोई भी कीमती चीज हो सकती है ।" अमोलक विचारपूर्वक बोला–
"मसलन ?"
"हेरोइन या कोकीन का किलो या दो किलो का पैकेट भी हो सकता था । मगर रनधीर ऐसी चीजें यहाँ कभी नहीं रखता था ।"
"लेकिन वह ड्रग्स के धंधे में तो था ।"
"जहाँ तक मुझे जानकारी है इस धंधे में उसका रोल कमीशन एजेंट का होता था । बस बेचने वाले से लेकर ख़रीदार को सौंप दिया करता था ।"
"ज्वेल्स या कैश तो हो सकते थे ?"
"नहीं, ज्वेलस का धंधा रनधीर नहीं करता था । जहाँ तक कैश का सवाल है, वो भी नहीं हो सकता । रनधीर के सभी एकाउंटस हम हैंडल करते थे । वह पूरी तरह नंबर एक का धंधा करता था और बाक़ायदा इन्कमटैक्स देता था । क्योंकि आयकर विभाग के किसी लफड़े में पड़ना वह नहीं चाहता था ।"
"लेकिन उसके दो नंबर की आमदनी के सोर्सेज भी तो रहे होंगे ।"
"बिल्कुल थे और उनसे मोटी आमदनी भी होती थी । लेकिन उसका एक पैसा भी न तो वह अपने ऊपर खर्च करता था और न ही घर लेकर आता था । वो सारा पैसा आर्गेनाइजेशन के खाते में जाता था और उसी पर खर्च होता था ।"
"इसका मतलब है, कोई और ही चीज थी, जिसे तलाश करने के लिए फ्रिज को खिसकाया गया था ।"
"वो तो जाहिर ही है ।"
"ठीक है । उसका पता भी लग जाएगा, आओ ।"
दोनों वापस ड्राइंग रुम में आ गए ।
"मैं पहली दफा यहाँ आया हूँ फिर भी यह स्थान मुझे इतना परिचित क्यों लग रहा है, अमोलक ?" जलीस ने चारों ओर विचारपूर्वक देखते हुए पूछा ।
"पुराने दिनों की यादों में लौट जाओ । जवाब मिल जाएगा ।"
"मैं कोशिश तो कर रहा हूँ लेकिन...।"
अचानक उसे याद आ गया । भड़कीला लाल रंग, बेमेल फर्नीचर, नंगी तस्वीरें सब कुछ बिल्कुल पुराने वक़्तों जैसा था ।
"यह बेसमेंट में शुरु किए गए हमारे पुराने क्लब जैसा है । अगर इन तमाम चीजों को पुरानी और टूटी–फूटी हालत में बदल दिया जाए, चारों और धूल फैला दी जाए और बिजली की रोशनी की बजाय मोमबत्तियाँ इस्तेमाल की जाएं तो यह कमरा शुरुआती दिनों का 'प्रिंसेज पैलेस क्लब रुम बन जाएगा । ठीक है न ?"
"हाँ ।"
"रनधीर वाकई बड़ा जज्बाती था । उसकी पसंद और आदतों में कोई बदलाव नहीं आया था । वह खुद को उसी पुराने माहौल में महसूस करना चाहता था ।"
"नहीं...दौलत और ताकत के बावजूद उसका स्तर कुछ नहीं था ।"
उसके स्वर की गंभीरता ने जलीस को मुस्कुराने पर विवश कर दिया । अमोलक ने कड़ा और लंबा संघर्ष किया था और वह जानता था कि उसे कहाँ पहुँचना था । लेकिन अब उसके मत व्यक्त करने के अंदाज़ पर उसके मनोभावों का प्रभाव झलक रहा था । वह तेज दिमाग, स्वस्थ और कठोर था लेकिन खून–ख़राबा करने का हौसला उसमें नहीं था । उसकी इसी एक कमज़ोरी ने अब तक उसे लीडर बनने से एक कदम पीछे रखा था ।
"अब से मैं यहीं रहूँगा, अमोलक ।" वह बोला–"तुमने रोज़मर्रा के इस्तेमाल की जरुरी चीजों का इंतजाम कराना है और किसी से यहाँ की सफाई करानी है ।"
"यह सब पहले ही कराया जा चुका है, साहब ।" अमोलक ने सम्मानित स्वर में कहा ।
तभी टेलीफोन की घंटी बज उठी ।
जलीस ने रिसीवर उठा लिया ।
"यस ?"
लाइन पर पीटर का हाँफता सा स्वर उभरा ।
"जलीस ?"
"हाँ, बोलो ।"
"ध्यान से सुनो, मैंने अभी दो ऐसे आदमियों को देखा है जिन्हें मैं दिल्ली से जानता हूँ । उनमें एक का नाम अरमान अली है और दूसरे का फरमान अली । दोनों प्रोफेशनल किलर हैं और बहुत मोटी रकम लेकर काम करते हैं । रोशन और जगन के फर्जी नामों से वे 'शालीमार' में ठहरे है । जब वे अपने कमरों में चले गए तो मैंने वहाँ के टेलीफोन ऑप्रेटर को रिश्वत देकर उनकी टेलीफोन काल्स सुनने के लिए रजामंद कर लिया । उन्होंने सिर्फ एक ही काल की थी । शायद किसी पब्लिक काल बूथ में । दूसरी ओर से बोलने वाले आदमी ने बातचीत में तुम्हारा नाम लेते हुए सिर्फ इतना कहा कि तुम रनधीर के निवास स्थान पर हो ।"
"बातचीत तुमने भी सुनी थी ?"
"हाँ ।"
"तुम्हें कैसे पता चला कि काल पब्लिक टेलीफोन बूथ में की गई थी ।"
"बैक ग्राउंड से आते शोर से । वो बूथ रेलवे स्टेशन पर कहीं है । मेरा यह अनुमान गलत भी हो सकता है ।"
"उस आदमी की आवाज़ पहचानी तुमने ?"
"ओह नहीं, जलीस । सुनो, तुम वहाँ से गोल हो जाओ । वे तुम्हारी जान लेना चाहते हैं । दोनों बहुत खतरनाक आदमी है ।"
"मैं भी कम खतरनाक नहीं हूँ, पीटर ।"
"मेरे लिए क्या हिदायत है ? उनके साथ चिपका रहूँ ?" संक्षिप्त मौन के पश्चात पूछा गया–"अगर तुम चाहो तो मैं ऐसा कुछ भी कर सकता हूँ कि वे दोनों बुरी तरह बौखला जाएं ।"
"अभी उन्हें मत छेड़ो । अपना काम करने की कोई बहुत ज्यादा जल्दी उन्हें नहीं होगी । पहले वे खुद को सैटल करके आराम करेंगे ।"
"तो फिर मैं क्या करूँ ? तुम्हें टारगेट बनाया जा रहा है ।"
"तुम यहीं आ जाओ । इस बारे में इत्मीनान से बातें करेंगे ।"
"ओ.के."
दूसरी ओर से संबंध विच्छेद कर दिया गया ।
जलीस ने रिसीवर यथा स्थान रख दिया ।
"अमोलक ।" वह बोला–"दो पुराने और अच्छे आदमियों को बुलाकर यहाँ की निगरानी करने पर लगा दो और तुम घर चले जाओ ।"
अमोलक ने दो आदमियों को फोन करके हिदायतें दे दीं फिर चला गया ।
जलीस खिड़की के पास जा खड़ा हुआ ।
अमोलक को कार में सवार होकर जाता देखने के बाद उसने टी.वी. ऑन कर दिया और फर्श पर बैठकर पीटर का इंतजार करने लगा ।
करीब बीस मिनट बाद ।
डोरबैल की आवाज़ सुनते ही जलीस को याद आ गया । अमोलक ने बताया था कि नीचे का दरवाज़ा खोलने के लिए नीचे जाने की जरुरत नहीं थी । अमेरिकन स्टाइल के मुताबिक यहीं मौजूद बजर दबाकर उसे खोला जा सकता था ।
जलीस ने बजर दबा दिया ।
चंद क्षणोपरांत लिफ्ट ऊपर आने की धीमी आवाज़ सुनाई देने लगी ।
फिर कमरे के दरवाजे पर दस्तक दी गई ।
"कम इन ।" कहकर जलीस ने गरदन घुमाई ।
आगंतुक पीटर नहीं सुलेमान पाशा था ।
अपने दो साथियों सहित वह अंदर आ गया । अच्छे और कायदे के लिबास के बावजूद वे दोनों साफ पेशेवर बदमाश नजर आ रहे थे ।
फर्श से उठने की बजाय जलीस ने सोफा चेयर्स की ओर हाथ हिलाकर संकेत किया ।
"आओ, बैठो । बेतकल्लुफी के लिए माफी चाहता हूँ । दरअसल मुझे उम्मीद नहीं थी कि इस वक्त कोई आएगा ।"
सुलेमान पाशा ने उसे घूरा ।
"हम बैठने नहीं आए हैं, जलीस ।"
जलीस के होंठों पर हिंसक मुस्कुराहट खिंच गई ।
"अच्छा ? तुम्हें पता कैसे लगा कि मैं यहाँ हूँ ?"
"तुम्हारा पीछा करके कोई भी आसानी से पता लगा सकता था । तुमने अपनी गतिविधियों को छुपाने की कोई कोशिश नहीं की । तुम खुद चाहते थे कि तुम तक पहुँचा जाए लेकिन इसे अपनी चालाकी समझने की गलती मत कर बैठना ।"
"तुम मुझे यही बताने आए हो ?"
"नहीं ।"
"फिर ?"
"इस शहर से दूर जाने का तुम क्या लोगे ?" जलीस धीरे से पीछे खिसककर सोफे से सट गया । "यहाँ रहने से मुझे कई करोड़ का माल मिलेगा, दोस्त ।"
"बशर्ते कि तुम रनधीर की वसीयत की शर्तों को पूरा कर देते हो ।"
"और तुम चाहते हो, मैं अभी उस सबको बेच दूँ ?". "बिल्कुल नहीं ।"
"सब कुछ महाजन के पास रहने दो । उसे रखना और संभालना बड़ी भारी सरदर्दी के अलावा कुछ नहीं है । तुम उसकी एवज में नगद पैसा लो और चले जाओ । तुम्हें काफी मोटी रकम दी जायेगी ।
"कहाँ जाना होगा मुझे ?"
"जहाँ से तुम आए थे या फिर जहाँ भी जाना चाहो । लेकिन यहाँ से चले जाओ ।"
"रकम कौन देगा मुझे ?"
"इसकी फिक्र मत करो । रकम तुम्हें मिल जाएगी । चैक, ड्राफ्ट या नगद जैसे भी चाहोगे और बाद में कोई लफड़ा भी तुम्हारे साथ नहीं होगा ।"
"सौदा वाकई बढ़िया है ।"
"तुम्हें मंज़ूर है ?"
"नहीं ।"
"क्यों ?"
"इसलिए कि मुझे यहीं रहना पसंद है ।"
दोनों बदमाशों में छोटे कद वाला यूं मुस्कुराया मानों जलीस की अक्ल पर तरस आ रहा था ।
"पाशा साहब, अगर आप कहें तो हम इससे आपकी बात मनवा सकते हैं ।" वह बोला–"ऐसे आदमियों को सीधा करना हमें खूब आता है ।"
"इसे इजाज़त दे दो सुलेमान ।" जलीस ने कहा ।
सुलेमान का चेहरा गुस्से से सुर्ख़ हो गया । अपने साथी को हाथ हिलाकर खामोश रहने का इशारा करके वह बोला–"सीधा सौदा करने के बारे में क्या खयाल है, जलीस । तुम्हें इतनी मोटी रकम मिलेगी जितनी कि जिंदगी भर लगे रहने पर भी तुम नहीं कमा सकोगे । साथ में रनधीर की जायदाद और बिज़नेस भी तुम अपने पास रख सकते हो ।"
जलीस समझ नहीं पाया कि वह किस चीज को खरीदने की बात कर रहा था । लेकिन सुलेमान के खतरनाक इरादे को वह भांप चुका था । पेट पर रखे अपने हाथों को उसने थोड़ा नीचे खिसका लिया ।
"तुम किस चीज के सौदे की बात कर रहे हो ?" उसने पूछा ।
सुलेमान पाशा ने जवाब नहीं दिया उसका सुर्ख़ चेहरा और ज्यादा सुर्ख़ हो गया लेकिन बेहद गुस्से के बावजूद उसकी आँखों में भय झलक रहा था । इससे पहले कि गुस्से की हालत में वह अपने आदमियों को कोई हुक्म देता जलीस उन पर निगाहें जमाकर बोला–"अगर तुम दोनों में से किसी ने जरा सा भी हरकत की तो मैं तुम्हारी खोपड़ी में सुराख खोल दूँगा ।"
उनमें ऊँचे कद वाले के चेहरे पर उपहासपूर्ण भाव उत्पन्न हो गए ।
"इतनी फूर्ती तुम नहीं दिखा सकते ।" उसने कहा और बैल्ट में खुँसे जलीस के अंगूठों को यूँ देखने लगा मानों अंदाजा लगा रहा था कि शोल्डर होल्सटर से गन निकालने में उसे कितना वक्त लगेगा ।
"तो फिर हरकत करो ।" जलीस बोला–"और आजमा लो ।"
स्थिति को भांप गए सुलेमान पाशा के चेहरे से सुर्खी गायब हो गई ।
"बको मत, बशीर ।" वह बोला–"गन इसकी बैल्ट में है ।"
बशीर को फौरन अपनी गलती का अहसास हो गया और गहरी साँस लेकर रह गया । लेकिन उसका साथी चटखारा सा लेकर बोला–"फर्श पर अपनी इस पोजीशन में तुम सिर्फ इसे ही शूट कर पाओगे, दोस्त । मगर मैं...।"
तभी उसके पीछे दरवाजे से पीटर का नर्म स्वर उभरा ।
"तुम भी नीचे पड़े दम तोड़ रहे होंगे ।"
वह फौरन पलट गया और पीटर के हाथ में दोनाली बंदूक तनी देखकर झटका सा खाकर रह गया ।
सुलेमान पाशा ने उन दोनों को टहोका लगाया और पलटकर पीटर की बगल से गुजरकर बाहर निकल गया ।
उन दोनों ने भी उसका अनुकरण किया ।
नीचे जाती लिफ्ट की धीमी आवाज़ सुनकर जलीस उठकर खिड़की के पास जा खड़ा हुआ ।
वे तीनों कार में सवार होकर चले गए ।
पीटर ने बंदूक कोने में रख दी ।
"तुम्हें उन तीनों के बारे में किसने बताया ?" जलीस ने पूछा ।
"सड़क पार इमारत की निगरानी कर रहे आदमी ने ।"
"और तुम सुपरमैन की तरह उड़कर यहाँ पहुँच गए ?"
पीटर हँसा ।
"नहीं, मैं फायर एस्केप से ऊपर पहुँचा और खिड़की से अंदर आ गया । तुम्हारे दिए गए नाम बिलाव की तरह बेआवाज ।"
"उन दोनों बदमाशों के बारे में बताओ ।"
"वो बात बिल्कुल सही है । मैं दो जगह फोन करके कनफर्म कर चुका हूँ कि टारगेट तुम्हीं हो । कुल चार लाख में सौदा हुआ है–दोनों को दो दो लाख रुपए मिलेंगे ।"
जलीस मुस्कुराया ।
"बड़ी कम कीमत लगाई गई है मेरी ।"
"कम नहीं है । एक पार्टी और भी है जो उन दोनों को दो लाख रुपए इस बात के लिए देगी कि वे तुम्हें खत्म करने के काम को कुछ दिन के लिए रोके रखें ।"
"दिलचस्प बात है ।"
पीटर ने गौर से उसे देखा ।
"तुम्हें डर नहीं लग रहा, जलीस ?"
"नहीं । आओ, अब कुछ देर सो लेते हैं । तुम काउच परसोओगे और मैं बैडरुम में ।"
"ठीक है ।"
"तुम्हें इस इमारत के भूगोल की पूरी जानकारी है ?"
"नहीं, रनधीर मुझे बस मैसेंजर के तौर पर ही इस्तेमाल किया करता था । अपने आदेश दूसरों तक पहुँचाने के लिए उसने टेलीफोन का सहारा कभी नहीं लिया, क्यों ?"
"एहतियातन, अब सो जाओ ।"
पीटर काउच पर पर लेट गया ।
जलीस बैडरुम की ओर बढ़ गया ।
वह दरवाजे में पहुँचा तो पीटर ने पूछा–"अगर वे दोनों आदमी गनें निकाल लेते और मैं यहाँ नहीं पहुँच पाता तो क्या होता ?"
"मैंने उन दोनों की खोपड़ियों में सुराख बना देने थे, दोस्त ।"
"सच ?"
"मैं पहले भी ऐसा कर चुका हूँ ।"
पीटर खामोश हो गया ।
* * * * * *
सुबह करीब सवा सात बजे पीटर ने जगाया तो जलीस उठकर बैठ गया ।
पीटर ने सिगरेट सुलगाकर पहला ही कश लिया तो खाँसी आ गई । वह खाँसते–खाँसते दोहरा हो गया और आँखों में पानी आ गया । खाँसी का दौर रुका तो उसने पुनः कश लिया । फिर वही अंजाम हुआ तो उसने सिगरेट बाहर फेंक दी ।
"तुम बहुत दिन से बीमार हो ?" जलीस ने पूछा ।
"मैं बहुत पहले मर चुका हूँ ।"
"बेकार की बातें मत करो ।"
"मैं सच कह रहा हूँ । डॉक्टरों के मुताबिक मुझे दो महीने पहले मर जाना चाहिए था ।"
"लेकिन अब टी बी लाइलाज नहीं रही । नए–नए इलाज निकल आए हैं ।"
"साल भर पहले तक इलाज का चांस था मगर मैने परवाह नहीं की । करता भी किसके लिए और कैसे ? तुम तो जानते हो, मैं चौदह साल की उम्र से अनाथ और तन्हा हूँ । मेरा परिवार तुम दोस्त लोग ही थे और अकेलेपन के साथी थे बढ़िया सिगरेट और महँगी शराब । नतीजे के तौर पर मैं हमेशा मुफलिस ही रहा ।" वह मुस्कुराया–"जो मिला मुकद्दर समझकर ले लिया मगर किसी के सामने हाथ कभी नहीं फैलाया ।" पुनः खाँसने के बाद बोला–"सच बात तो यह है कि अब यह दुनिया जीने के काबिल रही भी नहीं । आजकल खुदगर्जी और नफरत के अलावा यहाँ कुछ नहीं रहा, दोस्त । सब पैसे के पीछे भाग रहे हैं और इसके लिए पागलों की तरह एक–दूसरे के गले काट रहे हैं । मेरी समझ में नहीं आता कि आजकल पैसे की हवस क्यों इतनी ज्यादा बढ़ गई है और पहले वाला भाईचारा और आपसी प्रेम कहाँ और क्यों गायब हो गया है ।" वह तनिक रुका फिर बोला–"जानते हो, आजकल 'अंडर वर्ल्ड में भी मज़हब के नाम पर नफरत फैलाने की कोशिश की जा रही है । लंबे–लंबे पुलिस रिकार्ड वाले, जो पहले राजनीतिबाजों की मेहरबानियाँ हासिल करने के बदले में उनकी मदद किया करते थे अब खुद राजनीतिबाज बन बैठे हैं और कुर्सी और वोट बैंक की ख़ातिर मज़हब और जाती के नाम पर लोगों में नफरत का जहर फैलाकर लोगों को एक–दूसरे से लड़वा रहे हैं । मुल्क का सत्यानाश करके रख दिया है कमबख्तों ने ।"
जलीस ने बिस्तर से उतरकर बदन तोड़ अंगड़ाई ली ।
"तुम्हारा लैक्चर खत्म हो गया ?"
"यह लैक्चर नहीं असलियत है, जलीस ।" पीटर ने कहा–"तुम जात–पात में यकीन करते हो ?"
"नहीं ।"
"मज़हब में ?"
"यह हर एक का अपना जाती मामला है ।"
"तुम मुसलमान हो, रनधीर हिन्दु था और मैं ईसाई हूँ । इनमें कौन सा मज़हब सबसे बड़ा है ।"
"कोई नहीं, सब बराबर हैं ।"
"तुम सबसे बड़ा मज़हब किसे मानते हो ?"
"इंसानियत को ।"
"और सबसे बड़ा रिश्ता ?"
"सच्ची दोस्ती ।"
"इस सीधी सी बात को और लोग क्यों नहीं समझते ?"
"क्योंकि खुदगर्जी, बेईमानी और लालच ने उनकी अक्ल पर पर्दा डाल दिया है ।"
अचानक पीटर गंभीर हो गया ।
"जानते हो, पहले मैं जिंदगी से इस कदर बेजार था कि खुदाबाप से रोज मौत माँगा करता था । लेकिन अब मुझे जिंदगी से प्यार होने लगा है ।"
"क्यों ?"
"जिंदगी एक बार फिर मजेदार होनी शुरु हो गई है–पुराने वक़्तों की तरह ।"
"क्या वे दिन वाकई मजेदार थे ?"
"बेशक । घर में बूढ़े बाप की गालियाँ और मार तो मुझे खाने को मिलती थी मगर भरपेट रोटी नहीं मिलती थी । आए दिन मार–कुटाई का नया हंगामा होता रहता था । फिर भी सबकी तरह मैं मस्त और बेफिक्र रहता था ।"
शिवपुरी के बदमाशों से हुई मुठभेड़ याद है तुम्हें ?"
"हाँ । उन्होंने सोनिया ब्रिगेजा और विमला सक्सेना को अपने ठिकाने पर ले जाकर उन्हें 'खराब' करने की कोशिश की थी । हमने उनके ठिकाने पर हमला बोल दिया । खूब जमकर मार–कुटाई हुई थी । उस रात हममें से कोई भी घर नहीं जा सका । मेरे सर में छह टांके आए थे । तुम और रनधीर उस पुलिस वाले पर भी पिल पड़े थे जिसने उनकी तरफदारी करते हुए लड़ाई रुकवाने की कोशिश की थी ।"
"उस पुलिसवाले ने मेरी नाक तोड़ दी थी ।"
"बाद में तुमने उसकी सर्विस रिवॉल्वर चुराकर हिसाब बराबर कर लिया था । वो रिवॉल्वर अभी भी तुम्हारे पास है ?"
"हाँ ।" जलीस ने दरवाजे पर लटकी अपनी पैट की ओर इशारा कर दिया । जिसकी जेब में अड़तीस कैलाबर की रिवॉल्वर रखी थी ।
"यू आर ग्रेट, जलीस ।"
"आई नो, नाऊ यू काल अमोलक एन्ड टैल हिम टू कम हेयर ।"
"ओ. के. बॉस ।"
* * * * * *
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